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गणेश जी के व्रत का महात्म्य


शरी गणेश जी के व्रत का महात्म्य💐💐*

एक बार महादेवजी पार्वती सहित नर्मदा के तट पर गए। वहाँ एक सुंदर स्थान पर पार्वतीजी ने महादेवजी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की।

तब शिवजी ने कहा- हमारी हार-जीत का
साक्षी कौन होगा?
पार्वती ने तत्काल वहाँ की घास के तिनके बटोरकर एक पुतला बनाया और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा करके उससे कहा- बेटा! हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, किन्तु यहाँ हार-जीत का साक्षी कोई नहीं है। अतः खेल के अन्त में तुम हमारी हार-जीत के साक्षी होकर बताना कि हममें से कौन जीता कौन हारा?

खेल आरंभ हुआ।

दैवयोग से तीनों बार पार्वतीजी ही जीतीं। जब अंत में बालक से हार-जीत का निर्णय कराया गया तो उसने महादेवजी को विजयी बताया। परिणामतः पार्वतीजी ने क्रुद्ध होकर उसे एक पाँव से लंगड़ा होने और वहाँ के कीचड़ में पड़ा रहकर दुःख भोगने का शाप दे दिया।

बालक ने विनम्रतापूर्वक कहा- माँ! मुझसे अज्ञानवश ऐसा हो गया है। मैंने किसी कुटिलता या द्वेष के कारण ऐसा नहीं किया। मुझे क्षमा करें तथा शाप से मुक्ति का उपाय बताएँ।

तब ममतारूपी माँ को उस पर दया आ गई और वे बोलीं- यहाँ नाग-कन्याएँ गणेश पूजन करने आएँगी। उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त करोगे। इतना कहकर वे कैलाश पर्वत चली गईं।

एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्या आई। तब उस बालक ने नागकन्याओं से गणपति बप्पा के व्रत का विधि-विधान पूछा।

उनके बताए अनुसार उस बालक ने 21 चतुर्थी तक बप्पा का व्रत किया।
बालक की भक्ति को देखकर गणपति बप्पा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उस बालक को मनोवांछित वर मांगने को कहा। तब उस बालक ने सिद्धिविनायक से कहां ‘ हे प्रभु’ मुझे इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के पास कैलाश पर्वत पर जा सकूं। तब बप्पा ने तथास्तु कहा।

भगवान श्री गणेश के तथास्तु कहने के बाद वह बालक अपने माता-पिता के पास कैलाश पर्वत पहुंच गया।

वहां उसने भगवान शिव को अपने ठीक होने की पूरी बात बताई। बालक की बात सुनकर भगवान शिव ने भी माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए 21 चतुर्थी का व्रत रखा।

व्रत के प्रभाव से माता पार्वती भी प्रसन्न हो गई।

इसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती को इस व्रत की पूरी महिमा बताई। इस बात को सुनकर माता पार्वती के मन में अपने बड़े पुत्र कार्तिक से मिलने की प्रबल इच्छा जाग उठी।
तब माता पार्वती ने भी 21 चतुर्थी का व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से भगवान कार्तिकेय 21 वें दिन स्वयं ही माता पार्वतीजी से आ मिले। उन्होंने भी माँ के मुख से इस व्रत का माहात्म्य सुनकर व्रत किया।

तभी से यह व्रत संसार में विख्यात हो गया और इसे हर मनोकामना को पूर्ण करने वाला व्रत माना जाने लगा। ऐसा कहा जाता है, कि यदि कोई व्यक्ति 21 चतुर्थी का व्रत पूरी श्रद्धा पूर्वक करें, तो बप्पा उसकी प्रत्येक शुभ मनोकामना अवश्य पूर्ण कर देते हैं।

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ईर्ष्या,क्रोध और अपमान


ईर्ष्या,क्रोध और अपमान💐💐

टोकियो के निकट एक महान मास्टर रहते थे , वो अब वृद्ध हो चुके थे और अपने आश्रम में शिक्षा देते थे ।

एक नौजवान योद्धा , जिसने कभी कोई युद्ध नहीं हारा था ने सोचा की अगर मैं मास्टर को लड़ने के लिए उकसा कर उन्हें लड़ाई में हरा दूँ तो मेरी ख्याति और भी फ़ैल जायेगी और इसी विचार के साथ वो एक दिन आश्रम पहुंचा ।

“ कहाँ है वो मास्टर , हिम्मत है तो सामने आये और मेरा सामना करे .”; योद्धा की क्रोध भरी आवाज़ पूरे आश्रम में गूंजने लगी ।

देखते -देखते सभी शिष्य वहां इकठ्ठा हो गए और अंत में मास्टर भी वहीँ पहुँच गए ।

उन्हें देखते ही योद्धा उन्हें अपमानित करने लगा , उसने जितना हो सके उतनी गालियाँ और अपशब्द मास्टर को कहे . पर मास्टर फिर भी चुप रहे और शांती से वहां खड़े रहे ।

बहुत देर तक अपमानित करने के बाद भी जब मास्टर कुछ नहीं बोले तो योद्धा कुछ घबराने लगा , उसने सोचा ही नहीं था की इतना सब कुछ सुनने के बाद भी मास्टर उसे कुछ नहीं कहेंगे …उसने अपशब्द कहना जारी रखा , और मास्टर के पूर्वजों तक को भला-बुरा कहने लगा …पर मास्टर तो मानो बहरे हो चुके थे , वो उसी शांती के साथ वहां खड़े रहे और अंततः योद्धा थक कर खुद ही वहां से चला गया ।

उसके जाने के बाद वहां खड़े शिष्य मास्टर से नाराज हो गए , “ भला आप इतने कायर कैसे हो सकते हैं , आपने उस दुष्ट को दण्डित क्यों नहीं किया , अगर आप लड़ने से डरते थे , तो हमें आदेश दिया होता हम उसे छोड़ते नहीं !!”, शिष्यों ने एक स्वर में कहा .

मास्टर मुस्कुराये और बोले , “ यदि तुम्हारे पास कोई कुछ सामान लेकर आता है और तुम उसे नहीं लेते हो तो उस सामान का क्या होता है ?”

“ वो उसी के पास रह जाता है जो उसे लाया था .”, किसी शिष्य ने उत्तर दिया .

“ यही बात इर्ष्या , क्रोध और अपमान के लिए भी लागू होती है .”- मास्टर बोले . “ जब इन्हें स्वीकार नहीं किया जाता तो वे उसी के पास रह जाती हैं जो उन्हें लेकर आया था ।

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બેટા .. મારૂ મકાન પણ વેચી માર….જેને અમારી ચિંતા નથી તેની અમારે શા માટે ચિંતા કરવી જોઈએ….?

અમે વાતો કરતા હતા ત્યાં અંદર થી ડોક્ટર આવ્યા…બા ની તબિયત નાજુક છે.. તમારા બાળકો ને બોલાવવા હોય તો બોલાવી લ્યો…કાકા એ મારી સામે જોયું….અમે અંદર દોડતા ગયા…

બા એ કાકા નો હાથ પકડ્યો અને બોલ્યા..
તમારી તબિયત સંભાળજો.. મારી સામે જોઈ કહી કેહવા પ્રયતન કરે એ પહેલાં…કાકી એ સ્વાર્થી દુનિયાથી નાતો છોડી દીધો….કાકા પણ કાકી નો હાથ પકડી ખૂબ રડ્યા..

પછી મક્કમ થઈ બોલ્યા
મારા કોઈ છોકરાઓ ને આ જાણ ન કરવા હાથ જોડી વિનંતી કરી….તેણે પોતાનો મોબાઈલ નંબર પણ બદલી નાખ્યો….જેથી તેના બાળકો ના ફોન ન આવે…

થોડા દિવસ મારે ત્યાં રહ્યા…પછી .તેમણે ઘરડા ઘરમાં રહેવા ની વ્યવસ્થા કરી લીધી…અને તેમનું મકાન પણ તેમણે વેચી નાખ્યું….

મેં કીધું…દોસ્ત. કેમ..કેનેડા ના ફાવ્યુ..
એ બોલ્યો….દોસ્ત… નજર થી દુર એ દિલ થીં..દુર..
મારા પુત્ર ને કે તેની પત્ની ને અમારી હાજરી કે લાગણી ની કોઈ કિંમત જ નથી.. તો શા માટે અમારે ત્યાં રહેવું જોઈયે ..અમને ભૂતકાળ મા એવા સરસ સાચવ્યા અને રાખ્યા હતા..પણ અમે ભોળા હતા અમને ખબર થોડી હતી કે એ લોકો નો સ્વાર્થ હતો ..તેમના છોકરા મોટા કરવા નો….એતો.પૂરો થઈ ગયો..હવે અમારી હાજરી ખૂંચવા લાગી…

મારે..મારા મિત્ર ને કેમ સમજાવવો..કે હે.. દોસ્ત..
તું ખોટા સમયે આવ્યો છે…પંખી નો…માળો પીંખાઇ ગયા પછી આવવા નો મતલબ નથી…રહેતો
તું તારા ઘર ને તાળું જોવે છે…એ ઘર હવે તારું નથી….
તેનો માલિક તો ક્યાર નો બદલાઈ ગયો છે…..
તારા બાપ સામે આંખ મેળવી ઉભવા લાયક પણ તું નથી રહ્યો.
તેં તારા બાપ ને રસ્તા ઉપર લાવી દીધો….તારા છોકરા એ તને રસ્તા ઉપર લાવી દીધો….

મેં જ્યારે મક્કમ થઈ બધી હકીકત તેને જણાવી..ત્યારે તે માથે હાથ મૂકી ખૂબ રડ્યો….અને બોલ્યો…
હવે તો અમારે પણ ઘરડાઘર જ ગોતવાનો વારો આવ્યો..

મિત્રો…
માઁ બાપ ના આંસુનું વજન માપવા નો પ્રયત્ન કદી ન કરતા..
પસ્તાશો….

કારણ કે…
માઁ બાપ ની હાય અને લાચાર માણસના આંસુ
એ દુનિયાની સૌથી મોંઘી પ્રોડક્ટ છે,
એનું બિલ સીધું ઉપરવાળાના દરબારમાં જ ફાટે છે…

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गजब का मंत्र


गजब का मंत्र

सोने के व्यापारी परेश भाई ने बाजार में से चंदन भाई की दुकान से 20,000₹ का टीवी खरीदा।

टीवी के व्यापारी चंदन भाई ने 20,000 रुपए का व्यापार होते ही बाजार में से अपने घर के लिए। लक्ष्मी सेंट्री से पानी की नई मोटर और प्लंबिंग का सामान खरीदा। और राजन मिस्त्री को दिए।

प्लंबिंग के व्यापारी ने अपनी जरूरत के हिसाब से उसी बाजार में पूजा गारमेंट से readymade कपड़े खरीदे ।

कपड़े वाले ने परेश भाई की शॉप (बाजार) से उसी पैसे से अपनी पत्नी के लिए सोने की अंगूठी खरीदारी की….

मतलब कि वही पैसा घूम के वापस परेश भाई के पास आया और सबका व्यापार हुआ….

अब यहां सवाल यह है कि परेश भाई ने टीवी ऑनलाइन खरीदा होता तो ??
तो वह पैसे कहां जाते? 😔😔😔😔

अगर आप भारतीय हैं तो दिमाग लगाएं….
लोकल मार्केट से ही खरीदी करेंगे तो आपके पैसे आपके शहर में ही रहेंगे, आपका शहर और वहाँ का व्यापार मजबूत होगा। रोजगार व पैसा शहर में बना रहेगा। दुकान कर रहे व्यापारी, सेल्शमेन, हेल्पर, उनका परिवार

ऑनलाइन खरीदारी में दिया गया पैसा मात्र कुछ चुनिंदा शहरों के अलावा विदेशों में भी चला जाएगा …

इसलिए सस्ते माल की लालच में ना आएं और अपने मार्केट से ही खरीदारी करें…. साथ ही अपनी सेहत भी अच्छी होगी। अब सामना लेने के लिए चलना तो पड़ेगा ना।

खुद ही खुद को सेठ और अपने शहर को समृद्ध बनाएं…. इस कहानी में दो बाते सीखने की है। क्या करे किसे करे। बाकी आप समझदार है। राधे 🪷 राधे

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कर्तव्य


कर्तव्य💐💐

ये क्या कर रही हो निशा तुम…..अपनी पत्नी निशा को कमरे में एक और चारपाई बिछाते देख मोहन ने टोकते हुए कहा …

निशा -मां के लिए बिस्तर लगा रही हूं आज से मां हमारे पास सोएगी….

मोहन-क्या ….. तुम पागल हो गई हो क्या …

यहां हमारे कमरे में …और हमारी प्राइवेसी का क्या …

और जब अलग से कमरा है उनके लिए तो इसकी क्या जरूरत…

निशा-जरूरत है मोहन …..जब से बाबूजी का निधन हुआ है तबसे मां का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता तुमने तो स्वयं देखा है पहले बाबूजी थे तो अलग कमरे में दोनों को एकदूसरे का सहारा था मगर अब ….मोहन बाबूजी के बाद मां बहुत अकेली हो गई है दिन में तो मैं आराध्या और आप उनका ख्याल रखने की भरपूर कोशिश करते है ताकि उनका मन लगा रहे वो अकेलापन महसूस ना करे मगर रात को अलग कमरे में अकेले ….नहीं वो अबसे यही सोएगी…

मोहन-मगर अचानक ये सब …कुछ समझ नहीं पा रहा तुम्हारी बातों को…।

निशा-मोहन हर बच्चे का ध्यान उसके माता पिता बचपन में रखते हैं सब इसे उनका फर्ज कहते हैं वैसे ही बुढ़ापे में बच्चों का भी तो यही फर्ज होना चाहिए ना…“और मुझे याद है मेरा तो दादी से गहरा लगाव था मगर दादी को मम्मी पापा ने अलग कमरा दिया हुआ था …और उसरात दादी सोई तो सुबह उठी ही नहीं …” डाक्टर कहते थे कि आधी रात उन्हें अटैक आया था जाने कितनी घबराहट परेशानी हुई होगी और शायद हममें यसे कोई वहां उनके पास होता तो… शायद दादी कुछ और वक्त हमारे साथ …मोहन जो दादी के साथ हुआ वो मैं मां के साथ होते हुए नहीं देखना चाहती …और फिर बच्चे वहीं सीखते है जो वो बड़ो को करते देखते हैं मैं नहीं चाहती कल आराध्या भी अपने ससुराल में अपने सास ससुर को अकेला छोड़ दे उनकी सेवा ना करें …आखिर यही तो संस्कारों के वो बीज है जोकि आनेवाले वक्त में घनी छाया देनेवाले वृक्ष बनेंगे …।

मोहन उठा और निशा को सीने से लगाते बोला-मुझे माफ करना निशा… अपने स्वार्थ में.. मैं अपनी मां को भूल गया अपने बेटे होने के कर्तव्य को भूल गया …और फिर दोनों मां के पास गए और आदरपूर्वक उन्हें अपने कमरे मे ले आए….

घर का प्रत्येक सदस्य अपना कर्तव्य क्या है ये बात जिस दिन समझ लेगा हमारा घर साक्षात स्वर्ग बन जायेगा!

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अंगूठी चोर💐💐

महाराजा कृष्ण देव राय एक कीमती रत्न जड़ित अंगूठी पहना करते थे। जब भी वह दरबार में उपस्थित होते तो अक्सर उनकी नज़र अपनी सुंदर अंगूठी पर जाकर टिक जाती थी। राजमहल में आने वाले मेहमानों और मंत्रीगणों से भी वह बार-बार अपनी उस अंगूठी का ज़िक्र किया करते थे।

एक बार राजा कृष्ण देव राय उदास हो कर अपने सिंहासन पर बैठे थे। तभी तेनालीराम वहाँ आ पहुंचे।

उन्होने राजा की उदासी का कारण पूछा। तब राजा ने बताया कि उनकी पसंदीदा अंगूठी खो गयी है, और उन्हे पक्का शक है कि उसे उनके बारह अंग रक्षकों में से किसी एक ने चुराया है।

चूँकि राजा कृष्ण देव राय का सुरक्षा घेरा इतना चुस्त होता था की कोई चोर-उचक्का या सामान्य व्यक्ति उनके नज़दीक नहीं जा सकता था।
तेनालीराम ने तुरंत महाराज से कहा कि-

मैं अंगूठी चोर को बहुत जल्द पकड़ लूँगा।

यह बात सुन कर राजा कृष्ण देव राय बहुत प्रसन्न हुए। उन्होने तुरंत अपने अंगरक्षकों को बुलवा लिया।

तेनालीराम बोले, “राजा की अंगूठी आप बारह अंगरक्षकों में से किसी एक ने की है। लेकिन मैं इसका पता बड़ी आसानी से लगा लूँगा। जो सच्चा है उसे डरने की कोई ज़रुरत नहीं और जो चोर है वह कठोर दण्ड भोगने के लिए तैयार हो जाए।”

तेनालीराम ने बोलना जारी रखा, “आप सब मेरे साथ आइये हम सबको काली माँ के मंदिर जाना है।”

राजा बोले, ” ये क्या कर रहे हो तेनालीराम, हमें चोर का पता लगाना है मंदिर के दर्शन नहीं कराने हैं!”

“महाराज, आप धैर्य रखिये जल्द ही चोर का पता चल जाएगा।”, तेनालीराम ने राजा को सब्र रखने को कहा।

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By: *Dr.Sharad Thakar…*

૧૯૨૮ના ડિસેમ્બરની એક સર્દ રાત. લાહોરનું એક શાંત મકાન.
પતિ ક્યાંક બહારગામ ગયેલો છે.
ઘરમાં માત્ર વીસ વર્ષની ગૃહલક્ષ્મી હાજર છે અને એની ગોદમાં છે એક વર્ષનો પુત્ર.અંધકારની પછેડી ઓઢીને એક યુવાન ઘરમાં પ્રવેશે છે. ધીમેથી પૂછે છે…

‘દુગૉભાભી !
એક કામ કરવાનું છે. કરશો ?’

‘ભાઈ,
મારાથી એકલીથી
થઈ શકે તેવું હોય તો ફરમાવો,
તમારા મિત્ર તો કોલકાતા માં બેઠા છે.’

ભાભી એ જવાબ આપ્યો…

‘એ હોત તો પણ આ કામ તો તમારે એકલાંએ જ કરવું પડ્યું હોત.’

યુવાન આટલું બોલીને અટકયો,
પછી મુદ્દાની વાત પર આવી ગયો,

‘એક માણસને લાહોરમાંથી ભગાડવાનો છે.’

‘કોણ છે ?’ દુગૉએ પૂછ્યું.

‘નામ નહીં જણાવું,
કામ જણાવું છું. એ એક ક્રાંતિકારી છે. થોડાક દિવસ પહેલાં જ એણે એક અંગ્રેજનું ખૂન કર્યું છે. જો પકડાશે તો એને ફાંસીની સજા થશે. સરકાર લાહોર ની ધૂળમાં એનું પગેરું શોધી રહી છે. શહેરમાંથી બહાર જવાના એક-એક માર્ગ પર પોલીસ નજર રાખીને બેઠી છે. કોઈ વાહન ચેકિંગ વગર છટકી શકતું નથી. ભાભી, હા પાડતાં પહેલાં, વિચાર કરી લેજો. જાનનું જોખમ છે. ગોળી પણ ચાલી શકે છે.’

‘હું તૈયાર છું.
મારે શું કરવાનું છે ?’

વીસ વર્ષની યુવતી જીવતો સાપ હાથમાં પકડવા માટે તૈયાર થઈ ગઈ.

‘આજે મોડી રાત્રે એ યુવાન અહીં પહોંચી જશે. હું જ એને લઈને આવી પહોંચીશ. એનો ચહેરો-મહોરો પૂરા હિન્દુસ્તાન માં હવે તો જાણીતો બની ચૂકયો છે. માટે એણે પૂરો વેશપલટો કરી લીધો હશે. એ હિન્દુસ્તાન માં રહેતા અંગ્રેજ સાહેબ ના ગેટઅપમાં સજજ હશે. સાથે એનો નોકર પણ હશે.‘

‘નોકર તો નિર્દોષ હશે ને ?’

દુગૉએ પૂછ્યું…

‘ના, એ પણ ક્રાંતિકારી છે.
આપણે મન ક્રાંતિવીર અને અંગ્રેજો માટે આતંકવાદી છે. તમારે ગોરી મેમસાહેબ બનીને પેલા બડા બાબુની સાથે પ્રવાસમાં સામેલ થવાનું છે. ક્રાંતિકારી ની પત્ની બનીને. સાથે તમારો દીકરો હશે. પોલીસ ને ખબર છે કે એ યુવાન કુંવારો છે, એટલે તમને ત્રણેય ને સાથે જોઈને કોઈને શંકા નહીં પડે.’

‘ક્યાં જવાનું છે?
ક્યારે નીકળવાનું છે? કઈ રીતે?’

‘કાલે સવારે કોલકાતા એક્સપ્રેસના ફર્સ્ટ કલાસમાં રવાના થવાનું છે. ટિકિટો આવી ગઈ છે. પહોંચવાનું છે કોલકાતા.’

‘અરે !
તમારા ભાઈ ત્યાં જ ગયા છે.
આજે સવારે જ એમની સાથે વાત થઈ,
એ પૂછતા હતા કે કોંગ્રેસ નું અધિવેશન આ વરસે કોલકાતામાં ભરાવાનું છે, હું એમાં હાજરી આપવા જવાની છું કે નહીં ?’

‘તમે શો જવાબ આપ્યો, ભાભી ?’

‘મેં ના પાડી,
પણ હવે હું જઈશ.
પતિને મળવા માટે નહોતી જવાની,
પણ હવે એક દેશભકતને ભગાડવા માટે જઈશ. હે ભગવાન! મારી સહાય કરજે! મારા પતિના મનમાં કશી ગેરસમજ ન પ્રગટે!’

ચર્ચા પૂરી થઈ.
મોડી રાત્રે ત્રણ યુવાનો ખડકી માં દાખલ થયા. ગોરાસાહેબે યુરોપિયન ઓવરકોટ, પેન્ટ અને બૂટ પહેર્યાં હતાં.

માથા પર તીરછી અદામાં ફેલ્ટ હેટ ધારણ કરેલી હતી. સાથે જાણે છેલ્લી સાત પેઢીથી નોકર પરંપરા ચાલી આવતી હોય એના વારસદાર જેવો એક નોકર હતો. દુગૉભાભી એ બંનેની સામે ધારી ધારીને જોઈ રહ્યાં. પહેલાં તો એ બંને ઓળખાયા જ નહીં, પછી જ્યારે ઓળખાયા ત્યારે દુગૉભાભી નાં મુખમાંથી આશ્ચર્ય મિશ્રિત શબ્દો સરી પડ્યા..

‘અરે !
આ તો આપણો ભગત છે !’

હા, એ દેશી બાબુ હતા ક્રાંતિવીર ભગતસિંહ. સાથેનો નોકર હતો રાજગુરુ અને એમને લઈને આવનાર હતો સુખદેવ. ભારત માતાના લલાટ ઉપરના સૌથી તેજસ્વી સિતારા એવા આ ત્રણ સરફરોશ ક્રાંતિકારીઓ બહુ નજીક ના ભવિષ્ય માં શહીદે આઝમ બનીને ઈતિહાસ માં અમર થઈ જવાના હતા.

અત્યારે તો અંગ્રેજ પોલીસ અમલદાર સોંડર્સની હત્યા કરીને એ ત્રણેય લાહોર છોડી જવાની ફિરાકમાં હતા અને એમને મદદ કરવાના હતા એમના જ એક ક્રાંતિકારી મિત્ર ભગવતીચરણ બોહરા ની પત્ની…દુગૉદેવી.

ભગવતીચરણ મૂળ ગુજરાત ના નાગર યુવાન હતા, પણ પંજાબ માં સ્થાયી થયાં હતાં. એમની પત્ની દુગૉ જ્યારે લગ્ન કરીને આવી હતી ત્યારે સામાન્ય, અશિક્ષિત અને અબુધ બાળા જેવી હતી. પતિનું પડખું સેવતાં-સેવતાં એ સસલી મટીને સિંહણ બની ગઈ હતી. અંગ્રેજી અને સંસ્કૃત પણ શીખી રહી હતી. એની ગોદમાં રમી રહેલા એક વર્ષના પુત્ર શચિને તો ભાન પણ ક્યાંથી હોય કે આવતી કાલે સવારે એ ભારત ના સ્વાતંત્રય સંગ્રામ ની એક મહત્વ ની ઘટના નું અતિમહત્વ નું પાત્ર બની જવાનો છે ?!

સવારે ભગતસિંહ કોલકાતા એક્સપ્રેસના ફર્સ્ટ કલાસના ડબ્બામાં ચડ્યા ત્યારે પ્લેટફોર્મ ઉપર ખડકાયેલા પોલીસમેનો પાઘડીધારી શિખ આતંકવાદીને પકડી પાડવા માટે આમથી તેમ ફાંફાં મારી રહ્યા હતા. ભગતસિંહે લાંબા કેશ કપાવી નાખ્યા હતા. ઓવરકોટનો કોલર ઊભો કરીને ચહેરાને અડધો-પડધો ઢાંકી લીધો હતો. તીરછી હેટ બાકીનું કામ પૂરી કરી આપતી હતી. તેમ છતાં જો કોઈ પોલીસ એમની તરફ ઝીણી નજરે જોવાનો પ્રયત્ન કરે, તો એમણે તેડેલો ‘પુત્ર’ શચિ જાણે પિતાને વહાલ કરતો હોય એવી અદામાં ગાલ પર ચૂમી કરી લેતો હતો. સાથે મેમસાહેબ બનેલાં દુગૉભાભી લાંબું ફ્રોક ચડાવીને ઊંચી એડીના સેન્ડલ પહેરીને ‘ખટ-ખટ’ કરતાં ચાલી રહ્યાં હતાં. નાગરાણી હતાં એટલે રૂપાળાં તો હતાં જ, ઉપરથી ગાલ ઉપર પાઉડરનો થર ! ગોરી મે’મ પણ એમની આગળ હબસણ જેવી લાગે એવો ઠાઠ હતો.

અંગ્રેજ પોલીસ ફાંફાં મારતી રહી ગઈ અને ગાડી રવાના થઈ ગઈ. રેલવેના આજ સુધીના ઈતિહાસ માં કોઈ ટ્રેન આવા અને આટલા મોંઘેરા મુસાફરો સાથે ઊપડી નહીં હોય. બાજુના થર્ડ કલાસના ડબ્બામાં ભજન ગાતાં બાવાઓની જમાતમાં એક બાવો બનીને પ્રવાસ કરી રહ્યા હતા ચંદ્રશેખર આઝાદ. આ ચારેય જણા પછીથી આથમી ગયા. જિંદગી જેને સાચવી શકવાની ન હતી, એમને આ ટ્રેન સાચવીને લઈ જતી હતી.

કોલકાતાના રેલવે સ્ટેશને ભગવતીચરણ બોહરા પત્નીને અને સાથીદારોને લેવા માટે આવ્યા. એમને તાર દ્વારા સમાચાર મળી ગયા હતા. એ દુગૉને શોધતા હતા, ત્યાં એક અંગ્રેજ મેડમ સામે આવીને ઊભી રહી ગઈ…

‘મને ઓળખી ?’

પતિ એ પત્ની ને તો ન ઓળખી,
પણ એના અવાજને ઓળખ્યો. પોતાના મિત્રના પ્રાણ બચાવનાર પત્ની માટે છાતીમાંથી પ્રેમના સાત દરિયા સામટા ઊછળી પડ્યા. એ આટલું જ બોલ્યા…

‘તને મેં આજે જ ઓળખી, દુગૉ !’

આજથી લગભગ અંશી વર્ષ પૂર્વેની ઘટના.

રૂઢિચુસ્ત ભારતની એક સંસ્કારી નારી પોતાનાં પતિ ના મિત્ર ની પરણેતર બની ને ટ્રેનના એકાંત ડબ્બામાં પ્રવાસ ખેડે, કોલકાતા પહોંચ્યા પછી પણ ડોળ ચાલુ રાખવા ખાતર પારકા જુવાન સાથે હોટલ ના કમરામાં રાત ગુજારે અને એનો પતિ એની પવિત્રતા નો સ્વીકાર કરે,

આ …‘ન ભૂતો ન ભવિષ્યતિ’

જેવી ઘટના છે.
ભગવાન રામ પણ સીતાજી સાથે આવું નહોતા કરી શક્યા. ભગતસિંહ કોલકાતા જઈને બંગાળી ક્રાંતિકારીને મળ્યા, એમની પાસેથી બોમ્બ બનાવવાનું શીખ્યા અને પછી ધારાસભામાં બોમ્બવિસ્ફોટ કર્યો. પછી ફાંસીએ ચડી ગયા. નહીં ઓવરકોટ, નહીં પેન્ટ, નહીં હેટ, માત્ર બસંતી રંગનો ચોળો ધારણ કરીને ચાલ્યા ગયા.
Courtesy : Bhaskar Shukla

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक आदमी था जो कॉन्वेंट स्कूल में पीरियड और छुट्टी का घण्टी बजाता था…. टन..टन..टन..टन..टन..

एक दिन स्कूल के नए प्रिंसिपल की नज़र उस पर गयी तो उससे पूछ बैठे उसके बारे में…कितना पढ़े लिखे हो जी ??

आदमी ने बड़े मासूमियत से कहा…साहब, अनपढ़ हूँ ।

प्रिंसिपल को ये जानकर हैरत हुई कि उनके इस प्रतिष्ठित स्कूल का घंटी बजाने वाला कर्मचारी अनपढ़ है ।

उन्होंने कहा कि ये नही हो सकता और फ़िर उस घंटा बजाने वाले को स्कूल से निकाल दिया गया।

अब वो बेचारा क्या करे , कुछ काम नही , भूखे मरने की नौबत, तो किसी ने उसपर दया करके सलाह दी कि वहाँ उस रास्ते पर समोसा बेचो , कुछ तो कमाई होगी ।

फ़िर उसने समोसे बेचना शुरू किया ।

ऊपरवाले की कृपा रही और उसकी जीतोड़ मेहनत कि दुकान चल निकली ।

खोमचे से गुमटी हुआ , गुमटी से बड़ा दुकान , फिर बाजार की सबसे फेमस दुकान ।

जब उसका धंधा आगे बढा तो उसने अपने बच्चों को भी इस काम मे लगा कर और दूसरे धंधे आजमाए ।

आगे चलकर वो शहर का जाना माना सेठ बन गया ।उसके कई प्रतिस्ठान हो गए ।

उसकी ख्याति सुन एक पत्रकार आया उसका इंटरव्यू लेने ।

बाकी बातों को पूछने के बाद उसने पूछा कि आप कहाँ तक पढ़े हैं ।

पत्रकार को भी ये जानकर बड़ी हैरत हुई कि इतना बडा सेठ तो बिलकुल अनपढ़ है ।

पत्रकार ने कहा कि आप नही पढ़े लिखे हैं फिर भी इतना बड़ा ब्यापार किए , इतने सफल है ।
मैं सोच रहा हूँ कि अगर आप पढ़े होते तो क्या कर रहे होते ।

सेठ ने कहा – स्कूल में घण्टी बजा रहा होता ।🙄😅😁😂