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#એકસુંદર_બોધકથા
‌ એક જંગલમાં સિંહ સિંહણ પોતાના બચ્ચાને એકલા છોડીને શિકાર માટે દૂર નીકળી ગયા જ્યારે તે લાંબા સમય સુધી પરત ન ફર્યો તો બચ્ચા ભૂખથી રડવા લાગ્યા.
એ વખતે એક બકરી ત્યાં ઘાસ ચરતી હતી સિંહના બચ્ચાને ભૂખથી પીડાતા જોઈને તેને દયા આવી અને તેણે બચ્ચાઓને પોતાનું દૂધ પીવડાવ્યું પછી બચ્ચા ફરીથી રમવા લાગ્યા.
પછી સિંહ સિંહણ આવ્યા સિંહ બકરી પર હુમલો કરવા જતો હતો એ વખતે બચ્ચાં એ કહ્યું કે બકરી એ અમને દૂધ પીવડાવીને ઉપકાર કર્યો છે નહીં તો અમે મરી ગયા હોત.
પછી સિંહ ખુશ થયો અને આભારની ભાવના સાથે બોલ્યો અમે તમારો ઉપકાર ક્યારેય ભૂલીશું નહીં જાઓ હવે જંગલમાં મુક્તપણે ફરો અને મજા કરો.
હવે બકરી જંગલમાં નિર્ભયતાથી રહેવા લાગી સિંહની પીઠ પર બેસીને પણ તે ક્યારેક ઝાડના પાંદડા ખાતી હતી.
એક ગરુડે આ દ્રશ્ય જોયું આશ્ચર્યચકિત થઈને બકરીને પૂછ્યું ત્યારે તેને ખબર પડી કે ઉપકારનુ કેટલું મહત્વ છે.
ગરુડને લાગ્યું કે હું પણ ઉપકાર કરું થોડે દૂર ઉંદરોના બચ્ચા કાદવમાં ફસાયા હતા. તે બહાર નીકળવાની ઘણી કોશિશ કરતા પરંતુ બધા પ્રયત્નો વ્યર્થ જતા હતા.ગરુડ તેમને પકડીને સલામત સ્થળે લઈ ગયો બચ્ચા ભીના હોઇ ઠંડીથી ધ્રૂજી રહ્યા હતા.ગરુડે તેમને તેની પાંખોમાં ઢાંકી દીધા જેથી બચ્ચા ને ઘણી હુફ મળી.થોડા સમય પછી જ્યારે ગરુડ ઉડવા ગયુ ત્યારે તે ઉડી ન શક્યુ કારણ કે ઉંદરોના બચ્ચાઓએ તેની પાંખો ચાવી ખાધી હતી.
જ્યારે ગરુડે બકરીને પૂછ્યું કે તેં પણ ઉપકાર કર્યો અને મેં પણ કર્યો તો પછી તેનું ફળ આપણને અલગ અલગ કેમ મળ્યું?
બકરી હસી પડી અને ગંભીરતાથી બોલી…. સિંહો પર ઉપકાર કરાય ઉંદરો પર નહીં, કારણકે કાયર ક્યારેય ઉપકાર યાદ રાખતા નથી અને બહાદુર ક્યારેય ઉપકાર ભૂલતા નથી.🌻
By ~ Dipak Rathod

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એક જૂની વાર્તા
એક ગામ માં કોઈ, મહેમાન આવ્યા.. તેમણે ગામ ની શેરી માં.. પગ મૂક્યો ને જોયું તો, કેટલાક કુતરા હતા, પણ બધાય નાં, કાન, નાક, પગ. માં ઈજા થયેલી હતી, મહેમાને પૂછ્યું… આ તમારા ગામ ના કુતરા કેમ તંદુરસ્ત નથી… કેમ બધાય ને કોઈ ને કોઈ દર્દ છે. .
એ મહેમાન નાં સગા બોલ્યા:- એમાં એવુ છે ને કે, ચૂંટણી આવી છે, એમાં દિલ્હી નો ઠગ રોજ કુતરા ને રોટલી આપે છે એટલે આવું થયું…
મહેમાન કહે એ તો સારી વાત કહેવાય. રોટલી ખાઈ ને તો કુતરા તંદુરસ્ત થાય….
મહેમાન નાં સગા કહે, એ દિલ્હી નો ઠગ, 22 કુતરા વચ્ચે બે રોટલી નાખે છે, એટલે.. લડી, લડી ને આ બધાય કુતરા ઘવાયા છે!!

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अभ्यास का महत्त्व


💐💐अभ्यास का महत्त्व💐💐

प्राचीन समय में विद्यार्थी गुरुकुल में रहकर ही पढ़ा करते थे। बच्चे को शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरुकुल में भेजा जाता था।


बच्चे गुरुकुल में गुरु के सानिध्य में आश्रम की देखभाल किया करते थे और अध्ययन भी किया करते थे।
वरदराज को भी सभी की तरह गुरुकुल भेज दिया गया।



वहां आश्रम में अपने साथियों के साथ घुलने मिलने लगा।
लेकिन वह पढ़ने में बहुत ही कमजोर था।



गुरुजी की कोई भी बात उसके बहुत कम समझ में आती थी। इस कारण सभी के बीच वह उपहास का कारण बनता है।




उसके सारे साथी अगली कक्षा में चले गए लेकिन वो आगे नहीं बढ़ पाया।
गुरुजी जी ने भी आखिर हार मानकर उसे बोला, “बेटा वरदराज! मैने सारे प्रयास करके देख लिये है।



अब यही उचित होगा कि तुम यहां अपना समय बर्बाद मत करो।



अपने घर चले जाओ और घरवालों की काम में मदद करो।”




वरदराज ने भी सोचा कि शायद विद्या मेरी किस्मत में नहीं हैं। और भारी मन से गुरुकुल से घर के लिए निकल गया गया।




दोपहर का समय था। रास्ते में उसे प्यास लगने लगी।




इधर उधर देखने पर उसने पाया कि थोड़ी दूर पर ही कुछ महिलाएं कुएं से पानी भर रही थी। वह कुवे के पास गया।




वहां पत्थरों पर रस्सी के आने जाने से निशान बने हुए थे,तो उसने महिलाओ से पूछा, “यह निशान आपने कैसे बनाएं।”
तो एक महिला ने जवाब दिया, “बेटे यह निशान हमने नहीं बनाएं। यह तो पानी खींचते समय इस कोमल रस्सी के बार बार आने जाने से ठोस पत्थर पर भी ऐसे निशान बन गए हैं।”
वरदराज सोच में पड़ गया।




उसने विचार किया कि जब एक कोमल से रस्सी के बार-बार आने जाने से एक ठोस पत्थर पर गहरे निशान बन सकते हैं तो निरंतर अभ्यास से में विद्या ग्रहण क्यों नहीं कर सकता।



वरदराज ढेर सारे उत्साह के साथ वापस गुरुकुल आया और अथक कड़ी मेहनत की।


गुरुजी ने भी खुश होकर भरपूर सहयोग किया।
कुछ ही सालों बाद यही मंदबुद्धि बालक वरदराज आगे चलकर संस्कृत व्याकरण का महान विद्वान बना। जिसने लघुसिद्धान्‍तकौमुदी, मध्‍यसिद्धान्‍तकौमुदी, सारसिद्धान्‍तकौमुदी, गीर्वाणपदमंजरी की रचना की।

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दो परिवार


💐💐दो परिवार💐💐




दो परिवार एक दूसरे के पड़ोस में ही रहते थे। एक परिवार हर वक्त लड़ता था जबकि दूसरा परिवार शांति से और मैत्रीपूर्ण रहता था।



एक दिन, झगड़ालू परिवार की पत्नी ने शांत पडोसी परिवार से ईर्ष्या महसूस करते हुए अपने पति से कहा, “अपने पडोसी के वहा जाओ और देखो की इतने अच्छे तरीके से रहने के लिए वो क्या करते हैं।”
पति वहा गया, और छुप के चुपचाप देखने लगा।




उसने देखा कि एक औरत फर्श पर पोछा लगा रही हैं। अचानक किचन से कुछ आवाज आने पर वो किचन में चली गई।




तभी उसका पति एक रूम कि तरफ भागा। उसका ध्यान नहीं रहने के कारण फर्श पर रखी बाल्टी से ठोकर लगाने के कारण बाल्टी का सारा पानी फर्श पर फेल गया।



उसकी पत्नी किचन से वापिस आयी और अपने पति से बोली, “आई एम सॉरी, डार्लिंग। यह मेरी गलती थी कि मेने रास्ते से बाल्टी को नहीं हटाया।”
पति ने जवाब दिया, ” नहीं डार्लिंग, आई एम सॉरी। क्योकि मेने इस पर ध्यान नहीं दिया।”



झगड़ालू परिवार का पति जो छुपा हुआ था वापस घर लोट आया। तो उसकी पत्नी ने पडोसी की खुशहाली
का राज पूछा।




पति ने जवाब दिया, “उनमे और हम में बस यही अंतर हैं कि हम हमेशा खुद सही होने कि कोशिश करते हैं… एक दूर को गलती के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। जबकि वो हर चीज़ के लिए खुद जिम्मेदार बनते हैं और अपनी गलती मानने के लिए तैयार रहते हैं।”



दोस्तों एक खुशहाल और शांतिपूर्ण रिलेशन के लिए जरुरी हैं कि हम अपने अहंकार(Ego) को साइड में रखे और अपने स्वयं के हिस्से के लिए व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी को ध्यान में रखे।
एक दूसरे को दोषी ठहराने से दोनों का नुकसान होता हैं और अपने रिलेशन भी खराब हो जाते हैं।
दोस्तों परिवार में दूसरे की जीत भी अपनी जीत होती हैं। अगर हम बहस करके दूसरे सदस्य को नीचा दिखा दे, ये उसकी हार नहीं बल्कि आपकी हार हैं।



इसीलिए परिवार को तोडना नहीं जोड़ना सीखे, ऐसा करने से आप एक खुशहाल और शांति पूर्ण परिवार का हिस्सा बन जायेंगे।

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बाइज्जत बरी


💐💐बाइज्जत_बरी💐💐



“सुनो! मैं जरा बुटीक से होकर आती हूं।”
“हां। ठीक है।”
वह अपने मोबाइल में म्यूजिक ऑन कर कान में हेडफोन लगा लैपटॉप पर ऑफिस का कुछ काम निपटाने लगा और वह कुछ याद आते ही किचन में चली गई।
“बाबू सो रहा है! इसलिए यहीं छोड़ जाती हूं। दूध का बॉटल किचन के प्लेटफार्म पर रखा है अगर रोए तो पिला देना।”
किचन से बाहर आ उसकी तरफ पीठ किए लैपटॉप के स्क्रीन पर नजरें गड़ाए पति को सब कुछ एक सांस में समझा वह ऑनलाइन बुक किए ऑटो के ड्राइवर का फोन रिसीव कर जल्दबाजी में अपने फ्लैट से निकल लिफ्ट में आ गई।
नीचे सामने गेट पर ही ऑटो खड़ा था लेकिन जाने क्यों उसके चेहरे पर आज पहली बार अपने दूधमुहें बच्चे को छोड़ अकेले बाहर निकलने का दर्द थोड़ी देर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होने के सुकून से बड़ा था।
ऑटो में बैठते ही वह दर्द अचानक बढ़ गया, उससे रहा नहीं गया
“भैया दो मिनट रुकेंगे? कुछ छूट गया है।”
“ठीक है मैडम! थोड़ा जल्दी कीजिएगा।”
ऑटो ड्राइवर बिना झल्लाए रुका रहा और वह तेजी से वापस मुड़ी।
लिफ्ट भी मानो उसके इंतजार में ग्राउंड फ्लोर पर ही स्थिर था। लिफ्ट के भीतर प्रवेश कर उसने पांचवी मंजिल का बटन दबा दिया और लिफ्ट तेजी से बिना किसी अन्य मंजिल पर रुके सीधा पांचवी मंजिल पर जा पहुंचा।
लिफ्ट से बाहर आते ही उसके कानों से बच्चे के रोने की आवाज टकराई। बच्चा जाग गया था। दरवाजा भिड़ा था लेकिन भीतर से अभी भी उसके इंतजार में खुला था मतलब भीतर मौजूद शख्स ने उठकर कुंडी लगाना भी जरूरी नहीं समझा था। वह लगभग दौड़ती भीतर प्रवेश कर गई सब कुछ यथास्थान जस का तस था। नींद से जागा बच्चा खुद को अकेला समझ बेतहाशा रो रहा था और हेडफोन लगा लैपटॉप पर नजरें गड़ाए बच्चे की ओर पीठ किए इंसान वास्तविकता से बेखबर अपनी अलग दुनिया में व्यस्त था।
उसने बच्चे को गोद में उठा सीने से लगा लिया और किचन के प्लेटफार्म पर रखा दूध का बोतल बैग में डाल इस बार उस शख्स के कंधे पर हाथ रख उसका ध्यान बंटाया
“तुम तो बुटीक जा रही थी ना?”
“हां! जा रही हूं। दरवाजा बंद कर लो।”
इस बार वह हेडफोन निकाल उठ खड़ा हुआ।
लिफ्ट से नीचे जाती वह मन ही मन सोच रही थी कि
“सच में! पुरुष ऐसे ही होते हैं।” उसका मन अबोध के प्रति अपने पति के रवैए से दुखी हुआ लेकिन दूसरे ही पल दिल ने यह सोचकर कि
“हो सकता है, हेडफोन की वजह से वह कुछ सुन ही नहीं पाया होगा।”
बिना एक पल गवांए उसने ने पूरा दोष हेडफोन पर डा़ल उसके मन के लगाए इल्जाम से पति को #बाइज्जत_बरी कर दिया।
गोद में दूधमुंहा बच्चा लिए उसे वापस आया देख वास्तविकता से अनभिज्ञ ऑटो ड्राइवर का दिमाग झल्लाया वह मन ही मन बुदबुदाया।
“यह कैसी भुलक्कड़ मां है! बच्चे को ही छोड़ आई।”
लेकिन किसी अजनबी की सोच से बेफिक्र वह चेहरे पर सुकून भरी मुस्कान लिए ऑटो में बैठ गई।
“चलो भैया!”

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मन के भाव


💐💐मन के भाव💐💐


गर्मियों के दिनों में एक शिष्य अपने गुरु से सप्ताह भर की छुट्टी लेकर अपने गांव जा रहा था। तब गांव पैदल ही जाना पड़ता था। जाते समय रास्ते में उसे एक कुआं दिखाई दिया।

शिष्य प्यासा था, इसलिए उसने कुएं से पानी निकाला और अपना गला तर किया। शिष्य को अद्भुत तृप्ति मिली, क्योंकि कुएं का जल बेहद मीठा और ठंडा था।

शिष्य ने सोचा – क्यों ना यहां का जल गुरुजी के लिए भी ले चलूं। उसने अपनी मशक भरी और वापस आश्रम की ओर चल पड़ा। वह आश्रम पहुंचा और गुरुजी को सारी बात बताई।

गुरुजी ने शिष्य से मशक लेकर जल पिया और संतुष्टि महसूस की।


उन्होंने शिष्य से कहा- वाकई जल तो गंगाजल के समान है। शिष्य को खुशी हुई। गुरुजी से इस तरह की प्रशंसा सुनकर शिष्य आज्ञा लेकर अपने गांव चला गया।

कुछ ही देर में आश्रम में रहने वाला एक दूसरा शिष्य गुरुजी के पास पहुंचा और उसने भी वह जल पीने की इच्छा जताई। गुरुजी ने मशक शिष्य को दी। शिष्य ने जैसे ही घूंट भरा, उसने पानी बाहर कुल्ला कर दिया।

शिष्य बोला- गुरुजी इस पानी में तो कड़वापन है और न ही यह जल शीतल है। आपने बेकार ही उस शिष्य की इतनी प्रशंसा की।


दूसरों के मन को दुखी करने वाली बातों को टाला जा सकता है और हर बुराई में अच्छाई खोजी जा सकती है।


गुरुजी बोले- बेटा, मिठास और शीतलता इस जल में नहीं है तो क्या हुआ। इसे लाने वाले के मन में तो है। जब उस शिष्य ने जल पिया होगा तो उसके मन में मेरे लिए प्रेम उमड़ा। यही बात महत्वपूर्ण है। मुझे भी इस मशक का जल तुम्हारी तरह ठीक नहीं लगा पर मैं यह कहकर उसका मन दुखी करना नहीं चाहता था। हो सकता है जब जल मशक में भरा गया, तब वह शीतल हो और मशक के साफ न होने पर यहां तक आते-आते यह जल वैसा नहीं रहा, पर इससे लाने वाले के मन का प्रेम तो कम नहीं होता है ना।

दूसरों के मन को दुखी करने वाली बातों को टाला जा सकता है और हर बुराई में अच्छाई खोजी जा सकती है।

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कर्म पूजा


💐💐कर्म पूजा💐💐



अवध के राजा महेन्द्र प्रताप सिंह बहुत ही धार्मिक, दयालु एवं नीतिवान व्यक्तित्व के धनी थे। वे अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे और उनका हाल जानने के लिये अक्सर रात में वेश बदलकर निकलते थे। एक बार वे दीपावली की रात्रि को भी वेश बदलकर महल के पिछवाडे से निकल पड़े।

दीपावली के त्यौहार के कारण समस्त नगर में जगह जगह दीप जगमगा रहे थे। बच्चे आतिशबाजी कर रहे थे। लोग एक दूसरे का अभिवादन कर उन्हें बधाइयाँ दे रहे थे। राजा अपनी प्रजा को हँसी-खुशी त्यौहार मनाते देखकर अत्यंत प्रसन्न थे। प्रजा की खुशहाली को वह राज्य की समृद्धि का प्रतीक मानते थे। राजा नगर भ्रमण के बाद महल की ओर लौट रहे थे तभी रास्ते में एक अंधेरी झोपड़ी देखकर वे चौंक गये।

झोपड़ी का दरवाजा अधखुला था। वे दरवाजे के पास गये। अंदर एक वृद्ध व्यक्ति टिमटिमाते दीपक के पास माथे पर हाथ रखे बैठे थे। उनके पास ही एक थाली में पूजा का सामान रखा हुआ था। वे वृद्ध व्यक्ति उनसे बोले – महाशय मैं कब से आपकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ। मैं वृद्ध होने के कारण अकेले पूजा करने में असमर्थ हूँ। क्या आप मेरी सहायता करेंगे ?

राजा असमंजस में पड़ गये और सोचने लगे कि यदि मैं यहाँ रूकता हूँ तो महल पहुँचने में देर हो जाएगी और पूजन का मूहुर्त निकल जायेगा। उस वृद्ध के पुनः निवेदन करने पर राजा मना नहीं कर सके और उन्होंने उसके साथ बैठकर पूजन का प्रारंभ किया। उन्होंने राजा से कहा कि पूजा कि थाली से रोली और चावल उठाकर आँख बंद कर लो। राजा ने वैसा ही किया। जैसे ही राजा ने आँखें खोली वह सामने का दृश्य देखकर हैरान हो गये।

जिस झोपड़ी में वह बूढ़े के पास बैठे थे, उस जगह पर बूढ़े के स्थान पर साक्षात् कुबेर जी एवं लक्ष्मी जी विराजमान थी। राजा ने रोली और चावल दोनों के मस्तक पर लगाये और प्रणाम किया। कुबेर जी ने आशीर्वाद देते हुये कहा कि जहाँ का राजा, प्रजा की इच्छा और आवश्यकताओं का स्वयं के परिवार जैसा ध्यान रखता हो उस राज्य में कभी कोई कमी नहीं हो सकती है। इसी प्रकार लक्ष्मी जी ने भी आशीर्वाद देते हुये कहा- राजन ! तुम्हारा प्रजा के प्रति प्रेम देखकर मैं प्रसन्न हूँ। जहाँ का शासक प्रजा प्रेमी हो वह राज्य सदा धन धान्य से भरा रहता है। इसी कारण मैं पिछले कई सालों से तुम्हारे राज्य में हूँ। जब तक इस राज्य में प्रजा प्रेमी शासक रहेंगे तब तक मैं भी यहाँ विद्यमान रहूँगी।

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मकड़ी की कहानी


💐💐मकड़ी की कहानी💐💐

शहर के एक बड़े संग्रहालय (Museum) के बेसमेंट में कई पेंटिंग्स रखी हुई थी. ये वे पेंटिंग्स थीं, जिन्हें प्रदर्शनी कक्ष में स्थान नहीं मिला था. लंबे समय से बेसमेंट में पड़ी पेंटिंग्स पर मकड़ियों ने जाला बना रखा था.
बेसमेंट के कोने में पड़ी एक पेंटिंग पर एक मकड़ी (Spider) ने बड़ी ही मेहनत से बड़ा सा जाला बुना हुआ था. वह उसका घर था और वह उसके लिए दुनिया की सबसे प्यारी चीज़ थी. वह उसका विशेष रूप से ख्याल रखा करती थी.
एक दिन संग्रहालय (Museum) की साफ़-सफाई और रख-रखाव कार्य प्रारंभ हुआ. इस प्रक्रिया में बेसमेंट में रखी कुछ चुनिंदा पेंटिंग्स (Paintings) को म्यूजियम के प्रदर्शनी कक्ष में रखा जाने लगा. यह देख संग्रहालय के बेसमेंट में रहने वाली कई मकड़ियाँ अपना जाला छोड़ अन्यत्र चली गई.
लेकिन कोने की पेंटिंग की मकड़ी ने अपना जाला नहीं छोड़ा. उसने सोचा कि सभी पेंटिंग्स को तो प्रदर्शनी कक्ष में नहीं ले जाया जायेगा. हो सकता है इस पेंटिंग को भी न ले जाया जाये.  
कुछ समय बीतने के बाद बेसमेंट से और अधिक पेंटिंग्स उठाई जाने लगी. लेकिन तब भी मकड़ी ने सोचा कि ये मेरे रहने की सबसे अच्छी जगह है. इससे बेहतर जगह मुझे कहाँ मिल पाएंगी? वह अपना घर छोड़ने को तैयार नहीं थी. इसलिए उसने अपना जाला नहीं छोड़ा.
लेकिन एक सुबह संग्रहालय के कर्मचारी उस कोने में रखी पेंटिंग को उठाकर ले जाने लगे. अब मकड़ी के पास अपना जाला छोड़कर जाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था. जाला न छोड़ने की स्थिति में वह मारी जाती. बुझे मन से उसने इतनी मेहनत से बनाया अपना जाला छोड़ दिया.
संग्रहालय से बाहर निकलने के बाद वह कई दिनों तक इधर-उधर भटकती रही. कई परेशानियों से उसे दो-चार होना पड़ा. वह बड़ी दु:खी रहा करती थी कि उसका ख़ूबसूरत घर भगवान ने उससे छीन लिया और उसे इस मुसीबत में ढकेल दिया.
वह संग्रहालय के अपने पुराने घर के बारे में सोचकर और दु:खी हो जाती कि उससे अच्छा स्थान अब उसे कभी हासिल नहीं होगा. लेकिन उसे अपने रहने के लिए स्थान तो खोजना ही था. इसलिए वह लगातार प्रयास करती रही. आखिर में एक दिन वह एक सुंदर बगीचे में पहुँची.
बगीचे में एक शांत कोना था, जो मकड़ी को बहुत पसंद आया. उसने फिर से मेहनत प्रारंभ की और कुछ ही दिनों में पहले से भी सुंदर जाला तैयार कर लिया. यह उसका अब तक का सबसे ख़ूबसूरत घर था. अब वह ख़ुश थी कि जो हुआ अच्छा ही हुआ, अन्यथा वह इतने सुंदर स्थान पर इतने सुंदर घर में कभी नहीं रह पाती. वह ख़ुशी-ख़ुशी वहाँ रहने लगी.
सीख – कभी-कभी जीवन में ऐसा कठिन समय आता है, जब हमारा बना-बनाया सब कुछ बिखर जाता है. ये हमारा व्यवसाय, नौकरी, घर, परिवार या रिश्ता कुछ भी हो सकता है. ऐसी परिस्थिति में हम अपनी किस्मत को कोसने लगते हैं या भगवान से शिकायतें करने लग जाते हैं. लेकिन वास्तव में कठिन परिस्थितियों हमारे हौसले की परीक्षा है. यदि हम अपना हौसला मजबूत रखते हैं और कठिनाइयों से जूझते हुए जीवन में आगे बढ़ते जाते हैं, तो परिस्थितियाँ बदलने में समय नहीं लगता. हमारा हौसला, हमारा जुझारूपन, हमारी मेहनत हमें बेहतरी की ओर ले जाती हैं. यकीन मानिये, हौसला है तो बार-बार बिखरने के बाद भी आसमान की बुलंदियों को छुआ जा सकता है।

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गाँधी को किसने मारा ? __________________ नाथुराम गोडसे ने
नाथुराम गोडसे कौन थे ? _________________ हिंदू महासभा के कार्यकर्ता
उस समय हिंदू महासभा का अध्यक्ष कौन था ? ___ निर्मल चंद्र चटर्जी
निर्मल चंद्र चटर्जी कौन थे ?________________ सोमनाथ चटर्जी के पिता जी
सोमनाथ चटर्जी कौन ? ___________________ सीपीएम नेता, सीपीएम साँसद

लेकिन गाँधी हत्या के बाद नेहरू ने किस संगठन पर बैन लगाया ? आर एस एस पर
आरएसएस पर से बैन हटाना क्यों पड़ा ? ___ कोर्ट में कोई सबूत प्रस्तुत नहीं कर पाए

क्या निर्मल चन्द्र चटर्जी को भी सताया गया ?
नहीं .. उन्हें पहले जज, फिर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन का उपाध्यक्ष और कोषाध्यक्ष बनाया गया. इनकी लिखी पुस्तकें केंद्र सरकार की के विश्विद्यालय के पाठ्यक्रमों में लेकर उन्हें एक ‘लेखक’ होने का सम्मान दिया. देश के पहले लोकसभा चुनाव में सोमनाथ के पिता अखिल भारतीय हिंदू महासभा के टिकट पर निर्वाचित भी हुए।

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मेरे विट्ठल


*मेरे विट्ठल*

कन्धे पर कपड़े का थान लादे और हाट-बाजार जाने की तैयारी करते हुए नामदेव जी से पत्नि ने कहा- भगत जी! आज घर में खाने को कुछ भी नहीं है।
आटा, नमक, दाल, चावल, गुड़ और शक्कर सब खत्म हो गए हैं।
शाम को बाजार से आते हुए घर के लिए राशन का सामान लेते आइएगा।

भक्त नामदेव जी ने उत्तर दिया- देखता हूँ जैसी विठ्ठल जी की कृपा।
अगर कोई अच्छा मूल्य मिला,
तो निश्चय ही घर में आज धन-धान्य आ जायेगा।

पत्नि बोली संत जी! अगर अच्छी कीमत ना भी मिले,
तब भी इस बुने हुए थान को बेचकर कुछ राशन तो ले आना।
घर के बड़े-बूढ़े तो भूख बर्दाश्त कर लेंगे।
पर बच्चे अभी छोटे हैं,
उनके लिए तो कुछ ले ही आना।

जैसी मेरे विठ्ठल की इच्छा।
ऐसा कहकर भक्त नामदेव जी हाट-बाजार को चले गए।

बाजार में उन्हें किसी ने पुकारा- वाह सांई! कपड़ा तो बड़ा अच्छा बुना है और ठोक भी अच्छी लगाई है।
तेरा परिवार बसता रहे।
ये गरीब ठंड में कांप-कांप कर मर जाएगा।
दया के घर में आ और भगवान के नाम पर दो चादरे का कपड़ा इस गरीब की झोली में डाल दे।

भक्त नामदेव जी- दो चादरों में कितना कपड़ा लगेगा जी?

भिखारी ने जितना कपड़ा मांगा,
संयोग से भक्त नामदेव जी के थान में कुल कपड़ा उतना ही था।
और भक्त नामदेव जी ने पूरा थान उस भिखारी को दान कर दिया।

दान करने के बाद जब भक्त नामदेव जी घर लौटने लगे तो उनके सामने परिजनो के भूखे चेहरे नजर आने लगे।
फिर पत्नि की कही बात,
कि घर में खाने की सब सामग्री खत्म है।
दाम कम भी मिले तो भी बच्चो के लिए तो कुछ ले ही आना।

अब दाम तो क्या,
थान भी दान जा चुका था।
भक्त नामदेव जी एकांत मे पीपल की छाँव मे बैठ गए।

जैसी मेरे विठ्ठल की इच्छा।
जब सारी सृष्टि की सार पूर्ती वो खुद करता है,
तो अब मेरे परिवार की सार भी वो ही करेगा।
और फिर भक्त नामदेव जी अपने हरिविठ्ठल के भजन में लीन गए।

अब भगवान कहां रुकने वाले थे।
भक्त नामदेव जी ने सारे परिवार की जिम्मेवारी अब उनके सुपुर्द जो कर दी थी।

अब भगवान जी ने भक्त जी की झोंपड़ी का दरवाजा खटखटाया।

नामदेव जी की पत्नी ने पूछा- कौन है?

नामदेव का घर यही है ना?
भगवान जी ने पूछा।

अंदर से आवाज हां जी यही आपको कुछ चाहिये
भगवान सोचने लगे कि धन्य है नामदेव जी का परिवार घर मे कुछ भी नही है फिर ह्र्दय मे देने की सहायता की जिज्ञासा हैl

भगवान बोले दरवाजा खोलिये

लेकिन आप हैं कौन?

भगवान जी ने कहा- सेवक की क्या पहचान होती है भगतानी?
जैसे नामदेव जी विठ्ठल के सेवक,
वैसे ही मैं नामदेव जी का सेवक हूl

ये राशन का सामान रखवा लो।
पत्नि ने दरवाजा पूरा खोल दिया।
फिर इतना राशन घर में उतरना शुरू हुआ,
कि घर के जीवों की घर में रहने की जगह ही कम पड़ गई।
इतना सामान! नामदेव जी ने भेजा है?
मुझे नहीं लगता।
पत्नी ने पूछा।

भगवान जी ने कहा- हाँ भगतानी! आज नामदेव का थान सच्ची सरकार ने खरीदा है।
जो नामदेव का सामर्थ्य था उसने भुगता दिया।
और अब जो मेरी सरकार का सामर्थ्य है वो चुकता कर रही है।
जगह और बताओ।
सब कुछ आने वाला है भगत जी के घर में।

शाम ढलने लगी थी और रात का अंधेरा अपने पांव पसारने लगा था।

समान रखवाते-रखवाते पत्नि थक चुकी थीं।
बच्चे घर में अमीरी आते देख खुश थे।
वो कभी बोरे से शक्कर निकाल कर खाते और कभी गुड़।
कभी मेवे देख कर मन ललचाते और झोली भर-भर कर मेवे लेकर बैठ जाते।
उनके बालमन अभी तक तृप्त नहीं हुए थे।

भक्त नामदेव जी अभी तक घर नहीं आये थे,
पर सामान आना लगातार जारी था।

आखिर पत्नी ने हाथ जोड़ कर कहा- सेवक जी! अब बाकी का सामान संत जी के आने के बाद ही आप ले आना।
हमें उन्हें ढूंढ़ने जाना है क्योंकी वो अभी तक घर नहीं आए हैं।

भगवान जी बोले- वो तो गाँव के बाहर पीपल के नीचे बैठकर विठ्ठल सरकार का भजन-सिमरन कर रहे हैं।
अब परिजन नामदेव जी को देखने गये

सब परिवार वालों को सामने देखकर नामदेव जी सोचने लगे,
जरूर ये भूख से बेहाल होकर मुझे ढूंढ़ रहे हैं।

इससे पहले की संत नामदेव जी कुछ कहते
उनकी पत्नी बोल पड़ीं- कुछ पैसे बचा लेने थे।
अगर थान अच्छे भाव बिक गया था,
तो सारा सामान संत जी आज ही खरीद कर घर भेजना था क्या?

भक्त नामदेव जी कुछ पल के लिए विस्मित हुए।
फिर बच्चों के खिलते चेहरे देखकर उन्हें एहसास हो गया,
कि जरूर मेरे प्रभु ने कोई खेल कर दिया है।

पत्नि ने कहा अच्छी सरकार को आपने थान बेचा और वो तो समान घर मे भैजने से रुकता ही नहीं था।
पता नही कितने वर्षों तक का राशन दे गया।
उन्सें विनती कर के रुकवाया- बस कर! बाकी संत जी के आने के बाद उनसे पूछ कर कहीं रखवाएँगे।

भक्त नामदेव जी हँसने लगे और बोले- ! *वो सरकार है ही ऐसी।*

*जब देना शुरू करती है तो सब लेने वाले थक जाते हैं।*
*उसकी दया कभी भी खत्म नहीं होती।*
*वह सच्ची सरकार की तरह सदा विघमान रहती है।*

*राधेराधे….*