![शहीदे आजम भगतसिंह को फांसी दिए जाने पर अहिंसा के महान पुजारी गांधी ने कहा था,
‘‘हमें ब्रिटेन के विनाश के बदले अपनी आजादी नहीं चाहिए ।’’ और आगे कहा, ‘‘भगतसिंह की पूजा से देश को बहुत हानि हुई और हो रही है । वहीं इसका परिणाम गुंडागर्दी का पतन है । फांसी शीघ्र दे दी जाए ताकि 30 मार्च से करांची में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में कोई बाधा न आवे ।”अर्थात् गांधी की परिभाषा में किसी को फांसी देना हिंसा नहीं थी
[2 ] इसी प्रकार एक ओर महान् क्रान्तिकारी जतिनदास को जो आगरा में अंग्रेजों ने शहीद किया तो गांधी आगरा में ही थे और जब गांधी को उनके पार्थिक शरीर पर माला चढ़ाने को कहा गया तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया अर्थात् उस नौजवान द्वारा खुद को देश के लिए कुर्बान करने पर भी गांधी के दिल में किसी प्रकार की दया और सहानुभूति नहीं उपजी, ऐसे थे हमारे अहिंसावादी गांधी
[3] जब सन् 1937 में कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नेताजी सुभाष और गांधी द्वारा मनोनीत सीताभिरमैया के मध्य मुकाबला हुआ तो गांधी ने कहा यदि रमैया चुनाव हार गया तो वे राजनीति छोड़ देंगे लेकिन उन्होंने अपने मरने तक राजनीति नहीं छोड़ी जबकि रमैया चुनाव हार गए थे
[४] इसी प्रकार गांधी ने कहा था, “पाकिस्तान उनकी लाश पर बनेगा” लेकिन पाकिस्तान उनके समर्थन से ही बना । ऐसे थे हमारे सत्यवादी गांधी
[५] इससे भी बढ़कर गांधी और कांग्रेस ने दूसरे विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का समर्थन किया तो फिर क्या लड़ाई में हिंसा थी या लड्डू बंट रहे थे ? पाठक स्वयं बतलाएं ?
[६]गांधी ने अपने जीवन में तीन आन्दोलन (सत्याग्रहद्) चलाए और तीनों को ही बीच में वापिस ले लिया गया फिर भी लोग कहते हैं कि आजादी गांधी ने दिलवाई
[७]इससे भी बढ़कर जब देश के महान सपूत उधमसिंह ने इंग्लैण्ड में माईकल डायर को मारा तो गांधी ने उन्हें पागल कहा इसलिए नीरद चौ० ने गांधी को दुनियां का सबसे बड़ा सफल पाखण्डी लिखा है
[8]इस आजादी के बारे में इतिहासकार सी. आर. मजूमदार लिखते हैं – “भारत की आजादी का सेहरा गांधी के सिर बांधना सच्चाई से मजाक होगा । यह कहना उसने सत्याग्रह व चरखे से आजादी दिलाई बहुत बड़ी मूर्खता होगी । इसलिए गांधी को आजादी का ‘हीरो’ कहना उन सभी क्रान्तिकारियोंका अपमान है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना खून बहाया ।” यदि चरखों की आजादी की रक्षा सम्भव होती है तो बार्डर पर टैंकों की जगह चरखे क्यों नहीं रखवा दिए जाते ...........??अगर आप सहमत है तो इस दोगले कि सचाई "शेयर " कर के उजागर करे।जय हिन्दशहीदे आज़म भगत सिंह को फांसी कि सजा सुनाईजा चुकी थी ,इसके कारन हुतात्मा चंद्रशेखर आज़ाद काफी परेसान और चिंतित हो गय। भगत सिंहकि फांसी को रोकने के लिए आज़ाद ने ब्रिटिशसरकार पर दवाब बनाने का फैसला लिया इसके लिएआज़ाद ने गांधी से मिलने का वक्त माँगा लेकिनगांधी ने कहा कि वो किसी भी उग्रवादी सेनहीं मिल सकते। गांधी जनता था कि अगर भगतसिंह और आज़ाद जेसे क्रन्तिकारी और ज्यादा जीवित रह गय तो वो युवाओ के हीरो बन जायेंगे। ऐसी स्थति में गांधी को पूछने वाला कोई ना रहता। हमने आपको कई बार बताया है कि किस तरह गांधी ने भगत सिंह को मरवाने के लिए एक दिनपहले फांसी दिलवाई। खैर हम फिर से आज़ाद कि व्याख्या पर आते है।गांधी से वक्त ना मिल पाने का बाद आज़ाद ने नेहरू से मिलने का फैसला लिया ,27 फरवरी 1931 के दिनआज़ाद ने नेहरू से मुलाकात की। ठीक इसी दिनआज़ाद ने नेहरू के सामने भगत सिंह कि फांसी को रोकने कि विनती कि। बैठक मेंआज़ाद ने पूरी तैयारी के साथ भगत सिंह को बचाने का सफल प्लान रख दिया। जिसे देखकर नेहरू हक्का -बक्का रह गया क्यूंकि इस प्लान के तहत भगत सिंह को आसानी से बचाया जा सकता था।नेहरू ने आज़ाद को मदत देने से साफ़ मना कर दिया ,इसपर आज़ाद नाराज हो गय और नेहरू से जोरदार बहस हो गई फिर आज़ाद नाराज होकर अपनी साइकिलपर सवार होकर अल्फ्रेड पार्क कि होकर निकल गय।पार्क में कुछ देर बैठने के बाद ही आज़ाद को पोलिस ने चारो तरफ से घेर लिया। पोलिस पूरी तैयारी के साथ आई थी जेसे उसे मालूम हो कि आज़ाद पार्क में ही मौजूद है।आखरी साँस और आखरी गोली तक वो जाबांज अंग्रेजो के हाथ नहीं लगा,आज़ाद कि पिस्तौल में जब तक गोलिया बाकि थी तब तक कोई अंग्रेज उनके करीब नहीं आ सका। आखिर कर आज़ाद जीवनभरा आज़ाद ही रहा और आज़ादी में ही वीरगति प्राप्त की।अब अक्ल का अँधा भी समज सकता हैकि नेहरु के घर से बहस करके निकल कर पार्क में १५ मिनट अंदर भारी पोलिस बल आज़ाद को पकड़ने बिना नेहरू कि गद्दारी के नहीं पहुच सकता। नेहरू ने पोलिस को खबर दी कि आज़ाद इस वक्त पार्क में है और कुछ देर वही रुकने वाला है। साथ ही कहा कि आज़ाद को जिन्दा पकड़ने कि भूल ना करे नहीं तो भगतसिंह कि तरफ मामला बढ़ सकता है।लेकन फिर भी कांग्रेस कि सरकार ने नेहरू को किताबो में बच्चो का क्रन्तिकारी चाचा नेहरू बना दिया और आज भी किताबो में आज़ादको "उग्रवादी" लिखा जाता है। लेकिन आज सच को सामने लाकर उस जाबाज को आखरी सलाम देना चाहते हो तो इस पोस्ट को शेयर करके सच्चाई को सभी के सामने लाने में मदद् करे। आज के दिन यही शेयर उस निडर जांबाज भारत माता के शेर के लिए..](https://scontent-a-lhr.xx.fbcdn.net/hphotos-xpf1/v/t1.0-9/s480x480/10696209_1575973672624723_4944909970688056124_n.jpg?oh=5da458858b6f89fa76b6c3157dd7f686&oe=54B5FDDA)
शहीदे आजम भगतसिंह को फांसी दिए जाने पर अहिंसा के महान पुजारी गांधी ने कहा था,
‘‘हमें ब्रिटेन के विनाश के बदले अपनी आजादी नहीं चाहिए ।’’ और आगे कहा, ‘‘भगतसिंह की पूजा से देश को बहुत हानि हुई और हो रही है । वहीं इसका परिणाम गुंडागर्दी का पतन है । फांसी शीघ्र दे दी जाए ताकि 30 मार्च से करांची में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में कोई बाधा न आवे ।”अर्थात् गांधी की परिभाषा में किसी को फांसी देना हिंसा नहीं थी
[2 ] इसी प्रकार एक ओर महान् क्रान्तिकारी जतिनदास को जो आगरा में अंग्रेजों ने शहीद किया तो गांधी आगरा में ही थे और जब गांधी को उनके पार्थिक शरीर पर माला चढ़ाने को कहा गया तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया अर्थात् उस नौजवान द्वारा खुद को देश के लिए कुर्बान करने पर भी गांधी के दिल में किसी प्रकार की दया और सहानुभूति नहीं उपजी, ऐसे थे हमारे अहिंसावादी गांधी
[3] जब सन् 1937 में कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नेताजी सुभाष और गांधी द्वारा मनोनीत सीताभिरमैया के मध्य मुकाबला हुआ तो गांधी ने कहा यदि रमैया चुनाव हार गया तो वे राजनीति छोड़ देंगे लेकिन उन्होंने अपने मरने तक राजनीति नहीं छोड़ी जबकि रमैया चुनाव हार गए थे
[४] इसी प्रकार गांधी ने कहा था, “पाकिस्तान उनकी लाश पर बनेगा” लेकिन पाकिस्तान उनके समर्थन से ही बना । ऐसे थे हमारे सत्यवादी गांधी
[५] इससे भी बढ़कर गांधी और कांग्रेस ने दूसरे विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का समर्थन किया तो फिर क्या लड़ाई में हिंसा थी या लड्डू बंट रहे थे ? पाठक स्वयं बतलाएं ?
[६]गांधी ने अपने जीवन में तीन आन्दोलन (सत्याग्रहद्) चलाए और तीनों को ही बीच में वापिस ले लिया गया फिर भी लोग कहते हैं कि आजादी गांधी ने दिलवाई
[७]इससे भी बढ़कर जब देश के महान सपूत उधमसिंह ने इंग्लैण्ड में माईकल डायर को मारा तो गांधी ने उन्हें पागल कहा इसलिए नीरद चौ० ने गांधी को दुनियां का सबसे बड़ा सफल पाखण्डी लिखा है
[8]इस आजादी के बारे में इतिहासकार सी. आर. मजूमदार लिखते हैं – “भारत की आजादी का सेहरा गांधी के सिर बांधना सच्चाई से मजाक होगा । यह कहना उसने सत्याग्रह व चरखे से आजादी दिलाई बहुत बड़ी मूर्खता होगी । इसलिए गांधी को आजादी का ‘हीरो’ कहना उन सभी क्रान्तिकारियोंका अपमान है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना खून बहाया ।” यदि चरखों की आजादी की रक्षा सम्भव होती है तो बार्डर पर टैंकों की जगह चरखे क्यों नहीं रखवा दिए जाते ………..??अगर आप सहमत है तो इस दोगले कि सचाई “शेयर ” कर के उजागर करे।जय हिन्दशहीदे आज़म भगत सिंह को फांसी कि सजा सुनाईजा चुकी थी ,इसके कारन हुतात्मा चंद्रशेखर आज़ाद काफी परेसान और चिंतित हो गय। भगत सिंहकि फांसी को रोकने के लिए आज़ाद ने ब्रिटिशसरकार पर दवाब बनाने का फैसला लिया इसके लिएआज़ाद ने गांधी से मिलने का वक्त माँगा लेकिनगांधी ने कहा कि वो किसी भी उग्रवादी सेनहीं मिल सकते। गांधी जनता था कि अगर भगतसिंह और आज़ाद जेसे क्रन्तिकारी और ज्यादा जीवित रह गय तो वो युवाओ के हीरो बन जायेंगे। ऐसी स्थति में गांधी को पूछने वाला कोई ना रहता। हमने आपको कई बार बताया है कि किस तरह गांधी ने भगत सिंह को मरवाने के लिए एक दिनपहले फांसी दिलवाई। खैर हम फिर से आज़ाद कि व्याख्या पर आते है।गांधी से वक्त ना मिल पाने का बाद आज़ाद ने नेहरू से मिलने का फैसला लिया ,27 फरवरी 1931 के दिनआज़ाद ने नेहरू से मुलाकात की। ठीक इसी दिनआज़ाद ने नेहरू के सामने भगत सिंह कि फांसी को रोकने कि विनती कि। बैठक मेंआज़ाद ने पूरी तैयारी के साथ भगत सिंह को बचाने का सफल प्लान रख दिया। जिसे देखकर नेहरू हक्का -बक्का रह गया क्यूंकि इस प्लान के तहत भगत सिंह को आसानी से बचाया जा सकता था।नेहरू ने आज़ाद को मदत देने से साफ़ मना कर दिया ,इसपर आज़ाद नाराज हो गय और नेहरू से जोरदार बहस हो गई फिर आज़ाद नाराज होकर अपनी साइकिलपर सवार होकर अल्फ्रेड पार्क कि होकर निकल गय।पार्क में कुछ देर बैठने के बाद ही आज़ाद को पोलिस ने चारो तरफ से घेर लिया। पोलिस पूरी तैयारी के साथ आई थी जेसे उसे मालूम हो कि आज़ाद पार्क में ही मौजूद है।आखरी साँस और आखरी गोली तक वो जाबांज अंग्रेजो के हाथ नहीं लगा,आज़ाद कि पिस्तौल में जब तक गोलिया बाकि थी तब तक कोई अंग्रेज उनके करीब नहीं आ सका। आखिर कर आज़ाद जीवनभरा आज़ाद ही रहा और आज़ादी में ही वीरगति प्राप्त की।अब अक्ल का अँधा भी समज सकता हैकि नेहरु के घर से बहस करके निकल कर पार्क में १५ मिनट अंदर भारी पोलिस बल आज़ाद को पकड़ने बिना नेहरू कि गद्दारी के नहीं पहुच सकता। नेहरू ने पोलिस को खबर दी कि आज़ाद इस वक्त पार्क में है और कुछ देर वही रुकने वाला है। साथ ही कहा कि आज़ाद को जिन्दा पकड़ने कि भूल ना करे नहीं तो भगतसिंह कि तरफ मामला बढ़ सकता है।लेकन फिर भी कांग्रेस कि सरकार ने नेहरू को किताबो में बच्चो का क्रन्तिकारी चाचा नेहरू बना दिया और आज भी किताबो में आज़ादको “उग्रवादी” लिखा जाता है। लेकिन आज सच को सामने लाकर उस जाबाज को आखरी सलाम देना चाहते हो तो इस पोस्ट को शेयर करके सच्चाई को सभी के सामने लाने में मदद् करे। आज के दिन यही शेयर उस निडर जांबाज भारत माता के शेर के लिए..