Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

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वास्तविक पुण्य

किसी आश्रम में एक साधु रहता था। काफी सालों से वह इसी आश्रम में रह रहा था। अब वह काफी वृद्ध हो चला था और मृत्यु को वह निकट महसूस कर रहा था, लेकिन संतुष्ट था कि 30 साल से उसने प्रभु का सिमरन किया है, उसके खाते में ढेर सारा पुण्य जमा है इसलिए उसे मोक्ष मिलना तो तय ही है।

एक दिन उसके ख्याल में एक स्त्री आयी। स्त्री ने साधु से कहा~ “अपने एक दिन के पुण्य मुझे दे दो और मेरे एक दिन के पाप तुम वरण कर लो।”
इतना कह कर स्त्री लोप हो गयी।
साधु बहुत बेचैन हुआ कि इतने बरस तो स्त्री ख्याल में ना आयी, अब जब अंत नजदीक है तो स्त्री ख्याल में आने लगी।
फिर उसने ख्याल झटक दिया और प्रभु सुमिरन में बैठ गया।
स्त्री फिर से ख्याल में आयी। फिर से उसने कहा कि~
“एक दिन का पुण्य मुझे दे दो और मेरा एक दिन का पाप तुम वरण कर लो।”

इस बार साधु ने स्त्री को पहचानने की कोशिश की लेकिन स्त्री का चेहरा बहुत धुंधला था, साधु से पहचाना नहीं गया! साधु अब चिंतित हो उठा कि एक दिन का पुण्य लेकर यह स्त्री क्या करेगी! हो ना हो ये स्त्री कष्ट में है! लेकिन गुरु जी ने कहा हुआ है कि आपके पुण्य ही आपकी असल पूंजी है, यह किसी को कभी मत दे बैठना। और इतनी मुश्किल से पुण्यो की कमाई होती है, यह भी दे बैठे तो मोक्ष तो गया। हो ना हो ये मुझे मोक्ष से हटाने की कोई साजिश है।

साधू ने अपने गुरु के आगे अपनी चिंता जाहिर की।
गुरु ने साधु को डांटा~
‘मेरी शिक्षा का कोई असर नहीं तुझ पर? पुण्य किसी को नहीं देने होते। यही आपकी असली कमाई है।”

साधु ने गुरु जी को सत्य वचन कहा और फिर से प्रभु सुमिरन में बैठ गया।
स्त्री फिर ख्याल में आ गयी। बोली~ तुम्हारा गुरु अपूर्ण है, इसे ज्ञान ही नहीं है, तुम तो आसक्ति छोड़ने का दम भरते हो, बीवी-बच्चे, दीन-दुनिया छोड़ कर तुम इस अभिमान में हो कि तुमने आसक्ति छोड़ दी है। तुमने और तुम्हारे गुरु ने तो आसक्ति को और जोर से पकड़ लिया है। किसी जरूरतमंद की मदद तक का चरित्र नहीं रहा तुम्हारा तो।”

साधु बहुत परेशान हो गया! वह फिर से गुरु के पास गया। स्त्री की बात बताई। गुरु ने फिर साधु को डांटा~ “गुरु पर संदेह करवा कर वह तुम्हे पाप में धकेल रही है। जरूर कोई बुरी आत्मा तुम्हारे पीछे पड़ गयी है।”

साधु अब कहाँ जाए! वह वापिस लौट आया और फिर से प्रभु सुमिरन में बैठ गया। स्त्री फिर ख्याल में आयी। उसने फिर कहा~ “इतने साल तक अध्यात्म में रहकर तुम गुलाम भी बन गए हो। गुरु से आगे जाते। इतने साल के अध्ययन में तुम्हारा स्वतंत्र मत तक नहीं बन पाया। गुरु के सीमित ज्ञान में उलझ कर रह गए हो। मैं अब फिर कह रही हूँ, मुझे एक दिन का पुण्य दे दो और मेरा एक दिन का पाप वरण कर लो। मुझे किसी को मोक्ष दिलवाना है। यही प्रभु इच्छा है।”

साधु को अपनी अल्पज्ञता पर बहुत ग्लानि हुई। संत मत कहता है कि पुण्य किसी को मत दो और धर्म कहता है जरूरतमंद की मदद करो। यहां तो फंस गया। गुरु भी राह नही दे रहा कोई, लेकिन स्त्री मोक्ष किसको दिलवाना चाहती है।

साधु को एक युक्ति सूझी। जब कोई राह ना दिखे तो प्रभु से तार जोड़ो। प्रभु से राह जानो। प्रभु से ही पूछ लो कि उसकी रजा क्या है???
उसने प्रभु से उपाय पूछा। आकाशवाणी हुई।

वाणी ने पूछा~ “पहले तो तुम ही बताओ कि तुम कौन से पुण्य पर इतरा रहे हो???”

साधु बोला~ “मैंने तीस साल प्रभू सुमिरन किया है। तीस साल मैं भिक्षा पर रहा हूँ। कुछ संचय नही किया। त्याग को ही जीवन माना है। पत्नी बच्चे तक सब त्याग दिया।”

वाणी ने कहा~ “तुमने तीस बरस कोई उपयोगी काम नही किया। कोई रचनात्मक काम नही किया। दूसरों का कमाया और बनाया हुआ खाया। राम-राम, ॐ नमः शिवाय, जय माता की जपने से पुण्य कैसे इकठा होते है मुझे तो नही पता। तुम डॉलर-डॉलर, रुपिया-रुपिया जपते रहो तो क्या तुम्हारा बैंक खाता भर जायेगा? तुम्हारे खाते में शून्य पुण्य है।”

साधु बहुत हैरान हुआ। बहुत सदमे में आ गया। लेकिन हिम्मत करके उसने प्रभु से पूछा कि~ “फिर वह स्त्री पुण्य क्यो मांग रही है।”

प्रभु ने कहा~ “क्या तुम जानते हो वह स्त्री कौन है???”

साधु ने कहा~ “नही जानता लेकिन जानना चाहता हूं।”

प्रभु ने कहा~ “वह तुम्हारी धर्मपत्नी है। तुम जिसे पाप का संसार कह छोड़ आये थे। कुछ पता है वह क्या करती है???”

साधु की आंखे फटने लगी। उसने कहा~ “नही प्रभु। उसके बारे में मैं कुछ नहीं जानता!”
प्रभु ने कहा~ “तो सुनो, जब तुम घर से चुपचाप निकल आये थे तब वह कई दिन तुम्हारे इन्तजार में रोई। फिर एक दिन संचय खत्म हो गया और बच्चों की भूख ने उसे तुम्हारे गम पोंछ डालने के लिए विवश कर दिया। उसने आंसू पोंछ दिए और नौकरी के लिए जगह-जगह घूमती भटकती रही। वह इतनी पढ़ी लिखी नही थी। तुम बहुत बीच राह उसे छोड़ गए थे। उसे काम मिल नही रहा था इसलिए उसने एक कुष्ठ आश्रम में नौकरी कर ली। वह हर रोज खुद को बीमारी से बचाती उन लोगो की सेवा करती रही जिन्हे लोग वहां त्याग जाते हैँ। वह खुद को आज भी पापिन कहती है कि इसीलिए उसका मर्द उसे छोड़ कर चला गया!”

प्रभु ने आगे कहा~ “अब वह बेचैन है तुम्हे लेकर। उसे बहुत दिनों से आभास होंने लगा है कि उसका पति मरने वाला है। वह यही चाहती है कि उसके पति को मोक्ष मिले जिसके लिए वह घर से गया है। उसने बारंबार प्रभु को अर्जी लगाई है की प्रभु मुझ पापिन की जिंदगी काम आ जाये तो ले लो। उन्हें मोक्ष जरूर देना। मैंने कहा उसे कि अपना एक दिन उसे दे दो। कहती है मेरे खाते में पुण्य कहाँ, होते तो मैं एक पल ना लगाती। सारे पुण्य उन्हें दे देती। वह सुमिरन नहीं करती, वह भी समझती है कि सुमिरन से पुण्य मिलते हैं।”

“मैंने उसे नहीं बताया कि तुम्हारे पास अथाह पुण्य जमा हैं। पुण्य सुमिरन से नहीं आता। मैंने उसे कहा~ कि एक साधु है उस से एक दिन के पुण्य मांग लो, अपने एक दिन के पाप देकर। उसने सवाल किया~ कि ऐसा कौन होगा जो पाप लेकर पुण्य दे देगा। मैंने उसे आश्वस्त किया कि साधु लोग ऐसे ही होते हैं।”

“वह औरत अपने पुण्य तुम्हे दे रही थी और तुम ना जाने कौन से हिसाब किताब में पड़ गए। तुम तो साधु भी ठीक से नहीं बन पाए। तुमने कभी नहीं सोचा कि पत्नी और बच्चे कैसे होंगे। लेकिन पत्नी आज भी बेचैन है कि तुम लक्ष्य को प्राप्त होवो। तुम्हारी पत्नी को कुष्ठ रोग है, वह खुद मृत्यु शैया पर है लेकिन तुम्हारे लिए मोक्ष चाह रही है। तुम सिर्फ अपने मोक्ष के लिए तीस बरस से हिसाब किताब में पड़े हो।”

साधू के बदन पर पसीने की बूंदे बहने लगी, सांस तेज होने लगी, उसने ऊँची आवाज में चीख लगाई~
“यशोदा$$$$$$!:”
साधु हड़बड़ा कर उठ बैठा, उसके माथे पर पसीना बह रहा था।
उसने बाहर झाँक कर देखा, सुबह होने को थी। उसने जल्दी से अपना झोला बाँधा और गुरु जी के सामने जा खड़ा हुआ।
गुरु जी ने पूछा~ “आज इतने जल्दी भिक्षा पर???”

साधु बोला~ “घर जा रहा हूँ।”

गुरु जी बोले~ “अब घर क्या करने जा रहे हो???”

साधु बोला~ “धर्म सीखने”

धर्म केवल वह नहीं है कि मंदिरों की घंटी बजाएं घंटों पूजा करें। मस्जिदों में जाकर नमाज पढ़ें, गिरजाघरों में जाकर प्रार्थना करें, गुरु ग्रंथ साहब का पाठ करें, ये सब तो धर्म से जोड़ने व सीखने के केंद्र हैं ।असली धर्म तो वह है किसी भूखे को खाना खिलाएं, किसी अंधे को सड़क पार कराएं, किसी जरूरतमंद की सहायता करें, किसी बीमार असहाय का इलाज कराएं, किसी छात्र की पढ़ने में सहायता करें, यही असली धर्म है, यही असली पुण्य है, पूजा-पाठ दिखावा करने से आपके पुण्य नहीं बढ़ेंगे वास्तविक किसी की सच्ची मदद करेंगे तभी आपके वास्तविक पुण्य का खाता बढ़ेगा।
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एक बुजुर्ग आदमी बुखार से ठिठुरता और भूखा प्यासा शिव मंदिर के बाहर बैठा था।

तभी वहां पर नगर के सेठ अपनी सेठानी के साथ एक बहुत ही लंबी और मंहगी कार से उतरे।
उनके पीछे उनके नौकरों की कतार थी।

एक नौकर ने फल पकडे़ हुए थे
दूसरे नौकर ने फूल पकडे़ थे
तीसरे नौकर ने हीरे और जवाहरात के थाल पकडे़ हुए थे।
चौथे नौकर ने पंडित जी को दान देने के लिए मलमल के 3 जोडी़ धोती कुरता और पांचवें नौकर ने मिठाईयों के थाल पकडे़ थे।

पंडित जी ने उन्हें आता देखा तो दौड़ के उनके स्वागत के लिए बाहर आ गए।

बोले आईये आईये सेठ जी, आपके यहां पधारने से तो हम धन्य हो गए।

सेठ जी ने नौकरों से कहा जाओ तुम सब अदंर जाके थाल रख दो।

हम पूजा पाठ सम्पन्न करने के बाद भगवान शिव को सारी भेंट समर्पित करेंगें।

बाहर बैठा बुजुर्ग आदमी ये सब देख रहा था।

उसने सेठ जी से कहा – मालिक दो दिनों से भूखा हूंँ,थोडी़ मिठाई और फल मुझे भी दे दो खाने को।

सेठ जी ने उसकी बात को अनसुना कर दिया।

बुजुर्ग आदमी ने फिर सेठानी से कहा – ओ मेम साहब थोडा़ कुछ खाने को मुझे भी दे दो मुझे भूख से चक्कर आ रहे हैं।

सेठानी चिढ़ के बोली बाबा, ये सारी भेटें तो भगवान को चढानें के लिये हैं। तुम्हें नहीं दे सकते, अभी हम मंदिर के अंदर घुसे भी नहीं हैं और तुमने बीच में ही टोक लगा दी।

सेठ जी गुस्से में बोले, लो पूजा से पहले ही टोक लग गई, पता नहीं अब पूजा ठीक से संपन्न होगी भी या नहीं।

कितने भक्ती भाव से अंदर जाने कि सोच रहे थे और इसने अड़चन डाल दी।

पंडित जी बोले शांत हो जाइये सेठ जी,इतना गुस्सा मत होईये।

अरे क्या शांत हो जाइये पंडितजी
आपको पता है – पूरे शहर के सबसे महँंगे फल और मिठाईयां हमने खरीदे थे प्रभु को चढानें के लिए और अभी चढायें भी नहीं कि पहले ही अडचन आ गई।

सारा का सारा मूड ही खराब हो गया,अब बताओ भगवान को चढानें से पहले इसको दे दें क्या ?

पंडितजी बोले अरे पागल है ये आदमी,आप इसके पीछे अपना मुड मत खराब करिये सेठजी चलिये आप अंदर चलिये, मैं इसको समझा देता हूँ। आप सेठानी जी के साथ अंदर जाईये।

सेठ और सेठानी बुजुर्ग आदमी को कोसते हुये अंदर चले गये।

पंडित जी बुजुर्ग आदमी के पास गए और बोले जा के कोने में बैठ जाओ, जब ये लोग चले जायेगें तब मैं तुम्हें कुछ खाने को दे जाऊंगा।

बुजुर्ग आदमी आसूं बहाता हुआ कोने में बैठ गया।

अंदर जाकर सेठ ने भगवान शिव को प्रणाम किया और जैसे ही आरती के लिए थाल लेकर आरती करने लगे,तो आरती का थाल उनके हाथ से छूट के नीचे गिर गया।

वो हैरान रह गए

पर पंडित जी दूसरा आरती का थाल ले आये।

जब पूजा सम्पन्न हुई तो सेठ जी ने थाल मँगवाई भगवान को भेंट चढानें को, पर जैसे ही भेंट चढानें लगे वैसे ही तेज़ भूकंप आना शुरू हो गया और सारे के सारे थाल ज़मीन पर गिर गए।

सेठ जी थाल उठाने लगे, जैसे ही उन्होनें थाल ज़मीन से उठाना चाहा तो अचानक उनके दोनों हाथ टेढे हो गए मानों हाथों को लकवा मार गया हो।

ये देखते ही सेठानी फूट फूट कर रोने लगी,बोली पंडितजी देखा आपने, मुझे लगता है उस बाहर बैठे बूढें से नाराज़ होकर ही भगवान ने हमें दण्ड दिया है।

उसी बूढे़ की अडचन डालने की वजह से भगवान हमसे नाराज़ हो गए।

सेठ जी बोले हाँ उसी की टोक लगाने की वजह से भगवान ने हमारी पूजा स्वीकार नहीं की।

सेठानी बोली, क्या हो गया है इनके दोनों हाथों को, अचानक से हाथों को लकवा कैसे मार गया,
इनके हाथ टेढे कैसे हो गए, अब क्या करूं मैं ? ज़ोर जो़र से रोने लगी –

पंडित जी हाथ जोड़ के सेठ और सेठानी से बोले – माफ करना एक बात बोलूँ आप दोनों से – भगवान उस बुजुर्ग आदमी से नाराज़ नहीं हुए हैं, बल्की आप दोनों से रूष्ट होकर भगवान आपको ये दण्ड दिया है।

सेठानी बोली पर हमने क्या किया है ?

पंडितजी बोले क्या किया है आपने ? मैं आपको बताता हूँ….

आप इतने महँंगे उपहार ले के आये भगवान को चढानें के लिये
पर ये आपने नहीं सोचा के हर इन्सान के अंदर भगवान बसते हैं।

आप अन्दर भगवान की मूर्ती पर भेंट चढ़ाना चाहते थे,पर यहां तो खुद उस बुजुर्ग आदमी के रूप में भगवान आपसे प्रसाद ग्रहण करने आये थे। उसी को अगर आपने खुश होकर कुछ खाने को दे दिया होता तो आपके उपहार भगवान तक खुद ही पहुंच जाते।

किसी गरीब को खिलाना तो स्वयं ईश्वर को भोजन कराने के सामान होता है।

आपने उसका तिरस्कार कर दिया तो फिर ईश्वर आपकी भेंट कैसे स्वीकार करते…..

सब जानते है किे श्री कृष्ण को सुदामा के प्रेम से चढा़ये एक मुटठी चावल सबसे ज़्यादा प्यारे लगे थे

अरे भगवान जो पूरी दुनिया के स्वामी है, जो सबको सब कुछ देने वाले हैं, उन्हें हमारे कीमती उपहार क्या करने हैं,वो तो प्यार से चढा़ये एक फूल, प्यार से चढा़ये एक बेल पत्र से ही खुश हो जाते हैं।

उन्हें मंहगें फल और मिठाईयां चढा़ के उन के ऊपर एहसान करने की हमें कोई आवश्यकता नहीं है।

इससे अच्छा तो किसी गरीब को कुछ खिला दीजिये,ईश्वर खुद ही खुश होकर आपकी झोली खुशियों से भर देगें।

और हाँं, अगर किसी माँंगने वाले को कुछ दे नहीं सकते तो उसका अपमान भी मत कीजिए क्यों कि वो अपनी मर्जी़ से गरीब नहीं बना है।

और कहते हैं ना – ईश्वर की लीला बडी़ न्यारी होती है, वो कब किसी भिखारी को राजा बना दे और कब किसी राजा को भिखारी कोई नहीं कह सकता….!
जय श्रीराम!
सुप्रभात!

हरीश शर्मा
🙏🙏🙏

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एक दादा अपनी प्यारी पोती की याद में क्या कुछ कर सकता है उसका जीता जाता उदाहरण एलएनटी के चेयरमैन रहे वर्तमान में नेशनल स्किल डेवलपमेंट कारपोरेशन के चेयरमैन पद्म विभूषण अनिल भाई मणि भाई नायक यानी a.m. नायक इसका जीता जाता उदाहरण है

एम ए नायक गुजरात के नवसारी जिले के खारेल गांव के रहने वाले हैं

यह एलएनटी के ग्रुप चेयरमैन पद तक पहुंचे इन्हें चार बार हावर्ड बिजनेस रिव्यू ने बेस्ट परफॉर्मिंग सीईओ ऑफ़ द वर्ल्ड का एवार्ड दिया इनके लीडरशिप में एलएनटी कंपनी बहुत आगे गई

हर दादा की तरह इन्हें भी अपनी पोती बहुत प्यारी थी जिसका नाम निराली था लेकिन एक दिन अनिल भाई तब टूट गए जब पता चला कि उनकी प्यारी पोती को कैंसर हुआ है निराली के पिता यानी अनिल भाई के बेटे जिगेश नायक गूगल में नंबर दो की पोजीशन पर है घर में पैसे की कोई कमी नहीं थी निराली अपने परिवार के साथ कैलिफोर्निया में ही रहती थी लेकिन फिर भी उसे बचाया नहीं जा सका और निराली का दुखद निधन हो गया

उसके बाद अनिल भाई मणि भाई नायक ने एलएनटी के ग्रुप चेयरमैन की नौकरी छोड़ कर अपने गांव में रहने का निश्चय किया और अपने गांव में दुनिया का एक सर्वश्रेष्ठ कैंसर हॉस्पिटल बनाने का सोचा

जब यह एलएनटी के चेयरमैन से रिटायर हुए तब इन्हें लगभग 300 करोड़ रुपए मिले थे और क्योंकि नवसारी रतन टाटा का भी पैतृक गांव है तो कुछ मदद रतन टाटा ने भी किया और इस तरह अनिल भाई मणि भाई नायक ने अपनी पोती की याद में गुजरात के नवसारी में दुनिया का अत्याधुनिक कैंसर हॉस्पिटल यानी निराली कैंसर हॉस्पिटल का निर्माण किया इसका बुनियाद नरेंद्र मोदी जी ने 2019 में रखा था और इसका उद्घाटन भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने किया

इतना ही नहीं अपनी पोती की याद में एक शैक्षणिक ट्रस्ट भी बनाया है जिसमें गांव के गरीब बच्चों को फ्री में अच्छी एजुकेशन की व्यवस्था है

अब जब दादाजी ने इतना कुछ किया तब पिता निराली के पिता यानी जिगयेश नायक जो गूगल में नंबर दो की पोजीशन पर हैं वह भी गूगल की अपनी नौकरी छोड़कर और अमेरिका की अपनी वैभवी लाइफस्टाइल छोड़कर अपने दादा के साथ अब गांव में रहने आ रहे हैं

निराली मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल में एकदम मुफ्त में कैंसर का इलाज हो रहा है और इस हॉस्पिटल में दुनिया के अत्याधुनिक साजो सामान और बेहद एडवांस डॉक्टर अपनी सेवाएं दे रहे हैं और अब निराली मेमोरियल ट्रस्ट के बोर्ड में रतन टाटा भी शामिल हो गए हैं और अब निराली मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल मुंबई के टाटा कैंसर हॉस्पिटल के साथ मिलकर काम कर रहा है

मैंने कई बार यह देखा है जिंदगी में पैसा सब कुछ नहीं होता एक ऐसा वक्त आता है जब आपके पास दुनिया की अथाह दौलत होती है दुनिया की अथाह सुख सुविधाएं होती हैं लेकिन आपका मन इनसे ऊब जाता है और आप अपने गांव में अपनी पहले की प्राकृतिक जिंदगी जीना चाहते हैं

Jitendra_Pratap_Singh