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एक शहीद की अंतिम घड़ियां


*एक सत्य घटना “एक शहीद की अंतिम घड़ियां”*
फिर मैं मणीन्द्र को बराबर समझाने लगा कि ऐसा कुछ नहीं है। मणीन्द्र मेरी बातों को ध्यान से सुनता रहा, उसने प्रतिवाद नहीं किया। वह अच्छे लड़के की भांति मेरे व्याख्यान को हजम करने लगे।
*श्री पाल ने इस बीच में बी श्रेणी के बैरक से ओडोक्लोन की शीशी मंगाई और ओडोक्लोन मणीन्द्र के सीने में मलने लगे। मैं मणीन्द्र को इसी प्रकार पकड़ कर जेलर से पूछने लगा— ‘‘इनके घरवालों को इनकी क्या खबर दी गई है?’’

तार भेजे गये*
इसके उत्तर में मुझ बतलाया गया कि एक तार बनारस में दिया गया है। मैंने कहा, ‘‘यह यथेष्ट नहीं है।’’ इसके अतिरिक्त मैंने कहा कि जो तार दिया गया है, उसका शब्द विन्यास ठीक नहीं है। उससे परिस्थिति की भयानकता स्पष्ट नहीं होती। खैर, तर्क-वितर्क के बाद दो-तीन और तार जेलर ने सरकारी खर्च से भेजना स्वीकार किया।
*इसके फलस्वरूप मेरठ, इलाहाबाद तथा बनारस में तार भेजे गए। तार भेजने की व्यवस्था कर लेने के बाद मैंने जेलर से पूछा कि आई.जी. को क्या रिपोर्ट दी गई है?*
इसके उत्तर में मुझे बतलाया गया कि सोमवार के दिन मेजर भंडारी ने आई.जी. की रिपोर्ट दी है। मैंने कहा— ‘‘लिखा है तो अच्छी बात है, किन्तु ऐसी अवस्था में मणीन्द्र को बहुत पहले ही छोड़ देना चाहिए था।
*बहुत से कैदी स्वास्थ्य की खराबी के कारण प्रति वर्ष छोड़े जाते हैं, यह तो आप जानते ही होंगे। फिर आप यह भी जानते हैं कि यदि मणीन्द्र को कुछ हो गया तो जनता उसका भारी विरोध प्रदर्शन करेगी और उसके फलस्वरूप यदि कोई कमीशन बैठे तो कोई आश्चर्य नहीं।*
आप जानते हैं कि लखनऊ जेल में जब अवध सिंह मर गए थे तब बाद में कैसा तूल-तबील हुआ था?’’

इस प्रकार कुछ गंभीर रूप से, तथा कुछ परिहास में, मैं जेलर को सहज सत्य बातें समझा रहा था। वह भी पुराना खुर्राट था।
*मेरी बातों का नॉनकमिटल किस्म का उत्तर दे रहा था। मणीन्द्र हम लोगों की बातें बड़े ध्यान से सुन रहे थे। श्री यशपाल और मैं विशेष रूप से उनका ध्यान बंटाने के लिए तथा उन्हें यह दिखाने के लिए कि उनकी अवस्था जरा भी खराब नहीं है, इधर-उधर की बातें कर रहे थे। कहा जा सकता है कि हम जरा अभिनय कर रहे थे।*
मणीन्द्र के साथ बातचीत करने में हमें यह भी ज्ञात हुआ कि सबेरे फर्रुखाबाद के सिविल सर्जन मि. गुलाम मुर्तजा मि. भंडारी के साथ आकर परीक्षा कर गए थे और बाद में उसे दो इंजेक्शन भी दिए गए थे।
*जेलर ने तुरंत ही प्रतिवाद किया कि वह इंजेक्शन के विषय में कुछ भी नहीं जानता। किन्तु मणीन्द्र ने दृढ़तापूर्वक कहा कि इंजेक्शन अवश्य दिया गया था। तब जेलर बोला— ‘‘संभव है इंजेक्शन दिया गया हो, पर मैं मौजूद न था।’’*

कैसा था वह इंजेक्शन!
तब श्री यशपाल और मैंने मणीन्द्र के बाहों की परीक्षा की। स्पष्ट रूप से इंजेक्शन के निशान मौजूद थे। मुझे जरा संदेह हुआ, किन्तु मैंने सुझाव दिया कि पिट्रूटीन का इंजेक्शन दिया गया होगा।
*हम सबने इस अनुमान को सत्यरूप में ग्रहण किया, किन्तु मणीन्द्र ने कहा कि उस इंजेक्शन से उसे कोई लाभ नहीं हुआ, बल्कि उस समय से उसकी अवस्था बिगड़ती जा रही है। यह बात तो स्पष्ट थी। यह बात हो सकती है कि इंजेक्शन ठीक दिया गया हो, किन्तु उस समय उसकी अवस्था इतनी खराब हो चुकी हो कि इंजेक्शन का कोई प्रभाव न हो सका।*

वह करुण कराह…
मणीन्द्र की श्रवण एवं विचार-शक्तियां अंत तक प्रखर थीं। वे श्री यशपाल के प्रश्नों के उत्तर बराबर अंग्रेजी में तथा मेरे प्रश्नों के उत्तर बांग्ला में देते जा रहे थे। उन्हें बीच-बीच में सांस का दारुण कष्ट हो रहा था और वे बड़े करुण ढंग से कराह रहे थे।
*यह कराहना सुन-सुन कर हम लोगों का हृदय भीतर बैठा जा रहा था। परन्तु हाय, उसे कुछ भी राहत पहुंचाना हमारे वश की बात न थी। बीच-बीच में हम उसे चम्मच से बर्फ का पानी दे रहे थे।*
ऐसे समय में हमें अकस्मात् याद आया कि डॉक्टर मुकर्जी नाम के एक सज्जन फर्रुखाबाद शहर में रहते हैं। मैंने जेलर से कहा, किन्तु मुझे बताया गया कि वे बहुत दिन हुए इस शहर से चले गए हैं।

*मन्मथनाथ गुप्त का आलेख*  :-

योगेश पारेख

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नई टीचर


Anoop Sharma‎
नई टीचर
लड़कियों के स्कूल में आने वाली नई टीचर बेहद खूबसूरत और शैक्षणिक तौर पर भी मजबूत थी लेकिन उसने अभी तक शादी नहीं की थी…
सब लड़कियां उसके इर्द-गिर्द जमा हो गईं और मज़ाक करने लगी कि मैडम आपने अभी तक शादी क्यों नहीं की…?
मैडम ने दास्तान कुछ यूं शुरू की- एक महिला की पांच बेटियां थीं, पति ने उसको धमकी दी कि अगर इस बार भी बेटी हुई तो उस बेटी को बाहर किसी सड़क या चौक पर फेंक आऊंगा, ईश्वर की मर्जी वो ही जाने कि छटी बार भी बेटी ही पैदा हुई और पति ने बेटी को उठाया और रात के अंधेरे में शहर के बीचों-बीच चौक पर रख आया, मां पूरी रात उस नन्हीं सी जान के लिए दुआ करती रही और बेटी को ईश्वर के सुपुर्द कर दिया।
दूसरे दिन सुबह पिता जब चौक से गुजरा तो देखा कि कोई बच्ची को नहीं ले गया है, बाप बेटी को वापस घर लाया लेकिन दूसरी रात फिर बेटी को चौक पर रख आया लेकिन रोज़ यही होता रहा, हर बार पिता बाहर रख आता और जब कोई लेकर नहीं जाता तो मजबूरन वापस उठा लाता, यहां तक कि उसका पिता थक गया और ईश्वर की मर्जी पर राज़ी हो गया।
फिर ईश्वर ने कुछ ऐसा किया कि एक साल बाद मां फिर पेट से हो गई और इस बार उनको बेटा हुआ, लेकिन कुछ ही दिन बाद बेटियों में से एक की मौत हो गई, यहां तक कि माँ पांच बार पेट से हुई और पांच बेटे हुए लेकिन हर बार उसकी बेटियों में से एक इस दुनियां से चली जाती ।
सिर्फ एक ही बेटी ज़िंदा बची और वो वही बेटी थी जिससे बाप जान छुड़ाना चाह रहा था, मां भी इस दुनियां से चली गई इधर पांच बेटे और एक बेटी सब बड़े हो गए।
टीचर ने कहा- पता है वो बेटी जो ज़िंदा रही कौन है ? “वो मैं हूं” और मैंने अभी तक शादी इसलिए नहीं की, कि मेरे पिता इतने बूढ़े हो गए हैं कि अपने हाथ से खाना भी नहीं खा सकते और कोई दूसरा नहीं जो उनकी सेवा करें। बस मैं ही उनकी खिदमत किया करती हूं और वो पांच बेटे कभी-कभी आकर पिता का हालचाल पूछ जाते हैं ।
पिता हमेशा शर्मिंदगी के साथ रो-रो कर मुझ से कहा करते हैं, मेरी प्यारी बेटी जो कुछ मैंने बचपन में तेरे साथ किया उसके लिए मुझे माफ करना।

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एक बडी कंपनी के गेट के सामने एक प्रसिद्ध समोसे की दुकान थी,


Lalit Sharma‎
एक बडी कंपनी के गेट के सामने एक प्रसिद्ध समोसे की दुकान थी, लंच टाइम मे अक्सर कंपनी के कर्मचारी वहाँ आकर समोसे खाया करते थे।
एक दिन कंपनी के एक मैनेजर समोसे खाते खाते समोसेवाले से मजाक के मूड मे आ गये।
मैनेजर साहब ने समोसेवाले से कहा, “यार गोपाल, तुम्हारी दुकान तुमने बहुत अच्छे से maintain की है, लेकीन क्या तुम्हे नही लगता के तुम अपना समय और टैलेंट समोसे बेचकर बर्बाद कर रहे हो.? सोचो अगर तुम मेरी तरह इस कंपनी मे काम कर रहे होते तो आज कहा होते.. हो सकता है शायद तुम भी आज मैंनेजर होते मेरी तरह..”
इस बात पर समोसेवाले गोपाल ने बडा सोचा, और बोला, ” सर ये मेरा काम अापके काम से कही बेहतर है, 10 साल पहले जब मै टोकरी मे समोसे बेचता था तभी आपकी जाॅब लगी थी, तब मै महीना हजार रुपये कमाता था और आपकी पगार थी १० हजार।
इन 10 सालो मे हम दोनो ने खूब मेहनत की..
आप सुपरवाइजर से मॅनेजर बन गये.
और मै टोकरी से इस प्रसिद्ध दुकान तक पहुँच गया.
आज आप महीना ५०,००० कमाते है
और मै महीना २,००,०००
लेकिन इस बात के लिए मै मेरे काम को आपके काम से बेहतर नही कह रहा हूँ।
ये तो मै बच्चों के कारण कह रहा हूँ।
जरा सोचिए सर मैने तो बहुत कम कमाई पर धंधा शुरू किया था, मगर मेरे बेटे को यह सब नही झेलना पडेगा।
मेरी दुकान मेरे बेटे को मिलेगी, मैने जिंदगी मे जो मेहनत की है, वो उसका लाभ मेरे बच्चे उठाएंगे। जबकी आपकी जिंदगी भर की मेहनत का लाभ आपके मालिक के बच्चे उठाएंगे।
अब आपके बेटे को आप डाइरेक्टली अपनी पोस्ट पर तो नही बिठा सकते ना.. उसे भी आपकी ही तरह जीरो से शुरूआत करनी पडेगी.. और अपने कार्यकाल के अंत मे वही पहुच जाएगा जहाँ अभी आप हो।
जबकी मेरा बेटा बिजनेस को यहा से और आगे ले जाएगा..
और अपने कार्यकाल मे हम सबसे बहुत आगे निकल जाएगा..
अब आप ही बताइये किसका समय और टैलेंट बर्बाद हो रहा है ?”
मैनेजर साहब ने समोसेवाले को २ समोसे के २० रुपये दिये और बिना कुछ बोले वहाँ से खिसक लिये…….!!!

Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

ऐसा मंदिर जहाँ परिक्रमा मात्र से ठीक हो जाते है लकवा (पैरालिसिस) से ग्रसित लोग


ऐसा मंदिर जहाँ परिक्रमा मात्र से ठीक हो जाते है लकवा (पैरालिसिस) से ग्रसित लोग

राजस्थान के नागौर जिले के बुटाटी गांव में यह चतुरदास जी महाराज का मंदिर स्थित है। इस मंदिर में हमेशा हजारों की तादात में पुरे भारत से लोग यहां आते है। इस मंदिर परिसर में लकवे से ग्रसित लोग आते है , जो 7 दिन में 7 परिक्रमा मात्र से ठीक हो जाते है।
राजस्थान के अजमेर नागौर हाइवे पर बसा ये छोटा सा गाँव आज पूरे भारत मे जाना जाता है इसका कारण है गाँव मे बनाबुटाटी धाम मंदिर | एसा माना जाता है कि चुतर दास नाम के एक सिद्ध योगी हुए थे लगभग 400 साल पहले और वो अपनी तपस्या से लोगो का इलाज करते थे | उनकी समाधि पर बने इस मंदिर मे फेरी लगाने से और हवन भगुति लेने से लकवे जैसी गंभीर बीमारी का इलाज हो सकता है
Butati Dham Nagaur – Free Paralysis Treatment
मन्दिर में नि:शुल्क रहने व खाने की व्यवस्था भी है| लोगों का मानना है कि मंदिर में परिक्रमा लगाने से बीमारी से राहत मिलती है|
राजस्थान की धरती के इतिहास में चमत्कारी के अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं| आस्था रखने वाले के लिए आज भी अनेक चमत्कार के उदाहरण मिलते हैं, जिसके सामने विज्ञान भी नतमस्तक है| ऐसा ही उदाहरण नागौर के 40 किलोमीटर दूर स्तिथ ग्राम बुटाटी में देखने को मिलता है। लोगों का मानना है कि जहाँ चतुरदास जी महाराज के मंदिर में लकवे से पीड़ित मरीज का राहत मिलती है। सन्त चतुरदास जी महाराज के मन्दिर ग्राम बुटाटी में लकवे का इलाज करवाने देश भर से

वर्षों पूर्व हुई बिमारी का भी काफी हद तक इलाज होता है। यहाँ कोई पण्डित महाराज या हकीम नहीं होता ना ही कोई दवाई लगाकर इलाज किया जाता। यहाँ मरीज के परिजन नियमित लगातार 7 मन्दिर की परिक्रमा लगवाते हैं| हवन कुण्ड की भभूति लगाते हैं और बीमारी धीरे-धीरे अपना प्रभाव कम कर देती है| शरीर के अंग जो हिलते डुलते नहीं हैं वह धीरे-धीरे काम करने लगते हैं। लकवे से पीड़ित जिस व्यक्ति की आवाज बन्द हो जाती वह भी धीरे-धीरे बोलने लगता है।
यहाँ अनेक मरीज मिले जो डॉक्टरो से इलाज करवाने के बाद निरास हो गए थे लेकिन उन मरीजों को यहाँ काफी हद तक बीमारी में राहत मिली है। देश के विभिन्न प्रान्तों से मरीज यहाँ आते हैं और यहाँ रहने व परिक्रमा देने के बाद लकवे की बीमारी अशयजनक राहत मिलती है। मरीजों और उसके परिजनों के रहने व खाने की नि:शुल्क व्यवस्था होती है।
दान में आने वाला रुपया मन्दिर के विकास में लगाया जाता है। पूजा करने वाले पुजारी को ट्रस्ट द्वारा तनखाह मिलती है। मंदिर के आस-पास फेले परिसर में सैकड़ों मरीज दिखाई देते हैं, जिनके चेहरे पर आस्था की करुणा जलकती है| संत चतुरदास जी महारज की कृपा का मुक्त कण्ठ प्रशंसा करते दिखाई देते।
नागोर जिले के अलावा पूरे देश से लोग आते है और रोग मुक्त होकर जाते है हर साल वैसाख, भादवा और माघ महीने मे पूरे महीने मेला लगता है ! बुटाटी धाम ये एक महान संत और सिद्ध पुरुष चतुरदास जी का मंदिर है.
…. …जय चतुर दास

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ग्राहक ने दुकान में दाख़िल होकर दुकानदार से पूछा: केलों का क्या भाव लगाया है?


ग्राहक ने दुकान में दाख़िल होकर दुकानदार से पूछा: केलों का क्या भाव लगाया है?
दुकानदार ने जवाब दिया: केले 12 रुपिया और सेब 10 रुपिया।

इतने में एक औरत भी दुकान में आयी और कहा: मुझे एक किलो केले चाहिए, क्या भाव है? दुकानदार ने कहा: केले 3 रुपिया और सेब 2 रुपिया। औरत ने उसे देने को कहा
दुकान में पहले से मौजूद ग्राहक ने खा जाने वाली ग़ज़ब नज़रों से दुकानदार को देखा, इससे पहले कि कुछ ऑल फॉल कहता, दुकानदार ने ग्राहक को इशारा करते हुए थोड़ा इंतजार करने को कहा।

औरत खरीदारी करके खुशी खुशी दुकान से निकलते हुए बड़बड़ाई अल्लाह तेरा शुक्र है, मेरे बच्चे उन्हें खाकर बहुत खुश होंगे।
औरत के जाने के बाद, दुकानदार ने पहले से मौजूद ग्राहक की तरफ देखते हुए कहा: गवाह है, मैंने तुझे कोई धोखा देने की कोशिश नहीं की।

यह महिला चार अनाथ बच्चों की मां है। किसी से भी किसी तरह की मदद लेने को तैयार नहीं है। मैंने कई बार कोशिश की है और हर बार नाकामी हुई है। अब मुझे यही तरीका सूझा है कि जब कभी ये आए तो उसे कम से कम दाम लगाकर कुछ चीज़ देदूँ। मैं चाहता हूँ कि उसका भरम बना रहे और उसे लगे कि वह किसी की मोहताज नहीं है। मैं यह पूजा भगवान के बन्दो की करता हूँ

दुकानदार बोला: यह औरत हफ्ते में एक बार आती है। भगवान गवाह है जिस दिन यह आ जाए, उस दिन मेरी बिक्री बढ़ जाती है औरउस दिन परमात्मा के अटूट खजाने से बहुत मुनाफ़ा होता है।

ग्राहक की आंखों में आंसू आ गए, उसने बढ़कर दुकानदार से कहा: बख़ुदा लोगों की जरूरतों को पूरा करने में जो लज़्ज़त मिलती है उसे वही जान सकता है जिसने आज़मा कर देखाहै

जय श्री कृष्ण राधे राधे

Posted in श्री कृष्णा

10 Krishna Temples in India you should visit at least once in your life by Drishith Varma


10 Krishna Temples in India you should visit at least once in your life
by Drishith Varma

Some people believe that Krishna is the avatar of Vishnu, and some believe that Vishnu is an avatar of Krishna. However, one cannot deny that Krishna is the central figure in the Hindu Bhagavad Gita. Since he is such an important and powerful figure in Hindu dharma, there are many temples built to his name. Here is a list of 10 Krishna Temples in India You Should Visit

1. Banke Bihari Temple, Vrindavan

Situated at the holy city of Vrindavan, Banke Bihari temple is dedicated to Lord Krishna and is one of the seven temples of Thakur of Vrindavan. It is considered to be one of the holiest temples of Krishna in India too, and it attracts thousands of visitors every year.

2. Dwarkadish Temple, Dwaraka

It is also known as Jagat Mandir and is one of the four main pilgrimages of India. The temple is also one of the places during the Char Dham Yatra.

3. Krishna Balaram Mandir, Vrindavan source
Krishna Balaram was included in ISKCON temples of India and is the first one in the list. Thus, it is also known as ISKCON temple of Vrindavan. (ISKCON stands for International Society for Krishna Consciousness and known as Hare Krishna movement.)

4. Jugal Kishore Temple, Mathura

Also known as Keshi Ghat temple, Jugal Kishore Temple is one of the oldest temple built with Red sandstone. It is one of the famous Krishna temples in India that draws Hindu devotees throughout the year.

5. Guruvayur Temple, Kerala Photo by sreedas somasekharan
The temple is known as the “Holy Abode of Vishnu on Earth”, and thus, is one of the most important places of worship for god Krishna in Kerala. It is also known as Dwarka of South India. Only Hindus are allowed in this temple.

6. Sri Krishna Temple, Udupi Photo by Astro Mohan
It is known as Udupi Sri Krishna Matha and is located in the city of Udupi. The temple is amongst the eight Udupi mathas.

7. Govind Dev Ji Temple, Jaipur source
Located in the City Palace complex in Jaipur, the Govind Dev Temple is amongst the seven temples of Thakur of Vrindavan too, like Banke Bihari temple. The temple is dedicated to Krishna in the form of Govind Dev Ji; hence, the name too.

8. Shrinathji Temple, Nathdwara, Udaipur

Lying on the banks of Banas river, the Shrinathji Temple in Udaipur in dedicated to Lord Krishna. The town where the temple lies is known as the Apollo of Mewar and the Nathdwara is a Vaishnavite shrine.

9. Rajagopalaswamy Temple, Tamil Nadu Southern entrance Rajagopalaswamy Temple. Photo by Wanderlust India
Also known as Dakshina Dwarka, the Rajagopalaswamy temple in Mannargudi is an important shrine in South India. The temple surrounding is enormous with an area of 23 acres in the town of Mannargudi of Tamil Nadu.

10. Venugopala Swamy Temple, Karnataka Photo by Manjunatha Narasimhaiah on
Built in Hoysala style, Venugopala Swamy temple is located near Krishna Raja Sagara backwater. The temple was once submerged in the backwater of Krishna Raja Sagara. However, it has been shifted to a new location now.

Posted in लक्ष्मी प्राप्ति - Laxmi prapti

रात-दिन मेहनत करके इतना धन तो अर्जित किया जा सकता है


रात-दिन मेहनत करके इतना धन तो अर्जित किया जा सकता है कि अपना और अपने परिवार का अच्छी तरह भरण-पोषण हो जाए परन्तु लाखों-करोडों की दौलत तो केवल भाग्य से ही मिलती है। अनेक अतियोग्य, मेधावी और मेहनती व्यक्ति जीवन भर छोटी-मोटी नौकरी ही करते रहते हैं, छोटा सा मकान बनाने तक का उनका सपना पूरा नहीं हो पाता।

दूसरी तरफ अनेक मूर्ख और अयोग्य व्यक्ति लाखों रूपए प्रतिमाह अर्जित कर रहे हैं और इसका एकमात्र कारण यही है कि धन की देवी लक्ष्मीजी की उन पर भरपूर कृपा है। भगवती लक्ष्मी की कृपा और भरपूर धन प्राप्त करने हेतु अनेक टोने-टोटके, गंडे-तावीज, अंगूठियां और रत्न ही नहीं बडी-बडी तांत्रिक साधनाएं तक प्राचीनकाल से ही संपूर्ण विश्व में प्रचलित रही हैं। हमारे धर्म में दीपावली पूजन के साथ ही कई प्रकार के यन्त्रों, पूजाओं और मंत्रों की साधना प्राचीनकाल से होती रही है, तो इस्लाम में भी इस प्रकार के अनेक नक्श और तावीज हैं। इनमें से पूर्ण प्रभावशाली और साधना में एकदम आसान कुछ टोने-टोटके और यन्त्र-मन्त्र इस प्रकार हैं।

शक्तिशाली टोटके

• दान करने से धन घटता नहीं ,बल्कि जितना देते हैं उसका दस गुना ईश्वर हमें देता है।

• आयुर्वेद में वर्णित “त्रिफला” का एक घटक “बहेडा” सहज सुलभ फल है। इसका पेड बहुत बडा, महुआ के पेड जैसा होता है। रवि-पुष्य के दिन इसकी जड और पत्ते लाकर उनकी पूजा करें, तत्पश्चात् इन्हें लाल वस्त्र में बांधकर भंडार, तिजोरी या बक्स में रख दें। यह टोटका भी बहुत समृद्धिशाली है।

• पुष्य-नक्षत्र के दिन शंखपुष्पी की जड घर लाकर, इसे देव-प्रतिमाओं की भांति पूजें और तदनन्तर चांदी की डिब्बी में प्रतिष्ठित करके, उस डिब्बी को धन की पेटी, भण्डार घर अथवा बक्स-तिजोरी में रख दें। यह टोटका लक्ष्मीजी की कृपा कराने में अत्यन्त समर्थ प्रमाणित होता है।

धन प्रापि्त के लिए दस नमस्कार मंत्र इनमें से किसी भी एक मंत्र का चयन करके सुबह, दोपहर और रात्रि को सोते समय पांच-पांच बार नियम से उसका स्तवत करें। मातेश्वरी लक्ष्मीजी आप पर परम कृपालु बनी रहेंगी।

ओम धनाय नम: ओम नारायण नमो नम:

ओम धनाय नमो नम: ओम नारायण नम:

ओम लक्ष्मी नम: ओम प्राप्ताय नम:

ओम लक्ष्मी नमो नम: ओम प्राप्ताय नमो नम:

ओम लक्ष्मी नारायण नम: ओम लक्ष्मी नारायण नमो नम:नोट – अपना भुत-भविष्य जानने के लिए और सटीक उपायो के लिए सम्पर्क करे मगर ध्यान रहे ये सेवाएं सशुल्क और पेड़ कंसल्टिंग के तहत है , जानने के लिए अपनी फ़ोटो, वास्तु की फ़ोटो, दोनों हथेलियो की फ़ोटो और बर्थ डिटेल्स भेजे

ज्योतिषाचार्य,लाल किताब, वास्तु तज्ञ,kp, वैदिक पराशरी जैमिनी एक्सपर्ट ,तन्त्र प्रवीण ज्योतिष भास्कर त्रिवीक्रम

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गया तीर्थ की कथा


गया तीर्थ की कथा 🕉*
ब्रह्मा जी जब सृष्टि की रचना कर रहे थे उस दौरान उनसे असुर कुल में गय नामक असुर की रचना हो गई. गय असुरों के संतान रूप में पैदा नहीं हुआ था इसलिए उसमें आसुरी प्रवृति नहीं थी. वह देवताओं का सम्मान और आराधना करता था.r

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उसके मन में एक खटका था. वह सोचा करता था कि भले ही वह संत प्रवृति का है लेकिन असुर कुल में पैदा होने के कारण उसे कभी सम्मान नहीं मिलेगा. इसलिए क्यों न अच्छे कर्म से इतना पुण्य अर्जित किया जाए ताकि उसे स्वर्ग मिले.

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गयासुर ने कठोर तप से भगवान विष्णु को प्रसन्न किया. भगवान ने वरदान मांगने को कहा तो गयासुर ने मांगा- आप मेरे शरीर में वास करें. जो मुझे देखे उसके सारे पाप नष्ट हो जाएं. वह जीव पुण्यात्मा हो जाए और उसे स्वर्ग में स्थान मिले.

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भगवान से वरदान पाकर गयासुर घूम-घूमकर लोगों के पाप दूर करने लगा. जो भी उसे देख लेता उसके पाप नष्ट हो जाते और स्वर्ग का अधिकारी हो जाता.r

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इससे यमराज की व्यवस्था गड़बड़ा गई. कोई घोर पापी भी कभी गयासुर के दर्शन कर लेता तो उसके पाप नष्ट हो जाते. यमराज उसे नर्क भेजने की तैयारी करते तो वह गयासुर के दर्शन के प्रभाव से स्वर्ग मांगने लगता. यमराज को हिसाब रखने में संकट हो गया था.

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यमराज ने ब्रह्मा जी से कहा कि अगर गयासुर को न रोका गया तो आपका वह विधान समाप्त हो जाएगा जिसमें आपने सभी को उसके कर्म के अनुसार फल भोगने की व्यवस्था दी है. पापी भी गयासुर के प्रभाव से स्वर्ग भोंगेगे.

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ब्रह्मा ने उपाय निकाला. उन्होंने गयासुर से कहा कि तुम्हारा सबसे ज्यादा पवित्र है इसलिए तुम्हारी पीठ पर बैठकर मैं सभी देवताओं के साथ यज्ञ करुंगा.

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उसकी पीठ पर यज्ञ होगा यह सुनकर गय सहर्ष तैयार हो गया. ब्रह्माजी सभी देवताओं के साथ पत्थर से गय को दबाकर बैठ गए. इतने भार के बावजूद भी वह अचल नहीं हुआ. वह घूमने-फिरने में फिर भी समर्थ था.r

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देवताओं को चिंता हुई. उन्होंने आपस में सलाह की कि इसे श्री विष्णु ने वरदान दिया है इसलिए अगर स्वयं श्री हरि भी देवताओं के साथ बैठ जाएं तो गयासुर अचल हो जाएगा. श्री हरि भी उसके शरीर पर आ बैठे.

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विष्णु जी को भी सभी देवताओं के साथ अपने शरीर पर बैठा देखकर गयासुर ने कहा- आप सब और मेरे आराध्य श्री हरि की मर्यादा के लिए अब मैं अचल हो रहा हूं. घूम-घूमकर लोगों के पाप हरने का कार्य बंद कर दूंगा.

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लेकिन मुझे चूंकि श्री हरि का आशीर्वाद है इसलिए वह व्यर्थ नहीं जा सकता इसलिए श्री हरि आप मुझे पत्थर की शिला बना दें और यहीं स्थापित कर दें.

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श्री हरि उसकी इस भावना से बड़े खुश हुए. उन्होंने कहा- गय अगर तुम्हारी कोई और इच्छा हो तो मुझसे वरदान के रूप में मांग लो.

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गय ने कहा- नारायण मेरी इच्छा है कि आप सभी देवताओं के साथ अप्रत्यक्ष रूप से इसी शिला पर विराजमान रहें और यह स्थान मृत्यु के बाद किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के लिए तीर्थस्थल बन जाए.r

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श्री विष्णु ने कहा- गय तुम धन्य हो. तुमने लोगों के जीवित अवस्था में भी कल्याण का वरदान मांगा और मृत्यु के बाद भी मृत आत्माओं के कल्याण के लिए वरदान मांग रहे हो. तुम्हारी इस कल्याणकारी भावना से हम सब बंध गए हैं.

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भगवान ने आशीर्वाद दिया कि जहां गय स्थापित हुआ वहां पितरों के श्राद्ध-तर्पण आदि करने से मृत आत्माओं को पीड़ा से मुक्ति मिलेगी. क्षेत्र का नाम गयासुर के अर्धभाग गय नाम से तीर्थ रूप में विख्यात होगा. मैं स्वयं यहां विराजमान रहूंगा.

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वह स्थान बिहार के गया में हुआ जहां श्राद्ध आदि करने से पितरों का कल्याण होता हैl
*🙏🏼🌹श्री कृष्णःशरणं मम 🌹🙏🏼*
दिनेश केडल

Posted in संस्कृत साहित्य

सेना के प्रति  कितना सम्मान और प्रेम को दर्शाया गया है वैदिक गर्न्थो में ।


सेना के प्रति  कितना सम्मान और प्रेम को दर्शाया गया है वैदिक गर्न्थो में ।

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राष्ट्ररक्षा में त्तपर रहने वाला बीर सपूत जो बड़े बड़े हथियारों को धारण करने वाला कुशलता पूर्वक कर्म करने वाला जन कल्याण के लिए सद् इच्छा से प्रकट होने वाला जो अपने तेज से शत्रुओं को विकम्पित और विचलित करने वाला  है उस  बीर पुरुष को हम सब नमन करते है तथा सम्मान सूचक शब्दो से उन सभी का आनंदवर्धन करते है ।
उ॒त स्म॒ ते शु॒भे नरः॒ प्र स्यं॒द्रा यु॑जत॒ त्मना॑ ।।
य ऋ॒ष्वा ऋ॒ष्टिवि॑द्युतः क॒वयः॒ संति॑ वे॒धसः॑ ।

तमृ॑षे॒ मारु॑तं ग॒णं न॑म॒स्या र॒मया॑ गि॒रा ॥( ऋग्वेद )

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भाई नन्द लाल जी और गुरु गोबिंद सिंह जी साहिब जी में बहुत प्रेम था ।


भाई नन्द लाल जी और गुरु गोबिंद सिंह जी साहिब जी में बहुत प्रेम था । भाई नन्द लाल जी जब तक गुरु गोबिंद सिंह जी साहिब जी के दर्शन नहीं कर लेते थे, तब तक अपना दिन नहीं शुरू करते थे । एक दिन भाई नन्द लाल जी ने जल्दी कहीं जाना था, लेकिन गुरु साहिब सुबह 4 वजे दरबार में आते थे । उन्होंने सोचा चलो गुरु साहिब जहाँ आराम करते हैं, वहीं चलता हूं… दरवाज़ा खटखटा करके मिल के ही चलता हूँ ।
सुबह 2 वजे गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी अपने ध्यान में बैठे थे, तब नन्द लाल जी ने

दरवाजा खटखटाया…..
गुरु साहिब जी ने पूछा कौन है बाहर…?
नन्द लाल जी – मैं हूँ !
फिर पूछा – कौन है बाहर..?
नन्द लाल जी ने कहा…. मैं हूँ ..!
गुरु साहिब ने कहा जहाँ …..जहाँ ”मैं -मैं” होती है वहाँ गुरु का दरवाज़ा नहीं खुलता ।
भाई नन्द लाल जी को महसूस हुआ, कि….. मैंने ये क्या कह दिया…. और फिर दरवाजा खटखटाया ।
तब गुरु साहिब जी ने फिर पूछा कौन है..?
नन्द लाल जी ने कहा…. ”तूँ ही तूँ ” ।
गुरु साहिब ने कहा इस में तो तेरी चतुराई दिख रही है… और जहाँ चतुराई होती है

वहाँ भी गुरु का दरवाज़ा नहीं खुलता ।
ये सुन के नन्द लाल जी रोने लग गये कि इतना ज्ञानी होके भी तुझे इतनी अकल

नहीं आयी…… (नन्द लाल जी बहुत ज्ञानी थे, 6 भाषा आती थी , उच्च कोटि के शायर थे ,)
उनका रोना सुन कर….. गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी ने पूछा बाहर कौन

रो रहा है… ?

.

अब नन्द लाल रोते हुए बोले….. क्या कहूं सच्चे पातशाह….. कौन हूँ ..?

‘मैं’…. कहु तो हौमे…..(अहंकार) आता है….. ‘तूँ’…. कहूं तो चालाकी…. आती है

अब तो आप ही बता दो के…. मैं कौन हूँ…?
और दरवाज़ा खुल गया, आवाज़ आयी बस यही नम्रता होनी चाहिए……जहाँ ये

नम्रता है , भोलापन है…. वहाँ गुरु घर के दरवाज़े हमॆशा खुले हैं….. और गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी ने भाई नन्द लाल को गले से लगा लिया …..
रामचंद्र आर्य