यादों के बादल (लघुकथा)
मैने अपनी ढलती उम्र में भी उन पुराने ख़तो को बड़ी शिद्दत से सम्भाल कर रखा हुआ था। समय काटने के लिये हमेशा की तरह उन्हें पढ रहा था। ये ख़त सरिता यानि मेरी पत्नी के थे जो उस समय एक दो महिने के लिये जब मायके जाती थी तब लिखा करती थी। बडे प्यारे ख़त लिखती थी। मोती जैसे अक्षर थे उसके! ख़त में अक्सर गाने कविता लिखती थी। ऐसा ही ख़त मेरी नजरों के सामने था। उसने गाना लिखा था -“चुरा लिया है तुमने जो दिल को नजर नहीं चुराना सनम, बदल कर मेरी तुम जिन्दगानी……! “
मुझे अच्छी तरह याद है मैने भी जवाब में गाना लिखा था-“कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है..! “
कभी वह नीरज की कविता या जगजीत सिंह की गज़ले लिखती थी। सारे ख़तो का मज़मून मिला दो तो प्यारी सी प्रेम कहानी बन सकती है। जब वो कैंसर से आखिरी लडाई लड़ रही थी तो मैं उसके सिरहाने बैठ कर अक्सर ये ख़त दिखाता था। वह हंसने लगती-“सच में कितने पागल और बच्चे थे हम? पर.. पर बहुत प्यारे थे वे दिन..! “फिर कहीं खो जाती.. फिर आहिस्ता से कहती-“नीरज तुम्हारे पास पैसे तो हे ना? या सारे मेरी बीमारी में पूरे कर दिये..? देखो तुम बहुत सीधे सरल हो… कहीं मेरे जाने के बाद बच्चों ने तुम्हारा ख्याल नहीं रखा तो? ” मैं उसको दिलासा देता-“तू ठीक हो जायेगी पगली… क्यों जाने की बात करती है? “फिर उसे उसका वह ख़त दिखाता जिसमें उसने गाना लिखा था -“जब कोई बात बिगड़ जाये, जब कोई मुश्किल पड़ जाए तुम देना साथ मेरा ओ हमनवा!”..”तू ऐसा लिखती है और तू ही साथ छोड़ने की बात करती है? “-मैं गुस्सा होने की नाकाम कोशिश करता हूँ। वह फीकी हंसी हंसती है -“मुझे झूठमूठ क्यों बहलाते हो नीरज… मैं जानती मेरे पास कुछ लम्हें बचे हैं..! देखो ध्यान से सुनो तुम अपना काम अपने हाथ से करना सीखो और पैसे सम्भाल कर रखो… मुझे बहुत चिंता है तुम्हारी.. इन पुराने ख़तो के बंडल की तरह किसी कोने में डाल दिये जाओगे जिन्हें पढने कोई नहीं आता। “
मेरी आंखों में छाये यादों के बादलों से टपक कर दो बूंद उन ख़तो पर गिर गई।
—-पदम गोधा गुरुग्राम हरियाणा