Posted in श्रीमद्‍भगवद्‍गीता

उद्धव-गीता


*”उद्धव-गीता”*
उद्धव बचपन से ही सारथी के रूप में श्रीकृष्ण की सेवा में रहे, किन्तु उन्होंने श्री कृष्ण से कभी न तो कोई इच्छा जताई और न ही कोई वरदान माँगा।

जब कृष्ण अपने *अवतार काल* को पूर्ण कर *गौलोक* जाने को तत्पर हुए, तब उन्होंने उद्धव को अपने पास बुलाया और कहा-

“प्रिय उद्धव मेरे इस ‘अवतार काल’ में अनेक लोगों ने मुझसे वरदान प्राप्त किए, किन्तु तुमने कभी कुछ नहीं माँगा! अब कुछ माँगो, मैं तुम्हें देना चाहता हूँ।

तुम्हारा भला करके, मुझे भी संतुष्टि होगी।

उद्धव ने इसके बाद भी स्वयं के लिए कुछ नहीं माँगा। वे तो केवल उन शंकाओं का समाधान चाहते थे जो उनके मन में कृष्ण की शिक्षाओं, और उनके कृतित्व को, देखकर उठ रही थीं।

उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा-

“भगवन महाभारत के घटनाक्रम में अनेक बातें मैं नहीं समझ पाया!

आपके ‘उपदेश’ अलग रहे, जबकि ‘व्यक्तिगत जीवन’ कुछ अलग तरह का दिखता रहा!

क्या आप मुझे इसका कारण समझाकर मेरी ज्ञान पिपासा को शांत करेंगे?”
श्री कृष्ण बोले-

“उद्धव मैंने कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में अर्जुन से जो कुछ कहा, वह *”भगवद्गीता”* थी।

आज जो कुछ तुम जानना चाहते हो और उसका मैं जो तुम्हें उत्तर दूँगा, वह *”उद्धव-गीता”* के रूप में जानी जाएगी।

इसी कारण मैंने तुम्हें यह अवसर दिया है।

तुम बेझिझक पूछो।

उद्धव ने पूछना शुरू किया-
“हे कृष्ण, सबसे पहले मुझे यह बताओ कि सच्चा मित्र कौन होता है?”

कृष्ण ने कहा- “सच्चा मित्र वह है जो जरूरत पड़ने पर मित्र की बिना माँगे, मदद करे।”

उद्धव-

“कृष्ण, आप पांडवों के आत्मीय प्रिय मित्र थे। आपाद बांधव के रूप में उन्होंने सदा आप पर पूरा भरोसा किया।

कृष्ण, आप महान ज्ञानी हैं। आप भूत, वर्तमान व भविष्य के ज्ञाता हैं।

किन्तु आपने सच्चे मित्र की जो परिभाषा दी है, क्या आपको नहीं लगता कि आपने उस परिभाषा के अनुसार कार्य नहीं किया?

आपने धर्मराज युधिष्ठिर को द्यूत (जुआ) खेलने से रोका क्यों नहीं?

चलो ठीक है कि आपने उन्हें नहीं रोका, लेकिन आपने भाग्य को भी धर्मराज के पक्ष में भी नहीं मोड़ा!

आप चाहते तो युधिष्ठिर जीत सकते थे!

आप कम से कम उन्हें धन, राज्य और यहाँ तक कि खुद को हारने के बाद तो रोक सकते थे!

उसके बाद जब उन्होंने अपने भाईयों को दाँव पर लगाना शुरू किया, तब तो आप सभाकक्ष में पहुँच सकते थे! आपने वह भी नहीं किया? उसके बाद जब दुर्योधन ने पांडवों को सदैव अच्छी किस्मत वाला बताते हुए द्रौपदी को दाँव पर लगाने को प्रेरित किया, और जीतने पर हारा हुआ सब कुछ वापस कर देने का लालच दिया, कम से कम तब तो आप हस्तक्षेप कर ही सकते थे!

अपनी दिव्य शक्ति के द्वारा आप पांसे धर्मराज के अनुकूल कर सकते थे!

इसके स्थान पर आपने तब हस्तक्षेप किया, जब द्रौपदी लगभग अपना शील खो रही थी, तब आपने उसे वस्त्र देकर द्रौपदी के शील को बचाने का दावा किया!

लेकिन आप यह यह दावा भी कैसे कर सकते हैं?

उसे एक आदमी घसीटकर हॉल में लाता है, और इतने सारे लोगों के सामने निर्वस्त्र करने के लिए छोड़ देता है!

एक महिला का शील क्या बचा? आपने क्या बचाया?

अगर आपने संकट के समय में अपनों की मदद नहीं की तो आपको आपाद-बांधव कैसे कहा जा सकता है?

बताईए, आपने संकट के समय में मदद नहीं की तो क्या फायदा?

क्या यही धर्म है?”

इन प्रश्नों को पूछते-पूछते उद्धव का गला रुँध गया और उनकी आँखों से आँसू बहने लगे।

ये अकेले उद्धव के प्रश्न नहीं हैं। महाभारत पढ़ते समय हर एक के मनोमस्तिष्क में ये सवाल उठते हैं!

उद्धव ने हम लोगों की ओर से ही श्रीकृष्ण से उक्त प्रश्न किए।

भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुए बोले-

“प्रिय उद्धव, यह सृष्टि का नियम है कि विवेकवान ही जीतता है।

उस समय दुर्योधन के पास विवेक था, धर्मराज के पास नहीं।

यही कारण रहा कि धर्मराज पराजित हुए।”
उद्धव को हैरान परेशान देखकर कृष्ण आगे बोले- “दुर्योधन के पास जुआ खेलने के लिए पैसाऔर धन तो बहुत था, लेकिन उसे पासों का खेल खेलना नहीं आता था, इसलिए उसने अपने मामा शकुनि का द्यूतक्रीड़ा के लिए उपयोग किया। यही विवेक है। धर्मराज भी इसी प्रकार सोच सकते थे और अपने चचेरे भाई से पेशकश कर सकते थे कि उनकी तरफ से मैं खेलूँगा।

जरा विचार करो कि अगर शकुनी और मैं खेलते तो कौन जीतता?

पाँसे के अंक उसके अनुसार आते या मेरे अनुसार?

चलो इस बात को जाने दो। उन्होंने मुझे खेल में शामिल नहीं किया, इस बात के लिए उन्हें माफ़ किया जा सकता है। लेकिन उन्होंने विवेक-शून्यता से एक और बड़ी गलती की!

और वह यह-

उन्होंने मुझसे प्रार्थना की कि मैं तब तक सभा-कक्ष में न आऊँ, जब तक कि मुझे बुलाया न जाए!

क्योंकि वे अपने दुर्भाग्य से खेल मुझसे छुपकर खेलना चाहते थे।

वे नहीं चाहते थे, मुझे मालूम पड़े कि वे जुआ खेल रहे हैं!

इस प्रकार उन्होंने मुझे अपनी प्रार्थना से बाँध दिया! मुझे सभा-कक्ष में आने की अनुमति नहीं थी!

इसके बाद भी मैं कक्ष के बाहर इंतज़ार कर रहा था कि कब कोई मुझे बुलाता है! भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव सब मुझे भूल गए! बस अपने भाग्य और दुर्योधन को कोसते रहे!

अपने भाई के आदेश पर जब दुस्साशन द्रौपदी को बाल पकड़कर घसीटता हुआ सभा-कक्ष में लाया, द्रौपदी अपनी सामर्थ्य के अनुसार जूझती रही!

तब भी उसने मुझे नहीं पुकारा!

उसकी बुद्धि तब जागृत हुई, जब दुस्साशन ने उसे निर्वस्त्र करना प्रारंभ किया!

जब उसने स्वयं पर निर्भरता छोड़कर-

*’हरि, हरि, अभयम कृष्णा, अभयम’*-

की गुहार लगाई, तब मुझे उसके शील की रक्षा का अवसर मिला।

जैसे ही मुझे पुकारा गया, मैं अविलम्ब पहुँच गया।

अब इस स्थिति में मेरी गलती बताओ?”

उद्धव बोले-

“कान्हा आपका स्पष्टीकरण प्रभावशाली अवश्य है, किन्तु मुझे पूर्ण संतुष्टि नहीं हुई!

क्या मैं एक और प्रश्न पूछ सकता हूँ?”

कृष्ण की अनुमति से उद्धव ने पूछा-

“इसका अर्थ यह हुआ कि आप तभी आओगे, जब आपको बुलाया जाएगा? क्या संकट से घिरे अपने भक्त की मदद करने आप स्वतः नहीं आओगे?”

कृष्ण मुस्कुराए-

“उद्धव इस सृष्टि में हरेक का जीवन उसके स्वयं के कर्मफल के आधार पर संचालित होता है।

न तो मैं इसे चलाता हूँ, और न ही इसमें कोई हस्तक्षेप करता हूँ।

मैं केवल एक ‘साक्षी’ हूँ।

मैं सदैव तुम्हारे नजदीक रहकर जो हो रहा है उसे देखता हूँ।

यही ईश्वर का धर्म है।”
“वाह-वाह, बहुत अच्छा कृष्ण!

तो इसका अर्थ यह हुआ कि आप हमारे नजदीक खड़े रहकर हमारे सभी दुष्कर्मों का निरीक्षण करते रहेंगे?

हम पाप पर पाप करते रहेंगे, और आप हमें साक्षी बनकर देखते रहेंगे?

आप क्या चाहते हैं कि हम भूल करते रहें? पाप की गठरी बाँधते रहें और उसका फल भुगतते रहें?”

उलाहना देते हुए उद्धव ने पूछा!
तब कृष्ण बोले-

“उद्धव, तुम शब्दों के गहरे अर्थ को समझो।

जब तुम समझकर अनुभव कर लोगे कि मैं तुम्हारे नजदीक साक्षी के रूप में हर पल हूँ, तो क्या तुम कुछ भी गलत या बुरा कर सकोगे?

तुम निश्चित रूप से कुछ भी बुरा नहीं कर सकोगे।

जब तुम यह भूल जाते हो और यह समझने लगते हो कि मुझसे छुपकर कुछ भी कर सकते हो, तब ही तुम मुसीबत में फँसते हो! धर्मराज का अज्ञान यह था कि उसने माना कि वह मेरी जानकारी के बिना जुआ खेल सकता है!

अगर उसने यह समझ लिया होता कि मैं प्रत्येक के साथ हर समय साक्षी रूप में उपस्थित हूँ तो क्या खेल का रूप कुछ और नहीं होता?”
भक्ति से अभिभूत उद्धव मंत्रमुग्ध हो गये और बोले-

प्रभु कितना गहरा दर्शन है। कितना महान सत्य। ‘प्रार्थना’ और ‘पूजा-पाठ’ से, ईश्वर को अपनी मदद के लिए बुलाना तो महज हमारी ‘पर-भावना’ है।  मग़र जैसे ही हम यह विश्वास करना शुरू करते हैं कि ‘ईश्वर’ के बिना पत्ता भी नहीं हिलता! तब हमें साक्षी के रूप में उनकी उपस्थिति महसूस होने लगती है।

गड़बड़ तब होती है, जब हम इसे भूलकर दुनियादारी में डूब जाते हैं।

सम्पूर्ण श्रीमद् भागवद् गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इसी जीवन-दर्शन का ज्ञान दिया है।

सारथी का अर्थ है- मार्गदर्शक।

अर्जुन के लिए सारथी बने श्रीकृष्ण वस्तुतः उसके मार्गदर्शक थे।

वह स्वयं की सामर्थ्य से युद्ध नहीं कर पा रहा था, लेकिन जैसे ही अर्जुन को परम साक्षी के रूप में भगवान कृष्ण का एहसास हुआ, वह ईश्वर की चेतना में विलय हो गया!

यह अनुभूति थी, शुद्ध, पवित्र, प्रेममय, आनंदित सुप्रीम चेतना की!

तत-त्वम-असि!

अर्थात…

वह तुम ही हो।।

🙏🔔🙏

Please please इसे ज़रूर पढ़ें।। धर्म की मानसिकता से अलग करके पढें।। जिंदगी की बहुत बड़ी सीख है इसमें।।

Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

आयुर्वेदिक दोहे


۞ ∥ आयुर्वेदिक दोहे ∥ ۞
*Happy birthday to you*
*Vaibhav srivastava*

*Rlb lko*
१Ⓜदही मथें माखन मिले, केसर संग मिलाय,

होठों पर लेपित करें, रंग गुलाबी आय..

२Ⓜबहती यदि जो नाक हो, बहुत बुरा हो हाल,

यूकेलिप्टिस तेल लें, सूंघें डाल रुमाल..

३Ⓜअजवाइन को पीसिये , गाढ़ा लेप लगाय,

चर्म रोग सब दूर हो, तन कंचन बन जाय..

४Ⓜअजवाइन को पीस लें , नीबू संग मिलाय,

फोड़ा-फुंसी दूर हों, सभी बला टल जाय..

५Ⓜअजवाइन-गुड़ खाइए, तभी बने कुछ काम,

पित्त रोग में लाभ हो, पायेंगे आराम..

६Ⓜठण्ड लगे जब आपको, सर्दी से बेहाल,

नीबू मधु के साथ में, अदरक पियें उबाल..

७Ⓜअदरक का रस लीजिए. मधु लेवें समभाग,

नियमित सेवन जब करें, सर्दी जाए भाग..

८Ⓜरोटी मक्के की भली, खा लें यदि भरपूर,

बेहतर लीवर आपका, टी.बी भी हो दूर..

९Ⓜगाजर रस संग आँवला, बीस औ चालिस ग्राम,

रक्तचाप हिरदय सही, पायें सब आराम..

१०Ⓜशहद आंवला जूस हो, मिश्री सब दस ग्राम,

बीस ग्राम घी साथ में, यौवन स्थिर काम..

११Ⓜचिंतित होता क्यों भला, देख बुढ़ापा रोय,

चौलाई पालक भली, यौवन स्थिर होय..

१२Ⓜलाल टमाटर लीजिए, खीरा सहित सनेह,

जूस करेला साथ हो, दूर रहे मधुमेह..

१३Ⓜप्रातः संध्या पीजिए, खाली पेट सनेह,

जामुन-गुठली पीसिये, नहीं रहे मधुमेह..

१४Ⓜसात पत्र लें नीम के, खाली पेट चबाय, दूर करे मधुमेह को, सब कुछ मन को भाय..

१५Ⓜसात फूल ले लीजिए, सुन्दर सदाबहार,

दूर करे मधुमेह को, जीवन में हो प्यार..

१६Ⓜतुलसीदल दस लीजिए, उठकर प्रातःकाल,

सेहत सुधरे आपकी, तन-मन मालामाल..

१७Ⓜथोड़ा सा गुड़ लीजिए, दूर रहें सब रोग,

अधिक कभी मत खाइए, चाहे मोहनभोग..

१८Ⓜअजवाइन और हींग लें, लहसुन तेल पकाय,

मालिश जोड़ों की करें, दर्द दूर हो जाय..

१९Ⓜऐलोवेरा-आँवला, करे खून में वृद्धि,

उदर व्याधियाँ दूर हों,जीवन में हो सिद्धि..

२०Ⓜदस्त अगर आने लगें, चिंतित दीखे माथ,

दालचीनि का पाउडर, लें पानी के साथ..

२१Ⓜमुँह में बदबू हो अगर, दालचीनि मुख डाल,

बने सुगन्धित मुख, महक, दूर होय तत्काल..

२२Ⓜकंचन काया को कभी, पित्त अगर दे कष्ट,

घृतकुमारि संग आँवला, करे उसे भी नष्ट..

२३Ⓜबीस मिली रस आँवला, पांच ग्राम मधु संग,

सुबह शाम में चाटिये, बढ़े ज्योति सब दंग..

२४Ⓜबीस मिली रस आँवला, हल्दी हो एक ग्राम,

सर्दी कफ तकलीफ में, फ़ौरन हो आराम..

२५Ⓜनीबू बेसन जल शहद, मिश्रित लेप लगाय,

चेहरा सुन्दर तब बने, बेहतर यही उपाय..

२६.Ⓜमधु का सेवन जो करे, सुख पावेगा सोय,

कंठ सुरीला साथ में, वाणी मधुरिम होय..

२७.Ⓜपीता थोड़ी छाछ जो, भोजन करके रोज,

नहीं जरूरत वैद्य की, चेहरे पर हो ओज..

२८Ⓜठण्ड अगर लग जाय जो नहीं बने कुछ काम, नियमित पी लें गुनगुना, पानी दे आराम..

२९Ⓜकफ से पीड़ित हो अगर, खाँसी बहुत सताय,

अजवाइन की भाप लें, कफ तब बाहर आय..

३०Ⓜअजवाइन लें छाछ संग, मात्रा पाँच गिराम, कीट पेट के नष्ट हों, जल्दी हो आराम..

३१Ⓜछाछ हींग सेंधा नमक, दूर करे सब रोग,

जीरा उसमें डालकर, पियें सदा यह भोग..।
☝कृपया इस मैसेज को अपने परीजनो और अपने मित्र गण से अवगत कराए.

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एक बहुत बड़ा सरोवर था। उसके तट पर मोर रहता था


एक बहुत बड़ा सरोवर था। उसके तट पर मोर

रहता था, और वहीं पास एक

मोरनी भी रहती थी। एक दिन मोर

ने मोरनी से प्रस्ताव रखा कि- “हम

तुम विवाह कर लें,

तो कैसा अच्छा रहे?”

मोरनी ने पूछा- “तुम्हारे मित्र

कितने है ?”

मोर ने कहा उसका कोई मित्र

नहीं है।

तो मोरनी ने विवाह से इनकार कर

दिया।

मोर सोचने लगा सुखपूर्वक रहने के

लिए मित्र बनाना भी आवश्यक है।

उसने एक सिंह से.., एक कछुए से.., और

सिंह के लिए शिकार का पता लगाने

वाली टिटहरी से.., दोस्ती कर लीं।

जब उसने यह समाचार

मोरनी को सुनाया, तो वह तुरंत

विवाह के लिए तैयार हो गई। पेड़ पर

घोंसला बनाया और उसमें अंडे दिए, और

भी कितने ही पक्षी उस पेड़ पर रहते

थे।

एक दिन शिकारी आए। दिन भर

कहीं शिकार न मिला तो वे उसी पेड़

की छाया में ठहर गए और सोचने लगे,

पेड़ पर चढ़कर अंडे- बच्चों से भूख बुझाई

जाए।

मोर दंपत्ति को भारी चिंता हुई,

मोर मित्रों के पास सहायता के लिए

दौड़ा। बस फिर क्या था..,

टिटहरी ने जोर- जोर से

चिल्लाना शुरू किया। सिंह समझ गया,

कोई शिकार है। वह उसी पेड़ के नीचे

चला.., जहाँ शिकारी बैठे थे। इतने में

कछुआ भी पानी से निकलकर बाहर आ

गया।

सिंह से डरकर भागते हुए

शिकारियों ने कछुए को ले चलने

की बात सोची। जैसे ही हाथ

बढ़ाया, कछुआ पानी में खिसक गया।

शिकारियों के पैर दलदल में फँस गए।

इतने में सिंह आ पहुँचा और उन्हें ठिकाने

लगा दिया।

मोरनी ने कहा- “मैंने विवाह से पूर्व

मित्रों की संख्या पूछी थी, सो बात

काम की निकली न, यदि मित्र न

होते, तो आज हम सबकी खैर न थी।”

मित्रता सभी रिश्तों में

अनोखा और आदर्श रिश्ता होता है और मित्र

किसी भी व्यक्ति की अनमोल

पूँजी होते हैं।
अगर गिलास दूध से भरा हुआ है तो आप उसमें और दूध नहीं डाल

सकते । लेकिन आप उसमे शक्कर डालें । शक्कर अपनी जगह

बना लेती है और अपना होने का अहसास दिलाती है उसी प्रकार

अच्छे लोग हर किसी के दिल में अपनी जगह बना लेते हैं….

अपने प्रिय दोस्तों को फॉरवर्ड करो। मैंने तो कर दिया……🌹👌

Posted in मंत्र और स्तोत्र

રુદ્રી


*રુદ્રી*

રુદ્રીના આઠ અઘ્યાય હોવાથી અષ્ટાઘ્યાયી કહેવાય છે તથા જેમાં ભગવાન રુદ્ર એટલે કે શિવનું વર્ણન હોવાથી ‘રુદ્રી’ કહેવાય છે. આ આઠ અઘ્યાયોમાં પ્રથમ અઘ્યાયને ‘શિવસંકલ્પ સૂકત’ના નામે ઓળખવામાં આવે છે. આ અઘ્યાયમાં આવતા છ મંત્રોમાં આપણા મનનું સૂક્ષ્મ વર્ણન છે. શાસ્ત્ર અનુસાર બ્રહ્માએ પહેલા માનવીના મનની રચના કરી ત્યાર બાદ માનવ શરીરની રચના કરી છે.

*પ્રથમ અઘ્યાય*
પ્રથમ અઘ્યાયમાં ઋષિઓ શિવને પ્રાર્થના કરે છે. હે શિવ! અમારું આ ચંચળ મન અનેક પ્રકારના તર્ક-વિતર્ક અને વિચારો કરે છે. તમારી પૂજામાં સ્થિર બનતું નથી. આપ અમારા આ મર્કટ જેવા મનને સ્થિર કરો, પવિત્ર વિચારોવાળું બનાવો. દરેક મંત્રના અંતમાં આવે છે ‘તન્મે મન: શિવસંકલ્પમસ્તુ’ હે શિવ! અમારું મન ઉદાર અને પવિત્ર બનો.

*દ્વિતીય અઘ્યાય*
અષ્ટાઘ્યાયી રુદ્રીના બીજા અઘ્યાયને આપણે ‘પુરુષસૂકત’ના નામે જાણીએ છીએ. આ પુરુષસૂકત ભારત વર્ષના દરેક પંડિતો બોલે છે. તેના દિવ્ય મંત્રોથી દેવોની ષોડશોપચાર પૂજા થાય છે. આ પુરુષસૂકતના ૧૬ મંત્રોમાં પરમાત્માના વ્યાપક સ્વરૂપનું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે. ભગવદ્ ગીતામાં જેમ ભગવાનના વિરાટ સ્વરૂપનું વર્ણન આવે છે તે જ રીતે આ બીજા અઘ્યાયમાં ભગવાનના વિરાટ સ્વરૂપનું વર્ણન છે. હે પ્રભુ! આપ ચૌદ બ્રહ્માંડને માપી લીધા પછી પણ આપ એક મુઠ્ઠી જેટલા વધો છો.

*તૃતીય અઘ્યાય*
રુદ્રીના ત્રીજા અઘ્યાયને ‘અપ્રતિરથસૂકત’ કહેવામાં આવે છે. અપ્રતિરથનો અર્થ છે, જેના રથને કોઇ અટકાવી શકતું નથી. સૂર્યના રથને કોણ અટકાવી શકે? આ અઘ્યાયમાં દેવોના રાજા ઇન્દ્રને લગતા મંત્રો છે. હે ઇન્દ્ર! અમે આપના જેવા બળવાન તથા ચપળ બનીએ. અમારામાં નીડરતા અને ચપળતા આવે.

*ચતુર્થ અઘ્યાય*
અષ્ટાઘ્યાયી રુદ્રીના ચોથા અઘ્યાયને ‘મૈત્રસૂકત’ કહેવામાં આવે છે. સૂર્યનું એક નામ મિત્ર છે. સૂર્યની કૃપાથી જ ભૌતિક ક્રિયાઓ થાય છે. વરસાદ, ધન, ધાન્ય, વનસ્પતિ આ બધું સૂર્યકૃપાથી જ આપણને મળે છે. નવ ગ્રહો તથા આપણી પૃથ્વીને પણ સૂર્યમાંથી બળ પ્રાપ્ત થાય છે. સૂર્યનારાયણની ઉપાસનાથી આત્મબળ તથા જ્ઞાન પ્રાપ્ત થાય છે.

*પંચમ અઘ્યાય*
અષ્ટાઘ્યાયી રુદ્રીના પાંચમા અઘ્યાયને ‘રુદ્ર’ કહેવામાં આવે છે કારણ કે આ અઘ્યાયમાં કેવળ શિવજીનું વર્ણન આવે છે. આ અઘ્યાયને ‘શતરુદ્રીયમ્’ પણ કહેવામાં આવે છે, કારણ કે આ અઘ્યાયમાં શિવજીનાં સો સ્વરૂપોનું વર્ણન આવે છે. ‘નમ:સભાભ્ય:’ દેવોની સભામાં સભાપતિ બનીને બેઠેલા, પાર્વતી સાથે બેઠેલા, સ્મશાનમાં બેઠેલા, જટાવાળા, જટા વગરના, ઉપદેશ આપતા, કવચ ધારણ કરીને બેઠેલા, આનંદમાં આવીને દુંદુભી વગાડી રહેલા, પારધીના રૂપમાં, ભીલના રૂપમાં, હિંસક પ્રાણીઓના રૂપમાં ભ્રમણ કરતા શિવ. આવાં સો સ્વરૂપોનું વર્ણન આવે છે, માટે પાંચમા અઘ્યાયને ‘શતરુદ્રીયમ્’ કહેવામાં આવે છે. આ અઘ્યાયમાં ૬૬ મંત્રો આવે છે. શિવજીના યજ્ઞમાં બીજા અઘ્યાય માત્ર એક વાર બોલવામાં આવે છે, જયારે પાંચમો અઘ્યાય વારંવાર બોલવામાં આવે છે. આ અઘ્યાય ૧૧ વખત બોલવાથી ૧ રુદ્રી ગણાય છે. ૧૨૧ વાર બોલવાથી ૧ લઘુરુદ્ર થયો કહેવાય તથા ૧૩૩૧ વાર બોલવાથી ૧ મહારુદ્ર ગણાય છે. શિવજીને સંહારના દેવ માનવામાં આવે છે. માણસના મરણ સમયે કફ-તાવ-પિત્તનો હુમલો થાય છે, જીવ ગભરાય છે ત્યારે શિવજી તેને આ પીડામાંથી મુકત કરે છે. હે પ્રભુ! અમને તમારા સંહારરૂપ બાણોથી બચાવો. અમને મૃત્યુના મૂળમાંથી મુકત કરીને અમૃતના માર્ગે, મોક્ષના માર્ગે લઇ જાઓ.

*ષષ્ઠો અઘ્યાય*
છઠ્ઠા અઘ્યાયમાં ઉગ્ર અને મૃત્યુના પાશમાંથી છોડાવનારા, મુકત કરનારા શિવજીનું વર્ણન છે. આ અઘ્યાયમાં ભગવાન શિવને ઉત્તમ વૈધ કહેવામાં આવ્યા છે. આ અઘ્યાયનું વારંવાર પઠન કરવાથી, શ્રવણ કરવાથી મનુષ્યને અસાઘ્ય રોગમાંથી પણ મુકિત મળે છે, મનોકામના પરિપૂર્ણ થાય છે. શિવજી તેના માટે કોમળ બને છે.

*સપ્તમ અઘ્યાય*
રુદ્રીના સાતમા અઘ્યાયને પંડિતો નમક-ચમક કહે છે. પંડિતો પરસ્પર વાતો કરે, ચાલો ભાઈ નમક ભણો નમક એટલે મીઠું ન સમજતા અને ચમક એટલે ચમક ચૂનો ન સમજતા. નમક ચમક એટલે જે અઘ્યાયમાં વારંવાર ચમે ચમે આવે છે તથા નમ: નમ: આવે છે માટે નમક ચમક કહેવાય છે. આ અઘ્યાયના મંત્રોમાં ભકત શિવજી પાસે અનેક પ્રકારની વસ્તુઓની માગણી કરે છે. જેમ કે વ્રીહયશ્ચમે જવાશ્ચમે હે શિવ! અમને ઘઉં, ડાંગર, મગ, ચણા જેવા દરેક પ્રકારનાં ધાન્ય મળો, શ્યામંશ્ચમે અમને સોનું, પિત્તળ, લોઢું, પથ્થર પ્રાપ્ત થાઓ. અમને અભયની પ્રાપ્તિ થાય, સુંદર મિત્રો તથા ઉત્તમ સંતાનોની પ્રાપ્તિ થાય, પરંતુ આ બધું અમને તારી કૃપાથી તથા યજ્ઞથી પ્રાપ્ત થાય. મિત્રો કેવી ઉત્તમ ભાવના. ભકત પહેલાં યજ્ઞ કરે છે ત્યાર બાદ પ્રભુ પાસે માગણી કરે છે.

*અષ્ટમ અઘ્યાય*
આઠમા અઘ્યાયને શાંતિ અઘ્યાય કહેવામાં આવે છે. આ અઘ્યાયમાં ઇન્દ્ર, વરુણ, વાયુ, બૃહસ્પતિ, નારાયણ, અગ્નિ આવા અનેક દેવોની પ્રાર્થના છે. શંનો મિત્ર: હે સૂર્ય અમારું કલ્યાણ કરો, શં વરુણ: હે વરુણ અમારું કલ્યાણ કરો, શંનો બૃહસ્પતિ: હે દેવગુરુ બૃહસ્પતિ અમારું કલ્યાણ કરો, શંનો વિષ્ણુરુરુ ક્રમ: હે ત્રણ ડગલાં ભરનાર નારાયણ અમારું કલ્યાણ કરો. આવો આપણે પણ આ બધા દેવોને હૃદયપૂર્વક પ્રાર્થના કરીએ તથા કલ્યાણની, શાંતિની માગણી કરીએ.

*ઉપસંહાર*
આ અઘ્યાયમાં શિવનાં નામોનો ઉલ્લેખ છે. પંચમુખ શિવને અલગ અલગ મંત્રો બોલીને નમસ્કાર કરવામાં આવ્યા છે. શિવની મહાપૂજામાં શિવના પંચમુખની પૂજા થાય છે ત્યારે આ દિવ્ય મંત્રોનું પઠન કર્યા બાદ આરતી થાય છે.
શાસ્ત્રી સંદીપ પંડયા ગોઝારીયાવાળા

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तथ्य जो सिद्ध करते हैं साई बाबा मुसलमान थे


तथ्य जो सिद्ध करते हैं साई बाबा मुसलमान थे

१ :: मौला साई का सेवक अब्दुल बाबा जो लगभग तीस साल तक बाबा के साथ मस्जिद मे ही रहा रोज बाबा को क़ुरान सुनाता था . वो रोज रामायण या गीता नही सुनते थे .

२ :: महाराष्ट्र मे शिर्डी साई मंदिर मे गाई जाने वाली आरती का अंश
मंदा त्वांची उदरिले! मोमीन वंशी जन्मुनी लोँका तारिले!” उपरोक्त
.फिर उसे समाधी मे बदल दिया गया .चांद मियां को जानबूझकर हिन्दु न साबित किया जाए।पिछले पचास साल से पैसा स्पष्ट आया है .

( ९५ साल से मोमीन वंशी गा रहे हैं फिर भी मौला को ब्राहमाण बता रहे हैं )

३ :: मौला साई ने अपनी मृत्यु के कुछ दिन पहले औरंगाबाद के मुस्लिम
फ़क़ीर शमशूद्दीन मियाँ को दो सौ पचास रुपये भिजवाया ताकि उनका मुस्लिम रीति रिवाज़ से अंतिम संस्कार कर दिया जाए तथा सूचना भिजवाई की वो अल्लाह के पास जाने वाले हैं .( ये एक तरह से मृत्यु पूर्व बयान जैसा है
जिसे कोर्ट भी सच मानती है अगर बाबा हिंदू होते तो तेरहवी करवाते
गंगाजली करवाते .)

४ :: मौला साई जब तक जीवित रहे शिरडी मे सूफ़ी फ़क़ीर के नाम से ही जाने जाते थे .

५ :: मौला साई की मृत्यु के बाद उनकी मज़ार बनाई गई थी जो 1954 तक थी
.फिर उसे समाधी मे बदल दिया गया .चांद मियां को जानबूझकर हिन्दु न साबित किया जाए।पिछले पचास साल से पैसा माने के लिए जैसा अधर्म शिरडी ट्रस्ट ने किया वैसा इतिहास में कभी नहीं हुआ। श्री राम के नाम से सीता माता को हटा दिया .

शिर्डी साई संस्थान के झूठ —

जिस मौला साई के जन्म तिथि का कोई अता पता नही उनकी कपट पूर्वक राम नवमीके दिन जयंती मनाई जा रही है .

मौला साई हमेशा अल्लाह मलिक पुकारते थे जबकि “”सबका मलिक एक”” नानक जी कहते थे .

जो मौला साईं जीवन भर मस्जिद में रहे उसे मंदिर में बैठा दिया गया .जो मौला साईं व्रत उपवास के विरोधी थे उनके नाम से साईं व्रत कथा छप रही हैं

जो मौला साईं हमेशा अल्लाह मालिक बोलते थे उनके साथ ओम और राम को जोड़ दिया

जो मौला साईं रोज कुरान पड़ते थे उनके मंत्र बनाये जा रहे हैं पुराण लिखी
जा रही है .

जो मौला साईं मांसाहारी थे उन्हें हिन्दू अवतार बनाया जा रहा है

जिस मौला साईं ने गंगा जल छूने से इंकार कर दिया उसके नाम से यज्ञ किये
जा रहे हैं गंगा जल से अभिषेक किया जा रहा है जो खुद निगुरा था उसे
सदगुरु बनाया जा रहा है।

जो मौला साई खुद अनपढ़ थे उनके नाम से गीता छापी जा रही है

मरणधर्मा व्यक्ति के मंदिर बनाना हिंदू धर्म मे पाप है .

इस देश मे हज़ारों संत हुए किंतु किसी की भी मंदिर नही हैं व्यास जैसे ऋषि जिन्होने गीता भाष्य लिखी, अगस्त्य ,विश्वामित्र, कपिल मुनि ,नारद,
दत्तात्रेय, भृिगु, पाराशर,सनक ,सनन्दन सनतकुमार ,शौनक ,वशिष्ट ,वामदेव
,बाल्मीक ,तुलसीदास , गोरखनाथ ,तुकाराम, नामदेव, मीरा, एकनाथ ,मुक्ताबाई,, नरहरी, नामदेव ,सोपान,संत रविदास , चैतन्य महाप्रभु ,आदि आदि कितने ही संत हुए किंतु किसी के भी जगह जगह मंदिर नहीं हैं .

हर हिन्दू से अनुरोध है कि हिन्दू धर्म की शुद्धि और पवित्रता
के लिए इसे अधिक से अधिक शेयर करें।

जागो हिंदू जागो !! जागो हिंदू जागो !! जागो हिंदू जागो !! जागो
हिंदू जागो !! जागो हिंदू जागो !!

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

એક વડીલની સાથે હું બેઠો હતો…


એક વડીલની સાથે હું બેઠો હતો…
અચાનક મોબાઈલમાં જોતા જોતા હસી પડ્યા..રોજની અવર-જવર સાથે હોવાને કારણે મિત્ર જેવા બની ગયા હતા.. મે તેમની સામે જોઈ
હસવાનું કારણ પૂછયું…વડીલ થોડાં ગંભીર મુદ્રા સાથે મોબાઈલ બંધ કરીને બોલ્યા…દિલની વાત કરું છું…
આ મારો છોકરો જયારે એની માં LPG નો સિલિન્ડર ખસેડવા માટે કહેતી, ત્યારે કહેતો આટલું વજન મારા એકલાથી ના ખસેડાય.. તું મદદ કરાવ.. મારો બેટો હનીમૂન કરવા ગયો છે… તેની પત્નીને ઊંચકીને ફોટા પડાવે છે…પાછો લખે છે: “તેરે બીના ભી ક્યાં જીના” …. સાહેબ મને કહો કે- LPG ના સિલિન્ડર નું વજન વધારે કે તેની પત્નીનું,..? આ યુવાન વર્ગ લાગણી ને સમજે શુ ?
પાછો લખે છે – “તેરે બીના ભી કયા જીના?” લગ્નના 10 વર્ષ પછી લખતો હોય તો દુઃખ ના થાય…

બે મિનિટ ચૂપ થઈ.. ઊંડા શ્વાસ લઈ બોલ્યા કે તેની કારકિર્દી બનાવવા રાત દિવસ એક કર્યા… કરકસર તો એવી કરી કે અમે પતિ-પત્ની એ અમારા સપના જમીનમાં દાટી દીધા…. આટલા વખતમા એક વખત પણ તેણે તેની માંને આવા શબ્દો કીધા હોત “તેરે બીના ભી ક્યાં જીના” સાહેબ સોગંદપૂર્વક કહું છું..(વડીલ ભાવ વિભોર થઈ મારો હાથ પકડી લીધો) આખી જીંદગીનો અમારો થાક ઉતરી જાત….!!!

આ તો તમારી સાથે દિલ મળી ગયું છે એટલે વાત કરાય..
સાહેબ…મોટા છોકરા ને ભણાવીને વિદેશ મોકલ્યો.. લગ્ન કરી તેના પરિવાર સાથે ખુશ છે…પણ સાહેબ…

એકવાત નો જવાબ આપો.. ભણાવી ગણાવી કમાતો કર્યો .. તેના પગાર અને મોભાનો જશ તેમની પત્ની અને તેના સાસરિયા લે છે. તેની પ્રગતીનો જશ્ન તેઓ મનાવે છે… તે નાદાન ને ક્યાં ખબર છે કે *તારા પગાર અને લાયકાત જોઈને તારી પત્ની અને સાસરિયાએ હા પાડી છે*….

*પથ્થરમાંથી શિલ્પ માબાપ બનાવે છે…..*અને એ પથ્થર દિલના સંતાન માબાપની આંખની ભાષા પણ ના વાંચી શકે ત્યારે દુઃખ થાય… વડીલ ની આંખમાં
પોતાના સંતાન પ્રત્યે ની ફરિયાદ અને દુઃખ હતુ.. પુરુષ હોવાથી રડવાનું જ બાકી હતું…

મને સ્વસ્થ થઈ પુછયુ.. તમારે સંતાન કેટલા…મેં કીધું એક….મને કહે… સાહેબ… સંતાનો નો વાંક નથી.. તે તો આ સમાજ વ્યવસ્થામાં બરાબર ગોઠવાઈ ગયા છે… વાંક આપણો જ છે કે વધારે પડતા લાગણીશીલ અને અપેક્ષા રાખી સંતાનને મોટા કરીએ છીએ..

સાહેબ..

મારા અનુભવ ઉપરથી એક સલાહ આપું છું…

*”ફક્ત લેણ-દેણના સંબંધ સમજીને જ સંતાનને મોટા કરજો.. તો જ જિંદગી આનંદથી જશે.. …”*

Posted in Ghandhi

मोहनदास गाँधी के पोते और कांग्रेस के उपराष्ट्रपति उमीदवार गोपाल कृष्ण गाँधी ने आज नामांकन भर दिया


मोहनदास गाँधी के पोते और कांग्रेस के उपराष्ट्रपति उमीदवार गोपाल कृष्ण गाँधी ने आज नामांकन भर दिया
और नामांकन भरते हुए गाँधी के इस पोते ने कई कई झूठ एक साथ बोल दिए

बता दें की गोपाल कृष्ण गाँधी ने आतंकवादी याकूब मेमन के लिए दया याचिका राष्ट्रपति के पास लगायी थी
साथ ही साथ गोपाल कृष्ण गाँधी दुर्दांत दरिंदे औरंगजेब का भी भक्त रहा है
औरंगजेब रोड का नाम जब अब्दुल कलाम रोड किया जा रहा था तब गोपाल कृष्ण गाँधी ने उसका विरोध किया था

आज नामांकन भरते हुए गोपाल कृष्ण गाँधी ने ऐसे ऐसे झूठ बोले जिसका कोई हिसाब नहीं है

I believe death penalty belongs to the medieval ages,Its wrong. My views inspired by Mahatma Gandhi and Dr.Ambedkar: #GopalKrishnaGandhipic.twitter.com/jnIaFax4tE
— ANI (@ANI_news) July 18, 2017

गोपाल कृष्ण गाँधी ने कहा की हां मैंने याकूब मेमन के लिए दया याचिका भेजी थी क्यूंकि मैं मौत की सजा के खिलाफ हूँ, ये मैंने गाँधी और आंबेडकर से सीखा है

नोट : गाँधी मौत की सजा के खिलाफ नहीं था, क्यूंकि इरविन ने जब गाँधी से पूछा की भगत सिंह को फांसी देने से माहौल ख़राब तो नहीं होगा, तो गाँधी ने जवाब दिया की कुछ नहीं होगा दे दो फांसी

इरविन ने रिटायरमेंट के बाद लंदन में ये भी कहा था की, भगत सिंह को फांसी देने की हमसे ज्यादा जल्दी मोहनदास गाँधी को थी

नोट 2 : गाँधी का ये पोता पश्चिम बंगाल का राज्यपाल था
2004 में धनञ्जय चटर्जी नाम के शख्स को कोलकाता के जेल में फांसी दी गयी, अगर मोहनदास गाँधी का ये पोता मौत की सजा के खिलाफ है तो धनञ्जय चटर्जी के लिए क्षमा याचिका क्यों नहीं भेजी

याकूब मेमन के लिए ही भेजी
सच ये है की ये गंधिया खानदान हमेशा से ही आतंकवाद और जिहादी कट्टरपंथियों का समर्थक रहा है

Posted in खान्ग्रेस

गद्दारी एक भूतपूर्व कॉग्रेसी PM  मोरारजी देसाई की …. ?


गद्दारी एक भूतपूर्व कॉग्रेसी PM  मोरारजी देसाई की  …. ?

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.पाकिस्तान की एक सलून की दुकान में बाल कटवाने आए पाक वैज्ञानिकों पर नाई (भारत के रॉ एजेंट्स) की नज़र थी. जब वैज्ञानिक बाल कटवा के चले गए तो भारतीय एजेंट्स ने कुछ “बाल” चुराकर उनकी जांच की, जिससे पता चला कि पाकिस्तान परमाणु बम बनाने की तैयारी कर रहा है… !!

.

पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के बारे में किसी को पता नहीं था. यहाँ तक कि भारत और इजराइल की ख़ुफ़िया एजेंसियां भी इस के बारे में कुछ नहीं जानती थी. इजराइल की ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद भारत की रॉ एजेंसी के साथ मिलकर काम कर रही थी.

.

रॉ एजंट्स द्वारा जैसे ही इजराइल को बात पता चली तो इजरायल ने पूरा मन बना लिया था कि वो पाकिस्तान का परमाणु संयंत्र “बम” से उड़ा देगा. इजराइल ने भारत से गुजारिश की कि … वो उसके हवाई ज़हाज को भारत में उतरने दें और फ्यूल भरने दें .. जिसके बाद इजराइली ज़हाज पाकिस्तान में अपने मिशन को अंजाम देंगे .. !

.

लेकिन भारत के तत्कालीन PM भूतपूर्व कॉग्रेसी मोरारजी देसाई ने ऐसा करने से “साफ़ मना” कर दिया था.. इतना ही नही, मोरारजी देसाई ने ताबड़तोब पाकिस्तानी जनरल जियाउल से फोन करके ये ख़ुफ़िया जानकारी बता दी कि , “आपको क्या लगता है कि हमें पता नहीं है कि आप परमाणु बम बना रहे हैं? आपके कहूता इलाके में हमारे रॉ एजेंट के पास आपके परमाणु अभियान की जानकारी है.”

————————–

.इतनी खतरनाक गलती/गद्दारी के बाद …..

पाक में रॉ का वो एजेंट पकड़ा गया और मार दिया गया. पाकिस्तान ने ओर कई रॉ एजेंट पकड़े और मारे थे…! इतना ही नही, पाकिस्तान ने इजराइल की बमबारी से बचने के लिए अमेरिका से गुजारिश की थी और इसके साथ ही रॉ और मोसाद का बनाया हुआ प्लान चौपट हो गया था… !

संजय सागर

Posted in रामायण - Ramayan

भगवान श्री राम का वंश —


निलांबुज श्यामल कोमलांगम्

सीता समारोपित वामभागम्।

पाणौ महासायक चारुचापं

नमामि रामं रघुवंशनाथं।।
भगवान श्री राम का वंश —
ब्रह्मा  की उन्चालिसवी पीढ़ी

में श्रीराम का जन्म हुआ था !
हिंदू धर्म में राम को विष्णु का

सातवाँ अवतार माना जाता है।
वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे –

इल,इक्ष्वाकु,कुशनाम,अरिष्ट,धृष्ट,

नरिष्यन्त,करुष,महाबली,शर्याति

और पृषध।
राम का जन्म इक्ष्वाकु के कुल में

हुआ था।
(जैन धर्म के तीर्थंकर निमि भी इसी

कुल के थे।)
मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु से विकुक्षि,

निमि और दण्डक पुत्र उत्पन्न हुए।
इस तरह से यह वंश परम्परा चलते

चलते हरिश्चन्द्र,रोहित,वृष,बाहु और

सगर तक पहुँची।
इक्ष्वाकु प्राचीन कौशल देश के राजा

थे और इनकी राजधानी अयोध्या थी।
रामायण के बालकांड में गुरु वशिष्ठ

जी द्वारा राम के कुल का वर्णन किया

गया है जो इस प्रकार है,
१ – ब्रह्माजी से मरीचि हुए.

२ – मरीचि के पुत्र कश्यप हुए.

३ – कश्यप के पुत्र विवस्वान थे.

४ – विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए.

वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय

हुआ था।
५ – वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक

का नाम इक्ष्वाकु था।

इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी

बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुल की

स्थापना की।
६ – इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए.

७ – कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था.

८ – विकुक्षि के पुत्र बाण हुए.

९ – बाण के पुत्र अनरण्य हुए.

१०- अनरण्य से पृथु हुए.

११- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ.

१२- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए.

१३- धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था.

१४- युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए.

१५- मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ.

१६- सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि

एवं प्रसेनजित.

१७- ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए।

१८- भरत के पुत्र असित हुए.

१९- असित के पुत्र सगर हुए.

२०- सगर के पुत्र का नाम असमंज था.

२१- असमंज के पुत्र अंशुमान हुए.

२२- अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए.

२३- दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए।

भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर

उतारा था।

भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे.

२४- ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए।

रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी

नरेश होने के कारण उनके बाद इस

वंश का नाम रघुवंश हो गया,

तब राम के कुल को रघुकुल कहा

जाता है।

२५- रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए.

२६- प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे.

२७- शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए.

२८- सुदर्शन के पुत्र का नाम

अग्निवर्ण था.

२९- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए.

३०- शीघ्रग के पुत्र मरु हुए.

३१- मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे.

३२- प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए.

३३- अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था.

३४- नहुष के पुत्र ययाति हुए.

३५- ययाति के पुत्र नाभाग हुए.

३६- नाभाग के पुत्र का नाम अज था.

३७- अज के पुत्र दशरथ हुए.

३८- दशरथ के चार पुत्र राम,भरत,

लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए।
इस प्रकार ब्रह्मा  की उन्चालिसवी

पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ।
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन

हरण भाव भय दारुणम् |

नवकंज लोचन कंज मुखकर,

कंज पद कन्जारुणम ||
कंदर्प अगणित अमित छवी नव

नील नीरज सुन्दरम |

पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि

नौमी जनक सुतावरम ||
भजु दीन बंधू दिनेश दानव

दैत्य वंश निकंदनम |

रघुनंद आनंद कंद कोशल

चंद दशरथ नन्दनम ||
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु

उदारू अंग विभुषणं |

आजानु भुज शर चाप धर

संग्राम जित खरदूषणं ||
इति वदति तुलसीदास शंकर

शेष मुनि मन रंजनम |

मम हृदय कुंज निवास कुरु

कामादी खल दल गंजनम ||
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो

बरु सहज सुंदर सावरों |

करुना निधान सुजान सिलू

सनेहू जानत रावरो ||
एही भाँती गौरी असीस सुनी

सिय सहित हिय हरषी अली |

तुलसी भवानी पूजी पूनी पूनी

मुदित मन मन्दिर चली ||
जानी गौरी अनुकूल सिय

हिय हरषु न जाए कहीं |

मंजुल मंगल मूल बाम

अंग फ़र्क़न लगे ||
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय

हरषु न जाइ कहि ।

मंजुल मंगल मूल वाम

अंग फरकन लगे ।।
राम से बड़ा राम का नाम,,,,,,

#साभार_संकलित;
जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,

जयति पुण्य भूमि भारत,,,
सदा सर्वदा सुमंगल,,,

हर हर महादेव,,

जय भवानी,,,

जय श्री राम
विजय कृष्णा पांडेय

Posted in आओ संस्कृत सीखे.

मेरे परदादा संस्कृत और हिंदी जानते थे 


मेरे परदादा संस्कृत और हिंदी जानते थे

माथे पे तिलक और सर पर पगड़ी बाँधते थे
फिर मेरे दादा जी का दौर आया

उन्होंने पगड़ी उतारी पर जनेऊ बचाया
मेरे दादा जी, अंग्रेजी बिलकुल नहीं जानते थे

जानना तो दूर, अंग्रेजी के नाम से ही कन्नी काटते थे
मेरे पिताजी को अंग्रेजी थोड़ी थोड़ी समझ में आई

कुछ खुद समझे कुछ अर्थचक्र ने समझाई
फिर भी वो अंग्रेजी का प्रयोग मज़बूरी में करते थे

यानि सभी सरकारी फार्म हिन्दी में ही भरते थे
जनेऊ उनका भी अक्षुण्य था

पर संस्कृत का प्रयोग नगण्य था
वही दौर था जब संस्कृत के साथ संस्कृति खो रही थी

इसीलिए संस्कृत मृत भाषा घोषित हो रही थी
धीरे धीरे समय बदला और नया दौर आया

मैंने अंग्रेजी को पढ़ा ही नहीं, अच्छे से चबाया
मैंने खुद को हिन्दी से अंग्रेजी में लिफ्ट किया

साथ ही जनेऊ को पूजाघर में सिफ्ट किया
अब मै बेवजह ही दो चार वाक्य अंग्रेजी में झाड जाता हूँ

शायद इसीलिए समाज में पढ़ा लिखा कहलाता हूँ
और तो और , मैंने बदल लिए कई रिश्ते नाते हैं

मामा, चाचा, फूफा अब अंकल नाम से जाने जाते हैं
अब मै टोन बदल कर वेद को वेदा और राम को रामा कहता हूँ

और अपनी इस तथाकतित सफलता पर गर्वित रहता हूँ
मेरे बच्चे और भी आगे जा रहे हैं

मैंने संस्कार चबाया था वो अंग्रेजी में पचा रहे हैं
यानि उन्हें दादी का मतलब ग्रैनी बताया जाता है

*“रामा वाज अ हिन्दू गॉड”* गर्व से सिखाया जाता है
जब श्रीमती जी उन्हें पानी मतलब वाटर बताती हैं

और अपनी इस प्रगति पर मंद मंद मुस्काती हैं
जाने क्यों मेरे पूजाघर की जीर्ण जनेऊ चिल्लाती है

और मंद मंद कुछ मन्त्र यूँ ही बुदबुदाती है
कहती है, विकास भारत को कहाँ ले जा रहा है

संस्कार तो गल गए अब भाषा को भी पचा रहा है
संस्कृत की तरह हिन्दी भी एक दिन मृत घोषित हो जाएगी

शायद उस दिन भारत भूमि पूर्ण विकसित हो जाएगी