Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक बार की बात है , एक नौविवाहित


R.k. Neekhara

एक बार की बात है , एक नौविवाहित
जोड़ा किसी किराए के घर में रहने पहुंचा .
अगली सुबह , जब वे नाश्ता कर रहे थे , तभी पत्नी ने
खिड़की से देखा कि सामने वाली छत पर कुछ कपड़े फैले
हैं , – “ लगता है इन लोगों को कपड़े साफ़
करना भी नहीं आता …ज़रा देखो तो कितने मैले लग रहे
हैं ? “
पति ने उसकी बात सुनी पर अधिक ध्यान नहीं दिया .
एक -दो दिन बाद फिर उसी जगह कुछ कपड़े फैले थे .
पत्नी ने उन्हें देखते ही अपनी बात दोहरा दी ….” कब
सीखेंगे ये लोग की कपड़े कैसे साफ़ करते हैं …!!”
पति सुनता रहा पर इस बार भी उसने कुछ नहीं कहा .
पर अब तो ये आये दिन की बात हो गयी , जब
भी पत्नी कपडे फैले देखती भला -बुरा कहना शुरू
हो जाती .
लगभग एक महीने बाद वे यूँहीं बैठ कर नाश्ता कर रहे
थे . पत्नी ने हमेशा की तरह नजरें उठायीं और सामने
वाली छत
की तरफ देखा , ” अरे वाह , लगता है इन्हें अकल आ
ही गयी …आज तो कपडे बिलकुल साफ़ दिख रहे हैं , ज़रूर
किसी ने टोका होगा !”
पति बोल , ” नहीं उन्हें किसी ने नहीं टोका .”
” तुम्हे कैसे पता ?” , पत्नी ने आश्चर्य से पूछा .
” आज मैं सुबह जल्दी उठ गया था और मैंने इस
खिड़की पर लगे कांच को बाहर से साफ़ कर दिया ,
इसलिए तुम्हे कपडे साफ़ नज़र आ रहे हैं . “, पति ने बात
पूरी की .
ज़िन्दगी में भी यही बात लागू होती है : बहुत बार
हम दूसरों को कैसे देखते हैं ये इस पर निर्भर करता है
की हम खुद अन्दर से कितने साफ़ हैं . किसी के बारे में
भला-बुरा कहने से पहले अपनी मनोस्थिति देख
लेनी चाहिए और खुद से पूछना चाहिए की क्या हम
सामने वाले में कुछ बेहतर देखने के लिए तैयार हैं
या अभी भी हमारी खिड़की गन्दी है !

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विश्व के समस्त सनातनियों को श्री गुरुपूर्णिमा की अनंत शुभकामनायें,,


विश्व के समस्त सनातनियों को श्री
गुरुपूर्णिमा की अनंत शुभकामनायें,,

विश्व के समस्त गुरुओं को सादर
नमन,,कोटि कोटि वंदन,,

गुरु महिमा !!

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।

प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा ।
शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥

प्रेरणा देनेवाले,सूचना देनेवाले,(सच) बताने
वाले,(रास्ता) दिखानेवाले,शिक्षा देनेवाले,
और बोध कराने वाले –
ये सब गुरु समान है ।

गुरुरात्मवतां शास्ता शास्ता राजा दुरात्मनाम् ।
अथा प्रच्छन्नपापानां शास्ता वैवस्वतो यमः ॥

आत्मवान् लोगों का शासन गुरु करते हैं;
दृष्टों का शासन राजा करता है;
और गुप्तरुप से पापाचरण करनेवालों का
शासन यम करता है (अर्थात् अनुशासन तो
अनिवार्य ही है) ।

दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम् ।
मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुष संश्रयः ॥

मनुष्यत्व,मुमुक्षत्व,और सत्पुरुषों का
सहवास – ईश्वरानुग्रह करानेवाले ये तीन
का मिलना,अति दुर्लभ है ।

किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च ।
दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम् ॥

बहुत कहने से क्या ?
करोडों शास्त्रों से भी क्या ?
चित्त की परम् शांति,गुरु के बिना मिलना
दुर्लभ है ।

निवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः
स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते ।
गुणाति तत्त्वं हितमिच्छुरंगिनाम्
शिवार्थिनां यः स गुरु र्निगद्यते ॥

जो दूसरों को प्रमाद करने से रोकते हैं,
स्वयं निष्पाप रास्ते से चलते हैं,हित और कल्याण की कामना रखनेवाले को तत्त्वबोध करते हैं,उन्हें गुरु कहते हैं ।

धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः ।
तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते ॥

धर्म को जाननेवाले,धर्म मुताबिक आचरण
करनेवाले,धर्मपरायण,और सब शास्त्रों में
से तत्त्वों का आदेश करनेवाले गुरु कहे
जाते हैं ।

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

गुरु ब्रह्मा है,गुरु विष्णु है,गुरु हि शंकर है;
गुरु ही साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को
प्रणाम ।

दुग्धेन धेनुः कुसुमेन वल्ली
शीलेन भार्या कमलेन तोयम् ।
गुरुं विना भाति न चैव शिष्यः
शमेन विद्या नगरी जनेन ॥

जैसे दूध बगैर गाय,फूल बगैर लता,
शील बगैर भार्या,कमल बगैर जल,
शम बगैर विद्या,और लोग बगैर नगर
शोभा नही देते,वैसे ही गुरु बिना शिष्य
शोभा नहि देता ।

विना गुरुभ्यो गुणनीरधिभ्यो
जानाति तत्त्वं न विचक्षणोऽपि ।
आकर्णदीर्घायित लोचनोपि दीपं
विना पश्यति नान्धकारे ॥

जैसे कान तक की लंबी आँखेंवाला भी
अँधकार में,बिना दिये के देख नही सकता,
वैसे विलक्षण इन्सान भी,गुणसागर ऐसे
गुरु बिना,तत्त्व को जान नहि सकता ।

पूर्णे तटाके तृषितः सदैवभूतेऽपि
गेहे क्षुधितः स मूढः ।
कल्पद्रुमे सत्यपि वै दरिद्रः
गुर्वादियोगेऽपि हि यः प्रमादी ॥

जो इन्सान गुरु मिलने के बावजुद प्रमादी
रहे,वह मूर्ख पानी से भरे हुए सरोवर के
पास होते हुए भी प्यासा,घर में अनाज
होते हुए भी भूखा,और कल्पवृक्ष के
पास रहते हुए भी दरिद्र है ।

वेषं न विश्वसेत् प्राज्ञः वेषो दोषाय जायते ।
रावणो भिक्षुरुपेण जहार जनकात्मजाम् ॥

(केवल बाह्य) वेष पर विश्वास नहि करना चाहिए; वेष दोषयुक्त (झूठा) हो सकता है ।
रावण ने भिक्षु का रुप लेकर हि सीता का
हरण किया था ।

त्यजेत् धर्मं दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत् ।
त्यजेत् क्रोधमुखीं भार्यां निःस्नेहान् बान्धवांस्त्यजेत् ॥

मनुष्य को दयाहीन धर्म का,विद्याहीन गुरु
का,क्रोधी पत्नी का,और स्नेहरहित संबंधीयों
का त्याग करना चाहिए ।

नीचं शय्यासनं चास्य सर्वदा गुरुसंनिधौ ।
गुरोस्तु चक्षु र्विषये न यथेष्टासनो भवेत् ॥

गुरु की उपस्थिति में (शिष्य का) आसन
गुरु से नीचे होना चाहिए; गुरु जब उपस्थित
हो,तब शिष्य को जैसे-तैसे नही बैठना चाहिए ।

यः समः सर्वभूतेषु विरागी गतमत्सरः ।
जितेन्द्रियः शुचिर्दक्षः सदाचार समन्वितः ॥

गुरु सब प्राणियों के प्रति वीतराग और
मत्सर से रहित होते हैं ।
वे जीतेन्द्रिय,पवित्र,दक्ष और सदाचारी
होते हैं ।

योगीन्द्रः श्रुतिपारगः समरसाम्भोधौ
निमग्नः सदा शान्ति क्षान्ति नितान्त
दान्ति निपुणो धर्मैक निष्ठारतः ।
शिष्याणां शुभचित्त शुद्धिजनकः
संसर्ग मात्रेण यः सोऽन्यांस्तारयति
स्वयं च तरति स्वार्थं विना सद्गुरुः ॥

योगीयों में श्रेष्ठ, श्रुतियों को समजा हुआ,
(संसार/सृष्टि) सागर मं समरस हुआ,
शांति-क्षमा-दमन ऐसे गुणोंवाला,
धर्म में एकनिष्ठ,अपने संसर्ग से शिष्यों के
चित्त को शुद्ध करनेवाले,ऐसे सद्गुरु,बिना
स्वार्थ अन्य को तारते हैं,और स्वयं भी
तर जाते हैं ।

एकमप्यक्षरं यस्तु गुरुः शिष्ये निवेदयेत् ।
पृथिव्यां नास्ति तद् द्रव्यं यद्दत्वा ह्यनृणी भवेत् ॥

गुरु शिष्य को जो एकाध अक्षर भी कहे,
तो उसके बदले में पृथ्वी का ऐसा कोई धन
नही,जो देकर गुरु के ऋण में से मुक्त हो सकें।

अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

जिसने ज्ञानांजनरुप शलाका से,अज्ञानरुप
अंधकार से अंध हुए लोगों की आँखें खोली,
उन गुरु को नमस्कार ।

विद्वत्त्वं दक्षता शीलं सङ्कान्तिरनुशीलनम् ।
शिक्षकस्य गुणाः सप्त सचेतस्त्वं प्रसन्नता ॥

विद्वत्व,दक्षता,शील,संक्रांति,अनुशीलन, सचेतत्व,और प्रसन्नता – ये सात शिक्षक
के गुण हैं ।

गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते ।
अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते ॥

‘गु’कार याने अंधकार,और ‘रु’कार याने
तेज;जो अंधकार का (ज्ञाना का प्रकाश
देकर) निरोध करता है,वही गुरु कहा
जाता है ।

नीचः श्लाद्यपदं प्राप्य स्वामिनं हन्तुमिच्छति ।
मूषको व्याघ्रतां प्राप्य मुनिं हन्तुं गतो यथा ॥

उच्च स्थान प्राप्त करते ही,अपने स्वामी को
मारने की इच्छा करना नीचता (का लक्षण) है;
वैसे ही जैसे कि चूहा शेर बनने पर मुनि को
मारने चला था।

कश्यपोऽत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रस्तु गौतमः ।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः ॥

कश्यप,अत्रि,भरद्वाज,विश्वामित्र,गौतम,
जमदग्नि,और वशिष्ठ – ये सप्त ऋषि हैं ।

नमोस्तु ऋषिवृंदेभ्यो देवर्षिभ्यो नमो नमः । सर्वपापहरेभ्यो हि वेदविद्भ्यो नमो नमः ॥

ऋषि समुदाय,जो देवर्षि हैं,सर्व पाप हरने
वाले हैं,और वेद को जाननेवाले हैं,उन्हें मैं
बार बार नमस्कार करता हूँ ।

ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्ति
द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् ।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभुतं
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ॥

ब्रह्मा के आनंदरुप परम् सुखरुप,ज्ञानमूर्ति,
द्वंद्व से परे,आकाश जैसे निर्लेप,और सूक्ष्म
“तत्त्वमसि” इस ईशतत्त्व की अनुभूति ही
जिसका लक्ष्य है; अद्वितीय,नित्य विमल,
अचल,भावातीत,और त्रिगुणरहित –
ऐसे सद्गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ।

बहवो गुरवो लोके शिष्य वित्तपहारकाः ।
क्वचितु तत्र दृश्यन्ते शिष्यचित्तापहारकाः ॥

जगत में अनेक गुरु शिष्य का वित्त हरण
करनेवाले होते हैं; परंतु, शिष्य का चित्त हरण
करनेवाले गुरु शायद हि दिखाई देते हैं ।

दृष्टान्तो नैव दृष्टस्त्रिभुवनजठरे
सद्गुरोर्ज्ञानदातुः स्पर्शश्चेत्तत्र कलप्यः
स नयति यदहो स्वहृतामश्मसारम् ।
न स्पर्शत्वं तथापि श्रितचरगुणयुगे
सद्गुरुः स्वीयशिष्ये स्वीयं साम्यं विधते
भवति निरुपमस्तेवालौकिकोऽपि ॥

तीनों लोक,स्वर्ग,पृथ्वी,पाताल में ज्ञान देनेवाले
गुरु के लिए कोई उपमा नहीं दिखाई देती ।
गुरु को पारसमणि के जैसा मानते है,तो वह ठीक नहीं है,कारण पारसमणि केवल लोहे
को सोना बनाता है,पर स्वयं जैसा नहि
बनाता।
सद्बुरु तो अपने चरणों का आश्रय लेनेवाले शिष्य को अपने जैसा बना देता है; इस लिए गुरुदेव के लिए कोई उपमा नही है,
गुरु तो अलौकिक है ।

गुरोर्यत्र परीवादो निंदा वापिप्रवर्तते ।
कर्णौ तत्र विधातव्यो गन्तव्यं वा ततोऽन्यतः ॥

जहाँ गुरु की निंदा होती है वहाँ उसका
विरोध करना चाहिए ।
यदि यह शक्य न हो तो कान बंद करके
बैठना चाहिए; और (यदि) वह भी शक्य
न हो तो वहाँ से उठकर दूसरे स्थान पर
चले जाना चाहिए ।

अचिनोति च शास्त्रार्थं आचारे स्थापयत्यति । स्वयमप्याचरेदस्तु स आचार्यः इति स्मृतः ॥

जो स्वयं सभी शास्त्रों का अर्थ जानता है,
दूसरों के द्वारा ऐसा आचार स्थापित हो
इसलिए अहर्निश प्रयत्न करता है;
और ऐसा आचार स्वयं अपने आचरण
में लाता है,उन्हें आचार्य कहते है ।
—#साभारसंकलित
========

जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,
जयति पुण्य भूमि भारत,,,

सदा सर्वदा सुमंगल,,,
ॐ गुरवे नमः
जय भवानी,,
जय श्री राम

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गुरुपूर्णिमा पर्व पर विशेष लेख


गुरुपूर्णिमा पर्व पर विशेष लेख
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समाजोद्धार व ब्रह्म-प्राप्ति मार्ग के पथ-प्रदर्शक होते हैं , तेजपुंज “गुरु”
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पर्वों, त्योहारों और संस्कारों की भारतभूमि पर गुरु का परम महत्व माना गया है। गुरु ही शिष्य की ऊर्जा को पहचानकर उसके संपूर्ण सामर्थ्य को विकसित करने में सहायक होता है। गुरु नश्वर सत्ता का नहीं, अपितु चैतन्य विचारों का प्रतिरूप होता है। अत: रा. स्व. संघ के आरम्भ काल से ही “भगवाध्वज” को “गुरु” के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है ।—पूनम नेगी ( पाञ्चजन्य , आषाढ़ पूर्णिमा अंक ९-जूलाई से साभार )
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भारतभूमि के कण-कण में चैतन्य स्पंदन विद्यमान है। पर्वों, त्योहारों और संस्कारों की जीवंत परम्पराएं इसको प्राणवान बनाती हैं। तत्वदर्शी ऋषियों की इस जागृत धरा का ऐसा ही एक पावन पर्व है “गुरु पूर्णिमा” का ।

हमारे यहां ‘अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं…तस्मै श्री गुरुवे नम:’ कह कर गुरु की अभ्यर्थना एक चिरंतन सत्ता के रूप में की गई है। भारत की सनातन संस्कृति में गुरु को परम भाव माना गया है जो कभी नष्ट नहीं हो सकता; इसीलिए गुरु को व्यक्ति नहीं अपितु विचार की संज्ञा दी गई है। इसी दिव्य भाव ने हमारे राष्ट्र को जगद्गुरु की पदवी से विभूषित किया। गुरु को नमन का ही पावन पर्व है गुरु पूर्णिमा (आषाढ़ पूर्णिमा)।

ज्ञान दीप है सद्गुरु :—
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गुरु’ स्वयं में पूर्ण है और जो खुद पूरा है वही तो दूसरों को पूर्णता का बोध करवा सकता है। हमारे अंतस में संस्कारों का परिशोधन, गुणों का संवर्द्धन एवं दुर्भावनाओं का विनाश करके गुरु हमारे जीवन को सन्मार्ग पर ले जाता है।

गुरु कौन व कैसा हो,
इस विषय में श्रुति बहुत सुंदर व्याख्या करती है-‘विशारदं ब्रह्मनिष्ठं श्रोत्रियं…’ अर्थात् जो ज्ञानी हो, शब्द ब्रह्म का ज्ञाता हो, आचरण से श्रेष्ठ ब्राह्मण जैसा और ब्रह्म में निवास करने वाला हो तथा अपनी शरण में आये शिष्य को स्वयं के समान सामर्थ्यवान बनाने की क्षमता रखता हो। वही गुरु है।

जगद्गुरु आद्य शंकराचार्य की ‘श्तश्लोकी’ के पहले श्लोक में सद्गुरु की परिभाषा है:-तीनों लोकों में सद्गुरु की उपमा किसी से नहीं दी जा सकती।

वहीं बौद्ध ग्रंथों के अनुसार भगवान बुद्ध ने सारनाथ में आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही अपने प्रथम पांच शिष्यों को उपदेश दिया था। इसीलिए बौद्ध धर्म के अनुयायी भी पूरी श्रद्धा से “गुरु पूर्णिमा उत्सव” मनाते हैं। सिख इतिहास में गुरुओं का विशेष स्थान रहा है।

यह आवश्यक नहीं कि किसी देहधारी को ही गुरु माना जाये। मन में सच्ची लगन एवं श्रद्धा हो तो गुरु को किसी भी रूप में पाया जा सकता है। एकलव्य ने मिट्टी की प्रतिमा में गुरु को ढूंढा और महान धनुर्धर बना। तो वहीं श्री दत्तात्रेय महाराज ने 24 गुरु बनाये थे।

भगवा ध्वज है भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक :—
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चाणक्य जैसे गुरु ने चन्द्रगुप्त को चक्रवर्ती सम्राट बनाया और समर्थ गुरु रामदास ने छत्रपति शिवाजी के भीतर , बर्बर मुस्लिम आक्रमणकारियों से राष्ट्र रक्षा की सामर्थ्य विकसित की। मगर इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि बीती सदी में हमारी गौरवशाली “गुरु-शिष्य” परंपरा में कई विसंगतियां आ गयीं।

इस परिवर्तन को लक्षित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के समय भगवाध्वज को संघ में “गुरु” के रूप में प्रतिष्ठित किया। इसके पीछे मूल भाव यह था कि व्यक्ति पतित हो सकता है पर विचार और पावन प्रतीक नहीं।

इस कारण से विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन “गुरु” रूप में इसी भगवाध्वज को नमन करता है।

” गुरु पूर्णिमा के दिन संघ के स्वयंसेवक गुरु दक्षिणा के रूप में इसी भगवाध्वज के समक्ष राष्ट्र के प्रति अपना समर्पण व श्रद्धा निवेदित करते हैं।

यहाँ उल्लेखनीय यह है कि इस भगवाध्वज को “गुरु” की मान्यता यूं ही नहीं मिली है। यह ध्वज तपोमय व ज्ञाननिष्ठ भारतीय संस्कृति का सर्वाधिक सशक्त व पुरातन प्रतीक है। उगते हुये सूर्य के समान इसका भगवा रंग भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिक ऊर्जा, पराक्रमी परंपरा एवं विजय भाव का सर्वश्रेष्ठ प्रतीक है। संघ ने उसी परम पवित्र भगवा ध्वज को गुरु के प्रतीक रूप में स्वीकार किया है जो कि हजारों वर्षों से हमारे राष्ट्रीय संस्कृति और धर्मध्वजा का सर्वज्ञात स्वरुप रहा था।

“गुरु” शब्द का महत्व इसके अक्षरों में ही निहित है। देववाणी संस्कृत में ‘गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान) और ‘रु’ का अर्थ, हटाने वाला। यानी जो अज्ञान के अंधकार से मुक्ति दिलाये वह ही गुरु है।
माता-पिता हमारे जीवन के प्रथम गुरु होते हैं। प्राचीनकाल में शिक्षा प्राप्ति के लिए गुरुकुलों की व्यवस्था थी। जहाँ गुरु-शिष्य परम्परा से युवा शिष्य जीवन के मूलमंत्रों को सहजीवन में ग्रहण करते थे , आज उनके स्थान पर स्कूल-कॉलेज हैं।
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॰०॥ तस्मै: श्री गुरुवै नम: ॥०॰

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बंदरो की एक टोली थी –


बंदरो की एक टोली थी –

बंदर फलो के बग़ीचों मे फल तोड कर खाया करते साथ ही माली की मार और डंडे भी खाते थे !

एक दिन बन्दरों के सरदार ने सब बंदरो से विचार विमर्श कर निर्णय किया कि रोज माली के डन्डे खाने से बेहतर है हम अपना फलों का बग़ीचा लगा ले और खाने से ना कोई
रोकेगा न टोकेगा और हमारे अच्छे दिन भी आ जायगे !

सभी बन्दरों को यह प्रस्ताव बहुत पसन्द आया ! जोर शोर से गड्ढे खोद कर फलो के बीज बो दिये गये ! पूरी रात बन्दरों ने बेसब्री से इन्तज़ार किया ! सुबह देखा गया अभी तो फलो के पौधे भी नहीं आये !दो चार दिन बन्दरों ने और इन्तज़ार किया , परन्तु पौधे तो आए नहीं ! बन्दरों ने मिट्टी हटाई – देखा फलो के बीज जैसे के तैसे ही है !

बन्दरों ने कहा – लोग झूठ बोलते हैं ! हमारे अच्छे दिन कभी नही आने वाले ! हमारी क़िस्मत मैं तो माली के डन्डे ही लिखे हैं ! बन्दरों ने सभी गड्ढे खोद कर, फलो के बीज निकाल कर फेंक दिये ! और फिर माली की मार और डन्डे खाने लगे !

# दोस्तों, जरा सोचिये – – 60 साल बनाम 3 साल एक परिपक्व समाज का उदाहरण पेश करिये ! …..

# बंदरो वाली हरकत ना करे ..और दूसरे को भी न करने दें

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एक माँ अपने पूजा-पाठ से फुर्सत पाकर अपने विदेश में रहने वाले बेटे से फोन पर बात करते समय पूँछ बैठी


एक माँ अपने पूजा-पाठ से फुर्सत पाकर अपने विदेश में रहने वाले बेटे से फोन पर बात करते समय पूँछ बैठी: … बेटा! कुछ पूजा-पाठ भी करते हो या फुर्सत ही नहीं मिलती?

बेटे ने माँ को बताया – “माँ, मैं एक आनुवंशिक वैज्ञानिक हूँ …
मैं अमेरिका में मानव के विकास पर काम कर रहा हूँ …
विकास का सिद्धांत, चार्ल्स डार्विन… क्या आपने उसके बारे में सुना है ?”

उसकी माँ मुस्कुरा कर बोली – “मैं डार्विन के बारे में जानती हूँ, बेटा … मैं यह भी जानती हूँ कि तुम जो सोचते हो कि उसने जो भी खोज की, वह वास्तव में सनातन-धर्म के लिए बहुत पुरानी खबर है…“

“हो सकता है माँ !” बेटे ने भी व्यंग्यपूर्वक कहा …

“यदि तुम कुछ होशियार हो, तो इसे सुनो,” उसकी माँ ने प्रतिकार किया…
… “क्या तुमने दशावतार के बारे में सुना है ? विष्णु के दस अवतार ?”

बेटे ने सहमति में कहा “हाँ! पर दशावतार का मेरी रिसर्च से क्या लेना-देना?”

माँ फिर बोली: लेना-देना है मेरे लाल… मैं तुम्हें बताती हूँ कि तुम और मि. डार्विन क्या नहीं जानते हैं ?

पहला अवतार था मत्स्य अवतार, यानि मछली | ऐसा इसलिए कि जीवन पानी में आरम्भ हुआ | यह बात सही है या नहीं ?”

बेटा अब और अधिक ध्यानपूर्वक सुनने लगा |

उसके बाद आया दूसरा कूर्म अवतार, जिसका अर्थ है कछुआ, क्योंकि जीवन पानी से जमीन की ओर चला गया ‘उभयचर (Amphibian)’ | तो कछुए ने समुद्र से जमीन की ओर विकास को दर्शाया |

तीसरा था वराह अवतार, जंगली सूअर, जिसका मतलब जंगली जानवर जिनमें बहुत अधिक बुद्धि नहीं होती है | तुम उन्हें डायनासोर कहते हो, सही है ? बेटे ने आंखें फैलाते हुए सहमति जताई |

चौथा अवतार था नृसिंह अवतार, आधा मानव, आधा पशु, जंगली जानवरों से बुद्धिमान जीवों तक विकास |

पांचवें वामन अवतार था, बौना जो वास्तव में लंबा बढ़ सकता था | क्या तुम जानते हो ऐसा क्यों है ? क्योंकि मनुष्य दो प्रकार के होते थे, होमो इरेक्टस और होमो सेपिअंस, और होमो सेपिअंस ने लड़ाई जीत ली |”

बेटा दशावतार की प्रासंगिकता पर स्तब्ध हो रहा था जबकि उसकी माँ पूर्ण प्रवाह में थी…

छठा अवतार था परशुराम – वे, जिनके पास कुल्हाड़ी की ताकत थी, वो मानव जो गुफा और वन में रहने वाला था | गुस्सैल, और सामाजिक नहीं |

सातवां अवतार था मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, सोच युक्त प्रथम सामाजिक व्यक्ति, जिन्होंने समाज के नियम बनाए और समस्त रिश्तों का आधार |

आठवां अवतार था जगद्गुरु श्री कृष्ण, राजनेता, राजनीतिज्ञ, प्रेमी जिन्होंने ने समाज के नियमों का आनन्द लेते हुए यह सिखाया कि सामाजिक ढांचे में कैसे रहकर फला-फूला जा सकता है |

नवां अवतार था भगवान बुद्ध, वे व्यक्ति जो नृसिंह से उठे और मानव के सही स्वभाव को खोजा | उन्होंने मानव द्वारा ज्ञान की अंतिम खोज की पहचान की |

और अंत में दसवां अवतार कल्कि आएगा, वह मानव जिस पर तुम काम कर रहे हो | वह मानव जो आनुवंशिक रूप से अति-श्रेष्ठ होगा |

बेटा अपनी माँ को अवाक होकर सुनता रहा |
अंत में बोल पड़ा “यह अद्भुत है माँ, भारतीय दर्शन वास्तव में अर्थपूर्ण है |”

…पुराण अर्थपूर्ण हैं | सिर्फ आपका देखने का नज़रिया होना चाहिए धार्मिक या वैज्ञानिक ?

यशपाल सिंह सहिनी

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रात के समय एक दुकानदार अपनी दुकान


रात के समय एक दुकानदार अपनी दुकान
बन्द ही कर रहा था कि एक 🐕कुत्ता दुकान में आया ..
,
उसके मुॅंह में एक थैली थी, जिसमें सामान की
लिस्ट और पैसे थे ..😛👇
,
दुकानदार ने पैसे लेकर सामान उस
थैली में भर दिया …😛
,
🐕कुत्ते ने थैली मुॅंह मे उठा ली और चला गया😍
,
दुकानदार आश्चर्यचकित होके कुत्ते के पीछे
पीछे गया ये देखने की इतने समझदार
🐕कुत्ते का मालिक कौन है …😛
,
🐕कुत्ता बस स्टाॅप पर खडा रहा, थोडी देर बाद
एक बस आई जिसमें
चढ गया ..😂😁
,
कंडक्टर के पास आते ही अपनी गर्दन आगे
कर दी, उस के गले के बेल्ट में पैसे और
उसका पता भी था😛
,
कंडक्टर ने पैसे लेकर टिकट 🐕कुत्ते के गले के
बेल्ट मे रख दिया😍
,
अपना स्टाॅप आते ही 🐕कुत्ता आगे के दरवाजे पे
चला गया और पूॅंछ हिलाकर कंडक्टर
को इशारा कर दिया
और बस के रुकते ही उतरकर चल दिया ..😛😍
,
दुकानदार भी पीछे पीछे चल रहा था …
,
कुत्ते ने घर का दरवाजा अपने पैरोंसे
२-३ बार खटखटाया …😍😍
,
अन्दर से उसका मालिक आया और लाठी से
उसकी पिटाई कर दी ..😛😛
,
दुकानदार ने मालिक से इसका कारण पूछा .. ??😛😛
,
मालिक बोला .. “साले ने मेरी नींद खराब कर दी,
✒चाबी साथ लेके नहीं जा सकता था गधा”😛
,
,
जीवन की भी यही सच्चाई है .. 😛😍
,
आपसे लोगों की अपेक्षाओं का
कोई अन्त नहीं है ..😛
,
जहाँ आप चूके वहीं पर लोग बुराई निकाल लेते हैं और पिछली सारी अच्छाईयों को भूल जाते हैं ..😛😍
,
इसलिए अपने कर्म करते चलो, लोग
आपसे कभी संतुष्ट नहीं होएँगे।।😍

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पछतावा


पछतावा

एक मेहनती और ईमानदार नौजवान बहुत पैसे कमाना चाहता था क्योंकि वह गरीब था और बदहाली में जी रहा था। उसका सपना था कि वह मेहनत करके खूब पैसे कमाये और एक दिन अपने पैसे से एक कार खरीदे। जब भी वह कोई कार देखता तो उसे अपनी कार खरीदने का मन करता।

कुछ साल बाद उसकी अच्छी नौकरी लग गयी। उसकी शादी भी हो गयी और कुछ ही वर्षों में वह एक बेटे का पिता भी बन गया। सब कुछ ठीक चल रहा था मगर फिर भी उसे एक दुख सताता था कि उसके पास उसकी अपनी कार नहीं थी। धीरे – धीरे उसने पैसे जोड़ कर एक कार खरीद ली। कार खरीदने का उसका सपना पूरा हो चुका था और इससे वह बहुत खुश था। वह कार की बहुत अच्छी तरह देखभाल करता था और उससे शान से घूमता था।

एक दिन रविवार को वह कार को रगड़ – रगड़ कर धो रहा था। यहां तक कि गाड़ी के टायरों को भी चमका रहा था। उसका 5 वर्षीय बेटा भी उसके साथ था। बेटा भी पिता के आगे पीछे घूम – घूम कर कार को साफ होते देख रहा था। कार धोते धोते अचानक उस आदमी ने देखा कि उसका बेटा कार के बोनट पर किसी चीज़ से खुरच – खुरच कर कुछ लिख रहा है।

यह देखते ही उसे बहुत गुस्सा आया। वह अपने बेटे को पीटने लगा। उसने उसे इतनी जो़र से पीटा कि बेटे के हाथ की एक उंगली ही टूट गयी।

दरअसल वह आदमी अपनी कार को बहुत चाहता था और वह बेटे की इस शरारत को बर्दाश्त नहीं कर सका । बाद में जब उसका गुस्सा कुछ कम हुआ तो उसने सोंचा कि जा कर देखूं कि कार में कितनी खरोंच लगी है। कार के पास जा कर देखने पर उसके होश उड़ गये। उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था। वह फूट – फूट कर रोने लगा। कार पर उसके बेटे ने खुरच कर लिखा था-

Papa, I love you.

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि किसी के बारे में कोई गलत राय रखने से पहले या गलत फैसला लेने से पहले हमें ये ज़रूर सोंचना चाहिये कि उस व्यक्ति ने वह काम किस नियत से किया है।
लष्मीकांत वर्शनय

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भवरेश्वर मन्दिर का ऐतिहासिक महत्व है


भवरेश्वर मन्दिर का ऐतिहासिक महत्व है
जिसके बारे में आपको अवगत करा रहा हूँ दो
मिनट का समय निकाल कर अवश्य पढ़े।
बछरावां के कुर्री सुदौली गांव में रायबरेली,
लखनऊ और उन्नाव जनपदों की सीमाओं पर
स्थित प्रख्यात भंवरेश्वर मंदिर लाखों
श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है । यहां महा
शिवरात्रि और सावन माह के सभी सोमवारों
को कई जनपदों के लाखों शिवभक्त जलाभिषेक
कर एक माह तक लगने वाले विशाल मेले का लुत्फ
उठाते हैं । प्रख्यात भंवरेश्वर मंदिर का
इतिहास है कि द्वापर युग में बारह वर्ष के
वनवास के समय पांडव विचरण करते हुए यहां
पहुंचे । कुंती का नियम था कि शिव की पूजा
किए बिना जल तक नहीं पीती थी । आसपास
शंकर जी का मंदिर न होने पर भीमेश्वर ने यहां
शिवलिंग की स्थापना की तब कुंती ने प्राण
प्रतिष्ठा कर पूजा अर्चना की और यह
शिवलिंग भीमेश्वर के नाम से विख्यात हुआ ।
द्वापर युग समाप्त हुआ और धीरे-धीरे पानी के
बहाव व मिट्टी से ढक जाने के कारण यह
शिवलिंग विलुप्त हो गया । सुदौली रियासत
के राजा को एक रात यहां शिवलिंग होने का
स्वप्न हुआ और उन्होंने ने खुदाई कराई और यह
शिवलिंग अनादिकाल तक यह भीमेश्वर मंदिर के
नाम से प्रख्यात रहा । मुगलिया सल्तनत में
औरंगजेब के शासनकाल में मंदिरों को तुड़वाया
जा रहा था तभी औरंगजेब को मालूम हुआ कि
फैजाबाद कमिश्नरी के दरियाबाद
( रायबरेली ) जिले में मीरबाकी के देखरेख वाले
इलाके में प्रख्यात भीमेश्वर मंदिर है । यहां
पहुंचकर उसने अपने सिपाहियों को शिवलिंग
तोड़ने के आदेश दिए । 85 फिट गहरा खोद
दिया गया फिर भी शिवलिंग का दूसरा छोर
नहीं मिला इस पर औरंगजेब ने सिपाहियों को
शिवलिंग में 10 हाथियों को जंजीरों से बांधकर
खींचने का आदेश दिया । इस पर वहां मौजूद
पुजारी और शिवभक्त प्रार्थना करने लगे कि हे
भोले अपनी रक्षा स्वयं करें । तभी शिवलिंग से
लाखों की संख्या में भंवरे निकालकर औरंगजेब की
सेना पर टूट पड़े और सेना भाग खड़ी हुईं । तब से
यह भंवरेश्वर के नाम से विख्यात हो गया । 1 like to Banta hai.bol buuuuuuum bhoooooooole buuuuum buuuuuum bhoooooole

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वेद रूपी गंगा व मतमतान्तरों का पाखंड


वेद रूपी गंगा व मतमतान्तरों का पाखंड

इंग्लैंड प्रदेश से एक विदेशी जिज्ञासु युवक गंगा नदी की महिमा सुनकर कोलकाता आया। मगर हावड़ा पुल से गंदे गंगा जल को देखकर वह हैरान हो गया। उसके मन में शंका हुई कि क्या यही गंगा नदी है जिसके जल को अमृत समान माना जाता है? एक पंडित जी से उन्होंने अपनी शंका करी। पंडित जी उन्हें लेकर कानपूर गये और गंगा के दर्शन करवाये। वहां का जल उन्हें कुछ अच्छा लगा। पंडित जी उन्हें लेकर हरिद्वार गये। वहां का जल उन्हें पहले से अधिक अच्छा लगा। पंडित जी उन्हें लेकर गंगोत्री गये। वहाँ का जल ग्रहण कर वह युवक प्रसन्न हुआ और कहा की यह साक्षात अमृत है।
हिन्दू समाज की वर्तमान मान्यताएँ, वर्तमान स्वरुप, वर्तमान आस्थाएं सदियों के प्रवाह से कुछ विकृत, कुछ परिवर्तित हो गई हैं। जिससे इसका वर्तमान स्वरुप बदल गया है। इस परिवर्तित स्वरुप को देखकर कुछ लोग अंधविश्वासी, नास्तिक, आचारहीन, विधर्मी आदि हो रहे हैं। इसलिये संसार कि इस श्रेष्ठ विचारधारा को जानने के लिये इसके उद्गम तक जाना होगा। यह उद्गम वेद का सत्य ज्ञान है। वेद वह सत्य ज्ञान है जिसका पान करने वाला सदा के लिये अमर हो जाता है।
वेद का प्रदाता ईश्वर है इसलिये उसमें कोई दोष नहीं है। काव्य रूपी वेद को उत्पन्न करने वाले ईश्वर का एक नाम जातवेदा: इसलिये है।वेद को ,परमात्मा द्वारा मनुष्यों के कल्याण के लिये दिया गया ज्ञान बताया गया है। अथर्ववेद में 16/71/1 में परमात्मा कहते है- हे मनुष्यों! तुम्हारे लिए मैंने वरदान देने वाली वेद माता की स्तुति कर दी है, वह मैंने तुम्हारे आगे प्रस्तुत कर दी है। वह वेद माता तुम्हें चेष्टाशील, द्वीज और पवित्र बनाने वाली है। आयु अर्थात दीर्घजीवन, प्राण, संतान, पशु, कीर्ति, धन-संपत्ति और ब्रहावर्चस् अर्थात ब्राह्मणों के तेज अर्थात विद्या- बल रूप वरों को यह वेद-माता प्रदान करती है। वेद माता के स्वाध्याय और तदनुसार आचरण द्वारा प्राप्त होने वाले इन आयु आदि सातों पदार्थों को मुझे दे कर, उन्हें मदर्पण, ब्रहार्पण कर के ब्रह्मलोक अर्थात मोक्ष को प्राप्त करो।
वेदों में पशुबलि, पाषाण पूजा, मूर्ति पूजा,गणेशपूजा,शिवलिंग पूजा,टेवा,जन्मपत्री आदि का लेशमाल भी वर्णन नहींं है,कुछ स्वार्थी पण्डे पुजारी वेदमंत्रों के उल्टे पुल्टे अर्थ करके अपनी दुकानदारी चमकाये रखना चाहते हैं।
ऋषि दयानंद ने अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश में हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख,जैन,बौद्ध, ईसाई आदि मतमतान्तरों की पोल खोली है जिससे चिढ कर उस महान ईशभक्त राष्ट्र भक्त सन्यासी को सतरह बार विष दिया गया।हिन्दू मत में व्याप्त अन्धविश्वास पाखंड का हवाला देकर ही विधर्मी हर साल लाखों हिन्दुओं को मुसलमान ईसाई वौद्ध वा अम्बेडकरवादी बना रहे हैं परन्तु किसी को कोई चिन्ता नहीं !!

आईये वेदों की ओर लौटें,पाखंड छोड कर यज्ञ व योग को दिनचर्या का अंग बनायें।

 

नीरज आर्य अँधेड़ी

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एक इंटरव्यू चल रहा था , नौकरी पहले ही बॉस के साले के लिये पक्की हो चुकी थी..,


एक इंटरव्यू चल रहा था ,
नौकरी पहले ही बॉस के साले के लिये पक्की हो चुकी थी..,
..

लेकिन दिखावे के लिये इंटरव्यू तो लेना ही था,
इसलिये ऐसे सवाल पूछे जा रहे थे, जिनका कोई जवाब संभव नहीं था, एक के बाद एक केंडीडेट आ रहे थे, जा रहे थे….!

फिर विजय खट्टर जी की बारी आयी….!!

😋इंटरव्यू लेने वाला:— आप नदी के बीच एक बोट पर हैं, और आपके पास दो सिगरेट के अलावा कुछ भी नही है….!!!
..
आपको एक सिगरेट जलानी है, कैसे जलाओगे…??
..

विजय जी बड़े सीरियसली सोचने के बाद बोले…….!
सर इसके तीन-चार सोल्युशन हो सकते हैं……!!
…. ..
इंटरव्यू लेने वाले को बहुत आश्चर्य हुआ कि जिस सवाल का एक भी जवाब नही हो सकता, उसके तीन-चार जवाब कहां से आ गये…… उसने बोला बताओ….!!

विजय जी का पहला अनोखा जवाब:—

एक सिगरेट पानी में फेंक दो, then boat will become lighter (हल्की),
और “lighter” से आप सिगरेट जला सकते हैं…..!
इंटरव्यू लेने वाला(Shocked)…….?😳

विजय जी का दुसरा खतरनाक जवाब:—
Throw a cigaratte up and catch it,
“Catches win the Matches”,
using the matches that you win, you can light the cigarette…..!!

Interviewer was speechless…..??

सर अभी तो एक उपाय और है……!

Take some water in your hand and drop it,
drop-by-drop.
It will sound like ..Tip..Tip-Tip..Tip….!!

Interviewer:— उससे क्या होगा…..???
..
सर आपने वो गाना नही सुना “टिप-टिप बरसा पानी, पानी ने आग लगाई…..”!!!😒

इस आग से आप अपनी सिगरेट जला सकते हैं…..!

सर यदि ये काफी नही हैं तो अभी भी मेरे पास एक और उपाय है, वह भी सुन लीजिए:—

आप एक सिगरेट से प्यार करने लगिए, दूसरी अपने आप जलने लगेगी…..!!

..
.
इंटरव्यू लेने वाला चकित हो गया और चिल्ला कर बोला:—

..
“साले”…….को मारो गोली, नौकरी तो खट्टर जी को ही मिलेगी….