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“क्यों लगाया जाता है हनुमान जी को संदूर”
हिन्दू धर्म में सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है। प्रत्येक सुहागन स्त्री इसे अपनी मांग में लगाती है। सिंदूर का हिन्दू धर्म में पूजा पाठ में भी महत्तव है। कई देवी देवताओं को सिंदूर चढ़ाया जाता है। लेकिन गणेश जी, भैरू जी (भैरव जी) और हनुमान जी को तो सिंदूर का पूरा चोला चढाने की परम्परा है।
रामचरित मानस के अनुसार जब राम जी लक्ष्मण और सीता सहित अयोध्या लौट आए तो एक दिन हनुमान जी माता सीता के कक्ष में पहुंचे। उन्होंने देखा कि माता सीता लाल रंग की कोई चीज मांग में सजा रही हैं। हनुमान जी ने उत्सुक हो माता सीता से पूछा यह क्या है जो आप मांग में सजा रही हैं। माता सीता ने कहा यह सौभाग्य का प्रतीक सिंदूर है। इसे मांग में सजाने से मुझे राम जी का स्नेह प्राप्त होता है और उनकी आयु लंबी होती है। यह सुन कर हनुमान जी से रहा न गया और उन्होंने अपने पूरे शरीर को सिंदूर से रंग लिया तथा मन ही मन विचार करने लगे इससे तो मेरे प्रभु श्रीराम की आयु और लम्बी हो जाएगी और वह मुझे अति स्नेह भी करेंगे। सिंदूर लगे हनुमान जी प्रभु राम जी की सभा में चले गए।
राम जी ने जब हनुमान को इस रुप में देखा तो हैरान रह गए। राम जी ने हनुमान से पूरे शरीर में सिंदूर लेपन करने का कारण पूछा तो हनुमान जी ने साफ-साफ कह दिया कि इससे आप अमर हो जाएंगे और मुझे भी माता सीता की तरह आपका स्नेह मिलेगा। हनुमान जी की इस बात को सुनकर राम जी भाव विभोर हो गए और हनुमान जी को गले से लगा लिया। उस समय से ही हनुमान जी को सिंदूर अति प्रिय है और सिंदूर अर्पित करने वाले पर हनुमान जी प्रसन्न रहते हैं।

Sanjay Gupta

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🌹सात ठाकुर जो वृंदावन में प्रकट हुए हैं🌹

🌹1. गोविंददेव जी🌹
कहाँ से मिली : वृंदावन के गौमा टीला से
यहाँ है स्थापित :जयपुर के राजकीय महल में
रूप गोस्वामी को श्री कृष्ण की यह मूर्ति वृंदावन के गौमा टीला नामक स्थान से वि.सं.1535 में मिली थी। उन्होंने उसी स्थान पर छोटी सी कुटिया में इस मूर्ति को स्थापित किया। इसके बाद रघुनाथ भट्ट गोस्वामी ने गोविंददेव जी की सेवा पूजा संभाली। उन्ही के समय में आमेर नरेश मानसिंह ने गोविंददेव जी का भव्य मंदिर बनवाया और इस मंदिर में गोविंददेव जी 80 साल विराजे। औरंगजेब के शासन काल में बृज पर हुए हमले के समय गोविंद जी को उनके भक्त जयपुर ले गए। तबसे गोविंदजी जयपुर के राजकीय महल मंदिर में विराजमान हैं।

🌹2. मदन मोहन जी🌹
कहाँ से मिली :वृंदावन के कालीदह के पास द्वादशादित्य टीले से
यहाँ है स्थापित : करौली (राजस्थान ) में
यह मूर्ति अद्वैत प्रभु को वृंदावन के द्वादशादित्य टीले से प्राप्त हुई थी। उन्होंने सेवा पूजा के लिए यह मूर्ति मथुरा के एक चतुर्वेदी परिवार को सौंप दी और चतुर्वेदी परिवार से मांग कर सनातन गोस्वामी ने वि.सं 1590 (सन् 1533) में फिर से वृंदावन के उसी टीले पर स्थापित किया। बाद मे क्रमश: मुलतान के नामी व्यापारी रामदास कपूर और उड़ीसा के राजा ने यहाँ मदन मोहन जी का विशाल मंदिर बनवाया। मुगलिया आक्रमण के समय भक्त इन्हे जयपुर ले गए पर कालांतर मे करौली के राजा गोपाल सिंह ने अपने राजमहल के पास बड़ा सा मंदिर बनवाकर मदनमोहन जी की मूर्ति को स्थापित किया। तब से मदनमोहन जी करौली में दर्शन दे रहे हैं।

🌺3. गोपीनाथ जी🌷
कहाँ से मिली : यमुना किनारे वंशीवट से
यहैं है स्थापित : पुरानी बस्ती, जयपुर
श्री कृष्ण की यह मूर्ति संत परमानंद भट्ट को यमुना किनारे वंशीवट पर मिली और उन्होंने इस प्रतिमा को निधिवन के पास स्थापित कर मधु गोस्वामी को इनकी सेवा पूजा सौंपी। बाद में रायसल राजपूतों ने यहाँ मंदिर बनवाया पर औरंगजेब के आक्रमण के दौरान इस प्रतिमा को भी जयपुर ले जाया गया। तबसे गोपीनाथ जी वहाँ पुरानी बस्ती स्थित गोपीनाथ मंदिर में विराजमान हैं।

🌺4. जुगलकिशोर जी💐
कहाँ से मिली : वृंदावन के किशोरवन से
यहाँ है स्थापित : पुराना जुगलकिशोर मंदिर, पन्ना (म .प्र)
भगवान जुगलकिशोर की यह मुर्ति हरिराम व्यास को वि. सं 1620 की माघ शुक्ल एकादशी को वृंदावन के किशोरवन नामक स्थान पर मिली। व्यास जी ने उस प्रतिमा को वही प्रतिष्ठित किया।बाद मे ओरछा के राजा मधुकर शाह ने किशोरवन के पास मंदिर बनवाया। यहाँ भगवान जुगलकिशोर अनेक वर्षो तक विराजे पर मुगलिया हमले के समय उनके भक्त उन्हें ओरछा के पास पन्ना ले गए। ठाकुर आज भी पन्ना के पुराने जुगलकिशोर मंदिर मे दर्शन दे रहे है।

🌹5. राधारमण जी🌿🌾
कहाँ से मिली : नेपाल की गंडकी नदी से
यहाँ है स्थापित : वृंदावन
गोपाल भट्ट गोस्वामी को नेपाल की गंडक नदी मे एक शालिग्राम मिला। वे उसे वृंदावन ले आए और केसीघाट के पास मंदिर मे प्रतिष्ठित कर दिया। एक दिन किसी दर्शनार्थी ने कटाक्ष कर दिया कि चंदन लगाए शालिग्राम जी तो एसे लगते है मानो कढ़ी में बैंगन पड़े हों। यह सुनकर गोस्वामी जी बहुत दुःखी हुए पर सुबह होते ही शालिग्राम से राधारमण जी की दिव्य प्रतिमा प्रकट हो गई। यह दिन वि. सं 1599 (सन् 1542) की वैशाख पूर्णिमा का था। वर्तमान मंदिर मे इनकी प्रतिष्ठापना सन् 1884 मे कि गई।
उल्लेखनीय है कि मुगलिया हमले के बावजूद यही एक मात्र ऐसी प्रतिमा है जो वृंदावन से कहीं बाहर नहीं गई। इसे भक्तों ने वृंदावन में ही छुपाकर रखा।इसकी सबसे विषेश बात यह है कि जन्माष्टमी पर जहाँ दुनिया के सभी कृष्ण मंदिरो में रात्रि बारह बजे उत्सव होता है, वहीं राधारमण जी का जन्म अभिषेक दोपहर बारह बजे होता है। मान्यता है कि ठाकुर जी सुकोमल होते हैं इसलिए उन्हें रात्रि में जागना ठीक नहीं।

🌺6. राधावल्लभ जी🌿🌾
कहाँ से मिली : यह प्रतिमा हित हरिवंश जी को दहेज में मिली थी
यहाँ है स्थापित : वृंदावन
भगवान श्रीकृष्ण की यह सुदंर प्रतिशत प्रतिमा हित हरिवंश जी को दहेज मे मिली थी। उनका विवाह देवबंद से वृंदावन आते समय चटथावल गाव में आत्मदेव नामक एक ब्राह्मण की बेटी से हुआ था। पहले वृंदावन के सेवाकुंज में (वि. सं 1591)और बाद में सुंदरलाल भटनागर द्वारा बनवाया गया (कुछ लोग इसका श्रेय रहीम को देते है ) लाल पत्थर वाले पुराने मंदिर में प्रतिष्ठित हुए।
मुगलिया हमले के समय भक्त इन्हे कामा (राजस्थान ) ले गए थे। वि. सं 1842 में एक बार फिर भक्त इस प्रतिमा को वृंदावन ले आये और यहा नवनिर्मित मंदिर में प्रतिष्ठित किया। तब से राधावल्लभ जी की प्रतिमा यहीं विराजमान है।

🌹7. बांकेबिहारी जी🌹
कहाँ से मिली : वृंदावन के निधिवन से
यहैं है स्थापित : वृंदावन
मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को स्वामी हरिदासजी की आराधना को साकार रूप देने के लिए बांकेबिहारी जी की प्रतिमा निधिवन मे प्रकट हुई। स्वामी जी ने उस प्रतिमा को वहीं प्रतिष्ठित कर दिया। मुगलिया आक्रमण के समय भक्त इन्हें भरतपुर (राजस्थान ) ले गए। वृंदावन में ‘भरतपुर वाला बगीचा’ नाम के स्थान पर वि. सं 1921 में मंदिर निर्माण होने पर बांकेबिहारी जी एक बार फिर वृंदावन मे प्रतिष्ठित हुए। तब से बिहारीजी यहीं दर्शन दे रहे है।
बिहारी जी की प्रमुख विषेश बात यह है कि इन की साल में केवल एक दिन (जन्माष्टमी के बाद भोर में) मंगला आरती होती है, जबकि अन्य वैष्णव मंदिरों में नित्य सुबह मंगला आरती होने की परंपरा है।
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🌺🌹🌻 श्री राधे राधे बोलना तो पड़ेगा जी 🌻🌹🌺
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Sanjay gupta

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“जर शिवाजी महाराज हे इंग्लंडमध्ये जन्माला आले असते तर आम्ही पृथ्वीवरच काय पण परग्रहावरही राज्य केले असते !”
— लॉर्ड माउंटबँटन, इंग्लंड.

“भारताला जर स्वातंत्र्य मिळवून द्यायचं असेन तर एकच पर्याय आहे, शिवाजी महाराज न प्रमाणे लढा !
— नेताजी सुभाषचंद्र बोस.

“नेताजी, तुमच्या देशाला स्वातंत्र्यासाठी कुठल्या ‘हिटलर‘ची गरज नाही, तर तुमच्याच देशात जन्माला आलेल्या शिवाजी महाराजा च्या इतिहासाची गरज आहे !”
— अॅडॉल्फ हिटलर.

“शिवाजी महाराज हे फक्त नाव नाही, तर शिवाजीमहाराज ही आजच्या तरूण पिढीसाठी उर्जा आहे; जिचा वापर हिंदुस्थानला स्वातंत्र्य मिळवून देण्यासाठी होऊ शकतो !”
— स्वामी विवेकानंद.

“जर शिवाजी महाराज आमच्या देशात जन्माला आले असते तर आम्ही त्यास ‘सुर्य‘ संबोधले असते !”
— बराक ओबामा, अमेरिका.

“जर शिवाजी महाराज अजून १० वर्षे जगले असते, तर इंग्रजांना पुर्ण हिंदुस्थानचा चेहरा सुध्दा पाहता आला नसता !”
— इंग्रज गव्हर्नर.

“काबुल पासुन कंदहार पर्यंत माझ्या तैमुर खानदानाने मोघली सत्ता निर्माण केली. इराक, इराण, तुर्कस्तानच्या कित्येक नामांकित सरदारांना माझ्या तैमुर खानदानाने पाणी पाजलं ! पण हिंदुस्थानात मात्र आम्हाला शिवाजी महाराजांनी रोखलं ! सर्व शक्ती मी शिवाजी महाराजांना पराभव करायला खर्च केली पण शिवाजी महाराज काही माझ्या हाती नाही आले ! या अल्लाह ! दुश्मन दिया भी तो कौण दिया? * सिवा_भोसला* जैसा दिया. अपने जन्नत के दरवाजे खुले रखना खुदा क्योंकि दुनिया का सबसे बहादुर योध्दा और दिलदार दुश्मन तेरे पास आ रहा है !”
— औरंगजेब (छत्रपति शिवाजी महाराजांच्या मृत्यू नंतर नमाज पढताना काढलेले उदगार, संदर्भ- खाफिखानाची बखर)

“उस दिन सिवा भोसलाने सिर्फ मेरी उंगलियां नही काटी, बल्कि मेरी ताकद के घमंड को भी उतारा. मै अब निंद मे भी सिवा भोसला से मिलना नही चाहता !”
— शाहीस्तेखान, संदर्भ- खाफिखानाची बखर.

“क्या उस गद्दारे दख्खन से सिवा नाम का लोहा लाने के लिए एक भी मर्द नही है, इस दरबार में? लालत है ऐसी मर्दानगी पे !”
— बडी बेगम अलि आदिलशाह.

१७ व्या शतकात युरोप खंडात “लंडन गॅझेट” नावाचं आघाडीचं वृत्तपत्र होतं. जेव्हा महाराज आग्र्यावरून सहीसलामत सुटले, तेव्हा या वृत्तपत्राने पहिल्या पानावर जी पहिली बातमी छापली होती आणि त्यात महाराजांचा Shivaji, The King of India असा उल्लेख केला !

वरील उदाहरणावरून मी नेहमी जाणिवपुर्वक छत्रपती शिवरायांचा आंतरराष्ट्रीय किर्तीचे राजे म्हणुन उल्लेख करतो, जागतिक दर्जाचे योद्धे म्हणून शिवरायांची ओळख आहे ती यामुळेच ! महाराजांनी त्यांच्या ३० वर्षाच्या आयुष्यात ज्या ज्या सेनानींचा पराभव केला त्यामध्ये फक्त २ च भारतीय, बाकी सर्वजण हे परकिय सरदार आणि त्या त्या देशाचे नामांकित सरदार होते !

ज्या शाहीस्तेखानाची बोटे महाराजांनी लाल महालात छाटली आणि त्याच्या मनात शिवाजी महाराज या नावाचा खौफ निर्माण केला, तो शाहीस्तेखान साधासुधा मामुली सरदार नव्हता. तर तो अबू तालिबानचा नवाब होता, तुर्कस्तानचा नवाब होता ! प्रतिऔरंगजेब म्हणुन ओळखणारा हा शाहीस्तेखान औरंगजेबाचा सख्खा मामा होता. त्याने प्रचंड मोठा पराक्रम करून मोघलांना मोठा बंगाल प्रांत जिंकुन दिला होता. पण एका रात्रीत महाराजांनी लाल महालात घुसुन त्याची बोटे छाटली आणि काही कळायच्या आत पसार झाले ! परिणामी शाहीस्तेखानाने त्यानंतर शिवाजी महाराज या नावाची इतकी भिती घेतली की शिवाजी महाराजांना आता मला स्वप्नात देखील भेटायचं नाही. असं त्याने औरंगजेबाला सांगितलं इतका खौफ या नवाबाच्या मनात निर्माण केला होता !

बेहलोलखान पठाण, सिकंदर पठाण, चिडरखाण पठाण इ. ज्यांना महाराजांनी रणांगणावर धुधु धुतलं, हे सर्व अफगाणिस्तानचे मातब्बर सरदार होते !

दिलेरखान पठाण, मंगोलियन सरदार, मंगोलिया देशाचा सर्वोत्तम योध्दा होता हा ! महाराजांनी याचा पराभव केला !

सिध्दी जौहर, सिध्दी सलाबत खान हे इराणी होते, इराणचे शुर सरदार होते ! महाराजांनी यांना रणांगणात पाणी पाजलं !

उंबरखिंडीत ज्याचा कोंडुन पराभव केला, तो कारतलब खान उझबेकिस्तानचा सरदार होता, म्हणजे आत्ताच्या रशियाचा ! या महाराजांच्या विजयाची नोंद साक्षात गिनिज बुकाने देखील घेतली. कमीत कमी सैन्याने जास्तीत जास्त सैन्याचा केलेला पराभव ! (१००० मावळे विरूध्द ३०,००० गनिम आणि या ३०,००० पैकी एकही जिवंत राहीला नाही. आणि १००० पैकि एक ही मावळा गमावला नाही. ⛳⛳⛳⛳⛳

अभिमान असेल तरच शेअर करा…….

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पिता बेटे को डॉक्टर बनाना चाहता था। बेटा इतना मेधावी नहीं था कि PMT क्लियर कर लेता। इसलिए दलालों से MBBS की सीट खरीदने का जुगाड़ किया गया। जमीन, जायदाद जेवर गिरवी रख के 35 लाख रूपये दलालों को दिए, लेकिन वहाँ धोखा हो गया।

फिर किसी तरह विदेश में लड़के का एडमीशन कराया गया, वहाँ भी चल नहीं पाया। फेल होने लगा.. डिप्रेशन में रहने लगा। रक्षाबंधन पर घर आया और यहाँ फांसी लगा ली। 20 दिन बाद माँ बाप और बहन ने भी कीटनाशक खा के आत्म हत्या कर ली।

अपने बेटे को डॉक्टर बनाने की झूठी महत्वाकांक्षा ने पूरा परिवार लील लिया। माँ बाप अपने सपने, अपनी महत्वाकांक्षा अपने बच्चों से पूरी करना चाहते हैं …

मैंने देखा कि कुछ माँ बाप अपने बच्चों को
Topper बनाने के लिए इतना ज़्यादा अनर्गल दबाव डालते हैं कि बच्चे का स्वाभाविक विकास ही रुक जाता है।

आधुनिक स्कूली शिक्षा बच्चे की Evaluation और Grading ऐसे करती है जैसे सेब के बाग़ में सेब की खेती की जाती है। पूरे देश के करोड़ों बच्चों को एक ही Syllabus पढ़ाया जा रहा है …….

For Example – जंगल में सभी पशुओं को एकत्र कर सबका इम्तहान लिया जा रहा है और पेड़ पर चढ़ने की क्षमता देख के Ranking निकाली जा रही है। यह शिक्षा व्यवस्था ये भूल जाती है कि इस प्रश्नपत्र में तो बेचारा हाथी का बच्चा फेल हो जाएगा और बन्दर First आ जाएगा।

अब पूरे जंगल में ये बात फ़ैल गयी कि कामयाब वो जो झट से कूद के पेड़ पर चढ़ जाए। बाकी सबका जीवन व्यर्थ है।

इसलिए उन सब जानवरों के, जिनके बच्चे कूद के झटपट पेड़ पर न चढ़ पाए, उनके लिए कोचिंग Institute खुल गए, व्हाँ पर बच्चों को पेड़ पर चढ़ना सिखाया जाता है। चल पड़े हाथी, जिराफ, शेर और सांड़, भैंसे और समंदर की सब मछलियाँ चल पड़ीं अपने बच्चों के साथ, Coaching institute की ओर …….. हमारा बिटवा भी पेड़ पर चढ़ेगा और हमारा नाम रोशन करेगा।

हाथी के घर लड़का हुआ …….
तो उसने उसे गोद में ले के कहा- ‘हमरी जिन्दगी का एक ही मक़सद है कि हमार बिटवा पेड़ पर चढ़ेगा।’ और जब बिटवा पेड़ पर नहीं चढ़ पाया, तो हाथी ने सपरिवार ख़ुदकुशी कर ली।

अपने बच्चे को पहचानिए। वो क्या है, ये जानिये। हाथी है या शेर ,चीता, लकडबग्घा , जिराफ ऊँट है या मछली , या फिर हंस , मोर या कोयल ? क्या पता वो चींटी ही हो ?

और यदि चींटी है आपका बच्चा, तो हताश निराश न हों। चींटी धरती का सबसे परिश्रमी जीव है और अपने खुद के वज़न की तुलना में एक हज़ार गुना ज्यादा वजन उठा सकती है।

इसलिए अपने बच्चों की क्षमता को परखें और जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें.. हतोत्साहित नही……
SAVE HUMAN BEHAVIOR FRS…
Love parents🙏

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सम्वत् दहन-शिव के अर्थों के विषय में एक प्रश्न था-सम्वत् के अन्त में उसे क्यों जलाते हैं?
अघासु हन्यते गावोऽर्जुन्योः पर्युह्यते॥ (ऋग्वेद १०/८५/१३)
मघासु हन्यन्ते गावः फाल्गुनीषु व्युह्यते (अथर्ववेद १४/१/१३, कौषीतकि सूत्र ७५/५)
पहले माघ मास में वर्ष का अन्त होता था। अतः इसको अघा भी कहते हैं-अघाना-पूर्ण या सन्तुष्ट होना। राम कथा जे सुनत अघाहीं रस विशेष जाना तिन्ह नाहीं॥
सम्वत्सर चक्र यज्ञ का चक्र है जिसमें सभी उपयोगी वस्तुओं का उत्पादन होता है, जैसे कृषि ऋतु चक्र से सम्बन्धित है। ज्ञानयज्ञ आदि भी इसी चक्र में होते हैं। यज्ञ का पूर्ण प्रतीक गौ है। इसमें यज्ञ के ३ तत्त्व हैं-गति या क्रिया (अंग्रेजॊ का Go), क्रिया का स्थान, उत्पादन। इसी अर्थ में पृथ्वी भी गौ है।
एक अन्य प्रकार से यज्ञ अग्नि भी है-यह यज्ञ में प्रयुक्त पदार्थ या उसका परिवर्तित रूप में उत्पादन है।
अतः वर्ष की यज्ञ रूप अग्नि जब पूर्ण होती है, वह गौ रूप यज्ञ की पूर्णता है। अग्नि भी पूरी होती है, अतः अग्नि को पुनःजलाते हैं। जैसे प्रतिदिन भोजन बनाने के लिये चूल्हा जलाते हैं।

अरुण उपाध्याय

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मनसुखा बाबा

वृन्दावन में एक संत हुए मनसुखा बाबा………

वो सदा चलते फिरते ठाकुर जी की लीलाओं में खोये रहते थे ।ठाकुर की सखा भाव से सेवा करते थे।

सब संतो के प्रिय थे इसलिए जहां जाते वहा प्रसाद की व्यवस्था हो जाती। और बाकी समय नाम जप और लीला चिंतन करते रहते थे।

एक दिन उनके जांघ पे फोड़ा हो गया असहनीय पीड़ा हो रही थी। बहोत उपचार के बाद भी कोई आराम नहीं मिला।

तो एक व्यक्ति ने उस फोड़े का नमूना लेके आगरा के किसी अच्छे अस्पताल में भेज दिया।
वहां के डॉक्टर ने बताया की इस फोड़े में तो कैंसर बन गया है

तुरंत इलाज़ करना पड़ेगा नहीं तो बाबा का बचना मुश्किल है।
जैसे ही ये बात बाबा को पता चली की उनको आगरा लेके जा रहे हैं

तो बाबा लगेे रोने और बोले हमहूँ कहीं नहीं जानो हम ब्रज से बहार जाके नहीं मरना चाहते।

हमें यहीं छोड़ दो अपने यार के पास हम जियेंगे तो अपने यार के पास और मरेंगे तो अपने यार की गोद में। हमें नहीं करवानो इलाज़।

और बाबा नहीं गए इलाज़ करवाने। बाबा चले गए बरसाने। बहोत असहनीय पीड़ा हो रही थी। उस रात बाबा दर्द से कराह रहे थे।

इत्ते में क्या देखते हैं वृषभानु दुलारी श्री किशोरी जू अपनी अष्ट सखियों के साथ आ रही हैं।

और बाबा के समीप आके ललिता सखी से बोली अरे ललिते जे तो मनसुखा बाबा हैं ना।

तो ललिता जी बोली हाँ श्री जी ये मनसुखा बाबा हैं और डॉक्टर ने बताया की इनको कैंसर है देखो कितना दर्द से कराह रहे हैं।

परम दयालु करुनामई सरकार श्री लाडली जी से उनका दर्द सहा नहीं गया और बोली ललिता बाबा को कोई कैंसर नहीं हैं ।ये तो एक दम स्वस्थ हैं।

जब बाबा इस लीला से बहार आये तो उन्होंने देखा की उनका दर्द एक दम समाप्त हो गया।
और जांघ पर यहाँ तक की किसी फोड़े का निशान भी नहीं रहा।
देखो कैसी करुनामई सरकार हैं श्री लाडली जी हमारी…….❤❤❤❤
“कद्र” करनी है तो “जीते जी” करें

“मरने” के बाद तो “पराए” भी रो देते हैं

आज “जिस्म” मे “जान” है तो
देखते नही हैं “लोग”

जब “रूह” निकल जाएगी तो
“कफन” हटा हटा कर देखेंगे

किसी ने क्या खूब लिखा है

        "वक़्त" निकालकर

“बाते” कर लिया करो “अपनों से”

अगर “अपने ही” न रहेंगे
तो “वक़्त” का क्या करोगे

“गुरुर” किस बात का… “साहब”

आज “मिट्टी” के ऊपर
तो कल “मीट्टीकै नीचे.
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विजया एकादशी फरवरी ११ विशेष
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भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का व्रत है विजय एकादशी। इसे फाल्गुन मास की कृष्ण एकादशी को मनाया जाता है। कहा जाता है कि एकादशी का व्रत धारण करने से न सिर्फ समस्त कार्यों में सफलता मिलती है, बल्कि पूर्व जन्म के पापों का भी नाश हो जाता है। वहीं इसका पुण्य उस व्यक्ति को भी मिलता है जिसकी मृत्यु हो चुकी है आप आप उसकी आत्मा की शांति या मोक्ष की कामना से यह व्रत धारण कर रहे हैं।

कथा के अनुसार वनवास के दौरान जब भगवान श्रीराम को रावण से युद्ध करने जाना था तब उन्होंने भी अपनी पूरी सेना के साथ इस महाव्रत को रखकर ही लंका पर विजय प्राप्त की थी।

व्रत विधि
🔸🔹🔸
इस दिन भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित कर उनकी धूम, दीप, पुष्प, चंदन, फूल, तुलसी आदि से आराधना करें, जिससे कि समस्त दोषों का नाश हो और आपकी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकें। भगवान विष्णु को तुलसी अत्यधिक प्रिय है इसलिए इस दिन तुलसी को आवश्यक रूप से पूजन में शामिल करें। भगवान की व्रत कथा का श्रवण और रात्रि में हरिभजन करते हुए उनसे आपके दुखों का नाश करने की प्रार्थना करें। रात्रि जागकरण का पुण्य फल आपको जरूर ही प्राप्त होगा। व्रत धारण करने से एक दिन पहले ब्रम्हचर्य धर्म का पालन करते हुए व्रती को सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। व्रत धारण करने से व्यक्ति कठिन कार्यों एवं हालातों में विजय प्राप्त करता है।

एकादशी कथा
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युधिष्ठिर ने पूछा: हे वासुदेव! फाल्गुन (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार माघ) के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है और उसका व्रत करने की विधि क्या है? कृपा करके बताइये।

भगवान श्रीकृष्ण बोले: युधिष्ठिर एक बार नारदजी ने ब्रह्माजी से फाल्गुन के कृष्णपक्ष की ‘विजया एकादशी’ के व्रत से होनेवाले पुण्य के बारे में पूछा था तथा ब्रह्माजी ने इस व्रत के बारे में उन्हें जो कथा और विधि बतायी थी, उसे सुनो।

ब्रह्माजी ने कहा : नारद यह व्रत बहुत ही प्राचीन, पवित्र और पाप नाशक है । यह एकादशी राजाओं को विजय प्रदान करती है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्रजी जब लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र के किनारे पहुँचे, तब उन्हें समुद्र को पार करने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। उन्होंने लक्ष्मणजी से पूछा ‘सुमित्रानन्दन किस उपाय से इस समुद्र को पार किया जा सकता है ? यह अत्यन्त अगाध और भयंकर जल जन्तुओं से भरा हुआ है। मुझे ऐसा कोई उपाय नहीं दिखायी देता, जिससे इसको सुगमता से पार किया जा सके।

लक्ष्मणजी बोले हे प्रभु आप ही आदिदेव और पुराण पुरुष पुरुषोत्तम हैं। आपसे क्या छिपा है? यहाँ से आधे योजन की दूरी पर कुमारी द्वीप में बकदाल्भ्य नामक मुनि रहते हैं। आप उन प्राचीन मुनीश्वर के पास जाकर उन्हींसे इसका उपाय पूछिये।

श्रीरामचन्द्रजी महामुनि बकदाल्भ्य के आश्रम पहुँचे और उन्होंने मुनि को प्रणाम किया। महर्षि ने प्रसन्न होकर श्रीरामजी के आगमन का कारण पूछा।

श्रीरामचन्द्रजी बोले ब्रह्मन् मैं लंका पर चढ़ाई करने के उद्धेश्य से अपनी सेनासहित यहाँ आया हूँ। मुने अब जिस प्रकार समुद्र पार किया जा सके, कृपा करके वह उपाय बताइये।

बकदाल्भय मुनि ने कहा : हे श्रीरामजी फाल्गुन के कृष्णपक्ष में जो ‘विजया’ नाम की एकादशी होती है, उसका व्रत करने से आपकी विजय होगी निश्चय ही आप अपनी वानर सेना के साथ समुद्र को पार कर लेंगे।

राजन् ! अब इस व्रत की फलदायक विधि सुनिये: दशमी के दिन सोने, चाँदी, ताँबे अथवा मिट्टी का एक कलश स्थापित कर उस कलश को जल से भरकर उसमें पल्लव डाल दें। उसके ऊपर भगवान नारायण के सुवर्णमय विग्रह की स्थापना करें। फिर एकादशी के दिन प्रात: काल स्नान करें। कलश को पुन: स्थापित करें। माला, चन्दन, सुपारी तथा नारियल आदि के द्वारा विशेष रुप से उसका पूजन करें। कलश के ऊपर सप्तधान्य और जौ रखें। गन्ध, धूप, दीप और भाँति भाँति के नैवेघ से पूजन करें। कलश के सामने बैठकर उत्तम कथा वार्ता आदि के द्वारा सारा दिन व्यतीत करें और रात में भी वहाँ जागरण करें । अखण्ड व्रत की सिद्धि के लिए घी का दीपक जलायें । फिर द्वादशी के दिन सूर्योदय होने पर उस कलश को किसी जलाशय के समीप (नदी, झरने या पोखर के तट पर) स्थापित करें और उसकी विधिवत् पूजा करके देव प्रतिमासहित उस कलश को वेदवेत्ता ब्राह्मण के लिए दान कर दें कलश के साथ ही और भी बड़े बड़े दान देने चाहिए। श्रीराम आप अपने सेनापतियों के साथ इसी विधि से प्रयत्नपूर्वक ‘विजया एकादशी’ का व्रत कीजिये इससे आपकी विजय होगी।

ब्रह्माजी कहते हैं नारद यह सुनकर श्रीरामचन्द्रजी ने मुनि के कथनानुसार उस समय ‘विजया एकादशी’ का व्रत किया। उस व्रत के करने से श्रीरामचन्द्रजी विजयी हुए। उन्होंने संग्राम में रावण को मारा, लंका पर विजय पायी और सीता को प्राप्त किया बेटा जो मनुष्य इस विधि से व्रत करते हैं, उन्हें इस लोक में विजय प्राप्त होती है और उनका परलोक भी अक्षय बना रहता है।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : युधिष्ठिर ! इस कारण ‘विजया’ का व्रत करना चाहिए । इस प्रसंग को पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।

जगदीश जी की आरती
🔸🔸🔹🔸🔹🔸🔸
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ॐ जय जगदीश…

जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का।
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय जगदीश…

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी॥ ॐ जय जगदीश…

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी॥ ॐ जय जगदीश…

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।
मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय जगदीश…

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय जगदीश…

दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे।
करुणा हाथ बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय जगदीश…

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय जगदीश…
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Dev Sharma

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42वें दिन शास्त्रार्थ में एक महिला से हारे थे आदि शंकराचार्य, क्या था वो सवाल?

भारतीय धर्म-दर्शन को उसके सबसे ऊंचे स्थान पर पहुंचाने वाले आदि शंकराचार्य एक सामान्य पर बुद्धिमान महिला से बहस में हार गए थे। वो महिला मिथिलांचल की थीं, उनका नाम था भारती।

भारती के पति मंडन मिश्र मिथिलांचल में कोसी नदी के किनारे स्थित एक गांव महिषि में रहते थे। तब धर्म-दर्शन के क्षेत्र में शंकराचार्य की ख्याति दूर-दूर तक थी। कहा जाता है कि उस वक्त ऐसा कोई ज्ञानी नहीं था, जो शंकराचार्य से धर्म और दर्शन पर शास्त्रार्थ कर सके।

शंकराचार्य देशभर के साधु-संतों और विद्वानों से शास्त्रार्थ करते मंडन मिश्र के गांव तक पहुंचे थे। यहां 42 दिनों तक लगातार हुए शास्त्रार्थ में शंकराचार्य ने हालांकि मंडन को पराजित कर तो दिया, पर उनकी पत्नी के एक सवाल का जवाब नहीं दे पाए और अपनी हार मान ली थी।

शास्त्रार्थ की निर्णायक थीं भारती मंडन मिश्र गृहस्थ आश्रम में रहने वाले विद्वान थे। उनकी पत्नी भी विदुषी थीं। इस दंपती के घर पहुंचकर शंकराचार्य ने मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ करने का प्रस्ताव रखा।

उन्होंने शर्त रखी कि जो हारेगा, वह जीतने वाले का शिष्य बन जाएगा। अब सवाल खड़ा हुआ कि दो विद्वानों के बीच शास्त्रार्थ में हार-जीत का फैसला कौन करेगा। शंकराचार्य को पता था कि मंडन मिश्र की पत्नी भारती विद्वान हैं। उन्होंने उन्हें ही निर्णायक की भूमिका निभाने को कहा।

मंडन के साथ बहस का क्या हुआ, कैसे भारती से हारे शंकराचार्य, आखिर क्या था वो सवाल…

21 दिनों में हार गए मंडन, फिर पत्नी ने दी शास्त्रार्थ की चुनौती।

शंकराचार्य के कहे अनुसार भारती दोनों के बीच होने वाले शास्त्रार्थ का निर्णायक बन गईं। मंडन और शंकराचार्य के बीच 21 दिनों तक शास्त्रार्थ होता रहा। आखिर में शंकराचार्य के एक सवाल का जवाब नहीं दे पाए और उन्हें हारना पड़ा।

निर्णायक की हैसियत से भारती ने कहा कि उनके पति हार गए हैं। वे शंकराचार्य के शिष्य बन जाएं और संन्यास की दीक्षा लें। लेकिन भारती ने शंकराचार्य से यह भी कहा कि मैं उनकी पत्नी हूं। अभी मिश्रजी की आधी ही हार हुई है। मेरी हार के साथ ही उनकी पूरी हार होगी। इतना कहते हुए भारती ने शंकराचार्य को शास्त्रार्थ की चुनौती दी।

शंकराचार्य और भारती के बीच भी कई दिनों तक शास्त्रार्थ होता रहा। एक महिला होने के बावजूद उन्होंने शंकराचार्य के हर सवाल का जवाब दिया। वे ज्ञान के मामले में शंकराचार्य से बिल्कुल कम न थीं, लेकिन 21वें दिन भारती को यह लगने लगा कि अब वे शंकराचार्य से हार जाएंगी। 21वें दिन भारती ने एक ऐसा सवाल कर दिया, जिसका व्यावहारिक ज्ञान के बिना दिया गया शंकराचार्य का जवाब अधूरा समझा जाता।

वह सवाल जिसकी वजह से शास्त्रार्थ हार गए शंकराचार्य…

जवाब नहीं दे पाए शंकराचार्य भारती ने शंकराचार्य पूछा- काम क्या है? इसकी प्रक्रिया क्या है और इससे संतान की उत्पत्ति कैसे होती है?

आदि शंकराचार्य तुरंत सवाल की गहराई समझ गए। यदि वे उस वक्त इसका जवाब देने की स्थिति में नहीं थे, क्योंकि वे ब्रह्मचारी थे और यौन जीवन का उन्हें कोई अनुभव नहीं था। पढ़ी-सुनी बातों के आधार पर जवाब देते तो उसे माना नहीं जा सकता था।

ऐसी स्थिति में उन्होंने उस वक्त हार मान ली, पर भारती से जवाब के लिए छह माह का समय मांगा। शंकराचार्य इस हार के बाद वहां से चले गए। कहा जाता है कि इस सवाल का जवाब जानने के लिए शंकराचार्य ने योग के जरिए शरीर त्याग कर एक मृत राजा की देह को धारण किया।

राजा के शरीर में प्रविष्ट होकर उसकी पत्नी के साथ कई दिनों तक संभोग करने के बाद उन्होंने भारती के सवाल का जवाब ढूंढा। इसके बाद उन्होंने फिर भारती से शास्त्रार्थ कर उनके सवाल का जवाब दिया और उन्हें पराजित किया। इसके बाद मंडन मिश्र ने उनके शिष्य बन गए।

संजय गुप्ता

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#पोस्टजरूरपढ़ें
मुम्बई के मुख्य कारोबारी क्षेत्र में चाय की एक दुकान है। करीबन 40 वर्ष पुरानी है। इसको शुरू करने वाले मेवाड़ से आये रामसिंह सिर्फ 7 वी पढ़े थे। व्यापारिक क्षेत्र होने की वजह से चाय की अच्छी खासी माँग रहती है।
खैर… दुकान ऐसी चली की रामसिंह जी ने अपने पुत्र को लंदन भेजा और MBA पढ़वाया।
लंदन से लौटकर पुत्र ने किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में मासिक 45 हजार के वेतन पर नौकरी प्रारम्भ की।
मेवाड़ में अपनी किसी पुश्तैनी जमीन के फेर में रामसिंह को गाँव जाना पड़ा। उन्होंने 7 दिन के लिए पुत्र से दुकान देखने को कहा। बड़ी हील हुज्जत के बाद आखिर पुत्र तैयार हुआ ।
दुकान में चाय बनाने वाले से लेकर बाजार की हर दुकान तक चाय बेचने वाले ऐसे कुल मिलाकर 12 व्यक्ति कार्यरत थे।
औसतन रोज की 10000 की बिक्री थी। अब लड़का MBA पढ़ा था, उसने तुरंत हिसाब लगाया तो पता चला की सारे खर्च निकाल कर करीबन 75 हजार रुपये हर मास की आमदनी हो रही है।
उसने कंपनी से त्यागपत्र दिया और दुकान में ही वडा पाव (मुम्बई का सबसे सुलभ और प्रसिद्ध नाश्ता) का काउंटर प्रारम्भ किया।
आज करीबन दुकान में मासिक डेढ़ से दो लाख मासिक आय है।
कल बेंगलुरु में कुछ डिग्री धारी छात्रों ने प्रधानमंत्री जी की रैली के पहले पकौड़े तल कर विरोध प्रदर्शन किया।
इन्हें रामसिंह जैसों की कहानी या तो पता नही,
या ये डिग्री को कार्य से नही स्टेटस से जोड़ते है।
आज मुम्बई, दिल्ली, बेंगलुरु जैसे शहरों में चाय की दुकान से लेकर फल तरकारी बेचने वाले तक महीने के हजारों कमाते है।
यहाँ कहने का ये अर्थ बिल्कुल नही की हर कोई ठेला लगा ले बल्कि स्वरोजगार के सैंकड़ो कार्य की तरफ ध्यान दिलाना है।
छोटे छोटे व्यापार जैसे शहरों के निकटवर्ती कृषि क्षेत्रो से फल, फूल, तरकारी, दूध, अनाज की सप्लाई ,जैसे सैंकड़ो मार्ग है।
इन सबमें न तो ज़्यादा पूँजी लगती है । हां ये जरूर स्टेटस के कार्य नही गिने जाते ।
सिर्फ इतना बताना जरूरी है की ऐसे स्तरहीन कार्य करने वाले बहुत लोगों को मैंने अपने बच्चों को विदेश पढ़ने भेजते और उनके विवाह पाँच सितारा होटलों में करते देखा है।
युवा वर्ग को कार्य को स्तरहीन गिन कर उसे छोड़ने की बजाय उसे नए रूप में प्रस्तुत करना चाहिए । नई तकनीक के प्रतिष्ठान ,पैकिंग इत्यादि प्रारम्भ करना चाहिए ।
आखिर मैकडोनाल्ड, KFC, पिज़्ज़ा हट भी तो अंग्रेज़ी पकौड़े ही तो बेचते है ।

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बहुत देर हो गई ……………
संध्या का समय था। कलकत्ते के एक बड़े जमींदार पश्चिमी लिबास पहने हाथ में एक छड़ी घुमाते अपने विशाल संगमरमरी महल की सीढियों पर राजसी अदाऔर मस्ती से कदम रखते हुए उतर रहे थे,

अपनी कार में बैठकर संध्या की टहल के लिये।

वह अपने महल के भीतरी भाग से निकलने ही वाले थे कि उन्हें एक स्त्री की आवाज सुनायी दी जो उनके महल में उनके परिवार के वस्त्रों को धोने के लिये ले जाती थी,
यह एक सामान्य बात ही थी। जमींदार साहब को देखते ही वह एक ओर हट गयी और झुककर अभिवादन किया।

जमींदार साहब ने भी अभिवादन स्वीकार किया राजसी अंदाज में।
वह तनिक सा ही आगे बढ़े थे कि स्त्री ने आवाज लगायी –
“रानी साहिब ! धोने के कपड़े दिलवा दीजिये, बहुत देर हो गयी।” “बहुत देर हो गयी।”

जमींदार साहब के पैर थम गये, उन्होंने आकाश की ओर देखा, एक बिजली सी कौंधी, क्षण से भी कम समय में एक नया जन्म हो गया..
“बहुत देर हो गयी।”

वह वापिस पलटे और प्रसाद के भीतर चले गये, अब कहीं नहीं जाना,बहुत देर हो गयी।

वह कपड़े धोने वाली स्त्री ‘प्रथम गुरु’ हो गयी, “गुरु” क्योंकि उसने चेता दिया।

विस्मृत को स्मृत करा दिया।
स्वरुप का बोध करा दिया।

उस स्त्री को नहीं पता कि आज उसके सामान्य शब्दों ने क्या प्रभाव दिखाया है,उसे बोध ही नहीं और यही तो मेरे प्रभु की अहैतुकी कृपा है।

यथाशीघ्र उन्होंने सब कुछ परिजनों के सुपुर्द किया और एक सफ़ेद धोती पहिनकर आ गये
श्रीधाम वृन्दावन ! ठाकुरजी के पास।

ठाकुरजी के अतिरिक्त कुछ न सुहावे,
ब्रजरज में ही पड़ा रहना भावे,
यही स्मरण रहे कि..
“बहुत देर हो गयी।”

उन अकारण करुणा वरुणालय को तो ऐसे ही पागल भाते हैं और उन्हें कृपाकर बुलाते भी तो वही हैं;

अन्यथा किसकी सामर्थ्य हैं जो स्वयं उन तक पहुँच पावे।

नेह भरा बंधन खूब निभा।

अपने अंतिम समय में उन संत की ऐसी ही इच्छा रही कि मेरे देह-त्याग के उपरांत भी मेरी इस देह को रस्सी से बाँधकर श्रीधाम वृन्दावन की कुन्ज-गलियों में खींचना ताकि संस्कार से पहिले इसमें भी खूब ब्रज-रज लग जावे और यह अधम देह भी ब्रजरज के स्पर्श से पवित्र हो जावे।

श्रीकिशोरीजी की न जाने कब कृपा हो जावे, न जाने कब कौन सा “शब्द/अक्षर” आपके मन-प्राणों को झकझोर कर रख दे,

न जाने कब अपने वास्तविक स्वरुप की स्मृति हो आवे,
न जाने कब अनायास ही गुरु मिल जावें,
न जाने कब हमें साक्षात श्रीयुगल-किशोर मिल जावें…….😭😭
जय जय श्री रराधेकृष्णजी🌺
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Sadhna sharma