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महाकवि कालिदास जी एक रास्ते से गुजर रहे थे। वँहा एक  पनिहारिन पानी भर रही थी


🌺🌺🌹🌹🌺🌺🌹🌹🌺🌺महाकवि कालिदास जी एक रास्ते से गुजर रहे थे। वँहा एक  पनिहारिन पानी भर रही थी । कालिदास ने कहा …….

कालिदास बोले माते पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा.

स्त्री बोली बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो।

मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।
कालिदास ने कहा मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।
स्त्री बोली तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।

पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?
(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)

कालिदास बोले मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।
स्त्री ने कहा नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ?
(कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)

कालिदास बोले मैं हठी हूँ ।
स्त्री बोली फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें कौन हैं आप ?
(पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे)

कालिदास ने कहा फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।
स्त्री ने कहा नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो।

मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।
(कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे)
वृद्धा ने कहा उठो वत्स ! (आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए)
माता ने कहा शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।

.

कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।
शिक्षा :-

विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है।

दो चीजों को कभी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए…..

अन्न के कण को

“और”

आनंद के क्षण को
—R K Neekhara

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ताज महल


“सपोले/नमक-हराम/देशद्रोही”
योगी आदित्यनाथ का यह बयान कुछ लोगों को बुरा लग रहा है कि ताजमहल हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है। 

लोग इस बयान पर आपत्ति जताते हुए ताजमहल को प्रेम का प्रतीक बता रहे हैं। 

ताजमहल, और उसके पीछे के प्रेम की कहानी कुछ दिनों पहले भाई रामप्रकाश त्रिपाठी की वाल पर पढ़ी थी। 

आप भी धैर्य से पढ़िए, ज्ञानवर्द्धन ही होगा :-
मुगलों के हरम की औलाद को हरामजादा

कहा जाता है।

शाहजहाँ के हरम में 8000 रखैलें थीं जो उसे उसके पिता जहाँगीर से विरासत में मिली थीं।

उसने बाप की सम्पत्ति को और बढ़ाया व हरम की महिलाओं की व्यापक छाँट की तथा बुढ़ियाओं को बाहर निकाल कर, अन्य

हिन्दू परिवारों से महिलाओं को बलात लाकर हरम को

बढ़ाता ही रहा।”

(अकबर दी ग्रेट मुगल : वी स्मिथ, पृष्ठ ३५९)
कहते हैं कि उन्हीं भगायी गयी महिलाओं से दिल्ली का रेडलाइट एरिया जी.बी. रोड गुलजार हुआ था और वहाँ इस धंधे की शुरूआत हुई थी।

जबरन अगवा की हुई हिन्दू महिलाओं की

यौन-गुलामी और यौन व्यापार को शाहजहाँ

प्रश्रय देता था, और अक्सर अपने मंत्रियों

और सम्बन्धियों को पुरस्कार स्वरूप अनेकों

हिन्दू महिलाओं को उपहार में दिया करता था।

यह नर पशु,यौनाचार के प्रति इतना आकर्षित

और उत्साही था, कि हिन्दू महिलाओं का मीना बाजार लगाया करता था, यहाँ तक कि अपने महल में भी!
सुप्रसिद्ध यूरोपीय यात्री फ्रांकोइस बर्नियर

ने इस विषय में टिप्पणी की थी कि,

”महल में बार-बार लगने वाले मीना बाजार,

जहाँ अगवा कर लाई हुई सैकड़ों हिन्दू महिलाओं

का, क्रय-विक्रय हुआ करता था,राज्य द्वारा बड़ी संख्या में नाचने वाली लड़कियों की व्यवस्था, और नपुसंक बनाये गये सैकड़ों लड़कों की हरमों में

उपस्थिति, शाहजहाँ की अनंत वासना के समाधान

के लिए ही थी।

(टे्रविल्स इन दी मुगल ऐम्पायर-

फ्रान्कोइसबर्नियर :पुनः लिखित वी. स्मिथ,

औक्सफोर्ड १९३४)
**शाहजहाँ को प्रेम की मिसाल के रूप पेश किया

जाता रहा है और किया भी क्यों न जाए।

8000 औरतों को अपने हरम में रखने वाला अगर

किसी एक में ज्यादा रुचि दिखाए तो वो उसका प्यार ही कहा जाएगा!

आप यह जानकर हैरान हो जायेंगे कि ‘मुमताज’ का नाम ‘मुमताज महल’ था ही नहीं बल्कि उसका असली नाम “अर्जुमंद-बानो-बेगम” था। 

और तो और जिस शाहजहाँ और मुमताज के प्यार की इतनी डींगे हांकी जाती हैं वो मुमताज़ ना तो शाहजहाँ की पहली पत्नी थी और ना ही आखिरी।

“मुमताज” शाहजहाँ की सात बीबियों में “चौथी” थी।

इसका मतलब है कि शाहजहाँ ने मुमताज से पहले 3 शादियाँ कर रखी थीं और, मुमताज से शादी करने के बाद भी उसका मन नहीं भरा तथा उसके बाद भी

उसने 3 शादियाँ और कीं!

यहाँ तक कि मुमताज के

मरने के एक हफ्ते के अन्दर ही उसकी बहन फरजाना से शादी कर ली थी।

जिसे उसने रखैल बना कर रखा हुआ था इससे शादी करने से पहले ही शाहजहाँ को इसी से एक बेटा भी था।
अगर शाहजहाँ को मुमताज से इतना ही प्यार था तो मुमताज से शादी के बाद भी शाहजहाँ ने 3 और

शादियाँ क्यों कीं…???

अब आप यह भी जान लें कि शाहजहाँ की सातों बीबियों में सबसे ज़्यादा सुन्दर मुमताज नहीं बल्कि इशरत

बानो थी जोकि उसकी पहली पत्नी थी ।
उससे भी घिनौना तथ्य यह है कि शाहजहाँ से

शादी करते समय “मुमताज” कोई “कुँवारी” लड़की नहीं थी बल्कि वो शादीशुदा थी और, उसका पति शाहजहाँ की सेना में सूबेदार था जिसका नाम “शेर अफगान खान” था।

शाहजहाँ ने शेर अफगान खान की हत्या कर मुमताज से शादी की थी।
गौर करने लायक बात यह भी है कि ३८ वर्षीय

मुमताज की मौत कोई बीमारी या एक्सीडेंट से

नहीं बल्कि चौदहवें बच्चे को जन्म देने के दौरान अत्यधिक कमजोरी के कारण हुई थी! यानि शाहजहाँ ने उसे बच्चे पैदा करने की मशीन ही नहीं बल्कि फैक्ट्री बनाकर मार डाला!
**शाहजहाँ कामुकता के लिए इतना कुख्यात

था कि कई इतिहासकारों ने उसे उसकी अपनी “सगी बेटी” जहाँआरा के साथ स्वयं सम्भोग करने का दोषी कहा है!
शाहजहाँ और मुमताज महल की बड़ी बेटी

जहाँआरा बिल्कुल अपनी माँ की तरह लगती थी। इसीलिए मुमताज की मृत्यु के बाद उसकी याद में

लम्पट शाहजहाँ ने अपनी ही बेटी जहाँआरा को

फँसाकर भोगना शुरू कर दिया था।
जहाँआरा को शाहजहाँ इतना प्यार करता था

कि उसने उसका निकाह तक होने न दिया।
बाप-बेटी के इस प्यार को देखकर जब महल में चर्चा शुरू हुई, तो मुल्ला-मौलवियों की एक बैठक बुलाई गयी और उन्होंने इस पाप को जायज ठहराने के लिए एक हदीस का उद्धरण दिया और कहा कि – “माली को अपने द्वारा लगाये पेड़ का फल खाने का हक़ है”।

(Francois Bernier wrote,

” Shah Jahan used to have regular sex

with his eldest daughter Jahan Ara.

To defend himself,Shah Jahan used to

say that,it was the privilege of a planter

to taste the fruit of the tree he had

planted.”)
**इतना ही नहीं जहाँआरा के किसी भी आशिक को वह उसके पास फटकने नहीं देता था।

कहा जाता है कि एक बार जहाँआरा जब अपने एक आशिक के साथ इश्क लड़ा रही थी तो शाहजहाँ आ गया जिससे डरकर वह हरम के तंदूर में छिप गया, शाहजहाँ ने तंदूर में आग लगवा दी और उसे जिन्दा जला दिया!
**दरअसल अकबर ने यह नियम बना दिया था

कि मुगलिया खानदान की बेटियों की शादी नहीं होगी।

इतिहासकार इसके कई कारण बताते हैं। इसका परिणाम यह होता था कि मुग़ल खानदान

की लड़कियाँअपने जिस्मानी भूख मिटाने के लिए अवैध तरीके से दरबारी,नौकर के साथ साथ, रिश्तेदार यहाँ तक की सगे सम्बन्धियों का भी सहारा लेती थीं!
**जहाँआरा अपने लम्पट बाप के लिए लड़कियाँ भी

फँसाकर लाती थी।

जहाँआरा की मदद से शाहजहाँ ने मुमताज के भाई शाईस्ता खान की बीबी से कई बार बलात्कार किया था।
**शाहजहाँ के ब्राह्मण राजज्योतिष की 13 वर्षीय लड़की को जहाँआरा ने अपने महल में बुलाकर उसे धोखे

से नशा कराके बाप के हवाले कर दिया था जिससे शाहजहाँ

ने 58 वें वर्ष में उस 13 बर्ष की ब्राह्मण कन्या से निकाह किया था।
बाद में इसी ब्राहम्ण कन्या ने शाहजहाँ के कैद होने के बाद एक बार फिर औरंगजेब की हवस की

सामग्री बनने से खुद को बचाने के लिए अपने ही हाथों अपने चेहरे पर तेजाब डाल लिया था@
**शाहजहाँ शेखी मारा करता था कि ‘ ‘वह तिमूर (तैमूरलंग) का वंशज है जो भारत में तलवार और अग्नि लाया था।

उजबेकिस्तान के जंगली जानवर के समान उस तिमूर से और

उसके द्वारा हिन्दुओं के साथ की गयी भारी रक्तपात की उपलब्धि से, शाहजहाँ इतना

प्रभावित था कि ”उसने अपना नाम तिमूरद्वितीय

रख लिया था”।

(दी लीगेसी ऑफ मुस्लिम रूल इन इण्डिया-

डॉ. के.एस. लाल, १९९२ पृष्ठ- १३२).
**बहुत प्रारम्भिक अवस्था से ही शाहजहाँ ने काफिरों

(हिन्दुओं) के प्रति युद्ध के लिए साहस व रुचि दिखाई थी।
अलग-अलग इतिहासकारों ने लिखा था कि,

”शहजादे के रूप में ही शाहजहाँ ने फतेहपुर सीकरी पर अधिकार कर लिया था और आगरा शहर में हिन्दुओं

का भीषण नरसंहार किया था@
**भारत यात्रा पर आये देला वैले, इटली के एक धनी व्यक्ति के अुनसार -शाहजहाँ की सेना ने भयानक बर्बरता का परिचय दिया था।

हिन्दू नागरिकों को घोर यातनाओं द्वारा अपने संचित धन को दे देने के लिए विवश किया गया, और अनेकों उच्च कुल की कुलीन हिन्दू महिलाओं का शील भंग

किया गया।”

(कीन्स हैण्ड बुक फौर विजिटर्स टू आगरा एण्ड

इट्सनेबरहुड, पृष्ठ 25)
**हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने शाहजहाँ को

एक महान निर्माता के रूप में चित्रित किया है।
किन्तु इस मुजाहिद ने अनेकों कला के प्रतीक सुन्दर हिन्दू मन्दिरों और अनेकों हिन्दू भवन निर्माण कला के केन्द्रों का बड़ी लगन और जोश से विध्वंस किया था!
अब्दुल हमीद ने अपने इतिहास अभिलेख, ‘बादशाहनामा’ में लिखा था- 

”महामहिम शहँशाह महोदय की सूचना में

लाया गया कि हिन्दुओं के एक प्रमुख केन्द्र, बनारस में उनके अब्बा हुजूर के शासनकाल में अनेकों मन्दिरों के पुनर निर्माण का काम प्रारम्भ हुआ था और काफिर

हिन्दू अब उन्हें पूर्ण कर देने के निकट आ पहुँचे हैं’, 

इस्लाम पंथ के रक्षक, इस शहँशाह ने आदेश दिया कि बनारस में और उनके सारे राज्य में, अन्यत्र सभी स्थानों पर, जिन मन्दिरों का निर्माण कार्य आरम्भ है, उन सभी का विध्वंस कर दिया जाए।
**इलाहाबाद प्रदेश से सूचना प्राप्त हो गई कि

जिला बनारस के छिहत्तर मन्दिरों का ध्वंस कर दिया गया था।’

(बादशाहनामा : अब्दुल हमीद लाहौरी,

अनुवाद एलियट और डाउसन, खण्ड VII,

पृष्ठ 36)
**हिन्दू मंदिरों को अपवित्र करने और उन्हें ध्वस्त करने की प्रथा ने शाहजहाँ के काल में एक व्यवस्थित विकराल रूप धारण कर लिया था।

(मध्यकालीन भारत – हरीश्चंद्र वर्मा – पेज-141)
*”कश्मीर से लौटते समय सन 1932 में शाहजहाँ को बताया गया कि अनेकों मुस्लिम बनायी गयी महिलायें फिर से हिन्दू हो गईं हैं और उन्होंने हिन्दू परिवारों में शादी कर ली है।

शहँशाह के आदेश पर इन सभी हिन्दुओं को बन्दी बना लिया गया।
पहले तो उन सभी पर इतना आर्थिक दण्ड थोपा गया कि उनमें से कोई भुगतान नहीं कर सका!

बाद में या तो इस्लाम स्वीकार कर लेने या फिर मृत्यु में से एक को

चुन लेने का विकल्प दिया गया।
जिन्होनें धर्मान्तरण स्वीकार नहीं किया, उन सभी पुरुषों का सर काट दिया गया।
लगभग चार हजार पाँच सौ महिलाओं को बलात मुसलमान बना लिया गया और उन्हें सिपहसालारों, अफसरों और शहँशाह के नजदीकी लोगों और

रिश्तेदारों के हरम में भेज दिया गया।”

(हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ दी इण्डियन पीपुल :

आर.सी. मजूमदार, भारतीय विद्या भवन,पृष 312)
* 1657 में शाहजहाँ बीमार पड़ा और उसी के

बेटे औरंगजेब ने उसे उसकी रखैल जहाँआरा के साथ आगरा के किले में बंद कर दिया। परन्तु औरंगजेब ने एक आदर्श बेटे का भी फर्ज निभाया

और अपने बाप की कामुकता को समझते हुए उसे अपने साथ ४० रखैलें (शाही वेश्याएँ) रखने की इजाजत दे दी।
दिल्ली आकर उसने बाप की हजारों रखैलों में से कुछ गिनी चुनी औरतों को अपने हरम में डालकर बाकी सभी को उसने किले से बाहर निकाल दिया।
उन हजारों महिलाओं को भी दिल्ली के उसी हिस्से में पनाह मिली जिसे आज दिल्ली का रेड लाईट एरिया जीबी रोड कहा जाता है। जोकि उसके अब्बा शाहजहाँ की मेहरबानी से ही बसा और गुलजार हुआ था ।
***”शाहजहाँ की मृत्यु आगरे के किले में ही 22 जनवरी 1666 ईस्वी में 74 साल की उम्र में, द हिस्ट्री चैनल के अनुसार, अत्यधिक कमोत्तेजक दवाएँ खा लेने का कारण हुई थी। यानि जिन्दगी के आखिरी वक्त तक वो अय्याशी ही करता रहा था।
** अब आप खुद ही सोचें कि क्यों ऐसे बदचलन और दुश्चरित्र इंसान को प्यार की निशानी बताकर

महान बताया जाता है… ???
क्या ऐसा बदचलन इंसान कभी किसी से प्यार कर सकता है…???
क्या ऐसे वहशी और क्रूर व्यक्ति की अय्याशी की कसमें खाकर लोग अपने प्यार को बे-इज्जत नहीं करते हैं…?
दरअसल ताजमहल और प्यार की कहानी इसीलिए गढ़ी गयी है कि लोगों को गुमराह किया जा सके और लोगों से… खासकर हिन्दुओं से… यह सचाई छुपायी जा सके कि- 

ताजमहल कोई प्यार की निशानी नहीं बल्कि महाराज जय सिंह द्वारा बनवाया गया भगवान् शिव का मंदिर “तेजो महालय” है…!
और जिसे प्रमाणित करने के लिए डा० सुब्रहमण्यम स्वामी आज भी सुप्रीम कोर्ट में सत्य की लड़ाई लड़

रहे हैं।
** असलियत में मुगल इस देश में धर्मान्तरण,

लूट-खसोट और अय्याशी ही करते रहे और नेहरू के आदेश पर हमारे इतिहासकार इन व्यभिचारियों  को जबरदस्ती महान बनाते रहे!

वास्तव में ये सब हुआ झूठी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर!
( दैनिक जागरण  के विशेष संवाददाता श्री ओम प्रकाश  तिवारी के वॉल से साभार )

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एक दिन एक शिष्य ने गुरु से पूछा


एक दिन एक शिष्य ने गुरु से पूछा, ‘गुरुदेव, आपकी दृष्टि में यह संसार क्या है? इस पर गुरु ने एक कथा सुनाई ! ‘एक नगर में एक शीशमहल था, महल की हरेक दीवार पर सैकड़ों शीशे जडे़ हुए थे! एक दिन एक गुस्सैल कुत्ता महल में घुस गया ! महल के भीतर उसे सैकड़ों कुत्ते दिखे, जो नाराज और दुखी लग रहे थे ! उन्हें देखकर वह उन पर भौंकने लगा ! उसे सैकड़ों कुत्ते अपने ऊपर भौंकते दिखने लगे ! वह डरकर वहां से भाग गया, कुछ दूर जाकर उसने मन ही मन सोचा कि, इससे बुरी कोई जगह नहीं हो सकती !! कुछ दिनों बाद एक अन्य कुत्ता शीशमहल पहुंचा ! वह खुशमिजाज और जिंदादिल था ! महल में घुसते ही उसे वहां सैकड़ों कुत्ते दुम हिलाकर स्वागत करते दिखे, उसका आत्मविश्वास बढ़ा और उसने खुश होकर सामने देखा तो, उसे सैकड़ों कुत्ते खुशी जताते हुए नजर आए !! उसकी खुशी का ठिकाना न रहा ! जब वह महल से बाहर आया तो उसने महल को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ स्थान, और महल के अनुभव को जीवन का सबसे बढ़िया अनुभव माना ! वहां फिर से आने के संकल्प के साथ, वह वहां से रवाना हुआ !! #कथा_समाप्त कर गुरु ने शिष्य से कहा.. ‘संसार भी ऐसा ही शीशमहल है, जिसमें व्यक्ति अपने विचारों के अनुरूप ही प्रतिक्रिया पाता है ! जो लोग संसार को आनंद का बाजार मानते हैं, वे यहां से हर प्रकार के सुख और आनंद के अनुभव लेकर जाते हैं और जो लोग इसे दुखों का कारागार समझते हैं, उनकी झोली में दुख और कटुता के सिवाय कुछ नहीं बचता….!!

R K Neekhara

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प्राथना


ડો.માર્ક વિખ્યાત કેન્સર સ્પેશીયાલીસ્ટ હતા. એકવાર

એક કોન્ફરન્સમાં ભાગ લેવા માટે જઇ રહ્યા હતા. કોઇ

ટેકનિકલ ક્ષતીને કારણે વિમાનને ઇમરજન્સી લેન્ડીંગ

કરવું પડ્યું. આ વિમાન હવે આગળની ઉડાન ભરી શકે

તેમ નહોતું એટલે ડો. માર્કે રીસેપ્શન પર જઇને

આગળની સફર માટે પુછપરછ કરી. રીસેપનીસ્ટે જણાવ્યુ

કે આપને જે શહેરમાં જવું છે ત્યાં જવા માટેની ફ્લાઇટ હવે

12 કલાક પછી જ મળી શકે તેમ છે. જો આપને ઉતાવળ

હોય તો આપ ટેક્સી ભાડા પર લઇને સેલ્ફ ડ્રાઇવીંગ

કરીને જઇ શકો છો.

કોન્ફરન્સમાં પહોંચવું બહુ જ જરૂરી હતુ આથી ડો.માર્ક

આ વિસ્તારથી સાવ અજાણ્યા હોવા છતા ટેકસી ભાડા પર

લઇને નીકળી પડ્યા. જીપીએસ સીસ્ટમ પર તે શહેરમાં 4

કલાકમાં પહોંચી જવાશે એવો સંદેશો જોઇને ડો.માર્કને

હાશકારો થયો. હજુ તો એકાદ કલાક પસાર થયો ત્યાં

જોરદાર વરસાદ અને વાવાઝોડું શરૂ થયુ. જીપીએસ કામ

કરતું બંધ થઇ ગયુ અને ડોકટર સાવ અજાણ્યા

વિસ્તારમાં ફસાઇ ગયા. એમણે ધીમે ધીમે ગાડી

ચલાવવાની ચાલુ જ રાખી.

લગભગ 5-6 કલાકના સતત ડ્રાઇવીંગ પછી પણ ક્યાં

પહોંચ્યા એની કંઇ ખબર પડતી નહોતી. સાવ ઉજ્જડ

વિસ્તાર હતો. એક નાનું મકાન દેખાયુ એટલે ડો.માર્ક

ત્યાં પહોંચી ગયા. એ ખુબ થાકેલા હતા અને ભૂખ પણ

ખુબ લાગી હતી. ઘરમાં જઇને જો કંઇ ખાવાનું હોય તો

આપવા માટે ડો.માર્કે ઘરના માલીકને વિનંતી કરી. માલીક

બહુ માયાળુ સ્વભાવના હતા એમણે તુંરત જ રસોઇ

બનાવી અને નવા અજાણ્યા મહેમાનને જમવા માટે

બોલાવ્યા.

ડો.માર્કની સાથે ઘરનો માલીક પણ જમવા માટે બેઠો.

જમતા પહેલા એ ભગવાનને કંઇક પ્રાર્થના કરતો હતો.

લગભગ 3-4 વખત પ્રાર્થના કરી એટલે ડો.માર્કેને થયુ

કે આ માણસ કોઇ મુશ્કેલીમાં લાગે છે. ડો.માર્કે એ ઘરના

માલીકને પુછ્યુ, ” આપ શું પ્રાર્થના કરી રહ્યા છો ? અને

તમને એવુ લાગે છે કે ભગવાનને તમારી આ પ્રાર્થના

સંભળાતી હશે ? ”

ઘરના માલીકે કહ્યુ, ” હું ઘણા સમયથી નિયમીત

પ્રાર્થના કરુ છું. આજદિવસ સુધી તો ભગવાને મારી

પ્રાર્થનાનો પ્રતિસાદ આપ્યો નથી પણ મને ભગવાન

પર શ્રધ્ધા છે કે એ મારી પ્રાર્થના એકદિવસ જરૂર

સાંભળશે.” ડો. માર્કે પુછ્યુ, ” પણ તમે પ્રાર્થના શું

કરતા હતા ? ” ઘરના માલિકે ખુણામાં રહેલી એક પથારી

બતાવીને કહ્યુ , ” આ મારો દિકરો છે એને કેન્સર છે અને

આ એ પ્રકારનું કેન્સર છે જેની સારવાર માર્ક નામના

કોઇ ડોકટર જ કરી શકે તેમ છે. એની પાસે જવાના કે

સારવાર કરાવવાના મારી પાસે કોઇ પૈસા નથી આથી હું

રોજ ભગવાનને પ્રાર્થના કરુ છું કે એ કોઇ મદદ કરે અને

મારા દિકરાને રોગ મુકત કરે.”

ડો. માર્કની આંખો પહોળી થઇ ગઇ. ક્યાં જવા નીકળ્યા

અને ક્યાં પહોંચી ગયા એ સમગ્ર ઘટના એની સ્મૃતિપટ પરથી પસાર થઇ અને એટલુ જ બોલ્યા, ” ખરેખર ભગવાન મહાન છે અને હદયથી થયેલી પ્રાર્થના સાંભળે જ છે. ”
👉 મિત્રો, આપણા જીવનમાં બનતી તમામ ઘટનાઓ માત્ર અકસ્માતો નથી હોતા દરેક ઘટનાઓમાં કુદરતની કોઇ કરામત હોય છે..
*સત્ય ઘટના* 

             ” Prathna”

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धीरे धीरे कितने नाजायज़ ख़र्च से जुड़ते गए है हम


धीरे धीरे कितने नाजायज़ ख़र्च से जुड़ते गए है हम

टॉयलेट धोने का हार्पिक अलग,

बाथरूम धोने का अलग.

टॉयलेट की बदबू दूर करने के लिए खुशबु छोड़ने वाली टिकिया भी जरुरी है.
कपडे हाथ से धो रहे हो तो अलगवाशिंग पाउडर
और
मशीन से धो रहे हो तो खास तरह का पाउडर

नहीं तो तुम्हारी 20000 की मशीन बकेट से ज्यादा कुछ नहीं.
और हाँ कॉलर का मैल हटाने का वेनिश तो घर में होगा ही,
हाथ धोने के लिए
नहाने वाला साबुन तो दूर की बात,
एंटीसेप्टिक सोप भी काम में नहीं ले सकते,

लिक्विड ही यूज करो

साबुन से कीटाणु ट्रांसफर होते है

(ये तो वो ही बात हो गई कि कीड़े मारनेवाली दवा में कीड़े पड़ गए)

बाल धोने के लिए शैम्पू ही पर्याप्त नहीं ,
कंडीशनर भी जरुरी है,

फिर बॉडी लोशन,
फेस वाश,
डियोड्रेंट,
हेयर जेल,
सनस्क्रीन क्रीम,
स्क्रब,
गोरा बनाने वाली क्रीम

काम में लेना अनिवार्य है ही.

और हाँ दूध
( जो खुद शक्तिवर्धक है)
की शक्ति बढाने के लिए हॉर्लिक्स मिलाना तो भूले नहीं न आप…
मुन्ने का हॉर्लिक्स अलग,
मुन्ने की मम्मी का अलग,
और मुन्ने के पापा का डिफरेंट.

साँस की बदबू दूर करने के लिये ब्रश करना ही पर्याप्त नहीं,
माउथ वाश से कुल्ले करना भी जरुरी है….

तो श्रीमान मुस्सदीलाल जी…

10-15 साल पहले जिस घर का खर्च 8हज़ार में आसानी से चल जाता था

आज उसी का बजट 40 हजार को पार कर गया है

तो उसमें सारा दोष महंगाई का ही नहीं है,
कुछ हमारी बदलती सोच भी है
सोचो..

सीमित साधनों के साथ स्वदेशी जीवन शैली अपनायें, देश का पैसा बचाएं । जितना हो सके साधारण जीवन शैली अपनाये ! जय हिंद

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मतलबी लोगो से रखे दूरी


🙏🇮🇳वन्दे मातरम🇮🇳🙏
मतलबी लोगो से रखे दूरी

एक चूहा एक व्यापारी के घर में बिल बना कर रहता था. एक दिन चूहे ने देखा कि उस व्यापारी ने और उसकी पत्नी एक थैले से कुछ निकाल रहे हैं. चूहे ने सोचा कि शायद कुछ खाने का सामान है.
उत्सुकतावश देखने पर उसने पाया कि वो एक चूहेदानी थी. ख़तरा भाँपने पर उस ने पिछवाड़े में जा कर कबूतर को यह बात बताई कि घर में चूहेदानी आ गयी है.
कबूतर ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि मुझे क्या? मुझे कौनसा उस में फँसना है?
निराश चूहा ये बात मुर्गे को बताने गया.
मुर्गे ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा… जा भाई..ये मेरी समस्या नहीं है.
हताश चूहे ने बाड़े में जा कर बकरे को ये बात बताई… और बकरा हँसते हँसते लोटपोट होने लगा
.
उसी रात चूहेदानी में खटाक की आवाज़ हुई जिस में एक ज़हरीला साँप फँस गया था.
अँधेरे में उसकी पूँछ को चूहा समझ कर उस व्यापारी की पत्नी ने उसे निकाला और साँप ने उसे डंस लिया.
तबीयत बिगड़ने पर उस व्यक्ति ने वैद्य को बुलवाया. वैद्य ने उसे कबूतर का सूप पिलाने की सलाह दी.
*कबूतर अब पतीले में उबल रहा था*.
खबर सुनकर उस व्यापारी के कई रिश्तेदार मिलने आ पहुँचे जिनके भोजन प्रबंध हेतु अगले दिन *मुर्गे को काटा गया*.
कुछ दिनों बाद उस व्यापारी की पत्नी सही हो गयी… तो खुशी में उस व्यक्ति ने कुछ अपने शुभचिंतकों के लिए एक दावत रखी तो बकरे को काटा गया……
चूहा दूर जा चुका था…बहुत दूर ………..

अगली बार कोई आप को अपनी समस्या बातये और आप को लगे कि ये मेरी समस्या नहीं है तो रुकिए और दुबारा सोचिये….

समाज का एक अंग, एक तबका, एक नागरिक खतरे में है तो पूरा देश खतरे में है…

अपने-अपने दायरे से बाहर निकलिये.
स्वयंम तक सीमित मत रहिये. .
समाजिक बनिये…
और राष्ट्र धर्म के लिए एक बनें..

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गरीबी


गरीबी
एक कहानी ( जरूर पढे ) आप अपने ऑसु रोक नही पायेंगे

एक घर के करीब से गुज़र रहा था अचानक मुझे घर के अंदर से एक दस साल के बच्चे की रोने की आवाज़ आई – आवाज़ में इतना दर्द था कि अंदर जा कर बच्चा क्यों रो रहा है यह मालूम करने से मैं खुद को रोक ना सका – अंदर जा कर मैने देखा कि माँ अपने बेटे को धीरे से मारती और बच्चे के साथ खुद भी रोने लगती – मै ने आगे हो कर पूछा ऑन्टी क्यों बच्चे को मार रही हो जबकि खुद भी रोती हो….. उसने जवाब दिया की आप तो जानते ही होंगे कि इसके पिताजी का देहांत हो गया है। हम बहुत गरीब हैं। उनके जाने के बाद मैं फैक्ट्री में मजदूरी करके घर और इसके पढ़ाई का खर्च बहुत कठिनाई के साथ उठाती हूँ यह देर से स्कूल जाता है और देर से घर आता है – जाते हुए रास्ते मे कहीं खेल कूद में लग जाता है और पढ़ाई की तरफ ज़रा भी ध्यान नहीं देता है जिसकी वजह से रोज़ाना अपनी स्कूल की यूनिफार्म गन्दी कर लेता है – मै ने बच्चे और उसकी माँ को थोड़ा समझाया और चल दिया…..
कुछ दिन ही बीते थे…एक दिन सुबह सुबह कुछ काम से सब्जी मंडी गया – तो अचानक मेरी नज़र उसी दस साल के बच्चे पर पड़ी जो रोज़ाना घर से मार खाता था – क्या देखता हूँ कि वह बच्चा मंडी में घूम रहा है और जो दुकानदार अपनी दुकानों के लिए सब्ज़ी खरीद कर अपनी बोरियों में डालते तो उनसे कोई सब्ज़ी ज़मीन पर गिर जाती वह बच्चा उसे फौरन उठा कर अपनी झोली में डाल लेता – मै यह माजरा देख कर परेशान हो रहा था कि चक्कर क्या है – मै उस बच्चे को चोरी चोरी फॉलो करने लगा – जब उसकी झोली सब्ज़ी से भर गई तो वह सड़क के किनारे बैठ कर उसे ऊंची ऊंची आवाज़ें लगा कर बेचने लगा – मुंह पर मिट्टी गन्दी वर्दी और आंखों में नमी , ऐसा महसूस हो रहा था कि ऐसा दुकानदार ज़िन्दगी में पहली बार देख रहा हूँ कि अचानक एक आदमी अपनी दुकान से उठा जिसकी दुकान के सामने उस बच्चे ने अपनी नन्ही सी दुकान लगाई थी , उसने आते ही एक जोरदार धक्का मार कर उस नन्ही दुकान को एक ही झटके में रोड पर बिखेर दिया और बाज़ुओं से पकड़ कर उस बच्चे को भी उठा कर धक्का दे दिया – वह बच्चा आंखों में आंसू लिए चुप चाप दोबारा अपनी सब्ज़ी को इकठ्ठा करने लगा और थोड़ी देर बाद अपनी सब्ज़ी एक दूसरे दुकान के सामने डरते डरते लगा ली – भला हो उस दुकानदार का जिसकी दुकान के सामने इस बार उसने अपनी नन्ही दुकान लगाई उस ने बच्चे को कुछ नहीं कहा – थोड़ी सी सब्ज़ी थी ऊपर से दूसरी दुकानों से कम कीमत की थी इसलिए जल्द ही बिक गयी और वह बच्चा उठा और बाज़ार में एक कपड़े वाले की दुकान में घुस गया और दुकानदार को वह पैसे देकर दुकान में पड़ा अपना स्कूल बैग उठाया और बिना कुछ कहे वापस स्कूल की ओर चल पड़ा । कौतूहल वश मैं भी उसके पीछे पीछे चल रहा था – बच्चे ने रास्ते में अपना मुंह धोया और स्कूल चल दिया – मै भी उसके पीछे स्कूल चला गया – जब वह बच्चा स्कूल गया तो एक घंटा लेट हो चुका था – जिस पर अध्यापक जी ने डंडे से उसे खूब मारा – मैने जल्दी से जाकर अध्यापक जी को मना किया कि छोटा बच्चा है इसे मत मारो – अध्यापक कहने लगे कि यह रोज़ाना एक डेढ़ घण्टे लेट से ही आता है मै रोज़ाना इसे सज़ा देता हूँ कि डर से स्कूल समय पर आए और कई बार मै इसके घर पर भी सुचना दे चुका हूं – खैर बच्चा मार खाने के बाद क्लास में बैठ कर पढ़ने लगा – मैने उसके शिक्षक का मोबाइल नम्बर लिया और घर की ओर चल दिया घर पहुंच कर ज्ञात हुआ कि जिस कार्य के लिए मैं सब्ज़ी मंडी गया था उसको तो भूल ही गया। दूसरी ओर बच्चे ने घर आ कर माँ से एक बार फिर मार खाई – सारी रात मेरा सर चकराता रहा – सुबह उठकर जल्दी से तैयार हुआ और ईश्वर की आराधना के उपरांत शिक्षक महोदय को मोबाइल पर फोन कर कहा कि हर हालत में तुरंत सब्जीमंडी पहुंचें। शिक्षक महोदय ने मेरे अनुरोध को स्वीकार किया। बच्चे का स्कूल जाने का समय हुआ और बच्चा घर से सीधा सब्जीमंडी अपनी नन्ही सी दुकान की व्यवस्था करने चल पड़ा। मै ने उसके घर जाकर उसकी माँ को कहा कि ऑन्टी आप मेरे साथ चलो मै तुम्हे बताता हूँ आप का बेटा स्कूल क्यों देर से जाता है – वह फौरन मेरे साथ क्रोध मे यह बड़बड़ाते हुए चल पड़ीं कि आज उस लड़के को छोडूंगी नहीं उसे आज बहुत मार मारूंगी। मंडी में बच्चे के शिक्षक भी आ चुके थे। हम तीनों सब्जीमंडी के एक स्थान पर आड़ लेकर खड़े हो गए जहाँ से उस बच्चे को देखा जा सकता था लेकिन वो हमें नहीं और उस लड़के को छुप कर देखने लगे। प्रतिदिन की भाँति उसको आज भी उसे काफी लोगों से डांट फटकार और धक्के खाने पड़े और आखिरकार वह लड़का अपनी सब्ज़ी बेच कर कपड़े वाली दुकान पर चल दिया। मेरी नज़र उसकी माँ पर पड़ी तो देखता हूँ कि वो बहुत ही दर्द भरी सिसकियां लेकर रो रही थी। मै ने स्कूल के अध्यापक जी की ओर देखा तो बहुत करुणा के साथ उनके नेत्रों से अश्रु बह रहे थे। दोनो के रोने में मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उन्हों ने बहुत बड़ा अपराध किया हो और आज उन को अपनी गलती का पछतावा हो रहा हो। मैंने दोनों को सांत्वना देते हुए वहां से विदा किया। उसकी माँ रोते रोते घर चली गयी और अध्यापक जी भी सजल नेत्रों के साथ स्कूल चले गए। पूर्व की भाँति बच्चे ने दुकानदार को पैसे दिए और आज उसको दुकानदार ने कपडे देते हुए कहा कि बेटा आज कपड़ों के सारे पैसे पूरे हो गए हैं। बच्चे ने उन कपड़ों को पकड़ कर स्कूल बैग में रखा और स्कूल चला गया – आज भी एक घंटा लेट था वह सीधा आचार्य जी के पास गया और बैग डेस्क पर रखकर मार खाने के लिए अपने हाथ आगे कर दिए कि शिक्षक डंडे से उसे मार ले। आचार्य अपनी कुर्सी से उठे और बच्चे को गले लगाकर सुबक पड़े कि मैं भी देख कर अपने आंसुओं पर नियंत्रण ना रख सका। मै ने अपने आप को संभाला और आगे बढ़कर बच्चे से पूछा कि यह जो बैग में कपडे हैं वो है वह किसके लिए है – बच्चे ने रोते हुए जवाब दिया कि मेरी माँ फैक्ट्री में मजदूरी करने जाती है और उसके कपड़े फटे हुए होते हैं। कोई कपडा सही ढंग से तन ढांपने वाला नहीं और और हमारे माँ के पास पैसे नही हैं इसलिये इस दिवाली पर अपने माँ के लिए यह सलवार कमीज का कपडा खरीदा है। मैंने बच्चे से पूछा तो यह कपडा अब घर ले जाकर माँ को दोगे ? परंतु उसके उत्तर ने मेरे और उस बच्चे के शिक्षक के पैरों के नीचे से ज़मीन ही निकाल दी…. बच्चे ने जवाब दिया नहीं अंकल छुट्टी के बाद मैं इसे दर्जी को सिलाई के लिए दे दूँगा। रोज़ाना स्कूल से जाने के बाद काम करके थोड़े थोड़े पैसे सिलाई के लिए दर्जी के पास जमा किये हैं ।

…. आचार्य जी और मैं यह सोच कर रोते जा रहे थे कि आखिर कब तक हमारे समाज में गरीबों और विधवाओं के साथ ऐसा होता रहेगा उन के बच्चे होली-दिवाली जैसी खुशियों को मानाने के लिए कठोर परीक्षाओं का परिश्रम के साथ सामना करते रहेंगे आखिर कब तक!

क्या ईश्वर ने इन जैसे गरीब अनाथ बच्चों और विधवाओं को त्योहारों को प्रसनन्ता के साथ मनाने का कोई हक नहीं दिया? क्या हम चन्द रुपयों का मन्दिर में चढ़ावा या दान दे कर अपनी सामाजिक जिम्मेदारी से हट सकते हैं?
*क्या हम अपनी खुशियों के अवसरों पर अपनी व्यर्थ की इच्छाओं को कम कर थोड़े पैसे, थोड़ी खुशियां उनके साथ नहीं बाँट सकते?!!!*

सोचना ज़रूर

🙏 *थोड़ा परन्तू आज से घर् परिवार् समाज से ही चालू करे।

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एक बार एक वाल्मीकि बस्ती में मंदिर में गाँधी जी कुरान का पाठ करा रहे थे तभी भीड़ में से एक औरत ने उठकर गाँधी जी से ऐसा करने को मना किया। गाँधी जी ने पूछा .. क्यों?
तब उस औरत ने कह यहा कि ये हमारे धर्म के विरुद्ध है। गाँधी जी ने कहा…. मै तो ऐसा नहीं मानता, तो उस औरत ने जवाब दिया कि, “हम आपको धर्म में व्यवस्था देने योग्य नहीं मानते आप कोई धर्मगुरु या ऋषि नहीं हो”। गाँधी ने कहा कि यहाँ उपस्थित लोगों का मत ले लिया जाय, चूँकि वाल्मीकि बस्ती में गांधी जी अपने चेले चपाटियों के साथ गए थे, वाल्मीकि लोगों से उनकी संख्या अधिक थी जाहिर है मत में गांधी जी जीत जाते।औरत ने जवाब दिया कि क्या धर्म के विषय में वोटों से निर्णय लिया जा सकता है? गाँधी जी बोले कि आप मेरे धर्म में बाधा डाल रही हैं। औरत ने जवाब दिया कि आप तो करोड़ों हिन्दुओं के धर्म में नाजायज दखल दे रहे हैं। गाँधी जी बोले..मैं तो कुरान सुनूंगा। औरत बोली … मैं इसका विरोध करुँगी और तभी औरत के पक्ष में सैकड़ों वाल्मीकि नवयुवक खड़े हो गए और कहने लगे कि मंदिर में कुरान पढ़वाने से पहले किसी मस्जिद में गीता और रामायण का पाठ करके दिखाओ तो जाने।
विरोध बढ़ते देखकर गाँधी जी ने अंग्रेजी पुलिस को बुला लिया। गांधी जी के कहने पर वाल्मीकि हिन्दुओं को पुलिस ने पीटा, और विरोध करने वालों को पकड़ कर ले गयी और उनके विरुद्ध दफा 107 का मुकदमा दर्ज करा दिया गया। दरअसल उन दिनों गांधी जी और अंग्रेजों के बीच बहुत ही मधुर सम्बन्ध भी थे और इसके पश्चात गाँधी जी ने पुलिस सुरक्षा में उस मंदिर में कुरान पढ़ी, ये था गांधी जी का सेकुलरिज्म, जिसमें तुष्टिकरण मुस्लिमों का और शोषण हिन्दुओ का NOTE : जो लोग मोहनदास गाँधी को अहिंसा का प्रतीक बताते हैं वो मक्कार झूठे हैं क्यूंकि मंदिर में कुरआन पढ़वाने के लिए मोहनदास ने हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा करवाई थी और गाँधी को महान बताने वाले इतिहासकार अपनी किताबो में इस किस्से को कभी जगह नही देते।।
रामचंद्र आर्य

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संत महिमा


👣।।संत महिमा।।👣
एक जंगल में एक संत अपनी कुटिया में रहते थे।

एक किरात (शिकारी), जब भी वहाँ से निकलता संत को प्रणाम ज़रूर करता था।
एक दिन किरात संत से बोला की बाबा मैं तो मृग का शिकार करता हूँ,

आप किसका शिकार करने जंगल में बैठे हैं.?

संत बोले – श्री कृष्ण का, और फूट फूट कर रोने लगे।
किरात बोला अरे, बाबा रोते क्यों हो ?

मुझे बताओ वो दिखता कैसा है ? मैं पकड़ के लाऊंगा उसको।
संत ने भगवान का वह मनोहारी स्वरुप वर्णन कर दिया….

कि वो सांवला सलोना है, मोर पंख लगाता है, बांसुरी बजाता है।
किरात बोला: बाबा जब तक आपका शिकार पकड़ नहीं लाता, पानी भी नही पियूँगा।
फिर वो एक जगह जाल बिछा कर बैठ गया…

3 दिन बीत गए प्रतीक्षा करते करते, दयालू ठाकुर को दया आ गयी, वो भला दूर कहाँ है,
बांसुरी बजाते आ गए और खुद ही जाल में फंस गए।
किरात तो उनकी भुवन मोहिनी छवि के जाल में खुद फंस गया और एक टक शयाम सुंदर को निहारते हुए अश्रु बहाने लगा,

जब कुछ चेतना हुयी तो बाबा का स्मरण आया और जोर जोर से चिल्लाने लगा शिकार मिल गया, शिकार मिल गया, शिकार मिल गया,
और ठाकुरजी की ओर देख कर बोला,
अच्छा बच्चु .. 3 दिन भूखा प्यासा रखा, अब मिले हो,

और मुझ पर जादू कर रहे हो।
शयाम सुंदर उसके भोले पन पर रीझे जा रहे थे एवं मंद मंद मुस्कान लिए उसे देखे जा रहे थे।
किरात, कृष्ण को शिकार की भांति अपने कंधे पे डाल कर और संत के पास ले आया।
बाबा,

आपका शिकार लाया हुँ… बाबा ने जब ये दृश्य देखा तो क्या देखते हैं किरात के कंधे पे श्री कृष्ण हैं और जाल में से मुस्कुरा रहे हैं।
संत के तो होश उड़ गए, किरात के चरणों में गिर पड़े, फिर ठाकुर जी से कातर वाणी में बोले –
हे नाथ मैंने बचपन से अब तक इतने प्रयत्न किये, आप को अपना बनाने के लिए घर बार छोडा, इतना भजन किया आप नही मिले और इसे 3 दिन में ही मिल गए…!!
भगवान बोले – इसका तुम्हारे प्रति निश्छल प्रेम व कहे हुए वचनों पर दृढ़ विश्वास से मैं रीझ गया और मुझ से इसके समीप आये बिना रहा नहीं गया।
भगवान तो भक्तों के संतों के आधीन ही होतें हैं।
जिस पर संतों की कृपा दृष्टि हो जाय उसे तत्काल अपनी सुखद शरण प्रदान करतें हैं। किरात तो जानता भी नहीं था की भगवान कौन हैं,

पर संत को रोज़ प्रणाम करता था। संत प्रणाम और दर्शन का फल ये है कि 3 दिन में ही ठाकुर मिल गए ।

यह होता है संत की संगति का परिणाम!!
“संत मिलन को जाईये तजि ममता अभिमान, 

ज्यो ज्यो पग आगे बढे कोटिन्ह यज्ञ समान”

🙏

मनु कुमार

Posted in हिन्दू पतन

देखो , कैसे हिंदू व हिंदूस्थानी बर्बाद हुए ?? “अतिथि देवो भवः”..????   बदल दो इसको !


देखो , कैसे हिंदू व हिंदूस्थानी बर्बाद हुए ??
“अतिथि देवो भवः”..????   बदल दो इसको !

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बहुत तेज बारिश हो रही थी। सर्दी का समय था। कच्ची सड़क के किनारे एक टूटी फूटी झोंपड़ी देखकर, राहगीर उसी झोंपड़ी की ओर बढ़ गया। झोंपड़ी का छोटा सा दरवाजा बंद नहीं था, सो उसमें प्रवेश भी कर गया।
अंदर जाकर देखा, वो छोटी सी झोंपड़ी थी, और उसमें कई जगह से बारिश का पानी चू रहा था। बचे सूखे हिस्से में एक साधू सो रहा था। असमंजस में खड़े अतिथि को देख कर साधू एक ओर सरक गया, और बोला,.. “आओ लेट जाओ, दो लोगों के लिए तो जगह है ही।”
थोड़ी ही देर में एक और अतिथि बारिश से भीगता भागा हुआ आया, और झोंपड़ी में शरण मांगा। पहले वाले अतिथि ने तुरंत बोला,…  “कहाँ है यहाँ जगह? दिखता नहीं है कि बड़ी मुश्किल से दो लोगों के लेटने लायक जगह है?” लेकिन साधू ने उसकी बात काट कर, उठ कर बैठते हुए कहा,..  “नहीं नहीं, अगर हम दोनों बैठ जाएं, तो आराम से तीन लोग रात गुजार सकते हैं।” पहला वाला अतिथि भुनभुना के रह गया।
कुछ ही समय उपरांत, एक और व्यक्ति भागता हुआ आया और शरण मांगा। पहले के दोनों अतिथियों ने तुरंत प्रतिकार किया कि,.. “कैसे? तीन लोगों के ही बैठने की जगह तो है।” साधू ने फिर से विनम्र भाव से कहा,..  “हम अगर पासपास चिपक कर बैठ लें, तो चार आदमी भी बैठ सकते हैं।”
दैवयोग से कुछ क्षण के बाद ही, बारिश से बचने के लिए एक और व्यक्ति झोंपड़ी पर पहुंचा। पहले के तीनों अतिथि बुरी तरह से प्रतिकार करने लगे उस नए अतिथि का। अब तो जगह भी नहीं बची थी। लेकिन साधू ने कहा,…  “अगर हम चारों खड़े हो जाएँ, तो पांचवे की भी जगह बन सकती है। “अतिथि देवो भवः”

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चलिए उस साधू ने अपनी सनातन सभ्यता की परंपरा का निर्वहन करते हुए, अपनी सामर्थ्‍यानुसार अतिथियों का स्वागत किया।
लेकिन मेरा सवाल यह है कि,  “क्या वे अतिथि उस सेवा सत्कार के योग्य थे?? कुटिया साधू की थी, तो वे कैसे अन्यों के आने का प्रतिकार करने का साहस कर रहे थे?? और जिसने साधू की मर्जी के खिलाफ दूसरे के आने का विरोध किया, क्या साधू को उसी क्षण उसे बाहर नहीं भगा देना चाहिए था??
हम क्यों इतने सहिष्णु रहे हैं कि सहिष्णुता और मूर्खता में अंतर को भूलते रहे? सालों साल से, युगों से ही, क्या हमें ऐसी मूर्खता छोड़ नहीं देनी चाहिए??
कैसे महमूद गजनवी की हिम्मत हुई 17 बार आक्रमण करने की? पहले ही बार में अगर उसको क्षमा करने के बजाय, उसकी लाश को काट कर, फारस के बार्डर पर लटका देते, तो निश्चय ही आगे होने वाले हमलों में हमें लाखों जान माल का नुकसान नहीं उठाना पडता।
फिर शायद मुहम्मद गोरी की हिम्मत नहीं होती आँख उठा कर देखने की। लेकिन हम फिर भी नहीं सुधरे। गोरी के साथ हुई पहली लड़ाई में हमारे लाखों योद्धाओं की जान गवां कर, हमने गोरी को जिंदा पकड़ा था। और उस हत्यारे को हमने जीवनदान दे दिया। जीवनदान मिला, इसीलिए उसने दुबारा आक्रमण किया, और इस बार जीत भी गया। लाखों चौहानों की बलि हुई, उन्हें काट डाला गया, पृथ्वीराज चौहान को भी अन्ततोगतवा जान देनी पड़ी।
क्यों?? क्योंकि हमारे अलावा और कोई भी सहिष्णुता दिखाने की मूर्खता नहीं करता।

यहॉ आक्रमणकारियो को माफी देना ही मूर्खता बन गया
तभी बाबर की भी हिम्मत हुई, तभी हूँड, डच, फ्रांसीसी और फिर अंग्रेजों की भी हिम्मत हुई, हम पर आंख उठा कर देखने की।
तभी डॉ नारंग मारे गए, और उसी मानसिकता की वजह से कल ऑटोचालक राजेंद्र भी मारा गया। अगला नंबर “आपका” है। वो खुलेआम गाय को live कैमरे पर काट कर अपनी मानसिकता दिखा कर तुम्हें ललकार रहे हैं। वो कह रहे हैं कि आओ उखाड़ लो जो अगर उखाड़ सको तो।

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बदल डालिए “अतिथि देवो भवः” जैसी परंपराओं को, जो हमें सहिष्णुता जैसी मूर्खता दिखाने को विवश करती हैं। कम से कम सुपात्र और कुपात्र का ही अंतर करना सीख

.

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*जय हिन्द।  जय हिंदुत्व*
*सन्देश योगी*✍