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समाधान-वृक्ष


आदरणीय कमल नारायण जी मेहरोत्रा

के संजोने लायक उदगार
*समाधान-वृक्ष*
सरला नाम की एक महिला थी । रोज वह और उसके पति सुबह ही काम पर निकल जाते थे।
दिन भर पति ऑफिस में अपना टारगेट पूरा करने की ‘डेडलाइन’ से जूझते हुए साथियों की होड़ का सामना करता था। बॉस से कभी प्रशंसा तो मिली नहीं और तीखी-कटीली आलोचना चुपचाप सहता रहता था।
पत्नी सरला भी एक प्रावेट कम्पनी में जॉब करती थी। वह अपने ऑफिस में दिनभर परेशान रहती थी।
ऐसी ही परेशानियों से जूझकर सरला लौटती है। खाना बनाती है।
शाम को घर में प्रवेश करते ही बच्चों को वे दोनों नाकारा होने के लिए डाँटते थे पति और बच्चों की अलग-अलग फरमाइशें पूरी करते-करते बदहवास और चिड़चिड़ी हो जाती है। घर और बाहर के सारे काम उसी की जिम्मेदारी हैं।
थक-हार कर वह अपने जीवन से निराश होने लगती है। उधर पति दिन पर दिन खूंखार होता जा रहा है। बच्चे विद्रोही हो चले हैं।
एक दिन सरला के घर का नल खराब हो जाता है । उसने प्लम्बर को नल ठीक करने के लिए बुलाया।
प्लम्बर ने आने में देर कर दी। पूछने पर बताया कि साइकिल में पंक्चर के कारण देर हो गई। घर से लाया खाना मिट्टी में गिर गया, ड्रिल मशीन खराब हो गई, जेब से पर्स गिर गया।
इन सब का बोझ लिए वह नल ठीक करता रहा।
काम पूरा होने पर महिला को दया आ गई और वह उसे गाड़ी में छोड़ने चली गई।
प्लंबर ने उसे बहुत आदर से चाय पीने का आग्रह किया।
प्लम्बर के घर के बाहर एक पेड़ था। प्लम्बर ने पास जाकर उसके पत्तों को सहलाया, चूमा और अपना थैला उस पर टांग दिया।
घर में प्रवेश करते ही उसका चेहरा खिल उठा। बच्चों को प्यार किया, मुस्कराती पत्नी को स्नेह भरी दृष्टि से देखा और चाय बनाने के लिए कहा।
सरला यह देखकर हैरान थी। बाहर आकर पूछने पर प्लंबर ने बताया – यह मेरा परेशानियाँ दूर करने वाला पेड़ है। मैं सारी समस्याओं का बोझा रातभर के लिए इस पर टाँग देता हूं और घर में कदम रखने से पहले मुक्त हो जाता हूँ। चिंताओं को अंदर नहीं ले जाता। सुबह जब थैला उतारता हूं तो वह पिछले दिन से कहीं हलका होता है। काम पर कई परेशानियाँ आती हैं, पर एक बात पक्की है- मेरी पत्नी और बच्चे उनसे अलग ही रहें, यह मेरी कोशिश रहती है। इसीलिए इन समस्याओं को बाहर छोड़ आता हूं। प्रार्थना करता हूँ कि भगवान मेरी मुश्किलें आसान कर दें। मेरे बच्चे मुझे बहुत प्यार करते हैं, पत्नी मुझे बहुत स्नेह देती है, तो भला मैं उन्हें परेशानियों में क्यों रखूँ । उसने राहत पाने के लिए कितना बड़ा दर्शन खोज निकाला था…!!
*दोस्तो, यह घर-घर की हकीकत है। गृहस्थ का घर एक तपोभूमि है। सहनशीलता और संयम खोकर कोई भी इसमें सुखी नहीं रह सकता। जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं, हमारी समस्याएं भी नहीं। प्लंबर का वह ‘समाधान-वृक्ष’ एक प्रतीक है। क्यों न हम सब भी एक-एक वृक्ष ढूँढ लें ताकि घर में कदम रखने से पहले अपनी सारी चिंताएं बाहर ही टाँग आएँ*…!!
राजेन्द्र गौर

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घुटनों का दर्द


घुटनों का दर्द —
* सवेरे मैथी दाना के बारीक चुर्ण की एक चम्मच की मात्रा से पानी के साथ फंक्की लगाने से घुटनों का दर्द समाप्त होता है। विशेषकर बुढ़ापे में घुटने नहीं दुखते।
* सवेरे भूखे पेट तीन चार अखरोट की गिरियां निकालकर कुछ दिन खाने मात्र से ही घुटनों का दर्द समाप्त हो जाता है।

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* नारियल की गिरी अक्सर खाते रहने से घुटनों का दर्द होने की संभावना नहीं रहती।

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6 छोटी-छोटी  कहानियाँ


*6 छोटी-छोटी  कहानियाँ:*

 

( 1 )

 

*एक बार गाँव वालों ने यह निर्णय लिया कि बारिश के लिए ईश्वर से प्रार्थना करेंगे, प्रार्थना के दिन सभी गाँव वाले एक जगह एकत्रित हुए  परन्तु एक बालक अपने साथ छाता भी लेकर आया.*
*इसे कहते हैं आस्था.*
( 2 )
*जब आप एक बच्चे को हवा में उछालते हैं तो वह हँसता है  क्यों कि वह जानता है कि आप उसे पकड़ लेंगे.*
*इसे कहते हैं विश्वास.*
( 3 )
*प्रत्येक रात्रि को जब हम सोने के लिए जाते हैं तब इस बात की कोई गारण्टी नहीं होती कि सुबह तक हम जीवित रहेंगे भी या नहीं फिर भी हम घड़ी  में अलार्म लगाकर सोते हैं.*
*इसे कहते हैं आशा.*

( 4 )
*हमें भविष्य के बारे में कोई जानकारी नहीं है फिर भी हम आने वाले कल के लिए बड़ी बड़ी योजनाएं बनाते हैं.*
*इसे कहते हैं आत्मविश्वास.*
( 5 )
*हम देख रहे हैं कि दुनिया कठिनाइयों से जूझ रही है फिर भी हम शादी करते हैं.*
*इसे कहते हैं प्यार.*

 

 

( 6 )
*एक 60 साल की उम्र वाले व्यक्ति की शर्ट पर एक शानदार वाक्य लिखा था “मेरी उम्र 60 साल नहीं है, मैं तो केवल 16 साल का हूँ , 44 साल के अनुभव के साथ”.*
*इसे कहते हैं नज़रिया.*

*जीवन खूबसूरत है, इसे सर्वोत्तम के लिए जियें.*
*संसार में केवल मनुष्य ही ऐसा एकमात्र प्राणी है जिसे ईश्वर ने हंसने का गुण दिया है, इसे खोईए मत.*
*बिखरने दो होंठों पे हंसी की फुहारें, दोस्तो*

*प्यार से बोलने से जायदाद कम नहीं होती.*
*इन्सान तो हर घर में पैदा होते हैं*

*बस इंसानियत कहीं-कहीं जन्म लेती है.*

बृजमोहन दधीच

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भीख़


#प्रेरणादायक_बात

👉 #भीख़

दुल्हन की तरह सजी हुई कार में नव वधु डरी हुई और कुछ सकुचाई और शर्मायी हुई सी बैठी हुई थी। कार उसका नव विवाहित पति ही चला रहा था। अचानक कहीं से कोई बच्चा उनकी कार के सामने आ गया।………

जोर से कार में ब्रेक लगा और कार झटके से चरमराने की आवाज के साथ उस बच्चे के नज़दीक जा कर रुक गयी। कार में बैठा नवविवाहित वर चिल्लाया ’’

भिख़ारी तो है ही, अंधा भी है क्या? देख कर नहीं चल सकता क्या……? अभी मेरी गाड़ी के नीचे आ जाता तो तेरा काम ही तमाम हो जाना था, औऱ आज मैं अपनी शादी वाले दिन ही सुहागरात की जगह हवालात की रात मना रहा होता‘‘ नव वधु ने कार में लगे बैक व्यू़ मिरर में अपने पति को निहारा और मन ही मन सोचने लगी भिखारी तो तुम भी हो पतिदेव…….. जो दहेज की भीख़ में मिली कार को इतनी शान से चला रहे हो’’ नव वधु ने अपने पर्स से सौ रुपये का नोट निकाला और उस भिख़ारी बच्चे को पकड़ा दिया सोचने लगी क्या मालूम उस बच्चे की दुआओं के असर से उसके पापा के मन से दहेज का बोझ ना सही पर, मन का बोझ शायद कुछ हल्का हो जाये।😘

लष्मीकांत वर्शनय

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कैसे करें ध्यान?


*कैसे करें ध्यान?*
यह महत्वपूर्ण सवाल अक्सर पूछा जाता है।
यह उसी तरह है कि हम पूछें कि कैसे श्वास लें, कैसे जीवन जीएं, कैसे जिंदा रहें या कैसे प्यार करें।
ध्यान करने के लिए शुरुआती तत्व-
*1.श्वास की गति,*

*2.मानसिक हलचल*

*3. ध्यान का लक्ष्य*

और

*4.होशपूर्वक जीना ।*
उक्त चारों पर ध्यान दें तो तो आप ध्यान करना सीख जाएंगे।
*श्वास की गति का महत्व :*

योग में श्वास की गति को आवश्यक तत्व के रूप में मान्यता दी गई है। इसी से हम भीतरी और बाहरी दुनिया से जुड़े हैं। श्वास की गति तीन तरीके से बदलती है- *1.मनोभाव, 2.वातावरण, 3.शारीरिक हलचल।*

इसमें मन और मस्तिष्क के द्वारा श्वास की गति ज्यादा संचालित होती है। जैसे क्रोध और खुशी में इसकी गति में भारी अंतर रहता है।श्वास की गति से ही हमारी आयु घटती और बढ़ती है। श्वास को नियंत्रित करने से सभी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसीलिए श्वास क्रिया द्वारा ध्यान को केन्द्रित और सक्रिय करने में मदद मिलती है। ध्यान करते समय जब मन अस्थिर होकर भटक रहा हो उस समय श्वसन क्रिया पर ध्यान केन्द्रित करने से धीरे-धीरे मन और मस्तिष्क स्थिर हो जाता है और ध्यान लगने लगता है। ध्यान करते समय गहरी श्वास लेकर धीरे-धीरे से श्वास छोड़ने की क्रिया से जहां शरीरिक और मानसिक लाभ मिलता है, वहीं ध्यान मेंगतिमिलतीहै।
*मानसिक हलचल : *

ध्यान करने या ध्यान में होने के लिए मन और मस्तिष्क की गति को समझना जरूरी है। गति से तात्पर्य यह कि क्यों हम खयालों में खो जाते हैं, क्यों विचारों को ही सोचते रहते हैं या कि ‍विचार करते रहते हैं या कि धुन,कल्पनाआदि में खो जाते हैं।इस सबको रोकने के लिए ही कुछ उपाय हैं- पहला आंखें बंदकर पुतलियों को स्थिर करें। दूसरा जीभ को जरा भी ना हिलाएं उसे पूर्णत: स्थिर रखें। तीसरा जब भी किसी भी प्रकार का विचार आए तो तुरंत ही सोचना बंदकर सजग हो जाएं। इसीजबरदस्ती नकरेंबल्किसहजयोगअपनाएं।
*ध्यान और लक्ष्य :*

निराकार ध्यान-ध्यान करते समय देखने को ही लक्ष्य बनाएं। दूसरे नंबर पर सुनने को रखें। ध्यान दें, गौर करें कि बाहर जो ढेर सारी आवाजें हैं उनमें एक आवाज ऐसी है जो सतत जारी रहती है- जैसे प्लेन की आवाज जैसीआवाज, फेन की आवाज जैसीआवाजया जैसे कोईकररहाहै *ॐ*  का उच्‍चारण।

अर्थातसन्नाटे की आवाज। इसी तरह शरीर के भीतर भी आवाज जारी है। ध्यान दें। सुनने और बंद आंखों के सामने छाए अंधेरे को देखने का प्रयास करें। इसे कहते हैं निराकार ध्यान।आकार ध्यान-आकार ध्यान में प्रकृति और हरे-भरे वृक्षों की कल्पना की जाती है। यह भी कल्पना कर सकते हैं कि किसी पहाड़ की चोटी पर बैठे हैं और मस्त हवा चल रही है। यह भी कल्पना कर सकते हैं कि आपका ईष्टदेव आपके सामने खड़ा हैं। ‘कल्पना ध्‍यान’ को इसलिए करते हैं ताकि शुरुआत में हममन को इधर उधर भटकाने से रोक पाएं।
*होशपूर्वक जीना:*

क्या सच में ही आप ध्यान में जी रहे हैं? ध्यान में जीना सबसे मुश्किल कार्य है। व्यक्ति कुछ क्षण के लिए ही होश में रहता है और फिर पुन: यंत्रवत जीने लगता है। इस यंत्रवत जीवन को जीना छोड़ देना ही ध्यान है।जैसे की आप गाड़ी चला रहे हैं, लेकिन क्या आपको इसका पूरा पूरा ध्यान है कि ‘आप’ गाड़ी चला रहे हैं। आपका हाथ कहां हैं, पैर कहां है और आप देख कहां रहे हैं। फिर जो देख रहे हैं पूर्णत: होशपूर्वक है कि आप देख रहे हैं वह भी इस धरती पर। कभी आपने गूगल अर्थ का इस्तेमाल किया होगा। उसे आप झूम इन और झूम ऑउट करके देखें। बस उसी तरह अपनी स्थिति जानें। कोई है जो बहुत ऊपर से आपको देख रहा है। शायद आप ही हों।
कमलेश पटेल।

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मैं दोपहर को बरामदे में बैठा था कि तभी एक


मैं दोपहर को बरामदे में बैठा था कि तभी एक अलसेशियन नस्ल का हष्ट पुष्ट लेकिन बेहद थका थका सा कुत्ता कम्पाउंड में दाखिल हुआ. उसके गले में पट्टा भी था. मैंने सोचा जरूर किसी अच्छे घर का पालतू कुत्ता है. मैंने उसे पुचकारा तो वह पास आ गया. मैंने उस पर प्यार से हाँथ फिराया तो वो पूँछ हिलाता वहीं बैठ गया.

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बाद में मैं जब उठकर अंदर गया तो वह कुत्ता भी मेरे पीछे पीछे हॉल में चला आया और खिड़की के पास अपने पैर फैलाकर बैठा और मेरे देखते देखते सो गया.

मैंने भी हॉल का दरवाज़ा बंद किया और सोफे पर आ बैठा. करीब एक घंटे सोने के बाद कुत्ता उठा और दरवाजे की तरफ गया तो उठकर मैंने दरवाज़ा खोल दिया. वो बाहर निकला और चला गया.

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अगले दिन उसी समय वो फिर आ गया. खिड़की के नीचे एक घंटा सोया और फिर चला गया.

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उसके बाद वो रोज आने लगा. आता, सोता और फिर चला जाता.

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मेरे मन में उत्सुकता दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही थी कि इतना शरीफ, समझदार, व्यवहार कुशल कुत्ता आखिर है किसका और कहाँ से आता है?

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एक रोज मैंने उसके पट्टे में एक चिठ्ठी बाँध दी. जिसमें लिख दिया : आपका कुत्ता रोज मेरे घर आकर सोता है. ये आपको मालूम है क्या?

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अगले दिन जब वो प्यारा सा कुत्ता आया तो मैंने देखा कि उसके पट्टे में एक चिठ्ठी बँधी हुई है. उसे निकालकर मैंने पढ़ा.

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उसमे लिखा था : ये एक अच्छे घर का कुत्ता है, मेरे साथ ही रहता है लेकिन मेरी बीवी की दिन-रात की किटकिट, पिटपिट, चिकचिक, बड़बड़ के कारण वो सो नहीं पाता और रोज हमारे घर से कहीं चला जाता है.

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अगर आप इजाजत दे दें तो मैं भी उसके साथ आ सकता हूँ क्या …??