जब पहली बार दानव समाज की कंपनी “इस्ट इन्डिया कंपनी” के मेनेजर अंग्रेज भारत में आए थे तब राजाओं, नवाबों और बादशाहों की तेल मालिश और पगचंपी करते थे । मालिश और पगचंपी का मतलब खूश करना, हिरे जवाहरात की भेंट देकर, तारिफ के पूल बांध कर आसमान में चडा देना, मिथ्याभिमान के अफीमी नशे में डूबा देना ।
ये शातिर व्यापारी सामनेवाले को आसमान पर चडा देते हैं और नीचे से उसकी चीजें लूट लेते हैं । इतिहास लिखता है कि राजाओं को आसमान में उडा कर जमीन पर रहे उनके राज्यों को ही इस्ट इन्डिया कंपनी हडप कर गई थी ।
कभी सुना है किसी व्यापारी ने दुकान बंद कर दी हो ! दुकानदारी बापदादा का धंधा होता है क्यों कोइ बंद करे ? लेकिन दुकान किस चीज की है वो तो देखना पडेगा ।
उन इस्ट इन्डिया वाले दानवों की दुकान भी बंध नही हुई है । आज भी चल रही है । नाम बदल दिया है, बोर्ड और दरवाजे बदल दिए हैं । दरवाजा पहले खूले आम रोड पर खूलता था, आज पिछली गली से घुम के जाना पडता है । अलग अलग दरवाजे पर बोर्ड भी टंगे हैं “आईएमएफ”, “फॅड रिजर्व”, वर्ल्ड बॅन्क” इत्यादी ।
राजा और बादशाहों की चंपी करनेवाले के बच्चे आज भारत की जनता और उनके पतिनिधि राजनेताओं की चंपी कर रहे हैं । उधार की आदत डाल कर, पगचंपी के नये नये आविष्कार कर के जनता को सुख सुविधा देने के बहाने उनका जीवन खर्चिला बना दिया है । और मुर्ख जनता भी हाई सोसाईटी, लो सोसाईटी, लोकल, पॉश विस्तार वाले, गंवार, शहरी, झोपडपट्टी वाला, नगरवासी और उपनगरवासी, परावासी और नरिमान पोइन्ट वाला, वराछारोड वाला और अठवा लाईन्स वाले । खर्च करने वालों की क्षमता के आधार पर आर्थिक जातियां बना ली है । कोइ इस नयी जाती व्यवस्था से इतरा रहा है कोइ दुःखी हो रहा है । नफरत की शुरुआत अभी तो सिर्फ ताने मारने तक सिमीत है आगे देखो क्या होता है ।
सुख सुविधा नशे के समान है । जीतना मिले तलब बढती जाती है और इसलिए ही सब से सुखी माने जाते लोग भी दुःखी है, उन को और चाहिए, दिल मांगे मोर । लेकिन हर चीज का अंत होता है । पगचंपी करने वाले दानव भी नए नए सुख सुविधा के सामान खोज नही पा रहे हैं, सुख के नशे की अंतिम क्षण में जनता को क्या देना है । दानवों के इस सुख सुविधा और विकास का भांडा फुट जाए और मानव समुदाय उत्पात मचा दे, ईस से पहले मानव समुदाय को एकदम अपने शिकंजे में कस लेना है, बेन्किन्ग और युनिवर्सल आईडी, का फंदा कस रहे हैं ।
आगे इतिहास लिखेगा कि जीन जातियों के दिल मोर मांगता था वो मानव जातीयां खतम हो गई है।
दानवों के अपने पूरखों का सपना “धरती की मालिकी हमारे बाप की है” साकार करना है । विकास का नया फंडा “टिकाउ विकास, याने ‘सस्टेइनेबल डेवलपमेन्ट” शुरु किया है । शुरुआत की है पूराने विकास को क्लाईमेक्स पर ले जाना । मानव जात के सपनों में और हवा भरके और उंचाई पर उडाना है । आदमी ज्यादा उंचाई से गीरेगा तभी तो खतम होगा ना !
स्मार्ट सिटी और शहरी करण से जनता गांव छोड रही है, खेती काम को हिनता से देख रही है, अपनी खेती की जमीने बेच रही है । ये भारत के कथित सब से विकसित गुजरात की बात है, गांव खाली हो रहे हैं, गांवों में बुढे बचे हैं । गीनेचुने युवा है उन को किसी काम के काबिल नही समजे जाते हैं तो बेचारे खेती कर रहे हैं । उन बेचारों को शादी के लिए लडकी भी नही मिल रही है । विकास के क्लाईमेक्स ने समाज रचना ही तोड दी है । गांव को छोड कर शहर गए बच्चे भी बुढापे की और जा रहे हैं । उन में सामाजिक वेल्यु अभी बची है तो गांव में रहते अपने बुढे मांबाप की फिकर सताने लगी है, अपने बीवी बच्चे मेकोले की औलाद बन जाने से मांबाप को अपने पास तो नही रख सकते लेकिन गांवों में सामुहिक रसोईधर और टिफिन व्यवस्था बनाई है । गांव का कोइ भी बुढा या बुढी रसोईघर जाकर खा सकता है या टिफिन मंगवा सकता है । हमारे सौराष्ट्र विभाग के युवा ही प्रथम शिकार बने हैं, मुंबई, सुरत, अमदावाद और वडोदरा हमारे युवाधन को निगल गया है, उनमें से एक मैं भी हूं ।
शहरी जन गांव के घर जमीन बेच कर १०वें माले पर फ्लेट खरीद ना चाहते, बच्चों को मेकोले की औलादें बनाना चाहते हैं, अपने धंधे का नूकसान भरपाई करना चाहते हैं या बेकारी में बैठे बैठे ही खाना खाना चाहते हैं । मेरे घर का भी ये हाल हो तो दुसरों की क्या बात करें ।
स्मार्ट सिटी के बाद क्या होगा ? गांव खाली, नफरत योग्य और निकम्मे । जमीन सस्ती और बिकाउ, दानव प्यादे जमीन खरीद लेन्गे । दानवों की कंपनिया एफडीआई, जब गांव आई तो समज लेना विकास का क्लाइमेक्स पूरा और ‘सस्टेइनेबल देवलोपमेन्ट शुर’ !
शहरों में ये जो पगचंपी वाले धंधे शुरु है ना, सेवा के, एक दुसरे को खूश करने के, वो सब बंद ।
बस, अब बहुत हो गया, अब असली धंधे पर आ जाओ । खेती ही असली धंधा है जो आदमी का पेट भरता है । जीन गांवों को निकम्मे कहे उन्ही गांवों के खेतो में प्यार से आ जाओ हम नौकरी देते हैं । पोलपोट की तरह जनसंहार कर के शहरों को खाली नही करवाएन्गे, पगचंपी के हमारे धंधे तो खूद बंद कर देन्गे बाकी लोगों के धंधों को मंदी के हथियार से मार देन्गे । भूखा आदमी आखिर जाएगा किधर ?
एक बात बता देते हैं, दानवों ने ८ के दशक में एक मीनी ट्रायल कंबोडिया में लिया था । दानव राज पोलपोट ने १९७५ में फ्रांस में यहुदी बेन्कर माफियाओं की तालीम से और उनकी मदद से अपने देश कंबोडिया में साम्यवादी खूजली गॅन्ग बनाकर उत्पात मचा दिया था । देश की आबादी में हर ३ में से १ को मार दिया था । मरनेवालों की संख्या लाखों में थी । मरने वाले ज्यादातर वही थे जो सैनिक को सवाल करते थे कि हमे शहर से भगा कर गांव क्यों भेज रहे हो ? मरने वालों में दुसरे वो थे जो साम्यवाद के सिध्धांत पर अपना धर्म नही छोड रहे थे । तो मुस्लिम उस में ज्यादा मरे । कुछ हिन्दु थे वो भी मरे लेकिन अवसरवादी और रंग बदलते बौधों ने अपना धर्म त्याग दिया तो बच गए । आदमी को मारने के लिए भी उन हरामी यहुदी व्यापारियों ने अपना सिध्धांत सिखाया था । आदमी की मौत को सस्ती करो । मेहंगी गोलियां बचा के रख्खो । एक कंटेनर भर के पोलिथीन की थैलियां युरोप से भेजी गई । आदमी के माथे पर थैली पहना कर गले में मजबूती से बांध दी जाती थी जीस से आदमी सांस ना ले सके और बीना हवा धुट घुट कर मर जाता था ।
हमारे सामने आज दोतीन तरह के सिनेरियो खडे हो गए हैं ।
दानव दूत और दानव सेना नायक अमरिका भारत के नागरिक और नागरिक के प्रतिनिधी मोदी की तारिफ पर तारिफ कर रहा है और उसी बहाने अपनी कंपनियां भारत में घुसा देना चाहता है । मोदी के साथ साथ भारत की जनता भी आसमान में उडने लगे हैं । उधार के डोलर के मजे ले लो, पसी ने से बने रुपए में क्या रख्खा है !
अमरिका के लगभग 40 टॉप अमेरिकी सांसदों का दिल भी जीत लिया ।
किस ने ? मोदी ने या दानवों की कुट नीती ने ?
इन सांसदों ने उनके शब्दों को ‘प्रेरणादायी और बड़ा विज़न वाला’ बताया। मैडिसन स्क्वेयर में अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि वह एक छोटे आदमी थे, जो ‘चाय बेचकर’ यहां तक पहुंचे हैं, लेकिन ‘छोटे लोगों के लिए बड़े काम’ करने की इच्छा रखते हैं।
दासी पुत्र चंद्रगुप्त भी छोटा आदमी था और उसने तो सच में महान कार्य किया था । क्या मोदी भी वैसा महान कार्य करना चाहते हैं या भारत की जनता को जकड कर दनवों के हवाले कर के नीच कार्य करना चाहते हैं ?
दानवों के ही देश के नागरिक उन बेंकर माफिया दानवों के विरुध्ध उन के एजडे को रोकने के लिए “स्टोप न्यु बर्ल्ड ऑर्डेर” लिखे बेनर लेकर घुम रहे हैं । हमें लूट कर उन लोगों को तो दानवों ने मजे ही करवाए थे, तो भी वो विरोध कर रहे हैं । यहां हम भारतिय तो उन दानवो के कारण पिडित है और पिडीत जनता का प्रतिनिधि विरोध करने के बदले पूरी जनता को बेंकर माफियाओं के हवाले करने के लिए झिरो बेलेन्स वाले बेन्क खाते खूलवा रहा है और उन के ही देश में छाती फुलाकर बता भी रहा है ! दानवों के विरोधी आगे क्या कह सकते हैं, भाड में जाओ ! मरो मरने का शौक हो तो !
दुसरे सीन में एक फोटो देख कर भारत की भोली जनता भी बोलने लगी । ‘हमें यहुदियों से प्यार है । हमे इजराईल से प्यार है ।’ शेखचिल्ली अधर्म गुरुओं ने सिखा दिया है कि दुश्मन से भी प्यार करो ! भारत की मुर्ख जनता ने बराबर रट लिया है । विज्ञान या गणित के सुत्र नही रटे अपनों को मारने मराने वाले अधर्मि सुत्र रट लिए ।
मोदी ने दानव के प्यादों को छोड सिधे ही दानवों से मुलाकात की तो भारत के अंधलोग जुम उठे थे उस की बात थी । उन अंधलोग का भी कसुर नही है, पूरी बात जानते ही नही तो क्या करे ! उनकी सुई मुस्लीम प्रजा पर अटकी है उन के बॉस यहुदी पर नही ।
जीन को पता नही और खूशफहमी के साथ जी रहे हैं उन के लिए ।
सस्टेइनेबल डेवलोपमेन्ट का मतलब सदियों तक दुनिया की बाकी जनता उन ६ मिल्यन यहुदियों की सेवा करे । वो बाकी मानव जात को अपना पशु मान कर चलती है, जो अब भी मानव है उन को पशुता की तरफ ले जाने के लिए धर्म से अलग कर रहे हैं, जीस धर्म ने पशु समान आदमी को मानव बनाया था, फिल्म, टीवी, नेट और मिडिया को काम सौंपा है की धर्म विरुध्ध सेक्स के नंगे नाच शुरु कर दो आदमी पशुता की तरफ जल्दी चला जाएगा, ऐसे ऐसे बुध्धिहीन प्रोग्राम दिखाओ की आदमी की बुध्धि खील न सके और पशु बनने में बाधा न बने, आदमी को हंसाते कॉमेडी शो भी दिखाओ कि आदमी गंभीरता खो कर हल्का हो जाए, बातें हंसने में टालने लगे । गंभीर जनता सोचा करती है । सोचता हुआ आदमी पशु बनना तो दूर दानव समाज को ही नूकसान करता है ।
दुनिया पर राज करने का सपना उन दानव यहुदीयों के धर्म स्थापक अब्राहम का था । दुनिया को उल्लु बनाने के लिए यहोवा नामका नकली भगवान भी पैदा कर लिया और उस भगवान ने कहा है की धरती अब तेरी और तेरे संतानो की है । उस की तीन संतान यहुदी, इसाई और मुस्लिमों के बीच स्पर्धा है की धरती किस की ? यहुदी धन के कारण आगे हैं और धरती का कबजा कर लिया है ।
अब उस के कबजे से भारत को छुडाना है या पूरी तरह गुलाम बन जाना है ? २०४६ में भारत की आजादी खतम हो रही है । जनता को ही सोचना होगा की कोई पोलपोट के आगमन की राह देखनी है या कोइ चंद्र गुप्त को पैदा करना है ! सोच लो !