Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

तथाकथित महात्मा के इस देश पर उपकार: तुष्टीकरण की शुरुआत


तथाकथित महात्मा के इस देश पर उपकार: तुष्टीकरण की शुरुआत

5 मार्च, 1931 को इर्विन के साथ अपने समझौते के क्षण से ही गांधी जी मुस्लिम प्रश्न का हल खोजने में जुट गये थे। उन दिनों बनारस, कानपुर, मिर्जापुर आदि अनेक नगरों में भयानक हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए। कानपुर के मुसलमानों ने भगत सिंह की फांसी के विरोध में प्रदर्शन में शामिल होने से मना कर दिया, जिससे दंगा भड़क उठा। हिन्दू मुस्लिम एकता के बड़े प्रचारक और कांग्रेस के अध्यक्ष गणेश शंकर विद्यार्थी की एक मुस्लिम मुहल्ले में हत्या कर दी गयी। इस प्रक्षोभक वातावरण में गांधी जी की प्रेरणा से कराची के कांग्रेस अधिवेशन के अंत में 1 अप्रैल को कराची में ही जमीयत उल उलेमा का अधिवेशन रखा गया, जिसमें गांधी जी ने कानपुर के दंगों के लिए हिन्दुओं को दोषी ठहराया, उसके लिए शर्मिंदगी प्रगट की, उनकी ओर से मुसलमानों से क्षमायाचना की, उलेमा से मुस्लिम समस्या को हल करने की प्रार्थना की गई। महादेव देसाई ने अपनी डायरी के 12वें खंड में गांधी जी के उस भाषण को विस्तार से दिया है। गांधी जी ने कहा, ‘इस बारे में मैं उलेमा की कदमबोसी (चरण चूमकर) करके उनकी मदद चाहता हूं। अगर हम इसमें कामयाब नहीं हुए तो गोलमेज सम्मेलन में जाना लगभग बेकार-सा होगा। मैं नहीं चाहता कि यह हुकूमत पंच बनकर हमारी आपसी लड़ाई का फैसला करे। उलेमा से मैं नम्रता से कहूंगा कि वे इस बारे में बहुत कुछ मदद कर सकते हैं। कांग्रेस और हिन्दू की हैसियत से मैं कहता हूं कि मुसलमान जो चाहें, मैं देने को तैयार हूं। मैं बनियापन नहीं करना चाहता हूं कि आप जिस चीज की ख्वाहिश करते हों, उसे एक कोरे कागज पर लिख दीजिए और मैं उसे कबूल कर लूंगा। जवाहर लाल ने भी जेल से यही बात कही थी।

वाह रे इंसाफ, वाह रे तुष्टीकरण, गलत को गलत न कहना कायरता नहीं तो क्या है? निरपराध को दोषी बताना स्वयम में एक अपराध नहीं तो क्या है? … वाह रे गांधीत्व, वाह रे महात्म्य, वाह रे देश भक्त।

तथाकथित महात्मा के इस देश पर उपकार: तुष्टीकरण की शुरुआत

5 मार्च, 1931 को इर्विन के साथ अपने समझौते के क्षण से ही गांधी जी मुस्लिम प्रश्न का हल खोजने में जुट गये थे। उन दिनों बनारस, कानपुर, मिर्जापुर आदि अनेक नगरों में भयानक हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए। कानपुर के मुसलमानों ने भगत सिंह की फांसी के विरोध में प्रदर्शन में शामिल होने से मना कर दिया, जिससे दंगा भड़क उठा। हिन्दू मुस्लिम एकता के बड़े प्रचारक और कांग्रेस के अध्यक्ष गणेश शंकर विद्यार्थी की एक मुस्लिम मुहल्ले में हत्या कर दी गयी। इस प्रक्षोभक वातावरण में गांधी जी की प्रेरणा से कराची के कांग्रेस अधिवेशन के अंत में 1 अप्रैल को कराची में ही जमीयत उल उलेमा का अधिवेशन रखा गया, जिसमें गांधी जी ने कानपुर के दंगों के लिए हिन्दुओं को दोषी ठहराया, उसके लिए शर्मिंदगी प्रगट की, उनकी ओर से मुसलमानों से क्षमायाचना की, उलेमा से मुस्लिम समस्या को हल करने की प्रार्थना की गई। महादेव देसाई ने अपनी डायरी के 12वें खंड में गांधी जी के उस भाषण को विस्तार से दिया है। गांधी जी ने कहा, 'इस बारे में मैं उलेमा की कदमबोसी (चरण चूमकर) करके उनकी मदद चाहता हूं। अगर हम इसमें कामयाब नहीं हुए तो गोलमेज सम्मेलन में जाना लगभग बेकार-सा होगा। मैं नहीं चाहता कि यह हुकूमत पंच बनकर हमारी आपसी लड़ाई का फैसला करे। उलेमा से मैं नम्रता से कहूंगा कि वे इस बारे में बहुत कुछ मदद कर सकते हैं। कांग्रेस और हिन्दू की हैसियत से मैं कहता हूं कि मुसलमान जो चाहें, मैं देने को तैयार हूं। मैं बनियापन नहीं करना चाहता हूं कि आप जिस चीज की ख्वाहिश करते हों, उसे एक कोरे कागज पर लिख दीजिए और मैं उसे कबूल कर लूंगा। जवाहर लाल ने भी जेल से यही बात कही थी।

वाह रे इंसाफ, वाह रे तुष्टीकरण, गलत को गलत न कहना कायरता नहीं तो क्या है? निरपराध को दोषी बताना स्वयम में एक अपराध नहीं तो क्या है? ... वाह रे गांधीत्व, वाह रे महात्म्य, वाह रे देश भक्त।
Posted in Media

नेताओं के भ्रष्टाचार से बड़े भ्रष्टाचार के अड्डे ये मीडिया चैनल हैं ..


Aditi Gupta
नेताओं के भ्रष्टाचार से बड़े भ्रष्टाचार के अड्डे ये मीडिया चैनल हैं ..

कुछ नमूने :
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1. पिछले दिनों फेस बुक से पता पड़ा की IBN-7 के राजदीप सरदेसाई ने जनपथ, दिल्ली में 50 करोड़ का बंगला खरीदा है।
राज दीप सरदेसाई की उम्र 48 साल है और अगर 50 करोड़ का बंगला खरीदा है तो और कितनी संपत्ति होगी उसके पास, इसका अंदाजा ही लगाया जा सकता है।
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2. दीपक चौरसिया को एक व्यक्ति ने चैनल पर ही पूछ लिया कि 50,000 रुपये की पगार पे
काम करने वाला दीपक चौरसिया 500 करोड़ का मालिक कैसे बन गया? तो दीपक चौरसिया सकपका गया, कोई जवाब नही दिया और बहस का मुद्दा ही बदल दिया।
दीपक चौरसिया की उम्र केवल 45 वर्ष है, इतनी सी उम्र में पत्रकार की नौकरी कर कोई इतना पैसा जमा कर सकता है क्या …?
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3. ‘श’ को ‘स’ बोलने वाला राजीव शुक्ला भी आपको याद होगा। कुछ अरसा ही बीता है जब ये ज़नाब नेताओं के interview लेने वाले एक free lancer पत्रकार थे। परन्तु आज इन श्रीमान जी की पत्नी एक News 24 Channel की मालिक हैं। जुगाड़ देखिये की साहब बिना कोई जनसेवा किये ही राज्यसभा सांसद हैं, कोंग्रेस शासन में केद्रीय मंत्री भी बन गए और BCCI के दबंग सदस्य हैं। सिवाय पैसे और राजनीति जुगाड़बाज़ी के इनकी न कोई following है ओर न कोई काबिलियत। iski patni anuradha prasad BJP neta Ravi Shankar Prasad ki real sister hai
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4. साजिया इल्मी ने अपनी संपत्ति चुनाव आयोग के सामने 30 करोड़ घोषित की है।
इल्मी की उम्र केवल 43 वर्ष है और वो भी स्टार न्यूज़ में पत्रकार के रूप में काफी लम्बे अर्से तक जुडी रही है …
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ये तो चंद लोग हैं। इनके अलावा अनेको पत्रकार हैं जो वेतनभोगी थे और आज थोड़े से समय मैं ही अरबों के मालिक हैं।
ये बातें पुख्ता करती हैं कि सभी पत्रकारों की सम्पत्तियों की जांच होनी चाहिए …I
पता चलना चाहिए कि आखिर ये पत्रकारिता कैसा धंधा है जिसमे लोग छोटी सी उम्र में लोग इतने अमीर बन जाते हैं ??

Posted in हिन्दू पतन

क मुस्लिम भाई ने पूछा की एक पत्थर की मूर्ति की से क्या फायदा जो अपने ऊपर से एक मक्खी भी नहीं हटा सकती।


Shivaji Maharaj एक मुस्लिम भाई ने पूछा की एक पत्थर की मूर्ति की से क्या फायदा जो अपने ऊपर से एक मक्खी भी नहीं हटा सकती।
मेरे उससे कुछ सवाल
उन हज़ारों मस्जिदों का क्या फायदा जो की पत्थर से बनी हुई है ? क्या वह मस्जिद अपने ऊपर से गंदगी हटा सकती है ? क्या अल्ला
ह पत्थर से बनी हुई मस्जिद मैं रहता है ? क्या अल्लाह तुम्हारे घर से तुम्हारी दुआ नहीं सुन सकता ?
उन लाखों दरगाह का क्या जो की पत्थर से बनी हुई है ? क्यों करोड़ों मुसलमान पत्थर से बनी दरगाह पे जाते हैं ? क्या दरगाह अपने ऊपर से गंदगी हटा सकती है ?
उस पत्थर का क्या जो की काबा मैं रखा हुआ है जिसको छूने के लिए मुसलामन आतुर रहते हैं ? क्या वह बेजान पत्थर अपने ऊपर से गंदगी हटा सकता है ?
चलो हम कहते हैं की पत्थर से बनी हुई चीज़ों से आस्था मत रखो। तोड़ दो सारी मस्जिद और मदिर। तोड़ दो सारी मूर्ति, दरगाह और काबा मैं रखा हुआ पत्थर।बोलो तैयार हो ? हम तो गंगा नदी को पूज लेंगे। नदी सुख गयी तो पेड़ को पूज लेंगे। पेड़ नहीं तो सूरज को पूज लेंगे। हमारे लिए तो सब ईष्वर का रूप है। ऐसे ही रूप को हम पत्थर मैं देखते हैं।

जो तैयार है वह ये पोस्ट शेयर करें।

Posted in मूर्ति पूजा - Idolatry

मूर्ति पूजा


झोला छाप आर्यसमाजी मूर्ति पूजा का विरोध करते है..किन्तु खुद मूर्तियों की दुकाने, मूर्ति पूजा करने वाली पुस्तकों,मूर्तियों पर चढ़ने वाली माला फूल बेचकर अपना गुजारा करते है..देवताओ के फोटो, की दुकाने भी खोले है.कलेंडर में भी देवताओ के चित्र छापते है.मूर्ति पूजा करने जाने वाले यात्रियों को भी अपने टेम्पो टेक्सी से ढोते है...मूर्ति पूजा करने वालो के यहाँ नौकरी करके अपना गुजारा करते है..तीर्थ स्थानों में ये आर्यसमाजी मूर्ति पूजा करने आने वाले तीर्थ यात्रियों को भोजन ,चाय बेचकर अपना रोजी रोटी चलाते है..
मै एक एक आर्य समाजी का नाम, पूरा पता ,व्यवसाय देकर भंडाफोड़ करूँगा...आपके आसपास कोई आर्यसमाजी जो काम कर रहा है..कृपया उसका विवरण दीजिये हम प्रकाशित करेगे...
सावधान -इन आर्यसमाजियो से --ये आस्तीन के सांप है...ये रामजन्म भूमि .कृष्णजन्म भूमि,ज्ञानवापी में शंकर जी के मंदिर के विरोधी भी है..इनमे और इस्लाम में कोई अंतर नहीं है..ए आर्य जेहादी है..ये देवताओ के विरुद्ध अनर्गल बाते लिखते है...

झोला छाप आर्यसमाजी मूर्ति पूजा का विरोध करते है..किन्तु खुद मूर्तियों की दुकाने, मूर्ति पूजा करने वाली पुस्तकों,मूर्तियों पर चढ़ने वाली माला फूल बेचकर अपना गुजारा करते है..देवताओ के फोटो, की दुकाने भी खोले है.कलेंडर में भी देवताओ के चित्र छापते है.मूर्ति पूजा करने जाने वाले यात्रियों को भी अपने टेम्पो टेक्सी से ढोते है…मूर्ति पूजा करने वालो के यहाँ नौकरी करके अपना गुजारा करते है..तीर्थ स्थानों में ये आर्यसमाजी मूर्ति पूजा करने आने वाले तीर्थ यात्रियों को भोजन ,चाय बेचकर अपना रोजी रोटी चलाते है..
मै एक एक आर्य समाजी का नाम, पूरा पता ,व्यवसाय देकर भंडाफोड़ करूँगा…आपके आसपास कोई आर्यसमाजी जो काम कर रहा है..कृपया उसका विवरण दीजिये हम प्रकाशित करेगे…
सावधान -इन आर्यसमाजियो से –ये आस्तीन के सांप है…ये रामजन्म भूमि .कृष्णजन्म भूमि,ज्ञानवापी में शंकर जी के मंदिर के विरोधी भी है..इनमे और इस्लाम में कोई अंतर नहीं है..ए आर्य जेहादी है..ये देवताओ के विरुद्ध अनर्गल बाते लिखते है…

Posted in संस्कृत साहित्य

मलमास – हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक तीन वर्ष पर आने वाला अधिक मास


“मलमास” ,,, हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक तीन वर्ष पर आने वाला अधिक मास

अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से 12 महीने होते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि हिंदुओं
की मान्यता के अनुसार प्रत्येक तीन साल में एक साल 13 महीनों का होता है ?

आपको यकीन भले न हो, लेकिन यह सच है।
चलिए हम आपको बताते हैं इससे जुड़ी सच्चाई।
हर तीसरे साल जो तेरहवां महीना आता है, उस महीने को मलमास कहा जाता है।
अंग्रेजी में इस माह का जिक्र नहीं है,लेकिन हिंदुओं की मान्यता के अनुसार एक माह
मलमास का होता है।

पौराणिक भारतीय ग्रंथ वायु पुराण के अनुसार मगध सम्राट बसु द्वारा बिहार के राजगीर
में ‘वाजपेयी यज्ञ’ कराया गया था।
उस यज्ञ में राजा बसु के पितामह ब्रह्मा सहित सभी देवी-देवता राजगीर पधारे थे।
यज्ञ में पवित्र नदियों और तीर्थों के जल की जरूरत पड़ी थी।

कहा जाता है कि ब्रह्मा के आह्वान पर ही अग्निकुंड से विभिन्न तीर्थों का जल प्रकट
हुआ था।
उस यज्ञ का अग्निकुंड ही आज का ब्रह्मकुंड (राजगीर,बिहार) है।
उस यज्ञ में बड़ी संख्या में ऋषि-महर्षि भी आए थे।
पुरुषोत्तम मास, सर्वोत्तम मास में यहां अर्थ,धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति की महिमा है।

किंवदंती है कि भगवान ब्रह्मा से राजा हिरण्यकश्यपु ने वरदान मांगा था कि रात-दिन, सुबह-शाम और उनके द्वारा बनाए गए बारह मास में से किसी भी मास में उसकी मौत
न हो।
इस वरदान को देने के बाद जब ब्रह्मा को अपनी भूल का अहसास हुआ,तब वे भगवान
विष्णु के पास गए।
भगवान विष्णु ने विचारोपरांत हिरण्यकश्यपु के अंत के लिए तेरहवें महीने का निर्माण
किया।
धार्मिक मान्यता है कि इस अतिरिक्त एक महीने को मलमास या अधिक मास कहा
जाता है।

वायु पुराण एवं अग्नि पुराण के अनुसार इस अवधि में सभी देवी-देवता यहां आकर
वास करते हैं।
इसी अधिक मास में मगध की पौराणिक नगरी राजगीर में प्रत्येक ढाई से तीन साल पर
विराट मलमास मेला लगता है।
यहां लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों प्राची,सरस्वती और वैतरणी के अलावा गर्म जलकुंडों,
ब्रह्मकुंड,सप्तधारा,न्यासकुंड,मार्कंडेय कुंड,गंगा-यमुना कुंड,काशीधारा कुंड,अनंत
ऋषि कुंड,सूर्य-कुंड,राम-लक्ष्मण कुंड,सीता कुंड,गौरी कुंड और नानक कुंड में
स्नान कर भगवान लक्ष्मी नारायण मंदिर में आराधना करते हैं।

वर्ष भर इन कुंडों में निरंतर उष्ण जल गिरता रहता है,,इस जल का श्रोत अज्ञात है।

राजगीर में इस अवसर पर भव्य मेला भी लगता है।
राजगीर में मलमास के दौरान लाखों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में दिखती है गंगा-यमुना
संस्कृति की झलक।
मोक्ष की कामना और पितरों के उद्धार के लिए जुटते हैं श्रद्धालु।
इस माह विष्णु पुराण ज्ञान यज्ञ का आयोजन करके सत्‌,चित व आनंद की प्राप्ति की
जा सकती है।

कैसे पहुंचें राजगीर:-

सड़क परिवहन द्वारा राजगीर जाने के लिए पटना, गया, दिल्ली से बस सेवा उपलब्ध है।
इसमें बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम अपने पटना स्थित कार्यालय से नालंदा एवं
राजगीर के लिए टूरिस्ट बस एवं टैक्सी सेवा भी उपलब्ध करवाता है।
इसके जरिए आप आसानी से राज‍गीर पहुंच सकते हैं।

वहीं, दूसरी तरफ यहां पर वायु मार्ग से पहुंचने के लिए निकटतम हवाई-अड्डा पटना है,
जो राजगीर से करीब 107 किमी की दूरी पर है।
रेल मार्ग के लिए पटना एवं दिल्ली से सीधी रेल सेवा उपलब्ध है।
राजगीर जाने के लिए बख्तियारपुर से अलग रेल लाइन गई है,,जो नालंदा होते हुए राजगीर
में समाप्त हो जाती है।

"मलमास" ,,, हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक तीन वर्ष पर आने वाला अधिक मास अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से 12 महीने होते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि हिंदुओं की मान्यता के अनुसार प्रत्येक तीन साल में एक साल 13 महीनों का होता है ? आपको यकीन भले न हो, लेकिन यह सच है। चलिए हम आपको बताते हैं इससे जुड़ी सच्चाई। हर तीसरे साल जो तेरहवां महीना आता है, उस महीने को मलमास कहा जाता है। अंग्रेजी में इस माह का जिक्र नहीं है,लेकिन हिंदुओं की मान्यता के अनुसार एक माह मलमास का होता है। पौराणिक भारतीय ग्रंथ वायु पुराण के अनुसार मगध सम्राट बसु द्वारा बिहार के राजगीर में 'वाजपेयी यज्ञ' कराया गया था। उस यज्ञ में राजा बसु के पितामह ब्रह्मा सहित सभी देवी-देवता राजगीर पधारे थे। यज्ञ में पवित्र नदियों और तीर्थों के जल की जरूरत पड़ी थी। कहा जाता है कि ब्रह्मा के आह्वान पर ही अग्निकुंड से विभिन्न तीर्थों का जल प्रकट हुआ था। उस यज्ञ का अग्निकुंड ही आज का ब्रह्मकुंड (राजगीर,बिहार) है। उस यज्ञ में बड़ी संख्या में ऋषि-महर्षि भी आए थे। पुरुषोत्तम मास, सर्वोत्तम मास में यहां अर्थ,धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति की महिमा है। किंवदंती है कि भगवान ब्रह्मा से राजा हिरण्यकश्यपु ने वरदान मांगा था कि रात-दिन, सुबह-शाम और उनके द्वारा बनाए गए बारह मास में से किसी भी मास में उसकी मौत न हो। इस वरदान को देने के बाद जब ब्रह्मा को अपनी भूल का अहसास हुआ,तब वे भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने विचारोपरांत हिरण्यकश्यपु के अंत के लिए तेरहवें महीने का निर्माण किया। धार्मिक मान्यता है कि इस अतिरिक्त एक महीने को मलमास या अधिक मास कहा जाता है। वायु पुराण एवं अग्नि पुराण के अनुसार इस अवधि में सभी देवी-देवता यहां आकर वास करते हैं। इसी अधिक मास में मगध की पौराणिक नगरी राजगीर में प्रत्येक ढाई से तीन साल पर विराट मलमास मेला लगता है। यहां लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों प्राची,सरस्वती और वैतरणी के अलावा गर्म जलकुंडों, ब्रह्मकुंड,सप्तधारा,न्यासकुंड,मार्कंडेय कुंड,गंगा-यमुना कुंड,काशीधारा कुंड,अनंत ऋषि कुंड,सूर्य-कुंड,राम-लक्ष्मण कुंड,सीता कुंड,गौरी कुंड और नानक कुंड में स्नान कर भगवान लक्ष्मी नारायण मंदिर में आराधना करते हैं। वर्ष भर इन कुंडों में निरंतर उष्ण जल गिरता रहता है,,इस जल का श्रोत अज्ञात है। राजगीर में इस अवसर पर भव्य मेला भी लगता है। राजगीर में मलमास के दौरान लाखों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में दिखती है गंगा-यमुना संस्कृति की झलक। मोक्ष की कामना और पितरों के उद्धार के लिए जुटते हैं श्रद्धालु। इस माह विष्णु पुराण ज्ञान यज्ञ का आयोजन करके सत्‌,चित व आनंद की प्राप्ति की जा सकती है। कैसे पहुंचें राजगीर:- सड़क परिवहन द्वारा राजगीर जाने के लिए पटना, गया, दिल्ली से बस सेवा उपलब्ध है। इसमें बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम अपने पटना स्थित कार्यालय से नालंदा एवं राजगीर के लिए टूरिस्ट बस एवं टैक्सी सेवा भी उपलब्ध करवाता है। इसके जरिए आप आसानी से राज‍गीर पहुंच सकते हैं। वहीं, दूसरी तरफ यहां पर वायु मार्ग से पहुंचने के लिए निकटतम हवाई-अड्डा पटना है, जो राजगीर से करीब 107 किमी की दूरी पर है। रेल मार्ग के लिए पटना एवं दिल्ली से सीधी रेल सेवा उपलब्ध है। राजगीर जाने के लिए बख्तियारपुर से अलग रेल लाइन गई है,,जो नालंदा होते हुए राजगीर में समाप्त हो जाती है।
Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

पूना में नाथूराम गोड़से का अस्थि-कलश अभी भी रखा हुआ है,


पूना में नाथूराम गोड़से का अस्थि-कलश अभी भी रखा हुआ है,
उनकी अन्तिम इच्छा पूरी होने के इन्तजार में।

फ़ाँसी दिये जाने से कुछ ही मिनट पहले नाथूराम गोड़से ने अपने भाई दत्तात्रय को हिदायत देते हुए कहा था, कि “मेरी अस्थियाँ पवि त्र सिन्धु नदी में ही उस दिन प्रवाहित करना जब सिन्धु नदी एक स्वतन्त्र नदी के रूप में भारत के झंडे तले बहने लगे, भले ही इसमें कितने भी वर्ष लग जायें, कितनी ही पीढ़ियाँ जन्म लें, लेकिन तब तक मेरी अस्थियाँ विसर्जित न करना…”।

पूना में नाथूराम गोड़से का अस्थि-कलश अभी भी रखा हुआ है,
उनकी अन्तिम इच्छा पूरी होने के इन्तजार में।

फ़ाँसी दिये जाने से कुछ ही मिनट पहले नाथूराम गोड़से ने अपने भाई दत्तात्रय को हिदायत देते हुए कहा था, कि “मेरी अस्थियाँ पवि त्र सिन्धु नदी में ही उस दिन प्रवाहित करना जब सिन्धु नदी एक स्वतन्त्र नदी के रूप में भारत के झंडे तले बहने लगे, भले ही इसमें कितने भी वर्ष लग जायें, कितनी ही पीढ़ियाँ जन्म लें, लेकिन तब तक मेरी अस्थियाँ विसर्जित न करना…”।
Posted in Harshad Ashodiya

जो भगवन के साथ है उतने ही हमारे है . जो भगवान के साथ थे वाही बच गए , पांडव, मीराबाई जहर खा के …भक्त प्रह्लाद ..द्रौपदी ….और हम


जिस तरह महाभारत का कर्ण आज सबको महान लगता है उसी प्रकार सेक्युलर कुत्ते आज सब को महान लगते है . (जिस उम्र में बच्चे खेलते थे उस उम्र में मई महाभारत का तार्किक अभ्यास करता था . मुझसे कोई अभ्यास करके ही दलील करे ) कर्ण हमेशा दुर्योधन को प्रोत्शाहित करता था और कर्ण एक ऐसा योद्धा था जिसके सामने समस्त पृत्वी पे कोई सामना नहीं कर सकता . और दुर्योधन को उस बात से पांडवो पे विजय ली अभिलाषा थी . इतनी बात लोगो को समझनी चाहिए .
लोग कहते है रावण महान था. कोई सक नहीं . लईकिन उनके विचार उनके आचार से अलग थे ये लोगो को समझना चाहिए. कित्नाभी महान हो लेकिन वो राक्षशी संस्कृति थी ये मई एक बात में समजाऊगा. सुपर्णखा के नाक कान काट जाने के बाद जब भरी सभा में रावण को फरियाद करने आती है तो ये नहीं कहती के मेरे नाक कण काट दिए पहले ये कहती है के वन में एक सुन्दर कन्या देखि है और सीता माता का वो शारीरिक वर्णन करती है वो भी भरी सभामे. इतनी लोगो के सामने ..वो संस्कृति कैसी होगी ?
मुझे इतनाही कहना है जो भगवन के साथ है उतने ही हमारे है . जो भगवान के साथ थे वाही बच गए , पांडव, मीराबाई जहर खा के …भक्त प्रह्लाद ..द्रौपदी ….और हम

जिस तरह महाभारत का कर्ण आज सबको महान लगता है उसी प्रकार सेक्युलर कुत्ते आज सब को महान लगते है . (जिस उम्र में बच्चे खेलते थे उस उम्र में मई महाभारत का तार्किक अभ्यास करता था . मुझसे कोई अभ्यास करके ही दलील करे ) कर्ण हमेशा दुर्योधन को प्रोत्शाहित करता था और कर्ण एक ऐसा योद्धा था जिसके सामने समस्त पृत्वी पे कोई सामना नहीं कर सकता . और दुर्योधन को उस बात से पांडवो पे विजय ली अभिलाषा थी . इतनी बात लोगो को समझनी  चाहिए .
लोग कहते है रावण महान था.  कोई सक नहीं . लईकिन उनके विचार उनके आचार से अलग थे ये लोगो को समझना चाहिए. कित्नाभी महान हो लेकिन वो राक्षशी संस्कृति थी ये मई एक बात में समजाऊगा. सुपर्णखा के नाक कान काट जाने के बाद जब भरी सभा में रावण को फरियाद करने आती है तो ये नहीं कहती के मेरे नाक कण काट दिए पहले ये कहती है के वन में एक सुन्दर कन्या देखि है और सीता माता का वो शारीरिक  वर्णन करती है वो भी भरी सभामे. इतनी लोगो के सामने ..वो संस्कृति कैसी होगी ? 
मुझे इतनाही कहना है जो भगवन के साथ है उतने ही हमारे है . जो भगवान के साथ थे वाही बच गए , पांडव, मीराबाई जहर खा के ...भक्त प्रह्लाद ..द्रौपदी ....और हम
Posted in जीवन चरित्र

शिवाजी का बुद्धि चातुर्य


शिवाजी का बुद्धि चातुर्य
नरकेसरी वीर शिवाजी आजीवन अपनी मातृभूमि भारत की स्वतन्त्रता के लिए लड़ते रहे। वे न तो स्वयं कभी प्रमादी हुए और न ही उन्होंने दुश्मनों को चैन से सोने दिया। वे कुशल राजनीतिज्ञ तो थे ही साथ ही उनका बुद्धि चातुर्य भी अदभुत था। वीरता के साथ विद्वता का संगम यश देने वाला होता है।
शिवाजी के जीवन में कई ऐसे प्रसंग आये जिनमें उनके इन गुणों का संगम देखने को मिला। इसमें से एक मुख्य प्रसंग है – आदिलशाह के सेनापति अफजल खाँ के विनाश का।

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शिवाजी के साथ युद्ध करके उन्हें जीवित पकड़ लेने के उद्देश्य से इस खान सरदार ने बहुत बड़ी सेना को साथ में लिया था। तीन साल चले इतनी युद्ध-सामग्री लेकर वह बीजापुर से निकला था। इतनी विशाल सेना के सामने टक्कर लेने हेतु शिवाजी के पास इतना बड़ा सैन्य बल न था।
शिवाजी ने खान के पास संदेश भिजवायाः
'मुझे आपके साथ नहीं लड़ना है। मेरे व्यवहार से आदिलशाह को बुरा लगा हो तो आप उनसे मुझे माफी दिलवा दीजिए। मैं आपका आभार मानूँगा और मेरे अधिकार में आनेवाला मुल्क भी मैं आदिलशाह को खुशी से सौंप दूँगा।'

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अफजल खान समझ गया कि शिवाजी मेरी सेना देखकर ही डर गया है। उसने अपने वकील कृष्ण भास्कर को शिवाजी के साथ बातचीत करने के लिए भेजा। शिवाजी ने कृष्ण भास्कर का सत्कार किया और उसके द्वारा कहलवा भेजाः
'मुझे आपसे मिलने आना तो चाहिए लेकिन मुझे आपसे डर लगता है। इसलिए मैं नहीं आ सकता हूँ।'
इस संदेश को सुनकर कृष्ण भास्कर की सलाह से ही खान ने स्वयं शिवाजी से मिलने का विचार किया और इसके लिए शिवाजी के पास संदेश भी भिजवा दिया।
शिवाजी ने इस मुलाकात के लिए खान का आभार माना और उसके सत्कार के लिए बड़ी तैयारी की। जावली के किले के आस पास की झाड़ियाँ कटवाकर रास्ता बनाया तथा जगह-जगह पर मंडप बाँधे। अफजलखान जब अपने सरदारों के साथ आया तब शिवाजी ने पुनः कहला भेजाः
'मुझे अब भी भय लगता है। अपने साथ दो सेवक ही रखियेगा। नहीं तो आपसे मिलने की मेरी हिम्मत नहीं होगी।'
खान ने संदेश स्वीकार कर लिया और अपने साथ के सरदारों को दूर रखकर केवल दो तलवारधारी सेवकों के साथ मुलाकात के लिए बनाये गये तंबू में गया। शिवाजी को तो पहले से ही खान के कपट की गंध आ गयी थी, अतः अपनी स्वरक्षा के लिए उन्होंने अपने अँगरखे की दायीं तरफ खंजर छुपाकर रख लिया था और बायें हाथ में बाघनखा पहनकर मिलने के लिए तैयार खड़े रहे।
जैसेही खान दोनों हाथ लंबे करके शिवाजी को आलिंगन करने गया, त्यों ही उसने शिवाजी के मस्तक को बगल में दबा लिया। शिवाजी सावधान हो गये। उन्होंने तुरंत खान के पार्श्व में खंजर भोंक दिया और बाघनखे से पेट चीर डाला।
खान के दगा... दगा... की चीख सुनकर उसके सरदार तंबू में घुस आये। शिवाजी एवं उनके सेवकों ने उन्हें सँभाल लिया। फिर तो दोनों ओर से घमासान युद्ध छिड़ गया।
जब खान के शव को पालकी में लेकर उसके सैनिक जा रहे थे, तब उनके साथ लड़कर शिवाजी के सैनिकों ने मुर्दे का सिर काट लिया और धड़ को जाने दिया !
खान का पुत्र फाजल खान भी घायल हो गया। खान की सेवा की बड़ी बुरी हालत हो गयी एवं शिवाजी की सेना जीत गयी।

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इस युद्ध में शिवाजी को करीब 75 हाथी, 7000 घोड़े, 1000-1200 के करीब ऊँट, बड़ा तोपखाना, 2-3 हजार बैल, 10-12 लाख सोने की मुहरें, 2000 गाड़ी भरकर कपड़े एवं तंबू वगैरह का सामान मिल गया था।
यह शिवाजी की वीरता एवं बुद्धिचातुर्य का ही परिणाम था। जो काम बल से असंभव था उसे उन्होंने युक्ति से कर लिया !
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शिवाजी का बुद्धि चातुर्य
नरकेसरी वीर शिवाजी आजीवन अपनी मातृभूमि भारत की स्वतन्त्रता के लिए लड़ते रहे। वे न तो स्वयं कभी प्रमादी हुए और न ही उन्होंने दुश्मनों को चैन से सोने दिया। वे कुशल राजनीतिज्ञ तो थे ही साथ ही उनका बुद्धि चातुर्य भी अदभुत था। वीरता के साथ विद्वता का संगम यश देने वाला होता है।
शिवाजी के जीवन में कई ऐसे प्रसंग आये जिनमें उनके इन गुणों का संगम देखने को मिला। इसमें से एक मुख्य प्रसंग है – आदिलशाह के सेनापति अफजल खाँ के विनाश का।

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शिवाजी के साथ युद्ध करके उन्हें जीवित पकड़ लेने के उद्देश्य से इस खान सरदार ने बहुत बड़ी सेना को साथ में लिया था। तीन साल चले इतनी युद्ध-सामग्री लेकर वह बीजापुर से निकला था। इतनी विशाल सेना के सामने टक्कर लेने हेतु शिवाजी के पास इतना बड़ा सैन्य बल न था।
शिवाजी ने खान के पास संदेश भिजवायाः
‘मुझे आपके साथ नहीं लड़ना है। मेरे व्यवहार से आदिलशाह को बुरा लगा हो तो आप उनसे मुझे माफी दिलवा दीजिए। मैं आपका आभार मानूँगा और मेरे अधिकार में आनेवाला मुल्क भी मैं आदिलशाह को खुशी से सौंप दूँगा।’

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अफजल खान समझ गया कि शिवाजी मेरी सेना देखकर ही डर गया है। उसने अपने वकील कृष्ण भास्कर को शिवाजी के साथ बातचीत करने के लिए भेजा। शिवाजी ने कृष्ण भास्कर का सत्कार किया और उसके द्वारा कहलवा भेजाः
‘मुझे आपसे मिलने आना तो चाहिए लेकिन मुझे आपसे डर लगता है। इसलिए मैं नहीं आ सकता हूँ।’
इस संदेश को सुनकर कृष्ण भास्कर की सलाह से ही खान ने स्वयं शिवाजी से मिलने का विचार किया और इसके लिए शिवाजी के पास संदेश भी भिजवा दिया।
शिवाजी ने इस मुलाकात के लिए खान का आभार माना और उसके सत्कार के लिए बड़ी तैयारी की। जावली के किले के आस पास की झाड़ियाँ कटवाकर रास्ता बनाया तथा जगह-जगह पर मंडप बाँधे। अफजलखान जब अपने सरदारों के साथ आया तब शिवाजी ने पुनः कहला भेजाः
‘मुझे अब भी भय लगता है। अपने साथ दो सेवक ही रखियेगा। नहीं तो आपसे मिलने की मेरी हिम्मत नहीं होगी।’
खान ने संदेश स्वीकार कर लिया और अपने साथ के सरदारों को दूर रखकर केवल दो तलवारधारी सेवकों के साथ मुलाकात के लिए बनाये गये तंबू में गया। शिवाजी को तो पहले से ही खान के कपट की गंध आ गयी थी, अतः अपनी स्वरक्षा के लिए उन्होंने अपने अँगरखे की दायीं तरफ खंजर छुपाकर रख लिया था और बायें हाथ में बाघनखा पहनकर मिलने के लिए तैयार खड़े रहे।
जैसेही खान दोनों हाथ लंबे करके शिवाजी को आलिंगन करने गया, त्यों ही उसने शिवाजी के मस्तक को बगल में दबा लिया। शिवाजी सावधान हो गये। उन्होंने तुरंत खान के पार्श्व में खंजर भोंक दिया और बाघनखे से पेट चीर डाला।
खान के दगा… दगा… की चीख सुनकर उसके सरदार तंबू में घुस आये। शिवाजी एवं उनके सेवकों ने उन्हें सँभाल लिया। फिर तो दोनों ओर से घमासान युद्ध छिड़ गया।
जब खान के शव को पालकी में लेकर उसके सैनिक जा रहे थे, तब उनके साथ लड़कर शिवाजी के सैनिकों ने मुर्दे का सिर काट लिया और धड़ को जाने दिया !
खान का पुत्र फाजल खान भी घायल हो गया। खान की सेवा की बड़ी बुरी हालत हो गयी एवं शिवाजी की सेना जीत गयी।

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इस युद्ध में शिवाजी को करीब 75 हाथी, 7000 घोड़े, 1000-1200 के करीब ऊँट, बड़ा तोपखाना, 2-3 हजार बैल, 10-12 लाख सोने की मुहरें, 2000 गाड़ी भरकर कपड़े एवं तंबू वगैरह का सामान मिल गया था।
यह शिवाजी की वीरता एवं बुद्धिचातुर्य का ही परिणाम था। जो काम बल से असंभव था उसे उन्होंने युक्ति से कर लिया !
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Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

इतिहास हमें बहुत गलत जानकारी दे रहा है।


इतिहास हमें बहुत गलत जानकारी दे रहा है। इसमें सुधार लाना आवश्यक है। इतिहासकार लिखते हैं कि कोलम्बस ने अमेरिका तथा वास्कोडिगामा ने भारत की खोज की थी जबकि वास्तविकता यह है कि दोनों लुटेरे थे। एक ने भारत को लूटा और दूसरे ने अमेरिका के अस्सी हजार मूल निवासियों की हत्या करके लूट-पाट की। ये दोनों गैंग (गुट) बना कर समुद्री जहाजों में सवार व्यक्तियों को लूटते थे। एक बार दोनों गुटों के बीच झगड़ा हो गया। झगड़ा सुलझाने के लिए वे पोप के पास पहुँचे। पोप ने कोलम्बस को पूर्वी तथा वास्कोडिगामा को पश्चिमी छोर दे दिया। जहाजों को लूटते हुए कोलम्बस अमेरिका पहुँचा तथा वहाँ 80 हजार लोगों की हत्या कर दी। दूसरी ओर वास्कोडिगामा कालीकट पहुँचा। हिन्दू-मुसलमान मेहमानबाजी में विश्वास रखते हैं। उस समय वहाँ के शासक नवाब का मेहमान बनकर-हम आपके अतिथि हैं, मेहमान हैं – ऐसा कहकर उन्हें पटाया। अपने पैर जमाये और मौका पाकर नवाब की हत्या करवा दी। शासन की बागडोर वास्कोडिगामा व उसके साथी लुटेरों ने हथिया ली। इसके बाद उसने भारत से सोने को जहाजों में भरकर ले जाना शुरू कर दिया। पहले सात, फिर ग्यारह और उसके बाद बीस जहाजों में सोना भरकर वह अपने देश ले गया।" 
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इतिहास हमें बहुत गलत जानकारी दे रहा है। इसमें सुधार लाना आवश्यक है। इतिहासकार लिखते हैं कि कोलम्बस ने अमेरिका तथा वास्कोडिगामा ने भारत की खोज की थी जबकि वास्तविकता यह है कि दोनों लुटेरे थे। एक ने भारत को लूटा और दूसरे ने अमेरिका के अस्सी हजार मूल निवासियों की हत्या करके लूट-पाट की। ये दोनों गैंग (गुट) बना कर समुद्री जहाजों में सवार व्यक्तियों को लूटते थे। एक बार दोनों गुटों के बीच झगड़ा हो गया। झगड़ा सुलझाने के लिए वे पोप के पास पहुँचे। पोप ने कोलम्बस को पूर्वी तथा वास्कोडिगामा को पश्चिमी छोर दे दिया। जहाजों को लूटते हुए कोलम्बस अमेरिका पहुँचा तथा वहाँ 80 हजार लोगों की हत्या कर दी। दूसरी ओर वास्कोडिगामा कालीकट पहुँचा। हिन्दू-मुसलमान मेहमानबाजी में विश्वास रखते हैं। उस समय वहाँ के शासक नवाब का मेहमान बनकर-हम आपके अतिथि हैं, मेहमान हैं – ऐसा कहकर उन्हें पटाया। अपने पैर जमाये और मौका पाकर नवाब की हत्या करवा दी। शासन की बागडोर वास्कोडिगामा व उसके साथी लुटेरों ने हथिया ली। इसके बाद उसने भारत से सोने को जहाजों में भरकर ले जाना शुरू कर दिया। पहले सात, फिर ग्यारह और उसके बाद बीस जहाजों में सोना भरकर वह अपने देश ले गया।”
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गोडसे का अंतिम बयान


गोडसे का अंतिम बयान दोस्तों, हमारे एक फेसबुक मित्र ने नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान हमारे साथ शेयर किया है, कहा जाता है की इसे सुनकर अदालत में उपस्तित सभी लोगो की आँखे गीली हो गई थी और कई तो रोने लगे थे। एक जज महोदय ने अपनी टिपणी में लिखा था की यदि उस समय अदालत में उपस्थित लोगो को जूरी बना जाता और उनसे फेसला देने को कहा जाता तो निसंदेह वे प्रचंड बहुमतसे नाथूराम के निर्दोष होने का निर्देश देते!

नाथूराम जी ने अपने बयानमें कहा था -“सम्मान,कर्तव्यऔर अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी हमें अहिंसा के सिद्धांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है.में कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामक का सशस्त्र प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्यायपूर्णभी हो सकता है .प्रतिरोध करने और यदि संभव हो तो ऐसे शत्रुको बलपूर्वक वश में करना को मैं एक धार्मिक और नैतिक कर्तव्य मानता हूँ .मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थे, या तो कांग्रेस उनकी इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक ,मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये अथवा उनके बिना काम चलाये.वे अकेले ही प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे।

महात्मा गाँधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे.गाँधी जी ने मुस्लिमों को खुश करने के लिए हिंदी भाषा के सौंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया।गाँधी जी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओ की कीमत पर किये जाते थे।जो कांग्रेस अपनी देशभक्ति और समाज वाद का दंभ भरा करती थी.उसी ने गुप्त रूप से बन्दुक की नोक पर पाकिस्तानको स्वीकार कर लिया और जिन्ना के सामने नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया।

मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के कारण भारत माता के टुकड़े कर दिए गय और 15 अगस्त 1947 के बाद देश का एक तिहाई भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गई। नेहरु तथा उनकी भीड़ की स्वीकारोक्ति के साथ ही एक धर्म के आधार पर अलग राज्य बना दिया गया .इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई स्वतंत्रता कहते है।और, किसका बलिदान? जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गाँधी जी के सहमती से इस देश को काट डाला ,जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है ,तो मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया.मैं साहस पूर्वक कहता हूँ की गाँधी अपने कर्तव्य में असफल हो गए।उन्होंने स्वयंको पाकिस्तान का पिता होना सिद्ध किया।मैं कहता हूँ की मेरी गोलियां एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थी,जिसकी नीतियों और कार्यो से करोड़ों हिन्दुओ को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला।ऐसी कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा उसअपराधी को सजा दिलाई जा सके, इसीलिए मैंने इस घातक रास्ते का अनुसरण किया।मैं अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा,जो मैंने किया उस पर मुझे गर्व है . मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास के इमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्यांकन करेंगे।जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीचे से ना बहे तब तक मेरी अस्थियो का विसर्जन मत करना।

नोट – अपनी कहानी ने इस बयान की सत्यता की जांच नहीं की है, अगर किसी मित्र को इसमें कुछ आपत्तिजनक लगे तो हमें बताएं।

गोडसे का अंतिम बयान दोस्तों, हमारे एक फेसबुक मित्र ने नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान हमारे साथ शेयर किया है, कहा जाता है की इसे सुनकर अदालत में उपस्तित सभी लोगो की आँखे गीली हो गई थी और कई तो रोने लगे थे। एक जज महोदय ने अपनी टिपणी में लिखा था की यदि उस समय अदालत में उपस्थित लोगो को जूरी बना जाता और उनसे फेसला देने को कहा जाता तो निसंदेह वे प्रचंड बहुमतसे नाथूराम के निर्दोष होने का निर्देश देते!

नाथूराम जी ने अपने बयानमें कहा था -"सम्मान,कर्तव्यऔर अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी हमें अहिंसा के सिद्धांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है.में कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामक का सशस्त्र प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्यायपूर्णभी हो सकता है .प्रतिरोध करने और यदि संभव हो तो ऐसे शत्रुको बलपूर्वक वश में करना को मैं एक धार्मिक और नैतिक कर्तव्य मानता हूँ .मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थे, या तो कांग्रेस उनकी इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक ,मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये अथवा उनके बिना काम चलाये.वे अकेले ही प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे।

महात्मा गाँधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे.गाँधी जी ने मुस्लिमों को खुश करने के लिए हिंदी भाषा के सौंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया।गाँधी जी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओ की कीमत पर किये जाते थे।जो कांग्रेस अपनी देशभक्ति और समाज वाद का दंभ भरा करती थी.उसी ने गुप्त रूप से बन्दुक की नोक पर पाकिस्तानको स्वीकार कर लिया और जिन्ना के सामने नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया।

मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के कारण भारत माता के टुकड़े कर दिए गय और 15 अगस्त 1947 के बाद देश का एक तिहाई भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गई। नेहरु तथा उनकी भीड़ की स्वीकारोक्ति के साथ ही एक धर्म के आधार पर अलग राज्य बना दिया गया .इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई स्वतंत्रता कहते है।और, किसका बलिदान? जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गाँधी जी के सहमती से इस देश को काट डाला ,जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है ,तो मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया.मैं साहस पूर्वक कहता हूँ की गाँधी अपने कर्तव्य में असफल हो गए।उन्होंने स्वयंको पाकिस्तान का पिता होना सिद्ध किया।मैं कहता हूँ की मेरी गोलियां एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थी,जिसकी नीतियों और कार्यो से करोड़ों हिन्दुओ को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला।ऐसी कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा उसअपराधी को सजा दिलाई जा सके, इसीलिए मैंने इस घातक रास्ते का अनुसरण किया।मैं अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा,जो मैंने किया उस पर मुझे गर्व है . मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास के इमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्यांकन करेंगे।जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीचे से ना बहे तब तक मेरी अस्थियो का विसर्जन मत करना।

नोट - अपनी कहानी ने इस बयान की सत्यता की जांच नहीं की है, अगर किसी मित्र को इसमें कुछ आपत्तिजनक लगे तो हमें बताएं।