Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

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♥️ Story-9 ♥️

कहानी पढ़ने से पहले, एक गहरी सांस लें और इस पल को महसूस करें।

सेवा की कहानी

मैं चेन्नई में कार्यरत था और मेरा पैतृक घर भोपाल में था। अचानक घर से पिताजी का फ़ोन आया कि तुरन्त घर चले आओ, कोई अत्यंत आवश्यक कार्य है। मैं आनन फानन में रेलवे स्टेशन पहुँचा और तत्काल रेलवे आरक्षण की कोशिश की परन्तु गर्मी की छुट्टियाँ होने के कारणवश एक भी सीट उपलब्ध नहीं थी।

सामने प्लेटफार्म पर ग्रैंड ट्रंक एक्सप्रेस गाड़ी खड़ी थी और उसमें भी बैठने की जगह नहीं थी, परन्तु मरता क्या नहीं करता,घर तो कैसे भी जाना था। बिना कुछ सोचे-समझे सामने खड़े साधारण श्रेणी के स्लीपर क्लास के डिब्बे में घुस गया। मैंने सोचा इतनी भीड़ में रेलवे टी.टी. कुछ नहीं कहेगा। डिब्बे के अन्दर भी बुरा हाल था। जैसे-तैसे जगह बनाने हेतु एक बर्थ पर एक सज्जन को लेटे देखा तो उनसे याचना करते हुए बैठने के लिए जगह मांग ली। सज्जन मुस्कुराये और उठकर बैठ गए और बोले– “कोई बात नहीं,आप यहाँ बैठ सकते हैं।”

मैं उन्हें धन्यवाद दे,वही कोने में बैठ गया। थोड़ी देर बाद ट्रेन ने स्टेशन छोड़ दिया और रफ़्तार पकड़ ली। कुछ मिनटों में जैसे सभी लोग व्यवस्थित हो गए और सभी को बैठने का स्थान मिल गया और लोग अपने साथ लाया हुआ खाना खोल कर खाने लगे। पूरे डिब्बे में भोजन की महक भर गयी। मैंने अपने सहयात्री को देखा और सोचा, बातचीत का सिलसिला शुरू किया जाये। मैंने कहा– “मेरा नाम आलोक है और मैं इसरो में वैज्ञानिक हूँ। आज़ जरुरी काम से अचानक मुझे घर जाना था इसलिए साधारण स्लीपर क्लास में चढ़ गया, वरना मैं ए.सी. वातानुकूलित श्रेणी से कम में यात्रा नहीं करता।”

वो मुस्कुराये और बोले– “वाह ! तो मेरे साथ एक वैज्ञानिक यात्रा कर रहे हैं। मेरा नाम जगमोहन राव है। मैं वारंगल जा रहा हूँ। उसी के पास एक गाँव में मेरा घर है। मैं अक्सर शनिवार को घर जाता हूँ।”

इतना कह उन्होंने अपना बैग खोला और उसमें से एक डिब्बा निकाला। वो बोले– “ये मेरे घर का खाना है,आप लेना पसंद करेंगे ?”

मैंने संकोचवश मना कर दिया और अपने बैग से सैंडविच निकाल कर खाने लगा। जगमोहन राव ! ये नाम कुछ सुना-सुना और जाना-पहचाना सा लग रहा था, परन्तु इस समय याद नहीं आ रहा था।

कुछ देर बाद सभी लोगों ने खाना खा लिया और जैसे तैसे सोने की कोशिश करने लगे। हमारी बर्थ के सामने एक परिवार बैठा था। जिसमें एक पिता, माता और दो बड़े बच्चे थे । उन लोगों ने भी खाना खा कर बिस्तर लगा लिए और सोने लगे। मैं बर्थ के पैताने में उकडू बैठ कर अपने मोबाइल में गेम खेलने लगा।

रेलगाड़ी तेज़ रफ़्तार से चल रही थी। अचानक मैंने देखा कि सामने वाली बर्थ पर 55-57 साल के जो सज्जन लेटे थे, वो अपनी बर्थ पर तड़पने लगे और उनके मुंह से झाग निकलने लगा। उनका परिवार भी घबरा कर उठ गया और उन्हें पानी पिलाने लगा, परन्तु वो कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थे। मैंने चिल्ला कर पूछा- अरे ! कोई डॉक्टर को बुलाओ, इमरजेंसी है।”

रात में स्लीपर क्लास के डिब्बे में डॉक्टर कहाँ से मिलता? उनके परिवार के लोग उन्हें असहाय अवस्था में देख रोने लगे। तभी मेरे साथ वाले जगमोहन राव नींद से जाग गए। उन्होंने मुझसे पूछा — “क्या हुआ ?”

मैंने उन्हें सब बताया। मेरी बात सुनते ही वो लपक के अपने बर्थ के नीचे से अपना सूटकेस को निकाले और खोलने लगे। सूटकेस खुलते ही मैंने देखा उन्होंने स्टेथेस्कोप निकाला और सामने वाले सज्जन के सीने पर रख कर धड़कने सुनने लगे। एक मिनट बाद उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें दिखने लगीं। उन्होंने कुछ नहीं कहा और सूटकेस में से एक इंजेक्शन निकाला और सज्जन के सीने में लगा दिया और उनका सीना दबा-दबा कर, मुंह पर अपना रूमाल लगा कर अपने मुंह से सांस देने लगे। कुछ मिनट तक सी.पी.आर. तकनीक से कृत्रिम रूप से स्वांस देने के बाद मैंने देखा कि रोगी सहयात्री का तड़फना कम हो गया।

जगमोहन राव जी ने अपने सूटकेस में से कुछ और गोलियां निकाली और परिवार के बेटे से बोले– “बेटा !, ये बात सुनकर घबराना नहीं। आपके पापा को गंभीर हृदयाघात आया था, पहले उनकी जान को ख़तरा था परन्तु मैंने इंजेक्शन दे दिया है और ये दवाइयां उन्हें दे देना।”

उनका बेटा आश्चर्य से बोला– “पर आप कौन हो ?”

वो बोले– “मैं एक डॉक्टर हूँ। मैं इनकी तबीयत के बारे में पूरा विवरण और दवाइयां पर्ची पर लिख देता हूँ,अगले स्टेशन पर उतर कर आप लोग इन्हें अच्छे अस्पताल ले जाइएगा।”

उन्होंने अपने बैग से एक लेटरपेड से एक पर्ची निकाली और जैसे ही मैंने उस लेटरपेड पर उनका व्यक्तिगत विवरण पढ़ा, मेरी याददाश्त वापस आ गयी।

उस पर छपा था – डॉक्टर जगमोहन राव हृदय रोग विशेषज्ञ, अपोलो अस्पताल चेन्नई।

अब तक मुझे भी याद आ गया कि कुछ दिन पूर्व मैं जब अपने पिता को इलाज के लिए अपोलो हस्पताल ले गया था, वहाँ मैंने डॉक्टर जगमोहन राव के बारे में सुना था। वो अस्पताल के सबसे वरिष्ठ, विशेष प्रतिभाशाली हृदय रोग विशेषज्ञ थे। उनसे मिलने का समय लेने के लिए महीनों लगते थे। मैं आश्चर्य से उन्हें देख रहा था। एक इतना बड़ा डॉक्टर रेल की साधारण श्रेणी में यात्रा कर रहा था और मैं एक छोटा सा तृतीय श्रेणी वैज्ञानिक घमंड से वातानुकूलित श्रेणी में यात्रा की बात कर रहा था और ये इतने बड़े आदमी इतने सामान्य ढंग से पेश आ रहे थे। इतने में अगला स्टेशन आ गया और वो हृदयाघात से पीड़ित बुजुर्ग एवं उनका परिवार, टी.टी. एवं स्टेशन पर बुलवाई गई चिकित्सा मदद से उतर गया।

रेल वापस चलने लगी। मैंने उत्सुकतावश उनसे पूछा– “डॉक्टर साहब !आप तो आराम से, वातानुकूलित श्रेणी, में यात्रा कर सकते थे फिर सामान्य श्रेणी में यात्रा क्यूँ ?”

वो मुस्कुराये और बोले– “मैं जब छोटा था और गाँव में रहता था, तब मैंने देखा था कि रेल में कोई डॉक्टर उपलब्ध नहीं होता, खासकर दूसरे दर्जे में। इसलिए मैं जब भी घर या कहीं जाता हूँ तो साधारण क्लास में ही सफ़र करता हूँ। न जाने कब किसे मेरी जरुरत पड़ जाए! मैंने डॉक्टरी लोगों की सेवा के लिए ही की थी। हमारी पढ़ाई का क्या फ़ायदा यदि हम किसी के काम न आ पाए ?”

इसके बाद सफ़र उनसे यूं ही बात करते बीतने लगा। सुबह के चार बज गए थे। वारंगल आने वाला था। वो यूं ही मुस्कुरा कर लोगों का दर्द बाँट कर, गुमनाम तरीके से मानव सेवा कर,अपने गाँव की ओर निकल लिए और मैं उनके बैठे हुए स्थान से आती हुई खुशबू का आनंद लेते हुए अपनी बाकी यात्रा पूरी करने लगा।

अब मेरी समझ में आया था कि इतनी भीड़ के बावजूद डिब्बे में खुशबू कैसे फैली? ये खुशबू उन महान व्यक्तित्व और पुण्य आत्मा की खुशबू थी जिसने मेरा जीवन और मेरी सोच दोनों को महका दिया।

हम बदलेंगे,युग बदलेगा। _____♥️_____

Heartfulness Meditation 💌

HFN Story Team Jodhpur

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पाँच सौ साल पुरानी बात है, भारत के दक्षिणी तट पर एक राजा के दरबार में एक यूरोपियन आया था। मई का महीना था, मौसम गर्म था पर उस व्यक्ति ने एक बड़ा सा कोर्ट-पतलून और सिर पर बड़ी सी टोपी डाल रखी थी।

उस व्यक्ति को देखकर जहाँ राजा और दरबारी हँस रहे थे, वहीं वह आगन्तुक व्यक्ति भी दरबारियों की वेशभूषा को देखकर हैरान हो रहा था।

स्वर्ण सिंहासन पर बैठे जमोरिन राजा के समक्ष हाथ जोड़े खड़ा वह व्यक्ति वास्कोडिगामा था जिसे हम भारत के खोजकर्ता के नाम से जानते हैं।

यह बात उस समय की है जब यूरोप वालों ने भारत का सिर्फ नाम भर सुन रखा था, पर हाँ…इतना जरूर जानते थे कि पूर्व दिशा में भारत एक ऐसा उन्नत देश है जहाँ से अरबी व्यापारी सामान खरीदते हैं और यूरोपियन्स को महँगे दामों पर बेचकर बड़ा मुनाफा कमाते हैं।

भारत के बारे में यूरोप के लोगों को बहुत कम जानकारी थी लेकिन यह “बहुत कम” जानकारी उन्हें चैन से सोने नहीं देती थी…और उसकी वजह ये थी कि वास्कोडिगामा के आने के दो सौ वर्ष पहले (तेरहवीं सदी) पहला यूरोपियन यहाँ आया था जिसका नाम मार्कोपोलो (इटली) था। यह व्यापारी शेष विश्व को जानने के लिए निकलने वाला पहला यूरोपियन था जो कुस्तुनतुनिया के जमीनी रास्ते से चलकर पहले मंगोलिया फिर चीन तक गया था।

ऐसा नहीं था कि मार्कोपोलो ने कोई नया रास्ता ढूँढा था बल्कि वह प्राचीन शिल्क रूट होकर ही चीन गया था जिस रूट से चीनी लोगों का व्यापार भारत सहित अरब एवं यूरोप तक फैला हुआ था। जैसा कि नाम से ज्ञात हो रहा है चीन के व्यापारी जिस मार्ग से होकर अपना अनोखा उत्पाद ” रेशम ” तमाम देशों तक पहुँचाया था उन मार्गों को ” रेशम मार्ग ” या शिल्क रूट कहते हैं।

(आज की तारीख में यह मार्ग विश्व की अमूल्य धरोहरों में शामिल है)।

तो मार्कोपोलो भारत भी आया था, कई राज्यों का भ्रमण करते हुए केरल भी गया था। यहाँ के राजाओं की शानो शौकत, सोना-चाँदी जड़ित सिंहासन, हीरों के आभूषण सहित खुशहाल प्रजा, उन्नत व्यापार आदि देखकर वापस अपने देश लौटा था। भारत के बारे में यूरोप को यह पहली पुख्ता जानकारी मिली थी।

इस बीच एक गड़बड़ हो गई, अरब देशों में पैदा हुआ इस्लाम तब तक इतना ताकतवर हो चुका था कि वह आसपास के देशों में अपना प्रभुत्व जमाता हुआ पूर्व में भारत तक पहुँच रहा था तो वहीं पश्चिम में यूरोप तक।
कुस्तुनतुनीया (वर्तमान टर्की )जो कभी ईसाई रोमन साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी, उसके पतन के बाद वहाँ मुस्लिमों का शासन हो गया….और इसी के साथ यूरोप के लोगों के लिए एशिया का प्रवेश का मार्ग बंद हो गया क्योंकि मुस्लिमों ने इसाईयों को एशिया में प्रवेश की इजाजत नहीं दी।

अब यूरोप के व्यापारियों में बेचैनी शुरू हुई, उनका लक्ष्य बन गया कि किसी तरह भारत तक पहुँचने का मार्ग ढूँढा जाए।

तो सबसे पहले क्रिस्टोफर कोलंबस निकले भारत को खोजने (1492 में) पर वे बेचारे रास्ता भटक कर अमेरिका पहुँच गए। परंतु उन्हें यकीन था कि यही इंडिया है और वहाँ के लोगों का रंग गेहुँआ – लाल देखकर उन्हें “रेड इंडियन” भी कह डाला। वे खुशी खुशी अपने देश लौटे, लोगों ने जब पूछा कि इंडिया के बारे में मार्कोपोलो बाबा की बातें सच है ना? तब उन्होंने कहा कि – अरे नहीं, कुछ नहीं है वहाँ ..सब जंगली हैं वहाँ।

अब लोगों को शक हुआ।

बात पुर्तगाल पहुँची, एक नौजवान और हिम्मती नाविक वास्कोडिगामा ने अब भारत को खोजने का बीड़ा उठाया। अपने बेड़े और कुछ साथियों को लेकर निकल पड़ा समुद्र में और आखिरकार कुछ महीनों बाद भारत के दक्षिणी तट कालीकट पर उसने कदम रखा।

इस बीच इटली के एक दूसरे नाविक के माइंड में एक बात कचोट रही थी कि आखिर कोलंबस पहुँचा कहाँ था , जिसने आकर ये कहा था कि इंडिया के लोग लाल और जंगली हैं ? उसकी बेचैनी जब बढ़ने लगी तो वह निकल पड़ा कोलंबस के बताये रास्ते पर! उसका नाम था अमेरिगो वेस्पुसी। जब वो वहाँ पहुँचा (1501ई.में) तो देखा कि ये तो वाकई एक नई दुनिया है, कोलंबस तो ठीक ही कह रहा था। पर इसने उसे इंडिया कहने की गलती नहीं की। वापस लौटकर जब इसने बताया कि वो इंडिया नहीं बल्कि एक “नई दुनिया” है तो यूरोपियन्स को दोहरी खुशी मिली। इंडिया के अलावे भी एक नई दुनिया मिल चुकी थी। लोग अमेरिगो वेस्पुसी की सराहना करने लगे, सम्मानित करने लगे, लगे हाथों उस ऩई दुनिया का नामकरण भी इन्हीं महाशय के नाम पर “अमेरिका” कर दिया गया।

यह बात कोलंबस तक पहुँची तो वह हैरान हुआ कि ढूँढा उसने और नाम हुआ दूसरे का, इंडिया कहने की गलती जो की थी उसने।

खैर, अब यूरोप के व्यापारियों के लिए भारत का दरवाजा खुल चुका था, नये समुद्री मार्ग की खोज हो चुकी थी जो यूरोप और भारत को जोड़ सकता था।

सिंहासन पर बैठे जमोरिन राजा से वास्कोडिगामा ने हाथ जोड़कर व्यापार की अनुमति माँगी, अनुमति मिली भी पर कुछ सालों बाद हालात बदल गए।

बहुत सारे पुर्तगाली व्यापारी आने लगे, इन्होंने अपनी ताकत बढ़ाई, साम दाम दंड की नीति अपनाते हुए राजा को कमजोर कर दिया गया और अन्ततः राजा का कत्ल भी इन्हीं पुर्तगालियों के द्वारा करवा दिया गया।

70 – 80 वर्षों तक पुर्तगालियों द्वारा लूटे जाने के बाद फ्रांसीसी आए। इन्होंने भी लगभग 80 वर्षों तक भारत को लूटा। इसके बाद डच (हालैंड वाले) आए श, उन्होंने भी खूब लूटा और सबसे अंत में अँगरेज आए पर ये लूट कर भागने के लिए नहीं बल्कि इन्होंने तो लूट का तरीका ही बदल डाला।

इन्होंने पहले तो भारत को गुलाम बनाया फिर तसल्ली से लूटते रहे। 20 मई 1498 को वास्कोडिगामा भारत की धरती पर पहला कदम रखा था और राजा के समक्ष अनुमति लेने के लिए हाथ जोड़े खड़ा था। उसके बाद उस लूटेरे और उनके साथियों ने भारत को जितना बर्बाद किया वो इतिहास बन गया।

आज जिसे हम भारत का खोजकर्ता कहते नहीं अघाते हैं, दरअसल वह एक लूटेरा था जिसने सिर्फ भारत को लूटा ही नहीं था बल्कि यहाँ रक्तपात भी बहुत किया था।

भारतीय इतिहास में वास्कोडिगामा के चरित्र के बारे में ये बातें हमें नहीं बताई गई है।

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“દૂધ કરતા કૂળમાં તાકાત છુપાયેલી છે.”

એકવાર સિંહણ અને સિંહ ને વાદ થયો. સિંહણ કહે કે: ‘આપણા બાળ હાથીના કુંભસ્થળ તોડી નાખે તે મારા દુધનો પ્રતાપ છે. ‘
સિંહ કહે : ગાંડી થામાં એ તો ખાનદાની ને જાતિનો પ્રતાપ છે.
એમાં એક વખત એક શિયાળનું બચ્ચુ હાથ આવ્યું. સિંહ કહે : જો તારા દૂધનો પ્રતાપ હોય તો આ બચ્ચાને ધવરાવીને મોટું કર.
સિંહણ તો દિવસરાત શિયાળના બચ્ચાને ધવરાવવા લાગી, પોતાનું બચ્ચુ ભૂખ્યું રહે પણ શિયાળના બચ્ચાને વધારે ધવડાવે.
એક વરસ થયું ત્યાં તો શિયાળિયો ફાટયો, આકાશ ખાઉં કે પાતાળ ખાઉં ! જેને જુએ તેની સામે વટ જ કરે, સિંહ તો બેઠો બેઠો બધું જોયા કરે અને સિંહણની છાતી ગજગજ ફુલે.
સિંહના બચ્ચાને દુધની તાણ પડી તે શરીર ઉપર પુરા રૂંવાડાયે નથી આવ્યા જાણે ખહુરિયા જેવું લાગે.
એક દિવસ મોકો જોઈને સિંહ કહે: “આજે આ હાથીના ટોળામાં છેલ્લે મોટો હાથી છે તેનો શિકાર કરવો છે, તો તારા શિયાળીયાને કહે કે હાથીને પાડે”
સિંહણે શિયાળીયાને બીરદાવ્યો: જો જે હો, મારુ દુધ ન લાજે, માર્ય પેલા હાથીડાને !
શિયાળીયો તો ભાથામાંથી તીર છૂટે એમ છૂટયો, હાથીને ફરતે સાત આંટા માર્યા વિચાર કર્યો કે બટકું કયાં ભરવું ? છેવટે હાથીની પૂંછડીએ ચોંટયો, હાથીએ સૂંઢ ફેરવીને શિયાળીયાને કેડમાંથી પકડયોને આકાશમાં ફગાવ્યો કે આવ્યો ઘરરરર કરતો હેઠો, નીચે પડયો ત્યારે જમીન હારે એવો ચોંટી ગયો કે તાવીથેથી ઉખેડવો પડયો.
સિંહે પોતાના બચ્ચાને હાકલ કરી, લથડીયા લેતો સિંહબાળ ઉઠયો, પૂંછડી ઝટકી જયાં ડણક દીધી ત્યાં તો હાથીના ઢોલ જેવડા પોદળા પડવા માંડયા, એ તો કુદયો પીઠ માથે પાછલા પગની ભીંસ દીધી જોતજોતામાં ડોકે બાઝી ગયો. પાંચ મીનિટમાં ખેલ ખલાસ. મોટો ડુંગરો પડે તેમ હાથી ફસડાઈ પડયો. સિંહણ ઝંખવાઈ ગઈને સિંહ પોરહાણો અને સિંહણને કીધું કે: “દૂધ કરતા કૂળમાં તાકાત છુપાયેલી છે.”
એક પૌરાણીક દંતકથા
“વંદે વસુંધરા”

“હરિયલ ઘેર ના હોય ને જેના ફળિયા માં કુંજર ફરે;
પછી વય ની વાત્તું ના હોય કેસર બચા ને કાગડા ..”

અર્થાત..

મોટો સિંહ ઘરે ના હોય ને ફળિયા માં હાથી આવે પછી ઉમર ની વાત કર્યાં વિના બચું સીધું કુભાસ્થાલ પર તરાપ મારે…

સંજય મોરવાડિયા

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🏳️ध्यान से पढ़ियेगा👇
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एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई कि
ये फिल्म अभिनेता (या अभिनेत्री) ऐसा क्या करते हैं कि इनको एक फिल्म के लिए 50 करोड़ ‘–
या 100 करोड़ रुपये मिलते हैं?

सुशांत सिंह की मृत्यु के बाद यह चर्चा चली थी कि
जब वह इंजीनियरिंग का टॉपर था तो फिर उसने फिल्म का क्षेत्र क्यों चुना?

जिस देश में शीर्षस्थ वैज्ञानिकों , डाक्टरों , इंजीनियरों , प्राध्यापकों , अधिकारियों इत्यादि को प्रतिवर्ष 10 लाख से 20 लाख रुपये मिलता हो,
जिस देश के राष्ट्रपति की कमाई प्रतिवर्ष
1 करोड़ से कम ही हो-
उस देश में एक फिल्म अभिनेता प्रतिवर्ष
10 करोड़ से 100 करोड़ रुपए तक कमा लेता है। आखिर ऐसा क्या करता है वह?
देश के विकास में क्या योगदान है इनका? आखिर वह ऐसा क्या करता है कि वह मात्र एक वर्ष में इतना कमा लेता है जितना देश के शीर्षस्थ वैज्ञानिक को शायद 100 वर्ष लग जाएं?

आज जिन तीन क्षेत्रों ने देश की नई पीढ़ी को मोह रखा है, वह है – सिनेमा , क्रिकेट और राजनीति।
इन तीनों क्षेत्रों से सम्बन्धित लोगों की कमाई और प्रतिष्ठा सभी सीमाओं के पार है।

यही तीनों क्षेत्र आधुनिक युवाओं के आदर्श हैं,
जबकि वर्तमान में इनकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगे हैं। स्मरणीय है कि विश्वसनीयता के अभाव में चीजें प्रासंगिक नहीं रहतीं और जब चीजें
महँगी हों, अविश्वसनीय हों, अप्रासंगिक हों –
तो वह देश और समाज के लिए व्यर्थ ही है,
कई बार तो आत्मघाती भी।

सोंचिए कि यदि सुशांत या ऐसे कोई अन्य
युवक या युवती आज इन क्षेत्रों की ओर आकर्षित होते हैं तो क्या यह बिल्कुल अस्वाभाविक है?
मेरे विचार से तो नहीं।
कोई भी सामान्य व्यक्ति धन , लोकप्रियता और चकाचौंध से प्रभावित हो ही जाता है ।

बॉलीवुड में ड्रग्स वा वेश्यावृत्ति,
क्रिकेट में मैच फिक्सिंग,
राजनीति में गुंडागर्दी – भ्रष्टाचार
इन सबके पीछे मुख्य कारक धन ही है
और यह धन उन तक हम ही पहुँचाते हैं।
हम ही अपना धन फूँककर अपनी हानि कर रहे हैं। मूर्खता की पराकाष्ठा है यह।

*70-80 वर्ष पहले तक प्रसिद्ध अभिनेताओं को
सामान्य वेतन मिला करता था।

*30-40 वर्ष पहले तक क्रिकेटरों की कमाई भी
कोई खास नहीं थी।

*30-40 वर्ष पहले तक राजनीति भी इतनी पंकिल नहीं थी। धीरे-धीरे ये हमें लूटने लगे
और हम शौक से खुशी-खुशी लुटते रहे।
हम इन माफियाओं के चंगुल में फँस कर हम
अपने बच्चों का, अपने देश का भविष्य को
बर्बाद करते रहे।

50 वर्ष पहले तक फिल्में इतनी अश्लील और फूहड़ नहीं बनती थीं। क्रिकेटर और नेता इतने अहंकारी नहीं थे – आज तो ये हमारे भगवान बने बैठे हैं।
अब आवश्यकता है इनको सिर पर से उठाकर पटक देने की – ताकि इन्हें अपनी हैसियत पता चल सके।

एक बार वियतनाम के राष्ट्रपति
हो-ची-मिन्ह भारत आए थे।
भारतीय मंत्रियों के साथ हुई मीटिंग में उन्होंने पूछा –
” आपलोग क्या करते हैं ?”

इनलोगों ने कहा – ” हमलोग राजनीति करते हैं ।”

वे समझ नहीं सके इस उत्तर को।
उन्होंने दुबारा पूछा-
“मेरा मतलब, आपका पेशा क्या है?”

इनलोगों ने कहा – “राजनीति ही हमारा पेशा है।”

हो-ची मिन्ह तनिक झुंझलाए, बोला –
“शायद आपलोग मेरा मतलब नहीं समझ रहे।
राजनीति तो मैं भी करता हूँ ;
लेकिन पेशे से मैं किसान हूँ ,
खेती करता हूँ।
खेती से मेरी आजीविका चलती है।
सुबह-शाम मैं अपने खेतों में काम करता हूँ।
दिन में राष्ट्रपति के रूप में देश के लिए
अपना दायित्व निभाता हूँ ।”

भारतीय प्रतिनिधिमंडल निरुत्तर हो गया
कोई जबाब नहीं था उनके पास।
जब हो-ची-मिन्ह ने दुबारा वही वही बातें पूछी तो प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य ने झेंपते हुए कहा – “राजनीति करना ही हम सबों का पेशा है।”

स्पष्ट है कि भारतीय नेताओं के पास इसका कोई उत्तर ही न था। बाद में एक सर्वेक्षण से पता चला कि भारत में 6 लाख से अधिक लोगों की आजीविका राजनीति से चलती थी। आज यह संख्या करोड़ों में पहुंच चुकी है।

कुछ महीनों पहले ही जब कोरोना से यूरोप तबाह हो रहा था , डाक्टरों को लगातार कई महीनों से थोड़ा भी अवकाश नहीं मिल रहा था ,
तब पुर्तगाल की एक डॉक्टरनी ने खीजकर कहा था –
“रोनाल्डो के पास जाओ न ,
जिसे तुम करोड़ों डॉलर देते हो।
मैं तो कुछ हजार डॉलर ही पाती हूँ।”

मेरा दृढ़ विचार है कि जिस देश में युवा छात्रों के आदर्श वैज्ञानिक , शोधार्थी , शिक्षाशास्त्री आदि न होकर अभिनेता, राजनेता और खिलाड़ी होंगे , उनकी स्वयं की आर्थिक उन्नति भले ही हो जाए ,
देश की उन्नत्ति कभी नहीं होगी। सामाजिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक, रणनीतिक रूप से देश पिछड़ा ही रहेगा हमेशा। ऐसे देश की एकता और अखंडता हमेशा खतरे में रहेगी।

जिस देश में अनावश्यक और अप्रासंगिक क्षेत्र का वर्चस्व बढ़ता रहेगा, वह देश दिन-प्रतिदिन कमजोर होता जाएगा।
देश में भ्रष्टाचारी व देशद्रोहियों की संख्या बढ़ती रहेगी, ईमानदार लोग हाशिये पर चले जाएँगे व राष्ट्रवादी लोग कठिन जीवन जीने को विवश होंगे।

सभी क्षेत्रों में कुछ अच्छे व्यक्ति भी होते हैं।
उनका व्यक्तित्व मेरे लिए हमेशा सम्माननीय रहेगा ।
आवश्यकता है हम प्रतिभाशाली,ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, समाजसेवी, जुझारू, देशभक्त, राष्ट्रवादी, वीर लोगों को अपना आदर्श बनाएं।

नाचने-गानेवाले, ड्रगिस्ट, लम्पट, गुंडे-मवाली, भाई-भतीजा-जातिवाद और दुष्ट देशद्रोहियों को जलील करने और सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से बॉयकॉट करने की प्रवृत्ति विकसित करनी होगी हमें।

यदि हम ऐसा कर सकें तो ठीक, अन्यथा देश की अधोगति भी तय है।🙏 आप स्वयं तय करो सलमान खान,आमिर खान,अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, जितेंद्र,हेमा,रेखा, जया देश के विकास में इनका योगदान क्या है हमारे बच्चे मूर्खों की तरह इनको आइडियल बनाए हुए है।

जिसने भी लिखा है शानदार लिखा है। सभी को पढ़ना चाहिए ।

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

बहुत समय तक साधना करने के बाद सौभरी ऋषि ने एक तालाब पर देखा कि एक मुखिया मगरमच्छ के ऊपर उसका पुरा परिवार बेटे पोते अटखैलिया कर रहा था तो उसके मन में भी परिवार की लालसा और मोह जागृत हुआ उस ने राज्य के राजा माधन्ता चक्रवति के पास जाकर कहा राजन मुझे विवाह करना है मैं आपकी राजकुमारी से विवाह करना चाहता हुं राजा ने सोचा किस बेटी को इस अधेड से विवाह के लिये कहुं मैं‌ मना कर दुंगा तो यह श्राप दे देगा और हंसता खेलता राज तबाह हो जायेगा ।
राजा ने कहा ऋषिवर आप जिस कन्या को पसंद आ जाओगे मैं उसी से विवाह करवा दूंगा । सौभरी ने अपनी सिद्धी से नवयुवक सी सुंदर काया बना कर उसकी 50 बेटियों के समक्ष विवाह प्रस्ताव रखा तो सारी बेटियों ने हां भर विवाह करा लिया । कुछ वर्ष बाद मान्धता राजन अपनी पुत्रियों की कुशलक्षेम जानने सौभरी के महल गया हर पुत्री सौभरी से खुश थी और सौभरी बडाई करती मिली । सौभरी बेटो पोतो के साथ आनन्द से जीवन काट रहा था राजा ने कहा ऋषि आप की लीला आप ही जानो
कुछ दिनो बाद सौभरी वृद्ध होने लगा और उसे फिर याद आया वौ मगरमच्छ जिसको देख सौभरी ने विवाह करा फिर उसने सोचा कि भक्ति जो कि वो खर्च कर दी और आगे अब बनी नही इसलिये मेरा तो जीवन बेकार हो गया इसलिये कहा जाता है भक्ति घर परिवार में रहते हुये करनी है । वो भी शास्त्रानुकुल वरना मृत्यु समय पर पछताने से कुछ नही होना ।

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🌹खुशबू :-
💳💳💳💳

गुरुदेव ने अपने शिष्य को 🌹गुलाब
दिखाते हुए पूछा…..
बेटा यह क्या है… ? उसने तुरंत जवाब दिया,🌹गुलाब

गुरुदेव ने कहा, “यह ले जा किसी दुकान में घी के डब्बे पर रख , गुड़ के थैले पर रख , शक्कर की बोरी पर रख , तिल के थैले पर रख , दुकान की सारी वस्तुओं पर रख तत्पश्चात सूंघेगा तो खुशबू किसकी आएगी.. ?”
शिष्य ने अविलंब उत्तर दिया…
खुशबू तो 🌹गुलाब की ही आयेगी

गुरुदेव ने एक बार पुनः पूछा
गंदी नाली के आगे रखने से खुशबू किसकी आयेगी ..?
जवाब वही रहा…🌹गुलाब” की ही

तब गुरुदेव बोले…बस, ऐसा ही तू बन जाना दूसरों की दुर्गंध अपने में मत आने देना…अपनी सुगंध फैलाते रहना….।।

🙏जय श्री राधे राधे जी 🙏

🙏 श्रीकृष्णः शरणंमम् 🙏
🌹श्रीकृष्णायसमर्पणमस्तु🙏
Զเधे Զเधे Զเधे Զเधे Զเधे Զเधे
आपका हर पल मंगलमय हो
🌹((((शुभ रात्रि))))🌹
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🌍”गौड़”…✒🌍
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अविनाश गौर

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

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||🌲कर्मों का हिसाब देना ही पड़ता है प्रकृति को 🌲||
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एक सेठ जी बहुत ही दयालु थे । धर्म-कर्म में यकीन करते थे। उनके पास जो भी व्यक्ति रुपये उधार मांगने आता, वे उसे मना नहीं करते थे।
सेठ जी मुनीम को बुलाते और जो उधार मांगने वाला व्यक्ति होता उससे पूछते कि ~ “भाई, तुम उधार कब लौटाओगे..??
इस जन्म में या फिर अगले जन्म में..??”
जो लोग ईमानदार होते वो कहते ~ “सेठ जी। हम तो इसी जन्म में आपका कर्ज़ चुकता कर देंगे।” और कुछ लोग जो ज्यादा चालक व बेईमान होते वे कहते ~ “सेठ जी। हम आपका कर्ज़ अगले जन्म में उतारेंगे और अपनी चालाकी पर वे मन ही मन खुश होते कि ~ “क्या मूर्ख सेठ है।”
अगले जन्म में उधार वापसी की उम्मीद लगाए बैठा है।”
ऐसे लोग मुनीम से पहले ही कह देते कि वो अपना कर्ज़ अगले जन्म में लौटाएंगे और मुनीम भी कभी किसी से कुछ पूछता नहीं था।
जो जैसा कह देता.. मुनीम वैसा ही बही में लिख लेता।
एक दिन एक चोर भी सेठ जी के पास उधार मांगने पहुँचा।
उसे भी मालूम था कि सेठ अगले जन्म तक के लिए रकम उधार दे देता है।
हालांकि उसका मकसद उधार लेने से अधिक सेठ की तिजोरी को देखना था।
चोर ने सेठ से कुछ रुपये उधार मांगे, सेठ ने मुनीम को बुलाकर उधार देने को कहा।
मुनीम ने चोर से पूछा – “भाई। इस जन्म में लौटाओगे या अगले जन्म में..??”
चोर ने कहा ~ “मुनीम जी ! मैं यह रकम अगले जन्म में लौटाऊँगा ।”
मुनीम ने तिजोरी खोलकर पैसे उसे दे दिए। चोर ने भी तिजोरी देख ली और तय कर लिया कि इस मूर्ख सेठ की तिजोरी आज रात में ही उड़ा दूँगा।
वो रात में ही सेठ के घर पहुँच गया और वहीं भैंसों के तबेले में छिपकर सेठ के सोने का इन्तजार करने लगा।
अचानक चोर ने सुना कि भैंसे आपस में बातें कर रही हैं और वह चोर भैंसों की भाषा ठीक से समझ पा रहा है।
एक भैंस ने दूसरी से पूछा ~ “तुम तो आज ही आई हो न, बहन।”
उस भैंस ने जवाब दिया ~ “हाँ, आज ही सेठ के तबेले में आई हूँ, सेठ जी का पिछले जन्म का कर्ज़ उतारना है और तुम कब से यहाँ हो..??”
उस भैंस ने पलटकर पूछा तो पहले वाली भैंस ने बताया – “मुझे तो तीन साल हो गए हैं.. बहन ! मैंने सेठ जी से कर्ज़ लिया था यह कहकर कि अगले जन्म में लौटाऊँगी।
सेठ से उधार लेने के बाद जब मेरी मृत्यु हो गई तो मैं भैंस बन गई और सेठ के तबेले में चली आयी और अब दूध देकर उसका कर्ज़ उतार रही हूँ।
जब तक कर्ज़ की रकम पूरी नहीं हो जाती, तब तक यहीं रहना होगा ।”
चोर ने जब उन भैंसों की बातें सुनी तो होश उड़ गए और वहाँ बंधी भैंसों की ओर देखने लगा।
वो समझ गया कि उधार चुकाना ही पड़ता है, चाहे इस जन्म में या फिर अगले जन्म में.. उसे चुकाना ही होगा ।
वह उल्टे पाँव सेठ के घर की ओर भागा और जो कर्ज़ उसने लिया था.. उसे फटाफट मुनीम को लौटाकर रजिस्टर से अपना नाम कटवा लिया।
हम सब इस दुनिया में इसलिए आते हैं।
क्योंकि, हमें किसी से लेना होता है तो किसी का देना होता है।
इस तरह से प्रत्येक को कुछ न कुछ लेने देने के हिसाब चुकाने होते हैं।
इस कर्ज़ का हिसाब चुकता करने के लिए इस दुनिया में कोई बेटा बनकर आता है ~ तो कोई बेटी बनकर आती है, कोई पिता बनकर आता है, तो कोई माँ बनकर आती है, कोई पति बनकर आता है, तो कोई पत्नी बनकर आती है, कोई प्रेमी बनकर आता है, तो कोई प्रेमिका बनकर आती है, कोई मित्र बनकर आता है, तो कोई शत्रु बनकर आता है, कोई पडौसी बनकर आता है.. तो कोई रिश्तेदार बनकर आता है।
चाहे दुःख हो या सुख हिसाब तो सबको देना ही पड़ता हैं और
ये ही प्रकृति का नियम है।
“जय श्री कृष्ण”
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Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक माँ अपने पूजा-पाठ से फुर्सत पाकर अपने विदेश में रहने वाले बेटे से विडियो चैट करते वक्त पूछ बैठी बेटा! कुछ पूजा-पाठ भी करते हो या नहीं?

बेटा बोला माँ मैं एक जीव वैज्ञानिक हूँ। मैं अमेरिका में मानव के विकास पर काम कर रहा हूँ। विकास का सिद्धांत चार्ल्स डार्विन क्या आपने उसके बारे में सुना भी है?

उसकी माँ मुस्कुरा कर बोली मैं डार्विन के बारे में जानती हूँ बेटा.. उसने जो भी खोज की वह वास्तव में सनातन-धर्म के लिए बहुत पुरानी खबर है।

हो सकता है माँ! बेटे ने भी व्यंग्यपूर्वक कहा।
यदि तुम कुछ होशियार हो, तो इसे सुनो..
उसकी माँ ने प्रतिकार किया। क्या तुमने दशावतार के बारे में सुना है?

विष्णु के दस अवतार? बेटे ने सहमति में कहा हाँ! पर दशावतार का मेरी रिसर्च से क्या लेना-देना? माँ फिर बोली लेना-देना है मैं तुम्हें बताती हूँ कि तुम और मि. डार्विन क्या नहीं जानते हैं?
पहला अवतार था मत्स्य, यानि मछली। ऐसा इसलिए कि जीवन पानी में आरम्भ हुआ। यह बात सही है या नहीं?

बेटा अब ध्यानपूर्वक सुनने लगा..उसके बाद आया दूसरा अवतार ‘कूर्म’, अर्थात् कछुआ। क्योंकि जीवन पानी से जमीन की ओर चला गया.. उभयचर (Amphibian)तो कछुए ने समुद्र से जमीन की ओर के विकास को दर्शाया।

तीसरा था ‘वराह’ अवतार, यानी सूअर। जिसका मतलब वे जंगली जानवर, जिनमें अधिक बुद्धि नहीं होती है। तुम उन्हें डायनासोर कहते हो।

बेटे ने आंखें फैलाते हुए सहमति जताई..
चौथा अवतार था नृसिंह’, आधा मानव, आधा पशु। जिसने दर्शाया जंगली जानवरों से बुद्धिमान जीवों का विकास।

पांचवें ‘वामन’ हुए, बौना जो वास्तव में लंबा बढ़ सकता था। क्या तुम जानते हो ऐसा क्यों है? क्योंकि मनुष्य दो प्रकार के होते थे होमो इरेक्टस(नरवानर) और होमो सेपिअंस (मानव), और होमो सेपिअंस ने विकास की लड़ाई जीत ली।

बेटा दशावतार की प्रासंगिकता सुन के स्तब्ध रह गया. माँ ने बोलना जारी रखा
छठा अवतार था परशुराम, जिनके पास शस्त्र (कुल्हाड़ी) की ताकत थी।

वे दर्शाते हैं उस मानव को, जो गुफा और वन में रहा.. गुस्सैल और असामाजिक। सातवां अवतार थे ‘मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम’, सोच युक्त प्रथम सामाजिक व्यक्ति।जिन्होंने समाज के नियम बनाए और समस्त रिश्तों का आधार।
आठवां अवतार थे ‘भगवान श्री कृष्ण’, राजनेता, राजनीतिज्ञ, प्रेमी। जिन्होंने समाज के नियमों का आनन्द लेते हुए यह सिखाया कि सामाजिक ढांचे में रहकर कैसे फला-फूला जा सकता है। बेटा सुनता रहा, चकित और विस्मित..

माँ ने ज्ञान की गंगा प्रवाहित रखी
नवां अवतार थे महात्मा बुद्ध’, वे व्यक्ति जिन्होंने नृसिंह से उठे मानव के सही स्वभाव को खोजा। उन्होंने मानव द्वारा ज्ञान की अंतिम खोज की पहचान की।

और अंत में दसवां अवतार ‘कल्कि’ आएगा। वह मानव जिस पर तुम काम कर रहे हो..वह मानव, जो आनुवंशिक रूप से श्रेष्ठतम होगा। बेटा अपनी माँ को अवाक् होकर देखता रह गया..

अंत में वह बोल पड़ा यह अद्भुत है माँ.. हिंदू दर्शन वास्तव में अर्थपूर्ण है!

मित्रों वेद पुराण ग्रंथ उपनिषद इत्यादि सब अर्थपूर्ण हैं।सिर्फ आपका देखने का नज़रिया होना चाहिए। फिर चाहे वह धार्मिक हो या वैज्ञानिक..

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ડોંગરેજી મહારાજના જીવનનો એક કિસ્સો જાણવા જેવો છે.. એક કેન્સર હૉસ્પિટલ માટે ફંડ ઊભું કરવા ડોંગરેજી મહારાજની કથા મુંબઈમાં યોજાઈ હતી. દાયકાઓ અગાઉ યોજાયેલી એ કથા થકી આશરે દોઢ કરોડ રૂપિયા જેટલી રકમ કૅન્સર હૉસ્પિટલ માટે એકઠી થઈ ગઈ હતી. એ કથાના છેલ્લા દિવસે ડોંગરેજી મહારાજ કથા સંભળાવી રહ્યા હતા ત્યારે તેમના કોઈ સ્નેહી ગંભીર ચહેરે તેમની પાસે ગયા. તેમણે ડોંગરેજી મહારાજને કાનમાં કહ્યું કે તમારા પત્ની મૃત્યુ પામ્યા છે. એ આઘાતજનક સમાચાર સાંભળ્યા પછી બીજી જ ક્ષણે ડોંગરેજીએ સ્વસ્થતા મેળવી લીધી અને દુ:ખદ સમાચાર લઈને આવેલા સ્નેહીને જવાબ આપીને ફરી કથા શરૂ કરી દીધી.. તેમણે એ દિવસે કથા પૂરી કરી. કથાના આયોજકોને ખબર પડી કે ડોંગરેજીના પત્ની મૃત્યુ પામ્યાં છે ત્યારે તેઓ ચિંતામાં મુકાઈ ગયા પણ ડોંગરેજીએ કથા યથાવત્ ચાલુ રાખી એને કારણે તેઓ ગદગદ થઈ ગયા.
એ પછી ડોંગરેજી મહારાજે પત્નીના દેહાંત પછીની વિધિઓ હાથ ધરી. તેઓ થોડા દિવસ પછી પત્નીના અસ્થિ લઈને ગોદાવરી નદીમાં અસ્થિ વિસર્જન માટે નાશિક ગયા. એ વખતે અસ્થિ વિસર્જનની વિધિ કરનારા બ્રાહ્મણોને દક્ષિણા આપવા માટે તેમની પાસે પૈસા નહોતા જે સ્નેહીએ તેમને તેમના પત્નીના મૃત્યુના સમાચાર આપ્યા હતા એ તેમની સાથે હતા. ડોંગરેજી મહારાજે તેમને પોતાના પત્નીનું મંગળસૂત્ર આપીને કહ્યું કે આ વેચીની પૈસા લઈ આવો. બ્રાહ્મણોને દક્ષિણા આપવા માટે મારી પાસે કંઈ નથી. પેલા સ્નેહી સ્તબ્ધ થઈ ગયા. તેમની આંખો છલકાઈ ગઈ. જે માણસે થોડા દિવસો અગાઉ કૅન્સર હૉસ્પિટલ માટે પોતાની કથા થકી દોઢ કરોડનું ફંડ એકઠું કરી આપ્યું હતું. તેની પાસે મામૂલી રકમ પણ નહોતી સાદગીના પર્યાય સમા ડોંગરેજી મહારાજના જીવનના આવા તો અનેક કિસ્સાઓ છે. એ વાતો ફરી ક્યારે કરીશું.. ઘણા ફાઈવસ્ટાર બાબાઓ, બાપુઓ, સ્વામીઓ અને મહારાજો કરોડો અબજો રૂપિયામાં આળોટતા હોય છે તેમની બોચી ઝાલીને નિત્ય પ્રાત:કાળે આવા કિસ્સાઓનું પઠન કરવાની તેમને ફરજ પાડવી જોઈએ..

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સમુદ્ર કિનારે એક બાળક રમતું હતું. એક મોજું આવ્યું ને એનું ચપ્પલ તણાઈ ગયું.
બાળકે સમુદ્રની રેતી પર લખ્યું સમુદ્ર ચોર છે.

થોડે દુર માછીમારો દરિયો ખેડીને માછલીઓ પકડી લાવ્યા હતા.
માછીમારોએ સમુદ્રની રેતી પર લખ્યું.
સમુદ્ર અમારો પાલનહાર છે.

એક મા નો દીકરો સમુદ્રમાં ડૂબીને મરી ગયો. એણે રેતી પર લખ્યું.
સમુદ્ર મારા પૂત્રનો હત્યારો છે.

એક ભાઈને સમુદ્ર કિનારેથી છીપમાં મોતી મળ્યું.
એણે રેતી પર લખ્યું.
સમુદ્ર દાનવીર છે.

અને એક મોટું મોજું આવ્યું, જે રેતી પરના આ ચારેય લખાણ ભૂંસીને ચાલ્યું ગયું.

આપણા માટે દરેક વ્યક્તિનો અભિપ્રાય અલગ-અલગ હોય છે. પણ આપણે સમુદ્રની જેમ કોઈના અભિપ્રાયની ચિંતા કર્યા વગર પોતાની મોજમાં રહેવું. ..
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