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एक छोटे से गाॅव में कल्लू नाम का एक बच्चा रहता था…


एक छोटे से गाॅव में कल्लू नाम का एक बच्चा रहता था…

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उसके स्कूल के बच्चे उसको हमेशा “उल्लू”बोलकर

चिढ़ाते थे…

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और उसकी टीचर उस की बेवकूफियों से हमेशा

बहुत

परेशान रहती थी..।

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एक दिन उसके पिता उसका

रिजल्ट जानने उसके स्कूल गये और टीचर से कल्लू

के बारे में पूछा..।

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टीचर ने कहा कि “अपने जीवन के पच्चीस साल

के कार्यकाल में उसने पहली बार ऐसा बेवकूफ

लड़का देखा है।  ये जीवन में कुछ नहीं कर पायेगा।”

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यह सुनकर कल्लू के पिता बहुत

आहत हो गये और शर्म के मारे वो गाँव

छोड़कर एक अंजान शहर में चले

गये..।

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बीस साल बाद जब उस टीचर

को दिल की बीमारी हुई तो सबने उसे शहर के

एक डॉक्टर का नाम सुझाया जो ओपन हार्ट

सर्जरी करने में माहिर था..

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टीचर ने जा कर सर्जरी करवाई और ऑपरेशन

कामयाब रहा..

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जब वो बेहोशी से वापस आई और आँख खोली

तो टीचर ने एक सुन्दर और सुडौल नौजवान

डॉक्टर को अपने बेड के बगल में खड़े हो कर

मुस्कुराते हुए देखा..

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वो

टीचर डॉक्टर को शुक्रिया बोलने ही वाली

थी कि अचानक उसका चेहरा नीला पड़ गया और

जब तक डॉक्टर कुछ समझें.. वो टीचर मर गयी..

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डॉक्टर अचम्भे से देख रहे थे और समझने की

कोशिश

कर रहे थे कि आखिर हुआ क्या है..?

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तभी वो पीछे मुड़े और देखा कि कल्लू, जो कि

उसी अस्पताल में एक सफाई कर्मचारी था..

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उसने वेंटीलेटर का

प्लग हटा के अपना मोबाइल का चार्जर लगा

दिया था..

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अब अगर आप लोग ये सोच रहे थे कि कल्लू बड़ा हो कर डॉक्टर

बन गया था..

तो इसका

मतलब ये है कि आप या तो हिंदी/ तमिल/तेलुगु फिल्में

बहुत ज्यादा देखते हैं, या फिर बहुत ज्यादा

प्रेरणादायक कहानियां पढ़ते हैं….

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कल्लू, उल्लू था और उल्लू ही रहेगा….

(स्त्रोत: वाट्सएप)

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एकलिंगनाथ : मेवाड़ का शिवधाम – Shri Krishan Jugnu 


एकलिंगनाथ : मेवाड़ का शिवधाम

सावन में शिव स्थानों के दर्शन की परंपरा बहुत पुरानी है और हमारे यहां उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर ठेठ पश्चिम तक शिवालयों की शृंखला दिखाई देती है। राजस्थान में एकलिंगनाथ के मंदिर का बड़ा माहात्म्य है क्योंकि यहां के मेवाड़ के महाराणा शासकों ने शिव को राजा और स्वयं को उनका प्रतिनिधि स्थापित कर शासन सूत्र का संचालन किया।

यूं तो यहां मंदिर स्थापत्य का विकास नवीं सदी से सिद्ध किया गया है लेकिन अभिलेखीय प्रमाण 10वीं सदी से मिलने लगते हैं। नरवर्मा के काल में यहां लाकुलीश मंदिर बना और फिर एकलिंगजी का प्रासाद बना जिसका शिल्प और स्थापत्य मेरु रूपेण है और इसीलिये यह लिखा गया है कि देव मेरुगिरि को और शिव कैलास को बिसार यहां आए।

यह मंदिर कब बना, इसे लेकर कई मान्यताएं हैं। महाराणा जगतसिंह के शासनकाल की 1640 की जगदीश मंदिर की प्रशस्ति में कहा गया है कि महाराणा मोकल (1412-33 ई.) ने यह मंदिर बनवाया जबकि मोकल द्वारा स्थापित 1428 ई. की शृंगी ॠषि की प्रशस्ति में कहा गया है कि मोकल ने इस मंदिर का स्फाटिक जैसी शिलाओं से परकोटा बनवाया और तीन द्वारों पर अलंकृत किंवाड़ लगवाये।

एकलिंगजी के दक्षिण द्वार की 1489 ई. की प्रशस्ति में इस मंदिर के लिए महाराणा हम्मीर (1330-60 ई.) द्वारा शिहेला ग्राम का दान करने का संदर्भ मिलता है। एेसे मंदिर का और पुराना होना सिद्ध होता है। निश्चय ही यह यह पहले बना और इसका पहला प्रमाण आबू के अचलेश्वर मंदिर की 1285 ई. की प्रशस्ति से मिलता है। उसमें प्रशस्तिकार चित्तौड़ निवासी राजकवि वेद शर्मा कहता है कि उसने एकलिंगनाथ के मंदिर की प्रशस्ति की रचना की। (श्लोक 60)

उक्त वेद शर्मा की सारी प्रशस्तियां मंदिर प्रतिष्ठा व गुहिलवंश गौरव गुणमूलक रही है। उसकी रची एकलिंगजी की प्रशस्ति अब नहीं मिलती। वह निश्चित ही काव्य सौष्ठव युक्त रही होगी जैसी कि उसकी अन्य प्रशस्तियां रही हैं और उसके कुछ श्लोक कुंभलगढ़ की प्रशस्ति और एकलिंग माहात्म्य में भी ” तदुक्तं पुरातनै” कहकर उद्धृत हुए हैं और वे बच गए हैं, यह सहज विश्वास होता है ।

आबू पर्वत की प्रशस्ति महारावल समरसिंह के शासनकाल (1282-1301ई.) की है और उसी के काल की चीरवा गांव की प्रशस्ति (कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, संवत् 1330) में तत्कालीन श्री शिव राशि नामक पाशुपत सन्यासी को एकलिंगजी मंदिर का अधिष्ठाता कहकर सम्मान दिया गया है : पाशुपत तपस्विपति: श्रीशिवराशि स शीलगुण राशि:। आराधितैकलिंगोऽधिष्ठातात्रास्ति निष्ठावान्।। (श्लोक 44) यह तपोधन सन्यासी उस काल तक मौजूद था। ( मेरी : राजस्थान की एेतिहासिक प्रशस्तियां और ताम्रपत्र और राजस्थान के प्राचीन अभिलेख)

ये प्रमाण सिद्ध करते हैं कि यह मंदिर 13वीं सदी तक बन चुका था और संवत् 1330 से पूर्व प्रतिष्ठा हो चुकी थी। आज यह प्रासाद अपनी भव्य कला व इतिहास को लेकर शिरोन्नत किए है…
जय जय।
– डॉ. श्रीकृष्ण “जुगनू”

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यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात समुन्द्र तट पर टहल रहे थे।


Vinay Upadhyay

यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात समुन्द्र तट पर टहल रहे थे।
समुन्द्र के तट पर एक बच्चे को रोते हुए देखकर पास आकर प्यार से बच्चे के सिर पर हाथ फेरकर पूछने लगे :-
”बालक तू क्यूँ रो रहा है ?”
तब बालक कहने लगा:-
“ये जो मेरे हाथ में प्याला है मैं उस में समुन्द्र भरना चाहता हूँ पर ये मेरे प्याले में समाता नहीं है !”
ये बात सुन के सुकरात विषाद में चले गये और रोने लगे .
बच्चा कहने लगा:-
“आप भी मेरी तरह रोने लगे पर आपका प्याला कहाँ है ?”
सुकरात ने जवाब दिया :-
”बालक ,तुम छोटे से प्याले में समुन्द्र भरना चाहते हो और मैं अपनी छोटी सी बुद्धि में सारे संसार की जानकारी भरना चाहता हूँ । आज तुमको देखकर पता चला कि समुन्द्र प्याले में नहीं समा सकता।”
ये बोल सुन के बच्चे ने प्याले को जोर से समुन्द्र में फेंक दिया और बोला:-
“सागर अगर तुम मेरे प्याले में नहीं समा सकते तो मेरा प्याला तो तुम्हारे में समा सकता है ।”
सुकरात बच्चे के पैरों में गिर पड़ा और कहने लगा:-
“बहुत कीमती सूत्र हाथ में लगा है । हे परमात्मा, आप तो सारा का सारा मुझ में नहीं समा सकते पर मैं तो सारा का सारा आप में लीन हो सकता हूँ .”

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विविध विषयों पर संस्कृत श्लोकों का हिंदी अर्थ सहित यह विशाल संग्रह बड़े श्रम से संकलित किया गया है


*विविध विषयों पर संस्कृत श्लोकों का हिंदी अर्थ सहित यह विशाल संग्रह बड़े श्रम से संकलित किया गया है | इसका एक मात्र उद्देश्य है भारतीय संस्कृति की महान धरोहर संस्कृत भाषा का प्रसार करना |*
*आप इसे पढ़ें या नहीं पर इसे हर ग्रुप में शेयर अवश्य करें जिससे की कोई न कोई ज्ञान का जिज्ञासु और स्टूडेंट इससे सीखे और प्रेरणा भी ले सके | इसका प्रसार भी देश और धर्म की ही सेवा है |*
⚜दान पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/nDSsp8
⚜दुर्जन पर संस्कृत श्लोक
भाग 1: https://goo.gl/rFjktQ
भाग 2: https://goo.gl/mFsngr
⚜जीवन पर संस्कृत श्लोक
भाग 1: https://goo.gl/VnthWV
भाग 2: https://goo.gl/ZTkarG
भाग 3: https://goo.gl/YprJ3c
भाग 4: https://goo.gl/ZFSLm6
भाग 5: https://goo.gl/GyexJz
⚜अभय पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/iH4coe
⚜मित्रता पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/HoyLJ6
⚜धर्म पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/2zBH3X
⚜बुद्धिमान पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/FY7nGC
⚜गृहस्थी पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/cxwkXa
⚜नारी पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/sQgTQm
⚜ज्ञान पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/t7sWPx
⚜समय पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/b2REr6
⚜कर्म पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/38C3dA
⚜राष्ट्र पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/u1WBzu
⚜सत्य पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/YBqB61
⚜संतोष पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/bx2zk8
⚜तप पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/RJxDXn
⚜सुख दुःख पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/ukPhvr
⚜उद्यम पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/wTBPRu
⚜चरित्र पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/JmdRH8
⚜एकता पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/knoC3N
⚜ईश्वर पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/kkLfkx
⚜विवाह शुभकामना पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/bzaYFX
⚜भक्ति पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/TncP8p
⚜सत्संगति पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/pEf3qo
⚜राजधर्म पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/XdMpDV
⚜मन/बुद्धि पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/zwGjU6
⚜स्वाभाव पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/YqwfhN
⚜बुद्धिमत्ता पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/Jy9prs
⚜परोपकार पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/JKBav6
⚜दया पर संस्कृत श्लोक
https://goo.gl/3v3NZB
।। शुभमस्तु ।।

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ચમત્કાર તો તમે પણ કરી જ શકો છો ..!


ચમત્કાર તો તમે પણ કરી જ શકો છો ..!
એક માણસ બૅન્કમાં ગયો. પોતાના અકાઉન્ટમાંથી થોડીક રકમ ઉપાડવા માટે સેલ્ફનો ચેક લઈને તે કાઉન્ટર પાસે ઊભો રહ્યો.
એ વખતે કૅશિયર થોડે દૂર સ્ટાફના બીજા મિત્રો સાથે ટોળટપ્પાં કરવામાં બિઝી હતો. પંદર-વીસ મિનિટ સુધી પેલો માણસ રાહ જોતો રહ્યો. તે મનમાં અકળાઈ રહ્યો હતો : કૅશિયર કેવો બિનજવાબદાર છે ! દૂરથી તેને કાઉન્ટર પાસે ઊભેલો આ માણસ દેખાતો હતો છતાં તેને કશી પરવા નહોતી. ડ્યૂટી-અવર્સ દરમ્યાન સ્ટાફમિત્રો ગપ્પાં મારીને ક્લાયન્ટને હેરાન કરે એ નિયમવિરુદ્ધ હતું.
પેલા માણસનો રોષ વધતો જતો હોવા છતાં તે ખામોશ રહ્યો. તેણે વિચારી લીધું કે આ કૅશિયરને અવશ્ય પાઠ ભણાવવો પડશે. એ દિવસે પૈસા લઈને તે કશું જ બોલ્યા વગર ઘરે પાછો આવ્યો. પછી તેણે કૅશિયરના નામે બૅનકના સરનામે એક સાદો પત્ર લખ્યો. એ પત્રમાં કોઈ પણ પ્રકારનો રોષ ન આવી જાય એની તેણે ચીવટ રાખી.
તેણે માત્ર એટલું જ લખ્યું હતું, ‘ગઈ કાલે હું મારા સેવિંગ્સ અકાઉન્ટમાંથી રકમ ઉપાડવા બેન્કમાં આવ્યો ત્યારે તમે તમારા સ્ટાફમિત્રો સાથે કશીક અગત્યની ચર્ચામાં મગ્ન હતા, છતાં મને માત્ર પચ્ચીસ મિનિટમાં જ રકમ મળી ગઈ. બીજી કોઈ બેન્કમાં મારે આ કામ કરાવવાનું હોત તો ત્યાંના કૅશિયરની બેફિકરાઈ અને બિનજવાબદારપણાને કારણી મારે ઘણો વધારે સમય કદાચ રાહ જોવી પડી હોત. તમે ચર્ચા અધૂરી મૂકીને આવ્યા અને મને રકમ આપી એમાં તમારી નિષ્ઠા અને સદ્ભા વ મને દેખાયાં. હું તમારો આભાર માનું છું અને તમારી ફરજનિષ્ઠાને બિરદાવું છું.’

પોતાનું નામ, અકાઉન્ટ નંબર વગેરે લખ્યાં, પછી પત્ર પોસ્ટ દ્વારા મોકલી આપ્યો.
એકાદ અઠવાડિયા પછી આ માણસ બૅન્કમાં ગયો ત્યારે પેલો કેશિયર ખૂબ ગળગળો થઈને તેને ભેટી પડ્યો, પોતાની બેદરકારી માટે માફી માગી અને ફરીથી કોઈની સાથે એવી બિહેવિયર નહિ કરવાની ખાતરી ઉચ્ચારી.
ગુસ્સે થઈને ગાળો બોલી શકાય, તેનું ઈન્સલ્ટ કરી શકાય, તેને નિયમો અને કાનૂન વિશે મોટા અવાજે વાત કરીને ઉતારી પાડી શકાય, થોડીક વાર માટે પોતાનો રુઆબ બતાવી શકાય, ત્યાં ઊભેલા અન્ય અજાણ લોકો ઉપર વટ પાડી શકાય ; પણ આ બધું કર્યા પછીયે કૅશિયરને સુધારી શકાયો ન હોત. કદાચ તે વધુ બેફામ અને બેદરકાર એટલે કે નફ્ફટ થઈ ગયો હોત. પણ આ સફળ ઉપાય હતો.
આવી જ એક બીજી ઘટના છે. એક મૅડમ સાડીઓના મોટા શોરૂમમાંથી એક મોંઘી સાડી લાવ્યાં, પરંતુ પહેલી જ વખત ધોયા પછી એ સાડી બગડી ગઈ. વેપારીએ આપેલી ગૅરન્ટી ખોટી પડી. એ મેડમે પોતાના ડ્રાઈવર સાથે શોરૂમના માલિકને એક પત્ર મોકલ્યો : ‘તમારી દુકાનેથી મેં સાડી ખરીદી હતી. આ સાથે તેનું બિલ પરત મોકલું છું. તમારા શોરૂમના સેલ્સમૅને ગેરન્ટી આપી હતી છતાં સાડી બગડી ગઈ છે, પરંતુ બિલ મારી પાસે હોય ત્યાં સુધી મને છેતરાઈ ગયાની ફીલિંગ ડંખ્યા કરે અને બીજું કોઈ જુએ તો તમારા શોરૂમની પ્રતિષ્ઠાને કલંક લાગે. એક સાડી બગડવાથી મને તો બે-ત્રણ હજારનું જ નુકસાન થયું છે, પણ એટલા જ કારણે તમારા શોરૂમની પ્રતિષ્ઠા ઝંખવાય તો તમને મોટું નુકસાન થાય. મને હજીયે તમારા સેલ્સમૅન પર ભરોસો છે. કદાચ તેણે ભૂલથી મને વધુ પડતી ગૅરન્ટી આપી હોય. તમે પ્રામાણિક વેપારી તરીકે વધુ કામિયાબ થાઓ એવી શુભેચ્છાઓ.’
શોરૂમનો માલિક એ પત્ર વાંચીને ગદ્ગદ થઈ ગયો. તેણે એ જ રાત્રે પોતાના સેલ્સમૅન દ્વારા વધુ કીમતી એક નવી સાડી મોકલી આપી, સાથે દિલગીરીના થોડાક શબ્દો પણ.
ગુસ્સો કદી ચમત્કાર ન કરી શકે, નમ્રતા જ ચમત્કાર કરી શકે. કોઈ નફ્ફટ માણસની સામે નફ્ફટ થવાનું સરળ છે ખરું, પણ નફ્ફટ માણસની સામે પણ સજ્જન બની રહેવાનું અશક્ય તો નથી જ ને ! ગુસ્સે થઈને આપણે આપણી એનર્જી વેસ્ટ કરી છીએ, આપણું બ્લડપ્રેશર વધારી છીએ અને એટલું કર્યા પછીયે પૉઝિટિવ રિઝલ્ટની ગૅરન્ટી તો નથી જ મળતી.
કોઈ પણ વ્યક્તિને પોતાની અપ્રીસિએશન થાય એ ગમતું જ હોય છે. પોતે ખરાબ અને ખોટા હોવા છતાં ટીકા સાંભળવાની તૈયારી કદી નથી હોતી. કદર કરવામાં કરકસર કરવાની જરૂર નથી. કદર કરીને આપણે કેટલાક ચમત્કારો કરી શકીએ છીએ.
દરેક વખતે ચમત્કાર કરવા કુદરત પોતે આપણી સમક્ષ હાજર થતી નથી. કેટલાક ચમત્કાર તો માણસ દ્વારા જ કરાવે છે. શક્ય છે કે આપણા હાથે પણ આવો કોઈ ચમત્કાર કરાવવા ઉત્સુક હોય. ચમત્કાર કરવાનું આ સિમ્પલ લૉજિક માફક આવી જાય તો આવેશની ક્ષણે પણ આપણે આત્મવિશ્વાસથી કહી શકીશું : નો પ્રૉબ્લેમ!
અને છેલ્લે…
વિચારો એવા રાખો કે તમારા વિચાર પર પણ કોઈને વિચારવું પડે. સમુદ્ર બની ને શું ફાયદો, બનવું હોય તો “નાનું તળાવ” બનો; જ્યાં સિંહ પણ પાણી પીવે તો ગરદન નમાવી ને.

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असली कामसूत्र चुराकर अंग्रेजों ने प्राप्त की थी ये महाशक्ति…..


असली कामसूत्र चुराकर अंग्रेजों ने प्राप्त की थी ये महाशक्ति…..
कामसूत्र का नाम सुनते ही लोग नाक-मुंह सिकोड़ने लगते हैं, लेकिन वह भूल जाते हैं ,कि महर्षि वात्स्यायन का कामसूत्र विश्व की पहली यौन संहिता है।

जिस में यौन प्रेम के मनोशारीरिक सिद्धान्तों तथा प्रयोग की विस्तृत व्याख्या एवं विवेचना की गई है ! लेकिन आप यह जान कर चौंक जाएंगे कि वात्सायन के इस ग्रंथ ने भारतीय इतिहास को संजोने में अहम भूमिका निभाई।

इस प्राचीन ग्रंथ से सिर्फ यौन आसन ही नहीं निकले, बल्कि कामसूत्र की कजरारी से काजल जैसे सौंदर्य प्रसाधनों ने भी जन्म नहीं लिया।

रचना के बाद से ही वात्सायन के कामसूत्र का वर्चस्व पूरी दुनिया में छाया हुआ है। आप को जानकर आश्चर्य होगा कि मुगलों के दौर में इस प्राचीन ग्रंथ को बचाने के लिए उसे छिपा दिया गया था, लेकिन करीब २०० साल पहले यह किताब व्यापार करने भारत आए अंग्रेजों के हाथ लग गई।

अंग्रेज इसे इग्लेंड ले गए जहां यह प्रसिद्ध भाषाविद सर रिचर्ड एफ बर्टन के हाथों तक पहुंची। बर्टन ने जब वात्सायन के कामसूत्र का अंग्रेजी में अनुवाद किया तो पूरी दुनिया में तहलका मच गया। स्थिती यह थी ,कि उस समय इस किताब की एक प्रति १०० से १५० पौंड तक में बिकी।

छिपाई गयी इतिहास बदलने वाली खोज :-

कामसूत्र का अनुवाद करने के दौरान बर्टन के हाथ दुनिया बदलने वाली एक खोज भी लगी, लेकिन वह इसे छिपा गए।

बाद में उन्होंने इस खोज को नाम दिया मार्कर… एक ऐसी स्याही जो कभी मिटती ना हो। यही अमिट स्याही बाद में अंग्रेजों की अचूक ताकत बन गई। ऐसी ताकत जिसके जरिए वह अपने सारे दस्तावेज इग्लेंड में लिखते और दुनिया भर के गुलाम देशों तक भेजते।

अब खुला इतिहास बदलने वाला राज :-

हाल ही में पुणे के फग्यू्र्रसन कॉलेज में देश भर के ४५० वैज्ञानिक और शोधार्थी जुटे।

भारतीय विज्ञान सम्मेलन का। विज्ञान भारती की ओर से हुए इस आयोजन में कोटा के डॉ. बाबू लाल भाट ने इतिहास बदलने वाला शोध पत्र प्रस्तुत किया।

उन्होंने वंशावली लेखकों के हजारों साल पुराने दस्तावेजों के आधार पर प्रमाणित किया कि अमिट स्याही का जन्म वात्सायन के कामसूत्र से करीब ३००० साल पहले हुआ था। डॉ. बाबूलाल भाट वंशावली लेखकों पर शोध करने वाले देश के पहले शोधार्थी हैं।

उन्होंने इतिहासकार प्रो. जगत नारायण के निर्देशन में कोटा विश्वविद्यालय से पीएचडी की। सात साल तक देश भर में घूम कर वंशावली लेखकों, लिखने के तरीकों और संसाधनों की जानकारी जुटाने में जुटे रहे।

ऐसे बनती थी अमिट स्याही :-

डॉ. भाट के मुताबिक वात्सायन के कामसूत्र में कजरारी से काजल बनाने की तमाम विधियां बताई गई थीं। जिन में सुधार कर वंशावली लेखकों ने अमिट स्याही बनाने के तीन तरीके खोजे। वंशावली लेखकों के सदियों पुराने दस्तावेजों में तीन प्रमुख तरीके मिलते हैं। पहला सबसे आसान तरीका था कि छह टका काजल, बारह टका बीयाबोल, छत्तीस टका खेर का गोंद, आधा टका अफीम, अलता पोथी तीन टका, कच्ची फिटकरी आधी टका को लेकर नीम के ठंडे पानी से तांबे के बर्तन में सात दिन तक घोटने से पक्की काली स्याही बन जाएगी।

गोमूत्र से भी बनती थी , स्याही :-

वंशावली लेखकों के प्राचीन ग्रंथों में गोमूत्र से भी स्याही बनाने का तरीका दर्ज है। जिसके लिए नीम का गोंद, उसकी दुगनी मात्रा में बीयाबोल और उससे दुगना तिल के तेल का बना हुआ काजल लेकर सभी को गोमूत्र में मिलाकर आग पर चढ़ा दें।

पानी सूखने पर लाक्षा रस मिलाकर गोमूत्र से धोए हुए काले भांगरे के सर के साथ इसे घोटें। बेहद टिकाऊ काली अमिट स्याही बनेगी।

वहीं तीसरा तरीका सूखी अमिट स्याही बनाने का था। जिसमें तिल के तेल से पारे गए काजल और तांबे-नीम के घोटे का इस्तेमाल होता था।

मनीष कुमार सोलंकी

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औरत के कान!


औरत के कान!
एक आदमी ने दुर्घटना में दोनों कान खो दिए, कोई भी प्लास्टिक सर्जन उसका समाधान नहीं कर पाया, उसने किसी से सुना कि स्वीडन में कोई सर्जन है जो इसे ठीक कर सकता है और वो उसके पास गया!
नए सर्जन ने उस कि जांच की, थोड़ी देर सोचा और फिर कहा, मैं तुम्हें ठीक कर दूंगा!
ओप्रशन के बाद पट्टियां खोली गयी, टांके भी खोल दिए गए और वो वापिस अपने होटल चला गया!
अगली सुबह उसने बहुत गुस्से में सर्जन को फ़ोन किया और जोर से चिल्लाया कमीने तुमने मुझ में औरत का कान लगाया है!
सर्जन ने कहा, तो क्या हुआ कान तो कान है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, औरत का हो या मर्द का!
ऐसा नहीं है, आप गलत बोल रहे हैं, मैं सुन तो सब कुछ सकता हूँ, पर समझ में कुछ भी नहीं आ रहा है!

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एक राजा था बहुत प्रतापी और ज्ञानी।


एक राजा था बहुत प्रतापी और ज्ञानी। एक बार उसने अपने राज्य के सभी धर्मगुरुओं और ज्योतिषियों को बुलाया। सभा बैठी और उसमें सभी ज्ञानी महापुरुष पधारे। राजा आए और सिंहासन पर बैठकर उन्होंने सभी का आदर सत्कार किया। सभी सोच रहे थे कि राजा को ऐसा क्या काम आ गया कि उन्होंने सभी साधु, मुनि और ज्योतिषियों को एक साथ बुलवा लिया। राजा ने सभी की जिज्ञासा को शांत करते हुए कहा कि मैं एक सवाल का जवाब बरसों से तलाश रहा हूं। मुझे उम्मीद है कि इस सभा में कोई न कोई मुझे आज उस सवाल का जवाब दे देगा। यह सुनकर सभी स्तब्ध रह गए। राजा ने कहा जब मेरा जन्म हुआ उसी घड़ी में और भी कई लोग जन्मे। मैं राजा बना, कोई भिखारी बना तो कोई बनिया। जब समय एक था मुहूर्त एक था तो लोगों को अलग अलग किस्मत क्यों मिली। राजा का यह प्रश्न सुनकर सभी चुप हो गए। किसी को कोई जवाब नहीं सूझा। सभा में सन्नाटा पसर गया।

कुछ देर के बाद एक बुजुर्ग खड़ा हुआ और हाथ जोड़कर बोला महाराज आपके प्रश्न का उत्तर एक ही साधु दे सकते हैं और वे यहां से बहुत दूर जंगलों में रहते हैं। आप उनसे मिलने जाएंगे तभी आपकी जिज्ञासा शांत हो सकेगी। यह सुनकर राजा और रोमांचित हो गए। वे तुरंत अपने घोड़े को लेकर जंगल की ओर निकल गए और उस साधु के पास पहुंच कर उसे अपनी परेशानी बताई। साधु उस वक्त गरम गरम कोयला खा रहा था यह सुनकर वह गुस्सा हो गया और बोला मैं अभी बहुत भूखा हूं और मुझे यह कोयला खाना है। तू सूर्योदय से पहले यहां से आगे एक आदिवासी गांव में जा वहां एक बच्चा जन्म लेने वाला है वही तेरे प्रश्न का उत्तर देगा। यह सोचकर राजा ने अपना घोड़ा दौड़ाया और गांव पहुंचे। वहां पहुंच कर पता किया कि किस घर में बच्चा जन्म लेने वाला है और तुरंत उस आदिवासी के घर पहुंचे। जैसे ही बच्चे ने जन्म लिया पिता ने बच्चे को राजा की गोद में दे दिया। राजा को देखते ही बच्चा हंसने लगा और बोला कि मेरे पास समय नहीं है मुझे इस दुनिया से जाना है लेकिन मैं आपके सवाल का उत्तर दे जाता हूं। बच्चे ने कहा महाराज पिछले जन्म में आप, मैं और वह साधु जो कोयले खा रहा था हम तीनों भाई थे। एक बार शिकार खेलते खेलते हम जंगल गए और वहां भटक गए। दो दिन भटकने के बाद हमें आटे की पोटली मिली। हम तीनों बहुत भूखे थे और हमने उसकी तीन बाटियां बनाई। आग पर बाटी सेकने के बाद जैसे ही हम उसे खाने बैठे एक महात्मा वहां आ गए। वे बहुत भूखे थे और हमसे बाटी देने की याचना करने लगे। सबसे पहले वे तीसरे और हमारे सबसे बड़े भाई के पास गए और बाटी मांगी। इस पर हमारे भाई ने कहा कि तुझे अपनी बाटी दे दूंगा तो क्या मैं अंगारे खाऊंगा। यह सुनकर महात्मा बहुत दु:खी हुए और मेरे पास आए। मैंने उनसे कहा कि आपको बाटी दे दी तो क्या मैं भूखा मरूंगा। इसके बाद वे आपके पास गए और आपने दयापूर्वक उन्हें आधी बाटी देकर उनका आदर किया। उस वक्त उन महात्मा ने आपको आशीर्वाद दिया और कहा कि तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्मों से ही स्वर्णिम बनेगा।

अब बच्चे ने राजा को बताया कि इस तरह से आप इस जन्म में राजा बने। हम तीनों इस जन्म में अपने पिछले जन्म के कर्मों को ही भोग रहे हैं। जंगल में आपको अंगारे खाते जो साधु मिले थे ये हमारे वही भाई हैं जिन्होंने बाटी के बदले अंगार खाने की बात कही थी। आपने पिछले जन्म में महात्मा को दयापूर्वक बाटी दी इसलिए आप राजा बने और मैंने उस महात्मा को बाटी न देकर भूखा मरने की बात कही तो इस जन्म में मैं पैदा होते ही शरीर त्याग रहा हूं। आज मेरे जन्म पर भी वही समय और मुहूर्त है जिसमें आप और वह कोयले खाने वाले साधु जन्मे लेकिन हम तीनों की किस्मत अलग है क्योंकि हमारे कर्म अलग थे।

तो दोस्तों आपके कर्म ही तय करते हैं कि आपका भविष्य कैसा होगा। अगर आप खुशियां बांटेंगे तो बदले में खुशियां ही मिलेंगी। हम भी छोटी छोटी कहानियों के माध्यम से दुनिया में खुशियां बांटने का काम कर रहे हैं। आप भी हमारे दोस्त बनिए और इस नेक काम में हमारा साथ दीजिए।

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एक सत्संगी था..


एक सत्संगी था……..उसका भगवान पर बहुत विश्वास था वो बहुत साधना , सिमरन करता था | सत्संग पे जाता था, सेवा करता था, उस पर गुरु जी की इतनी कृपा थी कि उसको साधना पर बैठते ही ध्यान लग जाता था |

एक दिन उसके घर तीन डाकू आ गए और उसके घर का काफी सामान लूट लिया और जब जाने लगे तो सोचा कि मार देना चाहिए नहीं तो ये सबको हमारे बारे में बता देगा | ये सुनकर वो सत्संगी घबरा गया और बोला तुम मेरे घर का सारा सामान नकदी, जेवर, …सब कुछ ले जाओ लेकिन मुझे मत मारो, उन लूटेरो ने उसकी एक ना सुनी और बन्दूक उसके सर पर रख दी, सत्संगी बहुत रोया गिड़-गिड़ाया कि मुझे मत मारो, लेकिन लुटेरे नहीं मान रहे थे,

तभी सत्संगी ने उनसे कहा कि मेरी आखिरी इच्छा पूरी कर दो, लुटेरो ने कहा ठीक है। सत्संगी फ़ौरन कुछ देर के लिए ध्यान पर बैठ गया।

उसने अपने गुरु को याद किया और थोड़ी ही देर में गुरु जी ने उसे दर्शन दिए और दिखाया कि पिछले तीन जन्मो में तुमने इन लुटेरो को एक एक करके मारा था आज वो तीनो एक साथ तुम्हे मरने आये है और मैं चाहता हूँ कि तुम तीनो जन्मो का भुगतान इसी जन्म में कर दो .. .

ये सुनकर सत्संगी उठ खड़ा हुआ और लुटेरो कि बन्दूक अपने सर पर रख के हस्ते हुए बोला कि अब मुझे मारदो, अब मुझे मरने कि कोई परवाह नहीं है। ये सुन कर लुटेरे हैरान हो गए और सोचा कि अभी तो ये रो रहा था कि मुझे मत मारो और अब इसे २० मिनट में क्या हो गया तो उन्होंने उस सत्संगी से पूछा कि आखिर इतनी सी देर में ऐसा क्या हुआ कि तुम ख़ुशी से मरना चाह रहे हो तो उस सत्संगी ने सारी बात उन लुटेरो को बता दी।

ये सुनकर लुटेरो ने अपने हथियार सत्संगी के पैरो में डाल दिए और हाथ जोड़ कर विनती करने लगे कि हम तुम्हे नहीं मरेंगे बस इतना बता दो कि तुम्हारे गुरु कौन है तो उसने अपने गुरु जी के बारे में बता दिया। उसके बाद वो लोग भी सब कुछ छोड़कर सत्संगी बन गए।
इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि वह गुरु हर पल हमारी रक्षा करता है दुःख भी देता है तो हमारे भले के लिए इसलिए हर पल उस गुरु का शुक्र करना चाहिए फिर चाहे वो परम पिता जिस हाल में भी रखे।

हरपल हर स्वांस शुकराना गुरु जी।

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एक 6 वर्ष का लडका अपनी 4 वर्ष की छोटी बहन के साथ बाजार से जा रहा था।


एक 6 वर्ष का लडका अपनी 4 वर्ष की छोटी बहन के साथ बाजार से जा रहा था।

अचानक से उसे लगा कि, उसकी बहन पीछे रह गयी है।
वह रुका, पीछे मुड़कर देखा तो जाना कि, उसकी बहन एक खिलौने के दुकान के सामने खडी कोई चीज निहार रही है।
लडका पीछे आता है और बहन से पूछता है, “कुछ चाहिये तुम्हें?” लडकी एक गुड़िया की तरफ उंगली उठाकर दिखाती है।
बच्चा उसका हाथ पकडता है, एक जिम्मेदार बडे भाई की तरह अपनी बहन को वह गुड़िया देता है। बहन बहुत खुश हो गयी ।
दुकानदार यह सब देख रहा था, बच्चे का व्यवहार देखकर आश्चर्यचकित भी हुआ ….
अब वह बच्चा बहन के साथ काउंटर पर आया और दुकानदार से पूछा, “कितनी कीमत है इस गुड़िया की ?”
दुकानदार एक शांत और गहरा व्यक्ति था, उसने जीवन के कई उतार देखे थे, उन्होने बड़े प्यार और अपनत्व से बच्चे से पूछा,

“बताओ बेटे, आप क्या दे सकते हो ??”
बच्चा अपनी जेब से वो सारी सीपें बाहर निकालकर दुकानदार को देता है जो उसने थोड़ी देर पहले बहन के साथ समुंदर किनारे से चुन चुन कर बीनी थी !!!
दुकानदार वो सब लेकर यूँ गिनता है जैसे कोई पैसे गिन रहा हो।
सीपें गिनकर वो बच्चे की तरफ देखने लगा तो बच्चा बोला,”सर कुछ कम हैं क्या ??”

दुकानदार :-” नहीं – नहीं, ये तो इस गुड़िया की कीमत से भी ज्यादा है, ज्यादा मैं वापस देता हूँ ” यह कहकर उसने 4 सीपें रख ली और बाकी की बच्चे को वापिस दे दी।
बच्चा बड़ी खुशी से वो सीपें जेब मे रखकर बहन को साथ लेकर चला गया।
यह सब उस दुकान का कामगार देख रहा था, उसने आश्चर्य से मालिक से पूछा, ” मालिक ! इतनी महंगी गुड़िया आपने केवल 4 सीपों के बदले मे दे दी ?”
दुकानदार एक स्मित संतुष्टि वाला हास्य करते हुये बोला,
“हमारे लिये ये केवल सीप है पर उस 6 साल के बच्चे के लिये अतिशय मूल्यवान है और अब इस उम्र में वो नहीं जानता, कि पैसे क्या होते हैं ?
पर जब वह बडा होगा ना…
और जब उसे याद आयेगा कि उसने सीपों के बदले बहन को गुड़िया खरीदकर दी थी, तब उसे मेरी याद जरुर आयेगी, और फिर वह सोचेगा कि,,,,,,

*”यह विश्व अच्छे मनुष्यों से भी भरा हुआ है।”*
यही बात उसके अंदर सकारात्मक दृष्टिकोण बढानेे में मदद करेगी और वो भी एक अच्छा इंन्सान बनने के लिये प्रेरित होगा….

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Have a Great Day  !