💐💐क्रोध,गुस्सा,घृणा💐💐
एक शिक्षक अपने बच्चो से सवाल करता है,
अगर आपके पास 86,400 रुपये है और कोई भी लुटेरा 10 रुपये छिनकर भाग जाए तो आप क्या करेंगे?
क्या आप उसके पीछे भागकर लुटे हुवे 10 रुपये वापस पाने की कोशिश करोगे? या आप अपने बचे हुवे 86,390 को हिफाज़त से लेकर अपने रास्ते पर चलते रहेंगे?
कक्षा के कमरे में बहुमत ने कहा कि हम 10 रुपये की तुच्छ राशि की अनदेखी करते हुए अपने बचे हुवे पैसा लेकर अपने रास्ते पर चलते रहेंगे।
शिक्षक ने कहा: “आप लोगों का सत्य और अवलोकन सही नहीं है। मैंने देखा है कि ज्यादातर लोग 10 रुपये वापस लेने की फ़िक्र में चोर का पीछा करते हैं और परिणाम के रूप में, उनके बचे हुए 86,390 रुपये भी हाथ से धो बैठते हैं।
शिक्षक को देखते हुए छात्र हैरान होकर पूछने लगे “सर, यह असंभव है, ऐसा कौन करता है?”
शिक्षक ने कहा! “ये 86,400 वास्तव में हमारे दिन के सेकंड में से एक हैं।
10 सेकंड की बात लेकर, या किसी भी 10 सेकंड की नाराज़गी और गुस्से में, हम बाकी के पुरे दिन को सोच,कुढ़न और जलने में गुज़ार देते हैं और हमारे बचे हुए 86,390 सेकंड भी नष्ट कर देते हैं।
चीज़ों को अनदेखा करें। ऐसा न हो कि चन्द लम्हे का गुस्सा ,नकारात्मकता आपसे आपके सारे दिन की ताज़गी और खूबसूरती छीनकर ले जाए।
Day: November 23, 2022
मन की सोच
💐💐मन की सोच💐💐
एक बच्चा अपने पापा के साथ पिकनिक मनाने गया। गर्मियों की छुट्टियां थीं तो सोचा क्यों ना कुछ समय प्रकृति के नजदीक शांति में गुजारा जाये। यही सोचकर उन्होंने कहीं पहाड़ों पे घूमने का प्लान बनाया। सामान पैक करके पिता और पुत्र दोनों पिकनिक के लिए निकल पड़े।
पर्वतों का नजारा बहुत ही शानदार था चारों ओर खुला आसमान और हरियाली थी। बच्चा एक छोटी पहाड़ी पर चढ़ने का प्रयास करने लगा, जैसे ही वो थोड़ा आगे चढ़ा उसका पाँव थोड़ा फिसला और एक पथ्थर से उसके पैर में हल्की सी चोट लग गयी और मुँह से तेज आवाज निकली – “आआह”
अब उसकी ये आवाज गूंज की वजह से वापस उसे सुनाई पड़ी -“आआह”, बच्चे को बड़ा आश्चर्य हुआ कि ये कौन बोला? वो फिर से जोर से बोला – “कौन है?” फिर से आवाज गूंज कर वापस आई “कौन है?” बच्चे ने उत्सुकतावश फिर चिल्लाया – “कौन हो तुम?” फिर आवाज वापस सुनाई दी – “कौन हो तुम?”
बच्चे ने अपने पिता से इसके बारे में पूछा तो पिता ने बच्चे से सर पर प्यार से हाथ फेरा और जोर से चिल्लाये – “तुम कायर हो ?” फिर से आवाज सुनाई दी – “तुम कायर हो ?” पिता ने मुस्कुरा कर फिर जोर से बोला – “तुम साहसी हो तुम विजेता हो” आवाज वापस सुनाई दी – “तुम साहसी हो तुम विजेता हो”
पिता ने बच्चे को समझाया कि ये आवाज तुम्हारी ही है जो पहाड़ो टकराकर तुमको वापस सुनाई दे रही है, यही जीवन है हम जो बोलते हैं, हम जो सोचते हैं वही हमें वापस मिलता है। इस आवाज की तरह ही हमारा भविष्य है, हमने जो आज किया वही हमको कल वापस मिलेगा। तुम दूसरों के प्रति मन में इज्जत रखोगे तो वही तुमको वापस मिलेगी।
तुम अगर मन में सोच लो कि तुम कायर हो, तुम कुछ नहीं कर सकते तो तुम वैसे ही बन जाओगे। तुम सोचोगे कि तुम विजेता हो तो तुम वैसे ही बन जाओगे।
बच्चे की समझ में अब पूरी बात आ चुकी थी, उम्मीद है आप लोगों ने भी इस कहानी से शिक्षा ली होगी।
आत्म-चिंतन
💐💐आत्म-चिंतन💐💐
एक मालन को रोज़ राजा की सेज़ को फूलों से सजाने का काम दिया गया था। वो अपने काम में बहुत निपुण थी। एक दिन सेज़ सजाने के बाद उसके मन में आया की वो रोज़ तो फूलों की सेज़ सजाती है, पर उसने कभी खुद फूलों के सेज़ पर सोकर नहीं देखा था।
कौतुहल-बस वो दो घड़ी फूल सजे उस सेज़ पर सो गयी। उसे दिव्य आनंद मिला। ना जाने कैसे उसे नींद आ गयी।
कुछ घंटों बाद राजा अपने शयन कक्ष में आये। मालन को अपनी सेज़ पर सोता देखकर राजा बहुत गुस्सा हुआ। उसने मालन को पकड़कर सौ कोड़े लगाने की सज़ा दी।
मालन बहुत रोई, विनती की, पर राजा ने एक ना सुनी। जब कोड़े लगाने लगे तो शुरू में मालन खूब चीखी चिल्लाई, पर बाद में जोर-जोर से हंसने लगी।
राजा ने कोड़े रोकने का हुक्म दिया और पूछा – “अरे तू पागल हो गयी है क्या? हंस किस बात पर रही है तू?”
मालन बोली – “राजन! मैं इस आश्चर्य में हंस रही हूँ कि जब दो घड़ी फूलों की सेज़ पर सोने की सज़ा सौ कोड़े हैं, तो पूरी ज़िन्दगी हर रात ऐसे बिस्तर पर सोने की सज़ा क्या होगी?”
राजा को मालन की बात समझ में आ गयी, वो अपने कृत्य पर बेहद शर्मिंदा हुआ और जन कल्याण में अपने जीवन को लगा दिया।
मोहमाया
💐💐मोहमाया💐💐
रधिया खेत से एक पोटली, दोनों हाथों में संभाले… लरजती सी… घर की ओर बढ़ चली। जाने कौन सा खजाना उसे मिल गया था…कि प्रसन्नता के अतिरेक में कभी उसकी आंखें छलक पड़ती,… अंग अंग, बार बारसिहर उठता था। उसने अपनी साड़ी थोड़ी ऊंची कर ली ताकि जल्दबाजी में चलते हुए कहीं पैरों में ना फंसे।
खेत से आधे किलोमीटर दूरी का घर भी उसे दसियों किलोमीटर लंबा लग रहा था। कभी वह मेढ़ पर चढ़ती…. कभी पगडंडी पर उतर जाती…. ऐसा करने से मानो घर जल्दी आ आएगा। बीच-बीच में पोटली में झांक कर भी देख लेती कि सब ठीक से है फिर आंचल में छुपा लेती।
चलते चलते रधियाअपने आप से बतियाती भी जा रही थी…. अम्मा (सास) ना राजी हुई तो????? हुंह….. राजी कैसे न होंगी….. ब्याह के तरह बरस होने को आए… वह जो कहती हैं.. वही तो करती आ रही हूं कभी कुछ मांगा जांचा भी नहीं उनसे…. तो क्या वह मेरी इतनी सी भी बात नहीं मानेगी? आज तो मनई (पति) भी शहर से आ जाएगा रात तक। वह तो खैर हर बात मान लेता है… और मानेगा भी क्यों नहीं आखिर…. उसकी अम्मा का, घर का, खेत खलिहान का, गाय गोरु का ध्यान जो रखती हूं…. तभी तो मन लगाकर सहर की फैक्ट्री में काम कर पाता है जिससे अच्छी पगार मिल जाती है।
ऐसे ही लरजती- बतियाती.. रधिया घर पहुंच गई। भड़ाक से दरवाजा खोला और जोर से आवाज देने लगी, अम्मा….ओ अम्मा…. कहां हो? बड़े से आंगन में अम्मा कहीं ना दिखी। सामने दलान के कोने में…. एक टुकड़ा धूप फैली थी… उसी टुकड़े में बैठी रामलली(सास) चावल साफ कर रही थी।
“अरे, तू तो खेत से मिट्टी लाने गई थी ना… घर लीपने के वास्ते… तो इतनी जल्दी कैसे आ गई”?
रधिया मानो उनकी बात सुन ही नहीं रही थी। पूरे आंगन में… पोटली को झुलाती हुई सी…. चारों तरफ गोल गोल चक्कर काटती हुई… अम्मा अम्मा की ही रट लगाई हुई थी।
“अम्मा आज धनतेरस के दिन लक्ष्मी मिल गई”… वह वैसे ही झूमती हुई बोली।
रामलली चिहुंक पड़ी। उसने हाथ में पकड़ा सूप नीचे रख दिया।
“अरे मिट्टी में दबा हुआ कोई खजाना मिल गया क्या????? ओ नासमझ!!!!! थोड़ा धीरे बोल, नहीं तो रामा, बुधिया सभी आ जाएंगी और खजाने की पोल पूरे गांव में खोल कर रख देंगी… तो सभी बांटने आ जाएंगे”।
“मेरी प्यारी अम्मा…. यह खजाना कोई भी नहीं बांट पावेगा… और देखोगी नहीं क्या”?????
रामलली तो खुद ही लालायित हुई जा रही थी.. उस खजाने को देखने के लिए। रधिया ने उसके पास पहुंच कर आँचल हटाया… और धीरे से पोटली का कपड़ा जरा सा हटाया….. रामलली सन्न खड़ी रह गई…. उसे लगा मानो नीचे से किसी ने जमीन खींच ली।
पोटली में चांद सा चमकता चेहरे और काले काले घुंघराले बालों वाला,मात्र दो दिन का बच्चा… अंगूठा मुंह में डालें ऐसा सुकून की नींद सो रहा था मानो बिल्कुल निश्चिंत हो कि अब वह सुरक्षित है।
“अरे अभागी…. इसे कहां से उठा लायी? किसका है”????
” पता नहीं किसका है अम्मा….कोई अपने माथे का कलंक मेरी आँखों की रोशनी बनाकर छोड़ गया”।
रधिया बताने लगी,” हम तो मिट्टी खोद रहे थे…. तभी बगल वाले दीनू काका के बाग में एक गाड़ी आकर रुकी। उसमें से दो औरतें और एक आदमी उतरे और पेड़ के पास इस पोटली को रखा। उन लोगों ने सर ऊपर उठाकर देखा तो पेड़ के ऊपर दो तीन गिद्ध बैठे हुए थे। गिध्दों को देखकर वह कुछ बतियाते रहे फिर गाड़ी में बैठ कर फुर्र हो गए। हम पहले ध्यान नहीं दिए…. फिर सोचा कि देखें आखिर गाड़ी से आकर यह गिद्धों के लिए कौन सा भोजन रख गए हैं। जाकर देखा अम्मा तो हमारी रूह कांप गई” कहते कहते रधिया का गला रूंध गया।
“अम्मा ऐसी सुकोमल देह को वे गिध्दों के हवाले कर गए… निर्दई.. निर्मम… हत्यारे” और वह सिसक पड़ी।
“यह किसी के पाप की निशानी होगी… तभी छोड़ गए और सोचा होगा कि यह उन गिध्दों का निवाला बन जाएगी। लेकिन रधिया… गिध्दों से तो तू इस को बचा लाई..लेकिन समाज में जो इंसान रूपी गिद्ध फैले हुए हैं।
इसके बड़े होने पर उनसे कैसे बचा पाएगी”?
रामलली के स्वर में चिंता का पुट था।
“अम्मा! शादी के तेरह बरस हुए.मेरी गोद सूनी रही।आज धनतेरस के दिन लक्ष्मी मां ने मेरी गोद भर दी।
इसको मैं खूंटे से बंधी गाय नहीं… जंगल में दहाड़ने वाली शेरनी बनाऊंगी.. शेरनी। फिर कोई गिद्ध इसकी तरफ आंख उठाने की का साहस भी नहीं कर सकेगा”।
“हां रधिया, तू ठीक कहती है। आज तू मां बन गई और मैं दादी” कहती हुई रामलली दरवाजे की तरफ बढ़ी।
रधिया बोली, “अम्मा तुम कहां जा रही हो”???
बुधिया, कमली को बताने कि तू जापे में है.. और अब त्यौहार पर आकर वह सब मेरा हाथ बटाएं.. और खबरदार!! जो अब कुछ दिन तक तू घर से बाहर निकली…. ममता से डांटती हुई रामलली बाहर निकल गई….. सब को
सब को बुलाने….. घर आई लक्ष्मी के दर्शन कराने।
इस बार की दिवाली आखिर उसके सूने घर को रोशन जो कर रही थी-
यदि कहानी पढ़ते समय आपके मन मे””पोटली के खजाने में स्वर्ण,धन,आभूषण इत्यादि होगा”” ऐसा आया था तो आप मोहमाया के जाल में पूर्णता फंसे हुए हैं।
💐💐कर्मो का खेल💐💐
एक बार एक गरीब लकड़हारा सूखी लकडि़यों की तलाश में जंगल में भटक रहा था।
साथ में बोझा ढोने के लिये उसका गधा भी था। लकडि़याँ बटोरते-बटोरते उसे पता ही नहीं चला कि दिन कब ढल गया। शाम का अंधेरा तेजी से बढ़ता जा रहा था लेकिन वह अपने गाँव से बहुत दूर निकल आया था और उधर मौसम भी बिगड़ रहा था।
ऐसे में वापस गाँव पहुँचना सम्भव न था, इसलिये वह उस जंगल में आसरा ढूंढने लगा।
अचानक उसे एक साधु की कुटिया नजर आई। वह खुशी-खुशी अपने गधे के साथ वहाँ जा पहुँचा और रात काटने के लिये साधु से जगह माँगी।
साधु ने बड़े प्यार से उसका स्वागत किया और सोने की जगह के साथ भोजन- पानी की व्यवस्था भी कर दी। वह लकड़हारा सोने की तैयारी करने लगा लेकिन तभी एक और समस्या खड़ी हो गई।
दरअसल उसने काफी ज्यादा लकड़ी इकट्ठा कर ली थी और उसे बाँधने के लिये उसने सारी रस्सी इस्तेमाल कर ली थी। यहाँ तक कि अब उसके पास गधे को बाँधने के लिये भी रस्सी नहीं बची थी।
उसकी परेशानी देखकर वह साधु उसके पास आये और उसे एक बड़ी रोचक युक्ति बताई। उन्होंने कहा कि गधे को बाँधने के लिये रस्सी की कोई जरूरत नहीं, बस उसके पैरों के पास बैठकर रोज की तरह बाँधने का क्रम पूरा कर लो।
इस झूठ-मूठ के दिखावे को गधा समझ नहीं पायेगा और सोचेगा कि उसे बाँध दिया गया है। फिर वह कहीं जाने के लिये पैर नहीं उठायेगा।
लकड़हारे ने और कोई चारा न देखकर घबराते-सकुचाते साधु की बात मान ली और गधे को बाँधने का दिखावा करके भगवान से उसकी रक्षा की प्रार्थना करता हुआ सो गया।
रात बीती, सुबह हुई, मौसम भी साफ हो गया। जंगल में पशु-पक्षियों की हलचल शुरू हो गई। आहट से लकड़हारे की नींद खुल गई।
जागते ही उसे गधे की चिन्ता हुई और वह उसे देखने के लिये बाहर भागा। देखा तो गधा बिल्कुल वहीं खड़ा था जहाँ रात उसने छोड़ा था। लकड़हारा बड़ा खुश हुआ और साधु को धन्यवाद करके अपने गधे को साथ लेकर जाने लगा लेकिन यह क्याॽ गधा तो अपनी जगह से हिलने को तैयार ही नहीं।
लकड़हारे ने बड़ा जोर लगाया, डाँटा-डपटा भी लेकिन गधा तो जैसे अपनी जगह पर जमा हुआ था। उसकी मुश्किल देखकर साधु ने आवाज लगाकर कहा- अरे भई, गधे को खोल तो लो। लकड़हारा रात की बात भूल चुका था, बोला- महाराज, रस्सी तो बाँधी ही नहीं फिर खोलूं क्याॽ
साधु बोले- रस्सी छोड़ो, बन्धन खोलो जो रात को डाले थे। जैसे बाँधने का दिखावा किया था वैसे ही खोलने का भी करना पड़ेगा।
उलझन में पड़े लकड़हारे ने सुस्त हाथों से रस्सी खोलने का दिखावा किया और गधा तो साथ ही चल पड़ा। आश्चर्यचकित लकड़हारे को समझाते हुये साधु ने कहा- कर्म तो कर्म हैं चाहे वह स्थूल हों या सूक्ष्म। हम भले ही अपने कर्मों को भूल जायें पर उनका फल तो सामने आता ही है और फिर उसका भुगतान करने के लिये, उसे काटने के लिये नया कर्म करना पड़ता है। वहाँ कोई मनमर्जी या जोर-जबर्दस्ती नहीं चलती।
सार :- कर्म मात्र में ही मनुष्य का अधिकार है कर्मानुसार फल तो प्रकृति स्वयं ही जुटा देती है किन्तु फल की प्राप्ति पुन: कर्म की प्रेरणा देती है। अत: एक प्राणी का कर्तव्य है कि प्रत्येक कर्म विचार पूर्वक तथा जिम्मेदारी के साथ करे। कर्म के रहस्य को समझ कर ही हम सुखी हो सकते हैं अन्यथा पग-पग पर हमें उलझन का ही सामना करना पड़ेगा..!!
एक धनी किसान
💐💐एक धनी किसान💐💐
एक धनी किसान था। उसे विरासत में खूब संपत्ति मिली थी। ज्यादा धन-संपदा ने उसे आलसी बना दिया। वह सारा दिन खाली बैठा हुक्का गुड़गुड़ाता रहता था। उसकी लापरवाही का नौकर-चाकर नाजायज फायदा उठाते थे। उसके सगे-संबंधी भी उसका माल साफ करने में लगे रहते थे। एक बार किसान का एक पुराना मित्र उससे मिलने आया। वह उसके घर की अराजकता देख दुःखी हुआ। उसने किसान को समझाने की कोशिश की लेकिन उस पर कोई असर नहीं पड़ा। एक दिन उसने कहा कि वह उसे एक ऐसे महात्मा के पास ले जाएगा जो अमीर होने का तरीका बताते हैं। किसान के भीतर उत्सुकता जागी। वह महात्मा से मिलने को तैयार हो गया। महात्मा ने बताया, ‘हर रोज सूर्योदय से पहले एक हंस आता है जो किसी के देखने से पहले ही गायब हो जाता है। जो इस हंस को देख लेता है उसका धन निरंतर बढ़ता जाता है।’
अगले दिन किसान सूर्योदय से पहले उठा और हंस को खोजने खलिहान में गया। उसने देखा कि उसका एक संबंधी बोरे में अनाज भरकर ले जा रहा है। किसान ने उसे पकड़ लिया। वह रिश्तेदार बेहद लज्जित हुआ और क्षमा मांगने लगा। तब वह गौशाला में पहुंचा। वहां उसका एक नौकर दूध चुरा रहा था। किसान ने उसे फटकारा। उसने पाया कि वहां बेहद गंदगी है। उसने नौकरों को नींद से जगाया और उन्हें काम करने की हिदायत दी। दूसरे दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ। इस तरह किसान रोज हंस की खोज में जल्दी उठता। इस कारण सारे नौकर सचेत हो गए और मुस्तैदी से काम करने लगे। जो रिश्तेदार गड़बड़ी कर रहे थे वे भी सुधर गए।
जल्दी उठने और घूमने-फिरने से किसान का स्वास्थ्य भी ठीक हो गया। इस प्रकार धन तो बढ़ने लगा, लेकिन हंस नहीं दिखा। इस बात की शिकायत करने जब वह महात्मा के पास पहुंचा तो उन्होंने कहा, ‘तुम्हें हंस के दर्शन तो हो गए, पर तुम उसे पहचान नहीं पाए। वह हंस है परिश्रम। तुमने परिश्रम किया, जिसका लाभ अब तुम्हें मिलने लगा है।
साफ हृदय
💐💐साफ हृदय💐💐
बरसाना में एक भक्त थे, ब्रजदास। उनकी एक पुत्री थी, नाम था रतिया। बस इतना ही था ब्रजदास का परिवार। ब्रजदास दिन में अपना काम क़रते और शाम को श्री जी के मन्दिर में जाते दर्शन करते और जो भी संत आये हुवे होते हैं उनके साथ सत्संग करते।
यही उनका नियम था। एक बार एक संत ने ब्रजदास से कहा भइया हमें नन्दगांव जाना है, सामान ज्यादा है तो तुम हम को नन्दगाँव पहुँचा सकते हो क्या ?
ब्रजदास ने हां भर ली। ब्रज दास ने अपनी बेटी से कहा मुझे एक संत को नन्दगाँव पहुचाना है। समय पर आ जाऊँगा, प्रतीक्षा मत करना। ब्रजदास सुबह चार बजे राधे -राधे जपते – जपते नंगे पांव संत के पास गये और संत के सामान और ठाकुर जी की पेटी और बर्तन ले लिये और चलने लगे।
रवाना तो समय पर हुवे लेकिन संत को स्वास् रोग था कुछ दूर चलते फिर बैठ जाते। इस प्रकार नन्दगाँव पहुँचने में ही देरी हो गई। ब्रजदास ने सामान रख कर जाने की आज्ञा मांगी। संत ने कहा जून का महीना है, ११ बजे हैं, जल पी लो। कुछ जलपान कर लो, फिर चले जाना तो ब्रजदास ने कहा बरसाने की वृषभानु नंदनी नन्दगाँव में ब्याही हुई है अतः मैं यहाँ जल नहीं पी सकता।
संत की आँखों से अश्रुपात होने लगे । कितने वर्ष पुरानी बात है , कितना गरीब आदमी है पर दिल कितना ऊँचा है। ब्रजदास वापिस राधे राधे करते रवाना हुवे। ऊपर से सूरज की गर्मी नीचे तपती रेत। भगवान को दया आ गयी वे भक्त ब्रजदास के पीछे – पीछे चलने लगे। एक पेड़ की छाया में ब्रजदास रुके और वही मूर्छित होकर गिर पड़े।
भगवान ने मूर्छा दूर क़रने के प्रयास किये पर मूर्छा दूर नहीं हुई। भगवान ने विचार किया कि मैंने अजामिल, गीध, गजराज को तारा, द्रोपदी को संकट से बचाया पर इस भक्त के प्राण संकट में हैं कोई उपाय नहीं सूझ रहा है। ब्रजदास राधारानी का भक्त है वे ही इस के प्राणों की रक्षा कर सकती हैं तो उनको ही बुलाया जाए ।
भगवान भरी दुपहरी में राधारानीके पास महल में गये। राधारानी ने इस गर्मी में आने का कारण पूछा। भगवान भी पूरे मसखरे हैं। उन्होंने कहा तुम्हारे पिता जी बरसाना और नन्दगाँव की डगर में पड़े हैं तुम चलकर संभालो। राधा जी ने कहा कौन पिता जी ?
भगवान ने सारी बात समझाई और चलने को कहा। यह भी कहा कि तुमको ब्रजदास की बेटी की रूप में भोजन , जल लेकर चलना है। राधा जी तैयार होकर पहुँची। पिता जी.. पिता जी.. आवाज लगाई। ब्रजदास जागे। बेटी के चरणों में गिर पड़े, और बोले – आज तू न आती तो प्राण चले जाते।
बेटी से कहा आज तुझे बार – बार देखने का मन कर रहा है। राधा जी ने कहा माँ बाप को संतान अच्छी लगती ही है। आप भोजन लीजिये। ब्रजदास भोजन लेने लगे तो राधा जी ने कहा घर पर कुछ मेहमान आये हैं मैं उनको संभालू आप आ जाना। कुछ दूरी के बाद राधारानी अदृश्य हो गयीं ।
ब्रजदास ने ऐसा भोजन कभी नहीं पाया। शाम को घर आकर ब्रजदास बेटी के चरणों में गिर पड़े। बेटी ने कहा आप ये क्या कर रहे हैं ? ब्रजदास ने कहा आज तुमने भोजन, जल लाकर मेरे प्राण बचा लिये। बेटी ने कहा मैं तो कहीं नहीं गयी। ब्रजदास ने कहा अच्छा बता मेहमान कहाँ हैं ? बेटी ने कहा कोई मेहमान नहीं आया।
अब ब्रजदास के समझ में सारी बात आई। उसने बेटी से कहा कि आज तुम्हारे ही रूप में राधा रानी के दर्शन हुवे।
भाव बिभोर हो गये ब्रजदास, मेरी किशोरी ने मेरे कारण इतनी प्रचण्ड गर्मी में कष्ट उठाया मेरी बेटी के रूप में आकर मुझे भोजन कराया, जल पिलाया और मैं उन्हें पहचान ना सका …..
अब तो बस एक ही आस निरन्तर लगी रहती फिर से श्री राधा रानी के दर्शन मिलें !
बरसाना बरसाना, हो…
प्रेमी भक्तों का है यह पागलखाना
राधा नाम के पागल राधा राधा गुण गाएं
जग की नहीं परवाह मुक्ति को ठुकराएं
बरसाने की भूमि, हो…
सब धामो की मुकट मणि, मनमोहन ने चूमी
बरसाने में विहरत जहां वृषभानु लली
मुकुट से देत बुहारी मोहन उसी गली
बरसाना बरसाए, हो…
सही करने की प्रणाली
💐💐सही करने की प्रणाली💐💐
राजा कर्मवीर अपनी प्रजा के स्वभाव से दुखी रहता था। उसके राज्य के लोग बेहद आलसी थे। वे कोई काम नहीं करना चाहते थे। अपनी जिम्मेदारी वे दूसरों पर टाल दिया करते थे। वे सोचते थे कि सारा काम राज्य की ओर से ही किया जाएगा।
राजा ने अनेक माध्यमों से उन्हें यह संदेश देने की कोशिश की कि किसी भी राज्य में नागरिकों की भी कुछ जिम्मेदारी होती है। राजा ने कई बार सख्त उपाय भी किए पर उनमें कोई सुधार नहीं हुआ।
एक दिन मंत्री ने राजा को एक तरकीब सुझाई। नगर के बीच चौराहे पर एक पत्थर डाल दिया गया, जिससे आधा रास्ता रुक गया।
सुबह-सुबह एक व्यापारी घोड़ागाड़ी से वहां पहुंचा। जब कोचवान ने उसे पत्थर के बारे में बताया तो उसने गाड़ी मुड़वा ली और दूसरे रास्ते से चला गया। कई राहगीर इसी तरह लौट गए।
तभी एक गरीब किसान आया। उसने आसपास खेल रहे लड़कों को बुलवाया और उनके साथ मिलकर पत्थर हटा दिया।
पत्थर हटते ही वहां एक कागज नजर आया, जिस पर लिखा था-इसे राजा तक पहुंचाओ। किसी को कुछ समझ में नहीं आया।
किसान कागज लेकर राजा के पास पहुंचा। राजा ने किसान को भरपूर इनाम दिया।
यह बात राज्य भर में फैल गई। इनाम के लालच में अब लोग इस तरह के कई काम करने लग गए। धीरे-धीरे यह उनकी आदत में शामिल हो गया।
देश मे स्वच्छता अभियान,शौचालय,सैनिकों की वीरता तथा शौर्य का सम्मान इत्यादि विषय इसी प्रकार से लाये गए।
विचार कीजिये अपराध के क्षेत्र में समस्या ये आती थी कि सजा देने के समय पर उस अपराधी को कोई बड़ा नेता या उससे बड़ा अपराधी संरक्षण दे देता था। उत्तर प्रदेश में योगी जी ने चाणक्य नीति के अनुसार एक प्रणाली बनाई जिसमे शीर्ष के 100 अपराधियों की सूची बनाओ और उनको सजा देना प्रारम्भ करो। इस नीति से सभी अपराधियों में होड़ लग गयी कि उस लिस्ट में नाम आने से बचो। इसी कारण प्रदेश में आपराधिक संरक्षण तथा उपद्रव की घटनाये कम हो गयी।
सच्ची मित्रता
💐💐सच्ची मित्रता💐💐
जबलपुर के पास नर्मदा किनारे बसे रामपुर नामक गाँव में एक संपन्न किसान एवं मालगुजार ठाकुर हरिसिंह रहते थे। उन्हें बचपन से ही पेड़-पौधों एवं प्रकृति से बड़ा प्रेम था। वे जब दो वर्ष के थे, तभी उन्होंने एक वृक्ष को अपने घर के सामने लगाया था। इतनी कम उम्र से ही वे उस पौधे को प्यार व स्नेह से सींचा करते थे। जब वे बचपन से युवावस्था में आए तब तक पेड़ भी बड़ा होकर फल देने लगा था। गाँवों में शासन द्वारा तेजी से विकास कार्य कराए जा रहे थे, और इसी के अंतर्गत वहाँ पर सड़क निर्माण का कार्य संपन्न हो रहा था। इस सड़क निर्माण में वह वृक्ष बाधा बन रहा था, यदि उसे बचाते तो ठाकुर हरिसिंह के मकान का एक हिस्सा तोड़ना पड़ सकता था। परंतु उन्होंने वृक्ष को बचाने के लिए सहर्ष ही अपने घर का एक हिस्सा टूट जाने दिया। सभी गाँव वाले इस घटना से आश्चर्यचकित थे एवं उनके पर्यावरण के प्रति लगाव की चर्चा करते रहते थे।
पेड़ भी निर्जीव नहीं सजीव होते है, ऐसी उनकी धारणा थी। इस घटना से मानो वह पेड़ भी बहुत उपकृत महसूस कर रहा था। जब भी ठाकुर साहब प्रसन्न होते तो वह भी खिला-खिला सा महसूस होता था। जब वे किसी चिंता में रहते तो वह भी मुरझाया सा हो जाता था।
एक दिन वे दोपहर के समय पेड़ की छाया में विश्राम कर थे। वहाँ के मनोरम वातावरण एवं ठंडी-ठंडी हवा के कारण उनकी झपकी लग गयी और वे तने के सहारे निद्रा में लीन हो गये। उनसे कुछ ही दूरी पर अचानक से एक सांप कही से आ गया। उसे देखकर वह वृक्ष आने वाले संकट से विचलित हो गया और तभी पेड़ के कुछ फल तेज हवा के कारण डाल से टूटकर ठाकुर साहब के सिर पर गिरे जिससे उनकी नींद टूट गयी। उनकी नींद टूटने से अचानक उनकी नजर उस सांप पर पडी तो वे सचेत हो गये। गाँव वालों का सोचना था, कि वृक्ष ने उनकी जीवन रक्षा करके उस दिन का भार उतार दिया जब उसकी सड़क निर्माण में कटाई होने वाली थी।
समय तेजी से बीतता जाता है और जवानी एक दिन बुढ़ापे में तब्दील हो जाती है इसी क्रम में ठाकुर हरिसिंह भी अब बूढ़े हो गये थे और वह वृक्ष भी सूख कर कमजोर हो गया था। एक दिन अचानक ही रात्रि में ठाकुर हरिसिंह की मृत्यु हो गयी। वे अपने शयनकक्ष से भी वृक्ष को कातर निगाहों से देखा करते थे। यह एक संयोग था या कोई भावनात्मक लगाव का परिणाम कि वह वृक्ष भी प्रातः काल तक जड़ से उखड़कर अपने आप भूमि पर गिर गया।
गाँव वालों ने द्रवित होकर निर्णय लिया कि उस वृक्ष की ही लकड़ी को काटकर अंतिम संस्कार में उसका उपयोग करना ज्यादा उचित रहेगा और ऐसा ही किया गया। ठाकुर साहब का अंतिम संस्कार विधि पूर्वक गमगीन माहौल में संपन्न हुआ जिसमें पूरा गाँव एवं आसपास की बस्ती के लोग शामिल थे और वे इस घटना की चर्चा आपस में कर रहे थे। ठाकुर साहब का मृत शरीर उन लकड़ियों से अग्निदाह के उपरांत पंच तत्वों में विलीन हो गया और इसके साथ-साथ वह वृक्ष भी राख में तब्दील होकर समाप्त हो गया। दोनों की राख को एक साथ नर्मदा जी में प्रवाहित कर दिया गया। ठाकुर साहब का उस वृक्ष के प्रति लगाव और उस वृक्ष का भी उनके प्रति प्रेमभाव, आज भी गाँव वाले याद करते हैं।
समर्पण का भाव…
एक बार एक महिला समुद्र के किनारे रेत पर टहल रही थी, समुद्र की लहरों के साथ कोई एक बहुत चमकदार पत्थर छोर पर आ गया, महिला ने वह नायाब सा दिखने वाला पत्थर उठा लिया, वह पत्थर नहीं असली हीरा था…
महिला ने चुपचाप उसे अपने पर्स में रख लिया, लेकिन उसके हाव-भाव पर बहुत फ़र्क नहीं पड़ा, पास में खड़ा एक बूढ़ा व्यक्ति बडे़ ही कौतूहल से यह सब देख रहा था…
अचानक वह अपनी जगह से उठा और उस महिला की ओर बढ़ने लगा, महिला के पास जाकर उस बूढ़े व्यक्ति ने उसके सामने हाथ फैलाये और बोला, मैंने पिछले चार दिनों से कुछ भी नहीं खाया है, क्या तुम मेरी मदद कर सकती हो?
उस महिला ने तुरंत अपना पर्स खोला और कुछ खाने की चीज ढूँढ़ने लगी, उसने देखा बूढ़े की नज़र उस पत्थर पर है जिसे कुछ समय पहले उसने समुद्र तट पर रेत में पड़ा हुआ पाया था…
महिला को पूरी कहानी समझ में आ गयी, उसने झट से वह पत्थर निकाला और उस बूढ़े को दे दिया, बूढ़ा सोचने लगा कि कोई ऐसी क़ीमती चीज़ भला इतनी आसानी से कैसे दे सकता है…
बूढ़े ने गौर से उस पत्थर को देखा वह असली हीरा था बूढ़ा सोच में पड़ गया, इतने में औरत पलट कर वापस अपने रास्ते पर आगे बढ़ चुकी थी…
बूढ़े ने उस औरत से पूछा, क्या तुम जानती हो कि यह एक बेशकीमती हीरा है?
महिला ने जवाब देते हुए कहा, जी हाँ और मुझे यक़ीन है कि यह हीरा ही है…
लेकिन मेरी खुशी इस हीरे में नहीं है बल्कि मेरे भीतर है, समुद्र की लहरों की तरह ही दौलत और शोहरत आती जाती रहती है…
अगर अपनी खुशी इनसे जोड़ेगे तो कभी खुश नहीं रह सकते, बूढ़े व्यक्ति ने हीरा उस महिला को वापस कर दिया और कहा कि यह हीरा तुम रखो और मुझे इससे कई गुना ज्यादा क़ीमती वह समर्पण का भाव दे दो जिसकी वजह से तुमने इतनी आसानी से यह हीरा मुझे दे दिया…
सारी उम्र हम अपने अहंकार को नहीं छोड़ पाते, हम व्यवहार में अनुभव करें तो पायेंगे कि दूसरों को बिना लोभ कुछ अर्पण भी नहीं कर पाते, भगवान को भी कुछ पाने की लालसा से ही प्रसाद चढाते हैं, लालसा पूर्ण नहीं होती तो भगवान को भी बदल लेते हैं, जबकि भगवान तो एक ही है…
समर्पण के बगैर परमात्मा की प्राप्ति असम्भव है और समर्पण ही है जो भक्ति को अपने गंतव्य तक ले जाएगा।