Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

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किसको धोखा दे रहे हो? ||

मुल्ला नसरुद्दीन एक स्कूल में शिक्षक था। और जैसा कि स्कूल में शिक्षकों की आदत होती है, वह अखबार लेकर आंख बंद करके विश्राम करता था। लड़के उसे कई दफे सोया हुआ पकड़ लेते थे। आखिर लड़कों ने एक दफे कहा कि आप हमें तो सोने नहीं देते और आप खुद घुर्राटे लेते हैं! उसने कहा, मैं घुर्राटे नहीं लेता। तुम सब काम में लगे हो, उस बीच मैं स्वर्ग की यात्रा पर जाता हूं; वहां देवी-देवताओं से मिलता हूं, भगवान के दर्शन करता हूं; वहीं से तो ज्ञान लाता हूं तुम्हारे लिए रोज-रोज।
एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन बीच में जग गया; एक मक्खी उसके ऊपर भिनभिना रही थी। तो उसने देखा, एक सामने ही बैठा लड़का घुर्राटे ले रहा है। तो उसने जगाया। अब लड़के भी कुशल हो गए थे। लोग सीख लेते हैं, आखिर गुरु जब इतना ज्ञानी तो लड़के भी ज्ञानी हो गए। उस लड़के ने कहा, आप यह मत समझना कि मैं कोई सो रहा था; मैं स्वर्ग गया था। नसरुद्दीन थोड़ा चिंतित हुआ। उसने कहा कि वहां क्या देखा? उसने कहा, क्या देखा? मैंने सब देवी-देवताओं से पूछा कि मुल्ला नसरुद्दीन इधर आते हैं? उन्होंने कहा, हमने तो कभी नाम ही नहीं सुना।
न गुरु जानते हैं, न मां-बाप को कुछ पता है। कोई भी उस स्वर्ग में गए नहीं, कोई उस मोक्ष को जाना नहीं, और वे तुम्हें सिखा रहे हैं। हर बच्चे को वे सिखा रहे हैं। मैं छोटा था तो मुझे ले जाया जाता था मंदिर, कि झुको! मैं पूछता कि अगर आपको पता हो पक्का तो मैं झुकने को राजी हूं, मुझे आप पर भरोसा है। लेकिन मुझे शक है कि आपको पता नहीं है। मुझे लगता है कि आपके मां-बाप ने आपको झुकाया, आप मुझे झुका रहे हैं। अगर आपको पक्का पता हो तो मैं भरोसे में झुकने को राजी हूं। मेरे पिता ईमानदार आदमी हैं। उन्होंने मुझे कहा, तो फिर हम ही झुकते हैं, तुम मत झुको। क्योंकि हमारी तो आदत हो गई, और न झुकने से बड़ी अड़चन होगी। अब तुम अपना सम्हालो। मगर इस तरह के कठिन सवाल मत उठाओ।
मां – बाप से सीख लिया है; स्कूल में सीख लिया है; किताबों में लिखा है। सब तरफ प्रचार हो रहा है, उससे सीख लिया है। उसको तुम ज्ञान समझ रहे हो! किसको धोखा दे रहे हो? खुद ही धोखा खा रहे हो।…..osho

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♦️♦️♦️ रात्रि कहांनी ♦️♦️♦️

एक गरीब एक दिन एक सिक्ख के पास अपनी जमीन बेचने गया बोला सरदारजी मेरी 2 एकड़ जमीन आप रख लो ,🏵️ 🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅
सिक्ख बोला ,क्या कीमत है ,
गरीब बोला, –50 हजार रुपये ,
सिक्ख थोड़ी देर सोच के ,वो ही खेत जिसमे ट्यूबल लगा है
गरीब ,— जी आप मुझे 50, से कम भी दे दे
सिक्ख ने आंखे बंद की 5 मिनिट सोच के
नही मैं , उसकी कीमत 2 लाख रुपये दूँगा ,
गरीब पर मैं 50 हजार ले रहा हूँ आप 2 लाख क्यो?????
सिक्ख बोला तुम जमीन क्यो बेच रहे हो ,
गरीब बोला ,बेटी की शादी करना है बच्चो की पढ़ाई की फीस जमा करना है बहुत कर्ज है मजबूरी है इसीलिए मजबूरी में बेचना है पर आप 2 लाख क्यो दे रहे
सिक्ख बोला , मुझे जमीन खरीदना है ,,किसी की मजबूरी नही खरीदना ,अगर आप की जमीन की कीमत मुझे मालूम है तो मुझे आपके कर्ज आपकीं जवाबदेही और मजबूरी का फायदा नही उठाना मेरा वाहेगुरू कभी खुश नही होगा ऐसी जमीन या कोई भी साधन जो किसी की मज़बूरिओ को देख के खरीदे हो वो घर और जिंदगी में सुख नही देते आने वाली पीढ़ी मिट जाती है ,
है मेरे मित्र तुम खुशी खुशी अपनी बेटी की तैयारी करो 50 हजार की हम पूरा गांव व्यवस्था कर लेगा तेरी जमीन भी तेरी रहेगी
मेरे गुरु नानक देव साहिब ने भी अपनी बानी में येही हुक्म दिया है , गरीब हाथ जोड़ कर आखों में नीर भरी खुशी खुशी दुआय देता चला गया
क्या ऐसा जीवन हम किसी का बना सकते है
बस किसी की मजबूरी न खरीदे
किसी के दर्द मजबूरी को समझ कर सहयोग करना ही सच्चा तीर्थ है एक यज्ञ है सच्चा कर्म और बन्दगी है हम सबके संत भी येही कहते है
वाहेगुरू जी 🙏

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👉🏿%/अज्ञानता सबसे बड़ी बीमारी है।/%
बहुत सुन्दर कहानी,जरूर पढ़िए..

एक जौहरी के निधन के बाद उसका परिवार संकट में पड़ गया।
खाने के भी लाले पड़ गए।
एक दिन उसकी पत्नी ने अपने बेटे को नीलम का एक हार देकर कहा- बेटा, इसे अपने चाचा की दुकान पर ले जाओ।

कहना इसे बेचकर कुछ रुपये दे दें।बेटा वह हार लेकर चाचा जी के पास गया।

👳चाचा ने हार को अच्छी तरह से देख परखकर कहा- बेटा, मां से कहना कि अभी बाजार बहुत मंदा है।थोड़ा रुककर बेचना, अच्छे दाम मिलेंगे।

उसे थोड़े से रुपये देकर कहा कि तुम कल से दुकान पर आकर बैठना।

अगले दिन से वह लड़का रोज दुकान पर जाने लगा और वहां हीरों, रत्नों की परख का काम सीखने लगा।

एक दिन वह बड़ा पारखी बन गया। लोग दूर-दूर से अपने हीरे की परख कराने आने लगे।

एक दिन उसके चाचा ने कहा, बेटा अपनी मां से वह हार लेकर आना और कहना कि अब बाजार बहुत तेज है ,उसके अच्छे दाम मिल जाएंगे।

मां से हार लेकर उसने परखा तो पाया कि वह तो नकली है।
वह उसे घर पर ही छोड़ कर दुकान लौट आया।
👳चाचा ने पूछा, हार नहीं लाए?
उसने कहा, वह तो नकली था।
तब 👳चाचा ने कहा- जब तुम पहली बार हार लेकर आये थे, तब मैं उसे नकली बता देता तो तुम सोचते कि आज हम पर बुरा वक्त आया तो चाचाजी हमारी चीज़​ को भी नकली बताने लगे।

आज जब तुम्हें खुद ज्ञान हो गया तो पता चल गया कि हार सचमुच नकली है।

सच यह है कि ज्ञान के बिना इस संसार में हम जो भी सोचते, देखते और जानते हैं, सब गलत होता है।
और ऐसे ही गलतफहमी का शिकार होकर रिश्ते बिगड़ते है।

ज़रा सी रंजिश पर, ना छोड़ो किसी अपने का दामन..
ज़िंदगी बीत जाती है अपनो को अपना बनाने में..

आज इसी अज्ञानता के कारण हम भगवान् को भूल चुके हैं, भगवान् से अपने सम्बन्ध को भूल चुके हैं।
भगवान् श्री कृष्ण भगवद गीता में केहते हैं, कि में ही सभी यज्ञों भोक्ता हू, सारे लोको का सरी सृष्टि का में ही ईश्वर में हू। में सारे जीवो का हितैषी शुभचिंतक हू,
जो इस बात को समझ गया या जान गया तो वह व्यक्ति शांति ,सुख, सफलता को प्राप्त करता है और अन्य लोगो का हितैषी बन सकता है।

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👉🏿जीवन का मूल्य

एक राजा का जन्म दिन था । सुबह जब वह घूमने निकला तो उसने तय किया कि वह रास्ते में मिलने वाले सबसे पहले व्यक्ति को आज पूरी तरह से खुश व सन्तुष्ट करेगा ।

उसे एक भिखारी मिला । भिखारी ने राजा सें भीख मांगी तो राजा ने भिखारी की तरफ एक तांबे का सिक्का उछाल दिया । सिक्का भिखारी के हाथ सें छूट कर नाली में जा गिरा । भिखारी नाली में हाथ डालकर तांबे का सिक्का ढूंढने लगा ।
राजा ने उसे बुलाकर दूसरा तांबे का सिक्का दे दिया । भिखारी ने खुश होकर वह सिक्का अपनी जेब में रख लिया और वापिस जाकर नाली में गिरा सिक्का ढूंढने लगा ।

राजा को लगा कि भिखारी बहुत गरीब है । उसने भिखारी को फिर बुलाया और चांदी का एक सिक्का दिया ।

भिखारी ने राजा की जय-जयकार करते हुये चांदी का सिक्का रख लिया और फिर नाली में तांबे वाला सिक्का ढूंढने लगा ।
राजा ने उसे फिर बुलाया और अब भिखारी को एक सोने का सिक्का दिया ।
भिखारी खुशी से झूम उठा और वापिस भागकर अपना हाथ नाली की तरफ बढाने लगा ।

राजा को बहुत बुरा लगा । उसे खुद से तय की गयी बात याद आ गयी कि “पहले मिलने वाले व्यक्ति को आज खुश एवं सन्तुष्ट करना है ।”

उसने भिखारी को फिर से बुलाया और कहा कि मैं तुम्हें 1000 अशर्फियाॅ देता हूँ । अब तो खुश व सन्तुष्ट हो जाओ ।
भिखारी बोला – “सरकार ! मैं तो खुश और संतुष्ट तभी हो सकूँगा, जब नाली में गिरा हुआ तांबे का सिक्का भी मुझे मिल जायेगा ।”

हमारा हाल भी उस भिखारी जैसा ही है । हमें परमात्मा ने मानव रुपी अनमोल खजाना दिया है और हम उसे भूलकर संसार रुपी नाली में तांबे के सिक्के निकालने के लिए जीवन गंवाते जा रहे हैं । “इस अनमोल मानव जीवन का हम सही इस्तेमाल करें, हमारा जीवन धन्य हो जायेगा

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💥🌳सुप्रभात🌳💥

💐खुद को बदल दो समाज खुदबखुद बदल जायेगा💐

एक सन्यासी ने देखा एक छोटा बच्चा घुटने टेक कर चलता था, धूप निकली थी, बच्चे की छाया आगे पड़ रही थी, बच्चा छाया में अपने सिर को पकड़ने के लिए हाथ ले जाता लेकिन जब हाथ पहुँचता तो छाया आगे बढ़ जाती।

बच्चा रोने लगा, माँ उसे समझाने लगी पर बच्चे कब समझ सकते हैं।

सन्यासी ने कहा, बेटे रो मत, छाया पकड़नी है?

सन्यासी ने बच्चे का हाथ पकड़ा और उसके सिर पर रख दिया, हाथ सिर पर गया, उधर छाया के ऊपर भी सिर पर हाथ गया।

सन्यासी ने कहा, देख, पकड़ ली तूने छाया। छाया कोई सीधा पकड़ेगा तो नहीं पकड़ सकेगा लेकिन अपने को पकड़ लेगा तो छाया पकड़ में आ जाती है।

ऐसे ही जो काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार को पकड़ने को लिए दौड़ता है वह इनको कभी नहीं पकड़ पाता, यह मात्र छाया हैं लेकिन जो आत्मा को पकड़ लेता है, विकार उसकी पकड़ में आ जाते हैं।

खुद को बदल दो समाज खुदबखुद बदल जायेगा

सदैव प्रसन्न रहिये🌳🌳
जो प्राप्त है-पर्याप्त है🌳🌳

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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सरस्वती के भाई…
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अयोध्या के बहुत निकट ही पौराणिक नदी कुटिला है – जिसे आज टेढ़ी कहते हैं, उसके तट के निकट ही एक भक्त परिवार रहता था।
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उनके घर एक सरस्वती नाम की बालिका थी। वे लोग नित्य श्री कनक बिहारिणी बिहारी जी का दर्शन करने अयोध्या आते थे।
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सरस्वती जी का कोई सगा भाई नही था, केवल एक मौसेरा भाई ही था। वह जब भी श्री रधुनाथ जी का दर्शन करने आती, उसमे मन मे यही भाव आता की सरकार मेरे अपने भाई ही है।
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उसकी आयु उस समय मात्र दो वर्ष की थी। रक्षाबंधन से कुछ समय पूर्व उसने सरकार से कहा की मै आपको राखी बांधने आऊंगी।
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उसने सुंदर राखी बनाई और रक्षाबंधन पूर्णिमा पर मंदिर लेकर गयी। पुजारी जी से कहा कि हमने भैया के लिए राखी लायी है।
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पुजारी जी ने छोटी सी सरस्वती को गोद मे उठा लिया और उससे कहा कि मै तुम्हे राखी सहित सरकार को स्पर्श कर देता हूं और राखी मै बांध दूंगा।
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पुजारी जी ने राखी बांध दी और उसको प्रसाद दिया। अब हर वर्ष राखी बांधने का उसका नियम बन गया।
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समय के साथ वह बड़ी हो गयी और उसका विवाह निश्चित हो गया। वह पत्रिका लेकर मंदिर में आयी और कहा की मेरा विवाह निश्चित हो गया है, मै आपको न्योता देने आई हूं। चारो भाइयो को विवाह में आना ही है।
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पुजारी जी को पत्रिका देकर कहा कि मैंने चारो भाइयों से कह दिया है, आप पत्रिका सरकार के पास रख दो और आप भी कह दो की चारो भाइयों को विवाह में आना ही है। ऐसा कहकर वह अपने घर चली गयी।
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विवाह का दिन आया। अवध में एक रस्म होती है कि विवाह के बाद भाई आकर उसको चादर ओढ़ाता है और कुछ भेट वस्तुएं देता है।
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उसकी मौसी ने अपने लड़के को कुछ सामान और ११ रुपये दिए और मंडप में पहुंचने को कहकर वह चली गयी।
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उसका मौसेरा भाई उपहार, वस्त्र और ११ रुपये लेकर रिक्शा पर बांध कर विवाह मंडप की ओर निकल पड़ा।
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रास्ते मे ही रिक्शा उलट गया और वह गिर गया। थोड़ी सी चोट आयी और लोगो ने उसको दवाखाने ले जाकर मलम पट्टी कराई।
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यहां सरस्वती जी घूंघट से बार बार मंडप के दरवाजे पर देख रही है और सोच रही है कि सरकार अभी तक क्यो नही आये।
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उसको पूरा विश्वास है कि चारो भाई आएंगे। माँ से भी कह दिया कि ध्यान रखना अयोध्या जी से मेरे भाई आएंगे – माँ ने उसको भोला समझकर हंस दिया।
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जब बहुत देर हो गयी तब व्याकुल होकर वह दरवाजे पर जाकर रोने लगी। दूर दूर के रिश्तेदार आ गए पर मेरे अपने भाई क्यो नही आये ? क्या मैं उनकी बहन नही हूं ?
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उसी समय ४ बड़ी मोटर गाड़िया और एक बड़ा ट्रक आते हुए उसने देखा। पहली गाड़ी से उसकी मौसी का लड़का और उसकी पत्नी उतरे। बाकी गाड़ीयों से और ३ जोड़िया उतरी।
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मौसी के लड़के के रूप में सरकार ही आये है। रत्न जटित पगड़ियां, वस्त्र, हीरो के हार पहन रखे है।
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श्री हनुमान जी पीछे ट्रक में समान भरकर लाये है, हनुमान जी पहलवान के रूप में आये थे।
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उन्होंने ट्रक से सारा सामान उतारना शुरू किया – स्वर्ण, चांदी, पीतल, तांबे के बहुत से बर्तन। बिस्तर, सोफे, ओढ़ने बिछाने के वस्त्र, साड़ियां, अल्मारियाँ, कान, नाक, गले, कमर, हाथ, पैर के आभूषण।
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मौसी देखकर आश्चर्य में पड़ गयी कि इतना कीमती सामान मेरा लड़का कहां से लेकर आया ?
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चारो का तेज और सुंदरता देखकर सरस्वती समझ गयी कि यह मेरे चारो भाई है।
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सरस्वती जी के आनंद का ठिकाना न रहा, उसका रोना बंद हो गया। सरकार ने इशारे से कहा कि किसीको अभी भेद बताना नही, गुप्त ही रखना।
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इनका रूप इतना मनोहर था कि सब उन्हें देखते ही राह गए, कोई पूछ न पाया कि यह गाड़ियां कैसे आयी, ये अन्य ३ लोग कौन है ?
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लोग हैरान हो कर देख रहे थे कि अभी तक रो रही थी, और अभी इतना हँस रही है और आनंद में नाच रही है। किसी को कुछ समझ नही आ रहा था।
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जब तक उसकी विदाई नही हुई तब तक चारो भाई उसके साथ ही रहे। सभी गले मिले और आशीर्वाद दिया।
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सरस्वती ने कहा – जैसे आज शादी में सब संभाल लिया वैसे जीवन भर मुझे संभालना।
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जब वह गाड़ी में बैठकर पति के साथ जाने लगी तब चारों भाई अन्तर्धान हो गए।
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उसी समय असली मौसेरा भाई किसी तरह लंगड़ाते हुए पट्टी लगाए हुए वहां आया। उसने वस्त्र ओढाया उपहार और ११ रुपये दिया।
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मौसी ने पूछा कि अभी अभी तो तू बड़े कीमती वस्त्र पहने गाड़ी और ट्रक लेकर आया था ? ये पट्टी कैसे बंध गयी और कपड़े कैसे फट गए ? उसको तो कुछ समझ ही नही आ रहा था।
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अंत मे सरस्वती से उसकी माता ने एकांत मे पूछा की बेटी सच सच बता की क्या बात है ? ये चारों कौन थे ?
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तब उसने कहा की माँ ! मैने आपसे कहा था कि ध्यान रखना, मेरे भाई अयोध्या से आएंगे।
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माँ समझ गयी की इसके तो ४ ही भाई है और वो श्रीरघुनाथ जी और अन्य तीन भैया ही है।
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माँ जान गई कि श्री अयोध्या नाथ सरकार ही अपनी बहन के प्रेम में बंध कर आये थे और अपनी बहन को इतने उपहार, आभूषण और वस्तुएं दे गए कि नगर के बड़े बड़े सेठ, नवाबो के पास भी नही थे। 🙏🙏 (जय श्री राम)🙏🙏

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Om Bhaskaraye namah Ji
Om suryaye namah ji

दो छोटे लड़के घर से कुछ दूर खेल रहे थे।
खेलने में वे इतने मस्त थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि वे भागते-भागते कब एक सुनसान जगह पहुँच गए। उस जगह एक पुराना कुंवा था , और उनमे से एक लड़का गलती से उस कुवें में जा गिरा।

“बचाओ-बचाओ”,
वो चीखने लगा।

दूसरा लड़का एकदम से डर गया और मदद के लिए चिल्लाने लगा , पर उस सुनसान जगह कहाँ कोई मदद को आने वाला था। फिर लड़के ने देखा कि कुंएं के करीब ही एक पुरानी बाल्टी और रस्सी पड़ी हुई है ,
उसने तेजी दिखाते हुए तुरंत रस्सी का एक सिरा वहां गड़े एक पत्थर से बाँधा और दूसरा सिरा नीचे कुएं में फेंक दिया। कुएं में गिरे लड़के ने रस्सी पकड़ ली, अब वह अपनी पूरी ताकत से उसे बाहर खींचे लगा,
अथक प्रयास के बाद वे उसे ऊपर तक खींच लाया और उसकी जान बचा ली।

जब गांव में जाकर उन्होने यह बात बताई तो किसी ने भी उन पर यकीन नही किया।
एक आदमी बोला-तुम एक बाल्टी पानी तो निकाल नही सकते, इस बच्चे को कैैसे बाहर खींच सकते हो; तुम झूठ बोल रहे हो।
तभी एक बुजुर्ग बोला-यह सही कह रहा हैं क्योंकि वहां पर इसके पास कोई दूसरा रास्ता नही था ,
और वहां इसे कोई यह कहने वाला नही था कि ‘तुम ऐसा नही कर सकते हो’।

मित्रों , जीवन में अगर सफलता चाहते हो तो उन लोगो की बात मानना छोड दो जो यह कहते हैं कि तुम इसे नही कर सकते।
संसार में अधिकतर लोग इसलिए सफल नही हो पाते क्योंकि वे ऐसे लोगो की बातों में आ जाते हैं जो ना तो खुद सफल होते हैं और ना इस बात में विश्वास करते हैं कि दूसरे सफल हो सकते हैं । इसलिए अपने दिल की सुनें ,आप सब कुछ कर सकते हैं जो आप करना चाहते हैं, आपको भगवान ने विशिष्ट शक्तियों के साथ पैदा किया हैं, अतः स्वयं पर संशय करना छोड़ें और सफलता की और बढ़ चलें
Om Bhaskaraye namah Ji

माधव गोयल

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किसी￰ बाजार में एक चिड़ीमार तीतर बेच रहा था!
उसके पास एक बड़ी सी जाली वाली बक्से में बहुत सारे तीतर थे ..और एक छोटे से बक्से में सिर्फ एक तीतर
किसी ग्राहक ने उससे पुछा तीतर कितने का है!
तो उसने जवाब दिया एक तीतर की कीमत 40 रूपये है!
ग्राहक ने दुसरे बक्से में जो तन्हा तीतर था उसकी कीमत पूछी तो तीतर वाले ने जवाब दिया!
अव्वल तो मैं इसे बेचना ही नहीं चाहूंगा लेकिन अगर आप लेने की जिद करोगे तो इसकी कीमत 500 रूपये होगी
ग्राहक ने आश्चर्य से पुछा इसकी कीमत 500 रुपया क्यों!
इसपे तीतर वाले का जवाब था ये मेरा अपना पालतू तीतर है!
और दुसरे तीतरो को जाल में फसाने का काम करता है और दुसरे सभी फंसे हुए तीतर है!
ये चीख पुकार करके दुसरे तीतरो को बुलाता है!
और दुसरे तीतर बिना सोचे समझे एक जगह जमा हो जाते है और मैं आसानी से शिकार कर पाता हूँ!
इसके बाद फंसाने वाले तीतर को उसके मन पसंद की खुराक दे देता हूँ!
जिससे ये खुश हो जाता है बस इस वजह से इसकी कीमत ज्यादा है!
बाजार में एक समझदार आदमी ने उस तीतर वाले को 500 रूपये देकर उस तीतर का सरे बाजार गर्दन उड़ा दिया!
किसी ने पुछा आपने ऐसा क्यों क्या!
उसका जवाब था ऐसे जमीर फरोश को जिन्दा रहने का कोई हक़ नहीं जो अपने मुनाफे के लिए अपनी कौम को फंसाने का काम करे और अपने ही लोगो को धोका देता दे!

समझो और समझाना भी पड़ेगा!!

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एक आदमी जंगल से गुजर रहा था । उसे चार स्त्रियां मिली।
n
उसने पहली से पूछा – बहन तुम्हारा नाम क्या हैं ?
उसने कहा “बुद्धि “
तुम कहां रहती हो?
मनुष्य के दिमाग में।

दूसरी स्त्री से पूछा – बहन तुम्हारा नाम क्या हैं ?
” लज्जा “।
तुम कहां रहती हो ?
आंख में ।

तीसरी से पूछा – तुम्हारा क्या नाम हैं ?
“हिम्मत”
कहां रहती हो ?
दिल में ।

चौथी से पूछा – तुम्हारा नाम क्या हैं ?
“तंदुरूस्ती”
कहां रहती हो ?
पेट में।

वह आदमी अब थोडा आगे बढा तों फिर उसे चार पुरूष मिले।y

उसने पहले पुरूष से पूछा – तुम्हारा नाम क्या हैं ?
” क्रोध “
कहां रहतें हो ?
दिमाग में,
दिमाग में तो बुद्धि रहती हैं,
तुम कैसे रहते हो?
जब मैं वहां रहता हुं तो बुद्धि वहां से विदा हो जाती हैं।

दूसरे पुरूष से पूछा – तुम्हारा नाम क्या हैं ?
उसने कहां -” लोभ”।
कहां रहते हो?
आंख में।
आंख में तो लज्जा रहती हैं तुम कैसे रहते हो।
जब मैं आता हूं तो लज्जा वहां से प्रस्थान कर जाती हैं ।

तीसरें से पूछा – तुम्हारा नाम क्या हैं ?
जबाब मिला “भय”।
कहां रहते हो?
दिल में।
दिल में तो हिम्मत रहती हैं तुम कैसे रहते हो?
जब मैं आता हूं तो हिम्मत वहां से नौ दो ग्यारह हो जाती हैं।

चौथे से पूछा तुम्हारा नाम क्या हैं?
उसने कहा – “रोग”।
कहां रहतें हो?
पेट में।
पेट में तो तंदरूस्ती रहती हैं?
जब मैं आता हूं तो तंदरूस्ती वहां से रवाना हो जाती हैं।

जीवन की हर विपरीत परिस्थिथि में यदि हम उपरोक्त वर्णित बातो को याद रखे तो कई चीजे टाली जा सकती है ।

जरा मुस्कुरा के देखे,
दुनिया हसती नजर आएगी!

सुबह सैर कर के तो देखे,
सेहत ठीक हो ाएगी!

व्यसन छोड के तो देखे,
इज्जत बन जाएगी!

खर्च घटा कर के तो देखे,
अच्छी नीँद आएगी!

मेहनत कर के तो देखे,
पैसे की तंगी चली जाएगी!

संसार की अच्छाई तो देखे,
बुराई भाग जाएगी!

ईश्वर का ध्यान कर के तो देखे,
उलझने दुर हो जाएगी!

माता पिता की बात मान कर तो
देखे,
जिन्दगी संवर जाएगी!

अरुण सुक्ला

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—– अक़ीदत —–

“आई……! जल्दी कर नहीं तो देर हो जाएगी, फिर भैया के घर पहुँचते रात हो जाएगी।”

“हाँ बेटा बस आती हूँ, बच्चों ने कुछ खाने का सामान मंगवाया था, बस वह और रखलें।” हाँफते-हाँफते स्टेशन के लिए ऑटो स्टैंड पहुँची । आई एक एक ऑटो में झाँक-झाँक कर देखती, फिर नहीं जाना कह कर वापस आ जाती। बेटी झुंझलाकर बोली, क्या आई….. वह ऑटो वाला पूँछ रहा है कहाँ जाना है ? क्यों नहीं चलती हो ? आई कान के पास जाकर धीरे से बोली वह सब मुसलमान है देखा नहीं चांद और हरा झंडा लगा रखा है । अभी कल ही बाजार में हिंदू मुसलमान के दंगे हुए हैं। मैं इनके साथ जाकर राम-राम-राम अपना धर्म नष्ट-भ्रष्ट नहीं कर सकती । तभी पास खड़े ऑटो को देखकर खुश हो जाती है। बेटा मुझे स्टेशन तक छोड़ दे।माँ जी मैं अभी नहीं जाऊँगा।वो ऑटो पहले जायेगी तुम उसमे चली जाओ । आई जबरदस्ती ऑटो में बैठ गई। नहीं बेटा मैं तो तेरे साथ ही जाऊँगी । रास्ते में दंगाइयों ने रोकना चाहा पर ऑटो वाला गलियों के रास्ते जानता था । माँ जी साथ में बिटिया है, वहाँ से जाने का खतरा नहीं ले सकता, शॉर्टकट चलता हूं । माँ बेटी शुक्रिया अदा करने लग गई अपने भगवान का, आई बेटी से फुसफुसा कर बोली इसीलिए मैंने यह ऑटो पकड़ा था । इसमें हमारे साथ साथ भगवान है । स्टेशन पहुँचने पर ज्ञात हुआ पैसों वाला पर्स आई घर छोड़ आयी । बेटी के पास पेटीएम था लेकिन ऑटो वाले के पास पुराना मोबाइल था । अब वापस नहीं जा सकते थे क्योंकि ट्रेन के आने का वक्त हो गया था । ऑटो वाला गुस्साते हुए बोला….

“ या अल्लाह….! एक तो मेरे ऑटो में जबरजस्ती बैठते है फिर कहते है पैसा नहीं है पर्स भूल गए । खुदा ऐसी सवारी ना दिया करें ।”

यह सुनते ही आई का माथा ठनका । तू मुसलमान है…? हाँ तो क्या…..? लेकिन तू तो तू गणेश जी की मूर्ति लगाए है । इस ऑटो का मालिक हिन्दू है और मैं मुसलमान हूँ ; लेकिन आई इस हिन्दू मुसलमान से क्या होता है । ऑटो तो ऑटो है । बेटा मैं वापस आकर तेरे पैसे जरूर दे कर आऊँगी ; लेकिन ऑटो वाला बिना सुने ऑटो स्टार्ट कर के चला गया। आई का सर श्रद्धा से उसके आगे झुक गया । ‌‌ ----- नीतू मुकुल