💐💐बूढ़े गिद्ध की सलाह💐💐
एक बार गिद्धों का झुण्ड उड़ता-उड़ता एक टापू पर जा पहुँच. वह टापू समुद्र के बीचों-बीच स्थित था. वहाँ ढेर सारी मछलियाँ, मेंढक और समुद्री जीव थे. इस प्रकार गिद्धों को वहाँ खाने-पीने को कोई कमी नहीं थी. सबसे अच्छी बात ये थी कि वहाँ गिद्धों का शिकार करने वाला कोई जंगली जानवर नहीं था. गिद्ध वहाँ बहुत ख़ुश थे. इतना आराम का जीवन उन्होंने पहले देखा नहीं था.
उस झुण्ड में अधिकांश गिद्ध युवा थे. वे सोचने लगे कि अब जीवन भर इसी टापू पर रहना है. यहाँ से कहीं नहीं जाना, क्योंकि इतना आरामदायक जीवन कहीं नहीं मिलेगा.
लेकिन उन सबके बीच में एक बूढ़ा गिद्ध भी था. वह जब युवा गिद्धों को देखता, तो चिंता में पड़ जाता. वह सोचता कि यहाँ के आरामदायक जीवन का इन युवा गिद्धों पर क्या असर पड़ेगा? क्या ये वास्तविक जीवन का अर्थ समझ पाएंगे? यहाँ इनके सामने किसी प्रकार की चुनौती नहीं है. ऐसे में जब कभी मुसीबत इनके सामने आ गई, तो ये कैसे उसका मुकाबला करेंगे?
बहुत सोचने के बाद एक दिन बूढ़े गिद्ध ने सभी गिद्धों की सभा बुलाई. अपनी चिंता जताते हुए वह सबसे बोला, “इस टापू में रहते हुए हमें बहुत दिन हो गए हैं. मेरे विचार से अब हमें वापस उसी जंगल में चलना चाहिए, जहाँ से हम आये हैं. यहाँ हम बिना चुनौती का जीवन जी रहे हैं. ऐसे में हम कभी भी मुसीबत के लिए तैयार नहीं हो पाएंगे.”
युवा गिद्धों ने उसकी बात सुनकर भी अनसुनी कर दी. उन्हें लगा कि बढ़ती उम्र के असर से बूढ़ा गिद्ध सठिया गया है. इसलिए ऐसी बेकार की बातें कर रहा है. उन्होंने टापू की आराम की ज़िन्दगी छोड़कर जाने से मना कर दिया।
बूढ़े गिद्ध ने उन्हें समझाने की कोशिश की, “तुम सब ध्यान नहीं दे रहे कि आराम के आदी हो जाने के कारण तुम लोग उड़ना तक भूल चुके हो. ऐसे में मुसीबात आई, तो क्या करोगे? मेरे बात मानो, मेरे साथ चलो.”।
लेकिन किसी ने बूढ़े गिद्ध की बात नहीं मानी. बूढ़ा गिद्ध अकेला ही वहाँ से चला गया. कुछ महीने बीते. एक दिन बूढ़े गिद्ध ने टापू पर गये गिद्धों की ख़ोज-खबर लेने की सोची और उड़ता-उड़ता उस टापू पर पहुँचा.।
टापू पर जाकर उसने देखा कि वहाँ का नज़ारा बदला हुआ था. जहाँ देखो, वहाँ गिद्धों की लाशें पड़ी थी. कई गिद्ध लहू-लुहान और घायल पड़े हुए थे. हैरान बूढ़े गिद्ध ने एक घायल गिद्ध से पूछा, “ये क्या हो गया? तुम लोगों की ये हालात कैसे हुई?”
घायल गिद्ध ने बताया, “आपके जाने के बाद हम इस टापू पर बड़े मज़े की ज़िन्दगी जी रहे थे. लेकिन एक दिन एक जहाज़ यहाँ आया. उस जहाज से यहाँ चीते छोड़ दिए गए. शुरू में तो उन चीतों ने हमें कुछ नहीं किया. लेकिन कुछ दिनों बाद जब उन्हें आभास हुआ कि हम उड़ना भूल चुके हैं. हमारे पंजे और नाखून इतने कमज़ोर पड़ गए हैं कि हम तो किसी पर हमला भी नहीं कर सकते और न ही अपना बचाव कर सकते हैं, तो उन्होंने हमें एक-एक कर मारकर खाना शुरू कर दिया. उनके ही कारण हमारा ये हाल है. शायद आपकी बात न मानने का ये फल हमें मिला है.”।
Day: November 27, 2022
त्रुटियों पर विजय
💐💐त्रुटियों पर विजय💐💐
अपनी बहन इलाइजा के साथ एक किशोर बालक घूमने निकला। रास्ते में एक किसान की लड़की मिली। वह सिर पर अमरूदों का टोकरा रखे हुए उन्हें बेचने बाज़ार जा रही थी। इलाइजा ने भूल से टक्कर मार दी, जिससे सब अमरूद वहीं गिरकर गन्दे हो गये। कुछ फूट गये, कुछ में कीचड़ लग गई। गरीब लड़की रो पड़ी। “अब मैं अपने माता पिता को क्या खिलाऊंगी जाकर, उन्हें कई दिन तक भूखा रहना पड़ेगा।” इस तरह अपनी दीनता व्यक्त करती हुई वह अमरूद वाली लड़की खड़ी रो रही थी। इलाइजा ने कहा- “भैया चलो भाग चलें, कोई आयेगा तो हमे मार पड़ेगी और दण्ड भी देना पड़ेगा। अभी तो यहाँ कोई देखता भी नहीं।”
बहन देख ऐसा मत कह, जब लोग ऐसा मान लेते हैं कि यहाँ कोई नहीं देख रहा, तभी तो पाप होते हैं। जहाँ मनुष्य स्वयं उपस्थित है वहाँ एकान्त कैसा? उसके अन्दर बैठी हुई आत्मा ही गिर गई तो फिर ईश्वर भले ही दण्ड न दे वह आप ही मर जाता है। गिरी हुई आत्मायें ही संसार में कष्ट भोगती हैं, इसे तू नहीं जानती, मैं जानता हूँ। इतना कहकर उस बालक ने अपनी जेब में रखे सभी तीन आने पैसे उस ग्रामीण कन्या को दिये और उससे कहा-बहन तू मेरे साथ चल। हमने गलती की है तो उसका दण्ड भी हमें सहर्ष स्वीकार करना चाहिये, तुम्हारे फलों का मूल्य घर चल कर चुका दूँगा।
तीनों घर पहुँचे, बालक ने सारी बात माँ को सुनाई। माँ ने एक तमाचा इलाइजा को जड़ा दूसरा उस लड़के को और गुस्से से बोली- “तुम लोग नाहक घूमने क्यों गये? घर खर्च के लिये पैसे नहीं, अब यह दण्ड कौन भुगते?” बच्चे ने कहा- “माता जी! देख मेरे जेब खर्च के पैसे तू इस लड़की को दे दे। मेरा दोपहर का विद्यालय का नाश्ता बन्द रहेगा, मुझे उसमें रत्ती भर भी आपत्ति नहीं है। अपनी गलती के लिये प्रायश्चित भी तो मुझे ही करना चाहिये।” माँ ने उसके डेढ़ महीने के जेब खर्च के पैसे उस लड़की को दे दिये।
लड़की प्रसन्न होकर घर चली गई। डेढ़ महीने तक विद्यालय में उस लड़के को कुछ भी नाश्ता नहीं मिला, इसमें उसने जरा भी अप्रसन्नता प्रकट नहीं की। अपनी मानसिक त्रुटियों पर इतनी गम्भीरता से विजय पाने वाला यही बालक आगे चलकर विश्व विजेता नैपोलियन बोनापार्ट के नाम से विश्व विख्यात हुआ।
पहनावा
💐💐पहनावा💐💐
एक बार एक व्यक्ति रेलवे प्लेटफार्म पर उतरता है और तरोताजा होने के लिये किसी सैलून में जाता है!
उसके वस्त्रों और हाव भाव से वह साधारण सा गरीब व्यक्ति सा लग रहा था,
वहां के कर्मचारियों ने उसी प्रकार से उसका कामचलाऊ सा शेव साबुन करके निपटा दिया|
जब उस गरीब के द्वारा पैसे देने की बारी आयी तो उसने शाही रकम का भुगतान किया!
सब अचंभित हुए!
कुछ समय बाद जब वो अगली बार गया
तो
अबकी बार उसका बङे शाही तरीके से मिजाज पुर्सी किया गया ।
ये सोचकर कि जब ये बंदा मामूली काम के बढ़िया पैसे दे गया तो आज और ज्यादा देगा,
पर इस बार उसने जो मामूली सा बनता था वही दिया।
अब पूछने पर उसे जवाब मिलता है,
“आज के काम के पैसे पिछली बार दिये थे और उस बार के आज” ।
सेवक बहुत शर्मिंदा हुए अपने पहली बार के पक्षपाती व्यवहार पर!
संदेश- किसी के बाह्य वस्त्र, हाव भाव को देखकर आप उसे हल्का ना समझें,सबके साथ समान व्यवहार करें!
जय माँ शारदे.सद्बुद्धि दें,विवेक दें!
विजेता मेंढक
💐💐विजेता मेंढक💐💐
बहुत समय पहले की बात है ,एक सरोवर में बहुत सारे मेंढक रहतेथे !सरोवर के बीचों-बीच एक बहुत पुराना धातु का खम्भा भी लगा हुआ था जिसे उस सरोवर को बनवाने वाले राजा ने लगवाया था। खम्भा काफी ऊँचा था और उसकी सतह भी बिलकुल चिकनी थी।
एक दिन मेंढकों के दिमाग में आया कि क्यों ना एक रेस करवाई जाए ।रेस में भाग लेने वाली प्रतियोगीयों को खम्भे पर चढ़ना होगा , और जो सबसे पहले एक ऊपर पहुच जाएगा वही विजेता माना जाएगा ।
रेस का दिन आ पंहुचा,चारो तरफ बहुत भीड़ थी । आस -पास के इलाकों से भी कई मेंढक इस रेस में हिस्सा लेने पहुचे . माहौल में सरगर्मी थी , हर तरफ शोर ही शोर था ।
रेस शुरू हुई …
…लेकिन खम्भे को देखकर भीड़ में एकत्र हुए किसी भी मेंढक को ये यकीन नहीं हुआकि कोई भी मेंढक ऊपर तक पहुंच पायेगा …
हर तरफ यही सुनाई देता …
“ अरे ये बहुत कठिन है ”
“ वो कभी भी ये रेस पूरी नहीं कर पायंगे ”
“ सफलता का तो कोई सवाल ही नहीं , इतने चिकने खम्भे पर चढ़ा ही नहीं जा सकता ”
और यही हो भी रहा था , जो भी मेंढक कोशिश करता , वो थोडा ऊपर जाकर नीचे गिर जाता ,
कई मेंढक दो -तीन बार गिरने के बावजूद अपने प्रयास में लगे हुए थे …
पर भीड़ तो अभी भी चिल्लाये जा रही थी , “ ये नहीं हो सकता , असंभव ”, और वो उत्साहित मेंढक भी ये सुन-सुनकर हताश हो गए और अपना प्रयास छोड़ दिया .
लेकिन उन्ही मेंढकों के बीच एक छोटा सा मेंढक था , जो बार -बार गिरने पर भी उसी जोश के साथ ऊपर चढ़ने में लगा हुआ था।
वो लगातार ऊपर की ओर बढ़ता रहा और अंततः वह खम्भे के ऊपर पहुच गया और इस रेस का विजेता बना ।।
उसकी जीत पर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ , सभी मेंढक उसे घेर कर खड़े हो गए और पूछने लगे ”तुमने ये असंभव काम कैसे कर दिखाया ,भला तुम्हे अपना लक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति कहाँ से मिली, ज़रा हमें भी तो बताओ कि तुमने ये विजय कैसे प्राप्त की ?”
तभी पीछे से एक आवाज़ आई “अरे उससे क्या पूछते हो,वो तो बहरा है ”
अक्सर हमारे अन्दर अपना लक्ष्य प्राप्त करने की काबीलियत होती है, पर हम अपने चारों तरफ मौजूद नकारात्मकता की वजह से खुद को कम आंक बैठते हैं और हमने जो बड़े-बड़े सपने देखे होते हैं उन्हें पूरा किये बिना ही अपनी ज़िन्दगी गुजार देते हैं . आवश्यकता इस बात की है हम हमें कमजोर बनाने वाली हर एक आवाज के प्रति बहरे और ऐसे हर एक दृश्य के प्रति अंधे हो जाएं. और तब हमें सफलता के शिखर पर पहुँचने से कोई नहीं रोक पायेगा.
ज़िंदगी चाहे एक दिन की हो..चाहे चार दिन की उसे ऐसे जियो,जैसे कि ज़िंदगी तुम्हें नहीं,ज़िंदगी को तुम मिले हो..
बुढापे की लाठी-“बहु”
💐💐बुढापे की लाठी-“बहु”💐💐
लोगों से अक्सर सुनते आये हैं कि बेटा बुढ़ापे की लाठी होता है।इसलिये लोग अपने जीवन मे एक “बेटा” की कामना ज़रूर रखते हैं ताकि बुढ़ापे अच्छे से कट जाए।ये बात सच भी है क्योंकि बेटा ही घर में बहु लाता है।बहु के आ जाने के बाद एक बेटा अपनी लगभग सारी जिम्मेदारी अपनी पत्नी के कंधे में डाल देता है।और फिर बहु बन जाती है अपने बूढ़े सास-ससुर की बुढ़ापे की लाठी।जी हाँ मेरा तो यही मनाना है वो बहु ही होती है जिसके सहारे बूढ़े सास-ससुर अपनी जीवन व्यतीत करते हैं।एक बहु को अपने सास-ससुर की पूरी दिनचर्या मालूम होती।कौन कब और कैसी चाय पीते है, क्या खाना बनाना है, शाम में नाश्ता में क्या देना,रात को हर हालत में 9 बजे से पहले खाना बनाना है।अगर सास-ससुर बीमार पड़ जाए तो पूरे मन या बेमन से बहु ही देखभाल करती है।अगर एक दिन के लिये बहु बीमार पड़ जाए या फिर कही चले जाएं,बेचारे सास-ससुर को ऐसा लगता है जैसा उनकी लाठी ही किसी ने छीन ली हो।वे चाय नाश्ता से लेकर खाना के लिये छटपटा जाएंगे।कोई पूछेगा नही उन्हें,उनका अपना बेटा भी नही क्योंकि बेटा को फुर्सत नही है,और अगर बेटे को फुरसत मिल जाये भी तो वो कुछ नही कर पायेगा क्योंकि उसे ये मालूम ही नही है कि माँ-बाबूजी को सुबह से रात तक क्या क्या देना है।क्योंकि बेटा के चंद सवाल है और उसकी ज़िम्मेदारी खत्म जैसे माँ-बाबूजी को खाना खाएं,चाय पियें, नाश्ता किये, लेकिन कभी भी ये जानने की कोशिश नही करते कि वे क्या खाते हैं कैसी चाय पीते हैं।ये लगभग सारे घर की कहानी है।मैंने तो ऐसी बहुएं देखी है जिसने अपनी सास की बीमारी में तन मन से सेवा करती थी,बिल्कुल एक बच्चे की तरह,जैसे बच्चे सारे काम बिस्तर पर करते हैं ठीक उसी तरह उसकी सास भी करती थी और बेचारी बहु उसको साफ करती थी।और बेटा ये बचकर निकल जाता था कि मैं अपनी माँ को ऐसी हालत में नही देख सकता इसलिये उनके पास नही जाता था।ऐसे की कई बहु के उदाहरण हैं।मैंने अपनी माँ और चाची को दादा-दादी की ऐसे ही सेवा करते देखा है।ऐसे ही कई उदाहरण आपलोगो ने भी देखा होगा,आपलोग में से ही कई बहुयें ने अपनी सास-ससुर की ऐसी सेवा की होगी या कर रही होगी।कभी -कभी ऐसा होता है कि बेटा संसार छोड़ चला जाता है,तब बहु ही होती है जो उसके माँ-बाप की सेवा करती है, ज़रूरत पड़ने पर नौकरी करती है।
लेकिन अगर बहु दुनिया से चले जाएं तो बेटा फिर एक बहु ले आता है, क्योंकि वो नही कर पाता अपने माँ-बाप की सेवा,उसे खुद उस बहु नाम की लाठी की ज़रूरत पड़ती है।इसलिये मेरा मानना है कि बहु ही होती ही बुढ़ापे की असली लाठी लेकिन अफसोस “बहु” की त्याग और सेवा उन्हें भी नही दिखती जिसके लिये सारा दिन वो दौड़-भाग करती रहती है।
आसानी से विश्वास नहीं करें
आसानी से विश्वास नहीं करें’☀️
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एक बार एक शिकारी जंगल में शिकार करने के लिए गया। बहुत प्रयास करने के बाद उसने जाल में एक बाज पकड़ लिया।
शिकारी जब बाज को लेकर जाने लगा तब रास्ते में बाज ने शिकारी से कहा, “तुम मुझे लेकर क्यों जा रहे हो?”
शिकारी बोला, “ मैं तुम्हे मारकर खाने के लिए ले जा रहा हूँ।”
बाज ने सोचा कि अब तो मेरी मृत्यु निश्चित है। वह कुछ देर यूँही शांत रहा और फिर कुछ सोचकर बोला, “देखो, मुझे जितना जीवन जीना था मैंने जी लिया और अब मेरा मरना निश्चित है, लेकिन मरने से पहले मेरी एक आखिरी इच्छा है।”
“बताओ अपनी इच्छा?”, शिकारी ने उत्सुकता से पूछा।
बाज ने बताना शुरू किया-
मरने से पहले मैं तुम्हें दो सीख देना चाहता हूँ, इसे तुम ध्यान से सुनना और सदा याद रखना।
पहली सीख तो यह कि किसी कि बातों का बिना प्रमाण, बिना सोचे-समझे विश्वास मत करना।
और दूसरी ये कि यदि तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो या तुम्हारे हाथ से कुछ छूट जाए तो उसके लिए कभी दुखी मत होना।
शिकारी ने बाज की बात सुनी और अपने रस्ते आगे बढ़ने लगा।
कुछ समय बाद बाज ने शिकारी से कहा- “ शिकारी, एक बात बताओ…अगर मैं तुम्हे कुछ ऐसा दे दूँ जिससे तुम रातों-रात अमीर बन जाओ तो क्या तुम मुझे आज़ाद कर दोगे?”
शिकारी फ़ौरन रुका और बोला, “ क्या है वो चीज, जल्दी बताओ?”
बाज बोला, “ दरअसल, बहुत पहले मुझे राजमहल के करीब एक हीरा मिला था, जिसे उठा कर मैंने एक गुप्त स्थान पर रख दिया था। अगर आज मैं मर जाऊँगा तो वो हीरा इसे ही बेकार चला जाएगा, इसलिए मैंने सोचा कि अगर तुम उसके बदले मुझे छोड़ दो तो मेरी जान भी बच जायेगी और तुम्हारी गरीबी भी हमेशा के लिए मिट जायेगी।”
यह सुनते ही शिकारी ने बिना कुछ सोचे समझे बाज को आजाद कर दिया और वो हीरा लाने को कहा।
बाज तुरंत उड़ कर पेड़ की एक ऊँची साखा पर जा बैठा और बोला, “ कुछ देर पहले ही मैंने तुम्हे एक सीख दी थी कि किसी के भी बातों का तुरंत विश्वास मत करना लेकिन तुमने उस सीख का पालन नही किया…दरअसल, मेरे पास कोई हीरा नहीं है और अब मैं आज़ाद हूँ।
यह सुनते ही शिकारी मायूस हो पछताने लगा…तभी बाज फिर बोला, तुम मेरी दूसरी सीख भूल गए कि अगर कुछ तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो तो उसके लिए तुम कभी पछतावा मत करना।
इस कहानी – से हमें ये सीख मिलती है कि हमे किसी अनजान व्यक्ति पर आसानी से विश्वास नहीं करना चाहिए और किसी प्रकार का नुक्सान होने या असफलता मिलने पर दुखी नहीं होना चाहिए, बल्कि उस बात से सीख लेकर भविष्य में सतर्क रहना चाहिए।
आलस को दूर कर देने वाली कहानी
आलस को दूर कर देने वाली कहानी’☀️
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दुर्गादास नाम का एक धनी किसान था, वह बहुत आलसी था वह न अपने खेत देखने जाता था, न खलिहान अपनी गाय-भैंसों की भी वह खोज-खबर नहीं रखता था सब काम वह नौकरों पर छोड़ देता था
उसके आलस और कुप्रबन्ध से उसके घर की व्यवस्था बिगड़ गयी उसको खेती में हानि होने लगी गायों के दूध-घी से भी उसे कोई अच्छा लाभ नहीं होता था
एक दिन दुर्गादास का मित्र हरिश्चंद्र उसके घर आया हरिश्चंद्र ने दुर्गादास के घर का हाल देखा उसने यह समझ लिया कि समझाने से आलसी दुर्गादास अपना स्वभाव नहीं छोड़ेगा इसलिये उसने अपने मित्र दुर्गादास की भलाई करने के लिये उससे कहा- मित्र तुम्हारी विपत्ति देखकर मुझे बड़ा दुःख हो रहा है तुम्हारी दरिद्रता को दूर करने का एक सरल उपाय मैं जानता हूँ
दुर्गादास- कृपा करके वह उपाय तुम मुझे बता दो मैं उसे अवश्य करूँगा
हरिश्चंद्र उससे कहा सब पक्षियों के जागने से पहले ही मानसरोवर रहने वाला एक सफेद हंस पृथ्वी पर आता है वह दो पहर दिन चढ़े लौट जाता है यह तो पता नहीं कि वह कब कहाँ आवेगा; किन्तु जो उसका दर्शन कर लेता है, उसको कभी किसी बात की कमी नहीं होती
दुर्गादास बोला कुछ भी हो, मैं उस हंस का दर्शन अवश्य करूँगा
हरिश्चंद्र चला गया, दुर्गादास दूसरे दिन बड़े सबेरे उठा, वह घर से बाहर निकला और हँस की खोज में खलिहान में गया वहाँ उसने देखा कि एक आदमी उसके ढेर से गेहूँ अपने ढेर में डालने के लिये उठा रहा है दुर्गादास को देखकर वह लज्जित हो गया और क्षमा माँगने लगा
खलिहान से वह घर लौट आया और गोशाला में गया, वहाँ का रखवाला गाय का दूध दुहकर अपनी स्त्री के लोटे में डाल रहा था दुर्गादास ने उसे डांटा घरपर जलपान करके हंस की खोज में वह फिर निकला और खेत पर गया उसने देखा कि खेत पर अबतक मजदूर आये ही नहीं थे, वह वहाँ रुक गया जब मजदूर आये तो उन्हें देर से आने का उसने उलाहना दिया इस प्रकार वह जहाँ गया, वहीं उसकी कोई-न-कोई हानि रुक गयी
सफेद हंस की खोज में दुर्गादास प्रतिदिन सबेरे उठने और घुमने लगा अब उसके नौकर ठीक काम करने लगे उसके यहाँ चोरी होनी बंद हो गयी पहले वह रोगी रहता था अब उसका स्वास्थ्य भी ठीक हो गया
जिस खेत से उसे थोडा बहुत अन्न मिलता था, उससे अब ज्यादा मिलने लगा गोशाला से दूध बहुत अधिक आने लगा
एक दिन फिर दुर्गादास का मित्र हरिश्चंद्र उसके घर आया, दुर्गादास ने कहा- मित्र सफेद हंस तो मुझे अब तक नहीं दिखा किन्तु उसकी खोज में लगने से मुझे लाभ बहुत हुआ है
हरिश्चंद्र हँस पड़ा और बोला- परिश्रम करना ही वह सफेद हंस है परिश्रम के पंख सदा उजले होते हैं जो परिश्रम न करके अपना काम नौकरों पर छोड़ देता है, वह हानि उठाता है और जो स्वयं करता है, वह सम्पत्ति और सम्मान पाता है
मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह कहानी आपके आलस को अवश्य दूर कर देगी…
आखिरी अटेम्प्ट में यूपीएससी क्लियर करने वाली नमिता शर्मा का मंत्र- किसी को कॉपी करना व्यर्थ है।
“एक-दो नहीं पूरे पांच बार असफलता का चेहरा देख चुकीं नमिता का धीरज किसी के भी लिए मिसाल बन सकता है. आज मिलते हैं आईएस नमिता शर्मा से जिन्होंने 145वीं रैंक के साथ 2018 में यूपीएससी की परीक्षा पास की।”
👉 Success Story Of IAS Namita Sharma >> दिल्ली की नमिता शर्मा उन कैंडिडेट्स के लिये बहुत बड़ा उदाहरण हैं जो एक-दो बार असफल होने पर ही हार मान लेते हैं. नमिता ने यूपीएससी परीक्षा में एक दो नहीं बल्कि पूरे पांच बार असफल होने के बावजूद हार नहीं मानी और तब तक लगी रहीं जब तक सफल नहीं हो गयीं. हालांकि उनका यह सफर आसान नहीं था, कई बार उन्हें लगा कि बस अब उनसे नहीं होगा, कई बार दूसरे विकल्प भी तलाशे और कई बार तो अपने सपने को ठंडे बस्ते में डालने की भी सोची लेकिन हर बार नयी ताकत के साथ उठ खड़ी हुईं. नमिता को असफलताओं ने झकझोरा जरूर पर परिवार के सहयोग ने उन्हें बहुत हिम्म्त दी।
दिल्ली से इंजीनियरिंग की थी नमिता ने नमिता दिल्ली की रहने वाली हैं और उनके पिताजी दिल्ली पुलिस में असिस्टेंट सबइंसपेक्टर के पद पर कार्यरत हैं. माता जी हाउस वाइफ हैं और उनके अलावा परिवार में एक भाई भी है. इन सभी ने हमेशा नमिता का हौंसला बढ़ाया और बार बार सेलेक्शन न होने के बावजूद अगला प्रयास करने के लिये मोटिवेट किया. नमिता ने दिल्ली की ही आईपी यूनिवर्सिटी से बीटेक किया और ऑफलाइन कैम्पस इंटरव्यू में आईबीएम में जॉब के लिये चुन ली गयीं. इस प्रकार नमिता जॉब के लिये मुंबई चली गयीं. दो साल जॉब करने के बाद उन्होंने यूपीएससी एग्जाम देने की सोची. 2018 के पहले के अपने अटेम्प्ट में से दो अटेम्प्ट को नमिता सीरियस अटेम्प्ट नहीं मानतीं. उसके बाद के तीन अटेम्प्ट के लिये उन्हें लगता है कि कुछ में वे तैयार नहीं थी और कुछ में स्ट्रेटजी गलत थी।
सबसे बड़ा झटका था पांचवा अटेम्प्ट नमिता ने एक साक्षात्कार में बताया कि उन्हें जीवन का सबसे बड़ा शॉक तब लगा जब 2017 की परीक्षा में प्री और मेन्स दोनों क्लियर कर लेने के बावजूद उनका चयन नहीं हुआ. वे कहती हैं इस झटके से उबरने में सबसे ज्यादा समय लगा. वे लगभग मानकर बैठी थी कि इस बार चयन पक्का है. यहां तक की उन्होंने साल 2018 के लिये प्री की तैयारी भी नहीं करी थी. लेकिन रिजल्ट आने के बाद जब उन्होंने लिस्ट में अपना नाम नहीं देखा और फैमिली ने मोटिवेट किया तो उन्होंने आवेदन के आखिरी दिन फॉर्म भर दिया।
अधिकारियों ने किया सपोर्ट यूपीएससी की तैयारियों के दौरान नमिता ने एसएससी सीजीएल परीक्षा पास की थी. चयन होने के बाद वे टैक्स असिस्टेंट के पद पर काम करती थी. वहां उनके सीनियर्स ने उन्हें कहा कि वे इस नौकरी से ज्यादा पाने के काबिल हैं और उन्हें अपनी तैयारी फिर से करनी चाहिये. उनके अधिकारियों ने न केवल उनका सपोर्ट किया बल्कि साक्षात्कार पास करने के टिप्स भी दिये. इससे नमिता को बहुत मदद मिली. अपने आखिरी अटेम्प्ट के बाद उन्हें चयनित होने के पहले इस बात की संतुष्टि थी कि सेलेक्शन हो या न हो इस बार उन्होंने कोई गलती नहीं की है और अपना बेस्ट दिया है. साल 2018 में आखिरी अटेम्प्ट में चयन होने पर उन्होंने चैन की सांस ली।
रिवीज़न को मानती हैं जरूरी नमिता कहती हैं कि इस परीक्षा का सिलेबस केवल पढ़ लेना ही काफी नहीं होता रिवीज़न बहुत जरूरी होता है. बिना रिवाइज़ करे आपकी सारी तैयारी बेकार है. इसके साथ ही लिखने की खूब प्रैक्टिस करें. जितना ज्यादा लिखेंगे उतना इस बात के लिये श्योर हो पायेंगे कि मेन्स में कुछ छूट नहीं रहा. इसके साथ ही नमिता दूसरे उम्मीदवारों को सलाह देती हैं कि चाहे कितनी बार भी असफल हों पर मन से खुद को असफल न मानें।
ऐसे लोगों की बिलकुल न सुनें जो आपको डिमोटिवेट करते हों. उन्होंने खुद अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों की डिप्रेसिव बातों से बचने के लिये घर के बजाय मुंबई के हॉस्टल में रहकर तैयारी करना उचित समझा. अंततः साल 2018 में उनकी मेहतन रंग लायी और उनका चयन हो गया. नमिता की कहानी धैर्य की अनोखी कहानी है जहां बार-बार असफल होने के बावजूद उन्होंने प्रयास करना नहीं छोड़ा. वे आगे कहती हैं कि मैंने भी टॉपर्स के साक्षात्कार देखें, अधिकारियों की सलाह ली लेकिन अपनी स्ट्रेटजी अपने अनुसार बनायी क्योंकि हर किसी की स्ट्रेन्थ और वीकनेस अलग होती है, किसी की कॉपी नहीं करनी चाहिए।
सवप्न कक्ष
सवप्न कक्ष
एक शहर में एक परिश्रमी, ईमानदार और सदाचारी लड़का रहता था. माता-पिता, भाई-बहन, मित्र, रिश्तेदार सब उसे बहुत प्यार करते थे. सबकी सहायता को तत्पर रहने के कारण पड़ोसी से लेकर सहकर्मी तक उसका सम्मान करते थे. सब कुछ अच्छा था, किंतु जीवन में वह जिस सफ़लता प्राप्ति का सपना देखा करता था, वह उसे उससे कोसों दूर था.
वह दिन-रात जी-जान लगाकर मेहनत करता, किंतु असफ़लता ही उसके हाथ लगती. उसका पूरा जीवन ऐसे ही निकल गया और अंत में जीवनचक्र से निकलकर वह कालचक्र में समा गया.
चूंकि उसने जीवन में सुकर्म किये थे, इसलिए उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई. देवदूत उसे लेकर स्वर्ग पहुँचे. स्वर्गलोक का अलौकिक सौंदर्य देख वह मंत्रमुग्ध हो गया और देवदूत से बोला, “ये कौन सा स्थान है?”
“ये स्वर्गलोक है. तुम्हारे अच्छे कर्म के कारण तुम्हें स्वर्ग में स्थान प्राप्त हुआ है. अब से तुम यहीं रहोगे.” देवदूत ने उत्तर दिया.
यह सुनकर लड़का खुश हो गया. देवदूत ने उसे वह घर दिखाया, जहाँ उसके रहने की व्यवस्था की गई थी. वह एक आलीशान घर था. इतना आलीशान घर उसने अपने जीवन में कभी नहीं देखा था.
देवदूत उसे घर के भीतर लेकर गया और एक-एक कर सारे कक्ष दिखाने लगा. सभी कक्ष बहुत सुंदर थे. अंत में वह उसे एक ऐसे कक्ष के पास लेकर गया, जिसके सामने “स्वप्न कक्ष” लिखा हुआ था.
जब वे उस कक्ष के अंदर पहुँचे, तो लड़का यह देखकर दंग रह गया कि वहाँ बहुत सारी वस्तुओं के छोटे-छोटे प्रतिरूप रखे हुए थे. ये वही वस्तुयें थीं, जिन्हें पाने के लिए उसने आजीवन मेहनत की थी, किंतु हासिल नहीं कर पाया था. आलीशान घर, कार, उच्चाधिकारी का पद और ऐसी ही बहुत सी चीज़ें, जो उसके सपनों में ही रह गए थे.
वह सोचने लगा कि इन चीज़ों को पाने के सपने मैंने धरती लोक में देखे थे, किंतु वहाँ तो ये मुझे मिले नहीं. अब यहाँ इनके छोटे प्रतिरूप इस तरह क्यों रखे हुए हैं? वह अपनी जिज्ञासा पर नियंत्रण नहीं रख पाया और पूछ बैठा, “ये सब…यहाँ…इस तरह…इसके पीछे क्या कारण है?”
देवदूत ने उसे बताया, “मनुष्य अपने जीवन बहुत से सपने देखता है और उनके पूरा हो जाने की कामना करता है. किंतु कुछ ही सपनों के प्रति वह गंभीर होता है और उन्हें पूरा करने का प्रयास करता है. ईश्वर और ब्रह्माण्ड मनुष्य के हर सपने पूरा करने की तैयारी करते है. लेकिन कई बार असफ़लता प्राप्ति से हताश होकर और कई बार दृढ़ निश्चय की कमी के कारण मनुष्य उस क्षण प्रयास करना छोड़ देता है, जब उसके सपने पूरे होने वाले ही होते हैं. उसके वही अधूरे सपने यहाँ प्रतिरूप के रूप में रखे हुए है. तुम्हारे सपने भी यहाँ प्रतिरूप के रूप में रखे है. तुमने अंत समय तक हार न मानी होती, तो उसे अपने जीवन में प्राप्त कर चुके होते.”
लड़के को अपने जीवन काल में की गई गलती समझ आ गई. किंतु मृत्यु पश्चात् अब वह कुछ नहीं कर सकता था.
मित्रों, किसी भी सपने को पूर्ण करने की दिशा में काम करने के पूर्व यह दृढ़ निश्चय कर लें कि चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों न आये? चाहे कितनी बार भी असफ़लता का सामना क्यों न करना पड़े? अपने सपनों को पूरा करने की दिशा में तब तक प्रयास करते रहेंगे, जब तब वे पूरे नहीं हो जाते. अन्यथा समय निकल जाने के बाद यह मलाल रह जाएगा कि काश मैंने थोड़ा प्रयास और किया होता. अपने सपनों को अधूरा मत रहने दीजिये, दृढ़ निश्चय और अथक प्रयास से उन्हें हकीक़त में तब्दील करके ही दम लीजिये.
अपनी क्षमता पहचानो
अपनी क्षमता पहचानो
एक गाँव में एक आलसी आदमी रहता था. वह कुछ काम-धाम नहीं करता था. बस दिन भर निठल्ला बैठकर सोचता रहता था कि किसी तरह कुछ खाने को मिल जाये.
एक दिन वह यूं ही घूमते-घूमते आम के एक बाग़ में पहुँच गया. वहाँ रसीले आमों से लदे कई पेड़ थे. रसीले आम देख उसके मुँह में पानी आ गया और आम तोड़ने वह एक पेड़ पर चढ़ गया. लेकिन जैसे ही वह पेड़ पर चढ़ा, बाग़ का मालिक वहाँ आ पहुँचा.
बाग़ के मालिक को देख आलसी आदमी डर गया और जैसे-तैसे पेड़ से उतरकर वहाँ से भाग खड़ा हुआ. भागते-भागते वह गाँव में बाहर स्थित जंगल में जा पहुँचा. वह बुरी तरह से थक गया था. इसलिए एक पेड़ के नीचे बैठकर सुस्ताने लगा.
तभी उसकी नज़र एक लोमड़ी (Fox) पर पड़ी. उस लोमड़ी की एक टांग टूटी हुई थी और वह लंगड़ाकर चल रही थी. लोमड़ी को देख आलसी आदमी सोचने लगा कि ऐसी हालत में भी इस जंगली जानवरों से भरे जंगल में ये लोमड़ी बच कैसे गई? इसका अब तक शिकार कैसे नहीं हुआ?
जिज्ञासा में वह एक पेड़ पर चढ़ गया और वहाँ बैठकर देखने लगा कि अब इस लोमड़ी के साथ आगे क्या होगा?
कुछ ही पल बीते थे कि पूरा जंगल शेर (Lion) की भयंकर दहाड़ से गूंज उठा. जिसे सुनकर सारे जानवर डरकर भागने लगे. लेकिन लोमड़ी अपनी टूटी टांग के साथ भाग नहीं सकती थी. वह वहीं खड़ी रही.
शेर लोमड़ी के पास आने लगा. आलसी आदमी ने सोचा कि अब शेर लोमड़ी को मारकर खा जायेगा. लेकिन आगे जो हुआ, वह कुछ अजीब था. शेर लोमड़ी के पास पहुँचकर खड़ा हो गया. उसके मुँह में मांस का एक टुकड़ा था, जिसे उसने लोमड़ी के सामने गिरा दिया. लोमड़ी इत्मिनान से मांस के उस टुकड़े को खाने लगी. थोड़ी देर बाद शेर वहाँ से चला गया.
यह घटना देख आलसी आदमी सोचने लगा कि भगवान सच में सर्वेसर्वा है. उसने धरती के समस्त प्राणियों के लिए, चाहे वह जानवर हो या इंसान, खाने-पीने का प्रबंध कर रखा है. वह अपने घर लौट आया.
घर आकर वह २-३ दिन तक बिस्तर पर लेटकर प्रतीक्षा करने लगा कि जैसे भगवान ने शेर के द्वारा लोमड़ी के लिए भोजन भिजवाया था. वैसे ही उसके लिए भी कोई न कोई खाने-पीने का सामान ले आएगा.
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. भूख से उसकी हालात ख़राब होने लगी. आख़िरकार उसे घर से बाहर निकलना ही पड़ा. घर के बाहर उसे एक पेड़ के नीचे बैठे हुए बाबा दिखाए पड़े. वह उनके पास गया और जंगल का सारा वृतांत सुनाते हुए वह बोला, “बाबा जी! भगवान मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं? उनके पास जानवरों के लिए भोजन का प्रबंध है. लेकिन इंसानों के लिए नहीं.”
बाबा जी ने उत्तर दिया, “बेटा! ऐसी बात नहीं है. भगवान के पास सारे प्रबंध है. दूसरों की तरह तुम्हारे लिए भी. लेकिन बात यह है कि वे तुम्हें लोमड़ी नहीं शेर बनाना चाहते हैं.”