Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

जब बीकानेर के महाराज ने विफल की औरंगजेब की धर्मानंतरण योजना–


जब बीकानेर के महाराज ने विफल की औरंगजेब की धर्मानंतरण योजना–
“”बात उन दिनों कि है जब राजपूताने के राजा कटक नदी के किनारे एक सम्मेलन में गए थे और औरंगजेब ने राजस्थान के राजाओं को मुस्लिम बनाने का षड्यंत्र रचा और उन्हें बिना सेना के एक जगह बुलाया ताकि जबरदस्ती “मुस्लिम” बनाया जा सके| औरंगजेब का मंसूबा जान राजाओं ने बीकानेर के राजा के नेतृत्व में उस षड्यंत्र को विफल किया””

अपनी लंबी बिमारी की जकड के बाद औरंगजेब का दरबार खचाखच भरा होना लाजमी था और बिमारी की वजह से चेहरे पर शिकनं अलग नजर आ रही थी। जैसे ही औरंगजेब अपने मयूर सिंहासन पर बैठा त्यों ही उसे एक विशेष दूत आता नजर आया। दूत ने दरबारी शिष्टाचार के तहत झुककर सलाम किया तब बादशाह ने गंभीर शब्दो मे पूछा —
कहां से आए हो?
अजमेर से जहाँपनाह!!
और दूसरे ही क्षण उसने अजमेर के सूबेदार का पैगाम बादशाह के हाथ मे थमा दिया। उस पत्र मे कई बाते लिखी हुई थी पर बादशाह की नजरे एक लाईन पर आकर टिक गई जिसको देखकर उसके चेहरे पर कूटनीतिक वाली एक हंसी आ गई। वाक्यांश था कि उदयपुर के महाराणा राजसिंह का देहांत हो गया है और—!! बादशाह की इस हंसी को कुछ चतुर दरबारी समझ गए थे कि पत्र मे जरूर कुछ खास है, और बादशाह थोडी ही देर मे दरबार को बर्खास्त करके अपने कक्ष मे चला जाता है और वो शहरी काजी और सुन्नी प्रतिष्ठित मौलवीयो के साथ गुप्त बैठक करता है और जैसे ही ये मौलवी बाहर निकलते है तो इनके चेहरे से पहले ही कुछ आभास होने वाली प्रसंन्नता नजर आती है।
इस घटना के काफी समय बाद मुगलो की 70 हजार सैनिक कटक नदी के किनारे पडाव डाले हुए थी और ठीक उसके दक्षिण मे राजपूताने के 10 हजार योद्धाओ के साथ राजपूत राजा पडाव डाले हुए थे इसी राजपूताने की सेना मे एक शिविर मे मंद लो वाली रोशनी मे कुछ राजपूत राजा गुप्त मंत्रणा कर रहे थे जैसे कि वो किसी खतरे को पहले ही भांप गए हो और वो वार्तालाप कर रहे थे कि अब तो काबूल या कशमीर की ओर कोई उपद्रव्य भी नही है तो इतनी बडी मुगलो की शाही सेना का यहां क्या काम? इसमे जरूर कुछ बादशाह की गहरी साजिश है —
मुझे तो ये कोई षडयंत्र ही लग रहा है —
हाँ मुझे भी वरना मुसलमानो के 70 हजार शाही सेना के साथ राजपूतों की सिर्फ 10 हजार सेना क्यो भेजी जाती? सभी राजा सोचते है कि ये पहला अवसर है जब हमे इतनी बडी शाही सेना के साथ उत्तर मे भेजा गया! और हमारी सेना को मुगलो के सेनापति के नेतृत्व मे दक्षिण मे भेजा गया। इससे पहले तो ऐसा कभी नही हुआ के राजपूतों का सेनापति किसी मुगल को बनाया हो या फिर राजपूतो को अलग किया हो! हो सकता है हमारे साथ षड्यंत्र हो?
पर हम तो तख्त के वफादार है!
नही ये बादशाह तख्त के वफादार नही समझता हमे इसकी नजरो मे हम काफिर है और वफादार को ये मजहब की डोरी से नापता है इसके लिए गैर मजहब नमकहराम, बईमान और नालायक है जिनको सजा देना ये इस्लाम का सबसे बडा पुण्य का काम मानता है। इतने मे आमेर के राजा रामसिंह ने तंबू मे प्रवेश किया और वो अपने आसन पर बैठे भी नही थे कि एक ने प्रश्न किया–
क्या षडयंत्र का कोई सूत्र पता चला?
षड्यंत्र? कैसा षड्यंत्र? हम तो तख्त के वफादार सिपाही है।
पर ये वफादार सिपाही नही वफादार अनुयायी चाहता है!
“वफादार अनुयायी”?
हाँ मजहबी वफादार अनुयायी! इतना सुनते ही सबके चेहरे के रंग उड गए और एक दूसरे का मुंह ताकने लगे–! पर महाराजा रामसिंह ने आगे बढकर कहना शुरू किया — बादशाह मेरे पिता जयसिंह जी से बहुत भयभीत रहता था उनके होते हुए वो कभी हिन्दू धर्म को क्षति नही पहुंचा सकता था पर उनके स्वर्गवासी होते ही उसने मंदिरो को तुडवाना शुरू कर दिया और बादशाह राजा जशवंत से भी बहुत डरता था इसलिए उनको दूर ही रखता था और उनको विष देकर मरवा दिया और मारवाड खालसा कर लिया और अब वो उनके उत्तराधिकारी और कुटुंब को इस्लाम कबूल करवाने पर तुला है क्योकी मंदिर तोडने से सभी को इस्लाम नही कबूल करवाया जा सकता पर अगर राजा या उत्तराधिकारी को इस्लाम कबूल करवा दे तो पूरी प्रजा खुद इस्लाम कबूल कर लेगी और हिन्दू धर्म नष्ट हो जाएगा और इस काम,मे उनके बांधक महाराणा राजसिंह जी थे वो नही रहे तो अब वो हम सबको परसो जुम्मे के दिन ही बनाना चाहता है —
और परसो को हमारे मुंह मे गाय का मांस और मौलवी के थूक को ठूसकर हमे कलमा पढाया जाएगा हमारी सुन्नत की जाएगी!!
ऐसे कैसे हो सकता है क्या मुगल राजपूतो की तलवारो के जौहर से अभी भी अनभिज्ञ है? क्या वो भूल गए है कि हम 10 हजार उनका कितना भयानक नुकसान कर सकते है!
क्या आपको नही पता के उस पार से पहले नाव यहां से वहां हमे ले जाने के लिए आएंगी फिर हम वहां अकेले 70 हजार के बीच मे होंगे पर हमे अपनी तलवारो और भुजाओ पर विश्वास है पर हमे थोडा बुद्धि से काम लेना है और माँ भवानी का नाम लेकर आगे की रणनीति अपनानी है सब सहमत हो गए।
अगले दिन प्रात: सभी राजपूत सलाह करते है और कहते है कि सबसे पहलेे हम नदी पार करेगें क्योकी हर युद्ध मे राजपूत आगे होता है मुसलमानो से हर खतरे से टकराने के लिए हमे आगे किया जाता है इसलिए नदी भी हम ही पार करेगें।
ये सुनकर मुसलमान जल जाते है इसमे उनका अपना उपहास नजर आता है पर दूसरी ओर राजपूत अपनी हठ ठान बैठे थे इस पेचिदा स्थिति के सामने मुसलमानो ने राजपूतों की बात मान ली और वो नदी के पार चले गए अब वो ही नाव पहले राजाओं को उस पार लेने आई पर उन्होने कहा के आमेर की माजी साहिबा का देहांत हो चुका है अत: हम यही पर शौक मनाएगे 12 दिन, और 12 दिनो तक दोनो सेनाए आमने सामने पडाव डालकर रही तेहरवे दिन कटक नदी के दक्षिण पर एक सुसज्जित सिहांसन था और उस पर एक राजा विराजमान था सब राजाओं ने मिलकर उसका तिलक किया और “जय जंगलधर बादशाह” की जयघोष की।
दूसरी ओर मुगल सेना चकित होकर देख रही थी कि ये किसका राजतिलक हो रहा है।
और दूसरी ओर जैसे ही नाव राजपूतो को लेने आई तैसे ही उन्होने सारी नाव ध्वस्त कर डाली और नदी के तीव्र बहाव के कारण मुगल सेना उनके पास आ नही सकी और वो दूर से ही अपने गुस्से को पीते रहे सब नावों को तोड़ देने के बाद सब राजा लोग अपनी अपनी राजधानियों को लौट गए | सबका अनुमान था कि अब बीकानेर के महाराजा करणसिंह जी को शाही क्रोधाग्नि का शिकार होना पड़ेगा | उन्हें जय जंगलधर बादशाह बनने का भयंकर मूल्य चुकाना पड़ेगा | इस पहल और सेनापतित्व के लिए उन्हें अब सीधे रूप से मुगलिया शक्ति से टक्कर लेनी पड़ेगी |
जब यह संवाद बादशाह औरंगजेब के पास पहुंचा, तब वह अपनी योजना के विफल होने पर बहुत अधिक झल्लाया और क्रोधित हुआ | राजाओं के इस प्रकार बच निकल जाने पर उसे बड़ा पश्चाताप हुआ | पर उसने जब निर्जल बालुकामय बीकानेर के विकट मरुस्थल की और ध्यान दिया तो एक विवशता भरी नि:श्वास छोड़ दी | मारवाड़ के राठौड़ों द्वारा प्रदर्शित तलवार की शक्ति को याद कर वह सहम गया | महाराजा करणसिंह की रोद्र मूर्ति और बलिष्ठ भुजाओं का स्मरण कर वह भयभीत हो गया | उसने केवल इतनी ही आज्ञा दी –
” इस सब घटना को शाही रोजनामचे में से निकाल दो और तवारीख में भी कहीं मत आने दो |” परन्तु बीकानेर और राजपूताने आदि की इतिहास से नहीं हटवा सका औरंगज़ेब
किन्तु उस दिन से बीकानेर के केसरिया-कसूमल ध्वज पर सदैव के लिए अंकित हो गया –
” जय जंगलधर बादशाह |”

जब बीकानेर के महाराज ने विफल की औरंगजेब की धर्मानंतरण योजना--
""बात उन दिनों कि है जब राजपूताने के राजा कटक नदी के किनारे एक सम्मेलन में गए थे और औरंगजेब ने राजस्थान के राजाओं को मुस्लिम बनाने का षड्यंत्र रचा और उन्हें बिना सेना के एक जगह बुलाया ताकि जबरदस्ती "मुस्लिम" बनाया जा सके| औरंगजेब का मंसूबा जान राजाओं ने बीकानेर के राजा के नेतृत्व में उस षड्यंत्र को विफल किया""

अपनी लंबी बिमारी की जकड के बाद औरंगजेब का दरबार खचाखच भरा होना लाजमी था और बिमारी की वजह से चेहरे पर शिकनं अलग नजर आ रही थी। जैसे ही औरंगजेब अपने मयूर सिंहासन पर बैठा त्यों ही उसे एक विशेष दूत आता नजर आया। दूत ने दरबारी शिष्टाचार के तहत झुककर सलाम किया तब बादशाह ने गंभीर शब्दो मे पूछा --
कहां से आए हो?
अजमेर से जहाँपनाह!!
और दूसरे ही क्षण उसने अजमेर के सूबेदार का पैगाम बादशाह के हाथ मे थमा दिया। उस पत्र मे कई बाते लिखी हुई थी पर बादशाह की नजरे एक लाईन पर आकर टिक गई जिसको देखकर उसके चेहरे पर कूटनीतिक वाली एक हंसी आ गई। वाक्यांश था कि उदयपुर के महाराणा राजसिंह का देहांत हो गया है और---!! बादशाह की इस हंसी को कुछ चतुर दरबारी समझ गए थे कि पत्र मे जरूर कुछ खास है, और बादशाह थोडी ही देर मे दरबार को बर्खास्त करके अपने कक्ष मे चला जाता है और वो शहरी काजी और सुन्नी प्रतिष्ठित मौलवीयो के साथ गुप्त बैठक करता है और जैसे ही ये मौलवी बाहर निकलते है तो इनके चेहरे से पहले ही कुछ आभास होने वाली प्रसंन्नता नजर आती है। 
इस घटना के काफी समय बाद मुगलो की 70 हजार सैनिक कटक नदी के किनारे पडाव डाले हुए थी और ठीक उसके दक्षिण मे राजपूताने के 10 हजार योद्धाओ के साथ राजपूत राजा पडाव डाले हुए थे इसी राजपूताने की सेना मे एक शिविर मे मंद लो वाली रोशनी मे कुछ राजपूत राजा गुप्त मंत्रणा कर रहे थे जैसे कि वो किसी खतरे को पहले ही भांप गए हो और वो वार्तालाप कर रहे थे कि अब तो काबूल या कशमीर की ओर कोई उपद्रव्य भी नही है तो इतनी बडी मुगलो की शाही सेना का यहां क्या काम? इसमे जरूर कुछ बादशाह की गहरी साजिश है --
मुझे तो ये कोई षडयंत्र ही लग रहा है --
हाँ मुझे भी वरना मुसलमानो के 70 हजार शाही सेना के साथ राजपूतों की सिर्फ 10 हजार सेना क्यो भेजी जाती? सभी राजा सोचते है कि ये पहला अवसर है जब हमे इतनी बडी शाही सेना के साथ उत्तर मे भेजा गया! और हमारी सेना को मुगलो के सेनापति के नेतृत्व मे दक्षिण मे भेजा गया। इससे पहले तो ऐसा कभी नही हुआ के राजपूतों का सेनापति किसी मुगल को बनाया हो या फिर राजपूतो को अलग किया हो! हो सकता है हमारे साथ षड्यंत्र हो? 
पर हम तो तख्त के वफादार है! 
नही ये बादशाह तख्त के वफादार नही समझता हमे इसकी नजरो मे हम काफिर है और वफादार को ये मजहब की डोरी से नापता है इसके लिए गैर मजहब नमकहराम, बईमान और नालायक है जिनको सजा देना ये इस्लाम का सबसे बडा पुण्य का काम मानता है। इतने मे आमेर के राजा रामसिंह ने तंबू मे प्रवेश किया और वो अपने आसन पर बैठे भी नही थे कि एक ने प्रश्न किया--
क्या षडयंत्र का कोई सूत्र पता चला? 
षड्यंत्र? कैसा षड्यंत्र? हम तो तख्त के वफादार सिपाही है। 
पर ये वफादार सिपाही नही वफादार अनुयायी चाहता है! 
"वफादार अनुयायी"?
हाँ मजहबी वफादार अनुयायी! इतना सुनते ही सबके चेहरे के रंग उड गए और एक दूसरे का मुंह ताकने लगे--! पर महाराजा रामसिंह ने आगे बढकर कहना शुरू किया -- बादशाह मेरे पिता जयसिंह जी से बहुत भयभीत रहता था उनके होते हुए वो कभी हिन्दू धर्म को क्षति नही पहुंचा सकता था पर उनके स्वर्गवासी होते ही उसने मंदिरो को तुडवाना शुरू कर दिया और बादशाह राजा जशवंत से भी बहुत डरता था इसलिए उनको दूर ही रखता था और उनको विष देकर मरवा दिया और मारवाड खालसा कर लिया और अब वो उनके उत्तराधिकारी और कुटुंब को इस्लाम कबूल करवाने पर तुला है क्योकी मंदिर तोडने से सभी को इस्लाम नही कबूल करवाया जा सकता पर अगर राजा या उत्तराधिकारी को इस्लाम कबूल करवा दे तो पूरी प्रजा खुद इस्लाम कबूल कर लेगी और हिन्दू धर्म नष्ट हो जाएगा और इस काम,मे उनके बांधक महाराणा राजसिंह जी थे वो नही रहे तो अब वो हम सबको परसो जुम्मे के दिन ही बनाना चाहता है --
और परसो को हमारे मुंह मे गाय का मांस और मौलवी के थूक को ठूसकर हमे कलमा पढाया जाएगा हमारी सुन्नत की जाएगी!! 
ऐसे कैसे हो सकता है क्या मुगल राजपूतो की तलवारो के जौहर से अभी भी अनभिज्ञ है? क्या वो भूल गए है कि हम 10 हजार उनका कितना भयानक नुकसान कर सकते है! 
क्या आपको नही पता के उस पार से पहले नाव यहां से वहां हमे ले जाने के लिए आएंगी फिर हम वहां अकेले 70 हजार के बीच मे होंगे पर हमे अपनी तलवारो और भुजाओ पर विश्वास है पर हमे थोडा बुद्धि से काम लेना है और माँ भवानी का नाम लेकर आगे की रणनीति अपनानी है सब सहमत हो गए। 
अगले दिन प्रात: सभी राजपूत सलाह करते है और कहते है कि सबसे पहलेे हम नदी पार करेगें क्योकी हर युद्ध मे राजपूत आगे होता है मुसलमानो से हर खतरे से टकराने के लिए हमे आगे किया जाता है इसलिए नदी भी हम ही पार करेगें। 
ये सुनकर मुसलमान जल जाते है इसमे उनका अपना उपहास नजर आता है पर दूसरी ओर राजपूत अपनी हठ ठान बैठे थे इस पेचिदा स्थिति के सामने मुसलमानो ने राजपूतों की बात मान ली और वो नदी के पार चले गए अब वो ही नाव पहले राजाओं को उस पार लेने आई पर उन्होने कहा के आमेर की माजी साहिबा का देहांत हो चुका है अत: हम यही पर शौक मनाएगे 12 दिन, और 12 दिनो तक दोनो सेनाए आमने सामने पडाव डालकर रही तेहरवे दिन कटक नदी के दक्षिण पर एक सुसज्जित सिहांसन था और उस पर एक राजा विराजमान था सब राजाओं ने मिलकर उसका तिलक किया और "जय जंगलधर बादशाह" की जयघोष की। 
दूसरी ओर मुगल सेना चकित होकर देख रही थी कि ये किसका राजतिलक हो रहा है। 
और दूसरी ओर जैसे ही नाव राजपूतो को लेने आई तैसे ही उन्होने सारी नाव ध्वस्त कर डाली और नदी के तीव्र बहाव के कारण मुगल सेना उनके पास आ नही सकी और वो दूर से ही अपने गुस्से को पीते रहे सब नावों को तोड़ देने के बाद सब राजा लोग अपनी अपनी राजधानियों को लौट गए | सबका अनुमान था कि अब बीकानेर के महाराजा करणसिंह जी को शाही क्रोधाग्नि का शिकार होना पड़ेगा | उन्हें जय जंगलधर बादशाह बनने का भयंकर मूल्य चुकाना पड़ेगा | इस पहल और सेनापतित्व के लिए उन्हें अब सीधे रूप से मुगलिया शक्ति से टक्कर लेनी पड़ेगी |
जब यह संवाद बादशाह औरंगजेब के पास पहुंचा, तब वह अपनी योजना के विफल होने पर बहुत अधिक झल्लाया और क्रोधित हुआ | राजाओं के इस प्रकार बच निकल जाने पर उसे बड़ा पश्चाताप हुआ | पर उसने जब निर्जल बालुकामय बीकानेर के विकट मरुस्थल की और ध्यान दिया तो एक विवशता भरी नि:श्वास छोड़ दी | मारवाड़ के राठौड़ों द्वारा प्रदर्शित तलवार की शक्ति को याद कर वह सहम गया | महाराजा करणसिंह की रोद्र मूर्ति और बलिष्ठ भुजाओं का स्मरण कर वह भयभीत हो गया | उसने केवल इतनी ही आज्ञा दी -
" इस सब घटना को शाही रोजनामचे में से निकाल दो और तवारीख में भी कहीं मत आने दो |" परन्तु बीकानेर और राजपूताने आदि की इतिहास से नहीं हटवा सका औरंगज़ेब 
किन्तु उस दिन से बीकानेर के केसरिया-कसूमल ध्वज पर सदैव के लिए अंकित हो गया -
" जय जंगलधर बादशाह |"
Posted in रामायण - Ramayan

SHRI RAMA …WAS REAL KING …WHO LIVED AS EXAMPLE OF DHARMA


JEWELS OF BHARATAM ….SERIES[TM]

[ SHARE IF YOU CARE ]

SHRI RAMA …WAS REAL KING …WHO LIVED AS EXAMPLE OF DHARMA …

Sri Rama was on this earth in 5114 BCE +/- 26,000 years before that or the similar period before that or the one before and so on and so forth..

A solution to the apparent mismatch of dates can be found if we realize that because of a phenomenon known as the ‘Precession of Equinoxes’, stars as visualized from Earth, regain the same positions every 26,000 years!

Outside India, the millenia old story of Rama is still sung by people all over Asia. While traveling to different countries in this part of the world, there are many versions that are even older than the regional ones in India!!

In China, collection of Jatak stories relating to various events of Ramayana, belonging to 251 AD were compiled by Kang Seng Hua based on the Buddhist texts mentioned earlier.

Kumardasa, who ruled Srilanka in 617 BCE wrote the text called ‘Janakiharan’ which is the oldest Sanskrit literature available in Sri lanka.

Oldest written version of Ramayana, in Nepal is from 1075 BCE.

Yama Zatdaw in Myanmar is considered the National epic and is a Burmese version of the story of Rama which has again given theme to dance and art forms including tapestries and puppets.(In fact Burmese people even stress that it is the true history of their land).

Hikayat Seri Rama in Malaysia makes Dashrath the great-grandson of Adam, the first man! (which is not too far from the truth as both Dashrath and Manu, the First Man were from the Suryavanshi/Solar dynasty!),

In the Phra Lak Phra Lam of Laos, Buddha is regarded as an incarnation of Rama (again not completely false as both are incarnations of Lord Vishnu!).

Reamker, is the most famous story of Khmer Literature of Cambodia and is the source of classical dance, theater, poetry and of course the famous sculptures of Angkor Wat. Various rock inscriptions belonging to about 700 CE are also found in the Khmer region of Cambodia.

Maradia Lawana in the Phillipines is based on the Ramayana,

Ramakavaca in Bali is a major source of moral and spiritual guidance for the island and forms the basic story line of Balinese traditional dance,

Kakawin Ramayana in Java, Indonesia (9th century CE) is a mixture of Sanskrit and Kawi languages and is the basis of traditional Indonesian ballet and performances that are famous the world over.

Ramakien in Thailand is again considered the National epic and adds an element of incest to the story by making Sita the daughter of Ravan and Mandodari who is thrown away in the Sea as she is prophesied to bring destruction to Ravan’s Kingdom!!

JEWELS OF BHARATAM ....SERIES[TM]

[ SHARE IF YOU CARE ]

SHRI RAMA ...WAS REAL KING ...WHO LIVED AS EXAMPLE OF DHARMA ...

Sri Rama was on this earth in 5114 BCE +/- 26,000 years before that or the similar period before that or the one before and so on and so forth..  

A solution to the apparent mismatch of dates can be found if we realize that because of a phenomenon known as the 'Precession of Equinoxes', stars as visualized from Earth, regain the same positions every 26,000 years! 

Outside India, the millenia old story of Rama is still sung by people all over Asia. While traveling to different countries in this part of the world, there are many versions that are even older than the regional ones in India!!

    In China, collection of Jatak stories relating to various events of Ramayana, belonging to 251 AD were compiled by Kang Seng Hua based on the Buddhist texts mentioned earlier.

    Kumardasa, who ruled Srilanka in 617 BCE wrote the text called ‘Janakiharan’ which is the oldest Sanskrit literature available in Sri lanka.  

    Oldest written version of Ramayana, in Nepal is from 1075 BCE. 

    Yama Zatdaw in Myanmar is considered the National epic and is a Burmese version of the story of Rama which has again given theme to dance and art forms including tapestries and puppets.(In fact Burmese people even stress that it is the true history of their land).

    Hikayat Seri Rama in Malaysia makes Dashrath the great-grandson of Adam, the first man! (which is not too far from the truth as both Dashrath and Manu, the First Man were from the Suryavanshi/Solar dynasty!),  

    In the Phra Lak Phra Lam of Laos, Buddha is regarded as an incarnation of Rama (again not completely false as both are incarnations of Lord Vishnu!).

    Reamker, is the most famous story of Khmer Literature of Cambodia and is the source of classical dance, theater, poetry and of course the famous sculptures of Angkor Wat. Various rock inscriptions belonging to about 700 CE are also found in the Khmer region of Cambodia.  

    Maradia Lawana in the Phillipines is based on the Ramayana, 

    Ramakavaca in Bali is a major source of moral and spiritual guidance for the island and forms the basic story line of Balinese traditional dance, 

    Kakawin Ramayana in Java, Indonesia (9th century CE) is a mixture of Sanskrit and Kawi languages and is the basis of traditional Indonesian ballet and performances that are famous the world over.

Ramakien in Thailand is again considered the National epic and adds an element of incest to the story by making Sita the daughter of Ravan and Mandodari who is thrown away in the Sea as she is prophesied to bring destruction to Ravan's Kingdom!!
Posted in हिन्दू पतन

Islam came to India as an invading force. For 400 years (800AD-1200AD),


Islam came to India as an invading force. For 400 years (800AD-1200AD), it struggled on the peripheral regions of the country – in Sind, in Baluchistan, and in the mountainous regions of Afghanistan. It was only in 1198AD that it gained a toehold in Delhi, which was almost under daily threat for the next 50 years. In this time, the influence of the these kingdoms was limited to Delhi, Punjab, and some parts of Uttar Pradesh. This was the time when the resistance was led by the ancient dynasties of India.

Islam really penetrated the rest of the country only during the time of Ala-ud-din Khilji (1296-1316) who sent expeditions even into the deep south. However, this did not last long, and again Islamic kingdoms found themselves reduced to certain particular regions of the country.

At the dawn of the Mughal dynasty (1526), (and the twilight of the Sultanate), the only Muslim kingdoms to be found were again in the vicinity of Delhi. The Rajput Confederacy led by the kingdom of Mewar, had reconquered all of India, and was setting its sight on Delhi.

It was then that the Islamic clergy appealed to Babur to invade India. The invasion did take place, and in the Battle of Khanwa (1527), the Rajputs were defeated. Over the next 150 years (that is up until the early part of Aurangzeb’s rule – 1677) however, the struggles between Mughals and the Rajputs continued. In particular, Mewar, the leading kingdom of the Rajput confederacy, remained unconquered the whole time.

At this point, new powers rose on the scene. Since most of the Hindu kingdoms were destroyed, the new kingdoms emerged as republics (Jats, Sikhs) or around charismatic warriors (Shivaji). By 1707, all was lost, and the Mughal empire was reduced to a rump state. Its rulers were puppets, and were changed and beheaded at whim.

The Mughal court after the 1720s was essentially a proxy of the different groups of Rajputs (who had been co-opted a 100 years earlier, but who now ran it according to their own agenda), of the Marathas, and of whichever band of dacoits was the most powerful near Delhi.

The Islamic clergy again tried the same trick. From this period on, they started writing letters to the rulers of Iran and Afghanistan to come invade India, and re-establish Islamic rule in India. Nadir Shah did heed the requests, and invaded India in 1738, but instead of doing any damage to the Kafir powers, he only ended up totally destroying whatever still remained of the Mughal Empire.

From the 1750s, Ahmed Shah Abdali, then ruler of Afghanistan, began to invade India regularly. This was again on the pattern of the Ghori and Ghazni who had done this in the early 1100s. The idea was to weaken the Hindu kingdoms, spread terror, loot away wealth, and finally to establish a kingdom within India. The dreams were cut short, however, when in 1757, at the Third Battle of Panipat, he was fought to a stalemate by the Marathas.

It is this battle that really signals the conclusive defeat of Islamic Imperialism in India. Never again would India by invaded by powers from across the Indus, and in fact, within 20 years, it would be Sikh powers that would reign supreme in Afghanistan.

However, a new threat was rising now from the seas. The European powers were entering India, and within a 100 years (1857), it would be the British monarch that would rule India.

But the Muslims never forgot their defeat. India remained, and still remains their “unfinished business” – the one thorn in their side – the only country in the world to successfully repulse the attacks.

By the 1920s, there was open talk of Dominion status for India (followed by assurances of complete Independence in 1940). The days of the British were numbered, and it was a foregone conclusion that post-British India would be democratic.

For a Muslim, sovereignty rests only with Allah, and hence, a republican form of government is haram – sinful for him. The demography too pointed toward a non-Islamic form of government for the future state.

Think back now a bit – an army invades, it is forced into a stalemate, and finally reduced to a state of penury and defeat. What does it do now? Naturally, it withdraws!

This is exactly what happened. The demand of Partition that began to floated, and then forcefully advocated since 1940 was essentially a withdrawal of the pan-Islamists to their areas of strength – Pakistan and Bangladesh.

Unfortunately, the Hindu politicians of the day did not understand history. Except Veer Savarkar, BR Ambedkar and C. Rajagopalachari, all of them tried to prevent Partition, never really trying to understand what it really was. When it became unavoidable, they prevented an exchange of populations.

What this policy resulted in was the trapping of a hostile force within India, and the abandonment of one’s forces in places where they were surrounded by hostiles. Hence the pitiable state of Hindus in present-day Pakistan, and the militant Muslim separatism within India.

Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

अपने अंगूठे से बताये गये बिंदुओं पर 5 सेकेंड तक दबायें


अपने अंगूठे से बताये गये बिंदुओं पर 5 सेकेंड तक दबायें और फिर 3 सेकेंड के लिये छोड़ दें। ऐसा लगातार 5 से 10 दिन तक हर रोज 2-3 मिनट तक करें। आपको कई बीमारियों से निजात मिलेगी। 

इसे शेयर करना न भूलें, हो सकता है आपके किसी मित्र को इससे फायदा हो जाये... 

इस रोचक जानकारी के साथ पढ़ें वनइंडिया पर अजब-गजब खबरें- http://hindi.oneindia.in/news/bizarre/

अपने अंगूठे से बताये गये बिंदुओं पर 5 सेकेंड तक दबायें और फिर 3 सेकेंड के लिये छोड़ दें। ऐसा लगातार 5 से 10 दिन तक हर रोज 2-3 मिनट तक करें। आपको कई बीमारियों से निजात मिलेगी।

इसे शेयर करना न भूलें, हो सकता है आपके किसी मित्र को इससे फायदा हो जाये…

इस रोचक जानकारी के साथ पढ़ें वनइंडिया पर अजब-गजब खबरें-http://hindi.oneindia.in/news/bizarre/

Posted in रामायण - Ramayan

जब जटायु का अंतिम साँसे चल रही थी तब


बहुत ही रोचक प्रसंग..
------------------------------
जब जटायु का अंतिम साँसे चल रही थी तब
एक आदमी ने उसे कहा कि जटायु तुम्हे
मालुम था कि तुम रावण से युद्ध
कदापि नही जीत सकते तो तुमने उसे
ललकारा क्यों ?
.
तब जटायु ने बहुत अच्छा जवाब दिया था ।
.
जटायु ने कहा कि मुझे मालुम था कि मैं
रावण से युद्ध मे नही जीत सकता पर अगर
मैंने उस वक्त रावण से युद्ध
नही किया होता तो भारतवर्ष
की आनेवाली पीढ़िया मुझे कायर कहती ।
अरे एक भारतीय आर्य नारी का अपहरण
मेरी आँखों के सामने हो रहा है और मैं
कायरो की भांति बिल मे पडा रहूँ इससे
तो मौत ही अच्छा है मैं अपने सर पे
कायरता का कलंक लेके
जीना नहीं चाहता था ईसलिऐ मैंने रावण
से युद्ध किया ।
.
.
ये एक पक्षी के विचार है अगर भारतवर्ष
के हर लोग की ऐसी सोच होती तो आज
भारत विश्वगुरु होता ।।

बहुत ही रोचक प्रसंग..
——————————
जब जटायु का अंतिम साँसे चल रही थी तब
एक आदमी ने उसे कहा कि जटायु तुम्हे
मालुम था कि तुम रावण से युद्ध
कदापि नही जीत सकते तो तुमने उसे
ललकारा क्यों ?
.
तब जटायु ने बहुत अच्छा जवाब दिया था ।
.
जटायु ने कहा कि मुझे मालुम था कि मैं
रावण से युद्ध मे नही जीत सकता पर अगर
मैंने उस वक्त रावण से युद्ध
नही किया होता तो भारतवर्ष
की आनेवाली पीढ़िया मुझे कायर कहती ।
अरे एक भारतीय आर्य नारी का अपहरण
मेरी आँखों के सामने हो रहा है और मैं
कायरो की भांति बिल मे पडा रहूँ इससे
तो मौत ही अच्छा है मैं अपने सर पे
कायरता का कलंक लेके
जीना नहीं चाहता था ईसलिऐ मैंने रावण
से युद्ध किया ।
.
.
ये एक पक्षी के विचार है अगर भारतवर्ष
के हर लोग की ऐसी सोच होती तो आज
भारत विश्वगुरु होता ।।