Posted in ज्योतिष - Astrology

शत्रुओं से छुटकारा पाने हेतु एक लघु प्रयोग:- ऐसे ही लोगों से पीछा छुड़ाने का एक प्रयोग दे रहा हूँ। जो स्वयं भी कई बार कर चूका हूँ और दूसरों से भी सफलता पूर्वक करवा चूका हूँ।

एक बार से ही शत्रु शांत हो जाता है और परेशान करना छोड़ देता है पर यदि जल्दी न सुधरे तो पांच बार तक प्रयोग कर सकते हैं।

इसके लिए किसी भी मंगलवार या शनिवार को भैरवजी के मंदिर जाएँ और उनके सामने एक आटे का चौमुखा दीपक जलाएं। दीपक की बत्तियों को रोली से लाल रंग लें। फिर शत्रु या शत्रुओं को याद करते हुए एक चुटकी पीली सरसों दीपक में डाल दें। फिर निम्न श्लोक से उनका ध्यान कर 21बार निम्न मन्त्र का जप करते हुए एक चुटकी काले उड़द के दाने दिए में डाले। फिर एक चुटकी लाल सिंदूर दिए के तेल के ऊपर इस तरह डालें जैसे शत्रु के मुंह पर डाल रहे हों। फिर 5 लौंग ले प्रत्येक पर 21 21 जप करते हुए शत्रुओं का नाम याद कर एक एक कर दिए में ऐसे डालें जैसे तेल में नहीं किसी ठोस चीज़ में गाड़ रहे हों। इसमें लौंग के फूल वाला हिस्सा ऊपर रहेगा।

फिर इनसे छुटकारा दिलाने की प्रार्थना करते हुए प्रणाम कर घर लौट आएं।

ध्यान :-

ध्यायेन्नीलाद्रिकान्तम शशिश्कलधरम

मुण्डमालं महेशम्।

दिग्वस्त्रं पिंगकेशं डमरुमथ सृणिं

खडगपाशाभयानि।।

नागं घण्टाकपालं करसरसिरुहै

र्बिभ्रतं भीमद्रष्टम।

दिव्यकल्पम त्रिनेत्रं मणिमयविलसद

किंकिणी नुपुराढ्यम।।

मन्त्र:-

ॐ ह्रीं भैरवाय वं वं वं ह्रां क्ष्रौं नमः।

यदि भैरव मन्दिर न हो तो शनि मन्दिर में भी ये प्रयोग कर सकते हैं।

दोनों न हों तो पूरी क्रिया घर में दक्षिण मुखी बैठ कर भैरव जी के चित्र के समक्श पूजन कर उनके लें और दीपक मध्य रात्रि में किसी चौराहे पर रख आएं। चौराहे पर भी ये प्रयोग कर सकते हैं। परन्तु याद रहे चौराहे पर करेंगे तो कोई देखे न वरना कोई टोक सकता है जादू टोना करने वाला भी समझ सकता है। चौराहें पर करें तो चुपचाप बिना पीछे देखे घर लौट आएं हाथ मुंह धोकर ही किसी से बात करें।

यदि एक बार में शत्रु पूर्णतः शांत न हो तो 5 बार तक एक एक हफ्ते बाद कर सकते हैं।

उक्त प्रयोग शत्रु के उच्चाटन हेतु भी कर सकते हैं पर उसमे बत्ती मदार के कपास की बनेगी और दीपक शत्रु के मुख्य द्वार के सामने जलाना होगा।नोट – अपना भुत-भविष्य जानने के लिए और सटीक उपायो के लिए सम्पर्क करे मगर ध्यान रहे ये सेवाएं सशुल्क और पेड़ कंसल्टिंग के तहत है , जानने के लिए अपनी फ़ोटो, वास्तु की फ़ोटो, दोनों हथेलियो की फ़ोटो और बर्थ डिटेल्स भेजे

ज्योतिषाचार्य,लाल किताब, वास्तु तज्ञ,kp, वैदिक पराशरी जैमिनी एक्सपर्ट ,तन्त्र प्रवीण ज्योतिष भास्कर त्रिवीक्रम 

Whats app no 9021076371 अपॉइंटमेंट लेने के बाद ही कॉल करे

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

पत्नी बार बार मां पर इल्जाम लगाए जा रही थी..


पत्नी बार बार मां पर इल्जाम लगाए जा रही थी……
और
पति बार बार उसको अपनी हद में
रहने की कह रहा था
लेकिन पत्नी चुप होने का नाम ही नही ले रही थी
व् जोर जोर से चीख चीखकर कह रही थी कि
“उसने अंगूठी टेबल पर ही रखी थी
और तुम्हारेऔर मेरे अलावा इस कमरें मे कोई नही आया
अंगूठी हो ना हो मां जी ने ही उठाई है।
।बात जब पति की बर्दाश्त के बाहर हो गई तो
उसने पत्नी के गाल पर एक जोरदार तमाचा देमारा अभी
तीन महीने पहले ही तो शादी हुई थी ।
पत्नी से तमाचा सहन नही हुआ वह घर छोड़कर जाने लगी
और जाते जाते पति से एक सवाल पूछा
कि तुमको अपनी मां पर इतना विश्वास क्यूं है..??
तब पति ने जो जवाब दिया
उस जवाब को सुनकर
दरवाजे के पीछे खड़ी मां ने सुना
तो

उसका मन भर आया
पति ने पत्नी को बताया कि
“जब वह छोटा था तब उसके पिताजी गुजर गए
.

मां मोहल्ले के घरों मे झाडू पोछा लगाकर जो कमा पाती थी
उससे एक वक्त का खाना आता था
मां एक थाली में मुझे परोसा देती थी
और
खाली डिब्बे को ढककर रख देती थी
और
कहती थी
मेरी रोटियां इस डिब्बे में है बेटा तू खा ले
मैं भी हमेशा आधी रोटी खाकर कह देता था
कि मां मेरा पेट भर गया है मुझे और नही खाना है
मां ने मुझे मेरी झूठी आधी रोटी खाकर मुझे पाला पोसा और बड़ा किया है
आज मैं दो रोटी कमाने लायक हो  हूं
लेकिन यह कैसे भूल सकता हूं कि मां ने उम्र के उस पड़ाव पर अपनी इच्छाओं को मारा है,
.

.

..
वह मां आज उम्र के इस पड़ाव पर किसी अंगूठी की भूखी होगी …
.यह मैं सोच भी नही सकता
तुम तो तीन महीने से मेरे साथ हो
मैंने तो मां की तपस्या को पिछले पच्चीस वर्षों से देखा है..
.यह सुनकर मां की आंखों से आंसू छलक उठे
वह समझ नही पा रही थी कि बेटा उसकी आधी रोटी का कर्ज चुका रहा है या वह बेटे

की आधी रोटी का फर्ज…
इस मैसज को शेयर करने के लिए कोई कसम नही है।।।
यदि अच्छा लगा हो ।।।।तभी शेयर करना ।

I love u mom

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

आदमी को औरत ही घढ़ती है…


आदमी को औरत ही घढ़ती है…

=====================

एक गांव में एक जमींदार था। उसके कई नौकरों में जग्गू भी था। गांव से लगी बस्ती में, दूसरे मजदूरों के साथ जग्गू भी अपने पांच लड़कों के साथ रहता था। जग्गू की पत्नी बहुत पहले गुजर गई थी। एक झोंपड़े में वह बच्चों को पाल रहा था। बच्चे बड़े होते गये और जमींदार के घर नौकरी में लगते गये।

सब मजदूरों को शाम को मजूरी मिलती। जग्गू और उसके लड़के चना और गुड़ लेते थे। चना भून कर गुड़ के साथ खा लेते थे।

बस्ती वालों ने जग्गू को बड़े लड़के की शादी कर देने की सलाह दी।

उसकी शादी हो गई और कुछ दिन बाद गौना भी आ गया। उस दिन जग्गू की झोंपड़ी के सामने बड़ी बमचक मची। बहुत लोग इकठ्ठा हुये नई बहू देखने को। फिर धीरे धीरे भीड़ छंटी। आदमी काम पर चले गये। औरतें अपने अपने घर। जाते जाते एक बुढ़िया बहू से कहती गई – पास ही घर है किसी चीज की जरूरत हो तो संकोच मत करना, आ जाना लेने।

सबके जाने के बाद बहू ने घूंघट उठा कर अपनी ससुराल को देखा तो उसका कलेजा मुंह को आ गया। जर्जर सी झोंपड़ी, खूंटी पर टंगी कुछ पोटलियां और झोंपड़ी के बाहर बने छः चूल्हे (जग्गू और उसके सभी बच्चे अलग अलग चना भूनते थे)। बहू का मन हुआ कि उठे और सरपट अपने गांव भाग चले, पर अचानक उसे सोच कर धचका लगा– वहां कौन से नूर गड़े हैं। मां है नहीं। भाई भौजाई के राज में नौकरानी जैसी जिंदगी ही तो गुजारनी होगी। यह सोचते हुये वह बुक्का फाड़ रोने लगी। रोते-रोते थक कर शान्त हुई। मन में कुछ सोचा। पड़ोसन के घर जा कर पूछा – अम्मां एक झाड़ू मिलेगा? बुढ़िया अम्मा ने झाड़ू, गोबर और मिट्टी दी और साथ में अपनी पोती को भेज दिया। वापस आ कर बहू ने एक चूल्हा छोड़ बाकी फोड़ दिये। सफाई कर गोबर-मिट्टी से झोंपड़ी और दुआर लीपा। फिर उसने सभी पोटलियों के चने एक साथ किये और अम्मा के घर जा कर चना पीसा। अम्मा ने उसे साग और चटनी भी दी। वापस आ कर बहू ने चने के आटे की रोटियां बनाई और इन्तजार करने लगी।….

….जग्गू और उसके लड़के जब लौटे तो एक ही चूल्हा देख भड़क गये। चिल्लाने लगे कि इसने तो आते ही सत्यानाश कर दिया। अपने आदमी का छोड़ बाकी सब का चूल्हा फोड़ दिया। झगड़े की आवाज सुन बहू झोंपड़ी से निकली। बोली –आप लोग हाथ मुंह धो कर बैठिये, मैं खाना परसती हूं। सब अचकचा गये! हाथ मुंह धो कर बैठे। बहू ने पत्तल पर खाना परोसा – रोटी, साग, चटनी। मुद्दत बाद उन्हें ऐसा खाना मिला था। खाकर अपनी अपनी कथरी ले वे सोने चले गये।

सुबह काम पर जाते समय बहू ने उन्हें एक एक रोटी और गुड़ दिया। चलते समय जग्गू से उसने पूछा – बाबूजी, मालिक आप लोगों को चना और गुड़ ही देता है क्या? जग्गू ने बताया कि मिलता तो सभी अन्न है पर वे चना-गुड़ ही लेते हैं। आसान रहता है खाने में। बहू ने समझाया कि सब अलग अलग प्रकार का अनाज लिया करें। एक देवर ने बताया कि उसका काम लकड़ी चीरना है। बहू ने उसे घर के ईंधन के लिये भी कुछ लकड़ी लाने को कहा। बहू सब की मजदूरी के अनाज से एक- एक मुठ्ठी अन्न अलग रखती। उससे बनिये की दुकान से बाकी जरूरत की चीजें लाती। जग्गू की गृहस्थी धड़ल्ले से चल पड़ी। एक दिन सभी भाइयों और बाप ने तालाब की मिट्टी से झोंपड़ी के आगे बाड़ बनाया। बहू के गुण गांव में चर्चित होने लगे।

जमींदार तक यह बात पंहुची। वह कभी कभी बस्ती में आया करता था।

आज वह जग्गू के घर उसकी बहू को आशीर्वाद देने आया। बहू ने पैर छू प्रणाम किया तो जमींदार ने उसे एक हार दिया। हार माथे से लगा बहू ने कहा कि मालिक यह हमारे किस काम आयेगा। इससे अच्छा होता कि मालिक हमें चार लाठी जमीन दिये होते झोंपड़ी के दायें – बायें तो एक कोठरी बन जाती। बहू की चतुराई पर जमींदार हंस पड़ा। बोला – ठीक, जमीन तो जग्गू को मिलेगी ही लेकिन यह हार तो तुम्हारा हुआ।

ऐसी ही कहानी मैरी नानी मुझे सुनाती थीं। फिर हमें सीख देती थीं -――औरत चाहे तो घर को स्वर्ग बना दे और चाहे नर्क!

मुझे लगता है कि देश, समाज, व्यक्ति या परिवार को औरत ही गढ़ती है।――

Posted in नहेरु परिवार - Nehru Family

#इसे_भी_पाठ्यक्रम_में_शामिल_किया_जाना_चाहिए !!

॥ बीते हुए दिन- 12 ॥॥ जवाहरलाल नेहरू अभिनेत्री नरगिस के मामा थे ॥नरगिस की नानी दिलीपा मंगल पाण्डेय के ननिहाल के राजेन्द्र पाण्डेय की बेटी थीं… उनकी शादी 1880 में बलिया में हुई थी लेकिन शादी के एक हफ़्ते के अंदर ही उनके पति गुज़र गए थे…दिलीपा की उम्र उस वक़्त सिर्फ़ 13 साल थी…उस ज़माने में विधवाओं की ज़िंदगी बेहद तक़लीफ़ों भरी होती थी…ज़िंदगी से निराश होकर दिलीपा एक रोज़ आत्महत्या के इरादे से गंगा की तरफ़ चल पड़ीं लेकिन रात में रास्ता भटककर मियांजान नाम के एक सारंगीवादक के झोंपड़े में पहुंच गयीं जो तवायफ़ों के कोठों पर सारंगी बजाता था…मियांजान के परिवार में उसकी बीवी और एक बेटी मलिका थे… वो मलिका को भी तवायफ़ बनाना चाहता था…दिलीपा को मियांजान ने अपने घर में शरण दी…और फिर मलिका के साथ साथ दिलीपा भी धीरेधीरे तवायफ़ों वाले तमाम तौर-तरीक़े सीख गयीं और एक रोज़ चिलबिला की मशहूर तवायफ़ रोशनजान के कोठे पर बैठ गयीं…रोशनजान के कोठे पर उस ज़माने के नामी वक़ील मोतीलाल नेहरू का आना जाना रहता था जिनकी पत्नी पहले बच्चे के जन्म के समय गुज़र गयी थी…दिलीपा के सम्बन्ध मोतीलाल नेहरू से बन गए…इस बात का पता चलते ही मोतीलाल के घरवालों ने उनकी दूसरी शादी लाहौर की स्वरूप रानी से करा दी जिनकी उम्र उस वक़्त 15 साल थी…इसके बावजूद मोतीलाल ने दिलीपा के साथ सम्बन्ध बनाए रखे…इधर दिलीपा का एक बेटा हुआ जिसका नाम मंज़ूर अली रखा गया…उधर कुछ ही दिनों बाद 14 नवम्बर 1889 को स्वरूपरानी ने जवाहरलाल नेहरू को जन्म दिया…साल 1900 में स्वरूप रानी ने विजयलक्ष्मी पंडित को जन्म दिया और 1901 में दिलीपा के जद्दनबाई पैदा हुईं…अभिनेत्री नरगिस इन्हीं जद्दनबाई की बेटी थीं…मंज़ूर अली आगे चलकर मंज़ूर अली सोख़्त के नाम से बहुत बड़े मज़दूर नेता बने…और साल 1924 में उन्होंने यह कहकर देशभर में सनसनी फैला दी कि मैं मोतीलाल नेहरू का बेटा और जवाहरलाल नेहरू का बड़ा भाई हूं…उधर एक रोज़ लखनऊ नवाब के बुलावे पर जद्दनबाई मुजरा करने लखनऊ गयीं तो दिलीपा भी उनके साथ थी…जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस के किसी काम से उन दिनों लखनऊ में थे…उन्हें पता चला तो वो उन दोनों से मिलने चले आए…दिलीपा जवाहरलाल नेहरू से लिपट गयीं और रो-रोकर मोतीलाल नेहरू का हालचाल पूछने लगीं…मुजरा ख़त्म हुआ तो जद्दनबाई ने जवाहरलाल नेहरू को राखी बांधी…साल 1931 में मोतीलाल नेहरू ग़ुज़रे तो दिलीपा ने अपनी चूड़ियां तोड़ डालीं और उसके बाद से वो विधवा की तरह रहने लगीं…(गुजराती के वरिष्ठ लेखक रजनीकुमार पंड्या जी की क़िताब ‘आप की परछाईयां’ से साभार।)

Posted in संस्कृत साहित्य

कैसे हुई बिल्व पत्र की उत्पत्ति?


कैसे हुई बिल्व पत्र की उत्पत्ति?

ये तो आप सभी जानते हैं कि बिल्वपत्र शिवजी को अत्यंत प्रिय हैं। सिर्फ बिलपत्र चढ़ाने से ही शिव जी पूर्ण पूजन का फल साधक को दे देते हैं।

आखिर क्यों है बिल्वपत्र शिव जी को प्रिय,

और क्या हैं, उत्पत्ति की कथा

विष्णुप्रिया लक्ष्मीजी के वक्ष:स्थल से प्रादुर्भूत हुआ बिल्ववृक्ष

लक्ष्म्या: स्तनत उत्पन्नं महादेवस्य च प्रियम्।

बिल्ववृक्षं प्रयच्छामि बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।

अर्थात्–बिल्ववृक्ष महालक्ष्मीजी के वक्ष:स्थल से उत्पन्न हुआ और महादेवजी का प्रिय है, मैं एक बिल्वपत्र शिवार्पण करता हूँ।

वृहद् धर्मपुराण में बिल्ववृक्ष की उत्पत्ति सम्बधी कथा–इसके अनुसार बिल्ववृक्ष की उत्पत्ति लक्ष्मीजी द्वारा स्तन काटकर चढ़ाने से हुई। लक्ष्मीजी ने भगवान विष्णु को पतिरूप में प्राप्त करने के लिए शिवजी का घोर आराधन व तप किया। अंत में लक्ष्मीजी ‘ॐ नम: शिवाय’ इस पंचाक्षर मन्त्र से एक सहस्त्र कमलपुष्प द्वारा शिवजी का पूजन कर रहीं थीं तब शिवजी ने उनकी परीक्षा करने के लिए एक कमलपुष्प चुरा लिया। भगवान विष्णु ने जब एक सहस्त्र पुष्पों से शिवजी की अर्चना की थी, उस समय भी भगवान शिवजी ने एक कमल चुरा लिया था।

लक्ष्मीजी ने एक कमलपुष्प कम होने पर अपना बायां वक्ष:स्थल काटकर शिवजी पर चढ़ा दिया क्योंकि स्तन की उपमा कमल से की जाती है। जब लक्ष्मीजी अपना दायां वक्ष:स्थल भी काटने को उद्यत हुईं तब शिवजी प्रकट हो गए और लक्ष्मीजी से बोले–’तुम ऐसा मत करो, तुम समुद्र-तनया हो।’

भगवान शिव आदि शल्यचिकित्सक हैं, उन्होंने गणेशजी को हाथी का और दक्षप्रजापति को बकरे का मुख लगाया था। अत: शिवकृपा से लक्ष्मीजी का बायां स्तन ज्यों-का-त्यों हो गया। शिवजी ने लक्ष्मीजी को वर देते हुए कहा–’समुद्र-तनये ! तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा। भगवान विष्णु तुम्हारा वरण करेंगे।’ लक्ष्मीजी ने कटे हुए स्तन को पृथ्वी में गाड़ दिया जिससे एक वृक्ष उत्पन्न हुआ। जिसके पत्तों में तीन दल हैं व गोल फल लगता है। बिल्वफल को ब्रह्मा, विष्णु व महेश भी न पहचान सके। यह वृक्ष व इसका फल ब्रह्माजी की सृष्टि से परे है। वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया ‘अक्षय तृतीया’ को बिल्ववृक्ष की उत्पत्ति हुई।

भगवान शिव ने प्रसन्न होकर लक्ष्मीजी से कहा–’बिल्ववृक्ष तुम्हारी भक्ति का प्रतीक होगा। यह वृक्ष मुझे व लक्ष्मीजी को अत्यन्त प्रिय होगा। हम दोनों की बिल्ववृक्ष से की गयी पूजा मुक्ता, प्रवाल, मूंगा, स्वर्ण, चांदी आदि रत्नों से की गयी पूजा से श्रेष्ठ मानी जाएगी। जैसे गंगाजल मुझको प्रिय है, उसी प्रकार बिल्वपत्र और बिल्वफल द्वारा की गयी मेरी पूजा कमल के समान मुझे प्रिय होगी। बिना बिल्वपत्र के मैं कोई भी वस्तु ग्रहण नहीं करुंगा।’

मणिमुक्त्ता प्रवालैस्तु रत्नैरप्यर्चनंकृतम्।

नगृहणामि बिना देवि बिल्वपत्रैर्वरानने।। (लिंगपुराण)

Posted in श्री कृष्णा

बहुत सारी क्विज़ खेल के देखीं होंगी, ये खेल के दिखाओ..? भगवान् श्रीकृष्ण के नाम ढूंड के बताओ..?


बहुत सारी क्विज़ खेल के देखीं होंगी, ये खेल के दिखाओ..?
भगवान् श्रीकृष्ण के नाम ढूंड के बताओ..?

1.🍯❓d♌♑

2.🎄✖

3.🚪k🅰dℹ💲♓

4.♑♌®🅰✔♑

5.♓🅰®⚠

6.👌❔d📧♈

7.D📧♈🔑♑🅰♑d♌♑

8.Y♌💰♓🅾d🅰♑♌♑d♌♑

9.K📧💰♌♈

10.🚶♈♌®💴

11.〽♌k♓🅰♑©♓⭕®

12.♍u®♌®❕

13.®♌d♓📧y

14.🅱♌♑💲♓❗d♓🅰®

15.♈🅰♑〽♌d

16.♑🅰♑d🔴

17.🚶👨l

18.👩d♓♌♈

19.🚶♈💨

20. 🌌🌴
प्लीज़ हर कोई, इस क्विज़ में हिस्सा ले…
2.कृष्णा

3.द्वारिकाधीश

4.नन्दराज

5.हरि

6.श्रीदेव

7.देवकीनंदन

8.यशोदानंदन

9.केशव

11.नंदकिशोर

12.मुरारी

13.राधे

14.बंशीधर

16.नन्दलाल

18.माधव