द्वापर युग में १८ की संख्या का क्या महत्व है
यह था कि पहले महाभारत युद्ध के लिए युद्ध भूमि खोजी गई जो आज के कुरुक्षेत्र जिले में मिली। अब समय आ गई कि युद्ध भूमि की एक ऐसी सीमा निर्धारित कर दी जाय
जिससे योद्धा उस सीमा से बाहर न निकल जायं
कहा गया है कि
सबहिं नचावैं राम गुसाईं
अपुना रहइं दास की नाईं
और
होइहंइ वहि जो राम रचि राखा
को करि तर्क बढावहिं साखा।
वैसे तो यह चौपाई रामायण की है पर सटीक उतरती है।
यह कि इस सीमा का निर्धारण कौशल करे?याद रखें कि द्वापर युग के नियमानुसार इसे १८ मील लंबा चौड़ा होना था। श्रीकृष्ण ने सुझाव दिया कि यह कार्य तो बड़े भाई बलराम ही कर सकते हैं। ध्यान दीजिए कि बलराम जी ही उस नारायणी सेना के सेनापति थे जिसे कृष्ण ने दुर्योधन को दिया था।अब बलराम जी ने अपना हल कंधे से उतारा और रेखा खींचना शुरू कर दिया। एक माया रूपी वृद्ध गाय बराबर सामने आ कर खड़ी होती रही। कुछ देर तक बलराम जी मुंह से डांटकर भगाते रहे पर गऊ माता भी जिद पर अड़ी रही। उन्हें न हटना था और न हटीं।
अब बलराम जी क्रोधित हो गए।
क्रोधी तो थे ही।कटकटाकर हल छोड़कर गाय को धक्का दे दिया। संयोग या दुर्योग से गऊ माता के प्राण पखेरू उड़ गए। आपदा में अवसर का लाभ श्रीकृष्ण ने उठाया और कहा कि बड़े भैया यह क्या कर दिया?
अब आपको गऊ हत्या लग गई है।
जाइये प्रायश्चित करके आइए। अब वह देदव्यास के यहां पहुंचे अब इसे नियति का खेल कहें कौरवों का दुर्भाग्य कहें कि कृष्ण की लीला कहें कि व्यास जी आश्रम पर नहीं थे।मिले उनके पुत्र शुकदेव जी। उन्होंने विधान बताया कि बलराम जी आप १८ दिन तक १८
तीर्थों का भ्रमण करके दान पुण्य देते हुए यहां आ जाइए तभी यह
पलायन पूरा होगा। अब श्रीकृष्ण भाई से युद्ध करने से बच गए और अगले १८ दिनों में महाभारत युद्ध को समाप्त करा दिया। बलराम जी तब पहुंचे जब भीम दुर्योधन की जंघा पर गदा प्रहार कर चुके थे।बाद श्रीकृष्ण ने किसी तरह मनाकर उन्हें शांत कराया।
सनातन धर्म में ९ ,१८ ,१०८ सभी का बहुत महत्व है।सबका जोड़ ९
नौ को बहुत शुभ माना जाता है नौ एक पूर्णाक भी है
ग्रह नौ , गर्भ में शिशु नौ महीने रहता है , नव दुर्गा और नवरात्र
द्वापर युग = ८६४००० वर्ष
८ + ६+ ४+०+०+० = १८ =१+८= ९
त्रेता १२९६००९ वर्ष = जोड़ ९
सतयुग १७२८००० वर्ष = ९
पुराण व उप पुराण १८ = ९
महाभारत युद्ध १८ दिनों चला = १+८= ९
कंस वध १८ वर्ष की आयु में १+८=९
श्री मद्भागवत गीता अध्याय १८ ,१+८=९
माला के मनके १०८ १+०+८= ९
१२ राशियों और ९ ग्रहों की गुडंखंड १०८ = ९
काल के १८ भेद ( १साल १२ महीने ५ ऋतुएं)
= ९
सिद्धियां १८ , १+८= ९
विधाएं १८ शिवांग १०८ अर्थात १+८= ९
महाभारत युद्ध
१८ अक्षौहिणी सेना = ९
युद्ध का क्षेत्रफल कोस १८ =९
युद्ध में भाग ले रहे योद्धा १८= ९
अर्थात सूत्रधार मुख्यत १८ =९
१८ योद्धा शेष बचे भगवान विष्णु के (आठवें) अवतार श्री कृष्ण
माता देवकी के (आठावे) पुत्र
आठवें मुहूर्त में अष्टमी को जन्म
पृथ्वी का ऊपरी वृत ३६० डिग्री ३+६ = ९
सूर्य का व्यास १०८ गुना
चन्द्रमा का १०८ गुना
२४ घंटे सांसों की संख्या २१६००= ९
सूर्य की बदलती कलाएं २१६०००= ९
नक्षत्र २७ , २+७ = ९
द्वापरयुग में भगवान श्री कृष्ण ने अवतार लेकर कंस आदि दुष्टों का संहार किया और महाभारत के युद्ध में गीता का उपदेश दिया।
कहते हैं कि महाभारत युद्ध में 18 संख्या का बहुत महत्व है।
इस युद्ध के प्रमुख सूत्रधार भी 18 थे। इस युद्ध में कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे महाभारत की पुस्तक में 18 अध्याय हैं। कृष्ण ने कुल 18 दिन तक अर्जुन को ज्ञान दिया। 18 दिन तक ही युद्ध चला। गीता में भी 18 अध्याय हैं। कौरवों और पांडवों की सेना भी कुल 18 अक्षोहिनी सेना थी जिनमें कौरवों की 11 और पांडवों की 7 अक्षोहिनी सेना थी। कुल 18 अध्याय हैं- अर्जुनविषादयोग, सांख्ययोग, कर्मयोग, ज्ञानकर्मसंन्यासयोग, कर्मसंन्यासयोग, आत्मसंयमयोग, ज्ञानविज्ञानयोग, अक्षरब्रह्मयोग, राजविद्याराजगुह्ययोग, विभूतियोग, विश्वरूपदर्शनयोग एंव भक्तियोग, क्षेत्र, क्षेत्रज्ञविभागयोग, गुणत्रयविभागयोग, पुरुषोत्तमयोग, दैवासुरसम्पद्विभागयोग, श्रद्धात्रयविभागयोग और मोक्षसंन्यासयोग। महाभारत ग्रंथ में कुल 18 पर्व हैं- आदि पर्व, सभा पर्व, वन पर्व, विराट पर्व, उद्योग पर्व, भीष्म पर्व, द्रोण पर्व, अश्वमेधिक पर्व, महाप्रस्थानिक पर्व, सौप्तिक पर्व, स्त्री पर्व, शांति पर्व, अनुशासन पर्व, मौसल पर्व, कर्ण पर्व, शल्य पर्व, स्वर्गारोहण पर्व तथा आश्रम्वासिक पर्व। मालूम हो कि ऋषि वेदव्यास ने 18 पुराण भी रचे हैं। 18 का महाभारत तथा द्वापर युग में यही बहुत बड़ा रहस्मयि योगदान है |
हिंदू धर्म में 18 के अंक को बहुत ही शुभ माना जाता है।क्योंकि इसका योग 9 बनता है।और 9 अंक को सबसे पॉवरफुल अंक माना जाता है।ज्योतिष में इसका संबंध मंगल ग्रह से माना जाता है। इतना ही नहीं इस ज्ञान सागर में श्लोक भी 18 हजार हैं।समय की गति, जिसे हम चक्रकाल कहते हैं, इसके भी 18 भेद होते है |मां भगवती के 18 प्रसिद्ध स्वरूप हैं।