Posted in हिन्दू पतन

वाट्सअप पे मिला राहत साहब….के मशहूर शे’र का जवाब।
मैंने इन्दौरी साहब के इस शेर को सुना है लेकिन इस शेर को पढ़ने का उनका अंदाज इतना तल्ख था कि हैरानी हुयी और दुख भी
जनाब राहत इन्दौरी साहब के इस एक शेर का जिक्र कई बार करते हैं मेरे सेक्युलर मित्र…
“सभी का खून है शामिल यहाँ की मिटटी में

किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है ”
उनको उन्ही की भाषा में विनम्र जवाब:-
खफा होते है हो जाने दो, घर के मेहमान थोड़ी है 

जहाँ भर से लताड़े जा चुके है, इनका मान थोड़ी है 

.

ये कान्हा राम की धरती, सजदा करना ही होगा 

मेरा वतन ये मेरी माँ, लूट का सामान थोड़ी है 

.

मैं जानता हूँ, घर में बन चुके है सैकड़ों भेदी 

जो सिक्कों में बिक जाए वो मेरा ईमान थोड़ी है 

.

मेरे पुरखों ने सींचा है लहू के कतरे कतरे से 

बहुत बांटा मगर अब बस, खैरात थोड़ी है 

.

जो रहजन थे उन्हें हाकिम बना कर उम्र भर पूजा 

मगर अब हम भी सच्चाई से अनजान थोड़ी है ?

.

बहुत लूटा फिरंगी ने कभी बाबर के पूतों ने

ये मेरा घर है मेरी जाँ, मुफ्त की सराय थोड़ी है
(आप मेरे पसंदीदा शायर हैं, होंगे पर मुल्क़ से बढ़कर थोड़ी हैं)

Posted in सुभाषित - Subhasit

[13/07, 11:10 p.m.] harshad30.wordpress.com: परमेश्वर के पाँच प्रसिद्ध नामों की व्याख्या :–

• हरि = दुखों को हरने वाला परमात्मा ।

अभि प्रियाणि काव्या विश्वा चक्षाणो अर्षति । हरिस्तुञ्जान आयुधा ।। ( ऋग्वेद १/५७/२ ) 

भावार्थ :- हे दुःखहर्ता परमात्मा ! आप अपने दिव्य शस्त्रों ( शक्तियों ) को दुष्ट ( वेद विरोधी ) शत्रुओं पर चलाते हुए सब प्रकार के विद्वानों के कार्यों को देखते हुए प्रिय पदार्थों को प्राप्त कराते हैं ।

• शिव = सर्वकल्याणकारी, मंगलकारी परमेश्वर ।

ब्रह्मणा तेजसा सह प्रति मुञ्चामि मे शिवम् ।

असपत्ना सपत्नहा सपत्नान मेऽधराँ अकः ।। ( अथर्ववेद १०/६/३० ) 

भावार्थ :- हे प्रभु ! वेद ज्ञान द्वारा प्रकाश के साथ आप मंगलकारी परमात्मा शिव को मैं अरने लिए स्विकार करता हूँ । शत्रु रहित, शत्रुनाशक आप परमेश्वर ! मेरे सब शत्रुओं को नष्ट कर दीजीए ।

• गणपति = सब प्रकार के स्मूहों, समुदायों व मंडलों आदि के स्वामी ।

गणानां त्वा गणपतिं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे ।। ( यजुर्वेद २३/१९ ) 

भावार्थ :- हे स्मूहाधिपते परमात्मन् ! आप मेरे सब स्मूहों के पति होने से मैं आपको गणपति नाम से पुकारता हूँ । आप मेरे प्रियजनों और प्रिय पदार्थों के पति हैं अतः आपको प्रियपति नाम से पुकारता हूँ तथा आप सब निधियों के पति होने से मैं आपको निश्चित रूप से निधिपति जानकर आपकी उपासना करता हूँ ।

• विष्णु = सर्वत्र व्यापनशील परमात्मा ।

तद्विष्णोः परमं पदं सदा पश्यन्ति सूरयः । दिवीव चक्षुराततम् ।। ( ऋग्वेद १/२,७/१० )

भावार्थ :- हे सर्वत्र व्यापनशील विष्णु परमात्मा ! आपका जो अत्यन्त उत्कृष्ट पद सबके जानने योग्य है जिसको प्राप्त होकर जीव लोग पूर्णानन्द में रहते हैं और फिर वहाँ शीघ्र दुःख में नहीं घिरते हैं उस पद को सूरयः ( धर्मात्मा, विद्वान, जितेन्द्रिय, योगी लोग ) प्राप्त करते हैं ( अनुभव करते हैं ) । जैसे आकाश में सूर्य का प्रकाश सर्वत्र व्याप्त है वैसे ही आप विष्णु परमेश्वर भी सर्वत्र व्याप्त हैं ।

• भगवान = परम ऐश्वर्यवान ईश्वर ।

भग एवं भगवाँ अस्तु देवास्तेन वयं भगवन्तः स्याम । ( यजुर्वेद ३४/३८ ) 

भावार्थ :- हे सर्वाधिपते महाराजेश्वर ! आप परम ऐश्वर्यरूप होने से भगवान हो । हम विद्वान गण भी आप महान् भगवान की कृपा व सहाय से महान बनें ।

नीरज आर्य अँधेड़ी

[14/07, 9:16 a.m.] harshad30.wordpress.com: अत्रा॒ न हार्दि॑ क्रव॒णस्य॑ रेजते॒ यत्रा॑ म॒तिर्वि॒द्यते॑ पूत॒बंध॑नी ॥( ऋग्वेद )

जिस जगह पवित्रता से बन्धी हुई बुद्धि रहती है वहां कर्म करने वाले के हृदय के मनोरथ कभी व्यर्थ नही होता ।
जय योगेश्वर।

[14/07, 9:30 a.m.] Dinesh Kadel: ज्यों तिल मांही तेल है, ज्यों चकमक में आग ।

तेरा साईं तुझमे है, तू जाग सके तो जाग ॥
अर्थ :🌹

जिस तरह तिल में तेल होता है, और पत्थरों से आग उत्पन्न हो 

सकती है।

उसी प्रकार भगवान् भी आपके अंतर्गत हैं। उन्हें जगाने की शक्ति पैदा करने की आवश्यकता है।।

🙏🏻🌹श्री राम🌹🙏🏻

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

जानिए क्यों बेलपत्र के बिना अधूरी है श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा


जानिए क्यों बेलपत्र के बिना अधूरी है श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सावन माह में अगर कोई व्यक्ति सच्चे मन से भगवान शिव की पूजा करता है और उन्हें बेलपत्र अर्पित करता है तो भगवान उसकी हर इच्छा पूरी करते हैं। भोलेनाथ को बेलपत्र बहुत ही प्रिय है, क्या आप जानते हैं क्यों है बेलपत्र का इतना महत्व, आइए आपको बताते हैं इसके बारे में….
बेलपत्र की कहानी :-
स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती के पसीने की बूंद मंदराचल पर्वत पर गिर गई और उससे बेल का पेड़ निकल आया। माता पार्वती के पसीने से बेल के पेड़ का उद्भव हुआ। माना जाता है कि इसमें माता पार्वती के सभी रूप बसते हैं। वे पेड़ की जड़ में गिरिजा के स्वरूप में, इसके तनों में माहेश्वरी के स्वरूप में और शाखाओं में दक्षिणायनी व पत्तियों में पार्वती के रूप में रहती हैं।
फलों में कात्यायनी स्वरूप व फूलों में गौरी स्वरूप निवास करता है। इस सभी रूपों के अलावा, मां लक्ष्मी का रूप समस्त वृक्ष में निवास करता है। बेलपत्र में माता पार्वती का प्रतिबिंब होने के कारण इसे भगवान शिव पर चढ़ाया जाता है। भगवान शिव पर बेल पत्र चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं । ये माना जाता है कि जो व्यक्ति किसी तीर्थस्थान पर नहीं जा सकता है अगर वो श्रावण मास में बिल्व के पेड़ के मूल भाग की पूजा करके उसमें जल अर्पित करे तो उसे सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य मिलता है।
विकास खुराना

Posted in कविता - Kavita - કવિતા

*सोलह श्रृंगार*

सीता जी ने पूछा मैया से

बताओ —- माँ एक सार !

विवाहोपरांत — हर नारी

क्यों करती सोलह श्रृंगार!!
मैया ने —–मीठी वाणी में 

समझाई ——- हर बात !

सोलह श्रृंगार से पूर्ण होती

धरा पर ——- नारी जात !!
मेंहदी —को हर समय

अपने हाथों में रचाना !

कर्मो  की  लालिमा से

सारा जग — महकाना !!
आँखों में प्रेम बसा कर

काजल  उनमें लगाना !

भलै सम्पति खो जाये

पर , शील जल बचाना!!
सूर्य की भाँति प्रकाशवान हो

छोड़ देना — शरारत — जिद्दी !

इसिलिए तो —- नारी लगाये 

अपने माँथे पर ——- बिन्दी !!
मन को  काबू में  करके 

लगा देना उस पर लगाम !

नारी की नाक की नथनी

देती है – यह सुंदर पैगाम !!
बूरे कर्म से परहेज करना

यश कमाना —- भरपूर !

पतिव्रत धर्म का  पालन 

यह सिखलाता है -सिंदूर !!
खुद की प्रशंसा सुनने की

मत करना तुम —- भूल !

हर  हाल  में खुश  रहना 

शिक्षा यह देता कर्णफूल !!
सबके मन को मोहने वाले

कर्म करना तू —— बाला !

सुख – दुख में –सम रहना 

यह सीख देती मोहन माला !!
सीघा-सादा जीवन रखना

मत करना तुम —– फंद !

इसिलिए तो — नारी बाँधे

अपने हाथ में — बाजूबंद !!
कभी किसी में छल न करना

रुपया हो या ——– गल्ला !

कमर में — लटकाये रखना

अपना ——— सुंदर छल्ला !!
बड़े – बूढ़ो की सेवा करके

कर देना उनको — कायल !

घर-आँगन छनकाती रहना 

अपने पैरों की —– पायल !!
छोटो को  आशीष  देना

खबरदार-जो उनसे रुठी !

हाथों की –अँगुलियों में 

पहने रखना —- अँगूठी !!
परिवार को बिछड़ने न देना

रखना सबको ——- साथ !

पैरों की बिछिया — प्यारी

बतलाती ——- यह बात !!
कठोर वाणी का त्याग कर

करना सबका —- मंगल !

जीवन को – रंगो से भरना 

पहने रखना —— कंगन !!
कमरबंद की  भाँति तुम

सेवा में ——- बँध जाना !

पति के संग – –संग तुम

पूरे परिवार को अपनाना !!
R K Neekhara.

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

भगवान आज तो भोजन दे दो


भगवान आज तो भोजन दे दो
हम उस समय गंगा अपार्टमेंट बस स्टैंड गुड़गांव के पास रहते थे, मेरी नाईट शिफ़्ट होती है, मैं सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल हूँ, अक्सर घर से ही अमेरिकन MNC के लिए काम करती हूँ, रात को पौने दस पर मुझे एलर्जी हो गयी और घर पर दवाई नहीं थी, ड्राईवर भी अपने घर जा चुका था और बाहर हल्की बारिश की बूंदे जुलाई महीने के कारण बरस रही थी। दवा की दुकान ज्यादा दूर नहीं थी पैदल जा सकते थे लेकिन बारिश की वज़ह से मैंने रिक्शा लेना उचित समझा। बगल में राम मन्दिर बन रहा था एक रिक्शा वाला भगवान की प्रार्थना कर रहा था। मैंने उससे पूंछा चलोगे तो उसने सहमति में सर हिलाया और हम बैठ गए। काफ़ी बीमार लग रहा था और उसकी आँखों में आँशु भी थे।
मैंने पूंछा क्या हुआ भैया रो क्यूँ रहे हो और तुम्हारी तबियत भी ठीक नहीं लग रही, उसने बताया बारिश की वजह से तीन दिन से सवारी नहीं मिली और वह भूखा है बदन दर्द कर रहा है, अभी भगवान से प्रार्थना कर रहा था क़ि मुझे आज भोजन दे दो, मेरे रिक्शे के लिए सवारी भेज दो।
मैं बिना कुछ बोले रिक्शा रोककर दवा की दूकान पर चली गयी, खड़े खड़े सोच रही थी कहीं मुझे भगवान ने तो इसकी मदद के लिए नहीं भेजा। क्योंकि यदि यही एलर्जी आधे घण्टे पहले उठती तो मैं ड्राइवर से दवा मंगाती, रात को बाहर निकलने की मुझे कोई ज़रूरत भी नहीं थी, और पानी न बरसता तो रिक्शे पर भी न बैठती। मन ही मन गुरुदेव को याद किया और कहा मुझे बताइये क्या आपने रिक्शे वाले की मदद के लिए भेजा है। मन में जवाब मिला हाँ। मैंने गुरुदेव को धन्यवाद् दिया, अपनी दवाई के साथ क्रोसीन की टेबलेट भी ली, बगल की दुकान से छोले भटूरे ख़रीदे और रिक्शे पर आकर बैठ गयी। जिस मन्दिर के पास से रिक्शा लिया था वहीँ पहुंचने पर मैंने रिक्शा रोकने को कहा।
उसके हाथ में रिक्शे के 20 रुपये दिए, गर्म छोले भटूरे दिए और दवा देकर बोली। खाना खा के ये दवा खा लेना, एक गोली आज और एक कल। मन्दिर में नीचे सो जाना।
वो रोते हुए बोला, मैंने तो भगवान से दो रोटी मांगी थी मग़र भगवान ने तो मुझे छोले भटूरे दे दिए। कई महीनों से इसे खाने की  इच्छा थी। आज भगवान ने मेरी प्रार्थना सुन ली।और जो मन्दिर के पास उसका बन्दा रहता था उसको मेरी मदद के लिए भेज दिया। कई बातें वो बोलता रहा और मैं स्तब्ध हो सुनती रही।
घर आकर सोचा क़ि उस मिठाई की दुकान में बहुत सारी चीज़े थीं, मैं कुछ और भी ले सकती थी समोसा या खाने की थाली पर मैंने छोले भटूरे ही क्यों लिए? क्या भगवान ने मुझे रात को अपने भक्त की मदद के लिए भेजा था?
हम जब किसी की मदद करने सही वक्त पर पहुँचते हैं तो इसका मतलब उस व्यक्ति की भगवान ने प्रार्थना सुन ली और आपको अपना प्रतिनिधि बना, देवदूत बना उसकी मदद के लिए भेज दिया।

NOTE यह कहानी दूसरे ग्रुप का है अच्छा लगा तो सेयर कर रहा हु 🙏🏻

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक व्यक्ति ने बुलेट 350सीसी मोटरसायकल खरीदी,


एक व्यक्ति ने बुलेट 350सीसी

मोटरसायकल खरीदी,

ताकि,

वो,

अपनी गर्लफ्रेंड को लॉन्गड्राइव पर घुमाने ले जा सके ..

लेकिन,

किस्मत देखिये..

बुलेट 350सीसी की तेज़ आवाज़ के कारण,

ड्राइविंग

करते समय वो अपनी गर्लफ्रेंड से बात नही कर पता था,

तंग आ कर,

आखिरकार उसने अपनी बुलेट 350सीसी,

जिसे उसने बड़े ही अरमानो से खरीदा था,

बमुश्किल एक महीने के भीतर,

घाटा उठाकर,

यानि नुकसान सहकर बेच दी,

बेच दी,

और

एक नई एक्टिवा खरीद ली,

अब वो बहुत खुश था..

उसकी लवलाइफ बहुत ही अच्छी चल रही थी,

लॉन्गड्राइव पर जाने में

उसे अब बहुत ही मज़ा आने लगा था,

क्योंकि, नई एक्टिवा,

उस बुलेट 350सीसी की तरह तेज़ आवाज़ नही करती थी,

और वो,

बड़े ही आराम से ड्राइविंग करते हुए अपनी प्यारी गर्लफ्रेंड से बातें कर पाता था,

दोनों के दिन बड़े ही अच्छे से कट रहे थे,

वक्त मनो पंख लगा कर उड़ता रहा..

देखते ही देखते दो वर्ष कब बीत गये,

दोनों को पता ही न चला,

बहुत प्यार था उन दोनों को

एक दूजे से,

दोनों ने साथ-साथ जीने मरने की कसमें खाईं,

आदमी अच्छाखासा कमाता था,

गर्लफ्रेंड में भी कोई कमी न थी,

अत:

घरवालों को राज़ी कर के दोनों ने शादी कर ली,

अब वक्त और तेज़ी से गुज़रा..

एक साल बाद..

उसी आदमी ने वापस

.

.

.

.

एक्टिवा बेच कर,

बुलेट 500सीसी खरीद ली..!

( वजह हर आदमी जानता है)

😂😂😂😂😂😂😂😂

R K Neekhara

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

वे दिन वे लोग


वे दिन वे लोग——-

अमरसर (शेखावाटी)के राजा सूजाजी  की राठौड़ रानी से रायसल जी का जन्म फाल्गुन बदि 8 वि.1595 को हुआ।सूजाजी के बाद उनके बड़े पुत्र राव लूणकर्ण ने अमरसर की राजगद्दी संभाली । रायसल जी को अन्य भाइयों की तरह 7 गांवों की जमीदारी मिली और ये जमीदारी के गांव लाम्या आकर रहने लगे ।

सूजाजी के विद्वान दीवान देवी दास अब राव लूणकर्ण के पास रहने लगे । किसी बात पर दीवानजी अमरसर से रायसलजी के पास आ गए । दीवानजी ने रायसलजी को पिता के गुप्त खजाने के बारे में बताया । रायसलजी ने उस धन से 200 घुड़सवार लिए और देवीदास की सलाह से बादशाह अकबर के पास चले गए । वहां कई युद्धों में पराक्रम दिखलाया और मनसब प्राप्त किया ।

रायसलजी अद्भुत वीर उदार धार्मिक प्रवृति के और चरित्रवान शासक थे । ये युद्धों में बादशाह के साथ छाया की तरह रहते हुए अनेक बार उसकी प्राणरक्षा की । इसलिए बादशाह के ख़ास व्यक्ति थे । अकबर ने राज्य की अन्य जिम्मेदारियों के अलावा हरम की व्यवस्था सौंप राखी थी । उज्ज्वल चरित्र के बावजूद देवीदास दीवान हरम में होनेवाली गड़बड़ियों को जानता था । उसने रायसलजी की सलाह सेे पीतल का एक कच्छा बनवाया। जब ये जनानखाने की  व्यवस्था में जाते तब दीवान जी रायसलजी के कच्छे को ताला लगा देते और चाबी अपने पास रखते । लौटने पर ताला खोल देते।

धन्य है ऐसे चरित्रवान राजा और धन्य है ऐसे दीवान सलाहकार।

मनोहर सी ग राठौर

Posted in ज्योतिष - Astrology

शास्त्रों के अनुसार गुरु का स्थान सबसे ऊँचा बताया जाता है |
 गुरु के विषय में यह कहा जाता है कि यदि गुरु और ईश्वर दोनों एक साथ खडे हो तो पहले गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए क्योंकि गुरु ने ही ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग बताया है |
एक बार काकभुसंडी जी भगवान शिव का तप कर रहे थे तभी काकभुसंडी जी के गुरु आयें | अपने गुरु को देखकर काकभुसंडी जी खडे नहीं हुए , उनका ऐसा आचरण देखकर शिवजी काकभुसंडी जी से रुष्ट हो गए और काकभुसंडी जी को श्राप दे दिया |
गुरु का स्थान तो भगवान शिव से भी ऊँचा होता है और गुरु का अपमान करने पर भगवान शिव दण्डित करते है| एक मान्यता के अनुसार शिव ही गुरु रूप धारण कर शिष्य का उद्धार करते है , पर यह भी सत्य है कि जप ईश्वर कृपा होती है तभी गुरु की प्राप्ति होती है और जप गुरु कृपा होती है तभी ईश्वर की प्राप्ति होती है और इस तरह होनो ही एक दूसरे के पूरक है |
 उदाहरण के लिए –राजस्थान और सहारा जैसे मरुस्थल को पानी की अधिक आवश्यकता है पर उसमरुस्थल में कभी बारिश नहीं होती ,पर चेरापूंजी और उत्तराखंड में इतनी हरियाली है पर वहाँ पानी की आवश्यकता नहीं होने पर भी वर्षा होती है क्योंकि जहां पेड़ होते है वही वर्षा होती है और जहाँ वर्षा होती है वही पेड़ होते है क्योंकि दोनों ही एक दूसरे के पूरक है ठीक उसी प्रकार गुरु और ईश्वर एक दूसरे के पूरक है |
प्रस्तुत साधना से व्यक्ति को गुरु की प्राप्ति होती है और उस कीआध्यात्मिक उन्नति होती है | भगवनशिव कृपा कर उसके लिए गुरु भेज देते है |
|| मंत्र ||
ॐ गुरु देवाय विद्महे यज्ञपुरुषाय धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात |
|| विधि ||
इस साधना को गुरु पूर्णिमा या किसी भी पूर्णिमा से शुरू करे और शिवलिंग के पास बैठकर लिंग पूजन करे और इस मंत्र का ११ माला जाप करे | ऐसा ४१ दिन करे | माला कोई भी इस्तेमाल की जा सकती है | साधना केदिनों में नहाते वक्त पानी में चुटकी भर हल्दी डालकर स्नान करे |
ईश्वर कृपा से आपको गुरु प्राप्त हो जायेंगे |
जय सदगुरुदेव….!!

विक्रम प्रकाश राइसोनि