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शहीदे आजम भगतसिंह को फांसी दिए जाने पर अहिंसा के महान पुजारी गांधी ने कहा था,


शहीदे आजम भगतसिंह को फांसी दिए जाने पर अहिंसा के महान पुजारी गांधी ने कहा था,
‘‘हमें ब्रिटेन के विनाश के बदले अपनी आजादी नहीं चाहिए ।’’ और आगे कहा, ‘‘भगतसिंह की पूजा से देश को बहुत हानि हुई और हो रही है । वहीं इसका परिणाम गुंडागर्दी का पतन है । फांसी शीघ्र दे दी जाए ताकि 30 मार्च से करांची में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में कोई बाधा न आवे ।”अर्थात् गांधी की परिभाषा में किसी को फांसी देना हिंसा नहीं थी

[2 ] इसी प्रकार एक ओर महान् क्रान्तिकारी जतिनदास को जो आगरा में अंग्रेजों ने शहीद किया तो गांधी आगरा में ही थे और जब गांधी को उनके पार्थिक शरीर पर माला चढ़ाने को कहा गया तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया अर्थात् उस नौजवान द्वारा खुद को देश के लिए कुर्बान करने पर भी गांधी के दिल में किसी प्रकार की दया और सहानुभूति नहीं उपजी, ऐसे थे हमारे अहिंसावादी गांधी

[3] जब सन् 1937 में कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नेताजी सुभाष और गांधी द्वारा मनोनीत सीताभिरमैया के मध्य मुकाबला हुआ तो गांधी ने कहा यदि रमैया चुनाव हार गया तो वे राजनीति छोड़ देंगे लेकिन उन्होंने अपने मरने तक राजनीति नहीं छोड़ी जबकि रमैया चुनाव हार गए थे

[४] इसी प्रकार गांधी ने कहा था, “पाकिस्तान उनकी लाश पर बनेगा” लेकिन पाकिस्तान उनके समर्थन से ही बना । ऐसे थे हमारे सत्यवादी गांधी

[५] इससे भी बढ़कर गांधी और कांग्रेस ने दूसरे विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का समर्थन किया तो फिर क्या लड़ाई में हिंसा थी या लड्डू बंट रहे थे ? पाठक स्वयं बतलाएं ?

[६]गांधी ने अपने जीवन में तीन आन्दोलन (सत्याग्रहद्) चलाए और तीनों को ही बीच में वापिस ले लिया गया फिर भी लोग कहते हैं कि आजादी गांधी ने दिलवाई

[७]इससे भी बढ़कर जब देश के महान सपूत उधमसिंह ने इंग्लैण्ड में माईकल डायर को मारा तो गांधी ने उन्हें पागल कहा इसलिए नीरद चौ० ने गांधी को दुनियां का सबसे बड़ा सफल पाखण्डी लिखा है

[8]इस आजादी के बारे में इतिहासकार सी. आर. मजूमदार लिखते हैं – “भारत की आजादी का सेहरा गांधी के सिर बांधना सच्चाई से मजाक होगा । यह कहना उसने सत्याग्रह व चरखे से आजादी दिलाई बहुत बड़ी मूर्खता होगी । इसलिए गांधी को आजादी का ‘हीरो’ कहना उन सभी क्रान्तिकारियोंका अपमान है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना खून बहाया ।” यदि चरखों की आजादी की रक्षा सम्भव होती है तो बार्डर पर टैंकों की जगह चरखे क्यों नहीं रखवा दिए जाते ...........??अगर आप सहमत है तो इस दोगले कि सचाई "शेयर " कर के उजागर करे।जय हिन्दशहीदे आज़म भगत सिंह को फांसी कि सजा सुनाईजा चुकी थी ,इसके कारन हुतात्मा चंद्रशेखर आज़ाद काफी परेसान और चिंतित हो गय। भगत सिंहकि फांसी को रोकने के लिए आज़ाद ने ब्रिटिशसरकार पर दवाब बनाने का फैसला लिया इसके लिएआज़ाद ने गांधी से मिलने का वक्त माँगा लेकिनगांधी ने कहा कि वो किसी भी उग्रवादी सेनहीं मिल सकते। गांधी जनता था कि अगर भगतसिंह और आज़ाद जेसे क्रन्तिकारी और ज्यादा जीवित रह गय तो वो युवाओ के हीरो बन जायेंगे। ऐसी स्थति में गांधी को पूछने वाला कोई ना रहता। हमने आपको कई बार बताया है कि किस तरह गांधी ने भगत सिंह को मरवाने के लिए एक दिनपहले फांसी दिलवाई। खैर हम फिर से आज़ाद कि व्याख्या पर आते है।गांधी से वक्त ना मिल पाने का बाद आज़ाद ने नेहरू से मिलने का फैसला लिया ,27 फरवरी 1931 के दिनआज़ाद ने नेहरू से मुलाकात की। ठीक इसी दिनआज़ाद ने नेहरू के सामने भगत सिंह कि फांसी को रोकने कि विनती कि। बैठक मेंआज़ाद ने पूरी तैयारी के साथ भगत सिंह को बचाने का सफल प्लान रख दिया। जिसे देखकर नेहरू हक्का -बक्का रह गया क्यूंकि इस प्लान के तहत भगत सिंह को आसानी से बचाया जा सकता था।नेहरू ने आज़ाद को मदत देने से साफ़ मना कर दिया ,इसपर आज़ाद नाराज हो गय और नेहरू से जोरदार बहस हो गई फिर आज़ाद नाराज होकर अपनी साइकिलपर सवार होकर अल्फ्रेड पार्क कि होकर निकल गय।पार्क में कुछ देर बैठने के बाद ही आज़ाद को पोलिस ने चारो तरफ से घेर लिया। पोलिस पूरी तैयारी के साथ आई थी जेसे उसे मालूम हो कि आज़ाद पार्क में ही मौजूद है।आखरी साँस और आखरी गोली तक वो जाबांज अंग्रेजो के हाथ नहीं लगा,आज़ाद कि पिस्तौल में जब तक गोलिया बाकि थी तब तक कोई अंग्रेज उनके करीब नहीं आ सका। आखिर कर आज़ाद जीवनभरा आज़ाद ही रहा और आज़ादी में ही वीरगति प्राप्त की।अब अक्ल का अँधा भी समज सकता हैकि नेहरु के घर से बहस करके निकल कर पार्क में १५ मिनट अंदर भारी पोलिस बल आज़ाद को पकड़ने बिना नेहरू कि गद्दारी के नहीं पहुच सकता। नेहरू ने पोलिस को खबर दी कि आज़ाद इस वक्त पार्क में है और कुछ देर वही रुकने वाला है। साथ ही कहा कि आज़ाद को जिन्दा पकड़ने कि भूल ना करे नहीं तो भगतसिंह कि तरफ मामला बढ़ सकता है।लेकन फिर भी कांग्रेस कि सरकार ने नेहरू को किताबो में बच्चो का क्रन्तिकारी चाचा नेहरू बना दिया और आज भी किताबो में आज़ादको "उग्रवादी" लिखा जाता है। लेकिन आज सच को सामने लाकर उस जाबाज को आखरी सलाम देना चाहते हो तो इस पोस्ट को शेयर करके सच्चाई को सभी के सामने लाने में मदद् करे। आज के दिन यही शेयर उस निडर जांबाज भारत माता के शेर के लिए..

शहीदे आजम भगतसिंह को फांसी दिए जाने पर अहिंसा के महान पुजारी गांधी ने कहा था,
‘‘हमें ब्रिटेन के विनाश के बदले अपनी आजादी नहीं चाहिए ।’’ और आगे कहा, ‘‘भगतसिंह की पूजा से देश को बहुत हानि हुई और हो रही है । वहीं इसका परिणाम गुंडागर्दी का पतन है । फांसी शीघ्र दे दी जाए ताकि 30 मार्च से करांची में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में कोई बाधा न आवे ।”अर्थात् गांधी की परिभाषा में किसी को फांसी देना हिंसा नहीं थी

[2 ] इसी प्रकार एक ओर महान् क्रान्तिकारी जतिनदास को जो आगरा में अंग्रेजों ने शहीद किया तो गांधी आगरा में ही थे और जब गांधी को उनके पार्थिक शरीर पर माला चढ़ाने को कहा गया तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया अर्थात् उस नौजवान द्वारा खुद को देश के लिए कुर्बान करने पर भी गांधी के दिल में किसी प्रकार की दया और सहानुभूति नहीं उपजी, ऐसे थे हमारे अहिंसावादी गांधी

[3] जब सन् 1937 में कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नेताजी सुभाष और गांधी द्वारा मनोनीत सीताभिरमैया के मध्य मुकाबला हुआ तो गांधी ने कहा यदि रमैया चुनाव हार गया तो वे राजनीति छोड़ देंगे लेकिन उन्होंने अपने मरने तक राजनीति नहीं छोड़ी जबकि रमैया चुनाव हार गए थे

[४] इसी प्रकार गांधी ने कहा था, “पाकिस्तान उनकी लाश पर बनेगा” लेकिन पाकिस्तान उनके समर्थन से ही बना । ऐसे थे हमारे सत्यवादी गांधी

[५] इससे भी बढ़कर गांधी और कांग्रेस ने दूसरे विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का समर्थन किया तो फिर क्या लड़ाई में हिंसा थी या लड्डू बंट रहे थे ? पाठक स्वयं बतलाएं ?

[६]गांधी ने अपने जीवन में तीन आन्दोलन (सत्याग्रहद्) चलाए और तीनों को ही बीच में वापिस ले लिया गया फिर भी लोग कहते हैं कि आजादी गांधी ने दिलवाई

[७]इससे भी बढ़कर जब देश के महान सपूत उधमसिंह ने इंग्लैण्ड में माईकल डायर को मारा तो गांधी ने उन्हें पागल कहा इसलिए नीरद चौ० ने गांधी को दुनियां का सबसे बड़ा सफल पाखण्डी लिखा है

[8]इस आजादी के बारे में इतिहासकार सी. आर. मजूमदार लिखते हैं – “भारत की आजादी का सेहरा गांधी के सिर बांधना सच्चाई से मजाक होगा । यह कहना उसने सत्याग्रह व चरखे से आजादी दिलाई बहुत बड़ी मूर्खता होगी । इसलिए गांधी को आजादी का ‘हीरो’ कहना उन सभी क्रान्तिकारियोंका अपमान है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना खून बहाया ।” यदि चरखों की आजादी की रक्षा सम्भव होती है तो बार्डर पर टैंकों की जगह चरखे क्यों नहीं रखवा दिए जाते ………..??अगर आप सहमत है तो इस दोगले कि सचाई “शेयर ” कर के उजागर करे।जय हिन्दशहीदे आज़म भगत सिंह को फांसी कि सजा सुनाईजा चुकी थी ,इसके कारन हुतात्मा चंद्रशेखर आज़ाद काफी परेसान और चिंतित हो गय। भगत सिंहकि फांसी को रोकने के लिए आज़ाद ने ब्रिटिशसरकार पर दवाब बनाने का फैसला लिया इसके लिएआज़ाद ने गांधी से मिलने का वक्त माँगा लेकिनगांधी ने कहा कि वो किसी भी उग्रवादी सेनहीं मिल सकते। गांधी जनता था कि अगर भगतसिंह और आज़ाद जेसे क्रन्तिकारी और ज्यादा जीवित रह गय तो वो युवाओ के हीरो बन जायेंगे। ऐसी स्थति में गांधी को पूछने वाला कोई ना रहता। हमने आपको कई बार बताया है कि किस तरह गांधी ने भगत सिंह को मरवाने के लिए एक दिनपहले फांसी दिलवाई। खैर हम फिर से आज़ाद कि व्याख्या पर आते है।गांधी से वक्त ना मिल पाने का बाद आज़ाद ने नेहरू से मिलने का फैसला लिया ,27 फरवरी 1931 के दिनआज़ाद ने नेहरू से मुलाकात की। ठीक इसी दिनआज़ाद ने नेहरू के सामने भगत सिंह कि फांसी को रोकने कि विनती कि। बैठक मेंआज़ाद ने पूरी तैयारी के साथ भगत सिंह को बचाने का सफल प्लान रख दिया। जिसे देखकर नेहरू हक्का -बक्का रह गया क्यूंकि इस प्लान के तहत भगत सिंह को आसानी से बचाया जा सकता था।नेहरू ने आज़ाद को मदत देने से साफ़ मना कर दिया ,इसपर आज़ाद नाराज हो गय और नेहरू से जोरदार बहस हो गई फिर आज़ाद नाराज होकर अपनी साइकिलपर सवार होकर अल्फ्रेड पार्क कि होकर निकल गय।पार्क में कुछ देर बैठने के बाद ही आज़ाद को पोलिस ने चारो तरफ से घेर लिया। पोलिस पूरी तैयारी के साथ आई थी जेसे उसे मालूम हो कि आज़ाद पार्क में ही मौजूद है।आखरी साँस और आखरी गोली तक वो जाबांज अंग्रेजो के हाथ नहीं लगा,आज़ाद कि पिस्तौल में जब तक गोलिया बाकि थी तब तक कोई अंग्रेज उनके करीब नहीं आ सका। आखिर कर आज़ाद जीवनभरा आज़ाद ही रहा और आज़ादी में ही वीरगति प्राप्त की।अब अक्ल का अँधा भी समज सकता हैकि नेहरु के घर से बहस करके निकल कर पार्क में १५ मिनट अंदर भारी पोलिस बल आज़ाद को पकड़ने बिना नेहरू कि गद्दारी के नहीं पहुच सकता। नेहरू ने पोलिस को खबर दी कि आज़ाद इस वक्त पार्क में है और कुछ देर वही रुकने वाला है। साथ ही कहा कि आज़ाद को जिन्दा पकड़ने कि भूल ना करे नहीं तो भगतसिंह कि तरफ मामला बढ़ सकता है।लेकन फिर भी कांग्रेस कि सरकार ने नेहरू को किताबो में बच्चो का क्रन्तिकारी चाचा नेहरू बना दिया और आज भी किताबो में आज़ादको “उग्रवादी” लिखा जाता है। लेकिन आज सच को सामने लाकर उस जाबाज को आखरी सलाम देना चाहते हो तो इस पोस्ट को शेयर करके सच्चाई को सभी के सामने लाने में मदद् करे। आज के दिन यही शेयर उस निडर जांबाज भारत माता के शेर के लिए..

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कांग्रेस राज में दंगों का विवरणभारत के आजाद होने के बाद कांग्रेस के राज में कब कब सम्प्रदायवादी दंगे हुए


कांग्रेस राज में दंगों का विवरणभारत के आजाद होने के बाद कांग्रेस के राज में कब कब सम्प्रदायवादी दंगे हुए ,और उनमे कितने लोग मारे गए थे , यह प्रामाणिक जानकारी इस प्रकार है
1 -सन 1947 पश्चिम बंगाल – मृतक -5000
2-सन 1964 -राउर केला – मृतक -2000
3-सन 1967 -रांची -मृतक 200
4-सन 1969 -अहमदाबाद – मृतक -512
5-सन 1970 – महा . भिवंडी -मृतक -80
6-सन 1980 -मुरादाबाद – मृतक -2000
7-सन 1983 – नल्ली असम -मृतक -2000
8-सन 1984 -भिवंडी – मृतक -611
9-सन 1984 – दिल्ली – मृतक -3000 सिख
10-सन 1985 -अहमदाबाद – मृतक -300
11-सन 1986 -अहमदाबाद – मृतक -59
12-सन 1987-मेरठ -मृतक 81
13 सन 1988 भागलपुर मृतक 6000
इसके अतिरिक्त जो वामपंथी मोदी को कसाई ( Bucher ) कह रहे हैं , उन्ही के शासन में सन 1979 में जमशेदपर में भी सम्प्रदायवादी दंगा हुआ था जिसमे 115 लोग मारे गए थे
यदि मोदी गुजरात के दंगों के लिए जिम्मेदार हैं ,तो इन दंगों के लिए कांग्रेस और कम्यूनिस्ट जिम्मेदार क्यों नहीं माने जाये ?.
क्या यह लोग मौत के सौदागर और कसाई कहने के योग्य नहीं हैं ?
जो लोग नरेंद्र मोदी को गुजरात का हत्यारा कह रहे हैं , वह कांग्रेस के शासन के दौरान इतने अधिक दंगों की संख्या पर गौर करें ,और इस सत्य को स्वीकार करें कि सन 2002 के गोधरा दंगे के बाद से आजतक गुजरात में कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ , और न कभी कर्फ्यू लगाने की नौबत आई . जबकि दंगों के मामले में कांग्रेस को ” दंगा रत्न ” या ” दंगा भूषण ” का सम्मान देना

कांग्रेस राज में दंगों का विवरणभारत के आजाद होने के बाद कांग्रेस के राज में कब कब सम्प्रदायवादी दंगे हुए ,और उनमे कितने लोग मारे गए थे , यह प्रामाणिक जानकारी इस प्रकार है 
1 -सन 1947 पश्चिम बंगाल - मृतक -5000
2-सन 1964 -राउर केला - मृतक -2000
3-सन 1967 -रांची -मृतक 200
4-सन 1969 -अहमदाबाद - मृतक -512
5-सन 1970 - महा . भिवंडी -मृतक -80
6-सन 1980 -मुरादाबाद - मृतक -2000
7-सन 1983 - नल्ली असम -मृतक -2000
8-सन 1984 -भिवंडी - मृतक -611
9-सन 1984 - दिल्ली - मृतक -3000 सिख
10-सन 1985 -अहमदाबाद - मृतक -300
11-सन 1986 -अहमदाबाद - मृतक -59
12-सन 1987-मेरठ -मृतक 81
13 सन 1988 भागलपुर मृतक 6000
इसके अतिरिक्त जो वामपंथी मोदी को कसाई ( Bucher ) कह रहे हैं , उन्ही के शासन में सन 1979 में जमशेदपर में भी सम्प्रदायवादी दंगा हुआ था जिसमे 115 लोग मारे गए थे 
यदि मोदी गुजरात के दंगों के लिए जिम्मेदार हैं ,तो इन दंगों के लिए कांग्रेस और कम्यूनिस्ट जिम्मेदार क्यों नहीं माने जाये ?. 
क्या यह लोग मौत के सौदागर और कसाई कहने के योग्य नहीं हैं ?
जो लोग नरेंद्र मोदी को गुजरात का हत्यारा कह रहे हैं , वह कांग्रेस के शासन के दौरान इतने अधिक दंगों की संख्या पर गौर करें ,और इस सत्य को स्वीकार करें कि सन 2002 के गोधरा दंगे के बाद से आजतक गुजरात में कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ , और न कभी कर्फ्यू लगाने की नौबत आई . जबकि दंगों के मामले में कांग्रेस को " दंगा रत्न " या " दंगा भूषण " का सम्मान देना
Posted in संस्कृत साहित्य

THE PURPOSE OF HAVING A GURU


THE PURPOSE OF HAVING A GURU

In brief, a guru is a spiritual teacher who is knowledgeable in the Vedic scripture and the traditions and can teach it to others. He or she is also experienced in the spiritual Truths, the goal of the Vedic path, and can show the way by example to those who enquire.

The word guru means one who is heavy with knowledge, not only cultivated knowledge acquired through personal training and practice, but also knowledge attained through personal experience and realizations of the spiritual perfection that is discussed in the Vedic scripture and by previous spiritual authorities. Such a qualified guru is one who should be approached with respect and served with humility and honor because such a guru who has seen the Truth can give one knowledge and guidance for attaining the Truth. Such a guru gives the second birth to a person into the spiritual understanding, beyond the common first birth one acquires from parents. Thus, a genuine guru can awaken a disciple to a new world of spiritual reality, a higher dimension. Such an awakening creates an eternal bond between the spiritual master and disciple.

THE PURPOSE OF HAVING A GURU

In brief, a guru is a spiritual teacher who is knowledgeable in the Vedic scripture and the traditions and can teach it to others. He or she is also experienced in the spiritual Truths, the goal of the Vedic path, and can show the way by example to those who enquire.

The word guru means one who is heavy with knowledge, not only cultivated knowledge acquired through personal training and practice, but also knowledge attained through personal experience and realizations of the spiritual perfection that is discussed in the Vedic scripture and by previous spiritual authorities. Such a qualified guru is one who should be approached with respect and served with humility and honor because such a guru who has seen the Truth can give one knowledge and guidance for attaining the Truth. Such a guru gives the second birth to a person into the spiritual understanding, beyond the common first birth one acquires from parents. Thus, a genuine guru can awaken a disciple to a new world of spiritual reality, a higher dimension. Such an awakening creates an eternal bond between the spiritual master and disciple.
Posted in गणेश देवा, भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

Story of Gajamugasura


Story of Gajamugasura

There was an asura called Gajamugasura. He did deep penance and worshipped Lord Siva, who granted him several boons, by which he became extremely powerful. He put the Devas and rishis to great trouble. He forced the Devas to do 1008 Thoppukaranams in the morning, 1008 in the afternoon and 1008 in the evening.
( “Thoppu Karanam” – is a Tamil (a South Indian Language) word, which means to hold the ears, squat down and up. From ancient times this practice has been evident in the Indian Culture, where people practice this in front of the deity of the Lord Ganapathy (a symbolic representation of supreme energy in the form of an elephant which actually signifies wisdom. Thus also connected with the brain. “Ga” representing Intelligence, “Na” representing Wisdom and “Pathy” representing – Master, so ideally meaning the Master of Wisdom and Intelligence). It is said that this practice is a request to stimulate the wisdom and intelligence. It is also said that the practice has been evident in the ancient Gurukula Systems, where the seers asked their pupils to practice this technique in order to stimulate and energize the brain and its functions. The practice of ear piercing too has its real reasons being the stimulation of the pituitary and pineal glands, due to the effect of the pressure in the ear lobes.).

The Devas prayed to Lord Siva to rescue them from this evil asura. Lord Siva sent Lord Vinayaga to overcome Gajamugasura. Vinayaga went with several weapons such as bow & arrow, sword, axe, etc. However, since Gajamugasura had been granted the boon that he be destroyed by no weapon, none of these weapons used by Lord Vinayaga were effective. Vinayaga broke off his right tusk and used it to kill Gajamugasura. Gajamugasura rushed at Vinayaga in the form of a mooshika (small mouse). Vinayaga crushed the ego and vanity of Gajamugasura and sat on the mooshika. The humbled Gajamugasura bowed before Vinayaga, who accepted the mooshika as his vahana. Lord Vinayaka is the source of everlasting wisdom. He crushed ego and vanity and reduced it to the size of a mooshika and used it as his vahana. Lord Vinayaga can be pleased by doing Thoppukarana.

Story of Gajamugasura

There was an asura called Gajamugasura. He did deep penance and worshipped Lord Siva, who granted him several boons, by which he became extremely powerful. He put the Devas and rishis to great trouble. He forced the Devas to do 1008 Thoppukaranams in the morning, 1008 in the afternoon and 1008 in the evening.
( "Thoppu Karanam" - is a Tamil (a South Indian Language) word, which means to hold the ears, squat down and up. From ancient times this practice has been evident in the Indian Culture, where people practice this in front of the deity of the Lord Ganapathy (a symbolic representation of supreme energy in the form of an elephant which actually signifies wisdom. Thus also connected with the brain. "Ga"  representing Intelligence, "Na" representing Wisdom and "Pathy" representing - Master, so ideally meaning the Master of Wisdom and Intelligence). It is said that this practice is a request to stimulate the wisdom and intelligence. It is also said that the practice has been evident in the ancient Gurukula Systems, where the seers asked their pupils to practice this technique in order to stimulate and energize the brain and its functions. The practice of ear piercing too has its real reasons being the stimulation of the pituitary and pineal glands, due to the effect of the pressure in the ear lobes.). 

The Devas prayed to Lord Siva to rescue them from this evil asura. Lord Siva sent Lord Vinayaga to overcome Gajamugasura. Vinayaga went with several weapons such as bow & arrow, sword, axe, etc. However, since Gajamugasura had been granted the boon that he be destroyed by no weapon, none of these weapons used by Lord Vinayaga were effective. Vinayaga broke off his right tusk and used it to kill Gajamugasura. Gajamugasura rushed at Vinayaga in the form of a mooshika (small mouse). Vinayaga crushed the ego and vanity of Gajamugasura and sat on the mooshika. The humbled Gajamugasura bowed before Vinayaga, who accepted the mooshika as his vahana. Lord Vinayaka is the source of everlasting wisdom. He crushed ego and vanity and reduced it to the size of a mooshika and used it as his vahana. Lord Vinayaga can be pleased by doing Thoppukarana.
Posted in Secular

सेक्युलर बनने के लिए कुछ शर्तें !
कमसे कम ५ शर्त मानिये और सेक्युलर
हो जाइये !
– अलगाववादियों का समर्थन
-आतंकवादियों का समर्थन
-कश्मीर पर पाकिस्तान के रुख का समर्थन
– गौहत्या का समर्थन
– जालीदार टोपी लगाना जरुरी
– अयोध्या में राम मंदिर का विरोध
-आतंकवादियों के परिवार को सहयोग
-शहीदों का अपमान
-हज पर सब्सिडी और अमरनाथ यात्रा पर
टैक्स का समर्थन
– आतंकवादियों के परिवार को आर्थिक
सहायता का समर्थन
-आतंकवादियों को जेल से छोड़ने
का समर्थन
-कम्युनिस्टों और नक्सालियों का समर्थन
-वन्देमातरम का विरोध
-तिरंगे का अपमान करने वालों का समर्थन
-पाकिस्तानी आतंकवादियों को बिरयानी
खिलने का समर्थन
आतंकवादियों को अपने घर,राज्य या मोहल्ले
की बहु,बेटी,बीटा या ताऊ घोषित करना
-हिन्दू संतों का अपमान
अगर आप ऐसा नहीं कर पाते तो मेरी तरह
साम्प्रदायिक बने रहिये और
“वन्देमातरम”गाते रहिये.

सेक्युलर बनने के लिए कुछ शर्तें !
कमसे कम ५ शर्त मानिये और सेक्युलर
हो जाइये !
- अलगाववादियों का समर्थन
-आतंकवादियों का समर्थन
-कश्मीर पर पाकिस्तान के रुख का समर्थन
- गौहत्या का समर्थन
- जालीदार टोपी लगाना जरुरी
- अयोध्या में राम मंदिर का विरोध
-आतंकवादियों के परिवार को सहयोग
-शहीदों का अपमान
-हज पर सब्सिडी और अमरनाथ यात्रा पर
टैक्स का समर्थन
- आतंकवादियों के परिवार को आर्थिक
सहायता का समर्थन
-आतंकवादियों को जेल से छोड़ने
का समर्थन
-कम्युनिस्टों और नक्सालियों का समर्थन
-वन्देमातरम का विरोध
-तिरंगे का अपमान करने वालों का समर्थन
-पाकिस्तानी आतंकवादियों को बिरयानी
खिलने का समर्थन
आतंकवादियों को अपने घर,राज्य या मोहल्ले
की बहु,बेटी,बीटा या ताऊ घोषित करना
-हिन्दू संतों का अपमान
अगर आप ऐसा नहीं कर पाते तो मेरी तरह
साम्प्रदायिक बने रहिये और
"वन्देमातरम"गाते रहिये.
Posted in Media

Satyamev jayte


49 साल का अधेड़ उम्र का मुसलमानबंदा, जो अपनी 15 साल पुरानी शादी को एक झटके से तोड़ देता है, और 12-13 सालके दो बच्चों को उनकी माँ के सहारे जीने के लिए छोड़ देता है ।
वो 2011 मे फिर एक हिन्दू लड़की से निकाह करता है,
वैसे बता दूँ इसकी पिछली पत्नी भी मूलतः हिन्दू ही थी जिसका इसने#धर्मपरिवर्तन करवा दिया था।

इस बंदे की अपने छोटे भाई से नहीं बनती और पिता इसका बाप तो इससे केस लड़ते लड़ते बेचारा मर गया ।
कुछ समय पहले इसे#हजयात्रा के दौरान जमायत-उल-दावा के खूंखार#पाकिस्तानी#आतंकबादी के साथ गप्पे लड़ाते देखा गया था ।

ऐसा घटिया इंसान जो अपनी बाप-भाई-बीबी-बच्चों का न हो सका आजकल टीवी पर आकार#हिन्दूधर्म की कुरीतियों को उजागर करता है और हम चूतियों की भांति इसकी बात मे हाँ मे हाँ मिलाते हैं ।

इस नामाकूल इंसान को अपने धर्म मे#महिलाओं की दयनीय स्थिति, उनकी अधिकारों का हनन,‪#‎महिलाअशिक्षा‬ की दर, धर्म मे व्याप्त कुरीतियाँ, औरतों की धार्मिक गुलामी, बात-बात पर तलाक, बहू-बिबाह प्रथा, अति-जनसंख्याबृद्धि,‪#‎मदरसा‬ मे शिक्षा का गिरा हुआ स्तर और#मुस्लिमसमाज मे शिया-सुन्नी-अहमदिया भेदभाव, खून-खराबा नहीं दिखता ! दिखता है तो बस हिन्दू धर्म की बुराई ….
और ऐसा भी नहीं है की इसने किसी के लिए कुछ कियाहै,
ये बस अपना एक एपिसोड के 2-3 करोड़ समेट के बस निकाल लेता है ।
कोई भाई इस ‪#‎चूतिये‬ ‪#‎जिहादीमुल्ले‬ का नाम बताएगा ?

49 साल का अधेड़ उम्र का मुसलमानबंदा, जो अपनी 15 साल पुरानी शादी को एक झटके से तोड़ देता है, और 12-13 सालके दो बच्चों को उनकी माँ के सहारे जीने के लिए छोड़ देता है । 
वो 2011 मे फिर एक हिन्दू लड़की से निकाह करता है, 
वैसे बता दूँ इसकी पिछली पत्नी भी मूलतः हिन्दू ही थी जिसका इसने#धर्मपरिवर्तन करवा दिया था।

इस बंदे की अपने छोटे भाई से नहीं बनती और पिता इसका बाप तो इससे केस लड़ते लड़ते बेचारा मर गया ।
कुछ समय पहले इसे#हजयात्रा के दौरान जमायत-उल-दावा के खूंखार#पाकिस्तानी#आतंकबादी के साथ गप्पे लड़ाते देखा गया था ।

ऐसा घटिया इंसान जो अपनी बाप-भाई-बीबी-बच्चों का न हो सका आजकल टीवी पर आकार#हिन्दूधर्म की कुरीतियों को उजागर करता है और हम चूतियों की भांति इसकी बात मे हाँ मे हाँ मिलाते हैं ।

इस नामाकूल इंसान को अपने धर्म मे#महिलाओं की दयनीय स्थिति, उनकी अधिकारों का हनन,#महिलाअशिक्षा की दर, धर्म मे व्याप्त कुरीतियाँ, औरतों की धार्मिक गुलामी, बात-बात पर तलाक, बहू-बिबाह प्रथा, अति-जनसंख्याबृद्धि,#मदरसा मे शिक्षा का गिरा हुआ स्तर और#मुस्लिमसमाज मे शिया-सुन्नी-अहमदिया भेदभाव, खून-खराबा नहीं दिखता ! दिखता है तो बस हिन्दू धर्म की बुराई .... 
और ऐसा भी नहीं है की इसने किसी के लिए कुछ कियाहै, 
ये बस अपना एक एपिसोड के 2-3 करोड़ समेट के बस निकाल लेता है ।
कोई भाई इस #चूतिये #जिहादीमुल्ले का नाम बताएगा ?
Posted in संस्कृत साहित्य

हिन्दू धर्म में जीव हत्या का कुप्रचार करने वालो को जबाब!!!


हिन्दू धर्म में जीव हत्या का कुप्रचार करने वालो को जबाब!!!

कृपया पोस्ट पूरा पढे मुसलमान ने श्लोको का गलत उच्चारण करके हिन्दू धर्म में जीव हटाया को दर्शाया है उसके लिए यहाँ देखे http://goo.gl/3atd9s
ये पोस्ट मुझे मजबूरन इसलिए लिखना पड़ रहा है कि कुछ लोगो ने अपने को श्रेस्ठ सिद्ध करने के लिए कुतर्क देने में नीचता कि हद पर कर दी है ये लोगो ने कुछ प्रमाण दिए है और बोलते है कि सनातन धर्म में जीव हत्या या गौ हत्या को सही ठहराया गया है कुछ समय निकाल कर पोस्ट को पूरा पड़े अब कोई प्रश्न करता है तो जबाब देना जरुरी है क्योकि सनातन विद्धवानों का धर्म है महाभारत में आया है – @गव्येन दत्तं श्राद्धे तु संवत्सरमिहोच्येत। (अनुशासन पर्व, 88-5) इसको लोग अपनी शुविधा के लिए पूरा परिवर्तित कर देते है इस पंक्ति का सत्य अर्थ है……… श्राद्ध में गाय का ‘दान'(दत्तं) देने से वर्षभर पितरों की तृप्ति का लाभ मिलता है। उस पंक्ति में ‘माँस’शब्द ही नहीं है। झूठ को शर्म नहीं होती और न उसका कोई ईमान होता है लेकिन उस व्यक्ति कि छोटी मानसिकता कहे या फिर उसका अल्प ज्ञान उसका जबाब हम आपको देते है महाभारत में १००० से ज्यादा श्लोक है और जिस एक श्लोक को लेकर गौ हत्या करार दे रहे है वो ये है “राज्ञो महानसे पूर्वं रंतिदेवस्य वै द्विज | द्वे सहस्त्रे तु वध्येते पशुनंन्वहनं तदा | अहन्यहनि वध्येते द्वे सहस्त्रे गवां तथा ॥ ” इस श्लोक में ‘वध्येते’” का अर्थ मारना लिखा माना गया है जो कि संस्कृत व्याकरण क अनुसार बिलकुल गलत है क्युकी संस्कृत में ‘वध’ धातु स्वतंत्र नही है जिसका अर्थ ‘मारना’ हो सके ,मारने के अर्थ में तो ‘हन्’ धातु का प्रयोग होता है |पाणिनि का सूत्र है “हनी वध लिङ् लिङु च “ इस सूत्र में कर्तः हन् धातु को वध का आदेश होता है .. अर्थात वध स्व्तंत्र रूप से प्रयोग नही हो सकता .. । व्याकरण के रूप में स्पस्ट करते है ‘वध्येते ‘ हिंसा का रूप नही है … |
इसके अलावा दो और श्लोक का सहारा लेकर राजा को “गौ हत्यारा ” बताया जाता है ..

“समांसं ददतो ह्रान्नं रन्तिदेवस्‍य नित्‍यशः अतुला कीर्तिरभवन्‍नृप्‍स्‍य द्विजसत्तम”

अब सुनो यहाँ ‘समांसं‘ का मतलब पशुमांस कहना बिलकुल गलत है .. वेदो में सभी शब्दो का विस्तृत अर्थ हुआ करता था लेकिन आज के समय में अर्थ सीमित हो गया है उदाहरण ‘मृग’ को सभी जानवर के लिए किया जाता था लेकिन आज के समय में ‘हिरण’ के लिए है ।ओर “वृषभ” का मतलब बैल है . , लेकिन इसके ७८ से ज्यादा विभिन्न अर्थ है लेकिन हम सिर्फ बैल के लिए प्रयोग करते है ऐसे ही आदि कल में मांस का अर्थ पशुमांस के साथ गौ उत्पादन मतलब दूध दही घी आदि के लिए प्रयोग होता था आप संस्कृत के आधार पर देखो तो राजा रातीदेव को गौ हत्यारा कहना बिलकुल हे गलत है ..|

वाप्यो मैरेयपूर्णाश्च मृष्टमांसचयैर्वृताः। प्रतप्तपिठरैश्चापि मार्गमायूरकौक्कुटैः।।

अर्थ – इस श्लोक में भारत जब बाल्मीकि के आश्रम में सेना सहित राज्य से चलकर आते है उसके बाद का वर्णन है, मूर्ख मुल्ले “मृष्टमांस” का अर्थ चौपाये जानवर के मांस से लेते हैं, जबकि “मृष्ट” का अर्थ cleaned या साफ़ होता है, और मांसं का अर्थ यहाँ मांस (meat) नहीं, मांस के कई अर्थ होते है, लोट लकार के अर्थ में इसका अर्थ “time” (समय होता है) मांस के विभिन्न अर्थ ये रहे – १ मांस, २ जीव, ३ दागना (cauterize), ४ क्षारकर्म, इत्यादि! अतः यहाँ “वाप्यो मैरेयपूर्णाश्च” अर्थात शरबत जैसे एक मीठे पेय से, जो एक साफ़ मैटल के कुंड में भरा जाता है, तथा उस धातुकुन्द को cauterize (मांसं) करने का वर्णन है! तथा उससे ही भरत कि थकी सेना का सत्कार किया जाता है ना कि मांस से! ये बताता है कि आश्रम मार्ग के आसपास कितने प्रकार के पक्षी थे/हैं! “मार्गमायूरकौक्कुटैः”. तथा, प्रतप्तपिठरैश्चापि का संधि विच्छेद करें तो ये प्राप्त होता है! प्रतप्तपिठरैश्चापि = प्रतप्त+पिठरैः+च+अपि यहाँ “च” का अर्थ “धातु” के रूप में नहीं हुआ है, “च” के निम्न अर्थ हैं, च ca adj. moving to and fro ,च pure च seedless च mischievous च both च मोरे over च as well as च tortoise ,अतः हमने देखा कि इसका प्रयोग व्याकरण के अतिरिक्त, मूल शब्दो में भी होता है! अतः आग में कुछ पकाने के सम्बन्ध में तीसरे नंबर के अर्थ “च seedless (बीजरहित का प्रयोग इस श्लोक में किया जा रहा है)” अब बीजराही विशेषण का प्रयोग मांस के सम्बन्ध म ओ किया नहीं जा सकता, अतैव ये किसी बीजरहित फल या सब्जी कि ओर इंगित करता है, जिसे (“प्रतप्त+पिठरैः”) मिटटी के गर्म पात्र पर पकाया जा रहा हो! श्लोक का आशय ये है! इस प्रकार हम देखते है कि किस प्रकार मलेच्छ श्लोको का गलत सलत अर्थ लगाकर दुष्प्रचार कर रहे हैं!
इसी तरह एक और श्लोक है :
रुरून् गोधान् वराहांश्च हत्वाऽ ऽदायामिषं बहु।। स त्वं नाम च गोत्रं च कुलमाचक्ष्व तत्त्वतः।। एकश्च दण्डकारण्ये किमर्थ चरसि द्विज।। पहले इस श्लोक को पूर्ण कर दूँ इसके आगे २ लाईनें और हैं! समाश्वस मुहूर्तम् तु शक्यम् वस्तुम् इह त्वया ! आगमिष्यति मे भर्ता वन्यम् आदाय पुष्कलम् !! अब इसका अनुवाद करते हैं : सीता जी, छलवेश धारी रावण को सम्बोधित करते हुए कहती है, -“हे विप्रवर आप कुछ काल के लिये विश्राम कीजिये, अगर विश्राम आपके लिये सम्भव हो तो (समाश्वस मुहूर्तम् तु शक्यम् वस्तुम् इह त्वया), मेरे भर्तृ वन में वनोत्पाद लेने गए हैं, (मे भर्ता वन्यम् आदाय पुष्कलम् ), अब मुल्ले, मलेच्छ इसके बाद के श्लोक का उल्टा अर्थ निकालकर, श्री राम के वन में जीवों का शिकार करने जाने का वर्णन जोड़ देते हैं, जिसका सही अनुवाद ये रहा – रुरून् के संस्कृत में ६ मूल पर्याय होते हैं, उसमे से एक है, रुरु ruru m. species of fruit tree (फल वृक्ष का १ प्रकार) , और इस सन्दर्भ में श्रीराम द्वारा इसे लाने का वर्णन है, <= (रुरू), अब यहाँ गोधान् का अर्थ मुल्ले छिपकली से लेते है, जबकि ये मुक्त धातु है, इसका अर्थ सज्ञा (वस्तु व्यक्ति स्थान जीव) के रूप में नहीं निकाला जा सकता, रुरून् कि ही भांति गोधान् के भी विभिन्न अर्थ हैं, इसका एक अर्थ धनुष कि डोरी (bow string) होता है, अब चूंकि श्री राम के हांथो में धनुष सुशोभित होता है, अतः यहाँ पर गोधान शब्द का उनके धनुष कि डोरी से ही अर्थ लिया जा रहा है, किसी कार्य हेतु, (अब ये कार्य वन के उत्पाद को लाने , बाँधने का कार्य भी हो सकता है समझदार समझ गए होंगे, बाकी मुल्ले और मलेच्छ तो पैदाइशी मूर्ख होते है) <= (गोधान्), अब यहाँ “वराहांश्च” का अर्थ मुल्ले सूअर से लेते है, जबकि ये भी स्वतंत्र धातु के रूप में प्रयुक्त हुआ है, इस श्लोक में, वराह के २२+ पर्याय होते है, इसका संधि विच्छेद कीजिये, “वराहांश्च = वराहा+न्+च” अब पाणिनि व्याकरण से सारी धातुएं मूल है, २२ अर्थों में से ३ विशेषण है, बाकी संज्ञाएं हैं, इनमे से एक अर्थ है मेघ या बादल (cloud), <= (वराहांश्च), और हत्वा से मारनें का कार्य प्रदर्शित नहीं किया जाता, उसके लिये (इस श्लोक के व्याकरण के अनुसार) एकमात्र “हन” धातु प्रयोग होती है, अब मुल्ले कहेंगे की अंतिम धातु में मांस का ज़िक्र हुआ है, तो हैम बताना चाहेंगे की उनकी किस्मत यहाँ भी ख़राब है, इसका संधि विच्छेद कर लेते हैं, ऽदायामिषं =आदाय+अमिषा+न्बहु, यहाँ हत्वादाय का अर्थ होगा लाना , अमिषा के १५ अर्थ होते है, जिसमे एक है सज्ञान के रूप में जो यहाँ प्रयुक्त होगा, अमिषा AmiSa n. desire यानि इच्छा, कामना, आशा, तो इस सम्पूर्ण श्लोक का अर्थ इस प्रकार होगा, समाश्वस मुहूर्तम् तु शक्यम् वस्तुम् इह त्वया || ३-४७-२२ आगमिष्यति मे भर्ता वन्यम् आदाय पुष्कलम् | रुरून् गोधान् वराहान् च हत्वा आदाय अमिषान् बहु || ३-४७-२३ सः त्वम् नाम च गोत्रम् च कुलम् आचक्ष्व तत्त्वतः | एकः च दण्डकारण्ये किम् अर्थम् चरसि द्विज || तात्पर्य – हे विप्रवर आप कुछ काल के लिये विश्राम कीजिये, अगर विश्राम आपके लिये सम्भव हो तो (समाश्वस मुहूर्तम् तु शक्यम् वस्तुम् इह त्वया), मेरे भर्तृ वन में वनोत्पाद लेने गए हैं, वे बहुत सारे रूरू फल, गोधान् (bow string) की सहायता से बांधकर लायेंगे, तथा वे वराहांश्च (cloud बादल) घिरने से पूर्व लौट आयेंगे, तदन्तर आपकी अमिषा (desire इच्छा, कामना, आशा), अवश्य पूर्ण होगी! अब हमारी भी आशा है मुल्ले मलेच्छों को उनके दुष्प्रचार का उत्तर मिल गया होगा!
‪#‎ॐशिवभक्त‬