माँ जगदम्बा दुर्गा के नौ रूप मनुष्य
को शांति,सुख,वैभव,निरोगी काया
एवं भौतिक आर्थिक इच्छाओं को
पूर्ण करने वाले हैं।
माँ अपने बच्चों को हर प्रकार का
सुख प्रदान कर अपने आशीष की
छाया में बैठाकर संसार के प्रत्येक
दुख से दूर करके सुखी रखती है।
प्रस्तुत है नवदुर्गा के नौ रूप औषधियों
के रूप में कैसे कार्य करते हैं एवं अपने
भक्तों को कैसे सुख पहुँचाते हैं।
सर्वप्रथम इस पद्धति को मार्कण्डेय
चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया
परंतु गुप्त ही रहा।
इस चिकित्सा प्रणाली के रहस्य को
ब्रह्माजी ने अपने उपदेश में दुर्गाकवच
कहा है।
नौ प्रमुख दुर्गा का विवेचन किया है।
ये नवदुर्गा वास्तव में दिव्य गुणों वाली
नौ औषधियाँ हैं।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी,
तृतीयं चंद्रघण्टेति कुष्माण्डेती चतुर्थकम।।
पंचम स्कन्दमातेति षुठ कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टम।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता।
ये औषधियाँ प्राणियों के समस्त रोगों
को हरने वाली और रोगों से बचाए
रखने के लिए कवच का काम करने
वाली है।
ये समस्त प्राणियों की पाँचों ज्ञानेंद्रियों
व पाँचों कमेंद्रियों पर प्रभावशील है।
इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु
से बचकर सौ वर्ष की आयु भोगता है।
ये आराधना मनुष्य विशेषकर नवरात्रि,
चैत्रीय एवं अगहन (क्वार) में करता है।
इस समस्त देवियों को रक्त में विकार
पैदा करने वाले सभी रोगाणुओं को
काल कहा जाता है।
प्रथम शैलपुत्री (हरड़) –
प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है।
इस भगवती देवी शैलपुत्री को
हिमावती हरड़ कहते हैं।
यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है
जो सात प्रकार की होती है।
हरीतिका (हरी) जो भय को हरने
वाली है।
पथया – जो हित करने वाली है।
कायस्थ – जो शरीर को बनाए रखने
वाली है।
अमृता (अमृत के समान) हेमवती (हिमालय पर होने वाली)।
चेतकी – जो चित्त को प्रसन्न करने
वाली है।
श्रेयसी (यशदाता) शिवा – कल्याण
करने वाली ।
द्वितीय ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी) –
दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी को
ब्राह्मी कहा है।
ब्राह्मी आयु को बढ़ाने वाली स्मरण
शक्ति को बढ़ाने वाली,रूधिर विकारों
को नाश करने के साथ-साथ स्वर को
मधुर करने वाली है।
ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है।
क्योंकि यह मन एवं मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है।
यह वायु विकार और मूत्र संबंधी
रोगों की प्रमुख दवा है।
यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है।
अत: इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति
को ब्रह्मचारिणी की आराधना करना चाहिए।
तृतीय चंद्रघंटा (चन्दुसूर) –
दुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा, इसे चनदुसूर या चमसूर कहा गया है।
यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के
समान है।
(इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है।
ये कल्याणकारी है।
इस औषधि से मोटापा दूर होता है।
इसलिए इसको चर्महन्ती भी कहते हैं।
शक्ति को बढ़ाने वाली,खत को शुद्ध
करने वाली एवं हृदयरोग को ठीक
करने वाली चंद्रिका औषधि है।
अत: इस बीमारी से संबंधित रोगी
को चंद्रघंटा की पूजा करना चाहिए।
चतुर्थ कुष्माण्डा (पेठा) –
दुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है।
ये औषधि से पेठा मिठाई बनती है।
इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं।
इसे कुम्हडा भी कहते हैं।
यह कुम्हड़ा पुष्टिकारक वीर्य को बल
देने वाला (वीर्यवर्धक) व रक्त के विकार
को ठीक करता है।
एवं पेट को साफ करता है।
मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के
लिए यह अमृत है।
यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर
हृदय रोग को ठीक करता है।
कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर
करता है।
यह दो प्रकार की होती है।
इन बीमारी से पीड़ित व्यक्ति ने पेठा
का उपयोग के साथ कुष्माण्डा देवी
की आराधना करना चाहिए।
पंचम स्कंदमाता (अलसी) –
दुर्गा का पाँचवा रूप स्कंद माता है।
इसे पार्वती एवं उमा भी कहते हैं।
यह औषधि के रूप में अलसी के
रूप में जानी जाती है।
यह वात,पित्त,कफ,रोगों की नाशक
औषधि है।
अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।
अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:।।
उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।
इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को
स्कंदमाता की आराधना करना
चाहिए।
षष्ठम कात्यायनी (मोइया) –
दुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है।
इस आयुर्वेद औषधि में कई नामों
से जाना जाता है।
जैसे अम्बा,अम्बालिका,अम्बिका
इसको मोइया अर्थात माचिका भी
कहते हैं।
यह कफ,पित्त,अधिक विकार एवं
कंठ के रोग का नाश करती है।
इससे पीड़ित रोगी ने कात्यायनी की माचिका प्रस्थिकाम्बष्ठा तथा अम्बा,
अम्बालिका,अम्बिका,खताविसार
पित्तास्त्र कफ कण्डामयापहस्य।
सप्तम कालरात्रि (नागदौन) –
दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है जिसे महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है।
यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है।
सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क
के समस्त विकारों को दूर करने वाली
औषधि है।
इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगा
ले तो घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
यह सुख देने वाली एवं सभी विषों की नाशक औषधि है।
इस कालरात्रि की आराधना प्रत्येक
पीड़ित व्यक्ति को करना चाहिए।
अष्टम महागौरी (तुलसी) –
दुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है।
जिसे प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप
में जानता है क्योंकि इसका औषधि
नाम तुलसी है जो प्रत्येक घर में लगाई
जाती है।
तुलसी सात प्रकार की होती है।
सफेद तुलसी,काली तुलसी,मरुता,
दवना,कुढेरक,अर्जक,षटपत्र।
ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को
साफ करती है।
रक्त शोधक है एवं हृदय रोग का नाश करती है।
तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी।
अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि:
तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् ।
मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।
इस देवी की आराधना हर सामान्य एवं रोगी व्यक्ति को करना चाहिए।
नवम सिद्धदात्री (शतावरी) –
दुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है।
जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं।
शतावरी बुद्धि बल एवं वीर्य के लिए
उत्तम औषधि है।
रक्त विकार एवं वात पित्त शोध
नाशक है।
हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है।
सिद्धिधात्री का जो मनुष्ट नियमपूर्वक
सेवन करता है,
उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो
जाते हैं।
इससे पीड़ित व्यक्ति को सिद्धिदात्री
देवी की आराधना करना चाहिए।
इस प्रकार प्रत्येक देवी आयुर्वेद की
भाषा में मार्कण्डेय पुराण के अनुसार
नौ औषधि के रूप में मनुष्य की प्रत्येक
बीमारी को ठीक कर रक्त का संचालन
उचित एवं साफ कर मनुष्य को स्वस्थ
करती है।
अत: मनुष्य को इनकी आराधना एवं
सेवन करना चाहिए।
—#प्रत्यंचा_सनातन_संस्कृति,,,
-#सन्दर्भ_मार्कंडेय_पुराण;
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी,
तृतीयं चंद्रघण्टेति कुष्माण्डेती चतुर्थकम।।
पंचम स्कन्दमातेति षुठ कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टम।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता।
ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके
न मा नयति कश्चन।
ससस्त्यश्चकः सुभद्रिकां
काम्पीलवासिनीम्।।
पत्तने नगरे ग्रामे
विपिने पर्वते गृहे।
नानाजातिकुलेशानीँ
दुर्गामावाहयाम्यहम्।।
या देवि सर्वभूतेषु
मातृरुपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः।।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं
भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि
परिपूर्णँ तदस्तु मे।।
समस्त चराचर प्राणियों एवं
सकल विश्व का कल्याण करो
मातु भवानी,,
करो कृपा जग जननी भवानी,
भव सागर तर जाएँ हम,,
ॐ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः,
ॐ नमश्चण्डिकाये !
जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,
जयति पुण्य भूमि भारत,,,
सदा सर्वदा सुमंगल,,,
जय भवानी,,,
जय श्री राम,,
विजय कृष्णा पांडेय
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