Posted in जीवन चरित्र, भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

27 जुलाई चटगाँव शस्त्रागार केस से प्रसिद्द और उस दौर में आज़ादी की लड़ाई में हथियार उठाने वाली, जब लड़कियां घर से भी बाहर नहीं निकलती थी, कल्पना दत्त का जन्मदिवस है पर अफ़सोस हममें से किसी ने उन्हें याद नहीं किया | उनका जन्म वर्तमान बंग्लादेश के चटगांव ज़िले के श्रीपुर गांव में एक मध्यम वर्गीय परिवार में 27 जुलाई 1913 को हुआ था| 1929 में चटगाँव से मैट्रिक पास करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए ये कलकत्ता आ गयीं| यहाँ अनेकों प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों की जीवनियाँ पढ़कर वह प्रभावित हुईं और शीघ्र ही स्वयं भी कुछ करने के लिए आतुर हो उठीं।

कल्पना और उनके साथियों ने क्रान्तिकारियों का मुकदमा सुनने वाली अदालत के भवन को और जेल की दीवार उड़ाने की योजना बनाई। लेकिन पुलिस को सूचना मिल जाने के कारण इस पर अमल नहीं हो सका। पुरुष वेश में घूमती कल्पना दत्त गिरफ्तार कर ली गईं, पर अभियोग सिद्ध न होने पर उन्हें छोड़ दिया गया। उनके घर पुलिस का पहरा बैठा दिया गया, लेकिन अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए इन्होनें प्रसिद्द क्रांतिकारी मास्टर सूर्यसेन के दल से नाता जोड़ लिया।

वह वेश बदलकर क्रांतिकारियों को गोला-बारूद आदि पहुँचाया करती थीं। इस बीच उन्होंने सटीक निशाना लगाने का भी अभ्यास कर लिया। 18 अप्रैल 1930 ई. को मास्टर सूर्यसेन के नेतृत्व में रोंगटे खड़े कर देने वाली ‘चटगांव शस्त्रागार लूट’ की घटना होते ही कल्पना दत्त कोलकाता से वापस चटगांव चली गईं और उनके अभिन्न साथी तारकेश्वर दस्तीदार जी के साथ मास्टर दा को अंग्रेजों से छुड़ाने की योजना बनाई लेकिन योजना पर अमल होने से पहले ही यह भेद खुल गया और सन 1933 में तारकेश्वर, कल्पना दत्ता व अपने अन्य साथियों के साथ पकड़ लिए गए|

सरकार ने मास्टर सूर्य सेन जी, तारकेश्वर दा और कल्पना दत्त पर मुकद्दमा चलाने के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना की और 12 जनवरी 1934 को मास्टर सूर्य सेन को तारकेश्वर दा के साथ फांसी दे दी गयी| लेकिन फांसी से पूर्व उन्हें ऐसी अमानवीय यातनाएं दी गयीं कि रूह काँप जाती है|
निर्दयतापूर्वक हथोड़े से उनके दांत तोड़ दिए गए , नाखून खींच लिए गए , हाथ-पैर तोड़ दिए गए और जब वह बेहोश हो गए तो उन्हें अचेतावस्था में ही खींच कर फांसी के तख्ते तक लाया गया| क्रूरता और अपमान की पराकाष्टा यह थी कि उनकी मृत देह को भी उनके परिजनों को नहीं सोंपा गया और उसे धातु के बक्से में बंद करके बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया गया |

21 वर्षीया कल्पना दत्त को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी| 1937 ई. में जब पहली बार प्रदेशों में भारतीय मंत्रिमंडल बने, तब कुछ प्रमुख नेताओं के प्रयासों से 1939 में कल्पना जेल से बाहर आ सकीं। उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और वह कम्युनिस्ट पार्टी में सम्मिलित हो गईं | 1943 ई. में उनका कम्युनिस्ट नेता पी.सी. जोशी से विवाह हो गया और वह कल्पना जोशी बन गईं। बाद में कल्पना बंगाल से दिल्ली आ गईं और ‘इंडो सोवियत सांस्कृतिक सोसायटी’ में काम करने लगीं। सितम्बर 1979 ई. में कल्पना जोशी को पुणे में ‘वीर महिला’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। 8 फरबरी 1995 को कोलकाता में उनका निधन हो गया|

बहुत कम लोग जानते होंगे कि पूरन चंद जोशी और कल्पना जोशी के दो पुत्र थे- चाँद जोशी और सूरज जोशी| चाँद जोशी अंग्रेजी के एक प्रसिद्द पत्रकार थे और उन्होंने हिन्दुस्तान टाइम्स के लिए काम किया| इन्हीं चाँद जोशी की पत्नी मानिनी (चटर्जी ) के द्वारा चटगाँव शस्त्रागार केस पर एक बहुत ही प्रसिद्द पुस्तक लिखी गयी थी, जिसका नाम है डू एंड डाई: दि चटगाँव अपराइजिंग 1930-34। इसी पुस्तक को आधार बनाकर कुछ दिन पहले एक फिल्म आई थी ‘खेलें हम जी जान से’, जिसमे दीपिका पादुकोने ने कल्पना दत्त की भूमिका निभाई थी।

हालाँकि बाडीगार्ड, दबंग, राऊडी राठोड़, रेडी और इसी तरह की बेसिर पैर फिल्मों के ज़माने में ‘खेलें हम जी जान से’ देखने कौन जाता और किसको फुर्सत है कि ये जाने कि आज़ादी की लड़ाई बिना खड्ग, बिना ढाल नहीं, खून बहाकर और खुद को गलाकर मिली है। पर ना हो किसी को फुर्सत, ना हो किसी को परवाह; इससे कल्पना दत्त जैसी क्रांतिकारियों का निस्वार्थ योगदान कम तो नहीं हो जाता| उनको कोटिशः नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि|

abhaar विशाल अग्रवाल jee

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अनोखा मुकदमा……

न्यायालय में एक मुकद्दमा आया ,जिसने सभी को झकझोर दिया |अदालतों में प्रॉपर्टी विवाद व अन्य पारिवारिक विवाद के केस आते ही रहते हैं| मगर ये मामला बहुत ही अलग किस्म का था|
एक 60 साल के व्यक्ति ने ,अपने 75 साल के बूढ़े भाई पर मुकद्दमा किया था|
मुकदमा कुछ यूं था कि “मेरा 75 साल का बड़ा भाई ,अब बूढ़ा हो चला है ,इसलिए वह खुद अपना ख्याल भी ठीक से नहीं रख सकता |मगर मेरे मना करने पर भी वह हमारी 95 साल की मां की देखभाल कर रहा है |
मैं अभी ठीक हूं, सक्षम हू। इसलिए अब मुझे मां की सेवा करने का मौका दिया जाय और मां को मुझे सौंप दिया जाय”।
न्यायाधीश महोदय का दिमाग घूम गया और मुक़दमा भी चर्चा में आ गया| न्यायाधीश महोदय ने दोनों भाइयों को समझाने की कोशिश की कि आप लोग 15-15 दिन रख लो|
मगर कोई टस से मस नहीं हुआ,बड़े भाई का कहना था कि मैं अपने स्वर्ग को खुद से दूर क्यों होने दूँ |अगर मां कह दे कि उसको मेरे पास कोई परेशानी है या मैं उसकी देखभाल ठीक से नहीं करता, तो अवश्य छोटे भाई को दे दो।
छोटा भाई कहता कि पिछले 35 साल से,जब से मै नौकरी मे बाहर हू अकेले ये सेवा किये जा रहा है, आखिर मैं अपना कर्तव्य कब पूरा करूँगा।जबकि आज मै स्थायी हूं,बेटा बहू सब है,तो मां भी चाहिए।
परेशान न्यायाधीश महोदय ने सभी प्रयास कर लिये ,मगर कोई हल नहीं निकला|
आखिर उन्होंने मां की राय जानने के लिए उसको बुलवाया और पूंछा कि वह किसके साथ रहना चाहती है|
मां कुल 30-35 किलो की बेहद कमजोर सी औरत थी |उसने दुखी दिल से कहा कि मेरे लिए दोनों संतान बराबर हैं| मैं किसी एक के पक्ष में फैसला सुनाकर ,दूसरे का दिल नहीं दुखा सकती|
आप न्यायाधीश हैं , निर्णय करना आपका काम है |जो आपका निर्णय होगा मैं उसको ही मान लूंगी।
आखिर न्यायाधीश महोदय ने भारी मन से निर्णय दिया कि न्यायालय छोटे भाई की भावनाओं से सहमत है कि बड़ा भाई वाकई बूढ़ा और कमजोर है| ऐसे में मां की सेवा की जिम्मेदारी छोटे भाई को दी जाती है।
फैसला सुनकर बड़े भाई ने छोटे को गले लगाकर रोने लगा |
यह सब देख अदालत में मौजूद न्यायाधीश समेत सभी के आंसू छलक पडे।
कहने का तात्पर्य यह है कि अगर भाई बहनों में वाद विवाद हो ,तो इस स्तर का हो|
ये क्या बात है कि ‘माँ तेरी है’ की लड़ाई हो,और पता चले कि माता पिता ओल्ड एज होम में रह रहे हैं |यह पाप है।
धन दौलत गाडी बंगला सब होकर भी यदि मा बाप सुखी नही तो आप से बडा कोई जीरो(0)नही।
🙏

गौतम एन के

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बेटी नाराज हो गयी

पापा जाने लगे जब ऑफिस,

बेटी जिद पर अड़ी रही, activa के लिए, वो भी आज

papa ने मजबूरी दिखाई, पर बेटी माने तब न.

बेटी ने जिद में आकर papa से बात करना बंद कर दी.

पापा बेचारे क्या करे ?

बहुत कोशिश की, papa ने, ऑफिस से बेटी को मनाने की,

पर बेटी phone उठाये तब न.

mood ख़राब हुआ पापा का

छाती में दर्द होने लगा

immediate गया boss के पास, urgent loan पास

करवाया, showroom गया, बेटी की ख़ुशी के लिए,

activa खरीद ली.

बेटी को फिर फ़ोन किया ये बताने के लिए कि उसकी

activa शाम को आ रही है

पर बेटी अब भी नाराज

मुंह फुलाये बैठी थी, जिद्दी थी

papa से अब भी नाराज थी

पापा शांत हो गए, chest pain बढ़ने लगा,

बहुत प्यार करता था बेटी से

बेटी ने phone नहीं उठाया, और दर्द बढ़ने लगा.

activa तो पहुंच चुकी घर

पर papa को attack आ गया, ऑफिस में ही.

घर पर activa देखकर बहुत खुश हुई बेटी, हद से ज्यादा

पर पापा नहीं दिखे

पीछे पीछे कोई ambulance आ गयी,

सब परेशान, कौन था उसमें

Body बाहर निकाली गयी

बेटी ने देखा, वो papa थे.

ऑफिस staff ने बताया

सुबह से बहुत परेशान थे

activa के लिए, बेटी के लिए

urgent loan पास करवा के activa तक book की

घर पे बेटी को फ़ोन किया पर शायद बेटी नाराज थी

इसलिए फ़ोन नहीं उठाया

ये upset हो गए, बेटी से

बहुत प्यार करते थे

phone न उठाने के कारण उसे chest pain होने लगा,

कुछ ही sec में वही लेट गए

वही पर ढेर हो गए।

सोचिये, उस वक़्त बेटी की क्या हालत हुई होगी ?
जार जार रो रही थी

माफ़ कर दो पापा, बहुत बड़ी गलती हो गयी मुझसे

मुझे नहीं पता, पापा, आप इस बेटी को बहुत प्यार करते

हो, माफ़ कर दो पापा.

पर अब क्या हो सकता था ?

ACtiva बाहर खड़ी थी

PApa की dead body भी वहीं थी

बेटी सिर्फ पछता सकती थी, अपनी ज़िद पर, पापा से

नाराज होकर.

काश, वो फ़ोन उठाती

तो papa आज जिन्दा होते

हर बच्चे चाहे वो बेटा हो या बेटी से request है कि

dad की salary देखिये, घर की income देखिये, घर की ज़रूरतों को देखिये।

आप जो डिमांड करते हो

क्या आपके पापा कैपेबल हैं? नहीं तो थोड़ा सब्र कीजिये ।

पापा कभी भी बच्चों की बातें ignore नहीं करते…

🙏

गौतम न के

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ऐसी सत्य घटना साझा कर सकते हैं, जिसे पढ़ते ही हृदय भगवान के लिए व्याकुल हो जाये?
दिनांक: 1 नवंबर 1979।

समय: रात्रि 1 बजे।

स्थान: तिरुपति मंदिर।

पूरा तिरुपति शहर और स्वयं भगवान श्रीमन्नारायण भी शयन कर रहे थे और घनघोर शांत रात्रि थी की इतने में ही…

ठंन्न ठंन्न ठंन्न ठंन्न!

तिरुपति मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर के श्रीविग्रह के ठीक आगे जो बड़ा सा घंट है वो अपने आप हिलने लगा और उस घंट नाद से पूरा तिरुपति शहर एकदम आश्चर्य में भरकर उठ खड़ा हुआ।

मंदिर रात्रि 12 बजे पूर्ण रूप से बंद हो गया था, फिर ये कैसी घंटा नाद की ध्वनि आ रही है?
कोई भी जीवित व्यक्ति मंदिर में रात्रि 12 के बाद रहना संभव नही, तो फिर किसने ये घंटा नाद किया?
कोई जीव-जंतु मंदिर में प्रवेश नही कर सकते क्योंकि सारे द्वार बंद है, तो फिर ये कौन है?
मंदिर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री पी वी आर के प्रसाद के नेत्रो में अश्रु थे क्योंकि केवल वे जान पा रहे थे कि ये केवल घंटा नाद नही है, ये भगवान ने अपना संकेत दे दिया है मेरे “वरुण जाप” की सफलता के लिए।

भगवान् के सभी भक्त यह घटना बड़ी श्रद्धा से पढ़ें :-

यह अलौकिक दिव्य चमत्कारी घटना सन् 1979 नवंबर माह की हैं।

सन् 1979 में तिरुपति क्षेत्र में भयंकर सूखा पडा। दक्षिण-पूर्व का मानसून पूरी तरह विफल हों गया था। गोगर्भम् जलाशय (जो तिरुपति में जल-आपूर्ति का प्रमुख स्त्रोत हैं) लगभग सूख चुका था। आसपास स्थित कुँए भी लगभग सूख चुके थे।

तिरुपति ट्रस्ट के अधिकारी बड़े भारी तनाव में थे। ट्रस्ट अधिकारियों की अपेक्षा थी की सितम्बर-अक्टूबर की चक्रवाती हवाओं से थोड़ी-बहुत वर्षा हों जाएगी किन्तु नवम्बर आ पहुंचा था। थोडा-बहुत , बस महीने भर का पानी शेष रह गया था। मौसम विभाग स्पष्ट कर चुका था की वर्षा की कोई संभावना नहीं हैं।

सरकारें हाथ खड़ी कर चुकीं थीं। ट्रस्ट के सामने मन्दिर में दर्शन निषेध करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं बचा था। दर्शन निषेध अर्थात् दर्शन-पूजन अनिश्चित् काल के लिए बन्द कर देना।

ट्रस्टीयों की आत्मा स्वयं धिक्कार रही थी की कैसे श्रद्धालुओं को कह पायेंगे की जल के अभाव के कारण देवस्थान में दर्शन प्रतिबंधित कर दिए गए हैं? किन्तु दर्शन बंद करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचा था।

विधर्मियों और मूर्तिपूजन के विरोधियों का आनन्द अपने चरम पर था। नास्तिक लोग मारे ख़ुशी के झूम रहे थे। अखबारों में ख़बरें आ रही थी की जो भगवान् अपने तीर्थ में जल-आपूर्ति की व्यवस्था नहीं कर सकते वो भगवद्भक्तमण्डल पर कृपा कैसे करेंगे?

सनातन धर्मानुयायियों को खुलेआम अन्धविश्वासी और सनातन धर्म को अंधविश्वास कहा जा रहा था।

श्रद्धालु धर्मानुयायी रो रहे थे , उनके आंसू नहीं थम रहे थे!

कुछ दिन और निकल गए किन्तु जल-आपूर्ति की कोई व्यवस्था नहीं।

अचानक घबराए हुए ट्रस्टीयों को कुछ बुद्धि आई और उन्होंने वेदों और शास्त्रों के धुरन्धर विद्वान् और तिरुपति ट्रस्ट के सलाहकार , 90 वर्षीय श्री उप्पुलरी गणपति शास्त्री जी महाराज से सम्पर्क किया।

ट्रस्टीयों ने महाराजश्री से पूछा की क्या वेदों और शास्त्रों में इस गंभीर परिस्थिति का कोई उपाय हैं?

श्री उप्पुलरी गणपति शास्त्री जी महाराज ने उत्तर दिया की वेदों और शास्त्रों में इस लोक की और अलौकिक समस्त समस्याओं का निदान हैं। महाराजश्री ने ट्रस्टीयों को “वरुण जप” करने का परामर्श दिया।

महाराजश्री ने ट्रस्टीयों को बता दिया की पूर्ण समर्पण , श्रद्धा और विश्वास से यदि अनुष्ठान किया जाए तभी अनुष्ठान फलीभूत होगा अन्यथा नहीं। श्रद्धा में एक पैसेभर की कमी पूरे अनुष्ठान को विफल कर देगी।

ट्रस्टीयों ने “वरुण जाप” करने का निर्णय ले लिया और दूर-दूर से विद्वानों को निमंत्रण भेजा गया। समय बहुत ही कम था और लक्ष्य बहुत ही बड़ा था। जल-आपूर्ति मात्र दस दिनों की बाकी रह गई थीं। 1 नवम्बर को जप का मुहूर्त निकला था।

तभी बड़ी भारी समस्याओं ने ट्रस्टीयों को घेर लिया। जिन बड़े-बड़े विद्वानों को निमंत्रण भेजा गया था उनमे से अधिकाँश ने आने में असमर्थता व्यक्त कर दी। किसी का स्वास्थ्य खराब था , तो किसी के घर मृत्यु हों गई थी (मरणा-शौच) ; किसी को कुछ तो किसी को कुछ समस्या आ गई।

“वरुण-जाप” लगभग असंभव हों गया !

इधर इन खबरों को अखबार बड़ी प्रमुखता से चटखारे ले-लेकर छापे जा रहे थे और सनातन धर्म , धर्मानुयायियों , ट्रस्टमण्डल और तिरुपति बालाजी का मज़ाक बनाए जा रहे थे। धर्म के शत्रु सनातन धर्म को अंधविश्वास सिद्ध करने पर तुले हुए थे।

ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री प्रसाद साहब की आँखों में आंसू थे। उन्होंने रो-रोकर आर्त ह्रदय से प्रभु वेंकटेश से प्रार्थना की । सारे ट्रस्टी और भक्तों ने भी प्रार्थना की।

सभी ने प्रभु से प्रार्थना की – “क्या वरुण जाप नहीं हों पाएगा? क्या मंदिर के दर्शन बन्द हों जायेंगे? क्या हजारों-लाखों साल की परम्परा लुप्त हों जाएगी?

नवम्बर के महीने में रात्रीविश्राम के लिए मंदिर के पट बंद हों चुके थे । मंदिर में कोई नहीं था। सभी चिंतित भगवद्भक्त अपने-अपने घरों में रो-रोकर प्रभु से प्रार्थना कर रहे थे।

और तभी रात्रि में 1 बजे यह घंटा नाद गूंज उठा पूरे तिरुमला पर्वत पर, मानो प्रभु सबसे कह रहे हो “चिंता मत करो! मैं हूँ तुम्हारे साथ!”

दूसरे दिन सुबह से ही “वरुण जाप” हेतु अनुकूलताएँ मिलनी आरम्भ हों गई। जिन विद्वानों ने आने में असमर्थता व्यक्त कर दी थीं उनकी उपलब्धि के समाचार आने लग गए। 8 नवम्बर को पुनः मुहूर्त निर्धारित कर लिया गया। जो विद्वान् अनुष्ठान से मुंह फेर रहे थे , वे पुरी शक्ति के साथ अनुष्ठान में आ डटे।

“वरुण जाप” तीन दिनों तक चलनेवाली परम् कठिन वैदिक प्रक्रिया हैं । यह प्रातः लगभग तीन बजे आरम्भ हों जाती हैं। इसमें कुछ विद्वानों को तो घंटो छाती तक पुष्करिणी सरोवर में कड़े रहकर “मन्त्र जाप” करने थे , कुछ भगवान् के “अर्चा विग्रहों” का अभिषेक करते थे , कुछ “यज्ञ और होम” करते थे तो कुछ “वेदपाठ” करते थे। तीन दिनों की इस परम् कठिन वैदिक प्रक्रिया के चौथे दिन पूर्णाहुति के रूप में “सहस्त्र कलशाभिषेकम्” सेवा प्रभु “श्री वेंकटेश्वर” को अर्पित की जानेवाली थी।

तीन दिनों का अनुष्ठान संपन्न हुआ। सूर्यनारायण अन्तरिक्ष में पूरे तेज के साथ दैदीप्यमान हों रहे थे। बादलों का नामोनिशान तक नहीं था।

भगवान् के भक्त बुरी तरह से निराश होकर मन ही मन भगवन से अजस्त्र प्रार्थना कर रहे थे।
भगवान् के “अर्चा विग्रहों” को पुष्करिणी सरोवर में स्नान कराकर पुनः श्रीवारी मंदिर में ले जाया जा रहा था।
सेक्युलर पत्रकार चारों ओर खड़े होकर तमाशा देख रहे थे और हंस रहे थे और चारों ओर विधर्मी घेरकर चर्चा कर रहे थे की “ अनुष्ठान से बारिश? ऐसा कहीं होता हैं? कैसा अंधविश्वास हैं यह?“ कैसा पाखण्ड हैं यह?”
ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री प्रसाद साहब और ट्रस्टीगण मन ही मन सोच रहे थे की “हमसे कौनसा अपराध हों गया?” , “क्यों प्रभु ने हमारी पुकार अस्वीकार कर दी?” , अब हम संसार को और अपनेआप को क्या मुंह दिखाएँगे?”
इतने में ही दो तीन पानी की बूंदे श्री प्रसाद के माथे पर पड़ी..

उन्हें लगा कि पसीने की बूंदे होंगी और घोर निराशा भरे कदम बढ़ाते रहे मंदिर की ओर पर फिर और पाँच छह मोटी मोटी बूंदे पड़ी!

सर ऊपर उठाकर देखा तो आसमान में काले काले पानी से भरे हुए बादल उमड़ आए है और घनघोर बिजली कड़कड़ा उठी!

दो तीन सेकेण्ड में मूसलधार वर्षा आरम्भ हुई! ऐसी वर्षा की सभी लोगो को भगवान के उत्सव विग्रहों को लेकर मंदिर की ओर दौड़ लगानी पड़ी फिर भी वे सभी सर से पैर तक बुरी तरह से भीग गए थे।

याद रहे, वर्षा केवल तिरुपति के पर्वत क्षेत्र में हुई, आसपास एक बूँद पानी नहीं बरसा। गोगर्भम् जलाशय और आसपास के कुंएं लबालब भरकर बहने लगे। इंजिनियरों ने तुरंत आकर बताया की पूरे वर्ष तक जल-आपूर्ति की कोई चिंता नहीं।

सेक्युलर पत्रकार और धर्म के शत्रुओं के मुंह पर हवाइयां उड़ने लगी और वे बगलें झाँकने लगे। लोगों की आँखें फटी-की-फटी रह गई। भक्तमण्डल जय-जयकार कर उठा।

यह घटना सबके सामने घटित हुई और हज़ारों पत्रकार और प्रत्यक्षदर्शी इसके प्रमाण हैं लेकिन इस बात को दबा दिया गया।[1]

“सनातन धर्म” की इस इतनी बड़ी जीत के किससे कभी टेलीविज़न , सिनेमा अथवा सोशल मीडिया पर नहीं गाये जाते ।

भगवान् वेंकटेश्वर श्रीनिवास कोई मूर्ती नहीं वरन् साक्षात् श्रीमन्नारायण स्वयं हैं। अपने भक्तों की पुकार सुनकर वे आज भी दौड़े चले आते हैं। भक्त ह्रदय से पुकारें तो सही।

“वेंकटाद्री समं स्थानं , ब्रह्माण्डे नास्ति किंचन् ।

श्रीवेंकटेश समो देवों , न भूतो न भविष्यति ॥“

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जागरुकता आ रही है, धीरे धीरे ही सही…!!

अचानक मुझे आदेशात्मक शब्द सुनाई दिए – “भैया सीट से हट जाओ…..मेरे पास बच्चे है..!!”

बुर्का ओढ़े महिला ने एक 24-25 साल के लड़के से कहा,
तो लड़के ने बड़ी शालीनता से कहा कि आप महिला सीट पर जाओ…मै महिला सीट पर नहीं बैठा हूं.

तो वो बोली कि वहां सब लेडीज बैठी हैं…

तो लड़के ने अपने कान के हेडफोन को हटाते हुए कहा तो मैं क्या करूं ?? मुझे भजनपुरा जाना है, जो अभी बहुत दूर है ,

तो वो अपने बच्चो की धौस दिखाने लगी कि मेरे पास छोटे छोटे ४ बच्चे हैं… आपको शर्म नही आती ? आप जेंटस् हैं…आप सीट नही छोड़ सकते ?

अब सभी सवारियां मौन तमाशा देखने लगी,
मामला गर्म होने की बजाय मसालेदार हो रहा था,

लड़के ने एक बड़ी अच्छी बात कही,
आप लोगो का यही ड्रामा है! हर साल एक बच्चा जनना, और उसी के ऊपर कूदना। क्या आपने हमसे पूछकर कर पैदा किये थे बच्चे ? अजीब बात है…. बच्चे पैदा तुम करो, सीट हम छोड़े ? आपको बच्चो की इतनी ही फिक्र थी तो कैब करती या खाली बस में घुसती। अब तुम्हे फ्री सफर भी चाहिए….सीट भी चाहिये और दादागिरी भी चाहिए …. जाइए, मैं नही दे रहा सीट!

अब बस का कंडक्टर भी बोला कि दे दे भाई सीट,
लड़का बोला कि मैं किसी महिला रिज़र्व सीट पर नही हंु, भाई तू अपने टिकट काट।

कंडक्टर शायद अरबी भेड़ था, कहने लगा लेडी है , लगता है पेट से भी है ..
तो मै क्या करूं…युवक ने कहा

कंडक्टर चुप होकर बस के बाहर देखने लगा।

इतने में मुझे ये तो यकीन हो गया लड़का जागरूक है…उसको बातों में धुनने को तैयार है,

वो बुर्के वाली अक्कड से युवक के पास वाली सीट के पास ही खड़ी रही !

लड़का भी बुदबुदाता रहा कि तुम बच्चे पैदा करते रहो, काफ़िर सीट देंगे ? फिर तुम्हे अपना घर देंगे ? और फिर पैदा करोगे वही कश्मीर वाले हालात ?

उस महिला को आगे बैठै एक इन्सानियत के कर्मचारी ने अपनी सीट ऑफर कर दी,
वो बैठ धम्म से बैठ गयी …उसने दो शिशु शावक गोद मे बिढा दिए, परंतु दो शावकों को खडे रहना पडा… अब वो बगल वाले से अपने शावकों के लिए सीट मांगने लगी।

लड़के ने जोर से उस सेक्युलर को ताना मारा की भाई साहब घर भी दे दो न अपना, ये बच्चे वहां अच्छा जीवन जियेंगे।

इस दौरान कंडक्टर चिल्लाया की भाई जिसे अप्सरा बॉर्डर उतरना हो उतर जाओ,

बात वहीं रुक गयी और लड़का शांत हो गया और वो शाईनबाग की शेरनी सीमापुरी उतर गई।

मात्र 10 मिनट के सफर के लियेउस बुर्के वाली ने ये सब नाटक किया,

ये घटना है , दिल्ली लोकल बस की। जो रूट no 33 नोएडा सेक्टर 37 से भजनपुरा की तरफ जाती है। रोज की तरह लोग इसमे घुसते है, और अधिका़श अपने आफिस और दूसरे काम के लिए निकलते है।
मैं महिला सीट पर बैठी ये सब नाटक देख रही थी। ( दिल्ली एनसीआर की बसों में एक लाइन महिलाओ के लिए आरक्षित है )

मैं मन्द मन्द मुसकराई और सोचने लगी कि जागना जरूरी है, अरे ढेर सारे बच्चे पैदा वो करेंगे और survive हमे करना पड़ रहा है,
वर्षों से यही चल आ रहा है,
लेकिन ये अब आगे नही चलना चाहिए ,
शायद ही नहीं, बल्कि यकीनन अब लोगो में जागरूकता आ रही है जो अब हर शहर गांव व दूरदराज तक पहूंचनी चाहिए……

एक महिला पत्रकार की पोस्ट से 🙏

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♦️♦️♦️ रात्रि कहांनी

जानिये रामायण का एक अनजान स्तय 🏵️
🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅
केवल लक्ष्मण ही मेघनाद का वध कर सकते थे..
क्या कारण था ?..पढ़िये पूरी कथा हनुमानजी की रामभक्ति की गाथा संसार में भर में गाई जाती है। लक्ष्मणजी की भक्ति भी अद्भुत थी। लक्ष्मणजी की कथा के बिना श्री रामकथा पूर्ण नहीं है। अगस्त्य मुनि अयोध्या आए और लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया । भगवान श्रीराम ने बताया कि उन्होंने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा ॥ अगस्त्य मुनि बोले- श्रीराम बेशक रावण और कुंभकर्ण प्रचंड वीर थे, लेकिन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाध ही था ॥ उसने अंतरिक्ष में स्थित होकर इंद्र से युद्ध किया था और बांधकर लंका ले आया था॥ ब्रह्मा ने इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को मांगा तब इंद्र मुक्त हुए थे ॥ लक्ष्मण ने उसका वध किया, इसलिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए ॥ श्रीराम को आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे॥ फिर भी उनके मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था ॥ अगस्त्य मुनि ने कहा- प्रभु इंद्रजीत को वरदान था कि उसका वध वही कर सकता था जो.....

(१) चौदह वर्षों तक न सोया हो,

(२) जिसने चौदह साल तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो, और

(३) चौदह साल तक भोजन न किया हो ॥ श्रीराम बोले- परंतु मैं बनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल-फूल देता रहा ॥ मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था, बगल की कुटी में लक्ष्मण थे, फिर सीता का मुख भी न देखा हो, और चौदह वर्षों तक सोए न हों, ऐसा कैसे संभव है ॥ अगस्त्य मुनि सारी बात समझकर मुस्कुराए॥ प्रभु से कुछ छुपा है भला! दरअसल, सभी लोग सिर्फ श्रीराम का गुणगान करते थे, लेकिन प्रभु चाहते थे कि लक्ष्मण के तप और वीरता की चर्चा भी अयोध्या के घर-घर में हो ॥

अगस्त्य मुनि ने कहा – क्यों न लक्ष्मणजी से पूछा जाए ॥लक्ष्मणजी आए प्रभु ने कहा कि आपसे जो पूछा जाए उसे सच-सच कहिएगा॥ प्रभु ने पूछा- हम तीनों चौदह वर्षों तक साथ रहे फिर तुमने सीता का मुख कैसे नहीं देखा ?, फल दिए गए फिर भी अनाहारी कैसे रहे ?, और १४ साल तक सोए नहीं ? यह कैसे हुआ ? लक्ष्मणजी ने बताया- भैया जब हम भाभी को तलाशते ऋष्यमूक पर्वत गए तो सुग्रीव ने हमें उनके आभूषण दिखाकर पहचानने को कहा ॥ आपको स्मरण होगा मैं तो सिवाए उनके पैरों के नुपूर के कोई आभूषण नहीं पहचान पाया था क्योंकि मैंने कभी भी उनके चरणों के ऊपर देखा ही नहीं. चौदह वर्ष नहीं सोने के बारे में सुनिए – आप औऱ माता एक कुटिया में सोते थे. मैं रातभर बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी में खड़ा रहता था. निद्रा ने मेरी आंखों पर कब्जा करने की कोशिश की तो मैंने निद्रा को अपने बाणों से बेध दिया था॥ निद्रा ने हारकर स्वीकार किया कि वह चौदह साल तक मुझे स्पर्श नहीं करेगी लेकिन जब श्रीराम का अयोध्या में राज्याभिषेक हो रहा होगा और मैं उनके पीछे सेवक की तरह छत्र लिए खड़ा रहूंगा तब वह मुझे घेरेगी ॥ आपको याद होगा राज्याभिषेक के समय मेरे हाथ से छत्र गिर गया था। अब मैं १४ साल तक अनाहारी कैसे रहा! मैं जो फल-फूल लाता था आप उसके तीन भाग करते थे. एक भाग देकर आप मुझसे कहते थे लक्ष्मण फल रख लो॥ आपने कभी फल खाने को नहीं कहा- फिर बिना आपकी आज्ञा के मैं उसे खाता कैसे? मैंने उन्हें संभाल कर रख दिया॥ सभी फल उसी कुटिया में अभी भी रखे होंगे ॥ प्रभु के आदेश पर लक्ष्मणजी चित्रकूट की कुटिया में से वे सारे फलों की टोकरी लेकर आए और दरबार में रख दिया॥ फलों की गिनती हुई, सात दिन के हिस्से के फल नहीं थे॥ प्रभु ने कहा- इसका अर्थ है कि तुमने सात दिन तो आहार लिया था? लक्ष्मणजी ने सात फल कम होने के बारे बताया- उन सात दिनों में फल आए ही नहीं :—

१–जिस दिन हमें पिताश्री के स्वर्गवासी होने की सूचना मिली, हम निराहारी रहे॥

२–जिस दिन रावण ने माता का हरण किया उस दिन फल लाने कौन जाता॥

३–जिस दिन समुद्र की साधना कर आप उससे राह मांग रहे थे, ।

४–जिस दिन आप इंद्रजीत के नागपाश में बंधकर दिनभर अचेत रहे,।

५–जिस दिन इंद्रजीत ने मायावी सीता को काटा था और हम शोक में रहे,।

६–जिस दिन meghnath ने मुझे शक्ति मारी,

७–और जिस दिन आपने रावण-वध किया ॥

इन दिनों में हमें भोजन की सुध कहां थी॥ विश्वामित्र मुनि से मैंने एक अतिरिक्त विद्या का ज्ञान लिया था- बिना आहार किए जीने की विद्या. उसके प्रयोग से मैं चौदह साल तक अपनी भूख को नियंत्रित कर सका जिससे इंद्रजीत मारा गया ॥भगवान श्रीराम ने लक्ष्मणजी की तपस्या के बारे में सुनकर उन्हें ह्रदय से लगा लिया ।🚩🚩,,,, Nityam keshari,,,...

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!! मन की पवित्रता !!
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एक राजा को अपने लिए सेवक की आवश्यकता थी। उसके मंत्री ने दो दिनों के बाद एक योग्य व्यक्ति को राजा के सामने पेश किया।

राजा ने उसे अपना सेवक बना तो लिया पर बाद में मंत्री से कहा, ‘‘वैसे तो यह आदमी ठीक है पर इसका रंग-रूप अच्छा नहीं है।’’ मंत्री को यह बात अजीब लगी पर वह चुप रहा।

एक बार गर्मी के मौसम में राजा ने उस सेवक को पानी लाने के लिए कहा। सेवक सोने के पात्र में पानी लेकर आया।

राजा ने जब पानी पिया तो पानी पीने में थोड़ा गर्म लगा। राजा ने कुल्ला करके फेंक दिया। वह बोला, ‘‘इतना गर्म पानी, वह भी गर्मी के इस मौसम में, तुम्हें इतनी भी समझ नहीं।’’

मंत्री यह सब देख रहा था। मंत्री ने उस सेवक को मिट्टी के पात्र में पानी लाने को कहा। राजा ने यह पानी पीकर तृप्ति का अनुभव किया।

इस पर मंत्री ने कहा, ‘‘महाराज, बाहर को नहीं, भीतर को देखें। सोने का पात्र सुंदर, मूल्यवान और अच्छा है, लेकिन शीतलता प्रदान करने का गुण इसमें नहीं है।

मिट्टी का पात्र अत्यंत साधारण है लेकिन इसमें ठंडा बना देने की क्षमता है। कोरे रंग-रूप को न देखकर गुण को देखें।’’ उस दिन से राजा का नजरिया बदल गया।

सम्मान, प्रतिष्ठा, यश, श्रद्धा पाने का अधिकार चरित्र को मिलता है, चेहरे को नहीं। चाणक्य ने कहा है कि मनुष्य गुणों से उत्तम बनता है न कि ऊंचे आसन पर बैठने से या पदवी से। जैसे ऊंचे महल के शिखर पर बैठ कर भी कौवा, कौवा ही रहता है; गरुड़ नहीं बन जाता।

उसी तरह अमिट सौंदर्य निखरता है मन की पवित्रता से, क्योंकि सौंदर्य रंग-रूप, नाक-नक्श, चाल-ढाल, रहन-सहन, सोच-शैली की प्रस्तुति मात्र नहीं होता। यह व्यक्ति के मन, विचार, चिंतन और कर्म का आइना है।

कई लोग बाहर से सुंदर दिखते हैं मगर भीतर से बहुत कुरूप होते हैं। जबकि ऐसे भी लोग हैं जो बाहर से सुंदर नहीं होते मगर उनके भीतर भावों की पवित्रता इतनी ज्यादा होती है कि उनका व्यक्तित्व चुंबकीय बन जाता है। सुंदर होने और दिखने में बहुत बड़ा अंतर है।

शिक्षा:-
आपका चरित्र ही आपका सबसे बड़ा गुण है।
🙏🏿🙏🏾🙏जय जय श्री राधे🙏🏻🙏🏽🙏🏼

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फकीर की विनम्रता से सुधरा युवक
एक पहुंचे हुए फकीर थे। सादगी और विनम्रता के धनी इस
फकीर के जीवन का उद्देश्य था लोगों का भला करना। एक बार राह से
गुजरते वक्त उन्होंने एक युवक को तम्बूरा बजा-बजाकर भद्दे गीत गाते
| देखा । लोग उसके भद्दे गीत सुनकर नाराज हो रहे थे। फकीर को लगा
कि यदि युवक कुछ देर और इसी प्रकार गाता रहा तो लोग उसे मारेंगे।
फकीर ने युवक की रक्षा के लिए जोर-जोर से यह गाना शुरू कर दिया,
‘अल्लाह ! तू महान है। बिना तेरी कृपा के कोई कुछ नहीं कर सकता।
परवरदिगार ! मुझ पर सदा दया-दृष्टि रखना।’ फकीर के ऊंचे स्वर में
गाने से क्रोधित होकर युवक बोला, ‘चुप हो जा फकीर! यह क्या
बकवास लगा रखी है ?’ फकीर ने उसकी बात अनसुनी करते हुए गाना
जारी रखा, ‘हे खुदा! बेअक्लों को अक्ल दे, भटको को सही राह
दिखा।’ गुस्से में आकर युवक ने तम्बूरा फकीर के सिर पर दे मारा।
तम्बूरा टूट गया और फकीर के सिर से खून बहने लगा। यह देख युवक
वहां से भाग गया। फकीर अपनी कुटिया में पहुंचे तो शागिर्दो ने उनकी
मरहम पट्टी की। फिर फकीर ने एक शागिर्द से कहा, ‘तू उस युवक के
पास जाकर तम्बूरे की कीमत दे और साथ में मिठाई भी ले जाना। क्रोध
बहुत बुरी वृत्ति है और मुझे अफसोस है कि मेरे कारण उसे इतना क्रोध
आया।’ शागिर्द जब ये चीजें लेकर युवक के पास पहुंचा तो उसे बहुत
हैरानी हुई। उसने स्वयं के खराब आचरण पर शर्मिंदगी महसूस की।
वह उसी वक्त फकीर के पास पहुंचा और माफी मांगी। इसके बाद
युवक फकीर का शागिर्द बन गया। अनेक अवसरों पर विनम्रता व
सहनशीलता सुधार का मार्ग बन जाते हैं। इसलिए इन्हें अपनी स्वाभाविक
वृत्ति बनाकर उचित अवसर पर उपयोग करना चाहिए।

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आत्म विश्वास की शक्ति
न्यूयार्क में एडवर्ड ऐनिस धर्म-कर्म और ईश्वर में बहुत विश्वास रखता था पर
निर्धन था। तो भी वह इतना आत्मविश्वासी था कि इसी एक गुण के कारण
| उसका सभी सम्मान करते थे।एक दिन वह किसी स्थान के पास से गुजर रहा
| था तो उसे ऐसा आभास हुआ, इस स्थान पर द्रव मात्रा में काफी सोना विद्यमान
है। उसने एक ज्योतिषि से भी पूछा, उसने भी पुष्टि कर दी पर उसने प्रमुखता
| अपने विश्वास को ही दी। वह प्रायः कहा करता था- ‘मेरा हृदय, मन और मेरी
| आत्मा इतने निष्कलुष और विकार रहित हैं कि उनमें भविष्य के संदर्भ भी ऐसे
प्रकट हो जाते हैं, जैसे उन्हें मैं सचमुच देख रहा हूँ। जब मेरा विश्वास दृढ़
| जाता है तो फिर उस कार्य की सफलता में कुछ सन्देह भी नहीं रह जाता।’
| ऐनिस ने तमाम साधन एकत्र करके कुछ मित्रों से सहायता प्राप्त करके वह जमीन
| खरीद ली और वहाँ खुदाई प्रारम्भ कर दी। दुर्भाग्य कि हाइलैण्ड मेरी में कुछ
| चाँदी के टुकड़े ही उपलब्ध हुए और उसके बाद ही उसकी मृत्यु हो गई। मरने
| से पूर्व अपने एक संदेश में एनिस ने कहा- “जो बात आत्मा से निकलती है,
| वह कभी झूठ नहीं होती । मुझे नहीं मिला तो क्या, अभी उस स्थान पर सोना है
अवश्य। मृत्यु
के 16 वर्ष बाद श्रीमती मारिया मारले ने, जिन्हें एनिस के
| आत्मविश्वास पर
भारा भरोसा था, फिर से खुदाई का काम जारी करवाया। 600
| फीट तक खुदाई करने के बाद वहाँ सोने, चाँदी, तांबे और जिंक के भंडार मिले।
| इससे उस महिला को कई लाख डॉलर का लाभ हुआ।अपनी सफलता पर उन्होंने
| केवल इतनी ही टिप्पणी की- ‘आत्मविश्वास अपने आप एक ज्योतिष है, ऐसा
| मनुष्य भले ही अपने लिए कुछ न करे पर उसकी विकसित अन्तरशक्ति दूसरों
का भी कल्याण कर सकती है।’

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अनोखा मुकदमा……

न्यायालय में एक मुकद्दमा आया ,जिसने सभी को झकझोर दिया |अदालतों में प्रॉपर्टी विवाद व अन्य पारिवारिक विवाद के केस आते ही रहते हैं| मगर ये मामला बहुत ही अलग किस्म का था|
एक 60 साल के व्यक्ति ने ,अपने 75 साल के बूढ़े भाई पर मुकद्दमा किया था|
मुकदमा कुछ यूं था कि “मेरा 75 साल का बड़ा भाई ,अब बूढ़ा हो चला है ,इसलिए वह खुद अपना ख्याल भी ठीक से नहीं रख सकता |मगर मेरे मना करने पर भी वह हमारी 95 साल की मां की देखभाल कर रहा है |
मैं अभी ठीक हूं, सक्षम हू। इसलिए अब मुझे मां की सेवा करने का मौका दिया जाय और मां को मुझे सौंप दिया जाय”।
न्यायाधीश महोदय का दिमाग घूम गया और मुक़दमा भी चर्चा में आ गया| न्यायाधीश महोदय ने दोनों भाइयों को समझाने की कोशिश की कि आप लोग 15-15 दिन रख लो|
मगर कोई टस से मस नहीं हुआ,बड़े भाई का कहना था कि मैं अपने स्वर्ग को खुद से दूर क्यों होने दूँ |अगर मां कह दे कि उसको मेरे पास कोई परेशानी है या मैं उसकी देखभाल ठीक से नहीं करता, तो अवश्य छोटे भाई को दे दो।
छोटा भाई कहता कि पिछले 35 साल से,जब से मै नौकरी मे बाहर हू अकेले ये सेवा किये जा रहा है, आखिर मैं अपना कर्तव्य कब पूरा करूँगा।जबकि आज मै स्थायी हूं,बेटा बहू सब है,तो मां भी चाहिए।
परेशान न्यायाधीश महोदय ने सभी प्रयास कर लिये ,मगर कोई हल नहीं निकला|
आखिर उन्होंने मां की राय जानने के लिए उसको बुलवाया और पूंछा कि वह किसके साथ रहना चाहती है|
मां कुल 30-35 किलो की बेहद कमजोर सी औरत थी |उसने दुखी दिल से कहा कि मेरे लिए दोनों संतान बराबर हैं| मैं किसी एक के पक्ष में फैसला सुनाकर ,दूसरे का दिल नहीं दुखा सकती|
आप न्यायाधीश हैं , निर्णय करना आपका काम है |जो आपका निर्णय होगा मैं उसको ही मान लूंगी।
आखिर न्यायाधीश महोदय ने भारी मन से निर्णय दिया कि न्यायालय छोटे भाई की भावनाओं से सहमत है कि बड़ा भाई वाकई बूढ़ा और कमजोर है| ऐसे में मां की सेवा की जिम्मेदारी छोटे भाई को दी जाती है।
फैसला सुनकर बड़े भाई ने छोटे को गले लगाकर रोने लगा |
यह सब देख अदालत में मौजूद न्यायाधीश समेत सभी के आंसू छलक पडे।
कहने का तात्पर्य यह है कि अगर भाई बहनों में वाद विवाद हो ,तो इस स्तर का हो|
ये क्या बात है कि ‘माँ तेरी है’ की लड़ाई हो,और पता चले कि माता पिता ओल्ड एज होम में रह रहे हैं |यह पाप है।
धन दौलत गाडी बंगला सब होकर भी यदि मा बाप सुखी नही तो आप से बडा कोई जीरो(0)नही।
🙏