Day: October 29, 2014
The Surya Temple at Osian (Jodhpur), early 700’s
The Surya Temple at Osian (Jodhpur), early 700’s
— with Nnparmar Navinchandra.

क्षत्रपों के अधिकार में रहा था वागड
बीकानेर में बड़ा बाज़ार स्थित भांडासर जैन मंदिर
बीकानेर में बड़ा बाज़ार स्थित भांडासर जैन मंदिर यहाँ के प्रमुख जैन मंदिरों में से एक है। कहा जाता है इस मंदिर के निर्माण में 40,000 किलोग्राम घी का इस्तेमाल किया गया था। इसका निर्माण सन् 1468 में एक व्यापारी भांडाशाह ने शुरू किया था और भांडाशाह की पुत्री ने सन 1541 में इसे पूरा करवाया था। भांडासर जैन मन्दिर का निर्माण गोदा नामक वास्तुशास्त्री की देखरेख किया गया था। वास्तुशास्त्री गोदा की याद में परकोटा युक्त बीकानेर नगर के रांगडी चौक में पत्थर की सुन्दर चौकी बनाई गई है। यह चौकी सुन्दर नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है। वि.सं. 1544 में भाण्डाशाह द्वारा निर्माण प्रारंभ कराए गए इस मंदिर का वास्तविक नाम ‘त्रैलोक्य दीपक प्रसाद‘ है जिसे भाण्डाशाह मंदिर भी कहा जाता है। यह धर्मस्थल बीकानेर के मंदिर स्थापत्य कला का अद्भुत प्रतीक है। इसकी गणना बीकानेर के प्राचीनतम स्थापत्य नमूनों में की जाती है।

करमा बाई का मंदिर कालवा(मकराना)
समीधेश्वर प्रासाद बहुत भव्य बना हुआ है,
राजस्थान के मंदिर-शिल्प से संबंधित परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण तथ्य-
राजस्थान के विविध रंग shared a link.
राजस्थान के मंदिर-शिल्प से संबंधित परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण तथ्य-
1. राजस्थान में जो मंदिर मिलते हैं, उनमें सामान्यतः एक अलंकृत प्रवेश-द्वार होता है, उसे ‘तोरण-द्वार’ कहते हैं।
2. सभा-मण्डप- तोरण द्वार में प्रवेश करते ही उपमण्डप आता है। तत्पश्चात् विशाल आंगन आता है, जिसे ‘सभा-मण्डप’ कहते हैं।
3. मूल-नायक- मंदिर में प्रमुख प्रतिमा जिस देवता की होती है उसे ‘मूल-नायक’ कहते हैं।
4. गर्भ-गृह- सभा मण्डप के आगे मूल मंदिर का प्रवेश द्वार आता है। मूल मन्दिर को ‘गर्भ-गृह’ कहा जाता है, जिसमें ‘मूल-नायक’ की प्रतिमा होती है।
5. गर्भगृह के ऊपर अलंकृत अथवा स्वर्णमण्डित शिखर होता है।
6. प्रदक्षिणा पथ- गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा लगाने के लिए जो गलियारा होता है, उसे ‘पद-प्रदक्षिणा पथ’ कहा जाता है।
7. पंचायतन मंदिर- मूल नायक का मुख्य मंदिर चार अन्य लघु मंदिरों से परिवृत (घिरा) हो तो उसे “पंचायतन मंदिर” कहा जाता है।
1. राजस्थान में जो मंदिर मिलते हैं, उनमें सामान्यतः एक अलंकृत प्रवेश-द्वार होता है, उसे ‘तोरण-द्वार’ कहते हैं।
2. सभा-मण्डप- तोरण द्वार में प्रवेश करते ही उपमण्डप आता है। तत्पश्चात् विशाल आंगन आता है, जिसे ‘सभा-मण्डप’ कहते हैं।
3. मूल-नायक- मंदिर में प्रमुख प्रतिमा जिस देवता की होती है उसे ‘मूल-नायक’ कहते हैं।
4. गर्भ-गृह- सभा मण्डप के आगे मूल मंदिर का प्रवेश द्वार आता है। मूल मन्दिर को ‘गर्भ-गृह’ कहा जाता है, जिसमें ‘मूल-नायक’ की प्रतिमा होती है।
5. गर्भगृह के ऊपर अलंकृत अथवा स्वर्णमण्डित शिखर होता है।
6. प्रदक्षिणा पथ- गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा लगाने के लिए जो गलियारा होता है, उसे ‘पद-प्रदक्षिणा पथ’ कहा जाता है।
7. पंचायतन मंदिर- मूल नायक का मुख्य मंदिर चार अन्य लघु मंदिरों से परिवृत (घिरा) हो तो उसे “पंचायतन मंदिर” कहा जाता है।
प्राचीन स्तंभों की परंपरा का प्रमाण
प्राचीन मंदिर मण्डलेश्वर शिवालय.
प्राचीन मंदिर मण्डलेश्वर शिवालय…..