Posted in PM Narendra Modi

नेताओं के भ्रष्टाचार से बड़े भ्रष्टाचार के अड्डे ये मीडिया चैनल हैं ..


नेताओं के भ्रष्टाचार से बड़े भ्रष्टाचार के अड्डे ये मीडिया चैनल हैं ..

कुछ नमूने :
.
1. पिछले दिनों फेस बुक से पता पड़ा की IBN-7 के राजदीप सरदेसाई ने जनपथ, दिल्ली में 50 करोड़ का बंगला खरीदा है।
राज दीप सरदेसाई की उम्र 48 साल है और अगर 50 करोड़ का बंगला खरीदा है तो और कितनी संपत्ति होगी उसके पास, इसका अंदाजा ही लगाया जा सकता है।
.
2. दीपक चौरसिया को एक व्यक्ति ने चैनल पर ही पूछ लिया कि 50,000 रुपये की पगार पे
काम करने वाला दीपक चौरसिया 500 करोड़ का मालिक कैसे बन गया? तो दीपक चौरसिया सकपका गया, कोई जवाब नही दिया और बहस का मुद्दा ही बदल दिया।
दीपक चौरसिया की उम्र केवल 45 वर्ष है, इतनी सी उम्र में पत्रकार की नौकरी कर कोई इतना पैसा जमा कर सकता है क्या …?
.
3. ‘श’ को ‘स’ बोलने वाला राजीव शुक्ला भी आपको याद होगा। कुछ अरसा ही बीता है जब ये ज़नाब नेताओं के interview लेने वाले एक free lancer पत्रकार थे। परन्तु आज इन श्रीमान जी की पत्नी एक News 24 Channel की मालिक हैं। जुगाड़ देखिये की साहब बिना कोई जनसेवा किये ही राज्यसभा सांसद हैं, कोंग्रेस शासन में केद्रीय मंत्री भी बन गए और BCCI के दबंग सदस्य हैं। सिवाय पैसे और राजनीति जुगाड़बाज़ी के इनकी न कोई following है ओर न कोई काबिलियत। iski patni anuradha prasad BJP neta Ravi Shankar Prasad ki real sister hai
.
4. साजिया इल्मी ने अपनी संपत्ति चुनाव आयोग के सामने 30 करोड़ घोषित की है।
इल्मी की उम्र केवल 43 वर्ष है और वो भी स्टार न्यूज़ में पत्रकार के रूप में काफी लम्बे अर्से तक जुडी रही है …
.
ये तो चंद लोग हैं। इनके अलावा अनेको पत्रकार हैं जो वेतनभोगी थे और आज थोड़े से समय मैं ही अरबों के मालिक हैं।
ये बातें पुख्ता करती हैं कि सभी पत्रकारों की सम्पत्तियों की जांच होनी चाहिए …I
पता चलना चाहिए कि आखिर ये पत्रकारिता कैसा धंधा है जिसमे लोग छोटी सी उम्र में लोग इतने अमीर बन जाते हैं ??

श्येर करो दोस्तो

नेताओं के भ्रष्टाचार से बड़े भ्रष्टाचार के अड्डे ये मीडिया चैनल हैं ..

कुछ नमूने :
.
1. पिछले दिनों फेस बुक से पता पड़ा की IBN-7 के राजदीप सरदेसाई ने जनपथ, दिल्ली में 50 करोड़ का बंगला खरीदा है।
राज दीप सरदेसाई की उम्र 48 साल है और अगर 50 करोड़ का बंगला खरीदा है तो और कितनी संपत्ति होगी उसके पास, इसका अंदाजा ही लगाया जा सकता है।
.
2. दीपक चौरसिया को एक व्यक्ति ने चैनल पर ही पूछ लिया कि 50,000 रुपये की पगार पे
काम करने वाला दीपक चौरसिया 500 करोड़ का मालिक कैसे बन गया? तो दीपक चौरसिया सकपका गया, कोई जवाब नही दिया और बहस का मुद्दा ही बदल दिया।
दीपक चौरसिया की उम्र केवल 45 वर्ष है, इतनी सी उम्र में पत्रकार की नौकरी कर कोई इतना पैसा जमा कर सकता है क्या ...?
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3. 'श' को 'स' बोलने वाला राजीव शुक्ला भी आपको याद होगा। कुछ अरसा ही बीता है जब ये ज़नाब नेताओं के interview लेने वाले एक free lancer पत्रकार थे। परन्तु आज इन श्रीमान जी की पत्नी एक News 24 Channel की मालिक हैं। जुगाड़ देखिये की साहब बिना कोई जनसेवा किये ही राज्यसभा सांसद हैं, कोंग्रेस शासन में केद्रीय मंत्री भी बन गए और BCCI के दबंग सदस्य हैं। सिवाय पैसे और राजनीति जुगाड़बाज़ी के इनकी न कोई following है ओर न कोई काबिलियत। iski patni anuradha prasad BJP neta Ravi Shankar Prasad ki real sister hai
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4. साजिया इल्मी ने अपनी संपत्ति चुनाव आयोग के सामने 30 करोड़ घोषित की है।
इल्मी की उम्र केवल 43 वर्ष है और वो भी स्टार न्यूज़ में पत्रकार के रूप में काफी लम्बे अर्से तक जुडी रही है ...
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ये तो चंद लोग हैं। इनके अलावा अनेको पत्रकार हैं जो वेतनभोगी थे और आज थोड़े से समय मैं ही अरबों के मालिक हैं।
ये बातें पुख्ता करती हैं कि सभी पत्रकारों की सम्पत्तियों की जांच होनी चाहिए ...I
पता चलना चाहिए कि आखिर ये पत्रकारिता कैसा धंधा है जिसमे लोग छोटी सी उम्र में लोग इतने अमीर बन जाते हैं ??

श्येर करो दोस्तो
Posted in PM Narendra Modi

Alok Ranjan मनमोहन सिंह की आवाज अपने ही देश में कोई नहीं सुन सका मोदी जी की आवाज़ दुनिया पूरी दुनिया में गूंज रही है।
• मोदी ने कहा था एक दिन अमेरिका लाइन में लगेगा आज सच हो गया— सभी अमेरिकन कांग्रेस को मोदी ने लाइन में खड़ा करवा ही दिया
• 64 साल का इंसान उपवास मे
ं भी 65 मिनट तक बिना रुके धारा प्रवाह वाणी में गर्जना करते देख… “आज अमेरिका भी मान गया ये हिन्दुश्तान का शेर है”
• जिस तरह का माहौल अमेरिका के मेडिसन स्क्वायर में बना हुआ है, मुझे शक है कि कल से सभी अमेरिकन “हेलो फ्रेन्डस, हाऊ आर यू” के जगह पर “जय श्री कृष्णा, केम छो मित्रों” कहना न शुरू कर दें।
• मोदी जी भी बहुत शरारती हैं सेकुलरों को जलाने के लिए भगवा जैकेट पेहेन कर मैडिसन स्क्वायर गार्डन पहुंचे हैं। आज तो सेकुलरों का बर्नोल से भी काम नहीं चलने वाला है। आज पक्का सेक्युलरों को फायर ब्रिगेड की जरूरत पड़ने वाली है।
• अब समझ में आया अमेरिका को सेक्युलर नेता क्यों मोदी जी को वीसा नहीं देने के लिए चिट्ठियाँ लिखे थे । चुनाव के पहले आज जैसा माहौल बनता तो 44 सीटे भी नहीं मिल पाती बाबा को ।
• इसे मोदी का जादू कहो या हिन्दुओं की एकता की ताकत कि पिछले 67 सालों में हिन्दुस्तान के जितने भी प्रधान मंत्री हुये सभी ने अमेरिका के आगे सर झुकाया मगर पहली बार एक शख्स के आगे अमेरिका ने सर झुकाया है।मोदी जी आने वाले कुछ महीनों में ओबामा को पछाड कर दुनिया के नंबर एक होगे और 5 साल बाद भारत दुनिया की अगुवाई करेगा।

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

अगर अंग्रेंज नहीं आते तो इस देश में रेल नहीं होती


अगर अंग्रेंज नहीं आते तो इस देश में रेल
नहीं होती

अंग्रेंजो का दुनिया के 71 देशो में शासन था
उन देशो में से भारत का रेल नेटवर्क
दुनिया का सबसे बढ़ा नेटवर्क ही क्यों है ????

क्योकि हिंदुस्तान के कोने कोने से राॅ मेटेरियल
को इकट्ठा करके रेल के जरिये उसे मुंबई तक पहुचाया जाये और
मुंबई से पानी के जहाज में भर के लंदन ले
जाया जाये ।

एक्सपेरिमेंट के लिये जो रेलवे लाइन चलाई है
अंग्रेंजो ने वो मुंबई से ठाणा के बीच में
लेकिन जब एक्सपेरिमेंट सफल हो गया
तो रेल चलाई है

अहमदाबाद से मुंबई

इस देश में अहमदाबाद से मुंबई वाली
ये सबसे पुरानी रेलवे लाइन है
इस देश की ये जो अहमदाबाद से मुम्बई तक
का इलाका है
ये सबसे best cotton produser के areas रहे है

तो यहाँ होता क्या था
रेल चल रही है
उसमें cotton भर भर के
मुंबई के बन्दर गाह पर जाता था
और यहाँ से जहाजो में भर कर इंग्लैंड
जाता था
लेकिन वहा से खाली जहाज वापस भारत
आता था

तो अंग्रेंजो ने सोचा कि
भारत से तो राॅ मेटीरियल
आता है
परन्तु यहाँ से खाली जहाज भारत जाता है

और खाली जहाज़ डूबने के ज्यादा चांस होते है

इसके लिए उन्होंने युक्ति निकली

इन जहाजों में नमक भर के भारत भेजा जाये ।

वो नमक से भरे जहाज भारत लाकर
खाली किए जाते
और यहाँ से कच्चा माल भर के इंग्लैंड भेज
दिया जाता

अब बंदरगाह पर नमक का ढेर लगने लगा।

ये नमक का ढेर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के लिये
समस्या बन गया।
कि आखिर इस नमक का करे क्या

इसके लिए ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने
ब्रिटेन का नमक
हिन्दुस्तान के बाज़ारो में
बिकवाना शुरू किया

इसके लिए कम्पनी ने
हिन्दुस्तान के स्वदेशी नमक
पर टैक्स लगा दिया
और ब्रिटेन के नमक को टैक्स
फ्री कर दिया

इसे हिन्दुस्तान के गाँव गाँव में
ब्रिटेन का नमक
भी बिकने लगा

और ये बात गांधी जी को बर्दाश्त
नहीं हुई

1890 में गांधी जी ने लेख लिखा
कि ये अंग्रेंज
लोग कितने क्रूर है
इन्होने हिन्दुस्तानी नमक पर
भी टैक्स लगा दिया

इनकी चाल ये है
ताकि ब्रिटेन का नमक हिंदुस्तान
के गाँव में बिके

इससे अंग्रेंजो के दोनों हाथो में लड्डू है

भारतीय नमक पर टैक्स लेते है
और ब्रिटेन के नमक
की बिक्री पर प्रॉफिट कमाते है

1890 से गांधी जी के दिमाग में ये मंथन शुरू हुआ
और 1930 में नमक सत्यग्रह के रूप में प्रकट हुआ

6 अप्रेल1930 को गांधी जी ने
दांडी के समुन्द्र तट
पर एक मुठी नमक हाथ में लेकर
नमक कानून को तोडा

कानून तोड़ने पर लाखो लोग जेल गए
बहुत से लोग
मारे गए

अंत में अंग्रेंजी सरकार
को झुकना पढ़ा
और नमक कानून को वापस लिया गया

इतना सब होने के बाद
इस देश का दुर्भाग्य है
आज़ादी के 67 साल बाद भी
इसी देश में विदेशी नमक
बिक रहा है

अंग्रेंजो के बनाये इस शिक्षा तंत्र में
हम वही पढ़ते है
जो वो हमें पढ़ाना चाहते थे

इसे बदला नहीं गया

आज़ादी के बाद भी
ये शिक्षा तंत्र
वैसा का वैसा ही चल रहा है

हम आज भी वही पढ़ रहे
है

अगर अंग्रेंज नहीं आते तो इस देश में रेल
नहीं होती

अंग्रेंजो का दुनिया के 71 देशो में शासन था
उन देशो में से भारत का रेल नेटवर्क
दुनिया का सबसे बढ़ा नेटवर्क ही क्यों है ????

क्योकि हिंदुस्तान के कोने कोने से राॅ मेटेरियल
को इकट्ठा करके रेल के जरिये उसे मुंबई तक पहुचाया जाये और
मुंबई से पानी के जहाज में भर के लंदन ले
जाया जाये ।

एक्सपेरिमेंट के लिये जो रेलवे लाइन चलाई है
अंग्रेंजो ने वो मुंबई से ठाणा के बीच में
लेकिन जब एक्सपेरिमेंट सफल हो गया 
तो रेल चलाई है 

अहमदाबाद से मुंबई

इस देश में अहमदाबाद से मुंबई वाली
ये सबसे पुरानी रेलवे लाइन है 
इस देश की ये जो अहमदाबाद से मुम्बई तक
 का इलाका है
 ये सबसे best cotton produser के areas रहे है

तो यहाँ होता क्या था 
रेल चल रही है 
उसमें cotton भर भर के
 मुंबई के बन्दर गाह पर जाता था
और यहाँ से जहाजो में भर कर इंग्लैंड
जाता था 
लेकिन वहा से खाली जहाज वापस भारत
आता था

तो अंग्रेंजो ने सोचा कि
 भारत से तो राॅ मेटीरियल
आता है
 परन्तु यहाँ से खाली जहाज भारत जाता है

और खाली जहाज़ डूबने के ज्यादा चांस होते है

इसके लिए उन्होंने युक्ति निकली

इन जहाजों में नमक भर के भारत भेजा जाये ।

वो नमक से भरे जहाज भारत लाकर 
खाली किए जाते
और यहाँ से कच्चा माल भर के इंग्लैंड भेज
दिया जाता

अब बंदरगाह पर नमक का ढेर लगने लगा।

ये नमक का ढेर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के लिये
समस्या बन गया। 
कि आखिर इस नमक का करे क्या

इसके लिए ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 
ब्रिटेन का नमक
हिन्दुस्तान के बाज़ारो में 
बिकवाना शुरू किया

इसके लिए कम्पनी ने 
हिन्दुस्तान के स्वदेशी नमक
पर टैक्स लगा दिया 
और ब्रिटेन के नमक को टैक्स
फ्री कर दिया

इसे हिन्दुस्तान के गाँव गाँव में 
ब्रिटेन का नमक
भी बिकने लगा

 और ये बात गांधी जी को बर्दाश्त
नहीं हुई

1890 में गांधी जी ने लेख लिखा 
कि ये अंग्रेंज
लोग कितने क्रूर है 
इन्होने हिन्दुस्तानी नमक पर
भी टैक्स लगा दिया

इनकी चाल ये है 
ताकि ब्रिटेन का नमक हिंदुस्तान
के गाँव में बिके

इससे अंग्रेंजो के दोनों हाथो में लड्डू है

भारतीय नमक पर टैक्स लेते है
 और ब्रिटेन के नमक
की बिक्री पर प्रॉफिट कमाते है

1890 से गांधी जी के दिमाग में ये मंथन शुरू हुआ
और 1930 में नमक सत्यग्रह के रूप में प्रकट हुआ

6 अप्रेल1930 को गांधी जी ने
 दांडी के समुन्द्र तट
पर एक मुठी नमक हाथ में लेकर 
नमक कानून को तोडा

कानून तोड़ने पर लाखो लोग जेल गए 
बहुत से लोग
मारे गए 

अंत में अंग्रेंजी सरकार
को झुकना पढ़ा
 और नमक कानून को वापस लिया गया

इतना सब होने के बाद
 इस देश का दुर्भाग्य है
आज़ादी के 67 साल बाद भी
 इसी देश में विदेशी नमक
बिक रहा है

अंग्रेंजो के बनाये इस शिक्षा तंत्र में
 हम वही पढ़ते है 
जो वो हमें पढ़ाना चाहते थे

इसे बदला नहीं गया

आज़ादी के बाद भी
 ये शिक्षा तंत्र
वैसा का वैसा ही चल रहा है

 हम आज भी वही पढ़ रहे
है
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An old conversation between Rajdeep Sardesai and Amitabh Bacchan…


An old conversation between Rajdeep Sardesai and Amitabh Bacchan…

An old conversation between Rajdeep Sardesai and Amitabh Bacchan...
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राजदीप सरदेसाई और उसकी पत्नी सागरिका घोष का काला सच .


राजदीप सरदेसाई और उसकी पत्नी सागरिका घोष का काला सच ….

टाइम्स ऑफ इंडिया के मालिक समीर जैन के उपर एक ताकतवर नौकरशाह प्रसार भारती के महानिदेशक भाष्कर घोष का बार बार दबाव आता था की मेरी बेटी सागरिका घोष और मेरे दामाद राजदीप सरदेसाई को टाइम्स ऑफ़ इंडिया का सम्पादक बनाओ ..बदले में सरकारी फायदा लो .. अपने सम्पादक को बुलाया और कहा- ‘‘पडगांवकर जी, अब आपकी छुट्टी की जाती है …. क्योकि मुझे भी अपना बिजनस चलाना है .. एक नौकरशाह की बेटी और उसके बेरोजगार पति जिससे उसने प्रेम विवाह किया है उसे नौकरी देनी है वरना सरकारी विज्ञापन मिलने बंद हो जायेंगे ….

भाष्कर घोष का एक और सगा रिश्तेदार था प्रणव रॉय … ये प्रणव रॉय अपने अंकल भाष्कर घोष की मेहरबानी से दूरदर्शन पर हर रविवार “इंडिया दिस वीक” नामक कार्यक्रम करते थे …. उसकी पत्नी घोर वामपंथी नेता वृंदा करात की सगी बहन थी …

उस समय दूरदर्शन के लिए खूब सारे नये नये उपकरण और साजोसमान खरीदे जा रहे थे ..उस समय विपक्ष के नाम पर सिर्फ वामपथी पार्टी ही थी बीजेपी के सिर्फ दो सांसद थे ..
प्रणव रॉय ने अपने अंकल भाष्कर घोष के कहने पर न्यू देहली टेलीविजन कम्पनी लिमिटेड [एनडीटीवी] नामक कम्पनी बनाई और दूरदर्शन के लिए खरीदे जा रहे तमाम उपकरण धीरे धीरे एनडीटीवी के दफ्तर में लगने लगे … और एक दिन अचानक एनडीटीवी नामक चैनेल बन गया … बाद में भाष्कर घोष पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगे जिससे उन्हें पद छोड़ना पड़ा लेकिन जाते जाते उन्होंने अपनी बेटी सागरिका और उसके बेरोजगार नालायक प्रेमी से पति बने राजदीप सरदेसाई की जिन्दगी बना दी।

फिर कुछ दिन दोनों मियां बीबी एनडीटीवी में रहे .. बाद में राघव बहल नामक एक कारोबारी ने “चैनेल-सेवेन” जो बाद में आईबीएन सेवेन बना उसे लांच किया और ये दोनों मियां बीबी आईबीएन सेवेन में आ गये … इन दोनों बंटी और बबली की जोड़ी ने अपने पारिवारिक रसूख का खूब फायदा उठाया …आईबीएन में सागरिका घोष की मर्जी के बिना पत्ता भी नही हिलता था क्योकि सागरिका घोष की सगी आंटी अरुंधती घोष हैं -अरुंधती घोष संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थाई प्रतिनिधि थी -CNN-IBN का “ग्लोबल बिजनेस नेटवर्क” (GBN) से व्यावसायिक समझौता है। -GBN टर्नर इंटरनेशनल और नेटवर्क-18 की एक कम्पनी है। भारत में सीएनएन के पीछे अरुंधती घोष की ही लाबिंग थी जिसका फायदा राजदीप और सागरिका ने खूब उठाया |

सागरिका घोष की बड़ी आंटी रुमा पाल थी जिनके रसूख का फायदा भी इन दोनों बंटी और बबली की जोड़ी ने कांग्रेसी नेताओ के बीच पैठ जमाकर उठाया … रुमा पाल भले ही सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ जज थी लेकिन उनके फैसले के पीछे सागरिका घोष और राजदीप की दलाली होती थी …कान्ग्रेस के cash for vote घोटाले को भी राजदीप ने दबा लिया

बाद में वक्त का पहिया घुमा … देश में मोदीवाद उभरा .. आईबीएन को मुकेश अंबानी ने खरीद लिया .. और इन दोनों दलालों बंटी राजदीप और बबली सागरिका को लात मारकर भगा दिया … कुछ दिनों तक दोनों गायब रहे फिर बाद में अरुण पूरी के चैनेल आजतक पर नजर आने लगे ….

राजदीप सरदेसाई और उसकी पत्नी सागरिका घोष का काला सच ....

टाइम्स ऑफ इंडिया के मालिक समीर जैन के उपर एक ताकतवर नौकरशाह प्रसार भारती के महानिदेशक भाष्कर घोष का बार बार दबाव आता था की मेरी बेटी सागरिका घोष और मेरे दामाद राजदीप सरदेसाई को टाइम्स ऑफ़ इंडिया का सम्पादक बनाओ ..बदले में सरकारी फायदा लो .. अपने सम्पादक को बुलाया और कहा- ‘‘पडगांवकर जी, अब आपकी छुट्टी की जाती है .... क्योकि मुझे भी अपना बिजनस चलाना है .. एक नौकरशाह की बेटी और उसके बेरोजगार पति जिससे उसने प्रेम विवाह किया है उसे नौकरी देनी है वरना सरकारी विज्ञापन मिलने बंद हो जायेंगे ....

भाष्कर घोष का एक और सगा रिश्तेदार था प्रणव रॉय ... ये प्रणव रॉय अपने अंकल भाष्कर घोष की मेहरबानी से दूरदर्शन पर हर रविवार "इंडिया दिस वीक" नामक कार्यक्रम करते थे .... उसकी पत्नी घोर वामपंथी नेता वृंदा करात की सगी बहन थी ...

उस समय दूरदर्शन के लिए खूब सारे नये नये उपकरण और साजोसमान खरीदे जा रहे थे ..उस समय विपक्ष के नाम पर सिर्फ वामपथी पार्टी ही थी बीजेपी के सिर्फ दो सांसद थे ..
प्रणव रॉय ने अपने अंकल भाष्कर घोष के कहने पर न्यू देहली टेलीविजन कम्पनी लिमिटेड [एनडीटीवी] नामक कम्पनी बनाई और दूरदर्शन के लिए खरीदे जा रहे तमाम उपकरण धीरे धीरे एनडीटीवी के दफ्तर में लगने लगे ... और एक दिन अचानक एनडीटीवी नामक चैनेल बन गया ... बाद में भाष्कर घोष पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगे जिससे उन्हें पद छोड़ना पड़ा लेकिन जाते जाते उन्होंने अपनी बेटी सागरिका और उसके बेरोजगार नालायक प्रेमी से पति बने राजदीप सरदेसाई की जिन्दगी बना दी।

फिर कुछ दिन दोनों मियां बीबी एनडीटीवी में रहे .. बाद में राघव बहल नामक एक कारोबारी ने "चैनेल-सेवेन" जो बाद में आईबीएन सेवेन बना उसे लांच किया और ये दोनों मियां बीबी आईबीएन सेवेन में आ गये ... इन दोनों बंटी और बबली की जोड़ी ने अपने पारिवारिक रसूख का खूब फायदा उठाया ...आईबीएन में सागरिका घोष की मर्जी के बिना पत्ता भी नही हिलता था क्योकि सागरिका घोष की सगी आंटी अरुंधती घोष हैं -अरुंधती घोष संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थाई प्रतिनिधि थी -CNN-IBN का “ग्लोबल बिजनेस नेटवर्क” (GBN) से व्यावसायिक समझौता है। -GBN टर्नर इंटरनेशनल और नेटवर्क-18 की एक कम्पनी है। भारत में सीएनएन के पीछे अरुंधती घोष की ही लाबिंग थी जिसका फायदा राजदीप और सागरिका ने खूब उठाया |

सागरिका घोष की बड़ी आंटी रुमा पाल थी जिनके रसूख का फायदा भी इन दोनों बंटी और बबली की जोड़ी ने कांग्रेसी नेताओ के बीच पैठ जमाकर उठाया ... रुमा पाल भले ही सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ जज थी लेकिन उनके फैसले के पीछे सागरिका घोष और राजदीप की दलाली होती थी ...कान्ग्रेस के cash for vote घोटाले को भी राजदीप ने दबा लिया 

बाद में वक्त का पहिया घुमा ... देश में मोदीवाद उभरा .. आईबीएन को मुकेश अंबानी ने खरीद लिया .. और इन दोनों दलालों बंटी राजदीप और बबली सागरिका को लात मारकर भगा दिया ... कुछ दिनों तक दोनों गायब रहे फिर बाद में अरुण पूरी के चैनेल आजतक पर नजर आने लगे ....
Posted in नहेरु परिवार - Nehru Family

बाटला हाउस पर सोनिया गांधी रोई थी सोनिया गांधी कल फिर कशमीर बाढ पीडितो की हालत देखकर अपने आंसू नही रोक पाई


बाटला हाउस पर सोनिया गांधी रोई थी सोनिया गांधी कल फिर कशमीर बाढ पीडितो की हालत देखकर अपने आंसू नही रोक पाई ..मेडम कल कशमीर त्रासदी पर लोगों से वन टू वन मिली ।

परन्तु केदारनाथ त्रासदी पर सोनिया गांधी की आखो में पानी सुख गया था ।केदारनाथ त्रासदी पर सोनिया गांधी ने हवाई सर्वेक्षण किया था और फिर आनन् फानन में बेटे के विदेश से लौटते ही राहत सामग्री रवाना की थी जो बाद में सडी हुई निकली थी ।

कश्मीर और उत्तराखंड में मेडम के द्वारा अंतर करने के दो कारण लगते हैं …

या तो कशमीर में शीघ्र ही चुनाव होने वाले हैं या फिर केदारनाथ वाले कम्युनल और कश्मीर के लोग सेक्युलर ।

आपको क्या लगता है दोस्तों ?…..अपनी टिप्पणी अवश्य दे….

Posted in Media

राजदीप सरदेशाई


मित्रों अमेरिका की धरती पर भारत का त्रिशूल गाड़ने वाला , इन सेकुलर (अमेरिकी कुतों) और अमेरिका के लिए उन्हीं की धरती पर 65 वर्षों से देश को लूट रहे गद्दारों के मुह पर मोदी जी का करारा तमाचा है ,,,,यही अमेरिका और इसके पलने वाले हम भारतियों में छुपे बैठे “सेकुलर कुत्तों” को अपने बनाये लूट के महाजाल पर अमेरिकीयों द्वारा पीठ थपथपाए जाने से यह दबंग हम भारतियों का खून चूसते थे ! और हम भारतियों को सपेरों और भखारियों का देश कहते थे ,,,और अमेरिका, इंग्लेंड के गीत गा गा कर देशवासियों कोनीचा दिखाते थे, को। … मोदी जी की अमेरिकी धरती पर एतिहशिक तूफानी सभा से अमेरिका का घमंड और सेकुलर कुत्तों की बैचेनी , राजदीप सरदेशाई की टीवी रिपोर्टिंग में दिखाई देगयी , जब आनन-फानन में गुजरात दंगों का जिक्र करते करते ,,,कम्यूनल हिन्दुओं का इवेन्ट बन चूका है, कह गये ,,,,अचानक एक करारे तमाचे से राजदीप सरदेसाई की तंत्र-नाड़ियाँ हिल गयी और भाग ने में सफल हो गये ,,,,और भागते भागते यह कह रहे थे की पत्रकारिता में ऐसा होता रहता है ,,,और सारी खबर और टीवी फुटेज को गायब कर गए ,,,और नही कोई FIR भी लिखाई। ……. मित्रों अमेरिका को बहुत घमंड था की उसके एजेंट (सेकुलर कुत्ते) पुरे भारत में पलते है ,,,और वाही देश की दशा और दिशा तै करतें है , इन्हीं कुत्तों की मदद से , भारत में नफरत जातवाद, अराजकता, घ्रणा, और अलगावाद का खुनी खेल खेलते थे और पुरे देश को ऐस्थिर कर पुरे देश को जबरदस्त लूट करते थे। …… मित्रों बहुत गर्व हुआ जब मोदी जी ने अमेरिकीयों से जादा , भारतियों को अमेरिका की छाती पर दिखा कर इन षड्यंत्रकरी दाद्दारों की चूलें हिला दी ,,,,,जागिये और जागते रहें ,,,,,,देश द्रोही आपसे ज्यादा सक्रीय है। … अपना देश बचाईये ,,,,,और सबको यह खबर सेएर करें ,,,ॐ

— with Gopal Krishan and 3 others.

मित्रों अमेरिका की धरती पर भारत का त्रिशूल गाड़ने वाला , इन सेकुलर (अमेरिकी कुतों) और अमेरिका के लिए उन्हीं की धरती पर 65 वर्षों से देश को लूट रहे गद्दारों के मुह पर मोदी जी का करारा तमाचा है ,,,,यही अमेरिका और इसके पलने वाले हम भारतियों में छुपे बैठे "सेकुलर कुत्तों" को अपने बनाये लूट के महाजाल पर अमेरिकीयों द्वारा पीठ थपथपाए जाने से यह दबंग हम भारतियों का खून चूसते थे ! और हम भारतियों को सपेरों और भखारियों का देश कहते थे ,,,और अमेरिका, इंग्लेंड के गीत गा गा कर देशवासियों को नीचा दिखाते थे, को। … मोदी जी की अमेरिकी धरती पर एतिहशिक तूफानी सभा से अमेरिका का घमंड और सेकुलर कुत्तों की बैचेनी , राजदीप सरदेशाई की टीवी रिपोर्टिंग में दिखाई देगयी , जब आनन-फानन में गुजरात दंगों का जिक्र करते करते ,,,कम्यूनल हिन्दुओं का इवेन्ट बन चूका है, कह गये ,,,,अचानक एक करारे तमाचे से राजदीप सरदेसाई की तंत्र-नाड़ियाँ हिल गयी और भाग ने में सफल हो गये ,,,,और भागते भागते यह कह रहे थे की पत्रकारिता में ऐसा होता रहता है ,,,और सारी खबर और टीवी फुटेज को गायब कर गए ,,,और नही कोई FIR भी लिखाई। ....... मित्रों अमेरिका को बहुत घमंड था की उसके एजेंट (सेकुलर कुत्ते) पुरे भारत में पलते है ,,,और वाही देश की दशा और दिशा तै करतें है , इन्हीं कुत्तों की मदद से , भारत में नफरत जातवाद, अराजकता, घ्रणा, और अलगावाद का खुनी खेल खेलते थे और पुरे देश को ऐस्थिर कर पुरे देश को जबरदस्त लूट करते थे। …… मित्रों बहुत गर्व हुआ जब मोदी जी ने अमेरिकीयों से जादा , भारतियों को अमेरिका की छाती पर दिखा कर इन षड्यंत्रकरी दाद्दारों की चूलें हिला दी ,,,,,जागिये और जागते रहें ,,,,,,देश द्रोही आपसे ज्यादा सक्रीय है। … अपना देश बचाईये ,,,,,और सबको यह खबर सेएर करें ,,,ॐ
Pitamber Manoj हाँ उत्कर्ष जी लगता है पोस्ट पढ़ी नहीं और नहीं समझ ने का प्रयास किया ,,,थोड़ा राजदीप के इतिहास पर नजर डाल लेते ,,,,,,और यह कमीना किस देशद्रोही दल के लिए , भारतिय समाज और संस्कृति को जलील कर ,,,देश भक्त मोदी जी की भी खिल्ली उड़ने से नहीं चुकता था , इस दुष्ट ने US भारतियों को भी बेवकूफ समझ रखा था , आपने देखा इस देश द्रोही की क्या दशा कर रहें है NRI भारतीय ,,,,,लगता है सिब्बल और दिग्गी की तरेह आपने भी इन गद्दारों को बचाने का बीड़ा उठा रखा है क्या
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सेक्यूलरिज्म का राग अलापने वाले कायर चूहों…


सेक्यूलरिज्म का राग अलापने वाले कायर चूहों…
मैं चैलेंज करता हूँ तुम्हें…
एक बाप की औलाद हो तो पूरा करना…

1) कश्मीरी पंडितों को बिना किसी सिक्योरिटी कश्मीर में बसा कर दिखा दो…
2)कश्मीर के लालचौक पर अकेले जाकर तिरंगा फहरा दो…
3)हैदराबाद के महालक्ष्मी मंदिर में बिना सशस्त्र बलों के आरती करवा दो…
4)शाही इमाम के मुँह से वंदेमातरम गवा दो…
5)औवैसी के माथे पर जाकर टीका लगा दो…

इनमें से एक चैलेंज पूरा कर दो मेरा जो तुम्हें सबसे आसान लगे…
कसम खाता हूँ अपनी माँ की उसी दिन सेक्यूलर बन जाऊँगा…
है कोई सूरमा शांतिदूतों का हिन्दू भाई…????

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qutab-minar-was-dhruv-stambh-vishnu


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मोदी जी ने हम भारतीयों और भारत माता का मस्तक गर्व से उँचा कर दिया है…….. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संयुक्त राष्ट्र संघ का पूरा भाषण आप सबके लिये


मोदी जी ने हम भारतीयों और भारत माता का मस्तक गर्व से उँचा कर दिया है……..
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संयुक्त राष्ट्र संघ का पूरा भाषण आप सबके लिये
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विशिष्ट अतिथिगण और मित्रों
सर्वप्रथम मैं संयुक्त राष्ट्र महासभा के 69वें सत्र के अध्यक्ष चुने जाने पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। भारत के प्रधानमंत्री के रूप में पहली बार आप सबको संबोधित करना मेरे लिए अत्यंत सम्मान की बात है। मैं भारतवासियों की आशाओं एवं अपेक्षाओं से अभिभूत हूं। उसी प्रकार मुझे इस बात का पूरा भान है कि विश्व को 1.25 बिलियन लोगों से क्या अपेक्षाएं हैं। भारत वह देश है, जहां मानवता का छठवां हिस्सा आबाद है। भारत ऐसे व्यापक पैमाने पर आर्थिक व सामाजिक बदलाव से गुजर रहा है, जिसका उदाहरण इतिहास में दुर्लभ है।
प्रत्येक राष्ट्र की, विश्व की अवधारणा उसकी सभ्यता एवं धार्मिक परंपरा के आधार पर निरूपित होती है। भारत चिरंतन विवेक समस्त विश्व को एक कुटंब के रूप में देखता है। और जब मैं यह बात कहता हूं तो मैं यह साफ करता हूं कि हर देश की अपनी एक philosophy होती है। मैं ideology के संबंध में नहीं कह रहा हूं। और देश उस फिलोस्फी की प्रेरणा से आगे बढ़ता है। भारत एक देश है, जिसकी वेदकाल से वसुधैव कुंटुम्बकम परंपरा रही है। भारत एक देश है, जहां प्रकृति के साथ संवाद, प्रकृति के साथ कभी संघर्ष नहीं ये भारत के जीवन का हिस्सा है और इसका कारण उस philosophy के तहत, भारत उस जीवन दर्शन के तहत, आगे बढ़ता रहता है। प्रत्येक राष्ट्र की, विश्व अवधारणा उसकी सभ्यता और उसकी दार्शनिक परंपरा के आधार पर निरूपित होती है। भारत का चिरंतन विवेक समस्त विश्व को, जैसा मैंने कहा – वसुधैव कुटुंबमकम – एक कुटुम्ब के रूप में देखता है। भारत एक ऐसा राष्ट्र है, जो केवल अपने लिए नहीं, बल्कि विश्व पर्यंत न्याय, गरिमा, अवसर और समृद्धि के हक में आवाज उठाता रहा है। अपनी विचारधारा के कारण हमारा multi-literalism में दृढ़ विश्वास है।
आज यहां खड़े होकर मैं इस महासभा पर एक टिकी हुई आशाओं एवं अपेक्षाओं के प्रति पूर्णतया सजग हूं। जिस पवित्र विश्वास ने हमें एकजुट किया है, मैं उससे अत्यंत प्रभावित हूं। बड़े महान सिद्धांतों और दृष्टिकोण के आधार पर हमने इस संस्था की स्थापना की थी। इस विश्वास के आधार पर कि अगर हमारे भविष्य जुड़े हुए हैं तो शांति, सुरक्षा, मानवाधिकार और वैश्विक आर्थिक विकास के लिए हमें साथ मिल कर काम करना होगा। तब हम 51 देश थे और आज 193 देश के झंडे इस बिल्डिंग पर लहरा रहे हैं। हर नया देश इसी विश्वास और उम्मीद के आधार पर यहां प्रवेश करता है। हम पिछले 7 दशकों में बहुत कुछ हासिल कर सके हैं। कई लड़ाइयों को समाप्त किया है। शांति कायम रखी है। कई जगह आर्थिक विकास में मदद की है। गरीब बच्चों के भविष्य को बनाने में मदद दी है। भुखमरी हटाने में योगदान दिया है। और इस धरती को बचाने के लिए भी हम सब साथ मिल कर के जुटे हुए हैं।
69 UN Peacekeeping मिशन में विश्व में blue helmet को शांति के एक रंग की एक पहचान दी है। आज समस्त विश्व में लोकतंत्र की एक लहर है।
अफगानिस्तान में शांतिपूर्वक राजनीतिक परिवर्तन यह भी दिखलाता है कि अफगान जनता की शांति की कामना हिंसा पर विजय अवश्य पाएगी। नेपाल युद्ध से शांति और लोकतंत्र की ओर आगे बढ़ा है। भूटान के नए लोकतंत्र में एक नई ताकत नजर आ रही है। पश्चिम एशिया एवं उत्तर अफ्रीका में लोकतंत्र के पक्ष में आवाज उठाए जाने के प्रयास हो रहे हैं। Tunisia की सफलता दिखा रही है कि लोकतंत्र की ये यात्रा संभव है।
अफ्रीका में स्थिरता, शांति और प्रगति हेतु एक नई ऊर्जा एवं जागृति दिखायी दे रही है।
हमें एशिया और उसके पूरे अभूतपूर्व समृद्धि का अभ्युदय देखा है। जिसके आधार में शांति एवं स्थिरता की शक्ति समाहित है। अपार संभावनाओं से समृद्ध महादेश लैटिन अमेरिका स्थिरता एवं समृद्धि के साझा प्रयास में एकजुट हो रहा है। यह महादेश विश्व समुदायों के लिए एक महत्वपूर्ण आधार स्तंभ सिद्ध हो सकता है।
भारत अपनी प्रगति के लिए एक शांतिपूर्ण एवं स्थिर अंतरराष्ट्रीय वातावरण की अपेक्षा करता है। हमारा भविष्य हमारे पड़ोस से जुड़ा हुआ है। इसी कारण मेरी सरकार ने पहले ही दिन से पड़ोसी देशों से मित्रता और सहयोग बढ़ाने पर पूरी प्राथमिकता दी है। और पाकिस्तान के प्रति भी मेरी यही नीति है। मैं पाकिस्तान से मित्रता और सहयोग बढ़ाने के लिए गंभीरता से शांतिपूर्ण वातवारण में बिना आतंक के साये के साथ द्विपक्षीय वार्ता करना चाहते हैं।लेकिन पाकिस्तान का भी यह दायित्व है कि उपयुक्त वातावरण बनाये और गंभीरता से द्विपक्षीय बातचीत के लिए सामने आये।
इसी मंच पर बात उठाने से समाधान के प्रयास कितने सफल होंगे, इस पर कइयों को शक है। आज हमें बाढ़ से पीडि़त कश्मीर में लोगों की सहायता देने पर ध्यान देना चाहिए, जो हमने भारत में बड़े पैमाने पर आयोजित किया है। इसके लिए सिर्फ भारत में कश्मीर, उसी का ख्याल रखने पर रूके नहीं हैं, हमने पाकिस्तान को भी कहा, क्योंकि उसके क्षेत्र में भी बाढ़ का असर था। हमने उनको कहा कि जिस प्रकार से हम कश्मीर में बाढ़ पीडि़तों की सेवा कर रहे हैं, हम पाकिस्तान में भी उन बाढ़ पीडि़तों की सेवा करने के लिए हमने सामने से प्रस्ताव रखा था।
हम विकासशील विश्व का हिस्सा हैं, लेकिन हम अपने सीमित संसाधनों को उन सभी के साथ साझा करने की छूट दें,जिन्हें इनकी नितांत आवश्यकता है।
दूसरी ओर आज विश्व बड़े स्तर के तनाव और उथल-पुथल की स्थितियों से गुजर रहा है। बड़े युद्ध नहीं हो रहे हैं, परंतु तनाव एवं संघर्ष भरपूर नजर आ रहा है, बहुतेरे हैं, शांति का अभाव है तथा भविष्य के प्रति अनिश्चितता है। आज भी व्यापक रूप से गरीबी फैली हुई है। एक होता हुआ एशिया प्रशांत क्षेत्र अभी भी समुद्र में अपनी सुरक्षा, जो कि इसके भविष्य के लिए आधारभूत महत्व रखती है, को लेकर बहुत चिंतित है।
यूरोप के सम्मुख नए वीजा विभाजन का खतरा मंडरा रहा है। पश्चिम एशिया में विभाजक रेखाएं और आतंकवाद बढ़ रहे हैं। हमारे अपने क्षेत्र में आतंकवादी स्थिरतावादी खतरे से जूझना जारी है। हम पिछले चार दशक से इस संकट को झेल रहे हैं। आतंकवाद चार नए नए रूप और नाम से प्रकट होता जा रहा है। इसके खतरे से छोटा या बड़ा, उत्तर में हो या दक्षिण में, पूरब में हो या पश्चिम में, कोई भी देश मुक्त नहीं है।
मुझे याद है, जब मैं 20 साल पहले विश्व के कुछ नेताओं से मिलता था और आतंकवाद की चर्चा करता था, तो उनके यह बात गले नहीं उतरती थी। वह कहते थे कि यह law and order problem है। लेकिन आज धीरे धीरे आज पूरा विश्व देख रहा है कि आज आतंकवाद किस प्रकार के फैलाव को पाता चला जा रहा है। परंतु क्या हम वाकई इन ताकतों से निपटने के लिए सम्मिलित रूप से ठोस अंतरराष्ट्रीय प्रयास कर रहे हैं और मैं मानता हूं कि यह सवाल बहुत गंभीर है। आज भी कई देश आतंकवादियों को अपने क्षेत्र में पनाह दे रहे हैं और आतंकवादियों को अपनी नीति का उपकरण मानते हैं और जब good terrorism and bad terrorism , ये बातें सुनने को मिलती है, तब तो आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की हमारी निष्ठाओं पर भी सवालिया निशान खड़े होते हैं।
पश्चिम एशिया में आतंकवाद पाश्विकता की वापसी तथा दूर एवं पास के क्षेत्र पर इसके प्रभाव को ध्यान में रखते हुए सम्मिलित कार्रवाई का स्वागत करते हैं। परंतु इसमें क्षेत्र के सभी देशों की भागीदारी और समर्थन अनिवार्य है। अगर हम terrorism से लड़ना चाहते हैं तो क्यों न सबकी भागीदारी हो, क्यों न सबका साथ हो और क्यों न उस बात पर आग्रह भी किया जाए। sea, space एवं cyber space साझा समृद्धि के साथ –साथ संघर्ष के रंगमंच भी बने हैं। जो समुद्र हमें जोड़ता था, उसी समुद्र से आज टकराव की खबरें शुरू हो रही हैं। जो स्पेस हमारी सिद्धियों का एक अवसर बनता था, जो सायबर हमें जोड़ता था, आज इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में नए संकट नजर आ रहे हैं।
उस अंतरराष्ट्रीय एकजुटता की, जिसके आधार पर संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई, जितनी आवश्यकता आज है, उतनी पहले कभी नहीं थी। आज अब हम interdependenceworld कहते हैं तो क्या हमारी आपसी एकता बढ़ी है। हमें सोचने की जरूरत है। क्या कारण है कि UN जैसा इतना अच्छा प्लेटफार्म हमारे पास होने के बाद भी अनेक जी समूह बनाते चले गए हम। कभी G 4 होगा, कभी G 7 होगा, कभी G 20 होगा। हम बदलते रहते हैं और हम चाहें या न चाहें, हम भी उन समूहों में जुड़े हैं। भारत भी उसमें जुड़ा है।
लेकिन क्या आवश्यकता नहीं है कि हम G 1 से आगे बढ़ कर के G-All की तरफ कदम उठाएं। और जब UN अपने 70 वर्ष मनाने जा रहा है, तब ये G-All का atmosphere कैसे बनेगा। फिर एक बार यही मंच हमारी समस्याओं के समाधान का अवसर कैसे बन सके। इसकी विश्वसनीयता कैसे बढ़े, इसका सामर्थ्य कैसे बढ़े, तभी जा कर के यहां हम संयुक्त बात करते हैं। लेकिन टुकड़ों में बिखर जाते हैं, उसमें हम बच सकते हैं, एक तरफ तो हम यह कहते हैं कि हमारी नीतियां परस्पर जुड़ी हुई हैं और दूसरी तरफ हम जीरो संघ के नजरिये से सोचते हैं। अगर उसे लाभ होता है तो मेरी हानि होती है, कौन किसके लाभ में है, कौन किसके हानि में है, यह भी मानदंड के आधार पर हम आगे बढ़ते हैं।
निराशावादी या आलोचनावादी की तरह कुछ भी नहीं बदलने वाला है। एक बहुत बड़ा वर्ग है, जिसके मन में है कि छोड़ो यार, कुछ नहीं बदलने वाला है, अब कुछ होने वाला नहीं है। ये जो निराशावादी और आलोचनावादी माहौल है, यह कहना आसान है। परंतु अगर हम ऐसा करते हैं तो हम अपनी जिम्मेदारियों से भागने का जोखिम उठा रहे हैं। हम अपने सामूहिक भविष्य को खतरे में डाल रहे हैं। आइए, हम अपने समय की मांग के अनुरूप अपने आप को ढालें। हम वक्त की शांति के लिए कार्य करें।
कोई एक देश या कुछ देशों का समूह विश्व की धारा को तय नहीं कर सकता है। वास्तविक अन्तरराज्यीय होना, यह समय की मांग है और यह अनिवार्य है। हमें देशों के बीच सार्थक संवाद एवं सहयोग सुनिश्चित करना है। हमारे प्रयासों का प्रारंभ यहीं संयुक्त राष्ट्र में होना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार लाना, इसे अधिक जनतांत्रिक और भागीदारी परक बनाना हमारे लिए अनिवार्य है।
20वीं सदी की अनिवार्यताओं को प्रतिविदित करने वाली संस्थाएं 21वीं सदी में प्रभावी सिद्ध नहीं होंगी। इनके सम्मुख अप्रासंगिक होने का खतरा प्रस्तुत होगा, और भी आग्रह से कहना चाहता हूं कि पिछली शताब्दी के आवश्यकताओं के अनुसार जिन बातों पर हमने बल दिया, जिन नीति-नियमों का निर्धारण किया वह अभी प्रासंगिक नहीं है। 21वीं सदी में विश्व काफी बदल चुका है, बदल रहा है और बदलने की गति भी बड़ी तेज है। ऐसे समय यह अनिवार्य हो जाता है कि समय के साथ हम अपने आप को ढालें। हम परिवर्तन करें, हम नए विचारों पर बल दें। अगर ये हम कर पायेंगे तभी जाकर के हमारा relevance रहेगा। हमें अपने सभी मतभेदों को दरकिनार कर आतंकवाद से लड़ने के लिए सम्मिलित अंतरराष्ट्रीय प्रयास करना चाहिए।
मैं आपसे यह अनुरोध करता हूं कि इस प्रयास के प्रतीक के रूप में आप comprehensive convention on international terrorism को पारित करें। यह बहुत लंबे अरसे से pending mark है। इस पर बल देने की आवश्यकता है। terrorism के खिलाफ लड़ने की हमारी ताकत का वो एक परिचायक होगा और इसे हमारा देश, जो terrorism से इतने संकटों से गुजरा है, उसको समय लगता है कि जब तक वे इसमें initiative नहीं लेता है, और जब तक हम comprehensive convention on international terrorism को पारित नहीं करते हैं, हम वो विश्वास नहीं दिला सकते हैं। और इसलिए, फिर एक बार भारत की तरफ से इस सम्माननीय सभा के समक्ष बहुत आग्रहपूर्वक मैं अपनी बात बताना चाहता हूं। हमें outer space और cyber space में शांति, स्थिरता एवं व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी। हमें मिलजुल कर काम करते हुए यह सुनिश्चित करना है कि सभी देश अंतरराष्ट्रीय नियमों, मानदंडों का पालन करें। हमें UN Peace Keeping के पुनित कार्यों को पूरी शक्ति प्रदान करनी चाहिए।
जो देश अपनी सैन्य टुकडि़यों को योगदान करते हैं, उन्हें निर्णय प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए। निर्णय प्रक्रिया में शामिल करने से उनका हौसला बुलंद होगा। वो बहुत बड़ी मात्रा में त्याग करने को तैयार है; बलिदान देने को तैयार है, अपनी शक्ति और समय खर्च करने को तैयार हैं, लेकिन अगर हम उन्हें ही निर्णय प्रक्रिया से बाहर रखेंगे तो कब तक हम UN Peace Keeping फोर्स को प्राणवान बना सकते हैं, ताकतवर बना सकते हैं। इस पर गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है।
आइए, हर सार्वभौमिक वैश्विक रिसेसिकरण एवं प्रसार हेतू अपने प्रयासों में दोगुनी शक्ति लगाएं। अपेक्षाकृत अधिक स्थिर तथा समावेशी विकास हेतू निरंतर प्रयासरत रहें। वैश्विकरण ने विकास के नए ध्रुवों, नए उद्योगों और रोजगार के नए स्रोतों को जन्म दिया है। लेकिन साथ ही अरबों लोग गरीबी और अभाव के अर्द्धकगार पर जी रहे हैं। कई देश ऐेसे हैं, जो विश्वव्यापी आर्थिक तूफान के प्रभाव से बड़ी मुश्किल से बच पा रहे हैं। लेकिन इन सब में बदलाव लाना जितना मुमकिन आज लग रहा है, उतना पहले कभी नहीं लगता था।
Technology ने बहुत कुछ संभव कर दिखाया है। इसे मुहैया करने में होने वाले खर्च में भी काफी कमी आई है। यदि आप सारी दुनिया में Facebook और Twitter के प्रसार की गति के बारे में, सेलफोन के प्रसार की गति के बारे में सोचते हैं तो आपको यह विश्वास करना चाहिए कि विकास और सशक्तिकरण का प्रसार भी कितनी तेज गति से संभव है।
जाहिर है, प्रत्येक देश को अपने राष्ट्रीय उपाय करने होंगे, प्रगति व विकास को बल देने हेतु प्रत्येक सरकार को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। साथ ही हमारे लिए एक स्तर पर एक सार्थक अंतर्राष्ट्रीयभागीदारी की आवश्यकता है, जिसका अर्थ हुआ, नीतियों को आप बेहतर समन्वय करें ताकि हमारे प्रयत्न, परस्पर संयोग को बढ़ावा दे तथा दूसरे को क्षति न पहुंचाये। ये उसकी पहली शर्त है कि दूसरे को क्षति न पहुंचाएं। इसका यह भी अर्थ है कि जब हम अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक संबंधों की रचना करते हैं तो हमें एक दूसरे की चिंताओं व हितों का ध्यान रखना चाहिए।
जब हम विश्व के अभाव के स्तर के विषय में सोचते हैं, आज basic sanitation 2.5 बिलियन लोगों के पहुंच के बाहर है। आज 1.3 बिलियन लोगों को बिजली उपलब्ध नहीं है और आज 1.1 बिलियन लोगों को पीने का शुद्ध पानी उपलब्ध नहीं है। तब स्पष्ट होता है कि अधिक व्यापक व संगठित रूप से अंतरराष्ट्रीय कार्यवाही करने की प्रबल आवश्यकता है। हम केवल आर्थिक वृद्धि के लिए इंतजार नहीं कर सकते। भारत में मेरे विकास का एजेंडा के सबसे महत्वपूर्ण पहलू इन्हीं मुद्दों पर केंद्रित हैं।
मैं यह मानता हूं कि हमें post 2015 development agenda में इन्हीं बातों को केन्द्र में रखना चाहिए और उन पर ध्यान देना चाहिए। रहने लायक तथा टिकाऊ sustainable विश्व की कामना के साथ हम काम करें। इन मुद्दों पर ढेर सारे विवाद एवं दस्तावेज उपलब्ध हैं। लेकिन हम अपने चारों ओर ऐसी कई चीजें देखते हैं, जिनके कारण हमें चिंतित व आगाह हो जाना चाहिए। ऐसी भी चीजें हैं जिन्हें देखने से हम चिंतित होते जा रहे हैं। जंगल, पशु-पक्षी, निर्मल नदियां, जज़ीरे और नीला आसमान।
मैं तीन बातें कहना चाहूंगा, पहली बात, हमें चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में ईमानदारी बरतनी चाहिए। विश्व समुदाय ने सामूहिक कार्यवाही के सुंदर संतुलन को स्वीकारा है, जिसका स्वरूप common व differentiated responsibilities । इसे सतत कार्यवाही का आधार बनाना होगा। इसका यह भी अर्थ है कि विकसित देशों को funding और technology transfer की अपनी प्रतिबद्धता को अवश्य पूरा करना चाहिए।
दूसरी बात, राष्ट्रीय कार्यवाही अनिवार्य है। टेक्नोलोजी ने बहुत कुछ संभव कर दिया है, जैसे नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी। आवश्यकता है तो सृजनशीलता व प्रतिबद्धता की। भारत अपनी टेक्नोलोजी क्षमता को साझा करने के लिए तैयार है। जैसा कि हमने हाल ही में सार्क देशों के लिए एक नि:शुल्क उपग्रह बनाने की घोषणा की है।
तीसरी बात हमें अपनी जीवनशैली बदलने की आवश्यकता है। जिस ऊर्जा का उपयोग न हुआ हो, वह सबसे साफ ऊर्जा है। इससे आर्थिक नुकसान नहीं होगा। अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा मिलेगी।
हमारे भारतवर्ष में प्रकृति के प्रति आदरभाव अध्यात्म का अभिन्न अंग है। हम प्रकृति की देन को पवित्र मानते हैं और मैं आज एक और विषय पर भी ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं कि हम climate change की बात करते हैं। हम होलिस्टिक हेल्थ केयर की बात करते हैं। जब हम back to basic की बात करते हैं तब मैं उस विषय पर विशेष रूप से आप से एक बात कहना चाहता हूं। योग हमारी पुरातन पारम्परिक अमूल्य देन है। योग मन व शरीर, विचार व कर्म, संयम व उपलब्धि की एकात्मकता का तथा मानव व प्रकृति के बीच सामंजस्य का मूर्त रूप है। यह स्वास्थ्य व कल्याण का समग्र दृष्टिकोण है। योग केवल व्यायाम भर न होकर अपने आप से तथा विश्व व प्रकृति के साथ तादम्य को प्राप्त करने का माध्यम है। यह हमारी जीवन शैली में परिवर्तन लाकर तथा हम में जागरूकता उत्पन्न करके जलवायु परिवर्तन से लड़ने में सहायक हो सकता है। आइए हम एक ‘’अंतरराष्ट्रीययोग दिवस’’ को आरंभ करने की दिशा में कार्य करें। अंतत: हम सब एक ऐतिहासिक क्षण से गुजर रहे हैं। प्रत्येक युग अपनी विशेषताओं से परिभाषित होता है। प्रत्येक पीढी इस बात से याद की जाती है कि उसने अपनी चुनौतियों का किस प्रकार सामना किया। अब हमारे सम्मुख चुनौतियों के सामने खड़े होने की जिम्मेदारी है। अगले वर्ष हम 70 वर्ष के हो जाएंगे। हमें अपने आप से पूछना होगा कि क्या हम तब तक प्रतीक्षा करें तब हम 80 या 100 के हो जाएं। मैं मानता हूं कि UN के लिए अगला साल एक opportunity है। जब हम 70 साल की यात्रा के बाद लेखाजोखा लें, कहां से निकले थे, क्यूं निकले थे, क्या मकसद था, क्या रास्ता था, कहां पहुंचे हैं, कहां पहुंचना है।
21 सदी के कौन से प्रकार हैं, कौन से challenges हैं, उन सबको ध्यान में रखते हुए पूरा एक साल व्यापक विचार मंथन हो। हम universities को जोडें, नई generation को जोड़ें जो हमारे कार्यकाल का विगत से मूल्यांकन करे, उसका अध्ययन करे और हमें वो भी अपने विचार दें। हम नई पीढ़ी को हमारी नई यात्रा के लिए कैसे जोड़ सकते हैं और इसलिए मैं कहता हूं कि 70 साल अपने आप में एक बहुत बड़ा अवसर है। इस अवसर का उपयोग करें और उसे उपयोग करके एक नई चेतना के साथ नई प्राणशक्ति के साथ, नए उमंग और उत्साह के साथ, आपस में एक नए विश्वास साथ हम UN की यात्रा को हम नया रूप रंग दें। इस लिए मैं समझता हूं कि ये 70 वर्ष हमारे लिए बहुत बड़ा अवसर है।
आइए, हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार लाने के अपने वादे को निभाएं। यह बात लंबे अरसे से चल रही है लेकिन वादों को निभाने का सामर्थ्य हम खो चुके हैं। मैं आज फिर से आग्रह करता हूं कि आज इस विषय में गंभीरता से सोचें। आइए, हम अपने Post 2015 development agenda के लिए अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करें।
आइए 2015 को हम विश्व की प्रगति प्रवाह को एक नया मोड़ देने वाले एक वर्ष के रूप में हम अविस्मरणीय बनायें और 2015 एक नितांत नई यात्रा के प्रस्थान बिंदु के रूप में मानव इतिहास में दर्ज हो। यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। मुझे विश्वास है कि सामूहिक जिम्मेदारी को हम पूरी तरह निभाएंगे।
आप सबका बहुत बहुत आभार।
धन्यवाद। नमस्ते।