Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

वनवास के दौरान माता सीता जी को प्यास लगी, तभी श्रीरामजी ने चारों ओर देखा, तो उनको दूर-दूर तक जंगल ही जंगल दिख रहा था।

कुदरत से प्रार्थना की ~ हे वन देवता आसपास जहाँ कहीं पानी हो, वहाँ जाने का मार्ग कृपा कर सुझाईये।

तभी वहाँ एक मयूर ने आकर श्रीरामजी से कहा कि आगे थोड़ी दूर पर एक जलाशय है।चलिए मैं आपका मार्ग पथ प्रदर्शक बनता हूँ, किंतु मार्ग में हमारी भूल चूक होने की संभावना है.

श्रीरामजी ने पूछा ~ वह क्यों ?

तब मयूर ने उत्तर दिया कि मैं उड़ता हुआ जाऊंगा और आप चलते हुए आएंगे, इसलिए मार्ग में मैं अपना एक-एक पंख बिखेरता हुआ जाऊंगा।उस के सहारे आप‌ जलाशय तक पहुँच ही जाओगे.

यहां ये जानना जरूरी है कि मयूर के पंख एक विशेष समय एवं एक विशेष ऋतु में ही बिखरते हैं।अगर वह अपनी इच्छा विरुद्ध पंखों को बिखेरेगा, तो उसकी मृत्यु हो जाती है.और वही हुआ.

अंत में जब मयूर अपनी अंतिम सांस ले रहा होता है,तब उसने मन में ही कहा कि वह कितना भाग्यशाली है कि जो जगत की प्यास बुझाते हैं, ऐसे प्रभु की प्यास बुझाने का उसे सौभाग्य प्राप्त हुआ। मेरा जीवन धन्य हो गया.अब मेरी कोई भी इच्छा शेष नहीं रही।

तभी भगवान श्रीराम ने मयूर से कहा कि मेरे लिए तुमने जो मयूर पंख बिखेरकर, अपने जीवन का त्यागकर मुझ पर जो ऋणानुबंध चढ़ाया है,मैं उस ऋण को अगले जन्म में जरूर चुकाऊंगा ….”तुम्हारे पंख अपने सिर पर धारण करके”तत्पश्चात अगले जन्म में “श्री कृष्ण अवतार”– में उन्होंने अपने माथे(मुकुट)पर मयूर पंख को धारण कर वचन अनुसार उस मयूर का ऋण उतारा था। *"तात्पर्य यही है कि"*

कदाचित भगवान को ऋण उतारने के लिए पुनः जन्म लेना पड़ता है, तो हम तो मानव हैं। न जाने हम कितने ही “ऋणानुबंध”- से बंधे हैं.उसे उतारने के लिए हमें तो कई जन्म भी कम पड़ जाएंगे। *"अर्थात"*

जो भी भलाई का काम हम कर सकते हैं,इसी जन्म में हमें करना है……

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Courtesy………

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महाभारत में वर्णित ये पेंतीस नगर आज भी मौजूद हैं!!!!!


महाभारत में वर्णित ये पेंतीस नगर आज भी मौजूद हैं!!!!!
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भारत देश महाभारतकाल में कई बड़े जनपदों में बंटा हुआ था। हम महाभारत में वर्णित जिन 35 राज्यों और शहरों के बारे में जिक्र करने जा रहे हैं, वे आज भी मौजूद हैं। आप भी देखिए।

  1. गांधार👉 आज के कंधार को कभी गांधार के रूप में जाना जाता था। यह देश पाकिस्तान के रावलपिन्डी से लेकर सुदूर अफगानिस्तान तक फैला हुआ था। धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी वहां के राजा सुबल की पुत्री थीं। गांधारी के भाई शकुनी दुर्योधन के मामा थे।
  2. तक्षशिला👉 तक्षशिला गांधार देश की राजधानी थी। इसे वर्तमान में रावलपिन्डी कहा जाता है। तक्षशिला को ज्ञान और शिक्षा की नगरी भी कहा गया है।
  3. केकय प्रदेश👉 जम्मू-कश्मीर के उत्तरी इलाके का उल्लेख महाभारत में केकय प्रदेश के रूप में है। केकय प्रदेश के राजा जयसेन का विवाह वसुदेव की बहन राधादेवी के साथ हुआ था। उनका पुत्र विन्द जरासंध, दुर्योधन का मित्र था। महाभारत के युद्ध में विन्द ने कौरवों का साथ दिया था।
  4. मद्र देश👉 केकय प्रदेश से ही सटा हुआ मद्र देश का आशय जम्मू-कश्मीर से ही है। एतरेय ब्राह्मण के मुताबिक, हिमालय के नजदीक होने की वजह से मद्र देश को उत्तर कुरू भी कहा जाता था। महाभारत काल में मद्र देश के राजा शल्य थे, जिनकी बहन माद्री का विवाह राजा पाण्डु से हुआ था। नकुल और सहदेव माद्री के पुत्र थे।
  5. उज्जनक👉 आज के नैनीताल का जिक्र महाभारत में उज्जनक के रूप में किया गया है। गुरु द्रोणचार्य यहां पांडवों और कौरवों की अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देते थे। कुन्ती पुत्र भीम ने गुरु द्रोण के आदेश पर यहां एक शिवलिंग की स्थापना की थी। यही वजह है कि इस क्षेत्र को भीमशंकर के नाम से भी जाना जाता है। यहां भगवान शिव का एक विशाल मंदिर है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह शिवलिंग 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है।
  6. शिवि देश👉 महाभारत काल में दक्षिण पंजाब को शिवि देश कहा जाता था। महाभारत में महाराज उशीनर का जिक्र है, जिनके पौत्र शैव्य थे। शैव्य की पुत्री देविका का विवाह युधिष्ठिर से हुआ था। शैव्य एक महान धनुर्धारी थे और उन्होंने कुरुक्षेत्र के युद्ध में पांडवों का साथ दिया था।
  7. वाणगंगा👉 कुरुक्षेत्र से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है वाणगंगा। कहा जाता है कि महाभारत की भीषण लड़ाई में घायल पितामह भीष्म को यहां सर-सैय्या पर लिटाया गया था। कथा के मुताबिक, भीष्ण ने प्यास लगने पर जब पानी की मांग की तो अर्जुन ने अपने वाणों से धरती पर प्रहार किया और गंगा की धारा फूट पड़ी। यही वजह है कि इस स्थान को वाणगंगा कहा जाता है।
  8. कुरुक्षेत्र👉 हरियाणा के अम्बाला इलाके को कुरुक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। यहां महाभारत की प्रसिद्ध लड़ाई हुई थी। यही नहीं, आदिकाल में ब्रह्माजी ने यहां यज्ञ का आयोजन किया था। इस स्थान पर एक ब्रह्म सरोवर या ब्रह्मकुंड भी है। श्रीमद् भागवत में लिखा हुआ है कि महाभारत के युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने यदुवंश के अन्य सदस्यों के साथ इस सरोवर में स्नान किया था।
  9. हस्तिनापुर👉 महाभारत में उल्लिखित हस्तिनापुर का इलाका मेरठ के आसपास है। यह स्थान चन्द्रवंशी राजाओं की राजधानी थी। सही मायने में महाभारत युद्ध की पटकथा यहीं लिखी गई थी। महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने हस्तिनापुर को अपने राज्य की राजधानी बनाया।
  10. वर्नावत👉 यह स्थान भी उत्तर प्रदेश के मेरठ के नजदीक ही माना जाता है। वर्णावत में पांडवों को छल से मारने के लिए दुर्योधन ने लाक्षागृह का निर्माण करवाया था। यह स्थान गंगा नदी के किनारे है। महाभारत की कथा के मुताबिक, इस ऐतिहासिक युद्ध को टालने के लिए पांडवों ने जिन पांच गांवों की मांग रखी थी, उनमें एक वर्णावत भी था। आज भी यहां एक छोटा सा गांव है, जिसका नाम वर्णावा है।
  11. पांचाल प्रदेश👉 हिमालय की तराई का इलाका पांचाल प्रदेश के रूप में उल्लिखित है। पांचाल के राजा द्रुपद थे, जिनकी पुत्री द्रौपदी का विवाह अर्जुन के साथ हुआ था। द्रौपदी को पांचाली के नाम से भी जाना जाता है।
  12. इन्द्रप्रस्थ👉 मौजूदा समय में दक्षिण दिल्ली के इस इलाके का वर्णन महाभारत में इन्द्रप्रस्थ के रूप में है। कथा के मुताबिक, इस स्थान पर एक वियावान जंगल था, जिसका नाम खांडव-वन था। पांडवों ने विश्वकर्मा की मदद से यहां अपनी राजधानी बनाई थी। इन्द्रप्रस्थ नामक छोटा सा कस्बा आज भी मौजूद है।
  13. वृन्दावन👉 यह स्थान मथुरा से करीब 10 किलोमीटर दूर है। वृन्दावन को भगवान कृष्ण की बाल-लीलाओं के लिए जाना जाता है। यहां का बांके-बिहारी मंदिर प्रसिद्ध है।
  14. गोकुल👉 यमुना नदी के किनारे बसा हुआ यह स्थान भी मथुरा से करीब 8 किलोमीटर दूर है। कंस से रक्षा के लिए कृष्ण के पिता वसुदेव ने उन्हें अपने मित्र नंदराय के घर गोकुल में छोड़ दिया था। कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम गोकुल में साथ-साथ पले-बढ़े थे।
  15. बरसाना👉 यह स्थान भी उत्तर प्रदेश में है। यहां की चार पहाड़ियां के बारे में कहा जाता है कि ये ब्रह्मा के चार मुख हैं।
  16. मथुरा👉 यमुना नदी के किनारे बसा हुआ यह प्रसिद्ध शहर हिन्दू धर्म के लिए अनुयायियों के लिए बेहद प्रसिद्ध है। यहां राजा कंस के कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। यहीं पर श्रीकृष्ण ने बाद में कंस की हत्या की थी। बाद में कृष्ण के पौत्र वृजनाथ को मथुरा की राजगद्दी दी गई।
  17. अंग देश👉 वर्तमान में उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के इलाके का उल्लेख महाभारत में अंगदेश के रूप में है। दुर्योधन ने कर्ण को इस देश का राजा घोषित किया था। मान्यताओं के मुताबिक, जरासंध ने अंग देश दुर्योधन को उपहारस्वरूप भेंट किया था। इस स्थान को शक्तिपीठ के रूप में भी जाना जाता है।
  18. कौशाम्बी👉 कौशाम्बी वत्स देश की राजधानी थी। वर्तमान में इलाहाबाद के नजदीक इस नगर के लोगों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों का साथ दिया था। बाद में कुरुवंशियों ने कौशाम्बी पर अपना अधिकार कर लिया। परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने कौशाम्बी को अपनी राजधानी बनाया।
  19. काशी👉 महाभारत काल में काशी को शिक्षा का गढ़ माना जाता था। महाभारत की कथा के मुताबिक, पितामह भीष्म काशी नरेश की पुत्रियों अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका को जीत कर ले गए थे ताकि उनका विवाह विचित्रवीर्य से कर सकें। अम्बा के प्रेम संबंध राजा शल्य के साथ थे, इसलिए उसने विचित्रवीर्य से विवाह से इन्कार कर दिया। अम्बिका और अम्बालिका का विवाह विचित्रवीर्य के साथ कर दिया गया। विचित्रवीर्य के अम्बा और अम्बालिका से दो पुत्र धृतराष्ट्र और पान्डु हुए। बाद में धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव कहलाए और पान्डु के पांडव।
  20. एकचक्रनगरी👉 वर्तमान कालखंड में बिहार का आरा जिला महाभारत काल में एकचक्रनगरी के रूप में जाना जाता था। लाक्षागृह की साजिश से बचने के बाद पांडव काफी समय तक एकचक्रनगरी में रहे थे। इस स्थान पर भीम ने बकासुर नामक एक राक्षक का अन्त किया था। महाभारत युद्ध के बाद जब युधिष्ठिर ने अश्वमेध यज्ञ किया था, उस समय बकासुर के पुत्र भीषक ने उनका घोड़ा पकड कर रख लिया था। बाद में वह अर्जुन के हाथों मारा गया।
  21. मगध👉 दक्षिण बिहार में मौजूद मगध जरासंध की राजधानी थी। जरासंध की दो पुत्रियां अस्ती और प्राप्ति का विवाह कंस से हुआ था। जब भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया, तब वह अनायास ही जरासंध के दुश्मन बन बैठे। जरासंध ने मथुरा पर कई बार हमला किया। बाद में एक मल्लयुद्ध के दौरान भीम ने जरासंध का अंत किया। महाभारत के युद्ध में मगध की जनता ने पांडवों का समर्थन किया था।
  22. पुन्डरू देश👉 मौजूदा समय में बिहार के इस स्थान पर राजा पोन्ड्रक का राज था। पोन्ड्रक जरासंध का मित्र था और उसे लगता था कि वह कृष्ण है। उसने न केवल कृष्ण का वेश धारण किया था, बल्कि उसे वासुदेव और पुरुषोत्तम कहलवाना पसन्द था। द्रौपदी के स्वयंवर में वह भी मौजूद था। कृष्ण से उसकी दुश्मनी जगजाहिर थी। द्वारका पर एक हमले के दौरान वह भगवान श्रीकृष्ण के हाथों मारा गया।
  23. प्रागज्योतिषपुर👉 गुवाहाटी का उल्लेख महाभारत में प्रागज्योतिषपुर के रूप में किया गया है। महाभारत काल में यहां नरकासुर का राज था, जिसने 16 हजार लड़कियों को बन्दी बना रखा था। बाद में श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया और सभी 16 हजार लड़कियों को वहां से छुड़ाकर द्वारका लाए। उन्होंने सभी से विवाह किया। मान्यता है कि यहां के प्रसिद्ध कामख्या देवी मंदिर को नरकासुर ने बनवाया था।
  24. कामख्या👉 गुवाहाटी से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कामख्या एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। भागवत पुराण के मुताबिक, जब भगवान शिव सती के मृत शरीर को लेकर बदहवाश इधर-उधर भाग रहे थे, तभी भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर के कई टुकड़े कर दिए। इसका आशय यह था कि भगवान शिव को सती के मृत शरीर के भार से मुक्ति मिल जाए। सती के अंगों के 51 टुकड़े जगह-जगह गिरे और बाद में ये स्थान शक्तिपीठ बने। कामख्या भी उन्हीं शक्तिपीठों में से एक है।
  25. मणिपुर👉 नगालैन्ड, असम, मिजोरम और वर्मा से घिरा हुआ मणिपुर महाभारत काल से भी पुराना है। मणिपुर के राजा चित्रवाहन की पुत्री चित्रांगदा का विवाह अर्जुन के साथ हुआ था। इस विवाह से एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम था बभ्रुवाहन। राजा चित्रवाहन की मृत्यु के बाद बभ्रुवाहन को यहां का राजपाट दिया गया। बभ्रुवाहन ने युधिष्ठिर द्वारा आयोजित किए गए राजसूय यज्ञ में भाग लिया था।
  26. सिन्धु देश👉 सिन्धु देश का तात्पर्य प्राचीन सिन्धु सभ्यता से है। यह स्थान न केवल अपनी कला और साहित्य के लिए विख्यात था, बल्कि वाणिज्य और व्यापार में भी यह अग्रणी था। यहां के राजा जयद्रथ का विवाह धृतराष्ट्र की पुत्री दुःश्शाला के साथ हुआ था। महाभारत के युद्ध में जयद्रथ ने कौरवों का साथ दिया था और चक्रव्युह के दौरान अभिमन्यू की मौत में उसकी बड़ी भूमिका थी।
  27. मत्स्य देश👉 राजस्थान के उत्तरी इलाके का उल्लेख महाभारत में मत्स्य देश के रूप में है। इसकी राजधानी थी विराटनगरी। अज्ञातवास के दौरान पांडव वेश बदल कर राजा विराट के सेवक बन कर रहे थे। यहां राजा विराट के सेनापति और साले कीचक ने द्रौपदी पर बुरी नजर डाली थी। बाद में भीम ने उसकी हत्या कर दी। अर्जुन के पुत्र अभिमन्यू का विवाह राजा विराट की पुत्री उत्तरा के साथ हुआ था।
  28. मुचकुन्द तीर्थ👉 यह स्थान धौलपुर, राजस्थान में है। मथुरा पर जीत हासिल करने के बाद कालयावन ने भगवान श्रीकृष्ण का पीछा किया तो उन्होंने खुद को एक गुफा में छुपा लिया। उस गुफा में मुचकुन्द सो रहे थे, उन पर कृष्ण ने अपना पीताम्बर डाल दिया। कृष्ण का पीछा करते हुए कालयावन भी उसी गुफा में आ पहुंचा। मुचकुन्द को कृष्ण समझकर उसने उन्हें जगा दिया। जैसे ही मुचकुन्द ने आंख खोला तो कालयावन जलकर भस्म हो गया। मान्यताओं के मुताबिक, महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब पांडव हिमालय की तरफ चले गए और कृष्ण गोलोक निवासी हो गए, तब कलयुग ने पहली बार यहां अपने पग रखे थे।
  29. पाटन👉 महाभारत की कथा के मुताबिक, गुजरात का पाटन द्वापर युग में एक प्रमुख वाणिज्यिक केन्द्र था। पाटन के नजदीक ही भीम ने हिडिम्ब नामक राक्षस का संहार किया था और उसकी बहन हिडिम्बा से विवाह किया। हिडिम्बा ने बाद में एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम था घटोत्कच्छ। घटोत्कच्छ और उनके पुत्र बर्बरीक की कहानी महाभारत में विस्तार से दी गई है।
  30. द्वारका👉 माना जाता है कि गुजरात के पश्चिमी तट पर स्थित यह स्थान कालान्तर में समुन्दर में समा गया। कथाओं के मुताबिक, जरासंध के बार-बार के हमलों से यदुवंशियों को बचाने के लिए कृष्ण मथुरा से अपनी राजधानी स्थानांतरित कर द्वारका ले गए।
  31. प्रभाष👉 गुजरात के पश्चिमी तट पर स्थित इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि यह स्थान भगवान श्रीकृष्ण का निवास-स्थान रहा है। महाभारत कथा के मुताबिक, यहां भगवान श्रीकृष्ण पैर के अंगूठे में तीर लगने की वजह से घायल हो गए थे। उनके गोलोकवासी होने के बाद द्वारका नगरी समुन्दर में डूब गई। विशेषज्ञ मानते हैं कि समुन्दर के सतह पर द्वारका नगरी के अवेशष मिले हैं।
  32. अवन्तिका👉 मध्यप्रदेश के उज्जैन का उल्लेख महाभारत में अवन्तिका के रूप में मिलता है। यहां ऋषि सांदपनी का आश्रम था। अवन्तिका को देश के सात प्रमुख पवित्र नगरों में एक माना जाता है। यहां भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में एक महाकाल लिंग स्थापित है।
  33. चेदी👉 वर्तमान में ग्वालियर क्षेत्र को महाभारत काल में चेदी देश के रूप में जाना जाता था। गंगा व नर्मदा के मध्य स्थित चेदी महाभारत काल के संपन्न नगरों में एक था। इस राज्य पर श्रीकृष्ण के फुफेरे भाई शिशुपाल का राज था। शिशुपाल रुक्मिणी से विवाह करना चाहता था, लेकिन श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का अपहरण कर उनसे विवाह रचा लिया।

इस घटना की वजह से शिशुपाल और श्रीकृष्ण के बीच संबंध खराब हो गए। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय चेदी नरेश शिशुपाल को भी आमंत्रित किया गया था। शिशुपाल ने यहां कृष्ण को बुरा-भला कहा, तो कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसका गला काट दिया। महाभरत की कथा के मुताबिक, दुश्मनी की बात सामने आने पर श्रीकृष्ण की बुआ उनसे शिशुपाल को अभयदान देने की गुजारिश की थी। इस पर श्रीकृष्ण ने बुआ से कहा था कि वह शिशुपाल के 100 अपराधों को माफ कर दें, लेकिन 101वीं गलती पर माफ नहीं करेंगे।

  1. सोणितपुर👉 मध्यप्रदेश के इटारसी को महाभारत काल में सोणितपुर के नाम से जाना जाता था। सोणितपुर पर वाणासुर का राज था। वाणासुर की पुत्री उषा का विवाह भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के साथ सम्पन्न हुआ था। यह स्थान हिन्दुओं के लिए एक पवित्र तीर्थ है।
  2. विदर्भ👉 महाभारतकाल में विदर्भ क्षेत्र पर जरासंध के मित्र राजा भीष्मक का शासन था। रुक्मिणी भीष्मक की पुत्री थीं। भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का अपहरण कर उनसे विवाह रचाया था। यही वजह थी कि भीष्मक उन्हें अपना शत्रु मानने लगे। जब पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ किया था, तब भीष्मक ने उनका घोड़ा रोक लिया था। सहदेव ने भीष्मक को युद्ध में हरा दिया।
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दुद्धा, एक देशभक्त

एक बार महाराणा प्रताप पुंगाकी पहाडी बस्तीमें ठहरे हुए थे । बस्तीके भील बारी-बारीसे प्रतिदिन राणा प्रतापके लिए भोजन पहुंचाया करते थे ।

इसी कडीमें आज दुद्धाकी बारी थी; परन्तु उसके घरमें अन्नका एक दाना भी नहीं था ।

दुद्धाकी मां पडोससे आटा मांगकर ले आई और रोटियां बनाकर दुद्धाको देते हुए बोली, “ले ! यह पोटली महाराणाको दे आ ।”

दुद्धाने प्रसन्नतापूर्वक वह पोटली उठाई और पहाडीपर दौडते-भागते मार्ग नापने लगा ।

घेराबन्दी किए बैठे अकबरके सैनिकोंको दुद्धाको देखकर शंका हुई ।

एकने पूछा, “क्यों रे ! इतनी शीघ्रतासे कहां भागा जा रहा है ?”

दुद्धाने बिना कोई उत्तर दिए, अपनी चाल बढा दी । मुगल सैनिक उसे पकडनेके लिए उसके पीछे भागने लगा; परन्तु उस चपल-चंचल बालकका पीछा वह सैनिक नहीं कर पा रहा था ।

दौडते-दौडते वह एक चट्टानसे टकराया और गिर पडा, इस क्रोधमें उस सैनिकने अपनी ‘तलवार’ चला दी ।

‘तलवार’के वारसे बालककी नन्हीं कलाई कटकर गिर गई । रक्त फूटकर बह निकला; परन्तु उस बालकका साहस देखिए, नीचे गिर पडी रोटीकी पोटली उसने दूसरे हाथसे उठाई और पुनः सरपट दौडने लगा । बस, उसे तो एक ही धुन थी कि कैसे भी करके महाराणातक रोटियां पहुंचानी हैं ।

रक्त बहुत बह चुका था, अब दुद्धाकी आंखोंके समक्ष अन्धकार छाने लगा ।

उसने चाल और तीव्र कर दी, जंगलकी झाडियोंमें लुप्त हो गया । सैनिक अचम्भित रह गए कि कौन था यह बालक ?

जिस गुफामें राणा सपरिवार थे, वहां पहुंचकर दुद्धा चकराकर गिर पडा । उसने एक बार और शक्ति बटोरी और बोला, “राणाजी !”

स्वर सुनकर महाराणा बाहर आए, एक कटी कलाई और एक हाथमें रोटीकी पोटली लिए रक्तसे लथपथ १२ वर्षका बालक युद्धभूमिके किसी भैरवसे कम नहीं लग रहा था ।

राणाने उसका सिर गोदमें ले लिया और पानीके छींटे मारकर चेतनामें ले आए, टूटे शब्दोंमें दुद्धाने इतना ही कहा, “राणाजी ! …ये… रोटियां… मांने.. भेजी हैं ।”

लौह (फौलादी) प्रण और तनवाले राणाकी आंखोंसे शोकका झरना फूट पडा। वह बस इतना ही कह सके, “बेटा, तुम्हें इतने बडे संकटमें पडनेकी क्या आवश्यकता थी ?”

वीर दुद्धाने कहा, “अन्नदाता !…. आप तो पूरे परिवारके साथ… संकटमें हैं …. मां कहती है, आप चाहते तो अकबरसे ‘समझौता’कर सुखसे रह सकते थे; परन्तु आपने धर्म और संस्कृति रक्षाके लिए कितना बडा त्याग किया, उसके आगे मेरा त्याग तो कुछ नहीं है ।”

इतना कहकर वीरगतिको प्राप्त हो गया दुद्धा ।

राणाजीकी आंखोंमेंं अश्रु थे । मनमें कहने लगे, “धन्य है तेरी देशभक्ति, तू अमर रहेगा, मेरे बालक । तू अमर रहेगा ।”

अरावलीकी चट्टानोंपर वीरताकी यह कहानी आज भी देशभक्तिका उदाहरण बनकर बिखरी हुई है ।

रवि कांत

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वो फौजी बिना हेलमेट के बाइक चला रहा था। पुलिस वाले ने रोका, कहा “हेलमेट कहाँ है?” उसने बोला भूल गया।
पुलिस वाला: क्या नाम है? काम क्या करते हो?
बाइक सवार: केहर सिंह नाम है और मैं एक फौजी हूँ।
पुलिस वाला: अच्छा कोई बात नहीं जाओ, आगे से हेलमेट पहन कर बाइक चलाना।
फ़ौजी: नहीं भाई, आप अपना काम करो। मैंने गलती की है मेरा चालान काटो।
पुलिस वाला: ठीक है, अगर ऐसी ही बात है तो निकालो 100 रु और पर्ची लेकर जाओ।
फ़ौजी: नहीं, यहाँ नहीं भुगतना चालान। मैं अदालत में ही जाकर चालान भुगतुंगा।

अदालत

संतरी: केहर सिंह को बुलाओ।
जज: हांजी, मिस्टर केहर सिंह आप 100 रु का चालान भर दीजिये।
केहर: नहीं जनाब, यह कोई तरीका नहीं हुआ। आपने मेरी दलील तो सुनी ही नहीं।
जज: अच्छा बताओ क्यों तुम्हें 100 रु का फाइन न किया जाए?
केहर: जनाब, 100 रु का फाइन थोड़ा कम है इसे आप 335 रु का कर दीजिए।
जज: क्यों? और 335 का ही क्यों?
केहर: क्योंकि मुझे 100 रु कम लगता है और 336 रु ज्यादा ही नाइन्साफ़ी जो जाएगी।
(वहाँ खड़ी भीड़ हंसती है)
जज: (काठ का हथौड़ा मेज पर मारते हुए) शांति, शांति बनाए रखिये।
केहर: जनाब एक और सलाह है, ये हथौड़ा काठ की बजाए स्टील का होना चाहिए आवाज ज्यादा होगी। एक और बात, यहाँ इस कमरे में भीड़ बहुत ज्यादा है। आप एक आर्डर पास कर दीजिए की कल से यहाँ ज्यादा से ज्यादा बस 127 लोग ही आएं।
जज: are you lost your mind Mr. Kehar Singh? आप यहाँ अदालत में जोक्स मार रहे हैं। आप एक जज को सिखा रहे हैं कि अदालत कैसे चलानी है? कानून क्या होना चाहिए? फैसला क्या करना है? आपको पता भी है हम किस परिस्थिति में काम करते हैं? हमारे ऊपर कितना प्रेशर होता है? और….
केहर: जनाब! मैं एक फौजी हूँ। अभी कश्मीर में पोस्टेड हूँ। with all due respect sir आपको घण्टा नहीं पता कि प्रेशर क्या होता है। आपका प्रेशर ज्यादा से ज्यादा आपको एक दो घंटे ओवरटाइम करवा देगा। हमारा प्रेशर हमारी और सैंकड़ो और लोगों की जान ले सकता है।
जनाब, क्षमा कीजिये कि मैंने आपको सलाह दी। जिस काम के लिए आपको ट्रेनिंग दी जाती है, जिस काम में आप माहिर हैं उस काम में मैंने आपको सलाह दी। परन्तु आप भी तो यही करते हैं हमारे साथ…..मसलन…बन्दुक को 90 डिग्री से नीचे कर के चलाओ, असली गन मत चलाओ, पेलेट गन चलाओ, बस घुटनों के नीचे निशाना लगाओ, प्लास्टिक की गौलियाँ इस्तेमाल करो, प्लास्टिक की गोली भी खोखली होनी चाहिए, उसका वजन xyz ग्राम से ज्यादा नो हो। ये क्या बकवास है जज साब? क्या आप यहाँ ac रूम में बैठ कर हमें सिखाओगे कि हमें अपना काम कैसे करना है? जिस काम के लिए हम trained हैं, जिन situations का हमको firsthand experience है आप हमें बताओगे कि उस situation में हमें कैसे react करना चाहिए?
(सन्नाटा)……

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वसुधा /कहानी

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“कैसी हो वसु?”
शब्दों की आत्मीयता और यह जानी पहचानी आवाज सुनकर पिता की अंत्येष्टि में आई वसुधा कि जैसे सांस ही अटक गई।
उसने पीछे मुड़कर देखा तो मानो जीभ तालू से चिपक गई और आंखें जम सी गई।
“अभय!”..
वसुधा के मुंह से बस इतना ही निकल पाया।
“हम्म!” वसुधा के होठों से अपना नाम सुन होंठ मुस्कुरा उठे।
आंखें और गहरी हो गई थी, माथे पर लकीरें तनिक बढ़ गई थी।,.सिर के बालों के साथ-साथ दाढ़ी मूंछ के बाल भी सफेद हो चुके थे और स्मार्टनेस में इजाफा हो गया था।
“मोहतरमा हमने पूछा कैसी हो?”
“हां,..ठीक हूं।”
वसुधा ने आश्चर्य और संकोच दोनों को छुपाते हुए चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश की।
“तुम यहां..तुम तो यूके”..
“हां, कुछ जरूरी काम से आया था,लेकिन यह दुखद समाचार सुन खुद को रोक नहीं पाया।”
अभय का यह जवाब सुन वसुधा को 30-32 साल पहले वाला अभय याद हो आया। एक दूसरे के घर के बीच का फासला कई किलोमीटर होने के बावजूद भी अभय जब कभी वसुधा के घर के आस-पास दिख जाता, वसुधा उससे यही सवाल करती-“तुम यहां?”
और अभय इसी तरह जवाब देता
“कुछ जरूरी काम से आया था।”
लेकिन वसुधा ने ना कभी वह जरूरी काम पूछा और ना ही अभय ने कभी बताया।
“तुम खड़े क्यों हो?.बैठो ना!”
वसुधा ने शामियाने में एक और रखी कुर्सियों की ओर इशारा किया।
“अकेली आई हो?”
“हां!.बेटा यूएस मे है,.आ नहीं सका।”
“यह कब हुआ?” वसुधा की सूनी मांग और खाली कलाइयों को देख अभय ने इशारे से पूछा।
“लगभग 8 वर्ष हो गए।”
“कोई एक्सीडेंट?”
“हां,.. एक्सीडेंट ही तो था।”
“मतलब?”
“इतना ज्यादा नशा करने वाले इंसान के साथ विवाह होना एक्सीडेंट ही कहलाता है अभय!” आंखें छलक आई थी वसुधा कि।
“मेरी छोड़ो, तुम सुनाओ।”
“बताओ,..क्या सुनना चाहोगी?”
“इन 30 वर्षों में तुम्हारे जिंदगी में शामिल हुए खुशियाँ और क्या?”
“अरे भई,..हम तो किसी को पसंद ही नहीं आए।”
“मतलब? विवाह नहीं किया?”
“किया था,..पूरे 23 वर्ष हो गए पत्नी को हमसे रूठकर ईश्वर के पास शिकायत दर्ज करवाने गए हुए।”
“ओह! और बच्चे?”
“एक बेटी है कैलिफोर्निया में पढ़ाई कर रही है।”
शामियाना में आगंतुकों की संख्या बढ़ने लगी थी वसुधा भीतर जाने के लिए उठ खड़ी हुई।
“अगर कभी दिल कहे तो मुझे कॉल जरूर करना।” अभय ने जेब से अपना विजिटिंग कार्ड निकाल वसुधा की ओर बढ़ाया।
वसुधा ने संकोच के साथ विजिटिंग कार्ड अभय के हाथ से ले मुट्ठी में बांध लिया।
अभय जा चुका था और वसुधा अपने आप में खोई पिताजी के कमरे में पहुंच चुकी थी।
पिताजी की तस्वीर के सामने दीपक जल रहा था और वसुधा की मुट्ठी में कुछ पिघल रहा था उसके मानस पटल पर 30 वर्ष पहले खुद को कहीं से तोड़कर कहीं जोड़ने का चलचित्र जो चल रहा था।
कर्मकांड की सारी रस्में पूरी हो चुकी थी, कौओं को भोग लगाया जा चुका था और शायद पिताजी की आत्मा को शांति भी मिल चुकी थी। लेकिन वसुधा की अंतरात्मा अशांत थी।
वसुधा मां के कमरे में औंधे मुंह पड़ी थी यह कमरा 30 वर्ष पूर्व वसुधा का हुआ करता था और वसुधा अक्सर अपने कमरे में ऐसे ही लेटना पसंद करती थी।
आज वह बहुत अकेलापन महसूस कर रही थी,अकेलापन महसूस करने का कारण भी था। वसुधा बिस्तर से उठकर टेबल तक गई टेबल पर रखे फूलदान के भीतर से अभय का विजिटिंग कार्ड निकाला और कांपते हाथों से नंबर डायल किया। शायद रिंग नहीं हुआ था लेकिन कॉल पिक हो गया था।
“हेलो वसु।” वसुधा चुप थी मानो पकड़ी गई थी।
“मैं तुम्हें सुन पा रहा हूं, कुछ बोलो।”
“अभय”..
“हां,.. बोलो ना वसु!”
“आज मैं खुद को बहुत अकेला महसूस कर रही हूं, अभय।”
वसुधा मानो टूट सी रही थी।
“मैं समझ सकता हूँ।”
“मैं क्या करूं अभय?.. अब मैं कैसे जियूं?..मायका भी तो खत्म हो चुका है।” वसुधा फूट-फूट कर रो पड़ी।
“वसुधा रो मत।”
“अभय मेरा जीवन एकदम सूना सा हो गया है।” वसुधा रोए जा रही थी।
“वसुधा अब फैसला तुम्हें लेना है, मैं तो अभी भी वही खड़ा हूं।”
“नहीं अभय!..बेटा नहीं मानेगा।”
कुछ देर दोनों तरफ खामोशी थी।
“वसु,..उस दिन भी मैं सही था।”
अभय की आवाज ने खामोशी को तोड़ा,.वसुधा चुप रही ।
“याद है वसु,..जब मैं बड़ी हिम्मत कर तुम्हारे पिताजी से तुम्हारा हाथ मांगने तुम्हारे घर आया था और तुमने यह कहते हुए मुझे कसम दे दरवाजे से ही वापस भेज दिया था कि,.पिताजी नहीं मानेंगे।”
वसुधा की सिसकियां अभय सुन पा रहा था ।
“अभय तुम एक औरत की मजबूरी नहीं समझ सकते।”
” मैं बहुत पहले समझ गया था वसु।”
“नहीं अभय तुम शायद गलत समझे थे।”
” देखो वसु,.. वसुधा सदा वसुधा ही रही!. वह समर्थ है किंतु उसे अपने भीतर क्या उपजाना है इसका निर्णय लेने में ना वह कल समर्थ थी और ना आज!. तुमने अपने नाम को सार्थक किया है वसु।”
वसुधा की सिसकियां बढ़ गई थी।
“खैर तुम अब यह गम छोड़ अपनी सार्थकता का जश्न मना सकती हो!. मैं कल यूके के लिए निकल रहा हूं।” वसुधा समर्थ होते हुए भी आज फिर से फैसला नहीं कर पाई।
आज फिर से अभय जा रहा था और वह आज फिर से रो रही थी। लेकिन यह आंसू अपने नाम को सार्थक करने के जश्न के थे या एक खूबसूरत जिंदगी के नजदीक से गुजरकर उसे फिर से हमेशा के लिए खो देने के गम के, इसका फैसला कर पाने में वह अभी भी असमर्थ थी।।

पुष्पा कुमारी “पुष्प”
पुणे (महाराष्ट्र)
20/03/2020

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

आधा सत्य…आधा झूठ

एक नाविक तीन साल से एक जहाज पर काम कर रहा था। एक दिन नाविक रात मे नशे मे धुत हो गया।

ऐसा पहली बार हुआ था। कैप्टन ने इस घटना को रजिस्टर मे इस तरह दर्ज किया, ” नाविक आज रात नशे मे धुत था।”

नाविक ने यह बात पढ़ ली। नाविक जानता था कि इस एक वाक्य से उसकी नौकरी पर बहुत बुरा असर पड़ेगा।

इसलिए वह कैप्टन के पास गया, माफी मांगी और कैप्टन से कहा कि उसने जो कुछ भी लिखा है, उसमे आप ये जोड़ दीजिये कि ऐसा तीन साल मे पहली बार हुआ है, क्यो कि पूरी सच्चाई यही है।

कैप्टन ने उसकी बात से साफ इंकार कर दिया और कहा कि मैने जो कुछ भी रजिस्टर मे दर्ज किया है. वही सच है।”

कुछ दिनों बाद नाविक की रजिस्टर भरने की बारी आयी। उसने रजिस्टर मे लिखा-” आज की रात कैप्टन ने शराब नहीँ पी है।” कैप्टन ने इसे पढ़ा और नाविक से कहा कि इस वाक्य को आप या तो बदल दे अथवा पूरी बात लिखने के लिए आगे कुछ और लिखे, क्यो कि जो लिखा गया था, उससे जाहिर होता था कि कैप्टन हर रोज रात को शराब पीता था।

नाविक ने कैप्टन से कहा कि उसने जो कुछ भी रजिस्टर मेँ लिखा है, वही सच है।

दोनो बाते सही है, लेकिन दोनो से जो संदेश मिलता है, वह झूठ के सामान है।

अभिप्राय,,,,
पहला-हमें कभी इस तरह की बात नहीं करी चाहिए जो सही होते हुए भी गलत सन्देश दे ?
और दूसरा- किसी बात को सुनकर उस पर अपना विचार बनाने या प्रतिक्रिया देने से पहले एक बार सोच लेना चाहिए कि कहीं इस बात का कोई और पहलू तो नहीं है।

संक्षेप में कहें तो हमें अर्धसत्य से बचना चाहिए।
जय महादेव
🚩

वीरभद्र आर्य

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

चूहा और बैल,,,,,

एक नन्हा-सा चूहा था। वह अपने बिल से बाहर आया। उसने देखा कि एक बड़ा बैल पेड़ की छाया में सोया हुआ है। बैल जोर-जोर से खर्राटें भर रहा था। चूहा बैल की नाक के पास गया और मजा लेने के लिए उसने उसकी नाक में काट लिया।

बैल हड़बड़ा कर जाग गया। दर्द के मारे वह जोर से डकारा। इससे घबरा कर चूहा सरपट भागा। बैल ने पूरी ताकत से उसका पीछा किया। चूहा दौडकर झटपट दीवार के छेद में घुस गया। अब वह बैल की पहुँच से बाहर था।

पर बैल ने चूहे को सजा देने की ठान ली थी। उसने गुस्से से चिल्लाकर कहा, “अबे नालायक! मैं तुझे एक ताकतवर बैल को काटने का मजा चखाऊँगा।” बैल ताकतवर था। उसने अपने सिर से दीवार पर जोर से धक्का मारा। पर दीवार भी बहुत मजबूत थी। उस पर कोई असर नही हुआ, बल्कि बैल के सिर में ही चोट लगी। यह देख कर चूहे ने बैल को चिढ़ाते हुए कहा, “अरे मूर्ख, बिना मतलब अपना सिर क्यों फोड़ रहा है? तू कितना ही बलवान क्यों न हो, पर हमेशा तेरे मन की तो नहीं हो सकती।”

बैल अब भी चूहे को बिना दंड दिए छोड़ देने को तैयार नहीं था। चूहे जैसे एक तुच्छ प्राणी ने उसका अपमान किया था। इस समय वह बहुत क्रोध में था।

पर धीरे-धीरे उसका जोश कम हुआ। उसे चूहे की बात सही मालूम हुई। इसलिए वह चुपचाप वहाँ से चला गया।

चूहे के ये शब्द अब भी उसके कान में गूँज रहे थे तू कितना ही बलवान क्यों न हो, पर हमेशा तेरे ही मन की तो नहीं हो सकती।

मित्रो”
बुद्धि शक्ति से बड़ी होती है, इसीलिए हमे सर्व प्रथम बुद्धि द्वारा ही अपने प्रतिद्वंदी को मात देने का प्रयास करना चाहिए।
जय महादेव
🚩

वीर भद्र आर्य

Posted in भारतीय उत्सव - Bhartiya Utsav

વેટ સાવિત્રી


http://www.gujaratistory.in/vat-savitri/

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

🍃🍂 પીપળ પાન ખરંતા….ધીરી રે બાપુડીયા. 🍂🍃

મારા પપ્પા ના મિત્ર દવેકાકાને મેં આજે કામ થી ફોન કર્યો…

મોબાઈલ સ્વીચ ઓફ આવતો હતો..

નજીક રહેતા હોવાથી અને રવિવાર પણ હોવાથી…એ બાજુ નીકળ્યો તો મને થયું….ચલો દવેકાકા ને મળતો જાઉં…

હું દવેકાકા ના ઘરે ગયો….દવે કાકા આરામ થી છાપું વાંચતા હતા……….
મેં કીધું કાકા….કેમ..છો ?

આવ બેટા, બસ મજામાં…બેસ…….

હું બેઠો..પછી કીધું, કાકા મોબાઈલ કેમ બંધ કર્યો છે ?

એટલે કાકા હસી ને બોલ્યા……..
બેટા એક ફાધર ડે, મધર ડે અને તારી કાકી અને મારી બર્થ ડે ઉપર હું મોબાઈલ સ્વીચ ઓફ કરી દઉં છું….

કારણ ?? મેં પૂછ્યું.

બેટા, આખું વર્ષ જીવીયે છીયે કે…મરી ગયા , તેની ખબર ન હોય…
તેવી વ્યક્તિઓના ફોન આવે, વેવલું વેવલું જાહેર માધ્યમ ઉપર લખે, બોલે..
મને નફરત છે આ બધી વાતો થી.

બચપન માં બાળકો ને આપેલ પ્રેમ અને હૂંફ તેમનો હક્ક હતો, તો ઘડપણ માં પ્રેમ અને હૂંફ આપવી તેઓની ફરજ છે,
અને અમારો હક્ક છે………
જો એ તેમની ફરજ ભૂલતા હોય, તો મને એવા સંબધો સાથે કોઈ મતલબ નથી…

એ લોકોને એવું ઘમંડ છે..
જાત નહિ ચાલે ત્યારે તો અમારી પાસે આવશે જ ને ?? પણ એ લોકોએ તેમના બાપને ઓળખવામાં ભૂલ ખાધી છે.

આપણા શહેર થી ૨૫ કિલોમીટર દૂર એક અધ્યતન ઘરડાઘર બની રહ્યું છે………
અમે તેની મુલાકત પણ લીધી હતી……..
મહિને વ્યક્તિ દીઠ રૂ.૧૭૦૦૦/- ભરવાનાં.
પતિ પત્નિ હોય તો એક રૂમ માં બે વ્યક્તિ સાથે રહી શકે.

AC, LCD TV, ઈન્ટરકોમ, સોફા, બે પલંગ.

બેટા, એક થ્રી સ્ટાર હોટલ માં હોય એવી તમામ સવલતો સાથેના રૂમ વિશાળ પરીસરની અંદર બાગ બગીચા..મંદિર….
૨૪ કલાક એમ્બ્યુલન્સ, દીવસમાં બે વખત ડોક્ટર આવી મેડિકલ ચેકઅપ કરી જાય.. મહિનામાં બે વખત તેમની જ બસમાં અમને ફરવા લઈ જાય…………..
ઘરડી વ્યક્તિને ધ્યાન માં રાખી સવાર સાંજનું ભોજન, બે સમય ચા, કોફી, દૂધ નાસ્તો………..
સાંજે, ભજન , કીર્તન અને સત્સંગ.
બીજું શું જોઇએ ???

મેં તો બેટા એક રૂમ લખાવી દીધો છે…
છોકરાઓ એ ભૂલી જાય અમે લાચાર અને મજબુર છીયે.
રૂપિયા દેતા દુનિયામાં બધું જ મળે છે….
પણ માઁ બાપ કે ખોવાયેલો પ્રેમ પરત નથી મળતો….દવે કાકા ની આંખ ભીની હતી પણ વાતો મક્કમતાથી મારી સાથે કરતા હતા

દવે કાકા ની આંગળી તેમના બાળકો સામે હતી. સાસરી ના લોકોએ થોડી આર્થિક મદદ કરી, એટલે ભાડે મકાન લઈ એ લોકો ધીરે ધીરે જુદા થઈ ગયા

દવે કાકાએ નાના છોકરા ભાવેશ ને જુદા થવાનું કારણ પૂછ્યું, તો કહે ઘર નાનું પડે છે. દવે કાકા એ સુંદર જવાબ આપ્યો હતો.

બેટા સજ્જન ના ઘરે સંકડાશ ન હોય…તારી માઁ એ પણ તને પેટ નાનું હોવા છતાં પણ તને નવ મહિના રહેવા વ્યવસ્થા કરી આપી હતી. સંતાનોની આદત પેટમાં હોય ત્યાર થી લાત મારવાની હોય છે… બહાર આવી ને પણ ઘણા આ આદત ભૂલ્યા નથી હોતા….

જા બેટા, ઈશ્વરને પ્રાર્થના કર, કે મને તમારા લોકો ની જરૂર ન પડે..અને તમને મારી જરૂર ન પડે….
અમારા સ્વભાવ અને આદતને કારણે તમે જુદા થાવ છો, પણ અમારી મજબૂરી છે. અમારી આદત કે સ્વભાવ અમે સુધારી નહિ શકીયે.

ખરેખર એવું ન હતું..અમે અમારો સ્વભાવ અને આદતો સુધારવા તૈયાર હતા, પણ દુઃખ એ વાત નું હતું કે અમારાં ત્રણેય દીકરાઓ માંથી એકેય ની હિંમત પોતાની પત્નીઓ ના સ્વભાવ કે આદત સુધારવાની હતી નહિ. એટલે બધા છોકરાઓ ધુમાડા માઁ બાપ ઉપર કાઢે, અમને અમારો સ્વભાવ સુધારવા દબાણ કરે, જે મને મંજુર ન હતું….
એટલે મેં તેઓને જુદા થતાં રોક્યા નહિ…

હું મજબૂત છું, મજબુર નથી…
હું પ્રેમાળ છું, પણ લાચાર નથી,
હું ભોળો પણ નથી અને ભોટ પણ નથી… હજુ મારા પોતાના અંગત નિર્ણય લેવા માટે સક્ષમ છું…..ઘરડા ઘરમાં જતા પહેલાં આ મકાન પણ હું વેંચી નાખવાનો છું.

બોલ બેટા, આ બાજુ કેમ.આવ્યો ???
દવે કાકા બોલ્યા.

કાકા, દેવાંગ તમારો નાનીયો મળ્યો હતો… તેની નોકરી ઘણા સમયથી જતી રહી છે, તકલીફમાં છે.
તમારા થી કંઈ મદદ થાય તો ???

જો બેટા.. તેણેે ઘર છોડયું ત્યારે તેણે સલાહ તેના સાસરાની લીધી હતી…..
તો પહેલી મદદ કરવાની ફરજ તેમની બને કે નહીં ?

હું નિવૃત વ્યક્તિ હતો, છતાં પપ્પા ઘર કેમ ચલાવશે એ ચિંતા બાળકોએ કદી કરી નથી.
ઠીક છે, ભગવાનની કૃપાથી સ્વમાનથી જીવાય તેટલું મારી પાસે છે.

દવે કાકા ઉભા થયા….થોડી વારે અંદરથી આવ્યા, અને ચેક મારા હાથમાં મૂકી બોલ્યા.. આ દેવાંગ ને આપી દેજે, અને કહેજે, લોહીના સંબંધ ને ઓળખતા શીખે.
આ રકમ તેને કહેજે, લગ્ન પછી ઘર ચલાવવા તારી પાસેથી હું જે લેતો હતો, એ વ્યાજ સાથે તને પરત કરું છું..
માઁ બાપ આપવા માટે જ સર્જાયા છે,
લેવા માટે નહીં !!!
માઁ બાપ ના ઋણ ઉતારવા માટે સાત જન્મ પણ ઓછા પડે.

તમારા સ્વભાવ અને ખરાબ આદતો અમે પણ સહન કરી છે, છતાં અમે તમને જંગલ કે અનાથ આશ્રમમાં મૂકી દીધા ન હતા.

મેં ચેક સામે નજર કરી.
ચેકની રકમ રુપિયા પાંચ લાખ હતી.

હું દવેકાકા ના સ્વમાનથી છલકાતા ચહેરા સામે જોઈ રહ્યો…..

બેટા, બાળકોને હેરાન થતાં આપણે નથી જોઇ શકતા…..એ લોકોને આવો વિચાર અમારા પ્રત્યે કેમ કોઈ દીવસ નહિ આવતો હોય ????? દવે કાકાની આંખો ફરી ભીની થઈ.

માઁ બાપ ને રડાવી…FB ઉપર હેપી ફાધર ડે.. કહી વાણી વિલાસ કરતા નબીરાઓ સમજી લેજો, તમારા કૃત્યથી સંસાર અજાણ છે.
પણ ઈશ્વરે નોંધ જરૂર લીધી છે

પાનખર માં જુના પાન ખરે ત્યારે લીલી કુમળી પાનો હસતી હોય છે… ત્યારે….ખરતા પાન બોલે છે………..

પીપળ પાન ખરંતા, હસતી કૂંપળિયાં; મુજ વીતી તુજ વીતશે, ધીરી બાપુડિયાં.

આપણું માઁ બાપ પ્રત્યેનું વર્તન બાળકો જોતા હોય છે.

ઈતિહાસનું પુનરવર્તન ન થાય તેનું ધ્યાન રાખજો.

🙏🍃🙏🍂🙏🍃🙏🍂🙏🍃🙏🍂🙏

અનિલ પડીયાર

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

🌝* नित्या को मिली अम्मा * नित्या और नमन नवविवाहित जोड़ा मध्य भारत से पहुंच गया सुदूर दक्षिण भारत के महानगर में अपनी नई गृहस्थी बसाने। नमन वहां एक कंपनी में काम करता था। वहां की संस्कृति, भाषा सब अलग थी।फिर भी धीरे-धीरे उन्हें अच्छा लगने लगा। घर व्यवस्थित करने के बाद नित्या कुछ देर के लिए बाहर निकल कर इधर-उधर देख रही थी। उनके पड़ोस में रहने वाले परिवार की आंटी उसे रोज देखती लेकिन अलग भाषा के कारण बात नहीं कर पाती थी। उस दिन नित्या ने उन्हें देखा। नित्या ने यहां आने से पहले कुछ कुछ शब्दों को बोलने का अभ्यास कर लिया था जिससे बातचीत करने में ज्यादा परेशानी ना हो ।नित्या ने आंटी से बात शुरु की ।आप कैसी है आंटी ।

आंटी को नित्या की बात सुनकर अच्छा लगा। उन्होंने भी कहा हम अच्छे है ।आप लोग नए आए हैं अगर कोई भी परेशानी हो तो बताना।
इस तरह नित्या और आंटी की जान पहचान हो गयी। आंटी ने नित्या को अपने को ‘अम्मा ‘कहने को कहा की मुझे अच्छा लगेगा।वे रोज बातें करने लगे। एक दिन शाम को दोनों बात कर रहे थे तो अम्मा ने कहा कि- जा रही हूं कल की पूजा की तैयारी करूंगी ।नित्या ने उनसे पूछा कौन सी पूजा। तो अम्मा ने बताया कि कल वट पूर्णिमा की पूजा है।
नित्या ने कहा कि हम तो इसे अमावस्या के दिन करते हैं। अम्मा ने बताया कि हम लोग पूर्णिमा के दिन करते हैं। अगर तुम कल जाना चाहो तो हमारे साथ चलना ।नित्या ने ठीक है कहा। नमन के आने पर उसने यह बात नमन से बताई तो उसने भी कहा ठीक है चले जाना। नित्या सुबह उठकर नमन के ऑफिस जाने की तैयारी करने लगी। और नमन के आफिस जाने के बाद अम्मा के यहां गई ।उसने देखा अम्मा ने पूरा श्रृंगार किया था ।अम्मा ने नित्या से भी कहा कि तुम भी अच्छे से तैयार होकर आ जाओ। नित्या घर आकर अच्छे से श्रृंगार करके आई तो अम्मा ने उसके बालों में गजरा लगा दिया। नित्या अम्मा के साथ पूजा करने गई। एक स्थान पर बरगद का विशाल वृक्ष था। उसकी बड़ी-बड़ी जटाएं झूल रही थी। आस पास बहुत सी महिलाएं पूजा कर रही थी। अम्मा और नित्या थोड़ी देर इंतजार करने लगे। जगह खाली हुई तो अम्मा ने पूजा का सामान वहां रखा और नित्या को भी बताने लगी की कैसे पूजा करनी है।उन्हों के कहा कि तुम भी मेरे साथ साथ करते जाना । अम्मा ने सबसे पहले जल अर्पण किया। उसके बाद कच्चे सूत को वृक्ष के चारों ओर सात बार लपेटा। नित्याभी उनके पीछे पीछे करने लगी। फिर अक्षत ,फूल ,कुमकुम आदि चढ़ाकर दिनों ने विधिवत पूजा की। सुहाग सामग्री चढ़ाई और कथा सुनी।अम्मा ने भीगे चने और गुड़ का भोग लगाया। वहां आंटी के जान पहचान की अन्य महिलाएं और उनकी बहुऐं भी आई थीं जिनसे अम्मा ने नित्या का परिचय करवाया। सबने एक दूसरे को सुहाग की चीजें और प्रसाद दिया और व्रत का महत्व बताया यह पति की लंबी आयु के लिए किया जाता है । नित्या ने भी सुबह से कुछ नहीं खाया था ।जब उसने पूजा की और व्रत की महिमा सुनी तो उसने भी सोचा कि मैं भी आज व्रत कर लेती हूँ।

उसने आते समय अम्मा को यह बात बताइ।अम्मा ने खुशी-खुशी व्रत करने को कहा और कहा कि शाम को फलाहार करने हमारे यहां आना। शाम को उन्होंने दूध से बने व्यंजन बनाए थे । नित्या भी फल लेकर गयी। दोनों ने साथ में फलाहार किया ।
उस दिन अम्मा अपनी बहू और बेटी को बहुत याद कर रही थीं।नित्या से कहने लगी कि मुझे आज ऐसा लगा कि मैं उनके साथ पूजा कर रही हूं ।अम्मा ने नित्या को बहुत सुंदर साड़ी और सुहाग सामग्री के साथ देर सारा आशीर्वाद दिया।
नित्या नमन का इंतजार करने लगी। जब नमन वापस आया और उसने नित्या को इस नए रूप में देखा तो देखता रह गया और नित्या की प्रशंसा करने लगा। नित्या ने फोन में अपनी मां और सासू मां को आज की पूजा के बारे में बताया। दोनों ही सुन कर अपनी खुशी व्यक्त करने लगीं। दोनों को ही नित्या की बहुत चिंता थी कि नए जगह पर वह कैसे रह पाएगी। आज उसकी सारी बातें सुनकर और अम्मा के व्यवहार के बारे में सुनकर उनकी चिंता दूर हो गई । नित्या को एक स्नेह करने वाली अम्मा मिल गयी थीं।

स्वरचित
नीरजा नामदेव
24-06-2021