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साधू की झोपड़ी


साधू की झोंपड़ी

उपरमालिया गाँव में दो साधू रहते थे, वे दिन भर भीख मांगते और मंदिर में पूजा करते थे। एक दिन गाँव में आंधी आ गयी और बहुत जोरों की बारिश होने लगी; दोनों साधू गाँव की सीमा से लगी एक झोपडी में निवास करते थे, शाम को जब दोनों वापस पहुंचे तो देखा कि आंधी-तूफ़ान के कारण उनकी आधी झोपडी टूट गई है। यह देखकर पहला साधू क्रोधित हो उठता है और बुदबुदाने लगता है ,” भगवान तू मेरे साथ हमेशा ही गलत करता है… में दिन भर तेरा नाम लेता हूँ , मंदिर में तेरी पूजा करता हूँ फिर भी तूने मेरी झोपडी तोड़ दी… गाँव में चोर – लुटेरे झूठे लोगो के तो मकानों को कुछ नहीं हुआ , बिचारे हम साधुओं की झोपडी ही तूने तोड़ दी ये तेरा ही काम है …हम तेरा नाम जपते हैं पर तू हमसे प्रेम नहीं करता….”

तभी दूसरा साधू आता है और झोपडी को देखकर खुश हो जाता है नाचने लगता है और कहता है भगवान् आज विश्वास हो गया तू हमसे कितना प्रेम करता है ये हमारी आधी झोपडी तूने ही बचाई होगी वर्ना इतनी तेज आंधी – तूफ़ान में तो पूरी झोपडी ही उड़ जाती ये तेरी ही कृपा है कि अभी भी हमारे पास सर ढंकने को जगह है…. निश्चित ही ये मेरी पूजा का फल है , कल से मैं तेरी और पूजा करूँगा , मेरा तुझपर विश्वास अब और भी बढ़ गया है… तेरी जय हो !

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ભગવાને ભગા ભાઈ ની પરીક્ષા લેવા કહ્યું. “ભગા તુ તારા બધા મિત્રો ને છોડી દે ટો તને એક ફેરારી આપીશ.”

ભગા એ ભગવાન સામે જોયું ને કહ્યું: ‘ હે ભવાન, આ એજ મિત્રો છે જે મારા સુખ અને દુઃખ માં હર ઘડી સાથ આપ્યો છે. ક્યારેક રડ્યો તો પોતાને હાથે મારા આશુ લુછયા છે. ક્યારેક પાણી પણ પીધું તો મારી સાથે શેર કરી પીધું. મારા એક અવાજ પર દોડી ને આવી જાય છે. અને તમે કહો છો એક ફરારી માટે તેઓને છોડી દઉં?

ભલે, કાઈ વાંઢો નહિ.

પણ ફેરારી લાલ કલરની જ આપજો હો

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Happy Married Life


एक College मे Happy Married Life के उपर एक Workshop चल रहा थाl जिसमें कुछ बिवाहीत जोडीया हिस्सा ले रही थी जिस वक्त प्रोफेसर साहब मंच पे आये उन्होंने देखा की सभी जोड़ीया एक दूसरे मे हंसी मजाक करते हुए खुब हंस रहे थे।

तब प्रोफेसर ने कहा की आप लोगों को एक दूसरे मे खुश देखकर बड़ा आनन्द मिला। चलो इसी खुशी मे एक खेल खेलते हैं फिर हम आज की मुख्य विषय पर वार्तालाप करेंगे। ये सुन कर सारे खुश हो गयेI

फिर प्रोफेसर ने उस भीड़ मे से एक बिवाहीत लड़की को बुलाकर कहा की आप जिन जिनसे आप बेहद प्यार करते हो उनके नाम बैल्कबोर्ड मे लिखोI फिर वह बिवाहीत लड़की ने बड़ी खुशी के साथ मुस्कुराते हुये अपने दोस्तों और अपनों के सारे नाम बैल्क-बोर्ड मे लिख दिए। कोई 20-25 नाम थे।

तब प्रोफेसर ने कहा की आप इन नामों मे से कोई 5 नाम मिटाओI लड़की ने आसानी से अपने 5 पडोशी के नाम मिटा दिये। प्रोफेसर ने कहा की अब आप और 10 नाम मिटाओI लड़की ने सभी की ओर मुस्कारा कर देखा और फिर अपने रिश्तेदारों के नाम मिटायेI प्रोफेसर ने फिर कहा की इनमें से आप अब और 5 नाम मिटाओI लड़की थोड़ी गम्भीर हुईंI फिर सोचा की ये तो खेल है, सोच कर अपने दोस्तों के नाम मिटा दियेI

अब बैल्कबोर्ड पे सिर्फ चार नाम रह गयेI

माँ, पापा, पति और बेटे काI

भले ये एक खेल था फिर भी पूरा कमरा शांत हो गया था क्योंकि लड़की के साथ साथ पूरे कमरे के लोग दिमाग से इस खेल को खेल रहे थे। तब प्रोफेसर ने कहा की इनमें से दो नाम मिटाओI लड़की प्रोफेसर को ताकती रहीI प्रोफेसर ने कहा की ये तो बस एक खेल हैI तुम जल्दी से दो नाम मिटाओI

लड़की अचानक बेहद उदास हो गई और कांपते हाथों से उसने अपनी माँ पापा का नाम मिटा दिया। पूरा कमरा अवाक रह गयाI लड़की की आखो मे आंशू थेI कीसी को उम्मीद भी नहीं थी की वह ऐसा करेगीI

अब सिर्फ दो नाम रह गया….पति और बेटे काI

प्रोफेसर ने कहा, अब आप इनमें से कोई एक नाम मिटाओI

इतना सुनते ही लड़की फफक फफक कर रो पड़ीI

प्रोफेसर ने कहा की चलो, जल्दी करोI

लड़की ने रोते हुए सर झूका कर बेटे का नाम मिटा दिया और वहीं जमीन पे रोते रोते बैठ गईI सारा माहौल गमगीन हो गयाI सब लड़की के रवैये से स्तंभ रह गयेI तब प्रोफेसर ने लड़की से कहा पूछा की तुमने अपने माँ पापा और बेटे से ज्यादा अपने पति को महत्व दिया, ऐसा क्यों??

तब लड़की ने रोते रोते कहा की जिंदगी मे ये चार रिश्ते बेहद मुल्यवान होते हैंI फैसला लेने के लिए हमें मौत के दरवाजे तक जाना पड़ता है। मेरे माँ पापा बुजुर्ग हो चुके हैI कभी न कभी वह हमें छोड़ के चले जायेगेI बेटा भी जब बड़ा होगा तो वह अपनी पत्नी के साथ खुश रहेगा पर मेरा पति मेरे साथ तब तक है जब तक मेरी धड़कन मे हलचल है जब तक मैं जिन्दा हूँI वह मेरे आधा हिस्सा हैं येदी मैं उन्हें ही मिटा दूंगी तो फिर मुझमें और क्या बाकी रह जायेगा क्योंकि मेरी पहचान और मेरी जिंदगी ही मेरा पति हैI

सब लोग खड़े होकर आखो मे आंशू लिए ताली बजाने लगे क्योंकि एक औरत के लिए जिन्दगी की असली सच्चाई ही ये ही होती हैI जिन्दगी भले मजाक मस्ती से भरी हो लेकिन सच तो ये है की पति-पत्नी का रिश्ता बेहद ही अनमोल और अद्भुत होता है क्योंकि एक सम्पूर्ण स्त्री तब आधी मर जाती है जब उसका साया (पति) साथ छोड़ जाता हैI

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ધ્યાન અને જ્ઞાન


ધ્યાન અને જ્ઞાન

એક સ્ત્રી રોજ મંદિરે જતી. એક દિવસ સ્ત્રીએ પૂજારીને કહ્યું કે, “બાબા, હવે હું મંદિરમાં નહીં આવું.” આના પર પૂજારીએ પૂછ્યું – “કેમ?”  ત્યારે મહિલાએ કહ્યું – “હું જોઉં છું કે લોકો મંદિરના પરિસરમાં તેમના ફોનથી તેમના વ્યવસાય વિશે વાત કરે છે. કેટલાકે તો પંચાત માટે જ મંદિરને પસંદ કર્યું છે. કેટલાક પૂજે છે તે થોડો દંભ ને દેખાડો વધારે છે.

આના પર પુરોહિત થોડીવાર મૌન રહ્યા, પછી બોલ્યા – “તે સાચું છે! પણ તારો અંતિમ નિર્ણય લેતા પહેલા, હું જે કહું તે કરવું, ત્યાર બાદ તું કોઈ પણ નિર્ણય લઇ શકે છે.”

મહિલાએ કહ્યું- “તમે જ કહો કે શું કરું?”

પૂજારીએ કહ્યું- “એક દીવો લે પ્રગટાવ અને મંદિર પરિસરમાં બે વાર પરિક્રમા કર. શરત એ છે કે દીવો ઓલવાવો નાં જોઈએ.”

મહિલાએ કહ્યું – “હું આ કરી શકું છું.” પછી થોડી જ વારમાં પેલી સ્ત્રીએ એવું જ કર્યું. ત્યારપછી મંદિરના પૂજારીએ મહિલાને 3 પ્રશ્નો પૂછ્યા-

1.શું તમે કોઈને ફોન પર વાત કરતા જોયા છે.

2. શું તમે કોઈને મંદિરમાં ગપસપ કરતા જોયા છે.

3. તમે કોઈને દંભ કરતા જોયા છે.

સ્ત્રીએ કહ્યું- “ના, મેં કશું જોયું નથી.”

ત્યારે પૂજારીએ કહ્યું — “તું જ્યારે પરિક્રમા કરી રહી હતી ત્યારે તારું આખું ધ્યાન તે દીપક પર હતું. જે ઓલવાવો ના જોઈએ એનું તુ ધ્યાન રાખતી હતી. એટલે તને બીજું બધું કંઈ દેખાયું નહીં, હવે જ્યારે પણ તું મંદિરમાં આવે ત્યારે ધ્યાન ભગવાન પર કેન્દ્રિત કરજે. ફક્ત પરમ પિતા પરમાત્મા પર. બીજું કશું વિચારીશ નહિ જોઇશ નહિ, ત્યાર બાદ બધે માત્ર ભગવાન જ દેખાશે…!!

ધ્યાન ભગવાનનું અને જ્ઞાન દીપકનું. આ દીપક મારા કર્મ નો સાક્ષી છે.

ॐ असतो मा सद्गमय।

तमसो मा ज्योतिर्गमय।

मृत्योर्मामृतं गमय ॥

ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ॥ – बृहदारण्यकोपनिषद् 1.3.28

હે પ્રભુ (અમને) અસત્યમાંથી સત્ય તરફ દોરી જાઓ. અમને અંધકારમાંથી પ્રકાશ તરફ લઈ જાઓ. અમને મૃત્યુમાંથી અમરત્વ તરફ દોરી જાઓ.

હર્ષદ અશોડીયા ક.

૮૩૬૯૧૨૩૯૩૫

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शबरी को आश्रम सौंपकर महर्षि मतंग जब देवलोक जाने लगे, तब शबरी भी साथ जाने की जिद करने लगी।

शबरी की उम्र दस वर्ष थी। वो महर्षि मतंग का हाथ पकड़ रोने लगी।

महर्षि शबरी को रोते देख व्याकुल हो उठे। शबरी को समझाया “पुत्री इस आश्रम में भगवान आएंगे, तुम यहीं प्रतीक्षा करो।”

अबोध शबरी इतना अवश्य जानती थी कि गुरु का वाक्य सत्य होकर रहेगा, उसने फिर पूछा- कब आएंगे..?

महर्षि मतंग त्रिकालदर्शी थे। वे भूत भविष्य सब जानते थे, वे ब्रह्मर्षि थे। महर्षि शबरी के आगे घुटनों के बल बैठ गए और शबरी को नमन किया।

आसपास उपस्थित सभी ऋषिगण असमंजस में डूब गए। ये उलट कैसे हुआ। गुरु यहां शिष्य को नमन करे, ये कैसे हुआ???

महर्षि के तेज के आगे कोई बोल न सका।
महर्षि मतंग बोले-
पुत्री अभी उनका जन्म नहीं हुआ।
अभी दशरथ जी का लग्न भी नहीं हुआ।
उनका कौशल्या से विवाह होगा। फिर भगवान की लम्बी प्रतीक्षा होगी।
फिर दशरथ जी का विवाह सुमित्रा से होगा। फिर प्रतीक्षा..

फिर उनका विवाह कैकई से होगा। फिर प्रतीक्षा..

फिर वो जन्म लेंगे, फिर उनका विवाह माता जानकी से होगा। फिर उन्हें 14 वर्ष वनवास होगा और फिर वनवास के आखिरी वर्ष माता जानकी का हरण होगा। तब उनकी खोज में वे यहां आएंगे। तुम उन्हें कहना आप सुग्रीव से मित्रता कीजिये। उसे आतताई बाली के संताप से मुक्त कीजिये, आपका अभीष्ट सिद्ध होगा। और आप रावण पर अवश्य विजय प्राप्त करेंगे।

शबरी एक क्षण किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई। अबोध शबरी इतनी लंबी प्रतीक्षा के समय को माप भी नहीं पाई।

वह फिर अधीर होकर पूछने लगी- “इतनी लम्बी प्रतीक्षा कैसे पूरी होगी गुरुदेव???”

महर्षि मतंग बोले- “वे ईश्वर है, अवश्य ही आएंगे।यह भावी निश्चित है। लेकिन यदि उनकी इच्छा हुई तो काल दर्शन के इस विज्ञान को परे रखकर वे कभी भी आ सकते है। लेकिन आएंगे “अवश्य”…!

जन्म मरण से परे उन्हें जब जरूरत हुई तो प्रह्लाद के लिए खम्बे से भी निकल आये थे। इसलिए प्रतीक्षा करना। वे कभी भी आ सकते है। तीनों काल तुम्हारे गुरु के रूप में मुझे याद रखेंगे। शायद यही मेरे तप का फल है।”

शबरी गुरु के आदेश को मान वहीं आश्रम में रुक गई। उसे हर दिन प्रभु श्रीराम की प्रतीक्षा रहती थी। वह जानती थी समय का चक्र उनकी उंगली पर नाचता है, वे कभी भी आ सकतें है।

हर रोज रास्ते में फूल बिछाती है और हर क्षण प्रतीक्षा करती।

कभी भी आ सकतें हैं।
हर तरफ फूल बिछाकर हर क्षण प्रतीक्षा। शबरी बूढ़ी हो गई।लेकिन प्रतीक्षा उसी अबोध चित्त से करती रही।

और एक दिन उसके बिछाए फूलों पर प्रभु श्रीराम के चरण पड़े। शबरी का कंठ अवरुद्ध हो गया। आंखों से अश्रुओं की धारा फूट पड़ी।

गुरु का कथन सत्य हुआ। भगवान उसके घर आ गए। शबरी की प्रतीक्षा का फल ये रहा कि जिन राम को कभी तीनों माताओं ने जूठा नहीं खिलाया, उन्हीं राम ने शबरी का जूठा खाया।

ऐसे पतित पावन मर्यादा, पुरुषोत्तम, दीन हितकारी श्री राम जी की जय हो। जय हो। जय हो। एकटक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद वृद्धा भीलनी के मुंह से स्वर/बोल फूटे-

“कहो राम ! शबरी की कुटिया को ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ..?”

राम मुस्कुराए- “यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मोल/मूल्य..?”

“जानते हो राम! तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्मे भी नहीं थे, यह भी नहीं जानती थी कि तुम कौन हो ? कैसे दिखते हो ? क्यों आओगे मेरे पास ? बस इतना ज्ञात था कि कोई पुरुषोत्तम आएगा, जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा।

राम ने कहा- “तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था कि राम को शबरी के आश्रम में जाना है।”

“एक बात बताऊँ प्रभु ! भक्ति में दो प्रकार की शरणागति होती है। पहली ‘वानरी भाव’ और दूसरी ‘मार्जारी भाव’।

”बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है, ताकि गिरे न… उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। दिन रात उसकी आराधना करता है…!” (वानरी भाव)

पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया। ”मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी, जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न, वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी, और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है। मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हें क्या पकड़ना…।” (मार्जारी भाव)

राम मुस्कुराकर रह गए!!

भीलनी ने पुनः कहा- “सोच रही हूँ बुराई में भी तनिक अच्छाई छिपी होती है न… “कहाँ सुदूर उत्तर के तुम, कहाँ घोर दक्षिण में मैं!” तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य, मैं वन की भीलनी। यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते..?”

राम गम्भीर हुए और कहा-

भ्रम में न पड़ो मां! “राम क्या रावण का वध करने आया है..?”

रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैर से बाण चलाकर भी कर सकता है।

राम हजारों कोस चलकर इस गहन वन में आया है, तो केवल तुमसे मिलने आया है मां, ताकि “सहस्त्रों वर्षों के बाद भी, जब कोई भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे, कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिलकर गढ़ा था।”

“जब कोई भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़कर कहे कि नहीं! यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ, एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है।”

राम वन में बस इसलिए आया है, ताकि “जब युगों का इतिहास लिखा जाए, तो उसमें अंकित हो कि “शासन/प्रशासन और सत्ता” जब पैदल चलकर वन में रहने वाले समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे, तभी वह रामराज्य है।”
(अंत्योदय)

राम वन में इसलिए आया है, ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं। राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया है माँ!

माता शबरी एकटक राम को निहारती रहीं।

राम ने फिर कहा-

राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता! “राम की यात्रा प्रारंभ हुई है, भविष्य के आदर्श की स्थापना के लिए।”

“राम राजमहल से निकला है, ताकि “विश्व को संदेश दे सके कि एक माँ की अवांछनीय इच्छओं को भी पूरा करना ही ‘राम’ होना है।”

“राम निकला है, ताकि “भारत विश्व को सीख दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है।”

“राम आया है, ताकि “भारत विश्व को बता सके कि अन्याय और आतंक का अंत करना ही धर्म है।”

“राम आया है, ताकि “भारत विश्व को सदैव के लिए सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाए और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाए।”

और

“राम आया है, ताकि “युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी शबरी के आशीर्वाद से जीते जाते है।”

शबरी की आँखों में जल भर आया था।
उसने बात बदलकर कहा- “बेर खाओगे राम..,?”

राम मुस्कुराए, “बिना खाये जाऊंगा भी नहीं मां!”

शबरी अपनी कुटिया से झपोली में बेर लेकर आई और राम के समक्ष रख दिये।

राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा-
“बेर मीठे हैं न प्रभु..?”

“यहाँ आकर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ मां! बस इतना समझ रहा हूँ कि यही अमृत है।”

सबरी मुस्कुराईं, बोली- “सचमुच आप मर्यादा पुरुषोत्तम हो, राम!”

मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान श्री राम को बारंबार सादर वंदन……॥
…………………….
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द्वारका


गुजरात हाई कोर्ट ने Bet Dwarka के 2 द्वीपों पर कब्जा जमाने के सुन्नी वक्फ बोर्ड के सपने को चकनाचूर कर दिया है।।

इस समय गुजरात का यह विषय बहुत चर्चा में है।। सोशल मीडिया के माध्यम से हम लोगों को मालूम पड़ गया वरना पता ही नहीं चलता।
कैसे पलायन होता है और कैसे कब्जा होता है, क्या लैंड जिहाद होता है वह समझने के लिए आप बस बेट द्वारिका टापू का अध्यन करलें तो सब प्रक्रिया समझ आ जायेगी।
कुछ साल पहले तक यहाँ कि लगभग पूरी आबादी हिन्दू थी।
यह ओखा नगरपालिका के अन्तर्गत आने वाला क्षेत्र है जहाँ जाने का एकमात्र रास्ता पानी से होकर जाता है।इसलिए बेट द्वारिका से बाहर जाने के लिए लोग नाव का प्रयोग करते हैं।।
यहाँ द्वारिकाधीश का प्राचीन मंदिर स्थित है।
कहते हैं कि 5हजार साल पहले यहाँ रुक्मिणी ने मूर्ति स्थापना करी थी।
समुद्र से घिरा यह टापू बड़ा शांत रहता था।
लोगो का मुख्य पेशा मछली पकड़ना था।
धीरे धीरे यहाँ बाहर से मछली पकड़ने वाले मुस्लिम आने लगे।
दयालु हिन्दू आबादी ने इन्हें वहाँ रहकर मछली पकड़ने की अनुमती दे दी।
धीरे धीरे मछली पकडने के पूरे कारोबार पर मुस्लिमों का कब्जा हो गया।
बाहर से फंडिंग के चलते इन्होंने बाजार में सस्ती मछली बेची जिससे सब हिन्दू मछुआरे बेरोजगार हो गये।
अब हिन्दू आबादी ने रोजगार के लिए टापू से बाहर जाना शुरू किया।
लेकिन यहां एक और चमत्कार हो गया।
बेट द्वारिका से ओखा तक जाने के लिए नाव में 8 रुपये किराया लगता था।
अब क्योंकि सब नावों पर मुस्लिमों का कब्जा हो गया था तो उन्होंने किराये का नया नियम बनाया।
जो हिन्दू नाव से ओखा जायेगा वह किराये के 100 रुपये देगा और मुस्लिम वही 8 रुपये देगा।
अब कोई दिहाड़ी हिन्दू केवल आवाजाही के 200 रुपये देगा तो वह बचायेगा क्या ?
इसलिए रोजगार के लिए हिन्दुओ ने वहाँ से पलायन शुरू कर दिया।
अब वहाँ केवल 15 प्रतिशत हिन्दू आबादी रहती है।
आपने पलायन का पहला कारण यहाँ पढ़ा।
रोजगार के 2 मुख्य साधन मछली पकड़ने का काम और ट्रांसपोर्ट दोनो हिन्दुओ से छीन लिया गया।

जैसे बाकी सब जगह राज मिस्त्री,कारपेंटर, इलेक्ट्रॉनिक मिस्त्री , ड्राइवर ,नाई व अन्य हाथ के काम 90% तक हिन्दुओ ने उनके हवाले कर दिये हैं।

अब बेट द्वारिका में तो 5 हजार साल पुराना मंदिर है जिसके दर्शन के लिए हिन्दू जाते थे तो इसमे वहां के जिहादियों ने नया करने तरीका निकाला।
क्योंकि आवाजाही के साधनों पर उनका कब्जा हो चुका था तो उन्होंने आने वाले श्रद्धालुओं से केवल 20-30 मिनट की जल यात्रा के 4 हजार से 5 हजार रुपये मांगने शुरू कर दिये।
इतना महंगा किराया आम व्यक्ति कैसे चुका पायेगा इसलिए लोगो ने वहां जाना बंद कर दिया।
अब वहाँ पूर्ण रूप से जिहादियों की पकड़ हो गई थी तो उन्होंने जगह जगह मकान बनाने शुरू किये, देखते ही देखते प्राचीन मंदिर चारो तरफ से अपने मजारों से घिर गया।

वहाँ की बची खुची हिन्दू आबादी सरकार को अपनी बात कहते कहते हार चुकी थी, फिर कुछ हिन्दू समाजसेवियों ने इसका संज्ञान लिया और सरकार को चेताया।
सरकार ने ओखा से बेट द्वारिका तक सिग्नेचर ब्रिज बनाने का काम शुरू करवाया। बाकी विषयो की जांच शुरू हुई तो जांच एजेंसी चौंक गई।

गुजरात में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका स्थित बेट द्वारिका के दो टापू पर अपना दावा ठोका है। वक्फ बोर्ड ने अपने आवेदन में दावा किया कि बेट द्वारका टापू पर दो द्वीपों का स्वामित्व वक्फ बोर्ड का है। गुजरात उच्च न्यायालय ने इस पर आश्चर्य जताते हुए पूछा कि कृष्ण नगरी पर आप कैसे दावा कर सकते हैं और इसके बाद गुजरात उच्च न्यायालय ने इस याचिका को भी खारिज कर दिया।

बेट द्वारका में करीब आठ टापू है, जिनमें से दो पर भगवान कृष्ण के मंदिर बने हुए हैं। प्राचीन कहानियां बताती हैं कि भगवान कृष्ण की आराधना करते हुए मीरा यहीं पर उनकी मूर्ति में समा गई थी। बेट द्वारका के इन दो टापू पर करीब 7000 परिवार रहते हैं, इनमें से करीब 6000 परिवार मुस्लिम हैं। यह द्वारका के तट पर एक छोटा सा द्वीप है और ओखा से कुछ ही दूरी पर स्थित है। वक्फ बोर्ड इसी के आधार पर इन दो टापू पर अपना दावा जताता है।

यहां अभी इस साजिश का शुरुआती चरण ही था कि इसका खुलासा हो गया. सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक इस चरण में कुछ लोग, ऐसी जमीनों पर कब्जा करके अवैध निर्माण बना रहे थे, जो रणनीतिक रूप से, भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता था.

अब जाकर सब अवैध कब्जे व मजारे तोड़ी जा रही हैं।
बेट द्वारिका में आने वाला कोई भी मुसलमान वहाँ का स्थानीय नही है सब बाहर के हैं।
फिर भी उन्होंने धीरे धीरे कुछ ही वर्षों में वहां के हिन्दुओ से सब कुछ छीन लिया और भारत के गुजरात जैसे एक राज्य का टापू सीरिया बन गया।
*सावधान व सजग रहना अत्यंत आवश्यक है ।।*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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દોષારોપણ


દોષારોપણ

अतिदाक्षिण्य  युक्तानां शङ्कितानि पदे पदे  |
परापवादिभीरूणां   न  भवन्ति  विभूतियः  ||

જે લોકો તેમના કાર્યક્ષેત્ર અથવા વિષયમાં અત્યંત કુશળ હોય છે તેઓ શંકાશીલ સ્વભાવના હોય છે અને દરેક પગલા પર હંમેશા શંકા કરે છે. તેઓ અન્ય લોકો દ્વારા ટીકા અથવા દોષારોપણથી પણ ખૂબ ડરતા હોય છે અને તેથી જ આવા વ્યક્તિઓ ક્યારેય મહાન બની શકતા નથી.

રણમાંથી પસાર થતી વખતે એક માણસ મનમાં ગણગણાટ કરી રહ્યો હતો, “કેવી નકામી જગ્યા છે, અહી બિલકુલ લીલોતરી નથી… અને તે કેવી રીતે હોઈ શકે?, અહીં પાણીનો પત્તો પણ નથી.”

જેમ જેમ તે સળગતી રેતીમાં આગળ વધી રહ્યો હતો તેમ તેમ તેનો ગુસ્સો પણ વધતો જતો હતો. છેવટે તેણે આકાશ તરફ જોયું અને સ્મિત સાથે કહ્યું- “તમે અહીં પાણી કેમ નથી આપતા? જો અહીં પાણી હોત, તો અહીં કોઈ પણ વૃક્ષો અને છોડ ઉગાડી શકત, અને પછી આ જગ્યા કેટલી સુંદર બની ગઈ હોત! ધરતી લીલુડી બની ગઈ હોત.” આટલું કહીને તે આકાશ તરફ જોતો રહ્યો… જાણે ભગવાનના જવાબની રાહ જોઈ રહ્યો હતો!

તે ઘણા વર્ષોથી તે વિસ્તારમાં આવતો-જતો હતો પણ આજ સુધી તેણે ત્યાં કોઈ કૂવો જોયો ન હતો… પછી એક ચમત્કાર થાય છે, આંખ નમાવતાં જ તેને તેની સામે એક કૂવો દેખાય છે! તેણે કુવો જોયો. તે આશ્ચર્યચકિત થઈને કૂવા તરફ દોડ્યો… કૂવો લબા-લબ પાણીથી ભરેલો હતો. તેણે ફરી એકવાર આકાશ તરફ જોયું અને પાણી માટે તેનો આભાર માનવાને બદલે તેણે કહ્યું, “પાણી બરાબર છે પણ તેને બહાર કાઢવાનો કોઈ રસ્તો તો હોવો જોઈએ.”  તેણે કહ્યું કે તેણે કૂવાની બાજુમાં એક દોરડું અને એક ડોલ પડેલી જોઈ. ફરી એક વાર તેને પોતાની આંખો પર વિશ્વાસ ન આવ્યો! તેણે થોડી ગભરાટ સાથે આકાશ તરફ જોયું અને કહ્યું, “પણ હું આ પાણી કેવી રીતે લઈ જઈશ?” ત્યારે જ તેને લાગે છે કે કોઈ તેને પાછળથી સ્પર્શ કરી રહ્યું છે, તેણે પાછળ જોયું તો તેની પાછળ એક ઊંટ ઉભો હતો!

હવે માણસ હવે ખૂબ જ નર્વસ થઈ ગયો છે, તેને લાગે છે કે તેણે રણમાં હરિયાળી લાવવાના કામમાં ફસાઈ ન જવું જોઈએ અને આ વખતે તે આકાશ તરફ જોયા વિના ઝડપથી ચાલવા માંડે છે.

તેણે હજુ એક-બે પગલું ભર્યું હતું કે ઉડતા કાગળનો ટુકડો તેની સાથે ચોંટી ગયો. તે ટુકડા પર લખ્યું હતું – “મેં તને પાણી, એક ડોલ અને દોરડું આપ્યું… પાણી વહન કરવાનું સાધન પણ, હવે રણને હરિયાળું બનાવવા માટે તારી પાસે બધું જ છે; હવે બધું તમારા હાથમાં છે! “

માણસ એક ક્ષણ માટે થોભો… પણ બીજી જ ક્ષણે તે આગળ વધ્યો અને રણ ક્યારેય લીલું ન બન્યું.

જે લોકોના જીવનમાં ફક્ત ફરિયાદ છે તેઓ કયારે પણ સૃજનાત્મક કાર્ય કરી સકતા નથી. પોતે દુખી રહે છે ને બીજાને દિશાહીન બનાવે છે.

હર્ષદ અશોડીયા ક.

૮૩૬૯૧૨૩૯૩૫

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*इन्दिरा गाधी को आयरन लेडी समझने वाले ध्यान से पढ़ें:*
विंग कमांडर अभिनंदन का नाम तो आप निश्चय ही नहीं भूले होंगे. शायद उनकी _’हैंडल बार’_ मूछें भी याद ही होंगी.

लेकिन इसी भारतीय वायु सेना के कुछ अन्य जांबाज़ पायलट के नाम नीचे मैंने लिखे हैं. इनकी तस्वीरें देखना तो दूर, हममें से कोई एकाध ही होगा जिसने ये नाम सुन रखे होंगे.
लेकिन इनका रिश्ता अभिनंदन से बड़ा ही गहरा है. पढ़िए ये नाम.

विंग कमांडर हरसरण सिंह डंडोस
स्क्वाड्रन लीडर मोहिंदर कुमार जैन
स्क्वाड्रन लीडर जे एम मिस्त्री
स्क्वाड्रन लीडर जे डी कुमार
स्क्वाड्रन लीडर देव प्रशाद चटर्जी
फ्लाइट लेफ्टिनेंट सुधीर गोस्वामी
फ्लाइट लेफ्टिनेंट वी वी तांबे
फ्लाइट लेफ्टिनेंट नागास्वामी शंकर
फ्लाइट लेफ्टिनेंट राम एम आडवाणी
फ्लाइट लेफ्टिनेंट मनोहर पुरोहित
फ्लाइट लेफ्टिनेंट तन्मय सिंह डंडोस
फ्लाइट लेफ्टिनेंट बाबुल गुहा
फ्लाइट लेफ्टिनेंट सुरेश चंद्र संदल
फ्लाइट लेफ्टिनेंट हरविंदर सिंह
फ्लाइट लेफ्टिनेंट एल एम सासून
फ्लाइट लेफ्टिनेंट के पी एस नंदा
फ्लाइट लेफ्टिनेंट अशोक धवले
फ्लाइट लेफ्टिनेंट श्रीकांत महाजन
फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुरदेव सिंह राय
फ्लाइट लेफ्टिनेंट रमेश कदम
फ्लाइट लेफ्टिनेंट प्रदीप वी आप्टे
फ्लाइंग ऑफिसर कृष्ण मलकानी
फ्लाइंग ऑफिसर के पी मुरलीधरन
फ्लाइंग ऑफिसर सुधीर त्यागी
फ्लाइंग ऑफिसर तेजिंदर सेठी

ये सभी नाम अनजाने लगे होंगे.
*ये भी भारतीय वायुसेना के योद्धा थे जो 1971 की जंग में पाकिस्तान में युद्ध बंदी बना लिए गए, और फिर कभी वापस नहीं आए .* इनकी चिट्ठियां घर वालों तक आई , पर तत्कालीन भारत सरकार ने कभी इनकी खोज खबर नहीं ली.

1972 में शिमला में ’आयरन लेडी’ के रूप में स्वयं प्रसिद्ध तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधान मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ हुए शिमला समझौते में 90 हज़ार पाकिस्तानी युद्धबंदियों को छोड़ने का समझौता तो कर आई, *पर इन्हें वापस मांगना याद नही रहा, ये वह खानदान है जो अपने फायदे के लिए देश को भी बेचने में संकोच नहीं करता है लेकिन दूसरे के दर्द को समझना इनकी आदत नही है*

ये अभिनंदन जितने खुशकिस्मत नही थे , क्योकि इनके लिए उस समय की सरकार ने मिसाइलें नहीं तानी, न देश के लोगों ने इनकी खबर ली, न अखबारों ने फोटो छापे.
*👎🏾🥲 इन्हें मरने को, पाकिस्तानी जेलों में सड़ने को छोड़ दिया गया. इनके वजूद को नकार दिया गया.*

*यह पहली बार नहीं हुआ था. रेज़ांगला के वीर अहीरों को भी नकारे नेहरू ने भगोड़ा करार दे दिया था. परमवीर मेजर शैतान सिंह भाटी को कायर मान लिया गया था. अगर चीन ने इनकी जांबाज़ी को न स्वीकारा होता, भला हो उस लद्दाखी गडरिये का जिसको इनकी लाशें न मिली होती, ये वीर अहीर न कहलाते, शैतान सिंह भाटी मरणोपरांत परम वीर चक्र का सम्मान न पाते*

*यही नकारात्मक रवैया रहा है इन धूर्त सत्ता लोलुप अकर्मण्यता के पर्यायवाची नेहरू ,इंदिरा गांधी और उसके कुनबे के लोगों का देश के वीर सपूतों के प्रति.*

*यही फ़र्क़ है देश भक्ति के सच्चे सपूत मोदी में और दूसरों में*।

*आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि अगर मोदी की जगह सोनिया की कठपुतली वाला गूंगा होता तो शायद अभिनंदन का नाम भी इसी लिस्ट में लिखा होता.*

यह पोस्ट नेहरू के चाटुकारों के लिए पीड़ादायक होगा लेकिन देश के आम नागरिक की आँखे जरूर खुल जाएगी और इस परिवार की असलियत से परिचित हो जाएंगे।

Jai Hind

(इस पोस्ट को राज़नीति से जोड़ने का प्रयास न करें।यह विशुद्ध सैनिकों से संबंधित पोस्ट है)

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क्या है महापर्व छठ पूजा की पौराणिक कथा? जानिए इसका ऐतिहासिक और वैज्ञानिक महत्व:

लोक परंपरा के अनुसार, सूर्यदेव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। छठ पर्व की परंपरा में बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ है। षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगोलीय अवसर है।

वैसे तो लोग उगते हुए सूर्य को प्रणाम करते हैं लेकिन यह ऐसा अनोखा पर्व है जिसकी शुरुआज डूबते हुए सूर्य की अराधाना से होती है। इस पर्व के उद्भव के सम्बन्ध में कई उल्लेख (पारम्परिक और ऐतिहासिक) मिलते हैं।

छठ पर्व के प्रारंभ का उल्लेख द्वापर काल में मिलता है। कहा जाता है कि सूर्य पुत्र अंगराज कर्ण सूर्य के बड़े उपासक थे और वह नदी के जल में खड़े होकर भगवान सूर्य की पूजा करते थे। पूजा के पश्चात कर्ण किसी याचक को कभी खाली हाथ नहीं लौटाते थे। पुनः कहा जाता है कि महाभारत काल में कुंती ने पुत्र प्राप्ति हेतु सूर्य की पूजा की थी, तत्पश्चात उन्हें संतान सुख की प्राप्ति हुई थी।

छठ पूजा की एक अन्य कथा के अनुसार, जब पांडव अपना सारा राजपाट जुएं में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उसकी मनोकामनाएं पूरी हुई तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्यदेव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। छठ पर्व की परंपरा में बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ है।

षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगोलीय अवसर है। उस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। उसके संभावित कुप्रभावों से मानव की यथासंभव रक्षा करने का सामर्थ्य इस परंपरा में है। छठ पर्व के पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैंगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा संभव है।

ऐतिहासिक प्रमाण:-

छठ पूजा 150 वर्ष पूर्व तक केवल मगध यानी पटना, गया तथा मुंगेर के कुछ क्षेत्रों तक और सकलद्वीपीय ब्राह्मणों तक ही सीमित था। ऐतिहासिक साक्ष्य के अनुसार, पश्चिमी एशिया मूल के शाक्यद्विपिया ब्राहमण (जिन्हें भोजक और मोगा ब्राह्मिन के नाम से भी जाना जाता है) ने इस पर्व की शुरुआत की थी। शास्त्र के अनुसार, सकलद्वीपीय ब्राह्मण आयुर्वेद के चिकित्सक थे, जिन्हें मूलस्थान (जिसे आज मुल्तान के नाम से जानते हैं) के शासकों ने अपने कुष्ट रोग के निवारण हेतु अपने राज्य में आमंत्रित किया था। इसलिए इस रोग के निवारणार्थ सकलद्वीपीय चिकित्सकों ने कार्तिक पूर्णिमा की षष्टी के दिन सूर्य की उपासना करने को कहा। (कहते हैं कि यही षष्टी कालान्तर में छठी के रूप में कही जाने लगी।)

कुष्ट रोग को ठीक करने के बाद इन ब्राह्मण चिकित्सकों ने पंजाब को अपना निवास स्थान बना लिया और यहीं से वो पूर्व की ओर फैल गए। सकलद्वीपीय ब्राम्हण आयुर्वेद के साथ वैदिक ज्योतिष विज्ञान के भी विद्वान थे। पाटलिपुत्र स्थित ज्योतिष एवं खगोल विज्ञान के विद्वान् श्री वराहमिहिर सकलद्वीपीय कुल के थे। गुप्त साम्राज्य के शासकों ने इन्हें पाटलिपुत्र में संरक्षण दिया था। वराहमिहिर की कृति “वृहत्त संहिता” आज भी खगोलशास्त्र और वैदिक ज्योतिष का मूल ग्रन्थ है।

बिहार के औरंगाबाद जिले के पौराणिक देवस्थल में लोकपर्व कार्तिक छठ पर्व पर चार दिवसीय छठ मेले की भी शुरुआत हो गई। यहां त्रेतायुग में स्थापित प्राचीन सूर्य मंदिर में बृहद सूर्य मेले का आयोजन किया जाता है।

सनातन संस्कृति में सूर्योपासना का महत्त्व केवल धार्मिक ही नहीं अपितु वैज्ञानिक और आध्यात्मिक भी है।

हिंदू परम्परा की मानें तो छठ व्रत का उद्भव त्रेता युग से ही है। मान्यता है कि प्राचीन विदेह के राजा जनक क्षत्रिय होने के साथ-साथ ब्रह्मज्ञानी भी थे। इसलिए कश्मीर के विद्वान शारस्वत पंडितों ने एक क्षत्रिय के राजा होने के साथ ब्रह्मज्ञानि होने पर प्रश्न उठाया, कहते हैं कि उन्होंने राज जनक को शास्त्रार्थ के लिए ललकारा और इस हेतु तत्कालीन मिथिला के लिये यात्रा पर निकल गये। वर्तमान पीर पांचाल पर्वत पार करने के कारण युगों से चली आ रही प्रथा के अनुसार, परिजनों ने इनका श्राद्ध कर्म कर दिया। लम्बी यात्रा के उपरान्त विदेह पहुंचने के एक सप्ताह बाद राजा जनक से मिलने का समय मिला। कहते हैं कि ये सभी ज्ञानी पंडित प्रतीक्षा करने के क्रम में समाधि में चले गए और समाधि से लौटने के बाद ये सभी प्रश्न गायब थे। इन लोगों ने इस विशिष्ट अनुभव के बाद राजा जनक को गुरु मान लिया और यहीं बस गये। इन्हें ही आज हम मैथिल ब्राह्मण के रूप में जानते हैं। कहते हैं कि ये कश्मीरी पंडित सूर्योपासक थे और सूर्योपासना का पवित्र व्रत इन लोगों ने आरम्भ किया।

उल्लेखनीय है कि त्रेता युग से बिहारवासियों द्वारा छठ व्रत करना यहां के धार्मिक और आध्यात्मिक बोध के साथ-साथ गौरवमयी प्राचीन सभ्यता को दर्शाता है। पुनः वैदिक ग्रन्थ शतपथ ब्राह्मण में सदानीरा नदी अर्थात् वर्तमान गंडक नदी के स्त्री-पुरुष द्वारा सूर्योपासना की आराधना से छठ पूजा का प्रमाण मिलता है। कहना न होगा कि भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देव है। इनकी उपासना का लाभ भी प्रत्यक्ष है। सूर्य ऐश्वर्य तथा समृद्धि के देवता है। सूर्योदय व सूर्यास्त के समय अर्घ्य देने से तथा उपासना करने से शरीर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। सूर्य स्नान से चर्म रोग, नेत्र रोग, उदर रोग दूर होते हैं।

ऐतिहासिक मान्यता के अनुसार, कवि मयूरभट्ट ने सूर्य स्तुति तथा सूर्योपासना करके अपने शरीर को कुष्ठ रोग मुक्त बनाया था। विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में आठ सूक्त सूर्य की प्रार्थना और स्तुति में है।

सूर्योपासना से अपने अंदर देवी गुण को समाविष्ट कर उसे अपने अनुकूल बनाया जा सकता है और अभीष्ट वरदान पाया जा सकता है। सूर्य की पूजा से मनोकामनाएं पूर्ण होती है तथा कठिनाइयां और विपत्तियां दूर होती हैं। ये भी मान्यता है कि दुष्ट आत्मायें, भूत-प्रेत और राक्षस आदि का प्रभाव सूर्य की अनुपस्थिति में ही होता है, इसलिए सूर्योपासना से इससे मुक्ति भी मिलती है। बताते चलें कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने दुर्गा पूजा को विश्व धरोहर घोषित किया है। बिहार वासियों के साथ समर्थ बिहार भी प्रयास करेगा कि सभ्यता के आरंभ के साथ हम सभी के सबसे महत्त्वपूर्ण पर्व छठ व्रत को भी यूनेस्को विश्व धरोहर घोषित करे।
नमस्तुभ्यं परं सूक्ष्मं सुपुण्यं बिभ्रतेऽतुलम्।
धाम धामवतामीशं धामाधारं च शाश्वतम्॥

जगतामुपकाराय त्वामहं स्तौमि गोपते।
आददानस्य यद्रूपं तीव्रं तस्मै नमाम्यहम्॥

ग्रहीतुमष्टमासेन कालेनाम्बुमयं रसम्।
बिभ्रतस्तव यद्रूपमतितीव्रं नातास्मि तत्॥

समेतमग्निषोमाभ्यां नमस्तस्मै गुणात्मने।
यद्रुपमृग्‌यजुःसाम्नामैक्येन तपते तव॥

विश्वमेतत्त्रयीसंज्ञं नमस्तस्मै विभावसो।
यत्तु तस्मात्परं रूपमोमित्युक्त्वाभिसंहितम्॥

अस्थूलं स्थूलममलं नमस्तस्मै सनातन ॥

सभी मित्रों को महापर्व छठ की हार्दिक शुभकामनाएं

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क्या है महापर्व छठ पूजा की पौराणिक कथा? जानिए इसका ऐतिहासिक और वैज्ञानिक महत्व:

लोक परंपरा के अनुसार, सूर्यदेव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। छठ पर्व की परंपरा में बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ है। षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगोलीय अवसर है।

वैसे तो लोग उगते हुए सूर्य को प्रणाम करते हैं लेकिन यह ऐसा अनोखा पर्व है जिसकी शुरुआज डूबते हुए सूर्य की अराधाना से होती है। इस पर्व के उद्भव के सम्बन्ध में कई उल्लेख (पारम्परिक और ऐतिहासिक) मिलते हैं।

छठ पर्व के प्रारंभ का उल्लेख द्वापर काल में मिलता है। कहा जाता है कि सूर्य पुत्र अंगराज कर्ण सूर्य के बड़े उपासक थे और वह नदी के जल में खड़े होकर भगवान सूर्य की पूजा करते थे। पूजा के पश्चात कर्ण किसी याचक को कभी खाली हाथ नहीं लौटाते थे। पुनः कहा जाता है कि महाभारत काल में कुंती ने पुत्र प्राप्ति हेतु सूर्य की पूजा की थी, तत्पश्चात उन्हें संतान सुख की प्राप्ति हुई थी।

छठ पूजा की एक अन्य कथा के अनुसार, जब पांडव अपना सारा राजपाट जुएं में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उसकी मनोकामनाएं पूरी हुई तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्यदेव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। छठ पर्व की परंपरा में बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ है।

षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगोलीय अवसर है। उस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। उसके संभावित कुप्रभावों से मानव की यथासंभव रक्षा करने का सामर्थ्य इस परंपरा में है। छठ पर्व के पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैंगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा संभव है।

ऐतिहासिक प्रमाण:-

छठ पूजा 150 वर्ष पूर्व तक केवल मगध यानी पटना, गया तथा मुंगेर के कुछ क्षेत्रों तक और सकलद्वीपीय ब्राह्मणों तक ही सीमित था। ऐतिहासिक साक्ष्य के अनुसार, पश्चिमी एशिया मूल के शाक्यद्विपिया ब्राहमण (जिन्हें भोजक और मोगा ब्राह्मिन के नाम से भी जाना जाता है) ने इस पर्व की शुरुआत की थी। शास्त्र के अनुसार, सकलद्वीपीय ब्राह्मण आयुर्वेद के चिकित्सक थे, जिन्हें मूलस्थान (जिसे आज मुल्तान के नाम से जानते हैं) के शासकों ने अपने कुष्ट रोग के निवारण हेतु अपने राज्य में आमंत्रित किया था। इसलिए इस रोग के निवारणार्थ सकलद्वीपीय चिकित्सकों ने कार्तिक पूर्णिमा की षष्टी के दिन सूर्य की उपासना करने को कहा। (कहते हैं कि यही षष्टी कालान्तर में छठी के रूप में कही जाने लगी।)

कुष्ट रोग को ठीक करने के बाद इन ब्राह्मण चिकित्सकों ने पंजाब को अपना निवास स्थान बना लिया और यहीं से वो पूर्व की ओर फैल गए। सकलद्वीपीय ब्राम्हण आयुर्वेद के साथ वैदिक ज्योतिष विज्ञान के भी विद्वान थे। पाटलिपुत्र स्थित ज्योतिष एवं खगोल विज्ञान के विद्वान् श्री वराहमिहिर सकलद्वीपीय कुल के थे। गुप्त साम्राज्य के शासकों ने इन्हें पाटलिपुत्र में संरक्षण दिया था। वराहमिहिर की कृति “वृहत्त संहिता” आज भी खगोलशास्त्र और वैदिक ज्योतिष का मूल ग्रन्थ है।

बिहार के औरंगाबाद जिले के पौराणिक देवस्थल में लोकपर्व कार्तिक छठ पर्व पर चार दिवसीय छठ मेले की भी शुरुआत हो गई। यहां त्रेतायुग में स्थापित प्राचीन सूर्य मंदिर में बृहद सूर्य मेले का आयोजन किया जाता है।

सनातन संस्कृति में सूर्योपासना का महत्त्व केवल धार्मिक ही नहीं अपितु वैज्ञानिक और आध्यात्मिक भी है।

हिंदू परम्परा की मानें तो छठ व्रत का उद्भव त्रेता युग से ही है। मान्यता है कि प्राचीन विदेह के राजा जनक क्षत्रिय होने के साथ-साथ ब्रह्मज्ञानी भी थे। इसलिए कश्मीर के विद्वान शारस्वत पंडितों ने एक क्षत्रिय के राजा होने के साथ ब्रह्मज्ञानि होने पर प्रश्न उठाया, कहते हैं कि उन्होंने राज जनक को शास्त्रार्थ के लिए ललकारा और इस हेतु तत्कालीन मिथिला के लिये यात्रा पर निकल गये। वर्तमान पीर पांचाल पर्वत पार करने के कारण युगों से चली आ रही प्रथा के अनुसार, परिजनों ने इनका श्राद्ध कर्म कर दिया। लम्बी यात्रा के उपरान्त विदेह पहुंचने के एक सप्ताह बाद राजा जनक से मिलने का समय मिला। कहते हैं कि ये सभी ज्ञानी पंडित प्रतीक्षा करने के क्रम में समाधि में चले गए और समाधि से लौटने के बाद ये सभी प्रश्न गायब थे। इन लोगों ने इस विशिष्ट अनुभव के बाद राजा जनक को गुरु मान लिया और यहीं बस गये। इन्हें ही आज हम मैथिल ब्राह्मण के रूप में जानते हैं। कहते हैं कि ये कश्मीरी पंडित सूर्योपासक थे और सूर्योपासना का पवित्र व्रत इन लोगों ने आरम्भ किया।

उल्लेखनीय है कि त्रेता युग से बिहारवासियों द्वारा छठ व्रत करना यहां के धार्मिक और आध्यात्मिक बोध के साथ-साथ गौरवमयी प्राचीन सभ्यता को दर्शाता है। पुनः वैदिक ग्रन्थ शतपथ ब्राह्मण में सदानीरा नदी अर्थात् वर्तमान गंडक नदी के स्त्री-पुरुष द्वारा सूर्योपासना की आराधना से छठ पूजा का प्रमाण मिलता है। कहना न होगा कि भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देव है। इनकी उपासना का लाभ भी प्रत्यक्ष है। सूर्य ऐश्वर्य तथा समृद्धि के देवता है। सूर्योदय व सूर्यास्त के समय अर्घ्य देने से तथा उपासना करने से शरीर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। सूर्य स्नान से चर्म रोग, नेत्र रोग, उदर रोग दूर होते हैं।

ऐतिहासिक मान्यता के अनुसार, कवि मयूरभट्ट ने सूर्य स्तुति तथा सूर्योपासना करके अपने शरीर को कुष्ठ रोग मुक्त बनाया था। विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में आठ सूक्त सूर्य की प्रार्थना और स्तुति में है।

सूर्योपासना से अपने अंदर देवी गुण को समाविष्ट कर उसे अपने अनुकूल बनाया जा सकता है और अभीष्ट वरदान पाया जा सकता है। सूर्य की पूजा से मनोकामनाएं पूर्ण होती है तथा कठिनाइयां और विपत्तियां दूर होती हैं। ये भी मान्यता है कि दुष्ट आत्मायें, भूत-प्रेत और राक्षस आदि का प्रभाव सूर्य की अनुपस्थिति में ही होता है, इसलिए सूर्योपासना से इससे मुक्ति भी मिलती है। बताते चलें कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने दुर्गा पूजा को विश्व धरोहर घोषित किया है। बिहार वासियों के साथ समर्थ बिहार भी प्रयास करेगा कि सभ्यता के आरंभ के साथ हम सभी के सबसे महत्त्वपूर्ण पर्व छठ व्रत को भी यूनेस्को विश्व धरोहर घोषित करे।
नमस्तुभ्यं परं सूक्ष्मं सुपुण्यं बिभ्रतेऽतुलम्।
धाम धामवतामीशं धामाधारं च शाश्वतम्॥

जगतामुपकाराय त्वामहं स्तौमि गोपते।
आददानस्य यद्रूपं तीव्रं तस्मै नमाम्यहम्॥

ग्रहीतुमष्टमासेन कालेनाम्बुमयं रसम्।
बिभ्रतस्तव यद्रूपमतितीव्रं नातास्मि तत्॥

समेतमग्निषोमाभ्यां नमस्तस्मै गुणात्मने।
यद्रुपमृग्‌यजुःसाम्नामैक्येन तपते तव॥

विश्वमेतत्त्रयीसंज्ञं नमस्तस्मै विभावसो।
यत्तु तस्मात्परं रूपमोमित्युक्त्वाभिसंहितम्॥

अस्थूलं स्थूलममलं नमस्तस्मै सनातन ॥

सभी मित्रों को महापर्व छठ की हार्दिक शुभकामनाएं