Day: June 4, 2021
भीतर से सचेत
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♥️ Story-4 ♥️
भीतर से सचेत
बुद्ध का एक शिष्य था। वह सन्यास लेकर नया-नया दीक्षित हुआ था। उसने बुद्ध से पूछा के मैं आज कहां भिक्षा माँगने जाऊं? बुद्ध ने कहा, मेरी एक श्राविका है, वहाँ चले जाना।
शिष्य वहाँ गया। जब वह भोजन करने बैठा, तो वह बहुत हैरान हुआ क्योंकि उसे रास्ते में इसी भोजन का खयाल आया था। यह उसका प्रिय भोजन था। पर उसने सोचा कि मुझे अब ये भोजन कौन देगा? वह कल तक राजकुमार था और जो उसे पसंद होता वह वही खाता था। लेकिन उस श्राविका के घर, उसकी पसंद का भोजन देख कर वह बहुत हैरान हो गया। सोचा, संयोग की बात है, आज श्राविका के यहाँ भी वही भोजन बना है।
जब वह भोजन कर रहा था तो उसे अचानक खयाल आया,” भोजन के बाद तो मैं विश्राम करता था रोज। लेकिन आज तो मैं भिखारी हूँ । भोजन के बाद वापस जाना होगा। दो तीन मील का फासला फिर धूप में तय करना होगा।”
वह श्राविका पंखा करती गई और उसने कहा, “भंते, अगर भोजन के बाद दो क्षण विश्राम कर लेंगे तो मुझ पर बहुत अनुग्रह होगा।”
भिक्षु फिर थोड़ा हैरान हुआ कि मेरे मन की बात उस तक किस भांति पहुंच गई? फिर उसने सोचा, संयोग की ही बात होगी कि मैंने जो भी सोचा और उसने भी उसी वक्त वही पूछ लिया। चटाई डाल दी गई। वह विश्राम करने लेटा ही था कि उसे खयाल आया, “आज न तो अपनी कोई शय्या है, न अपना कोई साया है; अपने पास कुछ भी नहीं।”
वह श्राविका जा रही थी, रुक गई, उसने कहा, “भंते, शय्या भी किसी की नहीं है, साया भी किसी का नहीं है आप चिंता न करें। “
अब उस भिक्षु के लिए इसे संयोग मान लेना कठिन था। वह उठ कर बैठ गया। उसने कहा, “मैं बहुत हैरान हूं! क्या मेरे भाव पढ़ लिए जाते हैं?” वह श्राविका हंसने लगी।
उसने कहा,” बहुत दिन ध्यान का प्रयोग करने से चित्त शांत हो गया। दूसरे के भाव भी थोड़े-बहुत अनुभव में आ जाते हैं।” भिक्षु एकदम उठ कर खड़ा हो गया। वह एकदम घबरा गया और कांपने लगा। उस श्राविका ने कहा, “आप घबराते क्यों हैं? कांपते क्यों हैं? क्या हो गया? विश्राम करिए। अभी तो लेटे ही थे।”
उसने कहा,” मुझे जाने दें, आज्ञा दें।” उसने आंखें नीचे झुका लीं और वह चोरों की तरह वहाँ से भागा। श्राविका पूछती रह गई,” क्या बात है? क्यों परेशान हैं?”
फिर भी उसने मुड़ कर भी नहीं देखा। उसने बुद्ध को जाकर कहा, “उस द्वार पर अब कभी न जाऊंगा।”
बुद्ध ने कहा, “क्या हो गया? भोजन ठीक नहीं था? सम्मान नहीं मिला? कोई भूल-चूक हुई?”
उसने कहा, “भोजन भी मेरा जो मनपसंद है, वही था। सम्मान भी बहुत मिला, प्रेम और आदर भी था। लेकिन वहां नहीं जाऊंगा। कृपा करें! वहां जाने की आज्ञा न दें।”
बुद्ध ने कहा, “इतने घबराएँ हुऐ क्यों हो? इतने परेशान क्यों हो?”
शिष्य ने कहा, “वह श्राविका दूसरे के विचार पढ़ लेती है। और जब मैं आज भोजन कर रहा था, उस सुंदर युवती को देख कर मेरे मन में तो विकार भी उठे थे। वे भी पढ़ लिए गए होंगे। मैं किस मुंह से वहां जाऊं? मैं तो आंखें नीची करके वहाँ से भाग आया हूँ ।”
वह मुझे भंते कह रही थी, मुझे भिक्षु कह रही थी, मुझे आदर दे रही थी। मेरे प्राण कंप गए। मेरे मन में क्या उठा? और उसने पढ़ लिया होगा? फिर भी मुझे भिक्षु और भंते कह कर आदर दे रही थी! उसने कहा, मुझे क्षमा करें। वहां मैं नहीं जाऊंगा।
यह सुनकर बुद्ध ने कहा, “मैंने तुम्हें वहां जान कर भेजा है। यह तुम्हारी साधना का हिस्सा है। तुम्हें वहीं जाना पड़ेगा और रोज जाना पड़ेगा। जब तक मैं न कहूँ या जब तक तुम आकर मुझसे न कहो कि अब मैं वहाँ जा सकता हूं, तब तक वहीं जाना पड़ेगा।
उसने कहा, “लेकिन मैं कैसे जाऊंगा? किस मुँह को लेकर जाऊंगा? और कल अगर फिर वही विचार उठे तो मैं क्या करूंगा?”
बुद्ध ने कहा, “तुम एक छोटा सा काम करना, और कुछ मत करना, जो भी विचार उठे, उसे देखते हुए जाना। विकार उठे, उसे भी देखना। कोई भाव मन में आए, काम आए, क्रोध आए, कुछ भी आए, उसे देखना। तुम सचेत रहना भीतर से।”
जैसे कोई अंधकारपूर्ण गृह में एक दीये को जला दे और उस घर की सब चीजें दिखाई पड़ने लगें, ऐसे ही तुम अपने भीतर अपने बोध को जगाए रखना कि तुम्हारे भीतर जो भी चले, वह तुम्हें स्पष्ट दिखाई पड़ता रहे। बस तुम ऐसे जाना!
वह भिक्षु वहाँ गया। उसे जाना पड़ा। भय था, पता नहीं क्या होगा? लेकिन वह अभय होकर लौटा। वह नाचता हुआ लौटा। कल डरा हुआ आया था, आज नाचता हुआ आया। कल आंखें नीचे झुकी थीं, आज आंखें आकाश को देखती थीं। आज जब वह लौटा तो उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। वह बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और उसने कहा कि “धन्य! क्या हुआ यह? जब मैं सजग था, तो मैंने पाया वहाँ तो सन्नाटा है। जब मैं उसकी सीढ़ियां चढ़ा, तो मुझे अपनी श्वास भी मालूम पड़ रही थी कि भीतर जा रही है, बाहर जा रही है। मुझे हृदय की धड़कन भी सुनाई पड़ने लगी थी। इतना सन्नाटा था मेरे भीतर। कोई विचार सरकता तो मुझे दिखता? लेकिन कोई विचार आ ही नहीं रहा था।
मैं एकदम शांत उसकी सीढ़ियां चढ़ा। मेरे पैर उठे तो मुझे मालूम था कि मैंने बायां पैर उठाया और दायां रखा। मैं भीतर गया और मैं भोजन करने बैठा। यह जीवन में पहली दफा हुआ कि मैं भोजन कर रहा था तो मुझे कौर भी दिखाई पड़ता था। मेरा हाथ का कंपन भी मालूम हो रहा था। श्वास का कंपन भी मुझे स्पर्श और अनुभव हो रहा था। मैं बड़ा हैरान हो गया, मेरे भीतर कुछ भी नहीं था, वहां एकदम सन्नाटा था। वहां कोई विचार नहीं था, कोई विकार नहीं था।
बुद्ध ने कहा, “जो भीतर सचेत है, जो भीतर जागा हुआ है, जो भीतर होश में है, विकार उसके द्वार पर आने वैसे ही बंद हो जाते हैं, जैसे किसी घर में प्रकाश हो तो उस घर से चोर दूर से ही निकल जाते हैं। वैसे ही जिसके मन में बोध हो, जागरण हो, अमूर्च्छा हो, उस चित्त के द्वार पर विकार आने बंद हो जाते हैं। वे शून्य हो जाते है।
यदि पत्नी किसी अन्य पुरूष से पुत्र प्राप्त कर ले, तो उस पर किसका अधिकार रहेगा?
एक गाँव था , उसमें एक गरीब आदमी रहता था । उसकी शादी हो गई , दोनो आराम से रहने लगे ।
कुछ दिनों बाद वह आदमी अपनी पत्नी से बोला – मै अब बाहर व्यापार करने जा रहा हूँ , आज ही के दिन एक बरस बाद लौट आऊँगा !!! ऐसा कह कर पति चला गया ,
पति वहाँ व्यापार में व्यस्त हो गया और पत्नी यहाँ अकेली थी , पत्नी रोज सुबह नहा धोकर पैदल ही सब्जी खरीदने जाती थी ,
उसी बाजार में एक धनवान पुरूष भी रोज कार से सब्जी खरीदने आता था , वह रोज इस महिला को आते हुए देखता था , एक दिन वह पुरूष उस महिला से बोला – आओ मै आपको घर तक छोड़ दूँगा
नही ! मै चली जाऊँगी
डरो मत !! मेरा घर भी उसकी अगली गली में है, मै आपको सकुशल पहुँचा दूँगा ,
अब वह स्त्री कार में बैठ गई , उस पुरूष ने शांति विनम्रता और शालीनता के साथ उस स्त्री को उसके घर के सामने उतार कर चला गया ,
अब यह रोज का क्रम बन गया ,
एक दिन वह पुरूष उस स्त्री से स्नेह तथा आदर से बोला – आओ चाय पीकर चली जाना , स्त्री ने उसका आग्रह स्वीकार कर लिया तथा चाय पीकर चली गई , सिलसिला आगे बढ़ा भोजन भी होने लगा , उन दोनो के मध्य प्रेम उत्पन्न हो गया और परिणाम हुआ – एक सुन्दर पुत्र
अब वह स्त्री अपने पुत्र को उस पुरूष के घर ही रखती व नित्य एक बार जाकर उसे लाड़ प्यार से दूध पिला कर लौट आती
एक बरस पूरा हो गया , पति के लौट आने की तारीख़ आ गई !! पति आ गया !! अब पत्नी का ध्यान पुत्र में होने के कारण वह पति की बातों पर ध्यान न दे पा रही थी , उसे अशांत व खिन्न देखकर पति ने उससे पूछा – सच सच बता क्या हुआ ?
तब पत्नी से सब बात कह दी और पुत्र की याद आना बताया !!
पति बोला – अपना पुत्र है ! जा ले आ !!
पत्नी गई और जाकर उस पुरूष से बोली कि मेरे पति आ गये हैं और मै अपना पुत्र लेने आई हूँ ,
वह पुरूष बोला – पुत्र नही दूँगा , वह मेरा है
अब स्त्री और उसका पति दोनों पुत्र माँग रहें हैं तथा वह पुरूष पुत्र को अपने पास रखना चाहता है। मामला न्यायालय में गया । न्यायाधीश के समक्ष सबने अपने तर्क़ सुनाए।
(1) पति ने कहा – जब मेरी शादी हुई तो मेरे पास 5 एकड़ जमीन थी । मै व्यापार करने परदेश गया तथा यह कहकर गया कि जब बोवनी का समय आएगा तब मै आ जाऊँगा परन्तु यदि किसी कारण न आ पाऊँ तो तू किसी से खेत बुआ लेना , बरसात शुरू हो गई और मै न आ पाया तो मेरी पत्नी ने मेरा खेत दूसरे से बुआ लिया , अब बोने वाला व्यक्ति कह रहा है कि फसल मेरी है !! तो फसल तो खेत मालिक की ही रहेगी !! बुआई करने वाला व्यक्ति चाहे तो मजदूरी ले ले !! परन्तु फसल पर अधिकार तो खेत मालिक का ही रहेगा ।।
(2) उस पुरूष ने कहा – मै एक रोज सैर करने गया , सड़क पर मुझे एक खाली डिब्बी पड़ी मिली , मैने इधर उधर देखा – मुझे कोई डिब्बी का मालिक दिखाई न दिया , डिब्बी सुन्दर थी !
मैने डिब्बी उठा ली तथा अपने जेब से एक हीरा निकाल कर डिब्बी मे रख दिया , दूसरे दिन मुझे एक आदमी मिला , वह कहने लगा यह डिब्बी तो मेरी है !! मैने डिब्बी मे से हीरा निकाल कर अपने पास रख लिया और डिब्बी उसके मालिक को लौटा दी , अब वह आदमी कहता है कि हीरा भी मुझे दो !! हीरा तो मैने रखा था तो हीरा तो मै ही रखूँगा, उसकी डिब्बी मै वापस देने को तैयार हूँ पर हीरे का मालिक तो मै ही हूँ!!
(3) पत्नी ने कहा – जब मेरी शादी हुई तो मेरे पिता ने एक भैंस दी थी , भैंस दूध देती थी , एक दिन मेरे पास जामन नही था
( दूध को जमाकर दही बनाकर घी निकालने के लिए दूध में थोड़ा सा दही डालना पडता है उसे जामन कहते हैं)
मैने एक पड़ौसी से माँगकर जामन ले लिया तथा दूध जमा लिया फिर मैने उस दही की देखभाल की तथा मथ कर घी निकाला ! अब वह जामन देने वाला कह रहा है कि घी मेरा है !! घी तो उस का ही रहेगा जिसका दूध था !! जरा सा जामन दे देने से घी उसका कैसे हो सकता है ? वह चाहे तो जामन के पैसे ले ले ??
तीनों के अपने अपने किस्से व तर्क थे , तीनों की बात सुनकर न्यायाधीश महोदय ने सन्यास ले लिया ।
अब पुत्र किसे मिलना चाहिये ?
है क्या जवाब किसी के पास
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अपने कर्तव्य का पालन अवश्य करें।
एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा — गुरुजी आप इतना परिश्रम करते हैं, प्रतिदिन इतने अच्छे सुविचार लिखते हैं, पूरी दुनिया में इसका प्रचार करते हैं, परंतु क्या आपको लगता है कि लोग आपकी बातों से अपने जीवन में सुधार लाते हैं? यदि नहीं लाते, तो क्यों आप इतना परिश्रम करते हैं?
मैंने उसे उत्तर दिया — सूर्य का काम चमकना है, वह चमकता है। कौन व्यक्ति उस से कितना लाभ लेता है, यह तो उस व्यक्ति को सोचना है, सूर्य को नहीं। यदि कोई व्यक्ति सूर्य से लाभ न ले, तो क्या सूर्य चमकना बंद कर देगा?
उसने कहा — कि सूर्य तो जड़ वस्तु है. वह तो नहीं जानता कि कौन लाभ ले रहा है और कौन नहीं? आप तो चेतन हैं. आप तो जान सकते हैं. और आप जानते भी हैं कि बहुत कम लोग लाभ लेते हैं.
मैंने उत्तर दिया — चलो सूर्य का उदाहरण छोड़ देते हैं। मैं चेतन हूं, मैं जानता हूं, कि कौन कितना लाभ ले रहा है। कम लोग ही लाभ ले रहे हैं। फिर भी मैं संन्यासी हूं। मेरा कर्तव्य परोपकार करना है। मैं अपना कर्तव्य पूरा कर रहा हूं। यदि मैं अपना कर्तव्य पालन करता हूं, और दूसरा व्यक्ति मुझसे लाभ नहीं लेता, तो वह अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता। तब क्या मैं भी अपना कर्तव्य छोड़ दूं? यह तो कोई बुद्धिमत्ता नहीं है।
और यदि मैं अपना कर्तव्य पालन करना छोड़ दूंगा, तो इससे लाभ तो कुछ होगा नहीं, पर हानि अवश्य होगी। संसार के लोग और अधिक बिगड़ेंगे। अब कुछ तो सुधर ही रहे हैं। तब तो इतने भी नहीं सुधरेंगे। बल्कि ये भी बिगड़ जाएँगे। इसलिए मुझे मेरे कर्तव्य का पालन अवश्य ही करना चाहिए।
मैंने उसे एक उदाहरण और दिया। मैंने कहा — *ईश्वर चेतन है। सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान है। मैं तो फिर भी अल्पज्ञ हूं, पूरा पूरा नहीं जानता, कि कौन कितना लाभ ले रहा है। परन्तु ईश्वर तो सर्वज्ञ सर्वव्यापक होने से खूब अच्छी प्रकार से जान रहा है, कि संसार के बहुत कम लोग उसके उपदेश से, या उसके सुझाव से लाभ उठा रहे हैं। तब क्या ईश्वर ने अपना काम बंद कर दिया? जब ईश्वर ने अपना काम बंद नहीं किया, तो उस के गुण कर्म स्वभाव के अनुकूल आचरण करना ही तो धर्म है। तो फिर मैं अपना धर्म क्यों छोड़ूँ? इसलिए मैं अपने कर्तव्य का पालन करता हूं। पूरे उत्साह के साथ काम करता हूं।
*”मैं अपना कर्तव्य पालन कर रहा हूं। मेरे कर्म का फल ईश्वर मुझे देगा। तो मैं कहां घाटे में हूं.” इसलिए मैं काम करता हूं और ऐसे ही मृत्यु आने तक काम करता रहूंगा।* आप भी अपने कर्तव्य का पालन करें, तो आपको भी पुण्य मिलेगा.
—- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक रोजड़ गुजरात।
एक बार एक संत सोने की भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा बेचने के लिए एक स्वर्णकार के पास गए…
चूँकि, भगवान भगवान की प्रतिमा… भीतर से खोखली थो तो वो दस ग्राम की थे…. पर, उनका सांप ठोस था इसीलिए, वो साढ़े ग्यारह ग्राम का था.
तो…. स्वर्णकार ने भगवान की प्रतिमा की कीमत 45 हजार बताई और सांप के 50 हजार.
इस पर संत ने कहा – अरे भाई…!
तेरी नजर में भोलेनाथ की कीमत कम है और सांप की कीमत ज्यादा है..?
इस पर स्वर्णकार बोला – महाराज..! मुझे आकार से क्या लेना है ?
मैं तो वजन देखता हूँ…. आकार चाहे जो भी हो…!
कहने का मतलब है कि….आभूषण का आकार कैसा भी हो…कीमत उसके आकार की नहीं बल्कि उसकी धातु की होती है.
आप आकार की कीमत करो तो करो…
पर, बाजार तो धातु की ही कीमत देगा.
यही आपके उस सवाल का जबाब है कि…. पालघर में साधुओं की हत्या का मामला दो-तीन महज 2-3 महीनों में ही शांत कैसे पड़ जाता है.
और… 5 अगस्त को श्रीराम जन्मभूमि के पूजन के दिन बंगाल में लॉक डाउन और बकरीद में मार्केट खुला कैसे रहता है.
ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि… आपके ही शब्दों में… कश्मीर से “”हिन्दू नहीं बल्कि… पंडित”” भगाए गए थे.
विकास दूबे… एक गैंगेस्टर नहीं बल्कि ब्राह्मण था.
लालू और मुल्ला-यम … हिन्दू द्रोही नहीं बल्कि…. जादो हैं.
दलित समुदाय… हमारे भाई नहीं बल्कि अछूत हैं.
ऐसे वक्तव्य और सोच हमें अंदर से खोखला बनाते हैं.
और… ये बात दुबारा बताने की जरूरत नहीं है कि…
आप आकार की कीमत करो तो करो…
पर, बाजार तो धातु की ही कीमत देगा.
याद रखें कि ये लोकतंत्र (भीड़तंत्र) है और लोकतंत्र में सिर्फ मुंडी की गिनती होती है.
इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि… वो मुंडी किसी पंचरवाले की है, मदरसा छाप मौलवी की या फिर IAS, IPS अथवा किसी वेदज्ञ की.
अर्थात…जिसकी मुंडी की गिनती ज्यादा होगी… वो ज्यादा महत्वपूर्ण होगा.
शायद …. अब आपको समझ आ गया होगा कि….
भारतीय राजनीति में हम भोलेनाथ के भक्तों की कीमत कम क्यों लगाई जाती है और … सांपों की ज्यादा क्यों ???
जय महाकाल…!!!
गुस्से को नियंत्रित करने का एक सुंदर उदाहरण
एक वकील ने सुनाया हुआ एक ह्यदयस्पर्शी किस्सा
“मै अपने चेंबर में बैठा हुआ था, एक आदमी दनदनाता हुआ अन्दर घुसा
हाथ में कागज़ो का बंडल, धूप में काला हुआ चेहरा, बढ़ी हुई दाढ़ी, सफेद कपड़े जिनमें पांयचों के पास मिट्टी लगी थी
उसने कहा,
“उसके पूरे फ्लैट पर स्टे लगाना है
बताइए, क्या क्या कागज और चाहिए… क्या लगेगा खर्चा… “
मैंने उन्हें बैठने का कहा,
“रग्घू, पानी दे इधर” मैंने आवाज़ लगाई
वो कुर्सी पर बैठे
उनके सारे कागजात मैंने देखे
उनसे सारी जानकारी ली
आधा पौना घंटा गुजर गया
“मै इन कागज़ो को देख लेता हूं
आपकी केस पर विचार करेंगे
आप ऐसा कीजिए, बाबा, शनिवार को मिलिए मुझसे”
चार दिन बाद वो फिर से आए
वैसे ही कपड़े
बहुत डेस्परेट लग रहे थे
अपने भाई पर गुस्सा थे बहुत
मैंने उन्हें बैठने का कहा
वो बैठे
ऑफिस में अजीब सी खामोशी गूंज रही थी
मैंने बात की शुरवात की
” बाबा, मैंने आपके सारे पेपर्स देख लिए
आप दोनों भाई, एक बहन
मा बाप बचपन में ही गुजर गए
तुम नौवीं पास। छोटा भाई इंजिनियर
आपने कहा कि छोटे भाई की पढ़ाई के लिए आपने स्कूल छोड़ा
लोगो के खेतों में दिहाड़ी पर काम किया
कभी अंग भर कपड़ा और पेटभर खाना आपको मिला नहीं
पर भाई के पढ़ाई के लिए पैसा कम नहीं होने दिया।”
“एक बार खेलते खेलते भाई पर किसी बैल ने सींग घुसा दिए
लहूलुहान हो गया आपका भाई
फिर आप उसे कंधे पर उठा कर 5 किलोमीटर दूर अस्पताल लेे गए
सही देखा जाए तो आपकी उम्र भी नहीं थी ये समझने की, पर भाई में जान बसी थी आपकी
मा बाप के बाद मै ही इन का मा बाप… ये भावना थी आपके मन में”
“फिर आपका भाई इंजीनियरिंग में अच्छे कॉलेज में एडमिशन ले पाया
आपका दिल खुशी से भरा हुआ था
फिर आपने मरे दम तक मेहनत की
80,000 की सालाना फीस भरने के लिए आपने रात दिन एक कर दिया
बीवी के गहने गिरवी रख के, कभी साहूकार कार से पैसा ले कर आपने उसकी हर जरूरत पूरी की”
“फिर अचानक उसे किडनी की तकलीफ शुरू हो गई
दवाखाने हुए, देवभगवान हुए, डॉक्टर ने किडनी निकालने का कहा
तुम ने अगले मिनट ने अपनी किडनी उसे दे दी
कहा कल तुझे अफसर बनना है, नोकरी करनी है, कहा कहा घूमेगा बीमार शरीर लेे के। मुझे गाव में ही रहना है, एक किडनी भी बस है मुझे
ये कह कर किडनी दे दी उसे।”
“फिर भाई मास्टर्स के लिए हॉस्टल पर रहने गया
लड्डू बने, देने जाओ, खेत में मकई खाने तयार हुई, भाई को देने जाओ, कोई तीज त्योहार हो, भाई को कपड़े करो
घर से हॉस्टल 25 किलोमीटर
तुम उसे डिब्बा देने साइकिल पर गए
हाथ का निवाला पहले भाई को खिलाया तुमने।”
“फिर वो मास्टर्स पास हुआ, तुमने गाव को खाना खिलाया
फिर उसने शादी कर ली
तुम सिर्फ समय पर वहा गए
उसी के कॉलेज की लड़की जो दिखने में एकदम सुंदर थी
भाई को नौकरी लगी, 3 साल पहले उसकी शादी हुई, अब तुम्हारा बोझ हल्का होने वाला था।”
“पर किसी की नज़र लग गई आपके इस प्यार को
शादी के बाद भाई ने आना बंद कर दिया। पूछा तो कहता है मैंने बीवी को वचन दिया है
घर पैसा देता नहीं, पूछा तो कहता है कर्ज़ा सिर पे है
पिछले साल शहर में फ्लैट खरीदा
पैसे कहा से आए पूछा तो कहता है कर्ज लिया है
मेंने मना किया तो कहता है भाई, तुझे कुछ नहीं मालूम, तू निरा गवार ही रह गया
अब तुम्हारा भाई चाहता है गांव की आधी खेती बेच कर उसे पैसा दे दे”
इतना कह के मै रुका
रग्घू ने लाई चाय की प्याली मैंने मुंह से लगाई
” तुम चाहते हो भाई ने जो मांगा वो उसे ना दे कर उसके ही फ्लैट पर स्टे लगाया जाए
क्या यही चाहते हो तुम”…
वो तुरंत बोला, “हां”
मैंने कहा,
” हम स्टे लेे सकते है
भाई के प्रॉपर्टी में हिस्सा भी मांग सकते है
पर….
तुमने उसके लिए जो खून पसीना एक किया है वो नहीं मिलेगा
तुमने दी हुई किडनी वापस नहीं मिलेगी,
तुमने उसके लिए जो ज़िन्दगी खर्च की है वो भी वापस नहीं मिलेगी
मुझे लगता है इन सब चीजो के सामने उस फ्लैट की कीमत शुन्य है
भाई की नीयत फिर गई, वो अपने रास्ते चला गया
अब तुम भी उसी कृतघ्न सड़क पर मत जाना”
“वो भिकारी निकला,
तुम दिलदार थे।
दिलदार ही रहो …..
तुम्हारा हाथ ऊपर था,
ऊपर ही रखो
कोर्ट कचेरी करने की बजाय बच्चो को पढ़ाओ लिखाओ
पढ़ाई कर के तुम्हारा भाई बिगड़ गया;
इस का मतलब बच्चे भी ऐसा करेंगे ये तो नहीं होता”
वो मेरे मुंह को ताकने लगा”
उठ के खड़ा हुआ, सब काग़ज़ात उठाए और आंखे पोछते हुए कहा,
“चलता हूं वकील साहब” उसकी रूलाई फुट रही थी और वो मुझे वो दिख ना जाए ऐसी कोशिश कर रहा था
इस बात को अरसा गुजर गया
कल वो
अचानक मेरे ऑफिस में आया
कलमो में सफेदी झांक रही थी उसके। साथ में एक नौजवान था
हाथ में थैली
मैंने कहा, “बाबा, बैठो”
उसने कहा, “बैठने नहीं आया वकील साहब, मिठाई खिलाने आया हूं
ये मेरा बेटा, बैंगलोर रहता है, कल आया गांव
अब तीन मंजिला मकान बना लिया है वहा
थोड़ी थोड़ी कर के 10–12 एकड़ खेती खरीद ली अब”
मै उसके चेहरे से टपकते हुए खुशी को महसूस कर रहा था
“वकील साहब, आपने मुझे कहा, कोर्ट कचेरी के चक्कर में मत लगो
गांव में सब लोग मुझे भाई के खिलाफ उकसा रहे थे
मैंने उनकी नहीं, आपकी बात सुन ली
मैंने अपने बच्चो को लाइन से लगाया और भाई के पीछे अपनी ज़िंदगी बरबाद नहीं होने दी
कल भाई भी आ कर पाव छू के गया
माफ कर दे मुझे ऐसा कह गया”
मेरे हाथ का पेडा हाथ में ही रह गया
मेरे आंसू टपक ही गए आखिर. .. .
गुस्से को योग्य दिशा में मोड़ा जाए तो पछताने की जरूरत नहीं पड़े कभी
बहुत ही अच्छा है पर कोई समझे और अमल करे तब सफल हो|
शुसिल शास्त्री
एक युवा युगल के पड़ोस में एक वरिष्ठ नागरिक युगल रहते थे , जिनमे पति की आयु लगभग अस्सी वर्ष थी , और पत्नी की आयु उनसे लगभग पांच वर्ष कम थी .
युवा युगल उन वरिष्ठ युगल से बहुत अधिक लगाव रखते थे , और उन्हें दादा दादी की तरह सम्मान देते थे . इसलिए हर रविवार को वो उनके घर उनके स्वास्थ्य आदि की जानकारी लेने और कॉफी पीने जाते थे .
युवा युगल ने देखा कि हर बार दादी जी जब कॉफ़ी बनाने रसोईघर में जाती थी तो कॉफ़ी की शीशी के ढक्कन को दादा जी से खुलवाती थी .
इस बात का संज्ञान लेकर युवा पुरुष ने एक ढक्कन खोलने के यंत्र को लाकर दादी जी को उपहार स्वरूप दिया ताकि उन्हें कॉफी की शीशी के ढक्कन को खोलने की सुविधा हो सके .
उस युवा पुरुष ने ये उपहार देते वक्त इस बात की सावधानी बरती की दादा जी को इस उपहार का पता न चले ! उस यंत्र के प्रयोग की विधि भी दादी जी को अच्छी तरह समझा दी .
उसके अगले रविवार जब वो युवा युगल उन वरिष्ठ नागरिक के घर गया तो वो ये देख के आश्चर्य में रह गया कि दादी जी उस दिन भी कॉफी की शीशी के ढक्कन को खुलवाने के लिए दादा जी के पास लायी ! !!
युवा युगल ये सोचने लगे कि शायद दादी जी उस यंत्र का प्रयोग करना भूल गयी या वो यंत्र काम नही कर रहा !
जब उन्हें एकांत में अवसर मिला तो उन्होंने दादी जी से उस यंत्र के प्रयोग न करने का कारण पूछा . दादी जी के उत्तर ने उन्हें निशब्द कर दिया..! !!
दादी जी ने कहा – “ओह ! कॉफी की शीशी के ढक्कन को मैं स्वयं भी अपने हाथ से , बिना उस यंत्र के प्रयोग के आसानी से खोल सकती हूँ , पर मैं कॉफी की शीशी का ढक्कन उनसे इसलिए खुलवाती हूँ कि उन्हें ये अहसास रहे कि आज भी वो मुझसे ज्यादा मजबूत हैं . और मैं उन्हीं पर आश्रित हूँ , इसीलिए वे हमारे घर के पुरुष हैं !
इस बात से मुझे भी ये लाभ मिलता है कि मैं ये महसूस करती हूँ कि मैं आज भी उन पर निर्भर हूँ , और वो मेरे लिए आज भी बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं . यही बात हम दोनों के स्नेह के बंधन को शक्ति प्रदान करती है .
किसी भी युगल की एकजुटता ही उनके सम्बन्ध की बुनियाद होती है ! अब हम दोनों के पास अधिक आयु नही बची है , इसलिए हमारी एकजुटता हम दोनों के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है .”
उस युवा युगल को एक बहुत ही महत्वपूर्ण सीख मिली . वरिष्ठ नागरिक चाहे घर में किसी भी प्रकार की आमदनी का कोई सहयोग ना दे रहे हों , पर उनके अनुभव हमें पल पल महत्वपूर्ण सीख देते रहते हैं ।।
रामचंद्र आर्य
पत्नी ने कहा – आज धोने के लिए ज्यादा कपड़े मत निकालना…
पति- क्यों??
उसने कहा..- अपनी काम वाली बाई दो दिन नहीं आएगी…
पति- क्यों??
पत्नी- रक्षा बंधन के लिए बेटी के यहाँ जा रही है, बोली थी…
पति- ठीक है, अधिक कपड़े नहीं निकालता…
पत्नी- और हाँ!!! रक्षाबंधन के लिए पाँच सौ रूपए दे दूँ उसे? त्यौहार का बोनस..
पति- क्यों?
पत्नी- अरे बाबा!! गरीब है बेचारी, बेटी-नाती के यहाँ जा रही है, तो उसे भी अच्छा लगेगा… और इस महँगाई के दौर में उसकी पगार से त्यौहार कैसे मनाएगी बेचारी!!
पति- तुम भी ना… जरूरत से ज्यादा ही भावुक हो जाती हो…
पत्नी- अरे नहीं… चिंता मत करो… मैं आज का पिज्जा खाने का कार्यक्रम रद्द कर देती हूँ… खामख्वाह पाँच सौ रूपए उड़ जाएँगे, बासी पाव के उन आठ टुकड़ों के पीछे…
पति- वा, वा… क्या कहने!! हमारे मुँह से पिज्जा छीनकर बाई की थाली में??
तीन दिन बाद… पोंछा लगाती हुई कामवाली बाई से पति ने पूछा…
पति- क्या बाई?, कैसी रही छुट्टी?
बाई- बहुत बढ़िया हुई साहब… दीदी ने पाँच सौ रूपए दिए थे ना.. त्यौहार का बोनस..
पति- तो जा आई बेटी के यहाँ…मिल ली अपने नाती से…?
बाई- हाँ साब… मजा आया, दो दिन में 500 रूपए खर्च कर दिए…
पति- अच्छा!! मतलब क्या किया 500 रूपए का??
बाई- नाती के लिए 150 रूपए का शर्ट, 40 रूपए की गुड़िया, बेटी को 50 रूपए के पेढे लिए, 50 रूपए के पेढे मंदिर में प्रसाद चढ़ाया, 60 रूपए किराए के लग गए.. 25 रूपए की चूड़ियाँ बेटी के लिए और जमाई के लिए 50 रूपए का बेल्ट लिया अच्छा सा… बचे हुए 75 रूपए नाती को दे दिए कॉपी-पेन्सिल खरीदने के लिए… झाड़ू-पोंछा करते हुए पूरा हिसाब उसकी ज़बान पर रटा हुआ था…
पति- 500 रूपए में इतना कुछ???
वह आश्चर्य से मन ही मन विचार करने लगा…उसकी आँखों के सामने आठ टुकड़े किया हुआ बड़ा सा पिज्ज़ा घूमने लगा, एक-एक टुकड़ा उसके दिमाग में हथौड़ा मारने लगा… अपने एक पिज्जा के खर्च की तुलना वह कामवाली बाई के त्यौहारी खर्च से करने लगा… पहला टुकड़ा बच्चे की ड्रेस का, दूसरा टुकड़ा पेढे का, तीसरा टुकड़ा मंदिर का प्रसाद, चौथा किराए का, पाँचवाँ गुड़िया का, छठवां टुकड़ा चूडियों का, सातवाँ जमाई के बेल्ट का और आठवाँ टुकड़ा बच्चे की कॉपी-पेन्सिल का..आज तक उसने हमेशा पिज्जा की एक ही बाजू देखी थी, कभी पलटाकर नहीं देखा था कि पिज्जा पीछे से कैसा दिखता है… लेकिन आज कामवाली बाई ने उसे पिज्जा की दूसरी बाजू दिखा दी थी… पिज्जा के आठ टुकड़े उसे जीवन का अर्थ समझा गए थे… “जीवन के लिए खर्च” या “खर्च के लिए
जीवन” का नवीन अर्थ एक झटके में उसे समझ आ गया…
अमित समैया गोलू
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સમય કાઢીને વાંચજો
મજા ન આવે તો પૈસા પાછા.☺️
એક ભાઈ બગીચાના બાંકડે બેઠા હતા. પાસે એક બેગ હતી. મુલ્લા નસીરુદ્દીન બગીચામાં ટહેલતાં ટહેલતાં એમની પાસે આવ્યા અને બોલ્યા, ‘બહારના માણસ લાગો છો. તમને ક્યારેય જોયા નથી.
ભાઈ બોલ્યા, ‘હા, હું દૂરના શહેરમાં રહું છું. મારી પાસે બધું છે. પૈસો છે, બંગલો છે, પ્રેમાળ પરિવાર છે, છતાં જીવનમાં મને રસ નથી પડી રહ્યો. એટલે થોડા દિવસની રજા પાડીને ‘મજા પડે એવું કંઈક’ શોધવા નીકળ્યો છું. હું સુખ શોધી રહ્યો છું.
મુલ્લા કંઈ બોલવાને બદલે, એ ભાઈની બેગ આંચકીને ભાગ્યા. પેલો માણસ પણ પાછળ દોડ્યો. મુલ્લા દોડમાં પાક્કા, એટલે ખાસ્સા આગળ નીકળી ગયા. પેલો માણસ હાંફતો હાંફતો એમની પાછળ દોડતો રહ્યો. બે કિલોમીટર દોડ્યા બાદ મુલ્લા રસ્તાને કિનારે એક બાંકડા પર બેસી ગયા.
થોડી વાર પછી પેલો માણસ હાંફતો-હાંફતો પહોંચ્યો. એણે તરાપ મારીને પોતાની બેગ લઈ લીધી. બેગ મળી ગયાનો આનંદ એના ચહેરા પર પ્રગટ્યો, એની બીજી જ પળે એણે ગુસ્સાથી મુલ્લાને કહ્યું, ‘મારી બેગ લઈને કેમ ભાગ્યા?’
મુલ્લા: ‘કેમ વળી? તમે સુખ શોધવા નીકળ્યા છો, તો બોલો, બેગ પાછી મળી જતાં તમને સુખની લાગણી થઈ કે નહીં ? મેં તો તમને સુખ શોધવામાં મદદ કરી.’
આપણામાંના મોટા ભાગના લોકો પણ થોડા અંશે પેલા માણસ જેવા હોઈએ છીએ. જે કંઈ આપણી પાસે છે, એમાંથી ઝાઝું સુખ નથી મળતું. પણ પછી એ ખોવાઈ ગયા બાદ પાછું મળે ત્યારે સારું લાગે.
આવું શા માટે?
એટલે, હવે પછી જ્યારે મૂડ સારો ન હોય, ત્યારે ઘરમાંની બધી વસ્તુઓને શાંતિથી નીરખવી અને પછી વિચારવું કે આ વસ્તુ જો મારી પાસે ન હોય તો કેટલી તકલીફ પડે?
કડકડતી ઠંડીમાં એક અત્યંત ગરીબ માતા પોતાનાં બાળકોના શરીર પર છાપાં પાથરી એના પર ઘાસ ‘ઓઢાડી’ને સૂવડાવી રહી હતી, ત્યારે એના ટેણિયા દીકરાએ ભાઈને પૂછ્યું, ‘હેં ભાઈ? જે લોકો પાસે છાપાં અને ઘાસ નહીં હોય એમની કેવી ખરાબ હાલત થતી હશે?’
આપણી પાસે ઘાસ અને છાપાંથી તો ઘણી સારી વસ્તુઓ ઘરમાં હોય છે, એટલે હવે ક્યારેક ‘હું સુખી નથી… મારી પાસે આ નથી… મારી પાસે તે નથી… એવું લાગે ત્યારે એક નજર જે કંઈ આપણી પાસે છે તેના પર નાખી જોવી.
જેમ કે, આવો સરસ મજાનો લેખ તમે ઓનલાઇન વાંચી શકો છો, તેના પરથી આટલી બાબત સાબિત થાય છે-
- તમે ગરીબ નથી. (સમગ્ર વિશ્વમાં આશરે 112 કરોડ લોકો ગરીબી રેખા નીચે જીવે છે.)
- તમારી જાતને ઠંડી, ગરમી અને વરસાદ સામે રક્ષણ આપવા આશરો છે જે વિશ્વમાં લગભગ 130 કરોડ લોકો પાસે નથી.
- તમે શાંતિથી બેસીને વાંચી શકો છો, મતલબ કે તમે અત્યંત માંદા નથી. (દુનિયામાં કોઈ પણ સમયે આશરે 120 કરોડ લોકો બીમાર હોય છે)
- તમારી પાસે આટલો સારો મોબાઇલ છે જે દુનિયાના 198 કરોડ લોકો પાસે નથી.
- તમને પીવાનું પાણી ઘેર બેઠા મળી રહેતું હશે, જે વિશ્વમાં આશરે 180 કરોડ લોકોને નથી મળતું.
- તમારા ઘેર વીજળી હશે, (મોબાઇલ charging તો જ થતુ હોય ને) જે જગતના 18 કરોડ ઘરમાં નથી.
- તમે મોજથી જીવવા વાળા વ્યક્તિ છો, એટલે જ તો મોજ થી સુતા છો.. અને જો બેઠા હશો તો પગ ઉપર પગ ચડાવીને બેઠા હશો. આવી નિરાંત દુનિયાના અનેક કરોડોપતિ પાસે પણ નથી.
- આજ સવારે તમે ઉઠ્યા ત્યારે વિશ્વના 88,400 લોકો પોતાની ઊંઘમાં જ મૃત્યુ પામ્યા. આવુ દરરોજ બને છે.
- તમે આ બધું વાંચી શક્યા. મતલબ કે તમને લખતા વાંચતા આવડે છે માટે તમે આ વિશ્વના 140 કરોડ નિરક્ષર લોકો કરતા નસીબદાર છો જેઓને વાંચતા આવડતું નથી. રવિ ઝાલા
ઔર જીને કો ક્યા ચાહિયે ?
આટલો મસ્ત લેખ તમે અત્યારે વાંચી રહ્યા છો, તો પછી છોડો ફરિયાદો, અને આભાર માનો ઈશ્વરનો, નસીબનો, પુરુષાર્થનો કે, જીવન મસ્ત છે. સવારે ઊઠીને આપણો પ્રથમ શબ્દ કયો હોવો જોઈએ ખબર છે? Thank you, God..
ગમે તો આ સુખ બીજા સાથે વહેચશો, મજા આવશે
નિલેશ દવે

मीना कुमारी …. फिल्मो में ट्रेजेडी रोल करते करते खुद की जिन्दगी भी ट्रेजेडी बना ली …..
मीना कुमारी की नानी गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के छोटे भाई की बेटी थी, जो जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही प्यारेलाल नामक युवक के साथ भाग गई थीं। विधवा हो जाने पर उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया। दो बेटे और एक बेटी को लेकर बम्बई आ गईं। नाचने-गाने की कला में माहिर थीं इसलिए बेटी प्रभावती के साथ पारसी थिएटर में भरती हो गईं।
प्रभावती की मुलाकात थिएटर के हारमोनियम वादक मास्टर अली बख्श से हुई। उन्होंने प्रभावती से निकाह कर उसे इकबाल बानो बना दिया। अली बख्श से इकबाल को तीन संतान हुईं। खुर्शीद, महजबीं बानों (मीना कुमारी) और तीसरी महलका (माधुरी)।
अली बख्श रंगीन मिजाज के व्यक्ति थे। घर की नौकरानी से नजरें चार हुईं और खुले आम रोमांस चलने लगा। और मीना कुमारी का बाप अपनी नौकरानी से भी निकाह कर लिया |
मीना कुमारी को कई लोगो से प्यार हुआ .. लेकिन सबने उन्हें इस्तेमाल करके उन्हें छोड़ दिया … धर्मेंद्र, सम्पूरन सिंह उर्फ़ गुलजार, महेश भट्ट, और शौहर कमाल अमरोही … सबने मीना कुमारी का खूब इस्तेमाल किया .. यहाँ तक की मीना कुमारी का बाप भी अपनी बेटी को सिर्फ पैसे कमाने की मशीन ही समझता था और पुरे परिवार का खर्चा मीना कुमारी से ही लेता था .. यहाँ तक की उनकी सभी बहने भी मीना कुमारी से हमेशा पैसे लेती रहती थी |
कमाल अमरोही मीना कुमारी से २७ साल बड़े थे | मीना कुमारी का पूना में एक्सीडेंट हुआ और वो अस्पताल में भर्ती थी ..कमाल अमरोही ने उनकी खूब सेवा की जिससे मीना कुमारी का दिल उस पर आ गया .. और दोनों ने निकाह कर लिया … मजे की बात ये की कमाल अमरोही की पहले से ही दो बेगमे थी ..एक उनके साथ मुंबई में और दूसरी उनके शहर यूपी के अमरोहा में रहती थी .और कमाल के आठ बच्चे थे | मीना कुमारी मुंबई की जिन्दगी से तंग आ गयी थी और कमाल अमरोही से बार बार कहती थी की कमाल तुम मुझे अपने गाँव अमरोहा ले चलो .मै वही रहना चाहती हूँ .. एक बार कमाल उन्हें साथ लेकर गये तो कमाल के घर वालो ने मीना कुमारी से बहुत दुर्व्यवहार किया और कहा कमाल तुमने तो किसी वेश्या से निकाह किया है |
बाद में उनका कमाल अमरोही से तलाक हो गया … फिर उन्होने कमाल से दुबारा निकाह किया …. इस्लामिक नियमो के अनुसार यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी को तलाक देता है तो वो दुबारा उस महिला से निकाह नही कर सकता ..पहले उस महिला को किसी अन्य पुरुष से निकाह करना होगा फिर वो पुरुष उसे तलाक देगा फिर वो महिला अपने पूर्व पति से दुबारा निकाह कर सकती है ..
मीना कुमारी ने जीनत अमान के पिता के साथ निकाह किया फिर उनसे तलाक लेकर कमाल अमरोही से दुबारा निकाह किया …लेकिन कमाल निकाह के बाद अपनी जिन्दगी में चला गया |
लेकिन बाद में उन्होंने अपने आपको शराब में डुबो लिया था .. वो हर वक्त शराब पीती रहती थी .. शराब ने उनके लीवर को खत्म कर दिया था और वो मानसिक रूप से एकदम टूट गयी थी ..उन्हें कैंसर हो गया और उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा |
अस्पताल में ही उनकी मौत हो गयी .. और किसी ने भी उनके ईलाज पर १ रूपये भी नही खर्च किया ..
इसी सभ्य समाज में मशहूर फिल्म अभिनेत्री मीना कुमारी की लाश को लावारिश घोषित करने की नौबत आ गयी थी …उन्हें कैंसर हो गया था कई अंतिम समय में कई महीनों तक अस्पताल में रहना पड़ा था ..और उनकी अस्पताल में ही मौत हो गयी थी
मीना कुमारी के पति कमाल अमरोही ने अस्पताल में कहा की मैंने तो उन्हें तलाक दे दिया था … उसने सौतेले पुत्र ताजदार अमरोही ने कहा की मेरा उनसे कोई वास्ता नही है … उनके छोटी बहन के पति मशहूर कामेडियन महमूद ने कहा की मै क्यों ८०००० दूँ ?
और तो और जिस धर्मेन्द्र को फगवाडा से मुंबई बुलाकर स्टार बनाया वो भी बिल का नाम सुनते ही खिसक गया |
फिर जिस सम्पूरन सिंह कालरा को मीना कुमारी ने झेलम की गलियों से मुंबई बुलाकर “गुलज़ार” बनाया उस गुलज़ार ने कहा की मै तो कवि हूँ और कवि के पास इतना पैसा कहा …जबकि उसी गुलज़ार ने एक मुशायरे में जिसमे मीना कुमारी भी थी कहा था “ये तेरा अक्स है तो पड़ रहा है मेरे चेहरे पर ..वरना अंधेरो में कौन पहचानता मुझे “
हर टीवी चैनेल पर आकर मुस्लिम हितों पर बड़ी बड़ी बाते करने वाला महेश भट्ट बोला मै पैसे क्यों दूँ ?
. जिससे अस्पताल वालो को कहना पड़ा की अब हमे मीना कुमारी जी की लाश को लावारिश घोषित करके बीएमसी वालो को देना पडेगा … जब ये खबर अखबारों में छपी तबएक अनजान पारसी व्यक्ति अस्पताल आया और बिल चुकाकर मीना कुमारी के शव को सम्मान के साथ इस्लामिक विधि से कब्रिस्तान में दफन करवाया