Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

જુના કપડાઓના બદલામાં નવા વાસણ લેવા માટે કેટલીય કચકચ કરીને, શ્રીમંત ઘરની એ સ્ત્રી એક મોટા સ્ટીલના તપેલાના બદલામાં પોતાની બે જૂની સાડી વાસણ વેચવા આવેલા એ વાસણવાળા ને આપવા માટે છેલ્લે જેમતેમ તૈયાર થઈ.

“ના મોટાબેન ! મને નહિ પોસાય. આવડા મોટા સ્ટીલના તપેલાના બદલામાં મને તમારે ઓછામાઓછી ત્રણ સાડીઓ તો આપવી જ પડશે.” એવું કહેતો વાસણવાળાએ એ વાસણ એ સ્ત્રીના હાથમાંથી લઈ પાછું કોથળામાં મૂક્યું.

“અરે ભાઈ, અરે એક જ વાર પહેરેલી સાડીઓ છે આ બેઇ. જો સાવ નવા જેવી જ છે ! આમ તો આ તારા સ્ટીલના તપેલાના બદલામાં આ બે સાડી તો વધારે જ છે. આ તો હું છું, તે તને બે બે સાડીઓ આપું છું.”

“રહેવા દો, ત્રણથી ઓછી તો મને પરવડશે જ નહીં.” એ પાછું બોલ્યો.

પોતાને અનુકૂળ પડે એમ જ સોદો થવો જોઈએ એવુ એ બન્ને વિચારતા હતા અને પ્રયત્ન કરતા હતા એટલામાં ઘરના બારણામાં ઉભા ઉભા વાસણવાળા સાથે ખેંચતાણ કરતા ઘરમાલિક સ્ત્રીને જોતા જોતા સામેની ગલી માંથી આવી રહેલી એક પાગલ જેવી તરુણ મહિલાએ ઘરની સામે ઊભા રહીને ઘરમાલિક સ્ત્રીને પોતાને કંઈક ખાવાનું આપવા વિનંતી કરી.

આવા ભીખમંગા લોકો માટે ઘૃણા ધરાવતા હોવાથી એ શ્રીમંત મહિલાએ એક ક્રોધથી બળબળતી નજરે એ પાગલ મહિલા સામે જોયું. એની નજર એ પાગલ જેવી દેખાતી મહિલાના કપડાં તરફ ગઈ.
કેટલાયે થાગડ થિંગડા મારેલી એની એ ફાટેલી સાડી માંથી પોતાનું ઉભરતું તારુણ્ય ઢાકવાનો એનો એ અસફળ અને અસહાય પ્રયત્ન દેખાઈ આવતો હતો.

એ શ્રીમંત સ્ત્રીએ પોતાની નજર બીજે ફેરવી લીધી ખરી, પણ પાછી સવાર સવારમાં બારણે આવેલા યાચકને ખાલી હાથે મોકલવો યોગ્ય નથી એવું વિચારીને આગલી રાત ની વધેલી ભાખરી ઘરમાંથી લાવી એ પાગલ મહિલાના વાસણમાં નાખી દીધી અને વાસણવાળા તરફ ફરીને બોલી, “હં , તો ભાઈ શુ નક્કી કર્યું ? બે સાડીના બદલામાં તપેલું આપો છો કે મૂકી દઉ સાડી પાછી?”

આ બાબત કશું જ ન બોલતા વાસણવાળાએ એની પાસેથી મૂંગા મૂંગા એ બે જૂની સાડીઓ લઈ લીધી, પોતાના પોટકામાં નાખી દીધી અને તપેલું એને આપી દીધું અને વાસણનો ટોપલો માથા પર નાખી ઝડપથી નીકળ્યો.

વિજયમુદ્રામાં એ સ્ત્રી હસતા હસતા ઘરનું બારણુ બંધ કરવા ઉભી થઇ અને બારણું બંધ કરતા એની નજર સામે ગઈ… એ વાસણવાળો પોતાનું કપડાંનું પોટકું ખોલીને પેલી પાગલ સ્ત્રીને, એણે હમણાં જ તપેલા ના બદલામાં એને મળેલી બે સાડીઓ માંથી એક સાડી એનું શરીર ઢાંકવા માટે આપતો હતો.

હવે હાથમાં પકડેલું એ તપેલું એ શ્રીમંત સ્ત્રીને અચાનક ખૂબ જ ભારે લાગવા લાગ્યું. એ વાસણવાળાની સરખામણીમાં પોતે એકદમ પોતાને નિમ્ન લાગવા લાગી. પોતાની આર્થિક સરખામણીમાં એ વાસણવાળાની કોઈ કિંમત જ ન હોવા છતાં એ વાસણવાળાએ પોતાનો સંપૂર્ણ પરાજય કર્યો છે, એ એને સમજાઈ ગયું હતું. ભાવ માટે ખેંચાખેંચ કરનારો એ બિલકુલ કશું જ ન બોલતા, છાનોમાનો ફક્ત બે જ સાડીઓ લઈને પેલું મોટું તપેલું કેમ અચાનક આપવા તૈયાર થઈ ગયો, એનું કારણ હવે એ સારી રીતે સમજાઈ ગયું હતું. આપણી જીત થઈ જ નથી અને આ સાવ સામાન્ય વાસણવાળાએ પોતાને પરાભૂત કરી દીધી છે, એ એને સમજાઈ ચૂક્યું હતું.

કોઈકને કઈક આપવા માટે માણસની આર્થિક સધ્ધરતા મહાત્ત્વની નથી, પણ મનની અમીરાત હોવી મહત્ત્વની છે…!!

આપણી પાસે શુ છે અને કેટલું છે એનાથી કશો જ ફરક પડતો નથી !

આપણી વિચારવાની પદ્ધતિ અને દાનત શુદ્ધ હોવી જોઈએ.

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

इस कहानी में बहुत काम की बात है।

*🙏असली उम्र 🙏*

एक बार एक आदमी किसी गाँव के पास से गुजर रहा था।उस रास्ते में श्मशान भूमि थी,उसने श्मशान भूमि में पत्थरों के ऊपर मरने वाले की उम्र लिखी हुई देखी 5 वर्ष,8 वर्ष,10 वर्ष और 20 वर्ष।

उस आदमी ने सोचा कि इस गांव में सभी की मृत्यु अल्प आयु में ही हो जाती है।वह आदमी गांव में गया तो गांव वालों ने उस आदमी की बहुत सेवा सत्कार किया।वह आदमी कुछ दिन उस गांव में ठहरने के बाद वहां से जाने के लिए तैयार हुआ और गांव वालों को बताया कि मैं कल जा रहा हूँ।

उसकी बात सुनकर गांव वाले बहुत दुखी हुए और कहने लगे हमारे से कोई गलती हुई है तो बताओ लेकिन आप यहाँ से न जाओ,आप इसी गाँव में रुक जाओ।वह आदमी कहने लगा कि इस गांव में,मैं और अधिक नहीं रह सकता,क्योंकि इस गांव में इंसान की अल्प आयु में ही मृत्यु हो जाती है।

उसकी बात सुनकर गांव वाले हँसने लगे,और बोले देखो – हमारे बीच में भी कोई 60 वर्ष, 70 वर्ष औऱ 85 वर्ष का भी है। तो उस आदमी ने पूछा कि श्मशान भूमि के पत्थरों पर लिखी मृतक की आयु का क्या कारण है ?

गांव वाले कहने लगे कि हमारे गांव में रिवाज़ है कि आदमी सारा दिन काम काज करके,फिर भगवान का भजन कीर्तन,जीव की सेवा करके,रात को भोजन करने के बाद,जब वह सोने जाता है,तब वो अपनी डायरी के अंदर यह बात लिखता है कि आज कितना समय भगवान का सत्संग, भजन – सुमिरन किया।

जब उस आदमी की मृत्यु होती है,तब उसकी लिखी हुई डायरी लेकर उसके किये हुए भजन सिमरन के समय को जोड़ कर हम उसे महीने और साल बनाकर उसे पत्थरों पर लिख देते हैं। क्योंकि इंसान की असली आयु तो वही है जो उसने भगवान के भजन – सुमिरन में बिताई है।

इंसान का बाकी जीवन तो दुनियाँ मे ही व्यर्थ चला गया..!!
*🙏🏼🙏🏾🙏🏽जय जय श्री राधे*🙏🏿🙏🏻🙏

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

अकबर : मुझे इस राज्य से 5 मूर्ख ढूंढ कर दिखाओ.!!

बीरबल ने खोज शुरू की.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
एक महीने बाद वापस आये सिर्फ 2 लोगों के साथ।

अकबर ने कहा मैने 5 मूर्ख लाने के लिये कहा था !!

बीरबल ने कहां हुजुर लाया हूँ। पेश करने का मौका दिया जाय..

आदेश मिल गया।

बीरबल ने कहा- हुजुर यह पहला मूर्ख है। मैने इसे बैलगाडी पर बैठ कर भी बैग सर पर ढोते हुए देखा और पूछने पर जवाब मिला के कहीं बैल के उपर ज्यादा लोड
ना हो जाए इसलिये बैग सिर पर ढो रहा हुँ!!
इस हिसाब से यह पहला मूर्ख है!!

दूसरा मूर्ख यह आदमी है जो आप के सामने खडा है. मैने देखा इसके घर के ऊपर छत पर घास निकली थी. अपनी भैंस को छत पर ले जाकर घास खिला रहा था. मैने देखा और पूछा तो जवाब मिला कि घास छत पर जम जाती है तो भैंस को ऊपर ले जाकर घास खिला देता हूँ. हुजुर
जो आदमी अपने घर की छत पर जमी घास को काटकर फेंक नहीं सकता और भैंस को उस छत पर ले जाकर घास खिलाता है, तो उससे बडा मूर्ख और कौन हो सकता है!!!

तीसरा मूर्ख: बीरबल ने आगे कहा. जहाँपनाह अपने राज्य मे इतना काम है. पूरी नीति मुझे सम्हालना है. फिर भी मै मूर्खों को ढूढने में एक महीना बर्बाद कर रहा हूॅ इसलिये तीसरा मूर्ख मै
ही हूँ.

चौथा मूर्ख.. जहाँपनाह. पूरे राज्य की जिम्मेदारी आप के ऊपर है.
दिमाग वालों से ही सारा काम होने वाला है. मूर्खों से कुछ होने वाला नहीं है. फिर भी आप मूर्खों को ढूढ रहे हैं. इस लिये चौथा मूर्ख जहाँपनाह आप हुए।

पांचवा मूर्ख…जहाँ पनाह मै बताना चाहता हूँ कि दुनिया भर के काम धाम को छोड़कर. घर परिवार को छोड़कर. पढाई लिखाई पर ध्यान ना देकर, सोशल मीडिया फेसबुक पर पूरा ध्यान लगा कर और पाँचवें मूर्ख को जानने के लिए अब भी पोस्ट पढ़ रहा है वही पाँचवा मूर्ख है

इससे बडा मुर्ख दुनिया में कोई नहीं
😂😂😂

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

( मृत्यु के प्रति एक दृष्टिकोण ऐसा भी )

रोम का सम्राट किसी बात पर अपने मंत्री से क्षुब्ध हो उठा। उसे लगा कि मंत्री भगवान को मुझसे बड़ा मानकर मेरा निरादर कर रहा है। सम्राट ने निर्णय लिया कि जब मंत्री अपना जन्मदिन मनाएगा, उसी दिन उसे फाँसी दे दी जाएगी। मंत्री के जन्मदिवस पर भजन-संगीत और भोज का आयोजन था। तमाम रिश्तेदार और मित्र उपस्थित थे।
उसी समय सम्राट के दूत ने एक लिखित आदेश मंत्री को थमा दिया। उसमें लिखा था – आज शाम छह बजे मंत्री को फाँसी दी जाएगी। यह आदेश पढ़ते ही मंत्री के रिश्तेदार और मित्र हतप्रभ रह गए। पत्नी व बच्चे रोने लगे, किंतु मंत्री मस्ती में भगवान का स्मरण कर नाचने लगा। दूत यह देखकर दंग रह गया। उसने यह बात सम्राट को बताई।

सम्राट ने मंत्री के यहाँ जाकर मंत्री से पूछा – “क्या तुम्हें नहीं पता कि तुम्हें कुछ घंटे बाद फाँसी दे दी जाएगी ?” मंत्री ने कहा – “राजन्! मैं आपके प्रति कृतज्ञ हूँ। मैं आज के दिन ही जन्मा था और आपकी कृपा से आज ही शरीर छोड़कर प्रभु में विलीन हो जाऊँगा। आज मेरे सब मित्र व रिश्तेदार भी यहाँ मौजूद हैं। आपने मेरी मृत्यु को आनंद महोत्सव में बदलकर मुझ पर बहुत एहसान किया है।” सम्राट ने कहा – “तुमने मृत्यु को जीत लिया है और तुम्हें दंडित करने का कुकृत्य मैं नहीं कर सकता।” सम्राट की आंखों की पुतलियां आंसुओं में डूब चुकीं थीं भावविह्वल होकर बस रोए जा रहा था क्योंकि उसे एक नया दर्शन और महाजीवन का अद्भुत सूत्र मिल गया था।

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

आत्म मूल्यांकन


आत्म मूल्यांकन*

एक बार एक व्यक्ति कुछ पैसे निकलवाने के लिए बैंक में गया। जैसे ही कैशियर ने पेमेंट दी कस्टमर ने चुपचाप उसे अपने बैग में रखा और चल दिया। उसने एक लाख चालीस हज़ार रुपए निकलवाए थे। उसे पता था कि कैशियर ने ग़लती से एक लाख चालीस हज़ार रुपए देने के बजाय एक लाख साठ हज़ार रुपए उसे दे दिए हैं लेकिन उसने ये आभास कराते हुए कि उसने पैसे गिने ही नहीं और कैशियर की ईमानदारी पर उसे पूरा भरोसा है चुपचाप पैसे रख लिए।

इसमें उसका कोई दोष था या नहीं लेकिन पैसे बैग में रखते ही 20,000 अतिरिक्त रुपयों को लेकर उसके मन में उधेड़ -बुन शुरू हो गई। एक बार उसके मन में आया कि फालतू पैसे वापस लौटा दे लेकिन दूसरे ही पल उसने सोचा कि जब मैं ग़लती से किसी को अधिक पेमेंट कर देता हूँ तो मुझे कौन लौटाने आता है ???

बार-बार मन में आया कि पैसे लौटा दे लेकिन हर बार दिमाग कोई न कोई बहाना या कोई न कोई वजह दे देता पैसे न लौटाने की।

लेकिन इंसान के अन्दर सिर्फ दिमाग ही तो नहीं होता… दिल और अंतरात्मा भी तो होती है… रह – रह कर उसके अंदर से आवाज़ आ रही थी कि तुम किसी की ग़लती से फ़ायदा उठाने से नहीं चूकते और ऊपर से बेईमान न होने का ढोंग भी करते हो। क्या यही ईमानदारी है ?

उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। अचानक ही उसने बैग में से बीस हज़ार रुपए निकाले और जेब में डालकर बैंक की ओर चल दिया।

उसकी बेचैनी और तनाव कम होने लगा था। वह हल्का और स्वस्थ अनुभव कर रहा था। वह कोई बीमार थोड़े ही था लेकिन उसे लग रहा था जैसे उसे किसी बीमारी से मुक्ति मिल गई हो। उसके चेहरे पर किसी जंग को जीतने जैसी प्रसन्नता व्याप्त थी।

रुपए पाकर कैशियर ने चैन की सांस ली। उसने कस्टमर को अपनी जेब से हज़ार रुपए का एक नोट निकालकर उसे देते हुए कहा, ‘‘भाई साहब आपका बहुत-बहुत आभार ! आज मेरी तरफ से बच्चों के लिए मिठाई ले जाना। प्लीज़ मना मत करना।”

‘‘भाई आभारी तो मैं हूँ आपका और आज मिठाई भी मैं ही आप सबको खिलाऊँगा ’’ – कस्टमर बोला।

कैशियर ने पूछा – ‘‘ भाई आप किस बात का आभार प्रकट कर रहे हो औरहोदख़ुशी में मिठाई खिला रहे होदोप
कस्टमर ने जवाब दिया – ‘‘आभार इस बात का कि बीस हज़ार के चक्कर ने मुझे आत्म-मूल्यांकन का अवसर प्रदान किया। आपसे ये ग़लती न होती तो, न तो मैं द्वंद्व में फँसता और न ही उससे निकल कर अपनी लोभवृत्ति पर क़ाबू पाता। यह बहुत मुश्किल काम था। घंटों के द्वंद्व के बाद ही मैं जीत पाया। इस दुर्लभ अवसर के लिए आपका आभार।”

मित्रों, कहाँ तो वो लोग हैं जो अपनी ईमानदारी का पुरस्कार और प्रशंसा पाने का अवसर नही चूकते और कहाँ वो जो औरों को पुरस्कृत करते हैं।

ईमानदारी का कोई पुरस्कार नहीं होता अपितु ईमानदारी स्वयं में एक बहुत बड़ा पुरस्कार है।

अपने लोभ पर क़ाबू पाना कोई सामान्य बात नहीं। ऐसे अवसर भी जीवन में सौभाग्य से ही मिलते हैं अतः उन्हें गंवाना नहीं चाहिए अपितु उनका उत्सव मनाना चाहिए।

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

ભવાઈ … લોકજીવનનો વિસામો


ભવાઈ … લોકજીવનનો વિસામો
——————————————–

એક સાંજે મારા ગામના ચોકમાં ભૂંગળ વાગે એટલે ગામમાં સહુને ખબર પડી જાય કે ભવાયા આવી ગયા છે અને આજે રાત્રે ચોકમાં ભવાઈ ના ખેલની શરૂઆત થશે. અમારી ઉંમર ત્યારે સાવ નાની લગભગ પ્રાથમિક શાળામાં ભણતા હતા. ભવાયા આવ્યાનું જાણીને મનમાં રાજીપો થતો. આજે ફિલ્મમાં જેમ હીરો અને વિલનનો ક્રેઝ હોય છે. તેમ એ વખતે પણ ભવાઈ મંડળમાં કામ કરતા અમુક કસબીઓનું ભવાઈ કલા ક્ષેત્રે નામ હતું. અમારા ગામની દરવાજા વગરની પરસાળ જેવી ધર્મશાળામાં ભવાઈ ના કસબીઓનો ઉતારો રહેતો. અમે ઉત્સુકતા પૂર્વક એ કસબીઓને જોવા જતા.

ફારસિયો રતિલાલ આવ્યો લાગતો નથી .! એવું કોઈક બોલતું. આ સાંભળીને અમારા મોઢા વિલાઈ જતા. ભવાઈમાં ફારસ (કોમિક)નું ખૂબ મહત્વ રહેતું. અમારા ગામમાં અને રણકાંઠાના અમારી આસપાસના ગામડાઓમાં આ ભવાઈ મંડળ આવતું. સહુ કહેતા એ એમના ગરાસ ના ગામડાઓ છે. એ ગામડાઓમાં તેમના યજમાનો પાસેથી શીખ રૂપે મળેલી આવક લેવાના તેમના અધિકાર હતા. રતિલાલ ફારસિયો ન આવ્યાનો વસવસો મનમાં ઘૂંટાતો ત્યાં જ વળી કોઈ કહેતું પેલો રહ્યો રતિલાલ… ને મનને હાશકારો થતો.

ભવાઈ મંડળી ને પઈડુ કહેવામાં આવતું. એ પઈડા નો એક મુખ્ય જણ હોય તે નાયક કહેવાતો. આ નાયક ગામના મુખી અને પંચ પટેલની રજા લઈ ને સાંજે પોતાના ઉતારે રાવણું ભેગું કરતા. રાત્રે શેનો ખેલ ભજવવાનો છે તે કહેતા. કસુંબા પણ થતા. નાયક એકાદ લોકવાર્તા પણ સંભળાવતા. નાયક આથમતી સાંજે ઘેર ઘેર ફરીને સહુને વેળાસર ખેલ જોવા આવવાનું કહેતા. અમે તો સાંજે જ આગળ કોથળા પાથરીને જગ્યા રોકી લેતા.

ગામ ઉપર અંધારું ઉતરતું અને ભવાઇના કસબીઓ પોતાના પાત્ર પ્રમાણે તૈયાર થવાનું શરૂ કરી દેતા. એકાદ કસબી બહાર વાંસ ના ચોકઠામાં વીજળીના ગોળા શરૂ કરે એટલે ચો-તરફ અજવાળુ પથરાઈ જતું. જ્યાં સુધી ભવાઈ શરૂ ન થાય ત્યાં સુધી તબલા અને કાંસી જોડાના તાલે ગાવાનું ચાલ્યા કરતું. તેના શબ્દો બિલકુલ સમજાતા નહોતા. પણ, તેના વિશિષ્ટ ઢાળને કારણે એ સાંભળવા ગમતા. તબલાંની થાપ સાથે ભળી જતો સાદ એક અનોખી મીઠાશ લઈ ને આવતો. ધીમે-ધીમે વાળુપાણી કરી સહું મોટેરા આવી જતા અને ખેલની શરૂઆત થતી.

ચહેરાની આડે થાળી ધરીને ગણપતિ નો પ્રવેશ થતો. એ પરથમ ગણપતિનું ધ્યાન તમે ધરજો રે… હાર્મોનિયમ -તબલા ની શરૂઆતની ઊંઘી ચલતી ના ઉપાડ પછી ખેમટો અને છેલ્લે હિંચના તાલથી એક વાતાવરણ બંધાઈ જતું. ધીમે-ધીમે રાત જામતી જાય તેમ ખેલ ની જમાવટ પડતી. સાંજે લાકડીના ટેકે જાળવીને ડગલાં માંડીને જતો વૃદ્ધ નાયક રાત્રે રાજાના પોશાકમાં કૂદકો મારીને પ્રવેશ કરતો. આટલી શક્તિ તેનામાં ક્યાંથી આવતી હશે? દિવસે દુર્બળ લાગતા તેના અવાજમાં અત્યારે અનોખો પાવર વર્તાતો હતો. કલા પ્રત્યેનું તેમનું સમર્પણ કદાચ તેમને આ વિશેષ શક્તિ આપતું હશે.

મોટાભાગે ધાર્મિક અને ઐતિહાસિક ખેલ ભજવવામાં આવતા. ખેલમાં વચ્ચે ચા-ખાંડ ની ઉઘરાણી કરવામાં આવતી. કોઈ યજમાન પાકા ભોજનની જાહેરાત કરે ત્યારે તેમનો જય બોલાવવામાં આવતો. વચ્ચે નાચવાવાળી આવતી. તેમાં ગીતો ગવડાવવા અને તેને કટ કરાવવાની ચડસા ચડસી થતી. કોઈ પૈસા આપીને ગામના કોઈ પ્રતિષ્ઠિત વ્યક્તિના બાર બૈરાંનું હમચુડું ગવડાવતા. કોઈને જરાય માઠું નહોતું લાગતું. સહુ હસી ને ભૂલી જતા.

આમ પણ ત્યારે મનોરંજનના ટાંચા સાધનો વચ્ચે ભવાઈએ માણસને માત્ર મનોરંજન જ નથી આપ્યું. પરંતુ, આ માધ્યમ થકી માણસને શિક્ષણ આપીને કેળવ્યો છે. ટેકનોલોજી એ ધીમે ધીમે તાલ બદલ્યો. ફિલ્મ અને ટેલિવિઝનના આગમનથી આ કળા અને તેના કસબીઓને અસ્તિત્વ ટકાવવા માટે ભારે સંઘર્ષ કરવો પડ્યો છે. ભવાઈમાં સ્ત્રી પાત્ર પણ પુરુષ જ ભજવે. સ્ત્રી પાત્ર માટે નાની ઉંમર ના યુવાન જોઈએ. પણ, યુવાનો હવે ભવાઈને કારકિર્દી તરીકે સ્વીકારવા બહુ તૈયાર નથી એટલે નવા યુવાનો મળતા નથી. દિન-પ્રતિદિન વધતી મોંઘવારી અને ભવાઈમાં ઘટતી આવક જેવા અનેક પરિબળો આ કસબીને ભીંસી રહ્યા છે. હજુ બે દિવસ પહેલા જ મારા ગામમાં ભવાઇ મંડળ આવ્યું હતું. દર્શકો માંડ આંગળીને વેઢે ગણી શકાય એટલા હતા!

જ્યારે કસબી કોઈ પાત્ર ભજવે ત્યારે એ પાત્રમાં એકાકાર થઈ જતો હોય છે. ભલે પૂરતી આવક ન મળે તોય કળસ્યો પાણી પી ને કલાને જીવાડવા મથતો હોય છે. પણ, એ કલાનો કદરદાન પ્રેક્ષક જ્યારે મો ફેરવી જાય ત્યારે માત્ર કલાકાર જ નહીં તેની કલા અને કસબ અંદર અને બહાર થી તૂટી જતા હોય છે… અમને યાદ આવે છે એક રચના… અમે ઘાઘરી પેરીને પડમાં ઘૂમ્યા જોનારા કોઈ ના મળ્યા રે જી…

# આલેખન : અંબુ પટેલ
——————————-

અતીતની યાદ…..
——————————-

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

समाज की ताकत


समाज की ताकत💐💐

एक आदमी था, जो हमेशा अपने समाज में सक्रिय रहता था। उसको सभी जानते थे, बड़ा मान सम्मान मिलता था। अचानक किसी कारणवश वह निश्क्रिय रहने लगा, मिलना-जुलना बंद कर दिया और समाज से दूर हो गया।

कुछ सप्ताह पश्चात् एक बहुत ही ठंडी रात में उस समाज के मुखिया ने उससे मिलने का फैसला किया। मुखिया उस आदमी के घर गया और पाया कि आदमी घर पर अकेला ही था। एक बोरसी में जलती हुई लकड़ियों की लौ के सामने बैठा आराम से आग ताप रहा था। उस आदमी ने आगंतुक मुखिया का बड़ी खामोशी से स्वागत किया।

दोनों चुपचाप बैठे रहे। केवल आग की लपटों को ऊपर तक उठते हुए ही देखते रहे। कुछ देर के बाद मुखिया ने बिना कुछ बोले, उन अंगारों में से एक लकड़ी जिसमें लौ उठ रही थी (जल रही थी) उसे उठाकर किनारे पर रख दिया और फिर से शांत बैठ गया।

मेजबान हर चीज़ पर ध्यान दे रहा था। लंबे समय से अकेला होने के कारण मन ही मन आनंदित भी हो रहा था कि वह आज अपने समाज के मुखिया के साथ है। लेकिन उसने देखा कि अलग की हुए लकड़ी की आग की लौ धीरे धीरे कम हो रही है। कुछ देर में आग बिल्कुल बुझ गई। उसमें कोई ताप नहीं बचा। उस लकड़ी से आग की चमक जल्द ही बाहर निकल गई।

कुछ समय पूर्व जो उस लकड़ी में उज्ज्वल प्रकाश था और आग की तपन थी वह अब एक काले और मृत टुकड़े से ज्यादा कुछ शेष न था।

इस बीच… दोनों मित्रों ने एक दूसरे का बहुत ही संक्षिप्त अभिवादन किया, कम से कम शब्द बोले। जाने से पहले मुखिया ने अलग की हुई बेकार लकड़ी को उठाया और फिर से आग के बीच में रख दिया। वह लकड़ी फिर से सुलग कर लौ बनकर जलने लगी, और चारों ओर रोशनी और ताप बिखेरने लगी।

जब आदमी, मुखिया को छोड़ने के लिए दरवाजे तक पहुंचा तो उसने मुखिया से कहा मेरे घर आकर मुलाकात करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। आज आपने बिना कुछ बात किए ही एक सुंदर पाठ पढ़ाया है कि अकेले व्यक्ति का कोई अस्तित्व नहीं होता, समाज का साथ मिलने पर ही वह चमकता है और रोशनी बिखेरता है। समाज से अलग होते ही वह लकड़ी की भाँति बुझ जाता है।

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

नवला या मेंढक


नवला या मेंढक💐💐

समीर बहुत परेशान था। पिछले कुछ दिनों से एक के बाद एक उसे किसी न किसी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था। कभी ऑफिस में बॉस के साथ बहस हो जाती तो कभी घर पर वाइफ से तो कभी उसे किसी कलीग की बात ठेस पहुंचा दे रही थी।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे इसलिए वो एक आश्रम में अपने गुरु जी के पास पहुंचा और अपनी समस्या बता दी।
गुरु जी ने उसकी बात सुनी और कहने लगे-
“क्या तुम जानते हो नेवले सांप को मारकर खा जाते हैं?”
“क्या?”
“कितना अद्भुत है, ये छोटे से नेवले इतने ज़हरीले कोबरा सांप तक को मारकर खा जाते हैं। ऐसा लगता है कि इन नेवलों को साँपों ने इतनी बार काटा है कि उनके अन्दर एक प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गयी है और अब उनके ऊपर इस ज़हर का कोई असर नहीं होता!”
“क्या?”, समीर को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि गुरूजी क्या बात कर रहे हैं।
“और क्या तुम जानते हो, जंगली इलाकों में एक प्रजाति के छोटे-छोटे मेंढक होते हैं जो बेहद जहरीले होते हैं। वे पैदाइशी ऐसे नहीं होते, वे रोज थोड़ा-थोड़ा कर के ऐसा खाना खाते हैं कि उनके पूरे शरीर में ज़हर भर जाता है और लोग उनसे दूर ही रहते हैं।
ये सुनकर समीर से रहा नहीं गया, और वह झल्लाहट में बोला, ” मुझे समझ नहीं आता कि मैंने आपसे अपनी लाइफ की एक प्रॉब्लम शेयर की और आप मुझे जंतु विज्ञान का पाठ पढ़ा रहे हैं!”
गुरु जी मुस्कुराए।
बेटा, जब तुम ज़हर रुपी दर्द या परेशानी को अनुभव करो तो तुम्हारे पास दो विकल्प होते हैं। तुम नेवले की तरह उस अनुभव को ज़हर के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में प्रयोग कर सकते हो यानि कि तुम विपरीत परिस्थितियों का सामना करके खुद को और मजबूत बना सकते हो… या तुम उन मेंढकों की तरह बन सकते हो जो ज़हर को अपने शरीर का हिस्सा बनाते जाते हैं और इसी वजह से से हर कोई उनसे दूरी बना कर रखना चाहता है।
ऐसा कोई इंसान नहीं जिसके साथ कभी कुछ बुरा नहीं होता, ऐसा होने पर कोई कैसे प्रितिक्रिया करता है ये उसके ऊपर है!
बताओ तुम कैसे बनना चाहोगे…नेवले की तरह या मेंढक के जैसे?

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

પત્નીના વારંવાર નાં ગુસ્સાથી કંટાળી ગયેલા પતિએ તેની પત્નીને ખીલાથી ભરેલી બેગ આપી અને કહ્યું, “જેટલી વાર ગુસ્સો આવે તેટલી વખત થેલીમાંથી ખીલો કાઢીને વાડાની દિવાલ પર ઠોકી દેવાનો !”

બીજા દિવસે પત્નીને ગુસ્સો આવતાં જ તેણે વાડાની દીવાલ પર ખીલો માર્યો. તેણીએ આ પ્રક્રિયા ઘણાં દિવસો સુધી સતત ચાલુ રાખી.

ધીરે ધીરે, તે સમજવા લાગી કે ખીલા પર હથોડી મારવાના નિરર્થક પ્રયત્નો કરવા કરતાં તેના ગુસ્સાને કાબૂમાં રાખવું વધુ સારું છે અને ધીમે ધીમે તેની વાડાની દિવાલ પર ખીલાને ઉપર હથોડા મારવાની સંખ્યા ઘટતી ગઈ.

એક દિવસ એવો પણ આવ્યો કે પત્નીએ દિવસ દરમિયાન એક પણ ખીલો માર્યો ન હતો.

તેણે ખુશીથી આ વાત તેના પતિને જણાવી. તે ખૂબ જ પ્રસન્ન થયા અને બોલ્યા, હવે એક કામ કર “જે દિવસે તને લાગશે કે મને એક વખત પણ ગુસ્સો આવ્યો નથી, ત્યારે હથોડા મારેલા ખીલા માંથી એક દિવાલ માંથી ખીલો કાઢી નાખવો.”

પત્ની પણ તેમ કરવા લાગી. એક દિવસ એવો પણ આવ્યો કે દિવાલમાં એક ખીલો પણ બચ્યો ન હતો. તેણે ખુશીથી આ વાત તેના પતિને જણાવી.

પતિ એ પત્નીને દોરીને વાડાની દિવાલ પાસે લઈ ગયો અને ખીલા કાણાં બતાવીને પૂછ્યું, “શું તું આ કાણાં ભરી શકીશ?”*

પત્નીએ કહ્યું, , ના એ શક્ય નથી.

પતિએ તેના ખભા પર હાથ મુકીને કહ્યું, “હવે સમજ, તું ગુસ્સામાં જે કઠોર શબ્દો બોલે છે, તેનાથી બીજાના હૃદયમાં એવું કાણું પાડી દે છે, જે ભવિષ્યમાં તું ક્યારેય ભરી નહીં શકે!

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

એક વાર બીજા વિશ્વયુદ્ધ વખતે ચીનમાં એવું થયું. બે ભાઈઓ વિભક્ત થયા. પિતા મરણશય્યા ઉપર હતા,તેથી પિતાએ બન્ને પુત્રોને વિભક્ત કરી દીધા. બન્ને ભાઈઓના હાથમાં એક – એક લાખ રૂપિયા આવ્યા. એક ભાઈએ તો રૂપિયા આવતાં જ સખત મહેનત શરૂ કરી દીધી. એક – એક પૈસો બચાવીને, જીવનને દાવમાં મુકીને કમાવવા લાગ્યો. બીજા ભાઈએ તો લાખ રૂપિયાનો દારૂ પીય ગયો. ફક્ત દારૂની બોટલોનો ઢગલો જ એની પાસે બચ્યો.
સ્વાભિવિક રીતે જ જેમણે દારૂ પીધો હતો, તેને બધા જ લોકો કહેવા લાગ્યા કે બરબાદ થઈ ગયો, દેવાળું કાઢ્યું, ખતમ થઈ ગયો. પરંતુ ત્યાં કોઈ સાંભળનાર પણ ન હતું. એ તો એટલો દારૂ પીધે રાખતો હતો કે કોણ બરબાદ થઈ ગયું! કોની બાબતે વાત કરી રહ્યા છો! કંઈ ખબર જ હતી. પરંતુ બોટલો જરૂર ભેગી થતી રહી.
અને જીંદગી ક્યારેક બહુજ મોટી મશ્કરી કરે છે. અને મશ્કરી થઈ. જે ભાઈએ લાખ રૂપિયા ધંધામાં રોક્યા હતા, તે લાખ રૂપિયા ધંધામાં ડૂબી ગયા. અને યુદ્ધ આવ્યું, અને દારૂની બોટલોની કિંમત બહુજ વધી ગઈ. અને એ માણસે બધી જ બોટલો વેચી નાખી. અને કહેવાય છે કે તેને લાખ રૂપિયા પાછા મળી ગયા. તેણે એક લાખ રૂપિયાની બોટલો વેચી નાખી.

વખત જતા દારૂડિયા ભાઈએ ફરી દારુ ઢીચ્યો, આદત જાય નહિ ને. ને લાખ રૂપિયા પુરા થઇ ગયા. બીજા ભાઈએ ફરી મહેનત કરી. જ્યાં પહેલાં ભૂલ થઇ હતી ત્યાં સાવચેતી રાખી અને સુન્ય માંથી સર્જન કર્યું. વખત લાગ્યો પણ કામ જડબેસલાક થયું.

મહેનત થી કમાયો તેથી તેનું ધન વ્યર્થ ના ફરી વેડફાયું. તેના જીવનને સાતા મળી.