Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

♦️♦️♦️रात्रि कहांनी ♦️♦️♦️

8 साल का एक बच्चा 1 रूपये का सिक्का मुट्ठी में लेकर एक दुकान पर जाकर कहा,
–क्या आपके दुकान में ईश्वर मिलेंगे?🏵️ 🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅

दुकानदार ने यह बात सुनकर सिक्का नीचे फेंक दिया और बच्चे को निकाल दिया।

बच्चा पास की दुकान में जाकर 1 रूपये का सिक्का लेकर चुपचाप खड़ा रहा!

— ए लड़के.. 1 रूपये में तुम क्या चाहते हो?
— मुझे ईश्वर चाहिए। आपके दुकान में है?

दूसरे दुकानदार ने भी भगा दिया।

लेकिन, उस अबोध बालक ने हार नहीं मानी। एक दुकान से दूसरी दुकान, दूसरी से तीसरी, ऐसा करते करते कुल चालीस दुकानों के चक्कर काटने के बाद एक बूढ़े दुकानदार के पास पहुंचा। उस बूढ़े दुकानदार ने पूछा,

— तुम ईश्वर को क्यों खरीदना चाहते हो? क्या करोगे ईश्वर लेकर?

पहली बार एक दुकानदार के मुंह से यह प्रश्न सुनकर बच्चे के चेहरे पर आशा की किरणें लहराईं৷ लगता है इसी दुकान पर ही ईश्वर मिलेंगे !
बच्चे ने बड़े उत्साह से उत्तर दिया,

—-इस दुनिया में मां के अलावा मेरा और कोई नहीं है। मेरी मां दिनभर काम करके मेरे लिए खाना लाती है। मेरी मां अब अस्पताल में हैं। अगर मेरी मां मर गई तो मुझे कौन खिलाएगा ? डाक्टर ने कहा है कि अब सिर्फ ईश्वर ही तुम्हारी मां को बचा सकते हैं। क्या आपके दुकान में ईश्वर मिलेंगे?

— हां, मिलेंगे…! कितने पैसे हैं तुम्हारे पास?

— सिर्फ एक रूपए।

— कोई दिक्कत नहीं है। एक रूपए में ही ईश्वर मिल सकते हैं।

दुकानदार बच्चे के हाथ से एक रूपए लेकर उसने पाया कि एक रूपए में एक गिलास पानी के अलावा बेचने के लिए और कुछ भी नहीं है। इसलिए उस बच्चे को फिल्टर से एक गिलास पानी भरकर दिया और कहा, यह पानी पिलाने से ही तुम्हारी मां ठीक हो जाएगी।

अगले दिन कुछ मेडिकल स्पेशलिस्ट उस अस्पताल में गए। बच्चे की मां का अॉप्रेशन हुआ। और बहुत जल्द ही वह स्वस्थ हो उठीं।

डिस्चार्ज के कागज़ पर अस्पताल का बिल देखकर उस महिला के होश उड़ गए। डॉक्टर ने उन्हें आश्वासन देकर कहा, “टेंशन की कोई बात नहीं है। एक वृद्ध सज्जन ने आपके सारे बिल चुका दिए हैं। साथ में एक चिट्ठी भी दी है”।

महिला चिट्ठी खोलकर पढ़ने लगी, उसमें लिखा था-
“मुझे धन्यवाद देने की कोई आवश्यकता नहीं है। आपको तो स्वयं ईश्वर ने ही बचाया है … मैं तो सिर्फ एक ज़रिया हूं। यदि आप धन्यवाद देना ही चाहती हैं तो अपने अबोध बच्चे को दिजिए जो सिर्फ एक रूपए लेकर नासमझों की तरह ईश्वर को ढूंढने निकल पड़ा। उसके मन में यह दृढ़ विश्वास था कि एकमात्र ईश्वर ही आपको बचा सकते है। विश्वास इसी को ही कहते हैं। ईश्वर को ढूंढने के लिए करोड़ों रुपए दान करने की ज़रूरत नहीं होती, यदि मन में अटूट विश्वास हो तो वे एक रूपए में भी मिल सकते हैं।”

आइए, इस महामारी से बचने के लिए हम सभी मन से ईश्वर को ढूंढे … उनसे प्रार्थना करें… उनसे माफ़ी मांगे…!!!

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अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष
लघुकथा-स्त्रीत्व
नीरजा अपनी चाय लेकर बालकनी में बैठी ही थी कि घर के सामने कैब आकर रुकी ।बेटी विधा को अचानक आया देख वह खुशी से दरवाजे की ओर दौड़ गईं।आशा के विपरीत मुरझाया हुआ चेहरा लिए विधा घर में दाखिल हुई।अभी एक माह पूर्व ही तो धूमधाम से इकलौती बेटी का विवाह किया था उन्होंने अभिनव से।अच्छे सुसंस्कृत परिवार का उच्चशिक्षित लड़का था अभिनव,फिर हुआ क्या? वे तड़प उठीं।
अपने को संयत कर नीरजा ने बेटी को पानी लाकर दिया और धैर्य से उसके बोलने की प्रतीक्षा करने लगीं।ये कैसी परिस्थिति में फंसा दिया है आपने माँ!विधि ने मौन तोड़ा।सब कुछ वहाँ कितना अलग है।तोल- तोल के बोलते हैं लोग।जरा -जरा सी बात का बुरा मान लेते हैं।धीरे बोलो,कम बोलो और भी न जाने कितने नियम।
अभिनव से भी अभी से झगड़े होने लगे हैं माँ।इतना बोरिंग है वो।न किताबों का शौक न इंग्लिश मूवीज का।समय पे सोना,समय पे उठना।मेरी सब फ्रेंड्स इतना एन्जॉय करती हैं, फेसबुक और इंस्टा पर उनकी पिक्स देखो।क्या लाइफ है उनकी।यहाँ मैं तीन टाइम का खाना-नाश्ता बना रही हूँ बस।जॉब ढूंढ लूंगी अब मैं भी।मैं क्यों सुनूँ उसकी और नियम पालूं?
नीरजा मुस्करा उठी ।बिटिया !ये बताओ,यहाँ भी तो मैं और तुम्हारे पापा तुम्हें और तुम्हारे भाई को धीरे बोलने के लिए समझाते थे या नहीं?वो घर अब तुम्हारा है।मायके में बचपना समझकर जिन आदतों को हम जाने देते हैं,अपनी गृहस्थी बसाने पर उसमें सुधार आवश्यक है क्योंकि आज नही तो कल तुम नई पीढ़ी की नींव रखोगी।रही बात बोरियत की,तो कुछ तुम ढलो ,कुछ उसे ढालो ,अपने गुणों से,अपने स्त्रीत्व से।
और याद रखना बेटी, स्त्री होने का मतलब ,तीन समय का खाना या घर की साफ सफाई नहीं है…कई पीढ़ियों पहले भी नहीं था।स्त्री वह शीतलता है जो पुरूष की थकान और हताशा पर स्नेह के फाहे से मिलती है।बराबर होने के लिए स्त्रीत्व को खोने की जरूरत नहीं।आप कमाएं या नहीं… आपका अस्तित्व घर में जस का तस रहता है यदि आपमें वो है जो पुरुष को सहारा देता है।
विधा,हैरानी से अपनी माँ को देखती रह गई।आप इतना कुछ कैसे जानती हो माँ?विधा ने पूछा।
वो इसलिए मेरी बच्ची..क्योंकि मैंने जिन्दगी को जी- जी कर सीखा है…सोशल मीडिया से नहीं।हमेशा जो दिखता है वो होता नहीं और जो है वो तुम लोग देखते कहाँ हो मोबाइल से नजरें उठा कर।विधा ने सर झुका लिया।
.कुछ देर बाद नीरजा ने देखा,विधा फिर मोबाइल में उंगलियाँ चला रही है सर झुकाए हुए ही बोली,माँ चाय अभिनव के आने पर ही पियेंगे…वो ऑफिस से चल चुके हैं।
एक बार फिर स्त्रीत्व की गरिमा अगली पीढ़ी को हस्तांतरित हो चुकी थी।

मौलिक एवं स्वरचित
प्रीति त्रिपाठी
नई दिल्ली
8-03-2021

Posted in यत्र ना्यरस्तुपूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:

वेदों में नारी की महिमा

(अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष)

संसार की किसी भी धर्म पुस्तक में नारी की महिमा का इतना सुंदर गुण गान नहीं मिलता जितना वेदों में मिलता हैं.कुछ उद्हारण देकर हम अपने कथन को सिद्ध करेगे.

१. उषा के समान प्रकाशवती-

ऋग्वेद ४/१४/३

हे राष्ट्र की पूजा योग्य नारी! तुम परिवार और राष्ट्र में सत्यम, शिवम्, सुंदरम की अरुण कान्तियों को छिटकती हुई आओ , अपने विस्मयकारी सद्गुणगणों के द्वारा अविद्या ग्रस्त जनों को प्रबोध प्रदान करो. जन-जन को सुख देने के लिए अपने जगमग करते हुए रथ पर बैठ कर आओ.

२. वीरांगना-

यजुर्वेद ५/१०

हे नारी! तू स्वयं को पहचान. तू शेरनी हैं, तू शत्रु रूप मृगों का मर्दन करनेवाली हैं, देवजनों के हितार्थ अपने अन्दर सामर्थ्य उत्पन्न कर. हे नारी ! तू अविद्या आदि दोषों पर शेरनी की तरह टूटने वाली हैं, तू दिव्य गुणों के प्रचारार्थ स्वयं को शुद्ध कर! हे नारी ! तू दुष्कर्म एवं दुर्व्यसनों को शेरनी के समान विश्वंस्त करनेवाली हैं, धार्मिक जनों के हितार्थ स्वयं को दिव्य गुणों से अलंकृत कर.

३. वीर प्रसवा

ऋग्वेद १०/४७/३

राष्ट्र को नारी कैसी संतान दे

हमारे राष्ट्र को ऐसी अद्भुत एवं वर्षक संतान प्राप्त हो, जो उत्कृष्ट कोटि के हथियारों को चलाने में कुशल हो, उत्तम प्रकार से अपनी तथा दूसरों की रक्षा करने में प्रवीण हो, सम्यक नेतृत्व करने वाली हो, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष रूप चार पुरुषार्थ- समुद्रों का अवगाहन करनेवाली हो, विविध संपदाओं की धारक हो, अतिशय क्रियाशील हो, प्रशंशनीय हो, बहुतों से वरणीय हो, आपदाओं की निवारक हो.

४. विद्या अलंकृता

यजुर्वेद २०/८४

विदुषी नारी अपने विद्या-बलों से हमारे जीवनों को पवित्र करती रहे. वह कर्मनिष्ठ बनकर अपने कर्मों से हमारे व्यवहारों को पवित्र करती रहे. अपने श्रेष्ठ ज्ञान एवं कर्मों के द्वारा संतानों एवं शिष्यों में सद्गुणों और सत्कर्मों को बसाने वाली वह देवी गृह आश्रम -यज्ञ एवं ज्ञान- यज्ञ को सुचारू रूप से संचालित करती रहे.

५. स्नेहमयी माँ

अथर्वेद ७/६८/२

हे प्रेमरसमयी माँ! तुम हमारे लिए मंगल कारिणी बनो, तुम हमारे लिए शांति बरसाने वाली बनो, तुम हमारे लिए उत्कृष्ट सुख देने वाली बनो. हम तुम्हारी कृपा- दृष्टि से कभी वंचित न हो.

६. अन्नपूर्ण

अथर्ववेद ३/२८/४

इस गृह आश्रम में पुष्टि प्राप्त हो, इस गृह आश्रम में रस प्राप्त हो. इस गिरः आश्रम में हे देवी! तू दूध-घी आदि सहस्त्रों पोषक पदार्थों का दान कर. हे यम- नियमों का पालन करने वाली गृहणी! जिन गाय आदि पशु से पोषक पदार्थ प्राप्त होते हैं उनका तू पोषण कर.

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:

जिस कुल में नारियो कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण , दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियो कि पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं.

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Giriraj Nagar:
तुलसीदास की रामचरितमानस में ढोल गंवार शूद्र पशु और नारी का अभिप्राय एवं इस दोहे को लेकर समाज में फैला भ्रम :-
तुलसीदास जी रचित रामचरित मानस में नारियों को सम्मान जनक रूप में प्रस्तुत किया है। जिससे ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:’ ही सिद्ध होता है। नारियों के बारे में उनके जो विचार देखने में आते हैं उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:-
“धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी।
आपद काल परखिए चारी।।”
अर्थात धीरज, धर्म, मित्र और पत्नी की परीक्षा अति विपत्ति के समय ही की जा सकती है। इंसान के अच्छे समय में तो उसका हर कोई साथ देता है, जो बुरे समय में आपके साथ रहे वही आपका सच्चा साथी है। उसीके ऊपर आपको सबसे अधिक भरोसा करना चाहिए।"जननी सम जानहिं पर नारी । तिन्ह के मन सुभ सदन तुम्हारे ।।" अर्थात जो पुरुष अपनी पत्नी के अलावा किसी और स्त्री को अपनी मां सामान समझता है, उसी के ह्रदय में भगवान का निवास स्थान होता है। जो पुरुष दूसरी नारियों के साथ संबंध बनाते हैं वह पापी होते हैं, उनसे ईश्वर हमेशा दूर रहता है। "मूढ़ तोहि अतिसय अभिमाना । नारी सिखावन करसि काना ।।" अर्थात भगवान राम सुग्रीव के बड़े भाई बाली के सामने स्त्री के सम्मान का आदर करते हुए कहते हैं, दुष्ट बाली तुम अज्ञानी पुरुष तो हो ही लेकिन तुमने अपने घमंड में आकर अपनी विद्वान् पत्नी की बात भी नहीं मानी और तुम हार गए। मतलब अगर कोई आपको अच्छी बात कह रहा है तो अपने अभिमान को त्यागकर उसे सुनना चाहिए, क्या पता उससे आपका फायदा ही हो जाए। "तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर न सुन्दर । केकिही पेखु बचन सुधा सम असन अहि ।। अर्थात तुलसीदास जी कहते हैं सुन्दर लोगों को देखकर मुर्ख लोग ही नहीं बल्कि चालाक मनुष्य भी धोखा खा जाता है। सुन्दर मोरों को ही देख लीजिए उनकी बोली तो बहुत मीठी है लेकिन वह सांप का सेवन करते हैं। इसका मतलब सुन्दरता के पीछे नहीं भागना चाहिए। चाहे कोई भी हो। तमाम सीमाओं और अंतर्विरोधों के बावजूद तुलसी लोकमानस में रमे हुए कवि हैं। उनका सबसे प्रचलित दोहा जिसे सबने अपने तरीके से तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया। हमेशा विवादों के घेरे में आ जाता है। कई महिला संगठनों ने तो इसका घोर विरोध भी किया। "प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥ ढोल गंवार सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥" अर्थात प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी (दंड दिया), किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है। ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और स्त्री ये सब शिक्षा के अधिकारी हैं। कुछ लोग इस चौपाई का अपनी बुद्धि और अतिज्ञान के कारण विपरीत अर्थ निकालकर तुलसी दास जी और रामचरित मानस पर आक्षेप लगाते हुए अक्सर दिख जाते हैं। सामान्य समझ की बात है कि अगर तुलसीदास जी स्त्रियों से द्वेष या घृणा करते तो रामचरित मानस में उन्होंने स्त्री को देवी समान क्यों बताया? और तो और- तुलसीदास जी ने तो- "एक नारिब्रतरत सब झारी। ते मन बच क्रम पतिहितकारी। अर्थात, पुरुष के विशेषाधिकारों को न मानकर दोनों को समान रूप से एक ही व्रत पालने का आदेश दिया है। साथ ही सीता जी की परम आदर्शवादी महिला एवं उनकी नैतिकता का चित्रण, उर्मिला के विरह और त्याग का चित्रण यहां तक कि लंका से मंदोदरी और त्रिजटा का चित्रण भी सकारात्मक ही है। सिर्फ इतना ही नहीं सुरसा जैसी राक्षसी को भी हनुमान द्वारा माता कहना, कैकेई और मंथरा भी तब सहानुभूति का पात्र हो जाती हैं जब उन्हें अपनी गलती का पश्चाताप होता है ऐसे में तुलसीदासजी के शब्द का अर्थ स्त्री को पीटना अथवा प्रताड़ित करना है ऐसा तो आसानी से हजम नहीं होता। इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक है कि तुलसीदास जी शूद्रों के विषय में तो कदापि ऐसा लिख ही नहीं सकते क्योंकि उनके प्रिय राम द्वारा शबरी, निषाद, केवट आदि से मिलन के जो उदाहरण है वो तो और कुछ ही दर्शाते हैं। तुलसीदास जी ने मानस की रचना अवधी में की है और प्रचलित शब्द ज्यादा आए हैं, इसलिए 'ताड़न' शब्द को संस्कृत से ही जोड़कर नहीं देखा जा सकता, राजा दशरथ ने स्त्री के वचनों के कारण ही तो अपने प्राण दे दिए थे। श्री राम ने स्त्री की रक्षा के लिए रावण से युद्ध किया, रामायण के प्रत्येक पात्र द्वारा पूरी रामायण में स्त्रियों का सम्मान किया गया और उन्हें देवी बताया गया। असल में ये चौपाइयां उस समय कही गई है जब समुद्र द्वारा श्रीराम की विनय स्वीकार न करने पर जब श्री राम क्रोधित हो गए और अपने तरकश से बाण निकाला तब समुद्र देव श्रीराम के चरणों मे आए और श्रीराम से क्षमा मांगते हुए अनुनय करते हुए कहने लगे कि- हे प्रभु आपने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी और ये ये लोग विशेष ध्यान रखने यानि, शिक्षा देने के योग्य होते हैं। ताड़ना एक अवध

ी शब्द है जिसका अर्थ पहचानना परखना या रेकी करना होता है। तुलसीदास जी के कहने का मंतव्य यह है कि अगर हम ढोल के व्यवहार (सुर) को नहीं पहचानते तो, उसे बजाते समय उसकी आवाज कर्कश होगी अतः उससे स्वभाव को जानना आवश्यक है।
इसी तरह गंवार का अर्थ किसी का मजाक उड़ाना नहीं बल्कि उनसे है जो अज्ञानी हैं और उनकी प्रकृति या व्यवहार को जाने बिना उसके साथ जीवन सही से नहीं बिताया जा सकता। इसी तरह पशु और नारी के परिप्रेक्ष में भी वही अर्थ है कि जब तक हम नारी के स्वभाव को नहीं पहचानते उसके साथ जीवन का निर्वाह अच्छी तरह और सुखपूर्वक नहीं हो सकता। इसका सीधा सा भावार्थ यह है कि ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और नारी के व्यवहार को ठीक से समझना चाहिए और उनके किसी भी बात का बुरा नहीं मानना चाहिए।
परन्तु दुर्भाग्य तुलसीदास जी रचित इस चौपाई को लोग अपने जीवन में भी उतारते हैं और रामचरित मानस को नहीं समझ पाते हैं।
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लघुकथा- प्रभुत्व

सुबह से ही उठकर जल्दी-जल्दी मैं घर के काम में जुट गई। घड़ी की ओर देखा, अभी वक्त बाकी था। आज मुझे महिला दिवस के उपलक्ष्य में किसी सामाजिक संस्था में स्पीच देने जो जाना था।
नाश्ता-पानी हो चुका था और घर की सफाई भी…। मैंने फटाफट गंदे कपड़े वाॅशिंग मशीन में डाले और नहाने के लिए बाथरूम में घुस गई।
नहाकर आई तो बड़ी जोर की भूख लग आई थी। किचन में जाकर मैंने गरमागरम एक कप चाय बनाई और आलू का पराठा प्लेट में धर, कमरे में लेकर चली आई। गस्सा तोड़कर मुँह में डाला है था कि रोमेश कमरे में आ गया और कमरे की खिड़की खोलकर चला गया। खिड़की से आती ठंडी हवा मेरे बदन को सुरसुरा गई, जबकि मैंने हल्की-सी ऊनी कोटी भी पहन रखी थी।
किसी तरह गस्से को गले से नीचे उतार, लगभग चीखने की कोशिश करते हुए मैंने आवाज लगाई, “रोमेश रोमेश!”

उधर से आवाज आई, “क्या है? बोलो …।”

मैंने फिर आवाज लगाई, मगर इस बार खुद को संयत करते हुए, “पहले तुम इधर तो आओ।”

वह दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया। मैंने पूछा, ये बताओ रोमेश, तुम्हें अभी इस वक्त कमरे में बैठना है क्या?”

उसने बड़ी ही मासूमियत से “ना” में गर्दन हिलाई।

“तो फिर तुमने खिड़की खोली ही क्यों? मैं देख रही हूँ, तुम्हारा ये सब बढ़ता ही जा रहा है।”

उसने घूरकर मेरी ओर देखा।

“इस तरह क्या देख रहो जी। मैं कुछ बोलती नहीं तो इसका मतलब ये तो नहीं कि तुम अपनी मनमर्जियाँ मुझपर लादते जाओ। रोज तुम आकर इसी तरह कभी खिड़की खोल जाते हो तो कभी रात में किताब पढ़ते वक्त बड़ी लाइट बंद करके छोटी लाइट जला जाते हो? आखिर तुम चाहते क्या है? आज तो मैं जानकर ही रहूँगी। बोलो रोमेश, बोलो आखिर क्यों?”

रोमेश ने आँखें तरेरी और तीर-सा कमरे से बाहर निकल गया।
मैंने भी झट मोबाइल उठाकर नम्बर मिला दिया।

उधर से आवाज आई, “हैलो!”

मैं बोल पड़ी, “हैलो मीता जी नमस्ते, आई एम वेरी साॅरी!” आज मैं स्पीच देने नहीं आ पाऊँगी। अभी तो वक्त बाकी है, आप मेरी जगह किसी अन्य सदस्या को तैयार कर लीजिएगा, प्लीज़।”

उधर से फिर आवाज आई, “वो तो कोई न कोई सदस्या तैयार हो ही जाएगी, लेकिन आप नहीं आएँगी …। आखिर क्यों?”
फोन डिस्कनेक्ट करते हुए, मैं बुदबुदा पड़ी, “दरअसल आज की स्पीच तो पहले मुझे अपने घर में ही देनी होगी ना।”

मौलिक एवं स्वरचित
प्रेरणा गुप्ता – कानपुर
8 – 3 – 2021

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🌹महिला दिवस पर विशेष🌹

लघु कहानी—“नारायणी बिटिया”

“अरे अभी 12 बजे तो तू सोई थी ;अब उठकर फिर पढ़ने बैठ गई,नींद भी जरूरी है न बेटा।”रात में तीन बजे बिटिया को पढ़ते देख उमा जी बोल उठी।

“माँ मेरी नींद पूरी हो गई। तुम सो जाओ ..और चिंता मत करो।” निक्की ने मुस्कुराकर माँ को आश्वासन दिया।

माँ बिस्तर पर जाकर लेट गई;चलचित्र आँखों के सामने था। अभी कुछ साल पहले तो विवाह हुआ था,बड़े परिवार की जिम्मेदारी संग नोकरी।हर कार्य को जी जान से पूरा करती बिटिया को देखकर एक बारगी तो गर्वोन्नत हो उठती है।

लेकिन फिर मन के किसी कोने में चीत्कार उठती काश जल्दी विवाह न करती तो अपना ias बनने का सपना पूरा कर लेती। एक ठंडी निश्वास के संग करवट लेकर उमा लेट गई।
” अरे माँ!उठ गई, चलो दोनो चाय पीते है” सुबह सुबह बिटिया की मीठी मुस्कान से जैसे मन खिल सा गया।

“माँ इस बार में जरूर पास हो जाऊँगी; बस फिर आप दोनों को सरकारी गाड़ी में खूब घुमाउंगी; गले में बाहें डालकर निक्की ने कहा।”
माँ ने मुस्कुराकर कहा-“बिल्कुल बेटा मुझे भी पूरा भरोसा है तेरी मेहनत पर” ओर मन ही मन ईश मनाकर उन्हें भी रिश्वत दे ही डाली।

छुट्टी लेकर मायके आई बिटिया को इस कदर कर्म लीन देखकर उमा जी सोच रही थी नारी के इस रूप को ही शायद नारायणी कहा गया है।
अपने कर्म पथ पर बिना विचलन ओर फिसलन के चलना,दायित्वों का निर्बाध पालन करते हुए भी लक्ष्य की डोर को अंत तक थामे रखना ही महत्वपूर्ण है।
“माँ ओ माँ ; अरे कहाँ खो गई”कंधे को थामकर बेटे ने हिलाया तो अवचेतन मन जागा।
” हाँ, नही बस तुम्हारी दीदी के बारे में सोच रही थी।”
माँ दीदी का रिजल्ट आ गया है और वो पहली परिक्षा में पास हो गई है।
“सच; तेरे मुँह में घी शक्कर” अरे माँ घी नही ;बहुत मोटा हो गया हूँ।
खिलखिलाकर हँस पड़ा छोटू।
“माँ आज निकलना भी है मुझे। आगे की तैयारी और घर भी देखना है।” निक्की ने जाने की तैयारी भी पूरी कर ली थी।
“ठीक है तू जरा रुक!”
हाथ में राई, नमक और लाल मिर्च देख भाई बहन मुस्कुरा दिए।
कुसुम शर्मा नीमच

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महिला दिवस पर विशेष
स्वयंवर
( लघुकथाओं की महाकथा )
“डैडी मैं तो शादी को लेकर उलझन में पड़ गई हूं !कई लड़के मेरी नजर में है परंतु किसी में कुछ अच्छा है तो दूसरे में कुछ” ड्राइंग रूम में बैठे अपाहिज पिता को उसकी बेटी ने अपनी समस्या बताई ।
“बेटी ऐसा करो ,एक दिन सबको घर पर बुला लो ,अपने अपने बायोडाटा के साथ !सब का इंटरव्यू कर लेना ।अच्छे से चुनाव हो जाएगा ।प्राचीन काल में इसे स्वयंवर कहते थे ।”
“यह ठीक है डैडी “, रंजना की समझ में आ गई ।निश्चित तिथि को निश्चित समय पर सभी युवकों को आमंत्रित किया गया।
कुल दस युवा उपस्थित हुए ।क्रमशः सबको मिलने की व्यवस्था की गई।तैयार होकर रंजना अपने आजमगढ शीशे के सामने आ गई।
दो चित्र उसकी पुतलियों में आज भी समाए हैं। एक पड़ोसी द्वारा शराब के नशे में अपनी पत्नी को पीटना ,,,,दर्द भरी चीख और उसका तड़पकर ढेर हो जाना ,,,।दूसरा चित्र पड़ोस की नई नवेली निर्मला का जिसे कम दहेज लाने के फलस्वरुप मिट्टी का तेल डालकर जला देना ,,।तब से उसने फैसला किया था वह शादी अपनी पसंद की करेगी या ताउम्र नहीं करेगी ,,,,,,,।
“क्या सारी उम्र,, !”शीशे से आवाज आई ।
“हां सारी उम्र “। “संरक्षण ,,,!”
“मेरी बाहों में है “
। “पैसा ,,,,,,”? “मैं स्वयं कमाऊगी।”
“तन की भूख,,।” ” हजारों साधन है”।
“बच्चे ,,, ।” ” सोचा नहीं आवश्यकता पड़ी तो,,,,,,।”
“तो इन सब के लिए पति क्यों नहीं ?”
“मैं दासता स्वीकार नहीं कर सकती ,,,!” रंजना ने शीशे में ऊभरी आकृति पर अपना पंजा रख दिया और अपने लिए किसी दास पति का चुनाव करने के लिए लान में आ गई।

लड़का लड़की दोनों को एकांत में बातचीत करने की व्यवस्था की गई थी ।पहले लड़के ने रंजना से पूछा, “मैडम आपका नाम प्लीज,,, !” “जी मैंने बायोडाटा में लिख दिया है ,जो आपके हाथ में है”। “वेल रंजना,,,,,, वेरी गुड,,, ,प्लीज ,एक बात सच सच बताइए आपका किसी लड़के से लव अफेयर,,,,।” ” क्या ?” रंजना चौक गई ,”आप यह कैसा सवाल पूछ रहे हैं ?” ” देखो रंजना विवाह दो प्राणियों के संपूर्ण जीवन का संबंध है इसलिए हमारे बीच कोई पर्दा नहीं रहना चाहिए,,,”। “तो ठीक है आप भी मुझे सच सच बताइए आपका कभी किसी लड़की के साथ अफेयर रहा है?” रंजना का प्रत्येक शब्द विश्वास से भरा था ।
युवक ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इस प्रकार के प्रश्न का सामना करना पड़ सकता है ।वह यकायक तिलमिला गया। “अपने होने वाले पति से ऐसा सवाल पूछने का तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि मैं तुम्हें पसंद करने आया हूं ।” ” नहीं जनाब ,पसंद नापसंद पर मेरा भी पूरा अधिकार है ।आप मेरे सवाल का जवाब नहीं दे सकते तो मैं आप को रिजेक्ट करती हूं,,,,!” टका सा जवाब देकर रंजना आगे बढ़ गई।
दूसरे ग्रुप में युवक के साथ कई लोग आए थे सबसे पहले रंजना के शरीर को घूर घूर कर जांच पड़ताल की ,,,,,कुछ प्रश्न भी पूछे ,,,सैंडल उतरवाकर
चलवाया गया ।” बेटे हमने तो अपनी बात कर ली अब आप अपनी बात कर लो “,कहते हुए प्रोढ वहां से हट गए।
युवक के साथ केवल उसका एक छोटा भाई रह गया ।छोटे ने रंजना से पूछा ,”भाभी तनै दूध बिलोना आवै सै। ” रंजना ने स्वीकृति में गर्दन हिला दी। “ठीक है ,एक बात और बता तने बिजली की कुंडी लगानी आवै से, ,?” “कैसी कुंडी ?”उसने आश्चर्य से पूछा। “वह जो बिना बिल की बिजली लेने ,घर के ऊपर तारों में लगानी पड़े सै,,,।” “चोरी,,, !”रंजना ने घृणापूर्ण दृष्टि से दोनों को देखा और आगे बढ़ गई ।
रंजना अगले युवक के पास पहुंची तो उसका परिवार पंडित जी से झगड़ रहा था ।क्या बात है पंडित जी रंजना ने पूछा। “क्या बताऊं बेटी उन्होंने अभी तक लड़के का मेडिकल प्रमाण पत्र ही नहीं दिया ।कहते हैं हमारे लड़के को कोई बीमारी नहीं है, कल को एचआईवी ,थैलेसीमिया आदि कोई रोग निकल आया तो हमें दोष मत देना!” पंडित जी ने सारा माजरा समझाया।
“नहीं हमें ऐसे लापरवाह लोगों से कोई बात नहीं करनी है “,कहते हुए रंजना आगे बढ़ गई।
अगला युवक रंजना को देखते ही उसकी बाछे खिल गई , “हेलो डियर रंजना आज तो हमारे विवाह का फैसला हो ही जाएगा और अगले माह से तुम रंजना चावला बन जाओगी।”
” क्यों ,,,,,”?
“हमारी शादी जो हो जाएगी।”
“शादी का नाम बदलने से क्या अर्थ है ?”
“यही परंपरा है शादी के बाद प्रत्येक लड़की को अपने पति का गोत्र धारण करना होता है !”
“मैं इसको उचित नहीं मानती।”
” भला क्यों ?”
“लड़की का अपना परिवार ,अपना गोत्र होता है! जन्म देने वाले माता पिता होते हैं !उनको पूर्णता कैसे विलुप्त किया जा सकता है !मैं तो ताउम्र गोविल ही बनी रहूंगी,,,।”
“मजाक कर रही हो क्या ?”
“नहीं नहीं ,पूरी गंभीरता के साथ सोच समझ कर बोल रही हूं,,।”
“रंजना जानती हो कितनी कठिनाई से हमारा परिवार शादी के लिए तैयार हुआ है! अब तुमने यह कैसी जिद्द लगा दी है।”
“ज़िद्द नहीं आकाश, यह नारी जाति के वजूद का सवाल है।”
“क्या यह तुम्हारा अंतिम फैसला है ?”
“बिल्कुल ,मेरा निर्णय ठीक लगे तो बता देना !”कठोर कदमो के साथ रंजना आगे बढ़ गई। अगले युवक का बायोडाटा देखकर रंजना ने उससे पूछा, ” मिस्टर विनोद ,मान लीजिए हमारी शादी हो जाती है तो भविष्य में हमें बच्चा चाहिए ही,
तो क्या आप उसका पालन पोषण कर पाएंगे?:” “इसकी चिंता मत करो हम इसे क्रैच में छोड़ देंगे”!
“फिर तो बेबी तुम्हारा नहीं क्रेज का बन जाएगा!” “सच कहूं तो मैं नौकरी से आने के बाद इतना थक जाती हूं कि कुछ भी करने की हिम्मत नहीं रहती। यदि तुम अपनी नौकरी छोड़कर बच्चे को संभालो तो विचार किया जा सकता है ।”
“क्या आप नौकरी छोड़कर घर संभालने पर विचार नहीं कर सकती !?”
“नो नेवर ,मैं बच्चे को पैदा कर सकती हूं परंतु संभालना आपको पड़ेगा यदि इस बात से सहमत हो तो बता देना” ,कहकर रंजना के कदम आगे बढ़ गए!
दूसरी पंक्ति में उसका साथीटिंकू ,लजाया ,शरमाया खड़ा था। रंजना ने भरपूर दृष्टि से उसे ऊपर से नीचे तक देखा और पूछा ,”टिंकू सच बताना आपको खाना बनाना आता है ?”
“जी थोड़ा-थोड़ा आता है !”
“तुम्हारे डैडी ने यह भी नहीं सिखाया?”
” जी मैं हॉस्टल में रहता था ना इसलिए !”
“ठीक है यह बताओ क्या तुम्हें बेबी को संभालना आता है?”
“जी मैं सीख लूंगा!”
“कब”?
” जब तक बेबी आएगा।”
” देखो टिंकू, मैं सर्विस वाली लड़की हूं घर से बाहर मुझे दस प्रकार के व्यक्तियों से मिलना होता है कहीं बाद में झगड़ा विवाद ,कोर्ट कचहरी हो,,,।”
” नहीं मैं आपके साथ अच्छे से एडजस्ट कर लूंगा”! “पहली मुलाकात में तो सभी मर्द ऐसे ही बोलते हैं ,उनका असली चेहरा तो बाद में नजर आता है!” “आप चिंता ना करें, मैं सारी उम्र आपका ख्याल रखूंगा “।
“खैर उम्र भर का फैसला तो बाद में देखेंगे पहले एक मास मेरे साथ रहकर दिखाओ ।आपका टेस्ट भी हो जाएगा।”
“हां जी यह भी ठीक है” ,एक मास तक उसको साथ रखने के लिए अपनी सहेली को उसका नाम नोट करा दिया और आगे बढ़ गई।
अगले युवक को देखने से पूर्व रंजना की दृष्टि उसके द्वारा टेबल पर सजाएं हीरे जवाहरात के गहनों पर पड़ी ।मैडम यह देखो बाजूबंद यह देखो गलबंद ,,,जरा पहनकर शीशे में देखो आसू ने लड़की को खुश करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी ।ऐ जोहरी बाबू ,हाथों में हथकड़ी गले में फांसी का फंदा लगाकर मुझे आभूषणों में कैद करना चाहते हो ।एक तो इन धातुओं का बोझ उठाओ दूसरा इनकी सुरक्षा की चिंता में घूलते रहो,,,,। परंतु धनी और सुंदर तो लगेगी
ना बाबा ना मुझे सुंदर और धनवान नहीं बनना है। हौसले वाली बनकर अपने पांव पर खड़ा होना है” ।आशु का चेहरा उतर गया और वह धीरे-धीरे अपने गहने समेटने लगा ।
अगले रूम में भी रंजना का चिर परिचित दोस्त बैठा था। उसने आगे बढ़कर स्वागत किया, “आज तो हमारी शादी का फैसला हो ही जाएगा,,,,,।”
” मेरी एक प्रॉब्लम है मयंक मैं अपने अपाहिज पापा को अकेला नहीं छोड़ सकती ।मेरे अतिरिक्त उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है ।उन्होंने मुझे पाल पोस कर बड़ा किया है। देखो बुरा मत मानना ,शादी के बाद हमें उनके साथ रहना होगा ।”
“यार, ऐसा भी कहीं होता है ,,!”
“क्यों इसमें क्या दिक्कत है ।आखिर उन्होंने मुझे जन्म दिया है ।मैं सपने में भी नहीं सोच सकती उनको नौकरों के भरोसे छोड़कर दूसरा घर आबाद करु”, रंजना ने दृढ़ता से कहा, “तुम्हारा तो फिर भी भरा पूरा परिवार है परंतु मेरे पापा को हमारी बहुत आवश्यकता है ।”
“तुम कुछ समझती नहीं हो !हमारा समाज ,परिवार ,परंपराएं है।”
“आवश्यकता के अनुसार उनको बदला भी जा सकती हैं ,,,समझ लो मेरा यह भीष्म संकल्प है कि मैं उसी के साथ शादी करूंगी जो मेरे साथ मेरे घर में रहे ।”
“एक वर्ष से हम एक होने के सपने बुन रहे हैं !” “माता-पिता 22 वर्ष से हमारे लिए सपने बुन रहे हैं!”
” मुझे कुछ सोचने समझने का वक्त दो !”
“एक मास तक मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी यदि मेरा प्रस्ताव ठीक लगे तो घर आ जाना”, स्पष्ट कह कर रंजना आगे चल पड़ी ।
डैडी घर के ड्राइंग रूम में उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। रंजना को आते देख उन्होंने पूछा,” कहो बेटी कोई लड़का समझ में आया क्या?”
“क्या बताऊं डैडी सब पुरातन पंथी हैऔर परंपरा वादी विचारों के हैं ।एक को ट्राई के लिए रखा
है ।”
“कोई चिंता नहीं डियर ,सोच विचार कर फैसला करना इस बार समझ में न आया तो एक स्वयंवर और रख लेंगे” ,कहते हुए डैडी आराम से लेट गए ! मधुकांत , रोहतक

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अंतराष्ट्रीय_महिलादिवस

एक स्त्री की जीत

“ माँ ,आप कोर्ट में वही कहेंगी ,जो वकील ने आपको समझाया है।”
“ बेटा,मैं बहुत टूट चुकी हूँ।” विवाह के बाद झेले सारे मानसिक,शारीरिक दुखों की वेदना सावित्री के स्वर में फूट पड़ी।
“माँ,अभी आपकी टूटन के हिसाब का समय नहीं है।”
“पिताजी को दुनिया इतना मानती है।इतने बड़े आदमी हैं, सत्ता, मीडिया, समाज सभी उनके साथ हैं।उन पर इतना गन्दा इल्ज़ाम!“
“ वो ऐसा कर ही नहीं सकते। आपने जो देखा वो आपका भ्रम है।”
सावित्री व्यंग्य से: “वो क्या कर सकते हैं और क्या नहीं! एक पत्नी होने के नाते मुझसे बेहतर कौन जान सकता है!”
“और हाँ बेटा! माँ की टूटन पिता की दौलत के आगे क्या मायने रखती है!”
सावित्री व्यंग्य,निराशा को ओढे स्वार्थी बेटे को देख और सुन रही थी।
“ माँ,बस ये याद रखना,हमारा सारा वैभव,ये दौलत,शान सब आपके बयान पर टिका है।”
“ ठीक है बेटा,आज तक जुबान बन्द रखी।आगे भी बन्द रखूंगी।” सावित्री ने अपनी बाजुओं पर पड़े जख्मों के दागों को घूरते हुए कहा।
“ हेलो,आंटी जी।”
“कौन?”सावित्री ने अचानक फोन पर एक अपरिचित आवाज़ सुन कर कहा।
“ आंटी,मैं वही लड़की हूँ ,जिसके ब्लात्कार के केस में आपको अभी थोड़ी देर में गवाही देनी है। आंटी उस रात आप मुझे नहीं बचा पायीं पर आंटी,आप ही एक चश्मदीद गवाह हैं,जिसने उस रातआपके पति को मेरा बलात्कार करते देखा था।”
“ मैं चुप रहूंगी। नही बोलूंगी अपने पति के खिलाफ| हमारी इज्जत,हमारी सारी शान क्यों मिट्टी में मिलाऊँ ?”
“ आंटी!पत्नी,इज्जत,शान इन सबसे पहले बस एक बार सोचिएगा: आप सबसे पहले एक स्त्री हैं!”
लड़की की सिसकती आवाज़ सावित्री को चीर गयी| सावित्री को वो रात याद थी जब उसके बंगले में एक लड़की की अस्मिता का हनन हो रहा था और सावित्री कुछ नहीं कर पायी। सावित्री के पति के बॉडीगार्ड्स की फौज के आगे वो अकेली कहाँ तक लड़ती। सावित्री को कमरे में बंद कर दिया गया। लड़की ने पुलिस को बयान दिया की सावित्री जी घटनास्थल पर उपस्थित थीं तब उन्हें गवाही के लिए बुलाया गया।
“ सावित्री देवी ,हाज़िर हों ।”
सावित्री जज के सामने थी ।
“ आपने उस रात क्या देखा ?”
सावित्री ने एक नज़र सामने अपराधी बन खड़े पति को देखा ! फिर नज़र घूमा वैभव व दौलत के लालची बेटे को देखा !
कोर्ट रूम में मौजूद पति के पक्ष में खड़ी वकीलों की फौज , सत्ता के नुमाइंदों ,खरीदी हुई मीडिया-सभी पर दृष्टि डाली !
कानों में उस रात की लड़की की चीखों को स्मरण किया !आंखों में पति की दरिन्दगी का दृश्य साकार किया!
हलक में जमे शब्दों को पिघलाते हुए कहा :
” जज साहब यही है वो इंसान ! जिसने उस रात लड़की का बलात्कार किया। मैंने देखा।”
स्त्री की जीत कोर्ट में गुंजायमान हो चुकी थी|
डॉ संगीता गाँधी.

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. भगवत्कृपा की अनूभूति लगभग सन् १९३० के आसपास की बात है। मालवीयजी के भतीजे श्रीकृष्णकांत मालवीय नैनी जेल में थे। नैनी जेल से उनकी बदली बस्ती जेल में हुई। नैनी से बस्ती जाने का रास्ता गोरखपुर होकर ही है। उन्होंने तार दिया कि गोरखपुर स्टेशन पर पन्द्रह व्यक्तियों के लिये भोजन की व्यवस्था कर दीजिये। उस समय इलाहाबाद से आने वाली गाड़ी शाम को करीब पाँच बजे गोरखपुर पहुँचती थी। तार गीताप्रेस में आया था। मैं उस समय गोरखनाथ के पास बगीचे में रहता था। उस समय न टेलीफोन था, न मोटर थी, रिक्शे भी उस समय नहीं थे। इक्का भी जल्दी वहाँ मिलता नहीं था। वहाँ से स्टेशन करीब तीन मील होगा। प्रेसवालों ने भूल यह की कि भोजन का प्रबन्ध तो किया नहीं, एक साइकिल वाले के साथ तार मेरे पास भेज दिया। तार मेरे पास लगभग पौने पाँच बजे पहुँचा। अब उस समय न हमारे पास भोजन तैयार, न कोई सवारी उपलब्ध– गाड़ी आने में करीब पन्द्रह मिनिट बाकी थे। अब क्या करें ? मन में कुछ चिंता हुई, प्रेस वालों पर भी मन में झुंझलाहट हुई कि इन्तजाम नहीं किया। तार खोल कर पढ़ ही लिया था, ऐसे ही यहाँ भेज दिया। हे भगवान् ! अब क्या करूँ ? इतने में ही बाबू बालमुकुन्दजी जिनका वह मकान था, उनके यहाँ उस दिन प्रसाद था। उसी समय दो इक्के आये और उसमें पूड़ी, साग, मिठाई,फल आदि सब चीजें थीं। कोई बीस-पच्चीस व्यक्तियों का सामान था। मेरे मन में आया कि यह तो भगवान् ने ही भेजा है। उन्हीं इक्कों में वही सामान ज्यों-का-त्यों आदमी देकर स्टेशन भेज दिया। गाड़ी पन्द्रह मिनिट देर से आयी। वे लोग सोलह व्यक्ति थे, सभी ने बड़े बड़े मजे से खाया और बड़ी प्रसन्नता प्रकट करके गये। अब सोचिये एक घण्टे पहले बाद सामान आता तो उनके काम नहीं आता और दो घण्टे पहले आ गया होता तो घरवाले लोग खा लेते। भगवान् के मंगल विधानसे सब ठीक हो गया। पुस्तक: भाईजी—चरितामृत - गीतावाटिका प्रकाशन ----------:::×:::---------- "जय जय श्री राधे"


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कुछ दिनों के बाद –
“सीढ़ियों पर चढ़ना मुझे बेदम कर देता है।
दिल की कोई तकलीफ नहीं? ”
“डॉक्टर मुर्तजा को दिखाएं”
उसने फिर सुझाव दिया।
मैं इस समय नहीं जा सका।

और कुछ दिन –
“मैं थकान महसूस कर रही हूँ।
क्या यह मधुमेह नहीं है? “
“डॉक्टर मुर्तजा को दिखाएं”
अब उसने कस के पकड़ लिया।
“ओह, लेकिन डॉ। मुर्तजा वास्तव में क्या विशेषज्ञ हैं?”
मैंने उससे पूछा।

“राई का पहाड़ बनाने के लिए”
उसने जवाब दिया।

● अंक का अर्थ है अंक

१०


मेरे साथ एक अजीब बात हुई। मेरा वेतन एक महीने के भीतर 24 तारीख को समाप्त हो गया। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है।

25 तारीख को मैं परेशान हो गया
26 तारीख को, बैंक ने एक सप्ताह पहले लेन-देन को सही किया और मेरे खाते में पैसे जमा कर दिए
27 वें दिन, एक दोस्त ने कुछ महीने पहले उधार लिए गए पैसे वापस कर दिए
28 तारीख को, मुझे उपहार के रूप में पुरानी डायरी में एक बटुआ मिला
29 तारीख को, जब मुझे मेरा प्रमोशन पत्र मिला, तो मैं रुक गया और अपनी पत्नी से पूछा, “इस सप्ताह आपने कौन सी नई बात शुरू की है, मुझे सच बताएं?”

पत्नी ने अचरज में कहा, “कुछ नहीं। मैं चार दिनों के लिए छत पर पार्टियों के लिए कुछ बाजरा और पानी डाल रही हूं।”

  • शुभ रात्रि … !! *
  • *जल है तो कल है … *