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♦️♦️♦️ रात्रि कहांनी ♦️♦️♦️

*🟢”सेवा भक्ति”🙏 🏵️
🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅 वृन्दावन में एक बिहारी जी का परम् भक्त था, पेशे से वह एक दुकानदार था। वह रोज प्रातः बिहारी जी के मन्दिर जाता था और फिर गो सेवा में समय देता और गरीब, बीमार और असहाय लोगों के उपचार, भोजन और दवा का प्रबन्ध करता।

वह बिहारी जी के मन्दिर जाता न तो कोई दीपक जलाता न कोई माला न फूल न कोई प्रसाद। उसे अपने पिता की कही एक बात, जो उसने बचपन से अपने पिता से ग्रहण की थी और जीवन मन्त्र बना रखी थी। उसके पिता ने कहा था बिहारी जी की सेवा तो भाव से होती है। जो उनके हर जीव की, पशु पक्षियों की सेवा करता है वह उन्हें प्रिय है। देखो उन्होंने भी तो गौ सेवा की थी। लेकिन एक बात थी मन्दिर में बिहारी जी की जगह उसे एक ज्योति दिखाई देती थी, जबकि मन्दिर में बाकी के सभी भक्त कहते वाह ! आज बिहारी जी का श्रंगार कितना अच्छा है, बिहारी जी का मुकुट ऐसा, उनकी पोशाक ऐसी, तो वह भक्त सोचता, बिहारी जी सबको दर्शन देते है, पर मुझे क्यों केवल एक ज्योति दिखायी देती है। हर दिन ऐसा होता।
एक दिन बिहारी जी से बोला ऐसी क्या बात है की आप सबको तो दर्शन देते हैं पर मुझे दिखायी नहीं देते। कल आपको मुझे दर्शन देना ही पड़ेगा। अगले दिन मन्दिर गया फिर बिहारी जी उसे ज्योत के रूप में दिखे। वह बोला बिहारी जी अगर कल मुझे आपने दर्शन नहीं दिये तो में यमुना जी में डूबकर मर जाऊँगा।
उसी रात में बिहारी जी एक कोड़ी के सपने में आये जो कि मन्दिर के रास्ते में बैठा रहता था, और बोले तुम्हे अपना कोड़ ठीक करना है वह कोड़ी बोला-हाँ भगवान, बिहारिजी बोले – तो कल यहाँ से मेरा एक भक्त निकलेगा तुम उसके चरण पकड़ लेना और तब तक मत छोड़ना जब तक वह ये न कह दे कि बिहारी जी तुम्हारा कोड़ ठीक करे। कोड़ी बोला पर प्रभु यहाँ तो रोज बहुत से भक्त आते हैं मैं उन्हें पहचानुँगा कैसे ? भगवान ने कहा जिसके पैरों से तुम्हे प्रकाश निकलता दिखायी दे वही मेरा वह भक्त है।
अगले दिन वह कोड़ी रास्ते में बैठ गया जैसे ही वह भक्त निकला उसने चरण पकड़ लिए और बोला पहले आप कहो कि मेरा कोड़ ठीक हो जाये। वह भक्त बोला मेरे कहने से क्या होगा आप मेरे पैर छोड दीजिये। कोड़ी बोला जब तक आप ये नहीं कह देते की बिहारी जी तुम्हारा कोड़ ठीक करें तब तक मैं आपके चरण नहीं छोडूँगा। भक्त वैसे ही चिंता में था, कि बिहारी जी दर्शन नहीं दे रहे, ऊपर से ये कोड़ी पीछे पड़ गया तो वह झुँझलाकर बोला “जाओ बिहारी जी तुम्हारा कोड़ ठीक करें” और मन्दिर चला गया।
मन्दिर जाकर क्या देखता है बिहारीजी के दर्शन हो रहे हैं, बिहारीजी से पूछने लगा अब तक आप मुझे दर्शन क्यों नहीं दे रहे थे, तो बिहारीजी बोले: तुम मेरे निष्काम भक्त हो आज तक तुमने मुझसे कभी कुछ नहीं माँगा इसलिए मैं क्या मुँह लेकर तुम्हे दर्शन देता, यहाँ सभी भक्त कुछ न कुछ माँगते रहते हैं, इसलिए में उनसे नजरें मिला सकता हूँ, पर आज तुमने रास्ते में उस कोड़ी से कहा कि, बिहारी जी तुम्हारा कोड़ ठीक कर दें इसलिए में तुम्हे दर्शन देने आ गया।

भक्तों भगवान की निष्काम भक्ति ही करनी चाहिये, भगवान की भक्ति करके यदि संसार के ही भोग-सुख ही माँगे तो फिर वह भक्ति नहीं वह तो सोदेबाजी है। सबसे बड़ी परमात्मा की सेवा उनकी है जो वास्तव में बेबस और लाचार है। असहाय और दुःखियों की निस्वार्थ सेवा इस जगत की सबसे बड़ी सेवा है।

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मित्रता की ताकत,,,,,,

एक बार की बात है कि बनगिरी के घने जंगल में एक उन्मुत्त हाथी ने भारी उत्पात मचा रखा था। वह अपनी ताकत के नशे में चूर होने के कारण किसी को कुछ नहीं समझता था। बनगिरी में ही एक पेड़ पर एक चिड़िया व चिडे का छोटा-सा सुखी संसार था।
चिडिया अंडों पर बैठी नन्हें नन्हें प्यारे बच्चों के निकलने के सुनहरे सपने देखती रहती। एक दिन क्रूर हाथी गरजता, चिंघाडता पेडों को तोडता-मरोडता उसी ओर आया।
देखते ही देखते उसने चिडिया के घोंसले वाला पेड भी तोड डाला। घोंसला नीचे आ गिरा, अंडे टूट गए और ऊपर से हाथी का पैर उस पर पडा। चिडिया और चिडा चीखने चिल्लाने के सिवा और कुछ न कर सके।

हाथी के जाने के बाद चिडिया छाती पीट-पीटकर रोने लगी। तभी वहां कठफोठवी आई, वह चिडिया की अच्छी मित्र थी। कठफोडवी ने उनके रोने का कारण पूछा तो चिडिया ने अपनी सारी कहानी कह डाली। कठफोडवी बोली इस प्रकार गम में डूबे रहने से कुछ नहीं होगा उस हाथी को सबक सिखाने के लिए हमें कुछ करना होगा। चिडिया ने निराशा दिखाई।
हम छोटे-मोटे जीव उस बलशाली हाथी से कैसे टक्कर ले सकते हैं ?

कठफोडवी ने समझाया एक और एक मिलकर ग्यारह बनते हैं। हम अपनी शक्तियां जोडेंगे। कैसे, चिडिया ने पूछा। मेरा एक मित्र वींआख नामक भंवरा है, हमें उससे सलाह लेना चाहिए।
चिडिया और कठफोडवी भंवरे से मिली। भंवरा गुनगुनाया, यह तो बहुत बुरा हुआ। मेरा एक मेंढक मित्र है आओ उससे सहायता मांगे।

अब तीनों उस सरोवर के किनारे पहुंचे, जहां वह मेढक रहता था। भंवरे ने सारी समस्या बताई। मेंढक भर्राये स्वर में बोला- आप लोग धैर्य से जरा यहीं मेरी प्रतीक्षा करें। मैं गहरे पानी में बैठकर सोचता हूं, ऐसा कहकर मेंढक जल में कूद गया। आधे घंटे बाद वह पानी से बाहर आया तो उसकी आंखे चमक रही थी।
वह बोला दोस्तो उस हत्यारे हाथी को नष्ट करने की मेरे दिमाग में एक बड़ी अच्छी योजना आई है। उसमें सभी का योगदान होगा, मेंढक ने जैसे ही अपनी योजना बताई, सब खुशी से उछल पडे।
योजना सचमुच ही अदभुत थी मेंढक ने दोबारा बारी-बारी सबको अपना-अपना रोल समझाया। कुछ ही दूर वह उन्मत्त हाथी तोडफोड मचाकर व पेट भरकर कोंपलों वाली शाखाएं खाकर मस्ती में खडा झूम रहा था।

पहला काम भंवरे का था, वह हाथी के कानों के पास जाकर मधुर राग गुंजाने लगा। राग सुनकर हाथी मस्त होकर आंखें बंद करके झूमने लगा।
तभी कठफोडवी ने अपना काम कर दिखाया। वह आई और अपनी सुई जैसी नुकीली चोंच से उसने तेजी से हाथी की दोनों आंखें बींध डाली। हाथी की आंखे फूट गईं। वह तडपता हुआ अंधा होकर इधर-उधर भागने लगा। जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था, हाथी का क्रोध बढता जा रहा था। आंखों से नजर न आने के कारण ठोकरों और टक्करों से शरीर जख्मी होता जा रहा था। जख्म उसे और चिल्लाने पर मजबूर कर रहे थे। चिडिया कृतज्ञ स्वर में मेढक से बोली, मैं आजीवन तुम्हारी आभारी रहूंगी। तुमने मेरी इतनी सहायता कर दी।
मेढक ने कहा आभार मानने की जरुरत नहीं। मित्र ही मित्रों के काम आते हैं।

एक तो आंखों में जलन और ऊपर से चिल्लाते-चिंघाडते हाथी का गला सूख गया। उसे तेज प्यास लगने लगी। अब उसे एक ही चीज की तलाश थी पानी।
मेढक ने अपने बहुत से बंधु-बांधवों को इकट्ठा किया और उन्हें ले जाकर दूर बहुत बड़े गड्ढे के किनारे बैठकर टर्राने के लिए कहा।
सारे मेढक टर्राने लगे, मेढक की टर्राहट सुनकर हाथी के कान खडे हो गए। वह यह जानता था कि मेढक जल स्त्रोत के निकट ही वास करते हैं, वह उसी दिशा में चल पडा। टर्राहट और तेज होती जा रही थी।
प्यासा हाथी और तेज भागने लगा। जैसे ही हाथी गड्ढे के निकट पहुंचा, मेढकों ने पूरा जोर लगाकर टर्राना शुरु किया। हाथी आगे बढा और विशाल पत्थर की तरह गड्ढे में गिर पडा, जहां उसके प्राण पखेरु उडते देर न लगे। इस प्रकार उस अहंकार में डूबे हाथी का अंत हुआ।

शिक्षा – एकता में बल है और अहंकारी का देर/ सबेर अंत होता ही है।
जय महादेव
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दुरदर्शी राजा हा फोटो छ.शिवाजी महाराजांच्या राज्याभिषेकाच्या मिरवणुकीचा आहे.या मिरवणुकीसाठी हत्ती लागतील याचा विचार छ.शिवरायांनी आधीच करून ठेवला होता.छ.शिवरायांच्या सैन्यात हत्तींचा वापर होत नसे.हत्तीचा वापर केवळ शोभेसाठी होत होता.त्याकाळी रायगड किल्ल्यावर जाण्यासाठीचा मार्ग अतिशय अरुंद होता जेथून माणसालासुद्धा चालणे फार अवघड होते.जर त्या रस्त्यावरून कुणी खाली पडले तर त्याचे प्रेतसुद्धा मिळणे अशक्य होते इतकी खोल दरी तेथे होती. अशा अरुंद रस्त्यावरून एवढे अवाढव्य हत्ती कसे काय रायगडावर पोहोचले हे त्याकाळच्या इंग्रज अधिकाऱ्याला (जो राज्याभिषेकासाठी **हजार होता) कळलेच नाही.नंतर फार जास्त विचारपूस केल्यावर कळले की छ.शिवाजी महाराजांनी राज्याभिषेकाच्या १८ वर्षे अगोदरच दोन हत्तीचे पिल्ले (एक नर एक मादा )कर्नाटक वरून उन्हाळ्याच्या काळात बोलाविले होते.त्यांना छ.शिवरायांचा एक माणूस रोज हिरवा चारा द्यायचा.तेथील वाळलेला चारा खायची त्या हत्तींना सवय लागू दिली नाही.नंतर काही दिवसांनी हाच माणूस हिरवा चारा त्याच्या डोक्यावर घेऊन फिरायचा आणि ते हत्ती भूकेपोटी त्या चाऱ्याच्या मागे फिरायचे.थकल्यावर त्यांना तो चारा मिळायचा.एक दिवस त्या माणसाने तो हिरवा चारा डोक्यावर घेऊन रायगडाच्या अरुंद पायवाटेने चालायला सुरुवात केली.ते दोनीही हत्ती चारयाकडे बघत बघत त्याच अरुंद पायवाटेवरून चालू लागले.त्यांचे लक्ष केवळ त्या चारयाकडे होते.खाली असलेली जीवघेणी खोल दरी त्यांना दिसून चक्कर येऊन त्यांचा खाली पडण्याचा प्रश्नच तेव्हा उरला नव्हता.असे आपल्या अन्नाकडे बघत बघत ते दोनीही हत्तीचे पिल्ले रायगडावर पोहोचले.त्याच दोन हत्तींचे प्रजनन होऊन जे हत्ती पुढे जन्मले त्यापैकी काही मरण पावले आणि फक्त चार उरले त्याच हत्तींवर छ.शिवरायांची मिरवणूक काढण्यात आली होती.एवढा दूरदृष्टीकोन ठेवणारे आपले छ.शिवाजी महाराज खरोखर महान होते.त्यांच्याकडून प्रेरणा घेऊन आपणही दूरदृष्टीकोन ठेऊन आपले जीवन समृद्ध करूया .....................................*छ.शिवाजी महाराज की जय..........🚩🚩🚩🚩

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The Facts about Life of the Great Hero of India
Son of India Shahid Bhagat Singh

भगत सिंह की ज़िंदगी के वे आख़िरी 12 घंटे

वर्ष 1927 में पहली बार गिरफ़्तारी के बाद जेल में खींची गई भगत सिंह की फ़ोटो (तस्वीर चमन लाल ने उपलब्ध करवाई है)
लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च, 1931 की शुरुआत किसी और दिन की तरह ही हुई थी. फ़र्क सिर्फ़ इतना सा था कि सुबह-सुबह ज़ोर की आँधी आई थी.

लेकिन जेल के क़ैदियों को थोड़ा अजीब सा लगा जब चार बजे ही वॉर्डेन चरत सिंह ने उनसे आकर कहा कि वो अपनी-अपनी कोठरियों में चले जाएं. उन्होंने कारण नहीं बताया.

उनके मुंह से सिर्फ़ ये निकला कि आदेश ऊपर से है. अभी क़ैदी सोच ही रहे थे कि माजरा क्या है, जेल का नाई बरकत हर कमरे के सामने से फुसफुसाते हुए गुज़रा कि आज रात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाने वाली है.

उस क्षण की निश्चिंतता ने उनको झकझोर कर रख दिया. क़ैदियों ने बरकत से मनुहार की कि वो फांसी के बाद भगत सिंह की कोई भी चीज़ जैसे पेन, कंघा या घड़ी उन्हें लाकर दें ताकि वो अपने पोते-पोतियों को बता सकें कि कभी वो भी भगत सिंह के साथ जेल में बंद थे.

सॉन्डर्स मर्डर केस में जज ने इसी कलम से भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के लिए फांसी की सज़ा लिखी थी
बरकत भगत सिंह की कोठरी में गया और वहाँ से उनका पेन और कंघा ले आया. सारे क़ैदियों में होड़ लग गई कि किसका उस पर अधिकार हो. आखिर में ड्रॉ निकाला गया.

लाहौर कॉन्सपिरेसी केस
अब सब क़ैदी चुप हो चले थे. उनकी निगाहें उनकी कोठरी से गुज़रने वाले रास्ते पर लगी हुई थी. भगत सिंह और उनके साथी फाँसी पर लटकाए जाने के लिए उसी रास्ते से गुज़रने वाले थे.

एक बार पहले जब भगत सिंह उसी रास्ते से ले जाए जा रहे थे तो पंजाब कांग्रेस के नेता भीमसेन सच्चर ने आवाज़ ऊँची कर उनसे पूछा था, “आप और आपके साथियों ने लाहौर कॉन्सपिरेसी केस में अपना बचाव क्यों नहीं किया.”

भगत सिंह का जवाब था, “इन्कलाबियों को मरना ही होता है, क्योंकि उनके मरने से ही उनका अभियान मज़बूत होता है, अदालत में अपील से नहीं.”

भगत सिंह की खाकी रंग की कमीज
वॉर्डेन चरत सिंह भगत सिंह के ख़ैरख़्वाह थे और अपनी तरफ़ से जो कुछ बन पड़ता था उनके लिए करते थे. उनकी वजह से ही लाहौर की द्वारकादास लाइब्रेरी से भगत सिंह के लिए किताबें निकल कर जेल के अंदर आ पाती थीं.

जेल की कठिन ज़िंदगी
भगत सिंह को किताबें पढ़ने का इतना शौक था कि एक बार उन्होंने अपने स्कूल के साथी जयदेव कपूर को लिखा था कि वो उनके लिए कार्ल लीबनेख़्त की ‘मिलिट्रिज़म’, लेनिन की ‘लेफ़्ट विंग कम्युनिज़म’ और आप्टन सिंक्लेयर का उपन्यास ‘द स्पाई’, कुलबीर के ज़रिए भिजवा दें.

भगत सिंह जेल की कठिन ज़िंदगी के आदी हो चले थे. उनकी कोठरी नंबर 14 का फ़र्श पक्का नहीं था. उस पर घास उगी हुई थी. कोठरी में बस इतनी ही जगह थी कि उनका पाँच फ़ुट, दस इंच का शरीर .
भगत सिंह के जूते जिसे उन्होंने अपने साथी क्रांतिकारी जयदेव कपूर को तोहफ़े में दे दिया था
भगत सिंह को फांसी दिए जाने से दो घंटे पहले उनके वकील प्राण नाथ मेहता उनसे मिलने पहुंचे. मेहता ने बाद में लिखा कि ‘भगत सिंह अपनी छोटी सी कोठरी में पिंजड़े में बंद शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे.’

‘इंक़लाब ज़िदाबाद!’
उन्होंने मुस्करा कर मेहता को स्वागत किया और पूछा कि आप मेरी किताब ‘रिवॉल्युशनरी लेनिन’ लाए या नहीं? जब मेहता ने उन्हें किताब दी तो वो उसे उसी समय पढ़ने लगे मानो उनके पास अब ज़्यादा समय न बचा हो.

मेहता ने उनसे पूछा कि क्या आप देश को कोई संदेश देना चाहेंगे? भगत सिंह ने किताब से अपना मुंह हटाए बग़ैर कहा, “सिर्फ़ दो संदेश… साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और ‘इंक़लाब ज़िदाबाद!”

इसके बाद भगत सिंह ने मेहता से कहा कि वो पंडित नेहरू और सुभाष बोस को मेरा धन्यवाद पहुंचा दें, जिन्होंने मेरे केस में गहरी रुचि ली थी. भगत सिंह से मिलने के बाद मेहता राजगुरु से मिलने उनकी कोठरी पहुंचे.

भगत सिंह की घड़ी. इसे उन्होंने अपने साथी क्रांतिकारी जयदेव कपूर को तोहफे में दे दिया था
राजगुरु के अंतिम शब्द थे, “हम लोग जल्द मिलेंगे.” सुखदेव ने मेहता को याद दिलाया कि वो उनकी मौत के बाद जेलर से वो कैरम बोर्ड ले लें जो उन्होंने उन्हें कुछ महीने पहले दिया था.

तीन क्रांतिकारी
मेहता के जाने के थोड़ी देर बाद जेल अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों को बता दिया कि उनको वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी जा रही है. अगले दिन सुबह छह बजे की बजाय उन्हें उसी शाम सात बजे फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा.

भगत सिंह मेहता द्वारा दी गई किताब के कुछ पन्ने ही पढ़ पाए थे. उनके मुंह से निकला, “क्या आप मुझे इस किताब का एक अध्याय भी ख़त्म नहीं करने देंगे?”

भगत सिंह ने जेल के मुस्लिम सफ़ाई कर्मचारी बेबे से अनुरोध किया था कि वो उनके लिए उनको फांसी दिए जाने से एक दिन पहले शाम को अपने घर से खाना लाएं.

असेंबली बम केस में लाहौर की सीआईडी ने ये गोला बरामद किया था
लेकिन बेबे भगत सिंह की ये इच्छा पूरी नहीं कर सके, क्योंकि भगत सिंह को बारह घंटे पहले फांसी देने का फ़ैसला ले लिया गया और बेबे जेल के गेट के अंदर ही नहीं घुस पाया.

आज़ादी का गीत
थोड़ी देर बाद तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की तैयारी के लिए उनकी कोठरियों से बाहर निकाला गया. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने अपने हाथ जोड़े और अपना प्रिय आज़ादी गीत गाने लगे-

कभी वो दिन भी आएगा

कि जब आज़ाद हम होंगें

ये अपनी ही ज़मीं होगी

ये अपना आसमाँ होगा.

फिर इन तीनों का एक-एक करके वज़न लिया गया. सब के वज़न बढ़ गए थे. इन सबसे कहा गया कि अपना आखिरी स्नान करें. फिर उनको काले कपड़े पहनाए गए. लेकिन उनके चेहरे खुले रहने दिए गए.

भगत सिंह के सिर पर पगड़ी हो या हैट?

पाकिस्तान में बना भगत सिंह चौक

भगत सिंह की भूख हड़ताल का पोस्टर जिस पर उनके ही नारे छपे हैं. पोस्टर नेशनल आर्ट प्रेस, अनारकली, लाहौर ने प्रिंट किया था
चरत सिंह ने भगत सिंह के कान में फुसफुसा कर कहा कि वाहे गुरु को याद करो.

फांसी का तख़्ता
भगत सिंह बोले, “पूरी ज़िदगी मैंने ईश्वर को याद नहीं किया. असल में मैंने कई बार ग़रीबों के क्लेश के लिए ईश्वर को कोसा भी है. अगर मैं अब उनसे माफ़ी मांगू तो वो कहेंगे कि इससे बड़ा डरपोक कोई नहीं है. इसका अंत नज़दीक आ रहा है. इसलिए ये माफ़ी मांगने आया है.”

जैसे ही जेल की घड़ी ने 6 बजाया, क़ैदियों ने दूर से आती कुछ पदचापें सुनीं. उनके साथ भारी बूटों के ज़मीन पर पड़ने की आवाज़ें भी आ रही थीं. साथ में एक गाने का भी दबा स्वर सुनाई दे रहा था, “सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है…”

सभी को अचानक ज़ोर-ज़ोर से ‘इंक़लाब ज़िंदाबाद’ और ‘हिंदुस्तान आज़ाद हो’ के नारे सुनाई देने लगे. फांसी का तख़्ता पुराना था लेकिन फांसी देने वाला काफ़ी तंदुरुस्त. फांसी देने के लिए मसीह जल्लाद को लाहौर के पास शाहदरा से बुलवाया.
भगत सिंह इन तीनों के बीच में खड़े थे. भगत सिंह अपनी माँ को दिया गया वो वचन पूरा करना चाहते थे कि वो फाँसी के तख़्ते से ‘इंक़लाब ज़िंदाबाद’ का नारा लगाएंगे.

लाहौर सेंट्रल जेल
लाहौर ज़िला कांग्रेस के सचिव पिंडी दास सोंधी का घर लाहौर सेंट्रल जेल से बिल्कुल लगा हुआ था. भगत सिंह ने इतनी ज़ोर से ‘इंकलाब ज़िंदाबाद’ का नारा लगाया कि उनकी आवाज़ सोंधी के घर तक सुनाई दी.

उनकी आवाज़ सुनते ही जेल के दूसरे क़ैदी भी नारे लगाने लगे. तीनों युवा क्रांतिकारियों के गले में फांसी की रस्सी डाल दी गई. उनके हाथ और पैर बांध दिए गए. तभी जल्लाद ने पूछा, सबसे पहले कौन जाएगा?

सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकने की हामी भरी. जल्लाद ने एक-एक कर रस्सी खींची और उनके पैरों के नीचे लगे तख़्तों को पैर मार कर हटा दिया. काफी देर तक उनके शव तख़्तों से लटकते रहे.

असेंबली बम केस में भगत सिंह के खिलाफ उर्दू में लिखा गया एफआईआर
अंत में उन्हें नीचे उतारा गया और वहाँ मौजूद डॉक्टरों लेफ़्टिनेंट कर्नल जेजे नेल्सन और लेफ़्टिनेंट कर्नल एनएस सोधी ने उन्हें मृत घोषित किया.

अंतिम संस्कार
एक जेल अधिकारी पर इस फांसी का इतना असर हुआ कि जब उससे कहा गया कि वो मृतकों की पहचान करें तो उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया. उसे उसी जगह पर निलंबित कर दिया गया. एक जूनियर अफ़सर ने ये काम अंजाम दिया.

पहले योजना थी कि इन सबका अंतिम संस्कार जेल के अंदर ही किया जाएगा, लेकिन फिर ये विचार त्यागना पड़ा जब अधिकारियों को आभास हुआ कि जेल से धुआँ उठते देख बाहर खड़ी भीड़ जेल पर हमला कर सकती है.

इसलिए जेल की पिछली दीवार तोड़ी गई. उसी रास्ते से एक ट्रक जेल के अंदर लाया गया और उस पर बहुत अपमानजनक तरीके से उन शवों को एक सामान की तरह डाल दिया गया.

भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह (तस्वीर चमन लाल ने उपलब्ध करवाई है)
पहले तय हुआ था कि उनका अंतिम संस्कार रावी के तट पर किया जाएगा, लेकिन रावी में पानी बहुत ही कम था, इसलिए सतलज के किनारे शवों को जलाने का फैसला लिया गया.

लाहौर में नोटिस
उनके पार्थिव शरीर को फ़िरोज़पुर के पास सतलज के किनारे लाया गया. तब तक रात के 10 बज चुके थे. इस बीच उप पुलिस अधीक्षक कसूर सुदर्शन सिंह कसूर गाँव से एक पुजारी जगदीश अचरज को बुला लाए.

अभी उनमें आग लगाई ही गई थी कि लोगों को इसके बारे में पता चल गया. जैसे ही ब्रितानी सैनिकों ने लोगों को अपनी तरफ़ आते देखा, वो शवों को वहीं छोड़ कर अपने वाहनों की तरफ़ भागे. सारी रात गाँव के लोगों ने उन शवों के चारों ओर पहरा दिया.

अगले दिन दोपहर के आसपास ज़िला मैजिस्ट्रेट के दस्तख़त के साथ लाहौर के कई इलाकों में नोटिस चिपकाए गए जिसमें बताया गया कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का सतलज के किनारे हिंदू और सिख रीति से अंतिम संस्कार कर दिया गया

पाकिस्तान का वो हिंदुस्तानी क्रांतिकारी ‘
नेशनल कॉलेज लाहौर की फ़ोटो. पगड़ी पहने भगत सिंह (दाहिने से चौथे) खड़े नज़र आ रहे हैं (तस्वीर चमन लाल ने उपलब्ध करवाई है)
इस ख़बर पर लोगों की कड़ी प्रतिक्रिया आई और लोगों ने कहा कि इनका अंतिम संस्कार करना तो दूर, उन्हें पूरी तरह जलाया भी नहीं गया. ज़िला मैजिस्ट्रेट ने इसका खंडन किया लेकिन किसी ने उस पर विश्वास नहीं किया.

भगत सिंह का परिवार
इस तीनों के सम्मान में तीन मील लंबा शोक जुलूस नीला गुंबद से शुरू हुआ. पुरुषों ने विरोधस्वरूप अपनी बाहों पर काली पट्टियाँ बांध रखी थीं और महिलाओं ने काली साड़ियाँ पहन रखी थीं.

लगभग सब लोगों के हाथ में काले झंडे थे. लाहौर के मॉल से गुज़रता हुआ जुलूस अनारकली बाज़ार के बीचोबीच रुका.

अचानक पूरी भीड़ में उस समय सन्नाटा छा गया जब घोषणा की गई कि भगत सिंह का परिवार तीनों शहीदों के बचे हुए अवशेषों के साथ फिरोज़पुर से वहाँ पहुंच गया है.

बदल रही है लाहौर की रवायत?

कई तालों में कैद है आजादी के मतवाले सुखदेव का घर

जालंधर के देशभगत यादगार हॉल में लगाई गई भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की एक पुरानी तस्वीर (तस्वीर चमन लाल ने उपलब्ध करवाई है)
जैसे ही फूलों से ढंके तीन ताबूतों में उनके शव वहाँ पहुंचे, भीड़ भावुक हो गई. लोग अपने आँसू नहीं रोक पाए.

ब्रिटिश साम्राज्य
वहीं पर एक मशहूर अख़बार के संपादक मौलाना ज़फ़र अली ने एक नज़्म पढ़ी जिसका लब्बोलुआब था, ‘किस तरह इन शहीदों के अधजले शवों को खुले आसमान के नीचे ज़मीन पर छोड़ दिया गया.’

उधर, वॉर्डेन चरत सिंह सुस्त क़दमों से अपने कमरे में पहुंचे और फूट-फूट कर रोने लगे. अपने 30 साल के करियर में उन्होंने सैकड़ों फांसियां देखी थीं, लेकिन किसी ने मौत को इतनी बहादुरी से गले नहीं लगाया था जितना भगत सिंह और उनके दो कॉमरेडों ने.

किसी को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि 16 साल बाद उनकी शहादत भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के अंत का एक कारण साबित होगी और भारत की ज़मीन से सभी ब्रिटिश सैनिक हमेशा के लिए चले जाएंगे.

(ये लेख मालविंदर सिंह वडाइच की किताब ‘इटर्नल रेबल’, चमनलाल की ‘भगत सिंह डॉक्यूमेंट्स’ और कुलदीप नैयर की किताब ‘विदाउट फियर’ में प्रकाशित सामाग्री पर आधारित है.)

(बीबीसी हिन्दी)

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આજના શહીદ દિન નિમિત્તે રાજગુરુ વિષે:

જનોઇધારી બ્રાહ્મણ રાજગુરુ ને જયારે ફાંસી ની સજા અપાઈ ત્યારે તેની સામે તેની માનીતી બહેન સુશીલાદીદી ઉભી હતી અને તેણે રાજગુરુ ને પૂછ્યું કે ભાઈ શું તું મને આજે તારા શરીર ઉપર તે પોતે પાડેલું ચોટ નું નિશાન બતાવીશ? વાત એમ છે કે ચંદ્રશેખર આઝાદે એક વાર કહ્યું કે જેલ માં કેવું કેવું ટોર્ચર સહન કરવું પડે છે ત્યારે રાજગુરુ રસોડા માં જઇ અને ચીપીયો લઈ આવ્યા. તેમણે તેને આગ માં તપાવી ને લાલ ઘૂમ કરી નાખ્યો અને પોતાની છાતીને ચંપાડી દીધો. જેના દર્દ થી રાજગુરુ રાત્રે ઊંઘ માં કરાહી રહ્યા હતા ત્યારે આઝાદે તે સાંભળી લીધી. અને સુશીલાદીદી એ ઘણા કહેવા છતાં આ નિશાન રાજગુરુ એ તેમને નાં બતાવ્યા.


૧. રાજગુરુ એક સારા પહલવાન હતા અને સંસ્કૃત ના સ્કોલર હતા. તે તર્ક શાસ્ત્ર અને (૭૦૦-૮૦૦ ના વર્ષ નું ભારત નું અદભૂત શાસ્ત્ર) અને આખી લઘુ સિદ્ધાંત કૌમુદી નાં મોટા વિદ્વાન હતા.

૨. રાજગુરુ ને કાશી ની ખૂબ ઉંચી એવી “ઉત્તમા” ડીગ્રી મળવાની હતી પણ તે ક્રાંતિકારી ચળવળ માં જોડાઈ ગયા

૩. ક્રાંતિકારી ચળવળ માં જોડાવાનું નક્કી તેમણે બાબારાઓ સાવરકર (વીર સાવરકર નાં ભાઈ) સાથે મળી ને નક્કી કર્યું

૪. શારીરિક મજબૂતી કેળવવા માટે તે “હનુમાન પ્રસારક મંડલ” માં જોડાયા હતા.

૫. “હનુમાન પ્રસારક મંડલ” માં જ તેઓ RSS નાં સ્થાપક હેડગેવારની સાથે સંપર્ક માં આવ્યા હતા.

૬. આઝાદ અને રાજગુરુ એ એક વાર દિલ્લી ના ધર્મઝનૂની હસન નીઝામી ઉપર ગોળી ચલાવી હતી જે વાગી ગઈ તેમના સસરા સોમાલી ને.

૭. સાઊંડર્સ ની હત્યા પછી રાજગુરુ કાશી જતા રહ્યા ત્યાથી અમરાવતી, નાગપુર અંદ વર્ધા ગયા જ્યાં તેઓ ડોક્ટર હેડગેવાર ને મળ્યા જ્યાં તેઓ એ રાજગુરુ ને એક RSS કાર્યકર્તા નાં ઘર માં આશરો અપાયો

૮. એક વખત રાજગુરુ નાં હાથ માં જયારે તેમની માતા એ પિસ્તોલ જોઈ ત્યારે કીધું કે શું બેટા આપડા જેવા પંડીતો ને પિસ્તોલ રાખવી શોભે છે?
ત્યારે રાજગુરુ એ કઈક આવો જવાબ આપ્યો હતો
“જ્યારે ધર્મ/દેશ મુશ્કેલી માં હોય ત્યારે ફક્ત શસ્ત્રો જ કામ માં આવતા હોય છે. બ્રીટીશર દરેક પ્રકારની હાની પહોચાડી રહ્યા છે અને તેઓ આપણું અપમાન કરી રહ્યા છે.
અને હું નથી ચાહતો કે આપણે બેસું રેહવું જોઈએ ફક્ત એટલા માટે કે આપણે તેમને આઝાદી માટે અરજ કરી રહ્યા છીએ.
અગર માતા તને ખબર હોય કે વિષ્ણુ સહસ્ત્ર માં ભગવાન નાં હજાર નામ માં એક નામ છે “સર્વપ્રહારાણાયુદ્ધ” જેનો મતલબ છે “એવો મનુષ્ય કે જે હમેશા શસ્ત્રો થી સજાયેલો રહે છે”

૯. રાજગુરુ અને ભગતસિંહ વીર સાવરકર દ્વારા લખવામાં આવેલી “હિંદુ પદપદ શાહી” થી ખૂબ જ પ્રભાવિત હતા.

૧૦. ભૂખહડતાલ જયારે તોડવાનો વારો આવ્યો તે વખતે ભગતસિંહ જયારે રાજગુરુ પાસે દૂધ લઇ અને ગયા અને કીધું કે
“તારે આજે પણ મારા કરતા આગળ વધી જવું છે? “
ત્યારે રાજગુરુ એ કીધું કે
“મેં વિચાર્યું હતું કે હું તમારા કરતા પહેલા જતો રહું (સ્વર્ગ માં) અને ત્યાં તમારા માટે રૂમ બુક કરી લઉં, પણ મને લાગે છે કે તમારે રસ્તા માં પણ મને સાથે રાખવો છે.”

Book : Rajguru – The invincible Revolutionary by Anil Verma
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જય પાઠક

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આજે શહિદ દિને

એક વખત એવું બન્યું કે……….

સરદાર ભગતસિંહે પોતાના પિતા કિશનસિંહને એક પત્રમાં લખ્યું કે…

“પિતાજી તમે મારી પીઠમાં ખંજર ભોકવાનું કામ કર્યું છે”

સરદાર ભગતસિંહ નું કુટુંબ ત્રણ ત્રણ પેઢીઓથી આઝાદીના જંગમાં પોતાનુ યોગદાન આપી રહ્યુ હતુ.

તેમના વડવાઓ કાશ્મીરના પ્રતાપી રાજા મહારાજ રણજીતસિંહ ની
સેનામાં ફરજ બજાવતા હતા.

તેમના દાદા અર્જુનસિંહ દયાનંદ સરસ્વતીના શિષ્ય અને આર્યસમાજી હતા.તેમણે અંગ્રેજો સામે લડત ચાલુ કરેલી જે પછી દરેક પેઢીએ જાળવી રાખી.

ભગતસિંહ ના પિતા સરદાર કિશનસિંહ તેમજ તેમના કાકા અજીતસિંહ અને સ્વર્ણસિંહ બધા “ગદર પાર્ટી” પાર્ટીના સભ્યો હતા. જે આઝાદીનાં જંગમાં સક્રિય હતી.જેના માટે તેમના કાકાને દેશનિકાલની સજા પણ થયેલી.

ભગતસિંહનો જન્મ લયાલપુર જિલ્લાના બંગા નામના ગામમાં થયેલો જે અત્યારે પાકિસ્તાનમાં છે. દાદાએ અંગ્રેજોની સ્કૂલમાં મોકલવાને બદલે ભગતસિંહ ને “દયાનંદ એન્ગલો વેદિક હાઈસ્કૂલ” માં દાખલ કર્યા અને ત્યારબાદ નેશનલ કોલેજ લાહોરમાં દાખલ થયા. ત્યાં તેમને તેના જેવા નારબંકાઓ મળ્યા અને “નવજવાન ભારત સભા” ની રચના કરી,

દરમ્યાન ચંદશેખર આઝાદ , રામપ્રસાદ બિસ્મિલ,શહીદ અસફાકુલ્લા ખાન એક ગુપ્ત ક્રાંતિકારી સંગઠન ચલાવતા તેમાં પણ જોઈન થયા. તેનું નામ ” હિન્દુસ્તાન રિપબ્લિક એસોસિએશન” હતું.

દરમ્યાન તેમણે “કીર્તિ કિસાન પાર્ટી”
તેમજ “હિન્દુસ્તાન સોશ્યલિસ્ટ રિપબ્લિકન એસોસિએશન” નામની રાજકીય પાર્ટીઓની રચના આઝાદીની લડત ચલાવવા માટે કરી.

ભગતસિંહ ફક્ત બૉમ્બ ફેકનાર અને ગોળી ચલાવી જાણનાર યુવાન જ નહોતા પણ એક પ્રખર વૈચારિક પ્રતિભા પણ તેનામા સોળે કળાએ ખીલેલી હતી. તેમણે અઢળક પુસ્તકો વાંચ્યા હતા. ખાસ કરીને માર્કસવાદી પુસ્તકો લેનીનની જીવની રશિયાની ક્રાંતિ વગેરેના પુસ્તકો ખૂબ વાંચતા. જેલમાં તેમને પુસ્તકો પુરા પાડનાર તેમના વકીલ પુસ્તકો લાવીને થકી જતા પણ ભગતસિંહ વાંચતા થાકતા નહીં.

ભગતસિંહે આઝાદી ,સમાજ,રાજ્ય,ભાષા,જાતિવાદ વગેરે વિશે ખૂબ લખ્યું પણ છે. જે લખાણ ખુબજ ઉચ્ચ દરજ્જાનું છે. કમનસીબે તેમણે જેલમાંથી લખેલ ચાર પુસ્તકો હવે આપણી પાસે ઉપલબ્ધ નથી.

નાનપણમાં સતત ગાયત્રીમંત્રનો જાપ કરનાર આર્યસમાજી ભગતસિંહ યુવાન બનતા વેચારિક રીતે પુખ્ત થતા “નાસ્તિક” બન્યા. જે વિશે તેમણે લખેલ લેખ
“મેં નાસ્તિક કયો હું ?” અદભુત અને વાંચવા લાયક છે.

તો આવા આ ભગતસિંહ કે જેના પિતા પણ પ્રખર ક્રાન્તિવીર હતા તેમણે પોતાના પિતાને શા માટે તેવું લખ્યું હશે ???

વાત જાણે એમ હતી કે ભગતસિંહ અને તેમના સાથીઓએ અંગ્રેજ પોલીસ ઓફિસર “જ્હોન સોન્ડર્સ” ને ગોળીએ દીધો તે “લાહોર કોન્સપીરન્સી” કેસમાં અંગ્રેજ સરકારે ભગતસિંહ, સુખદેવ અને રાજ્યગુરુને એકતરફી કેસ ચલાવી ફાંસીની સજા ફટકારી હતી.

ભગતસિંહ ને ફાંસીની સજાથી બચાવવા માટે ગાંધીજી સહિતના લોકો કોશિશ કરી રહ્યા હતા.

પણ ભગતસિંહે પોતાના પરિવાર તેમજ અન્ય લોકોએ પોતાનો બચાવ ન કરવા માટે કહેલું હતું તેમણે બ્રિટિશ ગર્વમેન્ટ ને એક પત્ર લખેલો કે મને વોર પ્રિઝનર માનવામાં આવે અને મને ફાંસી નહિ પણ ફાયરિંગ સ્કોડની સામે ઉભો રાખી ગોળી મારી સજા દેવામાં આવે. કારણકે ભગતસિંહ માનતા હતા કે કાંતિકારીઓએ તો બલિદાન જ દેવાનું હોઈ તેમણે કોઈ બચાવ કરવાનો ના હોઈ.

પણ બાપનું દિલ તો બાપ નું દિલ છે.

એમણે અંગ્રેજ સરકાર ને ભગતસિંહ ને માફી આપવા અરજ કરતો પત્ર લખ્યો હતો.

જેની જાણ થવાથી ભગતસિંહે પોતાના પિતાને કહેલું કે તમે અંગ્રેજી સરકારને માફીની દરકાર કરતો પત્ર લખી “મારી પીઠ પર ખંજર ભોક્યું છે.” અને ફાંસીના દિવસે પણ ગીત ગાતા ગાતા ખુશીથી ફાંસીના ફંદે જુલી ગયા.

28 સપ્ટેમ્બર 1907માં જન્મેલા આવા આ નરકેશરીને આજે નક્કી કરેલા દિવસ કરતા એક દિવસ આગાઉ પોતાના બે ક્રાંતિકારી મિત્રો રાજ્યગુરુ અને સુખદેવ સાથે ફાંસી આપી દેવામાં આવેલી.

ત્યારે તેમને શત: શત: નમન કરીને એટલુ જ કહેવાનું કે આ સરકાર કે તેના પછીની કોઈપણ પક્ષની સરકાર તમને ભારતરત્ન આપે કે ના આપે અમારા હૃદયમાં તમે હંમેશા…….

ભારત રત્ન હતા.

ભારતરત્ન છો.

અને ભારતરત્ન રહેવાના.

અસ્તુ

નિલેશ વૈષ્ણવ

નિલેશ વૈશ્નવ

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આ લેખ કોણે લખ્યો છે તે ખબર નથી.પણ મને ખુબ ગમ્યો છે.

આપ સૌને પણ ગમશે.જરૂર વાંચવો!
સુરેન્દ્ર ભારતીય

TODAY THOUGHT

કોઈના માટે પણ અભિપ્રાય બાંધતા પહેલા નીચેનું લખાણ વાંચજો. 😊😊😊😊

તમે પરસેવે રેબઝેબ છો. ખુબ તરસ લાગી છે. પણ ક્યાંય પાણી નથી મળે તેમ. એવામાં તમે એક ઝાડનાં છાયામાં થાક ખાવાં ઊભાં રહો છો! 😓

ત્યાં જ સામેથી એક મકાનનાં પહેલાં માળની બારી ખુલે છે ને તમારી અને તે વ્યક્તિની આંખો મળે છે. તમારી હાલત જોઇને તે વ્યક્તિ તમને હાથથી પાણી જોઇએ છે તેવો ઇશારો કરે છે. હવે તમને એ વ્યક્તિ કેવો લાગે? 🙂

આ તમારો પહેલો અભિપ્રાય છે!

તે વ્યક્તિ નીચે આવવાનો ઇશારો કરીને બારી બંધ કરે છે. ૧૫ મિનિટ થવાં છતાંયે નીચેનો દરવાજો નથી ખુલતો. હવે તે વ્યક્તિ પ્રત્યે તમારો અભિપ્રાય શો છે? 😟🤷‍♂️

આ તમારો બીજો અભિપ્રાય છે!

થોડીવાર પછી દરવાજો ખુલે છે અને તે વ્યક્તિ એમ કહે કે: ‘મને વિલંબ થવા માટે માફ કરજો, પણ તમારી હાલત જોઇને મને પાણી કરતાં લીંબુનું શરબત આપવું યોગ્ય લાગ્યું! માટે થોડી વધુ વાર લાગી!’

હવે તે વ્યક્તિ વિષે તમારો અભિપ્રાય શો? 😊

યાદ રાખજો કે હજુ તો પાણી કે શરબત કાંઇ મલ્યું નથી ને તમારો ત્રીજો અભિપ્રાય મનમાં જ રાખો.

હવે જેવું તમે શરબત જીભને લગાવો છો ત્યાં જ તમને ખ્યાલ આવે કે તેમાં ખાંડ જરા પણ નથી. 😖

હવે તે વ્યક્તિ તમને કેવો લાગે છે? 🤨

તમારો ખટાશથી ભરેલો ચહેરો જોઈને, એ વ્યક્તિ ધીમેથી ખાંડનું પાઉચ કાઢે ને કહે, તમને ફાવે તેટલું ઉમેરી દો.

હવે તે જ વ્યક્તિ વિષે નો તમારો અભિપ્રાય શો? 🥰

એક સામાન્ય પ્રસંગમાં પણ જો આપણો અભિપ્રાય આટલો ખોખલો અને સતત બદલાતો હોય તો, આપણે કોઇના પણ વિશે અભિપ્રાય આપવાને લાયક સમજવાં જોઈએ કે નહીં!? 🧐😳

હકીકતે દુનિયામાં એટલું સમજાણું કે, ‘જો તમારી અપેક્ષાના ચોગઠામાં બંધબેસતું વર્તન સામેની વ્યક્તિ કરે તો તે સારી, 👌
નહીં તો…..
તે ખરાબ!’ 🤨

ખુબજ રસપ્રદ મુદ્દો છે, ! !
જાતે જ વિચારી જુઓ.

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प्यास

एक बार किसी रेलवे प्लैटफॉर्म पर जब गाड़ी रुकी तो एक लड़का पानी बेचता हुआ निकला।
ट्रेन में बैठे एक सेठ ने उसे आवाज दी,ऐ लड़के इधर आ।

लड़का दौड़कर आया।

उसने पानी का गिलास भरकर सेठ
की ओर बढ़ाया तो सेठ ने पूछा,
कितने पैसे में?

लड़के ने कहा – पच्चीस पैसे।

सेठ ने उससे कहा कि पंदह पैसे में देगा क्या?

यह सुनकर लड़का हल्की मुस्कान
दबाए पानी वापस घड़े में उड़ेलता हुआ आगे बढ़ गया।

उसी डिब्बे में एक महात्मा बैठे थे,
जिन्होंने यह नजारा देखा था कि लड़का मुस्करा कर मौन रहा।

जरूर कोई रहस्य उसके मन में होगा।

महात्मा नीचे उतरकर उस लड़के के
पीछे- पीछे गए।

बोले : ऐ लड़के ठहर जरा, यह तो बता तू हंसा क्यों?

वह लड़का बोला,

महाराज, मुझे हंसी इसलिए आई कि सेठजी को प्यास तो लगी ही नहीं थी।
वे तो केवल पानी के गिलास का रेट पूछ रहे थे।

महात्मा ने पूछा –

लड़के, तुझे ऐसा क्यों लगा कि सेठजी को प्यास लगी ही नहीं थी।

लड़के ने जवाब दिया –

महाराज,जिसे वाकई प्यास लगी हो वह कभी रेट नहीं पूछता

वह तो गिलास लेकर पहले पानी पीता है।
फिर बाद में पूछेगा कि कितने पैसे देने हैं?

पहले कीमत पूछने का अर्थ हुआ कि प्यास लगी ही नहीं है।

वास्तव में जिन्हें ईश्वर और जीवन में कुछ पाने की तमन्ना होती है, वे वाद-विवाद में नहीं पड़ते।

पर जिनकी प्यास सच्ची नहीं होती,
वे ही वाद-विवाद में पड़े रहते हैं।
वे साधना के पथ पर आगे नहीं बढ़ते.

अगर भगवान नहीं है तो उसका ज़िक्र क्यो??
और अगर भगवान है तो फिर फिक्र क्यों ???
:
” मंज़िलों से गुमराह भी ,कर देते हैं कुछ लोग ।।

हर किसी से रास्ता पूछना अच्छा नहीं होता..

अगर कोई पूछे जिंदगी में क्या खोया और क्या पाया …

तो बेशक कहना…

जो कुछ खोया वो मेरी नादानी थी

और जो भी पाया वो रब/गुरु की मेहरबानी थी!

खुबसूरत रिश्ता है मेरा और भगवान के बीच मैं ज्यादा मैं मांगता नहीं और वो कम देता नही….
जन्म अपने हाथ में नहीं ;
मरना अपने हाथ में नहीं ;
पर जीवन को अपने तरीके से जीना अपने हाथ में होता है ;
हसते रहो मुस्कुराते रहो ;
सबके दिलों में जगह बनाते रहो ।I

जीवन का ‘आरंभ’ अपने रोने से होता हैं और जीवन का ‘अंत’ दूसरों के रोने से,
इस “आरंभ और अंत” के बीच का समय ईश्वर के कृपा का पात्र बनो आपका जीवन भक्ति भाव से भरा हो.
..बस यही सच्चा जीवन है.. निस्वार्थ भाव से कर्म करें

🙏🏻 जय महाकाल
🙏 जय भोलेनाथ
🙏 ॐ नमः शिवाय

🙏 जय माँ भवानी

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लघुकथा-यात्रा
हर साल शादी की सालगिरह पर कहीं घूम आएं ,का विचार ,दोनों पति पत्नी के मन में आता लेकिन कभी बच्चों की पढ़ाई या परीक्षा तो कभी चरमराती आर्थिक व्यवस्था आड़े आ ही जाती।नातेदारों के देखने में वे समृद्ध दम्पत्ति थे परंतु महानगर की सुरसा के मुख समान मंहगाई, बड़ी ही सहजता से सारी कमाई निगल जाने में समर्थ थी।खाने -पहनने की तो कमी न थी लेकिन अन्य शौक जैसे पर्यटन या गहने गढ़वाना नितांत फिजूलखर्ची ही जान पड़ते थे।उसकी अपेक्षा बच्चे की एल आई सी लेना या लैपटॉप दिलवाना तर्कसंगत जान पड़ता था और व्यवहारिक भी।समय धीरे -धीरे बीत रहा था और सपनें पुराने होते जा रहे थे।
बच्चों की पढ़ाई पूरी हुई और बड़ा बेटा पुणे में सेटल हो गया।विवाह भी कर दिया उसका।आज बड़े बेटे के यहाँ जाना था।हवाईजहाज के टिकट उसने पहले ही भेज दिए थे।एयरपोर्ट पर बेटा लेने आया।लम्बी उम्दा कार में बैठ कर हम घर पहुंचे।समृद्धि से भरा घर देख कर मन तृप्त हो रहा था।सहसा बैडरूम में अपनी और बेटे की फोटो देख मैं चौंक गई।ये उस दिन की फ़ोटो थी जब बेटे का बारहवीं का रिजल्ट आया था ,मेरिट लिस्ट में उसका नाम देखकर मैंने उसे गले लगाकर चूम लिया था और छोटे बेटे ने अचानक फ़ोटो खींच ली थी।छोटा बेटा अब,ऊधमपुर में एयरफोर्स की ट्रेनिंग कर रहा है।आँखों में अश्रु उभर आये।किसी अपूर्णता का बोध अब नहीं बचा था।
कहाँ खो गईं माँ आप?बहु शर्बत लिए खड़ी थी।आपकी यात्रा कैसी रही?पतिदेव जो मेरे जीवन के साक्षी और सहभागी थे…बोल उठे..यात्रा सम्पूर्ण हुई बेटा और सुखद रही।

मौलिक एवं स्वरचित
प्रीति त्रिपाठी
नई दिल्ली
23-03-2021

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।।ओ३म्।।
भगत सिंह राजगुरु सुखदेव जी की शहीद दिवस पर सभी को श्रद्धा पूर्वक भावभीनी श्रद्धांजलि

भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उस समय उनके चाचा अजीत सिंह और श्‍वान सिंह भारत की आजादी में अपना सहयोग दे रहे थे। ये दोनों करतार सिंह सराभा द्वारा संचालित गदर पाटी के सदस्‍य थे। भगत सिंह पर इन दोनों का गहरा प्रभाव पड़ा था। इसलिए ये बचपन से ही अंग्रेजों से घृणा करने लगे थे।

भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्यधिक प्रभावित थे। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला।

लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने 1920 में भगत सिंह महात्‍मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे अहिंसा आंदोलन में भाग लेने लगे, जिसमें गांधी जी विदेशी समानों का बहिष्कार कर रहे थे।

14 वर्ष की आयु में ही भगत सिंह ने सरकारी स्‍कूलों की पुस्‍तकें और कपड़े जला दिए। इसके बाद इनके पोस्‍टर गांवों में छपने लगे।

भगत सिंह पहले महात्‍मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन और भारतीय नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्‍य थे। 1921 में जब चौरा-चौरा हत्‍याकांड के बाद गांधीजी ने किसानों का साथ नहीं दिया तो भगत सिंह पर उसका गहरा प्रभाव पड़ा। उसके बाद चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्‍व में गठित हुई गदर दल के हिस्‍सा बन गए।

उन्‍होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। 9 अगस्त, 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए चली 8 नंबर डाउन पैसेंजर से काकोरी नामक छोटे से स्टेशन पर सरकारी खजाने को लूट लिया गया। यह घटना काकोरी कांड नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है।

इस घटना को अंजाम भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और प्रमुख क्रांतिकारियों ने साथ मिलकर अंजाम दिया था।

काकोरी कांड के बाद अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के क्रांतिकारियों की धरपकड़ तेज कर दी और जगह-जगह अपने एजेंट्स बहाल कर दिए। भगत सिंह और सुखदेव लाहौर पहुंच गए। वहां उनके चाचा सरदार किशन सिंह ने एक खटाल खोल दिया और कहा कि अब यहीं रहो और दूध का कारोबार करो।

वे भगत सिंह की शादी कराना चाहते थे और एक बार लड़की वालों को भी लेकर पहुंचे थे। भगतसिंह कागज-पेंसिल ले दूध का हिसाब करते, पर कभी हिसाब सही मिलता नहीं। सुखदेव खुद ढेर सारा दूध पी जाते और दूसरों को भी मुफ्त पिलाते।

भगत सिंह को फिल्में देखना और रसगुल्ले खाना काफी पसंद था। वे राजगुरु और यशपाल के साथ जब भी मौका मिलता था, फिल्म देखने चले जाते थे। चार्ली चैप्लिन की फिल्में बहुत पसंद थीं। इस पर चंद्रशेखर आजाद बहुत गुस्सा होते थे।

भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अफसर जेपी सांडर्स को मारा था। इसमें चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी।

क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने अलीपुर रोड दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके थे।

भगत सिंह क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं बल्कि एक अध्ययनशीरल विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतक, लेखक, पत्रकार और महान मनुष्य थे। उन्होंने 23 वर्ष की छोटी-सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विषद अध्ययन किया था।

हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक भगतसिंह भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता थे। भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे। उन्होंने ‘अकाली’ और ‘कीर्ति’ दो अखबारों का संपादन भी किया।

जेल में भगत सिंह ने करीब दो साल रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। उस दौरान उनके लिखे गए लेख व परिवार को लिखे गए पत्र आज भी उनके विचारों के दर्पण हैं।

अपने लेखों में उन्होंने कई तरह से पूंजीपतियों को अपना शत्रु बताया है। उन्होंने लिखा कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहें एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु है। उन्होंने जेल में अंग्रेज़ी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’? जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिए थे।

23 मार्च 1931 को भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई। फांसी पर जाने से पहले वे ‘बिस्मिल’ की जीवनी पढ़ रहे थे जो सिंध (वर्तमान पाकिस्तान का एक सूबा) के एक प्रकाशक भजन लाल बुकसेलर ने आर्ट प्रेस, सिंध से छापी थी।

पाकिस्तान में शहीद भगत सिंह के नाम पर चौराहे का नाम रखे जाने पर खूब बवाल मचा था। लाहौर प्रशासन ने ऐलान किया था कि मशहूर शादमान चौक का नाम बदलकर भगत सिंह चौक किया जाएगा। फैसले के बाद प्रशासन को चौतरफा विरोध झेलना पड़ा था।