Posted in रामायण - Ramayan

भित्तियो पर उरेही गयी रामचरित-चित्रावली


भित्तियो पर उरेही गयी
रामचरित-चित्रावली

भाव संप्रेषण के क्षेत्र में चित्रकला की भूमिका चित्राकर्षक होती है। दक्षिण-पूर्व एशिया में रेखा और रंगों को माध्यम से रामकथा के अनेकवर्णी चित्रों को उरेहा गया है। इनका रुप निराला है। इन रामचरित-चित्रावलियों की विशिष्टता यह है कि इनका चित्रण अपने-अपने देश की रामायण के आधार पर हुआ है और विचित्रता यह है कि इन्हें बौद्ध धर्मावलंबी सम्राटों के राजभवनों और विहारों में संरक्षण मिला है। लाओस, कंपूचिया और थाईलैंड के राजभवनों तथा बौद्ध विहारों की भित्तियों पर उरेही गयी रामकथा चित्रावली उसी प्रकार संरक्षित हैं, जिस प्रकार माता की गोद में बच्चे निर्भय और निर्जिंश्चत होते हैं।

लाओस के लुआ प्रवा तथा विएनतियान के राजप्रसाद में थाई रामायण ‘रामकियेन’ और लाओ रामायण फ्रलक-फ्रलाम की कथाएँ अंकित हैं।१ इनके अतिरिक्त लाओस के कई बौद्ध विहारों में भी राम कथा के चित्र उरेहे गये हैं। लाओस का उपमु बौद्ध विहार राम कथा-चित्रों के लिए विख्यात है। विहार के लगभग बीस मीटर लंबी और सवा पाँच मीटर ऊँची दीवार पर वहाँ की रामायण ‘फ्रलक-फ्रलाम’ अर्थात् ‘प्रिय लक्ष्मण प्रियराम’ की कथा क्षेत्रीय पृष्ठभूमि में रुपायित है।२ ‘फ्रलक-फ्रलाम’ राम जातक के नाम से भी विख्यात है।

उपमुंग विहार की चित्रावली में राम कथा का आरंभ लाओ रामायण के अनुसार रावण के जन्म से हुआ है और लंका युद्ध के बाद राम की अयोध्या वापसी तक की कथा का संक्षेप में निर्वाह भी हुआ है, किंतु इसमें कुछ प्रसंग अन्यत्र से भी संकलित हैं। यह चित्रावली लाओस लोक कला का उत्कृष्ट नमूना है। इसकी पृष्ठभूमि में चित्रित प्रकृति और परिवेश मनमोहक हैं।

लाओस के वाट पऽकेऽ में भी राम कथा के चित्र हैं। लुआ प्रवा के निकट एक छोटी पहाड़ी के ऊपर यह विहार स्थित है। इसका निर्माण १८०३ई. में हुआ था और उसी समय एक चित्रकार के द्वारा उसकी भित्तियों पर राम कथा के चित्र उरेहे गये थे।३ इस चित्रावली में राम कथा का आरंभ सिउहान (विद्युज्जिह्मवा) प्रकरण से हुआ है। वह अपनी जिह्मवा से लंका को ठंक कर उसकी रक्षा कर रहा है।

वाट पऽकेऽ में रुपायित भित्ति चित्रों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। प्रथम खंड में रावण के जन्म से बालि वध तक की कथा का चित्रण हुआ है। दूसरे खंड में दशरथ के स्वर्गवास के बाद भरत के अयोध्या आगमन से किष्किंधा की गुफा तक की कथा रुपायित हुई है। अंतिम खंड में दो चित्र हैं। प्रथम चित्र में दशरथ के स्वर्गारोहण के बाद भरत के अयोध्या लौटने का दृश्य है और दूसरे चित्र में राम, लक्ष्मण और सीता को नाव में बैठ कर गंगा पार करते हुए दिखाया गया है। इस चित्रावली में घटनाओं की क्रमवद्धता का अभाव है। इसमें कुछ घटनाओं की पुनरावृत्ति हुई है, तो कुछ अछूती ही रह गयी हैं।

थाईलैंड के राज भवन परिसर स्थित वाटफ्रकायों (सरकत बुद्ध मंदिर) की भित्तियों पर संपूर्ण थाई रामायण ‘रामकियेन’ को चित्रित किया गया है। ऐसा अनुमान किया जाता है कि इन चित्रों का निर्माण ‘रामकियेन’ की रचना के बाद १७९८ई. में हुआ था। थाई सम्राट चूला लौंग तथा उनके साहित्यमंडल के मित्रों ने मिलकर इन भित्तिचित्रों में रुपादित रामकथा को काव्यबद्ध किया था। उन पद्यों को शिलापट पर उत्कीर्ण करवाकर उन्हें यथास्थान भित्तिचित्रों के सामने स्तंभों में जड़वा दिया गया।४ इससे स्पष्ट होता है कि थाईवासी अपनी इस सांस्कृतिक विरासत के प्रति कितने संवेदनशील है। मरकत (emrald ) बुद्ध मंदिर में रामकथा के १७८ चित्र हैं जिनमें सीता के जन्म से रामराज्याभिषेक तक की कथा के साथ जानकी के निर्वासन से उनकी अयोध्या वापसी तक के संपूर्ण वृत्तांत का चित्रण हुआ है।

कंपूचिया के राजभवन की भित्तियों, सिंहासन कक्ष की छत और राजकीय बौद्ध विहार में रामायण के दृश्यों के रंगीन चित्र हैं। किंतु, वहाँ की स्थिति यह है कि चित्रकारों के अभाव में थाई कलाकारों द्वारा उन चित्रों का उद्धार करवाया गया है। कंपूचिया के अतिरिक्त इंडोनेशिया के बाली द्वीप में रामकथा के चित्र मिलते हैं। वहाँ सीता की अग्नि परीक्षा का चित्र बहुत लोकप्रिय है। हिंदू बहुल बाली द्वीप दक्षिण-पूर्व एशिया का जीता-जागता भारत है।

*•๑۞: जय श्री राम जी :۞๑•*'s photo.
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Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

एकाग्रता बढ़ाने के लिए


त्राटक
एकाग्रता बढ़ाने के लिए त्राटक बहुत मदद करता है। त्राटक अर्थात दृष्टि के ज़रा सा भी हिलाए बिना एक ही स्थान पर स्थित करना। बच्चों की स्मृतिशक्ति बढ़ाने में त्राटक उपयोगी है। त्राटक की विधि इस प्रकार है।
एक फुट के चौरस गत्ते पर एक सफेद कागज़ लगा दें। उसके केन्द्र में एक रूपये का सिक्के के बराबर का एक गोलाकार चिन्ह बनायें। इस गोलाकार चिह्न के केंद्र में एक तिलभर बिन्दु छोड़कर बाकी के भाग में काला कर दें। बीचवाले बिन्दु में पीला रंग भर दें। अब उस गत्ते को दीवार पर ऐसे रखो कि गोलाकार चिह्न आँखों की सीधी रेखा में रहे। नित्य एक ही स्थान में तथा एक निश्चित समय में गत्ते के सामने बैठ जायें। आँख और
गत्ते के बीच का अंतर तीन फीट का रखें। पलकें गिराये बिना अपनी दृष्टि उस गोलाकार चिह्न के पील केन्द्र पर टिकायें।
पहले 5-10 मिनट तक बैठें। प्रारम्भ में आँखें जलती हुई मालूम पड़ेंगी लेकिन घबरायें नहीं। धीरे-धीरे अभ्यास द्वारा आधा घण्टा तक बैठने से एकाग्रता में बहुत मदद मिलती है। फिर जो कुछ भी पढ़ेंगे वह याद रह जाएगा। इसके अलावा चन्द्रमा, भगवान या गुरूदेव जी के चित्र पर, स्वस्तिक, ॐ या दीपक की ज्योत पर भी त्राटक कर सकते हैं। इष्टदेव या गुरूदेव के चित्र पर त्राटक करने से विशेष लाभ मिलता है।

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त्राटक
एकाग्रता बढ़ाने के लिए त्राटक बहुत मदद करता है। त्राटक अर्थात दृष्टि के ज़रा सा भी हिलाए बिना एक ही स्थान पर स्थित करना। बच्चों की स्मृतिशक्ति बढ़ाने में त्राटक उपयोगी है। त्राटक की विधि इस प्रकार है।
एक फुट के चौरस गत्ते पर एक सफेद कागज़ लगा दें। उसके केन्द्र में एक रूपये का सिक्के के बराबर का एक गोलाकार चिन्ह बनायें। इस गोलाकार चिह्न के केंद्र में एक तिलभर बिन्दु छोड़कर बाकी के भाग में काला कर दें। बीचवाले बिन्दु में पीला रंग भर दें। अब उस गत्ते को दीवार पर ऐसे रखो कि गोलाकार चिह्न आँखों की सीधी रेखा में रहे। नित्य एक ही स्थान में तथा एक निश्चित समय में गत्ते के सामने बैठ जायें। आँख और
गत्ते के बीच का अंतर तीन फीट का रखें। पलकें गिराये बिना अपनी दृष्टि उस गोलाकार चिह्न के पील केन्द्र पर टिकायें।
पहले 5-10 मिनट तक बैठें। प्रारम्भ में आँखें जलती हुई मालूम पड़ेंगी लेकिन घबरायें नहीं। धीरे-धीरे अभ्यास द्वारा आधा घण्टा तक बैठने से एकाग्रता में बहुत मदद मिलती है। फिर जो कुछ भी पढ़ेंगे वह याद रह जाएगा। इसके अलावा चन्द्रमा, भगवान या गुरूदेव जी के चित्र पर, स्वस्तिक, ॐ या दीपक की ज्योत पर भी त्राटक कर सकते हैं। इष्टदेव या गुरूदेव के चित्र पर त्राटक करने से विशेष लाभ मिलता है।

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Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

महाराणा प्रताप


शेयर जरुर करे….
अकबर को धूल चटाने वाले वीर योद्धा महाराणा प्रताप ने घास की रोटियां खाकर कुछ दिन बिताए थे। यह वो प्रतापी विरासत है जिसे प्रताप ने अपना शस्त्रागार बनाया था। आईए जानते हैं इस गुफा की कहानी।

हम बात कर रहे हैं मेवाड़ की विरासतों में शुमार मायरा की गुफा के बारे में। प्रकृति ने इस दोहरी कंदरा को कुछ इस तरह गढ़ा है मानो शरीर में नसें। इस गुफा में प्रवेश के तीन रास्ते हैं, जो किसी भूल-भुलैया से कम नहीं। इसकी खासियत यह भी है कि बाहर से देखने में इसके रास्ते का द्वार किसी पत्थर के टीले की तरह दिखाई पड़ता है। लेकिन जैसे-जैसे हम अंदर जाते हैं रास्ते भी निकलता जाता हैं। यही कारण है कि यह अभी तक हर तरफ से सुरक्षित है। यही तो कारण था कि महाराणा प्रताप ने इसे अपना शस्त्रागार बनाया था।

दरअसल, जब महाराणा प्रताप का जन्म हुआ उस समय दिल्ली सम्राट अकबर का शासन था। वह सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्य का ध्वज फहराना चाहता था। वहीं मेवाड़ की भूमि को मुगल आधिपत्य से बचाने के लिए महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक मेवाड़ आजाद नहीं होगा, मैं महलों को छोड़ जंगलों में निवास करूंगा। अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है तो आधे हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे पर बादशाहत अकबर कि रहेगी। जवाब में प्रताप ने कहा था कि स्वादिष्ट भोजन को त्याग कंदमूल फलों से ही पेट भरूंगा लेकिन अकबर का अधिपत्य कभी स्वीकार नहीं करूंगा।

हल्दी घाटी में अकबर और प्रताप के बीच हुए युद्ध के दौरान इसी गुफा को प्रताप ने अपना शस्त्रागार बनाया था। यह युद्ध आज भी पूरे विश्व के लिए आज एक मिसाल है। इसका पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस युद्ध में अकबर के 85 हजार और प्रताप के केवल 20 हजार सैनिक थे। इसके बावजूद प्रताप ने अकबर को धूल चटा दिया था। प्रताप का पराक्रम ऐसा था कि उनकी मृत्यु पर उनकी बहादुरी को याद कर अकबर भी रो पड़ा था।

हालांकि प्रताप की जीत में उनके घोड़े का भी अहम योगदान था। एक पांव चोटिल होने के बाद भी प्रताप को पीठ पर लिए वह नाले को पार कर गया लेकिन मुगल सैनिक उसे पार न कर सके। हल्दी घाटी के युद्ध की याद दिलाती यह गुफा इतनी बड़ी है कि इसके अंदर घोड़ो को बांधने वाली अश्वशाला और रसोई घर भी है। इस गुफा के अंदर वही अश्वशाला है जहां चेतक को बांधा जाता था, इसलिए यह जगह आज भी पूजा जाता है। पास ही मां हिंगलाज का स्थान है। प्रकृति और इतिहास की यह विरासत अरसे से अनदेखी का शिकार है।

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अकबर को धूल चटाने वाले वीर योद्धा महाराणा प्रताप ने घास की रोटियां खाकर कुछ दिन बिताए थे। यह वो प्रतापी विरासत है जिसे प्रताप ने अपना शस्त्रागार बनाया था। आईए जानते हैं इस गुफा की कहानी।

हम बात कर रहे हैं मेवाड़ की विरासतों में शुमार मायरा की गुफा के बारे में। प्रकृति ने इस दोहरी कंदरा को कुछ इस तरह गढ़ा है मानो शरीर में नसें। इस गुफा में प्रवेश के तीन रास्ते हैं, जो किसी भूल-भुलैया से कम नहीं। इसकी खासियत यह भी है कि बाहर से देखने में इसके रास्ते का द्वार किसी पत्थर के टीले की तरह दिखाई पड़ता है। लेकिन जैसे-जैसे हम अंदर जाते हैं रास्ते भी निकलता जाता हैं। यही कारण है कि यह अभी तक हर तरफ से सुरक्षित है। यही तो कारण था कि महाराणा प्रताप ने इसे अपना शस्त्रागार बनाया था।

दरअसल, जब महाराणा प्रताप का जन्म हुआ उस समय दिल्ली सम्राट अकबर का शासन था। वह सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्य का ध्वज फहराना चाहता था। वहीं मेवाड़ की भूमि को मुगल आधिपत्य से बचाने के लिए महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक मेवाड़ आजाद नहीं होगा, मैं महलों को छोड़ जंगलों में निवास करूंगा। अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है तो आधे हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे पर बादशाहत अकबर कि रहेगी। जवाब में प्रताप ने कहा था कि स्वादिष्ट भोजन को त्याग कंदमूल फलों से ही पेट भरूंगा लेकिन अकबर का अधिपत्य कभी स्वीकार नहीं करूंगा।

हल्दी घाटी में अकबर और प्रताप के बीच हुए युद्ध के दौरान इसी गुफा को प्रताप ने अपना शस्त्रागार बनाया था। यह युद्ध आज भी पूरे विश्व के लिए आज एक मिसाल है। इसका पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस युद्ध में अकबर के 85 हजार और प्रताप के केवल 20 हजार सैनिक थे। इसके बावजूद प्रताप ने अकबर को धूल चटा दिया था। प्रताप का पराक्रम ऐसा था कि उनकी मृत्यु पर उनकी बहादुरी को याद कर अकबर भी रो पड़ा था।

हालांकि प्रताप की जीत में उनके घोड़े का भी अहम योगदान था। एक पांव चोटिल होने के बाद भी प्रताप को पीठ पर लिए वह नाले को पार कर गया लेकिन मुगल सैनिक उसे पार न कर सके। हल्दी घाटी के युद्ध की याद दिलाती यह गुफा इतनी बड़ी है कि इसके अंदर घोड़ो को बांधने वाली अश्वशाला और रसोई घर भी है। इस गुफा के अंदर वही अश्वशाला है जहां चेतक को बांधा जाता था, इसलिए यह जगह आज भी पूजा जाता है। पास ही मां हिंगलाज का स्थान है। प्रकृति और इतिहास की यह विरासत अरसे से अनदेखी का शिकार है।
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रामायण के घटना स्थलों का विदेश में स्थानीकरण


रामायण के घटना स्थलों का विदेश में स्थानीकरण

भारतवासी जहाँ कहीं भी गये वहाँ की सभ्यता और संस्कृति को तो उन लोगों ने प्रभावित किया है, वहाँ के स्थानों के भी नाम बदलकर उनका भारतीयकरण कर दिया। कहा गया है कि इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप का नामकरण सुमित्रा के नाम पर हुआ था। जावा के एक मुख्य नर का नाम योग्याकार्य है। ‘योग्या’ संस्कृत के अयोध्या का विकसित रुप है और जावानी भाषा में कार्टा का अर्थ नगर होता है। इस प्रकार योग्याकार्टा का अर्थ अयोध्या नगर है। मध्य जावा की एक नदी का नाम सेरयू है और उसी क्षेत्र के निकट स्थित एक गुफा का नाम किस्केंदा अर्थात् किष्किंधा है।१ जावा के पूर्वीछोर पर अवस्थित एक शहर का नाम सेतुविंदा है जो निश्चय ही सेतुबंध का जावानी रुप है। इंडोनेशिया में रामायणीय संस्कृति से संबद्ध इस स्थानों का नामकरण कब हुआ, यह कहना कठिन है, किंतु मुसलमान बहुल इस देश का प्रतीक चिन्ह गरुड़ निश्चय ही भारतीय संस्कृति से अपने सरोकार को उजागर करता है।

मलाया स्थित लंग्या सुक अर्थात् लंका के राजकुमार ने चीन के सम्राट को ५१५ई. में दूत के माध्यम से एक पत्र भेजा था जिसमें यह लिखा गया था कि उसके देश में मूल्यवान संस्कृत की जानकारी है उसके भव्य नगर के महल और प्राचीर गंधमादन पर्वत की तरह ऊँचे है।२ मलाया के राजदरबार के पंडितों को संस्कृत का ज्ञान था, इसकी पुष्टि संस्कृत में उत्कीर्ण वहाँ के प्राचीन शिला लेखों से भी होती है। गंधमादन उस पर्वत का नाम था जिसे मेघनाद के वाण से आहत लक्ष्मण के उपचार हेतु हनुमान ने औषधि लाने के क्रम में उखाड़ कर लाया था। मलाया स्थित लंका की भौगोलिक स्थिति के संबंध में क्रोम नामक डच विद्वान का मत है कि यह राज्य सुमत्रा द्वीप में था, किंतु ह्मिवटले ने प्रमाणित किया है कि यह मलाया प्राय द्वीप में ही था।३

बर्मा का पोपा पर्वत ओषधियों के लिए विख्यात है। वहाँ के निवासियों को यह विश्वास है कि लक्ष्मण के उपचार हेतु पोपा पर्वत के ही एक भाग को हनुमान उखाड़कर ले गये थे। वे लोग उस पर्वत के मध्यवर्ती खाली स्थान को दिखाकर पर्यटकों को यह बताते हैं कि पर्वत के उसी भाग को हनुमान उखाड़ कर लंका ले गये थे। वापसी यात्रा में उनका संतुलन बिगड़ गया और वे पहाड़ के साथ जमीन पर गिर गये जिससे एक बहुत बड़ी झील बन गयी। इनवोंग नाम से विख्यात यह झील बर्मा के योमेथिन जिला में है।४ बर्मा के लोकाख्यान से इतना तो स्पष्ट होता ही है कि
वहाँ के लोग प्राचीन काल से ही रामायण से परिचित थे और उन लोगों ने उससे अपने को जोड़ने का भी प्रयत्न किया।

थाईलैंड का प्राचीन नाम स्याम था और द्वारावती (द्वारिका) उसका एक प्राचीन नगर था। थाई सम्राट रामातिबोदी ने १३५०ई. में अपनी राजधानी का नाम अयुध्या (अयोध्या) रखा जहाँ ३३ राजाओं ने राज किया। ७ अप्रैल १७६७ई. को बर्मा के आक्रमण से उसका पतन हो गया। अयोध्या का भग्नावशेष थाईलैंड का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर है। अयोध्या के पतन के बाद थाई नरेश दक्षिण के सेनापति चाओ-फ्रा-चक्री को नागरिकों ने १७८५ई. में अपना राजा घोषित किया। उसका अभिषेक राम प्रथम के नाम से हुआ। राम प्रथम ने बैंकॉक में अपनी राजधानी की स्थापना की। राम प्रथम के बाद चक्री वंश के सभी राजाओं द्वारा अभिषेक के समय राम की उपाधि धारण की जाती है। वर्तमान थाई सम्राट राम नवम हैं।

थाईलैंड में लौपबुरी (लवपुरी) नामक एक प्रांत है। इसके अंतर्गत वांग-प्र नामक स्थान के निकट फाली (वालि) नामक एक गुफा है। कहा जाता है कि वालि ने इसी गुफा में थोरफी नामक महिष का वध किया था।५ यहाँ यह उल्लेखनीय है कि थाई रामायण रामकियेन में दुंदुभि दानव की कथा में थोड़ा परिवर्तन हुआ है। इसमें दुंदुभि राक्षस के स्थान पर थोरफी नामक एक महाशक्तिशाली महिष है जिसका वालि द्वारा वध होता है। वालि नामक गुफा से प्रवाहित होने वाली जलधारा का नाम सुग्रीव है। थाईलैंड के ही नखोन-रचसीमा प्रांत के पाक-थांग-चाई के निकट थोरफी पर्वत है जहाँ से वालि ने थोरफी के मृत शरीर को उठाकर २००कि.मी. दूर लौपबुरी फेंक दिया था।६ सुखो थाई के निकट संपत नदी के पास फ्राराम गुफा है। उसके पास ही सीता नामक गुफा भी है।७

दक्षिणी थाईलैंड और मलयेशिया के रामलीला कलाकारों को ऐसा विश्वास है कि रामायण के पात्र मूलत: दक्षिण-पूर्व एशिया के निवासी थे और रामायण की सारी घटनाएँ इसी क्षेत्र में घटी थी। वे मलाया के उत्तर-पश्चिम स्थित एक छोटे द्वीप को लंका मानते हैं। इसी प्रकार उनका विश्वास है कि दक्षिणी थाईलैंड के सिंग्गोरा नामक स्थान पर सीता का स्वयंवर रचाया गया था जहाँ राम ने एक ही बाण से सात ताल वृक्षों को बेधा था। सिंग्गोरा में आज भी सात ताल वृक्ष हैं।८ जिस प्रकार भारत और नेपाल के लोग जनकपुर को निकट स्थित एक प्राचीन शिलाखंड को राम द्वारा तोड़े गये धनुष का टुकड़ा मानते हैं, उसी प्रकार थाईलैंड और मलेशिया के लोगों को भी
विश्वास है कि राम ने उन्हीं ताल वृक्षों को बेध कर सीता को प्राप्त किया था।

वियतनाम का प्राचीन नाम चंपा है। थाई वासियों की तरह वहाँ के लोग भी अपने देश को राम की लीलभूमि मानते है। उनकी मान्यता की पुष्टि सातवीं शताब्दी के एक शिलालेख से होती है जिसमें आदिकवि वाल्मीकि के मंदिर का उल्लेख हुआ है जिसका पुनर्निमाण प्रकाश धर्म नामक सम्राट ने करवाया था।९ प्रकाशधर्म (६५३-६७९ई.) का यह शिलालेख अनूठा है, क्योंकि आदिकवि की जन्मभूमि भारत में भी उनके किसी प्राचीन मंदिर का अवशेष उपलब्ध नहीं है।

भारतवासी जहाँ कही भी गये भौतिक साधनों के अतिरिक्त आस्था के संबल भी साथ ले गये। भौतिक संसाधनों का तो कालांतर में विनाश हो गया, किंतु उनके विश्वास का वृक्ष स्थानीय परिवेश में फलता-फूलता रहा। प्राकृतिक कारणों से उनकी आकृति और प्रकृति में संशोधन और परिवर्तन अवश्य हुआ, किंतु उन्होंने शिला खंडों पर खोद कर जो उनका इतिहास छोड़ा था, वह आज भी उनकी कहानी कर रही है।

1. Raghavan, V., The Ramayana in Greater India, P.87
2. Sarkar, H.B., The Ramayana Tradition in Asia, P.104-105
3. Itaid, P.105
4. Iyer, K.B., The Ramayana in Burma, Triveni, 1942, 239-40
5. Sahai, Sachchidanand, The Ramayana in Laos, P.123
६. वर्मा सुधा, आग्नेय एशिया में रामकथा, पृ.१२३
७. उपरिवत्, पृ.१२७
८. Sweems Amin, The Ramayana Tradition in Asia, P.128
9. Iyengar, K.R Srinivas, Asian Variation in Ramayana, P.193

रामायण के घटना स्थलों का विदेश में स्थानीकरण भारतवासी जहाँ कहीं भी गये वहाँ की सभ्यता और संस्कृति को तो उन लोगों ने प्रभावित किया है, वहाँ के स्थानों के भी नाम बदलकर उनका भारतीयकरण कर दिया। कहा गया है कि इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप का नामकरण सुमित्रा के नाम पर हुआ था। जावा के एक मुख्य नर का नाम योग्याकार्य है। 'योग्या' संस्कृत के अयोध्या का विकसित रुप है और जावानी भाषा में कार्टा का अर्थ नगर होता है। इस प्रकार योग्याकार्टा का अर्थ अयोध्या नगर है। मध्य जावा की एक नदी का नाम सेरयू है और उसी क्षेत्र के निकट स्थित एक गुफा का नाम किस्केंदा अर्थात् किष्किंधा है।१ जावा के पूर्वीछोर पर अवस्थित एक शहर का नाम सेतुविंदा है जो निश्चय ही सेतुबंध का जावानी रुप है। इंडोनेशिया में रामायणीय संस्कृति से संबद्ध इस स्थानों का नामकरण कब हुआ, यह कहना कठिन है, किंतु मुसलमान बहुल इस देश का प्रतीक चिन्ह गरुड़ निश्चय ही भारतीय संस्कृति से अपने सरोकार को उजागर करता है। मलाया स्थित लंग्या सुक अर्थात् लंका के राजकुमार ने चीन के सम्राट को ५१५ई. में दूत के माध्यम से एक पत्र भेजा था जिसमें यह लिखा गया था कि उसके देश में मूल्यवान संस्कृत की जानकारी है उसके भव्य नगर के महल और प्राचीर गंधमादन पर्वत की तरह ऊँचे है।२ मलाया के राजदरबार के पंडितों को संस्कृत का ज्ञान था, इसकी पुष्टि संस्कृत में उत्कीर्ण वहाँ के प्राचीन शिला लेखों से भी होती है। गंधमादन उस पर्वत का नाम था जिसे मेघनाद के वाण से आहत लक्ष्मण के उपचार हेतु हनुमान ने औषधि लाने के क्रम में उखाड़ कर लाया था। मलाया स्थित लंका की भौगोलिक स्थिति के संबंध में क्रोम नामक डच विद्वान का मत है कि यह राज्य सुमत्रा द्वीप में था, किंतु ह्मिवटले ने प्रमाणित किया है कि यह मलाया प्राय द्वीप में ही था।३ बर्मा का पोपा पर्वत ओषधियों के लिए विख्यात है। वहाँ के निवासियों को यह विश्वास है कि लक्ष्मण के उपचार हेतु पोपा पर्वत के ही एक भाग को हनुमान उखाड़कर ले गये थे। वे लोग उस पर्वत के मध्यवर्ती खाली स्थान को दिखाकर पर्यटकों को यह बताते हैं कि पर्वत के उसी भाग को हनुमान उखाड़ कर लंका ले गये थे। वापसी यात्रा में उनका संतुलन बिगड़ गया और वे पहाड़ के साथ जमीन पर गिर गये जिससे एक बहुत बड़ी झील बन गयी। इनवोंग नाम से विख्यात यह झील बर्मा के योमेथिन जिला में है।४ बर्मा के लोकाख्यान से इतना तो स्पष्ट होता ही है कि वहाँ के लोग प्राचीन काल से ही रामायण से परिचित थे और उन लोगों ने उससे अपने को जोड़ने का भी प्रयत्न किया। थाईलैंड का प्राचीन नाम स्याम था और द्वारावती (द्वारिका) उसका एक प्राचीन नगर था। थाई सम्राट रामातिबोदी ने १३५०ई. में अपनी राजधानी का नाम अयुध्या (अयोध्या) रखा जहाँ ३३ राजाओं ने राज किया। ७ अप्रैल १७६७ई. को बर्मा के आक्रमण से उसका पतन हो गया। अयोध्या का भग्नावशेष थाईलैंड का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर है। अयोध्या के पतन के बाद थाई नरेश दक्षिण के सेनापति चाओ-फ्रा-चक्री को नागरिकों ने १७८५ई. में अपना राजा घोषित किया। उसका अभिषेक राम प्रथम के नाम से हुआ। राम प्रथम ने बैंकॉक में अपनी राजधानी की स्थापना की। राम प्रथम के बाद चक्री वंश के सभी राजाओं द्वारा अभिषेक के समय राम की उपाधि धारण की जाती है। वर्तमान थाई सम्राट राम नवम हैं। थाईलैंड में लौपबुरी (लवपुरी) नामक एक प्रांत है। इसके अंतर्गत वांग-प्र नामक स्थान के निकट फाली (वालि) नामक एक गुफा है। कहा जाता है कि वालि ने इसी गुफा में थोरफी नामक महिष का वध किया था।५ यहाँ यह उल्लेखनीय है कि थाई रामायण रामकियेन में दुंदुभि दानव की कथा में थोड़ा परिवर्तन हुआ है। इसमें दुंदुभि राक्षस के स्थान पर थोरफी नामक एक महाशक्तिशाली महिष है जिसका वालि द्वारा वध होता है। वालि नामक गुफा से प्रवाहित होने वाली जलधारा का नाम सुग्रीव है। थाईलैंड के ही नखोन-रचसीमा प्रांत के पाक-थांग-चाई के निकट थोरफी पर्वत है जहाँ से वालि ने थोरफी के मृत शरीर को उठाकर २००कि.मी. दूर लौपबुरी फेंक दिया था।६ सुखो थाई के निकट संपत नदी के पास फ्राराम गुफा है। उसके पास ही सीता नामक गुफा भी है।७ दक्षिणी थाईलैंड और मलयेशिया के रामलीला कलाकारों को ऐसा विश्वास है कि रामायण के पात्र मूलत: दक्षिण-पूर्व एशिया के निवासी थे और रामायण की सारी घटनाएँ इसी क्षेत्र में घटी थी। वे मलाया के उत्तर-पश्चिम स्थित एक छोटे द्वीप को लंका मानते हैं। इसी प्रकार उनका विश्वास है कि दक्षिणी थाईलैंड के सिंग्गोरा नामक स्थान पर सीता का स्वयंवर रचाया गया था जहाँ राम ने एक ही बाण से सात ताल वृक्षों को बेधा था। सिंग्गोरा में आज भी सात ताल वृक्ष हैं।८ जिस प्रकार भारत और नेपाल के लोग जनकपुर को निकट स्थित एक प्राचीन शिलाखंड को राम द्वारा तोड़े गये धनुष का टुकड़ा मानते हैं, उसी प्रकार थाईलैंड और मलेशिया के लोगों को भी विश्वास है कि राम ने उन्हीं ताल वृक्षों को बेध कर सीता को प्राप्त किया था। वियतनाम का प्राचीन नाम चंपा है। थाई वासियों की तरह वहाँ के लोग भी अपने देश को राम की लीलभूमि मानते है। उनकी मान्यता की पुष्टि सातवीं शताब्दी के एक शिलालेख से होती है जिसमें आदिकवि वाल्मीकि के मंदिर का उल्लेख हुआ है जिसका पुनर्निमाण प्रकाश धर्म नामक सम्राट ने करवाया था।९ प्रकाशधर्म (६५३-६७९ई.) का यह शिलालेख अनूठा है, क्योंकि आदिकवि की जन्मभूमि भारत में भी उनके किसी प्राचीन मंदिर का अवशेष उपलब्ध नहीं है। भारतवासी जहाँ कही भी गये भौतिक साधनों के अतिरिक्त आस्था के संबल भी साथ ले गये। भौतिक संसाधनों का तो कालांतर में विनाश हो गया, किंतु उनके विश्वास का वृक्ष स्थानीय परिवेश में फलता-फूलता रहा। प्राकृतिक कारणों से उनकी आकृति और प्रकृति में संशोधन और परिवर्तन अवश्य हुआ, किंतु उन्होंने शिला खंडों पर खोद कर जो उनका इतिहास छोड़ा था, वह आज भी उनकी कहानी कर रही है। 1. Raghavan, V., The Ramayana in Greater India, P.87 2. Sarkar, H.B., The Ramayana Tradition in Asia, P.104-105 3. Itaid, P.105 4. Iyer, K.B., The Ramayana in Burma, Triveni, 1942, 239-40 5. Sahai, Sachchidanand, The Ramayana in Laos, P.123 ६. वर्मा सुधा, आग्नेय एशिया में रामकथा, पृ.१२३ ७. उपरिवत्, पृ.१२७ ८. Sweems Amin, The Ramayana Tradition in Asia, P.128 9. Iyengar, K.R Srinivas, Asian Variation in Ramayana, P.193
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काशी में भगवान ”शिव” ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रगट हुए थे। सम्राट विक्रमादित्य ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।


 

काशी में भगवान ”शिव” ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रगट हुए थे। सम्राट विक्रमादित्य ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।
मंदिर को लूटने आए महमूद गजनवी के भांजे सालार मसूद को सम्राट सुहेल देव पासी ने मौत के घाट उतारा था।
मंदिर को 1194 में कुतुबब्दीन ने तोड़ा। मंदिर फिर से बना।
1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने फिर इसे तोड़ा।
1494 में मुस्लिम शासको ने काशी के विश्वनाथ मंदिर सहित सभी मंदिरों को तोड़ दिया.काशी में एक भी मंदिर नहीं बचा था.
1585 में राजा टोडरमल की सहायता से फिर मंदिर बना।

काशी विश्वनाथ के मूल मंदिर के स्थान पर आज ज्ञानवापी मस्जिद है.>>>

2.9.1669 को औरंगजेब ने काशी-विश्वनाथ मन्दिर फिर से ध्वस्त करा दिया और उसी जगह मस्जिद का निर्माण करा दिया.जिसका नाम आज ज्ञानवापी मस्जिद है.
औरंगजेब ने ही मथुरा में कृष्णजी का मंदिर तोड़वा कर वहां ईदगाह बनवाई थी।
1752 से लेकर 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ता जी सिंधिया व मल्हार राव होल्कर ने काशी विश्वनाथ मन्दिर की मुक्ति के प्रयास किए।

मूल मंदिर के थोड़ी दूर पर वर्तमान काशीविश्वनाथ मंदिर है >>>>

7 अगस्त, 1770 में महाद जी सिन्धिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मन्दिर तोडऩे की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी करा लिया।
लेकिन तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कम्पनी का प्रभाव हो गया था, इसलिए मंदिर का नवीनीकरण रुक गया।

इन्दौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 में विश्वनाथ मंदिर बनवाया, जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने 9 क्विंटल सोने का छत्र बनवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां नन्दी की विशाल प्रतिमा स्थापित करवाई।

काशी विश्वनाथ मंदिर का मुकदमा मुस्लमान हार चुके है >>>>

11 अगस्त, 1936 को दीन मुहम्मद, मुहम्मद हुसैन और मुहम्मद जकारिया ने स्टेट इन काउन्सिल में प्रतिवाद संख्या-62 दाखिल किया और दावा किया कि सम्पूर्ण परिसर वक्फ की सम्पत्ति है। लम्बी गवाहियों एवं ऐतिहासिक प्रमाणों व शास्त्रों के आधार पर यह दावा गलत पाया गया और 24 अगस्त 1937 को वाद खारिज कर दिया गया। इसके खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील संख्या 466 दायर की गई लेकिन 1942 में उच्च न्यायालय ने इस अपील को भी खारिज कर दिया। कानूनी गुत्थियां साफ होने के बावजूद मंदिर-मस्जिद का मसला आज तक फंसा कर रखा गया है।

काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास >>>>

अमेरिका के लेखक तथा साहित्यकार मार्क ट्विन ने काशी कि यात्रा के बाद लिखा कि ”बनारस”” इतिहास से भी पुराना नगर है. वह परंपराओं से पुराना है। वह कहावतों और कहानियों से भी पुराना है। विश्व कि समस्त सभ्यताओ से पुराना है. यहां भूत, वर्तमान, शाश्वत तथा निरंतरता साथ-साथ विद्यमान हैं। काशी गंगा के पश्चिम किनारे पर स्थित है।

चीनी यात्री हुएन सांग (629-675) ने अपनी काशी यात्रा के उल्लेख में 100 फुट ऊंची शिव मूर्ती वाले विशाल तथा भव्य मंदिर का वर्णन किया है.

बौद्ध धर्म के प्रभाव को कम करने के लिए शंकराचार्य का आगमन भी यहीं हुआ और उन्होंने वैदिक धर्म की स्थापना की।
महर्षि पतंजलि ने अपना काव्य यहीं लिखा था। संत कबीर ने संत मत की स्थापना यहीं की।
मीरा बाई के गुरु संत रैदास (रविदास) भी काशी के निवासी थे।
रामचरितमानस और अन्य ग्रंथों की रचना गोस्वामी तुलसी दास ने यहीं पर की थी।

काशी नागरी प्रचारिणी सभा, भारतेंदु हरिचंद्र, मुंशी प्रेमचंद्र अैर जयशंकर प्रसाद आदि अन्य विद्वान भी काशी की ही देन हैं।

काशी के गंगा तट पर लगभग सौ घाट हैं।
इनमें से एक पर स्वयं हरिश्चंद्र ने श्मशान का मृतक दाह संस्कार लगान वसूलने का कार्य किया था।
आधुनिक शिक्षा का विश्वविद्यालय-बनारस हिंदू युनिवर्सिटी पं मदन मोहन मालवीय ने यहीं स्थापित किया था.
जयपुर के शासक जय सिंह ने एक वेधशाला भी बनवायी थी। यह 1600 सन में बनी थी। इसके यंत्र आज भी ग्रहों की सही नाप और दूरी बतलाते हैं।

स्कंध पुराण में 15000 श्लोको में काशी विश्वनाथ का गुणगान मिलता है। इससे सिद्ध होता है कि यह मंदिर हजारो वर्ष पुराना है.
इसके उत्तर में वारान तथा दक्षिण में आसी नदियां बहती हैं।

इसको काशी का, यानी प्रकाश का नगर भी कहते हैं। प्रकाश ज्योति शिव को भी कहते हैं। इसको ‘अविमुक्त’, अर्थात जिसको शिव ने कभी भी नहीं छोड़ा, भी कहते हैं। इसको ‘आनंद वन’ और ‘रुद्रवास’ भी कहते हैं।
भारत के सांस्कृतिक तथा धार्मिक ग्रंथो में ज्योति प्रकाश का विशेष अर्थ है ‘ज्योति’, जो अंधकार को मिटाती है, ज्ञान फैलाती है, पापों का नाश करती है, अज्ञान को नष्ट करती है आदि। काशी अज्ञान, पाप का नाश करने वाली है, मोक्ष और समृद्धि प्रदान करने वाली है.

प्रलयकाल में भी काशी का लोप नहीं होता। उस समय भगवान [शंकर]] इसे अपने [त्रिशूल] पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। आदि सृष्टि स्थली भी यहीं भूमि बतलायी जाती है। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने का कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होने सारे की रचना की। अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्रीवशिष्ठजी तीनों लोकों में पुजित हुए तथा राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाये।

सर्वतीर्थमयी एवं सर्वसंतापहारिणी मोक्षदायिनी काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है। भगवान भोलानाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे वह आवगमन से छुट जाता है, चाहे मृत-प्राण्ाी कोई भी क्यों न हो। मतस्यपुराण का मत है कि जप, ध्यान और ज्ञान से रहित एवंम दुखों परिपीड़ित जनों के लिये काशीपुरी ही एकमात्र गति है।

वामपंथी (हिन्दू विरोधी), सेक्युलर विचारधारा के इतिहासकार मंदिर को तोडना सही ठहराते है ये देश द्रोही इतिहासकार विदेशी मजहब से पैसे लेकर यही लिखे है >>>>>

सन 1669 ईस्वी में औरंगजेब अपनी सेना एवं हिन्दू राजा मित्रों के साथ वाराणसी के रास्ते बंगाल जा रहा था.रास्ते में बनारस आने पर हिन्दू राजाओं की पत्नियों ने गंगा में डुबकी लगा कर काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा करने की इच्छा व्यक्त की …जिसे औरंगजेब सहर्ष मान गया, और, उसने अपनी सेना का पड़ाव बनारस से पांच किलोमीटर दूर ही रोक दिया !

फिर उस स्थान से हिन्दू राजाओं की रानियां पालकी एवं अपने अंगरक्षकों के साथ गंगाघाट जाकर गंगा में स्नान कर विश्वनाथ मंदिर में पूजा करने चली गई !
पूजा के उपरांत सभी रानियां तो लौटी लेकिन कच्छ की रानी नहीं लौटी , जिससे औरंगजेब के सेना में खलबली गयी और, उसने अपने सेनानायक को रानी को खोज कर लाने का हुक्म दिया …!

औरंगजेब का सेनानायक अपने सैनिकों के साथ रानी को खोजने मंदिर पहुंचा … जहाँ, काफी खोजबीन के उपरांत “”भगवान गणेश की प्रतिमा के पीछे”” से नीचे की ओर जाती सीढ़ी से मंदिर के तहखाने में उन्हें रानी रोती हुई मिली…. जिसकी अस्मिता और गहने मंदिर के पुजारी द्वारा लुट चुके थे …!

इसके बाद औरंगजेब के लश्कर के साथ मौजूद हिन्दू राजाओ ने मंदिर के पुजारी एवं प्रबंधन के खिलाफ कठोरतम करवाई की मांग की.
जिससे विवश होकर औरंगजेब ने सभी पुजारियों को दण्डित करने एवं उस “”विश्वनाथ मंदिर”” को ध्वस्त करने के आदेश देकर मंदिर को तोड़वा दिया !उसी जगह ज्ञानवापी मस्जिद बना दी.

हिन्दू विरोधी इन इतिहासकारों कि कहानी का झूठ >>>>>

झूठ न.1-औरंगजेब कभी भी बनारस और बंगाल नहीं गया था.उसकी जीवनी में भी यह नहीं लिखा है.किसी भी इतिहास कि किताब में यह नहीं लिखा है.

झूठ न.2- इस लुटेरे हत्यारे ऐयाश औरंगजेब ने हजारो मंदिरों को तोड़ा था..इसलिए इन इतिहासकारों की लिखे हुए इतिहास कूड़ा में फेकने के लायक है..और ये वामपंथी इतिहासकार इस्लाम से पैसे लेकर ”हिन्दुओ के विरोध ”में आज भी बोलते है लिखते है..किन्तु ये इतिहासकार मुसलमानों को अत्याचारी नहीं कहते है..मुग़ल इस देश के युद्ध अपराधी है…यह भी कहने और लिखने की हिम्मत इन इतिहासकारों में नहीं है…

झूठ न.3-युद्ध पर जाते मुस्लिम शासक के साथ हिन्दू राजा अपनी पत्नियों को साथ नहीं ले जा सकते है.क्योकि मुस्लिम शासक लूट पाट में औरतो को बंदी बनाते थे.

झूठ न.4- जब कच्छ की रानी तथा अन्य रानिया अपने अंगरक्षकों के साथ मंदिर गयी थी.तब किसी पुजारी या महंत द्वारा उसका अपहरण कैसे संभव हुआ. पुजारी द्वारा ऐसा करते हुए किसी ने क्यों नहीं देखा.…

झूठ न.5- अगर, किसी तरह ये न हो सकने वाला जादू हो भी गया था तो साथ के हिन्दू राजाओं ने पुजारी को दंड देने एवं मंदिर को तोड़ने का आदेश देने के लिए औरंगजेब को क्यों कहा. हिन्दू राजाओं के पास इतनी ताकत थी कि वो खुद ही उन पुजारियों और मंदिर प्रबंधन को दंड दे देते.

झूठ न.6 -क्या मंदिरों को तोड़कर वहां पर मस्जिद बनाने की प्रार्थना भी साथ गए हिन्दू राजाओं ने ही की थी.

झूठ न.7 -मंदिर तोड़ने के बाद और पहले के इतिहास में उस तथाकथित कच्छ की रानी का जिक्र क्यों नहीं है…

इन सब सवालों के जबाब किसी भी इतिहासकारों के पास नहीं है क्योंकि यह एक पूरी तरह से मनगढंत कहानी है….!

हकीकत बात ये है कि औरंगजेब मदरसे में पढ़ा हुआ एक कट्टर मुसलमान और जेहादी था,लुटेरा हत्यारा अरबी मजहब का औरंगजेब ने हिन्दुओं को अपमानित करने के लिए,हिन्दू धर्म को समाप्त करने के लिए ना सिर्फ काशी विश्वनाथ बल्कि, कृष्णजन्म भूमि मथुरा के मंदिर अन्य सभी प्रसिद्द मंदिरों को ध्वस्त कर वहां मस्जिदों का निर्माण करवा दिया था…..
जिसे ये मनहूस वामपंथी सेक्युलर इतिहासकार किसी भी तरह से न्यायोचित ठहराने में लगे हुए हैं….
और .. अपने पुराने विश्वनाथ मंदिर की स्थिति ये है कि…..
वहां औरंगजेब द्वारा बनवाया गया ज्ञानवापी मस्जिद आज भी हम हिन्दुओं का मुंह चिढ़ा रहा है … और, मुल्ले उसमे नियमित नमाज अदा करते हैं !

जबकि आज भी ज्ञानवापी मस्जिद के दीवारों पर हिन्दू देवी -देवताओं के मूर्ति अंकित हैं.ज्ञानवापी मस्जिद के दीवार में ही श्रृंगार गौरी की पूजा हिन्दू लोग वर्ष में 1 बार करने जाते है. और, मस्जिद के ठीक सामने भगवान विश्वनाथ की नंदी विराजमान है….!

इसीलिए…..हे हिन्दुओं जागो–जानो अपने सही इतिहास को क्योंकि इतिहास की सही जानकारी ही….. इतिहास की पुनरावृति को रोक सकती है…!
TP Shukla

— with Sunil Sharma.10711054_634253336691687_8534476450324804415_n

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काशी में भगवान ”शिव” ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रगट हुए थे। सम्राट विक्रमादित्य ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।
मंदिर को लूटने आए महमूद गजनवी के भांजे सालार मसूद को सम्राट सुहेल देव पासी ने मौत के घाट उतारा था।
मंदिर को 1194 में कुतुबब्दीन ने तोड़ा। मंदिर फिर से बना।
1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने फिर इसे तोड़ा।
1494 में मुस्लिम शासको ने काशी के विश्वनाथ मंदिर सहित सभी मंदिरों को तोड़ दिया.काशी में एक भी मंदिर नहीं बचा था.
1585 में राजा टोडरमल की सहायता से फिर मंदिर बना।

काशी विश्वनाथ के मूल मंदिर के स्थान पर आज ज्ञानवापी मस्जिद है.>>>

2.9.1669 को औरंगजेब ने काशी-विश्वनाथ मन्दिर फिर से ध्वस्त करा दिया और उसी जगह मस्जिद का निर्माण करा दिया.जिसका नाम आज ज्ञानवापी मस्जिद है.
औरंगजेब ने ही मथुरा में कृष्णजी का मंदिर तोड़वा कर वहां ईदगाह बनवाई थी।
1752 से लेकर 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ता जी सिंधिया व मल्हार राव होल्कर ने काशी विश्वनाथ मन्दिर की मुक्ति के प्रयास किए।

मूल मंदिर के थोड़ी दूर पर वर्तमान काशीविश्वनाथ मंदिर है >>>>

7 अगस्त, 1770 में महाद जी सिन्धिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मन्दिर तोडऩे की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी करा लिया।
लेकिन तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कम्पनी का प्रभाव हो गया था, इसलिए मंदिर का नवीनीकरण रुक गया।

इन्दौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 में विश्वनाथ मंदिर बनवाया, जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने 9 क्विंटल सोने का छत्र बनवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां नन्दी की विशाल प्रतिमा स्थापित करवाई।

काशी विश्वनाथ मंदिर का मुकदमा मुस्लमान हार चुके है >>>>

11 अगस्त, 1936 को दीन मुहम्मद, मुहम्मद हुसैन और मुहम्मद जकारिया ने स्टेट इन काउन्सिल में प्रतिवाद संख्या-62 दाखिल किया और दावा किया कि सम्पूर्ण परिसर वक्फ की सम्पत्ति है। लम्बी गवाहियों एवं ऐतिहासिक प्रमाणों व शास्त्रों के आधार पर यह दावा गलत पाया गया और 24 अगस्त 1937 को वाद खारिज कर दिया गया। इसके खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील संख्या 466 दायर की गई लेकिन 1942 में उच्च न्यायालय ने इस अपील को भी खारिज कर दिया। कानूनी गुत्थियां साफ होने के बावजूद मंदिर-मस्जिद का मसला आज तक फंसा कर रखा गया है।

काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास >>>>

अमेरिका के लेखक तथा साहित्यकार मार्क ट्विन ने काशी कि यात्रा के बाद लिखा कि ”बनारस”” इतिहास से भी पुराना नगर है. वह परंपराओं से पुराना है। वह कहावतों और कहानियों से भी पुराना है। विश्व कि समस्त सभ्यताओ से पुराना है. यहां भूत, वर्तमान, शाश्वत तथा निरंतरता साथ-साथ विद्यमान हैं। काशी गंगा के पश्चिम किनारे पर स्थित है।

चीनी यात्री हुएन सांग (629-675) ने अपनी काशी यात्रा के उल्लेख में 100 फुट ऊंची शिव मूर्ती वाले विशाल तथा भव्य मंदिर का वर्णन किया है.

बौद्ध धर्म के प्रभाव को कम करने के लिए शंकराचार्य का आगमन भी यहीं हुआ और उन्होंने वैदिक धर्म की स्थापना की।
महर्षि पतंजलि ने अपना काव्य यहीं लिखा था। संत कबीर ने संत मत की स्थापना यहीं की।
मीरा बाई के गुरु संत रैदास (रविदास) भी काशी के निवासी थे।
रामचरितमानस और अन्य ग्रंथों की रचना गोस्वामी तुलसी दास ने यहीं पर की थी।

काशी नागरी प्रचारिणी सभा, भारतेंदु हरिचंद्र, मुंशी प्रेमचंद्र अैर जयशंकर प्रसाद आदि अन्य विद्वान भी काशी की ही देन हैं।

काशी के गंगा तट पर लगभग सौ घाट हैं।
इनमें से एक पर स्वयं हरिश्चंद्र ने श्मशान का मृतक दाह संस्कार लगान वसूलने का कार्य किया था।
आधुनिक शिक्षा का विश्वविद्यालय-बनारस हिंदू युनिवर्सिटी पं मदन मोहन मालवीय ने यहीं स्थापित किया था.
जयपुर के शासक जय सिंह ने एक वेधशाला भी बनवायी थी। यह 1600 सन में बनी थी। इसके यंत्र आज भी ग्रहों की सही नाप और दूरी बतलाते हैं।

स्कंध पुराण में 15000 श्लोको में काशी विश्वनाथ का गुणगान मिलता है। इससे सिद्ध होता है कि यह मंदिर हजारो वर्ष पुराना है.
इसके उत्तर में वारान तथा दक्षिण में आसी नदियां बहती हैं।

इसको काशी का, यानी प्रकाश का नगर भी कहते हैं। प्रकाश ज्योति शिव को भी कहते हैं। इसको ‘अविमुक्त’, अर्थात जिसको शिव ने कभी भी नहीं छोड़ा, भी कहते हैं। इसको ‘आनंद वन’ और ‘रुद्रवास’ भी कहते हैं।
भारत के सांस्कृतिक तथा धार्मिक ग्रंथो में ज्योति प्रकाश का विशेष अर्थ है ‘ज्योति’, जो अंधकार को मिटाती है, ज्ञान फैलाती है, पापों का नाश करती है, अज्ञान को नष्ट करती है आदि। काशी अज्ञान, पाप का नाश करने वाली है, मोक्ष और समृद्धि प्रदान करने वाली है.

प्रलयकाल में भी काशी का लोप नहीं होता। उस समय भगवान [शंकर]] इसे अपने [त्रिशूल] पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। आदि सृष्टि स्थली भी यहीं भूमि बतलायी जाती है। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने का कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होने सारे की रचना की। अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्रीवशिष्ठजी तीनों लोकों में पुजित हुए तथा राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाये।

सर्वतीर्थमयी एवं सर्वसंतापहारिणी मोक्षदायिनी काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है। भगवान भोलानाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे वह आवगमन से छुट जाता है, चाहे मृत-प्राण्ाी कोई भी क्यों न हो। मतस्यपुराण का मत है कि जप, ध्यान और ज्ञान से रहित एवंम दुखों परिपीड़ित जनों के लिये काशीपुरी ही एकमात्र गति है।

वामपंथी (हिन्दू विरोधी), सेक्युलर विचारधारा के इतिहासकार मंदिर को तोडना सही ठहराते है ये देश द्रोही इतिहासकार विदेशी मजहब से पैसे लेकर यही लिखे है >>>>>

सन 1669 ईस्वी में औरंगजेब अपनी सेना एवं हिन्दू राजा मित्रों के साथ वाराणसी के रास्ते बंगाल जा रहा था.रास्ते में बनारस आने पर हिन्दू राजाओं की पत्नियों ने गंगा में डुबकी लगा कर काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा करने की इच्छा व्यक्त की …जिसे औरंगजेब सहर्ष मान गया, और, उसने अपनी सेना का पड़ाव बनारस से पांच किलोमीटर दूर ही रोक दिया !

फिर उस स्थान से हिन्दू राजाओं की रानियां पालकी एवं अपने अंगरक्षकों के साथ गंगाघाट जाकर गंगा में स्नान कर विश्वनाथ मंदिर में पूजा करने चली गई !
पूजा के उपरांत सभी रानियां तो लौटी लेकिन कच्छ की रानी नहीं लौटी , जिससे औरंगजेब के सेना में खलबली गयी और, उसने अपने सेनानायक को रानी को खोज कर लाने का हुक्म दिया …!

औरंगजेब का सेनानायक अपने सैनिकों के साथ रानी को खोजने मंदिर पहुंचा … जहाँ, काफी खोजबीन के उपरांत “”भगवान गणेश की प्रतिमा के पीछे”” से नीचे की ओर जाती सीढ़ी से मंदिर के तहखाने में उन्हें रानी रोती हुई मिली…. जिसकी अस्मिता और गहने मंदिर के पुजारी द्वारा लुट चुके थे …!

इसके बाद औरंगजेब के लश्कर के साथ मौजूद हिन्दू राजाओ ने मंदिर के पुजारी एवं प्रबंधन के खिलाफ कठोरतम करवाई की मांग की.
जिससे विवश होकर औरंगजेब ने सभी पुजारियों को दण्डित करने एवं उस “”विश्वनाथ मंदिर”” को ध्वस्त करने के आदेश देकर मंदिर को तोड़वा दिया !उसी जगह ज्ञानवापी मस्जिद बना दी.

हिन्दू विरोधी इन इतिहासकारों कि कहानी का झूठ >>>>>

झूठ न.1-औरंगजेब कभी भी बनारस और बंगाल नहीं गया था.उसकी जीवनी में भी यह नहीं लिखा है.किसी भी इतिहास कि किताब में यह नहीं लिखा है.

झूठ न.2- इस लुटेरे हत्यारे ऐयाश औरंगजेब ने हजारो मंदिरों को तोड़ा था..इसलिए इन इतिहासकारों की लिखे हुए इतिहास कूड़ा में फेकने के लायक है..और ये वामपंथी इतिहासकार इस्लाम से पैसे लेकर ”हिन्दुओ के विरोध ”में आज भी बोलते है लिखते है..किन्तु ये इतिहासकार मुसलमानों को अत्याचारी नहीं कहते है..मुग़ल इस देश के युद्ध अपराधी है…यह भी कहने और लिखने की हिम्मत इन इतिहासकारों में नहीं है…

झूठ न.3-युद्ध पर जाते मुस्लिम शासक के साथ हिन्दू राजा अपनी पत्नियों को साथ नहीं ले जा सकते है.क्योकि मुस्लिम शासक लूट पाट में औरतो को बंदी बनाते थे.

झूठ न.4- जब कच्छ की रानी तथा अन्य रानिया अपने अंगरक्षकों के साथ मंदिर गयी थी.तब किसी पुजारी या महंत द्वारा उसका अपहरण कैसे संभव हुआ. पुजारी द्वारा ऐसा करते हुए किसी ने क्यों नहीं देखा.…

झूठ न.5- अगर, किसी तरह ये न हो सकने वाला जादू हो भी गया था तो साथ के हिन्दू राजाओं ने पुजारी को दंड देने एवं मंदिर को तोड़ने का आदेश देने के लिए औरंगजेब को क्यों कहा. हिन्दू राजाओं के पास इतनी ताकत थी कि वो खुद ही उन पुजारियों और मंदिर प्रबंधन को दंड दे देते.

झूठ न.6 -क्या मंदिरों को तोड़कर वहां पर मस्जिद बनाने की प्रार्थना भी साथ गए हिन्दू राजाओं ने ही की थी.

झूठ न.7 -मंदिर तोड़ने के बाद और पहले के इतिहास में उस तथाकथित कच्छ की रानी का जिक्र क्यों नहीं है…

इन सब सवालों के जबाब किसी भी इतिहासकारों के पास नहीं है क्योंकि यह एक पूरी तरह से मनगढंत कहानी है….!

हकीकत बात ये है कि औरंगजेब मदरसे में पढ़ा हुआ एक कट्टर मुसलमान और जेहादी था,लुटेरा हत्यारा अरबी मजहब का औरंगजेब ने हिन्दुओं को अपमानित करने के लिए,हिन्दू धर्म को समाप्त करने के लिए ना सिर्फ काशी विश्वनाथ बल्कि, कृष्णजन्म भूमि मथुरा के मंदिर अन्य सभी प्रसिद्द मंदिरों को ध्वस्त कर वहां मस्जिदों का निर्माण करवा दिया था…..
जिसे ये मनहूस वामपंथी सेक्युलर इतिहासकार किसी भी तरह से न्यायोचित ठहराने में लगे हुए हैं….
और .. अपने पुराने विश्वनाथ मंदिर की स्थिति ये है कि…..
वहां औरंगजेब द्वारा बनवाया गया ज्ञानवापी मस्जिद आज भी हम हिन्दुओं का मुंह चिढ़ा रहा है … और, मुल्ले उसमे नियमित नमाज अदा करते हैं !

जबकि आज भी ज्ञानवापी मस्जिद के दीवारों पर हिन्दू देवी -देवताओं के मूर्ति अंकित हैं.ज्ञानवापी मस्जिद के दीवार में ही श्रृंगार गौरी की पूजा हिन्दू लोग वर्ष में 1 बार करने जाते है. और, मस्जिद के ठीक सामने भगवान विश्वनाथ की नंदी विराजमान है….!

इसीलिए…..हे हिन्दुओं जागो–जानो अपने सही इतिहास को क्योंकि इतिहास की सही जानकारी ही….. इतिहास की पुनरावृति को रोक सकती है…!
TP Shukla

— with Sunil Sharma.

Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

स सर्दियों के लिए बुद्धिशक्तिवर्धक प्रयोगख़ा


 

स सर्दियों के लिए बुद्धिशक्तिवर्धक प्रयोगख़ा

Ø मालकंगनी (ज्योतिष्मती) उत्तम मेधावर्धक हैं | १ से १० बूँद मालकंगनी तेल बतासे पर डालकर खायें | ऊपर से गाय का दूध पियें | ४० दिन तक यह प्रयोग करने से ग्रहण व स्मृति शक्ति में लक्षणीय वृद्धि होती है | इन दिनों में उष्ण, तीखे, खट्टे पदार्थों का सेवन न करें | दूध व घी का उपयोग विशेष रूप से करें |

Ø बादाम बौद्धिक, शारीरिक शक्ति व नेत्रज्योति वर्धक हैं | रात को ४ बादाम पानी में भिगो दें | सुबह छिलके उतार के जैसे हाथ से चंदन घिसते हैं, इस तरह घिस के दूध में मिलाकर सेवन करें | इस प्रकार से घिसा हुआ १ बादाम १० बादाम की शक्ति देता है | बालकों के लिए १ से २ बादाम पर्याप्त हैं |

प्रतिदिन मोरारजी देसाई गिनकर सात काजू खाते थे | इससे अधिक बादाम या काजू खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं | इससे गुर्दे (किडनी) और यकृत (लीवर) कमजोर हो जाते हैं | बिना भिगोये अथवा बिना छिलके उतारे बादाम खाने से पाचनतंत्र पर अधिक जोर पड़ता है |
Stats
Ø काले तिल मस्तिष्क व शारीरिक दुर्बलता को दूर करते हैं | १० ग्राम काले तिल सुबह खूब चबा-चबाकर खायें | ऊपर से ठंडा पानी पियें | बाद में २ – ३ घंटे तक कुछ न खायें | इससे शरीर को खूब पोषण मिलेगा | दाँत व केश भी मजबूत बनेगें | (पित्त प्रकृति के लोग यह प्रयोग न करें )

Ø ५० – ५० ग्राम गुड और अजवायन को अच्छी तरह कूटकर ६ – ६ ग्राम की गोलियाँ बना लें | प्रात: सायं एक-एक गोली पानी के साथ लें | एक सप्ताह में ही शरीर पर फैले हुए शीतपित्त के लाल चकत्ते दूर हो जाते हैं |

– Rishi Prasad

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Posted in नहेरु परिवार - Nehru Family

पहला प्रेम प्रसंग!


सोनिया गांधी का पहला प्रेम प्रसंग!

यह भारतीयों को पता नहीं हो सकता है कि एक प्रेम कहानी है! एंटोनिया माइनो कभी इंग्लैंड में राजीव गांधी से मुलाकात से पहले यह हुआ था! इसलिए हम इस ‘कॉल करना चाहते EXCLUSIVE हमारे भारतीय पाठकों के लिए ‘!
 

फ्रेंको Luison 
वह ‘के एक इतालवी फुटबॉल खिलाड़ी था सेरी ए

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(अक्स. सोनिया गांधी)  

फ्रेंको Luison, एक इतालवी पत्रिका ‘को इस साक्षात्कार में याद Gente वह राजीव के साथ मुलाकात की थी पहले प्रेम कहानी के बारे में उनकी चार साल की ‘.

एंटोनिया माइनो के साथ अपने प्रेम प्रसंग 

” हम खुश हर जगह प्यार और में थे ”
हमारे परिवार में हम प्यार में थे कि पता करने के लिए बहुत खुश और उत्सुक थे. उसके माता पिता का उनके घर पर बहुत खुशी के साथ मुझे समायोजित करने के लिए उपयोग करता है Orbassano पास ट्यूरिन वे 60 के दशक में स्थानांतरित कर दिया गया है.

वह मुझे प्यार करता था और इंदिरा की नहीं बेटा मुझसे शादी करना चाहता था.
हम देखें तट पर पहली बार मिले Jesolo वह 14 साल की थी जब 60 के दशक में,.

मैं अपने समुद्र तट छाता की छाया में पहली बार उससे मिला जब मैं 26 का था, तब मैं सोनिया, प्रसिद्ध नहीं था! यह पहली बार के लिए एक गर्मियों इश्कबाज तरह लग रहा था, लेकिन चार साल तक चली और हमारी संबंधित परिवारों हमें एक साथ देखने के लिए खुश थे. हर रविवार को मैच के बाद, मैं उसे पूरा करने के लिए Orbasano के लिए जाया करते थे. उसका परिवार हमेशा बहुत खुशी और शिष्टाचार के साथ मुझे प्राप्त हुआ. अभ्यास के लिए लौटने से पहले, मंगलवार तक उसके साथ रहेगा.

फ्रेंको के साथ Antonia
Lusiana , 1964
सौजन्य: Gente


शायद ही कभी कार्रवाई में मुझे देखने के लिए स्टेडियम में बदल जाता है, हालांकि फुटबॉल, उसके जुनून नहीं था. चैम्पियनशिप खत्म, गर्मियों के दौरान, हम करने के लिए जाया करते थे विसेंज़ा   सप्ताहांत के लिए!

मैं Antonia के पहले महान प्रेमी था. हमारी प्रेम कहानी. 4 साल तक चली वह शादी करने के लिए उसे वादा करना चाहता था, लेकिन मैं स्थगित हर समय का उपयोग करें. तब वह राजीव गांधी से मुलाकात की, जहां वह. इंग्लैंड के लिए गया था

1964 में वह इंग्लैंड के लिए जाने का फैसला किया. मैं खुश नहीं था, वह उसे यात्रा कर दिया. उसने कहा कि वह क्या कर रहा था उसे पत्र में सब कुछ मुझे सुनाई. वह छुट्टी के लिए वापस आया और राजीव के पुत्र की बात एक बार इंदिरा गांधी , और “मैं अपनी मां से मिलने के लिए आमंत्रित कर रहा है और जल्द ही दिल्ली के लिए जा रही हो जाएगा,” उसने कहा. वह नई दिल्ली से वापस आया था, वह यह है कि शादी के लिए राजी कर लिया था राजीव गांधी .
यह संबंध बहुत दुखद नहीं था और हमारे अलविदा एक बहुत ही सौम्य तरीके से किया गया था विदाई हमारे चार साल के लिए, मुझे बहुत चोट लगी है हालांकि.

वह अभी भी साथ दोस्ती रखता है उसके परिवार, और उपहार का आदान प्रदान करने के लिए कम से कम दो बार एक वर्ष उन्हें मिलता है  दावतें दौरान. नोरा, फ्रेंको की पत्नी याद: “मैं सोनिया की जलन हो रही थी, उसके सभी दोस्तों मैं देर से 1964 में हमारे संबंध शुरू कर दिया जब उसके बारे में बात करने के लिए उपयोग के लिए” मैं सोनिया वापस आ जाएगा और मैं फ्रेंको उठ जाएगा एक दिन डर लग रहा था! ” उसने कहा.

सोनिया के साथ मेरा लव स्टोरी
(ला मिया storia डी ‘Amore चुनाव सोनिया)

तो, राजीव गांधी उसे ‘दूसरी’ था  प्यार पहली नजर में !

स्रोत
इस Gente, लुका Angelucci द्वारा फ्रेंको Luison को एक इतालवी पत्रिका पर प्रकाशित एक साक्षात्कार है.
कहानी को कवर: ‘ला मिया storia डी’ Amore चुनाव सोनिया ‘
( Gente , वर्ष XLVIII N.23, 2004 जून 3)
________________________________ एंटोनिया माइनो में जन्मे  Lusianaमें एक छोटे से शहर विसेंज़ा के प्रान्त ,   वेनेटो ,   इटली , बाद में करने के लिए स्थानांतरित  Orbassano में  ट्यूरिन के प्रांत , Piedmont . क्षेत्र इटली  एक भाषा स्कूल में अंग्रेजी का अध्ययन करते हुए में कैम्ब्रिज , इंग्लैंड, वह मुलाकात  राजीव गांधी1968 में शादीशुदा जोड़े और सोनिया गांधी के रूप में जानता है. ***************************** *********************** सन्दर्भ फ्रेंको Luison (15July 1934 – 25 सितंबर 2012) लिंक समाचार Luison बिल्ली फ्रेंको Luison  मर गया  पर 25 सितंबर 2012 को सोनिया गांधी ( 9 दिसम्बर 1946) Lusiana Lusiana  मोड़ ट्यूटर  एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका  समाचार  पहली नजर का प्यारइस Gente, लुका Angelucci द्वारा फ्रेंको Luison को एक इतालवी पत्रिका पर प्रकाशित एक साक्षात्कार है ( Gente , वर्ष XLVIII N.23, 2004 जून 3)

    


 

 

Posted in नहेरु परिवार - Nehru Family

First Love affair!


Sonia Gandhi’s First Love affair!

This is a Love Story that the Indians may not know! This had happened before Antonia Maino ever met Rajive Gandhi in England! So we wish to call this ‘EXCLUSIVE’ for our Indian Readers!
 

Franco Luison 
He was an Italian football player of ‘Serie A

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(aks. Sonia Gandhi)  

Franco Luison, recollects in this interview to an Italian magazine ‘GENTE‘ of his four years of love story before she had met with Rajive.

My love affair with Antonia Maino 

“We were in love and happy everywhere”
Our family were very happy and eager to know that we were in love. Her parents uses to accommodate me with great pleasure at their home of Orbassano near Turin where they were transferred in the 60’s.

She loved me and wanted to marry me, not the son of Indira.
We met for the first time at the see shore of Jesolo in the 60’s, when she was 14.

I was 26 when I met her for the first time under the shade of my beach umbrella, then I was famous, not Sonia! It seemed like a summer flirt for the first time but lasted for four years and our respective families were happy to see us together. Every sunday, after match, I used to go to Orbasano to meet her.  Her family always received me with great pleasure and courtesy.   Will remain with her until tuesday, before return for the practice.

Antonia with Franco
Lusiana,1964
courtesy: Gente


Football was not her passion, though rarely turns up in stadium to see me in action. When finish the championship, during the summer, we used to go to Vicenza  for weekends!

I was the first great lover of Antonia. Our love story lasted for 4 years. She wanted me to promise her to marry, but I use to postponed each time. Then she went to England where she met Rajiv Gandhi.

In 1964 she made a decision to go to England. Though I wasn’t happy, she made her trip. She narrated me in her letters everything she was doing. Once she came back for vacation and spoke of Rajive, son of Indira Gandhi, and “I’m invited to meet his mother and will be going to Delhi soon”, she added. When she came back from New Delhi, she was convinced that will marriage Rajive Gandhi.
Though it hurt me very much, farewell to our four years relation wasn’t very tragic and our goodbye was in a very gentle manner.

He still keeps friendship with her family, and meets them at-least twice an year to exchange gifts during feasts. Nora, wife of Franco remember: “I was jealous of Sonia, for all his friends use to speak about her when I started our relation in the late 1964. “I was afraid one day Sonia would come back and I will loose Franco!” she added.

My Love Story With Sonia
(La mia storia d’amore con Sonia)

So, Rajive Gandhi was her ‘second’ love at first sight!

Source
This is an interview published on GENTE, an Italian Magazine to Franco Luison by Luca Angelucci.
Cover story: ‘La mia storia d’amore con Sonia’
(GENTE, Year XLVIII N.23, 2004 June 3)
________________________________
Antonia Maino
Born at Lusiana, a small town in the province of Vicenza,  Veneto,  Italy, later transferred to Orbassano  in the Province of TurinPiedmont region Italy. While studying English at a language school in Cambridge, England, she met Rajiv Gandhi. The couple married in 1968 and knows as Sonia Gandhi.

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References

Franco Luison (15July 1934 – 25 September 2012)
link
News
Luison the cat
Franco Luison died on 25 September 2012

Sonia Gandhi ( 9 December 1946)
Lusiana
Lusiana 
The twist tutor 
Encyclopaedia Britannica 
News 
Love at first sight
This is an interview published on GENTE, an Italian Magazine to Franco Luison by Luca Angelucci
(GENTE, Year XLVIII N.23, 2004 June 3)

Posted in PM Narendra Modi

दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाई तो छोटी छोटी बाते बड़ी बड़ी खबरें बनी । जैसे राखी बिरला VIP नंबर वाली गाड़ी में बैठी देखि गई ।


Laxmi Narayan Choudhary दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाई तो छोटी छोटी बाते बड़ी बड़ी खबरें बनी । जैसे राखी बिरला VIP नंबर वाली गाड़ी में बैठी देखि गई ।
अरविन्द केजरीवाल ने 5 कमरों का बहुत बड़ा सरकारी घर ले लिया ।
अरविन्द केजरीवाल अपनी गाड़ी में नहीं सरकारी गाड़ी में दे
खे गए ।
आप पार्टी के नेता विधानसभा में टोपी पहनकर क्यों आये ।
अरविन्द केजरीवाल की ख़ासी ठीक क्यों नहीं हो रही ।
मुख्यमंत्री को आम आदमी के लिए धरने पर नहीं बैठना चाहिए ।
राखी बिरला रात को सड़को पर क्यों घूमती है
अरविन्द का जनता दरवार फेल हुआ, (किसी ने ये नहीं देखा अरविन्द ने लोगो की बात सुनने की कोशिश तो की ) ।

अरविन्द ने 200 करोड़ की सब सब्सिडी देकर जुलम कर दिया ।
सोमनाथ भारती ने सैक्स और ड्रग्ज रैकिट क्यों रोका ।
अरविन्द केजरीवाल मफलर क्यों पहनते हैं ऐसे ही कई मुद्दो पर 49 दिन चर्चा होती रही ।

इन में से कोई ऐसा मुद्दा नहीं जिस से आम आदमी पार्टी ने आम आदमी का या देश का नुकसान किया हो । मगर आम आदमी पार्टी को बदनाम करने की हर संभव कोशिश की गई ,आज मोदी जी की केंद्र में सरकार है । बड़े बड़े मुद्दो पर मोदी सरकार पलटी मार रही है U-turn ले रही मगर छोटी खबर भी नहीं बन रही ।

जैसे धारा 370 चुनाव से पहले मोदी के लिए मुद्दा था अब नहीं है ।
महंगाई चुनाव से पहले मोदी के लिए मुद्दा था अब नहीं है ।
पाकिस्तान चुनाव से पहले मोदी के लिए मुद्दा था अब एक सैनिक को मार दिया तो क्या हुआ ।
चाइना चुनाव से पहले मुद्दा था अब चाइना की सेना भारत में घूम कर चली जाये कोई बात नहीं ।
वाड्रा की सुरक्षा करेगी मोदी सरकार कोई चर्चा नहीं ।
भूटान को 4500 करोड़ का तोफा को चर्चा नहीं ।
शिक्षामंत्री को शिक्षा का मतलब नहीं पता कोई चर्चा नहीं ।
मोदी सरकार ने गैंस के दाम दोगुने कर दिए कोई चर्चा नहीं ।
मोदी सरकार बलात्कारी मंत्री के साथ खड़ी है कोई चर्चा नहीं ।
बीजेपी के 98 सांसद दागी हैं कोई चर्चा नहीं ।
बीजेपी के 50 से ज्यादा सांसद कांग्रेेस छोड़ कर आये हैं कोई चर्चा नहीं ।
जो रक्षा राज्य मंत्री मनमोहन सरकार में भृष्ट था मोदी ने उसे ही रक्षा राज्य मंत्री बना दिया कोई चर्चा नहीं ।
तेल ,रेल ,सब्जी सब महंगा हो गया कोई चर्चा नहीं ।
मोदी सरकार के हर फैंसले ने आम आदमी को चोट दी है ।

मोदी ने चुनाव से पहले और बाद में गिरगट की तरह रंग बदला है , पहले कांग्रेेस सरकार पर आरोप था वो अमीरो के लिए काम करती है, मोदी सरकार तो साफ़ साफ़ अमीरों के लिए काम कर रही है , मगर मीडिया मोदी सरकार को बचानेकी हर संभव कोशिश कर रही है ।

दिल्ली में शीला गई अरविन्द आये ,बिजली ,पानी ,भर्ष्टाचार हर मुद्दे पर काम होता हुआ नज़र आने लगा | केंद्र में मनमोहन गये,मोदी आये बताओ क्या बदला ? क्या लगता नहीं UPA 3 काम NDA कर रही है ?

सिर्फ प्रधानमंत्री का मखोटा बदला है ।

जय हिन्द