एक बहुतबड़ा ज्योतिषी एक रात एक गड्डे में गिर गया।चिल्लाया , बड़ी मुश्किल से पासकी किसी किसान औरत ने उसे निकाला। जबनिकाला है तब उस ज्योतिष ने कहा है कि माँ,तुझे बहुत धन्यवाद। मैं एक बहुत बड़ा ज्योतिषी हूँ,तारों के संबंध में मुझसे ज्यादा कोईनहीं जानता। अगर तुझे तारों के संबंध में कुछजानना हो तो मैं बिना फीस के तुझे बता दूँगा, तू चली आना। मेरी फीस भी बहुतज्यादा है।उस बूढ़ी औरत ने कहा, बेटे तुम निश्चिंत रहो, मैंकभी न आऊँगी क्योंकि जिसे अभी जमीन के गड्डेनहीं दिखायी पड़ते हैं उसके आकाश के तारों केज्ञान का भरोसा मैं कैसे करूँ?
Day: October 25, 2014
हे हिन्दू उठो जागो
हे हिन्दू उठो जागो
इस लेख को पढने के बाद कोई मुझे ये बताये की हिन्दू अश्त्र-शस्त्र क्यूँ ना उठाये ?
अगर तथाकथित बुद्धिजीवियों, सिकुलर और हिन्दू विरोधीयो की भाषा में कहू तो हिन्दू आतंकवादी/भगवा आतंकवादी क्यूँ ना बने ?
* रामायण एक काल्पनिक कहानी है – पंडित जवाहरलाल नेहरू और गवर्नर जनरल राजाजी
* रामायण और महाभारत मात्र कहानी है – तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री सी. राजगोपालाचारी
* राम मात्र एक काल्पनिक पात्र था – तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि
* राम पियक्कड़ था – तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि
* कौन था यह राम? किस इंजीनियरिंग कॉलेज से उन्होंने पढ़ाई की थी? और क्या इसका कोई प्रमाण है? – तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि
* हिमालय और गंगा जितना बड़ा सत्य हैं , राम का चरित्र उतना ही झूठा है – तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि
* भगवान राम इस देश मे पैदा ही नहीं हुए थे और रामायण काल्पनिक है , इस धरती पर राम का कभी कोई अस्तिव रहा ही नहीं है – कांग्रेस की केन्द्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट मे हलफनामा
* भारत माता और देवी देवताओ के नग्न चित्र बनाये – दुष्ट एम् एफ हुसैन
* अमरनाथ यात्रा पाखंड है – अग्निवेश
* हिन्दुओं के आराध्य देवों ब्रह्मा, विष्णु, महेश का उपहास उड़ाया – भांड कुमार विश्वास
* शिव, कृष्ण और दुर्गादेवी का असभ्य और फूहड़ वर्णन किया गया – इग्नू के पाठ्यक्रम में
* भारत माता डायन है – आजम खान, समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता एवं कैबिनेट मंत्री
*भारत माता डायन है – तस्लीमुद्दीन ओवैसी
* भगवान शिव शंकर को अपशब्द कहा – शाहरुख़ खान
* कृष्ण के अस्तित्व पर प्रश्न उठाये जाते है.
* मंदिरों में घंटी बजने पर रोक लगायी जाती है.
* केरल मे कोई रिक्शा चालक अपने वाहन पर श्री कृष्ण या जय हनुमान नहीं लिख सकता.
* “सरस्वती वन्दना” को साम्प्रदायिक कहा जाता है.
* “वन्दे मातरम” को सांप्रदायिक कहा जाता है.
* “भारत माता की जय” को सांप्रदायिक कहा जाता है.
* “जय श्री राम” के उदघोष को सांप्रदायिक कहा जाता है.
अब कोई भारत माता को फूहड़ गीत लिख कर अपमानित कर रहा है – दिबाकर बनर्जी अब भी जिसका खून ना खौला, खून नहीं वो पानी है !!
जो अपनी मात्रभूमि, स्वाभिमान और गरिमा के लिए ना लड़ा..वो बेकार जवानी है !! इसे पढने के बाद जो पीड़ा और क्रोध आपके मन में उत्पन्न हुआ होगा ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ. मैं अपने अंतर्मन और दृदय में दबी वेदना और पीड़ा को इस अमूल्य गीत के माध्यम से व्यक्त करना चाहता हु …………..
उठो जवान देश की वसुंधरा पुकारती देश है पुकारता पुकारती माँ भारती रगों में तेरे बह रहा है खून राम श्याम का जगदगुरु गोविंद और राजपूती शान का तू चल पड़ा तो चल पड़ेगी साथ तेरे भारती देश है पुकारता पुकारती माँ भारती ||
उठा खडग बढा कदम कदम कदम बढाए जा कदम कदम पे दुश्मनो के धड़ से सर उड़ाए जा उठेगा विश्व हांथ जोड़ करने तेरी आरती देश है पुकारता पुकारती माँ भारती || तोड़कर ध्ररा को फोड़ आसमाँ की कालिमा जगा दे सुप्रभात को फैला दे अपनी लालिमा तेरी शुभ कीर्ति विश्व संकटों को तारती देश है पुकारता पुकारती माँ भारती ||
है शत्रु दनदना रहा चहूँ दिशा में देश की पता बता रही हमें किरण किरण दिनेश की ओ चक्रवती विश्वविजयी मात्र-भू निहारती देश है पुकारता पुकरती माँ भारती || ||

Laxmi prapti

अनंतरूपिणी लक्ष्मीरपारगुणसागरी ।
अणिमादिसिद्धिदात्री च शिरसा प्रणमांयहम् ॥
भवार्थ:-
हे देवी लक्ष्मी ! तुम अंनतरूपिणी और अपार गुणों की सागर सवरूप हो और तुम्ही प्रंसन होकर अणिमादि सिद्धि देती हो, मै तुम्हें मसतक झुकाकर प्रणाम करता हूँ ।
आप सभी को दीपावली की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं
आज का विशेष मंत्र :-
‘ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे, विष्णु पत्नयै च धीमही तंनौ लक्ष्मी: प्रचोदयात’
इस मंत्र का जप करें ।इस मंत्र में कमलगट्टे की माला अधिक फलदायक देने वाली मानी गई हैं
न हो तो तुलसी की माला प्रयोग में लाऐ
शुभ लक्ष्मी सुप्रभात
आपके अपने
” प्रदीप साईंनाथ”
That destructive aspect of Lord Shiva is known as Kaala Bhairava or Aghora and here in this temple, He sits in His fierce aspect as Aghora Moorthy !
That destructive aspect of Lord Shiva is known as Kaala Bhairava or Aghora and here in this temple, He sits in His fierce aspect as Aghora Moorthy !
That which is illumined in the Universal Mind
As Creator, Preserver, Destroyer
Is the Lord, the All Merciful, the All Wise
And is omnipotent, omniscient
The All Knower and Sole Knower
The All Ruler and Sole Ruler
Capable of boons great
Empowered to give Liberation !
Know that all this is illumined
In Mind Cosmic, through Nescience !
7.5 golden elephants, known as Ezhara Ponnana are put on display during the main festival here and lakhs watch this event.
More info and Sacred Music videos athttp://www.guruvayur4u.com/html/spiritualtourism24.htm
ज्योतिष सीखें – युति का फल –
ज्योतिष सीखें – युति का फल –
दो ग्रहों युति का फल
चन्द्र की अन्य गृहों से युति/सम्बन्ध का प्रभाव—-
चंद्र+मंगल- शत्रुओं पर एवं ईर्ष्या करने वालों पर, सफलता प्राप्त करने के लिए एवं उच्च वर्ग (सरकारी अधिकारी) विशेषकर सैनिक व शासकीय अधिकारी से मुलाकात करने के लिए उत्तम रहता है।
चंद्र+बुध-धनवान व्यक्ति, उद्योगपति एवं लेखक, सम्पादक व पत्रकार से मिलने या सम्बन्ध बनाने के लिए।
चंद्र+शुक्र-प्रेम-प्रसंगों में सफलता प्राप्त करने एवं प्रेमिका को प्राप्त करने तथा शादी- ब्याह के समस्त कार्यों के लिए, विपरीत लिंगी से कार्य कराने के लिए।
चंद्र+गुरु- अध्ययन कार्य, किसी नई विद्या को सीखने एवं धन और व्यापार उन्नति के लिए।
चंद्र+शनि- शत्रुओं का नाश करने एवं उन्हें हानि पहुंचाने या उन्हें कष्ट पहुंचाने के लिए।
चंद्र+सूर्य- राजपुरूष और उच्च अधिकारी वर्ग के लोगों को हानि या उसे उच्चाटन करने के लिए।
मंगल की अन्य गृहों से युति/सम्बन्ध का प्रभाव—-
मंगल+बुध- शत्रुता, भौतिक सामग्री को हानि पहुंचाने, तबाह-बर्बाद, हर प्रकार सम्पत्ति, संस्था व घर को तबाह-बर्बाद करने के लिए।
मंगल+शुक्र- हर प्रकार के कलाकारों (फिल्मी सितारों) में डांस, ड्रामा एवं स्त्री जाति पर प्रभुत्व और सफलता प्राप्त करने के लिए।
मंगल+ गुरु- युद्घ और झगड़े में या कोर्ट केस में, सफलता प्राप्त करने के लिए, शत्रु-पथ पर भी जनमत को अनुकूल बनाने के लिए।
मंगल+शनि- शत्रु नाश एवं शत्रु मृत्यु के लिए एवं किसी स्थान को वीरान करने (उजाड़ने ) के लिए।
बुध की अन्य गृहों से युति/सम्बन्ध का प्रभाव—-
बुध+शुक्र- प्रेम-सम्बन्धी सफलता, विद्या प्राप्ति एवं विशेष रूप से संगीत में सफलता के लिए।
बुध+गुरु- पुरुष का पुरुष के साथ प्रेम और मित्रता सम्बन्धों में पूर्ण रूप से सहयोग के लिए एवं हर प्रकार की ज्ञानवृद्घि के लिए नया है।
ग्रहों की युति
-:चंद्र:-(विचार)
शनि(दु:ख,विषाद,कमी,निराशा) :- मन में दु:ख,नकारात्मक सोच.
मंगल(साहस,धैर्य,तेज,क्षणिक क्रोध) :- विचारों में ओज,क्रांतिकारी विचार.
बुध(वाणी,चातुर्य.हास्य) :- हास्य-व्यंग्य पूर्ण विचार,नए विचार.
गुरु(ज्ञान,गंभीरता,न्याय,सत्य) :- न्याय,सत्य और ज्ञान की कसौटी पर कसे हुए गंभीर विचार.
शुक्र(स्त्री,माया,संसाधन,मिठास,सौंदर्य) :- माया में जकड़े विचार,सुंदरता से जुड़े विचार.
सूर्य(आत्म-तेज,आदर) :- आदर के विचार,स्वाभिमान का विचार.
राहू(मतिभ्रम,लालच) :- विचारों का द्वंद्व,सही-गलत के बीच झूलते विचार.
केतु(कटाक्ष,झूठ,अफवाह) :- झूठ,अफवाह और सही बातों को काटने का विचार.
विवाह भाव में चन्द्र एवं अन्य ग्रहों की युति
सप्तम भाव में चन्द्र-मंगल युति
अगर कुण्डली में विवाह भाव में चन्द्र-मंगल दोनों की युति हो रही हो तो व्यक्ति के जीवनसाथी के स्वभाव में मृदुलता की कमी की संभावना बनती है.
सप्तम भाव में चन्द्र-बुध युति
कुण्डली में चन्द्र व बुध की युति होने पर व्यक्ति का जीवनसाथी यशस्वी, विद्वान व सत्ता पक्ष से सहयोग प्राप्त करने वाला होता है. इस योग के व्यक्ति को अपने जीवनसाथी के सहयोग से धन व मान मिलने की संभावना बनती है.
सप्तम भाव में चन्द्र व गुरु की युति
कुण्डली में विवाह भाव में जब चन्द्र व गुरु एक साथ स्थित हों तो व्यक्ति का जीवनसाथी कला विषयों मे कुशल होता है.
उसके विद्वान व धनी होने कि भी संभावना बनती है. इस योग के व्यक्ति के जीवनसाथी को सरकारी क्षेत्र से लाभ मिलता है.
सप्तम भाव में चन्द्र व शुक्र की युति
अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्र व शुक्र की युति होने पर व्यक्ति का जीवनसाथी बुद्धिमान हो सकता है.
उसके पास धन, वैभव होने कि भी संभावना बनती है. व्यक्ति के जीवनसाथी के सुविधा संपन्न होने की भी संभावना बनती है.
सप्तम भाव में चन्द्र-शनि की युति
कुण्डली के विवाह भाव में चन्द्र व शनि दोनों एक साथ स्थित हों तो व्यक्ति का जीवनसाथी प्रतिष्ठित परिवार से होता है.
सप्तम भाव में चन्द्र की अन्य ग्रहों से युति
जब चंद्रमा की युति सप्तम भाव में बुध, गुरु, शुक्र से हो रही हों तो व्यक्ति के वैवाहिक जीवन के शुभ फलों में वृद्धि होती है.
अगर चन्द्र की युति विवाह भाव में शनि, मंगल के साथ हो रही हो तो दाम्पत्य जीवन में परेशानियां आती है.
. स्वयं चन्द्र भी जब कुण्डली में कृष्ण पक्ष का या निर्बल हो तब भी चन्द्र से मिलने वाले फल बदल जाते हैं.
चन्द्र सूर्य की युति का फल
इन दोनों की युति होने पर व्यक्ति के अंदर अहम की भावना आ जाती है.
कुटनीति से व्यक्ति अपना काम निकालने की कोशिश करता है. व्यक्ति क्रोधी हो सकता है एवं व्यवहार में कोमलता की कमी रहती है. मन में अस्थिर एवं बेचैन रहता है. मन की शांति एवं व्यवहार कुशलता बढ़ाने के लिए चन्द्र के उपाय स्वरूप सोमवार के दिन भगवान शिव का जलाभिषेक करना चाहिए. मोती धारण करने से भी लाभ मिलता है.
चन्द्र मंगल की युति का फल
मंगल भी सूर्य के समान अग्नि प्रधान ग्रह है. चन्द्र एवं मंगल की युति होने पर व्यक्ति के स्वभाव में उग्रता आ जाती है. मंगल को ग्रहों में सेनापति कहा जाता है जो युद्ध एवं शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक होता है. जैसे युद्ध के समय बुद्धि से अधिक योद्धा बल का प्रयोग करते हैं, ठीक उसी प्रकार इस युति वाले व्यक्ति परिणाम की चिंता किये किसी भी कार्य में आगे कदम बढ़ा देते हैं जिससे इन्हें नुकसान भी होता है. वाणी में कोमलता एवं नम्रता की कमी के कारण यह अपनी बातों से कभी-कभी मित्रों को भी शत्रु बना लेते हैं. हनुमान जी की पूजा करने से इन्हें लाभ मिलता है.
चन्द्र बुध की युति का फल
चन्द्रमा शांत एवं शीतल ग्रह है और बुध बुद्धि का कारक ग्रह. जिस व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्र बुध की युति होती है वे काफी समझदार होते हैं, परिस्थितयों के अनुसार खुद को तैयार कर लेने की इनमें अच्छी क्षमता पायी जाती है. अपनी बातों को ये बड़ी ही चतुराई से कह देते हैं. वाक्पटुता से काम निकालने में भी यह माहिर होते हैं.
चन्द्र गुरू की युति का फल
नवग्रहों में गुरू को मंत्री एवं गुरू का पद दिया गया है. मंत्री का कार्य होता है सलाह देना. सलाह वही दे सकता है जो ज्ञानी होगा. यानी इस युति से प्रभावित व्यक्ति ज्ञानी होता है और अधिक बोलने वाला भी होता है. ये सलाहकार, शिक्षक एवं ऐसे क्षेत्र में अच्छी सफलता प्राप्त कर सकते हैं जिनमें बोलने की योग्यता के साथ ही साथ अच्छे ज्ञान की भी जरूरत होती है.
चन्द्र शुक्र की युति का फल
चन्द्रमा के साथ शुक्र की युति होने पर व्यक्ति सुन्दर एवं आकर्षक होता है. इनमें सुन्दर दिखने की चाहत भी अधिक होती है. वाणी में कोमलता एवं विचारों में कल्पनाशीलता भी इनमें पायी जाती है. इस युति से प्रभावित व्यक्ति कलाओं में रूचि लेता है.
चन्द्र शनि की युति का फल
जन्म कुण्डली में चन्द्रमा शनि के साथ युति सम्बन्ध बनाता है तो व्यक्ति न्यायप्रिय होता है.
इस युति से प्रभावित व्यकति मेहनती होता है तथा अपनी मेहनत एवं ईमानदारी से जीवन में आगे बढ़ता है.
इनके स्वभाव में अस्थिरता पायी जाती है, छोटी-छोटी असफलताएं भी इनके मन में निराशा उत्पन्न करने लगती है.
चन्द्र राहु की युति का फल
कुण्डली में चन्द्र के साथ राहु की युति होने पर व्यक्ति रहस्यों एवं कल्पना की दुनियां खोया रहता है.
इनमें किसी भी विषय को गहराई से जानने की उत्सुकता रहती है जिससे अपने विषय के अच्छे जानकार होते हैं.
इनके स्वभाव में एक कमी यह होती है कि अफवाहों एवं कही सुनी बातों से जल्दी विचलित हो जाते हैं.
चन्द्र केतु की युति का फल
चन्द्र केतु की युति कुण्डली में होने पर व्यक्ति जोश में कार्य करने वाला होता है.
जल्दबाजी में कार्य करने के कारण इन्हें अपने किये कार्य के कारण बाद में पछताना भी पड़ता है लेकिन,
अपनी ग़लतियों से सीख लेना इनकी अच्छी आदत होती है.
ज्योतिषी के रूप में कैरियर बनाने का विचार करें तो यह अच्छे ज्योतिषशास्त्री बन सकते हैं.
सच्चाई एवं अच्छाई के लिए आवज़ उठाने के लिए चन्द्र केतु की युति वाले व्यक्ति सदैव तैयार रहते हैं.
शनि और पाप ग्रह
शनि और मंगल
जब शनि और मंगल की युति बनती है तब दोनों मिलकर और भी अशुभ प्रभाव देने वाले बन जाते हैं.व्यक्ति का जीवन अस्थिर रहता है.
मानसिक और शारीरिक पीड़ा से व्यक्ति परेशान होता है
शनि और राहु केतु
.इन्हें शनि के समान ही कष्टकारी और अशुभ फल देने वाला कहा गया है.जब शनि की युति या दृष्टि सम्बन्ध इनसे बनती है तब शनि और भी पाप प्रभाव देने वाला बन जाता है.राहु और शनि के मध्य सम्बन्ध स्थापित होने पर स्वास्थ्य पर अशुभ प्रभाव होता है.शनि और राहु की युति नवम भाव में हृदय और गले के ऊपरी भाग से सम्बन्धित रोग देता है.इनकी युति कार्यों में बाधक और नुकसानदेय होती है.केतु के साथ शनि की युति भी समान रूप से पीड़ादायक होती है.इन दोनों ग्रहों के सम्बन्ध मानसिक पीड़ादायक और निराशात्मक विचारों को देने वाला होता है.
शनि और सूर्य
इन दोनों ग्रहों की युति बनती है उस भाव से सम्बन्धित फल की हानि होती है.
इन दोनों की युति व्यक्ति के लिए संकट का कारण बनती है.
सूर्य का अन्य ग्रहो से सम्बन्ध
सूर्य जगत का राजा है अपने समय पर उदय होता है और अपने समय पर ही अस्त हो जाता है।
चन्द्रमा के साथ सम्बन्ध होने पर देखने के बाद सोचने के लिये शक्ति देता है
मंगल के साथ मिलने पर शौर्य और पराक्रम की वृद्धि करता है
,बुध के साथ मिलकर अपने शौर्य और गाथा को दूरस्थ प्रसारित करता है अपनी वाणी और चरित्र को तेजपूर्ण रूप मे प्रस्तुत करता है,
शाही आदेश को प्रसारित करता है,गुरु के साथ मिलकर सभी धर्म और न्याय तथा लोगो के आपसी सम्बन्धो को बनाता है,
लोगो के अन्दर धन और वैभव की कमी को पूरा करता है,
शुक्र के साथ मिलकर राजशी ठाठ बाट और शान शौकत को दिखाता है भव्य कलाकारी से युक्त राजमहल और लोगो के लिये वैभव को इकट्ठा करता है
शनि के साथ मिलकर गरीबो और कामगर लोगो के लिये राहत का काम देता है जिनके पास काम नही है जो भटकते हुये लोग है उन्हे आश्रय देता है
वह केतु के द्वारा अपनी आज्ञा से करवाता है.
चन्द्रमा का अन्य ग्रहो से सम्बन्ध
राहु के साथ चन्द्रमा के आते ही कई प्रकार के भ्रम आजाते है और उन भ्रमो से बाहर निकलना ही नही हो पाता है
उसी प्रकार से केतु के साथ आते ही मोक्ष का रास्ता खुल जाता है,और जो भी भावना है वह खाली ही दिखाई देती है मन एक साथ नकारात्मक हो जाता है
सूर्य के साथ जाते ही चन्द्रमा के अन्दर सूखापन आजाता है
,मंगल के साथ जाते ही गर्म भाप का रूप चन्द्रमा ले लेता है और मानसिक सोच या जो भी गति होती है वह गर्म स्वभाव की हो जाती है
बुध के साथ चन्द्रमा की युति अक्समात मजाकिया हो जाती है
चन्द्रमा के साथ गुरु का ही हाथ होता है मानसिक रूप से कभी तो वह जिन्दा करने की बात करने लगता है और कभी कभी बिलकुल ही समाप्त करने की बात करने लगता है।
मंगल का अन्य ग्रहो से सम्बन्ध
सूर्य के साथ मिलकर मंगल खुद को उत्तेजित कर लेता है और जितना अहम बढता जायेगा उतना वह अच्छा भी काम कर सकता है और खतरनाक भी काम कर सकता है
मंगल के साथ चन्द्रमा मिलता है तो वह अपनी सोच को क्रूर रूप से पैदा कर लेता है उसकी सोच मे केवल गर्म पानी जैसी बौछार ही निकलती है बुध के साथ मिलकर
लेकिन इस युति एक बार अच्छी मानी जाती है कि व्यक्ति के अन्दर बात करने की तकनीक आजाती है वह कम्पयूटर जैसे सोफ़्टवेयर की तकनीक को बना सकता है
मंग्ल के साथ गुरु के मिलने से जानकारी के अलावा भी प्रस्तुत करने की कला आजाती है और यह जीवन के लिये कष्टदायी भी हो जाती है।
मंगल के साथ शुक्र के मिलने से कलात्मक कारणो मे तो तकनीक का विकास होने लगता है लेकिन शरीर के अन्दर यह युति अधिक कामुकता को पैदा कर देती है और शरीर के विनास के लिये दिक्कत का कारण बन जाता है शुगर जैसी बीमारिया लग जाती है,
शनि के साथ मिलने से यह गर्म मिट्टी जैसे काम करवाने की युति देता है तकनीकी कामो मे सुरक्षा के कामो मे मन लगाता है,कत्थई रंग के कारण बनाने मे यानी सूखे हुये रक्त जैसे कारण पैदा करना इसकी शिफ़्त बन जाती है।
राहु के साथ मंगल की युति होने से या तो बिजली तेल पेट्रोल आदि के कामो मे बरक्कत होने लगती है या
बुध के साथ अन्य ग्रहो का सम्बन्ध
बुध के साथ सूर्य के मिलने से व्यक्ति की सोच राजदरबार मे राजदूत जैसी होती है वह कमजोर होने पर चपरासी जैसे काम करता है और वह अगर केतु के साथ सम्बन्ध रखता है तो रिसेपसन पर काम कर सकता है
टेलीफ़ोन की आपरेटरी कर सकता है या ब्रोकर के पास बैठ कर केवल कहे हुये काम को कर सकता है इसकी युति के कारक ही काल सेंटर आदि माने जाते है,बुध के साथ
चन्द्रमा के होने से लोगो का बागवानी की तरफ़ अधिक मन लगता है कलात्मक कारणो मे अपनी प्रकृति को मिक्स करने का काम होता है
मंगल के साथ मिलकर जब भी कोई काम होता है तो तकनीकी रूप से होता है प्लास्टिक के अन्दर बिजली का काम बुध के अन्दर मंगल की उपस्थिति से ही है डाक्टरी औजारो मे जहां भी प्लास्टिक रबड का प्रयोग होता है
वह बुध और मंगल की युति से माना जाता है बुध के साथ गुरु का योग होने से लोग पाठ पूजा व्याख्यान भाषण आदि देने की कला मे प्रवीण हो जाते है लोगो को बोलने और मीडिया आदि की बाते करना अच्छा लगता है,
बुध के साथ शुक्र के मिलने से यह अपने को कलात्मक रूप मे आने के साथ साथ सजावटी रूप मे भी सामने करता है बाग बगीचे की सजावट मे और फ़ूलो आदि के गहने आदि बनाने प्लास्टिक के सजीले आइटम बनाने के लिये भी इसी प्रकार की युति काम करती है
बुध के साथ शनि के मिलने से भी जातक के काम जमीनी होते है या तो वह जमीन को नापने जोखने का काम करने लगता है या भूमि आदि को नाप कर प्लाट आदि बनाकर बेचने का काम करता है इसके साथ ही बोलने चालने मे एक प्रकार की संजीदगी को देखा जा सक्ता है,
गुरु के साथ अन्य ग्रहों का सम्बन्ध
गुरु के साथ सूर्य के मिलने से जीव और आत्मा का संगम हो जाता है गुरु जीव है सूर्य आत्मा है जिस जातक की कुंडली मे जिस भाव मे यह दोनो स्थापित होते है वह भाव जीवात्मा के रूप मे माना जाता है।
गुरु का साथ चन्द्रमा के साथ होने से जातक मे माता के भाव जाग्रत रहते है,जातक के माता पिता का साथ रहता है जातक अपने ग्यान को जनता मे बांटना चाहता है।
गुरु के साथ मंगल के मिलने कानून मे पुलिस का साथ हो जाता है धर्म मे पूजा पाठ और इसी प्रकार की क्रियाये शामिल हो जाती है,विदेश वास मे भोजन और इसी प्रकार के कारण जुड जाते है,गुरु के साथ बुध होने से जातक के अन्दर वाचालता आजाती है वह धर्म और न्याय के पद पर आसीन हो जाता है उसके अन्दर भावानुसार कानूनी ग्यान भी हो जाता है।
शुक्र के साथ मिलकर गुरु की औकात आध्यात्मिकता से भौतिकता की ओर होना माना जाता है वह कानून तो जानता है लेकिन कानून को भौतिकता मे देखना चाहता है वह धर्म को तो मानता है लेकिन भौतिक रूप मे सजावट आदि के द्वारा अपने इष्ट को देखना चाहता है गुरु के साथ शनि के मिलने से जातक के अन्दर एक प्रकार से ठंडी वायु का संचरण शुरु हो जाता है जातक धर्मी हो जाता है कार्य करता है लेकिन कार्य फ़ल के लिये अपनी तरफ़ से जिज्ञासा को जाहिर नही कर पाता है जिसे जो भी कुछ दे देता है वापस नही ले पाता है कारण उसे दुख और दर्द की अधिक मीमांसा करने की आदत होती है।
गुरु राहु का साथ होने से जातक धर्म और इसी प्रकार के कारणो मे न्याय आदि के लिये अपनी शेखी बघारने के अलावा और उसे कुछ नही आता है कानून तो जानता है लेकिन कानून के अन्दर झूठ और फ़रेब का सहारा लेने की उसकी आदत होती है वह धर्म को मानता है लेकिन अन्दर से पाखंड बिखेरने का काम भी उसका होता है।
केतु के साथ मिलकर वह धर्माधिकारी के रूप मे काम करता है कानून को जानने के बाद वह कानूनी अधिकारी बन जाता है अन्य ग्रह की युति मे जैसे मंगल अगर युति दे रहा है तो जातक कानून के साथ मे दंड देने का अधिकारी भी बन जाता है
शुक्र के साथ अन्य ग्रहों का सम्बन्ध
सूर्य के साथ मिलकर भौतिक सुखो का राज्य सेवा मे या पिता की तरफ़ से या पुत्र की तरफ़ से देने वाला होता है
चन्द्रमा के साथ मिलकर भावना से भरा हुआ एक प्रकार का बहकता हुआ जीव बन जाता है जिसे भावना को व्यकत करने के लिये एक अनौखी अदा का मिलना माना जाता है
मंगल के साथ मिलकर एक झगडालू औरत के रूप मे सामने आता है बुध के साथ मिलकर अपनी ही कानूनी कार्यवाही करने का मालिक बन जाता है गुरु के साथ मिलकर एक आध्यात्मिक व्यक्ति को भौतिकता की ओर ले जाने वाला बनता है
शनि के साथ मिलने पर यह दुनिया की सभी वस्तुओ को देता है लेकिन मन के अन्दर शान्ति नही देता है,राहु के साथ मिलकर प्रेम का पुजारी बन जाता है केतु के साथ मिलकर भौतिक सुखो से दूरिया देता है।
शनि के साथ ग्रहों का आपसी सम्बन्ध
सूर्य शनि की युति वाले जातक के पास काम केवल सुबह शाम के ही होते है,वह पूरे दिन या पूरी रात कान नही कर सकता है इसलिये इस प्रकार के व्यक्ति के पास साधनो की कमी धन की कमी आदि मुख्य रूप से मानी जाती है,
शनि चन्द्र की युति मे मन का भटकाव रुक जाता है मन रूपी चन्द्रमा जो पानी जैसा है शनि की ठंडक और अन्धेरी शक्ति से फ़्रीज होकर रह जाता है शनि चन्द्र की युति वाला जातक कभी भी अपने अनुसार काम नही कर पाता है उसे हमेशा दूसरो का ही सहारा लेना पडता है।
शनि मंगल की युति मे काम या तो खूनी हो जाते है या मिट्टी को पकाने जैसे माने जाते है शनि अगर लोहा है तो मंगल उसे गर्म करने वाले काम माने जाते है।
इसी प्रकार से शनि के साथ बुध के मिलने से जमीन की नाप तौल या जमीन के अन्दर पैदा होने वाली फ़सले या वनस्पतियों के कार्य का रूप मान लिया जाता है,
शनु गुरु की युति मे एक नीच जाति का व्यक्ति भी अपनी ध्यान समाधि की अवस्था योगी का रूप धारण कर लेता है
शनि शुक्र की युति मे काला आदमी भी एक खूबसूरत औरत का पति बन जाता है एक मजदूर भी एक शहंशाही औकात का आदमी बन जाता है,
शनि राहु की युति मे जो भी काम होते है वह दो नम्बर के कामो के रूप मे जाने जाते है अगर शनि राहु की युति त्रिक भाव मे है तो जातक को जेल जाने से कारण जरूर पैदा होते है।
शनि केतु की युति मे जातक व्यापार और दुकान आदि के फ़ैलाने के काम करता है वह एक वकील की हैसियत से अपने कामो करता है
केतु के साथ अन्य ग्रहो के सम्बन्ध
सूर्य केतु राजनेता होता है चन्द्र केतु जनता का आदमी होता है मंगल केतु इंजीनियर होता है
बुध केतु कमन्यूकेशन का काम करने वाला होता है लेकिन खून से सम्बन्ध नही रखता है,इसी लिये कभी कभी दत्तक पुत्र की हैसियत से भी देखा जाता है
गुरु केतु को सिद्ध महात्मा भी कहते है और डंडी धारी साधु की उपाधि भी दी जाती है
शुक्र केतु को वाहन चालक जैसी उपाधि दी जाती है या वाहन के अन्दर पैसा लेने वाले कंडक्टर की होती है वह कमाना तो खूब जानता है लेकिन उसे गिना चुना ही मिलता है
शनि केतु को धागे का काम करने वाले दर्जी की उपाधि दी जाती है या एक कम्पनी की कई शाखायें खोलने वाले चेयरमेन की उपाधि भी दी जाती है अक्सर यह मामला ठेकेदारी मे भी देखा जाता है।
ज्योतिष और यौन सुख : Astrologer Kaushal
ज्योतिष विज्ञान के अनुसार शुक्र ग्रह की अनुकूलता से व्यक्ति भौतिक सुख पाता है। जिनमें घर, वाहन सुख आदि समिल्लित है। इसके अलावा शुक्र यौन अंगों और वीर्य का कारक भी माना जाता है। शुक्र सुख, उपभोग, विलास और सुंदरता के प्रति आकर्षण पैदा करता है। विवाह के बाद कुछ समय तो गृहस्थी की गाड़ी बढिय़ा चलती रहती है किंतु कुछ समय के बाद ही पति पत्नि में कलह झगडे, अनबन शुरू होकर जीवन नारकीय बन जाता है. इन स्थितियों के लिये भी जन्मकुंडली में मौजूद कुछ योगायोग जिम्मेदार होते हैं. अत: विवाह तय करने के पहले कुंडली मिलान के समय ही इन योगायोगों पर अवश्य ही दॄष्टिपात कर लेना चाहिये.
सातवें भाव में खुद सप्तमेश स्वग्रही हो एवं उसके साथ किसी पाप ग्रह की युति अथवा दॄष्टि भी नही होनी चाहिये. लेकिन स्वग्रही सप्तमेश पर शनि मंगल या राहु में से किन्ही भी दो ग्रहों की संपूर्ण दॄष्टि संबंध या युति है तो इस स्थिति में दापंत्य सुख अति अल्प हो जायेगा. इस स्थिति के कारण सप्तम भाव एवम सप्तमेश दोनों ही पाप प्रभाव में आकर कमजोर हो जायेंगे.
यदि शुक्र के साथ लग्नेश, चतुर्थेश, नवमेश, दशमेश अथवा पंचमेश की युति हो तो दांपत्य सुख यानि यौन सुख में वॄद्धि होती है वहीं षष्ठेश, अष्टमेश उआ द्वादशेश के साथ संबंध होने पर दांपत्य सुख में न्यूनता आती है.
यदि सप्तम अधिपति पर शुभ ग्रहों की दॄष्टि हो, सप्तमाधिपति से केंद्र में शुक्र संबंध बना रहा हो, चंद्र एवम शुक्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो दांपत्य जीवन अत्यंत सुखी और प्रेम पूर्ण होता है.
लग्नेश सप्तम भाव में विराजित हो और उस पर चतुर्थेश की शुभ दॄष्टि हो, एवम अन्य शुभ ग्रह भी सप्तम भाव में हों तो ऐसे जातक को अत्यंत सुंदर सुशील और गुणवान पत्नि मिलती है जिसके साथ उसका आजीवन सुंदर और सुखद दांपत्य जीवन व्यतीत होता है. (यह योग कन्या लग्न में घटित नही होगा)
सप्तमेश की केंद्र त्रिकोण में या एकादश भाव में स्थित हो तो ऐसे जोडों में परस्पर अत्यंत स्नेह रहता है. सप्तमेश एवम शुक्र दोनों उच्च राशि में, स्वराशि में हों और उन पर पाप प्रभाव ना हो तो दांपत्य जीवन अत्यंत सुखद होता है.
सप्तमेश बलवान होकर लग्नस्थ या सप्तमस्थ हो एवम शुक्र और चतुर्थेश भी साथ हों तो पति पत्नि अत्यंत प्रेम पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं.
पुरूष की कुंडली में स्त्री सुख का कारक शुक्र होता है उसी तरह स्त्री की कुंडली में पति सुख का कारक ग्रह वॄहस्पति होता है. स्त्री की कुंडली में बलवान सप्तमेश होकर वॄहस्पति सप्तम भाव को देख रहा हो तो ऐसी स्त्री को अत्यंत उत्तम पति सुख प्राप्त होता है.
जिस स्त्री के द्वितीय, सप्तम, द्वादश भावों के अधिपति केंद्र या त्रिकोण में होकर वॄहस्पति से देखे जाते हों, सप्तमेश से द्वितीय, षष्ठ और एकादश स्थानों में सौम्य ग्रह बैठे हों, ऐसी स्त्री अत्यंत सुखी और पुत्रवान होकर सुखोपभोग करने वाली होती है.
पुरूष का सप्तमेश जिस राशि में बैठा हो वही राशि स्त्री की हो तो पति पत्नि में बहुत गहरा प्रेम रहता है.
वर कन्या का एक ही गण हो तथा वर्ग मैत्री भी हो तो उनमें असीम प्रम होता है. दोनों की एक ही राशि हो या राशि स्वामियों में मित्रता हो तो भी जीवन में प्रेम बना रहता है.
अगर वर या कन्या के सप्तम भाव में मंगल और शुक्र बैठे हों उनमे कामवासना का आवेग ज्यादा होगा अत: ऐसे वर कन्या के लिये ऐसे ही ग्रह स्थिति वाले जीवन साथी का चुनाव करना चाहिये.
दांपत्य सुख का संबंध पति पत्नि दोनों से होता है. एक कुंडली में दंपत्य सुख हो और दूसरे की में नही हो तो उस अवस्था में भी दांपत्य सुख नही मिल पाता, अत: सगाई पूर्व माता पिता को निम्न स्थितियों पर ध्यान देते हुये किसी सुयोग्य और विद्वान ज्योतिषी से दोनों की जन्म कुंडलियों में स्वास्थ्य, आयु, चरित्र, स्वभाव, आर्थिक स्थिति, संतान पक्ष इत्यादि का समुचित अध्ययन करवा लेना चाहिये सिफर् गुण मिलान से कुछ नही होता.
वर वधु की आयु का अधिक अंतर भी नही होना चाहिये, दोनों का शारीरिक ढांचा यानि लंबाई उंचाई, मोटाई, सुंदरता में भी साम्य देख लेना चाहिये. अक्सर कई धनी माता पिता अपनी काली कलूटी कन्या का विवाह धन का लालच देकर किसी सुंदर और गौरवर्ण लड़के से कर देते हैं जो बाद में जाकर कलह का कारण बनता है.
कुल मिलाकर शिक्षा, खानदान, खान पान परंपरा इत्यादि की साम्यता देखकर ही रिश्ता करना चाहिए ।
Disappearance of Sri Ram from Earth
Disappearance of Sri Ram from Earth
Disappearance of Sri Ram from earth happened when he entered voluntarily into the Sarayu River. The story of the disappearance of Sri Ram is mentioned in many Vedic scriptures.
Bhagavan Sri Ram ruled for several years and performed numerous yajnas for the benefit of his people. His sons and the sons of his brothers were made kings in many part of the large empire that he ruled. During this period Sita Devi also disappeared from earth when she was taken back by Bhudevi (Mother Earth).
One day an old Saint came to Sri Ram and asked him for a private audience. The Saint said that no one should enter the room in which they were having the conversation. Sri Ram directed Lakshman to guard the door of the room and said that if anyone entered the room during the conversation he will be put to death.
The old saint was Kala Deva, or Time, and He appeared to remind Sri Ram that the objectives of Sri Ram’s appearance on earth were completed and it was time for him return to Vaikunta.
While this conversation was going on Sage Durvasa appeared outside the room and demanded that he wanted to have an audience with Sri Ram immediately. Lakshman tried to explain the situation but Sage Durvasa became angry and threatened to curse Lakshman if He doesn’t allow him inside. Lakshman now was left with two choice disappearance or curse.
Soon Lakshman realized that this particular situation was the play of time for Him to disappear from earth. He readily agreed to the play of Kala (Time). He then walked into the Sarayu River and took the form of Ananta Sesha. Lakshman is the form of Anantha Sesa.
Sri Ram who came to know about the disappearance of Lakshman decided that it was time to end His Avatar. He then handed over His responsibilities to his sons and bid pranam to all. He then walked deep into the Sarayu River and disappeared. Soon in the same spot Srihari Vishnu appeared resting on Ananta Sesha and blessed his devotees.

Disappearance of Sri Ram from Earth
Disappearance of Sri Ram from Earth
Disappearance of Sri Ram from earth happened when he entered voluntarily into the Sarayu River. The story of the disappearance of Sri Ram is mentioned in many Vedic scriptures.
Bhagavan Sri Ram ruled for several years and performed numerous yajnas for the benefit of his people. His sons and the sons of his brothers were made kings in many part of the large empire that he ruled. During this period Sita Devi also disappeared from earth when she was taken back by Bhudevi (Mother Earth).
One day an old Saint came to Sri Ram and asked him for a private audience. The Saint said that no one should enter the room in which they were having the conversation. Sri Ram directed Lakshman to guard the door of the room and said that if anyone entered the room during the conversation he will be put to death.
The old saint was Kala Deva, or Time, and He appeared to remind Sri Ram that the objectives of Sri Ram’s appearance on earth were completed and it was time for him return to Vaikunta.
While this conversation was going on Sage Durvasa appeared outside the room and demanded that he wanted to have an audience with Sri Ram immediately. Lakshman tried to explain the situation but Sage Durvasa became angry and threatened to curse Lakshman if He doesn’t allow him inside. Lakshman now was left with two choice disappearance or curse.
Soon Lakshman realized that this particular situation was the play of time for Him to disappear from earth. He readily agreed to the play of Kala (Time). He then walked into the Sarayu River and took the form of Ananta Sesha. Lakshman is the form of Anantha Sesa.
Sri Ram who came to know about the disappearance of Lakshman decided that it was time to end His Avatar. He then handed over His responsibilities to his sons and bid pranam to all. He then walked deep into the Sarayu River and disappeared. Soon in the same spot Srihari Vishnu appeared resting on Ananta Sesha and blessed his devotees.

क्यों नहीं करनी चाहिए इंद्रदेव की पूजा, भगवान श्रीकृष्ण के तर्कों में है इसका जवाब
भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से हर कोई वाकिफ है. अपने इन लीलाओं से उन्होंने देव, दानव और मनुष्य हर किसी को अचंभित किया है. ऐसी एक लीला उन्होंने मथुरा में दिखाई जब वह 15 साल के थे. दरअसल बचपन में जिस समुदाय में भगवान श्रीकृष्ण रहते थे वहां शुरू से ही हर साल बृजवासी इंद्रोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया करते थे. इसमें वह इंद्रदेव को भगवान मानकर पूजा करते थे. वैसे इंद्रदेव को बिजली, गर्जना और वर्षा का देवता माना गया है.
बृजवासी इस त्यौहार को मनाने के लिए कई तरह के अनुष्ठान करते थे. इस त्यौहार के दौरान एक बड़ा चढ़ावा अग्नि को समर्पित किया जाता था. अग्नि में हर तरह की चीजें चढ़ाई जाती थी जैसे बड़ी मात्रा में घी और दूध के अलावा तमाम अनाज और हर वह चीज, जो हमारी नजर में महत्वपूर्ण है.
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श्रीकृष्ण को जिम्मेदारी
जब श्रीकृष्ण 15 वर्ष के हुए तो उन्हें इंद्रोत्सव के आयोजन की जिम्मेदारी सौपी गई. इस आयोजन के लिए मुखिया बनने की जिम्मेदारी मिलना तक के समाज में एक बड़े सम्मान की बात थी. जिस व्यक्ति को यह जिम्मेदारी सौपी जाती थी उसे ‘यजमान’ कहा जाता था. लेकिन जब यह जिम्मेदारी गर्गाचार्य द्वारा श्रीकृष्ण को दी गए तो उन्होंने लेने से मना कर दिया.
“मैं यजमान नहीं बनना चाहता. मैं इस चढ़ावे के आयोजन में भाग नहीं लेना चाहता”. यह सुनकर गर्गाचार्य दंग रह गए, क्योंकि कृष्ण की जगह अगर कोई और होता, तो उसने इस मौके को हाथोंहाथ लिया होता. आखिरकार यह एक ऐसी जिम्मेदारी थी, जो किसी की भी सामाजिक हैसियत को एकाएक बढ़ा सकती थी. जो कोई भी उस आयोजन का नेतृत्व करता था, अपने आप ही वह उस समाज का मुखिया हो जाता था. खैर, गर्गाचार्य ने जब कृष्ण से इसका कारण पूछा तो कृष्ण ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि मैं इस काम के लिए सही व्यक्ति हूं. किसी और को यह जिम्मेदारी दी जाए तो अच्छा रहेगा”. इस पर गर्गाचार्य ने कहा, “नहीं, पिछले साल तुम्हारे बड़े भाई ने इसे किया था और अब तुम्हारे बारी है. अगर इस जिम्मेदारी को संभालने के लिए कोई सही व्यक्ति है, तो वह तुम हो. मुझे समझ नहीं आ रहा कि तुम इस जिम्मेदारी को लेने से मना क्यों कर रहे हो? आखिर तुम्हारे मन में क्या चल रहा है?” अंत में कृष्ण ने कहा, “मैं इस पूरे आयोजन को ही पसंद नहीं करता”.
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इस पर गर्गाचार्य ने कहा “तुम कहना क्या चाहते हो कि तुम इस आयोजन को पसंद नहीं करते. यह एक महान कार्य है जिसे हजारों सालों से निभाया जा रहा है. वेदों में भी इस आयोजन के महत्व का वर्णन किया गया है. तुम कैसे कह सकते हो कि तुम्हें यह आयोजन पसंद नहीं है”? इसपर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा “ऐसे पूजा या अनुष्ठान का क्या मतलब जो किसी के डर की वजह से आयोजित की जा रहे हो. मैं ऐसे किसी भी कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेना चाहता जिसे लोग किसी देवता के डर से आयोजित करते हैं”. तब लोग इंद्र से बहुत डरते थे उन्हें लगता है कि अगर उन्होंने ऐसे चढ़ावों का आयोजन न किया तो इंद्र उन्हें दंड देंगे.
इंद्रोत्सव की जगह गोपोत्सव
श्रीकृष्ण ने कहा, “हमे इंद्रोत्सव की जगह गोपोत्सव का आयोजन करना चाहिए”. गोपोत्सव का मतलब है, ग्वालों का उत्सव. “उनका मानना था कि हमारे आस-पास जो भी चीजे हैं उनसे हम बहुत ही प्रेम करते है जैसे गायें, पेड़, गोवर्धन पर्वत (तब गोवर्धन पर्वत साल भर हरा घास, फल मूल एवं शीतलजल को प्रवाहित करता था). श्रीकृष्ण के शब्दों में “ये सब हमारी जिंदगी हैं. यही लोग, यही पेड़, यही जानवर, यही पर्वत तो हैं जो हमेशा हमारे साथ हैं और हमारा पालन पोषण करते हैं. इन्हीं की वजह से हमारी जिंदगी है. ऐसे में हम किसी ऐसे देवता की पूजा क्यों करें, जो हमें भय दिखाता है. मुझे किसी देवता का डर नहीं है. अगर हमें चढ़ावे और पूजा का आयोजन करना ही है तो अब हम गोपोत्सव मनाएंगे, इंद्रोत्सव नहीं”.
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श्रीकृष्ण के बातो से गर्गाचार्य सहित कुछ लोग प्रभावित हुए लेकिन वहीं कुछ लोगों ने उनकी बातों का विरोध किया. उनका मानना था कि जो पूजा हजरों सालों से की जा रही है उसे अचानक कैसे खत्म किया जा सकता है, अगर ऐसा किया गया तो इंद्रदेव को क्रोध आ जाएगा और सबकुछ नष्ट हो जाएगा. लेकिन भगवान कृष्ण अपनी बात पर डटे रहे. उन्होंने साफ कह दिया कि अगर मुझे ‘यजमान’ बनाना है तो आज से इंद्रोत्सव नहीं, गोपोत्सव मनेगा.
इंद्र का क्रोध
कुछ लोगों को छोड़कर लगभग सभी ने कृष्ण की बातों का समर्थन किया और धूमधाम से गोवर्धन पूजा शुरू हो गई. पूजा में भोग लगाए गए. जब इंद्र को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने प्रलय कालीन बादलों को आदेश दिया कि ऐसी वर्षा करो कि ब्रजवासी डूब जाएं और मेरे पास क्षमा मांगने पर विवश हो जाएं. जब वर्षा नहीं थमी और ब्रजवासी कराहने लगे तो भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर धारण कर उसके नीचे ब्रजवासियों को बुला लिया. गोवर्धन पर्वत के नीचे आने पर ब्रजवासियों पर वर्षा और गर्जन का कोई असर नहीं हो रहा था. इससे इंद्र का अभिमान चूर हो गया.
स्त्रियों से दूर रहने वाले हनुमान को इस मंदिर में स्त्री रूप में पूजा जाता है, जानिए कहां है यह मंदिर और क्या है इसका रहस्य
पवन पुत्र व राम भक्त हनुमान को युगों से लोग पूजते आ रहे हैं. उन्हें बाल ब्रह्मचारी भी कहा जाता है जिस कारण स्त्रियों को उनकी किसी भी मूर्ति को छूने से मना किया गया है. वे देवता रूप में विभिन्न मंदिरों में पूजे जाते हैं लेकिन एक ऐसा मंदिर भी है जहां पर हनुमान को पुरुष नहीं बल्कि स्त्री के रूप में पूजा जाता है.
अद्भुत है यह मंदिर जहां हनुमान को स्त्री स्वरूप में देखा जाता है. छत्तीसगड़ के बिलासपुर में प्रसिद्ध यह मंदिर एक प्रचीन मंदिर है जहां पर हनुमान के स्त्री के रूप के पीछे छिपी दस हजार साल पुरानी एक कथा प्रचलित है.
कहां है ये मंदिर
यह मंदिर छत्तीसगड़ के बिलासपुर जिले से 25 कि. मी. दूर रतनपुर में है. कहा जाता है कि यह एक महत्वपूर्ण जगह है जो काफी महान है. इतना ही नहीं, इस नगरी को महामाया नगरी भी कहा जाता है क्योंकि यहां पर मां महामाया देवी मंदिर और गिरजाबंध में स्थित हनुमानजी का मंदिर है.
इस छोटी सी नगरी में स्थित हनुमान जी का यह विश्व में इकलौता ऐसा मंदिर है जहां हनुमान का नारी रूप में पूजन किया जाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मंदिर में आने वाला हर एक भक्त हजारों मन्नतें लेकर आता है और इस स्थान से वो कभी भी निराश होकर नहीं लौटता. लोगों की श्रद्धा व भावना से भरपूर इस मंदिर में हर समय लोगों का आना-जाना लगा रहता है.
लेकिन क्यों होती है स्त्री रूप में पूजा?
कहा जाता है कि हनुमान का स्त्री रूप में यहां पूजा जाना एक कथा का परिणाम है जो हजारों वर्षों पुरानी है. तकरीबन दस हजार वर्ष पुरानी बात है जब एक दिन रतनपुर के राजा पृथ्वी देवजू जिन्हें एक शारीरिक कोढ़ था वे इस रोग के कारण काफी उदास हो गए. इस रोग की वजह से वे ना तो कोई काम कर सकते थे और ना ही जिंदगी का आनंद उठा सकते थे. उदासी में बैठे-बैठे राजा को नींद आ गई.
नींद के दौरान उन्होंने एक सपना देखा जिसमें उन्हें एक ऐसे रूप के दर्शन हुए जो वास्तव में है ही नहीं. उन्होंने संकटमोचन हनुमान को देखा लेकिन स्त्री रूप में. वे लंगूर की भांति दिख रहे थे लेकिन पूंछ नहीं थी, उनके एक हाथ में लड्डू से भरी थाली थी और दूसरे हाथ में राम मुद्रा. कानों में भव्य कुंडल व माथे पर सुंदर मुकुट माला भी थी. उनका यह दृश्य देख राजा अचंभित हो उठा.
इसीलिए बना ऐसा मंदिर
सपने में हनुमान के स्त्री रूप ने राजा से एक बात कही. हनुमान ने राजा से कहा कि “हे राजन् मैं तेरी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूं और मैं तुम्हारा कष्ट अवश्य दूर करूंगा. तू एक मंदिर का निर्माण करवा और उसमें मुझे बैठा. मंदिर के पीछे एक तालाब भी खुदवा जिसमें मेरी विधिवत पूजा करते हुए तू स्नान करना. इससे तुम्हारे शरीर का यह कोढ़ रोग आवश्य दूर हो जाएगा.”
नींद खुलते आते ही राजा ने गिरजाबन्ध में ठीक वैसा ही मंदिर बनवाना शुरु कर दिया जैसा कि हनुमान ने उसके सपने में बताया था लेकिन मंदिर पूरा होते ही राजा को उसमें रखने के लिए मूर्ति कहां से लाई जाए यह चिंता सताने लगी. इसका उपाय भी संकटमोचन हनुमान ने दोबारा से राजा के स्वप्न में आकर दिया.
एक रात हनुमान राजा के सपने में फिर से आए और कहा कि “मां महामाया के कुण्ड में मेरी मूर्ति रखी हुई है. हे राजन् तू उसी मूर्ति को यहां लाकर मंदिर में स्थापित करवा.” अगले दिन ही राजा अपने परिजनों और पुरोहितों के साथ देवी महामाया के मंदिर में गए लेकिन बहुत ढूंढने पर भी उन्हें मूर्ति नहीं मिली. राजा काफी बेचेन हो गया.
हताश राजा इसी चिंता में विश्राम करने के लिए अपने कक्ष में आया और सो गया. नींद आते ही हनुमान फिर से राजा के सपने में आए और बोले “राजन तू हताश न हो मैं वहीं हूं तूने ठीक से तलाश नहीं किया. उस मंदिर में जहां लोग स्नान करते हैं उसी में मेरी मूर्ति है.”
जब राजा ने वह मूर्ति खोजे तो यह वही मूर्ति थी जिसे राजा ने अपने स्वप्न में देखा था. मूर्ति को पाते ही राजा प्रसन्न हो उठा और जल्द से जल्द उसकी स्थापना मंदिर में करवाई. हनुमान के निर्देश अनुसार इस मंदिर के पीछे तालाब भी खुदवाया गया. प्रसन्नता भरे राजा ने हनुमान से वरदान भी मांगा था कि जो भी यहां दर्शन को आए उसकी हर इच्छा अवश्य पूरी हो.
एक अद्भुत तेज है इस मूर्ति में
राजा को मिली इस मूर्ति में अनेक विशेषताएं हैं. इसका मुख दक्षिण की ओर है और साथ ही मूर्ति में पाताल लोक़ का चित्रण भी है. मूर्ति में हनुमान को रावण के पुत्र अहिरावण का संहार करते हुए दर्शाया गया है. यहां हनुमान के बाएं पैर के नीचे अहिरावण और दाएं पैर के नीचे कसाई दबा हुआ है. हनुमान के कंधों पर भगवान राम और लक्ष्मण की झलक है. उनके एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में लड्डू से भरी थाली है. कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 84 किलोमीटर दूर रमई पाट में भी एक ऐसी ही मूर्ति स्थापित है.
भारत के 10 रहस्यमय मंदिर..
भारत के 10 रहस्यमय मंदिर..

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प्राचीनकाल में जब मंदिर बनाए जाते थे तो वास्तु और खगोल विज्ञान का ध्यान रखा जाता था। इसके अलावा राजा-महाराजा अपना खजाना छुपाकर इसके ऊपर मंदिर बना देते थे और खजाने तक पहुंचने के लिए अलग से रास्ते बनाते थे।
इसके अलावा भारत में कुछ ऐसे मंदिर भी हैं जिनका संबंध न तो वास्तु से है, न खगोल विज्ञान से और न ही खजाने से इन मंदिरों का रहस्य आज तक कोई जान पाया है। ऐसे ही 10 मंदिरों के बारे में हमने आपके लिए जानकारी जुटाई है।
भारत में वैसे तो हजारों रहस्यमय मंदिर हैं लेकिन यहां प्रस्तुत हैं कुछ खास 10 प्रसिद्ध रहस्यमय मंदिरों की संक्षिप्त जानकारी जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे।

कैलाश मानसरोवर : यहां साक्षात भगवान शिव विराजमान हैं। यह धरती का केंद्र है। दुनिया के सबसे ऊंचे स्थान पर स्थित कैलाश मानसरोवर के पास ही कैलाश पर्वत और आगे मेरू पर्वत स्थित है। यह संपूर्ण क्षेत्र शिव और देवलोक कहा गया है। रहस्य और चमत्कार से परिपूर्ण इस स्थान की महिमा वेद और पुराणों में भरी पड़ी है।

कन्याकुमारी मंदिर : समुद्री तट पर ही कुमारी देवी का मंदिर है, जहां देवी पार्वती के कन्या रूप को पूजा जाता है। मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को कमर से ऊपर के वस्त्र उतारने पड़ते हैं। प्रचलित कथा के अनुसार देवी का विवाह संपन्न न हो पाने के कारण बच गए दाल-चावल बाद में कंकर बन गए। आश्चर्यजनक रूप से कन्याकुमारी के समुद्र तट की रेत में दाल और चावल के आकार और रंग-रूप के कंकर बड़ी मात्रा में देखे जा सकते हैं।
सूर्योदय और सूर्यास्त : कन्याकुमारी अपने सूर्योदय के दृश्य के लिए काफी प्रसिद्ध है। सुबह हर होटल की छत पर पर्यटकों की भारी भीड़ सूरज की अगवानी के लिए जमा हो जाती है। शाम को अरब सागर में डूबते सूरज को देखना भी यादगार होता है। उत्तर की ओर करीब 2-3 किलोमीटर दूर एक सनसेट प्वॉइंट भी है।

करनी माता का मंदिर : करनी माता का यह मंदिर जो बीकानेर (राजस्थान) में स्थित है, बहुत ही अनोखा मंदिर है। इस मंदिर में रहते हैं लगभग 20 हजार काले चूहे। लाखों की संख्या में पर्यटक और श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामना पूरी करने आते हैं। करणी देवी, जिन्हें दुर्गा का अवतार माना जाता है, के मंदिर को ‘चूहों वाला मंदिर’ भी कहा जाता है।
यहां चूहों को काबा कहते हैं और इन्हें बाकायदा भोजन कराया जाता है और इनकी सुरक्षा की जाती है। यहां इतने चूहे हैं कि आपको पांव घिसटकर चलना पड़ेगा। अगर एक चूहा भी आपके पैरों के नीचे आ गया तो अपशकुन माना जाता है। कहा जाता है कि एक चूहा भी आपके पैर के ऊपर से होकर गुजर गया तो आप पर देवी की कृपा हो गई समझो और यदि आपने सफेद चूहा देख लिया तो आपकी मनोकामना पूर्ण हुई समझो।

शनि शिंगणापुर : देश में सूर्यपुत्र शनिदेव के कई मंदिर हैं। उन्हीं में से एक प्रमुख है महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित शिंगणापुर का शनि मंदिर। विश्वप्रसिद्ध इस शनि मंदिर की विशेषता यह है कि यहां स्थित शनिदेव की पाषाण प्रतिमा बगैर किसी छत्र या गुंबद के खुले आसमान के नीचे एक संगमरमर के चबूतरे पर विराजित है।
यहां शिगणापुर शहर में भगवान शनि महाराज का खौफ इतना है कि शहर के अधिकांश घरों में खिड़की, दरवाजे और तिजोरी नहीं हैं। दरवाजों की जगह यदि लगे हैं तो केवल पर्दे। ऐसा इसलिए, क्योंकि यहां चोरी नहीं होती। कहा जाता है कि जो भी चोरी करता है उसे शनि महाराज सजा स्वयं दे देते हैं। इसके कई प्रत्यक्ष उदाहरण देखे गए हैं। शनि के प्रकोप से मुक्ति के लिए यहां पर विश्वभर से प्रति शनिवार लाखों लोग आते हैं।

सोमनाथ मंदिर : सोमनाथ मंदिर एक महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिर है जिसकी गिनती 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में होती है। प्राचीनकाल में इसका शिवलिंग हवा में झूलता था, लेकिन आक्रमणकारियों ने इसे तोड़ दिया। माना जाता है कि 24 शिवलिंगों की स्थापना की गई थी उसमें सोमनाथ का शिवलिंग बीचोबीच था। इन शिवलिंगों में मक्का स्थित काबा का शिवलिंग भी शामिल है। इनमें से कुछ शिवलिंग आकाश में स्थित कर्क रेखा के नीचे आते हैं।
गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था। इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। इस स्थान को सबसे रहस्यमय माना जाता है। यदुवंशियों के लिए यह प्रमुख स्थान था। इस मंदिर को अब तक 17 बार नष्ट किया गया है और हर बार इसका पुनर्निर्माण किया गया।
यहीं भगवान श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे, तब ही शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिह्न को हिरण की आंख जानकर धोखे में तीर मारा था, तब ही कृष्ण ने देह त्यागकर यहीं से वैकुंठ गमन किया। इस स्थान पर बड़ा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है।

कामाख्या मंदिर : कामाख्या मंदिर को तांत्रिकों का गढ़ कहा गया है। माता के 51 शक्तिपीठों में से एक इस पीठ को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। यह असम के गुवाहाटी में स्थित है। यहां त्रिपुरासुंदरी, मतांगी और कमला की प्रतिमा मुख्य रूप से स्थापित है। दूसरी ओर 7 अन्य रूपों की प्रतिमा अलग-अलग मंदिरों में स्थापित की गई है, जो मुख्य मंदिर को घेरे हुए है।
पौराणिक मान्यता है कि साल में एक बार अम्बूवाची पर्व के दौरान मां भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती की गर्भगृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर 3 दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है। इस मंदिर के चमत्कार और रहस्यों के बारे में किताबें भरी पड़ी हैं। हजारों ऐसे किस्से हैं जिससे इस मंदिर के चमत्कारिक और रहस्यमय होने का पता चलता है।

अजंता-एलोरा के मंदिर : अजंता-एलोरा की गुफाएं महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के समीप स्थित हैं। ये गुफाएं बड़ी-बड़ी चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं। 29 गुफाएं अजंता में तथा 34 गुफाएं एलोरा में हैं। इन गुफाओं को वर्ल्ड हेरिटेज के रूप में संरक्षित किया गया है। इन्हें राष्ट्रकूट वंश के शासकों द्वारा बनवाया गया था। इन गुफाओं के रहस्य पर आज भी शोध किया जा रहा है। यहां ऋषि-मुनि और भुक्षि गहन तपस्या और ध्यान करते थे।
सह्याद्रि की पहाड़ियों पर स्थित इन 30 गुफाओं में लगभग 5 प्रार्थना भवन और 25 बौद्ध मठ हैं। घोड़े की नाल के आकार में निर्मित ये गुफाएं अत्यंत ही प्राचीन व ऐतिहासिक महत्व की हैं। इनमें 200 ईसा पूर्व से 650 ईसा पश्चात तक के बौद्ध धर्म का चित्रण किया गया है। इन गुफाओं में हिन्दू, जैन और बौद्ध 3 धर्मों के प्रति दर्शाई गई आस्था के त्रिवेणी संगम का प्रभाव देखने को मिलता है। दक्षिण की ओर 12 गुफाएं बौद्ध धर्म (महायान संप्रदाय पर आधारित), मध्य की 17 गुफाएं हिन्दू धर्म और उत्तर की 5 गुफाएं जैन धर्म पर आधारित हैं।

खजुराहो का मंदिर : आखिर क्या कारण थे कि उस काल के राजा ने सेक्स को समर्पित मंदिरों की एक पूरी श्रृंखला बनवाई? यह रहस्य आज भी बरकरार है। खजुराहो वैसे तो भारत के मध्यप्रदेश प्रांत के छतरपुर जिले में स्थित एक छोटा-सा कस्बा है लेकिन फिर भी भारत में ताजमहल के बाद सबसे ज्यादा देखे और घूमे जाने वाले पर्यटन स्थलों में अगर कोई दूसरा नाम आता है तो वह है खजुराहो। खजुराहो भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की एक नायाब मिसाल है।
चंदेल शासकों ने इन मंदिरों का निर्माण सन् 900 से 1130 ईसवीं के बीच करवाया था। इतिहास में इन मंदिरों का सबसे पहला जो उल्लेख मिलता है, वह अबू रिहान अल बरुनी (1022 ईसवीं) तथा अरब मुसाफिर इब्न बतूता का है। कला पारखी चंदेल राजाओं ने करीब 84 बेजोड़ व लाजवाब मंदिरों का निर्माण करवाया था, लेकिन उनमें से अभी तक सिर्फ 22 मंदिरों की ही खोज हो पाई है। ये मंदिर शैव, वैष्णव तथा जैन संप्रदायों से संबंधित हैं

उज्जैन का काल भैरव मंदिर : हालांकि इस मंदिर के बारे में सभी जानते हैं कि यहां की काल भैरव की मूर्ति मदिरापान करती है इसीलिए यहां मंदिर में प्रसाद की जगह शराब चढ़ाई जाती है। यही शराब यहां प्रसाद के रूप में भी बांटी जाती है। कहा जाता है कि काल भैरव नाथ इस शहर के रक्षक हैं। इस मंदिर के बाहर साल के 12 महीने और 24 घंटे शराब उपलब्ध रहती है।

ज्वाला मंदिर : ज्वालादेवी का मंदिर हिमाचल के कांगड़ा घाटी के दक्षिण में 30 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मां सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां माता की जीभ गिरी थी। हजारों वर्षों से यहां स्थित देवी के मुख से अग्नि निकल रही है। इस मंदिर की खोज पांडवों ने की थी।
इस जगह का एक अन्य आकर्षण ताम्बे का पाइप भी है जिसमें से प्राकृतिक गैस का प्रवाह होता है। इस मंदिर में अलग अग्नि की अलग-अलग 9 लपटें हैं, जो अलग-अलग देवियों को समर्पित हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार यह मृत ज्वालामुखी की अग्नि हो सकती है।
हजारों साल पुराने मां ज्वालादेवी के मंदिर में जो 9 ज्वालाएं प्रज्वलित हैं, वे 9 देवियों महाकाली, महालक्ष्मी, सरस्वती, अन्नपूर्णा, चंडी, विन्ध्यवासिनी, हिंगलाज भवानी, अम्बिका और अंजना देवी की ही स्वरूप हैं। कहते हैं कि सतयुग में महाकाली के परम भक्त राजा भूमिचंद ने स्वप्न से प्रेरित होकर यह भव्य मंदिर बनवाया था। जो भी सच्चे मन से इस रहस्यमयी मंदिर के दर्शन के लिए आया है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।