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Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

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किताबें नमी में फंस जाती हैं, दोस्त वापस नहीं देते, दीमक खा जाते हैं, हमारे जीवन के बाद कूड़ेदान में खत्म हो जाते हैं। उससे पहले एक pdf बना लें
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Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

#साल 1192 ए डी,

#तुर्की का सैन्य कमांडर बख्तियार खिलजी गंभीर रूप से बीमार पड़ गया।सारे हकीम हार गए परंतु बीमारी का पता नहीं चल पाया। खिलजी दिनों दिन कमजोर पड़ता गया और उसने बिस्तर पकड़ लिया ।उसे लगा कि अब उसके आखिरी दिन आ गए हैं ।

*#एक दिन उससे मिलने आए एक बुज़ुर्ग ने सलाह दी कि दूर भारत के मगध साम्राज्य में अवस्थित नालंदा महावीर के एक ज्ञानी राहुल शीलभद्र को एक बार दिखा लें ,वे आपको ठीक कर देंगे। खिलजी तैयार नहीं हुआ। उसने कहा कि मैं किसी काफ़िर के हाथ की दवा नहीं ले सकता हूं चाहे मर क्यों न जाऊं!! मगर बीबी बच्चों की जिद के आगे झुक गया। राहुल शीलभद्र जी तुर्की आए । #खिलजीने उनसे कहा कि दूर से ही देखो मुझे छूना मत क्योंकि तुम काफिर हो और दवा मैं लूंगा नहीं । राहुल शीलभद्र जी ने उसका चेहरा देखा,शरीर का मुआयना किया ,बलगम से भरे बर्तन को देखा, सांसों के उतार चढ़ाव का अध्ययन किया और बाहर चले गए
फिर लौटे और पूछा कि कुरान पढ़ते हैं?
खिलजी ने कहा दिन रात पढ़ते हैं
पन्ने कैसे पलटते हैं?
उंगलियों से जीभ को छूकर सफे पलटते हैं!!
शीलभद्र जी ने खिलजी को एक कुरान भेंट किया और कहा कि आज से आप इसे पढ़ें और राहुल शीलभद्र जी वापस भारत लौट आए।

उधर दूसरे दिन से ही खिलजी की तबीयत ठीक होने लगी
और एक हफ्ते में वह भला चंगा हो गया। दरअसल राहुल शीलभद्र जी ने कुरान के पन्नों पर दवा लगा दी थी जिसे उंगलियों से जीभ तक पढ़ने के दौरान पहुंचाने का अनोखा तरीका अपनाया गया था। 😳 😊

#खिलजी अचंभित था मगर उससे भी ज्यादा ईर्ष्या और जलन से मरा जा रहा था कि आखिर एक काफिर मुस्लिम से ज्यादा काबिल कैसे हो गया?

*#अगले ही साल 1193 में उसने सेना तैयार की और जा पहुंचा नालंदा महावीर मगध क्षेत्र। पूरी दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञान और विज्ञान का केंद्र। जहां 10000 छात्र और 1000 शिक्षक एक बड़े परिसर में रहते थे । जहां एक तीन मंजिला इमारत में विशाल लायब्रेरी थी जिसमें एक करोड़ पुस्तकें, पांडुलिपियां एवं ग्रंथ थे।

#खिलजी जब वहां पहुंचा तो शिक्षक और छात्र उसके स्वागत में बाहर आए क्योंकि उन्हें लगा कि वह कृतज्ञता व्यक्त करने आया है। *#खिलजी ने उन्हें देखा और मुस्कुराया…..और तलवार से भिक्षु श्रेष्ठ की गर्दन काट दी। फिर हजारों छात्र और शिक्षक गाजर मूली की तरह काट डाले गए।

**#खिलजी ने फिर ज्ञान विज्ञान के केंद्र पुस्तकालय में आग लगा दी। कहा जाता है कि पूरे तीन महीने तक पुस्तकें जलती रहीं। खिलजी चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था कि तुम काफिरों की हिम्मत कैसे हुई इतनी पुस्तकें पांडुलिपियां इकट्ठा करने की? बस एक कुरान रहेगा धरती पर बाकी सब को नष्ट कर दूंगा। पूरे नालंदा को तहस नहस कर जब वह लौटा तो रास्ते में विक्रम शिला विश्वविद्यालय को भी जलाते हुए लौटा।मगध क्षेत्र के बाहर बंगाल में वह रूक गया और वहां खिलजी साम्राज्य की स्थापना की।😢

जब वह लद्दाख क्षेत्र होते हुए तिब्बत पर आक्रमण करने की योजना बना रहा था तभी एक रात उसके एक कमांडर ने उसकी सोए में हत्या कर दी। #आज भी बंगाल के पश्चिमी दिनाजपुर में उसकी कब्र है जहां उसे दफनाया गया था। और *#सबसे हैरत की बात है कि उसी दुर्दांत हत्यारे के नाम पर बिहार में बख्तियार पुर नामक जगह है जहां रेलवे जंक्शन भी है जहां से नालंदा की ट्रेन जाती है#
✍️Nirantar Narayan

Posted in संस्कृत साहित्य

१.शतरंज के खेल की खोज भारत मे हुई थी।
२.भारत ने अपने इतिहास में किसी भी देश पर
कब्जा नहीं किया।
३.अमरिका के जेमोलोजिकल संस्थान के
अनुसार1896 तक भारत ही केवल हीरो का
स्त्रोत था।
४.भारत 17वीं सदी तक धरती पर सबसे अमीर
देश था इसलिए यह सोने की चीड़िया
कहलाता था।
५.भारत में हीं संख्या पद्धति का आविष्कार
हुआ और आर्यभट्ट ने शून्य की कल्पना की।
६.नाविक विद्दा की खोज 6000 पूर्व भारत में
सिन्ध नदी में हुई थी।
७.विश्व का पहला विश्वविद्दालय
तक्षशिला700 बीसी में भारत में स्थापित
किया गया था।
८.संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है।
९.भास्कराचार्य ने पृथ्वी द्वारा सूर्य का ग्रह
पथ का समय ३६५.२५८७५६४८४ दिन पांचवी
शताब्दी में हि दिया था यानी न्यूटन के
दादा के जन्म से पहले।
१०.आयुर्वेद का जन्म भारत में हुआ।
११.अर्थशास्त्र का जन्म भारत में चाण्क्य के
द्वारा।
१२. विश्व का सबसे पुराना पुस्तक “वेद” भारत
मे।
१३.मानव जाती का विकाश भारत में।
१४. सभ्यता संस्कृति का विकाश भारत में।
१५.विज्ञान का विकाश भारत में।
१६.वायुयान का आविष्कार शिवकरवापूजी
तलपड़े ने 1895 में किया था।
१७. पायथागोरस परिमेय का सुत्र उपनिषदों में
पाया गया है।
१८.बैटरी निर्माण बिधि का आविष्का
रसर्वप्रथम महर्षि अगस्त्य ने किया था
(अगस्त्य संहिता ) बेंजामिन फ्रेंक्लिनके जन्म से
पहले
१९.सबसे पहले व्याकरण की रचना भारत में
महर्षि पाणिनी द्वारा
२०.लोकतंत्र का जन्म भारत मे…
२१.सबसे पुराना शहर काशी (भारत)
२२.प्लास्टिक सर्जरी का आविष्कारकऋषि
सुश्रुत भारत में
२३. सबसे पुराना धर्म सनातन धर्म भारत में

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

बुद्ध मुस्कुराये… Buddha is smiling.

पोखरण टेस्ट 1: जब कृष्ण ने उंगली पर उठाया पहाड़ को…

18 मई, 1974 की सुबह आकाशवाणी के दिल्ली स्टेशन पर ‘बॉबी’ फ़िल्म का वो मशहूर गाना बज रहा था, “हम तुम एक कमरे में बंद हों और चाबी खो जाए।” ठीक नौ बजे गाने को बीच में ही रोक कर उद्घोषणा हुई, कृपया एक महत्वपूर्ण प्रसारण की प्रतीक्षा करें।

कुछ सेकंड बाद रेडियो पर उद्घोषक के स्वर गूंजे, “आज सुबह आठ बजकर पांच मिनट पर भारत ने पश्चिमी भारत के एक अज्ञात स्थान पर शांतिपूर्ण कार्यों के लिए एक भूमिगत परमाणु परीक्षण किया है।”

इससे एक दिन पहले लंदन में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के प्रधान सचिव पीएन हक्सर बार बार भारतीय उच्चायुक्त बीके नेहरू से सवाल कर रहे थे, “दिल्ली से कोई ख़बर आई?” जैसे ही भारत के परमाणु परीक्षण की ख़बर मिली नेहरू ने हक्सर के चेहरे पर आई राहत को साफ़ पढ़ा।

वो समझ गए कि हक्सर क्यों बार बार दिल्ली से आने वाली ख़बर के बारे में पूछ रहे थे। पाँच दिन पहले 13 मई को परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष होमी सेठना की देखरेख में भारत के परमाणु वैज्ञानिकों ने परमाणु डिवाइस को असेंबल करना शुरू किया था।

14 मई की रात डिवाइस को अंग्रेज़ी अक्षर एल की शक्ल में बने शाफ़्ट में पहुंचा दिया गया था। अगले दिन सेठना ने दिल्ली के लिए उड़ान भरी। इंदिरा गाँधी से उनकी मुलाक़ात पहले से ही तय थी। सेठना ने कहा, “हमने डिवाइस को शाफ़्ट में पहुंचा दिया है. अब आप मुझसे ये मत कहिएगा कि इसे बाहर निकालो क्योंकि ऐसा करना अब संभव नहीं है। अब आप हमें आगे जाने से नहीं रोक सकतीं।”

इंदिरा का जवाब था, “गो अहेड। क्या तुम्हें डर लग रहा है?”

सेठना बोले, “बिल्कुल नहीं। मैं बस ये बताना चाह रहा था कि अब यहाँ से पीछे नहीं मुड़ा जा सकता।” अगले दिन इंदिरा गाँधी की मंज़ूरी ले कर सेठना पोखरण वापस पहुँचे।

उन्होंने पूरी टीम को जमा किया और सवाल किया कि अगर ये परीक्षण असफल हो जाता है तो किसका सिर काटा जाना चाहिए? बम के डिज़ाइनर राजगोपाल चिदंबरम ने छूटते ही जवाब दिया, “मेरा।”

टीम के उपनेता पी के आएंगर भी बोले, “किसी का सिर काटने की ज़रूरत नहीं है। अगर ये असफल होता है तो इसका मतलब है भौतिकी के सिद्धांत सही नहीं हैं।” (राजा रमन्ना, इयर्स ऑफ़ पिलग्रिमेज)

18 मई की सुबह पोखरण के रेगिस्तान में गर्मी कुछ ज़्यादा ही थी। विस्फोट को देखने के लिए वहाँ से पाँच किलोमीटर दूर एक मचान सा बनाया गया था। वहाँ पर होमी सेठना, राजा रमन्ना, तत्कालीन थल सेनाध्यक्ष जनरल बेवूर, डीआरडीओ के तत्कालीन अध्यक्ष बीडी नाग चौधरी, टीम के उपनेता पी के आयंगर और लेफ़्टिनेंट कर्नल पीपी सभरवाल मौजूद थे।

नाग चौधरी के गले में कैमरा लटक रहा था और वो लगातार तस्वीरें खींच रहे थे। चिदंबरम और एक दूसरे डिज़ाइनर सतेंद्र कुमार सिक्का कंट्रोल रूम के पास एक दूसरे मचान पर थे। श्रीनिवासन और इलेक्ट्रॉनिक डेटोनेशन टीम के प्रमुख प्रणव दस्तीदार कंट्रोल रूम के अंदर थे। परीक्षण के लिए सुबह आठ बजे का समय निर्धारित किया गया था।

लेकिन इससे एक घंटे पहले अंतिम जाँच करने गए वैज्ञानिक वीरेंद्र सिंह सेठी की जीप परीक्षण स्थल पर स्टार्ट होने का नाम ही नहीं ले रही थी। समय निकलता जा रहा था। आख़िरकार सेठी ने जीप वहीं छोड़ी और दो किलोमीटर पैदल चल कर कंट्रोल रूम पहुँचे। सेठना ने वहाँ मौजूद थल सेनाध्यक्ष जनरल बेवूर से पूछा कि जीप का क्या किया जाए जो परीक्षण स्थल के बिल्कुल पास खड़ी थी। जनरल बेवूर का जवाब था, “ओह यू कैन ब्लो द डैम थिंग अप।”

ऐसा करने की नौबत नहीं आई क्योंकि इस बीच भारतीय सेना के जवान एक जीप ले कर वहाँ पहुंच गए और ख़राब जीप को टो करके सुरक्षित जगह पर लाया गया। लेकिन इस चक्कर में परीक्षण का समय पाँच मिनट और बढ़ा दिया गया।

अंतत: मचान के पास मौजूद लाउड स्पीकर से उल्टी गिनती शुरू हुई। सेठना और रमन्ना ने ट्रिगर दबाने का गौरव प्रणव दस्तीदार को दिया। जैसे ही पाँच की गिनती हुई प्रणव ने हाई वोल्टेज स्विच को ऑन किया। दस्तीदार के पैरों से ज़मीन निकल गई जब उन्होंने अपनी बाईं तरफ़ लगे इलेक्ट्रीसिटी मीटर को देखा। मीटर दिखा रहा था कि निर्धारित मात्रा का सिर्फ़ 10 फ़ीसदी वोल्टेज ही परमाणु डिवाइस तक पहुँच पा रहा था। उनके सहायकों ने भी ये देखा। वो घबराहट में चिल्लाए, “शैल वी स्टॉप? शैल वी स्टॉप?” हड़बड़ी में गिनती भी बंद हो गई।

लेकिन दस्तीदार का अनुभव बता रहा था कि शॉफ्ट के अंदर अधिक आद्रता की वजह से ग़लत रीडिंग आ रही है। वो चिल्लाए, “नो वी विल प्रोसीड।”

जॉर्ज परकोविच अपनी किताब ‘इंडियाज़ न्यूकिल्यर बॉम्ब’ में लिखते हैं आठ बज कर पाँच मिनट पर दस्तीदार ने लाल बटन को दबाया। उधर मचान पर मौजूद सेठना और रमन्ना ने जब सुना कि गिनती बंद हो गई है तो उन्होंने समझा कि विस्फोट को रोक दिया गया है।

रमन्ना ‘इयर्स ऑफ़ पिलग्रिमेज’ में लिखते हैं कि उनके साथी वैंकटेशन ने जो इस दौरान लगातार विष्णु सहस्रनाम का पाठ कर रहे थे, अपना जाप रोक दिया था।

अभी सब सोच ही रहे थे कि उनकी सारी मेहनत बेकार गई है कि अचानक धरती से रेत का एक पहाड़।सा उठा और लगभग एक मिनट तक हवा में रहने के बाद गिरने लगा। बाद में पी के आएंगर ने लिखा, “वो ग़ज़ब का दृश्य था। अचानक मुझे वो सभी पौराणिक कथाएं सच लगने लगी थीं जिसमें कहा गया था कि कृष्ण ने एक बार पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया था।”

उनके बग़ल में बैठे सिस्टम इंटिगरेशन टीम के प्रमुख जितेंद्र सोनी को लगा जैसे उनके सामने रेत की क़ुतुब मीनार खड़ी हो गई हो।

तभी सभी ने महसूस किया मानो एक ज़बरदस्त भूचाल आया हो। सेठना को भी लगा कि धरती बुरी तरह से हिल रही है। लेकिन उन्होंने सोचा कि विस्फोट की आवाज़ क्यों नहीं आ रही? या उन्हें ही सुनाई नहीं पड़ रहा? (रीडिफ़.कॉम से बातचीत: 8 सितंबर 2006)

लेकिन एक सेकेंड बाद विस्फोट की दबी हुई आवाज़ सुनाई पड़ी। चिदंबरम, सिक्का और उनकी टीम ने एक दूसरे को गले लगाना शुरू कर दिया। चिदंबरम ने बाद में लिखा, ”ये मेरे जीवन का सबसे बड़ा क्षण था।” जोश में सिक्का मचान से नीचे कूद पड़े और उनके टख़ने में मोच आ गई।

कंट्रोल रूम में मौजूद श्रीनिवासन को लगा जैसे वो ज्वार भाटे वाले समुद्र में एक छोटी नाव पर सवार हों जो बुरी तरह से डगमगा रही हो। रमन्ना ने अपनी आत्मकथा में लिखा, “मैंने अपने सामने रेत के पहाड़ को ऊपर जाते हुए देखा मानो हनुमान ने उसे उठा लिया हो।”

लेकिन वो इस उत्तेजना में भूल गए थोड़ी देर में धरती कांपने वाली है। उन्होंने तुरंत ही मचान से नीचे उतरना शुरू कर दिया। जैसे ही धरती हिली, मचान से उतर रहे रमन्ना अपना संतुलन नहीं बरक़रार रख पाए और वो भी ज़मीन पर आ गिरे। ये एक दिलचस्प इत्तेफ़ाक़ था कि भारत के परमाणु बम का जनक, इस महान उपलब्धि के मौक़े पर पोखरण की चिलचिलाती गर्म रेत पर औंधे मुँह गिरा पड़ा था।

अब अगली समस्या थी कि इस ख़बर को दिल्ली इंदिरा गाँधी तक कैसे पहुँचाया जाए? सिर्फ़ इसी मक़सद से सेना ने वहाँ पर प्रधानमंत्री कार्यालय के लिए ख़ास हॉट लाइन की व्यवस्था की थी। पसीने में नहाए सेठना का कई प्रयासों के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क स्थापित हुआ। दूसरे छोर पर प्रधानमंत्री के निजी सचिव पी एन धर थे। सेठना बोले, “धर साहब, एवरी थिंग हैज़ गॉन…” तभी लाइन डेड हो गई।

सेठना ने समझा कि धर को लगा होगा कि परीक्षण फ़ेल हो गया है। उन्होंने सेना की जीप उठाई और लेफ़्टिनेंट कर्नल पीपी सभरवाल के साथ बदहवासों की तरह ड्राइव करते हुए पोखरण गाँव पहुँचे जहाँ सेना का एक टेलिफ़ोन एक्सचेंज था।

वहाँ पहुँच कर सेठना ने अपना माथा पीट लिया जब उन्होंने पाया कि वो धर का डाएरेक्ट नंबर भूल आए हैं। यहाँ सभरवाल उनकी मदद को आगे आए। उन्होंने अपनी सारी अफ़सरी अपनी आवाज़ में उड़ेलते हुए टेलिफ़ोन ऑपरेटर से कहा, “गेट मी द प्राइम मिनिस्टर्स ऑफ़िस।” ऑपरेटर पर उनके इस आदेश का कोई असर नहीं हुआ। उसने ठेठ हिंदी में पूछा आप हैं कौन?

काफ़ी मशक्क़त और हील हुज्जत के बाद आख़िरकार प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क हुआ। बहुत ख़राब लाइन पर लगभग चीखते हुए सेठना ने वो मशहूर कोड वर्ड कहा, “बुद्धा इज़ स्माइलिंग।”

उस घटना के 29 वर्षों बाद तक पी एन धर ने ये बात किसी को नहीं बताई कि सेठना के ये सारे प्रयास बेकार साबित हुए थे क्योंकि दस मिनट पहले ही थलसेनाध्यक्ष जनरल बेवूर का फ़ोन उन तक पहुँच चुका था। धर उनसे सीधा सवाल नहीं कर सकते थे क्योंकि टेलिफ़ोन लाइन पर बातचीत सुनी जा सकती थी। धर ने उनसे पूछा था ‘ क्या हाल है?’ बेवूर का जवाब था,’ सब आनंद है।’

धर को उसी समय लग गया कि भारत का परमाणु परीक्षण सफल रहा है। उन्होंने तुरंत प्रधानमंत्री निवास का रुख़ किया। उस समय इंदिरा गाँधी अपने लॉन में आम लोगों से मिल रही थीं। जब उन्होंने धर को आते हुए देखा तो वो लोगों से बात करना बंद उनकी तरफ़ दौड़ीं। उखड़ी हुई साँसों के बीच उन्होंने पीएन धर से पूछा, “क्या हो गया।”

धर का जवाब था, “सब ठीक है मैडम।”

धर ने अपनी आत्मकथा में लिखा, “मुझे अभी भी याद है कि ये सुनते ही इंदिरा गाँधी की बाँछे खिल गई थीं। एक जीत की मुस्कान को उनके चेहरे पर साफ़ पढ़ा जा सकता था।”

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एक बुढ़ि मां ने हाथ आटा चक्की टांचने वाले कारीगर को बुलाया।

देख भाई चक्की टांचना जानता तो है ना ?…ये पड़ी चक्की इसे ठीक कर दे, बस आज लायक दलिया बचा है, वो चूल्हे पर चढ़ा दिया है, तू इसे ठीक कर, मैं तब तक कुए से मटकी भर लाती हूँ।

ठीक है अम्मा चिंता मत कर मेरी कारीगरी के 7 गाँवों में चर्चे हैं, चक्की ऐसी टांचूंगा कि आटा पीसेगी और मैदा निकलेगी। चूल्हे पर चढ़ा तेरा दलिया भी सम्भाल लूंगा।
बुढ़िया आश्वस्त हो कुंए की तरफ पानी भरने निकल ली और कारीगर चक्की की टंचाई करने लगा।

हत्थे से निकल कर हथौड़ी उछल चूल्हे के ऊपर लटकी घी की बिलौनी पर लगी, घी सहित बिलौनी चूल्हे पर चढ़ी दलिये की हांडी पर गिरी।
कारीगर हड़बड़ा गया और हड़बड़ाहट में चक्की का पाट भी टूट गया। कुछ समझ में आता, उससे पहले चूल्हे पर बिखर गए घी से लपटें उछली और फूस की छान/छत ने आग पकड़ ली और झोंपड़ी धू-धू कर जलने लगी।

कारीगर उलटे पाँव भागा और रास्ते में आती बुढ़िया से टकरा गया, जिससे उसकी मटकी गिर गयी।
अरे रोऊँ तुझे, ऐसी क्या जल्दी थी, अब रात को क्या प्यासी सोऊंगी, एक ही मटकी थी, वो भी तूने फोड़ दी।

कारीगर बोला अम्मा किस- किस को रोयेगी। पानी की मटकी को रोयेगी, घी की बिलौनी को रोयेगी, दलिये की हांड़ी को रोयेगी, टूटी चक्की को रोयेगी या जल गई अपनी झोंपड़ी को रोयेगी और कारीगर झोला उठा कर भाग छूटा।

देश भी कुछ ऐसे ही हालातों में पड़ा है… हिन्दुत्व के गद्दारों से लड़ोगे, घुसपैठियों से लड़ोगे, राष्ट्रद्रोहियों से लड़ोगे, टुकड़े टुकड़े गैंग से लड़ोगे, अवार्ड वापसी गैंग से लड़ोगे, बाहरी दुश्मनों से लड़ोगे या देश के अन्दर बैठे दुश्मनों से लड़ोगे… ?

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

भारत में सेवा करने वाले ब्रिटिश अधिकारियों को इंग्लैंड लौटने पर सार्वजनिक पद/जिम्मेदारी नहीं दी जाती थी। तर्क यह था कि उन्होंने एक गुलाम राष्ट्र पर शासन किया है जिसकी वजह से उनके दृष्टिकोण और व्यवहार में फर्क आ गया होगा। अगर उनको यहां ऐसी जिम्मेदारी दी जाए, तो वह आजाद ब्रिटिश नागरिकों के साथ भी उसी तरह से ही व्यवहार करेंगे। इस बात को समझने के लिए नीचे दिया गया वाकया जरूर पढ़ें…

एक ब्रिटिश महिला जिसका पति ब्रिटिश शासन के दौरान पाकिस्तान और भारत में एक सिविल सेवा अधिकारी था। महिला ने अपने जीवन के कई साल भारत के विभिन्न हिस्सों में बिताए, अपनी वापसी पर उन्होंने अपने संस्मरणों पर आधारित एक सुंदर पुस्तक लिखी।

महिला ने लिखा कि जब मेरे पति एक जिले के डिप्टी कमिश्नर थे तो मेरा बेटा करीब चार साल का था और मेरी बेटी एक साल की थी। डिप्टी कलेक्टर को मिलने वाली कई एकड़ में बनी एक हवेली में रहते थे। सैकड़ों लोग डीसी के घर और परिवार की सेवा में लगे रहते थे। हर दिन पार्टियां होती थीं, जिले के बड़े जमींदार हमें अपने शिकार कार्यक्रमों में आमंत्रित करने में गर्व महसूस करते थे और हम जिसके पास जाते थे, वह इसे सम्मान मानता था। हमारी शान और शौकत ऐसी थी कि ब्रिटेन में महारानी और शाही परिवार भी मुश्किल से मिलती होगी।

ट्रेन यात्रा के दौरान डिप्टी कमिश्नर के परिवार के लिए नवाबी ठाट से लैस एक आलीशान कंपार्टमेंट आरक्षित किया जाता था। जब हम ट्रेन में चढ़ते तो सफेद कपड़े वाला ड्राइवर दोनों हाथ बांधकर हमारे सामने खड़ा हो जाता और यात्रा शुरू करने की अनुमति मांगता। अनुमति मिलने के बाद ही ट्रेन चलने लगती।

एक बार जब हम यात्रा के लिए ट्रेन में सवार हुए, तो परंपरा के अनुसार, ड्राइवर आया और अनुमति मांगी। इससे पहले कि मैं कुछ बोल पाती, मेरे बेटे का किसी कारण से मूड खराब था। उसने ड्राइवर को गाड़ी न चलाने को कहा। ड्राइवर ने हुक्म बजा लाते हुए कहा, जो हुक्म छोटे सरकार। कुछ देर बाद स्टेशन मास्टर समेत पूरा स्टाफ इकट्ठा हो गया और मेरे चार साल के बेटे से भीख मांगने लगा, लेकिन उसने ट्रेन को चलाने से मना कर दिया। आखिरकार, बड़ी मुश्किल से, मैंने अपने बेटे को कई चॉकलेट के वादे पर ट्रेन चलाने के लिए राजी किया और यात्रा शुरू हुई।

कुछ महीने बाद, वह महिला अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने यूके लौट आई। वह जहाज से लंदन पहुंचे, उनकी रिहाइश वेल्स में एक काउंटी में थी जिसके लिए उन्हें ट्रेन से यात्रा करनी थी। वह महिला स्टेशन पर एक बेंच पर अपनी बेटी और बेटे को बैठाकर टिकट लेने चली गई। लंबी कतार के कारण बहुत देर हो चुकी थी, जिससे उस महिला का बेटा बहुत परेशान हो गया था। जब वह ट्रेन में चढ़े तो आलीशान कंपाउंड की जगह फर्स्ट क्लास की सीटें देखकर उस बच्चे को फिर गुस्सा आ गया।

ट्रेन ने समय पर यात्रा शुरू की तो वह बच्चा लगातार चीखने-चिल्लाने लगा। वह ज़ोर से कह रहा था, “यह कैसा उल्लू का पट्ठा ड्राइवर है। उसने हमारी अनुमति के बिना ट्रेन चलाना शुरू कर दी है। मैं पापा को बोल कर इसे जूते लगवा लूंगा।” महिला को बच्चे को यह समझाना मुश्किल हो रहा था कि यह उसके पिता का जिला नहीं है, यह एक स्वतंत्र देश है। यहां डिप्टी कमिश्नर जैसा तीसरे दर्जे का सरकारी अफसर तो क्या प्रधानमंत्री और राजा को भी यह अख्तियार नहीं है कि वह लोगों को अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए अपमानित कर सके।

आज भले ही हमने अंग्रेजों को खदेड़ दिया है लेकिन हमने गुलामी को अभी तक देश बदर नहीं किया। आज भी कई अधिकारी, एसपी, मंत्री, सलाहकार और राजनेता अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए आम लोगों को घंटों सड़कों पर परेशान करते हैं।

प्रोटोकॉल आम जनता की सुविधा के लिए होना चाहिए, ना कि उनके लिए परेशानी का कारण।
The World Classes, Jaipur

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

#इसे_भी_पाठ्यक्रम_में_शामिल_किया_जाना_चाहिए !!
जवाहरलाल नेहरू अभिनेत्री नरगिस के मामा थे ॥नरगिस की नानी दिलीपा मंगल पाण्डेय के ननिहाल के राजेन्द्र पाण्डेय की बेटी थीं… उनकी शादी 1880 में बलिया में हुई थी लेकिन शादी के एक हफ़्ते के अंदर ही उनके पति गुज़र गए थे…दिलीपा की उम्र उस वक़्त सिर्फ़ 13 साल थी…उस ज़माने में विधवाओं की ज़िंदगी बेहद तक़लीफ़ों भरी होती थी…ज़िंदगी से निराश होकर दिलीपा एक रोज़ आत्महत्या के इरादे से गंगा की तरफ़ चल पड़ीं लेकिन रात में रास्ता भटककर मियांजान नाम के एक सारंगीवादक के झोंपड़े में पहुंच गयीं जो तवायफ़ों के कोठों पर सारंगी बजाता था…मियांजान के परिवार में उसकी बीवी और एक बेटी मलिका थे… वो मलिका को भी तवायफ़ बनाना चाहता था…दिलीपा को मियांजान ने अपने घर में शरण दी…और फिर मलिका के साथ साथ दिलीपा भी धीरेधीरे तवायफ़ों वाले तमाम तौर-तरीक़े सीख गयीं और एक रोज़ चिलबिला की मशहूर तवायफ़ रोशनजान के कोठे पर बैठ गयीं…रोशनजान के कोठे पर उस ज़माने के नामी वक़ील मोतीलाल नेहरू का आना जाना रहता था जिनकी पत्नी पहले बच्चे के जन्म के समय गुज़र गयी थी…दिलीपा के सम्बन्ध मोतीलाल नेहरू से बन गए…इस बात का पता चलते ही मोतीलाल के घरवालों ने उनकी दूसरी शादी लाहौर की स्वरूप रानी से करा दी जिनकी उम्र उस वक़्त 15 साल थी…इसके बावजूद मोतीलाल ने दिलीपा के साथ सम्बन्ध बनाए रखे…इधर दिलीपा का एक बेटा हुआ जिसका नाम मंज़ूर अली रखा गया…उधर कुछ ही दिनों बाद 14 नवम्बर 1889 को स्वरूपरानी ने जवाहरलाल नेहरू को जन्म दिया…साल 1900 में स्वरूप रानी ने विजयलक्ष्मी पंडित को जन्म दिया और 1901 में दिलीपा के जद्दनबाई पैदा हुईं…अभिनेत्री नरगिस इन्हीं जद्दनबाई की बेटी थीं…मंज़ूर अली आगे चलकर मंज़ूर अली सोख़्त के नाम से बहुत बड़े मज़दूर नेता बने…और साल 1924 में उन्होंने यह कहकर देशभर में सनसनी फैला दी कि मैं मोतीलाल नेहरू का बेटा और जवाहरलाल नेहरू का बड़ा भाई हूं…उधर एक रोज़ लखनऊ नवाब के बुलावे पर जद्दनबाई मुजरा करने लखनऊ गयीं तो दिलीपा भी उनके साथ थी…जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस के किसी काम से उन दिनों लखनऊ में थे…उन्हें पता चला तो वो उन दोनों से मिलने चले आए…दिलीपा जवाहरलाल नेहरू से लिपट गयीं और रो-रोकर मोतीलाल नेहरू का हालचाल पूछने लगीं…मुजरा ख़त्म हुआ तो जद्दनबाई ने जवाहरलाल नेहरू को राखी बांधी…साल 1931 में मोतीलाल नेहरू ग़ुज़रे तो दिलीपा ने अपनी चूड़ियां तोड़ डालीं और उसके बाद से वो विधवा की तरह रहने लगीं…(गुजराती के वरिष्ठ लेखक रजनीकुमार पंड्या जी की क़िताब ‘आप की परछाईयां’ से साभार।)

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#જગન્નાથ_મંદિર_પુરી_અજાણ્યો_ઇતિહાસ

જગન્નાથ મંદિરના ઇતિહાસમાં આ વાતનો ઉલ્લેખ સુદ્ધાં પણ નથી કરવામાં આવ્યો.એ બાબત ખરેખર દુઃખદ ગણાય
ઓરિસ્સામાં ઘણાં મુસ્લિમ આક્રમણો થયાં હતાં
વાત મધ્યકાળની છે
એક આપણે છીએ કે ગઝની,ઘોરી ખિલજી કે તુઘલખ કે મોઘલોમાંથી ઊંચા જ નથી આવતા
કોનાર્કના સૂર્યમંદિર વિશે મેં એક આવા આક્રમણ સામેના હિન્દુ વિજય વિશે લખ્યું પણ હતું.
જેની નોંધ પણ ઈતિહાસમાં લેવાઈ જ નથી
આ ઘટના પણ કંઇક એવી જ છે
જે હિન્દુઓનું માથું ઊંચું રાખીને ફરવામાં કારણભૂત છે.

એક એવો હિંદુ વીર કે જેણે જગન્નાથ મંદિર પર આંખો ઉંચી કરી
આખા ઓરિસ્સાના મુસલમાનોના માથા કાપી નાખવામાં આવ્યા.

પુરાણો અનુસાર આ મંદિરને પૃથ્વીનું સ્વર્ગ માનવામાં આવે છે, હિન્દુ ધર્મમાં માનવામાં આવે છે કે ભગવાન કૃષ્ણ આજે પણ અહીં બિરાજમાન છે. આ મંદિરની સૌથી રસપ્રદ વાત એ છે કે આ મંદિરનો ધ્વજ હંમેશા પવનની સામે લહેરાવે છે, તેની સાથે તમે આ મંદિરનું સુદર્શન ચક્ર ગમે ત્યાંથી ઊભું જોઈ શકો છો. આ મંદિરને સૌથી રહસ્યમય બનાવે છે તે બાબત એ છે કે આ મંદિરના મુખ્ય ગુંબજનો પડછાયો ક્યારેય જમીન પર પડતો નથી, જો તમે આ મંદિરની અંદર જશો તો તમને બહાર દરિયાના મોજાનો અવાજ સંભળાશે નહીં. આ મંદિરમાં ક્યારેય પ્રસાદની કોઈ કમી નથી હોતી, આ ભારતનું એકમાત્ર એવું મંદિર છે જેનો ધ્વજ રોજ બદલાય છે, એવું માનવામાં આવે છે કે જો એક દિવસ પણ મંદિરનો ધ્વજ નહીં બદલાય તો આ મંદિર ૧૮ વર્ષ સુધી .મંદિરનેબંધ કરશે.

તમે આ મંદિરની પવિત્રતા અને મહત્વને એ હકીકતથી સમજી શકો છો કે આ મંદિર ઉપરથી કોઈ વિમાન પસાર થતું નથી, પક્ષીઓ પણ આ મંદિર ઉપરથી ઉડી શકતા નથી.

આટલી વાત તો બધાંને બધી જ ખબર છે
હવે જે નથી ખબર એની જ વાત હું કરવા માંગુ છું

વાત ઇતિહાસની છે
વાત શૌર્યની છે
વાત હિન્દુઓની વીરતાની છે

કુતલુ ખાનના નેતૃત્વ હેઠળ ઇસવિસન ૧૫૯૦ની આસપાસ, આ મહાન મંદિર તોડીને મસ્જિદ બનાવવાનો એક બેહુદો પ્રયાસ કરવામાં આવ્યો હતો. જ્યારે આમેરના રાજા માનસિંહજી કચ્છવાહને આ સમાચારની માહિતી મળી ત્યારે તેમણે પઠાણોને સમજાવ્યું કે, આ મંદિર તોડવાનું વિચારશો નહીં, નહીં તો તમારે ખૂબ ગંભીર પરિણામો ભોગવવા પડશે.

ભગવાન જગન્નાથ સ્વયં પોતાની રક્ષા માટે માનસિંહજીના રૂપમાં પ્રગટ થયા. કારણ કે તે સમયે માત્ર માનસિંહજી જ એકમાત્ર રાજા હતા, જેઓ વૈષ્ણવ ધર્મનું પાલન કરતા હતા, નિર્દોષ જીવોની હત્યા તો દૂરની વાત છે, તેમણે લસણ-ડુંગળી પણ ખાધી નહોતી.

આવા દિવ્યપુરુષને જોયા પછી પણ પઠાણ સુલતાન માન્યો નહીં. …., માનસિંહજીએ ઘણું સમજાવ્યું, જો હું તલવાર ઉપાડીશ તો મોટી આફત થશે….પઠાણ રાજી ન થયા..

આ યુદ્ધનું વધુ વર્ણન કેવી રીતે કરવું, આખા ઓરિસ્સામાં એક પણ મુસલમાન જીવતો બચ્યો ન હતો, જેઓ ઓરિસ્સા છોડીને ભાગી ગયા હતા તેમાંથી અડધા જ હતા. આજે પણ ઓરિસ્સામાં સૌથી ઓછી મુસ્લિમ વસ્તી છે, માત્ર ૨%.

જગન્નાથ મંદિરનો મુક્તિ મંડપ આજે પણ આ વીર રાજા માનસિંહની યાદ અપાવે છે.

લોકો એમ માને છે કે રાજા માનસિંહ ખાલી દર્શનાથે અહી આવેલા આ એમની આસ્થાના પ્રતીકરૂપે આ મંડપ બંધાવ્યો હતો
ભૌગોલિક રીતે જોઈએ તો આમેરથી પૂરી ઘણું દૂર છે
પણ આમિરના રાજા માટે શું દૂર અને શું નજીક ?
માત્ર ક્ષત્રિય હોવું
માત્ર હિન્દુ હોવું એ કાફી નથી શું ?

ઇતિહાસ આને જ કહેવાય મારાં વહાલાં મિત્રો
કારણકે ઇતિહાસને ભૂગોળના સીમાડા નથી નડતાં !!!
ઇતિહાસને ઇતિહાસની રીતે જ જોવો જોઈએ કે મુલવવો જોઈએ

શત શત નમન વીર રાજા માનસિંહને !!!

———— જનમેજય અધ્વર્યુ

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक बार की बात है सिंह को भूख लगी और उसने लोमड़ी से कहा– मेरे लिए कोई शिकार ढूंढकर लाओ, अन्यथा मैं तुम्हें ही खा जाऊँगा।

लोमड़ी एक गधे के पास गई और बोली– मेरे साथ सिंह के समीप चलो क्योंकि सिंह तुम्हें जंगल का राजा बनाना चाहता है।

सिंह ने गधे को देखते ही उस पर हमला करके उसके कान काट लिए, लेकिन गधा किसी प्रकार भागने में सफल रहा। तब गधे ने लोमड़ी से कहा– तुमने मुझे धोखा दिया सिंह ने तो मुझे मारने का प्रयास किया और तुम कह रही थी कि वह मुझे जंगल का राजा बनायेगा।

लोमड़ी ने कहा– मूर्खता भरी बात मत करो। उसने तुम्हारे कान इसीलिए काट लिए ताकि तुम्हारे सिर पर ताज सुगमता पूर्वक पहनाया जा सके, समझे! चलो लौट चलें सिंह के पास।

गधे को यह बात ठीक लगी, इसलिए वह पुनः लोमड़ी के साथ चला गया।

सिंह ने फिर गधे पर हमला किया तथा इस बार उसकी पूँछ काट ली। गधा फिर लोमड़ी से यह कहकर भाग चला– तुमने मुझसे झूठ कहा– इस बार सिंह ने तो मेरी पूँछ भी काट ली।

लोमड़ी ने कहा– सिंह ने तो तुम्हारी पूँछ इसलिए काट ली ताकि तुम सिंहासन पर सहजतापूर्वक बैठ सको, चलो पुनः उसके पास चलते हैं।

लोमड़ी ने गधे को फिर से लौटने के लिए मना लिया।

इस बार सिंह गधे को पकड़ने में सफल रहा और उसे मार डाला।

सिंह ने लोमड़ी से कहा– जाओ, इसकी चमड़ी उतार कर इसका दिमाग फेफड़ा और हृदय मेरे पास लेते आओ और बचा हुआ अंश तुम खा जाओ।

लोमड़ी ने गधे की चमड़ी निकाली और गधे का दिमाग खा लिया और केवल फेफड़ा तथा हृदय सिंह के पास ले गई सिंह ने गुस्से में आकर पूछा– इसका दिमाग कहाँ गया।

लोमड़ी ने जवाब दिया– महाराज ! इसके पास तो दिमाग था ही नहीं। यदि इसके पास दिमाग होता तो क्या कान और पूँछ कटने के उपरान्त भी आपके पास यह पुनः वापस आता।

शेर बोला– हाँ तुम पूर्णतया सत्य बोल रही हो।

पंचतंत्र की कहानियों से।

यह हर उस हिंदू गधे की कहानी है जो 1000 वर्षों से अधिक समय तक गुलामी में रहने और सभी हिंदुओं को खत्म करने के बारम्बार षड्यंत्र होने के बाद भी उन्हीं दुष्टों पर विश्वास करता है और धर्मनिरपेक्षता की बातें करता है।

जागो हिंदू ! जागो

जय श्री राम 🚩

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આપણી સંસ્કૃતિ આપણો વારસો

એક સમયે વિશાળ ઐશ્વર્ય, અપાર શક્તિ અને ક્ષમતા ધરાવનાર શ્રી હનુમાનજીની માતા ,અને હનુમાનજી ના જન્મ સ્થળ તરીકે જાણીતો અંજનેરી તીર્થક્ષેત્ર આજે જૈન સંસ્કૃતિના ઈતિહાસને જર્જરિત અવસ્થામાં સાચવી રહ્યો છે.
આ પર્વત મહારાષ્ટ્રમાં 4500+ ફૂટની ઊંચાઈએ બીજા ક્રમનું સૌથી ઊંચું શિખર છે
ભૂતકાળમાં, અંજનેરી ગામ અને તેની આસપાસના પરિસરમાં મોટી સંખ્યામાં જૈનો રહેતા હતા. અહીં આજે પણ દિગંબર જૈનોનો વારસો જોઈ શકાય છે.

12મી સદીના શિલાલેખ મુજબ આ ટેકરીની તળેટીમાં 108 જૈન મંદિરો હતા.
જૈન મંદિરો અને ગુફાઓ જર્જરિત હાલતમાં ઉભા છે. આ જ મંદિરમાં ઈ.સ. 1142 ના એક સાંસ્કૃતિક શિલાલેખ છે, જેમાં યાદવ કાળના મંત્રી સેયુનચંદ્ર રાજા પોતાના વ્યવસાયમાંથી ધાર્મિક ફરજ માનીને અંજનેરી જૈન મંદિર માટે દાન આપતા હતા.

આ દાનથી મંદિરોનો જીર્ણોદ્ધાર કરવામાં આવ્યો છે.1676માં ઔરંગઝેબ દ્વારા અંજનેરી પર કબજો કરવામાં આવ્યો હતો, ત્યારબાદ અહીંના જૈન મંદિરોને તોડી પાડવામાં આવ્યા હતા, ત્યારથી અંજનેરીમાં જૈન ધર્મનો પ્રભાવ અદૃશ્ય થઈ ગયો હતો.

પર્વત પર પહોંચવાનો સૌથી સહેલો રસ્તો અંજનેરી ગામથી છે. હવે જે બાકી છે તે પહાડી પરના બે જૈન ગુફા મંદિરો છે, જ્યાં બેસવાની મુદ્રામાં ભગવાન મલ્લિનાથ છે (3 ફૂટ ઊંચાઈ), દિવાલમાં કોતરવામાં આવેલ છે, અને સ્કંદ ગુફા જેમાં પાંચ મૂર્તિઓ હતી. મંદિર ની આસપાસ વધુ ખંડેર છે , અને 3-4 દિગંબર જૈન મંદિરો ખૂબ જ ખરાબ સ્થિતિમાં છે અને લગભગ ખંડેરમાં ફેરવાઈ જવાની આરે છે. એક મંદિરમાં પદ્માસન મુદ્રામાં 5 ફૂટની મહાવીરની મૂર્તિ છે. આ સ્થળ ગજપંથ સિદ્ધક્ષેત્રથી માત્ર 16 કિમી દૂર છે!

1708 માં, અંજનેરી પર મરાઠા પેશવાનું સામ્રાજ્ય સ્થાપિત થયું, ત્યારબાદ મંદિરોને પુનર્સ્થાપિત કરવાનો પ્રયાસ કરવામાં આવ્યો. ભારતીય પુરાતત્વ સર્વેક્ષણ દ્વારા પણ આ વાતની પુષ્ટિ કરવામાં આવી છે.

આ તીર્થસ્થાન અંજનીના નામથી અંજનેરી અથવા અંજનાગીરી તરીકે ઓળખાય છે, અંજનીપુત્ર, શ્રી હનુમાનના પુત્ર, જેમની પાસે અસીમ શક્તિ અને અખૂટ શક્તિ છે. મહારાષ્ટ્ર સરકાર આ વિસ્તારને પર્યટન વિસ્તાર અને હિલ સ્ટેશન તરીકે વિકસાવવા જઈ રહી છે અને આ દિશામાં કામ શરૂ થઈ ગયું છે.