Posted in Love Jihad

तारा शाहदेव लव जेहाद मामले में पुलिस ने की लीपा-पोती, दाखिल किया सिर्फ दहेज प्रताड़ना का केस


 

तारा शाहदेव लव जेहाद मामले में पुलिस ने की लीपा-पोती, दाखिल किया सिर्फ दहेज प्रताड़ना का केस

राँची। लव जिहाद के बहुचर्चित घटना का जब पुलिस ने चार्जशीट तैयार किया तो पुलिस ले-देकर सिर्फ दहेज-प्रताड़ना का मामला बता दिया है। जी हाँ, यह हाल है रांची के पुलिस का। अंतर्राष्ट्रीय शूटर तारा शाहदेव के साथ लव जिहाद के प्रकरण में काफी दौर-भागकर पुलिस ने चार्जशीट तो दाखिल कर दी है, लेकिन पुलिस ने हद उस वक्त कर दी जब इस पूरे मामले को दहेज-प्रताड़ना से जोड़कर चार्जशीट दाखिल कर दिया।

इतना ही नहीं, पुलिस ने जो चार्जशीट दायर की है, उसमें धर्म परिवर्तन और जबरन निकाह की कोई चर्चा नहीं है। यहां तक कि तारा के बयान पर दर्ज धर्म परिवर्तन और जबरन निकाह के मामले की अब तक जांच भी नहीं की गई है। गौरतलब है कि तारा के बयान पर रंजीत सिंह कोहली उर्फ रकीबुल और उसकी मां कौशल्या उर्फ कौसर परवीन के खिलाफ दहेज प्रताड़ना समेत धर्म परिवर्तन और जबरन निकाह का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज की गई थी। हिंदपीढ़ी थाना में पुलिस ने रकीबुल और उनकी मां कौशल्या के खिलाफ दहेज प्रताड़ना के लिए धारा 498 ए, 295 ए और 153 ए के तहत मुकदमा दर्ज किया है।
यह है पूरा मामला

लव जिहाद पीड़ित तारा शाहदेव का कहना है कि 7 जुलाई 2014 को उनकी शादी रंजीत सिंह कोहली नाम के एक व्यक्ति से हुई थी। लेकिन शादी के बाद से ही उस पर जानवरों की तरह अत्याचार होने लगे। तारा को जब पता चला कि उसके पति का नाम रंजीत सिंह नहीं बल्कि रकीबुल हसन है, तो उस पर जुल्म की इंतेहा कर दी गई। तारा पर जबरन धर्म परिवर्तन करने का दबाव बनाया जाने लगा। इस मामले को प्रकाश में आने के बाद पूरे देश में खासा हंगामा भी हुआ था। लेकिन अंततः पुलिस ने इस संगीन मामले पर लीपा-पोती कर दी।

 

Posted in जीवन चरित्र

मर्यादा पर चलने वाले सिख संत अतर सिंह


संत अतरसिंह जी का जन्म 28 मार्च, 1966 को ग्राम चीमा (संगरूर, पंजाब) में हुआ था। इनके पिता श्री करमसिंह तथा माता श्रीमती भोली जी थीं। छोटी अवस्था में वे फटे-पुराने कपड़ों के टुकड़ों की माला बनाकर उससे जप करते रहते थे। लौकिक शिक्षा की बात चलने पर वे कहते कि हमें तो बस सत्य की ही शिक्षा लेनी है। घर वालों के आग्रह पर उन्होंन गांव में स्थित निर्मला सम्प्रदाय के डेरे में संत बूटा सिंह से गुरुमुखी की शिक्षा ली। कुछ बड़े होकर वे घर में खेती, पशु चराना आदि कामों में हाथ बंटाने लगे। एक साधु ने इसके पैर में पद्मरेखा देखकर इनके संत बनने की भविष्यवाणी की।

1883 में वे सेना में भर्ती हो गये। घर से सगाई का पत्र आने पर उन्होंने जवाब दिया कि अकाल पुरुख की ओर से विवाह का आदेश नहीं है। 54 पल्टन में काम करते हुए उन्होंने अमृत छका और फिर निष्ठापूवर्क सिख मर्यादा का पालन करने लगे। वे सूर्योदय से पूर्व कई घंटे जप और ध्यान करते थे। पिताजी के देहांत से उनके मन में वैराग्य जागा और वे पैदल ही हुजुर साहिब चल दिये। माया मोह से मुक्ति के लिए सारा धन उन्होंने नदी में फेंक दिया। हुजूर साहिब में दो साल और फिर हरिद्वार और ऋषिकेश के जंगलों में जाकर कठोर साधना की। इसके बाद वे अमृतसर तथा दमदमा साहिब गये।

इसी प्रकार भ्रमण करते वे अपने गांव पहुंचे। मां के आग्रह पर वे नहीं रूक गये। उन्होंने मां से कहा कि जिस दिन तुम मेरे विवाह की चर्चा करोगी, मैं यहां से चला जाऊंगा। मां ने आवश्वासन तो दिया, पर एक बार उन्होंने फिर यह प्रसंग छेड़ दिया। इससे नाराज होकर वे चल दिये और सियालकोट जा पहुंचे। इसके बाद सेना से भी नाम कटवा कर वे सभी ओर से मुक्त हो गये।

इसके बाद कनोहे गांव के जंगल में रहकर उन्होंने साधना की। इस दौरान वहां अनेक चमत्कार हुए, जिससे उनकी ख्याति चहुंओर फैल गयी। वे पंथ, संगत और गुरुघर की सेवा, कीर्तन और अमृत छककर पंथ का मर्यादानुसार चलने पर बहुत जोर देते थे। वे कीर्तन में राग के बदले भाव पर अधिक ध्यान देते थे। उन्होंने 14 लाख लोगों को अमृतपान कराया। 1901 में उन्होंने मस्तुआणा के जंगल में डेरा डालकर उसे एक महान तीर्थ बना दिया। संत जी ने स्वयं लौकिक शिक्षा नहीं पायी थी, पर उन्होंने वहां पंथ की शिक्षा के साथ आधुनिक शिक्षा का भी प्रबंध किया। उन्होंने पंजाब में कई शिक्षा संस्थान स्थापित किये, जिससे लाखों छात्र लाभान्वित हो रहे हैं।

1911 में राजधानी कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित हुई। इस अवसर पर सिख राजाओं ने उनके नेतृत्व और श्री गुरुग्रंथ साहिब की हुजूरी में शाही जुलूस में भाग लिया। जार्ज पंचम के सामने से निकलने पर उन्होंने पद गाया-

कोउ हरि समान नहीं राजा।
ऐ भूपति सभ दिवस चार के, झूठे करत नवाजा।

यह सुनकर जार्ज पंचम भी सम्मानपूर्वक खड़ा हो गया। 1914 में मालवीय जी ने बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय में पहले विद्यालय की नींव संत जी के हाथ से रखवाई।

माताजी के अंत समय में उन्होंने माता जी को जीवन और मृत्यु के बारे में उपदेश दिया, इससे उनके कष्टों का शमन हुआ। जब गुरुद्वारों के प्रबंध को लेकर पंथ में भारी विवाद हुआ, तो उन्होंने सबको साथ लेकर चलने पर जोर दिया। इसी प्रकार पंथ और संगत की सेवा करते हुए 31 जनवरी, 1927 को अमृत समय में ही उनका शरीर शांत हुआ। उनके विचारों का प्रचार-प्रसार कलगीधर ट्रस्ट, बडू साहिब के माध्यम से उनके प्रियजन कर रहे हैं।

स्रोतः विजय कुमार
स्थानः
नई दिल्ली
तिथिः
23 जून 2012

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

चोर की सच्चाई (बाल कहानी)


एक हीराप्रसाद वर्मा था। वह चोर था। वह बचपन से सर्राफ था पर गरीबी ने उसे चोर बना दिया था। दस साल पहले वह एक धनी सेठ का बेटा था जिसका नाम राम प्रसाद वर्मा था। ऐशो आराम से रहता था। कुछ समय पश्चात उसका देहान्त हो गया था। इसी शोक में सेठानी भी चल बसीं, अब बचा बेचारा हीरा, दस क्लास पढ़ा। कोई नौकरी नहीं मिली। तो उसने चोरी करना शुरू कर दी। दो-तीन बार पकड़े जाने पर किसी तरह दांय-बांय देखकर भाग जाता।

एक बार उसने सुनहार के यहां चोरी की। सुनहार ने रिपोर्ट कि मेरे यहां चोरी हो गई है और कई लाख रुपये का माल चोरी हो गया है।

छानबीन में दरोगा ने उसके घर का पता लगा ही लिया था। और उसे पकड़ भी लिया। उसके पूछे जाने पर उसने कहा कि मैं इससे एक छोटी दुकान खोलता।

उसकी बहादुरी व सच्चाई पर मोहित होकर उसे छोड़ दिया। सुनहार को उसका सामान दिला दिया।

स्रोतः स्व. घनश्याम रंजन
स्थानः
नई दिल्ली
तिथिः
16 जून 2012

Posted in जीवन चरित्र

करुणा और दया के सागर थे संत दादू दयाल


भारत सदा से संतों की भूमि रही है। जब-जब धर्म पर संकट आया, तब-तब संतों ने अवतार लेकर भक्ति के माध्यम से समाज को सही दिशा दी। ऐसे ही एक महान संत थे दादू दयाल।

दादू का जन्म गुजरात प्रांत के कर्णावती (अमदाबाद) नगर में 28 फरवरी, 1601 ई0 (फाल्गुन पूर्णिमा) को हुआ था, पर किसी अज्ञात कारण से इनकी माता ने नवजात शिशु को लकड़ी की एक पेटी में बंद कर साबरमती नदी में प्रवाहित कर दिया। कहते हैं कि लोदीराम नागर नामक एक ब्राह्मण ने उस पेटी को देखा, तो उसे खोलकर बालक को अपने घर ले आया। बालक में बालसुलभ चंचलता के स्थान पर प्राणिमात्र के लिए करुणा और दया भरी थी। इसी से सब लोग इन्हें दादू दयाल कहने लगे।

विवाहोपरांत इनके घर में दो पुत्र और दो पुत्रियों का जन्म हुआ। इसके बाद इनका मन घर-गृहस्थी से उचट गया और ये जयपुर के पास रहने लगे। यहां सत्संग और साधु-सेवा में इसका समय बीतने लगा, पर घर वाले इन्हें वापस बुला ले गये। अब दादू-जीवनयापन के लिए रुई धुनने लगे। इसी के साथ उनकी भजन साधना भी चलती रहती थी। धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि फैलने लगी। केवल हिंदु ही नहीं, अनेक मुस्लिम भी उनके शिष्य बन गये। यह देखकर एक काजी ने इन्हें दण्ड देना चाहा, पर कुछ बाद काजी की ही मृत्यु हो गयी। तबसे सब उन्हें अलौकिक पुरुष मानने लगे।

दादू धर्म में व्याप्त पाखण्ड के बहुत विरोधी थे। कबीर की भांति वे भी पण्डितों और मौलवियों को खरी-खरी सुनाते थे। उनका कहना था कि भगवान की प्राप्ति के लिए कपड़े रंगने या घर छोड़ने की आवश्यकता नहीं है। वे सबसे निराकार भगवान की पूजा करने तथा सद्गुणों को अपनाने का आग्रह करते थे। आगे चलकर उनके विचारों को लोगों ने ‘दादू पन्थ’ का नाम दे दिया। इनके मुस्लिम अनुयायियों को ‘नागी’ कहा जाता था, जबकि हिन्दुओं में वैष्णव, विरक्त, नागा और साधु नामक चार श्रेणियां थीं। दादू की शिक्षाओं को वाणी कहा जाता है। वे कहते थे-

दादू कोई दौड़े द्वारका, कोई कासी जाह
कोई मथुरा को चले, साहिब घर की माहि।।

जीव हिंसा का विरोध करते हुए दादू कहते हैं-

कोई काहू जीव की, करै आतमा घात
साँच कहूँ सन्सा नहीं, सो प्राणी दोजख जात।।

दादू दयाल जी कबीर, नानक और तुलसी जैसे संतों में समकालीन थे। जयपुर से 61 किलोमीटर दूर स्थित ‘नरेगा’ उनका प्रमुख तीर्थ है। यहां इस पंथ के स्वर्णिम और गरिमामय इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है। यहां के संग्रहालय में दादू महाराज के साथ-साथ गरीबदास जी की वाणी, इसी पंथ के दूसरे संतों के हस्तलिखित ग्रंथ, चित्रकारी, नक्काशी, रथ, पालकी, बग्घी, हाथियों के हौदे और दादू की खड़ाऊँ आदि संग्रहित हैं। यहां मुख्य उत्सव फाल्गुन पूर्णिमा को होता है। इस अवसर पर लाखों लोग जुटते हैं, जो बिना किसी भेदभाव के एक पंगत में भोजन करते हैं।

निर्गुण भक्ति के माध्यम से समाज को दिशा देने वाले श्रेष्ठ समाज सुधारक और परम संत दादू दयाल इस जगत में साठ वर्ष बिताकर 1660 ई0 में अपने परमधाम हो चले गये।

स्रोतः विजय कुमार
स्थानः
नई दिल्ली
तिथिः
09 जुलाई 2012

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

लालच बुरी बला…


किसी गांव में दीनू नाम का एक किसान रहता था। एक बार गांव में भीषण अकाल पड़ा जिससे सारे खेत-खलिहान सूख गए। खाने-पीने और रोजमर्रा की तलाश में दीनू किसी दूसरे गांव की ओर चल पड़ा। चलते-चलते वह जिस गांव में पहुंचा वहां उसकी मुलाकात मीकू नाम के एक व्यक्ति से हुई।

दीनू ने मीकू को अपनी व्यथा सुनाई और उससे कुछ काम दिलाने की बात कही। मीकू ने दीनू से कहा-“मेरे पास आम का एक खेत है जिस पर काम करने के लिए मुझे एक ऐसे व्यक्ति की तलाश है जो मेहनती और ईमानदार हो। यदि तुममें यह सब हो तो तुम उस खेत पर काम कर सकते हो, खेत से हुई कमाई का आधा हिस्सा तुम्हारा होगा और आधा मेरा। दीनू को मीकू की बात पसंद आई वह खुशी-खुशी मीकू के खेत पर काम करने के लिए तैयार हो गया।

अगले ही दिन से दीनू मीकू के खेत में काम करने लगा। दीनू ने मीकू के खेत में लगे आम के पेड़ों की खूब सेवा की। कुछ ही समय में पेड़ मीठे-मीठे आमों से लद गए। दीनू ने आमों को बेचकर जो भी धन कमाया ईमानदारी के साथ मीकू के साथ आधा-आधा बांट लिया। इस तरह दिन बीतते गए। मीकू के खेत में लगे आम के पेड़ दीनू की सेवा और ईमानदारी से बहुत खुश थे। एक बार जब दीनू खेत में काम कर रहा था, एक आम के पेड़ से आवाज आई- दीनू! हम तुम्हारी सेवा से बहुत प्रसन्न हैं और तुम्हें एक तोहफा देना चाहते हैं जिससे तुम्हारी गरीबी सदा के लिए मिट जाएगी… किन्तु एक शर्त है कि तोहफा पाकर किसी तरह का लालच न करना।

दीनू ने इधर-उधर देखा वहां कोई भी इंसान न था आवाज आम के पेड़ से ही आ रही थी। पेड़ से आ रही आवाज सुन दीनू स्तब्ध खड़ा था इतने में पेड़ के नीचे जमीन से खन-खन की आवाज के साथ सोने के सिक्कों से भरा एक घड़ा निकला। इतने सारे सोने के सिक्के देखकर दीनू की आंखें फटी की फटी रह गईं।

घड़े को पाकर दीनू सोच में पड़ गया कि यह खेत तो मीकू का है और उसने मीकू से वादा किया है कि खेत से जो भी कमाई होगी उसका आधा हिस्सा वह मीकू को देगा। फिर उसे विचार आया कि जैसा कि आम के पेड़ ने कहा यह तोहफा तो सिर्फ मेरे लिए है, मेरी सेवा से प्रसन्न होकर आम के पेड़ ने मुझ पर यह कृपा की है फिर तो यह घड़ा सिर्फ मेरा ही हुआ। सोच-विचार में पड़े दिन से रात हो गई, दीनू खेत पर घड़े को लिए बैठा रहा। सुबह होने पर मीकू के खेत पर आने की आहट सुन दीनू ने घड़े को वापस जमीन में दबा दिया और सामान्य हो मीकू से बातें करने लगा।

कुछ देर बाद मीकू वापस चला गया। दीनू फिर सोने के सिक्कों से भरे घड़े के बारे में सोचने लगा… मीकू को सोने के सिक्कों का आधा पैसा दे या न दे की उलझन में पड़े-पड़े दिन बीतते गए। दीनू का मन अब खेत पर काम करने में भी नहीं लग रहा था। धीरे-धीरे आम के पेड़ सूखने लगे। दीनू को तो अब बस उस घड़े की चिंता थी।

इधर कुछ दिनों से मीकू जब भी खेत पर जाता दीनू को असमंजस में पाता। वह नोटिस कर रहा था कि दीनू खेत पर पहले जैसे काम नहीं कर पा रहा और अब तो पेड़ भी सूखने लगे। कुछ ही समय में आमों का मौसम भी आ गया किन्तु इस बार खेत से कोई भी कमाई न हो पाई। मीकू ने दीनू से कहा-“मुझे नहीं मालूम तुम्हारे मन में क्या है, पर मुझे माफ करना अब तुम्हें यह नौकरी छोड़कर जाना पड़ेगा। इन खेतों की संभाल अब तुम्हारे बस में नहीं रही।

मीकू की बात को दीनू चुपचाप सुनता रहा। उसने मन ही मन सोचा कि हां, अब उसे नौकरी की जरूरत भी क्या है… वह आज ही घड़े को लेकर वापस अपने गांव चला जाएगा।

मीकू अपनी बात कह वापस चला गया। उसके जाने के बाद दीनू खेत में उस जगह पहुंचा जहां उसने घड़ा दबाया था। दीनू ने घड़े को निकाला तो उसके होश उड़ गए… घड़े में सोने के सिक्कों की जगह कंकर-पत्थर भरे थे। वह फफक कर रो पड़ा।

रोते-रोते उसे आम के पेड़ की कही बात याद आई वह समझ गया कि यह सब और कुछ नहीं उसके लालच की सजा है।

कभी सूखे आम के पेड़ों की ओर तो कभी घड़े की ओर देखता हुआ वह भारी मन से आगे चल दिया।

स्रोतः अमृता गोस्वामी
स्थानः
जयपुर
तिथिः
12 जुलाई 2012

Posted in जीवन चरित्र

भगिनी निवेदिता का पूरा नाम ‘मार्ग्रेट एलिज़ाबेथ नोबल’ था।


भगिनी निवेदिता का पूरा नाम 'मार्ग्रेट एलिज़ाबेथ नोबल' था। इनका जन्म 28 अक्टूबर 1867 को आयरलैण्ड के डेंगानेन में हुआ और मृत्यु 11 अक्टूबर 1911 को  दार्जिलिंग, भारत में हुई। वह एक अच्छी पत्रकार तथा वक्ता थीं।  

1895 में मार्ग्रेट स्वामी विवेकानन्द जी से उनकी इंग्लैण्ड यात्रा के दौरान मिलीं। वह वेदान्त के सार्वभौम सिद्धान्तों, विवेकानन्द की मीमांसा और वेदान्त दर्शन की मानववादी शिक्षाओं की ओर आकर्षित हुईं तथा विवेकानन्द जी के 1896 में भारत आने से पहले तक इंग्लैण्ड में वेदान्त आन्दोलन के लिए काम करती रहीं।

उनके सम्पूर्ण समर्पण के कारण विवेकानन्द ने उन्हें निवेदिता नाम दिया, जिसका अर्थ है, जो समर्पित है। आरम्भ में वह एक शिक्षिका के रूप में भारत आई थीं, ताकि विवेकानन्द की स्त्री-शिक्षा की योजनाओं को मूर्त किया जा सके। उन्होंने कलकत्ता के एक छोटे से घर में स्थित स्कूल में कुछ महीनों तक पश्चिमी विचारों को भारतीय परम्पराओं के अनुकूल बनाने के प्रयोग किए। 1899 में स्कूल बन्द करके धन इकट्ठा करने के लिए वह पश्चिमी देशों की यात्रा पर चली गईं। 1902 में लौटकर उन्होंने फिर से स्कूल की शुरुआत की। 1903 में निवेदिता ने आधारभूत शिक्षा के साथ-साथ युवा महिलाओं को कला व शिल्प का प्रशिक्षण देने के लिए एक महिला खण्ड भी खोला। उनके स्कूल ने शिक्षण और प्रशिक्षण जारी रखा।

भारत में विधिवत दीक्षित होकर वह स्वामी जी की शिष्या बन गई और उन्हें रामकृष्ण मिशन के सेवाकार्य में लगा दिया गया। कलकत्ता में भीषण रूप से प्लेग फैलने पर भारतीय बस्तियों में प्रशंसनीय कार्य ने उन्हें आदर्श रूप में स्थापित कर दिया। निवेदिता ने प्रत्यक्ष रूप से कभी किसी आन्दोलन में भाग नहीं लिया, लेकिन उन्होंने भारतीय युवाओं को प्रेरित किया, जो उन्हें रूमानी राष्ट्रीयता और प्रबल भारतीयता का दर्शनशास्त्री मानते थे।

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें जननी की संज्ञा दी। निवेदिता की मृत्यु दार्जिलिंग में 44 वर्ष की आयु में हुई। उनकी समाधि पर अंकित है- यहाँ सिस्टर निवेदिता का अस्थि कलश विश्राम कर रहा है, जिन्होंने अपना सर्वस्व भारत को दे दिया।

भगिनी निवेदिता का पूरा नाम ‘मार्ग्रेट एलिज़ाबेथ नोबल’ था। इनका जन्म 28 अक्टूबर 1867 को आयरलैण्ड के डेंगानेन में हुआ और मृत्यु 11 अक्टूबर 1911 को दार्जिलिंग, भारत में हुई। वह एक अच्छी पत्रकार तथा वक्ता थीं।

1895 में मार्ग्रेट स्वामी विवेकानन्द जी से उनकी इंग्लैण्ड यात्रा के दौरान मिलीं। वह वेदान्त के सार्वभौम सिद्धान्तों, विवेकानन्द की मीमांसा और वेदान्त दर्शन की मानववादी शिक्षाओं की ओर आकर्षित हुईं तथा विवेकानन्द जी के 1896 में भारत आने से पहले तक इंग्लैण्ड में वेदान्त आन्दोलन के लिए काम करती रहीं।

उनके सम्पूर्ण समर्पण के कारण विवेकानन्द ने उन्हें निवेदिता नाम दिया, जिसका अर्थ है, जो समर्पित है। आरम्भ में वह एक शिक्षिका के रूप में भारत आई थीं, ताकि विवेकानन्द की स्त्री-शिक्षा की योजनाओं को मूर्त किया जा सके। उन्होंने कलकत्ता के एक छोटे से घर में स्थित स्कूल में कुछ महीनों तक पश्चिमी विचारों को भारतीय परम्पराओं के अनुकूल बनाने के प्रयोग किए। 1899 में स्कूल बन्द करके धन इकट्ठा करने के लिए वह पश्चिमी देशों की यात्रा पर चली गईं। 1902 में लौटकर उन्होंने फिर से स्कूल की शुरुआत की। 1903 में निवेदिता ने आधारभूत शिक्षा के साथ-साथ युवा महिलाओं को कला व शिल्प का प्रशिक्षण देने के लिए एक महिला खण्ड भी खोला। उनके स्कूल ने शिक्षण और प्रशिक्षण जारी रखा।

भारत में विधिवत दीक्षित होकर वह स्वामी जी की शिष्या बन गई और उन्हें रामकृष्ण मिशन के सेवाकार्य में लगा दिया गया। कलकत्ता में भीषण रूप से प्लेग फैलने पर भारतीय बस्तियों में प्रशंसनीय कार्य ने उन्हें आदर्श रूप में स्थापित कर दिया। निवेदिता ने प्रत्यक्ष रूप से कभी किसी आन्दोलन में भाग नहीं लिया, लेकिन उन्होंने भारतीय युवाओं को प्रेरित किया, जो उन्हें रूमानी राष्ट्रीयता और प्रबल भारतीयता का दर्शनशास्त्री मानते थे।

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें जननी की संज्ञा दी। निवेदिता की मृत्यु दार्जिलिंग में 44 वर्ष की आयु में हुई। उनकी समाधि पर अंकित है- यहाँ सिस्टर निवेदिता का अस्थि कलश विश्राम कर रहा है, जिन्होंने अपना सर्वस्व भारत को दे दिया।

Posted in राजनीति भारत की - Rajniti Bharat ki

बर्दवान ब्‍लास्‍ट की जाँच कर रही NIA की टीम ने अपने रिपोर्ट में साफ-साफ कहा है कि


बर्दवान ब्‍लास्‍ट की जाँच कर रही NIA की टीम ने अपने रिपोर्ट में साफ-साफ कहा है कि
पश्चिम बंगाल के कई मदरसों ने ‘जमात-उल-मुजाहिद्दीन’ नाम की आतंकी संगठन को मजबूत करने में अहम रोल अदा किया है। संगठन के कई सदस्‍यों को न सिर्फ इस मदरसे ने सहारा दिया बल्कि इन मदरसों के घरों में ही कई तरह के हथियारों को भी छिपाकर रखा गया।

एनआईए को जमात-उल-मुजाहिद्दीन की भारत में 58 ऐसी फैक्‍ट्रीयों का पता लगा है जो बम का निर्माण करती है। यह संगठन बांग्‍लादेश का है और इसकी 43 फैक्ट्रियां अकेले मुर्शिदाबाद में हैं। इस जांच में एक और रोचक पहलू जो सामने आ रहा है उसके मुताबिक इस संगठन के ताल्‍लुक एक मदरसे इस्‍लामी छात्र शिबिर से हैं।

======================================

तो क्या यही कारण है जिसके चलते जिहादी दीदी की सरकार ने बर्दवान ब्‍लास्‍ट की जाँच कर रही NIA की टीम को सहयोग करने से इंकार कर दिया..????

बर्दवान ब्‍लास्‍ट की जाँच कर रही NIA की टीम ने अपने रिपोर्ट में साफ-साफ कहा है कि
पश्चिम बंगाल के कई मदरसों ने 'जमात-उल-मुजाहिद्दीन' नाम की आतंकी संगठन को मजबूत करने में अहम रोल अदा किया है। संगठन के कई सदस्‍यों को न सिर्फ इस मदरसे ने सहारा दिया बल्कि इन मदरसों के घरों में ही कई तरह के हथियारों को भी छिपाकर रखा गया।

एनआईए को जमात-उल-मुजाहिद्दीन की भारत में 58 ऐसी फैक्‍ट्रीयों का पता लगा है जो बम का निर्माण करती है। यह संगठन बांग्‍लादेश का है और इसकी 43 फैक्ट्रियां अकेले मुर्शिदाबाद में हैं। इस जांच में एक और रोचक पहलू जो सामने आ रहा है उसके मुताबिक इस संगठन के ताल्‍लुक एक मदरसे इस्‍लामी छात्र शिबिर से हैं।

======================================

तो क्या यही कारण है जिसके चलते जिहादी दीदी की सरकार ने बर्दवान ब्‍लास्‍ट की जाँच कर रही NIA की टीम को सहयोग करने से इंकार कर दिया..????
Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक छोटा-सा पहाड़ी गांव था। वहां एक किसान,


एक छोटा-सा पहाड़ी गांव था। वहां एक किसान,
उसकी पत्नी, एक बेटा और एक बेटी रहते थे।
एक दिन बेटी की इच्छा स्कार्फ खरीदने की हुई और उसने
पिताजी की जेब से 10 रुपए चुरा लिए।
पिताजी को पता चला तो उन्होंने सख्ती से दोनों बच्चों से
पूछा : पैसे किसने चुराए? अगर तुम लोगों ने सच
नहीं बताया तो सजा दोनों को मिलेगी। बेटी डर गई। बेटे
को लगा कि दोनों को सजा मिलेगी तो सही नहीं होगा।
वह बोला : पिताजी, मैंने चुराए।
पिताजी ने उसकी पिटाई की और आगे से चोरी न करने
की हिदायत भी दी। भाई ने बहन के लिए चुपचाप मार
खा ली।
वक्त बीतता गया। दोनों बच्चे बड़े हो गए।
एक दिन मां ने खुश होकर कहा : दोनों बच्चों के रिजल्ट
अच्छे आए हैं।
पिताजी (दुखी होकर) : पर मैं तो किसी एक की पढ़ाई
का ही खर्च उठा सकता हूं।
बेटे ने फौरन कहा : पिताजी, मैं आगे पढ़ना नहीं चाहता।
बेटी बोली : लड़कों को आगे जाकर घर
की जिम्मेदारी उठानी होती है, इसलिए तुम पढ़ाई जारी रखो।
मैं कॉलेज छोड़ दूंगी।
अगले दिन सुबह जब किसान की आंख खुली तो घर में एक
चिट्ठी मिली। उसमें लिखा था – मैं घर छोड़कर जा रहा हूं।
कुछ काम कर लूंगा और आपको पैसे भेजता रहूंगा। मेरी बहन
की पढ़ाई जारी रहनी चाहिए।
एक दिन बहन हॉस्टल के कमरे में पढ़ाई कर रही थी।
तभी गेटकीपर ने आकर कहा : आपके गांव से कोई मिलने
आया है।
बहन नीचे आई तो फटे-पुराने और मैले कपड़ों में भी अपने
भाई को फौरन पहचान लिया और उससे लिपट गई।
बहन : तुमने बताया क्यों नहीं कि मेरे भाई हो।
भाई : मेरे ऐसे कपड़े देखकर तुम्हारे दोस्तों में
बेइज्जती होगी। मैं तो तुम्हें बस एक नजर देखने आया हूं।
भाई चला गया। बहन देखती रही। बहन की शादी शहर में एक
पढ़े-लिखे लड़के से हो गई। बहन का पति कंपनी में डायरेक्टर
बन गया। उसने भाई को मैनेजर का काम ऑफर किया, पर
उसने इनकार कर दिया।
बहन ने नाराज होकर वजह पूछी तो भाई बोला : मैं कम पढ़ा-
लिखा होकर भी मैनेजर बनता तो तुम्हारे पति के बारे में
कैसी-कैसी बातें उड़तीं। मुझे अच्छा नहीं लगता।
भाई की शादी गांव की एक लड़की से हो गई। इस मौके पर
किसी ने पूछा कि उसे सबसे ज्यादा प्यार किससे है?
वह बोला : अपनी बहन से, क्योंकि जब हम प्राइमरी स्कूल
में थे तो हमें पढ़ने दो किमी दूर पैदल जाना पड़ता था। एक
बार ठंड के दिनों में मेरा एक दस्ताना खो गया। बहन ने
अपना दे दिया। जब वह घर पहुंची तो उसका हाथ सुन्न पड़
चुका था और वह ठंड से बुरी तरह कांप रही थी। यहां तक
कि उसे हाथ से खाना खाने में भी दिक्कत हो रही थी।
उस दिन से मैंने ठान लिया कि अब जिंदगी भर मैं
इसका ध्यान रखूंगा।

Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

भाई राजीव दिक्षीत


भाई राजीव दिक्षीत

1)सौंफ, जीरा और मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बनाएं तथा सुबह-शाम सादे पाणी से लें उच्च रक्तचाप में आराम मिलता है I
2) नींबू के रस में सुहागे को मिलाकर लगाने से दाद समाप्त होती है I
3) मोटापे के कारण – शुगर, ह्रदय रोग, अपच, कब्ज आदि बिमारी भी होने लगती है I
4) त्वचा संबंधी रोग होनेपर सरसों के तेल में हरी मिर्च को जलाकर उस तेल की मालीश करें आराम मिलेगा I
5) अनार के पत्तों को पीसकर चटनी बनाकर शहद के साथ चाटने से ह्रदय दर्द में आराम मिलता है I
आपको कोई शारीरिक प्रोब्लेम हो तो Facebook या Whats app पर कॉन्टॉक्ट करें 9922144444

Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

पंचगव्य का उपयोग


पंचगव्य का उपयोग

1) देशी गाय का दुध गरम करके खडीशक्कर मिलाकर पीने से अतिसार पर आराम मिलता है
2) देशी गाय का दुध ओर घी खडीशक्कर मे मिलाकर छोटे बच्चो को खिलाने से देवी ओर गोवर ये बीमारी नही होती है
3) नाक मे से खून आनेपर देशी गाय का घी सुबह शाम नाक मे दालने से आराम मिलता है
4) देशी गाय का माखन सिरपर मलने से सिर कि जलन काम होती है
5) खट्टी छाछ पीनेसे वात आना कम होता है
आपको कोई शारीरिक प्रोब्लेम हो तो Facebook या Whats app पर कॉन्टॉक्ट करें 9922144444