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एक साधु व एक डाकू एक ही दिन मरकर यमलोक पहुंचे. धर्मराज उनके कर्मों का लेखा-जोखा खोलकर बैठे थे और उसके हिसाब से उनकी गति का हिसाब करने लगे.
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निर्णय करने से पहले धर्मराज ने दोनों से कहा- मैं अपना निर्णय तो सुनाउंगा लेकिन यदि तुम दोनों अपने बारे में कुछ कहना चाहते हो तो मैं अवसर देता हूं, कह सकते हो.
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डाकू ने हमेशा हिंसक कर्म ही किए थे. उसे इसका पछतावा भी हो रहा था. अतः अत्यंत विनम्र शब्दों में बोला महाराज ! मैंने जीवन भर पापकर्म किए. जिसने केवल पाप ही किया हो वह क्या आशा रखे. आप जो दंड दें, मुझे स्वीकार है.
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डाकू के चुप होते ही साधु बोला महाराज ! मैंने आजीवन तपस्या और भक्ति की है. मैं कभी असत्य के मार्ग पर नहीं चला. सदैव सत्कर्म ही किए इसलिए आप कृपा कर मेरे लिए स्वर्ग के सुख-साधनों का शीघ्र प्रबंध करें.
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धर्मराज ने दोनों की बात सुनी फिर डाकू से कहा- तुम्हें दंड दिया जाता है कि तुम आज से इस साधु की सेवा करो. डाकू ने सिर झुकाकर आज्ञा स्वीकार कर ली.
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यमराज की यह आज्ञा सुनकर साधु ने आपत्ति जताते हुए कहा- महाराज ! इस पापी के स्पर्श से मैं अपवित्र हो जाऊंगा. मेरी तपस्या तथा भक्ति का पुण्य निरर्थक हो जाएगा. मेरे पुण्य कर्मों का उचित सम्मान नहीं हो रहा है.
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धर्मराज को साधु की बात पर बड़ा क्षोभ हुआ. वह क्षुब्ध होकर बोले- निरपराध व्यक्तियों को लूटने और हत्या करने वाला डाकू मर कर इतना विनम्र हो गया कि तुम्हारी सेवा करने को तैयार है.
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तुम वर्षों के तप के बाद भी अहंकार ग्रस्त ही रहे. यह नहीं जान सके कि सब में एक ही आत्मतत्व समाया हुआ है. तुम्हारी तपस्या अधूरी और निष्फल रही. अत: आज से तुम इस डाकू की सेवा करो, और तप को पूर्ण करो.

उसी तपस्या में फल है, जो अहंकार रहित होकर की जाए. अहंकार का त्याग ही तपस्या का मूलमंत्र है और यही भविष्य में ईश्वर प्राप्ति का आधार बनता है. झूठे दिखावे तप नहीं हैं, ऐसे लोगों की गति वही होगी जो साधु की हुई….

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यह जानना आवश्यक है की #रामायण के प्रसिद्ध नगर जैसे #अयोध्या, #चित्रकूट, #किष्किंधा इन सभी का बाद में क्या हुआ ?

ऐसा इसलिए ताकि हम भी यहूदियों की तरह खुद पर हुए अत्याचारों को याद रखे…

🔸1. #अयोध्या :- श्री राम और रघुवंश की राजधानी, सन 1270 में इस पर मुस्लिम आक्रमणकारी बलबन ने आक्रमण किया। बलबन ने अयोध्या के सभी मंदिर नष्ट कर दिये, जिस नगरी में रामराज्य की नींव रखी गयी उसी नगरी के बीच चौराहे पर महिलाओ और बच्चों की आपत्तिजनक स्थिति में नीलामी हुई। इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा इन मंदिरों का पुनः निर्माण हुआ।

🔸2. #गंगा_नदी_का_तट :- यह वो तट था जिसके पास श्री राम ने ताड़का वध करके ऋषियों का उद्धार किया था। सन 1760 के समय जब अहमदशाह अब्दाली भारत मे घुस गया और भारत के मुसलमानो ने उसे गंगा नदी तक पहुँचाने में मदद की। तब मराठाओ को जलाने के लिये अब्दाली ने 1 हजार गायों का सिर काटकर इसी गंगा नदी में बहाया।

🔸3. #चित्रकूट :- वनवास के समय श्री राम चित्रकूट में रुके थे जिस पर 1298 में अलाउद्दीन खिलजी ने कब्जा कर लिया। 5 हजार पुरुष मार दिए गए, हजारों स्त्रियों को अलाउद्दीन खिलजी के हरम में भेजा गया और मंदिर नष्ट कर दिए गए। 1731 में राणोजी सिंधिया पुनः इस नगरी का उद्धार किया।

🔸4. #नासिक :- वह स्थान जहाँ लक्ष्मण जी ने शूर्पणखा की नाक काटी थी तथा जो श्री राम की कर्मभूमि थी। इस पर मुहम्मद बिन तुगलक ने हमला किया, तुलगक ने नासिक में स्थित प्रभु श्री राम द्वारा बनाये गए शिवालय में आग लगा दी और 12 दिनों तक भीषण संहार किया। नासिक वासियों से अपील की गयी कि वे इस्लाम अपना ले या मरने को तैयार रहे। बाद में छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र संभाजी महाराज ने इन मंदिरों को पुनः स्थापित किया।

🔸5. #किष्किंधा :- वानरराज महाराज सुग्रीव का राज्य, जो आगे चलकर विजयनगर साम्राज्य कहलाया। 1565 में तालिकोटा के युद्ध मे विजयनगर साम्राज्य की हार हुई और मुसलमानो ने सारा राज्य जला डाला, आप आज भी गूगल में हम्पी सर्च करे इसका बहुत बड़ा अवशेष आज भी देखने को मिल जाएगा, जो बताता है कि मुसलमानो से पहले भारत कितना भव्य था। मगर मजहबी आग ने सबकुछ जलाकर राख कर दिया। बाद में मैसूर के यदुवंशियों ने इसका पुनः उद्धार किया।

इस तरह हमारी रामायणकालीन नगरिया लूटी और दोबारा बनाई गई।

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ઝંડુ ભટ્ટ એટલે જામ વિભાજી ના દરબાર ના નવરત્નો પૈકી ના એક રત્ન… જામનગર ની આયુર્વેદ પરંપરા ની ધરોહર. જામનગર ની આયુર્વેદ યુનિવર્સીટી ના પાયા માં ઝંડુ ભટ્ટ ની આયુર્વેદ પરંપરા છે…

ઝંડુ ભટ્ટ જ્યાં રહેતા હતા તે શેરી ને ઝંડુ ભટ્ટ ની શેરી તરીકે ઓળખવા માં આવે છે જ્યાં આજે પણ ઝંડુ ભટ્ટ જે મકાન માં રહેતા હતા તે અસ્તિત્વ માં છે… મેં આ સ્થળ ની નવ વર્ષ અગાઉ મુલાકાત લીધેલ… અહી હજુ ઝંડુ ભટ્ટ ના અમુક સાધનો સચવાયેલ પડ્યા છે…

જામનગર ની આ ધરોહર ને સંભાળી ને અહી ઝંડુ ભટ્ટ વિષે લોકો વધુ જાણે તેના માટે ની વ્યવસ્થા ગોઠવવા ની જરૂર છે… આયુર્વેદ યુનિવર્સીટી માં જ્યાં સુધી હું જાણું છું ત્યાં સુધી ઝંડુ ભટ્ટ નું પુતળું પણ મુકવા માં નથી આવ્યું… સુખનાથ મહાદેવ માં આવેલ એમની રસશાળા અત્યંત જીર્ણશીર્ણ હાલત માં છે…. ત્યાં થોડું ઉત્ખનન કરી અવશેષો બહાર કાઢવા ની જરૂર છે…

જામનગર ઝંડુ ભટ્ટ નું ઋણ ચૂકવી શકે તેમ નથી… પણ આ ઋણ ફેડવા માટે નાનો પ્રયત્ન કરવો ખુબ જરૂરી છે…

જામનગર ના નેતાઓ ના હૃદય માં જામનગર પ્રત્યે કોઈ લાગણી જન્મે એવી આશા રાખીએ અને ઝંડુ ભટ્ટ ની કાયમી યાદગીરી રહે તેવું કોઈ નક્કર કામ થાય એવી અપેક્ષા….

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क्यों कोसता है खुद को


क्यों कोसता है खुद को*🙏

संतों की एक सभा चल रही थी…

किसी ने एक दिन एक घड़े में गंगाजल भरकर वहां रखवा दिया ताकि संत जन जब प्यास लगे तो गंगाजल पी सकें…

संतों की उस सभा के बाहर एक व्यक्ति खड़ा था. उसने गंगाजल से भरे घड़े को देखा तो उसे तरह-तरह के विचार आने लगे…
वह सोचने लगा- अहा ! यह घड़ा कितना भाग्यशाली है…???

एक तो इसमें किसी तालाब पोखर का नहीं बल्कि गंगाजल भरा गया और दूसरे यह अब सन्तों के काम आयेगा… । संतों का स्पर्श मिलेगा, उनकी सेवा का अवसर मिलेगा. ऐसी किस्मत किसी किसी की ही होती है…

घड़े ने उसके मन के भाव पढ़ लिए और घड़ा बोल पड़ा- बंधु मैं तो मिट्टी के रूप में शून्य पड़ा सिर्फ मिट्टी का ढेर था…

किसी काम का नहीं था. कभी ऐसा नहीं लगता था कि भगवान् ने हमारे साथ न्याय किया है…

फिर एक दिन एक कुम्हार आया. उसने फावड़ा मार-मारकर हमको खोदा और मुझे बोरी में भर कर गधे पर लादकर अपने घर ले गया ।

वहां ले जाकर हमको उसने रौंदा, फिर पानी डालकर गूंथा, चाकपर चढ़ाकर तेजी से घुमाया, फिर गला काटा, फिर थापी मार-मारकर बराबर किया । बात यहीं नहीं रूकी, उसके बाद आंवे के आग में झोंक दिया जलने को…

इतने कष्ट सहकर बाहर निकला तो गधे पर लादकर उसने मुझे बाजार में भेजने के लिए लाया गया . वहां भी लोग मुझे ठोक-ठोककर देख रहे थे कि ठीक है कि नहीं ?
ठोकने-पीटने के बाद मेरी कीमत लगायी भी तो क्या- बस 20 से 30 रुपये…

मैं तो पल-पल यही सोचता रहा कि हे ईश्वर सारे अन्याय मेरे ही साथ करना था…

रोज एक नया कष्ट एक नई पीड़ा देते हो. मेरे साथ बस अन्याय ही अन्याय होना लिखा है…

लेकिन ईश्वर की योजना कुछ और ही थी,
किसी सज्जन ने मुझे खरीद लिया और जब मुझमें गंगाजल भरकर सन्तों की सभा में भेज दिया…

तब मुझे आभास हुआ कि कुम्हार का वह फावड़ा चलाना भी उसकी☝️ की कृपा थी…

उसका मुझे वह गूंथना भी उसकी ☝️ की कृपा थी…

मुझे आग में जलाना भी उसकी☝️ की मौज थी…

और…
बाजार में लोगों के द्वारा ठोके जाना भी भी उसकी☝️ ही मौज थी…

अब मालूम पड़ा कि मुझ पर सब उस परमात्मा की कृपा ही कृपा थी…

दरसल बुरी परिस्थितिया हमें इतनी विचलित कर देती हैं कि हम उस परमात्मा के अस्तित्व पर भी प्रश्न उठाने लगते हैं और खुद को कोसने लगते हैं , क्यों हम सबमें शक्ति नहीं होती उसकी लीला समझने की…

कई बार हमारे साथ भी ऐसा ही होता है हम खुद को कोसने के साथ परमात्मा पर ऊँगली उठा कर कहते हैं कि उसने☝️ न मेरे साथ ही ऐसा क्यों किया ,
क्या मैं इतना बुरा हूँ ? और मलिक ने सारे दुःख तकलीफ़ें मुझे ही क्यों दिए ।
*लेकिन सच तो ये है मालिक उन तमाम पत्थरों की भीड़ में से तराशने के लिए एक आप को चुना । अब तराशने में तो थोड़ी तकलीफ तो झेलनी ही पड़ती है 😊

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मिट्टी का दिल


मिट्टी का दिल💐💐

पंकज एक गुस्सैल लड़का था. वह छोटी-छोटी बात पर नाराज़ हो जाता और दूसरों से झगड़ा कर बैठता. उसकी इसी आदत की वजह से उसके अधिक दोस्त भी न थे।

पंकज के माता-पिता और सगे-सम्बन्धी उसे अपना स्वभाव बदलने के लिए बहुत समझाते पर इन बातों का उसपर कोई असर नहीं होता।

एक दिन पंकज के पेरेंट्स को शहर के करीब ही किसी गाँव में रहने वाले एक सन्यासी बाबा का पता चला जो अजीबो-गरीब तरीकों से लोगों की समस्याएं दूर किया करता था।

अगले दिन सुबह-सुबह वे पंकज को बाबा के पास ले गए।

बाबा बोले, “जाओ और चिकनी मिटटी के दो ढेर तैयार करो।

पंकज को ये बात कुछ अजीब लगी लेकिन माता-पता के डर से वह ऐसा करने को तैयार हो गया।

कुछ ही देर में उसने ढेर तैयार कर लिया.

बाबा बोले, “अब इन दोनों ढेरों से दो दिल तैयार करो!”

पंकज ने जल्द ही मिटटी के दो हार्ट शेप तैयार कर लिए और झुंझलाते हुए बोला, “हो गया बाबा, क्या अब मैं अपने घर जा सकता हूँ?”

बाबा ने उसे इशारे से मना किया और मुस्कुरा कर बोले, “अब इनमे से एक को कुम्हार के पास लेकर जाओ और कहो कि वो इसे भट्टी में डाल कर पका दे.”

पंकज को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि बाबा करना क्या चाहते हैं पर अभी उनकी बात मानने के अलावा उसके पास कोई चारा न था.
दो-तीन घंटे बाद पंकज यह काम कर के लौटा।

“यह लो रंग और अब इस दिल को रंग कर मेरे पास ले आओ!”, बाबा बोले।

“आखिर आप मुझसे कराना क्या चाहते हैं? इन सब बेकार के टोटकों से मेरा गुस्सा कम नहीं हो रहा बल्कि बढ़ रहा है!”, पंकज बड़बड़ाने लगा।
बाबा बोले, “बस पुत्र यही आखिरी काम है!”

पंकज ने चैन की सांस ली और भट्टी में पके उस दिल को लाल रंग से रंगने लगा.।

रंगे जाने के बाद वह बड़ा ही आकर्षक लग रहा था. पंकज भी अब कहीं न कहीं अपनी मेहनत से खुश था और मन ही मन सोचा रहा था कि वो इसे ले जाकर अपने रूम में लगाएगा.

वह अपनी इस कृति को बड़े गर्व के साथ बाबा के सामने लेकर पहुंचा.

पहली बार उसे लग रहा था कि शायद बाबा ने उससे जो-जो कराया ठीक ही कराया और इसकी वजह से वह गुस्सा करना छोड़ देगा.
“तो हो गया तुम्हारा काम पूरा?”, बाबा ने पूछा.

“जी हाँ, देखिये ना मैंने खुद इसे लाल रंग से रंगा है!”, पंकज उत्साहित होते हुए बोला.

“ठीक है बेटा, ये लो हथौड़ा और मारो इस दिल पर.”, बाबा ने आदेश दिया.

“ये क्या कह रहे हैं आप? मैंने इतनी मेहनत से इसे तैयार किया है और आप इसे तोड़ने को कह रहे हैं?”, पंकज ने विरोध किया.
इस बार बाबा गंभीर होते हुए बोले, “मैंने कहा न मारो हथौड़ा!”

पंकज ने तेजी से हथौड़ा अपने हाथ में लिए और गुस्से से दिल पर वार किया.

जिस दिल को बनाने में पंकज ने आज दिन भर काम किया था एक झटके में उस दिल के टुकड़े-टुकड़े हो गए.

“देखिये क्या किया आपने, मेरी सारी मेहनत बर्बाद कर दी.”

बाबा ने पंकज की इस बात पर ध्यान न देते हुए अपने थैले में रखा मिट्टी का दूसरा दिल निकाला और बोले, “चिकनी मिट्टी का यह दूसरा दिल भी तुम्हारा ही तैयार किया हुआ है… मैं इसे यहाँ जमीन पर रखता हूँ… लो अब इस पर भी अपना जोर लगाओ…”

पंकज ने फ़ौरन हथौड़ा उठाया और दे मारा उस दिल पर.

पर नर्म और नम होने के कारण इस दिल का कुछ ख़ास नहीं बिगड़ा बस उसपर हथौड़े का एक निशान भर उभर गया.

“अब आप खुश हैं… आखिर ये सब कराने का क्या मतलब था… मैं जा रहा हूँ यहाँ से!”, पंकज यह कह कह कर आगे बढ़ गया.

“ठहरो पुत्र!,” बाबा ने पंकज को समझाते हुए कहा, “जिस दिल पर तुमने आज दिन भर मेहनत की वो कोई मामूली दिल नहीं था… दरअसल वो तुम्हारे असल दिल का ही एक रूप था.

तुम भी क्रोध की भट्टी में अपने दिल को जला रहे हो… उसे कठोर बना रहे हो… ना समझी के कारण तुम्हे ऐसा करना ताकत का एहसास दिलाता है… तुम्हे लगता है की ऐसा करने से तुम मजबूत दिख रहे हो… मजबूत बन रहे हो… लेकिन जब उस हथौड़े की तरह ज़िंदगी तुम पर एक भी वार करेगी तब तुम संभल नहीं पाओगे… और उस कठोर दिल की तरह तुम्हारा भी दिल चकनाचूर हो जाएगा!

समय है सम्भल जाओ! इस दूसरे दिल की तरह विनम्र बनो… देखो इस पर तुम्हारे वार का असर तो हुआ है पर ये टूट कर बिखरा नहीं… ये आसानी से अपने पहले रूप में आ सकता है… ये समझता है कि दुःख-दर्द जीवन का एक हिस्सा है और उनकी वजह से टूटता नहीं बल्कि उन्हें अपने अन्दर सोख लेता है…जाओ क्षमाशील बनो…प्रेम करो और अपने दिल को कठोर नहीं विनम्र बनाओ!”

पंकज बाबा को एक टक देखता रह गया. वह समझ चुका था कि अब उसे कैसा व्यवहार करना है!

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*बंगलादेश में हिन्दू-संहार और रिचर्ड बेंकिन*
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कुछ पुस्तकें पढ़ना कष्टकर होता है। डॉ. रिचर्ड बेंकिन की ‘ए क्वाइट केस ऑफ एथनिक क्लीन्सिन्ग: द मर्डर ऑफ बंगलादेश’ज हिन्दूज’ (अक्षय प्रकाशन, नई दिल्ली) इतनी पीड़ादायक है कि इसे पढ़ने में कई बार प्रयास करना पड़ा। हर बार दो-चार पृष्ठ पढ़ते ही मन त्रस्त हो जाता। पुस्तक रख दी जाती। यह त्रास बाँट लेना ठीक है। संभवतः विवेकी वीर कुछ विचार/कर सकें!

इस पुस्तक के लेखक एक सामान्य अमेरिकी हैं, जो इस पर दुनिया का ध्यान आकृष्ट करने के लिए बीस वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं। अपनी जान भी खतरे में डाली। वे बंगलादेश सरकार, अमेरिकी प्रशासन, सीनेट, आदि में भी इस पर सुनवाई कराने, आदि प्रयत्न करते रहे हैं। उन की पुस्तक प्रमाणिक शोध, विवरण और प्रत्यक्ष अनुभवों पर आधारित है। इसी क्रम में भारतीय बंगाल में भी हिन्दुओं की हालत बताती है।

बहुतों को जानकर हैरत होगी कि गत सौ सालों में पाकिस्तान-बंगलादेश में हिन्दू-विनाश दुनिया में सब से बड़ा है। यह अंतर्राष्ट्रीय जिहाद का अंग है, पर निःशब्द हो रहा है। हिन्दू आबादी में नाटकीय गिरावट इस का प्रत्यक्ष प्रमाण है। 1951 में पूर्वी बंगाल की आबादी में लगभग 33 % हिन्दू थे। जो 1971 तक 20 % रह गए। 2001 में वे 10 % बचे। आज उन की संख्या 8 % रह गई मानी जाती है। इस लुप्त आबादी का एक-दो प्रतिशत ही बाहर गया। शेष मारे गए या जबरन मुसलमान बनाए गए। बंगलादेश में हिन्दू-विनाश इस्लामी संगठनों, मुस्लिम पड़ोसियों, राजनीतिक दलों, और सरकारी नीतियों द्वारा भी हो रहा है।

वैश्विक स्तर पर इतनी बड़ी आबादी कहीं और साफ नहीं हुई! हिटलरी नाजीवाद ने लगभग 60 लाख यहूदियों का सफाया किया, जबकि पूर्वी बंगाल/ बंगलादेश में 1951-2008 के बीच लगभग 4.9 करोड़ हिन्दू ‘लुप्त हो गए’। न्यूयॉर्क स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रो. सची दस्तीदार ने यह संख्या दी है। पर दुनिया इस पर संवेदनहीन-सी रही। इस का मुख्य कारण भारत की चुप्पी है, जो सब से निकट प्रभावित देश है। वरना बोस्निया, रवांडा, या डारफूर में इस से सैकड़ों गुना कम लोगों के संहार पर पूरी दुनिया के मीडिया, संयुक्त राष्ट्र, और बड़ी-बड़ी हस्तियों की चिन्ता वर्षों तक व्यापक बनी रही।

कितना लज्जानक कि भारतीय नेता, दल, मीडिया, अकादमिक जगत, सभी इस पर चुप रहते हैं! बंगलादेश में निरंतर और बीच-बीच में हिन्दू-संहार के बड़े दौर (1971, 1989, 1993) चलने पर भी यहाँ राजनीतिक-बौद्धिक वर्ग ठस बना रहा। न्यूयॉर्क टाइम्स के प्रसिद्ध पत्रकार सिडनी शॉनबर्ग की प्रत्यक्ष रिपोर्टिंग के अनुसार केवल 1971 में 20 लाख से अधिक हिन्दुओं के मारे जाने का अनुमान है। पाकिस्तानी दमन से मुक्त होकर बंगलादेश बनने के बाद भी हिन्दुओं की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ नहीं किया गया। नये शासकों ने भी इस्लामी एकाधिकार बनाकर हिन्दुओं को पीड़ित, वंचित किया।

वहाँ 1974 में ‘भेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट’ बना। इस के अनुसार, जो हिन्दू बंगलादेश से चले गए या जिन्हें सरकार ने शत्रु घोषित कर दिया, उन की जमीन सरकार लेकर मुसलमानों को दे देगी। इस का व्यवहार यह भी हुआ कि किसी हिन्दू को मार-भगा, या शत्रुवत कहकर, उस के परिवार की संपत्ति छीन कर किसी मुसलमान को दे दी गई। (पृ. 66-68)। ढाका विश्वविद्यालय के प्रो. अब्दुल बरकत की पुस्तक इन्क्वायरी इन्टू कॉजेज एंड कन्सीक्वेन्सेज ऑफ डिप्राइवेशन ऑफ हिन्दू माइनॉरिटीज इन बंगलादेश थ्रू द भेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट में भी इस के विवरण हैं। इस कानून से तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं, कार्यकर्ताओं ने हिन्दुओं की संपत्ति हड़पी। गत चार दशकों में यह हड़पी गई संपत्ति लाखों एकड़ में है!

1988 में संविधान संशोधन द्वारा इस्लाम बंगलादेश का ‘राजकीय मजहब’ बन गया। तब से हिन्दुओं की स्थिति कानूनन भी नीची हो गई। उन के विरुद्ध हिंसा, बलात्कार, जबरन धर्मांतरण, संपत्ति छीनने, आदि घटनाएं और तेज हुई। हिन्दू लड़कियों, स्त्रियों को निशाना बना कर, आतंक द्वारा हिन्दुओं की संपत्ति पर कब्जा या धर्मांतरित कराना एक विशेष टेकनीक की तरह जम कर इस्तेमाल हुआ। तसलीमा नसरीन ने अपनी पुस्तक ‘लज्जा’ में इसी का प्रमाणिक चित्रण किया, जिस से उन पर मौत का फतवा भी आया।

निःशब्द और क्रमशः होने के कारण भी यह हिन्दू-विनाश दुनिया के लिए अनजान सा रहा है। जबकि वह बंगलादेश से छिलक कर भारत में घुस चुका। वहाँ से जो हिन्दू भाग आए, वे पश्चिम बंगाल में भी 1977 ई. से ही उत्पीड़न का शिकार होते रहे हैं। डॉ. बेंकिन ने कई जगह जाकर यह देखा। इस्लामियों-कम्युनिस्टों की साँठ-गाँठ से हिन्दू शरणार्थियों की पुरानी बस्ती पर कब्जा कर, उन्हें पुनः भगा दिया जाता। मनचाही चीज छीनने के लिए बच्चों, लड़कियों के अपहरण की तकनीक यहाँ भी चालू है। सम्मिलित हिन्दू-मुस्लिम आबादी वाले कई गाँव धीरे-धीरे पूरी तरह मुस्लिम में बदल गए। वहाँ के लावारिस मंदिर इस का संकेत करते हैं। डॉ. बेंकिन के हिन्दू शरणार्थियों से कहीं मिलने जाने पर (2008 ई.) माकपा कार्यकर्ता वहाँ पहुँच कर लोगों को धमकाते कि कुछ न कहें। फिर भी यदि कोई बोलता तो वे बाधा देते या विवाद करने लगते।

डॉ, बेंकिन ने इस की कल्पना भी नहीं की थी! उन्होंने समझा था कि बंगलादेशी हिन्दू शरणार्थियों की दुर्दशा जानने, उसे दुनिया तक पहुँचाने में उन्हें भारत से सहयोग मिलेगा। आखिर भारत दुनिया का अकेला प्रमुख हिन्दू देश है। अतः पड़ोस में हिन्दू-संहार रोकने और शरणार्थियों का आना बंद करने की उसे चिन्ता होगी। किन्तु उन्हें उलटा अनुभव हुआ। पश्चिम बंगाल के कम्युनिस्ट सत्ताधारियों से कार्यकर्ताओं को निर्देश मिला हुआ था कि वे डॉ. बेंकिन को शरणार्थियों की आप-बीतियाँ न जानने दें। वे क्या छिपाना चाहते थे?

भारत के गैर-कम्युनिस्ट दल और प्रभावशाली लोग भी बंगलादेशी हिन्दुओं के प्रति उदासीन हैं। जबकि उन्हें मालूम है कि वहाँ हिन्दुओं का अस्तित्व खतरे में है। भारत की उदासीनता से ही यूरोपीय, अमेरिकी सरकारें, अंतरर्राष्ट्रीय एजेंसियाँ भी इसे महत्व नहीं देतीं।

हालाँकि, यह भी ऐतिहासिक अनुभव है कि अत्यंत भयावह नरसंहारों की खबरों पर शुरू में विश्वास ही नहीं किया जाता! रूस में स्तालिन और जर्मनी में हिटलर द्वारा नरसंहारों पर वर्षों यही स्थिति रही थी। तब तक समूह-हत्यारे काफी कुछ कर गुजरते हैं। इस बीच, वामपंथी, सेक्यूलर, मल्टीकल्चरल बुद्धिजीवी भ्रामक प्रचार भी करते हैं। बंगलादेश में हिन्दू-संहार पर यह दोनों बातें दशकों बाद भी जारी हैं, जो एक विश्व-रिकॉर्ड है! ऐसी स्थिति में डॉ. बेंकिन का संघर्ष अत्यंत मूल्यवान है।

कुछ लोग नाजीवाद के हाथों यहूदियों और जिहाद के हाथों हिन्दुओं के संहार की तुलना को बढ़ाना-चढ़ाना मानते हैं। पर डॉ. बेंकिन के शब्दों में, “1930 के दशक के यहूदियों और 1950 के दशक से बंगलादेश [और कश्मीर भी] के हिन्दुओं की तुलना करने पर सारे संकेत, प्रमाण पहचानना सत्यनिष्ठा की माँग करता है। साहस की भी, क्योंकि सचाई समझ लेने पर कुछ करने का कर्तव्य बनता है। चाहे वह नेता हों, या बौद्धिक, या मीडिया।”

वस्तुतः बंगाल के दोनों भाग में हिन्दू क्रमशः मरते, घटते जा रहे हैं। इस का कारण बहुमुखी जिहाद है। बंगलादेश में हिन्दुओं की समाप्ति के बाद यहाँ बंगाल में वही होगा, जो कश्मीर में हो चुका। उसी प्रकिया से, जिसे नेता, मीडिया और बुद्धिजीवी देखना नहीं चाहते या अनदेखा करते हैं। बंगलादेशी हिन्दुओं पर उन की चुप्पी ने ही इस संहार को जारी रखा। किन्तु वहाँ पूरा हो जाने पर सब की बारी आएगी। स्तालिन, हिटलर, और जिहाद – तीनों की खुली घोषणाएं और वैश्विक लक्ष्य तुलनीय हैं।

डॉ. बेंकिन के अनुसार, बंगलादेश में इस्लामी और सरकारी लोग इस विश्वास से चलाते हैं कि उन्हें कोई रोकने-टोकने वाला नहीं। क्योंकि किसी भी हस्तक्षेप से वे रक्षात्मक हो जाते हैं। अर्थात् यदि दुनिया चिन्ता करती, या अभी भी करे, तो स्थिति सुधर सकती है। बंगलादेश कई मामलों में बाहरी सहायता पर निर्भर है। अतः वह एक न्यायोचित मुद्दे पर वैश्विक दबाव झेलने की स्थिति में नहीं है। इस के बावजूद बंगलादेश के हिन्दुओं का क्रमशः संहार जारी रहना अत्यंत शोचनीय है।

– डॉ. शंकर शरण (११ मई २०२१)

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એક માણસને પોતાના જ સગા,પરિવાર વગેરેની બીક બહુ લાગ્યા કરતી હતી.
એવો છૂપો ભય લાગ્યા કરે કે કોઈ મને દગો કરશે,કોઈ કાંઈક કરાવી નાખશે,વગેરે શંકાઓમાં એટલો ભયભીત રહેતો હતો કે ખાવું-પીવું અને ઉંઘ હરામ થઈ ગઈ.
એના એક મિત્રની સલાહથી એણે ફકીર પાસે તાવીજ બનાવડાવ્યું.
તાવીજ આપતા ફકીરે સૂચના આપી કે..
દર શુક્રવારે આ તાવીજને ગુગળનો ધૂપ દેવાનું ચૂકતો નહિ.
બહાર જા ત્યારે આ તાવીજ સાથે લઈ જવાનું ભૂલતો નહી.
કોઈનો ઓછાયો-આભડશેટ લાગી ન જાય એનું ધ્યાન રાખજે.
આ માણસ તો સૂચના મુજબ જ વર્તવા લાગ્યો.
કોઈનો ડર ન રહ્યો.
ભયમુક્ત થયો.
બીજો બધો ડર તો કાલ્પનિક હતો.
એ બધી બાબતે નિર્ભય બની ગયો.
પણ….
તાવીજનો ડર વધી ગયો.
તાવીજ ક્યાંક અડી જાહે તો ?
તાવીજ કોક ભાળી જાહે તો ?
આભડશેટ લાગી જાહે તો ?
તાવીજ ખોવાઈ જાહે તો ?
કોક ચોરી તો નહીં જાય ને ?
બીજો બધો ડર તો સાવ ભૂલી જવાયો પણ તાવીજ નો ભય આજીવન રહયો.
– સાર તો આપ સૌ વિદ્વાનો પોતપોતાની રીતે મેળવી લેશો.
(આવી મર્મસભર વાતો માટે લાખણશીભાઈ ગઢવીને સાંભળો.)
— ભાલ

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

——– મહારાણા પ્રતાપ વિશેષ ———-

શું આપણે ક્યારેય ભણ્યા છીએ કે ક્યારેય વાંચ્યું છે. ખરું કે હલદીઘાટી યુદ્ધ પછી મેવાડમાં આગામી ૧૦ વર્ષોમાં શું થયું?

ઈતિહાસમાંથી જે પાના હટાવવામાં આવ્યા છે તે પાનાનું સંકલન કરવું પડશે કારણ કે તે હિંદુ પ્રતિકાર અને બહાદુરીના પ્રતિક છે.

ઈતિહાસમાં એવું પણ શીખવવામાં આવ્યું નથી કે હલ્દીઘાટીના યુદ્ધમાં જ્યારે મહારાણા પ્રતાપે કુંવર માનસિંહના હાથી પર હુમલો કર્યો ત્યારે શાહી સેના પાંચ-છ કોસ દૂર ભાગી ગઈ અને અકબરના આગમનની અફવાને કારણે ફરીથી યુદ્ધમાં જોડાઈ ગઈ. આ ઘટના અબુલ ફઝલના પુસ્તક અકબરનામામાં નોંધાયેલ છે.

શું હલ્દી ઘાટી એક અલગ યુદ્ધ હતું..કે મોટા યુદ્ધમાં માત્ર એક નાની ઘટના હતી કે પછી આ તો શરૂઆત હતી માત્ર !

ઈતિહાસકારોએ મહારાણા પ્રતાપને હલ્દીઘાટી સુધી મર્યાદિત કરીને મેવાડના ઈતિહાસ સાથે મોટો અન્યાય કર્યો છે. વાસ્તવમાં, હલ્દીઘાટીનું યુદ્ધ મહારાણા પ્રતાપ અને મુઘલો વચ્ચેના ઘણા યુદ્ધોની માત્ર શરૂઆત હતી. મુઘલો ન તો પ્રતાપને પકડી શક્યા અને ન તો મેવાડ પર પ્રભુત્વ સ્થાપિત કરી શક્યા. હલ્દીઘાટી યુદ્ધ પછી શું થયું તે હું કહું છું.

હલ્દી ઘાટીના યુદ્ધ પછી, મહારાણા સાથે માત્ર ૭૦૦૦ સૈનિકો બચ્યા હતા..અને થોડા જ સમયમાં, કુંભલગઢ, ગોગુંદા ઉદયપુર અને નજીકના સ્થળો પર મુઘલોનું નિયંત્રણ હતું. તે સ્થિતિમાં મહારાણાએ “ગેરિલા યુદ્ધ” ની યોજના બનાવી અને મુગલોને ક્યારેય મેવાડમાં સ્થાયી થવા દીધા નહીં. મહારાણાની બહાદુરીથી વિચલિત થઈને, અકબરે ૧૫૭૬માં હલ્દીઘાટી પછી પણ, ૧૫૭૭ અને ૧૫૮૨ ની વચ્ચે દર વર્ષે એક લાખ સૈન્ય બળ મોકલ્યું, જેઓ મહારાણાને ઝુલાવવામાં નિષ્ફળ ગયા.

હલ્દીઘાટીના યુદ્ધ પછી, મહારાણા પ્રતાપના ખજાનચી ભામાશાહ અને તેમના ભાઈ તારાચંદ ૨૫લાખ રૂપિયા દંડ અને બે હજાર અશરફિયા સાથે માલવાથી હાજર થયા. આ ઘટના પછી મહારાણા પ્રતાપે ભામાશાહને ખૂબ માન આપ્યું અને દિવાર પર હુમલાની યોજના બનાવી. ભામાશાહે મહારાણાને રાજ્યની સેવા માટે જેટલી રકમ આપી હતી તેટલી રકમ ૨૫ હજાર સૈનિકોને ૧૨ વર્ષ સુધી રસદ આપી શકાઈ હતી. પછી શું હતું.. મહારાણાએ ફરી પોતાની સેનાને સંગઠિત કરવાનું શરૂ કર્યું અને થોડી જ વારમાં ૪૦૦૦૦ લડવૈયાઓની શક્તિશાળી સેના તૈયાર થઈ ગઈ.

તે પછી, હલ્દીઘાટી યુદ્ધનો બીજો ભાગ શરૂ થયો, જેને કાં તો એક ષડયંત્ર હેઠળ ઈતિહાસમાંથી હટાવી દેવામાં આવ્યો છે અથવા સંપૂર્ણપણે બાજુ પર મૂકી દેવામાં આવ્યો છે. આને Battle of Diver કહેવાય છે.

તે લગભગ ૧૫૮૨ની વાત છે, તે વિજયદશમીનો દિવસ હતો અને મહારાણાએ તેમની નવી સંગઠિત સેના સાથે ફરીથી મેવાડને સ્વતંત્ર બનાવવાની પ્રતિજ્ઞા લીધી હતી. તે પછી, સેનાને બે ભાગમાં વહેંચીને યુદ્ધનું બ્યુગલ વગાડવામાં આવ્યું.. એક ટુકડીની કમાન ખુદ મહારાણાના હાથમાં હતી, બીજી ટુકડીનું નેતૃત્વ તેમના પુત્ર અમર સિંહે કર્યું હતું.

કર્નલ ટોડે તેમના પુસ્તકમાં હલ્દીઘાટીને મેવાડની થર્મોપાયલી અને દિવારના યુદ્ધને રાજસ્થાનની મેરેથોન તરીકે પણ વર્ણવ્યું છે.

આ છે આ ઘટનાઓ જેની આસપાસ જે તમે જોઈ છે તે ફિલ્મ 300. કર્નલ ટોડે પણ મહારાણા અને તેમની સેનાની દેશ પ્રત્યેની બહાદુરી, તીક્ષ્ણતા અને ગૌરવને સ્પાર્ટન્સ સમાન ગણાવ્યું છે જે યુદ્ધના મેદાનમાં પોતાના કરતા ૪ ગણી મોટી સેના સાથે ટકરાતા હતા.

દિવેર નું યુદ્ધ ખૂબ જ વિકરાળ હતું, મહારાણા પ્રતાપની સેનાએ મહારાજકુમાર અમરસિંહના નેતૃત્વમાં દિવેર થાણા પર હુમલો કર્યો, હજારો મુઘલોને રાજપૂતોએ તલવારો, ભાલા અને ખંજરથી વીંધી દેવામાં આવ્યા.

અમરસિંહે સુલતાન ખાન મુગલને ભાલા વડે માર્યો જે સુલતાન ખાન અને તેના ઘોડાને કાપીને બહાર આવ્યો. એ જ યુદ્ધમાં, અન્ય એક રાજપૂતની તલવાર હાથીને વાગી અને તેનો પગ કપાઈ ગયો.

મહારાણા પ્રતાપે બહલેખાન મુગલના માથા પર હુમલો કર્યો અને તેને તલવાર વડે તેના ઘોડા સહિત કાપી નાખ્યો. બહાદુરીની આ ઓળખ ઈતિહાસમાં ક્યાંય જોવા મળતી નથી. તે પછી એક કહેવત બની ગઈ કે મેવાડમાં ઘોડાની સાથે સવાર એક જ ફટકામાં માર્યો જાય છે. આ ઘટનાઓ મુઘલોને ડરાવવા માટે પૂરતી હતી. બાકીના ૩૬,૦૦૦મુઘલ સૈનિકોએ મહારાણા સામે આત્મસમર્પણ કર્યું.

દિવેરની લડાઈએ મુઘલોનું મનોબળ એવી રીતે તોડી નાખ્યું કે પરિણામે, મુઘલોએ મેવાડમાં બાંધેલા તેમના તમામ 36 પોલીસ સ્ટેશનો અને થાણાઓ છોડીને ભાગી જવું પડ્યું, જ્યારે મુઘલો રાતોરાત કુંભલગઢનો કિલ્લો ખાલી કરીને ભાગી ગયા.

દિવેરના યુદ્ધ પછી, પ્રતાપે ગોગુંદા, કુંભલગઢ, બસ્સી, ચાવંડ, જવાર, મદરિયા, મોહી, માંડલગઢ જેવા મહત્વના સ્થળો પર કબજો કર્યો. આ પછી પણ, મહારાણા અને તેમની સેનાએ તેમનું અભિયાન ચાલુ રાખ્યું અને ચિત્તોડ સિવાય મેવાડના તમામ સ્થળો/કિલ્લાઓને મુક્ત કર્યા.

મોટાભાગના મેવાડ પર કબજો કર્યા પછી, મહારાણા પ્રતાપે આદેશ જારી કર્યો કે જો કોઈ એક બિસ્વા જમીન પણ ખેડશે અને મુસ્લિમોને કર ચૂકવશે તો તેનું માથું કાપી નાખવામાં આવશે. આ પછી, મેવાડના બાકીના શાહી સ્થાનો અને તેની નજીકના વિસ્તારોમાં રસદ સંપૂર્ણ સુરક્ષા સાથે અજમેરથી મંગાવવામાં આવી હતી.

દિવેરનું યુદ્ધ માત્ર મહારાણા પ્રતાપના ઈતિહાસમાં જ નહીં પણ મુઘલોના ઈતિહાસમાં પણ ખૂબ જ નિર્ણાયક હતું. મુઠ્ઠીભર રાજપૂતોએ સમગ્ર ભારતીય ઉપખંડ પર શાસન કરનારા મુઘલોના હૃદયમાં ડર જગાડ્યો. દિવારના યુદ્ધે માત્ર મેવાડમાં અકબરની જીતનો અંત લાવ્યો ન હતો, પરંતુ મુઘલોમાં એવો ભય પણ પેદા કર્યો હતો કે અકબરના સમયમાં મેવાડ પર મોટા હુમલાઓ લગભગ બંધ થઈ ગયા હતા.

આ ઘટનાથી ગુસ્સે થઈને અકબરે દર વર્ષે લાખો સૈનિકોની સૈન્ય દળને મેવાડમાં જુદા જુદા સેનાપતિઓની આગેવાની હેઠળ મોકલવાનું ચાલુ રાખ્યું પરંતુ તેને કોઈ સફળતા ન મળી. અકબરે પોતે ૬ મહિના સુધી મેવાડ પર કૂચ કરવાના હેતુથી મેવાડની આસપાસ પડાવ નાખ્યો હતો, પરંતુ તે મહારાણા દ્વારા બહલોલ ખાનને તેના ઘોડા સાથે અડધો ફાડી નાખવાથી ડરતો હતો કે તે ક્યારેય મેવાડ પર કૂચ કરવા સીધો આવ્યો ન હતો.

આ ઈતિહાસના પાના છે જેને વામપંથી ઈતિહાસકારો દ્વારા ઈરાદાપૂર્વક અભ્યાસક્રમમાંથી ગાયબ કરી દેવામાં આવ્યા છે. હવે તેમને પાછા લાવવાનો પ્રયાસ કરી રહ્યાં છે.

———- જનમેજય અઘ્વર્યુ

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🔥 એક નગરમાં એક ગાનારો પોતાની ગાનારી પત્ની સાથે આવી ચડ્યો. તેને થયું કે, રાજદરબારમાં નાચગાનનો જલસો ગોઠવાય તો ઘણાં પૈસા મળશે અને લોકોને નાચગાન ગમી જશે તો એ લોકો પણ આમંત્રણ આપશે. એમ વિચાર કરીને તે પ્રધાનજી પાસે ગયો. નમન કરીને તેણે બધી વાત કરી.
પ્રધાનજી કહે: “તારી વાત બરોબર છે પણ અમારાં રાજાજી બહું જ કરકસર કરનારા છે, કોઈને એક દમડિય અાપે એમ નથી. માટે તારી ઈચ્છા હોય તો જલસો ગોઠવુ પણ ધનની આશા ન રાખવી. પછી જેવું તારું નસીબ”.
ગાયક અને તેની પત્ની આ સાંભળીને જરા નિરાશ થઇ ગયાં. આટલે દૂર આવ્યાં અને ખાલી હાથે પાછા જવું પડે, એ તો સારું ન કહેવાય. એટલે જે થાય તે ખરું એમ વિચારી ગાયકે કહ્યું, ” “પ્રધાનજી ભલે જે ભાગ્યમાં હશે તે થશે, આપ ખુશીથી નાચગાનનો જલસો આજ રાતે ગોઠવો. પણ રાજાજીને કહેજો જોવા આવે”.
રાત પડી અને રાજદરબારમાં પ્રજાજનો નાચગાનનો જલસો જોવા ઉમટી પડ્યાં છે. ઘણાં વખત પછી કંજૂસ રાજાજીએ જલસો ગોઠવ્યો, એટલે બધાં રીજી થઈને આવ્યાં હતાં.
જેમ જેમ રાત વધતી ગઈ તેમ તેમ રસ જામતો ગયો. પણ પેલી કહેવત છે ને? ‘યથા રાજા, તથા પ્રજા! ‘ એટલે કંજૂસ રાજાએ કશી બક્ષિસ ધરી નહિ, તેમ કોઈ ધનિક પ્રજાજને પણ કશી ભેટ ન આપી! અરે, કોઈ ઉત્સાહના સૂર પણ ન કાઢે! રખેને, કંઈ આપવું પડે!.
અર્ધી રાત વહી ગઈ અને પેલી નર્તકી નાચી નાચીને અને ગાઈ ગાઈને લોથપોથ થઈ ગઈ. પણ કોઈએ એક પાઈ પૌસો આપ્યું નહીં. એટલે તેણે પોતાના ગાયક પતિનું ધ્યાન દોરવા એક દુહો લલકાર્યો:-
“રાત ઘડી ભર રહી ગઈ,
પીંજર થાક્યો આંય.
નટકી કહે સૂણ નાયકા,
અબ મધૂરી તાલ બજાય”.
એ સાંભળીને પેલો ગાયક તેનો મર્મ સમજી ગયો. ને તેણે સામે ઉત્તર રૂપે ગાયું:-
” બહોત ગઈ ને થોડી રહી,
થોડી ભી અબ જાય.
થોડી દેર કે કારણે,
તાલમે ભંગ ન થાય”.
આ દુહો ગાતાં નવું જ કૌતુક થયું. સાંભળવા આવેલ લોકોમાં એક સાધુ હતો. તેણે તુરંત જ પોતાનો નવો કીંમતી કામળો પેલા ગાયક તરફ ફેંક્યો. રાજ કુંવરે પોતાનાં હાથનું રત્ન જડિત સાનાનુ કડું તેને ભેટ આપ્યું. અને રાજકન્યાએ પોતાનો મૂલ્યવાન હીરાનો હાર ગળામાંથી કાઢીને પેલા ગાનારને આપ્યો.
આ જોઈને કંજૂસ રાજાને ખૂબ આશ્ચર્ય થયું. એકાએક એવું તે શું બન્યું કે આટલી મોટી કીંમતી ભેટ પેલા ગાનારને ભેટ મળી? તેણે સાધુને પૂછ્યું. ” સાધુ મહારાજ ! આપે અંહી એવું તે શું કૌતુક જોયું કે આપને આપનો નવો કીંમતી કામળો ગાનારને ભેટ આપવાનું મન થયું?”.
સાધુએ કહ્યું, “રાજાજી હું આપને સાચું જ કહીશ.
કેટલાય વર્ષોથી મે સંસાર સુખનો ત્યાગ કર્યો હતો. પણ આજે અંહીનો બધો વૈભવ જોઈને મારું મન ફરીને સંસારસુખો ભોગવવા ઊંચા નીચું થવા લાગ્યું હતું. ત્યાં આ ગાયકે ગાયું કે,
*👉બહોત ગઈ ને થોડી રહી👈*
⏭️થોડી ભી અબ જાય
થોડી દેર કે કારણે
તાલમે ભંગ ન થાય⏮️
એ સાંભળીને મને થયું કે, આટલાં વર્ષો કઠિન તપસ્યા કરીને સાધુ તરીકે ગાળ્યાં, હવે જીવનનાં થોડાં વર્ષો બાકી રહ્યાં છે, ત્યારે શા માટે એ સન્માર્ગથી ચલિત થઈને મારે જીવતર એળે ગુમાવવું? મને એ ગાયકના વચનથી ભાન આવ્યું. માટે મે તેનાં પર ખુશ થઈને મારો એકનો એક કીંમતી કામળો તેને ભેટમાં આપી દીધો”.
પછી રાજાએ તેનાં રાજકુવરને પૂછ્યું, એટલે કુંવર કહે; “પિતાશ્રી, આપને હું સાચી હકીકત કહીશ. એ સાંભળીને આપને જે સજા કરવી હોય તે મને ખુશીથી કરજો. હું આપના કંજૂસ પણાથી કંટાળી ગયો હતો. હું રાજાનો કુંવર હોવા છતાં કંગાળની માફક રહું છું. મને જરાય સુખ નથી. એટલે મે કંટાળી જઈને આપનું કાલે સવારે ખુન કરવાનો વિચાર કર્યો હતો. પરંતુ આ ગાયકના દુહાએ મારાં કુવિચારોને મારી હઠાવ્યો. મને થયું આપ હવે ઘરડાં થયાં છો. વધુમાં વધુ આપ કેટલું જીવવાના છો? માટે હવે થોડો વખત વધારે મુશ્કેલી ભોગવી લઉં તો એમાં શું થઈ ગયું? નાહક આપને મારીને પિતૃહત્યાનુ પાપ શા માટે વહોરી લઉં? એટલે મે કુ વિચાર છોડી દીધો. મને આ ગાયકે જગાડ્યો, તેથી મે ખુશ થઈને મારું કીંમતી કાંડું તેને ભેટમાં આપી દીધું”.
પછી રાજાએ કુંવરીને કારણ પૂછ્યું, એટવે કુંવરીએ જવાબ આપ્યો; ” પિતાશ્રી હું પણ આપને સાચું જ કહીશ. હું હવે મોટી થઈ ગઈ છું. પણ આપ ધનની લાલચમાં મારાં લગ્ન યોગ્ય પાત્ર સાથે કરતાં નથી. જેવાં તેવા માણસનાં હાથમાં મને સોંપી દેશો એવો મને સતત ભય રહે છે. ધનની લાલચ તમને વિવેક કરવા દે એમ નથી. માટે મે પ્રધાનજીના પુત્ર સાથે ક્યાંક નાસી જવાનો વિચાર કર્યો હતો. અને હમણાં થોડાં વખત પહેલાં જ મને થયું કે હવે વિલંબ કરવો ઉચિત નથી. આવતી કાલે જ એ નિર્ણય અમલમાં મૂકી દેવો. ત્યાં તો મે એ દુહો સાંભળ્યો અને મારાં મન પર એનું બહું પરિણામ થયું.મને થયું પિતાજી હવે વૃધ્ધ થયાં છે. હવે વધુ કેટલું જીવશે? પિતાશ્રી પછી ભાઈ ગાદીએ આવશે અને ભાઈ તો ઉદાર દિલનાં છે અને મારાં પર હેત રાખે છે. તો પછી થોડાં વખત માટે થોભી જાઉં તો કશું બગડવાનું નથી. પ્રધાનજીના પુત્ર સાથે નાસી જાઉં તો આપણા કુળને પણ લોકો વગોવે. એનાં કરતાં એવું ન કરવું અે જ યોગ્ય છે. ગાયકના એ દુહાએ મને સાનમાં આણી, માટે મેં ખુશ થઈને મારો કીંમતી હાર તેને ભેટમાં આપી દીધો “.
રાજાજી આ બધું સાંભળીને વિચારમાં પડી ગયાં. તેને પોતાની ભૂલ સમજાઈ. પછી તેણે ગાયક અને તેની પત્નીને ખૂબ ધન આપીને માનભેર વિદાય કર્યા
આ નાનકડી વાર્તા વાંચનાર પણ વિચારજો કે બહોત ગઈ અને થોડી રહી. શાના માટે અને કોના માટે મારે વેર બાંધવાં, અબોલા લેવા, કોઈને ન ગમે તેવું વર્તન જાણી જોઈને કરવું, બહારના કદી મારા થવાના નથી તો શા માટે મારી ઘરની જ વ્યક્તિઓને હું અનહદ પ્રેમ ન આપી શકું કારણ એ તો સદાય મારી સાથે જ રહેવાના છે. ગાયક નો નાનકડો દુહો ઘણા બધા લોકોના જીવનમાં પરિવર્તન લાવી શકે તેમ છે જો તેને ધ્યાનથી વાંચીએ અને સાંભળીએ તો..✒️
🌷 શ્રી સંપ્રદાય🌷

Dilip

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक स्कूल ने अपने युवा छात्रों के लिए एक मज़ेदार यात्रा का आयोजन किया,
रास्ते में वे एक सुरंग से गुज़रे, जिसके नीचे से पहले बस ड्राइवर गुज़रता था।
सुरंग के किनारे पर लिखा था पांच मीटर की ऊँचाइ।

बस की ऊंचाई भी पांच मीटर थी इसलिए ड्राइवर नहीं रुका। लेकिन इस बार बस सुरंग की छत से रगड़ कर बीच में फंस गई, इससे बच्चे भयभीत हो गए।

बस ड्राइवर कहने लगा “हर साल मैं बिना किसी समस्या के सुरंग से गुज़रता हूं, लेकिन अब क्या हुआ?

एक आदमी ने जवाब दिया :

सड़क पक्की हो गई है इसलिए सड़क का स्तर थोड़ा बढ़ा दिया गया है।

वहाँ एक भीड़ लग गयी..

एक आदमी ने बस को अपनी कार से बांधने की कोशिश की, लेकिन रस्सी हर बार रगड़ी तो टूट गई, कुछ ने बस खींचने के लिए एक मज़बूत क्रेन लाने का सुझाव दिया और कुछ ने खुदाई और तोड़ने का सुझाव दिया।

इन विभिन्न सुझावों के बीच में एक बच्चा बस से उतरा और बोला “टायरों से थोड़ी हवा निकाल देते हैं तो वह सुरंग की छत से नीचे आना शुरू कर देगी और हम सुरक्षित रूप से गुज़र जाएंगे।

बच्चे की शानदार सलाह से हर कोई चकित था और वास्तव में बस के टायर से हवा का दबाव कम कर दिया इस तरह बस सुरंग की छत के स्तर से गुज़र गई और सभी सुरक्षित बाहर आ गए।

घमंड, अहंकार, घृणा, स्वार्थ और लालच से हम लोगो के सामने फुले होते हैं। अगर हम अपने अंदर से इन बातों की हवा निकाल देते हैं तो दुनिया की इस सुरंग से हमारा गुज़रना आसान हो जाएगा।

समस्याएं हम में हैं हमारे दुश्मनों की ताक़त में नहीं।

राधा पटेल