“हिन्दू” शब्द का यथार्थ !!
पश्चिमी देशों में भूख मिटाने,नींद लाने,
यहां तक कि खुशी महसूस करने के लिए
भी दवा का प्रयोग किया जाता है,जबकि
भारत में मानसिक और ज्यादातर शारीरिक
रोगों का समाधान ध्यान और योग में
तलाशने की परंपरा है।
सनातन धर्म में ईश्वर को पाने का एक
मार्ग ध्यान और योग भी बताया गया है।
इसलिए यह मात्र धर्म ही नहीं है,बल्कि
जीने की कला है,सनातन धर्म का अर्थ
होता है-जीवन जीने की शाश्वत शैली।
सनातन को मानने वाले ‘हिन्दू’ कहलाये,
हिन्दू शब्द को ले के स्वयं हिन्दू ही नहीं
अपितु दूसरे मतों के लोगो का भी यही
मानना है की “हिन्दू’ शब्द ईरानियों की
देन है।
ये भ्रान्ति प्रचलित है की ”हिन्दू’ शब्द
सनातन के किसी भी शास्त्र में नहीं है,
हिदुत्व कोई धर्म नहीं है,भोगोलिक स्थिति
के कारण इसका नाम हिंदुस्तान रखा गया
है,हिंदुस्तान में रहने वाले सब धर्म के लोग
हिन्दू हैं…. इत्यादि।
परन्तु क्या ये सच है ?
क्या ‘हिन्दू’ शब्द विदेशियों का दिया
हुआ नाम है ?
क्या हिन्दू नाम का कोई धर्म नहीं ?
इन्ही सब प्रश्नों के उत्तर खोजते हुए
कुछ तथ्य प्रस्तुत हैं जो ये दर्शाते हैं
कि “हिन्दू’” शब्द ईरानियों के आने
से बहुत पहले ही सनातन धर्म में
प्रयोग होता था।
सनातन धर्म को मानने वालों को
“हिन्दू” कहा जाता था,ईरानियों ने
तो बस केवल इसे प्रचलित किया।
कुछ उदाहरण देखते है सनातन में
हिन्दू शब्द के बारे में …
१-ऋग वेद में एक ऋषि का नाम
‘सैन्धव’था जो बाद में “ हैन्दाव/
हिन्दव ” नाम से प्रचलित हुए।
२- ऋग वेद के बृहस्पति आगम में
हिन्दू शब्द आया है;
हिमालयं समारभ्य यावत इन्दुसरोवरं।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।।
(हिमालय से इंदु सरोवर तक देव
निर्मित देश को हिन्दुस्थान कहते हैं।)
३- मेरु तंत्र( शैव ग्रन्थ)में हिन्दू शब्द,
‘हीनं च दूष्यत्येव हिन्दुरित्युच्चते प्रिये’
(जो अज्ञानता और हीनता का त्याग
करे उसे हिन्दू कहते हैं।)
४- यही मन्त्र शब्द कल्पद्रुम में भी
दोहराई गयी है
‘हीनं दूष्यति इति हिन्दू ’
५-पारिजात हरण में “हिन्दू” को कुछ
इस प्रकार कहा गया है;
हिनस्ति तपसा पापां
दैहिकां दुष्टमानसान।
हेतिभिः शत्रुवर्गं च स
हिंदुरभिधियते।।
६- माधव दिग्विजय में हिन्दू,
ओंकारमंत्रमूलाढ्य पुनर्जन्म दृढाशयः।
गोभक्तो भारतगुरूर्हिन्दुर्हिंसनदूषकः॥
(वो जो ॐकार को ईश्वरीय ध्वनि माने,
कर्मो पर विश्वाश करे,गौ पालक,बुराइयों
को दूर रखे वो हिन्दू है।)
७- ऋग वेद (८:२:४१) में ‘विवहिंदु’
नाम के राजा का वर्णन है जिसने
४६००० गएँ दान में दी थी।
विवहिंदु बहुत पराक्रमी और दानी
राजा था ऋग वेद मंडल ८ में भी
उसका वर्णन है।
हिंदुत्व क्या है…
दुनिया की सबसे पुरानी आध्यात्मिक
और नैतिक परंपरा ही हिंदुत्व है।
इसके अनुसार,ईश्वर सर्वत्र सर्वदा
सर्वकाल में उपस्थित हैं।
ईशोपनिषदके पहले मंत्र के अनुसार,
संपूर्ण ब्रह्मांड में ईश्वरीय शक्ति
विराजमान है।
ऐसी सभी चीजें,जो दृश्य और अदृश्य
हैं,जिनका हम स्पर्श कर पाते हैं या नहीं
कर पाते हैं या फिर हर अच्छी और बुरी
चीज भी सर्वशक्तिमान का ही अंश है।
ईश्वर हमारे अंदर भी हैं,आवश्यकता है
तो इसे अनुभव करने की।
हिंदुत्व हमें बताता है कि किसी भी व्यक्ति
की प्रकृति या स्वभाव बुरा नहीं होता है।
यदि वह स्वयं को नहीं समझ पाता है
या उसके शरीर और मन-मस्तिष्क में
सही तालमेल नहीं हो पाता है,तभी वह
बुरे कर्म करता है।
स्वयं को नहीं समझ पाने के कारण व्यक्ति
लोभ,क्रोध,मोह आदि का शिकार होता है।
आज हिन्दू अपने ही धर्म शास्त्रों का
ज्ञान न होने के कारण आसानी से
दूसरे के बहकावे में आ जाता है।
उसकी इस अज्ञानता का मुख्य कारण
कथित हिन्दू धर्म के तथाकथित ठेकेदार
हैं जिन्होंने अपने निजी लाभ के कारण
शास्त्रों के सही ज्ञान को जनमानस तक
नहीं पहुचने दिया।
सनातन धर्म ही हिंदुत्व है तथा हिंदुत्व
ही सनातन धर्म है,दोनों एक दूसरे के
पर्याय हैं,दोनों एक दुसरे के पूरक हैं।
सनातन धर्म के बिना हिंदुत्व नही,
हिंदुत्व के बिना सनातन धर्म नही।
#साभार_संकलित;
ॐ नमो नारायण,
जयति पुण्य सनातन संस्कृति,
जयति पुण्य भूमि भारत,
सदा सर्वदा सुमंगल,
हर हर महादेव,
ॐ विष्णवे नमः,
जय भवानी,
जय श्रीराम,
विजय कृष्ण पांडेय