जीवनधारा (भाग–सात)
एक दिन, ऑफिस के काम से रूपेश दूसरे शहर को जाता रहता है । पटना से थोड़ी ही दूर निकलकर हाइवे पर एक ढाबे पर कार रोक चाय पीने लगता है और अपने वॉलेट से नंदिनी की तस्वीर निकाल उसे देखते हुए कुछ सोचता रहता है ।
तभी, चाय बनाता हुआ ढाबेवाला बोलता है-“साहब, कितनी प्यारी बिटिया है । अभी कुछ दिनों पहले ऐसी ही एक प्यारी सी बच्ची अपने किसी रिश्तेदार के साथ इधर आयी थी । शायद बीमार थी, इसलिए बेहोश हो गई । फिर, उसके साथ वाला आदमी उसे अपनी गाड़ी में बिठा लेकर चला गया ।……….
…….. ढाबेवाले की बातें सुन रूपेश चाय पीना छोड़ उस लड़की के बारे में उससे विस्तार से पूछताछ करने लगा ।
“करीब दो-तीन दिन पहले, तकरीबन पैंतीस वर्ष की उम्र का एक आदमी ऐसी ही बच्ची को लेकर आया था । उस बच्ची की उम्र रही होगी- यही कोई चार-पांच साल के आसपास । आपके पास इसकी कोई और दूसरी तस्वीर है तो मुझे दिखाओ । तब शायद मैं उसे अच्छे से पहचान जाऊं, क्योंकि इसमें केवल बच्ची का चेहरा ही दिख रहा है। इसलिए मैं कंफ्यूज हो रहा हूँ।” उस ढाबेवाले ने रूपेश को बताया ।
आगे बढ़ने के बजाए रूपेश ने अपनी कार को वापस पटना की तरफ घुमाया और सीधे पूजा के घर पहुँच गया।
दरवाजे पर डोरबेल बजी और पूजा की मां ने दरवाजा खोला । इतने सालों बाद मिलने पर भी पूजा की मां ने रूपेश को झट से पहचान लिया ।
“कैसे हो बेटा ?” पूजा की मां ने रूपेश से उसका हालचाल पूछा ।
“नमस्ते आंटी, बहुत जरूरी काम हैं। पूजा को जल्दी से बुलाइए ।” रूपेश ने हड़बड़ाहट में कहा ।
पूजा की मां रूपेश को अंदर हाल में लेकर आयी और थोड़ा इंतजार करने बोलकर पूजा को बुलाने भीतर कमरे में चली गयी ।
सामने व्हील चेयर पर बैठे पूजा के पापा कोई पत्रिका पढ़ रहे थें । रूपेश ने उनका अभिवादन किया । खुश रहने का आशीर्वाद देकर पूजा के पापा ने उसे बताया कि उनके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है । एक तरफ जहां उनके कमर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया है, वहीं दूसरी तरफ अपनी बेटी की ऐसी हालत देखकर भी वह कुछ नही कर पा रहे है । तब, रूपेश ने उन्हे शहर के बाहर ढाबेवाले के द्वारा नंदिनी के फोटो को पहचानने की बात बताई । रूपेश की बात सुन पूजा के पिताजी के चेहरे पर उम्मीद की एक लकीर दिखी और उन्होंने हाथ जोड़कर रूपेश से अपने किए के लिए माफ़ी मांगा, जो उन्होंने उसके और उसके माता-पिता के साथ किया था ।
“अंकल, सब ठीक हो जाएगा । इतनी चिंता न करें, जो होना था सो हुआ । सब समय का दोष समझकर भूल जाइए।”–पूजा के पिताजी को हिम्मत बँधाते हुए रूपेश ने उनसे कहा।
तभी, भीतर के कमरे से पूजा आती है । रूपेश को अपने घर पर देखकर उसके आने का कारण पूछती है ।
“मुझे नंदिनी की दो-तीन तस्वीरें चाहिए, जिसमे वह पूरी दिखती हो । शहर के बाहर हाइवे के पास शायद उसे किसी ने देखा है । पर, नंदिनी की पूरी तस्वीर देखकर ही वह बता पाएगा कि वह नंदिनी थी या कोई और ।
पूजा कमरे से नंदिनी की कुछ तस्वीरें लेकर आती है और उसे रूपेश की ओर बढ़ा देती है। उन तस्वीरों को लेकर रूपेश लौटने लगता है तो पुजा खुद भी ढाबेवाले के पास चलने के लिए उससे आग्रह करती है।
फिर, रूपेश और पूजा ढाबेवाले की तरफ निकल पड़ते हैं। पूजा को चिंतित देख रूपेश उसे हिम्मत देते हुए कहता है कि चिंता न करो, नंदिनी जहां भी होगी, ठीक होगी और जल्दी ही मिल जायेगी ।
शहर से बाहर थोड़ी दूर चलने के पश्चात रूपेश अपनी कार सड़क के एक किनारे रोकता है और ढाबेवाले के पास पहुंच जाता है । वहाँ, नंदिनी की तस्वीर उसकी तरफ बढ़ाते हुए रूपेश कुछ कहता, इससे पहले ही वह ढाबेवाला नंदिनी को पहचान लेता है और बताता है कि इसी बच्ची को तो उसने उस दिन देखा था ।
रूपेश ने पूछा कि वो किस तरफ गए तो ढाबेवाले ने बताया- “जिसके साथ नंदिनी आयी थी, वह पास के ही एक गांव में रहता है और अक्सर इस ढाबे पर चाय पीने आता है । एकदिन, फोन पर किसी से बातचीत करते समय मैंने उसके पास के गांव में रहने की बात सुनी थी” ।
ढाबेवाले का मोबाइल नंबर ले रूपेश और पूजा, दोनों उसके बताए गाँव की तरफ बढ़ जाते हैं ।
हाइवे से थोड़ी दूर कार भगाने के बाद रूपेश एक कच्ची सड़क की तरफ मुड़ता है और थोड़ा अंदर आकर ही उस गांव में पहुंच जाता है ।
गांव में कुछ लोगों से पूछताछ करने के बाद शंभू नाम का एक ग्रामीण उस बच्ची को पहचान जाता हैं और उन्हे बताता है कि कुछ दिन पहले जब यह बच्ची बीमार थी तो कोई आदमी उसी के डिस्पेंसरी पर इसका इलाज करने लाया था ।
रूपेश शंभू से नंदिनी को ढूँढने में उनकी मदद करने की अनुरोध करता हैं। तब, शंभू बताता है कि डिस्पेन्सरी के रजिस्टर से शायद उस बच्ची का पता और मोबाइल नंबर मिल जाए । फिर, डिस्पेंसरी आकर रजिस्टर चेक करता है, जिसमें नंदिनी का दर्ज किया हुआ नाम और पता मिल जाता है, जो इसी गाँव का था ।
शंभू उन्हे रजिस्टर में दर्ज पते पर लेकर जाता है । रूपेश शंभू को उस घर के भीतर जाकर नंदिनी का हालचाल लेने बोलता है, ताकि पता चल सके कि वह अंदर है कि नही । रूपेश और पूजा थोड़ी दूरी पर जाकर खड़े हो जाते हैं, जहां से वह घर में होने वाली हरकतों पर नजर रख सकें और कोई उन्हे देख भी न पाये ।
शम्भू उस घर पर जाकर दरवाजा खटखटाता है । अंदर से एक आदमी बाहर निकलता है। यह वही आदमी था, जो नंदिनी को लेकर डिस्पेंसरी आया था । इसलिए दोनो एक-दूसरे को पहचान जाते हैं । शंभू उससे नंदिनी की तबीयत पूछता है और जांच करने के बहाने घर के अंदर चला जाता है । थोड़ी देर के बाद वह बाहर लौटता है और बिना इधर-उधर देखे अपनी डिस्पेन्सरी की ओर रवाना हो जाता है । रूपेश और पूजा भी उसके पीछे-पीछे चल देते हैं।
डिस्पेन्सरी पहुँच वह बताता है कि नंदिनी उस घर के भीतर ही है । उसके अलावा घर में एक और आदमी है ।
पूजा इस बार कोई भी गलती नही करना चाहती थी। इसीलिए उसने पुलिसवाले को फोन कर सारी बातें बताई और जल्दी से उस गाँव में पहुँचने का निवेदन किया। थोड़ी ही देर में पुलिसवाले आ गए । सभी उस घर पर पहुंचे, जहां नंदिनी थी ।
लेकिन यह क्या ? उस घर पर तो ताला लटका था।…..
क्रमशः………
धन्यवाद ।
मूल कृति : श्वेत कुमार सिन्हा
कृते WhiteBee
श्वेतकुमारसिन्हा #WhiteBee