एक छोटा-सा पहाड़ी गांव था। वहां एक किसान,
उसकी पत्नी, एक बेटा और एक बेटी रहते थे।
एक दिन बेटी की इच्छा स्कार्फ खरीदने की हुई और उसने
पिताजी की जेब से 10 रुपए चुरा लिए।
पिताजी को पता चला तो उन्होंने सख्ती से दोनों बच्चों से
पूछा : पैसे किसने चुराए? अगर तुम लोगों ने सच
नहीं बताया तो सजा दोनों को मिलेगी। बेटी डर गई। बेटे
को लगा कि दोनों को सजा मिलेगी तो सही नहीं होगा।
वह बोला : पिताजी, मैंने चुराए।
पिताजी ने उसकी पिटाई की और आगे से चोरी न करने
की हिदायत भी दी। भाई ने बहन के लिए चुपचाप मार
खा ली।
वक्त बीतता गया। दोनों बच्चे बड़े हो गए।
एक दिन मां ने खुश होकर कहा : दोनों बच्चों के रिजल्ट
अच्छे आए हैं।
पिताजी (दुखी होकर) : पर मैं तो किसी एक की पढ़ाई
का ही खर्च उठा सकता हूं।
बेटे ने फौरन कहा : पिताजी, मैं आगे पढ़ना नहीं चाहता।
बेटी बोली : लड़कों को आगे जाकर घर
की जिम्मेदारी उठानी होती है, इसलिए तुम पढ़ाई जारी रखो।
मैं कॉलेज छोड़ दूंगी।
अगले दिन सुबह जब किसान की आंख खुली तो घर में एक
चिट्ठी मिली। उसमें लिखा था – मैं घर छोड़कर जा रहा हूं।
कुछ काम कर लूंगा और आपको पैसे भेजता रहूंगा। मेरी बहन
की पढ़ाई जारी रहनी चाहिए।
एक दिन बहन हॉस्टल के कमरे में पढ़ाई कर रही थी।
तभी गेटकीपर ने आकर कहा : आपके गांव से कोई मिलने
आया है।
बहन नीचे आई तो फटे-पुराने और मैले कपड़ों में भी अपने
भाई को फौरन पहचान लिया और उससे लिपट गई।
बहन : तुमने बताया क्यों नहीं कि मेरे भाई हो।
भाई : मेरे ऐसे कपड़े देखकर तुम्हारे दोस्तों में
बेइज्जती होगी। मैं तो तुम्हें बस एक नजर देखने आया हूं।
भाई चला गया। बहन देखती रही। बहन की शादी शहर में एक
पढ़े-लिखे लड़के से हो गई। बहन का पति कंपनी में डायरेक्टर
बन गया। उसने भाई को मैनेजर का काम ऑफर किया, पर
उसने इनकार कर दिया।
बहन ने नाराज होकर वजह पूछी तो भाई बोला : मैं कम पढ़ा-
लिखा होकर भी मैनेजर बनता तो तुम्हारे पति के बारे में
कैसी-कैसी बातें उड़तीं। मुझे अच्छा नहीं लगता।
भाई की शादी गांव की एक लड़की से हो गई। इस मौके पर
किसी ने पूछा कि उसे सबसे ज्यादा प्यार किससे है?
वह बोला : अपनी बहन से, क्योंकि जब हम प्राइमरी स्कूल
में थे तो हमें पढ़ने दो किमी दूर पैदल जाना पड़ता था। एक
बार ठंड के दिनों में मेरा एक दस्ताना खो गया। बहन ने
अपना दे दिया। जब वह घर पहुंची तो उसका हाथ सुन्न पड़
चुका था और वह ठंड से बुरी तरह कांप रही थी। यहां तक
कि उसे हाथ से खाना खाने में भी दिक्कत हो रही थी।
उस दिन से मैंने ठान लिया कि अब जिंदगी भर मैं
इसका ध्यान रखूंगा।
Day: October 30, 2014
गुरु गोविंद सिंह-
गुरु गोविंद सिंह————!
भारत वर्ष में संघर्ष क़ा काल चल रहा था मुगलों क़ा अधिपत्य था भारत माता, गौ माता त्राहि-त्राहि कर रही थी बलात मुसलमान बनाया जा रहा था कश्मीर व अन्य स्थानों से तमाम साधू, संत व ब्राहमण आये थे धर्म सभा लगी थी, गुरु तेगबहादुर ने सभा में कहा कि हमारा धर्म किसी महापुरुष क़ा बलिदान चाहता है, पीछे से दस वर्षः क़ा एक बालक उठा —पिता जी–! इस धर्म सभा में आपसे बड़ा महापुरुष कौन है—? इस सभा में तो सबसे बड़े तो आप ही है इस नाते सबसे पहले आपका ही बलिदान होना चाहिए, गुरु तेगबहादुर यह समझ गए की यह बालक ही धर्म की रक्षा करेगा आखिर वे गुरु पुत्र थे और उन्ही को यह गद्दी सम्हालनी थी, अपने सिर की पगड़ी बच्चे क़े ऊपर रखते हुए बलिदान क़े लिए प्रस्थान कर दिया क्रूर औरंगजेब ने छल से तेगबहादुर को दिल्ली बुलाया और न्रिसंषता पुर्बक हत्या कर दी, यही बालक आगे गुरु गोविन्द सिंह क़े नाम से प्रसिद्द हुआ.
पिता क़े बलिदान क़ा बहुत गहरा प्रभाव पड़ा उन्होंने देखा कि औरंगजेब क़े अत्याचार से हिन्दू धर्म की रक्षा केवल संगठित सैनिक शक्ति ही कर सकती है, सम्पूर्ण भारत में गुरु नानक से लेकर तेगबहादुर तक — भ्रमण कर हजारो मठो की स्थापना की थी जैसा हम जानते है कि हमारे संतो ने राष्ट्रीयता को ध्यान में रखकर आध्यात्मिकता क़ा संचार किया, अकेले बिहार में ३०० मठ से अधिक थे जिन्हें ”उदासी मठ’ के नाम से आज भी जाना जाता है, गुरुगोविन्द सिंह ने समय क़े अनुसार सभी मठो को खालसा में परिवर्तन कर एक सैनिक शक्ति खड़ी की..
वे अमोघ निशाना मारते थे उनका बाण अचूक था वे महाबीर थे और दो लम्बी तलवारे बाधते थे प्रथम आनंदपुर साहब,चकोर और नाहन में सैनिक छावनी स्थापना की औरंगजेब ने सरहिंद, लाहौर क़े सूबेदारों को युद्ध हेतु भेजा गुरुदेव क़े दो बालक बंदी बना लिए गए, इस्लाम क़े मुहब्बत व प्रेम क़ा सन्देश देने वालो ने दोनों पुत्रो को मस्जिद क़े दिवार में जिन्दा चुनवा दिया गुरु गोविन्द सिंह लड़ते-लड़ते दमदमा में दसवा ग्रन्थ निर्मित किया, महान क्रन्तिकारी बन्दा को धर्म की रक्षा हेतु तैयार कर दक्षिण में गोदावरी क़े तट पर साधना में लग गए आश्रम में दो पठानों ने आश्रय मागा उन्हें निराश्रित जानकर आश्रय दिया, उनको भोजन कराया स्वयं बिश्राम पर गए थे कि उन तुर्कों ने धोके से उनके पेट में कटार मार दी वे स्वर्ग सिधार गए, [ वाहे गुरु की फतह और सत श्री अकाल ] क़े युद्ध घोष देश, धर्म की रक्षा क़े लिए गुरुदेव क़े शिष्यों ने गुंजित किये, मरते समय उनकी अमरवाणी अकस्मात् निकली–
‘जन विस्वास करऊ तुरुक्का’.
हम हिन्दू कैसे है की अपने महापुरुषों की बात नहीं मानते इसलिय बारम्बार धोखा खाते रहते है बिधर्मी हमें बेवकूफ समझकर इस्लाम को प्रेम-मुहब्बत का धर्म बताता रहता है.
पृथ्बीराज चौहान से लेकर हिन्दू कुल सूर्य राणाप्रताप, शिवाजी महराज पूरी शिक्ख परंपरा आजाद हिंद फ़ौज से लेकर भगत सिंह तक की बलिदानी परंपरा — लाखो बलिदानियों ने अपनी आहुति दी तब देश आजाद हुआ, केवल १८५७ से १८६० क़े बीच में उत्तर प्रदेश व बिहार में बीस लाख लोगो को अंग्रेजो ने मारा जितने पढ़े लिखे लोग थे सभी को समाप्त कर दिया देश बिभाजन क़े समय लगभग लाखो लोग मारे गए आज़ादी ऐसे नहीं मिली, मै गाधीजी की आलोचना नहीं करता चाहता लेकिन जो गीत गाया जाता है कि [साबरमती क़े संत तुने कर दिया कमाल देदी आज़ादी हमें खड्ग बिना ढाल] ये गीत उन सभी क्रांतिकारियों क़ा अपमान करती है, हमने सैकड़ो वर्ष संघर्ष व लाखो, करोडो बलिदान क़े बाद आज़ादी प्राप्त की है यह आज़ादी किसी की कृपा पर नहीं है.
गुरु गोविन्द सिंह अकेले नहीं बलिदान हुए अपने पिता, बच्चो और शिष्यों सहित स्वयं को बलिदान करके एक अद्भुत उदहारण प्रस्तुत किया जो हमारे लिए हमेसा प्रेरणा दायक रहेगा.
. ऐसे थे हमारे गुरु गोविन्द सिंह, जब पंजाब में गुरु क़े शिष्यों क़े विजय पर्व क़ा तीन सौवा वर्ष मनाया जा रहा हो तो गुरु गोविन्द सिंह को बिना याद किये यह विजय उत्सव पूरा नहीं हो सकता इसलिए हमने संक्षेप में याद दिलाने क़ा प्रयत्न किया.
हरीसिंह नलवा ने मारे खेदि-खेदि अफगान पठन——-!
हरीसिंह नलवा ने मारे खेदि-खेदि अफगान पठन——-!
हरिसिंह नलवा महाराजा रणजीत सिंह के सेनापति थे उनका जन्म १७९१ में २८ अप्रैल को एक सिख परिवार, गूजरवाला- पंजाब में हुआ था इनके पिता का नाम गुरदयाल सिंह माँ का नाम धर्मा कौर था, बचपन में उन्हें घर पर लोग हरिया के नाम से पुकारते थे सात वर्ष में ही पितृ-क्षाया उनके ऊपर से उठ गयी १८०५ में महाराजा रणजीत सिंह ने बसंत उत्सव पर प्रतिभा खोज प्रतियोगिता का आयोजन किया जिसमे भाला, तलवार, धनुष-बाण इत्यादि शस्त्र चलाने में नलवा ने अद्भुत प्रदर्शन किया महाराजा बहुत प्रभावित हो अपनी सेना में भारती कर अपने साथ रख लिया एक दिन महाराजा शिकार खेलने गए अचानक रणजीत सिंह के ऊपर शेर ने हमला बोल दिया हरीसिंह ने उसे वही तमाम कर दिया रणजीत सिंह के मुख से अचानक ही नक़ल गया अरे तुम तो राजा नल जैसे वीर हो तब से उनके नाम में नलवा जुड़ गया और वे सरदार हरिसिंह नलवा कहलाने लगे, महाराजा के अत्यंत विस्वास पात्र बन गए उनको कश्मीर का राज्यपाल बनाकर भेजा गया वहा की स्थित देखकर वे बिहवल हो गए, उनके अन्दर गुरु गोविन्द सिंह का संस्कार और बंदा का रक्त था वे जीते -जागते बंदा बैरागी के सामान गुरु के शिष्य थे वे पहले हिन्दू महापुरुष थे जो वास्तविक बदला लेना जानते थे और ”शठम शाठ्यम समांचरेत” जैसा ब्यवहार करते थे यदि उनका अनुशरण हमारे हिन्दू वीर करते तो भारत की ये दुर्दसा नहीं होती कश्मीर घाटी में पहुचते ही वे जिन मंदिरों को ढहाकर मस्जिद बनाया गया था उसे वे चाहते थे की उसी स्थान पर मंदिरों का निर्माण किया जाय जिन मंदिरों की मूर्तियों को तोड़ दिया गया था, मुसलमानों से कर लिया जाय, उन्होंने जिस प्रकार मुस्लिम शासको ने हिन्दुओ के साथ ब्यवहार किया था उन मुसलमानों के साथ वैसा ही ब्यवहार करते थे उन्होंने बिधर्मी हुए बंधुओ की घर वापसी भी की जिससे बिना किसी संकोच के बड़ी संख्या में लोगो की घर वापसी होण लगने लगी, लेकिन कही न कही हिन्दुओ की सहिशुनता आड़े आयी और कश्मीरी पंडितो ने उन्हें ऐसा करने से उन्हें रोका मस्जिदों को नहीं गिराया जाय आज उसका परिणाम कश्मीरी पंडित झेल रहे है.
नलवा कश्मीर को जीतते हुए अफगानिस्तान भी पंहुचा वहा पर हिन्दुओ पर जजिया कर लगा था नलवा ने कर तो हटा ही दिया बदले मुसलमानों से कर वसूलना शुरू किया वे मुस्लिम औरतो की इज्जत तो करते थे लेकिन यदि कोई मुस्लिम हिन्दुओ की औरतो को ले जाता तो वे उसके साथ वैसा ही करते वे सच्चे हिन्दू शासक थे जो हिन्दुओ के दुःख को समझते थे वे मुसलमानों से कैसा ब्यवहार करना जानते थे वे ही एक ऐसे शासक थे जिन्होंने मस्जिदों के बदले मंदिरों की सुरक्षा की, यदि किसी ने मंदिर तोड़े तो उतनी ही मस्जिद तोड़कर उसका जबाब नलवा देता था, अहमद्साह अब्दाली और तैमुरलंग के समय भी बिस्तृत और अखंडित था इसमें कश्मीर, पेशावर, मुल्तान और कंधार भी था, हैरत, कलात, बलूचिस्तान और फारस आदि पर तैमुरलंग का प्रभुत्व था हरीसिंह नलवा ने इनमे से अनेक प्रदेश राजा रणजीत सिंह के राज्य सीमा के विजय अभियान में सामिल कर दिया मुल्तान विजय में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी महाराजा के आवाहन पर आत्मबलिदानी दस्ते में सबसे आगे थे, इस संघर्ष में उनके कई साथी बलिदान हुए लेकिन मुल्तान का किला १८२४ में महाराजा रणजीत सिंह के हाथो में आ गया, १८३७ में जामरोद पर अफगानों ने आक्रमण किया रंजित सिंह के बेटे का विबाह लाहौर में था हरिसिंह पेशावर में वीमार थे आक्रमण को सिंटे ही वे जामरोद पहुचे अफगानी सैनिक पराजित हो भाग निकले नलवा और सरदार निधन सिंह उनका पीछा कारने लगे रस्ते में सरदार सम्सखान एक घाटी में छिपा हुआ था घाटी में पाहते ही नलवा पर आक्रमण हुआ धोखे से नलवा पर पीछे से गोली मार दी इसके बाद भी हरी सिंह दौडाते रहे जब वे जामरोद पहुचे तो उनका निष्प्राण शरीर ही घोड़े पर था ३० अप्रैल १८३७ को उस हुतात्मा की अंत्येष्ठी की गयी.
आज भी अफगानिस्तान की महिलाये नलवा के नाम से अपने बच्चो को डराती है, (सो जा बेटे नहीं तो नलवा आ जायेगा) नलवा एक महान योधा भारतीय सीमा का विस्तार करने वाले गुरु गोविन्द सिंह के असली उत्तराधिकारी थे, उन्हें तो लोग गुरुगोविन्द जैसा ही स्वीकार करते थे, वे १२ बजे रात अथवा दिन को हमला करते थे लगता था कि जैसे कोई देवदूत हमला कर रहा हो इस नाते आज सरदारों के बारे में बारह बजे कहकर मजाक उड़ाते हैं उन्हें पता नहीं कि हरिसिंह बारह बजे ही पागल हो हमला करता था यह उनके लिए सफलता को द्योतक था, बहुत से बिचारक तो यहाँ तक मानते है कि नलवा के शरीर में सेनानी पुष्यमित्र की आत्मा थी, जिस प्रकार वैदिक धर्म की रक्षा में पुष्यमित्र ने उस काल की दिशा को मोड़ दिया था उसी प्रकार वीर सेनानी हरीसिंह नलवा ने अपने समय में काल को ही अपने हाथ में ले लिया था वह महान देश भक्त, सीमा रक्षक और धर्म रक्षक थे, वे किसी के बिरोधी नहीं थे बल्कि उनके अन्दर हिन्दू स्वाभिमान था, ऐसे हिन्दू हृदय सम्राट वीर सेनापति नलवा को कोटि -कोटि नमन।
चिंता ये नही कि अल कायदा आ रहा है ,, चर्चा ये है कि मेरा शाहरुख क्या खा रहा है ..
चिंता ये नही कि अल कायदा आ रहा है ,,
चर्चा ये है कि मेरा शाहरुख क्या खा रहा है ..
सोच ये नही है कि बहन प्रज्ञां ठाकुर मरने वाली है ,
खोज ये है कि बिपाशा शूटिंग करने वाली है ..
दुख इसका नही कि फौजी का सर काट लिया ,
सुख ये है कि आमिर का थूका चाट लिया ..
रोये नही इस बात पे वो कि बाला साहेब नही रहे ..
खोये रहे इस याद मे कि सलमान को कोई कुछ नही कहे …
चुप बैठे थे ये उस वक्त भी जब अपने बोडो बलिदान हुए ,
योगी आदित्यनाथ से बोले बाबा तुम से अच्छे इमरान हुए ..
अरे मैं पूछता हू इसका समाधान कहा है ?
कोई तो बताये मेरा हिन्दुस्तान कहा है ?????
MODI
खर्चों पर लगाम लगाने की तैयारी, विदेशी दौरे पर 5 स्टार में नहीं होगी अफसरों की मीटिंग
बचत को बढ़ावा देने और गैरजरूरी खर्चों में 10 प्रतिशत की कटौती के लिए केंद्र सरकार ने अफसरों के विदेशी दौरे पर फर्स्ट क्लास में यात्रा करने पर प्रतिबंध लगा दिया है. साथ ही यह निर्देश भी दिया है वे बातचीत के लिए जितना हो सके वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग करें.
It was Karma playing Rama: Russian actor
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It was Karma playing Rama: Russian actor
May 18, 2011 Elena Krovvidi
In this wide-ranging conversation, Pechnikov talks about his experiences of playing Rama and acclaim and adulation that followed, reminiscences of his visits to India and his life-long love affair with India.
Gennady Pechnikov is better known in theatre circles as the actor who played Hindu god Rama in the Russian stage adaptation of Ramayana, an immortal Indian epic, in the 1960s. Decades after the premiere of Ramayana in New Delhi, Pechnikov recalls with relish his meeting with Jawaharlal Nehru, India’s first prime minister. “After the Ramayana premiere in India”, Pechnikov recalls warmly, “Jawaharlal Nehru came up to me, shook my hand and said: “You are our Rama.”’
“And this was the best compliment for me. Actually, Nehru was supposed to stay only for the first act but when his assistant tried to remind him about it, he brushed him off saying: “Please, for once in my life, let me do what I want.”
Looking back, Pechnikov firmly believes that playing Rama was more of karma than a role and he was predestined for this role. His home shows the deep impress Indian culture and religion has left on his mind and heart. There are statues of Rama and Sita, and Shiva on the shelves which create a very Indian ambience in the room. The most precious of them, according to Pechnikov, is the picture of Rama, Sita and Hanuman carved on the wood. “It was the gift of an Indian boy named Anand. He made it himself,” he reclls. There is also a photo of Nehru with Pechnikov and the cast of Ramayana hanging on the wall to the left from his table.
Pechnikov
People’s Artist of Russia G. Pechnikov is playing the role of Rama in the 20-th anniversary of “Ramayana” staged in the Central Children’s Theater (Russian Academic Youth Theatre), May 1, 1980. Source: RIA Novosti
How did you begin working on Ramayana?
I co-directed Ramayana. It was Natalya Guseva, a reputed Indophile, who brought us the script. She thought that Ramayana must be staged at children’s theatre.
And what did it feel like when Valentin Kolesaev offered you to co-direct Ramayana and to play what many Indians worship as God? Did you feel elated, confused or probably a little bit nervous due to divine aura around that role?
My love affair with India began before the Second World War, much before I became an actor. I read Jules Verne’s novel “Mysterious Island” when I was a young boy. There was such an amazing description there. I remember reading about those sailors who suffered a shipwreck and there was this man who helped them, this Indian prince who was a very handsome, intelligent, educated and kind man, who helped people. And the most important thing was that he participated in a rebellion, he fought for his country. There were also a lot of films and Russian painter Veretshagin’s paintings devoted to India. And it was all very impressive and inspiring, especially when you are young.
Indian poet and journalist Madanlal Madhu is a friend of yours. Did he give you any advice during your work on Ramayana?
Madan Lal Madhu is my very old and good friend. After the premiere of Ramayana, he wrote about it for the Indian media and he mentioned that in some ways we did an even better job than Indian directors, (laughs) which was good to hear. For example, remember the Ramayana scene when during the contest for the hand of beautiful Sita, only Rama can raise the bow. Indian performers playing Rama raised the bow very easily. And I suggested that my character puts much effort into picking up the bow because it shows its heaviness and emphasises Rama’s strength.
Did the Indian audience like this idea?
They were delighted. On the whole, I felt very encouraged by the reaction of Indians to this play because I was a little bit anxious how it would be received in India. I had a good relationship with the then Indian ambassador, K.P.S. Menon and his wife Saraswati Menon. So I asked the ambassador why Indians liked me and my performance of Rama. He is god, he is an ideal, and it is a great challenge and responsibility to perform this role. And, after all, I am a representative of a completely different culture. The ambassador laughed and explained to me: “Firstly, your figure, you are very stately, you have big eyes and round face, which makes you look the part. And, most importantly, you are very kind. Because Rama must be kind, he puts the interests of his people first.
Tells us about your visits to India and your fond memories of the country
I remember my first visit to this amazing country. It was Indira Gandhi who invited me, and it was a miracle that I was allowed to go there alone, without being accompanied by the government people. I was very stressed because I didn’t know what would be a proper gift for Indira Gandhi, and I wanted my gift for her to be special. Finally, it gave her the picture of me as Rama and also the best Russian sweets for her grandchildren.
What was her reaction?
She held the picture, took a long look at it and said: “Atchatcha!” in this very Indian way. (smiles) It was an honour for me that she spent 40 minutes talking to me whereas she had a very tight schedule and she gave every other guest only 15 minutes of her time.
I think maybe there was something Arian in me (laughs); that’s why I was so much interested in India. You know, I’ve heard that there is the continuity between India and Russia. For example, the name of the longest river in Russia is Ra which sounds similar to Rama. And Indian Vedas are similar to the Russian verb “vedat” which means “to know”. I felt close to India since my childhood. I always felt an affinity with Indian mysteriousness, wisdom, beauty and kindness.
Were there any places in India that you were particularly keen to visit?
When I came to India I said to the people receiving me that I am a guest here and I would go wherever they take me with great pleasure. But there was one place I insisted on seeing first. It is Raj Ghat, the cremation site of Mahatma Gandhi. I feel sad when I think about his assassination, he was such a dignified man. By the way, the Russian translation of Gandhi’s famous last words is not correct. In Russian, it sounded as “Hey Lord!” But it was “Hey Ram!” And that’s a great difference.
Can you tell me more about the process of working on the play?
We were immersed into Ramayana like in deep waters of the ocean. At that time I didn’t know much about Ramayana. We started to learn Indian history and epics in the process of preparing for the play. I think the difference between other religious books, such as the Bible, Koran, Torah, and Ramayana is that the main character Rama was all-too-human. Rama was a warrior, a prince. In fact, he was the leader every nation would dream of. And the Indian people created an ideal.
What do you find especially appealing in the Hindu philosophy?
The harmony. Rama is from the Sun dynasty and Sita is the daughter of the Earth. Sun, earth and heaven do not come into conflict; it is the harmony between very different powers that is so unique in Hinduism. So when Rama fights against Ravana, all the forces of nature help him. Animals represent divine incarnations, and I believe this shows the wisdom of the Indian people. Take Hanuman, for example. He is intelligent, very creative, and he impersonates spiritual forces. By the way, speaking of Hanuman… I was talking to the first Indian astronaut Rakesh Sharma. I asked him: Who is the first Indian astronaut? He said: “I am”. I said: “No, it’s not you”. And seeing the look of surprise on his face I announced: “It was Hanuman”. He laughed so much.
Gennady M. Pechnikov Biography
8 September 1926 – was born in Moscow
1947 – graduated from Theatre School named after Vl.I Nemirovich-Danchenko
1947-1948 – performed at MKHAT
Since 1948 – performs at Central Children’s Theatre (now – Russian Academic Youth Theatre)
1960 – co-directed and played the leading part of Rama in the Russian staging of “Ramayana”
1976 – recorded the “Ramyana” play as a film
1976 – filmed a documentary about the Central Children’s Theatre named “Next to the Bolshoy Theatre, Opposite the Maly Theatre”
1977 – filmed a documentary about Indians’ watching “Ramayana” named “Golden Link of Friendship”
1977 – received the honorary title “National artist of Russia”
1984 – received the “Bal Mitra” Award for the part of Rama
2001 – received the “Order of Friendship”
May 9,10, 2008 – President of India Pratibha Patil gave Pechnikov the “Padma Shri” Award in Delhi for the development of Russian-Indian relationship
Gennady Pechnikov is Jawaharlal Nehru Award nominee
1991-2000 – First President of the Roerich Centre
Since 2000 – First Vice-President of the Russian-Indian Academy “National Patrimony”
Since 2005 – Artistic Director of the Institute of Performing Arts named after P.M. Ershov
http://in.rbth.com/articles/2011/05/18/it_was_karma_playing_rama_russian_actor_12535.html

कोई इस षडयंत्र की पुष्टि करें…

कोई इस षडयंत्र की पुष्टि करें……
नई दिल्ली. ऑपरेशन ब्लैक पाकिस्तान द्वारा चलाया जा रहा वह अभियान है. जिसके अंतर्गत माइंड गेम खेल कर भारत के खिलाफ दुनिया के अलग-अलग देशों को एकजुट करना है. ताकि मोदी सरकार की चूलें हिल जायें…..
इसके लिए कोएलिशन अगेंस्ट जीनोसाइड (सीएजी) तैयार की गई है. जो संयुक्त राष्ट्र अधिकार संगठन में मोदी के खिलाफ जल्द ही शिकायत दर्ज करने वाली है। सीएजी को मजबूत बनाने का काम 46 एनजीओ कर रही हैं, जिनमें से 16 पाकिस्तान में रहने वाले अमेरिकी चला रहे हैं…..
ध्यान देने की बात ये है कि जिस अमेरिका ने गुजरात दंगों को लेकर नरेंद्र मोदी पर प्रतिबंध लगाया था. हाल ही में उसी अमेरिका ने मोदी के लिये आंखें बिछा दीं। भारत के प्रधानमंत्री के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा प्यार पहले कभी नहीं देखा गया…..
लेकिन आने वाले दिनों में यह प्यार कई सारे मामलों में बदल
सकता है, जो मोदी पर लग सकते हैं। जी हां, नरेंद्र मोदी को अभी से कई नये आरोपों के लिये तैयार रहना होगा…..
वो आरोप भारत के अंदर नहीं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगेंगे. क्योंकि पाकिस्तान मोदी के खिलाफ ‘ऑपरेशन ब्लैक’ चला रहा है।खुफिया विभाग की रिपोट्र के अनुसार यही सीएजी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को धन मुहैया करा रही है. ताकि भारत के खिलाफ रचने वाली साजिशों को वो अंजाम दे सके। यही नहीं, आईएसआई ने कई एनजीओ को पैसा देकर इस बात के लिये तैयार किया है कि वो अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत व मोदी के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकें……
क्या कहती हैं भारतीय एजेंसियां??….
ऑपरेशन ब्लैक पर निरंतर निगाहें बनाये रखने वाली भारतीय
एजेंसियों का कहना है कि सीएजी व उससे जुड़े संगठन नरेंद्र
मोदी के खिलाफ कुछ ऐसी शिकायतें करने वाले हैं, जिनमें
कहा जायेगा कि मोदी ने हजारों लोगों के मानवाधिकारों का हनन किया। साथ ही किसी विशेष धर्म के खिलाफ कार्य किये…..
इस शिकायत के अंतर्गत खास तौर से गुजरात दंगों का मुद्दा उठाया जायेगा। यहां पर मुस्लिम ही नहीं, ईसाई धर्म के लोगों को भी मोदी के विरुद्ध भड़काया जा सकता है……
भारत के खिलाफ मनोयुद्ध – असल में यह सब करके
पाकिस्तानी एजेंसी भारत के खिलाफ मनोयुद्ध छेड़े हुए है।
ऐसा करके आईएसआई ऐसा माहौल तैयार कर रहा है, जिसमें
वो बाकी देशों से इस बात की सहमति हासिल कर सके कि सरहद पर जिस प्रकार के हमले पाकिस्तान की ओर से किये जा रहे हैं.वो जायज हैं. आईएसआई यह जताना चाहती है कि मोदी की नई
सरकार बाकी देशों से चाहे जितने अच्छे रिश्ते क्यों न स्थापित
करने में लगी हो. लेकिन अपने पड़ोसी पाकिस्तान से मधुर संबंध बनाने की जगह उस पर हमले कर रही है…..
ऑपरेशन ब्लैक के अंतर्गत आईएसआई जो कुछ भी कर रहा है. उससे लगता है कि इससे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संघ में भारत की किरकिरी होगी। आईएसआई को यह विश्वास है कि ऑपरेशन ब्लैक के सफल होने पर मोदी व भारत के दुश्मनों की संख्या में इजाफा होगा……
मोदी के खिलाफ भारतीयों से संपर्क – इस ऑपरेशन के तहत
आईएसआई भारत में रहने वाले उन भारतीयों से संपर्क करने में जुटा है, जो मोदी के खिलाफ हैं. ताकि उसके ऑपरेशन को बल मिल सके और भारत में भी मोदी के विरुद्ध लोग खड़े हो सकें…..
आईबी की एक रिपोर्ट के अनुसार आईएसआई से जुड़ी एनजीओ ने करीब 300 भारतीयों को अपने साथ जोड़ लिया है, जो छोटे स्तर से लेकर संयुक्त राष्ट्र के मंच जैसे बड़े स्तर तक मोदी के विरुद्ध आवाज उठायेंगे…..
आईएसआई को किस बात का डर है??…..
इस ऑपरेशन के तहत आईएसआई को सिर्फ एक बात का डर है वो यह कि ऐसा करने पर कहीं चीन, श्रीलंका, अफगानिस्तान और नेपाल कहीं एक जुट होकर पाकिस्तान के विरुद्ध न खड़े हो जायें. क्योंकि जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं. तब से उन्होंने इन सभी देशों के साथ सकारात्मक रिश्तों को मजबूत किया है…..
आईएसआई ने ऑपरेशन ब्लैक के तहत अपने साथ देश के सैकड़ों सिखों को भी जोड़ लिया है. जो कि मोदी व उनकी सरकार के विरुद्ध आवाज उठायेंगे। माना जा रहा है कि ये मामले सीधे संयुक्त राष्ट्र अधिकार संगठन की कोर्ट में उठाये जाएंगे….
मोदी के खिलाफ जाल बुन रहा आईएसआई अपने मिशन में सफल होने के लिये जम कर धन बहा रहा है। इसके लिये अपने एजेंटों के माध्यम से सीधे-साधे हिंदुस्तानियों को बहला-फुसला कर अपनी ओर कर रहा है। पैसे के बल पर आईएसआई भारत के अंदर हथियारों और ड्रग्स की सप्लाई
को बढ़ावा दे रहा है…..
ऑपरेशन ब्लैक का अंतिम लक्ष्य है “भारत पर बड़ा आतंकी हमला” और वह तभी संभव हो सकेगा, जब भारत सरकार कमजोर पड़ेगी। आईएसआई अच्छी तरह जानता है कि नरेंद्र मोदी के रहते कोई भी गलत कदम खुद पाकिस्तान के लिये भारी पड़ सकता है, लिहाजा इस ऑपरेशन के तहत पहले प्रधानमंत्री और फिर देश को निशाना बनाने का प्लान है……
साभार – निखिल जैन…
यज्ञोपवित संस्कार

वैसे हिन्दू धर्म मे बहुत से संस्कार है
लगभग आठ प्रमुख है
उनमें से एक है
यज्ञोपवित संस्कार
जानिए क्या है
लाभ यज्ञोपवित का
और क्या है
जनेऊ पहनने के लाभ
पूर्व में बालक की उम्र आठ वर्ष होते
ही उसका यज्ञोपवित संस्कार कर
दिया जाता था। वर्तमान में यह प्रथा लोप
सी हो गई है। जनेऊ पहनने का हमारे स्वास्थ्य से
सीधा संबंध है। पूर्व काल में जनेऊ पहनने के पश्चात
ही बालक को पढऩे का अधिकार मिलता था।
मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व जनेऊ को कानों पर कस कर
दो बार लपेटना पड़ता है। इससे कान के पीछे
की दो नसे जिनका संबंध पेट की आंतों से है,
आंतों पर दबाव डालकर उनको पूरा खोल देती है
जिससे मल विसर्जन आसानी से हो जाता है
तथा मल-मूत्र विसर्जन के समय कान के पास ही एक
नस से कुछ द्रव्य विसर्जित होता है। जनेऊ उसके वेग
को रोक देता है, जिससे कब्ज, एसीडीटी, पेट
रोग, मूत्रन्द्रीय रोग, रक्तचाप, हृदय रोगों सहित
अन्य संक्रामक रोग नहीं होते। जनेऊ पहनने
वाला नियमों में बंधा होता है। वह मल विसर्जन
के पश्चात अपना जनेऊ कान पर से तब तक नहीं उतार
सकता जब तक वह हाथ पैर धोकर कुल्ला न कर ले।
अत: वह अच्छी तरह से अपनी सफाई करके ही जनेऊ
कान से उतारता है। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट,
कृमि, जिवाणुओं के रोगों से बचाती है। जनेऊ
का सबसे ज्यादा लाभ हृदय
रोगियों को होता है।
नमो सेना मित्र मंण्डल सीधी
कांग्रेस के राज में इन महान पुरषो के कार्य के बारे में क्या कहेंगे आप…
मित्रो … कांग्रेस के राज में इन महान पुरषो के कार्य के बारे में क्या कहेंगे आप…
मध्यप्रदेश के गठन के बाद पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा को शिक्षामंत्री बनाया गया। इसके बाद 1968 में मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र ने अपने मंत्रीमंडल में उद्योग मंत्री बनाया। डॉ. शंकर दयाल शर्मा के शिक्षामंत्री के कार्यकाल से ही प्रदेश के स्कूलों में ग से गणेश की जगह गधा पढ़ाया जाने लगा। इससे पहले नवाबी शासन काल में भोपाल रियासत सहित विंध्य और ग्वालियर रियासत में भी ग से गणेश पढ़ाया जाता था। हिंदी वर्णमाला के अन्य अक्षर भी हिंदु देवी देवताओं के नाम से पढ़ाए जाते थे।
स्कूलों में पहली कक्षा के छात्र-छात्राओं को ग से गणेश की जगह गधा पढ़ाए जाने के निर्णय का जमकर विरोध भी हुआ था। बताया जाता है कि उस समय डॉ. शंकर दयाल शर्मा के शिक्षा के क्षेत्र में किए गए इस बदलाव से उनकी ही पार्टी के कई नेता खुश नहीं थे। इस निर्णय की गूंज दिल्ली तक पहुंच गई तो डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने धर्म निरपेक्षता का तर्क देकर सबकी बोलती बंद कर दी।
सदन में अंग्रेजी में बोले डॉ.शर्मा
डॉ. शंकर दयाल शर्मा काफी विद्वान थे। अंग्रेजी के अच्छे ज्ञाता थे। यहां तक की उस समय अपना हर आदेश अंग्रेजी भाषा में जारी करते थे। विधानसभा में हिंदी भाषी सदस्यों से पूछे गए प्रश्न का उत्तर भी अंग्रेजी में ही देते थे। डॉ. शर्मा अंग्रेजी धाराप्रवाह में और जल्दी-जल्दी बोलते थे, कई सदस्यों को तो समझ ही नहीं आती थी। उनकी इस अंग्रेजी प्रेम से विधानसभा में कई सदस्य नाखुश थे। एक बार जब डॉ शर्मा विधायक द्वारा हिन्दी पूछे गए प्रश्न का उत्तर अंग्रेजी में दे रहे थे तो सदस्यों ने विरोध किया, इस पर ड़ॉ शर्मा ने हिंग्लश में उत्तर देना शुरू कर दिया।


कजरी के पास होकर भी शीला के खिलाफ सबूत न निकालेऔर आरोप लगाने के बाद गडकरी के खिलाफ सबूत न निकलेवो कितना विश्वसनीय है दिल्ली वालो समझ लो