एक स्त्री द्वारा लिखित बेहद संवेदन शील और अन्दर तक झकझोरने वाला लेख..😢 मुझे याद नहीं कि बचपन में कभी सिर्फ इस वजह से स्कूल में देर तक रुकी रही होऊं …कि बाहर बारिश हो रही है। ना। भीगते हुए ही घर पहुंच जाती थी। और तब बारिश में भीगने का मतलब होता था घर पर अजवाइन वाले गर्म सरसों के तेल की मालिश। और ये हर बार होता ही था। मौज में भीगूं तो डांट के साथ-साथ सरसों का तेल हाजिर। फिर जब घर से दूर रहने लगी तो धीरे- धीरे बारिश में भीगना कम होते -होते बंद ही हो गया। यूं नहीं कि बाद में जिंदगी में लोग नहीं थे। लेकिन किसी के दिमाग में कभी नहीं आया कि बारिश में भीगी लड़की के तलवों पर गर्म सरसों का तेल मल दिया जाए। कभी नहीं। ऐसी सैकड़ों चीजें, जो ” मां ” हमेशा करती थीं, मां से दूर होने के बाद किसी ने नहीं की। किसी ने कभी बालों में तेल नहीं लगाया । मां आज भी एक दिन के लिए भी मिले तो बालों में तेल जरूर लगाएं। बचपन में खाना मनपसंद न हो तो मां दस और ऑप्शन देती। अच्छा घी-गुड़ रोटी खा लो, अच्छा आलू की भुजिया बना देती हूं। मां नखरे सहती थी, इसलिए उनसे लडियाते भी थे। लेकिन बाद में किसी ने इस तरह लाड़ नहीं दिखाया। मैं भी अपने आप सारी सब्जियां खाने लगीं। मेरी जिंदगी में मां सिर्फ एक ही है। दोबारा कभी कोई मां नहीं आई, हालांकि बड़ी होकर मैं जरूर मां बन गई। लड़कियां हो जाती हैं न मां अपने आप।। पति कब छोटा बच्चा हो जाता है, कब उस पर मुहब्बत से ज्यादा दुलार बरसने लगता है, पता ही नहीं चलता। उनके सिर में तेल भी लग जाता है, ये परवाह भी होने लगती है कि उसका पसंदीदा (फेवरेट ) खाना बनाऊं, उसके नखरे भी उठाए जाने लगते हैं। लड़कों की जिंदगी में कई माएं आती हैं। बहन भी मां हो जाती है, पत्नी तो होती ही है, बेटियां भी एक उम्र के बाद बूढ़े पिता की मां ही बन जाती हैं, लेकिन लड़कियों के पास सिर्फ एक ही मां है। बड़े होने के बाद उसे दोबारा कोई मां नहीं मिलती। वो लाड़- दुलार, नखरे, दोबारा कभी नहीं आते। लड़कियों को जिंदगी में सिर्फ एक ही बार मिलती है मां….!
Month: August 2017
क्या आप 1500 वर्ष पुराने सोमनाथ मंदिर के प्रांगण में खड़े बाणस्तम्भ की विलक्षणता के विषय मे जानते हैं
क्या आप 1500 वर्ष पुराने सोमनाथ मंदिर के प्रांगण में खड़े बाणस्तम्भ की विलक्षणता के विषय मे जानते हैं? ‘ वैसे भी सोमनाथ मंदिर का इतिहास बड़ा ही विलक्षण और गौरवशाली रहा है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग है सोमनाथ। एक वैभवशाली सुंदर शिवलिंग। इतना समृध्द कि उत्तर-पश्चिम से आने वाले प्रत्येक आक्रांता की पहली नजर सोमनाथ पर जाती थी। अनेकों बार सोमनाथ मंदिर पर हमले हुए उसे लूटा गया। सोना, चांदी, हिरा, माणिक, मोती आदि गाड़ियाँ भर-भर कर आक्रांता ले गए। इतनी संपत्ति लुटने के बाद भी हर बार सोमनाथ का शिवालय उसी वैभव के साथ खड़ा रहता था। लेकिन केवल इस वैभव के कारण ही सोमनाथ का महत्व नहीं है। सोमनाथ का मंदिर भारत के पश्चिम समुद्र तट पर है और हजारों वर्षों के ज्ञात इतिहास में इस अरब सागर ने कभी भी अपनी मर्यादा नहीं लांघी है! न जाने कितने आंधी, तूफ़ान आये, चक्रवात आये लेकिन किसी भी आंधी, तूफ़ान, चक्रवात से मंदिर की कोई हानि नहीं हुई है। इस मंदिर के प्रांगण में एक स्तंभ (खंबा) है। यह ‘बाणस्तंभ’ नाम से जाना जाता है। यह स्तंभ कब से वहां पर हैं बता पाना कठिन है लगभग छठी शताब्दी से इस बाणस्तंभ का इतिहास में नाम आता है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं की बाणस्तंभ का निर्माण छठवे शतक में हुआ है उस के सैकड़ों वर्ष पहले इसका निर्माण हुआ माना जाता है। यह एक दिशादर्शक स्तंभ है जिस पर समुद्र की ओर इंगित करता एक बाण है इस बाणस्तंभ पर लिखा है – ‘आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव पर्यंत अबाधित ज्योतिरमार्ग’ इसका अर्थ हुआ कि ‘इस बिंदु से दक्षिण धृव तक सीधी रेखा में एक भी अवरोध या बाधा नहीं है।’ अर्थात ‘इस समूची दूरी में जमीन का एक भी टुकड़ा नहीं है। जब मैंने पहली बार इस स्तंभ के बारे में पढ़ा तो सिर चकरा गया। यह ज्ञान इतने वर्षों पहले हम भारतीयों को था। कैसे संभव है? और यदि यह सच हैं तो कितने समृध्दशाली ज्ञान की वैश्विक धरोहर हम संजोये हैं। संस्कृत में लिखे हुए इस पंक्ति के अर्थ में अनेक गूढ़ अर्थ समाहित हैं इस पंक्ति का सरल अर्थ यह है, कि ‘सोमनाथ मंदिर के इस बिंदु से लेकर दक्षिण ध्रुव तक (अर्थात अंटार्टिका तक) एक सीधी रेखा खिंची जाए, तो बीच में एक भी भूखंड नहीं आता है।’ क्या यह सच है? आज के इस तंत्र विज्ञान के युग में यह ढूँढना संभव तो है, लेकिन उतना आसान नहीं। गूगल मैप में ढूंढने के बाद भूखंड नहीं दिखता है लेकिन वह बड़ा भूखंड. छोटे, छोटे भूखंडों को देखने के लिए मैप को ‘एनलार्ज’ करते हुए आगे गये। यह बड़ा ही ‘बोरिंग’ सा काम है लेकिन धीरज रख कर धीरे-धीरे देखते गए तो रास्ते में एक भी भूखंड (अर्थात 10 किलोमीटर X 10 किलोमीटर से बड़ा भूखंड) नहीं आता है। अर्थात हम पूर्ण रूप से मान कर चलें कि उस संस्कृत श्लोक में सत्यता है! किन्तु फिर भी मूल प्रश्न वैसा ही रहता है अगर मान कर भी चलते हैं कि सन 600 ई० में इस बाण स्तंभ का निर्माण हुआ था,। तो भी उस जमाने में पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव है यह ज्ञान हमारे पास कहां से आया? अच्छा दक्षिण ध्रुव ज्ञात था, यह मान भी लिया तो भी सोमनाथ मंदिर से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में एक भी भूखंड नहीं आता है यह ‘मैपिंग’ किसने किया? कैसे किया? सब कुछ अद्भुत।। इसका अर्थ यह हैं की ‘बाण स्तंभ’ के निर्माण काल में भारतीयों को पृथ्वी गोल है इसका ज्ञान था। इतना ही नहीं पृथ्वी का दक्षिण ध्रुव है (अर्थात उत्तर धृव भी है) यह भी ज्ञान था। यह कैसे संभव हुआ? इसके लिए पृथ्वी का ‘एरिअल व्यू’ लेने का कौन सा साधन उपलब्ध था? अथवा पृथ्वी का विकसित नक्शा बना था? नक़्शे बनाने का एक शास्त्र होता है अंग्रेजी में इसे ‘कार्टोग्राफी’ (यह मूलतः फ्रेंच शब्द हैं) कहते है। यह प्राचीन शास्त्र है ईसा से पहले छह से आठ हजार वर्ष पूर्व की गुफाओं में आकाश के ग्रह तारों के नक़्शे मिले थे। परन्तु पृथ्वी का पहला नक्शा किसने बनाया इस पर एकमत नहीं है। हमारे भारतीय ज्ञान का कोई सबूत न मिलने के कारण यह सम्मान ‘एनेक्झिमेंडर’ इस ग्रीक वैज्ञानिक को दिया जाता है। इनका कालखंड ईसा पूर्व 611 से 546 वर्ष था किन्तु इन्होने बनाया हुआ नक्शा अत्यंत प्राथमिक अवस्था में था। उस कालखंड में जहां जहां मनुष्यों की बसाहट का ज्ञान था बस वही हिस्सा नक़्शे में दिखाया गया है। इसलिए उस नक़्शे में उत्तर और दक्षिण ध्रुव दिखने का कोई कारण ही नहीं था। आज की दुनिया के वास्तविक रूप के करीब जाने वाला नक्शा ‘हेनरिक्स मार्टेलस’ ने साधारणतः सन 1490 के आसपास तैयार किया था। ऐसा माना जाता हैं की कोलंबस और वास्कोडिगामा ने इसी नक़्शे के आधार पर अपना समुद्री सफर तय किया था। ‘पृथ्वी गोल है’ इस प्रकार का विचार यूरोप के कुछ वैज्ञानिकों ने व्यक्त किया था! ‘एनेक्सिमेंडर’ ईशा के पूर्व 600 वर्ष पृथ्वी को सिलेंडर के रूप में माना था! ‘एरिस्टोटल’ (ईसा पूर्व 384– ईसा पूर्व 322) ने भी पृथ्वी को गोल माना था। लेकिन भारत में यह ज्ञान बहुत प्राचीन समय से था जिसके प्रमाण भी मिलते है! इसी ज्ञान के आधार पर आगे चलकर आर्यभट्ट ने सन 500 के आस पास इस गोल पृथ्वी का व्यास 4967 योजन हैं! (अर्थात नए मापदंडों के अनुसार 39668 किलोमीटर हैं) यह भी दृढतापूर्वक बताया। आज की अत्याधुनिक तकनीकी की सहायता से पृथ्वी का व्यास 40068 किलोमीटर माना गया है। इसका अर्थ यह हुआ की आर्यभट्ट के आकलन में मात्र 0.26% का अंतर आ रहा है जो निगलेक्लट किया जा सकता है। लगभग डेढ़ हजार वर्ष पहले आर्यभट्ट के पास यह ज्ञान कहां से आया? सन 2008 में जर्मनी के विख्यात इतिहासविद जोसेफ श्वार्ट्सबर्ग ने यह साबित कर दिया था कि ईसा पूर्व दो-ढाई हजार वर्ष भारत में नक्शाशास्त्र अत्यंत विकसित था। नगर रचना के नक्शे उस समय उपलब्ध तो थे ही परन्तु नौकायन के लिए आवश्यक नक़्शे भी उपलब्ध थे! भारत में नौकायन शास्त्र प्राचीन काल से विकसित था। संपूर्ण दक्षिण एशिया में जिस प्रकार से हिन्दू संस्कृति के चिन्ह पग पग पर दिखते हैं उससे यह ज्ञात होता है की भारत के जहाज पूर्व दिशा में जावा,सुमात्रा, यवनद्वीप को पार कर के जापान तक प्रवास कर के आते थे। सन 1955 में गुजरात के ‘लोथल’ में ढाई हजार वर्ष पूर्व के अवशेष मिले हैं! इसमें भारत के प्रगत नौकायन के अनेक प्रमाण मिलते हैं। सोमनाथ मंदिर के निर्माण काल में दक्षिण धृव तक दिशादर्शन उस समय के भारतीयों को था यह निश्चित है। लेकिन सबसे महत्वपूर्व प्रश्न सामने आता है की दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में समुद्र में कोई अवरोध नहीं है! ऐसा बाद में खोज निकाला या दक्षिण ध्रुव से भारत के पश्चिम तट पर बिना अवरोध के सीधी रेखा जहां मिलती हैं वहां पहला ज्योतिर्लिंग स्थापित किया?
रोनाल्ड निक्सन जो कि एक अंग्रेज थे कृष्ण प्रेरणा से ब्रज में आकर बस गये … उनका कन्हैया से इतना प्रगाढ़ प्रेम था कि वे कन्हैया को अपना छोटा भाई मानने लगे थे…… एक दिन उन्होंने हलवा बनाकर ठाकुर जी को भोग लगाया पर्दा हटाकर देखा तो हलवे में छोटी छोटी उँगलियों के निशान थे …… जिसे देख कर ‘निक्सन’ की आखों से अश्रु धारा बहने लगी … क्यूँ कि इससे पहले भी वे कई बार भोग लगा चुके थे पर पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था | और एक दिन तो ऐसी घटना घटी कि सर्दियों का समय था, निक्सन जी कुटिया के बाहर सोते थे | ठाकुर जी को अंदर सुलाकर विधिवत रजाई ओढाकर फिर खुद लेटते थे | एक दिन निक्सन सो रहे थे…… मध्यरात्रि को अचानक उनको ऐसा लगा जैसे किसी ने उन्हें आवाज दी हो… दादा ! ओ दादा ! उन्होंने उठकर देखा जब कोई नहीं दिखा तो सोचने लगे हो सकता हमारा भ्रम हो, थोड़ी देर बाद उनको फिर सुनाई दिया…. दादा ! ओ दादा ! उन्होंने अंदर जाकर देखा तो पता चला की वे ठाकुर जी को रजाई ओढ़ाना भूल गये थे | वे ठाकुर जी के पास जाकर बैठ गये और बड़े प्यार से बोले…”आपको भी सर्दी लगती है क्या…?” निक्सन का इतना कहना था कि ठाकुर जी के श्री विग्रह से आसुओं की अद्भुत धारा बह चली… ठाकुर जी को इस तरह रोता देख निक्सनजी भी फूट फूट कर रोने लगे….. उस रात्रि ठाकुर जी के प्रेम में वह अंग्रेज भक्त इतना रोया कि उनकी आत्मा उनके पंचभौतिक शरीर को छोड़कर बैकुंठ को चली गयी | **
लष्मीकांत वर्शनय
क्या आप जानते हैं विश्व की सबसे मंहंगी ज़मीन सरहिंद, जिला फतेहगढ़ साहब (पंजाब) में है, जो मात्र 4 स्क्वेयर मीटर है।
क्या आप जानते हैं विश्व की सबसे मंहंगी ज़मीन सरहिंद, जिला फतेहगढ़ साहब (पंजाब) में है, जो मात्र 4 स्क्वेयर मीटर है। क्यों हुई ये छोटी सी ज़मीन सबसे महंगी? जरूर जानिये – रोंगटे खड़े कर देनें वाली ऐतिहासिक घटना। यहां पर श्री गुरु गोविंद सिंह जी क दोे छोटे साहिबजादों का अंतिम संस्कार किया गया था। सेठ दीवान टोडर मल ने यह ज़मीन 78000 सोने की मोहरें (सिक्के) दे कर मुस्लिम बादशाह से खरीदी थी। सोने की कीमत के मुताबिक इस 4 स्कवेयर मीटर जमीन की कीमत 2500000000 (दो अरब पचास करोड़)💰💰💰 बनती है। दुनिया की सबसे मंहंगी जगह खरीदने का रिकॉर्ड सिख धर्म के इतिहास में दर्ज करवाया गया है। आजतक दुनिया के इतिहास में इतनी मंहंगी जगह कहीं नही खरीदी गयी। और….दुनिया के इतिहास में ऐसा युद्ध ना कभी किसी ने पढ़ा होगा ना ही सोचा होगा, जिसमे 10 लाख की फ़ौज का सामना महज 42 लोगों के साथ हुआ था और जीत किसकी होती है..?? उन 42 सूरमो की ! यह युद्ध ‘चमकौर युद्ध’ (Battle of Chamkaur) के नाम से भी जाना जाता है जो कि मुग़ल योद्धा वज़ीर खान की अगवाई में 10 लाख की फ़ौज का सामना सिर्फ 42 सिखों से, 6 दिसम्बर 1704 को हुआ जो कि गुरु गोबिंद सिंह जी की आज्ञा से तैयार हुए थे ! नतीजा यह निकलता है की उन 42 शूरवीरों की जीत होती है और हिंदुस्तान में मुग़ल हुकूमत की नींव, जो बाबर ने रखी थी, उसे जड़ से उखाड़ दिया गया। औरंगज़ेब ने भी उस वक़्त गुरु गोविंद सिंह जी का लोहा माना और घुटने टेक दिए और ऐसे मुग़ल साम्राज्य का अंत हुआ। औरंगजेब की तरफ से एक प्रश्न किया गया गुरु गोविंद सिंह जी से, कि यह कैसी फ़ौज तैयार की आपने जिसने 10 लाख की फ़ौज को उखाड़ फेंका? गुरु गोविंद सिंह जी ने जवाब दिया, “चिड़ियों 🐥से मैं बाज 🦅 लडाऊ, गीदड़ों 🐺को मैं शेर 🦁 बनाऊं सवा लाख से एक लडाऊं, तभी गोविंद सिंह नाम कहाउँ !!” 🙏 गुरु गोविंद सिंह जी ने जो कहा वो किया और जिन्हें आज हर कोई शीश झुकता है। यह है हमारे भारत की अनमोल विरासत जिसे कभी पढ़ाया ही नहीं जाता! अगर आपको यकीन नहीं होता तो एक बार जरूर Google में लिखे ‘बैटल ऑफ़ चमकौर’ और सच आपको स्वयं पता लग जाएगा। आपको अगर ये लेख थोड़ा सा भी अच्छा लगा हो और आपको भारतीय होने पर गर्वान्वित करता हो तो ज़रूर इसे आगे शेयर करें जिससे हमारे देश के गौरवशाली इतिहास के बारे में दुनिया को पता लगे ! ***कुछ आगे *** चमकौर साहिब की जमीन, आगे चलकर, एक समृद्ध सिख ने खरीदी। उस को इसके इतिहास का कुछ पता नहीं था। जब पता चला कि यहाँ गुरु गोविंद सिंह जी के दो बेटे शहीद हुए थे, तो उन्होंने यह ज़मीन गुरु महाराज जी के बेटों की यादगार ( गुरुद्वारा साहिब) के लिए देने का मन बनाया। जब अरदास करने के समय उस सिख से पूछा गया कि अरदास में उनके लिए गुरु साहिब से क्या विनती करनी है ….तो उस सिख ने कहा के गुरु जी से विनती करनी है कि मेरे घर कोई औलाद ना हो ताकि मेरे वंश में कोई भी यह कहने वाला ना हो कि यह ज़मीन मेरे बाप दादा ने दी है। वाहेगुरु… 🙏 और यही अरदास हुई और बिलकुल ऐसा ही हुआ कि उन सिख के घर कोई औलाद नहीं हुई। अब हम अपने बारे में सोचें 50….100 रु. दे कर क्या क्या माँगते हैं। वाहेगुरु जी का खालसा, 🙏 वाहेगुरु जी की फतेह। 🙏
वीर तेजा दशमी
वीर तेजा दशमी के पावन अवसर पर आप और आपके पूरे परिवार को
हार्दिक शुभकामनाएं !!! II Jai Jat Ki II || जय वीर तेजाजी !!
तेजाजी को भगवान शिव अवतार माना जाता है सर्प के काटे हुआ व्यक्ति तेजाजी कृपा से ठीक हो जाता है तेजाजी के पुजारी को घोडला एव चबूतरे को थान कहा जाता हे | सेंदेरिया तेजाजी कामूल स्थान हे यंही पर नाग ने इन्हें डस लिया था |ब्यावर में तेजा चोक में तेजाजी का एकप्राचीन थान हे | नागौर का खरनाल भी तेजाजी का
तेजा जी का जन्म राजस्थान के नागौर जिले में खरनाल गाँव में माघ शुक्ला, चौदस वार गुरुवार संवत ग्यारह सौ तीस, तदनुसार 29 जनवरी, 1074 को धुलिया गोत्र के जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता चौधरी ताहरजी (थिरराज) राजस्थान के नागौर जिले के खरनाल गाँव के मुखिया थे। तेजाजी के नाना का नाम दुलन सोढी था. उनकी माता का नाम सुगना था. मनसुख रणवा ने उनकी माता का नाम रामकुंवरी लिखा है. तेजाजी का ननिहाल त्यौद गाँव (किशनगढ़) में था. उनके नाना सोडा गोत्र के जाट थे
लोकदेवता के रूप में पूजनीय तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है। लोग व्रत रखते हैं। प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल 10 (तेजा दशमी) से पूर्णिमा तक तेजाजी के विशाल पशु मेले का आयोजन किया जाता है
राजस्थान में स्थानीय देवता रामदेव जी व गोगाजी के समान एक अन्य देवता ‘तेजाजी’ भी हैं जिनकी राजस्थान मध्यप्रदेश में ‘सर्परूप’ में बड़ी मान्यता है। प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल दशमी के दिन राजस्थान के सभी गांवों, कस्बों एवं शहरों में ‘तेजाजी’ का मेला लगता है। इस अवसर पर हाड़ौती अंचल के तलवास एवं आंतरदा गांव में ‘तेजादशमी’ और ‘अनंत चतुर्दशी’ के मौके पर निकाली जाने वाली ‘सर्प की सवारी’ जहां जन-कौतूहल का केंद्र है, वहीं वर्तमान विज्ञान के युग में भी अखंड धार्मिक विश्वास का जीता-जागता उदाहरण है।
बूंदी जिला के आंतरदा गांव में तेजादशमी (भाद्रपद शुक्ल दशमी) के दिन गांव के लोग (बच्चे-बूढ़ों सहित) एकत्र होकर एक निश्चित दिशा में ध्वज-पताकाएं, अलगोजे, ढोल, ताशे, मजीरों के साथ गाते-बजाते सर्परूपी तेजाजी को तलाशने जंगल में जाते हैं। वहां प्राय: खेजड़े (शमी) के वृक्ष पर उन्हें सफेद रंग का एक सर्प मिलता है, जिसकी लंबाई करीब एक बालिश्ति (बित्ता) यानी आठ से दस इंच एवं मोटाई लगभग आधा इंच होती है। इस विशिष्टï प्रजाति के सर्प के मस्तिष्क पर त्रिशूल एवं गाय के खुर की आकृतियां बनी होती हैं और यही इसके ‘तेजाजी’ के पति रूप होने की निशानी मानी जाती है।
आंतरदा गांव में पिछले 141 वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है। तेजा दशमी के दिन प्रतिवर्ष इस सर्प को खोजकर इसे तेजाजी की ‘देह’ मानकर तलवास और आंतरदा गांव में तेजाजी को ‘दहेलवाल जी’ के नाम से पूजा जाता है। इस सर्प को खोज लेने के उपरांत परंपरा के अनुसार आंतरदा के पूर्व नरेश एवं दहेलवालजी के पुजारी, पेड़ की टहनी पर बैठे इस सर्प की, सबसे पहले पूजा कर दूध का भोग लगाते हैं। इसके साथ ही ढोलक, मजीरों एवं अलगोजों की धुन पर तेजाजी (तेजाजी से संबंधित गीत) गाए जाते हैं। ग्रामीणों की मनुहार पर यह सर्प पेड़ की टहनी से उतरकर पुजारी के हाथ में रखी फूल-पत्तियां की ‘ठांगली’ (डलिया) में आ जाता है और इसी के साथ शुरू हो जाती है दहेलवालजी रूपी इस सर्प देवता की शोभायात्रा। शोभायात्रा के गढ़ चौक में पहुंचने पर आंतरदा ठिकाने की ओर से सर्पदेव की पूजा-अर्चना की जाती है।
पूजा-अर्चना के उपरांत यहां से प्रस्थान कर यह शोभायात्रा दहेलवाल जी के स्थानक (मंदिर) पर पहुंचती है और वहां सर्पदेव को प्रतिष्ठिïत कर दिया जाता है। ठीक ऐसी ही प्रक्रिया अनंत चतुर्दशी के दिन तलवास गांव में अपनाई जाती है। वहां भी यही सर्पदेव आंतरदा रोड स्थित जंगल से लाए जाते हैं तथा सर्परूपी दहेलवालजी की गांव के मुख्य मार्गों से शोभायात्रा निकाली जाती है। मार्ग में स्त्री-पुरुष श्रद्धापूर्वक चढ़ावा भी चढ़ाते हैं।
आंतरदा गांव में यह प्रथा कब से और कैसे प्रारंभ हुई इस संबंध में वहां एक किंवदंती प्रचलित है कि सन् 1871 में आंतरदा के तात्कालिक नरेश देवीसिंह की रानी को किसी सर्प ने डस लिया। तब देवीसिंह ने जूनिया (टोंक) स्थित दहेलवाल जी (तेजाजी) के नाम का एक डोरा (कलावा) अपनी रानी के हाथ पर बांध दिया। उसके बाद वह बिना किसी दवा एवं उपचार के ठीक हो गई।
इस घटना के बाद जब प्रथम बार तेजादशमी आई, तो उस दिन आंतरदा नरेश देवीसिंह अपनी रानी के हाथ पर तेजाजी के नाम का बंधा डोरा तेजाजी के पुजारी से कटवाने जूनिया गए, तो अपने साथ एक संगीत मंडली भी ले गए। इस मंडली का गायक तुलसीराम कीर ‘तेजाजी’ (तेजाजी से संबंधित गीत) गाने में माहिर थे। कहते हैं कि तुलसीराम जब ‘तेजाजी’ गा रहे थे तब जूनिया के दहेलवाल जी ने उनके शरीर में प्रवेश कर उनके श्रीमुख से आंतरदा नरेश को यह आदेश दिया कि यदि वह आंतरदा में मेरा स्थानक (देवालय) बनवा दें, तो मैं हर वर्ष सर्परूप में वहां आऊंगा और लोगों की मनौतियां पूरी करूंगा।
बाद में देवीसिंह ने जूनिया से आंतरदा वापस लौटकर परकोटे के बाहर करवर रोड पर दहेलवालजी का स्थानक बनवा दिया और तेजादशमी को उनके बताए स्थान से उन्हें पहली बार सर्परूप में लाया गया। तभी से यह परंपरा आज तक जारी है।
कालांतर में तलवास गांव में भी यह प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन मान्यता के अनुसार वहां सर्परूप तेजाजी तेजादशमी के चार दिन बाद अर्थात् अनंत चतुर्दशी को आते हैं। कहा जाता है कि चार दिन तक वे आंतरदा में ही निवास कर अपने वादे के मुताबिक लोगों की मनौतियां पूरी करते ह
तेजाजी का जन्म धौलिया या धौल्या गौत्र के जाट परिवार में हुआ।
धौल्या जाट शासकों की वंशावली इस प्रकार है:- 1.महारावल 2.भौमसेन 3.पीलपंजर 4.सारंगदेव 5.शक्तिपाल 6.रायपाल 7.धवलपाल 8.नयनपाल 9.घर्षणपाल 10.तक्कपाल 11.मूलसेन 12.रतनसेन 13.शुण्डल 14.कुण्डल 15.पिप्पल 16.उदयराज 17.नरपाल 18.कामराज 19.बोहितराव 20.ताहड़देव 21.तेजाजी
तेजाजी का जन्म राजस्थान के नागौर जिले में खरनाल गाँव में माघ शुक्ला, चौदस वार गुरुवार संवत ग्यारह सौ तीस, तदनुसार 29 जनवरी, 1074 को धुलिया गोत्र के जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता चौधरी ताहरजी (थिरराज) राजस्थान के नागौर जिले के खरनाल गाँव के मुखिया थे। तेजाजी के नाना का नाम दुलन सोढी था. उनकी माता का नाम सुगना था. मनसुख रणवा ने उनकी माता का नाम रामकुंवरी लिखा है. तेजाजी का ननिहाल त्यौद गाँव (किशनगढ़) में था. उनके नाना सोडा गोत्र के जाट थे
तेजाजी के माता-पिता शंकर भगवान के उपासक थे. शंकर भगवान के वरदान से तेजाजी की प्राप्ति हुई. कलयुग में तेजाजी को शिव का अवतार माना गया है. तेजा जब पैदा हुए तब उनके चेहरे पर विलक्षण तेज था जिसके कारण इनका नाम रखा गया तेजा. उनके जन्म के समय तेजा की माता को एक आवाज सुनाई दी –
“कुंवर तेजा ईश्वर का अवतार है, तुम्हारे साथ अधिक समय तक नहीं रहेगा.”
तेजाजी के जन्म के बारे में मत है-
जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के मांय।
आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।।
शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ पहचान।
सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान।।
गाँव के मुखिया को ‘हालोतिया’या हळसौतिया करके बुवाई की शुरुआत करनी है। मुखिया मौजूद नहीं है। उनका बड़ा पुत्र भी गाँव में नहीं है। उस काल में परंपरा थी की वर्षात होने पर गण या कबीले के गणपति सर्वप्रथम खेत में हल जोतने की शुरुआत करता था, तत्पश्चात किसान हल जोतते थे. मुखिया की पत्नी अपने छोटे पुत्र को, जिसका नाम तेजा है, खेतों में जाकर हळसौतिया का शगुन करने के लिए कहती है। तेजा माँ की आज्ञानुसार खेतों में पहुँच कर हल चलाने लगा है। दिन चढ़ आया है। तेजा को जोरों की भूख लग आई है। उसकी भाभी उसके लिए ‘छाक’ यानी भोजन लेकर आएगी। मगर कब? कितनी देर लगाएगी? सचमुच, भाभी बड़ी देर लगाने के बाद ‘छाक’ लेकर पहुँची है। तेजा का गुस्सा सातवें आसमान पर है। वह भाभी को खरी-खोटी सुनाने लगा है। तेजाजी ने कहा कि बैल रात से ही भूके हैं मैंने भी कुछ नहीं खाया है, भाभी इतनी देर कैसे लगादी. भाभी भी भाभी है। तेजाजी के गुस्से को झेल नहीं पाई और काम से भी पीड़ित थी सो पलट कर जवाब देती है, एक मन पीसना पीसने के पश्चात उसकी रोटियां बनाई, घोड़ी की खातिर दाना डाला, फिर बैलों के लिए चारा लाई और तेजाजी के लिए छाक लाई परन्तु छोटे बच्चे को झूले में रोता छोड़ कर आई, फिर भी तेजा को गुस्सा आये तो तुम्हारी जोरू जो पीहर में बैठी है. कुछ शर्म-लाज है, तो लिवा क्यों नहीं लाते? तेजा को भाभी की बात तीर- सी लगती है। वह रास पिराणी फैंकते हैं और ससुराल जाने की कसम खाते हैं. वह तत्क्षण अपनी पत्नी पेमल को लिवाने अपनी ससुराल जाने को तैयार होता है। तेजा खेत से सीधे घर आते हैं और माँ से पूछते हैं कि मेरी शादी कहाँ और किसके साथ हुई. माँ को खरनाल और पनेर की दुश्मनी याद आई और बताती है कि शादी के कुछ ही समय बाद तुम्हारे पिता और पेमल के मामा में कहासुनी हो गयी और तलवार चल गई जिसमें पेमल के मामा की मौत हो गयी. माँ बताती है कि तेजा तुम्हारा ससुराल गढ़ पनेर में रायमल्जी के घर है और पत्नी का नाम पेमल है. सगाई ताउजी बख्शा राम जी ने पीला- पोतडा़ में ही करदी थी. तेजा ससुराल जाने से पहले विदाई देने के लिये भाभी से पूछते हैं. भाभी कहती है -“देवरजी आप दुश्मनी धरती पर मत जाओ. आपका विवाह मेरी छोटी बहिन से करवा दूंगी.”तेजाजी ने दूसरे विवाह से इनकार कर दिया. बहिन के ससुराल में तेजाजी भाभी फिर कहती है कि पहली बार ससुराल को आने वाली अपनी दुल्हन पेमल का ‘बधावा’ यानी स्वागत करने वाली अपनी बहन राजल को तो पहले पीहर लेकर आओ। तेजाजी का ब्याह बचपन में ही पुष्कर में पनेर गाँव के मुखिया रायमल की बेटी पेमल के साथ हो चुका था। विवाह के कुछ समय बाद दोनों परिवारों में खून- खराबा हुआ था। तेजाजी को पता ही नहीं था कि बचपन में उनका विवाह हो चुका था। भाभी की तानाकशी से हकीकत सामने आई है। जब तेजाजी अपनी बहन राजल को लिवाने उसकी ससुराल के गाँव तबीजी के रास्ते में थे, तो एक मीणा सरदार ने उन पर हमला किया। जोरदार लड़ाई हुई। तेजाजी जीत गए। तेजाजी द्वारा गाडा गया भाला जमीन में से कोई नहीं निकाल पाया और सभी दुश्मन भाग गए. तबीजी पहुँचे और अपने बहनोई जोगाजी सियाग के घर का पता पनिहारियों से पूछा. उनके घर पधार कर उनकी अनुमति से राजल को खरनाल ले आए। तेजाजी का पनेर प्रस्थान तेजाजी अपनी माँ से ससुराल पनेर जाने की अनुमति माँगते हैं. माँ को अनहोनी दिखती है और तेजा को ससुराल जाने से मना करती है. भाभी कहती है कि पंडित से मुहूर्त निकलवालो. पंडित तेजा के घर आकर पतड़ा देख कर बताता है कि उसको सफ़ेद देवली दिखाई दे रही है जो सहादत की प्रतीक है. सावन व भादवा माह अशुभ हैं. पंडित ने तेजा को दो माह रुकने की सलाह दी. तेजा ने कहा कि तीज से पहले मुझे पनेर जाना है चाहे धन-दान ब्रह्मण को देना पड़े. वे कहते हैं कि जंगल के शेर को कहीं जाने के लिए मुहूर्त निकलवाने की जरुरत नहीं है. तेजा ने जाने का निर्णय लिया और माँ-भाभी से विदाई ली. अगली सुबह वे अपनी लीलण नामक घोड़ी पर सवार हुए और अपनी पत्नी पेमल को लिवाने निकल पड़े। जोग-संयोगों के मुताबिक तेजा को लकडियों से भरा गाड़ा मिला, कुंवारी कन्या रोती मिली, छाणा चुगती लुगाई ने छींक मारी, बिलाई रास्ता काट गई, कोचरी दाहिने बोली, मोर कुर्लाने लगे. तेजा अन्धविसवासी नहीं थे. सो चलते रहे. बरसात का मौसम था. कितने ही उफान खाते नदी-नाले पार किये. सांय काल होते-होते वर्षात ने जोर पकडा. रस्ते में बनास नदी उफान पर थी. ज्यों ही उतार हुआ तेजाजी ने लीलण को नदी पार करने को कहा जो तैर कर दूसरे किनारे लग गई. तेजाजी बारह कोस अर्थात ३६ किमी का चक्कर लगा कर अपनी ससुराल पनेर आ पहुँचे। तेजाजी का पनेर आगमन शाम का वक्त था। पनेर गढ़ के दरवाजे बंद हो चुके थे. कुंवर तेजाजी जब पनेर के कांकड़ पहुंचे तो एक सुन्दर सा बाग़ दिखाई दिया. तेजाजी भीगे हुए थे. बाग़ के दरवाजे पर माली से दरवाजा खोलने का निवेदन किया. माली ने कहा बाग़ की चाबी पेमल के पास है, मैं उनकी अनुमति बिना दरवाजा नहीं खोल सकता. कुंवर तेजा ने माली को कुछ रुपये दिए तो झट ताला खोल दिया. रातभर तेजा ने बाग़ में विश्राम किया और लीलन ने बाग़ में घूम-घूम कर पेड़-पौधों को तोड़ डाला. बाग़ के माली ने पेमल को परदेशी के बारे में और घोडी द्वारा किये नुकशान के बारे में बताया. पेमल की भाभी बाग़ में आकर पूछती है कि परदेशी कौन है, कहाँ से आया है और कहाँ जायेगा. तेजा ने परिचय दिया कि वह खरनाल का जाट है और रायमल जी के घर जाना है. पेमल की भाभी माफ़ी मांगती है और बताती है कि वह उनकी छोटी सालेली है. सालेली (साले की पत्नि) ने पनेर पहुँच कर पेमल को खबर दी. कुंवर तेजाजी पनेर पहुंचे. पनिहारियाँ सुन्दर घोडी पर सुन्दर जवाई को देखकर हर्षित हुई. तेजा ने रायमल्जी का घर पूछा. सूर्यास्त होने वाला था. उनकी सास गाएँ दूह रही थी। तेजाजी का घोड़ा उनको लेकर धड़धड़ाते हुए पिरोल में आ घुसा। सास ने उन्हें पहचाना नहीं। वह अपनी गायों के डर जाने से उन पर इतनी क्रोधित हुई कि सीधा शाप ही दे डाला, ‘जा, तुझे काला साँप खाए!’ तेजाजी उसके शाप से इतने क्षुब्ध हुए कि बिना पेमल को साथ लिए ही लौट पड़े। तेजाजी ने कहा यह नुगरों की धरती है, यहाँ एक पल भी रहना पाप है. तेजाजी का पेमल से मिलन अपने पति को वापस मुड़ते देख पेमल को झटका लगा. पेमल ने पिता और भाइयों से इशारा किया की वे तेजाजी को रोकें. श्वसुर और सेल तेजाजी को रोकते हैं पर वे मानते नहीं हैं. वे घर से बहार निकल आते हैं. पेमल की सहेली थी लाछां गूजरी। उसने पेमल को तेजाजी से मिलवाने का यत्न किया। वह ऊँटनी पर सवार हुई और रास्ते में मीणा सरदारों से लड़ती- जूझती तेजाजी तक जा पहुँची। उन्हें पेमल का सन्देश दिया। अगर उसे छोड़ कर गए, तो वह जहर खा कर मर जाएगी। उसके मां-बाप उसकी शादी किसी और के साथ तय कर चुके हैं। लाछां बताती है, पेमल तो मरने ही वाली थी, वही उसे तेजाजी से मिलाने का वचन दे कर रोक आई है। लाछन के समझाने पर भी तेजा पर कोई असर नहीं हुआ. पेमल अपनी माँ को खरी खोटी सुनाती है. पेमल कलपती हुई आई और लिलन के सामने कड़ी हो गई. पेमल ने कहा – आपके इंतजार में मैंने इतने वर्ष निकले. मेरे साथ घर वालों ने कैसा वर्ताव किया यह मैं ही जानती हूँ. आज आप चले गए तो मेरा क्या होगा. मुझे भी अपने साथ ले चलो. मैं आपके चरणों में अपना जीवन न्यौछावर कर दूँगी. पेमल की व्यथा देखकर तेजाजी पोल में रुके. सभी ने पेमल के पति को सराहा. शाम के समय सालों के साथ तेजाजी ने भोजन किया. देर रात तक औरतों ने जंवाई गीत गए. पेमल की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था. तेजाजी पेमल से मिले। अत्यन्त रूपवती थी पेमल। दोनों बतरस में डूबे थे कि लाछां की आहट सुनाई दी। लाछां गुजरी की तेजाजी से गुहार लाछां गुजरी ने तेजाजी को बताया कि मीणा चोर उसकी गायों को चुरा कर ले गए हैं…. अब उनके सिवाय उसका कोई मददगार नहीं। लाछां गुजारी ने तेजाजी से कहा कि आप मेरी सहायता कर अपने क्षत्रिय धर्म की रक्षा करो अन्यथा गायों के बछडे भूखे मर जायेंगे. तेजा ने कहा राजा व भौमिया को शिकायत करो. लाछां ने कहा राजा कहीं गया हुआ है और भौमिया से दश्मनी है. तेजाजी ने कहा कि पनेर में एक भी मर्द नहीं है जो लड़ाई के लिए चढाई करे. तुम्हारी गायें मैं लाऊंगा. तेजाजी फिर अपनी लीलण घोड़ी पर सवार हुए। पंचों हथियार साथ लिए. पेमल ने घोडी कि लगाम पकड़ कर कहा कि मैं साथ चलूंगी. लड़ाई में घोडी थम लूंगी. तेजा ने कहा पेमल जिद मत करो. मैं क्षत्रिय धर्म का पालक हूँ. मैं अकेला ही मीणों को हराकर गायें वापिस ले आऊंगा. तेजाजी के आदेश के सामने पेमल चुप हो गई. पेमल अन्दर ही अन्दर कंप भी रही थी और बद्बदाने लगी – डूंगर पर डांडी नहीं, मेहां अँधेरी रात पग-पग कालो नाग, मति सिधारो नाथ अर्थात पहाडों पर रास्ता नहीं है, वर्षात की अँधेरी रात है और पग- पग पर काला नाग दुश्मन है ऐसी स्थिति में मत जाओ. तेजाजी धर्म के पक्के थे सो पेमल की बात नहीं मानी और पेमल से विदाई ली. पेमल ने तेजाजी को भाला सौंपा. वर्तमान सुरसुरा नामक स्थान पर उस समय घना जंगल था. वहां पर बालू नाग , जिसे लोक संगीत में बासक नाग बताया गया है, घात लगा कर बैठे थे. रात्रि को जब तेजाजी मीणों से गायें छुड़ाने जा रहे थे कि षड़यंत्र के तहत बालू नाग ने रास्ता रोका. बालू नाग बोला कि आप हमें मार कर ही जा सकते हो. तेजाजी ने विश्वास दिलाया कि मैं धर्म से बंधा हूँ. गायें लाने के पश्चात् वापस आऊंगा. मेरा वचन पूरा नहीं करुँ तो समझना मैंने मेरी माँ का दूध नहीं पिया है. वहां से तेजाजी ने भाला, धनुष, तीर लेकर लीलन पर चढ़ उन्होंने चोरों का पीछा किया. सुरसुरा से १५-१६ किमी दूर मंडावारियों की पहाडियों में मीणा दिखाई दिए. तेजाजी ने मीणों को ललकारा. तेजाजी ने बाणों से हमला किया. मीने ढेर हो गए, कुछ भाग गए और कुछ मीणों ने आत्मसमर्पण कर दिया. तेजा का पूरा शारीर घायल हो गया और तेजा सारी गायों को लेकर पनेर पहुंचे और लाछां गूजरी को सौंप दी . लाछां गूजरी को सारी गायें दिखाई दी पर गायों के समूह के मालिक काणां केरडा नहीं दिखा तो वह उदास हो गई और तेजा को वापिस जाकर लाने के लिए बोला. तेजाजी वापस गए. पहाड़ी में छुपे मीणों पर हमला बोल दिया व बछड़े को ले आये. इस लड़ाई में तेजाजी का शारीर छलनी हो गया. बताते हैं कि लड़ाई में १५० मीणा लोग मारे गए जिनकी देवली मंदावारिया की पहाड़ी में बनी हैं. सबको मार कर तेजाजी विजयी रहे एवं वापस पनेर पधारे. तेजाजी की वचन बद्धता लाछां गूजरी को काणां केरडा सौंप कर लीलण घोडी से बोले कि तुम वापस उस जगह चलो जहाँ मैं वचन देकर आया हूँ. तेजाजी सीधे बालू नाग के इन्तजार स्थल पर आते हैं. बालू नाग से बोलते हैं की मैं मेरा वचन पूरा करके आया हूँ तुम अब अपना वचन पूरा करो. बालू नाग का ह्रदय काँप उठा. वह बोला -“मैं तुम्हारी इमानदारी और बहादुरी पर प्रसन्न हूँ. मैंने पीढी पीढी का बैर चुकता कर लिया. अब तुम जाओ मैं तुम्हें जीवन दान देता हूँ. तुम अपने कुल के एक मात्र देवता कहलाओगे. यह मेरा वरदान है.”तेजाजी ने कहा कि मैं अपने वचनों से पीछे नहीं हटता वह अपने प्राण को हर हाल में पूरा करेगा. बालू नाग ने अपना प्रण पूरा करने के लिए तेजाजी की जीभ पर हमला किया. तेजाजी लीलन से नीचे गिरे और वीर गति को प्राप्त हो गए. वे कलयुग के अवतारी बन गए. लोक परम्परा में तेजाजी को काले नाग द्वारा डसना बताया गया है. कहते हैं की लाछां गूजरी जब तेजाजी के पास आयी और गायों को ले जाने का समाचार सुनाया तब रास्ते में वे जब चोरों का पीछा कर रहे थे, उसी दौरान उन्हें एक काला नाग आग में घिरा नजर आया। उन्होंने नाग को आग से बाहर निकाला। बासग नाग ने उन्हें वरदान की बजाय यह कह कर शाप दिया कि वे उसकी नाग की योनी से मुक्ति में बाधक बने। बासग नाग ने फटकार कर कहा – मेरा बुढापा बड़ा दुखदाई होता है. मुझे मरने से बचाने पर तुम्हें क्या मिला. तेजाजी ने कहा – मरते, डूबते व जलते को बचाना मानव का धर्म है. मैंने तुम्हारा जीवन बचाया है, कोई बुरा काम नहीं किया. भलाई का बदला बुराई से क्यों लेना चाहते हो. नागराज लीलन के पैरों से दूर खिसक जाओ वरना कुचले जाओगे. नाग ने प्रायश्चित स्वरूप उन्हें डसने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने नाग को वचन दिया कि लाछां गूजरी की गायें चोरों से छुड़ा कर उसके सुपुर्द करने के बाद नाग के पास लौट आएँगे। तेजाजी ने पाया कि लाछां की गायें ले जाने वाले उसी मीणा सरदार के आदमी थे, जिसे उन्होंने पराजित करके खदेड़ भगाया था। उनसे लड़ते हुए तेजाजी बुरी तरह लहुलूहान हो गए। गायें छुड़ा कर लौटते हुए अपना वचन निभाने वे नाग के सामने प्रस्तुत हो गए। नागराज ने कहा – तेजा नागराज कुंवारी जगह बिना नहीं डसता. तुम्हारे रोम- रोम से खून टपक रहा है. मैं कहाँ डसूं? तेजाजी ने कहा अपने वचन को पूरा करो. मेरे हाथ की हथेली व जीभ कुंवारी हैं, मुझे डसलो. नागराज ने कहा -“तेजा तुम शूरवीर हो. मैं प्रसन्न होकर तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम तुम्हारे कुल के देवता के रूप में पूजे जावोगे. आज के बाद काला सर्प का काटा हुआ कोई व्यक्ति यदि तुम्हारे नाम की तांती बांध लेगा तो उसका पान उतर जायेगा. किसान खेत में हलोतिया करने से पहले तुम्हारे नाम की पूजा करेगा और तुम कलयुग के अवतारी माने जावोगे. यही मेरा अमर आशीष है.”नाग को उनके क्षत्-विक्षत् शरीर पर दंश रखने भर को भी जगह नजर नहीं आई और अन्तत: तेजाजी ने अपनी जीभ पर सर्प-दंश झेल कर और प्राण दे कर अपने वचन की रक्षा की। तेजाजी ने नजदीक ही ऊँट चराते रैबारी आसू देवासी को बुलाया और कहा,”भाई आसू देवासी ! मुसीबत में काम आने वाला ही घर का होता है, तू मेरा एक काम पूरा करना. मेरी इहलीला समाप्त होने के पश्चात् मेरा रुमाल व एक समाचार रायमल्जी मेहता के घर लेजाना और मेरे सास ससुर को पांवा धोक कहना. पेमल को मेरे प्यार का रुमाल दे देना, सारे गाँव वालों को मेरा राम-राम कहना और जो कुछ यहाँ देख रहे हो पेमल को बतादेना और कहना कि तेजाजी कुछ पल के मेहमान हैं.”लीलन घोडी की आँखों से आंसू टपकते देख तेजाजी ने कहा -“लीलन तू धन्य है. आज तक तूने सुख- दुःख में मेरा साथ निभाया. मैं आज हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हारा साथ छोड़ रहा हूँ. तू खरनाल जाकर मेरे परिवार जनों को आँखों से समझा देना.”आसू देवासी सीधे पनेर में रायमल्जी के घर गया और पेमल को कहा -“राम बुरी करी पेमल तुम्हारा सूरज छुप गया. तेजाजी बलिदान को प्राप्त हुए. मैं उनका मेमद मोलिया लेकर आया हूँ.”तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर पेमल के आँखों के आगे अँधेरा छा गया. उसने मां से सत का नारियल माँगा, सौलह श्रृंगार किये, परिवार जनों से विदाई ली और सुरसुरा जाकर तेजाजी के साथ सती हो गई. पेमल जब चिता पर बैठी है तो लिलन घोडी को सन्देश देती है कि सत्य समाचार खरनाल जाकर सबको बतला देना. कहते हैं कि अग्नि स्वतः ही प्रज्वलित हो गई और पेमल सती हो गई. लोगों ने पूछा कि सती माता तुम्हारी पूजा कब करें तो पेमल ने बताया कि -“भादवा सुदी नवमी की रात्रि को तेजाजी धाम पर जागरण करना और दसमी को तेजाजी के धाम पर उनकी देवली को धौक लगाना, कच्चे दूध का भोग लगाना. इससे मनपसंद कार्य पूर्ण होंगे. यही मेरा अमर आशीष है”लीलन घोड़ी सतीमाता के हवाले अपने मालिक को छोड़ अंतिम दर्शन पाकर सीधी खरनाल की तरफ रवाना हुई. परबतसर के खारिया तालाब पर कुछ देर रुकी और वहां से खरनाल पहुंची. खरनाल गाँव में खाली पीठ पहुंची तो तेजाजी की भाभी को अनहोनी की शंका हुई. लीलन की शक्ल देख पता लग गया की तेजाजी संसार छोड़ चुके हैं. तेजाजी की बहिन राजल बेहोश होकर गिर पड़ी, फिर खड़ी हुई और माता-पिता, भाई-भोजाई से अनुमति लेकर माँ से सत का नारियल लिया और खरनाल के पास ही पूर्वी जोहड़ में चिता चिन्वाकर भाई की मौत पर सती हो गई. भाई के पीछे सती होने का यह अनूठा उदहारण है. राजल बाई को बाघल बाई भी कहते हैं राजल बाई का मंदिर खरनाल में गाँव के पूर्वी जोहड़ में हैं. तेजाजी की प्रिय घोड़ी लीलण भी दुःख नहीं झेल सकी और अपना शारीर छोड़ दिया. लीलण घोड़ी का मंदिर आज भी खरनाल के तालाब के किनारे पर बना है. इतिहासकारों ने तेजाजी के निधन की तिथि दर्ज की: २८ अगस्त, ११०३ ईस्वी। तेजाजी की चमत्कारी शक्तियां आज के विज्ञान के इस युग में चमत्कारों की बात करना पिछड़ापन माना जाता है और विज्ञान चमत्कारों को स्वीकार नहीं करता. परन्तु तेजाजी के साथ कुछ चमत्कारों की घटनाएँ जुडी हुई हैं जिन पर नास्तिक व्यक्तियों को भी बरबस विस्वास करना पड़ता ह
राजस्थान और मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में तेजाजी के गीत सुरीली आवाज और मस्ती भरे अंदाज में गाये जाते हैं. जेठ के महीने में वर्षा होने पर किसान तेजाजी का नाम ले खेतों में हल जोतते हैं. बच्चे बूढे सभी लम्बी टेर में तेजा गीत गाते हैं. जन मानस द्वारा गाये इन गीतों के माध्यम से ही जाट संस्कृति और इतिहास जिन्दा रहा.
तेजाजी कि चालीसा नीचे दी गयी है
-बोलिए सत्यवादी झूँझार वीर तेजाजी महाराज की जय हो..
वीर तेजाजी ओर ताजमहल की सच्चाई
वीर तेजाजी ओर ताजमहल की सच्चाई… हिंदू गुम्बज… शाहज़हां के पूर्व के ताज के संदर्भ हमें नकली झूठे दस्तावेज़ सुनाया जाता हैं..
तेजाजी महाराज….
तेजाजी महाराज…..
तेजाजी महाराज…….. लोक देवता तेजाजी तेजाजी मुख्यत: राजस्थान के लेकिन उतने ही उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात और कुछ हद तक पंजाब के भी लोक-नायक हैं। अवश्य ही इन प्रदेशों की जनभाषाओं के लोक साहित्य में उनके आख्यान की अभिव्यक्ति के अनेक रूप भी मौजूद हैं। राजस्थानी का ‘तेजा’ लोक-गीत तो इनमें शामिल है ही। वे इन प्रदेशों के सभी समुदायों के आराध्य हैं। लोग तेजाजी के मन्दिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं और दूसरी मन्नतों के साथ-साथ सर्प-दंश से होने वाली मृत्यु के प्रति अभय भी प्राप्त करते हैं। स्वयं तेजाजी की मृत्यु, जैसा कि उनके आख्यान से विदित होता है, सर्प-दंश से ही हुई थी। बचनबद्धता का पालन करने के लिए तेजाजी ने स्वयं को एक सर्प के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया था। वे युद्ध भूमि से आए थे और उनके शरीर का कोई भी हिस्सा हथियार की मार से अक्षत् नहीं था। घावों से भरे शरीर पर अपना दंश रखन को सर्प को ठौर नजर नहीं आई, तो उसने काटने से इन्कार कर दिया। वचन-भंग होता देख घायल तेजाजी ने अपना मुँह खोल कर जीभ सर्प के सामने फैला दी थी और सर्प ने उसी पर अपना दंश रख कर उनके प्राण हर लिए थे। लोक-नायक की जीवन-यात्रा एक नितान्त साधारण मनुष्य के रूप में शुरू होती है और वह किसी-न-किसी तरह के असाधारण घटनाक्रम में पड़ कर एक असाधारण मनुष्य में रूपान्तरित हो जाता है। उसकी कथा को कहने और सुनने वाला लोक ही उसे एक ऐसे मिथकीय अनुपात में ढाल देता है कि इतिहास के तथ्यप्रेमी चिमटे से तो वह पकड़ा ही नहीं जा सकता। मसलन तेजाजी जिस सर्प से अपनी जीभ पर दंश झेल कर अपनी वचनबद्धता निभाते हुए नायकत्व हासिल करते हैं, इतिहास में उसका तथ्यात्मक खुलासा कुछ यह कह कर दिया गया हैः जब तेजाजी पनेर से अपनी पत्नी के साथ लौट रहे थे उस समय उन पर मीना सरदारों ने हमला किया क्योंकि वे पहले इस नागवंशी राजा द्वारा हरा दिए गए थे. लोकाख्यान का नाग इतिहास की चपेट में आकर नागवंशी मुखिया की गति को प्राप्त हो जाता है। लोक-नायकों का एक वर्ग ऐसा भी होता है, जिसमें वे जन-साधारण के परित्राता अथवा परित्राणकर्त्ता बन कर अपनी छवि का अर्जन करते हैं। वे जन-साधारण के पक्ष में, स्थापित शक्ति-तन्त्र के दमन और दुराचार से लोहा लेते हैं। इस वर्ग के लोक-नायक अक्सर, हमेशा नहीं, कुछ हद तक संस्थापित कानून की हदों से बाहर निकले हुए होते हैं। तेजाजी के बलिदान की मूल कथा संक्षेप में इस प्रकार है.
तेजाजी का जन्म शंकर भगवान के वरदान से तेजाजी की प्राप्ति हुई तेजाजी का जन्म राजस्थान के नागौर जिले में खरनाल गाँव में माघ शुक्ला, चौदस वार गुरुार संवत ग्यारह सौ तीस, तदनुसार २९ जनवरी, १०७४, को धुलिया गोत्र के जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता चौधरी ताहरजी (थिरराज) राजस्थान के नागौर जिले के खरनाल गाँव के मुखिया थे। तेजाजी के नाना का नाम दुलन सोढी था. उनकी माता का नाम सुगना था. मनसुख रणवा ने उनकी माता का नाम रामकुंवरी लिखा है. तेजाजी का ननिहाल त्यौद गाँव (किशनगढ़) में था. तेजाजी के माता-पिता शंकर भगवान के उपासक थे. शंकर भगवान के वरदान से तेजाजी की प्राप्ति हुई. कलयुग में तेजाजी को शिव का अवतार माना गया है. तेजा जब पैदा हुए तब उनके चेहरे पर विलक्षण तेज था जिसके कारण इनका नाम रखा गया तेजा. उनके जन्म के समय तेजा की माता को एक आवाज सुनाई दी – “कुंवर तेजा ईश्वर का अवतार है, तुम्हारे साथ अधिक समय तक नहीं रहेगा. ” तेजाजी के जन्म के बारे में जन मानस के बीच प्रचलित एक राजस्थानी कविता के आधार पर मनसुख रणवा का मत है- जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के मांय। आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।। शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ पहचान। सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान।। अर्थात – अवतारी तेजाजी का जन्म विक्रम संवत ११३० में माघ शुक्ल चतुर्दशी, बृहस्पतिवर को नागौर परगना के खरनाल गाँव में धौलिया जाट सरदार के घर हुआ.
तेजाजी का हळसौतिया तेजाजी का हळसौतिया करते हुए तेजाजी की बालपन में पुष्कर में शादी हुई तेजाजी की ससुराल जाने से पहले भाभी से विदाई तेजाजी का पनेर आगमन लाछां गूजरी की सहायता से तेजाजी का पेमल से मिलन तेजाजी लाछां गूजरी की गाय डाकूओं से छुड़ाकर वापस लाते हुए सुरसुरा में वीर तेजाजी महाराज सुरसुरा में पेमल का सती होना ज्येष्ठ मास लग चुका है। ज्येष्ठ मास में ही ऋतु की प्रथम वर्षा हो चुकी है। ज्येष्ठ मास की वर्षा अत्यन्त शुभ है। गाँव के मुखिया को ‘हालोतिया’या हळसौतिया करके बुवाई की शुरुआत करनी है। मुखिया मौजूद नहीं है। उनका बड़ा पुत्र भी गाँव में नहीं है। उस काल में परंपरा थी की वर्षात होने पर गण या कबीले के गणपति सर्वप्रथम खेत में हल जोतने की शुरुआत करता था, तत्पश्चात किसान हल जोतते थे. मुखिया की पत्नी अपने छोटे पुत्र को, जिसका नाम तेजा है, खेतों में जाकर हळसौतिया का शगुन करने के लिए कहती है। तेजा माँ की आज्ञानुसार खेतों में पहुँच कर हल चलाने लगा है। दिन चढ़ आया है। तेजा को जोरों की भूख लग आई है। उसकी भाभी उसके लिए ‘छाक’ यानी भोजन लेकर आएगी। मगर कब? कितनी देर लगाएगी? सचमुच, भाभी बड़ी देर लगाने के बाद ‘छाक’ लेकर पहुँची है। तेजा का गुस्सा सातवें आसमान पर है। वह भाभी को खरी-खोटी सुनाने लगा है। तेजाजी ने कहा कि बैल रात से ही भूके हैं मैंने भी कुछ नहीं खाया है, भाभी इतनी देर कैसे लगादी. भाभी भी भाभी है। तेजाजी के गुस्से को झेल नहीं पाई और काम से भी पीड़ित थी सो पलट कर जवाब देती है, एक मन पीसना पीसने के पश्चात उसकी रोटियां बनाई, घोड़ी की खातिर दाना डाला, फिर बैलों के लिए चारा लाई और तेजाजी के लिए छाक लाई परन्तु छोटे बच्चे को झूले में रोता छोड़ कर आई, फिर भी तेजा को गुस्सा आये तो तुम्हारी जोरू जो पीहर में बैठी है. कुछ शर्म-लाज है, तो लिवा क्यों नहीं लाते? तेजा को भाभी की बात तीर-सी लगती है। वह रास पिराणी फैंकते हैं और ससुराल जाने की कसम खाते हैं. वह तत्क्षण अपनी पत्नी पेमल को लिवाने अपनी ससुराल जाने को तैयार होता है। तेजा खेत से सीधे घर आते हैं और माँ से पूछते हैं कि मेरी शादी कहाँ और किसके साथ हुई. माँ को खरनाल और पनेर की दुश्मनी याद आई और बताती है कि शादी के कुछ ही समय बाद तुम्हारे पिता और पेमल के मामा में कहासुनी हो गयी और तलवार चल गई जिसमें पेमल के मामा की मौत हो गयी. माँ बताती है कि तेजा तुम्हारा ससुराल गढ़ पनेर में रायमल्जी के घर है और पत्नी का नाम पेमल है. सगाई ताउजी बख्शा राम जी ने पीला-पोतडा़ में ही करदी थी. तेजा ससुराल जाने से पहले विदाई देने के लिये भाभी से पूछते हैं. भाभी कहती है – “देवरजी आप दुश्मनी धरती पर मत जाओ. आपका विवाह मेरी छोटी बहिन से करवा दूंगी.” तेजाजी ने दूसरे विवाह से इनकार कर दिया.
तेजाजी की बालपन में पुष्कर में शादी हुई
तेजाजी की ससुराल जाने से पहले भाभी से विदाई
तेजाजी का पनेर आगमन बहिन के ससुराल में तेजाजी भाभी फिर कहती है कि पहली बार ससुराल को आने वाली अपनी दुल्हन पेमल का ‘बधावा’ यानी स्वागत करने वाली अपनी बहन राजल को तो पहले पीहर लेकर आओ। तेजाजी का ब्याह बचपन में ही पुष्कर में पनेर गाँव के मुखिया रायमल की बेटी पेमल के साथ हो चुका था। विवाह के कुछ समय बाद दोनों परिवारों में खून-खराबा हुआ था। तेजाजी को पता ही नहीं था कि बचपन में उनका विवाह हो चुका था। भाभी की तानाकशी से हकीकत सामने आई है। जब तेजाजी अपनी बहन राजल को लिवाने उसकी ससुराल के गाँव तबीजी के रास्ते में थे, तो एक मीणा सरदार ने उन पर हमला किया। जोरदार लड़ाई हुई। तेजाजी जीत गए। तेजाजी द्वारा गाडा गया भाला जमीन में से कोई नहीं निकाल पाया और सभी दुश्मन भाग गए. तबीजी पहुँचे और अपने बहनोई जोगाजी सियाग के घर का पता पनिहारियों से पूछा. उनके घर पधार कर उनकी अनुमति से राजल को खरनाल ले आए। तेजाजी का पनेर प्रस्थान तेजाजी अपनी माँ से ससुराल पनेर जाने की अनुमति माँगते हैं. माँ को अनहोनी दिखती है और तेजा को ससुराल जाने से मना करती है. भाभी कहती है कि पंडित से मुहूर्त निकलवालो. पंडित तेजा के घर आकर पतड़ा देख कर बताता है कि उसको सफ़ेद देवली दिखाई दे रही है जो सहादत की प्रतीक है. सावन व भादवा माह अशुभ हैं. पंडित ने तेजा को दो माह रुकने की सलाह दी. तेजा ने कहा कि तीज से पहले मुझे पनेर जाना है चाहे धन-दान ब्रह्मण को देना पड़े. वे कहते हैं कि जंगल के शेर को कहीं जाने के लिए मुहूर्त निकलवाने की जरुरत नहीं है. तेजा ने जाने का निर्णय लिया और माँ-भाभी से विदाई ली. अगली सुबह वे अपनी लीलण नामक घोड़ी पर सवार हुए और अपनी पत्नी पेमल को लिवाने निकल पड़े। जोग-संयोगों के मुताबिक तेजा को लकडियों से भरा गाड़ा मिला, कुंवारी कन्या रोती मिली, छाणा चुगती लुगाई ने छींक मारी, बिलाई रास्ता काट गई, कोचरी दाहिने बोली, मोर कुर्लाने लगे. तेजा अन्धविसवासी नहीं थे. सो चलते रहे. बरसात का मौसम था. कितने ही उफान खाते नदी-नाले पार किये. सांय काल होते-होते वर्षात ने जोर पकडा. रस्ते में बनास नदी उफान पर थी. ज्यों ही उतार हुआ तेजाजी ने लीलण को नदी पार करने को कहा जो तैर कर दूसरे किनारे लग गई. तेजाजी बारह कोस अर्थात ३६ किमी का चक्कर लगा कर अपनी ससुराल पनेर आ पहुँचे। तेजाजी का पनेर आगमन शाम का वक्त था। पनेर गढ़ के दरवाजे बंद हो चुके थे. कुंवर तेजाजी जब पनेर के कांकड़ पहुंचे तो एक सुन्दर सा बाग़ दिखाई दिया. तेजाजी भीगे हुए थे. बाग़ के दरवाजे पर माली से दरवाजा खोलने का निवेदन किया. माली ने कहा बाग़ की चाबी पेमल के पास है, मैं उनकी अनुमति बिना दरवाजा नहीं खोल सकता. कुंवर तेजा ने माली को कुछ रुपये दिए तो झट ताला खोल दिया. रातभर तेजा ने बाग़ में विश्राम किया और लीलन ने बाग़ में घूम-घूम कर पेड़-पौधों को तोड़ डाला. बाग़ के माली ने पेमल को परदेशी के बारे में और घोडी द्वारा किये नुकशान के बारे में बताया. पेमल की भाभी बाग़ में आकर पूछती है कि परदेशी कौन है, कहाँ से आया है और कहाँ जायेगा. तेजा ने परिचय दिया कि वह खरनाल का जाट है और रायमल जी के घर जाना है. पेमल की भाभी माफ़ी मांगती है और बताती है कि वह उनकी छोटी सालेली है. सालेली (साले की पत्नि) ने पनेर पहुँच कर पेमल को खबर दी. कुंवर तेजाजी पनेर पहुंचे. पनिहारियाँ सुन्दर घोडी पर सुन्दर जवाई को देखकर हर्षित हुई. तेजा ने रायमल्जी का घर पूछा. सूर्यास्त होने वाला था. उनकी सास गाएँ दूह रही थी। तेजाजी का घोड़ा उनको लेकर धड़धड़ाते हुए पिरोल में आ घुसा। सास ने उन्हें पहचाना नहीं। वह अपनी गायों के डर जाने से उन पर इतनी क्रोधित हुई कि सीधा शाप ही दे डाला, ‘जा, तुझे काला साँप खाए!’ तेजाजी उसके शाप से इतने क्षुब्ध हुए कि बिना पेमल को साथ लिए ही लौट पड़े। तेजाजी ने कहा यह नुगरों की धरती है, यहाँ एक पल भी रहना पाप है.
लाछां गूजरी की सहायता से तेजाजी का पेमल से मिलन। अपने पति को वापस मुड़ते देख पेमल को झटका लगा. पेमल ने पिता और भाइयों से इशारा किया की वे तेजाजी को रोकें. श्वसुर और सेल तेजाजी को रोकते हैं पर वे मानते नहीं हैं. वे घर से बहार निकल आते हैं. पेमल की सहेली थी लाछां गूजरी। उसने पेमल को तेजाजी से मिलवाने का यत्न किया। वह ऊँटनी पर सवार हुई और रास्ते में मीणा सरदारों से लड़ती-जूझती तेजाजी तक जा पहुँची। उन्हें पेमल का सन्देश दिया। अगर उसे छोड़ कर गए, तो वह जहर खा कर मर जाएगी। उसके मां-बाप उसकी शादी किसी और के साथ तय कर चुके हैं। लाछां बताती है, पेमल तो मरने ही वाली थी, वही उसे तेजाजी से मिलाने का वचन दे कर रोक आई है। लाछन के समझाने पर भी तेजा पर कोई असर नहीं हुआ. पेमल अपनी माँ को खरी खोटी सुनाती है. पेमल कलपती हुई आई और लिलन के सामने कड़ी हो गई. पेमल ने कहा – आपके इंतजार में मैंने इतने वर्ष निकले. मेरे साथ घर वालों ने कैसा वर्ताव किया यह मैं ही जानती हूँ. आज आप चले गए तो मेरा क्या होगा. मुझे भी अपने साथ ले चलो. मैं आपके चरणों में अपना जीवन न्यौछावर कर दूँगी. पेमल की व्यथा देखकर तेजाजी पोल में रुके. सभी ने पेमल के पति को सराहा. शाम के समय सालों के साथ तेजाजी ने भोजन किया. देर रात तक औरतों ने जंवाई गीत गए. पेमल की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था. तेजाजी पेमल से मिले। अत्यन्त रूपवती थी पेमल। दोनों बतरस में डूबे थे कि लाछां की आहट सुनाई दी।
तेजाजी लाछां गूजरी की गाय डाकूओं से छुड़ाकर वापस लाते हुए…… लाछां गुजरी ने तेजाजी को बताया कि मीणा चोर उसकी गायों को चुरा कर ले गए हैं…. अब उनके सिवाय उसका कोई मददगार नहीं। लाछां गुजारी ने तेजाजी से कहा कि आप मेरी सहायता कर अपने क्षत्रिय धर्म की रक्षा करो अन्यथा गायों के बछडे भूखे मर जायेंगे. तेजा ने कहा राजा व भौमिया को शिकायत करो. लाछां ने कहा राजा कहीं गया हुआ है और भौमिया से दश्मनी है. तेजाजी ने कहा कि पनेर में एक भी मर्द नहीं है जो लड़ाई के लिए चढाई करे. तुम्हारी गायें मैं लाऊंगा. तेजाजी फिर अपनी लीलण घोड़ी पर सवार हुए। पंचों हथियार साथ लिए. पेमल ने घोडी कि लगाम पकड़ कर कहा कि मैं साथ चलूंगी. लड़ाई में घोडी थम लूंगी. तेजा ने कहा पेमल जिद मत करो. मैं क्षत्रिय धर्म का पालक हूँ. मैं अकेला ही मीणों को हराकर गायें वापिस ले आऊंगा. तेजाजी के आदेश के सामने पेमल चुप हो गई. पेमल अन्दर ही अन्दर कंप भी रही थी और बद्बदाने लगी – डूंगर पर डांडी नहीं, मेहां अँधेरी रात पग-पग कालो नाग, मति सिधारो नाथ अर्थात पहाडों पर रास्ता नहीं है, वर्षात की अँधेरी रात है और पग-पग पर काला नाग दुश्मन है ऐसी स्थिति में मत जाओ. तेजाजी धर्म के पक्के थे सो पेमल की बात नहीं मानी और पेमल से विदाई ली. पेमल ने तेजाजी को भाला सौंपा. वर्तमान सुरसुरा नामक स्थान पर उस समय घना जंगल था. वहां पर बालू नाग, जिसे लोक संगीत में बासक नाग बताया गया है, घात लगा कर बैठे थे. रात्रि को जब तेजाजी मीणों से गायें छुड़ाने जा रहे थे कि षड़यंत्र के तहत बालू नाग ने रास्ता रोका. बालू नाग बोला कि आप हमें मार कर ही जा सकते हो. तेजाजी ने विश्वास दिलाया कि मैं धर्म से बंधा हूँ. गायें लाने के पश्चात् वापस आऊंगा. मेरा वचन पूरा नहीं करुँ तो समझना मैंने मेरी माँ का दूध नहीं पिया है.
सुरसुरा में वीर तेजाजी महाराज….. वहां से तेजाजी ने भाला, धनुष, तीर लेकर लीलन पर चढ़ उन्होंने चोरों का पीछा किया. सुरसुरा से १५-१६ किमी दूर मंडावारियों की पहाडियों में मीणा दिखाई दिए. तेजाजी ने मीणों को ललकारा. तेजाजी ने बाणों से हमला किया. मीने ढेर हो गए, कुछ भाग गए और कुछ मीणों ने आत्मसमर्पण कर दिया. तेजा का पूरा शारीर घायल हो गया और तेजा सारी गायों को लेकर पनेर पहुंचे और लाछां गूजरी को सौंप दी . लाछां गूजरी को सारी गायें दिखाई दी पर गायों के समूह के मालिक काणां केरडा नहीं दिखा तो वह उदास हो गई और तेजा को वापिस जाकर लाने के लिए बोला. तेजाजी वापस गए. पहाड़ी में छुपे मीणों पर हमला बोल दिया व बछड़े को ले आये. इस लड़ाई में तेजाजी का शारीर छलनी हो गया. बताते हैं कि लड़ाई में १५० मीणा लोग मारे गए जिनकी देवली मंदावारिया की पहाड़ी में बनी हैं. सबको मार कर तेजाजी विजयी रहे एवं वापस पनेर पधारे. तेजाजी की वचन बद्धता लाछां गूजरी को काणां केरडा सौंप कर लीलण घोडी से बोले कि तुम वापस उस जगह चलो जहाँ मैं वचन देकर आया हूँ. तेजाजी सीधे बालू नाग के इन्तजार स्थल पर आते हैं. बालू नाग से बोलते हैं की मैं मेरा वचन पूरा करके आया हूँ तुम अब अपना वचन पूरा करो. बालू नाग का ह्रदय काँप उठा. वह बोला – “मैं तुम्हारी इमानदारी और बहादुरी पर प्रसन्न हूँ. मैंने पीढी पीढी का बैर चुकता कर लिया. अब तुम जाओ मैं तुम्हें जीवन दान देता हूँ. तुम अपने कुल के एक मात्र देवता कहलाओगे. यह मेरा वरदान है.” तेजाजी ने कहा कि मैं अपने वचनों से पीछे नहीं हटता वह अपने प्राण को हर हाल में पूरा करेगा. बालू नाग ने अपना प्रण पूरा करने के लिए तेजाजी की जीभ पर हमला किया. तेजाजी लीलन से नीचे गिरे और वीर गति को प्राप्त हो गए. वे कलयुग के अवतारी बन गए. लोक परम्परा में तेजाजी को काले नाग द्वारा डसना बताया गया है. कहते हैं की लाछां गूजरी जब तेजाजी के पास आयी और गायों को ले जाने का समाचार सुनाया तब रास्ते में वे जब चोरों का पीछा कर रहे थे, उसी दौरान उन्हें एक काला नाग आग में घिरा नजर आया। उन्होंने नाग को आग से बाहर निकाला। बासग नाग ने उन्हें वरदान की बजाय यह कह कर शाप दिया कि वे उसकी नाग की योनी से मुक्ति में बाधक बने। बासग नाग ने फटकार कर कहा – मेरा बुढापा बड़ा दुखदाई होता है. मुझे मरने से बचाने पर तुम्हें क्या मिला. तेजाजी ने कहा – मरते, डूबते व जलते को बचाना मानव का धर्म है. मैंने तुम्हारा जीवन बचाया है, कोई बुरा काम नहीं किया. भलाई का बदला बुराई से क्यों लेना चाहते हो. नागराज लीलन के पैरों से दूर खिसक जाओ वरना कुचले जाओगे. नाग ने प्रायश्चित स्वरूप उन्हें डसने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने नाग को वचन दिया कि लाछां गूजरी की गायें चोरों से छुड़ा कर उसके सुपुर्द करने के बाद नाग के पास लौट आएँगे। तेजाजी ने पाया कि लाछां की गायें ले जाने वाले उसी मीणा सरदार के आदमी थे, जिसे उन्होंने पराजित करके खदेड़ भगाया था। उनसे लड़ते हुए तेजाजी बुरी तरह लहुलूहान हो गए। गायें छुड़ा कर लौटते हुए अपना वचन निभाने वे नाग के सामने प्रस्तुत हो गए। नागराज ने कहा – तेजा नागराज कुंवारी जगह बिना नहीं डसता. तुम्हारे रोम-रोम से खून टपक रहा है. मैं कहाँ डसूं? तेजाजी ने कहा अपने वचन को पूरा करो. मेरे हाथ की हथेली व जीभ कुंवारी हैं, मुझे डसलो. नागराज ने कहा – “तेजा तुम शूरवीर हो. मैं प्रसन्न होकर तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम तुम्हारे कुल के देवता के रूप में पूजे जावोगे. आज के बाद काला सर्प का काटा हुआ कोई व्यक्ति यदि तुम्हारे नाम की तांती बांध लेगा तो उसका पान उतर जायेगा. किसान खेत में हलोतिया करने से पहले तुम्हारे नाम की पूजा करेगा और तुम कलयुग के अवतारी माने जावोगे. यही मेरा अमर आशीष है.” नाग को उनके क्षत्-विक्षत् शरीर पर दंश रखने भर को भी जगह नजर नहीं आई और अन्तत: तेजाजी ने अपनी जीभ पर सर्प-दंश झेल कर और प्राण दे कर अपने वचन की रक्षा की। तेजाजी ने नजदीक ही ऊँट चराते रैबारी आसू देवासी को बुलाया और कहा, ” भाई आसू देवासी ! मुसीबत में काम आने वाला ही घर का होता है, तू मेरा एक काम पूरा करना. मेरी इहलीला समाप्त होने के पश्चात् मेरा रुमाल व एक समाचार रायमल्जी मेहता के घर लेजाना और मेरे सास ससुर को पांवा धोक कहना. पेमल को मेरे प्यार का रुमाल दे देना, सारे गाँव वालों को मेरा राम-राम कहना और जो कुछ यहाँ देख रहे हो पेमल को बतादेना और कहना कि तेजाजी कुछ पल के मेहमान हैं.” लीलन घोडी की आँखों से आंसू टपकते देख तेजाजी ने कहा – “लीलन तू धन्य है. आज तक तूने सुख-दुःख में मेरा साथ निभाया. मैं आज हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हारा साथ छोड़ रहा हूँ. तू खरनाल जाकर मेरे परिवार जनों को आँखों से समझा देना.” आसू देवासी सीधे पनेर में रायमल्जी के घर गया और पेमल को कहा – “राम बुरी करी पेमल तुम्हारा सूरज छुप गया. तेजाजी बलिदान को प्राप्त हुए. मैं उनका मेमद मोलिया लेकर आया हूँ.”
सुरसुरा में पेमल का सती होना…… तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर पेमल के आँखों के आगे अँधेरा छा गया. उसने मां से सत का नारियल माँगा, सौलह श्रृंगार किये, परिवार जनों से विदाई ली और सुरसुरा जाकर तेजाजी के साथ सती हो गई. पेमल जब चिता पर बैठी है तो लिलन घोडी को सन्देश देती है कि सत्य समाचार खरनाल जाकर सबको बतला देना. कहते हैं कि अग्नि स्वतः ही प्रज्वलित हो गई और पेमल सती हो गई. लोगों ने पूछा कि सती माता तुम्हारी पूजा कब करें तो पेमल ने बताया कि – “भादवा सुदी नवमी की रात्रि को तेजाजी धाम पर जागरण करना और दसमी को तेजाजी के धाम पर उनकी देवली को धौक लगाना, कच्चे दूध का भोग लगाना. इससे मनपसंद कार्य पूर्ण होंगे. यही मेरा अमर आशीष है ” लीलन घोड़ी सतीमाता के हवाले अपने मालिक को छोड़ अंतिम दर्शन पाकर सीधी खरनाल की तरफ रवाना हुई. परबतसर के खारिया तालाब पर कुछ देर रुकी और वहां से खरनाल पहुंची. खरनाल गाँव में खाली पीठ पहुंची तो तेजाजी की भाभी को अनहोनी की शंका हुई. लीलन की शक्ल देख पता लग गया की तेजाजी संसार छोड़ चुके हैं. तेजाजी की बहिन राजल बेहोश होकर गिर पड़ी, फिर खड़ी हुई और माता-पिता, भाई-भोजाई से अनुमति लेकर माँ से सत का नारियल लिया और खरनाल के पास ही पूर्वी जोहड़ में चिता चिन्वाकर भाई की मौत पर सती हो गई. भाई के पीछे सती होने का यह अनूठा उदहारण है. राजल बाई को बाघल बाई भी कहते हैं राजल बाई का मंदिर खरनाल में गाँव के पूर्वी जोहड़ में हैं. तेजाजी की प्रिय घोड़ी लीलण भी दुःख नहीं झेल सकी और अपना शारीर छोड़ दिया. लीलण घोड़ी का मंदिर आज भी खरनाल के तालाब के किनारे पर बना है. इतिहासकारों ने तेजाजी के निधन की तिथि दर्ज की: २८ अगस्त, ११०३ ईस्वी। ***************************************************************************************************************
तेजाजी की चमत्कारी शक्तियां आज के विज्ञान के इस युग में चमत्कारों की बात करना पिछड़ापन माना जाता है और विज्ञान चमत्कारों को स्वीकार नहीं करता. परन्तु तेजाजी के साथ कुछ चमत्कारों की घटनाएँ जुडी हुई हैं जिन पर नास्तिक व्यक्तियों को भी बरबस विस्वास करना पड़ता है. कुछ घटनाएँ इस प्रकार हैं: जोधपुर के राजा अभय सिंह को तेजाजी का दर्शाव – सन १७९१ में जोधपुर राज्य के राजा अभय सिंह को सोते समय तेजाजी का दर्शाव हुआ. दर्शाव में तेजाजी ने राजा से कहा कि दक्षिण में मध्य प्रदेश तक के लोग मेरी पूजा करते हैं लेकिन मारवाड़ में मुझे भूल से चुके हैं. तेजाजी ने वचन दिया कि जहाँ लीलन , खारिया तालाब, में रुकी थी वहां मैं जाऊंगा. राजा ने पूछा, हम चाहते हैं कि आप हमारी धरती पर पधारो. पर आप कोई सबूत दो कि पधार गए हैं. तेजाजी ने दर्शाव में कहा कि परबतसर तालाब के पास जहाँ लीलन खड़ी हुई थी वहां जो खारिया तालाब है उसका पानी मीठा हो जायेगा एवं टीले पर जो हल का जूडा पेड़ के पास लटका है वो हरा हो जायेगा तथा यह खेजडा बनकर हमेशा खांडा खेजड़ा रहेगा. जोधपुर महाराज ने पनेर से तेजाजी की असली जमीन से निकली देवली लानी चाही लेकिन असफल रहे. अंत में तेजाजी ने दर्शाव में कहा कि मैं बिना मूर्ती के ही आ जाऊंगा, तब राजा ने देवली दूसरी लाकर लगाई. राजा जब वहां पधारे हल का जूडा हरा हो गया तथा खारिया तालाब का पानी चमत्कारी ढंग से मीठा हो गया. जोधपुर राज्य के राजा अभय सिंह को अपार ख़ुशी हुई और लोक देवता वीर तेजाजी का मंदिर खारिया तालाब की तीर पर बनाया. परबतसर तेजाजी पशु मेला – परबतसर में एशिया का सबसे बड़ा तेजाजी पशु मेला भरता है. यहाँ बिकने आने वाले पशुओं की अधिकतम संख्या १३०००० है तथा उसमें से बिक्री का रिकार्ड १००००० का है. हर वर्ष परबतसर मेले में सारे पशु रात को अचानक खड़े हो जाते हैं. ऐसी मान्यता है कि रात्रि को तेजाजी अपनी घोड़ी लीलन पर चढ़कर आते हैं और हर साल एक बार मेले में सभी प्राणियों को दर्शाव देते हैं. इस चमत्कारिक घटना के गवाह मेले में जाने वाले बड़े बुजुर्ग व पशु पालक हैं. सुरसुरा तेजाजी का बलिदान स्थल – सुरसुरा तेजाजी का बलिदान स्थल है. इसके स्थापना के पीछे भी ऐतिहासिक और चमत्कारिक घटना है. एक सुर्रा नाम का खाती बैलों को ले जा रहा था. रात्रि हो गई और खाती अराध्य देव तेजाजी की रखवाली में बैलों को छोड़ वहीँ रुक गया. रात को सुर्रा सो गया तब गुर्जरों ने बैलों को खोल लिया. लेकिन तेजाजी की कृपा से सारे गुर्जर आत्मा से अंधे हो गए एवं बैलों के साथ रात भर वहीँ घूमते रहे. सुबह जब सुर्रा उठा तो दूर पहाड़ी पर बैलों को घूमते पाया व गुर्जर पीछे पीछे घूम रहे थे. जब सुर्रा पास गया तो गुर्जरों का अंधापन दूर हो गया तथा उन्होंने सुर्रा से माफ़ी मांगी व भाग गए. सुर्रा तेजाजी के चमत्कार से बड़ा प्रभावित हुआ और वहीँ बस गया. तभी से तेजाजी के बलिदान धाम का नाम सुर्रा के कारण सुरसुरा पड़ गया. नदी की तलहटी में मिले तेजाजी – शिवना नदी की साफ-सफाई के लिए इन दिनों प्रत्येक रविवार को गायत्री परिवार के सदस्यों द्वारा श्रमदान किया जा रहा है। इस दौरान इस रविवार 22 मार्च 2009 को नदी से यमराज और वीर तेजाजी की दो प्राचीन प्रतिमाएँ निकली हैं। इन्हें लगभग दो सौ वर्ष पुरानी बताया गया है। यमराज और तेजाजी की प्रतिमाओं को मंदसौर स्थित पशुपतिनाथ मंदिर के हॉल में रखा गया है। रविवार सुबह लगभग साढ़े ग्यारह बजे श्रमदान के दौरान योगेशसिंह को गाद में दबी यमराज की साढ़े तीन फुट ऊँची प्रतिमा मिली। श्याम सोनी को समीप ही ढाई फुट ऊँची तेजाजी की प्रतिमा दिखी। दोनों प्रतिमाओं को निकालकर घाट पर रखा गया और प्रशासन को सूचना दी गई. गायत्री परिवार के सदस्य निर्मल मंडोवरा ने बताया कि दोनों प्रतिमाएँ अखंडित हैं तथा 150 से 200 वर्ष प्राचीन लगती हैं। **************************************
मीडिया में तेजाजी…………….. 30 अगस्त 2009 को मध्य प्रदेश के मालवा आँचल में तेजा दशमी मनाई गयी थी। राजस्थान में 30 अगस्त 2009 को यह पर्व विभिन्न भागों में मनाया गया। यहाँ मीडिया में तेजाजी के बारे में छपे कुछ समाचारों का सारांश दिया जा रहा है. यह बात स्पस्ट होती है कि तेजाजी का लोक देवता के रूप में गहरा प्रभाव है और भारी जन आस्था है। तेजाजी का मेला आरम्भ – चित्तौडग़ढ़[2], २९ अग. (प्रासं)। तेजाजी महाराज का वाॢषक मेला नगर के प्रतापनगर क्षेत्र में धाॢमक अनुष्ठान के साथ प्रारम्भ हो गया। तीन दिवसीय इस मेले का उद्घाटन भगवान तेजाजी महाराज सार्वजनिक न्यास के अध्यक्ष जगदीश पालीवाल द्वारा किया गया। उद्घाटन के अवसर पर न्यास के संरक्षक रामचन्द्र शर्मा, नारायणलाल गुर्जर, श्यामलाल कीर, गिरिराज शर्मा आदि मौजूद थे। उद्घाटन के पश्चात तेजाजी महाराज की जीवनी पर आधारित खेल का मंचन किया गया। इस दौरान राई नृत्य का आयोजन भी किया गया। बारिश के बीच बड़ी संख्या में मौजूद लोगो ने इसका आनन्द लिया। मेले का समापन रविवार को होगा। तेजाजी मेले की तैयारियां शुरू – भास्कर न्यूज भीलवाड़ा [3] भीलवाड़ा, । जिले भर में तेजा दशमी पर भरने वाले तेजाजी के मेलों को लेकर तैयारियां शुरू हो गई है। तेजाजी के चौक में भरने वाले तीन दिवसीय तेजा मेले को लेकर मेलास्थल पर डोलर, चकरियां लगनी शुरू हो गई है। तेजाजी के स्थान की भी साफ सफाई की जा रही है। तीन दिवसीय मेले की तैयारियों में नगर परिषद भी जुट गई है। मेला स्थल की सफाई की जा रही है। जिले के विभिन्न गांव और कस्बों में भी तेजा दशमी के मौके पर जागरण और कीर्तन के कार्यक्रम भी होंगे और झण्डे भी चढ़ाए जाएंगे। तेजाजी के थान पर उमड़े श्रद्धालु – भास्कर न्यूज अजमेर[4] – अजमेर. ऊसरी गेट स्थित प्राचीन तेजाजी की देवरी पर रविवार को भरे सालाना मेले में भारी संख्या में श्रद्धालु उमड़े। श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि की कामना की। थान पर पूरे दिन श्रद्धालुओं का रैला उमड़ता रहा। शाम के समय मेला और परवान चढ़ा। अल सुबह से ही तेजाजी की देवरी पर श्रद्धालुओं का आने का क्रम जारी हो चुका था। भीड़ की स्थिति यह थी कि पुरुष और महिलाओं की यहां अलग-अलग कतार लगाई गई। कतारों में खड़े भक्तजन तेजाजी महाराज के जयकारे लगाते हुए अपनी बारी का इंतजार करते रहे। तेजाजी के श्रद्धालुओं ने नारियल, फूल माला और अगरबत्ती भेंट की। यहां नवजात शिशुओं एवं नवविवाहित जोड़ों ने भी धोक दिया। पूरे दिन श्रद्धालुओं का यहां आना-जाना लगा रहा। इधर शहर के विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित तेजाजी के मंदिरों पर भी मेले भरे और रौनक रही। दाता नगर जटिया हिल्स स्थित रामदेव महाराज व तेजाजी महाराज का मेला भरा। तोपदड़ा के मेघवंशी मोहल्ला में बाबा रामदेव एवं तेजाजी महाराज की शोभायात्रा निकाली गई। रामनगर स्थित तेजा धम पर तेजाजी का मेला भरा, यहां मेला सुबह ध्वजारोहण के साथ हुआ। सजा श्रद्धा का दरबार, फैली सुगंध – भास्कर न्यूज भीलवाड़ा [5] भीलवाड़ा . लोकदेवता तेजाजी के जन्मोत्सव पर रविवार को उनके थानकों पर पूजा-अर्चना के लिए श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहा। कोई चूरमा बाटी का भोग लगा रहा था, तो कोई कतारों में खड़ा होकर नारियल, प्रसाद व अगरबत्ती चढ़ाने के लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा था। यह नजारा था रविवार सुबह से ही तेजाजी चौक स्थित तेजाजी मंदिर का। तेजा दशमी पर सुबह पांच बजे तेजाजी की आरती की गई। उसके बाद श्रद्धालुओं का आना शुरू हुआ, जो अनवरत चलता रहा। दोपहर में तेजाजी स्थल पर मत्था टेकने व प्रसाद चढ़ाने वालों की लंबी कतारें लग गई। बड़ी संख्या में दर्शनों को उमड़े श्रद्धालुओं को देखते हुए प्रशासन ने भी सुरक्षा के विशेष बंदोबस्त किए। रविवार से ही तीन दिवसीय मेला भी शुरू हो गया। श्रद्धालु तेजाजी के जयकारे लगाते मेले का लुत्फ उठा रहे थे। कइयों ने ड्रेगन ट्रेन में बैठकर आनंद लिया तो कइयों ने झूलों का। महिलाएं घरेलू सामान खरीद रही थी, तो बच्चे खिलौनों के साथ ही मौत का कुआं देखने में मशगूल थे। ग्रामीण इस बार मेले में पहुंची नई चीजों को देख अचंभित हो रहे थे। तेजाजी के जयकारों से गूंजा शहर – वीर तेजा ब्रिगेड व युवा जाट महासभा की ओर से वाहन रैली निकाली गई। युवाओं ने तेजाजी के जयकारों से शहर को गुंजायमान कर दिया। ढोल की थाप पर नाचते-गाते युवा तेजाजी का जयघोष करते चल रहे थे।प्राइवेट बस स्टैंड स्थित जाट समाज के छात्रावास से वीर तेजा ब्रिगेड के जिलाध्यक्ष राजेश जाट व युवा जाट महासभा के जिलाध्यक्ष रामेश्वरलाल जाट ने तेजाजी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर हरी झंडी दिखा रैली को रवाना किया। रैली शहर के मुख्य बाजारों से होते हुए तेजाजी चौक पहुंची। वहां तेजाजी का ध्वज अर्पण कर पूजा-अर्चना की। देवालाल जाट, सुखपाल जाट, नारायण जाट, शिवराज जाट, रामप्रसाद जाट, हीरालाल जाट, बक्षु जाट, शिवलाल जाट सहित जिलेभर के जाट समाज के युवा शामिल थे। आज चढ़ेंगे ध्वज व नेजे – तेजाजी स्थल पर एकादशी के दिन मजदूरों व कावाखेड़ा कच्चीबस्ती की ओर से विशाल ध्वज चढ़ाए जाएंगे। अगरपुरा, सांगानेर, सुवाणा व पांसल गांवों से श्रद्धालु अपने-अपने नेजे चढ़ाएंगे। चित्तौड़ रोड स्थित मॉडर्न व वुलन तथा राजस्थान स्पिनिंग मिल के मजदूर झंडे के साथ रवाना होंगे। मुख्य बाजारों में होते हुए थान पर पहुंचेंगे, जहां पूजा के बाद झंडे तेजाजी को चढ़ाए जाएंगे। कावाखेड़ा बस्ती का झंडा चार बजे चढ़ेगा। तेजाजी के थानकों पर भीड – भास्कर न्यूज बारां [6] बारां। तेजादशमी के अवसर पर रविवार को जिले में लोक देवता वीर तेजाजी की थानकों पर मेले आयोजित किए गए। पूजन-अर्चना व दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं की भीड जुटी रही। शहर के डोल मेला मैदान स्थित तेजाजी की थानक पर सुबह से ही पूजा-अर्चना का दौर शुरू हो गया था। यहां शाम तक पूजा अर्चना के लिए खासी भीड रही। शाम चार बजे बाद तेजाजी के झंडे के साथ अलगोजों के साथ भजनों की स्वरलहरियां बिखरते दल शहर के प्रमुख मार्गो से होकर तेजाजी के थानक पर पहुंचे। थानक के बाहर कई सपेरें अपनी पिटारियों में रखे सांपों को बाहर निकालकर बैठे नजर आए। एक साथ करीब दर्जन भर सांपों को देखकर लोग रोमांचित रहे। श्रद्धालुओं ने इन्हें भेंट भी दी। दूग्धाभिषेक, चूरमा-बाटी का भोग – सुबह होने पर दर्शनों के लिए पहुंचे श्रद्धालुओं ने यहां थानक पर तेजाजी के दर्शन कर नारियल, दूध आदि का प्रसाद चढाकर खुशहाली की कामना की। चूरमा, बाटी का भोग लगया गया। दिनभर लगा रहा तांता – सारथल – सारथल सहित आस-पास गांवों में तेजा दशमी श्रद्धापूर्वक मनाई गई। वीर तेजाजी के थानक पर सुबह से श्रद्धालुओं द्वारा नारियल, लडडू बाटी,चूरमा का भोग लगाया गया। दिनभर श्रद्धालुओं की थानक पर पूजा अर्चना के लिए भीड लगी रही। यहां सर्प दंश व जीव जन्तुओं के काटने से पीडित एक दर्जन करीब लोगों की डसी काटी गई। बमोरीकलां – यहां स्थित क्षार बाग में रविवार को लोक देवता तेजाजी के थानक पर दो दिवसीय मेला शुरू हुआ। मेले में खिलौने, मिठाई तथा मनिहारी के सामानों की दुकानें लगाई गई। तेजा दशमी के अवसर पर मंडलियों द्वारा गायन किया गया। पलायथा – कस्बे सहित क्षेत्र में रविवार को तेजादशमी मनाई गई। तेजाजी की मंडलियों ने तेजाजी के थानक पर विधिवत पूजा के बाद कस्बे में घूमकर तेजाजी गायन किया तथा ध्वज को घर-घर पहुंचने श्रद्धालुओं ने भी तेजाजी का पूजन कर नारियल चढाए। निकटवर्ती ग्राम अमलसरा स्थित तेजाजी के थानक पर एक दिवसीय मेला लगा। प्रसाद चढाया, मेले का लुत्फ उठाया – अन्ता – तेजादशमी के अवसर पर पर रविवार को यहां श्रद्घालुओं में विशेष उत्साह रहा। इस दौरान सीसवाली मार्ग पर बाबा खेमजी के तालाब की पाल पर तेजाजी स्थल पर लगे मेले में महिला पुरूषों की भीड उमड पडी।यहां तेजाजी के थानक पर श्रद्धालुओं ने दूध, नारियल और प्रसाद चढाया। मेला स्थल पर लगी दुकानों पर पर बच्चों ने चाट पकोडी का आनंद उठाया। इस दौरान कई सामाजिक संस्थाओं की ओर से यहां पानी के प्याऊ लगाए गए वहीं यातायात व्यवस्था बनाए रखने में पुलिस को कडी मशक्कत करनी पडी। ‘कोयला – कोयला, मियाडा, तिसाया, कोटडी समेत आसपास के गांवों में लोक देवता तेजाजी महाराज की पूजा-अर्चना कर लड्डू-बाटी का भोग लगाया गया। कस्बे के तेजाजी महाराज के थानक पर सुबह से ही लोगों की आवाजाही रही जो शाम तक चली। यहां एक दिवसीय मेला भी लगा। सीसवाली – कस्बे में तेजा दशमी पर्व पर रविवार को प्रात: से ही तेजाजी थानक पर श्रद्धालुओं की भारी भीड रही। रविवार को तेजा दशमी पर्व पर तिसाया रोड पर स्थित मेला मैदान पर तेजाजी महाराज के स्थान पर प्रात: से ही श्रद्धालुओ द्वारा दूध चढाकर पूजा-अर्चना का कार्यक्रम शुरू किया गया जो दिन भर चलता रहा। हरनावदाशाहजी – तेजादशमी का पर्व कस्बे समेत समूचे क्षेत्र में परम्परागत रूप से मनाया गया। इस अवसर पर लोगों ने तेजाजी के थानकों पर पूजा अर्चना की। कस्बे में छीपाबडौद मार्ग स्थित तेजाजी चौक में रविवार को पूरे दिन श्रृद्धालुओं का पूजा अर्चना करने एवं दर्शनो के लिए तांता लगा रहा। गांव उमरिया में भी तेजादशमी के अवसर पर एक दिवसीय मेला भी लगा। बोहत – कस्बे सहित आसपास के गांवों में तेजा दशमी का पर्व धूमशाम से मनाया गया। घर-घर लड्डू-बाटी बनाकर तेजाजी महाराज को भोग लगाया। कस्बे के हिंगोनियां सडक मार्ग के निकट लोक आस्था का प्रतीक तेजाजी के थानक पर सुबह से ही दूध चढाने व नारियल फोडने वाले श्रद्धालुओं की भीड लगी रही। ग्राम पंचायत द्वारा तेजाजी के थानक पर पांच दिवसीय मेले का भी आयोजन रखा गया। क्षेत्र के कई गांवों से बडी संख्या में श्रद्धालुओं ने मेले में पहुंचकर तेजाजी के दर्शन किए। मांगरोल – कस्बे सहित ग्रामीण अंचल में तेजा दशमी का पर्व धूमधाम से मनाया गया। कस्बे में नगर पालिका द्वारा सात दिवसीय मेले का आयोजन रखा गया है। वहीं समीपवर्ती ग्राम जलोदा तेजाजी में तेजाजी के थानक पर दूध-प्रसाद चढाने वाले श्रद्धालुओं की भीड नजर आई। ग्राम पंचायत द्वारा तीन दिवसीय मेले का आयोजन रखा गया है। शाहाबाद – सहरिया बहुल्य क्षेत्र में रविवार को तेजा दशमी का त्योहार धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर तेजाजी के थानकों पर भीड उमडी ओर श्रद्धालुओं ने थानकों पर दर्शन तथा पूजा अर्चना की। मेला लगा – छीपाबडौद – क्षेत्र भर मे रविवार को तेजादशमी का पर्व मनाया गया। समीपवर्ती रतनपुरा गांव में इस मौके पर आयोजित एक दिवसीय मेले में लोग उमडे। मेले में पहुंचे विधायक करण सिंह राठौड का मेला समिति के संयोजक प्रेम सिंह चोधरी, महेंद्र सिंह चौधरी आदि ने स्वागत किया। इस अवसर पर विधायक ने यहां विधायक कोष से दो लाख रूपए देने व नलकूप लगवाकर मोटर डलवाने की घोषणा की। तेजाजी पशु मेला 5 से – सीमा सन्देश [7] श्रीगंगानगर। पशुपालन विभाग द्धारा पर्वतसर (नागौर) में श्री वीर तेजाजी पशु मेला आयोजित किया जाएगा। सहायक निदेशक पशुपालन विभाग ने बताया कि यह पशु मेला 5 अगस्त से 20 अगस्त तक चलेगा। चौकियों की स्थापना एक अगस्त-09 को की जाएगी। तेजाजी को पूजा, मेले लगे – भास्कर न्यूज उज्जैन [8] उज्जैन तेजा दशमी पर रविवार को तेजाजी महाराज की आराधना होगी। तेजाजी मंदिरों में शनिवार से ही श्रदालु पहुंचना शुरू हो गए। बड़ नगर रोड़ स्थित तेजाजी महाराज मंदिर में शनिवार को ही विभिन्न ग्रामीण अंचलों से श्रदालु निशान लेकर पहुंचे। यहाँ रात ८ बजे भजन संध्या शुरू हुई जो देर रात तक चली. रविवार को यहाँ मेला लगेगा और दिन भर निशानों का पूजन होगा। शाम को नगर में चल समारोह होगा जिसमें सैंकडों निशान शामिल होंगे। भैरव गढ़ सिद्धवट के समीप स्थित तेजाजी मंदिर में भी मेला लगेगा। रविवार दोपहर ३ बजे मंदिर में महा आरती होगी। अतिथि विकास प्राधिकरण अध्यक्ष मोहन यादव होंगे। तेजा दशमी पर कई घरों में चावल नहीं बनाये जाते। भैरव गढ़ क्षेत्र से लगे करीब १२ गांवों में चावल नहीं बनेंगे और ग्रामीण ढोल-धमाकों से नाचते गाते मंदिर पहुंचेंगे। मक्सी रोड पंवासा में तेजाजी मंदिर में माच का आयोजन होगा। तेजा स्थली विकसित करने की जरूरत – पत्रिका समाचार नागौर [9]नागौर। लोक देवता वीर तेजाजी की 935 वीं जयंती पर रविवार को खरनाल में आयोजित समारोह में वक्ताओं ने खरनाल को विश्व मानचित्र पर स्थान दिलाने की वकालत की। वीर तेजा जाट जन्मस्थली संस्थान में हुए समारोह में मुख्य अतिथि संसदीय सचिव दिलीप चौधरी ने कहा कि समाज के आराध्य देव तेजाजी की जन्मस्थली को विकसित करने की जरूरत है। वे इसे विश्व मानचित्र पर स्थान दिलाने में कोई कसर नहीं छोडेंगे। इसके लिए शीघ्र ही योजना बनाकर मुख्यमंत्री के सामने रखेंगे। उन्होंने तेजाजी के त्याग एवं वीरता का गुणगान करते हुए कहा कि उनके बनाए रास्ते पर चलकर समाज को नई दिशा दी जा सकती है। उन्होंने सरकार के किसान हित में किए जा रहे प्रयासों का बखान करते हुए कहा कि राज्य सरकार किसानों के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले करने जा रही है। किसानों के लिए शीघ्र ही किसान आयोग एवं मार्केटिंग बोर्ड बनेगा। अध्यक्षता करते हुए डीडवाना विधायक रूपाराम डूडी ने कहा कि वीर तेजाजी के बलिदान से समाज को सीख लेनी चाहिए। विशिष्ट अतिथि विधायक हनुमान बेनीवाल ने कहा कि तेजाजी पूरे किसान समाज के देवता हैं। उन्होंने गायों की सेवा करते प्राणों की बाजी दी। पूर्व आईपीएस बी.आर. ग्वाला, आईपीएस के.राम बागडिया, जायल प्रधान रिद्धकरण लोमरोड, पूर्व प्रधान रूपाराम, संस्थान के राष्ट्रीय सचिव अर्जुनराम मेहरिया,संस्था उपाध्यक्ष यूआर बेनीवाल, भोपालगढ के पूर्व प्रधान बद्रीराम जाखड ने विचार व्यक्त किए। इससे पहले अतिथियों ने तेजाजी मंदिर में धोक लगाई। मदेरणा व चौधरी ने की पूजा – जन संसाधन मंत्री महिपाल मदेरणा एवं राजस्व मंत्री हेमाराम चौधरी, उप जिला प्रमुख डॉ. सहदेव चौधरी ने खरनाल स्थित मंदिर में तेजाजी के दर्शन किए। इस मौके पर संस्थान अध्यक्ष मेहरिया ने मंत्रियों का स्वागत किया।
मीडिया में तेजाजी…………….. 30 अगस्त 2009 को मध्य प्रदेश के मालवा आँचल में तेजा दशमी मनाई गयी थी। राजस्थान में 30 अगस्त 2009 को यह पर्व विभिन्न भागों में मनाया गया। यहाँ मीडिया में तेजाजी के बारे में छपे कुछ समाचारों का सारांश दिया जा रहा है. यह बात स्पस्ट होती है कि तेजाजी का लोक देवता के रूप में गहरा प्रभाव है और भारी जन आस्था है। तेजाजी का मेला आरम्भ – चित्तौडग़ढ़[2], २९ अग. (प्रासं)। तेजाजी महाराज का वाॢषक मेला नगर के प्रतापनगर क्षेत्र में धाॢमक अनुष्ठान के साथ प्रारम्भ हो गया। तीन दिवसीय इस मेले का उद्घाटन भगवान तेजाजी महाराज सार्वजनिक न्यास के अध्यक्ष जगदीश पालीवाल द्वारा किया गया। उद्घाटन के अवसर पर न्यास के संरक्षक रामचन्द्र शर्मा, नारायणलाल गुर्जर, श्यामलाल कीर, गिरिराज शर्मा आदि मौजूद थे। उद्घाटन के पश्चात तेजाजी महाराज की जीवनी पर आधारित खेल का मंचन किया गया। इस दौरान राई नृत्य का आयोजन भी किया गया। बारिश के बीच बड़ी संख्या में मौजूद लोगो ने इसका आनन्द लिया। मेले का समापन रविवार को होगा। तेजाजी मेले की तैयारियां शुरू – भास्कर न्यूज भीलवाड़ा [3] भीलवाड़ा, । जिले भर में तेजा दशमी पर भरने वाले तेजाजी के मेलों को लेकर तैयारियां शुरू हो गई है। तेजाजी के चौक में भरने वाले तीन दिवसीय तेजा मेले को लेकर मेलास्थल पर डोलर, चकरियां लगनी शुरू हो गई है। तेजाजी के स्थान की भी साफ सफाई की जा रही है। तीन दिवसीय मेले की तैयारियों में नगर परिषद भी जुट गई है। मेला स्थल की सफाई की जा रही है। जिले के विभिन्न गांव और कस्बों में भी तेजा दशमी के मौके पर जागरण और कीर्तन के कार्यक्रम भी होंगे और झण्डे भी चढ़ाए जाएंगे। तेजाजी के थान पर उमड़े श्रद्धालु – भास्कर न्यूज अजमेर[4] – अजमेर. ऊसरी गेट स्थित प्राचीन तेजाजी की देवरी पर रविवार को भरे सालाना मेले में भारी संख्या में श्रद्धालु उमड़े। श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि की कामना की। थान पर पूरे दिन श्रद्धालुओं का रैला उमड़ता रहा। शाम के समय मेला और परवान चढ़ा। अल सुबह से ही तेजाजी की देवरी पर श्रद्धालुओं का आने का क्रम जारी हो चुका था। भीड़ की स्थिति यह थी कि पुरुष और महिलाओं की यहां अलग-अलग कतार लगाई गई। कतारों में खड़े भक्तजन तेजाजी महाराज के जयकारे लगाते हुए अपनी बारी का इंतजार करते रहे। तेजाजी के श्रद्धालुओं ने नारियल, फूल माला और अगरबत्ती भेंट की। यहां नवजात शिशुओं एवं नवविवाहित जोड़ों ने भी धोक दिया। पूरे दिन श्रद्धालुओं का यहां आना-जाना लगा रहा। इधर शहर के विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित तेजाजी के मंदिरों पर भी मेले भरे और रौनक रही। दाता नगर जटिया हिल्स स्थित रामदेव महाराज व तेजाजी महाराज का मेला भरा। तोपदड़ा के मेघवंशी मोहल्ला में बाबा रामदेव एवं तेजाजी महाराज की शोभायात्रा निकाली गई। रामनगर स्थित तेजा धम पर तेजाजी का मेला भरा, यहां मेला सुबह ध्वजारोहण के साथ हुआ। सजा श्रद्धा का दरबार, फैली सुगंध – भास्कर न्यूज भीलवाड़ा [5] भीलवाड़ा . लोकदेवता तेजाजी के जन्मोत्सव पर रविवार को उनके थानकों पर पूजा-अर्चना के लिए श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहा। कोई चूरमा बाटी का भोग लगा रहा था, तो कोई कतारों में खड़ा होकर नारियल, प्रसाद व अगरबत्ती चढ़ाने के लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा था। यह नजारा था रविवार सुबह से ही तेजाजी चौक स्थित तेजाजी मंदिर का। तेजा दशमी पर सुबह पांच बजे तेजाजी की आरती की गई। उसके बाद श्रद्धालुओं का आना शुरू हुआ, जो अनवरत चलता रहा। दोपहर में तेजाजी स्थल पर मत्था टेकने व प्रसाद चढ़ाने वालों की लंबी कतारें लग गई। बड़ी संख्या में दर्शनों को उमड़े श्रद्धालुओं को देखते हुए प्रशासन ने भी सुरक्षा के विशेष बंदोबस्त किए। रविवार से ही तीन दिवसीय मेला भी शुरू हो गया। श्रद्धालु तेजाजी के जयकारे लगाते मेले का लुत्फ उठा रहे थे। कइयों ने ड्रेगन ट्रेन में बैठकर आनंद लिया तो कइयों ने झूलों का। महिलाएं घरेलू सामान खरीद रही थी, तो बच्चे खिलौनों के साथ ही मौत का कुआं देखने में मशगूल थे। ग्रामीण इस बार मेले में पहुंची नई चीजों को देख अचंभित हो रहे थे। तेजाजी के जयकारों से गूंजा शहर – वीर तेजा ब्रिगेड व युवा जाट महासभा की ओर से वाहन रैली निकाली गई। युवाओं ने तेजाजी के जयकारों से शहर को गुंजायमान कर दिया। ढोल की थाप पर नाचते-गाते युवा तेजाजी का जयघोष करते चल रहे थे।प्राइवेट बस स्टैंड स्थित जाट समाज के छात्रावास से वीर तेजा ब्रिगेड के जिलाध्यक्ष राजेश जाट व युवा जाट महासभा के जिलाध्यक्ष रामेश्वरलाल जाट ने तेजाजी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर हरी झंडी दिखा रैली को रवाना किया। रैली शहर के मुख्य बाजारों से होते हुए तेजाजी चौक पहुंची। वहां तेजाजी का ध्वज अर्पण कर पूजा-अर्चना की। देवालाल जाट, सुखपाल जाट, नारायण जाट, शिवराज जाट, रामप्रसाद जाट, हीरालाल जाट, बक्षु जाट, शिवलाल जाट सहित जिलेभर के जाट समाज के युवा शामिल थे। आज चढ़ेंगे ध्वज व नेजे – तेजाजी स्थल पर एकादशी के दिन मजदूरों व कावाखेड़ा कच्चीबस्ती की ओर से विशाल ध्वज चढ़ाए जाएंगे। अगरपुरा, सांगानेर, सुवाणा व पांसल गांवों से श्रद्धालु अपने-अपने नेजे चढ़ाएंगे। चित्तौड़ रोड स्थित मॉडर्न व वुलन तथा राजस्थान स्पिनिंग मिल के मजदूर झंडे के साथ रवाना होंगे। मुख्य बाजारों में होते हुए थान पर पहुंचेंगे, जहां पूजा के बाद झंडे तेजाजी को चढ़ाए जाएंगे। कावाखेड़ा बस्ती का झंडा चार बजे चढ़ेगा। तेजाजी के थानकों पर भीड – भास्कर न्यूज बारां [6] बारां। तेजादशमी के अवसर पर रविवार को जिले में लोक देवता वीर तेजाजी की थानकों पर मेले आयोजित किए गए। पूजन-अर्चना व दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं की भीड जुटी रही। शहर के डोल मेला मैदान स्थित तेजाजी की थानक पर सुबह से ही पूजा-अर्चना का दौर शुरू हो गया था। यहां शाम तक पूजा अर्चना के लिए खासी भीड रही। शाम चार बजे बाद तेजाजी के झंडे के साथ अलगोजों के साथ भजनों की स्वरलहरियां बिखरते दल शहर के प्रमुख मार्गो से होकर तेजाजी के थानक पर पहुंचे। थानक के बाहर कई सपेरें अपनी पिटारियों में रखे सांपों को बाहर निकालकर बैठे नजर आए। एक साथ करीब दर्जन भर सांपों को देखकर लोग रोमांचित रहे। श्रद्धालुओं ने इन्हें भेंट भी दी। दूग्धाभिषेक, चूरमा-बाटी का भोग – सुबह होने पर दर्शनों के लिए पहुंचे श्रद्धालुओं ने यहां थानक पर तेजाजी के दर्शन कर नारियल, दूध आदि का प्रसाद चढाकर खुशहाली की कामना की। चूरमा, बाटी का भोग लगया गया। दिनभर लगा रहा तांता – सारथल – सारथल सहित आस-पास गांवों में तेजा दशमी श्रद्धापूर्वक मनाई गई। वीर तेजाजी के थानक पर सुबह से श्रद्धालुओं द्वारा नारियल, लडडू बाटी,चूरमा का भोग लगाया गया। दिनभर श्रद्धालुओं की थानक पर पूजा अर्चना के लिए भीड लगी रही। यहां सर्प दंश व जीव जन्तुओं के काटने से पीडित एक दर्जन करीब लोगों की डसी काटी गई। बमोरीकलां – यहां स्थित क्षार बाग में रविवार को लोक देवता तेजाजी के थानक पर दो दिवसीय मेला शुरू हुआ। मेले में खिलौने, मिठाई तथा मनिहारी के सामानों की दुकानें लगाई गई। तेजा दशमी के अवसर पर मंडलियों द्वारा गायन किया गया। पलायथा – कस्बे सहित क्षेत्र में रविवार को तेजादशमी मनाई गई। तेजाजी की मंडलियों ने तेजाजी के थानक पर विधिवत पूजा के बाद कस्बे में घूमकर तेजाजी गायन किया तथा ध्वज को घर-घर पहुंचने श्रद्धालुओं ने भी तेजाजी का पूजन कर नारियल चढाए। निकटवर्ती ग्राम अमलसरा स्थित तेजाजी के थानक पर एक दिवसीय मेला लगा। प्रसाद चढाया, मेले का लुत्फ उठाया – अन्ता – तेजादशमी के अवसर पर पर रविवार को यहां श्रद्घालुओं में विशेष उत्साह रहा। इस दौरान सीसवाली मार्ग पर बाबा खेमजी के तालाब की पाल पर तेजाजी स्थल पर लगे मेले में महिला पुरूषों की भीड उमड पडी।यहां तेजाजी के थानक पर श्रद्धालुओं ने दूध, नारियल और प्रसाद चढाया। मेला स्थल पर लगी दुकानों पर पर बच्चों ने चाट पकोडी का आनंद उठाया। इस दौरान कई सामाजिक संस्थाओं की ओर से यहां पानी के प्याऊ लगाए गए वहीं यातायात व्यवस्था बनाए रखने में पुलिस को कडी मशक्कत करनी पडी। ‘कोयला – कोयला, मियाडा, तिसाया, कोटडी समेत आसपास के गांवों में लोक देवता तेजाजी महाराज की पूजा-अर्चना कर लड्डू-बाटी का भोग लगाया गया। कस्बे के तेजाजी महाराज के थानक पर सुबह से ही लोगों की आवाजाही रही जो शाम तक चली। यहां एक दिवसीय मेला भी लगा। सीसवाली – कस्बे में तेजा दशमी पर्व पर रविवार को प्रात: से ही तेजाजी थानक पर श्रद्धालुओं की भारी भीड रही। रविवार को तेजा दशमी पर्व पर तिसाया रोड पर स्थित मेला मैदान पर तेजाजी महाराज के स्थान पर प्रात: से ही श्रद्धालुओ द्वारा दूध चढाकर पूजा-अर्चना का कार्यक्रम शुरू किया गया जो दिन भर चलता रहा। हरनावदाशाहजी – तेजादशमी का पर्व कस्बे समेत समूचे क्षेत्र में परम्परागत रूप से मनाया गया। इस अवसर पर लोगों ने तेजाजी के थानकों पर पूजा अर्चना की। कस्बे में छीपाबडौद मार्ग स्थित तेजाजी चौक में रविवार को पूरे दिन श्रृद्धालुओं का पूजा अर्चना करने एवं दर्शनो के लिए तांता लगा रहा। गांव उमरिया में भी तेजादशमी के अवसर पर एक दिवसीय मेला भी लगा। बोहत – कस्बे सहित आसपास के गांवों में तेजा दशमी का पर्व धूमशाम से मनाया गया। घर-घर लड्डू-बाटी बनाकर तेजाजी महाराज को भोग लगाया। कस्बे के हिंगोनियां सडक मार्ग के निकट लोक आस्था का प्रतीक तेजाजी के थानक पर सुबह से ही दूध चढाने व नारियल फोडने वाले श्रद्धालुओं की भीड लगी रही। ग्राम पंचायत द्वारा तेजाजी के थानक पर पांच दिवसीय मेले का भी आयोजन रखा गया। क्षेत्र के कई गांवों से बडी संख्या में श्रद्धालुओं ने मेले में पहुंचकर तेजाजी के दर्शन किए। मांगरोल – कस्बे सहित ग्रामीण अंचल में तेजा दशमी का पर्व धूमधाम से मनाया गया। कस्बे में नगर पालिका द्वारा सात दिवसीय मेले का आयोजन रखा गया है। वहीं समीपवर्ती ग्राम जलोदा तेजाजी में तेजाजी के थानक पर दूध-प्रसाद चढाने वाले श्रद्धालुओं की भीड नजर आई। ग्राम पंचायत द्वारा तीन दिवसीय मेले का आयोजन रखा गया है। शाहाबाद – सहरिया बहुल्य क्षेत्र में रविवार को तेजा दशमी का त्योहार धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर तेजाजी के थानकों पर भीड उमडी ओर श्रद्धालुओं ने थानकों पर दर्शन तथा पूजा अर्चना की। मेला लगा – छीपाबडौद – क्षेत्र भर मे रविवार को तेजादशमी का पर्व मनाया गया। समीपवर्ती रतनपुरा गांव में इस मौके पर आयोजित एक दिवसीय मेले में लोग उमडे। मेले में पहुंचे विधायक करण सिंह राठौड का मेला समिति के संयोजक प्रेम सिंह चोधरी, महेंद्र सिंह चौधरी आदि ने स्वागत किया। इस अवसर पर विधायक ने यहां विधायक कोष से दो लाख रूपए देने व नलकूप लगवाकर मोटर डलवाने की घोषणा की। तेजाजी पशु मेला 5 से – सीमा सन्देश [7] श्रीगंगानगर। पशुपालन विभाग द्धारा पर्वतसर (नागौर) में श्री वीर तेजाजी पशु मेला आयोजित किया जाएगा। सहायक निदेशक पशुपालन विभाग ने बताया कि यह पशु मेला 5 अगस्त से 20 अगस्त तक चलेगा। चौकियों की स्थापना एक अगस्त-09 को की जाएगी। तेजाजी को पूजा, मेले लगे – भास्कर न्यूज उज्जैन [8] उज्जैन तेजा दशमी पर रविवार को तेजाजी महाराज की आराधना होगी। तेजाजी मंदिरों में शनिवार से ही श्रदालु पहुंचना शुरू हो गए। बड़ नगर रोड़ स्थित तेजाजी महाराज मंदिर में शनिवार को ही विभिन्न ग्रामीण अंचलों से श्रदालु निशान लेकर पहुंचे। यहाँ रात ८ बजे भजन संध्या शुरू हुई जो देर रात तक चली. रविवार को यहाँ मेला लगेगा और दिन भर निशानों का पूजन होगा। शाम को नगर में चल समारोह होगा जिसमें सैंकडों निशान शामिल होंगे। भैरव गढ़ सिद्धवट के समीप स्थित तेजाजी मंदिर में भी मेला लगेगा। रविवार दोपहर ३ बजे मंदिर में महा आरती होगी। अतिथि विकास प्राधिकरण अध्यक्ष मोहन यादव होंगे। तेजा दशमी पर कई घरों में चावल नहीं बनाये जाते। भैरव गढ़ क्षेत्र से लगे करीब १२ गांवों में चावल नहीं बनेंगे और ग्रामीण ढोल-धमाकों से नाचते गाते मंदिर पहुंचेंगे। मक्सी रोड पंवासा में तेजाजी मंदिर में माच का आयोजन होगा। तेजा स्थली विकसित करने की जरूरत – पत्रिका समाचार नागौर [9]नागौर। लोक देवता वीर तेजाजी की 935 वीं जयंती पर रविवार को खरनाल में आयोजित समारोह में वक्ताओं ने खरनाल को विश्व मानचित्र पर स्थान दिलाने की वकालत की। वीर तेजा जाट जन्मस्थली संस्थान में हुए समारोह में मुख्य अतिथि संसदीय सचिव दिलीप चौधरी ने कहा कि समाज के आराध्य देव तेजाजी की जन्मस्थली को विकसित करने की जरूरत है। वे इसे विश्व मानचित्र पर स्थान दिलाने में कोई कसर नहीं छोडेंगे। इसके लिए शीघ्र ही योजना बनाकर मुख्यमंत्री के सामने रखेंगे। उन्होंने तेजाजी के त्याग एवं वीरता का गुणगान करते हुए कहा कि उनके बनाए रास्ते पर चलकर समाज को नई दिशा दी जा सकती है। उन्होंने सरकार के किसान हित में किए जा रहे प्रयासों का बखान करते हुए कहा कि राज्य सरकार किसानों के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले करने जा रही है। किसानों के लिए शीघ्र ही किसान आयोग एवं मार्केटिंग बोर्ड बनेगा। अध्यक्षता करते हुए डीडवाना विधायक रूपाराम डूडी ने कहा कि वीर तेजाजी के बलिदान से समाज को सीख लेनी चाहिए। विशिष्ट अतिथि विधायक हनुमान बेनीवाल ने कहा कि तेजाजी पूरे किसान समाज के देवता हैं। उन्होंने गायों की सेवा करते प्राणों की बाजी दी। पूर्व आईपीएस बी.आर. ग्वाला, आईपीएस के.राम बागडिया, जायल प्रधान रिद्धकरण लोमरोड, पूर्व प्रधान रूपाराम, संस्थान के राष्ट्रीय सचिव अर्जुनराम मेहरिया,संस्था उपाध्यक्ष यूआर बेनीवाल, भोपालगढ के पूर्व प्रधान बद्रीराम जाखड ने विचार व्यक्त किए। इससे पहले अतिथियों ने तेजाजी मंदिर में धोक लगाई। मदेरणा व चौधरी ने की पूजा – जन संसाधन मंत्री महिपाल मदेरणा एवं राजस्व मंत्री हेमाराम चौधरी, उप जिला प्रमुख डॉ. सहदेव चौधरी ने खरनाल स्थित मंदिर में तेजाजी के दर्शन किए। इस मौके पर संस्थान अध्यक्ष मेहरिया ने मंत्रियों का स्वागत किया।
Tajmahal is a Hindu Temple Palace…… इतिहासकार श्री पी.एन. ओक अपनी पुस्तक Tajmahal is a Hindu Temple Palace में 100 से भी अधिक प्रमाण एवं तर्क देकर दावा करते हैं कि ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजोमहालय है| यज तेजाजी के नाम से बनाया गया था । श्री पी.एन. ओक के तर्कों और प्रमाणों के समर्थन करने वाले छायाचित्रों का संकलन भी है । श्री ओक ने कई वर्ष पहले ही अपने इन तथ्यों और प्रमाणों को प्रकाशित कर दिया था पर दुःख की बात तो यह है कि आज तक उनकी किसी भी प्रकार से अधिकारिक जाँच नहीं हुई| यदि ताजमहल के शिव मंदिर होने में सच्चाई है तो भारतीयता के साथ बहुत बड़ा अन्याय है| विद्यार्थियों को झूठे इतिहास की शिक्षा देना स्वयं शिक्षा के लिये अपमान की बात है| श्री पी.एन. ओक का दावा है कि ताजमहल शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजो महालय है| इस सम्बंध में उनके द्वारा दिये गये तर्कों का हिंदी रूपांतरण (भावार्थ) इस प्रकार हैं – 1. शाहज़हां और यहां तक कि औरंगज़ेब के शासनकाल तक में भी कभी भी किसी शाही दस्तावेज एवं अखबार आदि में ताजमहल शब्द का उल्लेख नहीं आया है| ताजमहल को ताज-ए-महल समझना हास्यास्पद है| 2. शब्द ताजमहल के अंत में आये ‘महल’ मुस्लिम शब्द है ही नहीं, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में एक भी ऐसी इमारत नहीं है जिसे कि महल के नाम से पुकारा जाता हो| 3. साधारणतः समझा जाता है कि ताजमहल नाम मुमताजमहल, जो कि वहां पर दफनाई गई थी, के कारण पड़ा है| यह बात कम से कम दो कारणों से तर्कसम्मत नहीं है – पहला यह कि शाहजहां के बेगम का नाम मुमताजमहल था ही नहीं, उसका नाम मुमताज़-उल-ज़मानी था और दूसरा यह कि किसी इमारत का नाम रखने के लिय मुमताज़ नामक औरत के नाम से “मुम” को हटा देने का कुछ मतलब नहीं निकलता| 4. चूँकि महिला का नाम मुमताज़ था जो कि ज़ अक्षर मे समाप्त होता है न कि ज में (अंग्रेजी का Z न कि J), भवन का नाम में भी ताज के स्थान पर ताज़ होना चाहिये था (अर्थात् यदि अंग्रेजी में लिखें तो Taj के स्थान पर Taz होना था)| 5. शाहज़हां के समय यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख ‘ताज-ए-महल’ के नाम से किया है जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत संस्कृत नाम तेजोमहालय से मेल खाता है| इसके विरुद्ध शाहज़हां और औरंगज़ेब ने बड़ी सावधानी के साथ संस्कृत से मेल खाते इस शब्द का कहीं पर भी प्रयोग न करते हुये उसके स्थान पर पवित्र मकब़रा शब्द का ही प्रयोग किया है| 6. मकब़रे को कब्रगाह ही समझना चाहिये, न कि महल| इस प्रकार से समझने से यह सत्य अपने आप समझ में आ जायेगा कि कि हुमायुँ, अकबर, मुमताज़, एतमातुद्दौला और सफ़दरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिंदू महलों या मंदिरों में दफ़नाया गया है| 7. यदि ताज का अर्थ कब्रिस्तान है तो उसके साथ महल शब्द जोड़ने का कोई तुक ही नहीं है| 8. चूँकि ताजमहल शब्द का प्रयोग मुग़ल दरबारों में कभी किया ही नहीं जाता था, ताजमहल के विषय में किसी प्रकार की मुग़ल व्याख्या ढूंढना ही असंगत है| ‘ताज’ और ‘महल’ दोनों ही संस्कृत मूल के शब्द हैं| 9. ताजमहल शिव मंदिर को इंगित करने वाले शब्द तेजोमहालय शब्द का अपभ्रंश है| तेजोमहालय मंदिर में अग्रेश्वर महादेव प्रतिष्ठित थे| 10. संगमरमर की सीढ़ियाँ चढ़ने के पहले जूते उतारने की परंपरा शाहज़हां के समय से भी पहले की थी जब ताज शिव मंदिर था| यदि ताज का निर्माण मक़बरे के रूप में हुआ होता तो जूते उतारने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि किसी मक़बरे में जाने के लिये जूता उतारना अनिवार्य नहीं होता| 11. देखने वालों ने अवलोकन किया होगा कि तहखाने के अंदर कब्र वाले कमरे में केवल सफेद संगमरमर के पत्थर लगे हैं जबकि अटारी व कब्रों वाले कमरे में पुष्प लता आदि से चित्रित पच्चीकारी की गई है| इससे साफ जाहिर होता है कि मुमताज़ के मक़बरे वाला कमरा ही शिव मंदिर का गर्भगृह है| 12. संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित उसके ऊपर 108 कलश आरूढ़ हैं, हिंदू मंदिर परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है| 13. ताजमहल के रख-रखाव तथा मरम्मत करने वाले ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने कि प्राचीन पवित्र शिव लिंग तथा अन्य मूर्तियों को चौड़ी दीवारों के बीच दबा हुआ और संगमरमर वाले तहखाने के नीचे की मंजिलों के लाल पत्थरों वाले गुप्त कक्षों, जिन्हें कि बंद (seal) कर दिया गया है, के भीतर देखा है| 14. भारतवर्ष में 12 ज्योतिर्लिंग है| ऐसा प्रतीत होता है कि तेजोमहालय उर्फ ताजमहल उनमें से एक है जिसे कि नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता था क्योंकि उसके जलहरी को नाग के द्वारा लपेटा हुआ जैसा बनाया गया था| जब से शाहज़हां ने उस पर कब्ज़ा किया, उसकी पवित्रता और हिंदुत्व समाप्त हो गई| 15. वास्तुकला की विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में ‘तेज-लिंग’ का वर्णन आता है| ताजमहल में ‘तेज-लिंग’ प्रतिष्ठित था इसीलिये उसका नाम तेजोमहालय पड़ा था| 16. आगरा नगर, जहां पर ताजमहल स्थित है, एक प्राचीन शिव पूजा केन्द्र है| यहां के धर्मावलम्बी निवासियों की सदियों से दिन में पाँच शिव मंदिरों में जाकर दर्शन व पूजन करने की परंपरा रही है विशेषकर श्रावन के महीने में| पिछले कुछ सदियों से यहां के भक्तजनों को बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ, मनकामेश्वर और राजराजेश्वर नामक केवल चार ही शिव मंदिरों में दर्शन-पूजन उपलब्ध हो पा रही है| वे अपने पाँचवे शिव मंदिर को खो चुके हैं जहां जाकर उनके पूर्वज पूजा पाठ किया करते थे| स्पष्टतः वह पाँचवाँ शिवमंदिर आगरा के इष्टदेव नागराज अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर ही है जो कि तेजोमहालय मंदिर उर्फ ताजमहल में प्रतिष्ठित थे| 17. आगरा मुख्यतः जाटों की नगरी है| जाट लोग भगवान शिव को तेजाजी के नाम से जानते हैं| The Illustrated Weekly of India के जाट विशेषांक (28 जून, 1971) के अनुसार जाट लोगों के तेजा मंदिर हुआ करते थे| अनेक शिवलिंगों में एक तेजलिंग भी होता है जिसके जाट लोग उपासक थे| इस वर्णन से भी ऐसा प्रतीत होता है कि ताजमहल भगवान तेजाजी का निवासस्थल तेजोमहालय था| ******************************
तेजाजी और ताज महल :: प्रामाणिक दस्तावेज 18. बादशाहनामा, जो कि शाहज़हां के दरबार के लेखाजोखा की पुस्तक है, में स्वीकारोक्ति है (पृष्ठ 403 भाग 1) कि मुमताज को दफ़नाने के लिये जयपुर के महाराजा जयसिंह से एक चमकदार, बड़े गुम्बद वाला विशाल भवन (इमारत-ए-आलीशान व गुम्ब़ज) लिया गया जो कि राजा मानसिंह के भवन के नाम से जाना जाता था| 19. ताजमहल के बाहर पुरातत्व विभाग में रखे हुये शिलालेख में वर्णित है कि शाहज़हां ने अपनी बेग़म मुमताज़ महल को दफ़नाने के लिये एक विशाल इमारत बनवाया जिसे बनाने में सन् 1631 से लेकर 1653 तक 22 वर्ष लगे| यह शिलालेख ऐतिहासिक घपले का नमूना है| पहली बात तो यह है कि शिलालेख उचित व अधिकारिक स्थान पर नहीं है| दूसरी यह कि महिला का नाम मुमताज़-उल-ज़मानी था न कि मुमताज़ महल| तीसरी, इमारत के 22 वर्ष में बनने की बात सारे मुस्लिम वर्णनों को ताक में रख कर टॉवेर्नियर नामक एक फ्रांसीसी अभ्यागत के अविश्वसनीय रुक्के से येन केन प्रकारेण ले लिया गया है जो कि एक बेतुकी बात है| 20. शाहजादा औरंगज़ेब के द्वारा अपने पिता को लिखी गई चिट्ठी को कम से कम तीन महत्वपूर्ण ऐतिहासिक वृतान्तों में दर्ज किया गया है, जिनके नाम ‘आदाब-ए-आलमगिरी’, ‘यादगारनामा’ और ‘मुरुक्का-ए-अकब़राबादी’ (1931 में सैद अहमद, आगरा द्वारा संपादित, पृष्ठ 43, टीका 2) हैं| उस चिट्ठी में सन् 1662 में औरंगज़ेब ने खुद लिखा है कि मुमताज़ के सातमंजिला लोकप्रिय दफ़न स्थान के प्रांगण में स्थित कई इमारतें इतनी पुरानी हो चुकी हैं कि उनमें पानी चू रहा है और गुम्बद के उत्तरी सिरे में दरार पैदा हो गई है| इसी कारण से औरंगज़ेब ने खुद के खर्च से इमारतों की तुरंत मरम्मत के लिये फरमान जारी किया और बादशाह से सिफ़ारिश की कि बाद में और भी विस्तारपूर्वक मरम्मत कार्य करवाया जाये| यह इस बात का साक्ष्य है कि शाहज़हाँ के समय में ही ताज प्रांगण इतना पुराना हो चुका था कि तुरंत मरम्मत करवाने की जरूरत थी| 21. जयपुर के भूतपूर्व महाराजा ने अपनी दैनंदिनी में 18 दिसंबर, 1633 को जारी किये गये शाहज़हां के ताज भवन समूह को मांगने के बाबत दो फ़रमानों (नये क्रमांक आर. 176 और 177) के विषय में लिख रखा है| यह बात जयपुर के उस समय के शासक के लिये घोर लज्जाजनक थी और इसे कभी भी आम नहीं किया गया| 22. राजस्थान प्रदेश के बीकानेर स्थित लेखागार में शाहज़हां के द्वारा (मुमताज़ के मकबरे तथा कुरान की आयतें खुदवाने के लिये) मकराना के खदानों से संगमरमर पत्थर और उन पत्थरों को तराशने वाले शिल्पी भिजवाने बाबत जयपुर के शासक जयसिंह को जारी किये गये तीन फ़रमान संरक्षित हैं| स्पष्टतः शाहज़हां के ताजमहल पर जबरदस्ती कब्ज़ा कर लेने के कारण जयसिंह इतने कुपित थे कि उन्होंने शाहज़हां के फरमान को नकारते हुये संगमरमर पत्थर तथा (मुमताज़ के मकब़रे के ढोंग पर कुरान की आयतें खोदने का अपवित्र काम करने के लिये) शिल्पी देने के लिये इंकार कर दिया| जयसिंह ने शाहज़हां की मांगों को अपमानजनक और अत्याचारयुक्त समझा| और इसीलिये पत्थर देने के लिये मना कर दिया साथ ही शिल्पियों को सुरक्षित स्थानों में छुपा दिया| 23. शाहज़हां ने पत्थर और शिल्पियों की मांग वाले ये तीनों फ़रमान मुमताज़ की मौत के बाद के दो वर्षों में जारी किया था| यदि सचमुच में शाहज़हां ने ताजमहल को 22 साल की अवधि में बनवाया होता तो पत्थरों और शिल्पियों की आवश्यकता मुमताज़ की मृत्यु के 15-20 वर्ष बाद ही पड़ी होती| 24. फिर किसी भी ऐतिहासिक वृतान्त में ताजमहल, मुमताज़ तथा दफ़न का कहीं भी जिक्र नहीं है| न ही पत्थरों के परिमाण और दाम का कहीं जिक्र है| इससे सिद्ध होता है कि पहले से ही निर्मित भवन को कपट रूप देने के लिये केवल थोड़े से पत्थरों की जरूरत थी| जयसिंह के सहयोग के अभाव में शाहज़हां संगमरमर पत्थर वाले विशाल ताजमहल बनवाने की उम्मीद ही नहीं कर सकता था| यूरोपीय अभ्यागतों के अभिलेख 25. टॉवेर्नियर, जो कि एक फ्रांसीसी जौहरी था, ने अपने यात्रा संस्मरण में उल्लेख किया है कि शाहज़हां ने जानबूझ कर मुमताज़ को ‘ताज-ए-मकान’, जहाँ पर विदेशी लोग आया करते थे जैसे कि आज भी आते हैं, के पास दफ़नाया था ताकि पूरे संसार में उसकी प्रशंसा हो| वह आगे और भी लिखता है कि केवल चबूतरा बनाने में पूरी इमारत बनाने से अधिक खर्च हुआ था| शाहज़हां ने केवल लूटे गये तेजोमहालय के केवल दो मंजिलों में स्थित शिवलिंगों तथा अन्य देवी देवता की मूर्तियों के तोड़फोड़ करने, उस स्थान को कब्र का रूप देने और वहाँ के महराबों तथा दीवारों पर कुरान की आयतें खुदवाने के लिये ही खर्च किया था| मंदिर को अपवित्र करने, मूर्तियों को तोड़फोड़ कर छुपाने और मकब़रे का कपट रूप देने में ही उसे 22 वर्ष लगे थे| 26. एक अंग्रेज अभ्यागत पीटर मुंडी ने सन् 1632 में (अर्थात् मुमताज की मौत को जब केवल एक ही साल हुआ था) आगरा तथा उसके आसपास के विशेष ध्यान देने वाले स्थानों के विषय में लिखा है जिसमें के ताज-ए-महल के गुम्बद, वाटिकाओं तथा बाजारों का जिक्र आया है| इस तरह से वे ताजमहल के स्मरणीय स्थान होने की पुष्टि करते हैं| 27. डी लॉएट नामक डच अफसर ने सूचीबद्ध किया है कि मानसिंह का भवन, जो कि आगरा से एक मील की दूरी पर स्थित है, शाहज़हां के समय से भी पहले का एक उत्कृष्ट भवन है| शाहज़हां के दरबार का लेखाजोखा रखने वाली पुस्तक, बादशाहनामा में किस मुमताज़ को उसी मानसिंह के भवन में दफ़नाना दर्ज है| 28. बेर्नियर नामक एक समकालीन फ्रांसीसी अभ्यागत ने टिप्पणी की है कि गैर मुस्लिम लोगों का (जब मानसिंह के भवन को शाहज़हां ने हथिया लिया था उस समय) चकाचौंध करने वाली प्रकाश वाले तहखानों के भीतर प्रवेश वर्जित था| उन्होंने चांदी के दरवाजों, सोने के खंभों, रत्नजटित जालियों और शिवलिंग के ऊपर लटकने वाली मोती के लड़ियों को स्पष्टतः संदर्भित किया है| 29. जॉन अल्बर्ट मान्डेल्सो ने (अपनी पुस्तक `Voyages and Travels to West-Indies’ जो कि John Starkey and John Basset, London के द्वारा प्रकाशित की गई है) में सन् 1638 में (मुमताज़ के मौत के केवल 7 साल बाद) आगरा के जन-जीवन का विस्तृत वर्णन किया है परंतु उसमें ताजमहल के निर्माण के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है जबकि सामान्यतः दृढ़तापूर्वक यह कहा या माना जाता है कि सन् 1631 से 1653 तक ताज का निर्माण होता रहा है| संस्कृत शिलालेख 30. एक संस्कृत शिलालेख भी ताज के मूलतः शिव मंदिर होने का समर्थन करता है| इस शिलालेख में, जिसे कि गलती से बटेश्वर शिलालेख कहा जाता है (वर्तमान में यह शिलालेख लखनऊ अजायबघर के सबसे ऊपर मंजिल स्थित कक्ष में संरक्षित है) में संदर्भित है, “एक विशाल शुभ्र शिव मंदिर भगवान शिव को ऐसा मोहित किया कि उन्होंने वहाँ आने के बाद फिर कभी अपने मूल निवास स्थान कैलाश वापस न जाने का निश्चय कर लिया|” शाहज़हां के आदेशानुसार सन् 1155 के इस शिलालेख को ताजमहल के वाटिका से उखाड़ दिया गया| इस शिलालेख को ‘बटेश्वर शिलालेख’ नाम देकर इतिहासज्ञों और पुरातत्वविज्ञों ने बहुत बड़ी भूल की है क्योंकि कहीं भी कोई ऐसा अभिलेख नहीं है कि यह बटेश्वर में पाया गया था| वास्तविकता तो यह है कि इस शिलालेख का नाम ‘तेजोमहालय शिलालेख’ होना चाहिये क्योंकि यह ताज के वाटिका में जड़ा हुआ था और शाहज़हां के आदेश से इसे निकाल कर फेंक दिया गया था| शाहज़हां के कपट का एक सूत्र Archealogiical Survey of India Reports (1874 में प्रकाशित) के पृष्ठ 216-217, खंड 4 में मिलता है जिसमें लिखा है, great square black balistic pillar which, with the base and capital of another pillar….now in the grounds of Agra,…it is well known, once stood in the garden of Tajmahal”. अनुपस्थित गजप्रतिमाएँ 31. ताज के निर्माण के अनेक वर्षों बाद शाहज़हां ने इसके संस्कृत शिलालेखों व देवी-देवताओं की प्रतिमाओं तथा दो हाथियों की दो विशाल प्रस्तर प्रतिमाओं के साथ बुरी तरह तोड़फोड़ करके वहाँ कुरान की आयतों को लिखवा कर ताज को विकृत कर दिया, हाथियों की इन दो प्रतिमाओं के सूंड आपस में स्वागतद्वार के रूप में जुड़े हुये थे, जहाँ पर दर्शक आजकल प्रवेश की टिकट प्राप्त करते हैं वहीं ये प्रतिमाएँ स्थित थीं| थॉमस ट्विनिंग नामक एक अंग्रेज (अपनी पुस्तक “Travels in India A Hundred Years ago” के पृष्ठ 191 में) लिखता है, “सन् 1794 के नवम्बर माह में मैं ताज-ए-महल और उससे लगे हुये अन्य भवनों को घेरने वाली ऊँची दीवार के पास पहुँचा| वहाँ से मैंने पालकी ली और….. बीचोबीच बनी हुई एक सुंदर दरवाजे जिसे कि गजद्वार (’COURT OF ELEPHANTS’) कहा जाता था की ओर जाने वाली छोटे कदमों वाली सीढ़ियों पर चढ़ा|” कुरान की आयतों के पैबन्द 32. ताजमहल में कुरान की 14 आयतों को काले अक्षरों में अस्पष्ट रूप में खुदवाया गया है किंतु इस इस्लाम के इस अधिलेखन में ताज पर शाहज़हां के मालिकाना ह़क होने के बाबत दूर दूर तक लेशमात्र भी कोई संकेत नहीं है| यदि शाहज़हां ही ताज का निर्माता होता तो कुरान की आयतों के आरंभ में ही उसके निर्माण के विषय में अवश्य ही जानकारी दिया होता| 33. शाहज़हां ने शुभ्र ताज के निर्माण के कई वर्षों बाद उस पर काले अक्षर बनवाकर केवल उसे विकृत ही किया है ऐसा उन अक्षरों को खोदने वाले अमानत ख़ान शिराज़ी ने खुद ही उसी इमारत के एक शिलालेख में लिखा है| कुरान के उन आयतों के अक्षरों को ध्यान से देखने से पता चलता है कि उन्हें एक प्राचीन शिव मंदिर के पत्थरों के टुकड़ों से बनाया गया है| कार्बन 14 जाँच 34. ताज के नदी के तरफ के दरवाजे के लकड़ी के एक टुकड़े के एक अमेरिकन प्रयोगशाला में किये गये कार्बन 14 जाँच से पता चला है कि लकड़ी का वो टुकड़ा शाहज़हां के काल से 300 वर्ष पहले का है, क्योंकि ताज के दरवाजों को 11वी सदी से ही मुस्लिम आक्रामकों के द्वारा कई बार तोड़कर खोला गया है और फिर से बंद करने के लिये दूसरे दरवाजे भी लगाये गये हैं, ताज और भी पुराना हो सकता है| असल में ताज को सन् 1115 में अर्थात् शाहज़हां के समय से लगभग 500 वर्ष पूर्व बनवाया गया था| वास्तुशास्त्रीय तथ्य 35. ई.बी. हॉवेल, श्रीमती केनोयर और सर डब्लू.डब्लू. हंटर जैसे पश्चिम के जाने माने वास्तुशास्त्री, जिन्हें कि अपने विषय पर पूर्ण अधिकार प्राप्त है, ने ताजमहल के अभिलेखों का अध्ययन करके यह राय दी है कि ताजमहल हिंदू मंदिरों जैसा भवन है| हॉवेल ने तर्क दिया है कि जावा देश के चांदी सेवा मंदिर का ground plan ताज के समान है| 36. चार छोटे छोटे सजावटी गुम्बदों के मध्य एक बड़ा मुख्य गुम्बद होना हिंदू मंदिरों की सार्वभौमिक विशेषता है| 37. चार कोणों में चार स्तम्भ बनाना हिंदू विशेषता रही है| इन चार स्तम्भों से दिन में चौकसी का कार्य होता था और रात्रि में प्रकाश स्तम्भ का कार्य लिया जाता था| ये स्तम्भ भवन के पवित्र अधिसीमाओं का निर्धारण का भी करती थीं| हिंदू विवाह वेदी और भगवान सत्यनारायण के पूजा वेदी में भी चारों कोणों में इसी प्रकार के चार खम्भे बनाये जाते हैं| 38. ताजमहल की अष्टकोणीय संरचना विशेष हिंदू अभिप्राय की अभिव्यक्ति है क्योंकि केवल हिंदुओं में ही आठ दिशाओं के विशेष नाम होते हैं और उनके लिये खगोलीय रक्षकों का निर्धारण किया जाता है| स्तम्भों के नींव तथा बुर्ज क्रमशः धरती और आकाश के प्रतीक होते हैं| हिंदू दुर्ग, नगर, भवन या तो अष्टकोणीय बनाये जाते हैं या फिर उनमें किसी न किसी प्रकार के अष्टकोणीय लक्षण बनाये जाते हैं तथा उनमें धरती और आकाश के प्रतीक स्तम्भ बनाये जाते हैं, इस प्रकार से आठों दिशाओं, धरती और आकाश सभी की अभिव्यक्ति हो जाती है जहाँ पर कि हिंदू विश्वास के अनुसार ईश्वर की सत्ता है| 39. ताजमहल के गुम्बद के बुर्ज पर एक त्रिशूल लगा हुआ है| इस त्रिशूल का का प्रतिरूप ताजमहल के पूर्व दिशा में लाल पत्थरों से बने प्रांगण में नक्काशा गया है| त्रिशूल के मध्य वाली डंडी एक कलश को प्रदर्शित करता है जिस पर आम की दो पत्तियाँ और एक नारियल रखा हुआ है| यह हिंदुओं का एक पवित्र रूपांकन है| इसी प्रकार के बुर्ज हिमालय में स्थित हिंदू तथा बौद्ध मंदिरों में भी देखे गये हैं| ताजमहल के चारों दशाओं में बहुमूल्य व उत्कृष्ट संगमरमर से बने दरवाजों के शीर्ष पर भी लाल कमल की पृष्ठभूमि वाले त्रिशूल बने हुये हैं| सदियों से लोग बड़े प्यार के साथ परंतु गलती से इन त्रिशूलों को इस्लाम का प्रतीक चांद-तारा मानते आ रहे हैं और यह भी समझा जाता है कि अंग्रेज शासकों ने इसे विद्युत चालित करके इसमें चमक पैदा कर दिया था| जबकि इस लोकप्रिय मानना के विरुद्ध यह हिंदू धातुविद्या का चमत्कार है क्योंकि यह जंगरहित मिश्रधातु का बना है और प्रकाश विक्षेपक भी है| त्रिशूल के प्रतिरूप का पूर्व दिशा में होना भी अर्थसूचक है क्योकि हिंदुओं में पूर्व दिशा को, उसी दिशा से सूर्योदय होने के कारण, विशेष महत्व दिया गया है. गुम्बद के बुर्ज अर्थात् (त्रिशूल) पर ताजमहल के अधिग्रहण के बाद ‘अल्लाह’ शब्द लिख दिया गया है जबकि लाल पत्थर वाले पूर्वी प्रांगण में बने प्रतिरूप में ‘अल्लाह’ शब्द कहीं भी नहीं है| असंगतियाँ 40. शुभ्र ताज के पूर्व तथा पश्चिम में बने दोनों भवनों के ढांचे, माप और आकृति में एक समान हैं और आज तक इस्लाम की परंपरानुसार पूर्वी भवन को सामुदायिक कक्ष (community hall) बताया जाता है जबकि पश्चिमी भवन पर मस्ज़िद होने का दावा किया जाता है| दो अलग-अलग उद्देश्य वाले भवन एक समान कैसे हो सकते हैं? इससे सिद्ध होता है कि ताज पर शाहज़हां के आधिपत्य हो जाने के बाद पश्चिमी भवन को मस्ज़िद के रूप में प्रयोग किया जाने लगा| आश्चर्य की बात है कि बिना मीनार के भवन को मस्ज़िद बताया जाने लगा| वास्तव में ये दोनों भवन तेजोमहालय के स्वागत भवन थे| 41. उसी किनारे में कुछ गज की दूरी पर नक्कारख़ाना है जो कि इस्लाम के लिये एक बहुत बड़ी असंगति है (क्योंकि शोरगुल वाला स्थान होने के कारण नक्कारख़ाने के पास मस्ज़िद नहीं बनाया जाता)| इससे इंगित होता है कि पश्चिमी भवन मूलतः मस्ज़िद नहीं था| इसके विरुद्ध हिंदू मंदिरों में सुबह शाम आरती में विजयघंट, घंटियों, नगाड़ों आदि का मधुर नाद अनिवार्य होने के कारण इन वस्तुओं के रखने का स्थान होना आवश्यक है| 42. ताजमहल में मुमताज़ महल के नकली कब्र वाले कमरे की दीवालों पर बनी पच्चीकारी में फूल-पत्ती, शंख, घोंघा तथा हिंदू अक्षर ॐ चित्रित है| कमरे में बनी संगमरमर की अष्टकोणीय जाली के ऊपरी कठघरे में गुलाबी रंग के कमल फूलों की खुदाई की गई है| कमल, शंख और ॐ के हिंदू देवी-देवताओं के साथ संयुक्त होने के कारण उनको हिंदू मंदिरों में मूलभाव के रूप में प्रयुक्त किया जाता है| 43. जहाँ पर आज मुमताज़ का कब्र बना हुआ है वहाँ पहले तेज लिंग हुआ करता था जो कि भगवान शिव का पवित्र प्रतीक है| इसके चारों ओर परिक्रमा करने के लिये पाँच गलियारे हैं| संगमरमर के अष्टकोणीय जाली के चारों ओर घूम कर या कमरे से लगे विभिन्न विशाल कक्षों में घूम कर और बाहरी चबूतरे में भी घूम कर परिक्रमा किया जा सकता है| हिंदू रिवाजों के अनुसार परिक्रमा गलियारों में देवता के दर्शन हेतु झरोखे बनाये जाते हैं| इसी प्रकार की व्यवस्था इन गलियारों में भी है| 44. ताज के इस पवित्र स्थान में चांदी के दरवाजे और सोने के कठघरे थे जैसा कि हिंदू मंदिरों में होता है| संगमरमर के अष्टकोणीय जाली में मोती और रत्नों की लड़ियाँ भी लटकती थीं| ये इन ही वस्तुओं की लालच थी जिसने शाहज़हां को अपने असहाय मातहत राजा जयसिंह से ताज को लूट लेने के लिये प्रेरित किया था| 45. पीटर मुंडी, जो कि एक अंग्रेज था, ने सन् में, मुमताज़ की मौत के एक वर्ष के भीतर ही चांदी के दरवाजे, सोने के कठघरे तथा मोती और रत्नों की लड़ियों को देखने का जिक्र किया है| यदि ताज का निर्माणकाल 22 वर्षों का होता तो पीटर मुंडी मुमताज़ की मौत के एक वर्ष के भीतर ही इन बहुमूल्य वस्तुओं को कदापि न देख पाया होता| ऐसी बहुमूल्य सजावट के सामान भवन के निर्माण के बाद और उसके उपयोग में आने के पूर्व ही लगाये जाते हैं| ये इस बात का इशारा है कि मुमताज़ का कब्र बहुमूल्य सजावट वाले शिव लिंग वाले स्थान पर कपट रूप से बनाया गया| 46. मुमताज़ के कब्र वाले कक्ष फर्श के संगमरमर के पत्थरों में छोटे छोटे रिक्त स्थान देखे जा सकते हैं| ये स्थान चुगली करते हैं कि बहुमूल्य सजावट के सामान के विलोप हो जाने के कारण वे रिक्त हो गये| 47. मुमताज़ की कब्र के ऊपर एक जंजीर लटकती है जिसमें अब एक कंदील लटका दिया है| ताज को शाहज़हां के द्वारा हथिया लेने के पहले वहाँ एक शिव लिंग पर बूंद बूंद पानी टपकाने वाला घड़ा लटका करता था| 48. ताज भवन में ऐसी व्यवस्था की गई थी कि हिंदू परंपरा के अनुसार शरदपूर्णिमा की रात्रि में अपने आप शिव लिंग पर जल की बूंद टपके| इस पानी के टपकने को इस्लाम धारणा का रूप दे कर शाहज़हां के प्रेमाश्रु बताया जाने लगा| खजाने वाला कुआँ 49. तथाकथित मस्ज़िद और नक्कारखाने के बीच एक अष्टकोणीय कुआँ है जिसमें पानी के तल तक सीढ़ियाँ बनी हुई हैं| यह हिंदू मंदिरों का परंपरागत खजाने वाला कुआँ है| खजाने के संदूक नीचे की मंजिलों में रखे जाते थे जबकि खजाने के कर्मचारियों के कार्यालय ऊपरी मंजिलों में हुआ करता था| सीढ़ियों के वृतीय संरचना के कारण घुसपैठिये या आक्रमणकारी न तो आसानी के साथ खजाने तक पहुँच सकते थे और न ही एक बार अंदर आने के बाद आसानी के साथ भाग सकते थे, और वे पहचान लिये जाते थे| यदि कभी घेरा डाले हुये शक्तिशाली शत्रु के सामने समर्पण की स्थिति आ भी जाती थी तो खजाने के संदूकों को पानी में धकेल दिया जाता था जिससे कि वह पुनर्विजय तक सुरक्षित रूप से छुपा रहे| एक मकब़रे में इतना परिश्रम करके बहुमंजिला कुआँ बनाना बेमानी है| इतना विशाल दीर्घाकार कुआँ किसी कब्र के लिये अनावश्यक भी है| दफ़न की तारीख अविदित 50. यदि शाहज़हां ने सचमुच ही ताजमहल जैसा आश्चर्यजनक मकब़रा होता तो उसके तामझाम का विवरण और मुमताज़ के दफ़न की तारीख इतिहास में अवश्य ही दर्ज हुई होती| परंतु दफ़न की तारीख कभी भी दर्ज नहीं की गई| इतिहास में इस तरह का ब्यौरा न होना ही ताजमहल की झूठी कहानी का पोल खोल देती है| 51. यहाँ तक कि मुमताज़ की मृत्यु किस वर्ष हुई यह भी अज्ञात है| विभिन्न लोगों ने सन् 1629,1630, 1631 या 1632 में मुमताज़ की मौत होने का अनुमान लगाया है| यदि मुमताज़ का इतना उत्कृष्ट दफ़न हुआ होता, जितना कि दावा किया जाता है, तो उसके मौत की तारीख अनुमान का विषय कदापि न होता| 5000 औरतों वाली हरम में किस औरत की मौत कब हुई इसका हिसाब रखना एक कठिन कार्य है| स्पष्टतः मुमताज़ की मौत की तारीख़ महत्वहीन थी इसीलिये उस पर ध्यान नहीं दिया गया| फिर उसके दफ़न के लिये ताज किसने बनवाया? आधारहीन प्रेमकथाएँ 52. शाहज़हां और मुमताज़ के प्रेम की कहानियाँ मूर्खतापूर्ण तथा कपटजाल हैं| न तो इन कहानियों का कोई ऐतिहासिक आधार है न ही उनके कल्पित प्रेम प्रसंग पर कोई पुस्तक ही लिखी गई है| ताज के शाहज़हां के द्वारा अधिग्रहण के बाद उसके आधिपत्य दर्शाने के लिये ही इन कहानियों को गढ़ लिया गया| कीमत 53. शाहज़हां के शाही और दरबारी दस्तावेज़ों में ताज की कीमत का कहीं उल्लेख नहीं है क्योंकि शाहज़हां ने कभी ताजमहल को बनवाया ही नहीं| इसी कारण से नादान लेखकों के द्वारा ताज की कीमत 40 लाख से 9 करोड़ 17 लाख तक होने का काल्पनिक अनुमान लगाया जाता है| 54. इसी प्रकार से ताज का निर्माणकाल 10 से 22 वर्ष तक के होने का अनुमान लगाया जाता है| यदि शाहज़हां ने ताजमहल को बनवाया होता तो उसके निर्माणकाल के विषय में अनुमान लगाने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि उसकी प्रविष्टि शाही दस्तावेज़ों में अवश्य ही की गई होती| भवननिर्माणशास्त्री 55. ताज भवन के भवननिर्माणशास्त्री (designer, architect) के विषय में भी अनेक नाम लिये जाते हैं जैसे कि ईसा इफेंडी जो कि एक तुर्क था, अहमद़ मेंहदी या एक फ्रांसीसी, आस्टीन डी बोरडीक्स या गेरोनिमो वेरेनियो जो कि एक इटालियन था, या शाहज़हां स्वयं| दस्तावेज़ नदारद 56. ऐसा समझा जाता है कि शाहज़हां के काल में ताजमहल को बनाने के लिये 20 हजार लोगों ने 22 साल तक काम किया| यदि यह सच है तो ताजमहल का नक्शा (design drawings), मजदूरों की हाजिरी रजिस्टर (labour muster rolls), दैनिक खर्च (daily expenditure sheets), भवन निर्माण सामग्रियों के खरीदी के बिल और रसीद (bills and receipts of material ordered) आदि दस्तावेज़ शाही अभिलेखागार में उपलब्ध होते| वहाँ पर इस प्रकार के कागज का एक टुकड़ा भी नहीं है| 57. अतः ताजमहल को शाहज़हाँ ने बनवाया और उस पर उसका व्यक्तिगत तथा सांप्रदायिक अधिकार था जैसे ढोंग को समूचे संसार को मानने के लिये मजबूर करने की जिम्मेदारी चापलूस दरबारी, भयंकर भूल करने वाले इतिहासकार, अंधे भवननिर्माणशस्त्री, कल्पित कथा लेखक, मूर्ख कवि, लापरवाह पर्यटन अधिकारी और भटके हुये पथप्रदर्शकों (guides) पर है| 58. शाहज़हां के समय में ताज के वाटिकाओं के विषय में किये गये वर्णनों में केतकी, जै, जूही, चम्पा, मौलश्री, हारश्रिंगार और बेल का जिक्र आता है| ये वे ही पौधे हैं जिनके फूलों या पत्तियों का उपयोग हिंदू देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना में होता है| भगवान शिव की पूजा में बेल पत्तियों का विशेष प्रयोग होता है| किसी कब्रगाह में केवल छायादार वृक्ष लगाये जाते हैं क्योंकि श्मशान के पेड़ पौधों के फूल और फल का प्रयोग को वीभत्स मानते हुये मानव अंतरात्मा स्वीकार नहीं करती| ताज के वाटिकाओं में बेल तथा अन्य फूलों के पौधों की उपस्थिति सिद्ध करती है कि शाहज़हां के हथियाने के पहले ताज एक शिव मंदिर हुआ करता था| 59. हिंदू मंदिर प्रायः नदी या समुद्र तट पर बनाये जाते हैं| ताज भी यमुना नदी के तट पर बना है जो कि शिव मंदिर के लिये एक उपयुक्त स्थान है| 60. मोहम्मद पैगम्बर ने निर्देश दिये हैं कि कब्रगाह में केवल एक कब्र होना चाहिये और उसे कम से कम एक पत्थर से चिन्हित करना चाहिये| ताजमहल में एक कब्र तहखाने में और एक कब्र उसके ऊपर के मंज़िल के कक्ष में है तथा दोनों ही कब्रों को मुमताज़ का बताया जाता है, यह मोहम्मद पैगम्बर के निर्देश के निन्दनीय अवहेलना है| वास्तव में शाहज़हां को इन दोनों स्थानों के शिवलिंगों को दबाने के लिये दो कब्र बनवाने पड़े थे| शिव मंदिर में, एक मंजिल के ऊपर एक और मंजिल में, दो शिव लिंग स्थापित करने का हिंदुओं में रिवाज था जैसा कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर और सोमनाथ मंदिर, जो कि अहिल्याबाई के द्वारा बनवाये गये हैं, में देखा जा सकता है| 61. ताजमहल में चारों ओर चार एक समान प्रवेशद्वार हैं जो कि हिंदू भवन निर्माण का एक विलक्षण तरीका है जिसे कि चतुर्मुखी भवन कहा जाता है| हिंदू गुम्बज 62. ताजमहल में ध्वनि को गुंजाने वाला गुम्बद है| ऐसा गुम्बज किसी कब्र के लिये होना एक विसंगति है क्योंकि कब्रगाह एक शांतिपूर्ण स्थान होता है| इसके विरुद्ध हिंदू मंदिरों के लिये गूंज उत्पन्न करने वाले गुम्बजों का होना अनिवार्य है क्योंकि वे देवी-देवता आरती के समय बजने वाले घंटियों, नगाड़ों आदि के ध्वनि के उल्लास और मधुरता को कई गुणा अधिक कर देते हैं| 63. ताजमहल का गुम्बज कमल की आकृति से अलंकृत है| इस्लाम के गुम्बज अनालंकृत होते हैं, दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित पाकिस्तानी दूतावास और पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के गुम्बज उनके उदाहरण हैं| 64. ताजमहल दक्षिणमुखी भवन है| यदि ताज का सम्बंध इस्लाम से होता तो उसका मुख पश्चिम की ओर होता| 65. महल को कब्र का रूप देने की गलती के परिणामस्वरूप एक व्यापक भ्रामक स्थिति उत्पन्न हुई है| इस्लाम के आक्रमण स्वरूप, जिस किसी देश में वे गये वहाँ के, विजित भवनों में लाश दफन करके उन्हें कब्र का रूप दे दिया गया| अतः दिमाग से इस भ्रम को निकाल देना चाहिये कि वे विजित भवन कब्र के ऊपर बनाये गये हैं जैसे कि लाश दफ़न करने के बाद मिट्टी का टीला बना दिया जाता है| ताजमहल का प्रकरण भी इसी सच्चाई का उदाहरण है| (भले ही केवल तर्क करने क
तेजाजी ने दी लड़की को शेर से लड़ने की शक्ति – घना जंगल… लकड़ी बीनती कुछ ग्रामीण युवतियाँ और खूँख्वार शेर का आक्रमण… कहानी पूरी तरह किसी एक्शन फिल्म की तरह लगती है, लेकिन है यह बिलकुल सच्ची! इस नायिका प्रधान कहानी की नायिका हैं… १७ साल की शारदा बंजारा, जिन्होंने न केवल शेर महाशय से मुकाबला करने की दिलेरी दिखाई, बल्कि उनके कान उमेठकर उन्हें दुम दबाकर भागने को मजबूर कर दिया। नीमच (मप्र) जिला मुख्यालय की तहसील मनासा के गाँव बाक्याखेड़ी में रहती है शारदा। एक दिन की बात है… उस दिन खेतों में निंदाई के काम से छुट्टी थी सो, शारदा चूल्हा जलाने के लिए जंगल में लकड़ियाँ बीनने गई। साथ में थीं दो बहनें, कमला व संगीता, भाभी टम्मू तथा काकी पन्नी। जंगल में जाते ही कुछ किलोमीटर की दूरी पर उन्हें जंगल के राजा के दर्शन हो गए, लेकिन महिलाओं ने सोचा कि दूरी काफी है, सो राजा साहब प्रजा के पास शायद ही तशरीफ लाएँ। यह सोचकर वे अपने काम में लग गईं, लेकिन शेर महाशय ने तब तक उनकी उपस्थिति सूँघ डाली थी, सो दबे पाँव वे आ पहुँचे और उन्होंने सबसे करीब लकड़ियाँ चुन रही शारदा पर झपट्टा मार दिया। अचानक हुए इस हमले ने शारदा का संतुलन बिगाड़ दिया और कुछ सेकंड के लिए उसे समझ नहीं आया कि ये क्या हुआ.. उसकी चीख सुनकर अन्य महिलाओं ने उसकी तरफ देखा और एक सम्मिलित चीख के साथ वे सब गाँव वालों को बुलाने के लिए दौड़ गईं। उन्हें लगा शायद शेर ने शारदा को खत्म कर डाला। इन्हीं कुछ पलों में शारदा ने सोच लिया कि जब लड़ाई तय ही है तो क्यों न पूरे जोश के साथ लड़ा जाए। शेर ने उसकी पिंडली पकड़ रखी थी। शारदा ने तुरंत लपक कर पूरी ताकत के साथ शेर के कान पकड़ लिए और अपनी पिंडली छुड़ाने का प्रयास करने लगी। इसी बीच उसने एक बड़ा पत्थर उठाकर शेर के सर पर दे मारा। शेर महाशय दुम दबाकर भाग लिए। घायल शारदा खुद ही चलकर जैसे-तैसे घर पहुँची। घर पर वह माँ के सामने डर के मारे सच नहीं बता पाई। बस इतना कह पाई कि जंगल में पेड़ से गिर गई, लेकिन थोड़ी देर बाद उसकी हालत खराब होने लगी और उसे सच बताना पड़ा। उसे तुरंत मनासा के शासकीय अस्पताल ले जाया गया और फिर बाद में एक निजी अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया। फिलहाल शारदा स्वास्थ्य लाभ ले रही है। एक पुरानी जींस और टी-शर्ट पहनने वाली दुबली-सी शारदा के साहस के चर्चे चारों ओर हैं। शारदा की माँ कहती है कि उनकी बेटी को शेर पर सवार होने वाली माता और तेजाजी महाराज ने बचाया है। सन्दर्भ – हिंदी वेब दुनिया में दिनेश प्रजापति का लेख “शेर से लड़ी बहादुर शारदा”
जय वीर तीजाजी महाराज की…. ॐ जय जगदीश हरे…..
यह भी नहीं रहेगा
यह भी नहीं रहेगा ⭕* ➖➖➖➖➖➖➖ 🔷
एक फकीर अरब देश में हज़ के लिए पैदल निकला । रात हो जाने पर एक गाँव में शाकिर नाम के व्यक्ति के दरवाजे पर रुका । शाकिर ने फकीर की खूब सेवा की । दूसरे दिन शाकिर ने बहुत सारे उपहार देकर विदा किया । फकीर ने शाकिर के लिए दुआ की – “खुदा करे तू दिनों दिन बढ़ता ही रहे ।” 🔷 फकीर की बात सुनकर शाकिर हँस पड़ा और बोला – “अरे, फकीर ! जो है यह भी नहीं रहने वाला ।” फकीर शाकिर की ओर देखता रह गया और वहाँ से चला गया । 🔷 दो वर्ष बाद फकीर फिर शाकिर के घर गया और देखा कि शाकिर का सारा वैभव समाप्त हो गया है । पता चला कि शाकिर अब बगल के गाँव में एक जमींदार के यहाँ नौकरी करता है । फकीर शाकिर से मिलने गया । शाकिर ने अभाव में भी फकीर का स्वागत किया । झोंपड़ी में फटी चटाई पर बिठाया । खाने के लिए सूखी रोटी दी । दूसरे दिन जाते समय फकीर की आँखों में आँसू थे । फकीर कहने लगा – “हे खुदा ! ये तूने क्या किया ?” 🔷 शाकिर पुन: हँस पड़ा और बोला – “फकीर तू क्यों दु:खी हो रहा है ? महापुरुषों ने कहा है कि खुदा इन्सान को जिस हाल में रखे, इन्सान को उसका धन्यवाद करके खुश रहना चाहिए । समय सदा बदलता रहता है और सुनो ! यह भी नहीं रहने वाला ।” 🔷 फकीर सोचने लगा – “मैं तो केवल भेष से फकीर हूँ । सच्चा फकीर तो तू ही है, शाकिर ।” 🔷 दो वर्ष बाद फकीर फिर यात्रा पर निकला और शाकिर से मिला तो देखकर हैरान रह गया कि शाकिर तो अब जमींदारों का जमींदार बन गया है । मालूम हुआ कि जिस जमींदार के यहाँ शाकिर नौकरी करता था वह सन्तान विहीन था, मरते समय अपनी सारी जायदाद शाकिर को दे गया । फकीर ने शाकिर से कहा – “अच्छा हुआ, वो जमाना गुजर गया । खुदा करे अब तू ऐसा ही बना रहे ।” 🔷 यह सुनकर शाकिर फिर हँस पड़ा और कहने लगा – “फकीर ! अभी भी तेरी नादानी बनी हुई है ।” 🔷 फकीर ने पूछा – “क्या यह भी नहीं रहने वाला ?” 🔷 शाकिर ने उत्तर दिया – “हाँ, या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा । कुछ भी रहने वाला नहीं है और अगर शाश्वत कुछ है तो वह है परमात्मा और उस परमात्मा का अंश आत्मा ।” शाकिर की बात को फकीर ने गौर से सुना और चला गया । 🔷 फकीर करीब डेढ़ साल बाद फिर लौटता है तो देखता है कि शाकिर का महल तो है किन्तू कबूतर उसमें गुटरगूं कर रहे हैं और शाकिर कब्रिस्तान में सो रहा है । बेटियाँ अपने-अपने घर चली गयीं, बूढ़ी पत्नी कोने में पड़ी है । 🔶 कह रहा है आसमां यह समा कुछ भी नहीं । रो रही हैं शबनमें, नौरंगे जहाँ कुछ भी नहीं । जिनके महलों में हजारों रंग के जलते थे फानूस । झाड़ उनके कब्र पर, बाकी निशां कुछ भी नहीं । 🔷 फकीर कहता है – “अरे इन्सान ! तू किस बात का अभिमान करता है ? क्यों इतराता है ? यहाँ कुछ भी टिकने वाला नहीं है, दु:ख या सुख कुछ भी सदा नहीं रहता । तू सोचता है पढ़ोसी मुसीबत में है और मैं मौज में हूँ । लेकिन सुन, न मौज रहेगी और न ही मुसीबत । सदा तो उसको जानने वाला ही रहेगा । सच्चे इन्सान हैं वे जो हर हाल में खुश रहते हैं । मिल गया माल तो उस माल में खुश रहते है और हो गये बेहाल तो उस हाल में खुश रहते हैं ।” 🔷 फकीर कहने लगा – “धन्य है, शाकिर ! तेरा सत्संग और धन्य है तुम्हारे सद्गुरु ! मैं तो झूठा फकीर हूँ, असली फकीर तो तेरी जिन्दगी है । अब मैं तेरी कब्र देखना चाहता हूँ, कुछ फूल चढ़ाकर दुआ तो मांग लूं ।” 🔷 फकीर कब्र पर जाता है तो देखता है कि शाकिर ने अपनी कब्र पर लिखवा रखा है – “आखिर यह भी तो नहीं रहेगा ।” *🙏🏻 🌼💠🌼💠🌼💠🌼💠 हरि चौधरी
કાંચની બરણી ને બે કપ ચા
*”કાંચની બરણી ને બે કપ ચા”
- એક બોધ કથા
જીવનમાં જયારે બધું એક સાથે અને જલ્દી-જલ્દી કરવાની ઈચ્છા થાય, બધું ઝડપથી મેળવવાની ઈચ્છા થાય અને આપણને દિવસના ૨૪ કલાક પણ ઓછા લાગવા લાગે ત્યારે આ બોધકથા “કાંચની બરણી ને બે કપ ચા” ચોક્કસ યાદ આવવી જોઈએ. દર્શનશાસ્ત્રના એક સાહેબ (ફિલોસોફીના પ્રોફેસર) વર્ગમાં આવ્યા અને વિદ્યાર્થીઓને કહ્યું કે એ આજે જીવનનો એક મહત્વપૂર્ણ પાઠ ભણાવવાના છે. એમણે પોતાની સાથે લાવેલી એક મોટી કાંચની બરણી (જાર) ટેબલ પર રાખી એમાં ટેબલ ટેનીસના દડા ભરવા લાગ્યા અને જ્યાં સુધી એમાં એકપણ દડો સમાવાની જગ્યા ન રહી ત્યાં સુધી ભરતા રહ્યા. પછી એમણે વિદ્યાર્થીઓને પૂછ્યું, “શું આ બરણી ભરાઈ ગઈ છે?” “હા”નો આવાજ આવ્યો. પછી સાહેબે નાના-નાના કાંકરા એમાં ભરવા માંડ્યા, ધીરે-ધીરે બરણી હલાવી તો ઘણાખરા કાંકરા એમાં જ્યાં-જ્યાં જગ્યા ખાલી હતી ત્યાં-ત્યાં સમાય ગયાં. ફરી એક વાર સાહેબે પૂછ્યું, “શું હવે આ બરણી ભરાઈ ગઈ છે?” વિદ્યાર્થીઓએ એકવાર ફરીથી “હા” કહ્યું. હવે સાહેબે રેતીની થેલીમાંથી ધીરે-ધીરે તે બરણીમાં રેતી ભરવાનું શરૂ કર્યુ, રેતી પણ બરણીમાં જ્યાં સમાઈ શકતી હતી ત્યાં સમાઈ ગઈ. એ જોઈ વિદ્યાર્થીઓ પોતાના બંને જવાબ પર હસવા માંડ્યા. ફરી સાહેબે પૂછ્યું, “કેમ? હવે તો આ બરણી પૂરી ભરાઈ ગઈ છે ને?” “હા!! હવે તો પૂરી ભરાઈ ગઈ.” બધા વિદ્યાર્થીઓએ એક સ્વરમાં કહ્યું. હવે સાહેબે ટેબલ નીચેથી ચાના ભરેલા બે કપ બરણીમાં ઠાલવ્યા, ને ચા પણ બરણીમાં રહેલી રેતીમાં શોષાય ગઈ. એ જોઈ વિદ્યાર્થીઓ તો સ્તબ્ધ થઈ ગયા. હવે સાહેબે ગંભીર અવાજમાં સમજાવાનું શરુ કર્યું. “આ કાંચની બરણીને તમે તમારું જીવન સમજો, ટેબલ ટેનીસના દડા સૌથી મહત્વપૂર્ણ ભાગ એટલે કે ભગવાન, પરિવાર, માતા-પિતા, દીકરા-દીકરી, મિત્રો, સ્વાસ્થ્ય અને શોખ છે, નાના-નાના કાંકરા એટલે કે તમારી નોકરી-વ્યવસાય, ગાડી, મોટું ઘર વગેરે છે અને રેતી એટલે કે નાની નાની બેકારની વાતો, મતભેદો, ઝગડા છે. જો તમે તમારી જીવનરૂપી બરણીમાં સર્વપ્રથમ રેતી ભરી હોત તો તેમાં ટેબલ ટેનીસના દડા ને નાના-નાના કાંકરા ભરવાની જગ્યા જ ન રહેત, ને જો નાના-નાના કાંકરા ભર્યા હોત તો દડા ન ભરી શક્યા હોત, રેતી તો જરૂર ભરી શકતા. બસ આજ વાત આપણા જીવન પર લાગુ પડે છે. જો તમે નાની નાની વાતોને વ્યર્થના મતભેદ કે ઝગડામાં પડ્યા રહો ને તમારી શક્તિ એમાં નષ્ટ કરશો તો તમારી પાસે મોટી-મોટી અને જીવન જરૂરીયાત અથવા તમારી ઇચ્છિત વસ્તુ કે વાતો માટે સમય ફાળવી જ ન શકો. તમારા મનના સુખ માટે શું જરૂરી છે તે તમારે નક્કી કરવાનું છે, ટેબલ ટેનીસના દડાની ફિકર કરો, એ જ મહત્વપૂર્ણ છે, પહેલા નક્કી કરી લો કે શું જરૂરી છે ? બાકી બધી તો રેતી જ છે. વિદ્યાર્થીઓ ધ્યાનપૂર્વક સાંભળી રહ્યા હતા ને અચાનક એકે પૂછ્યું, “સાહેબ ! પણ તમે એક વાત તો કહી જ નહિ કે “ચાના ભરેલા બે કપ” શું છે ?” સાહેબ હસ્ય અને કહ્યું, “હું એ જ વિચારું છું કે હજી સુધી કોઈએ આ વાત કેમ ના પૂછી?” “એનો જવાબ એ છે કે, જીવન આપણને કેટલું પણ પરિપૂર્ણ અને સંતુષ્ટ લાગે, પણ આપણા ખાસ મિત્ર સાથે “બે કપ ચા” પીવાની જગ્યા હંમેશા હોવી જોઈએ.” (પોતાના ખાસ મિત્રો અને નજીકના વ્યક્તિઓને આ મેસેજ તરત મોકલો.) 🌹🙏🌹
भीड़ के पीछे न चलें एक चोर को सजा के तौर पर न्यायाधीश ने उसकी नाक काटने की सजा दी ।
भीड़ के पीछे न चलें एक चोर को सजा के तौर पर न्यायाधीश ने उसकी नाक काटने की सजा दी ।नाक कटते ही धूर्त चोर खुशी से नाचने गाने लगा । लोगों ने जब उसकी खुशी का राज पुछा तो चोर बोला मुझे साक्षात नारायण के दर्शन हो रहे हैं उन्हें देखकर मैं प्रसन्न हो रहा हूँ ।लोगों ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा की हमें नारायण नहीं दिख रहें ।धुर्त चोर बोला नाक बीच में आ रही है इसलिए नहीं दिख रहें नाक कटा लो दिखाई देंगे । उनमें से एक व्यक्ति ने सोचा भले ही नाक कट जाए पर नारायण भगवान के दर्शन अवश्य करूंगा । नाक कटाते ही चोर ने उसके कान में मंत्र दिया “भाई अब नाक तो गई अब मेरी तरह खुशी मना नहीं तो तेरा और मेरा सब लोग मजाक बनायेंगे” । बस दूसरा व्यक्ति भी खूब खुश होकर बताने लगा मुझे भी नारायण के दर्शन हो रहे हैं । समाचार फैलने लगा, सैकड़ों लोग नाक कटाते और कान में मंत्र सुनते ही नाचने लगते की हमें नारायण के दर्शन हो रहे हैं ।संख्या निरंतर बढ़ती जा रही थी इस नक्कटु समुदाय का नाम रखा गया “नारायणदर्शी” यह खबर वहां के नादान राजा के पास पहुँची तो राजा भी समुदाय के लोगों से मिलने पहुँच गया वहां अत्यंत हर्षोल्लाष का वातावरण था ।राजा ने समुदाय के प्रमुख से मिलने की इच्छा व्यक्त की, चोर जो की इस समुदाय का मुखिया था, बड़ा महंत हो कर ऐशो आराम की जिंदगी जी रहा था । राजा ने चोर से आश्रम में इतने हर्षोल्लास का कारण पूछा तो उसे नारायण दर्शन की जानकारी दी गई । यह सुनकर राजा ने भी नाक कटाकर नारायण दर्शन की इच्छा व्यक्त की ।नारायणदर्शी समुदाय के ज्योतिष ने तीन दिन बाद का मुहूर्त भी निकाल दिया ।राजा ने तैयारी करने का आदेश दे दिया । राजा की यह बात कुछ बुद्धिजीवियों को ठीक नहीं लगी उनमें राजा का दीवान भी था उसे परेशान देखकर उसके दादाजी जो पूर्व राजा के दीवान हुआ करते थे कारण पूछा । कारण जानने के बाद दूसरे दिन बुजुर्ग राजा से मिले और उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन राजा नारायण दर्शन की जिद पर अड़े रहे तो बुजुर्ग ने कहा की ठीक है मेरी उम्र बहुत हो चुकी है पहले यह दर्शन मैं करूंगा मुझे दिख गया तो आप भी अपनी नाक कटा लें । कल ही आप अपनी पुरी सेना के साथ आश्रम पर आ जाएँ । दुसरे दिन बुजुर्ग की नाक राजा और उसकी पुरी सेना के सामने काटी गई, नाक कटते ही महंत ने कान में मंत्र बोला मंत्र सुनते ही बुजुर्ग दीवान ने राजा को कहा अपने सैनिकों को कहें की इस धुर्त महंत और इसके अनुयायियों को गिरफ्तार कर लें यह सबको मुर्ख बना रहे हैं कहीं कोई नारायण नहीं दिख रहें हैं,लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करने वाले इन नीच पापियों को कड़े से कड़ा दंड दिया जाए । आज के समय में साई के भक्त भले ही करोड़ों हो लेकिन सबकी अवस्था भी नारायणदर्शी समुदाय के लोगों जैसी ही है,अब नाक कटा ही ली है तो बस नारायण दर्शन का झूठ बोलते रहते हैं । मिल किसी को कुछ नहीं रहा लेकिन अपना मजाक न बनें इसलिए अपने ईष्टदेवों को छोड़कर बिना जाने समझे एक साधारण मुसलमान भिखारी को भगवान मानकर पुज रहें हैं । नीरज आर्य
सन्त मलूकदास
मित्रो आइए आज आपको एक महान संत की कहानी सुनाता हूॅ ***************************************
आपने अनेको बार यह दोहा सुना होगा सन्त मलूकदास जन्म 1574 और परलोक गमन 1682 इ0 हिन्द की चादर नवे गुरू तेगबहादुर साहब जी के समकालीन सन्त थे। 🌸🌺ब्रज दर्शन🌺🌸 अजगर करे ना चाकरी,पंक्षी करे ना काम दास मलुका कह गये, सबके दाता राम ।। कहानी — मलूकदास जी कर्मयोगी संत थे. स्वाध्याय, सत्संग व भ्रमण से उन्होंने जो व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया उसका मुकाबला किताबी ज्ञान नहीं कर सकता. औरंगजेब जैसा पशुवत मनुष्य भी उनके सत्संग का सम्मान करता था! शुरू में संत मलूकदास जी नास्तिक थे. उनके गांव में एक साधु आए और आकर टिक गए. साधुजी लोगों को रामायण सुनाते थे. प्रतिदिन सुबह-शाम गांव वाले उनका दर्शन करते और उनसे राम कथा का आनंद लेते. संयोग से एक दिन मलूकदास भी राम कथा में पहुंचे. उस समय साधु महाराजा ग्रामीणों को श्रीराम की महिमा बताते कह रहे थे- श्रीराम संसार के सबसे बड़े दाता है. वह भूखों को अन्न, नंगों को वस्त्र और आश्रयहीनों को आश्रय देते हैं. मलूकदास ने भी साधु की यह बात सुनी पर उनके पल्ले नहीं पड़ी. उन्होंने अपना विरोध जताते तर्क किया- क्षमा करे महात्मन ! यदि मैं चुपचाप बैठकर राम का नाम लूं, कोई काम न करूं, तब भी क्या राम भोजन देंगे ? साधु ने पूरे विश्वास के साथ कहा- अवश्य देंगे. उनकी दृढता से मलूकदास के मन में एक और प्रश्न उभरा तो पूछ बैठे- यदि मैं घनघोर जंगल में अकेला बैठ जाऊं, तब ? साधु ने दृढ़ता के साथ कहा- तब भी श्रीराम भोजन देंगे ! बात मलूकदास को लग गई. अब तो श्रीराम की दानशीलता की परीक्षा ही लेनी है. पहुंच गए जंगल में और एक घने पेड़ के ऊपर चढ़कर बैठ गए. चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे पेड़ थे. कंटीली झाड़ियां थीं. दूर-दूर तक फैले जंगल में धीरे-धीरे खिसकता हुआ सूर्य पश्चिम की पहाड़ियों के पीछे छुप गया. चारों तरफ अंधेरा फैल गया, मगर न मलूकदास को भोजन मिला, न वह पेड़ से ही उतरे. सारी रात बैठे रहे. अगले दिन दूसरे पहर घोर सन्नाटे में मलूकदास को घोड़ों की टापों की आवाज सुनाई पड़ी. वह सतर्क होकर बैठ गए. थोड़ी देर में कुछ राजकीय अधिकारी उधर आते हुए दिखे. वे सब उसी पेड़ के नीचे घोड़ों से उतर पड़े. उन्होंने भोजन का मन बनाया. उसी समय जब एक अधिकारी थैले से भोजन का डिब्बा निकाल रहा था, शेर की जबर्दस्त दहाड़ सुनाई पड़ी. दहाड़ का सुनना था कि घोड़े बिदककर भाग गए. अधिकारियों ने पहले तो स्तब्ध होकर एक-दूसरे को देखा, फिर भोजन छोड़ कर वे भी भाग गए. मलूकदास पेड़ से ये सब देख रहे थे. वह शेर की प्रतीक्षा करने लगे. मगर दहाड़ता हुआ शेर दूसरी तरफ चला गया. मलूकदास को लगा, श्रीराम ने उसकी सुन ली है अन्यथा इस घनघोर जंगल में भोजन कैसे पहुंचता ? मगर मलूकदास तो मलूकदास ठहरे. उतरकर भला स्वयं भोजन क्यों करने लगे ! वह तो भगवान श्रीराम को परख रहे थे. तीसरे पहर में डाकुओं का एक बड़ा दल उधर से गुजरा. पेड़ के नीचे चमकदार चांदी के बर्तनों में विभिन्न प्रकार के व्यंजनों के रूप में पड़े भोजन को देख कर डाकू ठिठक गए. डाकुओं के सरदार ने कहा- भगवान श्रीराम की लीला देखो. हम लोग भूखे हैं और भोजन की प्रार्थना कर रहे थे. इस निर्जन वन में सुंदर डिब्बों में भोजन भेज दिया. इसे खा लिया जाए तो आगे बढ़ें. मलूकदास को हैरानी हुई कि डाकू भी श्रीराम पर इतनी आस्था रखते हैं कि वह भोजन भेजेंगे. वह यह सब सोच ही रहे थे कि उन्हें डाकुओं की बात में कुछ शंका सुनाई पड़ी. डाकू स्वभावतः शकी होते हैं. एक साथी ने सावधान किया- सरदार, इस सुनसान जंगल में इतने सजे-धजे तरीके से सुंदर बर्तनों में भोजन का मिलना मुझे तो रहस्यमय लग रहा है. कहीं इसमें विष न हो. यह सुनकर सरदार बोला- तब तो भोजन लाने वाला आस पास ही कहीं छिपा होगा. पहले उसे तलाशा जाए. सरदार के आदेश पर डाकू इधर-उधर तलाशने लगे. तभी एक डाकू की नजर मलूकदास पर पड़ी. उसने सरदार को बताया. सरदार ने सिर उठाकर मलूकदास को देखा तो उसकी आंखें अंगारों की तरह लाल हो गईं. उसने घुड़ककर कहा- दुष्ट ! भोजन में विष मिलाकर तू ऊपर बैठा है ! चल उतर. सरदार की कड़कती आवाज सुनकर मलूकदास डर गए मगर उतरे नहीं. वहीं से बोले- व्यर्थ दोष क्यों मंढ़ते हो ? भोजन में विष नहीं है. सरदार ने आदेश दिया- पहले पेड़ पर चढ़कर इसे भोजन कराओ. झूठ-सच का पता अभी चल जाता है. आनन-फानन में तीन-चार डाकू भोजन का डिब्बा उठाए पेड़ पर चढ़ गए और छुरा दिखा कर मलूकदास को खाने के लिए विवश कर दिया. मलूकदास ने स्वादिष्ट भोजन कर लिया. फिर नीचे उतरकर डाकुओं को पूरा किस्सा सुनाया. डाकुओं ने उन्हें छोड़ दिया. वह स्वयं भोजन से भाग रहे थे लेकिन प्रभु की माया ऐसी रही कि उन्हें बलात भोजन करा दिया. इस घटना के बाद मलूकदास ईश्वर पक्के भक्त हो गए. गांव लौटकर मलूकदास ने सर्वप्रथम एक दोहा लिखा– . ‘अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम। दास मलूका कह गए, सबके दाता राम॥’ यह दोहा आज खूब सुनाया जाता है. आपके कर्म शुद्ध हैं. आपने कभी किसी का अहित करने की मंशा नहीं रखी तो ईश्वर आपके साथ सबसे ज्यादा प्रेमपूर्ण भाव रखते हैं, चाहे आप उन्हें भजें या न भजें. आपके कर्म अच्छे हैं तो आप यदि मलूकदास जी की तरह प्रभु की परीक्षा लेने लगे तो भी वह इसका बुरा नहीं मानते. 🌸 जय सियाराम 🌸
विकाश खुराना