Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक दिन एक प्रोफ़ेसर अपनी क्लास में आते ही बोला


एक दिन एक प्रोफ़ेसर अपनी क्लास में आते ही बोला, “चलिए, surprise test के लिए तैयार हो जाइये ।

सभी स्टूडेंट्स घबरा गए… कुछ किताबों के पन्ने पलटने लगे तो कुछ सर के दिए नोट्स जल्दी-जल्दी पढने लगे ।

“ये सब कुछ काम नहीं आएगा….”, प्रोफेसर मुस्कुराते हुए बोले, “मैं Question paper आप सबके सामने रख रहा हूँ, जब सारे पेपर बट जाएं तभी आप उसे पलट कर देखिएगा” पेपर बाँट दिए गए ।

“ठीक है ! अब आप पेपर देख सकते हैं, प्रोफेसर ने निर्देश दिया ।

अगले ही क्षण सभी Question paper को निहार रहे थे, पर ये क्या ? इसमें तो कोई प्रश्न ही नहीं था ! था तो सिर्फ वाइट पेपर पर एक ब्लैक स्पॉट!

ये क्या सर ? इसमें तो कोई question ही नहीं है, एक छात्र खड़ा होकर बोला ।

प्रोफ़ेसर बोले, “जो कुछ भी है आपके सामने है । आपको बस इसी को एक्सप्लेन करना है… और इस काम के लिए आपके पास सिर्फ 10 मिनट हैं…चलिए शुरू हो जाइए…”

स्टूडेंट्स के पास कोई चारा नहीं था…वे अपने-अपने answer लिखने लगे ।

समय ख़त्म हुआ, प्रोफेसर ने answer sheets collect की और बारी-बारी से उन्हें पढने लगे ।

लगभग सभी ने “ब्लैक स्पॉट” को अपनी-अपनी तरह से समझाने की कोशिश की थी, लेकिन किसी ने भी उस स्पॉट के चारों ओर मौजूद white space के बारे में बात नहीं की थी ।

प्रोफ़ेसर गंभीर होते हुए बोले, “इस टेस्ट का आपके academics से कोई लेना-देना नहीं है और ना ही मैं इसके कोई मार्क्स देने वाला हूँ…. इस टेस्ट के पीछे मेरा एक ही मकसद है । मैं आपको जीवन की एक अद्भुत सच्चाई बताना चाहता हूँ…

देखिये… इस पूरे पेपर का 99.9% हिस्सा सफ़ेद है…लेकिन आप में से किसी ने भी इसके बारे में नहीं लिखा और अपना 100% answer सिर्फ उस एक चीज को explain करने में लगा दिया जो मात्र .1% है… और यही बात हमारे life में भी देखने को मिलती है…

समस्याएं हमारे जीवन का एक छोटा सा हिस्सा होती हैं, लेकिन हम अपना पूरा ध्यान इन्ही पर लगा देते हैं… कोई दिन रात अपने looks को लेकर परेशान रहता है तो कोई अपने करियर को लेकर चिंता में डूबा रहता है, तो कोई और बस पैसों का रोना रोता रहता है ।

क्यों नहीं हम अपनी blessings को count करके खुश होते हैं…क्यों नहीं हम पेट भर खाने के लिए भगवान को थैंक्स कहते हैं…क्यों नहीं हम अपनी प्यारी सी फैमिली के लिए शुक्रगुजार होते हैं…. क्यों नहीं हम लाइफ की उन 99% चीजों की तरफ ध्यान देते हैं जो सचमुच हमारे जीवन को अच्छा बनाती हैं ।

तो चलिए आज से हम life की problems को ज़रुरत से ज्यादा seriously लेना छोडें और जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को ENJOY करना सीखें ….

तभी हम ज़िन्दगी को सही मायने में जी पायेंगे..

मनीष कुमार सोलंकी

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गोलू अपने मां-बाप का इकलौता बेटा था। गोलू की मां लोगों के घर काम करती थी। उसका पिता दिहाड़ी मजदूर का काम करता था। गोलू के माता पिता गोलू को बहुत प्यार करते थे। वह जितना भी कमाते वह गोलू की हर इच्छा को पूरा करते थे। सबसे पहले जो भी चीज आती गोलू का उस पर सबसे पहले अधिकार होता।

एक दिन गोलू की मां जिस घर में बहुत सालों से काम करती थी उस घर की मालकिन अब बहुत बूढी हो चुकी थी। उसका बेटा बहू विदेश में रहते थे। गोलू की मां उसके घर का सारा काम करती थी। उसकी मालकिन के घर युगल सरकार की सेवा थी। अधिक बूढ़ी होने के कारण अब उसकी मालकिन युगल सरकार की सेवा नहीं कर पाती थी तो एक दिन उसने गोलू की मां को पूछा कि, क्या तुम मेरे इस युगल सरकार की सेवा को स्वीकार करोगी?

गोलू की मां जो कि काफी सालों से उसके घर काम कर रही थी और वह अपनी मालकिन को युगल सरकार की सेवा करते हुए देखती थी तो उसकी भी पूरी श्रद्धा युगल सरकार के प्रति थी।

उसने जल्दी जल्दी से बोला – हां मां जी! क्यों नहीं? यह तो मेरा सौभाग्य होगा जो ठाकुर जी और किशोरी जी की सेवा मुझे प्राप्त होगी। मैं तो धन्य हो उंठूगी।

मालकिन ने कहा कि सोच लो इनकी सेवा बहुत कठिन है। इनको भोग लगाना, स्नान कराना नए-नए वस्त्र पहनाना क्या तुम कर लोगी?

उसने कहा – हां हां मांजी! क्यों नहीं? मुझे स्वीकार है। आप मुझे सेवा दे सकते हैं।

मालकिन ठाकुर जी और किशोरी जी को बहुत प्यार करती थी लेकिन वह उनकी सेवा ना कर पाने के कारण लाचार थी तो बड़ी मजबूरी में उसने भरी आंखों से किशोरी जी और ठाकुर जी को गोलू की मां की झोली में डाल दिया और कहा – आज से इनकी सेवा तुम्हारा जिम्मा! यह मेरे घर का सबसे बड़ा खजाना है। आज से यह खजाना तुम्हारा हुआ।

गोलू की मां खुशी से झूमने लगी और घर आकर उसने एक साफ चौंकी पर कपड़ा बिछाकर युगल सरकार को स्थापित किया तभी बाहर से गोलू भागा भागा अंदर आया और मां से पूछता है कि, मां यह कौन है? क्या यह हमारे घर मेहमान आए हैं?

उसकी मां बोली – बेटा! यह मेहमान नहीं, यह हमारे घर के मालिक हैं। यह हमारे ईश्वर हैं। आज से यह हमारे घर ही रहेंगे।

गोलू हैरान होकर ठाकुर जी और किशोरी जी की ओर तिरछी नजरों से देखने लगा कि यह ईश्वर कैसे हो सकते हैं? यह घर के मालिक कैसे हो सकते हैं? वह बोला कुछ नहीं और चुपचाप अंदर चला गया।

अब तो घर में जब भी कोई नई चीज बनती चाहे हलवा हो, चाहे कचोरी हो, चाहे खीर हो तो सबसे पहले ठाकुर जी और किशोरी जी को भोग लगता! यह सब चीजें पहले गोलू को सबसे पहले मिलती थीं। अब ठाकुर जी को भोग लगता था तो गोलू बहुत चिढ़ता!

मां को कहता कि, यह क्या बात हुई? यह तो अब थोड़े दिनों पहले ही आए हैं और आप इनका इतना ध्यान रखती हो! मैं जो कि तेरा बेटा हूं, मुझे इनके बाद चीजें क्यों मिलती हैं?

मां हंसकर बोली – बेटा! यह हमारे भगवान हैं।भगवान को भोग लगाकर ही हम खाते हैं लेकिन गोलू को इन बातों से कोई मतलब नहीं था वह तो अब युगल सरकार से चिढ़ने लगा।

आते जाते उनको घूर कर जाता और मुंह में बड़बड़ करता जाता। जब से आए हैं तब से मुझे तो कोई पूछता ही नहीं है तो ठाकुर जी की प्रतिमा और किशोरी जी की प्रतिमा मंद-मंद मुस्कुराती रहती और गोलू और चिढ़ जाता कि यह मुझे चिढ़ाने के लिए हंस रहे हैं।

एक दिन गोलू की मां काम पर जाने लगी और गोलू को कहती कि गोलू! यमुना जी से मटके में जल भरकर लाना आज मैं थोड़ा देर से आऊंगी।

गोलू कुछ ना बोला। जब वह पानी भरने के लिए जाने लगा तो जाते-जाते किशोरी जी ठाकुर जी को कहता खाने के लिए तो सबसे पहले तैयार रहते हो लेकिन काम तो मुझे ही करना पड़ता है। काम करने के बावजूद भी मुझे तो आपसे बाद में खाना मिलता है। अगर यहां रहना है तो काम करो। कह कर वह यमुना जी से जल भरने के लिए चल पड़ा।

जब यमुना जी में जल भरने लगा तो तभी उसे आवाज आई – ला गोलू! घडा मुझे दो। मैं भर देता हूं तो गोलू ने इधर-उधर देखा कि वहां कोई नहीं था, फिर वही आवाज आई तो गोलू ने देखा यमुना जी के अंदर ठाकुर जी और किशोरी जी विराजमान है और दोनों बाजू ऊपर उठाकर कह रहे हैं – ला गोलू! घडा हम भर देते हैं।

गोलू उन दोनों को देखकर एकदम से हैरान हो गया तो बोला – नहीं नहीं! मैं अपने आप भर लूंगा लेकिन ठाकुर जी ने उसके हाथ से घड़ा ले लिया और भरकर उसके पीछे पीछे घर ले आए।

गोलू तो एकदम से हक्का-बक्का हो गया था। उसको कुछ नहीं सूझ रहा था। वह घर आकर चुपचाप एक कोने में बैठ गया और डर रहा था कि अगर मां को पता लगा कि मैंने ठाकुर जी और किशोरी जी से काम करवाया है तो आज तो मेरी पिटाई पक्की होगी।

जब उसकी मां घर आई तो उनके आते ही गोलू बोला – मां मैंने नहीं कहा था इनको पानी भरने के लिए, यह खुद ही आ गए थे मेरे पीछे पीछे! अब देखो गीले कपड़ों में बैठे हुए हैं तो गोलू की मां ने जब किशोरी जी और ठाकुर जी को गीले कपड़ों में देखा तो एकदम से हैरान हो गई और कहने लगी कि, यह जरूर तेरी शरारत है। तूने जरूर इन पर जल डाला है और अब बातें बना रहा है।

गोलू ने अपनी मां को समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन मां ने उसको डांट कर चुप करा दिया और ठाकुर जी के वस्त्र को बदलने लगी।

अब तो गोलू को युगल सरकार पर और गुस्सा आया। इनके कारण मुझे डांट पड़ी है मैंने तो नहीं इनको बोला था काम करने के लिए! अगले दिन मां फिर काम पर गई और गोलू को बोली – गोलू! तेरे बाबा कुछ काम से बाहर गए हैं और घर में अनाज नहीं है तो कुछ अनाज लेकर चक्की से पिसवा लाना तब तक मैं लोगों के घर का काम करके आती हूं।

गोलू ने हामी भर दी। गोलू ने अनाज का कनस्तर धीरे से उठाया कि कहीं फिर ना युगल सरकार मेरे पीछे आ जाएँ और दबे पाँव घर से बाहर निकल गया लेकिन यह क्या ठाकुर जी और किशोरी जी तो वहां पहले से ही खड़े थे और गोलू के हाथ से कनस्तर लेकर अनाज पिसवा कर घर ले आए।

घर आकर गोलू का डर के मारे फिर बुरा हाल था कि अगर मां को पता चल गया आज उन्होंने फिर काम किया है तो मां फिर मुझे डांट लगाएगी। वह चुपचाप दरवाजे की ओट में छिप गया।

जब मां आई तो उसने ठाकुर जी और किशोरी जी के वस्त्र ऊपर सूखा आटा पड़ा देखा तो वह गोलू-गोलू कह कर चिल्लाने लगी कि तुझे नहीं पता कि यह हमारे भगवान है और तू भगवान के साथ शरारत करता है। आज तूने फिर इनके ऊपर आटा फैंका है तो गोलू शपथ लेकर कहने लगा – नहीं मां! यह तो मेरे हाथ से गेहूं का कनस्तर लेकर खुद पिसवा कर आए हैं तो गोलू की मां आज बहुत गुस्सा हुई और बोली तू तो जानबूझकर किशोरी जी और ठाकुर जी पर इल्जाम लगा रहे हो। वह तो हमारे भगवान हैं। आज तुझे खाना नहीं मिलेगा। आज तुम्हारी यही सजा है।

गोलू मन ही मन ठाकुर जी और किशोरी जी पर गुस्सा करता हुआ अंदर कमरे में जाकर चुपचाप बैठ गया। जब उसकी मां का थोड़ा गुस्सा शांत हुआ तो उसने आकर गोलू को बड़े प्यार से समझाया कि ऐसे हमें अपने भगवान को नहीं सताना चाहिए तो गोलू आंखों में आंसू भरकर रह गया लेकिन बोला कुछ नहीं।

अगले दिन फिर उसकी मां बोली – बेटा! आज तुम्हारे बाबा ने आ जाना है। बस आज का ही काम है। तुम जंगल से थोड़ी लकड़ियाँ ले आओ ताकि मैं आकर भोजन बना सकूं! अगर मैं लेने गई तो काफी समय लग जाएगा। बस आज का ही काम कर दो। गोलू फिर डर गया। कहीं ठाकुर जी और किशोरी जी फिर मेरे पीछे ना आ जाएँ।

गोलू ने मां को बोला कि, मैं चला तो जाऊंगा लेकिन अपनी युगल सरकार को समझा लो वह मेरे पीछे ना आएँ।

उसकी मां हंसकर बोली – हां-हां! समझा दूंगी। तुम जाओ तो सही।

गोलू जल्दी-जल्दी लकड़ियां लेने जंगल में चला गया तो उसकी मां काम पर चली गई लेकिन उसकी मां काम से जल्दी वापस आ गई। जब घर वापस आई तो उसने देखा युगल सरकार अपनी चौकी पर विराजमान नहीं है वह तो एकदम से घबरा गई कि कहीं गोलू की शरारत तो नहीं कहीं युगल सरकार को कहीं रख तो नहीं आया तो वह भागी भागी जंगल की तरफ गई तभी उसने देखा कि गोलू के साथ दो लोग और लकड़ियों को लेकर घर आ रहे हैं।

गोलू की मां यह देखकर हैरान हो गई कि यह तो किशोरी जी और ठाकुर जी हैं। वह तो एकदम से हैरान परेशान होकर मूर्छित होते होते बची। यह क्या हमारे भगवान हमारा काम कर रहे हैं? इसका अर्थ गोलू ठीक कह रहा था।

वह जल्दी-जल्दी भागकर ठाकुर जी और किशोरी जी के पास गई और लकड़ियाँ उनके हाथ से लेते हुए उनके चरणों में गिर कर रोती हुई बोली – हे भगवान! हे लाडली जू सरकार! यह आप क्या कर रहे हो? मुझ गरीब का काम क्यों कर रहे हो?

ठाकुर जी और किशोरी जी मुस्कुराते हुए बोले – हमे तो तेरे बेटे पर बहुत प्यार आता है। सब लोग हमें भगवान समझते हैं लेकिन एक तेरा बेटा ही था जो हम को अपना मानता था। अपना मान कर वो हमें डांट भी देता था। हमारे साथ गुस्सा भी करता था। वह हमारे साथ ऐसा व्यवहार करता था कि जैसे हम उसके अपने हैं। शेष लोग तो हमें भगवान मानकर हमारी पूजा करते हैं और हमें जो एक बार अपना मान लेता है तो हम उसके मान के लिए उसके ही हो जाते हैं। तुम्हारा बेटा गोलू बहुत ही भोला है और उसके मन में कोई पाप नहीं इसलिए हमें गोलू के साथ काम करने में कोई लज्जा नहीं!

गोलू उनकी बातें सुन रहा था। वह आकर अपनी मां के पास साथ बैठ गया और हाथ जोड़कर ठाकुर जी से प्रार्थना करने लगा – हे श्यामा श्याम जू! मुझे नहीं पता था कि आप भगवान हो! मैंने भूलवश आपको कई बातें सुना दीं। मेरी भूल को क्षमा करो।

भगवान ने उसको उठाकर अपने हृदय से लगाते हुए कहा – नहीं नहीं गोलू! तू तो हमारा बहुत प्रिय सखा है। तुम जैसे भोले भाले भक्त हम को बहुत प्रिय हैं। पापी और दुराचारी लोगों से तो दुनिया भरी पड़ी है। तुम जैसे लोग तो कम ही इस दुनिया में हैं। ठाकुर जी और किशोरी जी उस घर में ईश्वर के रूप में ना रहकर उनके घर का सदस्य बनकर रहने लगे।
🙏🏽🙏🏻🙏🏿जय जय श्री राधे🙏🙏🏼🙏🏾

लष्मीकांत विजयगढिया

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. अंहकार अंधकार है नानक जी अपने दोनों शिष्यो बाला और मरदाना के साथ गुरु नानक श्रीनगर कश्मीर यात्रा पर गए। वहां लोग गुरु नानक देव की सरलता से परिचित थे। एक दिन गुरु नानक वहां लोगों से मिलने और सतसंग करने के लिए आये तो हज़ारों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। श्रीनगर में उस समय पर एक पंडित हुआ करते थे, जिनका नाम ब्रह्मदास था। दैवी उपासना और आराधना में प्रवीण होने पर उनके पास कई असाधारण सिद्धि थीं। अपना कौशल दिखाने के लिए ब्रह्मदास उड़ती चटाई पर सवार हो कर गुरु नानक के पास पहुंचे। स्थान पर पहुँच कर देखा तो लोगों का जमावड़ा था। लेकिन गुरु नानक देव कहीं नज़र नहीं आ रहे थे। इधर उधर झाँक कर ब्रह्मदास नें लोगों से पूछा, कहाँ है गुरु नानक देव? तब लोगों नें कहा, आप के सामने ही तो वह बैठे हैं। उड़ती चटाई पर सवार ब्रह्मदास नें सोचा की लोग शायद उसका मज़ाक बना रहे हैं, वहां गुरु नानक तो है ही नहीं। यह सोच कर वह जाने लगा तो, उसकी चटाई ज़मीन पर आ पड़ी और साथ वह भी नीचे आ गिरा। इस घटना के कारण वहां उसकी खूब किरकिरी हुई, उसे अपनी चटाई कंधे पर लाद कर घर जाना पड़ा। घर जा कर उसने अपने नौकर से पूछा की, मुझे गुरु नानक क्यों नहीं दिखे? तब उनका शालीन नौकर बोला, शायद आप के आँखों पर अहम की पट्टी बंधी थी। अगले दिन पंडित ब्रह्मदास विनम्रता के साथ चल कर वहां गया। उसने देखा तेज मुखी गुरु नानक वहीँ विराजमान थे। वह लोगों के साथ सत्संग कर रहे थे। तभी ब्रह्मदास से रहा नहीं गया, उसने गुरु नानक से सवाल किया, कल मैं चटाई पर उड़ कर आया था, लेकिन तब आप मुझे आप क्यों नहीं दिखे थे? तब गुरु नानक बोले, इतने अंधकार में भला मैं तुमको कैसे दिखता। यह सुन कर ब्रह्मदास बोला, अरे… अरे… मैं तो दिन के उजाले में आया था। ऊपर आसमान में तो चमकता सूरज मौजूद था, तो अंधकार कैसे हुआ? गुरु नानक नें कहा- अहंकार से बड़ा कोई अंधकार है क्या? अपने ज्ञान और आकाश में उड़ने की सिद्धि के कारण तुम खुद को अन्य लोगों से ऊँचा समझने लगे। अपने चारो तरफ़ देखो, कीट-पतंगे, जंतु, पक्षी भी उड़ रहे हैं। क्या तुम इनके समान बनना चाहते हो? ब्रह्मदास को अपनी भूल समझ आ गयी। उसने गुरु नानक से मन की शांति और उन्नति का ज्ञान लिया और भविष्य में कभी अपनी सिद्धिओं पर अभिमान नहीं किया।

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एक आदमी ❄बर्फ बनाने वाली कम्पनी में काम करता था_
एक दिन कारखाना बन्द होने से पहले अकेला फ्रिज करने वाले कमरे का चक्कर लगाने गया तो गलती से दरवाजा बंद हो गया
और वह अंदर बर्फ वाले हिस्से में फंस गया..
छुट्टी का वक़्त था और सब काम करने वाले लोग घर जा रहे थे
किसी ने भी अधिक ध्यान नहीं दिया की कोई अंदर फंस गया है।
वह समझ गया की दो-तीन घंटे बाद उसका शरीर बर्फ बन जाएगा अब जब मौत सामने नजर आने लगी तो
भगवान को सच्चे मन से याद करने लगा।
अपने कर्मों की क्षमा मांगने लगा और भगवान से कहा कि
प्रभु अगर मैंने जिंदगी में कोई एक काम भी मानवता व धर्म का किया है तो तूम मुझे यहाँ से बाहर निकालो।
मेरे बीवी बच्चे मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे। उनका पेट पालने वाला इस दुनिया में सिर्फ मैं ही हूँ।
मैं पुरे जीवन आपके इस उपकार को याद रखूंगा और इतना कहते कहते उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे।
एक घंटे ही गुजरे थे कि अचानक फ़्रीजर रूम में खट खट की आवाज हुई।
दरवाजा खुला चौकीदार भागता हुआ आया।
उस आदमी को उठाकर बाहर निकाला और 🔥 गर्म हीटर के पास ले गया।
उसकी हालत कुछ देर बाद ठीक हुई तो उसने चौकीदार से पूछा, आप अंदर कैसे आए ?
चौकीदार बोला कि साहब मैं 20 साल से यहां काम कर रहा हूं। इस कारखाने में काम करते हुए हर रोज सैकड़ों मजदूर और ऑफिसर कारखाने में आते जाते हैं।
मैं देखता हूं लेकिन आप उन कुछ लोगों में से हो, जो जब भी कारखाने में आते हो तो मुझसे हंस कर
राम राम करते हो
और हालचाल पूछते हो और निकलते हुए आपका
राम राम (भगवान को याद)काका
कहना मेरी सारे दिन की थकावट दूर कर देता है।
जबकि अक्सर लोग मेरे पास से यूं गुजर जाते हैं कि जैसे मैं हूं ही नहीं।
आज हर दिनों की तरह मैंने आपका आते हुए अभिवादन तो सुना लेकिन
राम राम (भगवान को याद)काका
सुनने के लिए इंतज़ार
करता रहा।
जब ज्यादा देर हो गई तो मैं आपको तलाश करने चल पड़ा कि कहीं आप किसी मुश्किल में ना फंसे हो।
वह आदमी हैरान हो गया कि किसी को हंसकर
राम राम(भगवान को याद) कहने जैसे छोटे काम की वजह से आज उसकी जान बच गई।
*राम राम (भगवान को याद) करो
मीठे बोल बोलो,
संवर जाओगे,
सब की अपनी जिंदगी है
यहाँ कोई किसी का नही खाता है।
जो दोगे औरों को,
वही वापस लौट कर आता है।

मुकुल शर्मा

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बेईमानी का पैसा
पेट की एक-एक आंत
फाड़कर निकलता है। *एक सच्ची कहानी।*

रमेश चंद्र शर्मा, जो पंजाब के ‘खन्ना’ नामक शहर में एक मेडिकल स्टोर चलाते थे,
उन्होंने अपने जीवन का एक पृष्ठ खोल कर सुनाया
जो पाठकों की आँखें भी खोल सकता है
और शायद उस पाप से, जिस में वह भागीदार बना, उस से भी बचा सकता है।
मेडिकल स्टोर अपने स्थान के कारण, काफी पुराना और अच्छी स्थिति में था।
लेकिन जैसे कि कहा जाता है कि धन एक व्यक्ति के दिमाग को भ्रष्ट कर देता है
और यही बात रमेश चंद्र जी के साथ भी घटित हुई।

रमेश जी बताते हैं कि मेरा मेडिकल स्टोर बहुत अच्छी तरह से चलता था और मेरी आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी थी।

अपनी कमाई से मैंने जमीन और कुछ प्लॉट खरीदे और अपने मेडिकल स्टोर के साथ एक क्लीनिकल लेबोरेटरी भी खोल ली।

लेकिन मैं यहां झूठ नहीं बोलूंगा। मैं एक बहुत ही लालची किस्म का आदमी था, क्योंकि मेडिकल फील्ड में दोगुनी नहीं, बल्कि कई गुना कमाई होती है।

शायद ज्यादातर लोग इस बारे में नहीं जानते होंगे, कि मेडिकल प्रोफेशन में 10 रुपये में आने वाली दवा आराम से 70-80 रुपये में बिक जाती है।

लेकिन अगर कोई मुझसे कभी दो रुपये भी कम करने को कहता तो मैं ग्राहक को मना कर देता।
खैर, मैं हर किसी के बारे में बात नहीं कर रहा हूं, सिर्फ अपनी बात कर रहा हूं।

वर्ष 2008 में, गर्मी के दिनों में एक बूढ़ा व्यक्ति मेरे स्टोर में आया।
उसने मुझे डॉक्टर की पर्ची दी। मैंने दवा पढ़ी और उसे निकाल लिया। उस दवा का बिल 560 रुपये बन गया।

लेकिन बूढ़ा सोच रहा था। उसने अपनी सारी जेब खाली कर दी लेकिन उसके पास कुल 180 रुपये थे। मैं उस समय बहुत गुस्से में था क्योंकि मुझे काफी समय लगा कर उस बूढ़े व्यक्ति की दवा निकालनी पड़ी थी और ऊपर से उसके पास पर्याप्त पैसे भी नहीं थे।

बूढ़ा दवा लेने से मना भी नहीं कर पा रहा था। शायद उसे दवा की सख्त जरूरत थी।
फिर उस बूढ़े व्यक्ति ने कहा, “मेरी मदद करो। मेरे पास कम पैसे हैं और मेरी पत्नी बीमार है।
हमारे बच्चे भी हमें पूछते नहीं हैं। मैं अपनी पत्नी को इस तरह वृद्धावस्था में मरते हुए नहीं देख सकता।”

लेकिन मैंने उस समय उस बूढ़े व्यक्ति की बात नहीं सुनी और उसे दवा वापस छोड़ने के लिए कहा।

यहां पर मैं एक बात कहना चाहूंगा कि वास्तव में उस बूढ़े व्यक्ति की दवा की कुल राशि 120 रुपये ही बनती थी। अगर मैंने उससे 150 रुपये भी ले लिए होते तो भी मुझे 30 रुपये का मुनाफा ही होता।
लेकिन मेरे लालच ने उस बूढ़े लाचार व्यक्ति को भी नहीं छोड़ा।

फिर मेरी दुकान पर खड़े एक दूसरे ग्राहक ने अपनी जेब से पैसे निकाले और उस बूढ़े आदमी के लिए दवा खरीदी।
लेकिन इसका भी मुझ पर कोई असर नहीं हुआ। मैंने पैसे लिए और बूढ़े को दवाई दे दी।

वक्त बीतता चला…..
वर्ष 2009 आ गया। मेरे इकलौते बेटे को ब्रेन ट्यूमर हो गया।
पहले तो हमें पता ही नहीं चला। लेकिन जब पता चला तो बेटा मृत्यु के कगार पर था।
पैसा बहता रहा और लड़के की बीमारी खराब होती गई।

प्लॉट बिक गए, जमीन बिक गई और आखिरकार मेडिकल स्टोर भी बिक गया लेकिन मेरे बेटे की तबीयत बिल्कुल नहीं सुधरी।
उसका ऑपरेशन भी हुआ और जब सब पैसा खत्म हो गया तो आखिरकार डॉक्टरों ने मुझे अपने बेटे को घर ले जाने और उसकी सेवा करने के लिए कहा।

उसके पश्चात 2012 में मेरे बेटे का निधन हो गया। मैं जीवन भर कमाने के बाद भी उसे बचा नहीं सका।

2015 में मुझे भी लकवा मार गया और मुझे चोट भी लग गई।
आज जब मेरी दवा आती है तो उन दवाओं पर खर्च किया गया पैसा मुझे काटता है
क्योंकि मैं उन दवाओं की वास्तविक कीमत को जानता हूं।

एक दिन मैं कुछ दवाई लेने के लिए मेडिकल स्टोर पर गया और 100 रु का इंजेक्शन मुझे 700 रु में दिया गया।
लेकिन उस समय मेरी जेब में 500 रुपये ही थे और इंजेक्शन के बिना ही मुझे मेडिकल स्टोर से वापस आना पड़ा।
उस समय मुझे उस बूढ़े व्यक्ति की बहुत याद आई और मैं घर चला गया।

मैं लोगों से कहना चाहता हूं, कि ठीक है कि हम सभी कमाने के लिए बैठे हैं
क्योंकि हर किसी के पास एक पेट है। लेकिन वैध तरीके से कमाएं, ईमानदारी से कमाएं ।
गरीब लाचारों को लूट कर कमाई करना अच्छी बात नहीं है,
क्योंकि नरक और स्वर्ग केवल इस धरती पर ही हैं, कहीं और नहीं। और आज मैं नरक भुगत रहा हूं।

पैसा हमेशा मदद नहीं करता। हमेशा ईश्वर के भय से चलो।
उसका नियम अटल है क्योंकि
कई बार एक छोटा सा लालच भी हमें बहुत बड़े दुख में धकेल सकता है।
🙏🙏

लष्मीकांत विजयगढिया

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एक बार एक संत सोने की भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा बेचने के लिए एक स्वर्णकार के पास गए…

चूँकि, भगवान भगवान की प्रतिमा… भीतर से खोखली थो तो वो दस ग्राम की थे…. पर, उनका सांप ठोस था इसीलिए, वो साढ़े ग्यारह ग्राम का था.

तो…. स्वर्णकार ने भगवान की प्रतिमा की कीमत 45 हजार बताई और सांप के 50 हजार.

इस पर संत ने कहा – अरे भाई…!
तेरी नजर में भोलेनाथ की कीमत कम है और सांप की कीमत ज्यादा है..?

इस पर स्वर्णकार बोला – महाराज..! मुझे आकार से क्या लेना है ?
मैं तो वजन देखता हूँ…. आकार चाहे जो भी हो…!

कहने का मतलब है कि….आभूषण का आकार कैसा भी हो…कीमत उसके आकार की नहीं बल्कि उसकी धातु की होती है.

आप आकार की कीमत करो तो करो…
पर, बाजार तो धातु की ही कीमत देगा.

यही आपके उस सवाल का जबाब है कि…. पालघर में साधुओं की हत्या का मामला दो-तीन महज 2-3 महीनों में ही शांत कैसे पड़ जाता है.

और… 5 अगस्त को श्रीराम जन्मभूमि के पूजन के दिन बंगाल में लॉक डाउन और बकरीद में मार्केट खुला कैसे रहता है.

ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि… आपके ही शब्दों में… कश्मीर से “”हिन्दू नहीं बल्कि… पंडित”” भगाए गए थे.

विकास दूबे… एक गैंगेस्टर नहीं बल्कि ब्राह्मण था.

लालू और मुल्ला-यम … हिन्दू द्रोही नहीं बल्कि…. जादो हैं.

दलित समुदाय… हमारे भाई नहीं बल्कि अछूत हैं.

ऐसे वक्तव्य और सोच हमें अंदर से खोखला बनाते हैं.

और… ये बात दुबारा बताने की जरूरत नहीं है कि…
आप आकार की कीमत करो तो करो…
पर, बाजार तो धातु की ही कीमत देगा.

याद रखें कि ये लोकतंत्र (भीड़तंत्र) है और लोकतंत्र में सिर्फ मुंडी की गिनती होती है.

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि… वो मुंडी किसी पंचरवाले की है, मदरसा छाप मौलवी की या फिर IAS, IPS अथवा किसी वेदज्ञ की.

अर्थात…जिसकी मुंडी की गिनती ज्यादा होगी… वो ज्यादा महत्वपूर्ण होगा.

शायद …. अब आपको समझ आ गया होगा कि….

भारतीय राजनीति में हम भोलेनाथ के भक्तों की कीमत कम क्यों लगाई जाती है और … सांपों की ज्यादा क्यों ???

जय महाकाल…!!!