[13/07, 11:10 p.m.] harshad30.wordpress.com: परमेश्वर के पाँच प्रसिद्ध नामों की व्याख्या :–
• हरि = दुखों को हरने वाला परमात्मा ।
अभि प्रियाणि काव्या विश्वा चक्षाणो अर्षति । हरिस्तुञ्जान आयुधा ।। ( ऋग्वेद १/५७/२ )
भावार्थ :- हे दुःखहर्ता परमात्मा ! आप अपने दिव्य शस्त्रों ( शक्तियों ) को दुष्ट ( वेद विरोधी ) शत्रुओं पर चलाते हुए सब प्रकार के विद्वानों के कार्यों को देखते हुए प्रिय पदार्थों को प्राप्त कराते हैं ।
• शिव = सर्वकल्याणकारी, मंगलकारी परमेश्वर ।
ब्रह्मणा तेजसा सह प्रति मुञ्चामि मे शिवम् ।
असपत्ना सपत्नहा सपत्नान मेऽधराँ अकः ।। ( अथर्ववेद १०/६/३० )
भावार्थ :- हे प्रभु ! वेद ज्ञान द्वारा प्रकाश के साथ आप मंगलकारी परमात्मा शिव को मैं अरने लिए स्विकार करता हूँ । शत्रु रहित, शत्रुनाशक आप परमेश्वर ! मेरे सब शत्रुओं को नष्ट कर दीजीए ।
• गणपति = सब प्रकार के स्मूहों, समुदायों व मंडलों आदि के स्वामी ।
गणानां त्वा गणपतिं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे ।। ( यजुर्वेद २३/१९ )
भावार्थ :- हे स्मूहाधिपते परमात्मन् ! आप मेरे सब स्मूहों के पति होने से मैं आपको गणपति नाम से पुकारता हूँ । आप मेरे प्रियजनों और प्रिय पदार्थों के पति हैं अतः आपको प्रियपति नाम से पुकारता हूँ तथा आप सब निधियों के पति होने से मैं आपको निश्चित रूप से निधिपति जानकर आपकी उपासना करता हूँ ।
• विष्णु = सर्वत्र व्यापनशील परमात्मा ।
तद्विष्णोः परमं पदं सदा पश्यन्ति सूरयः । दिवीव चक्षुराततम् ।। ( ऋग्वेद १/२,७/१० )
भावार्थ :- हे सर्वत्र व्यापनशील विष्णु परमात्मा ! आपका जो अत्यन्त उत्कृष्ट पद सबके जानने योग्य है जिसको प्राप्त होकर जीव लोग पूर्णानन्द में रहते हैं और फिर वहाँ शीघ्र दुःख में नहीं घिरते हैं उस पद को सूरयः ( धर्मात्मा, विद्वान, जितेन्द्रिय, योगी लोग ) प्राप्त करते हैं ( अनुभव करते हैं ) । जैसे आकाश में सूर्य का प्रकाश सर्वत्र व्याप्त है वैसे ही आप विष्णु परमेश्वर भी सर्वत्र व्याप्त हैं ।
• भगवान = परम ऐश्वर्यवान ईश्वर ।
भग एवं भगवाँ अस्तु देवास्तेन वयं भगवन्तः स्याम । ( यजुर्वेद ३४/३८ )
भावार्थ :- हे सर्वाधिपते महाराजेश्वर ! आप परम ऐश्वर्यरूप होने से भगवान हो । हम विद्वान गण भी आप महान् भगवान की कृपा व सहाय से महान बनें ।
नीरज आर्य अँधेड़ी
[14/07, 9:16 a.m.] harshad30.wordpress.com: अत्रा॒ न हार्दि॑ क्रव॒णस्य॑ रेजते॒ यत्रा॑ म॒तिर्वि॒द्यते॑ पूत॒बंध॑नी ॥( ऋग्वेद )
जिस जगह पवित्रता से बन्धी हुई बुद्धि रहती है वहां कर्म करने वाले के हृदय के मनोरथ कभी व्यर्थ नही होता ।
जय योगेश्वर।
[14/07, 9:30 a.m.] Dinesh Kadel: ज्यों तिल मांही तेल है, ज्यों चकमक में आग ।
तेरा साईं तुझमे है, तू जाग सके तो जाग ॥
अर्थ :🌹
जिस तरह तिल में तेल होता है, और पत्थरों से आग उत्पन्न हो
सकती है।
उसी प्रकार भगवान् भी आपके अंतर्गत हैं। उन्हें जगाने की शक्ति पैदा करने की आवश्यकता है।।
🙏🏻🌹श्री राम🌹🙏🏻
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