Day: July 12, 2017
हनुमान चालीसा की रचना और इतिहास – –
हनुमान चालीसा की रचना और इतिहास – – –
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ये बात उस समय की है जब भारत पर मुग़ल सम्राट अकबर का राज्य था। सुबह का समय था एक महिला ने पूजा से लौटते हुए तुलसीदास जी के पैर छुए। तुलसीदास जी ने नियमानुसार उसे सौभाग्यशाली होने का आशीर्वाद दिया।
आशीर्वाद मिलते ही वो महिला फूट-फूट कर रोने लगी और रोते हुए उसने बताया कि अभी-अभी उसके पति की मृत्यु हो गई है। इस बात का पता चलने पर भी तुलसीदास जी जरा भी विचलित न हुए और वे अपने आशीर्वाद को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त थे। क्योंकि उन्हें इस बात का ज्ञान भली भाँति था कि भगवान राम बिगड़ी बात संभाल लेंगे !और उनका आशीर्वाद खाली नहीं जाएगा। उन्होंने उस औरत सहित सभी को राम नाम का जाप करने को कहा।
वहां उपस्थित सभी लोगों ने ऐसा ही किया और वह मरा हुआ व्यक्ति राम नाम के जाप आरंभ होते ही जीवित हो उठा।
यह बात पूरे राज्य में जंगल की आग की तरह फैल गयी। जब यह बात बादशाह अकबर के कानों तक पहुंची तो उसने अपने महल में तुलसीदास को बुलाया और भरी सभा में उनकी परीक्षा लेने के लिए कहा कि कोई चमत्कार दिखाएँ।
ये सब सुन कर तुलसीदास जी ने अकबर से बिना डरे उसे बताया की वो कोई चमत्कारी बाबा नहीं हैं, सिर्फ श्री राम जी के भक्त हैं!
अकबर इतना सुनते ही क्रोध में आ गया और उसने उसी समय सिपाहियों से कह कर तुलसीदास जी को कारागार में डलवा दिया। तुलसीदास जी ने तनिक भी प्रतिक्रिया नहीं दी और राम का नाम जपते हुए कारागार में चले गए।
उन्होंने कारागार में भी अपनी आस्था बनाए रखी और वहां रह कर ही हनुमान चालीसा की रचना की !
और लगातार 40 दिन तक उसका निरंतर पाठ किया।
हनुमान चालीसा चमत्कार…
चालीसवें दिन एक चमत्कार हुआ। हजारों बंदरों ने एक साथ अकबर के राज्य पर हमला बोल दिया।
अचानक हुए इस हमले से सब अचंभित हो गए।
अकबर एक सूझवान बादशाह था इसलिए इसका कारण समझते देर न लगी।
उसे भक्ति की महिमा समझ में आ गई। उसने उसी क्षण तुलसीदास जी से क्षमा मांग कर कारागार से मुक्त किया
और आदर सहित उन्हें विदा किया। इतना ही नहीं अकबर ने उस दिन के बाद तुलसीदास जी से जीवनभर मित्रता निभाई।
इस तरह तुलसीदास जी ने एक व्यक्ति को कठिनाई की घड़ी से निकलने के लिए हनुमान चालीसा के रूप में एक ऐसा रास्ता दिया है। जिस पर चल कर हम किसी भी मंजिल को प्राप्त कर सकते हैं।
इस तरह हमें भी भगवान में अपनी आस्था को बरक़रार रखना चाहिए। ये दुनिया एक उम्मीद पर टिकी है।
अगर विश्वास ही न हो तो हम दुनिया का कोई भी काम नहीं कर सकते!!
🙏🏻जय श्री सियाराम जी🙏🏻
🙌🏻जय श्री हनुमानजी🙌🏻
विकाश खुराना
हृदय की बीमारी* आयुर्वेदिक इलाज !!
*हृदय की बीमारी*
आयुर्वेदिक इलाज !!
हमारे देश भारत मे 3000 साल एक बहुत बड़े ऋषि हुये थे उनका नाम था महाऋषि वागवट जी !! उन्होने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम है अष्टांग हृदयम!!(Astang hrudayam)
और इस पुस्तक मे उन्होने ने बीमारियो को ठीक करने के लिए 7000 सूत्र लिखे थे ! ये उनमे से ही एक सूत्र है !! वागवट जी लिखते है कि कभी भी हृदय को घात हो रहा है ! मतलब दिल की नलियों मे blockage होना शुरू हो रहा है ! तो इसका मतलब है कि रकत (blood) मे acidity(अम्लता ) बढ़ी हुई है ! अम्लता आप समझते है ! जिसको अँग्रेजी मे कहते है acidity !! अम्लता दो तरह की होती है ! एक होती है पेट कि अम्लता ! और एक होती है रक्त (blood) की अम्लता !! आपके पेट मे अम्लता जब बढ़ती है ! तो आप कहेंगे पेट मे जलन सी हो रही है !! खट्टी खट्टी डकार आ रही है ! मुंह से पानी निकाल रहा है ! और अगर ये अम्लता (acidity)और बढ़ जाये ! तो hyperacidity होगी ! और यही पेट की अम्लता बढ़ते-बढ़ते जब रक्त मे आती है तो रक्त अम्लता(blood acidity) होती !! और जब blood मे acidity बढ़ती है तो ये अम्लीय रकत (blood) दिल की नलियो मे से निकल नहीं पाता ! और नलिया मे blockage कर देता है ! तभी heart attack होता है !! इसके बिना heart attack नहीं होता !! और ये आयुर्वेद का सबसे बढ़ा सच है जिसको कोई डाक्टर आपको बताता नहीं ! क्योंकि इसका इलाज सबसे सरल है !! इलाज क्या है ?? वागबट जी लिखते है कि जब रक्त (blood) मे अम्लता (acidity) बढ़ गई है ! तो आप ऐसी चीजों का उपयोग करो जो क्षारीय है ! आप जानते है दो तरह की चीजे होती है ! अम्लीय और क्षारीय !! (acid and alkaline ) अब अम्ल और क्षार को मिला दो तो क्या होता है ! ????? ((acid and alkaline को मिला दो तो क्या होता है )????? neutral होता है सब जानते है !!
तो वागबट जी लिखते है ! कि रक्त की अम्लता बढ़ी हुई है तो क्षारीय(alkaline) चीजे खाओ ! तो रकत की अम्लता (acidity) neutral हो जाएगी !!! और रक्त मे अम्लता neutral हो गई ! तो heart attack की जिंदगी मे कभी संभावना ही नहीं !! ये है सारी कहानी !! अब आप पूछोगे जी ऐसे कौन सी चीजे है जो क्षारीय है और हम खाये ????? आपके रसोई घर मे सुबह से शाम तक ऐसी बहुत सी चीजे है जो क्षारीय है ! जिनहे आप खाये तो कभी heart attack न आए ! और अगर आ गया है ! तो दुबारा न आए !!
सबसे ज्यादा आपके घर मे क्षारीय चीज है वह है लौकी !! जिसे दुदी भी कहते है !! english मे इसे कहते है bottle gourd !!! जिसे आप सब्जी के रूप मे खाते है ! इससे ज्यादा कोई क्षारीय चीज ही नहीं है ! तो आप रोज लौकी का रस निकाल-निकाल कर पियो !! या कच्ची लौकी खायो !! रामदेव को आपने कई बार कहते सुना होगा लौकी का जूस पीयो, लौकी का जूस पीयों ! 3 लाख से ज्यादा लोगो को उन्होने ठीक कर दिया लौकी का जूस पिला पिला कर !! और उसमे हजारो डाक्टर है ! जिनको खुद heart attack होने वाला था !! वो वहाँ जाते है लौकी का रस पी पी कर आते है !! 3 महीने 4 महीने लौकी का रस पीकर वापिस आते है आकर फिर clinic पर बैठ जाते है ! वो बताते नहीं हम कहाँ गए थे ! वो कहते है हम न्युयार्क गए थे हम जर्मनी गए थे आपरेशन करवाने ! वो राम देव के यहाँ गए थे ! और 3 महीने लौकी का रस पीकर आए है ! आकर फिर clinic मे आपरेशन करने लग गए है ! और वो आपको नहीं बताते कि आप भी लौकी का रस पियो !! तो मित्रो जो ये रामदेव बताते है वे भी वागवट जी के आधार पर ही बताते है !! वागवतट जी कहते है रकत की अम्लता कम करने की सबे ज्यादा ताकत लौकी मे ही है ! तो आप लौकी के रस का सेवन करे !! कितना करे ????????? रोज 200 से 300 मिलीग्राम पियो !! कब पिये ?? सुबह खाली पेट (toilet जाने के बाद ) पी सकते है !! या नाश्ते के आधे घंटे के बाद पी सकते है !!
इस लौकी के रस को आप और ज्यादा क्षारीय बना सकते है ! इसमे 7 से 10 पत्ते के तुलसी के डाल लो तुलसी बहुत क्षारीय है !! इसके साथ आप पुदीने से 7 से 10 पत्ते मिला सकते है ! पुदीना बहुत क्षारीय है ! इसके साथ आप काला नमक या सेंधा नमक जरूर डाले ! ये भी बहुत क्षारीय है !! लेकिन याद रखे नमक काला या सेंधा ही डाले ! वो दूसरा आयोडीन युक्त नमक कभी न डाले !! ये आओडीन युक्त नमक अम्लीय है !!!! तो मित्रों आप इस लौकी के जूस का सेवन जरूर करे !! 2 से 3 महीने आपकी सारी heart की blockage ठीक कर देगा !! 21 वे दिन ही आपको बहुत ज्यादा असर दिखना शुरू हो जाएगा !!!
कोई आपरेशन की आपको जरूरत नहीं पड़ेगी !! घर मे ही हमारे भारत के आयुर्वेद से इसका इलाज हो जाएगा !! और आपका अनमोल शरीर और लाखो रुपए आपरेशन के बच जाएँगे !! और पैसे बच जाये ! तो किसी गौशाला मे दान कर दे ! डाक्टर को देने से अच्छा है !किसी गौशाला दान दे !! हमारी गौ माता बचेगी तो भारत बचेगा !!
आपने पूरी पोस्ट पढ़ी आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!
– यदि आपको लगता है कि मेने ठीक कहा है तो आप ये जानकारी सभी तक पहुचाए
*ॐ नमो भगवते वासुदेवाय*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
विकाश खुराना
समाधान-वृक्ष
*समाधान-वृक्ष*
सरला नाम की एक महिला थी । रोज वह और उसके पति सुबह ही काम पर निकल जाते थे।
दिन भर पति ऑफिस में अपना टारगेट पूरा करने की ‘डेडलाइन’ से जूझते हुए साथियों की होड़ का सामना करता था। बॉस से कभी प्रशंसा तो मिली नहीं और तीखी-कटीली आलोचना चुपचाप सहता रहता था।
पत्नी सरला भी एक प्रावेट कम्पनी में जॉब करती थी। वह अपने ऑफिस में दिनभर परेशान रहती थी।
ऐसी ही परेशानियों से जूझकर सरला लौटती है। खाना बनाती है।
शाम को घर में प्रवेश करते ही बच्चों को वे दोनों नाकारा होने के लिए डाँटते थे पति और बच्चों की अलग-अलग फरमाइशें पूरी करते-करते बदहवास और चिड़चिड़ी हो जाती है। घर और बाहर के सारे काम उसी की जिम्मेदारी हैं।
थक-हार कर वह अपने जीवन से निराश होने लगती है। उधर पति दिन पर दिन खूंखार होता जा रहा है। बच्चे विद्रोही हो चले हैं।
एक दिन सरला के घर का नल खराब हो जाता है । उसने प्लम्बर को नल ठीक करने के लिए बुलाया।
प्लम्बर ने आने में देर कर दी। पूछने पर बताया कि साइकिल में पंक्चर के कारण देर हो गई। घर से लाया खाना मिट्टी में गिर गया, ड्रिल मशीन खराब हो गई, जेब से पर्स गिर गया।
इन सब का बोझ लिए वह नल ठीक करता रहा।
काम पूरा होने पर महिला को दया आ गई और वह उसे गाड़ी में छोड़ने चली गई।
प्लंबर ने उसे बहुत आदर से चाय पीने का आग्रह किया।
प्लम्बर के घर के बाहर एक पेड़ था। प्लम्बर ने पास जाकर उसके पत्तों को सहलाया, चूमा और अपना थैला उस पर टांग दिया।
घर में प्रवेश करते ही उसका चेहरा खिल उठा। बच्चों को प्यार किया, मुस्कराती पत्नी को स्नेह भरी दृष्टि से देखा और चाय बनाने के लिए कहा।
सरला यह देखकर हैरान थी। बाहर आकर पूछने पर प्लंबर ने बताया – यह मेरा परेशानियाँ दूर करने वाला पेड़ है। मैं सारी समस्याओं का बोझा रातभर के लिए इस पर टाँग देता हूं और घर में कदम रखने से पहले मुक्त हो जाता हूँ। चिंताओं को अंदर नहीं ले जाता। सुबह जब थैला उतारता हूं तो वह पिछले दिन से कहीं हलका होता है। काम पर कई परेशानियाँ आती हैं, पर एक बात पक्की है- मेरी पत्नी और बच्चे उनसे अलग ही रहें, यह मेरी कोशिश रहती है। इसीलिए इन समस्याओं को बाहर छोड़ आता हूं। प्रार्थना करता हूँ कि भगवान मेरी मुश्किलें आसान कर दें। मेरे बच्चे मुझे बहुत प्यार करते हैं, पत्नी मुझे बहुत स्नेह देती है, तो भला मैं उन्हें परेशानियों में क्यों रखूँ । उसने राहत पाने के लिए कितना बड़ा दर्शन खोज निकाला था…!!
दोस्तो, यह घर-घर की हकीकत है। गृहस्थ का घर एक तपोभूमि है। सहनशीलता और संयम खोकर कोई भी इसमें सुखी नहीं रह सकता। जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं, हमारी समस्याएं भी नहीं। प्लंबर का वह ‘समाधान-वृक्ष’ एक प्रतीक है। क्यों न हम सब भी एक-एक वृक्ष ढूँढ लें ताकि घर में कदम रखने से पहले अपनी सारी चिंताएं बाहर ही टाँग आएँ…!!
क्यों किया श्री कृष्ण जी ने मथुरा से पलायन
क्यों किया श्री कृष्ण जी ने मथुरा से पलायन —
गर्ग मुनि द्वारा बताए गए खग्रास सूर्य ग्रहण की सूचना सभी ओर फैल गई। प्रथा के अनुसार इस ग्रहण का प्रदोष निवारण किया गया। प्रत्येक सूर्यग्रहण के बाद यादव, कुरु, मत्स्य, चेदि, पांचाल आदि कुरुक्षेत्र के सूर्य कुंड में आकर दान-पुण्य आदि कर्मकांड करते हैं। श्रीकृष्ण भी अपने बंधु- बांधवों के साथ एकत्रित हुए। सूर्य कुंड की उत्तर दिशा में उन्होंने पड़ाव डाला। यहीं पर श्रीकृष्ण की मुलाकात कुंति सहित पांडव पुत्रों से हुई।
मथुरा पहुंचकर श्रीकृष्ण को पता चला कि कालयवन की सेना सागर मार्ग से नौकाओं द्वारा पश्चि मी तट पर पहुंच रही थी। मगध से आई जरासंध की सेना भी उनसे मिल गई थी। कालयवन की सेना अत्यंत ही विशाल और आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों से लैस थी। सभी ने मथुरा के यादवों को समूल नष्ट करने की योजना बना रखी थी। श्रीकृष्ण ने भी अपनी सेना तैयार कर कालयवन से नगर के बाहर मुकाबला करने की योजना बनाई। वे भी रथ पर सवार होकर सत्राजित, अक्रूर, शिनि, ववगाह, यशस्वी, चित्रकेतु, बृहदबल, भंड्कार आदि योद्धाओं के साथ पश्चिम सागर तट की ओर चल पड़े। एक के बाद एक पड़ाव डालते हुए वे पश्चि म सागर के पास मरुस्थली अर्बुदगिरि के समीप आ गए। धौलपुर के समीप पर्वत के पास पड़ाव डाला।
योजना के अनुसार दाऊ शल्व को भुलावे में डालकर एक ओर ले गए। दूसरी ओर सेनापतिद्वय ने जरासंध को चुनौती दी। धौलपुर के पड़ाव पर रह गया अकेला कालयवन। खुद श्रीकृष्ण गरूड़ध्वज रथ लेकर उसके सामने आकर सीधे उससे भिड़ गए। दोनों के बीच युद्ध हुआ। अचानक श्रीकृष्ण ने दारुक को सेना से बाहर निकालने का आदेश दिया और उन्होंने पांचजञ्य से विचित्र-सा भयाकुल शंखघोष किया। उसका अर्थ था- पीछे हटो, दौड़ो और भाग जाओ। यादव सेना इस शंखघोष से भली-भांति परिचित थी। कालयवन और उसकी सेना को कुछ समझ में नहीं आया कि यह अचानक क्या हुआ? कालयवन ने अपने सारथी को कृष्ण के रथ का पीछा करने को कहा। कालयवन को लगा कि श्रीकृष्ण रथ छोड़कर भाग रहे हैं। वह और उत्साहित हो गया। गांधार देश की मदिरा में लाल हुई उसकी आंखें स्थिति को अच्छे से समझ नहीं पाईं। वह सारथी को हटाकर खुद ही रथ को दौड़ाने लगा।
इस पलायन नाटक का असर यह हुआ कि वह दूर तक उनके पीछे आ गया और सैन्यविहीन हो गया। दारुक ने गरूड़ध्वज की चाल को धीमा किया। कालयवन अबूझ यवनी भाषा में चिल्लाते हुए कृष्णर के पास पहुंचने लगा, तभी दारुक ने दाईं और जुते सुग्रीव नामक अश्व की रस्सी खोल दी और श्रीकृष्ण उस पर सवार हो गए। प्रतिशोध से भरा कालयवन भी अपने रथ के एक अश्व को खोलकर उस पर सवार होकर श्रीकृष्ण का पीछा करने लगा। सुग्रीव धौल पर्वत पर चढ़ने लगा।
श्रीकृष्णच जानते थे कि उनके आगे काल है और पीछे यवन। वे कुछ दूर पर्वत पर चढ़ने के बाद अश्व पर से उतरे और एक गुफा की ओर पैदल ही चल पड़े। कालयवन भी उनके पीछे दौड़ने लगा। श्रीकृष्णे गुफा में घुस गए। कुछ देर बाद काल यवन भी क्रोध की अग्नि में जलता हुआ गुफा में घुसा।
मदिरा में मस्त कालयवन ने गुफा के मध्य में एक व्यक्ति को सोते हुए देखा। उसे देखकर कालयवन ने सोचा, मुझसे बचने के लिए श्रीकृष्ण इस तरह भेष बदलकर छुप गए हैं- ‘देखो तो सही, मुझे मूर्ख बनाकर साधु बाबा बनकर सो रहा है’, उसने ऐसा कहकर उस सोए हुए व्यक्ति को कसकर एक लात मारी।
वह पुरुष बहुत दिनों से वहां सोया हुआ था। पैर की ठोकर लगने से वह उठ पड़ा और धीरे-धीरे उसने अपनी आंखें खोलीं। इधर-उधर देखने पर पास ही कालयवन खड़ा हुआ दिखाई दिया। वह पुरुष इस प्रकार ठोकर मारकर जगाए जाने से कुछ रुष्ट हो गया था।
उसकी दृष्टि पड़ते ही कालयवन के शरीर में आग पैदा हो गई और वह क्षणभर में जलकर राख का ढेर हो गया। कालयवन को जो पुरुष गुफा में सोए मिले, वे इक्ष्वाकुवंशी महाराजा मांधाता के पुत्र राजा मुचुकुंद थे। इस तरह कालयवन का अंत हो गया। मुचुकुंद को वरदान था कि जो भी तुम्हें जगाएगा और तुम उसकी ओर देखोगे तो वह जलकर भस्म हो जाएगा।
कालयवन द्वारा लूटी गई अमित स्वर्ण संपत्ति को कुशस्थली भेज दिया गया। एक बार फिर मुनि गर्ग ने सांदीपनि के साथ जाकर मन्दवासर के शनिवार को रोहिणी नक्षत्र में भूमिपूजन किया। देश के महान स्थापत्य विशारदों को बुलाया गया। उन विशारदों में असुरों के मय नामक स्थापत्य विशारद और कुरुजांगल प्रदेश के विख्यात शिल्पकार विश्विकर्मा को भी बुलाया गया। दोनों ने मिलकर नगर निर्माण, भव्य मंदिर, गोशाला, बाजार, परकोटे और उनके द्वार सहित राजभवन के अन्य भवनों के निर्माण की भव्य योजना तैयार की। इस राजनगरी का प्रचंड कार्य कुछ वर्ष तक चलता रहा। मथुरा से श्रीकृष्ण और दाऊ वहां जाकर निरंतर निर्माण कार्य का अवलोकन करते रहते थे।
जब राजनगर का निर्माण कार्य पूर्ण हो गया तब राज्याभिषेक का मुहूर्त निकलवाया गया। राज्याभिषेक के मुहूर्त के पहले श्रीकृष्ण अपने सभी 18 कुलों के यादव परिवारों को साथ लेकर द्वारिका प्रस्थान करने के लिए निकल पड़े। सभी मथुरावासी और उग्रसेन सहित अन्य यादव उनको विदाई देने के लिए उमड़ पड़े। विदाई का यह विदारक दृश्य देखकर सभी की आंखों से अश्रु बह रहे थे। कुछ गिने-चुने मथुरावासी यादवों को छोड़कर सभी ने मथुरा छोड़ दी। यह विश्व का पहला महानिष्क्रमण था।

वीणा बजाते हुए नारदमुनि भगवान श्रीराम के द्वार पर पहुँचे।
वीणा बजाते हुए नारदमुनि भगवान श्रीराम के द्वार पर पहुँचे।
नारायण नारायण !!
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नारदजी ने देखा कि द्वार पर हनुमान जी पहरा दे रहे है।फ
हनुमान जी ने पूछा: नारद मुनि ! कहाँ जा रहे हो ?
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🔻नारदजी बोले: मैं प्रभु से मिलने आया हूँ। नारदजी ने हनुमानजी से पूछा प्रभु इस समय क्या कर रहे है?
हनुमानजी बोले: पता नहीं पर कुछ बही खाते का काम कर रहे है ,प्रभु बही खाते में कुछ लिख रहे है।
🔻नारदजी: अच्छा क्या लिखा पढ़ी कर रहे है ?
हनुमानजी बोले: मुझे पता नही , मुनिवर आप खुद ही देख आना।
🔻नारद मुनि गए प्रभु के पास और देखा कि प्रभु कुछ लिख रहे है।
🔻नारद जी बोले: प्रभु आप बही खाते का काम कर रहे है ? ये काम तो किसी मुनीम को दे दीजिए।
प्रभु बोले: नही नारद , मेरा काम मुझे ही करना पड़ता है। ये काम मैं किसी और को नही सौंप सकता।
🔻नारद जी: अच्छा प्रभु ऐसा क्या काम है ?ऐसा आप इस बही खाते में क्या लिख रहे हो?
प्रभु बोले: तुम क्या करोगे देखकर , जाने दो।
🔻नारद जी बोले: नही प्रभु बताईये ऐसा आप इस बही खाते में क्या लिखते है?
प्रभु बोले: नारद इस बही खाते में उन भक्तों के नाम है जो मुझे हर पल भजते हैं। मैं उनकी नित्य हाजरी लगाता हूँ ।
🔻नारद जी: अच्छा प्रभु जरा बताईये तो मेरा नाम कहाँ पर है ? नारदमुनि ने बही खाते को खोल कर देखा तो उनका नाम सबसे ऊपर था। नारद जी को गर्व हो गया कि देखो मुझे मेरे प्रभु सबसे ज्यादा भक्त मानते है। पर नारद जी ने देखा कि हनुमान जी का नाम उस बही खाते में कहीं नही है? नारद जी सोचने लगे कि हनुमान जी तो प्रभु श्रीराम जी के खास भक्त है फिर उनका नाम, इस बही खाते में क्यों नही है? क्या प्रभु उनको भूल गए है?
🔻नारद मुनि आये हनुमान जी के पास बोले: हनुमान ! प्रभु के बही खाते में उन सब भक्तो के नाम है जो नित्य प्रभु को भजते है पर आप का नाम उस में कहीं नही है?
हनुमानजी ने कहा कि: मुनिवर,! होगा, आप ने शायद ठीक से नही देखा होगा?
🔻नारदजी बोले: नहीं नहीं मैंने ध्यान से देखा पर आप का नाम कहीं नही था।
हनुमानजी ने कहा: अच्छा कोई बात नही। शायद प्रभु ने मुझे इस लायक नही समझा होगा जो मेरा नाम उस बही खाते में लिखा जाये। पर नारद जी प्रभु एक डायरी भी रखते है उस में भी वे नित्य कुछ लिखते है।
🔻नारदजी बोले:अच्छा ?
हनुमानजी ने कहा:हाँ !
🔻नारदमुनि फिर गये प्रभु श्रीराम के पास और बोले प्रभु ! सुना है कि आप अपनी डायरी भी रखते है ! उसमे आप क्या लिखते है ?
प्रभु श्रीराम बोले: हाँ! पर वो तुम्हारे काम की नही है।
🔻नारदजी: ”प्रभु ! बताईये ना , मैं देखना चाहता हूँ कि आप उसमे क्या लिखते है।
प्रभु मुस्कुराये और बोले मुनिवर मैं इन में उन भक्तों के नाम लिखता हूँ जिन को मैं नित्य भजता हूँ।
🔻नारदजी ने डायरी खोल कर देखा तो उसमे सबसे ऊपर हनुमान जी का नाम था। ये देख कर नारदजी का अभिमान टूट गया।
कहने का तात्पर्य यह है कि जो भगवान को सिर्फ जीवा से भजते है उनको प्रभु अपना भक्त मानते हैं और जो ह्रदय से भजते है उन भक्तों के भक्त स्वयं भगवान होते है। ऐसे भक्तो को प्रभु अपनी ह्रदय रूपी डायरी में रखते हैं…!!!”
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जय जय श्री सीताराम
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जय श्री राम
टीवी चैनेलो पर सबसे ज्यादा कांग्रेसी कहते है की
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टीवी चैनेलो पर सबसे ज्यादा कांग्रेसी कहते है की
मोदी ने अपनी पत्नी को छोड़ दिया …
अब इन कांग्रेसियो की
भयावह सच्चाई जानिये …
नेहरु की पत्नी कमला नेहरु को टीबी हो गया था ..
उस जमाने में टीबी का दहशत ठीक ऐसा ही था
जैसा आज एड्स का है ..
क्योकि तब टीबी का इलाज नही था और
इन्सान तिल तिल तडप तडपकर पूरी तरह
गलकर हड्डी का ढांचा बनकर मरता था … और
कोई भी टीबी मरीज में पास भी नही जाता था
क्योकि टीबी सांस से फैलती थी … लोग पहाड़ी इलाके में बने टीबी सेनिटोरियम में
भर्ती कर देते थे …
नेहरु में अपनी पत्नी को युगोस्लाविया
[आज चेक रिपब्लिक] के प्राग शहर में दुसरे इन्सान के साथ सेनिटोरियम में भर्ती कर दिया ..
कमला नेहरु पुरे दस सालो तक अकेले
टीबी सेनिटोरियम में पल पल मौत का इंतजार करती रही .. लेकिन नेहरु दिल्ली में एडविना बेंटन के साथ इश्क करता था ..
मजे की बात ये की इस दौरान नेहरु कई बार ब्रिटेन गया लेकिन एक बार भी वो प्राग जाकर अपनी धर्मपत्नी का हालचाल नही लिया ..
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को जब पता चला
तब वो प्राग गये .. और डाक्टरों से और अच्छे इलाज के बारे में बातचीत की ..
प्राग के डाक्टरों ने बोला की स्विट्जरलैंड के
बुसान शहर में एक आधुनिक टीबी होस्पिटल है …..
जहाँ इनका अच्छा इलाज हो सकता है .. तुरंत ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने उस जमाने में 70 हजार रूपये इकट्ठे किये और उन्हें विमान से स्विटजरलैंड के बुसान शहर में होस्पिटल में भर्ती किये …
लेकिन कमला नेहरु असल में मन से बेहद टूट चुकी थी ..
उन्हें इस बात का दुःख था की उनका पति उनके पास पिछले दस सालो से हालचाल लेने तक नही आया और गैर लोग उनकी देखभाल कर रहे है …..
दो महीनों तक बुसान में भर्ती रहने के बाद
28 February 1936 को बुसान में ही कमला नेहरु की मौत हो गयी …
उनके मौत के दस दिन पहले ही नेताजी सुभाषचन्द्र ने नेहरु को तार भेजकर तुरंत बुसान आने को कहा था ..
लेकिन नेहरु नही आया … फिर नेहरु को उसकी पत्नी के मौत का तार भेजा गया ..
फिर भी नेहरु अपनी पत्नी के अंतिम संस्कार में भी नही आया .
अंत में स्विटजरलैंड के बुसान शहर में ही
नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने नेहरु की पत्नी
कमला नेहरु का अंतिम संस्कार करवाया …
कांग्रेसियों …
असल में वामपंथी इतिहासकारों ने
इस खानदान की गंदी सच्चाई ही
इतिहास की किताबो से गायब कर दी …….😡😡😡
अजमेर शरीफ के दरगाह की सच्चाई:
अजमेर शरीफ के दरगाह की सच्चाई:
अजमेर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर इतनी भीड़ थी कि वहाँ की कोई बैंच खाली नहीं थी। एक बैंच पर एक परिवार, जो पहनावे से हिन्दू लग रहा था, के साथ बुर्के में एक अधेड़ सुसभ्य महिला बैठी थी।
बहुत देर चुपचाप बैठने के बाद बुर्खे में बैठी महिला ने बगल में बैठे युवक से पूछा, “अजमेर के रहनेवाले हैँ या फिर यहाँ घूमने आये हैं?”
युवक ने बताया, “जी अपने माता पिता के साथ पुष्कर में ब्रह्मा जी के मंदिर के दर्शन करने आया था।”
महिला ने बुरा मुँह बनाते हुए फिर पूछा, “आप लोग अजमेर शरीफ की दरगाह पर नहीं गये?”
युवक ने उस महिला से प्रतिउत्तर कर दिया, “क्या आप ब्रह्मा जी के मंदिर गयी थीं?”
महिला अपने मुँह को और बुरा बनाते हुये बोली, “लाहौल विला कुव्वत। इस्लाम में बुतपरस्ती हराम है और आप पूछ रहे हैं कि ब्रह्मा के मंदिर में गयी थी।”
युवक झल्लाकर बोला, “जब आप ब्रह्मा जी के मंदिर में जाना हराम मानती हैं तो हम क्यों अजमेर शरीफ की दरगाह पर जाकर अपना माथा फोड़ें।”
महिला युवक की माँ से शिकायती लहजे में बोली, “देखिये बहन जी। आपका लड़का तो बड़ा बदतमीज है। ऐसी मजहबी कट्टरता की वजह से ही तो हमारी कौमी एकता में फूट पड़ती है।”
युवक की माँ मुस्काते हुये बोली, “ठीक कहा बहन जी। कौमी एकता का ठेका तो हम हिन्दुओं ने ही ले रखा है।
अगर हर हिँदू माँ-बाप अपने बच्चों को बताए कि अजमेर दरगाह वाले ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ने किस तरह इस्लाम कबूल ना करने पर पृथ्वीराज चौहान की पत्नी संयोगिता को मुस्लिम सैनिकों के बीच बलात्कार करने के लिए निर्वस्त्र करके फेँक दिया था।तो, शायद ही कोई हिँदू उस मुल्ले की कब्र पर माथा पटकने जाए।
( बाद में पृथ्वीराज चौहान की वीर पुत्रियों ने मोइनुद्दीन चिश्ती के टुकडे टुकडे कर दिए थे)
पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को १७ बार युद्ध में हराने के बाद भी उसे छोड़ देता है जबकि एक बार उस से हारने पर चौहान की आँख में जलता हुआ सरिया डाल दिया जिससे वह अंधे हो गए थे। मोहम्मद गौरी पृथ्वीराज चौहान की (आवाज सुनकर उसी दिशा में तीर चलाने) की कला को देखना चाहता था। पृथ्वीराज चौहान के हाथ में तीर आते हैं उन्होंने सीधा गोरी की आवाज पर निशाना साधा और गौरी की गर्दन पर तीर लगने से उसकी मृत्यु हो गई। बाद में मोहम्मद गोरी के सैनिकों ने पृथ्वीराज को बंदी बनाकर मार डाला वे लोग पृथ्वीराज के शव को घसीटते हुए अफ़ग़ानिस्तान ले गये और दफ़्न किया।
चौहान की क़ब्र पर जो भी मुसलमान वहॉ जाता था प्रचलन के अनुसार उनके क़ब्र को वहॉ पे रखे जूते से मारता है। ऐसी बर्बरता कहीं नहीं देखी होगी। फिरभी हम हैं कि…बेवकुफ secular बने फिर रहे है…!
( बाद में शेर सिंह राणा ने अफगानिस्तान जाकर पृथ्वीराज चौहान की कब्र से शव निकालकर उसका अंतिम संस्कार किया और उनकी अस्थियों को हिंदुस्तान लाकर गंगा में प्रवाहित कर दिया)
“अजमेर के ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती को ९० लाख हिंदुओं को इस्लाम में लाने का गौरव प्राप्त है. मोइनुद्दीन चिश्ती ने ही मोहम्मद गोरी को भारत लूटने के लिए उकसाया और आमंत्रित किया था…”
अधिकांश हिन्दू तो शेयर भी नहीं करेंगे…
दुख है ऐसे हिन्दुओ पर…!
यूरोप की विवशता….हमारी मूर्खता… :v
(Y) यूरोप की विवशता….हमारी मूर्खता… :v
1. आठ महीने ठण्ड पड़ने के कारण कोट पेंट पहनना मज़बूरी।
2. ठंड में नाक बहते रहने के कारण टाई लगाना।
3. ताजा भोजन उपलब्ध ना होने के कारण सड़े आटे से बने
पिज्जा,बर्गर,नूडल्स आदि खाना।
4. ताज़ा भोजन की कमी के कारण फ्रीज़ का इस्तेमाल
करना।
5. जड़ी बूटियों का ज्ञान ना होने के कारण… जीव जंतुओं
के हाड मॉस से दवाये बनाना।
6. पर्याप्त अनाज ना होने के कारण जानवरों को खाना।
7. लस्सी, दूध, जूस आदि ना होने के कारण कोल्ड ड्रिंक
को पीना।
8. टाइट कपडे पहनने के कारण जमीन की जगह कुर्सी पर बैठ कर
भोजन करना।
9. श्रमिको की कमी के कारण मशीनों के द्वारा फैक्ट्री
चलना।
10. मुँह की असमर्थता के कारण संस्कृत ना बोल पाना और
जोड़ तोड़ वाली अंग्रेजी से काम चलना।
11. गुड़, खांड बनाना ना आने के कारण चीनी का
इस्तेमाल।
12. असभ्य, लालची और स्वार्थी स्वभाव के कारण माँ
बाप से अलग रहना उनके साथ दुर्व्यवहार करना।
क्या हम भारतीयों को ये सब करने की जरुरत है ???
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© rrs
एक आदमी रोज बार में जाता
एक आदमी रोज बार
में जाता
और
तीन गिलास बियर मंगवाता 🍺🍺🍺
वो तीनो गिलास से एक एक सिप मारता
खत्म होने तक ।
एक दिन वेटर से रहा नहीं गया।
उसने पूछा की तुम तीन गिलास क्यों मंगवाते हो ? एक गिलास से भी पी सकते हो ? 🍺
वो आदमी उदास होते हुए बोला
की
हम तीन बचपन के दोस्त है।
पर बहुत दूर दूर रहते है ।
इसलिए
दो गिलास उनके और एक मेरे लिए मंगवाता हूँ ।
ऐसा लगता है की वो मेरे पास है
और हम साथ में पी रहे है । 😢
कुछ सालों के बाद अचानक एक दिन 😳उस आदमी ने केवल दो गिलास बियर मंगवाई 🍺🍺
वो बहुत उदास नजर आ रहा था।😰
केवल दो गिलास में से सिप कर के पी रहा था।
वेटर ने सोचा की शायद
इसका एक दोस्त निपट गया ।
वेटर उसको सांत्वना देने के लिए
उसके पास पंहुचा । 😱
वेटर ने पूछा की तुम्हारे एक दोस्त को क्या हुआ ?
आज केवल दो गिलास ही क्यों मंगवाए । 🍺🍺
उस आदमी में बड़ी मायूसी से जवाब दिया की ….
….
मेरे दोनों दोस्त बिलकुल ठीक है
पर
पत्नी के बार बार कहने पर
मैंने ही पीना छोड़ दिया है
😄😄😂😂
इसे कहते हैं दोस्ती ।।😜💃💄💚🍺