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ग्रहों का शरीर में स्थान…. सौर मंडल में जिस तरह नौ ग्रहों


ग्रहों का शरीर में स्थान….
सौर मंडल में जिस तरह नौ ग्रहों

का अस्तित्व है,ठीक उसी प्रकार

मानव शरीर में भी नौ ग्रह मौजूद हैं।
ये ग्रह शरीर के विभिन्न अंगों में

उपस्थित हैं।
ग्रहों का संबंध मानवीय चिंतन से है

और चिंतन का संबंध मस्तिष्क से है।
चिंतन का आधार सूर्य है।
इसीलिए हमारे आदि ऋषियों ने

सूरज का स्थान मानव शरीर में

माथे पर माना है।
ब्रह्मा रंध्र से एक अंगुली नीचे सूर्य

का स्थान है।
इससे एक अंगुली और नीचे की

ओर चंद्रमा है।
चंदमा इंसान को भावुकता और

चंचलता से जोड़ता है,साथ ही

कल्पना शक्ति से भी।
चूंकि चंदमा को सूर्य से रोशनी

लेनी पड़ती है,इसीलिए चंद्रमा

का सूर्य के साये में नीचे रहना

आवश्यक है।
सूर्य के तेज का उजाला जब

चंद्रमा पर पड़ता है,तब इंसान

की शक्ति,ओज,वीरता चमकती है।
ये गुण चिंतन की प्रखरता से ही

निखरते हैं।
गरुड़ पुराण के अनुसार मंगल

का स्थान मानव के नेत्रों में माना

जाता है।
मंगल शक्ति का प्रतीक है।

यह प्रतिभा और रक्त से संबंध

रखता है।
मानव की आंख मन का आईना

है,जैसे शिव का तीसरा नेत्र उनके

क्रोध का प्रतीक है।
इंसान के मन की अवस्था को भी

आंखों से पढ़ा और समझा जा

सकता है।
हमारे भीतर की मजबूती या

कमजोरी का पता आंखों से

चल जाता है।
इसलिए मंगल ग्रह का स्थान

नेत्रों को माना गया है।
बुद्ध का स्थान मानव के हृदय में है।

बुद्ध बौद्धिकता का प्रतीक है।

यह वाणी का कारण भी है।
हमें किसी आदमी का व्यवहार,

काव्य शक्ति अथवा प्रवचन शक्ति

जाननी हो,तो हम रमल ज्योतिष

शास्त्र के अनुसार बुद्ध ग्रह को

विशेष रूप से देखते हैं।
गुरु या बृहस्पति ग्रह का स्थान

नाभि होता है।

बृहस्पति वेद-पुराणों के ज्ञाता हैं।

ये समस्त शास्त्रों के ज्ञाता होने के

साथ ही अथाह ज्ञान के प्रतीक होते हैं।
आपने गौर से देखा होगा कि विष्णु की

नाभि से कमल का फूल खिला है।

उससे ब्रह्मा की उत्पत्ति मानी गई है

और इसलिए बृहस्पति का स्थान

नाभि में है।

बृहस्पति देवों के गुरु भी हैं।
शुक्र ग्रह का स्थान वीर्य में होता है।

शुक्र दैत्यों के गुरु हैं।

मानव की सृष्टि शुक्र की महिमा से

ही गतिमान है।

कामवासना,इच्छाशक्ति का प्रतीक

शुक्र है।
शनि का स्थान नाभि गोलक में है।

नाभि ज्ञान,चिंतन और खयालों की

गहराई की प्रतीक मानी जाती है।
ज्योतिष शास्त्र द्वारा हमें किसी

व्यक्ति के चिंतन की गहराई देखनी

हो तो हमें उसके शनि ग्रह की स्थिति

जाननी होती है।
चिंतन की चरम सीमा अथाह ज्ञान है।
ज्योतिष के अनुसार यदि किसी व्यक्ति

में एक ही स्थान पर शनि और गुरु एक

निश्चित अनुपात में हों तो व्यक्ति खोजी,

वेद-पुराणों का ज्ञाता,शोधकर्ता और
शास्त्रार्थ करने वाला होता है।
राहु ग्रह का स्थान इंसान के मुख में

होता है।

राहु जिस ग्रह के साथ बैठता है,वैसा

ही फल देता है।

यदि मंगल ग्रह की शक्ति इसके पीछे

हो तो जातक क्रोध और वीरतापूर्ण

वाणी बोलेगा।
यदि बुद्ध की शक्ति पीछे हो तो व्यक्ति

मधुर वाणी बोलेगा।

यदि गुरु की शक्ति पीछे हो तो ज्ञानवर्धक

और शास्त्रार्थ की भाषा बोलेगा।
यदि शुक्र ग्रह की शक्ति पीछे हो तो

जातक रोमांटिक बातें करेगा।
केतु ग्रह का स्थान हृदय से लेकर

कंठ तक होता है।

साथ ही केतु ग्रह का संबंध गुप्त

चीजों या किसी भी कार्य के रहस्यों

से भी होता है।
इंसान के शरीर में ये सभी नौ ग्रह

अपनी-अपनी जगह पर निवास

करते हैं और रक्त प्रवाह के जरिए

एक-दूसरे का प्रभाव ग्रहण करते हैं।
इसलिए यदि हम अपने शरीर को

स्वस्थ और नीरोग रखेंगे तो सभी

ग्रह शांत और मददगार होंगे।
जैसा कि सभी जानते हैं,स्वस्थ

शरीर हमें अध्यात्म की ओर बढ़ने

में मदद करता है।

—#समाधान_blogspot

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जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,

जयति पूण्य भूमि भारत,,,,
सदा सर्वदा सुमंगल,,,

हर हर महादेव,,,

जय भवानी

जय श्री राम

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

वीर सावरकर कौन थे?


वीर सावरकर कौन थे?

जिन्हें आज कांग्रेसी कोस रहे और क्यों?

सभी राष्ट्रवादी कांगियों को सीना ठोक कर जवाब जरूर दें॥
ये 25 बातें पढ़कर आपका सीना गर्व से चौड़ा हो उठेगा,

इसको पढ़े बिना आजादी का ज्ञान अधूरा है!
आइए जानते है एक ऐसे महान क्रांतिकारी के बारें में जिनका नाम इतिहास के पन्नों से मिटा दिया गया। जिन्होंने

ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा इतनी यातनाएं झेली की उसके बारें में कल्पना करके ही इस देश के करोड़ो भारत माँ के कायर पुत्रों में सिहरन पैदा हो जायेगी।
जिनका नाम लेने मात्र से आज भी हमारे देश के राजनेता

भयभीत होते हैं क्योंकि उन्होंर माँ भारती की निस्वार्थ सेवा की थी। वो थे हमारे परम पूज्य वीर सावरकर।
1. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी देशभक्त थे जिन्होंने_
1901 में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की मृत्यु पर नासिक में शोक सभा का विरोध किया और कहा कि वो हमारे शत्रु देश की रानी थी, हम शोक क्यूँ करें?
क्या किसी भारतीय महापुरुष के निधन पर ब्रिटेन में शोक सभा हुई है.?
2. वीर सावरकर पहले देशभक्त थे जिन्होंने एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह का उत्सव मनाने वालों को

त्र्यम्बकेश्वर में बड़े बड़े पोस्टर लगाकर कहा था कि गुलामी का उत्सव मत मनाओ !
3. विदेशी वस्त्रों की पहली होली पूना में 7 अक्तूबर 1905 को वीर सावरकर ने जलाई थी…।
4. वीर सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने विदेशी

वस्त्रों का दहन किया, तब बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में उनको शिवाजी के समान बताकर उनकी प्रशंसा की थी जबकि इस घटना की दक्षिण अफ्रीका के अपने पत्र ‘इन्डियन ओपीनियन’ में गाँधी ने निंदा की थी…।
5. सावरकर द्वारा विदेशी वस्त्र दहन की इस प्रथम घटना के 16 वर्ष बाद गाँधी उनके मार्ग पर चले और 11 जुलाई 1921 को मुंबई के परेल में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया…।
6. सावरकर पहले भारतीय थे जिनको 1905 में विदेशी वस्त्र दहन के कारण पुणे के फर्म्युसन कॉलेज से निकाल दिया गया और दस रूपये जुरमाना किया… इसके विरोध में हड़ताल हुई… स्वयं तिलक जी ने ‘केसरी’ पत्र में सावरकर के पक्ष में सम्पादकीय लिखा…।
7. वीर सावरकर ऐसे पहले बैरिस्टर थे जिन्होंने 1909 में ब्रिटेन में ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफादार होने की शपथ नही ली… इस कारण उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नही दिया गया…।
8. वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने वाले संघर्ष को ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ नामक ग्रन्थ लिखकर सिद्ध कर दिया…।
9. सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी लेखक थे जिनके लिखे ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ पुस्तक पर ब्रिटिश संसद ने प्रकाशित होने से पहले प्रतिबन्ध लगाया था…।
10. ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ विदेशों में छापा गया और भारत में भगत सिंह ने इसे छपवाया था जिसकी एक एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये में बिकी थी… भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता थी… पुलिस छापों में देशभक्तों के घरों में यही पुस्तक मिलती थी…।
11. वीर सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जो समुद्री जहाज में बंदी बनाकर ब्रिटेन से भारत लाते समय आठ जुलाई 1910 को समुद्र में कूद पड़े थे और तैरकर फ्रांस पहुँच गए थे…।
12. सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जिनका मुकद्दमा

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में चला, मगर ब्रिटेन और फ्रांस की मिलीभगत के कारण उनको न्याय नही मिला और बंदी बनाकर भारत लाया गया…।
13. वीर सावरकर विश्व के पहले क्रांतिकारी और भारत के पहले राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई थी…।
14. सावरकर पहले ऐसे देशभक्त थे जो दो जन्म कारावास की सजा सुनते ही हंसकर बोले-“चलो, ईसाई सत्ता ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया.”…..।
15. वीर सावरकर पहले राजनैतिक बंदी थे जिन्होंने काला

पानी की सजा के समय 10 साल से भी अधिक समय तक आजादी के लिए कोल्हू चलाकर 30 पोंड तेल प्रतिदिन निकाला…।
16. वीर सावरकर काला पानी में पहले ऐसे कैदी थे जिन्होंने काल कोठरी की दीवारों पर कंकर कोयले से कवितायें लिखी और 6000 पंक्तियाँ याद रखी..।
17. वीर सावरकर पहले देशभक्त लेखक थे, जिनकी लिखी हुई पुस्तकों पर आजादी के बाद कई वर्षों तक प्रतिबन्ध लगा रहा…।
18. वीर सावरकर पहले विद्वान लेखक थे जिन्होंने हिन्दू को परिभाषित करते हुए लिखा कि
‘आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका,

पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितीस्मृतः.’
अर्थात समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभू है, जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यही पुण्य भू है, जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं, वही हिन्दू है..।
19. वीर सावरकर प्रथम राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सत्ता ने 30 वर्षों तक जेलों में रखा तथा आजादी के बाद 1948 में नेहरु सरकार ने गाँधी हत्या की आड़ में लाल किले में बंद रखा पर न्यायालय द्वारा आरोप झूठे पाए जाने के बाद ससम्मान रिहा कर दिया… देशी-विदेशी दोनों सरकारों को उनके राष्ट्रवादी विचारों से डर लगता था…।
20. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी थे जब उनका 26 फरवरी 1966 को उनका स्वर्गारोहण हुआ तब भारतीय संसद में कुछ सांसदों ने शोक प्रस्ताव रखा तो यह कहकर रोक दिया गया कि वे संसद सदस्य नही थे जबकि चर्चिल की मौत पर शोक मनाया गया था…।
21. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त स्वातंत्र्य वीर

थे जिनके मरणोपरांत 26 फरवरी 2003 को उसी संसद में मूर्ति लगी जिसमे कभी उनके निधन पर शोक प्रस्ताव भी रोका गया था…।
22. वीर सावरकर ऐसे पहले राष्ट्रवादी विचारक थे जिनके

चित्र को संसद भवन में लगाने से रोकने के लिए कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा लेकिन

राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने सुझाव पत्र नकार दिया और वीर सावरकर के चित्र अनावरण राष्ट्रपति ने अपने कर-कमलों से किया…।
23. वीर सावरकर पहले ऐसे राष्ट्रभक्त हुए जिनके शिलालेख को अंडमान द्वीप की सेल्युलर जेल के कीर्ति स्तम्भ से UPA सरकार के मंत्री मणिशंकर अय्यर ने हटवा दिया था और उसकी जगह गांधी का शिलालेख लगवा दिया..।
24. वीर सावरकर ने दस साल आजादी के लिए काला पानी में कोल्हू चलाया था जबकि गाँधी ने काला पानी की उस जेल में कभी दस मिनट चरखा नही चलाया..?
25. वीर सावरकर माँ भारती के पहले सपूत थे जिन्हें जीते जी और मरने के बाद भी आगे बढ़ने से रोका गया… पर आश्चर्य की बात यह है कि इन सभी विरोधियों के घोर अँधेरे को चीरकर आज वीर सावरकर सभी मे लोकप्रिय और युवाओं के आदर्श बन रहे है।।
वन्दे मातरम्।।
( Kamlesh Tripathy)

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370 नहीं अनुच्छेद 35A है कश्मीर समस्या की असली जड़


370 नहीं अनुच्छेद 35A है कश्मीर समस्या की असली जड़

क्या आप ऊपर की लिखी ये बात जानते है??????

भारतीय संविधान की बहु ‘विवादास्पद’ धारा 370 के निरसन की माँगे संविधान निर्माण के शुरुआती वर्षों से ही उठती रही है। अनुच्छेद 370 वास्तव में एक प्रक्रिया है और इसे इस आशा से पारित कराया गया कि एक अल्पकालीन व्यवस्था के रूप में स्वतः ही भविष्य में समाप्त हो जाएगी। जम्मू-कश्मीर में छिड़े संग्राम के कारण संविधान सभा के अभाव में राज्य में भारतीय संविधान को लागू करने की तात्कालिक एवं अंतरिम व्यवस्था बनायी गयी। स्वयं संविधान में इस व्यवस्था को ‘अस्थाई उपबंध’ कहा गया है। इसका जम्मू-कश्मीर राज्य से किसी विशिष्ठ व्यवहार एवं विशेष दर्जे का कोई भी लेना-देना नही था। ऐसे में 370 को आखिर भारतीय साम्राज्य की अखंडता पर ग्रहण के रूप में क्यों देखा जाने लगा ? बहुत से लोग हैं जो यह मानते हैं की धारा 370 को समाप्त कर देने कश्मीर की लगभग सारी समस्याएँ समाप्त हो जायेंगी। किन्तु यह अधूरा सत्य है व्यवहार में धारा 370 इतना घातक नहीं जितना की 35A है। जी हाँ यही है कश्मीर की वो सबसे दुखती रग जिसकी सततता बनाये रखने की जिद को लेकर कश्मीर की सबसे बड़ी पार्टी पीडीपी सरकार बनाने के लिए बीजेपी से हाँथ मिलाने में कतरा रही है।

संविधान की स्पष्ट अवमानना है 35A –

धारा 370 के कारण हो रही अधिकतर विसंगतियों की जड़ अनुच्छेद 35A ही बना। अनुच्छेद 370 को सशक्त करने के उद्देश्य से तत्कालीन राष्ट्रपति ने 14 मई 1954 को बिना किसी संसदीय कार्यवाही के एक संवैधानिक आदेश निकाला,जिसमें उन्होने एक नये अनुच्छेद 35A को भारत के संविधान में जोड़ दिया। जबकी यह शक्ति अनुच्छेद 368 के अंतर्गत केवल संसद को प्राप्त थी। बगैर किसी संसदीय कार्यवाही के अनुच्छेद 370 में एक नया अनुच्छेद जोड़ कर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 का सरासर उल्लंघन किया गया। इस अनुच्छेद में कहा गया कि “जम्मू-कश्मीर राज्य की विधानसभा स्थायी निवासी की परिभाषा निश्चित कर उनके विशेष अधिकार सुनिश्चित करे तथा शेष लोगों के नागरिक अधिकारों को सीमित करे।”

35A की आड़ में संविधान में वर्णित मूल अधिकारों की अवमानना –

इस विशेष अनुच्छेद के नियमों के अनुसार जम्मू और कश्मीर में किसी भी व्यक्ति की नागरिकता को स्थाई या अस्थाई मानना जम्मू-कश्मीर सरकार की इच्छा-अनिच्छा पर निर्भर हो गया। इस संवैधानिक भूल का जम्मू और कश्मीर के राजनीतिक दलों ने जम कर दुरूपयोग किया। परिणाम आपके सामने है भारतीय संविधान की पंथनिरपेक्ष व्यवस्था को मुस्लिम तुष्टीकरण की भेंट चढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी। इस अनुच्छेद के अनुसार जो जम्मू-कश्मीर राज्य का रहने वाला नहीं है वह वहाँ पर ज़मीन नही खरीद सकता, वह वहाँ पर रोजगार नही कर सकता और वह वहाँ पर निवेश नही कर सकता। अब इसकी आड़ में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 एवं 21 में भारतीय नागरिकों को समानता और कहीं भी बसने के जो अधिकार दिए,वह प्रतिबंधित कर दिए गए। इस प्रकार एक ही भारत के नागरिकों को इस अनुच्छेद 35A ने बाँट दिया।

दलित ‘हिन्दू’ हैं नरकीय जीवन जीने को मजबूर-

अनुच्छेद 35A की सबसे ज्यादा मार,1947 में पश्चिमी पाकिस्तान से आए 20 लाख से ज्यादा प्रवासी ‘हिन्दू’ झेल रहे हैं। इन प्रवासी हिन्दुओं में ज्यादातर आबादी ‘दलितों’ की थी। पिछले 68 वर्षों से कश्मीर में बसे होने के बावजूद उन्हे वहाँ की ‘नागरिकता’ नहीं मिली है। उन्हें राज्य में ज़मीन खरीदने का अधिकार नहीं है,उनके बच्चे को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती,व्यवसायिक शिक्षण संस्थानों के दरवाजे उनके लिए अवरुद्ध हैं। वे लोकसभा चुनावों में तो वोटिंग कर सकते हैं,परन्तु विधान सभा एवं अन्य स्थानीय चुनावों में वे न तो वोट डाल सकते हैं न ही अपनी उम्मीदवारी रख सकते हैं। सीधे तौर पर कहें तो ये भारत के नागरिक तो हैं पर जम्मू और कश्मीर के नहीं। आज इतने सालों बाद भी ये लोग शरणार्थियों सरीखा जीवन जीने को मजबूर हैं। यह अनुच्छेद केवल कुछ चुनिन्दा लोगों को 370 के तहत ‘विशेषाधिकार’ प्रदान करने में मदद करता है,जबकि शेष को मूलभूत अधिकारों से भी वंचित कर देता है। बहुत अफ़सोस की बात है की रोहित वेमुला के मुद्दे में राजनीतिक रोटियाँ सेंकने वाले सभी तथाकथित लिबरल वर्ग ने कभी भी उसी कश्मीर के वंचित ‘दलित’ तबके के प्रति हुए संवैधानिक अन्याय के खिलाफ अपनी चोंच खोलने की तो छोडिये,संवेदना व्यक्त करने की भी जहमत नहीं फ़रमायी।

संविधान की किताबों से है ‘नदारद’ है अनुच्छेद 35A –

मजे की बात ये है की यदि आप संविधान की किसी भी प्रमाणिक पुस्तक को पढेंगे तो आपको यह धारा शायद कहीं दिखायी न दे.आपको अनुच्छेद 35(a) अवश्य पढ़ने को मिलेगा पर 35A ढूंढने के लिए आपको संविधान की (एपेंडिक्स) पर नजर डालनी होगी। यदि इसे संवैधानिक ‘चोरी कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के करीबी माने जाने वाले थिंक टैंक संगठन जम्मू और कश्मीर स्टडी सेंटर (JKSC) अनुच्छेद 35A के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में है। संस्थान के निदेशक श्री आशुतोष भटनागर के मुताबिक़ यह आर्टिकल संविधान के मूलभूत ढाँचे के खिलाफ है,जिसमें संसद भी संशोधन नहीं कर सकती है। इसलिए यह अनुच्छेद पूर्णतः असंवैधानिक है इसलिए सुप्रीम कोर्ट को स्वतः इस मामले पर ‘संज्ञान’ लेना चाहिये। आर्टिकल 370 से पहले अनुच्छेद 35A को हटाया जाना बेहद जरुरी है।

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एक बार एक केकड़ा समुद्र किनारे अपनी मस्ती में चला जा रहा था


एक बार एक केकड़ा समुद्र किनारे अपनी मस्ती में चला जा रहा था और बीच बीच में रुक रुक कर अपने पैरों के निशान देख कर खुश होता ।

आगे बढ़ता पैरों के निशान देखता उससे बनी डिज़ाइन देखकर और खुश होता,,,,,इतने में एक लहर आयी और उसके पैरों के सब निशान मिट गये।

इस पर केकड़े को बड़ा गुस्सा आया, उसने लहर से बोला , “ए लहर मैं तो तुझे अपना मित्र मानता था, पर ये तूने क्या किया ,मेरे बनाये सुंदर पैरों के निशानों को ही मिटा दिया कैसी दोस्त हो तुम ।”
तब लहर बोली, ” वो देखो पीछे से मछुआरे लोग पैरों के निशान देख कर ही तो केकड़ों को पकड़ रहे हैं,,, हे मित्र! तुमको वो पकड़ न लें , बस इसीलिए मैंने निशान मिटा दिए !
ये सुनकर केकड़े की आँखों में आँसू आगये ।
सच यही है कई बार हम सामने वाले की बातों को समझ नहीं पाते और अपनी सोच अनुसार उसे गलत समझ लेते हैं।

जबकि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं।

अतः मन में वैर लाने से बेहतर है कि हम सोच समझ कर निष्कर्ष निकालें !!

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एक बार एक दरोगा जी का मुंह लगा नाई पूछ बैठा –


एक बार एक दरोगा जी का मुंह लगा नाई पूछ बैठा –
“हुजूर पुलिस वाले रस्सी का साँप कैसे बना देते हैं ?”
दरोगा जी बात को टाल गए।
लेकिन नाई ने जब दो-तीन

बार यही सवाल पूछा तो दरोगा जी ने मन ही मन तय किया कि इस भूतनी वाले को बताना ही पड़ेगा कि रस्सी का साँप कैसे बनाते हैं !
लेकिन प्रत्यक्ष में नाई से बोले – “अगली बार आऊंगा तब

बताऊंगा !”
इधर दरोगा जी के जाने के दो घंटे बाद ही 4 सिपाही नाई

की दुकान पर छापा मारने आ धमके – “मुखबिर से पक्की खबर मिली है, तू हथियार सप्लाई करता है। तलाशी लेनी है दूकान की !”
तलाशी शुरू हुई …
एक सिपाही ने नजर बचाकर हड़प्पा की खुदाई से निकला जंग लगा हुआ असलहा छुपा दिया !
दूकान का सामान उलटने-पलटने के बाद एक सिपाही चिल्लाया – “ये रहा रिवाल्वर”
छापामारी अभियान की सफलता देख के नाई के होश उड़ गए – “अरे साहब मैं इसके बारे में कुछ नहीं जानता ।
आपके बड़े साहब भी मुझे अच्छी तरह पहचानते हैं !”
एक सिपाही हड़काते हुए बोला – “दरोगा जी का नाम लेकर बचना चाहता है ? साले सब कुछ बता दे कि तेरे गैंग में कौन-कौन है … तेरा सरदार कौन है … तूने कहाँ-कहाँ हथियार सप्लाई किये … कितनी जगह लूट-पाट की …

तू अभी थाने चल !”
थाने में दरोगा साहेब को देखते ही नाई पैरों में गिर पड़ा – “साहब बचा लो … मैंने कुछ नहीं किया !”
दरोगा ने नाई की तरफ देखा और फिर सिपाहियों से पूछा – “क्या हुआ ?”
सिपाही ने वही जंग लगा असलहा दरोगा के सामने पेश कर दिया – “सर जी मुखबिर से पता चला था .. इसका गैंग है और हथियार सप्लाई करता है.. इसकी दूकान से ही ये रिवाल्वर मिली है !”
दरोगा सिपाही से – “तुम जाओ मैं पूछ-ताछ करता हूँ !”
सिपाही के जाते ही दरोगा हमदर्दी से बोले – “ये क्या किया तूने ?”
नाई घिघियाया – “सरकार मुझे बचा लो … !”
दरोगा गंभीरता से बोला – “देख ये जो सिपाही हैं न …साले एक नंबर के कमीने हैं …मैंने अगर तुझे छोड़ दिया तो ये साले मेरी शिकायत ऊपर अफसर से कर देंगे …

इन कमीनो के मुंह में हड्डी डालनी ही पड़ेगी …

मैं तुझे अपनी गारंटी पर दो घंटे का समय देता हूँ , जाकर किसी तरह बीस हजार का इंतजाम कर ..

पांच – पांच हजार चारों सिपाहियों को दे दूंगा तो साले मान जायेंगे !”
नाई रोता हुआ बोला – “हुजूर मैं गरीब आदमी बीस हजार कहाँ से लाऊंगा ?”
दरोगा डांटते हुए बोला – “तू मेरा अपना है इसलिए इतना सब कर रहा हूँ तेरी जगह कोई और होता तो तू अब तक जेल पहुँच गया होता …जल्दी कर वरना बाद में मैं कोई मदद नहीं कर पाऊंगा !”
नाई रोता – कलपता घर गया … अम्मा के कुछ चांदी के जेवर थे …चौक में एक ज्वैलर्स के यहाँ सारे जेवर बेचकर किसी तरह बीस हजार लेकर थाने में पहुंचा और सहमते हुए बीस हजार रुपये दरोगा जी को थमा दिए !
दरोजा जी ने रुपयों को संभालते हुए पूछा – “कहाँ से लाया ये रुपया?”
नाई ने ज्वैलर्स के यहाँ जेवर बेचने की बात बतायी तो दरोगा जी ने सिपाही से कहा – “जीप निकाल और नाई को हथकड़ी लगा के जीप में बैठा ले .. दबिश पे चलना है !”
पुलिस की जीप चौक में उसी ज्वैलर्स के यहाँ रुकी !
दरोगा और दो सिपाही ज्वैलर्स की दूकान के अन्दर पहुंचे …
दरोगा ने पहुँचते ही ज्वैलर्स को रुआब में ले लिया – “चोरी का माल खरीदने का धंधा कब से कर रहे हो ?”
ज्वैलर्स सिटपिटाया – “नहीं दरोगा जी आपको किसी ने गलत जानकारी दी है!”

दरोगा ने डपटते हुए कहा – “चुप ~~~ बाहर देख जीप में

हथकड़ी लगाए शातिर चोर बैठा है … कई साल से पुलिस को इसकी तलाश थी … इसने तेरे यहाँ जेवर बेचा है कि नहीं ? तू तो जेल जाएगा ही .. साथ ही दूकान का सारा माल भी जब्त होगा !”
ज्वैलर्स ने जैसे ही बाहर पुलिस जीप में हथकड़ी पहले नाई को देखा तो उसके होश उड़ गए,
तुरंत हाथ जोड़ लिए – “दरोगा जी जरा मेरी बात सुन लीजिये!
कोने में ले जाकर मामला एक लाख में सेटल हुआ !
दरोगा ने एक लाख की गड्डी जेब में डाली और नाई ने जो गहने बेचे थे वो हासिल किये फिर ज्वैलर्स को वार्निंग दी – “तुम शरीफ आदमी हो और तुम्हारे खिलाफ पहला मामला था इसलिए छोड़ रहा हूँ … आगे कोई शिकायत न मिले !”
इतना कहकर दरोगा जी और सिपाही जीप पर बैठ के

रवाना हो गए !
थाने में दरोगा जी मुस्कुराते हुए पूछ रहे थे – “साले तेरे को समझ में आया रस्सी का सांप कैसे बनाते हैं !”
नाई सिर नवाते हुए बोला – “हाँ माई-बाप समझ गया !”
दरोगा हँसते हुए बोला – “भूतनी के ले संभाल अपनी अम्मा के गहने और एक हजार रुपया और जाते-जाते याद कर ले …

हम रस्सी का सांप ही नहीं बल्कि नेवला .. अजगर … मगरमच्छ सब बनाते हैं .. बस आसामी बढ़िया होना चाहिए”।।

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बाहर बारिश हो रही थी और अन्दर क्लास चल रही थी ,


बाहर बारिश हो रही थी और

अन्दर क्लास चल रही थी ,

.

तभी टीचर ने बच्चों से

पूछा कि अगर तुम

सभी को 100-100 रुपये दिए जाए

तो तुम सब क्या क्या खरीदोगे ?

.

किसी ने कहा कि मैं

वीडियो गेम खरीदुंगा, किसी

ने

कहा मैं क्रिकेट का बेट

खरीदुंगा , किसी ने कहा कि मैं अपने लिए

प्यारी सी गुड़िया खरीदुंगी,

.

तो किसी ने कहा मैं बहुत

सी चॉकलेट्स

खरीदुंगी |

एक बच्चा कुछ सोचने में डुबा हुआ था,

टीचर ने उससे पुछा कि तुम

क्या सोच रहे हो ?

तुम क्या खरीदोगे ?

.

बच्चा बोला कि टीचर जी,

मेरी माँ को थोड़ा कम दिखाई देता है

तो मैं अपनी माँ के लिए एक

चश्मा खरीदूंगा ‌।

.

टीचर ने पूछाः तुम्हारी माँ के

लिए चश्मा तो तुम्हारे

पापा भी खरीद सकते है, तुम्हें अपने

लिए कुछ नहीं खरीदना ?

बच्चे ने जो जवाब दिया उससे

टीचर का भी गला भर आया |

बच्चे

ने कहा कि मेरे पापा अब इस दुनिया में नहीं है |

मेरी माँ लोगों के कपड़े सिलकर

मुझे पढ़ाती है और कम दिखाई

देने

की वजह

से वो ठीक से कपड़े नहीं सिल पाती है इसीलिए मैं

मेरी माँ को चश्मा देना

चाहता हुँ

ताकि मैं अच्छे से पढ़ सकूँ,

बड़ा आदमी बन सकूँ और

माँ को सारे सुख दे सकूँ !

टीचर:-बेटा तेरी सोच ही तेरी कमाई है। ये 100 रूपये मेरे वादे

के अनुसार और ये 100 रूपये और उधार दे रहा हूँ। जब कभी

कमाओ तो लौटा देना। और मेरी इच्छा है तू इतना बड़ा

आदमी बने कि तेरे सर पे हाथ फेरते वक्त मैं धन्य हो जाऊं।

15 वर्ष बाद……

बाहर बारिश हो रही है,

अंदर क्लास चल रही है।

अचानक स्कूल के आगे जिला कलेक्टर की बत्ती वाली

गाड़ी आकर रूकती है।

स्कूल स्टाफ चौकन्ना हो जाता हैं।

स्कूल में सन्नाटा छा जाता है।

मगर ये क्या ?

जिला कलेक्टर एक वृद्ध टीचर के पैरों में गिर जाते हैं

और कहते हैं:-” सर मैं दामोदर दास उर्फ़ झंडू!! आपके उधार के

100 रूपये लौटाने आया हूँ”

पूरा स्कूल स्टॉफ स्तब्ध!!!

वृद्ध टीचर झुके हुए नौजवान कलेक्टर को उठाकर भुजाओं में

कस लेता है और रो पड़ता हैं। हम चाहें तो अपने आत्मविश्वास और मेहनत के बल पर अपना भाग्य खुद लिख सकते है और अगर हमको अपना भाग्य लिखना नहीं आता तो परिस्थितियां हमारा भाग्य लिख देंगी….

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अमेरिका में जब एक कैदी को फांसी की सजा सुनाई गई तो वहां के कुछ वैज्ञानिकों ने


अमेरिका में जब एक कैदी को फांसी की सजा सुनाई गई तो वहां के कुछ वैज्ञानिकों ने सोचा कि क्यों न इस कैदी पर कुछ प्रयोग किया जाय ! तब कैदी को बताया गया कि हम तुम्हें फांसी देकर नहीं परन्तु जहरीला कोबरा सांप डसाकर मारेगें !
और उसके सामने बड़ा सा जहरीला सांप ले आने के बाद कैदी की आँखें बंद करके कुर्सी से बांधा गया और उसको सांप नहीं बल्कि दो सेफ्टी पिन चुभाई गईं !
और क्या हुआ कैदी कि कुछ सेकण्ड में ही मौत हो गई, पोस्टमार्टम के बाद पाया गया कि कैदी के शरीर मे सांप के जहर के समान ही जहर है ।
अब ये जहर कहां से आया ? जिसने उस कैदी की जान ले ली ……वो जहर उसके खुद शरीर ने ही सदमें ने  उत्पन्न किया था ।
हमारे हर संकल्प से पॉजिटिव एवं नेगेटिव एनर्जी उत्पन्न होती है और वो हमारे शरीर मे उस अनुसार harmones उत्पन्न करती है ।
75% बीमारियों का मूल कारण नकारात्मक सोच से उत्पन्न ऊर्जा ही है । आज इंसान ही अपनी गलत सोंच से भस्मासुर बन खुद का विनाश कर रहा है ……

अपनी सोच सदैव सकारात्मक रखें और खुश रहें….
25 साल की उम्र तक हमें परवाह नहीँ होती कि “लोग क्या सोचेंगे ? ? ”

50 साल की उम्र तक इसी डर में जीते हैं कि ” लोग क्या सोचेंगे ! ! ”

50 साल के बाद पता चलता है कि

” हमारे बारे में कोई सोच ही नहीँ रहा था ! ! ! ”
Life is beautiful, enjoy forever.😊😊

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अनुभव:- जब मैं ट्रैफिक में  बाइक चला रहा होता हूँ और


अनुभव:-
जब मैं ट्रैफिक में

बाइक चला रहा होता हूँ और

थोड़ी ज्यादा भीड़ रहती है इसलिए स्पीड कम रखनी पड़ती है तभी पीछे से एक तेजतर्रार हॉर्न सुनाई देता है…

बार बार लगातार.
नहीं नहीं ये हॉर्न

एम्बुलेंस का नहीं है…
पीछे देखने पर पाता हूँ

तो एक दिव्य तेज प्रकाश में समाई छवि के दर्शन होते हैं,
16-17 साल का लड़का,
आँखों पर मीना बाज़ार में 23 रु जोड़े में मिलने वाले बेहूदा चश्मे,

या कभी महँगे भी,
कानों में

आधा क्विंटल भारी बालियाँ,

हाथों में

सलमान खान का ब्रेसलेट पहना युवा,

जिसकी शक्ल देखकर चमगादड़ और मनुष्य में फर्क

करना मुश्किल होता है,
वो पल्सर या उसी किस्म की हाई पावर नये मॉडल की महँगी बाइक में बैठकर हॉर्न बजा रहा होता है,
उसे आगे जाना है…
मुझसे पहले,

हम सब से पहले,

भले ही जगह ना हो,

सड़क में भीड़ हो,

सामने से बच्चे आ रहे हों,

लेकिन

उसे तेज गति से आगे जाना है,
क्योंकि अगले मोड़ में ओबामा उसके साथ चाय-सुट्टा पीने के

लिए इन्तज़ार कर रहे होते हैं,
मैं ऐसे लोगों पर खीझ ना खाता, एक लम्बी चौड़ी मुस्कान देकर उन्हें आगे जाने का रास्ता प्रदान करता हूँ,
दरअसल ये लोग

भगवान् के भेजे हुए दूत होते हैं,

जो खुद का एक्सीडेंट करवा के हमें समझा जाते हैं कि बाइक धीरे चलायें..
ये लोग

सामने खड़ी मौत को गले लगाकर हमारी जान

बचा जाते हैं,
ये लोग एक्सीडेंट में

खुद के प्राण त्याग कर समाज को शिक्षा दे जाते हैं कि हेलमेट पहनना क्यों जरुरी है.

सन्तुलित वेग में वाहन चालन क्यों आवश्यक है.
अत: ऐसा कोई भी

बन्दा मिले तो उसे नफ़रत से नहीं स्नेह की दृष्टि से देखें।

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दो बच्चे रात को एक दुकान से संतरों की टोकरी चुराकर लाए


दो बच्चे रात को एक दुकान से संतरों की टोकरी चुराकर लाए और सोचा कि इनका बंटवारा कर लेते हैं । एक ने कहा कि चलो कब्रिस्तान में चलकर बंटवारा कर लेते हैं । तब वो दोनों कब्रिस्तान के दरवाजे को फांदकर अंदर जाते हैं , उसी समय दो संतरे टोकरी में से गिर जाते हैं । वो उन्हे अनदेखा कर आगे बढकर एक कब्र के पास बैठकर संतरों का बंटवारा करते हैं । एक तेरा एक मेरा, एक तेरा एक मेरा ।

उसी समय एक शराबी वँहा से गुजरता है । जैसे ही वो “एक तेरा एक मेरा ” की आवाज सुनता है उसका नशा हिरन हो जाता है और भागता हुआ पादरी के पास जाता है और कहता है कि कब्रिस्तान में भगवान और शैतान आपस में मुर्दों को बांट रहे हैं । मैंने उन्हें एक तेरा एक मेरा कहते सुना है ।

इतना सुनकर पादरी उस शराबी के साथ जाता है और जैसे ही दोनों कब्रिस्तान के गेट तक पहुँचते है वैसे ही उल्टे पाँव वापस भाग जाते है क्योंकि अंदर से आवाज आती है इनका तो बंटवारा हो गया लेकिन जो दो कब्रिस्तान के दरवाजे के पास है उनका क्या करें?

😀😀😀😀😀😀😀😀😀😀😀😀😀😀😀

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जिस_माथे_पर_तिलक_ना_दिखा_वो_सिर_धड़_से_अलग_कर_दिया_जाएगा — पुष्यमित्र शुंग


#जिस_माथे_पर_तिलक_ना_दिखा_वो_सिर_धड़_से_अलग_कर_दिया_जाएगा — पुष्यमित्र शुंग
बात आज से 2100 साल पहले की है।
एक किसान ब्राह्मण के घर एक पुत्र ने जन्म लिया। नाम रखा गया पुष्यमित्र।
पूरा नाम पुष्यमित्र शुंग।
और वो बना एक महान हिन्दू सम्राट जिसने भारत को बुद्ध देश बनने से बचाया। अगर ऐसा कोई राजा कम्बोडिया, मलेशिया या इंडोनेशिया में जन्म लेता तो आज भी यह देश हिन्दू होते।
जब सिकन्दर राजपूत राजा पोरस से मार खाकर अपना विश्व विजय का सपना तोड़ कर उत्तर भारत से शर्मिंदा होकर मगध की और गया था उसके साथ आये बहुत से यवन वहां बस गए। अशोक सम्राट के बुद्ध धर्म अपना लेने के बाद उनके वंशजों ने भारत में बुद्ध धर्म लागू करवा दिया। ब्राह्मणों के द्वारा इस बात का सबसे अधिक विरोध होने पर उनका सबसे अधिक कत्लेआम हुआ। हज़ारों मन्दिर गिरा दिए गए। इसी दौरान पुष्यमित्र के माता पिता को धर्म परिवर्तन से मना करने के कारण उनके पुत्र की आँखों के सामने काट दिया गया। बालक चिल्लाता रहा मेरे माता पिता को छोड़ दो। पर किसी ने नही सुनी। माँ बाप को मरा देखकर पुष्यमित्र की आँखों में रक्त उतर आया। उसे गाँव वालों की संवेदना से नफरत हो गयी। उसने कसम खाई की वो इसका बदला बौद्धों से जरूर लेगा और जंगल की तरफ भाग गया।

एक दिन मौर्य नरेश बृहद्रथ जंगल में घूमने को निकला। अचानक वहां उसके सामने शेर आ गया। शेर सम्राट की तरफ झपटा। शेर सम्राट तक पहुंचने ही वाला था की अचानक एक लम्बा चौड़ा बलशाली भीमसेन जैसा बलवान युवा शेर के सामने आ गया। उसने अपनी मजबूत भुजाओं में उस मौत को जकड़ लिया। शेर को बीच में से फाड़ दिया और सम्राट को कहा की अब आप सुरक्षित हैं। अशोक के बाद मगध साम्राज्य कायर हो चुका था। यवन लगातार मगध पर आक्रमण कर रहे थे। सम्राट ने ऐसा बहादुर जीवन में ना देखा था। सम्राट ने पूछा ” कौन हो तुम”। जवाब आया ” ब्राह्मण हूँ महाराज”। सम्राट ने कहा “सेनापति बनोगे”? पुष्यमित्र ने आकाश की तरफ देखा, माथे पर रक्त तिलक करते हुए बोला “मातृभूमि को जीवन समर्पित है”। उसी वक्त सम्राट ने उसे मगध का उपसेनापति घोषित कर दिया।

जल्दी ही अपने शौर्य और बहादुरी के बल पर वो सेनापति बन गया। शांति का पाठ अधिक पढ़ने के कारण मगध साम्राज्य कायर ही चूका था। पुष्यमित्र के अंदर की ज्वाला अभी भी जल रही थी। वो रक्त से स्नान करने और तलवार से बात करने में यकीन रखता था। पुष्यमित्र एक निष्ठावान हिन्दू था और भारत को फिर से हिन्दू देश बनाना उसका स्वपन था।

आखिर वो दिन भी आ गया। यवनों की लाखों की फ़ौज ने मगध पर आक्रमण कर दिया। पुष्यमित्र समझ गया की अब मगध विदेशी गुलाम बनने जा रहा है। बौद्ध राजा युद्ध के पक्ष में नही था। पर पुष्यमित्र ने बिना सम्राट की आज्ञा लिए सेना को जंग के लिए तैयारी करने का आदेश दिया। उसने कहा की इससे पहले दुश्मन के पाँव हमारी मातृभूमि पर पड़ें हम उसका शीश उड़ा देंगे। यह नीति तत्कालीन मौर्य साम्राज्य के धार्मिक विचारों के खिलाफ थी। सम्राट पुष्यमित्र के पास गया। गुस्से से बोला ” यह किसके आदेश से सेना को तैयार कर रहे हो”। पुष्यमित्र का पारा चढ़ गया। उसका हाथ उसके तलवार की मुठ पर था। तलवार निकालते ही बिजली की गति से सम्राट बृहद्रथ का सर धड़ से अलग कर दिया और बोला
” ब्राह्मण किसी की आज्ञा नही लेता”।
हज़ारों की सेना सब देख रही थी। पुष्यमित्र ने लाल आँखों से सम्राट के रक्त से तिलक किया और सेना की तरफ देखा और बोला
“ना बृहद्रथ महत्वपूर्ण था,………

ना पुष्यमित्र………..

महत्वपूर्ण है तो मगध,

महत्वपूर्ण है तो मातृभूमि,
क्या तुम रक्त बहाने को तैयार हो??”।
उसकी शेर सी गरजती आवाज़ से सेना जोश में आ गयी। सेनानायक आगे बढ़ कर बोला “हाँ सम्राट पुष्यमित्र । हम तैयार हैं”। पुष्यमित्र ने कहा” आज मैं सेनापति ही हूँ।चलो काट दो यवनों को।”।
जो यवन मगध पर अपनी पताका फहराने का सपना पाले थे वो युद्ध में गाजर मूली की तरह काट दिए गए। एक सेना जो कल तक दबी रहती थी आज युद्ध में जय महाकाल के नारों से दुश्मन को थर्रा रही है। मगध तो दूर यवनों ने अपना राज्य भी खो दिया। पुष्यमित्र ने हर यवन को कह दिया की अब तुम्हे भारत भूमि से वफादारी करनी होगी नही तो काट दिए जाओगे।
इसके बाद पुष्यमित्र का राज्यभिषेक हुआ। उसने सम्राट बनने के बाद घोषणा की अब कोई मगध में बुद्ध धर्म को नही मानेगा। हिन्दू ही राज धर्म होगा। उसने साथ ही कहा
“जिसके माथे पर तिलक ना दिखा वो सर धड़ से अलग कर दिया जायेगा”।
उसके बाद पुष्यमित्र ने वो किया जिससे आज भारत कम्बोडिया नही है। उसने लाखों बौद्धों को मरवा दिया। बुद्ध मन्दिर जो हिन्दू मन्दिर गिरा कर बनाये गए थे उन्हें ध्वस्त कर दिया। बुद्ध मठों को तबाह कर दिया। चाणक्य काल की वापसी की घोषणा हुई और तक्षिला विश्विद्यालय का सनातन शौर्य फिर से बहाल हुआ।

शुंग वंशवली ने कई सदियों तक भारत पर हुकूमत की। पुष्यमित्र ने उनका साम्राज्य पंजाब तक फैला लिया।
इनके पुत्र सम्राट अग्निमित्र शुंग ने अपना साम्राज्य तिब्बत तक फैला लिया और तिब्बत भारत का अंग बन गया। वो बौद्धों को भगाता चीन तक ले गया। वहां चीन के सम्राट ने अपनी बेटी की शादी अग्निमित्र से करके सन्धि की। उनके वंशज आज भी चीन में “शुंग” surname ही लिखते हैं।

पंजाब- अफ़ग़ानिस्तान-सिंध की शाही ब्राह्मण वंशवली के बाद शुंग dynasty शायद सबसे बेहतरीन ब्राह्मण साम्राज्य था। शायद पेशवा से भी महान।
संजय द्विवेदी