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प्रभु की प्राप्ति किसे होती है?


प्रभु की प्राप्ति किसे होती है??? एक सुन्दर कहानी है:— एक राजा था। वह बहुत न्याय प्रिय तथा प्रजा वत्सल एवं धार्मिक स्वभाव का था। वह नित्य अपने इष्ट देव की बडी श्रद्धा से पूजा-पाठ और याद करता था। एक दिन इष्ट देव ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिये तथा कहा — “राजन् मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हैं। बोलो तुम्हारी कोई इछा हॆ?” प्रजा को चाहने वाला राजा बोला — “भगवन् मेरे पास आपका दिया सब कुछ हैं आपकी कृपा से राज्य मे सब प्रकार सुख-शान्ति है। फिर भी मेरी एक ही ईच्छा हैं कि जैसे आपने मुझे दर्शन देकर धन्य किया, वैसे ही मेरी सारी प्रजा को भी कृपा कर दर्शन दीजिये।” “यह तो सम्भव नहीं है” — ऐसा कहते हुए भगवान ने राजा को समझाया। परन्तु प्रजा को चाहने वाला राजा भगवान् से जिद्द् करने लगा। आखिर भगवान को अपने साधक के सामने झुकना पडा ओर वे बोले — “ठीक है, कल अपनी सारी प्रजा को उस पहाड़ी के पास ले आना और मैं पहाडी के ऊपर से सभी को दर्शन दूँगा ।” ये सुन कर राजा अत्यन्त प्रसन्न हुअा और भगवान को धन्यवाद दिया। अगले दिन सारे नगर मे ढिंढोरा पिटवा दिया कि कल सभी पहाड़ के नीचे मेरे साथ पहुँचे, वहाँ भगवान् आप सबको दर्शन देगें। दूसरे दिन राजा अपने समस्त प्रजा और स्वजनों को साथ लेकर पहाडी की ओर चलने लगा। चलते-चलते रास्ते मे एक स्थान पर तांबे कि सिक्कों का पहाड देखा। प्रजा में से कुछ एक लोग उस ओर भागने लगे। तभी ज्ञानी राजा ने सबको सर्तक किया कि कोई उस ओर ध्यान न दे, क्योकि तुम सब भगवान से मिलने जा रहे हो, इन तांबे के सिक्कों के पीछे अपने भाग्य को लात मत मारो । परन्तु लोभ-लालच मे वशीभूत प्रजा के कुछ एक लोग तो तांबे की सिक्कों वाली पहाड़ी की ओर भाग ही गयी और सिक्कों कि गठरी बनाकर अपने घर कि ओर चलने लगे। वे मन ही मन सोच रहे थे, पहले ये सिक्कों को समेट ले, भगवान से तो फिर कभी मिल ही लेगे । राजा खिन्न मन से आगे बढे। कुछ दूर चलने पर चांदी कि सिक्कों का चमचमाता पहाड़ दिखाई दिया । इस वार भी बचे हुये प्रजा में से कुछ लोग, उस ओर भागने लगे ओर चांदी के सिक्कों को गठरी बनाकर अपनी घर की ओर चलने लगे। उनके मन मे विचार चल रहा था कि ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलता है। चांदी के इतने सारे सिक्के फिर मिले न मिले, भगवान तो फिर कभी मिल ही जायेगें. इसी प्रकार कुछ दूर और चलने पर सोने के सिक्कों का पहाड़ नजर आया। अब तो प्रजा जनो में बचे हुये सारे लोग तथा राजा के स्वजन भी उस ओर भागने लगे। वे भी दूसरों की तरह सिक्कों कि गठरीयां लाद-लाद कर अपने-अपने घरों की ओर चल दिये। अब केवल राजा ओर रानी ही शेष रह गये थे। राजा रानी से कहने लगे — “देखो कितने लोभी ये लोग। भगवान से मिलने का महत्व ही नहीं जानते हैं। भगवान के सामने सारी दुनियां की दौलत क्या चीज हैं..?” सही बात है — रानी ने राजा कि बात का समर्थन किया और वह आगे बढने लगे कुछ दुर चलने पर राजा ओर रानी ने देखा कि सप्तरंगि आभा बिखरता हीरों का पहाड़ हैं । अब तो रानी से भी रहा नहीं गया, हीरों के आर्कषण से वह भी दौड पड़ी और हीरों कि गठरी बनाने लगी । फिर भी उसका मन नहीं भरा तो साड़ी के पल्लू मेँ भी बांधने लगी । वजन के कारण रानी के वस्त्र देह से अलग हो गये, परंतु हीरों का तृष्णा अभी भी नहीं मिटी। यह देख राजा को अत्यन्त ही ग्लानि ओर विरक्ति हुई । बड़े दुःखद मन से राजा अकेले ही आगे बढते गये । वहाँ सचमुच भगवान खड़े उसका इन्तजार कर रहे थे । राजा को देखते ही भगवान मुसकुराये ओर पुछा — “कहाँ है तुम्हारी प्रजा और तुम्हारे प्रियजन । मैं तो कब से उनसे मिलने के लिये बेकरारी से उनका इन्तजार कर रहा हूॅ ।” राजा ने शर्म और आत्म-ग्लानि से अपना सर झुका दिया । तब भगवान ने राजा को समझाया — “राजन, जो लोग अपने जीवन में भौतिक सांसारिक प्राप्ति को मुझसे अधिक मानते हैं, उन्हें कदाचित मेरी प्राप्ति नहीं होती और वह मेरे स्नेह तथा कृपा से भी वंचित रह जाते हैं..!!” : सार.. जो जीव अपनी मन, बुद्धि और आत्मा से भगवान की शरण में जाते हैं, और सर्व लौकिक सम्बधों को छोडके प्रभु को ही अपना मानते हैं वो ही भगवान के प्रिय बनते हैं…:::!!!

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एक मोटे आदमी ने न्यूज पेपर में विज्ञापन देखा


एक मोटे आदमी ने न्यूज पेपर में विज्ञापन देखा “एक सप्ताह में 5 किलो वजन कम कीजिये।” ⚖⚖ उसने उस विज्ञापन वाली कम्पनी में फोन किया तो एक महिला ने जवाब दिया और कहा : “कल सुबह 6 बजे तैयार रहिए।” अगली सुबह उस मोटे ने दरवाजा खोला तो देखा कि एक खूबसूरत युवती जागिंग सूट और शूज पहने बाहर तैयार खड़ी है। युवती बोली :- मुझे पकड़ो और मुझे किस कर लो ये कह कर युवती दौड़ पड़ी। मोटू भी पीछे दौड़ा मगर उसे पकड़ नहीं पाया। पूरे हफ्ते रोज मोटू ने उसे पकड़ने का प्रयास किया लेकिन उस युवती को पकड़ नही पाया। और उसका 5 किलो वजन कम हो गया। फिर मोटू ने 10 किलो वजन कम करने वाले प्रोग्राम की बात की। अगली सुबह 6 बजे उसने दरवाजा खोला तो देखा कि: पहले वाली से भी खूबसूरत युवती जागिंग सूट और शूज में खड़ी है। युवती बोली :- मुझे पकड़ो और मुझे किस करलो और इस हफ्ते मोटू का 10 किलो वजन घट गया। मोटू ने सोचा वाह क्या बढ़िया प्रोग्राम है। क्यूँ ना 25 किलो वाला प्रोग्राम आजमाया जाए। उसने 25 किलो वाले प्रोग्राम के लिए फोन किया। तो महिला ने जवाब दिया और कहा कि : “क्या आपका इरादा पक्का है? क्योंकि ये प्रोग्राम थोड़ा कठिन है।” मोटू बोला :- “हाँ।” अगली सुबह 6 बजे मोटू ने दरवाजा खोला तो देखा कि दरवाजे पर जागिंग सूट और शूज पहने एक काली भुजंग लड़की खडी है …… लड़की बोली : मैंने तुम्हे पकड़ लिया तो मैं तुम्हें किस करूँगी, बस तो फिर क्या अब तो भाग मिल्खा भाग…!!!

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बाहर बारिश हो रही थी और अन्दर क्लास चल रही थी


बाहर बारिश हो रही थी और अन्दर क्लास चल रही थी , . तभी टीचर ने बच्चों से पूछा कि अगर तुम सभी को 100-100 रुपये दिए जाए तो तुम सब क्या क्या खरीदोगे ? . किसी ने कहा कि मैं वीडियो गेम खरीदुंगा, किसी ने कहा मैं क्रिकेट का बेट खरीदुंगा , किसी ने कहा कि मैं अपने लिए प्यारी सी गुड़िया खरीदुंगी, . तो किसी ने कहा मैं बहुत सी चॉकलेट्स खरीदुंगी | एक बच्चा कुछ सोचने में डुबा हुआ था, टीचर ने उससे पुछा कि तुम क्या सोच रहे हो ? तुम क्या खरीदोगे ? . बच्चा बोला कि टीचर जी, मेरी माँ को थोड़ा कम दिखाई देता है तो मैं अपनी माँ के लिए एक चश्मा खरीदूंगा ‌। . टीचर ने पूछाः तुम्हारी माँ के लिए चश्मा तो तुम्हारे पापा भी खरीद सकते है, तुम्हें अपने लिए कुछ नहीं खरीदना ? बच्चे ने जो जवाब दिया उससे टीचर का भी गला भर आया | बच्चे ने कहा कि मेरे पापा अब इस दुनिया में नहीं है | मेरी माँ लोगों के कपड़े सिलकर मुझे पढ़ाती है और कम दिखाई देने की वजह से वो ठीक से कपड़े नहीं सिल पाती है इसीलिए मैं मेरी माँ को चश्मा देना चाहता हुँ ताकि मैं अच्छे से पढ़ सकूँ, बड़ा आदमी बन सकूँ और माँ को सारे सुख दे सकूँ ! टीचर:-बेटा तेरी सोच ही तेरी कमाई है। ये 100 रूपये मेरे वादे के अनुसार और ये 100 रूपये और उधार दे रहा हूँ। जब कभी कमाओ तो लौटा देना। और मेरी इच्छा है तू इतना बड़ा आदमी बने कि तेरे सर पे हाथ फेरते वक्त मैं धन्य हो जाऊं। 15 वर्ष बाद…… बाहर बारिश हो रही है, अंदर क्लास चल रही है। अचानक स्कूल के आगे जिला कलेक्टर की बत्ती वाली गाड़ी आकर रूकती है। स्कूल स्टाफ चौकन्ना हो जाता हैं। स्कूल में सन्नाटा छा जाता है। मगर ये क्या ? जिला कलेक्टर एक वृद्ध टीचर के पैरों में गिर जाते हैं और कहते हैं:-” सर मैं दामोदर दास उर्फ़ झंडू!! आपके उधार के 100 रूपये लौटाने आया हूँ” पूरा स्कूल स्टॉफ स्तब्ध!!! वृद्ध टीचर झुके हुए नौजवान कलेक्टर को उठाकर भुजाओं में कस लेता है और रो पड़ता हैं। हम चाहें तो अपने आत्मविश्वास और मेहनत के बल पर अपना भाग्य खुद लिख सकते है और अगर हमको अपना भाग्य लिखना नहीं आता तो परिस्थितियां हमारा भाग्य लिख देंगी….

सावन कुमार

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समझें- चमत्कार


*समझें- “चमत्कार”* छोटी लड़की ने गुल्लक से सब सिक्के बटोरकर जेब में रखे और निकल पड़ी घर से! पास ही केमिस्ट की दुकान के जीने धीरे-धीरे चढ़ गयी और काऊँटर के सामने खड़े होकर बोलनें लगी, पर छोटी सी लड़की किसी को नज़र नहीं आ रही थी, ना ही उसकी आवाज़ पर कोई गौर कर रहा था, सब व्यस्त जो थे! दुकान मालिक का कोई दोस्त विदेश से आया था, वे बात करने में व्यस्त थे! तभी उसने जेब से एक सिक्का निकालकर काऊँटर पर फेंका! सिक्के की आवाज़ से सबका ध्यान उसकी ओर गया! उसकी तरकीब काम आ गयी! दुकानदार उसकी ओर आया और उससे प्यार से पूछा- क्या चाहिए बेटा ? उसने जेब से सब सिक्के निकालकर अपनी छोटी सी हथेली पर रखे और बोली मुझे *“चमत्कार”* चाहिए! दुकानदार समझ नहीं पाया! उसने फिर से पूछा… और वो फिर से बोली- मुझे *“चमत्कार”* चाहिए! दुकानदार हैरान होकर बोला– बेटा यहाँ चमत्कार नहीं मिलता! वो फिर बोली- अगर दवाई मिलती है तो *”चमत्कार”* भी आपके यहाँ ही मिलेगा! दुकानदार बोला– बेटा आपसे यह किसने कहा? अब उसने अपनी तोतली जबान से विस्तार से बताना शुरु किया– मेरे भैया के सर में टुमर (ट्यूमर) हो गया है! पापा ने मम्मी को बताया है कि- “डॉक्टर चार लाख रुपये बता रहे थे! अगर समय पर इलाज़ न हुआ तो *कोई चमत्कार* ही इसे बचा सकता है!” “और कोई सँभावना नहीं है!- वो रोते हुए माँ से कह रहे थे- अपने पास कुछ बेचने को भी नहीं है, न कोई जमीन जायदाद है न ही गहने! सब इलाज़ में पहले ही खर्च हो गए हैं! दवा के पैसे बड़ी मुश्किल से जुटा पा रहा हूँ”…!!! इतना सुनते ही विदेश से आया दुकान मालिक का दोस्त उसके पास आकर बैठ गया और प्यार से बोला- *”अच्छा” कितने पैसे लाई हो तुम चमत्कार खरीदने को?* बच्ची ने अपनी मुट्टी के सारे रुपये उसके हाथों में रख दिए, उसने वो रुपये गिने जो 21 रुपये 50 पैसे थे। वो व्यक्ति हँसा और लड़की से बोला- *”तुमने चमत्कार खरीद लिया,चलो मुझे अपने भाई के पास ले चलो”…* वो व्यक्ति जोकि केमिस्ट का दोस्त था, अपनी छुट्टी बिताने भारत आया था और न्यूयार्क का एक प्रसिद्ध न्यूरो-सर्जन था। उसने उस बच्चे का इलाज 21 रुपये 50 पैसे में किया और वो बच्चा एकदम सही हो गया। – वो बच्ची बड़ी श्रद्धा से *चमत्कार* खरीदने चली थी अतः प्रभु ने बच्ची को *चमत्कार* बेच दिया! और बच्ची को *चमत्कार* मिल गया। नीयत साफ़ और मक़सद सही हो तो, जिस किसी रूप में ही सही, ईश्वर आपकी मदद करता ही है। *”आस्था”* का यही *चमत्कार* है…! 🙏🔔🙏 ~(योगिअंश रमेश चन्द्र भार्गव)

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चौबे जी का लड़का है अशोक, एमएससी पास।


चौबे जी का लड़का है अशोक, एमएससी पास। नौकरी के लिए चौबे जी निश्चिन्त थे, कहीं न कहीं तो जुगाड़ लग ही जायेगी। ब्याह कर देना चाहिए। मिश्रा जी की लड़की है ममता, वह भी एमए पहले दर्जे में पास है, मिश्रा जी भी उसकी शादी जल्दी कर देना चाहते हैं। सयानों से पोस्ट ग्रेजुएट लड़के का भाव पता किया गया। पता चला वैसे तो रेट पांच से छः लाख का चल रहा है, पर बेकार बैठे पोस्ट ग्रेजुएटों का रेट तीन से चार लाख का है। सयानों ने सौदा साढ़े तीन में तय करा दिया। बात तय हुए अभी एक माह भी नही हुआ था, कि पब्लिक सर्विस कमीशन से पत्र आया कि अशोक का डिप्टी कलक्टर के पद पर चयन हो गया है। चौबे- साले, नीच, कमीने… हरामजादे हैं कमीशन वाले…! पत्नि- लड़के की इतनी अच्छी नौकरी लगी है नाराज क्यों होते हैं? चौबे- अरे सरकार निकम्मी है, मैं तो कहता हूँ इस देश में क्रांति होकर रहेगी… यही पत्र कुछ दिन पहले नहीं भेज सकते थे, डिप्टी कलेक्टर का 40-50 लाख यूँ ही मिल जाता। पत्नि- तुम्हारी भी अक्ल मारी गई थी, मैं न कहती थी महीने भर रुक जाओ, लेकिन तुम न माने… हुल-हुला कर सम्बन्ध तय कर दिया… मैं तो कहती हूँ मिश्रा जी को पत्र लिखिये वो समझदार आदमी हैं। प्रिय मिश्रा जी, अत्रं कुशलं तत्रास्तु ! आपको प्रसन्नता होगी कि अशोक का चयन डिप्टी कलेक्टर के लिए हो गया है। विवाह के मंगल अवसर पर यह मंगल हुआ। इसमें आपकी सुयोग्य पुत्री के भाग्य का भी योगदान है। आप स्वयं समझदार हैं, नीति व मर्यादा जानते हैं। धर्म पर ही यह पृथ्वी टिकी हुई है। मनुष्य का क्या है, जीता मरता रहता है। पैसा हाथ का मैल है, मनुष्य की प्रतिष्ठा बड़ी चीज है। मनुष्य को कर्तव्य निभाना चाहिए, धर्म नहीं छोड़ना चाहिए। और फिर हमें तो कुछ चाहिए नहीं, आप जितना भी देंगे अपनी लड़की को ही देंगे।वर्तमान ओहदे के हिसाब से देख लीजियेगा फिर वरना हमें कोई मैचिंग रिश्ता देखना होगा। मिश्रा परिवार ने पत्र पढ़ा, विचार किया और फिर लिखा- प्रिय चौबे जी, आपका पत्र मिला, मैं स्वयं आपको लिखने वाला था। अशोक की सफलता पर हम सब बेहद खुश हैं। आयुष्मान अब डिप्टी कलेक्टर हो गया हैं। अशोक चरित्रवान, मेहनती और सुयोग्य लड़का है। वह अवश्य तरक्की करेगा। आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि ममता का चयन आईएएस के लिए हो गया है। कलेक्टर बन कर आयुष्मति की यह इच्छा है कि अपने अधीनस्थ कर्मचारी से वह विवाह नहीं करेगी। मुझे यह सम्बन्ध तोड़कर अपार हर्ष हो रहा है। *”बेटी पढाओ, दहेज मिटाओ”*👏👏👏👏👏👏👏👏👏 *एक रोटी कम खाओ,* *पर, बेटी जरूर पढ़ाओ*

विष्णु अरोड़ा

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बहुत समय पहले की बात है


🦅🦅🦅🦅🦅🦅🦅🦅🦅🦅🦅 _*🦅🦅बहुत समय पहले की बात है ,*_ _🦅एक राजा को उपहार में किसी ने बाज के दो बच्चे भेंट किये ।_ _🦅वे बड़ी ही अच्छी नस्ल के थे , और राजा ने कभी इससे पहले इतने शानदार बाज नहीं देखे थे।_ _🦅राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक अनुभवी आदमी को नियुक्त कर दिया।_ _🦅जब कुछ महीने बीत गए तो राजा ने बाजों को देखने का मन बनाया ,और उस जगह पहुँच गए जहाँ उन्हें पाला जा रहा था।_ _🦅राजा ने देखा कि दोनों बाज काफी बड़े हो चुके थे और अब पहले से भी शानदार लग रहे थे ।_ _🦅राजा ने बाजों की देखभाल कर रहे आदमी से कहा,_ _🦅” मैं इनकी उड़ान देखना चाहता हूँ , तुम इन्हे उड़ने का इशारा करो ।_ _🦅“ आदमी ने ऐसा ही किया। इशारा मिलते ही दोनों बाज उड़ान भरने लगे ,_ _🦅पर जहाँ एक बाज आसमान की ऊंचाइयों को छू रहा था ,_ _🦅वहीँ दूसरा , कुछ ऊपर जाकर वापस उसी डाल पर आकर बैठ गया_ _🦅जिससे वो उड़ा था। ये देख , राजा को कुछ अजीब लगा._ _🦅“क्या बात है जहाँ एक बाज इतनी अच्छी उड़ान भर रहा है वहीँ ये दूसरा बाज उड़ना ही नहीं चाह रहा ?”,_ _🦅राजा ने सवाल किया।_ _*🦅” जी हुजूर , इस बाज के साथ शुरू से यही समस्या है , वो इस डाल को छोड़ता ही नहीं।”*_ _🦅राजा को दोनों ही बाज प्रिय थे , और वो दूसरे बाज को भी उसी तरह उड़ना देखना चाहते थे।_ _🦅अगले दिन पूरे राज्य में ऐलान करा दिया गया,कि जो व्यक्ति इस बाज को ऊँचा उड़ाने में कामयाब होगा उसे ढेरों इनाम दिया जाएगा।_ _🦅फिर क्या था , एक से एक विद्वान् आये और बाज को उड़ाने का प्रयास करने लगे ,_ _🦅पर हफ़्तों बीत जाने के बाद भी बाज का वही हाल था, वो थोडा सा उड़ता और वापस डाल पर आकर बैठ जाता।_ _🦅फिर एक दिन कुछ अनोखा हुआ , राजा ने देखा कि उसके दोनों बाज आसमान में उड़ रहे हैं।_ _🦅उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ और उन्होंने तुरंत उस व्यक्ति का पता लगाने को कहा जिसने ये कारनामा कर दिखाया था।_ _🦅वह व्यक्ति एक किसान था। अगले दिन वह दरबार में हाजिर हुआ। उसे इनाम में स्वर्ण मुद्राएं भेंट करने के बाद राजा ने कहा ,_ _🦅” मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ , बस तुम इतना बताओ कि जो काम बड़े-बड़े विद्वान् नहीं कर पाये वो तुमने कैसे कर दिखाया।_ _🦅“ “मालिक !_ _मैं तो एक साधारण सा किसान हूँ , मैं ज्ञान की ज्यादा बातें नहीं जानता , मैंने तो बस वो डाल काट दी जिसपर बैठने का बाज आदि हो चुका था, और जब वो डाल ही नहीं रही तो वो भी अपने साथी के साथ ऊपर उड़ने लगा।_ _🦅“दोस्तों, हम सभी ऊँचा उड़ने के लिए ही बने हैं।_ _🦅लेकिन कई बार हम जो कर रहे होते है उसके इतने आदि हो जाते हैं कि अपनी ऊँची उड़ान भरने की , कुछ_ _बड़ा करने की काबिलियत को, भूल जाते हैं।_ _🦅यदि आप भी सालों से किसी ऐसे ही काम में लगे हैं जो आपके सही potential के मुताबिक नहीं है तो एक बार ज़रूर सोचिये_ _🦅कि कहीं आपको भी उस डाल को काटने की ज़रुरत तो नहीं जिसपर आप बैठे हैं ?_ 🦅 _”Luck is what happens when”_ _”preparation meets opportunity”_ _*👌ये msg आपके पास जितने भी ग्रुप हो सभी में कर दीजिये ।और उनको भी आगे करने का बोल दीजिये ।*_ 👌🙏👌.

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धारा 370


Sanjay Dwivedy;; *धारा 370 हटाने से पहले सरकार कर ले यह काम, * आधी हो जायेगी कश्मीर की समस्या !! कश्मीर की कारस्तानी का अगर जायजा लेना हो तो आपको जम्मू कश्मीर विधानसभा की सीटों का विश्लेषण करना होगा। J & K का असली क्षेत्रफल 222236 वर्ग किलोमीटर है। इसमें से भारत के पास सिर्फ 101387 वर्ग किलोमीटर इलाका है जो लद्दाख, जम्मू और कश्मीर तीन हिस्सों में विभक्त है और तीन हिस्सों की अपनी अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत है। *लद्दाख के लोग बौद्ध पंथ को मानते हैं, जम्मू के लोग हिन्दू धर्म के अनुयायी हैं और कश्मीर घाटी में इस्लाम बहुल वर्चस्व* है। इन तीनो क्षेत्रों में सबसे बड़ा भुभाग है लद्दाख का जिसका कुल इलाका है 59146 वर्ग किलोमीटर यानि कुल क्षेत्र का 58% पर उन्हें राज्य की कुल 87 विधान सभा की सीटों में से सिर्फ 4 सीटें दी गयी है और 6 लोकसभा सीटों में से सिर्फ 1 सीट। जम्मू का इलाका है 26293 वर्ग किलोमीटर यानि कुल क्षेत्रफल का लगभग 26% पर इसके हिस्से में 2 लोकसभा सीट हैं और 37 विधान सभा सीटें। अब आइये देखते हैं कश्मीर घाटी की स्थिति। इसका कुल इलाका है 15948 वर्ग किलोमीटर यानि कुल इलाके का 15% पर इसे 3 लोकसभा हासिल हैं यानि कुल लोकसभा सीटों का 50% और इन *कश्मीरियों ने नेहरू की मूर्खता का फायदा उठा कर 46 विधानसभा सीटें अपने कब्जे में कर रखी* है यानि कुल सीटों का 54%। इस गूंडागर्दी का ही यह फल है की आज तक जितने भी मुख्यमंत्री बने हैं सब घाटी से। केंद्र से जो अनुदान मिलता है उसका 80% भाग कश्मीरी डकार जाते हैं जो अंत में आतंकवादियों के हाथों में पहुँच जाता है। अब समय आ गया है की इस गूंडागर्दी को रोका जाये। *तीनो क्षेत्रों के बीच विधानसभा की सीटों का बंटवारा उनके क्षेत्रफल के हिसाब से हो* यानि लद्दाख को 58% सीटें मिलें, जम्मू को 26% और कश्मीर को 16% तभी पूरे राज्य के लोगो के साथ न्याय हो पायेगा। धारा 370 तो जब ख़त्म होगी सो होगी पर कम से कम राज्य की विधानसभा की सीटों का तो तर्कसंगत और न्यायसंगत बंटवारा पहले हो सकता हैं ताकि *जम्मू और लद्दाख के साथ जो भेदभाव हो रहा है वो ख़त्म हो। सदा सर्वदा सुमंगल,,, वंदेमातरम्,,, जय भवानी, जय श्रीराम

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Article 35A


Article 35A !! इसमें ऐसा क्या है जिसके बल पर कश्मीरी भारत का खाते हैं, संविधान के अनुरूप सारी सुविधायें भारत से लेते हैं, मुख्य मंत्री भी बनते हैं किंतु सुनते हैं पाकिस्तान का !! भारत मुर्दाबाद चिल्लाते हैं !! 370 नहीं अनुच्छेद 35A है, कश्मीर समस्या की असली जड़ !! संविधान की किताबों से है ‘नदारद’ है अनुच्छेद 35A – मजे की बात ये है की यदि आप संविधान की किसी भी प्रमाणिक पुस्तक को पढेंगे तो आपको यह धारा शायद कहीं दिखायी न दे। आपको अनुच्छेद 35(a) अवश्य पढ़ने को मिलेगा पर 35A ढूंढने के लिए आपको संविधान की (एपेंडिक्स) पर नजर डालनी होगी। यदि इसे संवैधानिक ‘चोरी’ कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)के करीबी माने जाने वाले थिंक टैंक संगठन जम्मू और कश्मीर स्टडी सेंटर(JKSC)अनुच्छेद 35A के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में है। संस्थान के निदेशक श्री आशुतोष भटनागर के मुताबिक़ यह आर्टिकल संविधान के मूलभूत ढाँचे के खिलाफ है,जिसमें संसद भी संशोधन नहीं कर सकती है। इसलिए यह अनुच्छेद पूर्णतः असंवैधानिक है इसलिए सुप्रीम कोर्ट को स्वतः इस मामले पर ‘संज्ञान’ लेना चाहिये। आर्टिकल 370 से पहले अनुच्छेद 35A को हटाया जाना बेहद जरुरी है। भारतीय संविधान की बहु ‘विवादास्पद’ धारा 370 के निरस्तीकरण की माँगे संविधान निर्माण के शुरुआती वर्षों से ही उठती रही है। अनुच्छेद 370 वास्तव में एक प्रक्रिया है और इसे इस आशा से पारित कराया गया कि एक अल्पकालीन व्यवस्था के रूप में स्वतः ही भविष्य में समाप्त हो जाएगी। जम्मू-कश्मीर में छिड़े संग्राम के कारण संविधान सभा के अभाव में राज्य में भारतीय संविधान को लागू करने की तात्कालिक एवं अंतरिम व्यवस्था बनायी गयी। स्वयं संविधान में इस व्यवस्था को ‘अस्थाई उपबंध’ कहा गया है। इसका जम्मू-कश्मीर राज्य से किसी विशिष्ठ व्यवहार एवं विशेष दर्जे का कोई भी लेना-देना नही था। ऐसे में 370 को आखिर भारतीय साम्राज्य की अखंडता पर ग्रहण के रूप में क्यों देखा जाने लगा ? बहुत से लोग हैं जो यह मानते हैं कि धारा 370 को समाप्त कर देने कश्मीर की लगभग सारी समस्याएँ समाप्त हो जायेंगी। किन्तु यह अधूरा सत्य है व्यवहार में धारा 370 इतना घातक नहीं जितना की 35A है। जी हाँ यही है कश्मीर की वो सबसे दुखती रग जिसकी सततता बनाये रखने की जिद को लेकर कश्मीर की सबसे बड़ी पार्टी पीडीपी सरकार बनाने के लिए बीजेपी से हाँथ मिलाने में कतरा रही थी। आज तो मुख्यमंत्री खुलकर इसके समर्थन में आ गई है। संविधान की स्पष्ट अवमानना है 35A – धारा 370 के कारण हो रही अधिकांश विसंगतियों की जड़ अनुच्छेद 35A ही बना। अनुच्छेद 370 को सशक्त करने के उद्देश्य से तत्कालीन राष्ट्रपति ने 14 मई 1954 को बिना किसी संसदीय कार्यवाही के एक संवैधानिक आदेश निकाला,जिसमें उन्होने एक नये अनुच्छेद 35A को भारत के संविधान में जोड़ दिया। जबकी यह शक्ति अनुच्छेद 368 के अंतर्गत केवल संसद को प्राप्त थी। बगैर किसी संसदीय कार्यवाही के अनुच्छेद 370 में एक नया अनुच्छेद जोड़ कर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 का सरासर उल्लंघन किया गया। इस अनुच्छेद में कहा गया कि “जम्मू-कश्मीर राज्य की विधान सभा स्थायी निवासी की परिभाषा निश्चित कर उनके विशेष अधिकार सुनिश्चित करे तथा शेष लोगों के नागरिक अधिकारों को सीमित करे।” 35A की आड़ में संविधान में वर्णित मूल अधिकारों की अवमानना – इस विशेष अनुच्छेद के नियमों के अनुसार जम्मू और कश्मीर में किसी भी व्यक्ति की नागरिकता को स्थाई या अस्थाई मानना जम्मू-कश्मीर सरकार की इच्छा-अनिच्छा पर निर्भर हो गया। इस संवैधानिक भूल का जम्मू और कश्मीर के राजनीतिक दलों ने जम कर दुरूपयोग किया। परिणाम आपके सामने है भारतीय संविधान की पंथनिरपेक्ष व्यवस्था को मुस्लिम तुष्टीकरण की भेंट चढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी। इस अनुच्छेद के अनुसार जो जम्मू कश्मीर राज्य का रहने वाला नहीं है वह वहाँ पर ज़मीन नही खरीद सकता, वह वहाँ पर रोजगार नही कर सकता और वह वहाँ पर निवेश नही कर सकता। अब इसकी आड़ में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14,15,19 एवं 21 में भारतीय नागरिकों को समानता और कहीं भी बसने के जो अधिकार दिए, वह प्रतिबंधित कर दिए गए। इस प्रकार एक ही भारत के नागरिकों को इस अनुच्छेद 35A ने बाँट दिया। दलित ‘हिन्दू’ हैं नरकीय जीवन जीने को मजबूर- अनुच्छेद 35A की सबसे ज्यादा मार,1947 में पश्चिमी पाकिस्तान से आए 20 लाख से ज्यादा प्रवासी ‘हिन्दू’ झेल रहे हैं। इन प्रवासी हिन्दुओं में ज्यादातर आबादी ‘दलितों’ की थी। पिछले 70 वर्षों से कश्मीर में बसे होने के बावजूद उन्हे वहाँ की ‘नागरिकता’ नहीं मिली है। उन्हें राज्य में ज़मीन खरीदने का अधिकार नहीं है,उनके बच्चे को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती, व्यवसायिक शिक्षण संस्थानों के दरवाजे उनके लिए अवरुद्ध हैं। वे लोकसभा चुनावों में तो वोटिंग कर सकते हैं,परन्तु विधान सभा एवं अन्य स्थानीय चुनावों में वे न तो वोट डाल सकते हैं न ही अपनी उम्मीदवारी रख सकते हैं। सीधे तौर पर कहें तो ये भारत के नागरिक तो हैं पर जम्मू और कश्मीर के नहीं। आज इतने सालों बाद भी ये लोग शरणार्थियों सरीखा जीवन जीने को मजबूर हैं। (अधिकांश ने इस विडम्बना से उबरने के लिये इस्लाम अपना लिया है) यह अनुच्छेद केवल कुछ चुनिन्दा लोगों को 370 के तहत ‘विशेषाधिकार’ प्रदान करने में मदद करता है,जबकि शेष को मूलभूत अधिकारों से भी वंचित कर देता है। बहुत अफ़सोस की बात है की रोहित वेमुला एवं दलितों के मुद्दे में राजनीतिक रोटियाँ सेंकने वाले सभी तथाकथित लिबरल वर्ग ने कभी भी उसी कश्मीर के वंचित ‘दलित’ तबके के प्रति हुए संवैधानिक अन्याय के खिलाफ अपनी चोंच खोलने की तो छोडिये,संवेदना व्यक्त करने की भी जहमत नहीं फ़रमायी। ================== http://hindutva.info/35a-is-real-prob lem-and-not-370/ ================== सदा सर्वदा सुमंगल., हर हर महादेव,, वंदेमातरम्,, जय सिया भवानी,,, जय श्री राम,,

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आखिर उसने हाथ बढाया एक गाड़ी आज फिर बाहर आकर रुकी है


# आखिर उसने हाथ बढाया एक गाड़ी आज फिर बाहर आकर रुकी है ।सभी अपने कोठारी में से बाहर झांक रहे हैं। किसी के चेहरे पर कोई खुशी , कोई हर्ष किसी भी तरह का कोई भाव नहीं । गाड़ी का दरवाजा खुला 70 साल की महिला सफेद साड़ी गंजा सर हाथ में एक बैग थामे अपने बेटे के द्वारा खोले गए दरवाजे से बाहर निकली । दरवाजे से बाहर निकल कर गेट को पार करती हुई बरामदे में पहुंची । बेटा ऑफिस कार्यालय में बात करने के लिए गया। नयन जैसे जीने की इच्छा नहीं पर फिर भी जिए जा रही है क्योंकि ये दिन भी देखना बाकी था। एक कोठरी में उसका बेटा सामान के साथ लेकर गया ।कोठरी इतनी ही बड़ी थी कि उसमें एक इन्सान आ सके । कोने में एक मिट्टी का मटका, खिड़की पर रस्सी अपनी जरूरत के कपड़ों को टांगने के लिए बंधी है । सुना है ! इसमें जो रहती थी अभी कुछ दिन पहले ही गुजर गई । बेटा भारी मन से उठता हुआ कहता है ,”अच्छा मां ! मैं अब चलता हूं ।” मां रोकर रोकना चाहती है ,” मत जाओ मुझे छोड़कर । मैं बिल्कुल अकेली हो जाऊंगी कैसे रहूंगी मैं ? ” बेटा मन के भावों को जानते हुए भी नासमझ बन चल दिया ।उसे छोड़कर जिसने कभी उसे रोते हुए नहीं छोड़ा । तेज कदमों से बढ़ता हुआ लड़का गाड़ी में बैठ उस और निकल गया जिधर से गाड़ी आई थी ।दरवाजे पर खड़ी उम्मीद में ताकती , यकीन करना मुश्किल था , गाड़ी वापस नहीं आएगी । उसका बेटा कभी इतना कठोर भी हो सकता है । घंटों गेट पर खड़ी निहारती रही उस रास्ते पर , तभी एक दूसरी बुढ़िया आई । “यहां कोई वापस नहीं आता । चल कब तक खड़ी रहेगी । जब मैं यहां आई थी ना तो मुझे भी ऐसा ही लगता था , मेरे परिवार वाले मुझे यहां कभी नहीं छोड़ सकते ।” लौट आई अपनी कोठरी में बैग खोलकर दोनों साडियाँ बाहर निकाली । रस्सी पर टाँगी ।कान्हा जी की मूर्ति निकाल आले में रख दी । शाम हो चली थी । चौक में औरतों की चहल पहल थी लेकिन वो निर्जीव पड़ी थी ,अपनी चारपाई पर । शाम रात में बदल गई ।नींद कोसों दूर थी । एक गिलास पानी पिया , दुबारा उसी चारपाई पर लेट गई । रात भर करवटें बदलने के बाद एक आध घंटे को आंख लगी । सुबह बिस्तर से उठने की कोशिश की , लेकिन उठी नहीं पाई ।पूरा बदन जैसे दुख रहा है। कमर में जोर का दर्द है । चारपाई पर सोने की आदत जो नहीं । अपने बैग में से एक गोली निकालकर खाने ही वाली थी कि तभी पेट ने दस्तक दी । तू भूखी है। दो दिन से तूने कुछ नहीं खाया । आत्मा मर जाना चाहती है । पर शरीर कुछ खाना चाहता है । अपने बैग में रखी हुई छोटी सी पैसे की पोटली ढूँढी , जो केशव के जाने से पहले उसके पास पड़ी थी ।उसे अपने साथ ले आई थी , ना चाहते हुए भी ।पोटली बहुत ढूंढी लेकिन कहीं न मिली । न जाने किसने निकाल ली ।गाड़ी तक तो मेरे पास ही थी । अब क्या खाएगी ? तभी नजर अपने हाथ की अंगूठी पर पडीं । अंगूठी जो केशव की निशानी थी । उसने जिंदगी में कभी नहीं उतारी ।जब पहली बार केशव से मिली थी, तब उसने बड़े प्यार से दी थी । जान से ज्यादा जिस अगूँठी को चाहा था ।आज भूख उसी की दुहाई दे रही है , जैसे केशव कोठारी के कोने में खड़ा रो रहा है और कहना चाहता है ” इस अंगूठी का कोई अस्तित्व नहीं ।अब तुम कुछ खा लो । मैं तुम्हें अकेला छोड़कर चला गया , उसके लिए मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा। काश हमारी कोई संतान ही ना होती।” आस-पास की महिलाओं से पूछ सुनार की दुकान पर पहुंची अंगूठी के ₹8000 मिले। उन्हें लेकर अपनी कोठरी में वापस आई और इस बार संभाल कर रखे ।कहीं ऐसा ना हो पहले की तरह चोरी हो जाये । धीरे-धीरे आदत होने लगी थी , आसपास के माहौल की ।कुछ अच्छी औरतें भी थी जो उसके जैसे माहौल से ही आई थीं ।दिनभर पूजा पाठ करना , हरे रामा हरे कृष्णा का जाप ।जाने कितने मंदिर बने थे आसपास । सुंदर राधा रानी का घाट घंटों उस पर बैठना ।मन शान्त हो चुका था । प्रभु के चरणो में अब बसेरा था । 2 महीने हो चुके थे । 3 महीना पूरा होने वाला था और अब सिर्फ उसके पास पाँच सौ रुपए ही बचे थे । इधर-उधर से पूछा, क्या कोई काम मिल सकता है ? घर-घर जाकर पूछना पड़ेगा । यहां कोई काम नहीं कराता । सब गांव वाले ही तो है । किसी ने बताया , एक जगह खाली है । उनको झाड़ू पोछे वाली चाहिए । तो पहुँच गई । दरवाजा खटखटाया । हमउम्र ने दरवाजा खोला । उसने कहा ,” मैं काम मांगने आई हूं ।” हमउम्र रो पड़ी । मैं तुम्हें काम करते हुए नहीं देख सकती । उसने 100 रुपए हाथ में थमा , दरवाजा बंद कर दिया । हजारों लोग परिक्रमा लगाते । पूरे गोवर्धन में हजारों की संख्या में विधवा भीख मांगती ।लेकिन वो एक स्वाभिमानी औरत थी जिसने कभी किसी के सामने हाथ न फैलाया था , वो कैसे अपना हाथ बढ़ाकर 10 रूपये मांग सकती थी? दुकान पर काम तलाशा कोई पोशाक या माला बनाने का काम अगर से मिल जाए । बनिए ने ये कह मना कर दिया ,” आपकी आंखे तो कमजोर हो चुकी हैं ।आप कैसे बनाएंगी ?” ” बेटा थोड़े कम पैसे दे देना ।” ना माताजी आप से नहीं हो पाएगा । आगे आने वाले 15 , 20 में ₹500 भी खत्म हो गए। भूख से व्याकुल क्या करेगी ? भगवान ने बुला क्यों नहीं लिया केशव के साथ । मैं भीख नहीं मांग सकती … भीख नहीं मांग सकती पर पेट की भूख मजबूर कर रही है भीख मांगने के लिए । तुझे भीख माननी पड़ेगी । जिस तरह तेरी उम्र की सभी धर्मशाला से सुबह भीख मांगने के लिए जाती हैं और पूरा दिन लाइन लगाकर बैठी रहती है वैसे तुझे भी माननी पड़ेगी । सभी के साथ निकली , निकलते ही बैठने के लिए एक स्थान की दिक्कत । किसी दूसरी ने आकर कहा यहां क्यों बैठी है ? खड़ी हो ।ये मेरी जगह है ।रोज मैं यहां बैठती हूँ । लेकिन आज तो मैं पहले आई हूं ना बेटा । बुढ़िया खड़ी हो यहां से ये मेरी जगह है ।कोई बेटा वेटा नहीं । चली आती हैं पता नहीं कहाँ-कहाँ से ? बैठ गई नाली के पास ।नाली की बदबू असहनीय थी ।अपना कट्टा बिछाया । , अपने स्वाभिमान को खोकर उसने हाथ बढ़ाया उसने हाथ बढ़ाया जिसके पल्ले में तिजोरी का छल्ला बधाँ रहता था ।उसने हाथ बढ़ाया जिसने कभी अपने बेटे के लिए किसी चीज की कोई कमी नहीं होने दी । आज उसने हाथ बढ़ाया , अपने सम्मान को किनारे रखकर ₹10 के नोट के लिए , न जाने एसे कितने नोट अपने बेटे पर निछावर कर चुकी थी । आज उसने हाथ बढ़ाया जिसने अपने पिता की गोदी में मंदिर से बाहर न जाने कितने नोट बाँटे थे । और वो एक विधवा से भिकारन बनने में कामयाब रही | कापी/पेस्ट

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पाप का गुरुकौन है?


पाप का गुरुकौन है? एकपंडित जी कई वर्षों तक काशी मेंशास्त्रों का अध्ययन करने केबाद अपने गांव लौटे। गांव केएककिसान ने उनसे पूछा, पंडित जी आप हमें यहबताइए कि पाप का गुरुकौन है? प्रश्न सुन कर पंडित जी चकरा गए, क्योंकि भौतिक व आध्यात्मिक गुरुतो होतेहैं, लेकिन पाप का भी गुरुहोता है, यहउनकी समझ और अध्ययन केबाहर था। पंडित जी को लगा कि उनका अध्ययन अभी अधूरा है, इसलिए वे फिर काशी लौटे। फिर अनेक गुरुओंसे मिले। मगरउन्हें किसान केसवाल का जवाब नहीं मिला। अचानक एकदिन उनकी मुलाकात एकवेश्या से हो गई। उसने पंडित जी से उनकी परेशानी का कारण पूछा, तो उन्होंने अपनी समस्या बता दी। वेश्या बोली, पंडित जी..! इसका उत्तर है तो बहुत ही आसान,लेकिन इसकेलिए कुछ दिन आपको मेरे पड़ोस मेंरहना होगा। पंडित जी केहां कहने पर उसने अपने पास ही उनके रहने की अलग से व्यवस्था कर दी। पंडित जी किसी केहाथ का बना खाना नहीं खाते थे, नियम-आचार और धर्म के कट्टर अनुयायी थे। इसलिए अपने हाथ से खाना बनाते और खाते। इसप्रकार से कुछ दिन बड़े आराम से बीते, लेकिन सवाल का जवाब अभी नहीं मिला। एकदिन वेश्या बोली, पंडित जी…! आपको बहुत तकलीफ होती है खाना बनाने में।और तीन-चार घंटे बीत जाते हैं। यहां देखने वाला तो और कोई है नहीं। आप कहें तो मैंनहा-धोकर आपके लिए कुछ भोजन तैयार कर दिया करूं। आप मुझेयहसेवा का मौका दें, तो मैंदक्षिणा मेंपांच स्वर्ण मुद्राएं भी प्रतिदिन दूंगी। स्वर्ण मुद्रा का नाम सुन कर पंडित जी को लोभ आगया। साथ मेंपका-पकाया भोजन। अर्थात दोनों हाथों मेंलड्डू। इसलोभ मेंपंडित जी अपना नियम-व्रत, आचार-विचार धर्म सब कुछ भूल गए। पंडित जी ने हामी भर दी और वेश्या से बोले, ठीकहै, तुम्हारी जैसी इच्छा। लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखना कि कोई देखे नहीं तुम्हें मेरी कोठी मेंआते-जाते हुए। वेश्या ने पहले ही दिन कई प्रकार केपकवान बनाकर पंडित जी केसामने परोस दिया। पर ज्यों ही पंडित जी खाने को तत्पर हुए,त्यों ही वेश्या ने उनके सामने से परोसी हुईथाली खींच ली। इसपर पंडित जी क्रुद्ध हो गए और बोले, यहक्या मजाक है? वेश्या ने कहा, यहमजाक नहीं है पंडित जी, यहतो आपके प्रश्न का उत्तर है। यहां आने से पहले आप भोजन तो दूर, किसी के हाथका पानी भी नहीं पीते थे,मगर स्वर्ण मुद्राओं केलोभ में आपने मेरे हाथ का बना खाना भी स्वीकार कर लिया। यहलोभ ही पाप का गुरुहै। विक्रम प्रकाश राइसोनि