Posted in काश्मीर - Kashmir

कश्मीर की समस्या के समाधान हेतु मूल मन्त्र !
१.धारा ३७० की तत्काल समाप्ति !
२.पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर बल-पूर्वक कब्ज़ा कर भारत में विलय और वहां की जनता को पाकिस्तान में धकेला जाय !
३.कश्मीर की सीमाओं पर सेवा-निवृत हुएसैनिकों व अर्ध-सैनिकों केलोगों को भूमि देकर बसाया जाय !

४.कश्मीर में बनी आतंकियों की पनाहगारमस्जिदोंव मदरसों को ढहाया जाय !
५.अलगाववादियों को देखतेही गोली मारी जाय न की गिरफ्तार करमुकदमा चलाया जाय !
६.काश्मीर में बसे सभी पाकिस्तानियों वबांग्लादेशियोंको गोली मार दी जाए !
७.जिनके पूर्वज हिन्दू थे और वेशुद्धि द्वारा सनातन धर्म में आना चाहते हैंउनका स्वागत हो !
८.काश्मीर से विस्थापित सभी हिन्दुओंको दुबारा से वहां बसाया जाय !९.काश्मीर में वैदिक विद्यापीठों वआश्रमों,मंदिरों, मठों व गुरुद्वारों की स्थापना !
यह तभी संभव है जब केंद्र में हिन्दू राष्ट्र की घोषणा करने वाले दल की सरकार होगी !
हिन्दुस्थान स्थानीय लोगों का नहीं किसी के बाप का !
जय हिन्दू राष्ट्र !
जय भवानी !
जयशिवाजी !
वन्देमातरम —

Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

भारत मैं सबसे ज्यादा मौते कोलस्ट्रोल बढ़ने के कारण हार्ट अटैक से होती हैं।


भारत मैं सबसे ज्यादा मौते कोलस्ट्रोल बढ़ने के कारण हार्ट अटैक से होती हैं। आप खुद अपने ही घर मैं ऐसे बहुत से लोगो को जानते होंगे जिनका वजन व कोलस्ट्रोल बढ़ा हुआ हे। अमेरिका की कईं बड़ी बड़ी कंपनिया भारत मैं दिल के रोगियों (heart patients) को अरबों की दवाई बेच रही हैं ! लेकिन अगर आपको कोई तकलीफ हुई तो डॉक्टर कहेगा angioplasty (एन्जीओप्लास्टी) करवाओ। इस ऑपरेशन मे डॉक्टर दिल की नली में एक spring डालते हैं जिसे stent कहते हैं। यह stent अमेरिका में बनता है और इसका cost of production सिर्फ 3 डॉलर (रू.150-180) है। इसी stent को भारत मे लाकर 3-5 लाख रूपए मे बेचा जाता है व आपको लूटा जाता है। डॉक्टरों को लाखों रूपए का commission मिलता है इसलिए व आपसे बार बार कहता है कि angioplasty करवाओ।
Cholestrol, BP ya heart attack आने की मुख्य वजह है, Angioplasty ऑपरेशन। यह कभी किसी का सफल नहीं होता। क्यूँकी डॉक्टर, जो spring दिल की नली मे डालता है वह बिलकुल pen की spring की तरह होती है। कुछ ही महीनो में उस spring की दोनों साइडों पर आगे व पीछे blockage (cholestrol व fat) जमा होना शुरू हो जाता है। इसके बाद फिर आता है दूसरा heart attack ( हार्ट अटैक ) डॉक्टर कहता हें फिर से angioplasty करवाओ।
आपके लाखो रूपए लुटता है और आपकी जिंदगी इसी में निकल जाती हैं।
अब पढ़िए उसका आयुर्वेदिक इलाज।

अदरक (ginger juice) – यह खून को पतला करता है।यह दर्द को प्राकृतिक तरीके से 90% तक कम करता हें।
लहसुन (garlic juice) – इसमें मौजूद allicin तत्व cholesterol व BP को कम करता है।
वह हार्ट ब्लॉकेज को खोलता है।
नींबू (lemon juice) – इसमें मौजूद antioxidants, vitamin C व potassium खून को साफ़ करते हैं। ये रोग प्रतिरोधक क्षमता (immunity) बढ़ाते हैं।
एप्पल साइडर सिरका ( apple cider vinegar) – इसमें 90 प्रकार के तत्व हैं जो शरीर की सारी नसों को खोलते है, पेट साफ़ करते हैं व थकान को मिटाते हैं।
इन देशी दवाओं को इस तरह उपयोग में लेवें :-
एक कप नींबू का रस लें;
एक कप अदरक का रस लें;
एक कप लहसुन का रस लें;
एक कप एप्पल का सिरका लें;
चारों को मिला कर धीमीं आंच पर गरम करें जब 3 कप रह जाए तो उसे ठण्डा कर लें;
उसमें 3 कप शहद मिला लें| रोज इस दवा के 3 चम्मच सुबह खाली पेट लें जिससे सारी ब्लॉकेज खत्म हो जाएंगी

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

दीपावली से एक दिन पहले की बात है,


दीपावली से एक दिन पहले की बात है, मेरे घर में काम वाली बाई थोड़ा लेट आई थी. उसने जब दरवाजे पर घंटी बजाई तो दरवाज़ा Neha ने खोला. वो माँ के पास गयी और बोली , आज तो इसके चेहरे पर एक अलग सी चमक है, खुश भी बहुत लग रही है. मेरी माँ ने प्यार से झिड़की लगाते हुए कहा अरे नेहा अपना काम करो, उसकी चिंता छोडो. माँ के झिड़कने के बावजूद वह बात , जानने का मोह संवरण ना कर सकी. पर बिना पूछे ही बाई ने अपनी खुशी के राज का पिटारा खोल दिया. उसने बताया कि उसकी दो बहनें वा एक भाई है. वह सबसे बड़ी है.
पिछली कई दीपावलिओं से वह अपने भाई बहनों को कोई अच्छा सा उपहार नहीं दे सकी थी, जो उसको अच्छा नहीं लगता था. इस बार उसने पूरी मेहनत से अपनी बचत में से अपने भाई को कपड़े तथा बहनों को सड़ियाँ दि.साथ ही उसने बताया कि उसकी छोटी बहन की शादी अभी कुछ दिनों पहले ही हुई थी तो उसके पति को भी उसने पैंट शर्ट दिए. इसके साथ ही अपने पति की बहनों व उनके बच्चों के लिए भी कुछ ना कुछ उपहार उसने दीपावली पर दिए. पिछली कई दीपावलिओं से वह अपने बेटे को बहुत कम पटाखे दिलवा पाती थी, तो उसे भी इस बार अच्छी तरह से पटाखे दिलवाए. यह उसके चेहरे की चमक का राज था.
नेहा ने उससे पूछा अरे इतना सब तूने कैसे खर्च किया? वह बोली दीदी में में अपने भाई बहनों में सबसे बड़ी हूँ, उनके लिए कुछ ना कर पाने पर दिल दुखी होता था, तो मैने पिछली दिवाली पर ही ठान लिया था पूरे साल बचत करूंगी पर अपने भाई बहनों व बच्चे की दिवाली शानदार करूंगी. जो कुछ बचाया उससे से उसने अपने दिल की बात पूरी की. नेहा ने पूछा तूने यह सब अपनी मर्जी से किया या किसी ने इस सब के लिए तुझ पर दवब डाला था. वह धीरे से मुस्कुराई और बोली, दीदी यह तो सब प्रेमप्यार के सौदे हें, दवाब डालकर नहीं करवाए जा सकते. उसके चेहरे की चमक उसके उद्देश्य प्राप्ति की खुशी बयान कर रही थी. मुझे जब यह बात नेहा ने बताई तो इस चर्चा को सुन कर सोचने लगी क्या ईश्वर उन सबको भी इतना ही बड़ा दिल देता है जिनके पास सब कुछ है. या सिर्फ यह दिल उनको ही देता है जिनके पास कुछ भी नहीं है. मुझे खुद को ही अपने भाई बहानो और घर के बच्चों को इस तरह से किसी पर्व त्योहार पर उपहार देना अच्छा तो लगता था पर, दिये हुए काफी समय हो गया था, सच पूछो तो याद भी नहीं आ रही थी कि ऐसा कुछ किया जाए. पर यह बस प्रेम प्रीत की डोर ही है, जो अपने पल्ले कुछ ना होने के बावजूद अपनों पर सब कुछ लुटा देने की इच्छा पैदा कर देती है. मुझे पर्व त्योहारों पर उपहार लेने देने का बीजगणित कुछ कुछ समझ आ रहा थे . उपहार देने के पीछे का सिर्फ एक ही स्वार्थ मुझे नजर आ रहा था, मेरी कामवाली बाई का, और वह था उसके अपनों के चेहरों पर एक खुशी और प्रेम का एहसास देखने का. में इस पूरी कहानी को सुन कर खुश थी , चलो इस बहाने से जीवन की सरलता के कुछ सबक़ तो सीखा गई मुझे मेरी कामवाली बाई….. मैं उसके लिए बस इतना ही कह सकती हु है ईश्वर इसके अपनों को इतनी सांझ देना कि वे उस प्रेम प्रीत की डोर को अपनी तरफ से मजबूती से थामे रहें, इसे इतना कम से कम इतना अवश्य देना कि इसको अपने अपनों के चेहरे की खुशियाँ देखने के लिए अपने जीवन का एक वर्ष होम ना करना पड़े.

Posted in राजनीति भारत की - Rajniti Bharat ki

सरदार पटेल


सरदार पटेल ने आजादी के बाद लगभग 600 राजे-रजवाड़ों का देश
में विलय कराके 32 लाख एकड़ जमीन को एक कर अखंड भारत
की रचना की थी। लेकिन आज तक देश में ही उनका कोई
समाधि स्थल नहीं है। उनके समकालीन नेताओं की दिल्ली में
समाधियां हैं,

जो लोग सरदार से परिचित हैं, वे जानते हैं कि सरदार अपने सिद्धांतों के कितने पक्के थे।
BHASKAR.COM
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youngester


कोई संदेह ?

1. 16 साल खेलकूद में निकल गए.

2. 17 से 25 पढाई, जवानी के प्यार में, फ़ोकट की दादागिरी में, फेसबूक पर फालतू बातों में.

3. 25 से 35 में बच्चों का बोझ, परिवार की उम्मीद, महंगाई के दौर में खुद को सही स्थिति में लाने की जंग.

4. 35 से 50 में अब जाके जिंदगी एक ट्रैक पर रुकी है तो पता लगा की बच्चे बड़े होने लगे हैं , इंजीनियरिंग में 
प्रवेश कराना है या डॉक्टर बनाना है, इतना अनुदान देना है कॉलेज में , शहर से बाहर रहने का इतना खर्चा है, फिर से लग गए जुगाड़ में.

5. 50 से 60 , अब उम्र आई है सत्संग की , मंदिर जाने की , लोगो को उपदेश देने की , ज़माने के अंतर को बताने की, अपनी बात को बड़ी साबित करने की , ये बताने की क़ि ये देशसेवा , राष्ट्रभक्ति ये सब ठाली बेठे लोगो के काम हैं , पढो लिखो करियर बनाओ और पैसा कमाओ , ये सब तो यु ही चलता रहता है.

हो सकता है क़ि लिखने में कुछ कमी रह गयी हो या कुछ बिंदु गलत लिखे हों , पर जितना मैने आसपास देखा वो बताया , इसमें कुछ स्थिति ऐसी है क़ि युवा अपने ऐश आराम और रोमांस से बाहर देख ही नहीं पा रहे हैं , गरीब युवा को राष्ट्र के लिए देखने का विकल्प ही नहीं बचता क्योकि उसे अपनी एक दिन क़ि रोटी का जुगाड़ करना है , उसकी एक अनुपस्थिति से उसकी ज़िन्दगी , भूख प्यास को आंच आ सकती है, अमीर युवा को भटकने का काम अच्छे ढंग से चल रहा है जैसे फसबूक, ऑरकुट, MTV, हवास को प्यार का नाम देकर उस पर टिपण्णी देकर प्रसिद्धि लूटना, लडकियों में अलग दिखने के लिए android मोबाइल, ब्रांडेड चश्मे, लेविस क़ि जींस, रीबोक क़ि टी शर्ट , bikes का ट्रेंड , आज कोनसी फिल्म रिलीज़ हो रही है. इन्हें कोई देश और समाज क़ि बात करता हुआ दिखाई देता है तो उसे बाबाजी, या उपदेशक या ओर्थोडोक्स सोच वाले का नाम दिया जाता है , ऐसा इसलिए होता है क्युकी जिस तरह कंप्यूटर में एक अच्छा hardware ही अच्छे software को सपोर्ट कर सकता है, उसी तरह एक अच्छा दिमाग ही इस तरह के विचारो को सपोर्ट कर सकता है , और हमारे विचारो और दिमाग में वाइरस लग चूका है जो हमें नग्नता , अश्लीलता, रोमांस, विलासिता से बहार आकर नहीं सोचने देता है, इस वाइरस लगने के बहुत से कारन हैं जैसे बचपन से लेकर अब तक बॉलीवुड क़ि रोमांस परस्त फिल्मे देखना और attraction को प्यार समझना, हर विज्ञापन में लड़का लड़की साथ देखना और हर तरह क़ि मीडिया से इस तरह का संदेश आता है क़ि ज़िन्दगी में रोमांस और ऐश के सिवा कुछ है ही नहीं , यही सब देखते देखते इंसान बड़ा होता है और यही सब कारण हैं जो उसका दिमाग रुपी hardware में नग्नता और अश्लीलता के वाइरस घुस जाते हैं

फिर भी इन दोनों स्थिति से कोई बाहर निकल कर देश के लिए कुछ करने क़ि सोचता है तो उसे सबसे पहले अपने समाज, परिवार, दोस्तों से ही बेवकूफ का दर्जा मिल जाता है, घरवाले चिंता करते हैं क़ि ये किस और जा रहा है............??

आपकी प्रतिक्रियाओं के लिए प्रतीक्षारत.....................हर हर महादेव जय महाकाल 

दोस्तों share करना ना भूले...!!

must click 

http://www.youtube.com/watch?v=Nm8fafTWd3o

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1. 16 साल खेलकूद में निकल गए.

2. 17 से 25 पढाई, जवानी के प्यार में, फ़ोकट की दादागिरी में, फेसबूक पर फालतू बातों में.

3. 25 से 35 में बच्चों का बोझ, परिवार की उम्मीद, महंगाई के दौर में खुद को सही स्थिति में लाने की जंग.

4. 35 से 50 में अब जाके जिंदगी एक ट्रैक पर रुकी है तो पता लगा की बच्चे बड़े होने लगे हैं , इंजीनियरिंग में
प्रवेश कराना है या डॉक्टर बनाना है, इतना अनुदान देना है कॉलेज में , शहर से बाहर रहने का इतना खर्चा है, फिर से लग गए जुगाड़ में.

5. 50 से 60 , अब उम्र आई है सत्संग की , मंदिर जाने की , लोगो को उपदेश देने की , ज़माने के अंतर को बताने की, अपनी बात को बड़ी साबित करने की , ये बताने की क़ि ये देशसेवा , राष्ट्रभक्ति ये सब ठाली बेठे लोगो के काम हैं , पढो लिखो करियर बनाओ और पैसा कमाओ , ये सब तो यु ही चलता रहता है.

हो सकता है क़ि लिखने में कुछ कमी रह गयी हो या कुछ बिंदु गलत लिखे हों , पर जितना मैने आसपास देखा वो बताया , इसमें कुछ स्थिति ऐसी है क़ि युवा अपने ऐश आराम और रोमांस से बाहर देख ही नहीं पा रहे हैं , गरीब युवा को राष्ट्र के लिए देखने का विकल्प ही नहीं बचता क्योकि उसे अपनी एक दिन क़ि रोटी का जुगाड़ करना है , उसकी एक अनुपस्थिति से उसकी ज़िन्दगी , भूख प्यास को आंच आ सकती है, अमीर युवा को भटकने का काम अच्छे ढंग से चल रहा है जैसे फसबूक, ऑरकुट, MTV, हवास को प्यार का नाम देकर उस पर टिपण्णी देकर प्रसिद्धि लूटना, लडकियों में अलग दिखने के लिए android मोबाइल, ब्रांडेड चश्मे, लेविस क़ि जींस, रीबोक क़ि टी शर्ट , bikes का ट्रेंड , आज कोनसी फिल्म रिलीज़ हो रही है. इन्हें कोई देश और समाज क़ि बात करता हुआ दिखाई देता है तो उसे बाबाजी, या उपदेशक या ओर्थोडोक्स सोच वाले का नाम दिया जाता है , ऐसा इसलिए होता है क्युकी जिस तरह कंप्यूटर में एक अच्छा hardware ही अच्छे software को सपोर्ट कर सकता है, उसी तरह एक अच्छा दिमाग ही इस तरह के विचारो को सपोर्ट कर सकता है , और हमारे विचारो और दिमाग में वाइरस लग चूका है जो हमें नग्नता , अश्लीलता, रोमांस, विलासिता से बहार आकर नहीं सोचने देता है, इस वाइरस लगने के बहुत से कारन हैं जैसे बचपन से लेकर अब तक बॉलीवुड क़ि रोमांस परस्त फिल्मे देखना और attraction को प्यार समझना, हर विज्ञापन में लड़का लड़की साथ देखना और हर तरह क़ि मीडिया से इस तरह का संदेश आता है क़ि ज़िन्दगी में रोमांस और ऐश के सिवा कुछ है ही नहीं , यही सब देखते देखते इंसान बड़ा होता है और यही सब कारण हैं जो उसका दिमाग रुपी hardware में नग्नता और अश्लीलता के वाइरस घुस जाते हैं

फिर भी इन दोनों स्थिति से कोई बाहर निकल कर देश के लिए कुछ करने क़ि सोचता है तो उसे सबसे पहले अपने समाज, परिवार, दोस्तों से ही बेवकूफ का दर्जा मिल जाता है, घरवाले चिंता करते हैं क़ि ये किस और जा रहा है…………??

आपकी प्रतिक्रियाओं के लिए प्रतीक्षारत…………………हर हर महादेव जय महाकाल

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Posted in भारतीय उत्सव - Bhartiya Utsav

आप सभी मित्रो को छठ पर्व की सपरिवार ढेरो सुभकामना….


आप सभी मित्रो को छठ पर्व की सपरिवार ढेरो सुभकामना….

छठ पर्व या छठ कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। प्रायः हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलंवी भी मनाते देखे गए हैं। धीरे धीरे यह त्यौहार प्रवासी भारतीयों के साथ साथ विश्वभर मे प्रचलित व प्रसिद्ध हो गया है।

छठ पर्व छठ, षष्टी का अपभ्रंश है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के तुरंत बाद मनाए जाने वाले इस चार दिवसिए व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल सष्ठी की होती है। इसी कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया।

हमारे देशमें सूर्योपासनाके लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होनेके कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्षमें दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्रमें और दूसरी बार कार्तिकमें। चैत्र शुक्लपक्ष षष्ठीपर मनाए जानेवाले छठ पर्वको चैती छठ व कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठीपर मनाए जानेवाले पर्वको कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फलप्राप्तिके लिए यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्वको स्त्री और पुरुष समानरूपसे मनाते हैं। छठ व्रतके संबंधमें अनेक कथाएं प्रचलित हैं; उनमेंसे एक कथाके अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुएमें हार गए, तब द्रौपदीने छठ व्रत रखा। तब उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवोंको राजपाट वापस मिल गया। लोकपरंपराके अनुसार सूर्य देव और छठी मइयाका संबंध भाई-बहनका है। लोक मातृका षष्ठीकी पहली पूजा सूर्यने ही की थी। छठ पर्वकी परंपरामें बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ है, षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगौलीय अवसर है। उस समय सूर्यकी पराबैगनी किरणें (ultra violet rays) पृथ्वीकी सतहपर सामान्यसे अधिक मात्रामें एकत्र हो जाती हैं। उसके संभावित कुप्रभावोंसे मानवकी यथासंभव रक्षा करनेका सामर्थ्य इस परंपरामें है। पर्वपालनसे सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभावसे जीवोंकी रक्षा संभव है। पृथ्वीके जीवोंको इससे बहुत लाभ मिल सकता है। सूर्यके प्रकाशके साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वीपर आती हैं। सूर्यका प्रकाश जब पृथ्वीपर पहुंचता है, तो पहले उसे वायुमंडल मिलता है। वायुमंडलमें प्रवेश करनेपर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैगनी किरणोंका उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्वको संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोनमें बदल देता है। इस क्रियाद्वारा सूर्यकी पराबैगनी किरणोंका अधिकांश भाग पृथ्वीके वायुमंडलमें ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वीकी सतहपर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुंच पाता है। सामान्य अवस्थामें पृथ्वीकी सतहपर पहुंचनेवाली पराबैगनी किरणकी मात्रा मनुष्यों या जीवोंके सहन करनेकी सीमामें होती है। अत: सामान्य अवस्थामें मनुष्योंपर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पडता, बल्कि उस धूपद्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवनको लाभ ही होता है।[कृपया उद्धरण जोड़ें] छठ जैसी खगौलीय स्थिति (चंद्रमा और पृथ्वीके भ्रमण तलोंकी सम रेखाके दोनों छोरोंपर) सूर्यकी पराबैगनी किरणें कुछ चंद्र सतहसे परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपवर्तित होती हुई, पृथ्वीपर पुन: सामान्यसे अधिक मात्रामें पहुंच जाती हैं। वायुमंडलके स्तरोंसे आवर्तित होती हुई, सूर्यास्त तथा सूर्योदयको यह और भी सघन हो जाती है। ज्योतिषीय गणनाके अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मासकी अमावस्याके छ: दिन उपरांत आती है। ज्योतिषीय गणनापर आधारित होनेके कारण इसका नाम और कुछ नहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखा गया है।

यह पर्व चार दिनोंका है। भैयादूज के तीसरे दिनसे यह आरंभ होता है। पहले दिन सैंधा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दूकी सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिनसे उपवास आरंभ होता है। इस दिन रात में खीर बनती है। व्रतधारी रात में यह प्रसाद लेते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। इस पूजा में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है; लहसून, प्याज वर्ज्य है। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहां भक्तिगीत गाए जाते हैं। आजकल कुछ नई रीतियां भी आरंभ हो गई हैं, जैसे पंडाल और सूर्यदेवता की मूर्ति की स्थापना करना। उसपर भी रोषनाई पर काफी खर्च होता है और सुबह के अर्घ्यके उपरांत आयोजनकर्ता माईक पर चिल्लाकर प्रसाद मांगते हैं। पटाखे भी जलाए जाते हैं। कहीं-कहीं पर तो ऑर्केस्ट्राका भी आयोजन होता है; परंतु साथ ही साथ दूध, फल, उदबत्ती भी बांटी जाती है। पूजा की तैयारी के लिए लोग मिलकर पूरे रास्ते की सफाई करते हैं।

छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते।

नहाय खाय
पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाइ कर उसे पवित्र बना लिया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है।

लोहंडा और खरना
दूसरे दिन कार्तीक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

संध्या अर्घ्य
तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया साँचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।

शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठव्रती एक नीयत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले का दृश्य बन जाता है।

उषा अर्घ्य
चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। ब्रती वहीं पुनः इक्ट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। अंत में व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं।

छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन भी कहा जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे ही रात बिताई जाती है। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं। पर व्रती ऐसे कपड़े पहनते हैं, जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की होती है। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं। ‘शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालोंसाल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए। घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है।’

ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र की कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएं यह व्रत रखती हैं। किंतु पुरुष भी यह व्रत पूरी निष्ठा से रखते हैं।

छठ पर्व मूलतः सूर्य की आराधना का पर्व है, जिसे हिंदू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। हिंदू धर्म के देवताओं में सूर्य ऐसे देवता हैं जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है।

सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अघ्र्य देकर दोनों का नमन किया जाता है।

भारत में सूर्योपासना ऋग वैदिक काल से होती आ रही है। सूर्य और इसकी उपासना की चर्चा विष्णु पुराण, भगवत पुराण, ब्रह्मा वैवर्त पुराण आदि में विस्तार से की गई है। मध्य काल तक छठ सूर्योपासना के व्यवस्थित पर्व के रूप में प्रतिष्ठित हो गया, जो अभी तक चला आ रहा है। तालाब में पूजा करते हैं।

देवता के रूप में
सृष्टि और पालन शक्ति के कारण सूर्य की उपासना सभ्यता के विकास के साथ विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग रूप में प्रारंभ हो गई, लेकिन देवता के रूप में सूर्य की वंदना का उल्लेख पहली बार ऋगवेद में मिलता है। इसके बाद अन्य सभी वेदों के साथ ही उपनिषद आदि वैदिक ग्रंथों में इसकी चर्चा प्रमुखता से हुई है। निरुक्त के रचियता यास्क ने द्युस्थानीय देवताओं में सूर्य को पहले स्थान पर रखा है।

मानवीय रूप की कल्पना
उत्तर वैदिक काल के अंतिम कालखंड में सूर्य के मानवीय रूप की कल्पना होने लगी। इसने कालांतर में सूर्य की मूर्ति पूजा का रूप ले लिया। पौराणिक काल आते-आते सूर्य पूजा का प्रचलन और अधिक हो गया। अनेक स्थानों पर सूर्य देव के मंदिर भी बनाए गए।

आरोग्य देवता के रूप में
पौराणिक काल में सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाने लगा था। सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई गई। ऋषि-मुनियों ने अपने अनुसंधान के क्रम में किसी खास दिन इसका प्रभाव विशेष पाया। संभवत: यही छठ पर्व के उद्भव की बेला रही हो। भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ हो गया था। इस रोग से मुक्ति के लिए विशेष सूर्योपासना की गई, जिसके लिए शाक्य द्वीप से ब्राह्मणों को बुलाया गया था।

छठ पूजा की परंपरा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएँ प्रचलित हैं।

रामायण से
एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशिर्वाद प्राप्त कियाथा।

महाभारत से
एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।

कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रोपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।

पुराणों से
एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।

छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है। भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व के लिए न विशाल पंडालों और भव्य मंदिरों की जरूरत होती है न ऐश्वर्य युक्त मूर्तियों की। बिजली के लट्टुओं की चकाचौंध, पटाखों के धमाके और लाउडस्पीकर के शोर से दूर यह पर्व बाँस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बरतनों, गन्ने के रस, गुड़, चावल और गेहूँ से निर्मित प्रसाद और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की भरपूर मिठास का प्रसार करता है।

शास्त्रों से अलग यह जन सामान्य द्वारा अपने रीति-रिवाजों के रंगों में गढ़ी गई उपासना पद्धति है। इसके केंद्र में वेद, पुराण जैसे धर्मग्रंथ न होकर किसान और ग्रामीण जीवन है। इस व्रत के लिए न विशेष धन की आवश्यकता है न पुरोहित या गुरु के अभ्यर्थअना की। जरूरत पड़ती है तो पास-पड़ोस के साथकी जो अपनी सेवा के लिए सहर्ष और कृतज्ञतापूर्वक प्रस्तुत रहता है। इस उत्सव के लिए जनता स्वयं अपने सामूहिक अभियान संगठित करती है। नगरों की सफाइ, व्रतियों के गुजरने वाले रास्तों का प्रबंधन, तालाव या नदी किनारे अर्घ्य दान की उपयुक्त व्यवस्था के लिए समाज सरकार के सहायता की राह नहीं देखता। इस उत्सव में खरना के उत्सव से लेकर अर्ध्यदान तक समाज की अनिवार्य उपस्थिति बनी रहती है। यह सामान्य और गरीब जनता के अपने दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर सेवा भाव और भक्ति भाव से किए गए सामूहिक कर्म का विराट और भव्य प्रदर्शन है।

छठ पूजा को देश के कई हिस्सों में झारखण्ड, बिहार और उत्तर प्रदेश से आए लोगों की पहचान के रूप में देखा जाता रहा है। यही कारण है कि महाराष्ट्र में शिव सेना और उससे टूटकर अलग हुए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता कई बार इसका विरोध कर चुके हैं और इस पर्व को एक प्रकार के शक्ति प्रदर्शन का नाम दे चुके हैं

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DEVIL in R Society
Yesterday · ·
युगपुरुष का अवतरण…..
“पृथ्वी लोक में सब कुछ सही चल रहा था। चारों तरफ लोग शांति और सद्भाव के साथ रहते थे। लेकिन मजा नहीं आ रहा था। कुछ एंटरटेनमेंट का साधन ही नहीं था।
तभी 1968 ईसा बाद पूतानी के घर एक असाधारण बच्चे ने जन्म लिया। बच्चे ने जन्म लेते ही चमत्कार दिखाने शुरू कर दिये।
माँ की कोख से जन्म लेते ही उस बच्चे ने बोलना शुरू कर दिया और सबसे पहला शब्द उसके मुँह से निकला- “रायता।”
बच्चे की माता बहुत प्रसन्न हुई और उस नवजात बच्चे को दूध की जगह रायते का सेवन कराया गया। बच्चे के पिता पूतानी नौकरी के कारण घर से दूर थे, लेकिन अपने बच्चे की ख्याति उन तक जा पहुँची। रिश्तेदारों ने चिट्ठी लिखकर बताया कि “पूतानी, तेरे लड़के ने पैदा होते ही रायते की डिमांड की है।”
बच्चे के पिता समझ चुके थे कि ये कोई साधारण बालक नहीं है। वो जल्दी-जल्दी घर पहुँचे और सबसे पहले लड़का होने की ख़ुशी में लोगों में लड्डू की जगह रायता बँटवाया।
पूतानी अब अपने बच्चे से मिलने को बेताब थे। वो तुरंत हॉस्पिटल पहुँचे। कमरा नंबर 786 में बच्चा स्टील के ग्लास के साथ अठखेलियाँ कर रहा था।
पूतानी ने जैसे ही कमरे का दरवाजा खोला, बच्चे की नजर पूतानी पर पड़ी।
पूतानी माथे पर टीका लगाये हुए थे। टीका देखकर बच्चा आग बबूला हो गया। बच्चा समझ चुका था कि उसके खिलाफ सांप्रदायिक साजिश हो रही है।
वो अद्भुत बालक पूतानी को देखकर बोला “कौन है ये भ्रष्टाचारी?”
पूतानी पसीने से तर-बतर हो गये और तुरंत कमरे से बाहर आ गये। जैसे-तैसे हिम्मत करके वो फिर से कमरे के अंदर दाखिल हुए तो वो बच्चा पहले से भी ज्यादा उग्र आवाज़ में बोला, “साले मोदी के दलाल, अम्बानी-अडानी के एजेंट, कौन है तू?”
पूतानी फिर कमरे बाहर आ गये और सोचने लगे कि ये तो वाकई अद्भुत बालक है। इस बार पूतानी ने सोचा कि नर्स को साथ लेकर अंदर जायें। पूतानी जी नर्स के साथ अंदर गये।
बालक पहले से ज्यादा क्रोधित हो चुका था। माथे पर सिलवटें पड़ गयी थीं। क्रोधित बालक ने नर्स के हाथ से दवाइयों का परचा छीन लिया और एटीट्यूड के साथ वो परचा हवा में लहराकर बोला “ये रहा तेरे खिलाफ 370 पेज का सबूत। साले भ्रष्टाचारी, दलाल, मोदी के एजेंट….. तेरा स्विस बैंक अकाउंट नंबर 123456789, ये ही है ना।”
इस ‘खुलासे’ से सभी हक्का-बक्का रह गये।
बहुत जल्द ही इस विलक्षण बच्चे की ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी। पृथ्वीवासी जान गये कि धरती पर युगपुरुष का अवतार हो गया है और सभी बहुत हर्षित हुए।
बाल्यकाल से लेकर बड़े होने तक इसने अनेक ‘महान’ कार्य किये।
अब आप लोग बताइये कि ये ही अद्भुत बालक बड़ा होकर किसके नाम से प्रसिद्ध हुआ?
जल्दी बताने वाले को ‘वरिष्ठ सेकुलरिज्म विशेषज्ञ’ के पद से नवाजा जायेगा!!”

DEVIL in R Society
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 युगपुरुष का अवतरण.....
"पृथ्वी लोक में सब कुछ सही चल रहा था। चारों तरफ लोग शांति और सद्भाव के साथ रहते थे। लेकिन मजा नहीं आ रहा था। कुछ एंटरटेनमेंट का साधन ही नहीं था।
तभी 1968 ईसा बाद पूतानी के घर एक असाधारण बच्चे ने जन्म लिया। बच्चे ने जन्म लेते ही चमत्कार दिखाने शुरू कर दिये। 
माँ की कोख से जन्म लेते ही उस बच्चे ने बोलना शुरू कर दिया और सबसे पहला शब्द उसके मुँह से निकला- "रायता।" 
बच्चे की माता बहुत प्रसन्न हुई और उस नवजात बच्चे को दूध की जगह रायते का सेवन कराया गया। बच्चे के पिता पूतानी नौकरी के कारण घर से दूर थे, लेकिन अपने बच्चे की ख्याति उन तक जा पहुँची। रिश्तेदारों ने चिट्ठी लिखकर बताया कि "पूतानी, तेरे लड़के ने पैदा होते ही रायते की डिमांड की है।" 
बच्चे के पिता समझ चुके थे कि ये कोई साधारण बालक नहीं है। वो जल्दी-जल्दी घर पहुँचे और सबसे पहले लड़का होने की ख़ुशी में लोगों में लड्डू की जगह रायता बँटवाया।
पूतानी अब अपने बच्चे से मिलने को बेताब थे। वो तुरंत हॉस्पिटल पहुँचे। कमरा नंबर 786 में बच्चा स्टील के ग्लास के साथ अठखेलियाँ कर रहा था। 
पूतानी ने जैसे ही कमरे का दरवाजा खोला, बच्चे की नजर पूतानी पर पड़ी। 
पूतानी माथे पर टीका लगाये हुए थे। टीका देखकर बच्चा आग बबूला हो गया। बच्चा समझ चुका था कि उसके खिलाफ सांप्रदायिक साजिश हो रही है। 
वो अद्भुत बालक पूतानी को देखकर बोला "कौन है ये भ्रष्टाचारी?" 
पूतानी पसीने से तर-बतर हो गये और तुरंत कमरे से बाहर आ गये। जैसे-तैसे हिम्मत करके वो फिर से कमरे के अंदर दाखिल हुए तो वो बच्चा पहले से भी ज्यादा उग्र आवाज़ में बोला, "साले मोदी के दलाल, अम्बानी-अडानी के एजेंट, कौन है तू?" 
पूतानी फिर कमरे बाहर आ गये और सोचने लगे कि ये तो वाकई अद्भुत बालक है। इस बार पूतानी ने सोचा कि नर्स को साथ लेकर अंदर जायें। पूतानी जी नर्स के साथ अंदर गये।
बालक पहले से ज्यादा क्रोधित हो चुका था। माथे पर सिलवटें पड़ गयी थीं। क्रोधित बालक ने नर्स के हाथ से दवाइयों का परचा छीन लिया और एटीट्यूड के साथ वो परचा हवा में लहराकर बोला "ये रहा तेरे खिलाफ 370 पेज का सबूत। साले भ्रष्टाचारी, दलाल, मोदी के एजेंट..... तेरा स्विस बैंक अकाउंट नंबर 123456789, ये ही है ना।" 
इस 'खुलासे' से सभी हक्का-बक्का रह गये। 
बहुत जल्द ही इस विलक्षण बच्चे की ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी। पृथ्वीवासी जान गये कि धरती पर युगपुरुष का अवतार हो गया है और सभी बहुत हर्षित हुए। 
बाल्यकाल से लेकर बड़े होने तक इसने अनेक 'महान' कार्य किये।
अब आप लोग बताइये कि ये ही अद्भुत बालक बड़ा होकर किसके नाम से प्रसिद्ध हुआ? 
जल्दी बताने वाले को 'वरिष्ठ सेकुलरिज्म विशेषज्ञ' के पद से नवाजा जायेगा!!"
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Bollywood


Does anyone remember side of Aamir Khan????

He had live-in relationship with this journalist Jessica Hunts when he was making Ghulam, when she got pregnant he asked her to abort the child or else their relationship would be over, and that is how it ended…Jessica refused abortion and returned to Britain where she gave birth to a male child. So, today with what mouth does he stand in front of ppl, to advocate any cause????
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Although Bollywood’s Mr Perfectionist avoids controversies yet when a magazine revealed his alleged illicit relationship with a British journalist Jessica Hines, this became the talk of the town. Aamir and Jessica were also said to be the parents of a two-year-old child! The magazine also published a couple of photographs of Aamir and his alleged son. According to the article, Aamir met Hines on the sets of ‘Ghulam’. They eventually landed into a live-in relationship. Hines got pregnant and everything changed overnight. The happiest moment turned into a nightmare when Aamir told Hines to abort the child or forego their relationship. Hines refused to oblige and give birth to “Jaan”. Presently, she is bringing up their son all by herself in London.

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Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

राजस्थान में ऐसे कई मंदिर हैं जो अपनी भव्यता के लिए जाने जाते हैं। अरावली पर्वत की घाटियों के मध्य स्थित रणकपूर का जैन मंदिर


600 साल पुराना मंदिर, हर तरफ दिखते हैं अनोखे खंभे —

राजस्थान में ऐसे कई मंदिर हैं जो अपनी भव्यता के लिए जाने जाते हैं। अरावली पर्वत की घाटियों के मध्य स्थित रणकपूर का जैन मंदिर भी उनमें से एक है। यह मंदिर 40,000 वर्ग फीट से अधिक क्षेत्र में फैला है। इस मंदिर का निर्माण मेवाड़ के महान शासक राणा कुंभा के समय में 15वीं शताब्दी में हुआ था।

मंदिर के सैकड़ों खंभे इसकी प्रमुख विशेषता हैं। 1400 से अधिक खंभों वाले इस मंदिर के किसी भी कोने में खड़े हो जाइये आपको मुख्य पवित्र स्थल स्पष्ट दिखाई देगा। इन खंभों पर सुंदर नक्काशी भी की गई है। हर खंभे पर की गई नक्काशी सभी को एक-दूसरे से अलग करती है। मंदिर परिसर में 650 साल पुराने पेड़ भी मौजूद हैं।

इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए चार द्वार हैं जो चारों दिशाओं में खुलते हैं। इन सभी को बहुत ही कलात्मक तरीके से तराशा गया है। मंदिर में स्थापित तीर्थंकर आदिनाथ की 72 मीटर ऊंची संगमरमर की चार विशाल मूर्तियों की सुंदरता देखते ही बनती है। इनका मुख चतुर्मुख है, इसलिए इस मंदिर को चतुर्मुखी जैन मंदिर भी कहा जाता है।

मुख्‍य मंदिर प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित चौमुख मंदिर है। संगमरमर से बने इस खूबसूरत मंदिर में 29 विशाल कमरे हैं। मंदिर के पास के गलियारे में बने मंडपों में सभी 24 तीर्थंकरों की तस्‍वारें उकेरी गई हैं। सभी मंडपों में शिखर हैं और शिखर के ऊपर घंटी लगी है। हवा चलने पर इन घंटियों की आवाज पूरे मंदिर में गूंजती है। इस मंदिर के बीचो-बीच लगे दो घंटियों का वजन 108 किलो है।

600 साल पुराना मंदिर, हर तरफ दिखते हैं अनोखे खंभे ---

राजस्थान में ऐसे कई मंदिर हैं जो अपनी भव्यता के लिए जाने जाते हैं। अरावली पर्वत की घाटियों के मध्य स्थित रणकपूर का जैन मंदिर भी उनमें से एक है। यह मंदिर 40,000 वर्ग फीट से अधिक क्षेत्र में फैला है। इस मंदिर का निर्माण मेवाड़ के महान शासक राणा कुंभा के समय में 15वीं शताब्दी में हुआ था।

मंदिर के सैकड़ों खंभे इसकी प्रमुख विशेषता हैं। 1400 से अधिक खंभों वाले इस मंदिर के किसी भी कोने में खड़े हो जाइये आपको मुख्य पवित्र स्थल स्पष्ट दिखाई देगा। इन खंभों पर सुंदर नक्काशी भी की गई है। हर खंभे पर की गई नक्काशी सभी को एक-दूसरे से अलग करती है। मंदिर परिसर में 650 साल पुराने पेड़ भी मौजूद हैं।

इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए चार द्वार हैं जो चारों दिशाओं में खुलते हैं। इन सभी को बहुत ही कलात्मक तरीके से तराशा गया है। मंदिर में स्थापित तीर्थंकर आदिनाथ की 72 मीटर ऊंची संगमरमर की चार विशाल मूर्तियों की सुंदरता देखते ही बनती है। इनका मुख चतुर्मुख है, इसलिए इस मंदिर को चतुर्मुखी जैन मंदिर भी कहा जाता है। 

मुख्‍य मंदिर प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित चौमुख मंदिर है। संगमरमर से बने इस खूबसूरत मंदिर में 29 विशाल कमरे हैं। मंदिर के पास के गलियारे में बने मंडपों में सभी 24 तीर्थंकरों की तस्‍वारें उकेरी गई हैं। सभी मंडपों में शिखर हैं और शिखर के ऊपर घंटी लगी है। हवा चलने पर इन घंटियों की आवाज पूरे मंदिर में गूंजती है। इस मंदिर के बीचो-बीच लगे दो घंटियों का वजन 108 किलो है।
Posted in काश्मीर - Kashmir

We the People (B Dutt) programme of NDTV : Congress only remembers only one Rani and only one Gandhi..we all know who she is? Only RSS passed resolution to celebrate 100th birth centenary of rani Rani Gaidinliu – Rani Gaidinliu , RSS erected Viviekananda Rock Memorial; Oral history kept alive Subhas Chandra Bose, Bhagat Singh —Marxist -Nehruvian historiography buried them long ago

DD News:
जम्मू कश्मीर के विलय में संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरूजी (गोलवलकर) ने अहम भूमिका निभायी थी। वे सरदार आग्रह पर महाराजा हरि सिंह से मिलने गए उन्हें विलय के लिए तैयार किया। काश्मीर के प्रति नेहरू के दृष्टिकोण ने संकट पैदा करने में आग में घी किया था। यहाँ तक कि उन्होंने सरदार पटेल के गृह मंत्रालय से जम्मू कश्मीर को अलग रखा। सरकारी इतिहास ने प्रजा परिषद की भूमिका को भी नजरअंदाज किया है।