*एक सत्य घटना “एक शहीद की अंतिम घड़ियां”*
फिर मैं मणीन्द्र को बराबर समझाने लगा कि ऐसा कुछ नहीं है। मणीन्द्र मेरी बातों को ध्यान से सुनता रहा, उसने प्रतिवाद नहीं किया। वह अच्छे लड़के की भांति मेरे व्याख्यान को हजम करने लगे।
*श्री पाल ने इस बीच में बी श्रेणी के बैरक से ओडोक्लोन की शीशी मंगाई और ओडोक्लोन मणीन्द्र के सीने में मलने लगे। मैं मणीन्द्र को इसी प्रकार पकड़ कर जेलर से पूछने लगा— ‘‘इनके घरवालों को इनकी क्या खबर दी गई है?’’
तार भेजे गये*
इसके उत्तर में मुझ बतलाया गया कि एक तार बनारस में दिया गया है। मैंने कहा, ‘‘यह यथेष्ट नहीं है।’’ इसके अतिरिक्त मैंने कहा कि जो तार दिया गया है, उसका शब्द विन्यास ठीक नहीं है। उससे परिस्थिति की भयानकता स्पष्ट नहीं होती। खैर, तर्क-वितर्क के बाद दो-तीन और तार जेलर ने सरकारी खर्च से भेजना स्वीकार किया।
*इसके फलस्वरूप मेरठ, इलाहाबाद तथा बनारस में तार भेजे गए। तार भेजने की व्यवस्था कर लेने के बाद मैंने जेलर से पूछा कि आई.जी. को क्या रिपोर्ट दी गई है?*
इसके उत्तर में मुझे बतलाया गया कि सोमवार के दिन मेजर भंडारी ने आई.जी. की रिपोर्ट दी है। मैंने कहा— ‘‘लिखा है तो अच्छी बात है, किन्तु ऐसी अवस्था में मणीन्द्र को बहुत पहले ही छोड़ देना चाहिए था।
*बहुत से कैदी स्वास्थ्य की खराबी के कारण प्रति वर्ष छोड़े जाते हैं, यह तो आप जानते ही होंगे। फिर आप यह भी जानते हैं कि यदि मणीन्द्र को कुछ हो गया तो जनता उसका भारी विरोध प्रदर्शन करेगी और उसके फलस्वरूप यदि कोई कमीशन बैठे तो कोई आश्चर्य नहीं।*
आप जानते हैं कि लखनऊ जेल में जब अवध सिंह मर गए थे तब बाद में कैसा तूल-तबील हुआ था?’’
इस प्रकार कुछ गंभीर रूप से, तथा कुछ परिहास में, मैं जेलर को सहज सत्य बातें समझा रहा था। वह भी पुराना खुर्राट था।
*मेरी बातों का नॉनकमिटल किस्म का उत्तर दे रहा था। मणीन्द्र हम लोगों की बातें बड़े ध्यान से सुन रहे थे। श्री यशपाल और मैं विशेष रूप से उनका ध्यान बंटाने के लिए तथा उन्हें यह दिखाने के लिए कि उनकी अवस्था जरा भी खराब नहीं है, इधर-उधर की बातें कर रहे थे। कहा जा सकता है कि हम जरा अभिनय कर रहे थे।*
मणीन्द्र के साथ बातचीत करने में हमें यह भी ज्ञात हुआ कि सबेरे फर्रुखाबाद के सिविल सर्जन मि. गुलाम मुर्तजा मि. भंडारी के साथ आकर परीक्षा कर गए थे और बाद में उसे दो इंजेक्शन भी दिए गए थे।
*जेलर ने तुरंत ही प्रतिवाद किया कि वह इंजेक्शन के विषय में कुछ भी नहीं जानता। किन्तु मणीन्द्र ने दृढ़तापूर्वक कहा कि इंजेक्शन अवश्य दिया गया था। तब जेलर बोला— ‘‘संभव है इंजेक्शन दिया गया हो, पर मैं मौजूद न था।’’*
कैसा था वह इंजेक्शन!
तब श्री यशपाल और मैंने मणीन्द्र के बाहों की परीक्षा की। स्पष्ट रूप से इंजेक्शन के निशान मौजूद थे। मुझे जरा संदेह हुआ, किन्तु मैंने सुझाव दिया कि पिट्रूटीन का इंजेक्शन दिया गया होगा।
*हम सबने इस अनुमान को सत्यरूप में ग्रहण किया, किन्तु मणीन्द्र ने कहा कि उस इंजेक्शन से उसे कोई लाभ नहीं हुआ, बल्कि उस समय से उसकी अवस्था बिगड़ती जा रही है। यह बात तो स्पष्ट थी। यह बात हो सकती है कि इंजेक्शन ठीक दिया गया हो, किन्तु उस समय उसकी अवस्था इतनी खराब हो चुकी हो कि इंजेक्शन का कोई प्रभाव न हो सका।*
वह करुण कराह…
मणीन्द्र की श्रवण एवं विचार-शक्तियां अंत तक प्रखर थीं। वे श्री यशपाल के प्रश्नों के उत्तर बराबर अंग्रेजी में तथा मेरे प्रश्नों के उत्तर बांग्ला में देते जा रहे थे। उन्हें बीच-बीच में सांस का दारुण कष्ट हो रहा था और वे बड़े करुण ढंग से कराह रहे थे।
*यह कराहना सुन-सुन कर हम लोगों का हृदय भीतर बैठा जा रहा था। परन्तु हाय, उसे कुछ भी राहत पहुंचाना हमारे वश की बात न थी। बीच-बीच में हम उसे चम्मच से बर्फ का पानी दे रहे थे।*
ऐसे समय में हमें अकस्मात् याद आया कि डॉक्टर मुकर्जी नाम के एक सज्जन फर्रुखाबाद शहर में रहते हैं। मैंने जेलर से कहा, किन्तु मुझे बताया गया कि वे बहुत दिन हुए इस शहर से चले गए हैं।
*मन्मथनाथ गुप्त का आलेख* :-
योगेश पारेख