Posted in नहेरु परिवार - Nehru Family

इस नालायक सरकार ने इंदिरा गाँधी को एक बहुत ही जिम्मेदार ,


इस नालायक सरकार ने इंदिरा गाँधी को एक बहुत
ही जिम्मेदार ,
ताकतवर और राष्ट्रभक्त महिला बताया हैं , चलिए
इसकी कुछ
कडवी हकीकत से मैं भी आज आपको रूबरू करवाता हूँ !!!
इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू राजवंश में
अनैतिकता को नयी ऊँचाई पर
पहुचाया. बौद्धिक इंदिरा को ऑक्सफोर्ड
विश्वविद्यालय में
भर्ती कराया गया था लेकिन वहाँ से
जल्दी ही पढाई में खराब प्रदर्शन
के कारण बाहर निकाल दी गयी. उसके बाद
उनको शांतिनिकेतन
विश्वविद्यालय में भर्ती कराया गया था, लेकिन गुरु
देव रवीन्द्रनाथ
टैगोर ने उन्हें उसके दुराचरण के लिए बाहर कर दिया.
शान्तिनिकेतन से
बहार निकाल जाने के बाद इंदिरा अकेली हो गयी.
राजनीतिज्ञ के रूप में
पिता राजनीति के साथ व्यस्त था और मां तपेदिक के
स्विट्जरलैंड में
मर रही थी. उनके इस अकेलेपन का फायदा फ़िरोज़
खान नाम के
व्यापारी ने उठाया. फ़िरोज़ खान मोतीलाल नेहरु
के घर पे
मेहेंगी विदेशी शराब की आपूर्ति किया करता था.
फ़िरोज़ खान और
इंदिरा के बीच प्रेम सम्बन्ध स्थापित हो गए.
महाराष्ट्र के तत्कालीन
राज्यपाल डा. श्री प्रकाश नेहरू ने चेतावनी दी,
कि फिरोज खान के
साथ अवैध संबंध बना रहा था. फिरोज खान इंग्लैंड में
तो था और
इंदिरा के प्रति उसकी बहुत सहानुभूति थी. जल्द
ही वह अपने धर्म
का त्याग कर,एक मुस्लिम महिला बनीं और लंदन के एक
मस्जिद में
फिरोज खान से उसकी शादी हो गयी.
इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू ने
नया नाम मैमुना बेगम रख लिया. उनकी मां कमला नेहरू
इस शादी से
काफी नाराज़ थी जिसके कारण उनकी तबियत और
ज्यादा बिगड़ गयी.
नेहरू भी इस धर्म रूपांतरण से खुश नहीं थे क्युकी इससे
इंदिरा के
प्रधानमंत्री बनने की सम्भावना खतरे में आ गयी. तो,
नेहरू ने
युवा फिरोज खान से कहा कि अपना उपनाम खान से
गांधी कर लो.
परन्तु इसका इस्लाम से हिंदू धर्म में परिवर्तन के साथ
कोई लेना –
देना नहीं था. यह सिर्फ एक शपथ पत्र द्वारा नाम
परिवर्तन का एक
मामला था. और फिरोज खान फिरोज गांधी बन
गया है, हालांकि यह
बिस्मिल्लाह शर्मा की तरह एक असंगत नाम है.
दोनों ने ही भारत
की जनता को मूर्ख बनाने के लिए नाम बदला था. जब
वे भारत लौटे,
एक नकली वैदिक विवाह जनता के उपभोग के लिए
स्थापित
किया गया था. इस प्रकार, इंदिरा और उसके वंश
को काल्पनिक नाम
गांधी मिला. नेहरू और गांधी दोनों फैंसी नाम हैं.
जैसे एक गिरगिट
अपना रंग बदलती है, वैसे ही इन लोगो ने
अपनी असली पहचान छुपाने के
लिए नाम बदले. . के.एन. राव की पुस्तक “नेहरू
राजवंश” (10:8186092005 ISBN) में यह स्पष्ट रूप से
लिखा गया है संजय गांधी फ़िरोज़ गांधी का पुत्र
नहीं था,
जिसकी पुष्टि के लिए उस पुस्तक में अनेक
तथ्यों को सामने
रखा गया है. उसमे यह साफ़ तौर पे लिखा हुआ है
की संजय गाँधी एक
और मुस्लिम मोहम्मद यूनुस नामक सज्जन का बेटा था.
दिलचस्प बात
यह है की एक सिख लड़की मेनका का विवाह भी संजय
गाँधी के साथ
मोहम्मद यूनुस के घर में ही हुआ था. मोहम्मद यूनुस ही वह
व्यक्ति था जो संजय गाँधी की विमान दुर्घटना के
बाद सबसे
ज्यादा रोया था. ‘यूनुस की पुस्तक “व्यक्ति जुनून और
राजनीति” (persons passions and politics )
(ISBN-10:
0706910176) में साफ़ लिखा हुआ है की संजय गाँधी के
जन्म के बाद
उनका खतना पूरे मुस्लिम रीति रिवाज़ के साथ
किया गया था. कैथरीन
फ्रैंक की पुस्तक “the life of Indira Nehru Gandhi
(ISBN:
9780007259304) में इंदिरा गांधी के अन्य प्रेम संबंधों के
कुछ पर
प्रकाश डाला है. यह लिखा है
कि इंदिरा का पहला प्यार शान्तिनिकेतन
में जर्मन शिक्षक के साथ था. बाद में वह एमओ मथाई,
(पिता के
सचिव) धीरेंद्र ब्रह्मचारी (उनके योग शिक्षक) के साथ
और दिनेश सिंह
(विदेश मंत्री) के साथ भी अपने प्रेम संबंधो के लिए
प्रसिद्द हुई. पूर्व
विदेश मंत्री नटवर सिंह ने इंदिरा गांधी के मुगलों के
लिए संबंध के बारे में
एक दिलचस्प रहस्योद्घाटन किया अपनी पुस्तक
“profiles and
letters ” (ISBN: 8129102358) में किया. यह
कहा गया है
कि 1968 में इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री के
रूप में
अफगानिस्तान की सरकारी यात्रा पर गयी थी .
नटवरसिंह एक
आईएफएस अधिकारी के रूप में इस दौरे पे गए थे. दिन भर
के
कार्यक्रमों के होने के बाद इंदिरा गांधी को शाम में
सैर के लिए बाहर
जाना था . कार में एक लंबी दूरी जाने के बाद,
इंदिरा गांधी बाबर
की कब्रगाह के दर्शन करना चाहती थी, हालांकि यह
इस
यात्रा कार्यक्रम में शामिल नहीं किया गया.
अफगान
सुरक्षा अधिकारियों ने उनकी इस इच्छा पर
आपत्ति जताई पर
इंदिरा अपनी जिद पर अड़ी रही . अंत में वह उस
कब्रगाह पर गयी . यह
एक सुनसान जगह थी. वह बाबर की कब्र पर सर झुका कर
आँखें बंद
करके कड़ी रही और नटवर सिंह उसके पीछे खड़े थे . जब
इंदिरा ने
उसकी प्रार्थना समाप्तकर ली तब वह मुड़कर नटवर से
बोली “आज
मैंने अपने इतिहास को ताज़ा कर लिया (Today we
have had our
brush with history “. यहाँ आपको यह बता दे
की बाबर मुग़ल
साम्राज्य का संस्थापक था, और नेहरु खानदान
इसी मुग़ल साम्राज्य
से उत्पन्न हुआ. इतने सालो से भारतीय
जनता इसी धोखे में है की नेहरु
एक कश्मीरी पंडित था….जो की सरासर गलत तथ्य
है….. इस तरह इन
नीचो ने भारत में अपनी जड़े जमाई जो आज एक बहुत बड़े
वृक्ष में
तब्दील हो गया हैं ,
जिसकी महत्वाकांक्षी शाखाओ ने
माँ भारती को आज बहुत जख्मी कर दिया हैं ,,यह
मेरा एक प्रयास हैं
आज ,,कि आज इस सोशल मीडिया के माध्यम से
ही सही मगर हकीकत
से रूबरू करवा सकू !!! ,,,बाकी देश के
प्रति यदि आपकी भी कुछ
जिम्मेदारी बनती हो , तो अब आप लोग ” निःशब्द ”
ना बनियेगा ,, इसे
फैला दीजिए हर घर में !!!!
वन्देमातरम..
रॉबर्ट और प्रियंका की शादी सन 1997 में हुई
थी .लेकिन अगर कोई रॉबर्टको ध्यान से देखे तो यह
बात सोचेगा कि सोनिया ने रॉबर्ट जैसे कुरूप और
साधारण व्यक्ति से प्रियंका की शादी कैसे
करवा दी?
क्या उसे प्रियंका के लिएकोई उपयुक्त वर नहीं मिला ,
और यह शादी जल्दी में और चुप चाप
क्यों की गयी . ???
वास्तव में सोनिया ने रॉबर्ट से
प्रियंका की शादी अपनी पोल खुलने के डर से
की थी .
क्योंकि जिस समय सोनिया इंगलैंड में एक कैंटीन में
बारगर्ल थी . उसी समय उसी जगह रोबट
की माँ मौरीन (Maureen)
भी यही कामकरती थी .??
मौरीन को सोनिया और माधव राव की रास
लीला की बात पता थी ,
जबवह उसी कैंटीन सोनिया उनको शराब
पिलाया करती थी .
मौरीन यह भी जानती थी कि किन किनलोगों के
साथ सोनिया के अवैध सम्बन्ध थे .
जब सोनिया राजिव से शादी करके दिल्ली आ गयी ,
तो कुछ समय बाद मौरीन भी दिल्ली में बस गयी .
मौरीन जानती थी कि सोनिया सत्ता के लिए कुछ
भी कर सकती है ,
क्योंकि जो भी व्यक्ति उसके खतरा बन
सकता था सोनिया ने उसका पत्ता साफ कर दिया ,
जैसे संजय , माधव राव , पायलेट ,जितेन्द्र प्रसाद ,
योगी , यहाँ तक लोग तो यह भी शक है कि राजीव
की हत्या में सोनिया का भी हाथ है ,
वर्ना वह अपने पति केहत्यारों को माफ़ क्यों कर देती ?
चूँकि मौरीन का पति और रॉबर्ट का पिता राजेंदर
वडरा पुराना जनसंघी था ,
और सोनिया को डर था कि अगर अपने पति के दवाब ने
मौरीन अपना मुंहखोल देगी तो मुझे भारत पर हुकूमत करने
और अपने नालायक कु पुत्र राहुल को प्रधानमंत्री बनाने
में सफलता नहीं मिलेगी .
इसीलिए सोनिया ने मौरीन के लडके रॉबर्ट
की शादी प्रियंका से करवा दी .
…………शादी के बाद-की कहानी -……….
राजेंद्र वडरा के दो पुत्र , रिचार्ड और रॉबर्ट और एक
पुत्री मिशेल थे .
और प्रियंका की शादी के बाद सभी एक एक कर मर गए
या मार दिएगए .
जैसे , मिशेल ( Michelle )सन 2001 में कार
दुर्घटना मेंमारी गयी ,
रिचार्ड ( Richard )ने सन 2003 में आत्मह्त्या कर ली .
और प्रियंका के ससुर सन 2009 में एक मोटेल में मरे हुए पाए
गए थे .
लेकिन इनकी मौत के कारणों की कोई जाँच नहीं कराई
गयी ,
और इसके बाद सोनिया ने रॉबर्ट को राष्ट्रपति और
प्रधान मंत्री केबराबर का दर्जा इनाम के तौर पर दे
दिया .
तब इस अधिकार को परजिस रॉबर्ट को कोई
पडौसी भी नहीं जानता था ,
उसने मात्र आठ महीनों में
करोड़ों की संपत्ति बना ली ,और कई
कंपनियों का मालिक बन गया , साथ ही सैकड़ों एकड़
कीमती जमीने भी हथिया ली”दोस्तों अगर
आपको हमारे द्वारा दी गयी जानकारी अच्छी लगे
तो प्लीज शेयर करना न भूले ..
वन्दे मातरम

अशोक राणा's photo.
अशोक राणा's photo.
अशोक राणा's photo.
Posted in PM Narendra Modi

‘Make in India’


‘Make in India’ will spur positivity & inspire confidence among manufacturers. My thanks to all those who joined the programme today. Talked about the need to give more impetus to manufacturing & creating a development & growth oriented environment that draws industry.

Mantra of our Government is to win the trust of each & every Indian. An atmosphere of trust can change a lot of things! I invite you to visit the ‘Make in India’ website- http://www.makeinindia.com

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Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

मुहम्मद गजनवी भारत पर 17 बार आक्रमण क्यों और कैसे कर पाया ….?


क्या आप जानते हैं कि….

मुहम्मद गजनवी भारत पर 17 बार आक्रमण क्यों और कैसे कर पाया ….?

और सिर्फ… गजनवी ही क्यों… मीर कासिम, तैमूरलंग, बाबर , औरन्जेब से लेकर अंग्रेजों तक ने भारत पर शासन कैसे कर पाये…?

क्या आपने कभी सोचा है कि…. आखिर, तुर्की अथवा मंगोलिया से आये लुटेरों की संख्या कितनी रही होगी…?

और उन लुटेरों के पास रसद- सामग्री या हथियार कितने रहे होंगे..?

जबकि…. हिंदुस्तान हमारा देश था…. यहाँ लाखों करोड़ों की आबादी थी….. फिर भी वे मुठ्ठी भर लोग आये, हमें जमकर लतियाया.. बहन- बेटियों का बलात्कार किया… धन- संपत्ति को लूटा और आराम से चलते बने….!

मुझे क्षमा करें…. लेकिन, ऐसी अजीबोगरीब घटनाएं सिर्फ हमारे हिंदुस्तान में ही हो सकती हैं….!

क्योंकि…. हमारे हिंदुस्तान के लोग “”जरुरत से कुछ ज्यादा ही होशियार””हैं….. और अंग-अंग में स्वार्थ भरा पड़ा है…!

सिर्फ वहीँ तक बात रुकी रह जाती तो…. चलो फिर भी ठीक थी और संतोषप्रद थी….! परन्तु… आज भी स्थिति में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आ गया है……!

आज भी …… कोई राजपूत है, कोई ब्राह्मण है, तो कोई वैश्य है…… किसी को मराठी होने पर गर्व है ….

तो किसी को गुजराती, मराठी या बंगाली होने पर…..! मुझे कभी कभी बेहद आश्चर्य और दुःख होता है कि…. इतने बड़े देश में कोई … भारतीय नहीं है.. कोई हिन्दू नहीं है…!

और यही कारण है कि….. आज राजनेता से लेकर हर कोई इस देश के बहुसंख्यक को गरियाना और लतियाना अपनी शान समझता है…!

स्थिति तो यह है कि….. यहाँ के अल्पसंख्यक समुदाय सर पर चढ़ कर पेशाब कर रहा है…. और, बहुसंख्यक उसे “बरसात समझ कर” ख़ुशी से नाच रहा है…!

लेकिन लगता है कि….
बहुसंख्यकों को लात खाने और हर किसी से बेइज्जत होते हुए भी आत्मविभोर रहने की आदत
सी पड़ गयी है…!

लेकिन …. एक बात हमेशा याद रखें…….. जो इतिहास से कोई सीख नहीं लेते हैं….
इतिहास फिर से अपने आपको दुहराता है.

जयतु जयतु हिन्दू राष्ट्र,

क्या आप जानते हैं कि....

मुहम्मद गजनवी भारत पर 17 बार आक्रमण क्यों और कैसे कर पाया ....?

और सिर्फ... गजनवी ही क्यों... मीर कासिम, तैमूरलंग, बाबर , औरन्जेब से लेकर अंग्रेजों तक ने भारत पर शासन कैसे कर पाये...?

क्या आपने कभी सोचा है कि.... आखिर, तुर्की अथवा मंगोलिया से आये लुटेरों की संख्या कितनी रही होगी...?

और उन लुटेरों के पास रसद- सामग्री या हथियार कितने रहे होंगे..?

जबकि.... हिंदुस्तान हमारा देश था.... यहाँ लाखों करोड़ों की आबादी थी..... फिर भी वे मुठ्ठी भर लोग आये, हमें जमकर लतियाया.. बहन- बेटियों का बलात्कार किया... धन- संपत्ति को लूटा और आराम से चलते बने....!

मुझे क्षमा करें.... लेकिन, ऐसी अजीबोगरीब घटनाएं सिर्फ हमारे हिंदुस्तान में ही हो सकती हैं....!

क्योंकि.... हमारे हिंदुस्तान के लोग ""जरुरत से कुछ ज्यादा ही होशियार""हैं..... और अंग-अंग में स्वार्थ भरा पड़ा है...!

सिर्फ वहीँ तक बात रुकी रह जाती तो.... चलो फिर भी ठीक थी और संतोषप्रद थी....! परन्तु... आज भी स्थिति में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आ गया है......!

आज भी ...... कोई राजपूत है, कोई ब्राह्मण है, तो कोई वैश्य है...... किसी को मराठी होने पर गर्व है ....

तो किसी को गुजराती, मराठी या बंगाली होने पर.....! मुझे कभी कभी बेहद आश्चर्य और दुःख होता है कि.... इतने बड़े देश में कोई ... भारतीय नहीं है.. कोई हिन्दू नहीं है...!

और यही कारण है कि..... आज राजनेता से लेकर हर कोई इस देश के बहुसंख्यक को गरियाना और लतियाना अपनी शान समझता है...!

स्थिति तो यह है कि..... यहाँ के अल्पसंख्यक समुदाय सर पर चढ़ कर पेशाब कर रहा है.... और, बहुसंख्यक उसे "बरसात समझ कर" ख़ुशी से नाच रहा है...!

लेकिन लगता है कि....
बहुसंख्यकों को लात खाने और हर किसी से बेइज्जत होते हुए भी आत्मविभोर रहने की आदत
सी पड़ गयी है...!

लेकिन .... एक बात हमेशा याद रखें........ जो इतिहास से कोई सीख नहीं लेते हैं....
इतिहास फिर से अपने आपको दुहराता है.

जयतु जयतु हिन्दू राष्ट्र,
Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

इतिहास का एक प्रसंग है, छत्रपति शिवाजी


स्वदेशी हित चिंता के लिए शिवाजी सी सतर्कता

तारीख: 20 Sep 2014 17:06:07

 

 

.

अयोध्या प्रसाद गुप्त ‘कुमुद’

सामने खंजर है तने हैं तब बचें कैसे?
हम स्वयं के बुद्धि कौशल, चौकसी से
इतिहास का एक प्रसंग है, छत्रपति शिवाजी और मुगलसरदार अफजल खां का। उसने शिवाजी को संधि का प्रस्ताव भेजा, लेकिन उसने बिल्कुल नि:शस्त्र, बिना सहयोगी या सेना के एकांत में वार्ता करने की शर्त रखी। शिवाजी सतर्क थे तो बघनखा धारण करके चले गए। जैसे ही अफजल खां ने आलिंगन भेंट करके कटार खींचकर शिवाजी पर आक्रमण किया, शिवाजी ने उसे बघनखे से चीर डाला। उसकी जीवनलीला समाप्त हो गई। इससे शिक्षा मिलती है कि शत्रु से हर स्तर पर सावधानी तथा शत्रुता अपेक्षित है। आज भारतीय और स्वदेशी के जो आस्तीनी सांप हैं, उनसे सतर्क रहना भी आवश्यक है।
कुछ और ऐतिहासिक घटनाक्रम का विहंगावलोकन करें। इंग्लैंड में 1599 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई। उसका प्रमुख उद्देश्य व्यापार की आड़ में साम्राज्यवादी विस्तारवाद था। उन दिनों सूरत भारत में प्रमुख निर्यात केंद्र था। यहां से मसाले, कपास, नील, वानस्पतिक रंग पूरे संसार में जाते थे। इसलिए उस कंपनी ने मुगल बादशाह जहांगीर के दरबार में सर टामस रो नामक अंग्रेज को भेजकर वहां व्यापार की अनुमति मांगी। विदित हो कि उन दिनों भारत को इसी समृद्धि के कारण ‘ सोने की चिडि़या’कहा जाता था।
यहां पर उस कालखंड में विश्व-व्यापार की पूर्व-पीठिका समझना आवश्यक है। उन दिनों व्यापार समुद्री मार्ग से होते थे तथा जल दस्युओं के भय से नौसेना भी उनके साथ रहती थी। समुद्र में नौसेना के वर्चस्व तथा प्रभुत्व का संघर्ष था। कई देशों ने अपने-अपने प्रतिनिधियों को भेजकर समुद्री मार्ग खोजे, उनमें कोलंबस तथा वास्कोडीगामा प्रमुख थे। परवर्ती ने 1498 में भारत का मार्ग खोजा। इस क्षेत्र में उस समय स्पेन, डच, पुर्तगाल, इंग्लैंड की जबरदस्त प्रतिस्पर्द्धा में इंग्लैंड ने स्पेन को हराकर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। उन्होंने यह भी पता किया कि भारत के ऋषियों, मुनियों तथा प्राच्य वैज्ञानिकों ने वानस्पतिक अनुसंधान करके उनके औषधीय उपयोग एवं आरोग्यता के लिए नित्य भोजन में मसालों के उपयोग भारतीय जीवन शैली में परंपरा के रूप में पोषित किया था। इससे सभी देशों की निगाह भारत के मसालों पर थी। उनका प्रवेश मार्ग सूरत अंग्रेजों के व्यापार पर कब्जा करने का केंद्र बन गया। बताते हैं कि एक अंग्रेज डॉक्टर से जहांगीर ने इलाज कराया था। बादशाह को राहत मिली। उसने जहांगीर को विश्वास में लेकर अन्य क्षेत्रों में व्यापार का विस्तार कर लिया।
ईस्ट इंडिया कंपनी का एक प्राइवेट प्रतिष्ठान था, उसका निदेशक मंडल था। वह कर के रूप में इंग्लैंड को राजस्व भेजती थी। कंपनी ने अपनी व्यापारिक सुरक्षा के लिए सेना रखने की अनुमति मांगी। देश में उस समय सैकड़ों देसी रियासतें थीं। वहां होकर देश के अन्य भागों में जाने के लिए कंपनी ने संधियां कीं। उन राज्यों को समझाया कि वे अपनी सेना से उन राज्यों की रक्षा करेंगे। कुछ राज्यों ने संधि से इंकार तथा उनसे युद्ध लड़े। सबसे पहले 1757 में प्लासी के मैदान में नवाब सिराजुद्दौला को परास्त करके बंगाल का राज्य कब्जा किया। 1764 में बक्सर के मैदान में मुगल बादशाह को पराजित कर उत्तर तथा मध्यभारत पर कब्जा किया। 1798 में दक्षिण भारत में टीपू सुल्तान, 1802में बेसिन में मराठे, पंजाब के रंजीत सिंह सबके राज्य अंग्रेजों के कब्जे में आ गए। लार्ड डलहौजी ने संधि में एक और शर्त बढ़ा दी कि उत्तराधिकार का कोई विवाद तय करने अथवा निसंतान को गोद लेने की अनुमति कंपनी देगी, अन्यथा राज्य जब्त कर लिया जाएगा। इस राज्य हड़पो नीति, राजस्व की कठोर एवं अपमानजनक वसूली नीति से राज्यों-रियासतों में विद्रोह खड़ा हुआ। जो 1857 की क्रांति के रूप में सामने आया। इन विद्रोहों की शिकायत ‘ब्रिटेन क्राउन’से की गई। जांच बैठी, गलत तरीकों से सत्ता हथियाने, राजस्व बढ़ाने अत्याचार करने के कारण ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापार लाइसेंस रद्द करके वापस इंग्लैंड बुला लिया गया। सत्ता पर ब्रिटिश क्राउन का वर्चस्व हो गया। उन अत्याचारों के खिलाफ नब्बे वर्ष तक संघर्ष करना पड़ा। तब कहीं 1947 में देश को स्वाधीनता मिली। ‘फूट डालो शासन करो ‘ के सूत्रधार अंग्रेज जाते-जाते इस देश के टुकड़े कर गए। आज फिर अनेक देश भारत में व्यापारिक संधियों के माध्यम से प्रवेश का मार्ग ढूंढ रहे हैं। विश्व व्यापार संगठन की संधियां भी उसी दुश्चक्र की भूमिका है। अपने मुक्तक उद्धृत करना यहां प्रासंगिक है।
अर्थ के आकाश पर कुहरा घना है।
अब उजाले का सहारा अनमना है।
जो तिजारत से सियासत खेलता है,
फिर उसी इतिहास की संभावना है।
यहां कुहासा तो क्षणिक है,
इसे छंटना ही पड़ेगा।
सूर्य चमकेगा प्रखर तब, मार्ग से हटना पड़ेगा।
पक्ष बदल देते स्वयं इतिहास का, भूगोल का उस सतेजस शक्ति सम्मुख,
तमस को कटना पड़ेगा।
इस सिंहावलोकन का संदेश है कि हम विश्व-व्यापार को बढ़ावा दें, लेकिन सतर्कता के साथ ताकि उनका प्रवेश और निवेश इतिहास की पुनरावृत्ति न कर सके। खतरा केवल कृषि-व्यापार के क्षेत्र में ही नहीं है। मैकाले-मार्क्स तथा मदरसों के मकार ने अपने अनुयायियों की फौज खड़ी कर दी है। इनमें से अनेक अवांछनीय तत्व, आस्तीन के सांप बनकर घात लगाए हैं। इन अनुयायियों ने कला, संस्कृति, शिक्षा, परंपरा, जीवन शैली की जड़ों में मट्ठा डालकर भारतवासियों की एक बड़ी संख्या का मस्तिष्क प्रक्षालन किया है। अपनी समृद्ध परंपराओं को हीन बताने का उपक्रम किया। हमारे संघर्षपूर्ण तेवर, दांव रहित नियोजन तथा कार्य संस्कृति से ही स्वदेशी भावना को बल मिलेगा। कविवर जयशंकर प्रसाद के शब्दों में- ‘कर्मयज्ञ से जीवन के सपने का स्वर्ग मिलेगा। इसी विपिन में मानस की आशा का कुसुम खिलेगा।’ ल्ल

Posted in भारत गौरव - Mera Bharat Mahan

Ancient Indian facts are being forgotten


Subhas Mitra's photo.
Subhas Mitra's photo.
Subhas Mitra's photo.
Subhas Mitra added 3 new photos.

Ancient Indian facts are being forgotten

and the younger generation, drunk with modern technological feats, seems to have forgotten all our scientific feats which are, in fact, the basis of most western scientific achievements:

Because ( my feeling) 611 AD to 1947 ( and till to date on certain aspects) we were in an era of Discontinuation ( research work) ,desecration ( of sanctity of teachers and disciples) ,destruction ( of institutions of learning ) , defamation ( ancient wisdom), Demeaning ( the traditions of cultivation of knowledge) and disinformation ( all our achievements).

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

एलिजाबेथ बाथरी


एलिजाबेथ बाथरी ने 1585 से 1610 के दौरान, अपनी जवानी को बरकरार रखने के लिए अपने महल में 650 से ज्यादा लड़कियों की हत्या कर उनके खून से स्नान किया। इतिहास की सबसे खतरनाक और वहशी महिला सीरियल किलर के तौर पर जाना जाता है।

उसकी शादी फेरेंक नैडेस्‍डी नाम के शख्‍स से हुई थी और वह तुर्कों के खिलाफ युद्ध में हंगरी का राष्‍ट्रीय हीरो था। जब तक वह जिंदा था तब भी एलिजाबेथ लड़कियों को अपना शिकार बनाती थी, लेकिन 1604 में पति की मौत के बाद उसके जुर्म की इंतिहा हो गई थी। एलिजाबेथ बाथरी के दिमाग में यह फितूर था की यदि वो कमसिन कुंवारी लड़कियों के खून से स्नान करेगी तो सदैव जवान बानी रहेगी।

आसपास के गाँवों की गरीब लड़कियों को अपने महल में अच्छे पैसो पर काम करने का लालच देकर बुला लेती थी। लेकिन महल में आते ही लड़कियों के बुरे दिन शुरू हो जाते थे। वहां पर उन्हें मौत से पहले बुरी तरह प्रताड़ित किया जाता था। बर्बरता से उनकी पिटाई की जाती थी, उनके हाथों को जला या काट दिया जाता था। कई बार वह लड़कियों के चेहरे या शरीर के दूसरे अंगों का मांस दांतों से काटकर निकाल लेती थी। और अंत में उनकी हत्या कर उनका खून एक टब में इकठ्ठा कर लिया जाता जिसमे एलिजाबेथ बाथरी स्नान करती।

1610 की बात है। फलस्वरूप हंगरी के राजा ने सत्य की जांच करने के लिए अपने लोगों का एक दल भेजा। जांच दल ने जब महल की जांच की तो वो खुद हैरान रह गए। उन्हें महल में लड़कियों की कई विकृत लाशें तथा कई ज़िंदा लडकिया बेड़ियों में जकड़ी हुई मिली।

मतलब ये साबित होता है कि लडकियां सुन्दर दिखने के लिए कुछ भी कर सकती हैं… हम लडको का खून भी …

एलिजाबेथ बाथरी ने 1585 से 1610 के दौरान, अपनी जवानी को बरकरार रखने के लिए अपने महल में 650 से ज्यादा लड़कियों की हत्या कर उनके खून से स्नान किया। इतिहास की सबसे खतरनाक और वहशी महिला सीरियल किलर के तौर पर जाना जाता है।

उसकी शादी फेरेंक नैडेस्‍डी नाम के शख्‍स से हुई थी और वह तुर्कों के खिलाफ युद्ध में हंगरी का राष्‍ट्रीय हीरो था। जब तक वह जिंदा था तब भी एलिजाबेथ लड़कियों को अपना शिकार बनाती थी, लेकिन 1604 में पति की मौत के बाद उसके जुर्म की इंतिहा हो गई थी। एलिजाबेथ बाथरी के दिमाग में यह फितूर था की यदि वो कमसिन कुंवारी लड़कियों के खून से स्नान करेगी तो सदैव जवान बानी रहेगी।

आसपास के गाँवों की गरीब लड़कियों को अपने महल में अच्छे पैसो पर काम करने का लालच देकर बुला लेती थी। लेकिन महल में आते ही लड़कियों के बुरे दिन शुरू हो जाते थे। वहां पर उन्हें मौत से पहले बुरी तरह प्रताड़ित किया जाता था। बर्बरता से उनकी पिटाई की जाती थी, उनके हाथों को जला या काट दिया जाता था। कई बार वह लड़कियों के चेहरे या शरीर के दूसरे अंगों का मांस दांतों से काटकर निकाल लेती थी। और अंत में उनकी हत्या कर उनका खून एक टब में इकठ्ठा कर लिया जाता जिसमे एलिजाबेथ बाथरी स्नान करती।

1610 की बात है। फलस्वरूप हंगरी के राजा ने सत्य की जांच करने के लिए अपने लोगों का एक दल भेजा। जांच दल ने जब महल की जांच की तो वो खुद हैरान रह गए। उन्हें महल में लड़कियों की कई विकृत लाशें तथा कई ज़िंदा लडकिया बेड़ियों में जकड़ी हुई मिली।

मतलब ये साबित होता है कि लडकियां सुन्दर दिखने के लिए कुछ भी कर सकती हैं... हम लडको का खून भी ...
Posted in गंगा माँ

गोवध करने वालों की रद हो नागरिकता


गोवध करने वालों की रद हो नागरिकता

(गोवर्धन जन जागरण रैली में उत्तराखंड के राज्यपाल अजीज कुरैशी का आह्वान)

जागरण संवाददाता, देहरादून : उत्तराखंड के राज्यपाल अजीज कुरैशी ने कहा कि गोवध करने वाले की नागरिकता रद कर देनी चाहिए। रविवार को गोवर्धन जन जागरण रैली में शरीक राज्यपाल ने दो-टूक कहा कि गोवध करने वाला हिंदुस्तानी हो ही नहीं सकता। इस बाबत केंद्र सरकार को कानून भी बनाना चाहिए। उन्होंने भारतीय गो क्रांति मंच की सभी मांगों का समर्थन करते हुए राष्ट्रपति को मांगपत्र भेजने की बात कही। 1परेड ग्राउंड में आयोजित राज्यस्तरीय रैली में बतौर मुख्य अतिथि राज्यपाल ने कहा कि देश के 80 करोड़ से ज्यादा लोग गाय को माता मानते हैं और 50 साल से गोवध रोकने की दिशा में काम कर रहे हैं। इसके लिए उनके स्तर पर मध्य प्रदेश में आंदोलन भी किए गए। साथ ही पिछले साल उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा व दिल्ली में कुरैशी बिरादरी की पंचायत भी की गई, जिसमें गोवध नहीं करने का निर्णय किया गया था। साथ ही तय किया गया कि अगर कोई गोवध करेगा तो बिरादरी उसका बहिष्कार कर देगी। कुरैशी ने कहा कि देश के 80 करोड़ लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए राज्य और केंद्र सरकारों को गोमाता को ‘राजमाता’ का दर्जा दे देना चाहिए।

गोवध करने वालों की रद हो नागरिकता

(गोवर्धन जन जागरण रैली में उत्तराखंड के राज्यपाल अजीज कुरैशी का आह्वान)

जागरण संवाददाता, देहरादून : उत्तराखंड के राज्यपाल अजीज कुरैशी ने कहा कि गोवध करने वाले की नागरिकता रद कर देनी चाहिए। रविवार को गोवर्धन जन जागरण रैली में शरीक राज्यपाल ने दो-टूक कहा कि गोवध करने वाला हिंदुस्तानी हो ही नहीं सकता। इस बाबत केंद्र सरकार को कानून भी बनाना चाहिए। उन्होंने भारतीय गो क्रांति मंच की सभी मांगों का समर्थन करते हुए राष्ट्रपति को मांगपत्र भेजने की बात कही। 1परेड ग्राउंड में आयोजित राज्यस्तरीय रैली में बतौर मुख्य अतिथि राज्यपाल ने कहा कि देश के 80 करोड़ से ज्यादा लोग गाय को माता मानते हैं और 50 साल से गोवध रोकने की दिशा में काम कर रहे हैं। इसके लिए उनके स्तर पर मध्य प्रदेश में आंदोलन भी किए गए। साथ ही पिछले साल उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा व दिल्ली में कुरैशी बिरादरी की पंचायत भी की गई, जिसमें गोवध नहीं करने का निर्णय किया गया था। साथ ही तय किया गया कि अगर कोई गोवध करेगा तो बिरादरी उसका बहिष्कार कर देगी। कुरैशी ने कहा कि देश के 80 करोड़ लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए राज्य और केंद्र सरकारों को गोमाता को ‘राजमाता’ का दर्जा दे देना चाहिए।
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||लालकिला का का असली नाम लालकोट है ||


 

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जैसे ताजमहल का असली नाम तेजोमहालय है और क़ुतुब मीनार का असली नाम विष्णु स्तम्भ है वैसे ही यह बात भी सत्य है|

– अक्सर हमें यह पढाया जाता है कि दिल्ली का लालकिला शाहजहाँ ने बनवाया था|

लेकिन यह एक सफ़ेद झूठ है और इतिहासकारों का कहना है की वास्तव में लालकिला पृथ्वीराज ने बारहवीं शताब्दी में पूरा बनवाया था जिसका नाम “लाल कोट “था जिसे तोमर वंश के शासक ‘अनंग पाल’ ने १०६० में बनवाना शुरू किया था |महाराज अनंगपाल तोमर और कोई नहीं बल्कि महाभारत के अभिमन्यु के वंशज तथा महाराज पृथ्वीराज चौहान के नाना जी थे|

इसका प्रमाण >

तारीखे फिरोजशाही के पृष्ट संख्या 160 (ग्रन्थ ३) में लेखक लिखता है कि सन 1296 के अंत में जब अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना लेकर दिल्ली आया तो वो कुश्क-ए-लाल ( लाल प्रासाद/ महल ) कि ओर बढ़ा और वहां उसने आराम किया.

>अकबरनामा और अग्निपुराण दोनों ही जगह इस बात के वर्णन हैं कि महाराज अनंगपाल ने ही एक भव्य और आलिशान दिल्ली का निर्माण करवाया था.

> शाहजहाँ से 250 वर्ष पहले ही 1398 ईस्वी में तैमूरलंग ने भी पुरानी दिल्ली का उल्लेख किया हुआ है (जो कि शाहजहाँ द्वारा बसाई बताई जाती है).

– लाल किले के एक खास महल मे वराह के मुँह वाले चार नल अभी भी लगे हुए हैं क्या शाहजहाँ सूअर के मुंह वाले नल को लगवाता ? हिन्दू ही वराह को अवतार मान कर पावन मानते है|

– किले के एक द्वार पर बाहर हाथी की मूर्ति अंकित है क्योंकि राजपूत राजा गजो (हाथियों) के प्रति अपने प्रेम के लिए विख्यात थे जबकि इस्लाम जीवित प्राणी के मूर्ति का विरोध करता है|

– लालकिला के दीवाने खास मे केसर कुंड नाम से एक कुंड भी बना हुआ है जिसके फर्श पर हिंदुओं मे पूज्य कमल पुष्प अंकित है| साथ ही ध्यान देने योग्य बात यह है कि केसर कुंड एक हिंदू शब्दावली है जो कि हमारे राजाओ द्वारा केसर जल से भरे स्नान कुंड के लिए प्राचीन काल से ही प्रयुक्त होती रही है|

– गुंबद या मीनार का कोई अस्तित्व तक नही है लालकिला के दीवानेखास और दीवानेआम मे| दीवानेखास के ही निकट राज की न्याय तुला अंकित है \ ब्राह्मणों द्वारा उपदेशित राजपूत राजाओ की न्याय तुला चित्र से प्रेरणा लेकर न्याय करना हमारे इतिहास मे प्रसिद्द है|

– दीवाने ख़ास और दीवाने आम की मंडप शैली पूरी तरह से 984 ईस्वी के अंबर के भीतरी महल (आमेर/पुराना जयपुर) से मिलती है जो कि राजपूताना शैली मे बना हुई है|

आज भी लाल किले से कुछ ही गज की दूरी पर बने हुए देवालय हैं जिनमे से एक लाल जैन मंदिर और दूसरा गौरीशंकर मंदिर है जो कि शाहजहाँ से कई शताब्दी पहले राजपूत राजाओं के बनवाए हुए है|

– लाल किले के मुख्य द्वार के फोटो में बने हुए लाल गोले में देखिये , आपको अधिकतर ऐसी अलमारियां पुरानी शैली के हिन्दू घरो के मुख्य द्वार पर या मंदिरों में मिल जायंगी जिनपर गणेश जी विराजमान होते हैं |

– और फिर शाहजहाँ ने एक भी शिलालेख मे लाल किले का वर्णन तक नही है|

 

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Navaratri (25th Sept 2014 – 4th Oct 2014)


 

Navaratri (25th Sept 2014 – 4th Oct 2014)

Navaratri festivals are held for nine days twice every year during the first half of ‘Asvayuja’ and ‘Chaitra’ months from ‘Pratipad’ to ‘Dasami’. The Navaratra festivals in Asvayuja month are known as Sarat Navaratras and the Chaitra month festivals are populurly known as Vasanta Navaratras. The preparation for Sarat Navaratri in the Autumn season commencing from Asvayuja Pradhama Tithi actually starts from Bhadrapada Amavasya itself with one meal of ‘Homa Anna’ or ‘Sacred Agni Prasada’.

At a designated Place in the center of a Hall, a raised platform made of bricks, called ‘Vedi’ of six feet wide and one and half feet height be arranged. On the Pratipad Tithi of Asvayuja, the Person(s) concerned sponsoring the Navarartras must arrive clean and composed, having already performed their ‘Sandhavandanam’ or daily pujas and should seek the blessings of Brahmanas appointed ( either nine, or five or three or atleast one) after presenting them new clothes and Dakshina. ‘Swasti’ Mantras followed by Veda Parayana would be recited. An Idol of nicely decorated Durga Devi seated on a Lion, with either four or eighteen hands, with symbolic arms and jewellery be installed as also a Pot of Sacred River Water placed over an ‘Yantra’ (diagram) representing Grandhis (Chambers) of Trinity and relevant Demi-Gods and Planetary Heads, while rendering the relevant Mantras. With various Worship Materials in place, the Puja would commence along with the Mantram ‘Om Hrim Srim Chandikaya namah’. Proceedings with Sacrificial Animals, [* not so much in India now, but in vogue in Nepal during Dussera Festival Days] for propitiating of Gods and Almighty Shakti, would follow. ‘Arthies’ ( Camphor cum oil soaked cotton vick lamps shown to Deity ) are performed, accompanied by instrumental music, singing and dance in praise of Maha Devi Bhagavati. ‘Bala Kanya Bhog’ or Prasad
( Food material offered to Deity) to Virgins of the ages of two to ten would follow. The virgins of two years are named Kumaris, three years are Trimurthies, four years are Kalyanis, five years are Rohinis, five years are Kalikas, six years are Chandika, seven years Sambhavi, eight years Durga and Nine years as Subhadra. Blessings of these Virgins provide removal of problems, wealth, longevity, happiness, health and Peace. The procedure for the evenings too is similar in the Sandhya Puja viz. the ‘Arti” Worship to Goddess accompanied by instrumental music, ‘Shodasa Upacharas’or Sixteen kinds of worship ranging from holding an Umbrella to the Diety, hand fanning, showing a mirror, camphor lighting, Veda Recital, Singing and dancing in praise of Amba, ‘Naivedyam’ or offering varieties of food, and ‘Parikrama’ or taking the Deity around the worship place, or a temple or surrounding areas and so on. At the end, Bhajans (Group Singing), Purana Pravachana ( Lectures on the Mysteries of Goddess), ‘Harikathas’( Musical renderings of Stories of Religious nature) and so on are performed. Special worship is arranged on the ‘Saptami’,‘Durga Ashtami’, and ‘ Maha Navami’ days ie. the seventh, eighth and the ninth days of the Festival. Devotees not quite involved in the previous days too would like to invariably perform Worship as per their choices in their own Puja Places in their own residences, or Temples or Specially built up (improvised) Group ‘Mandaps’ for community worship. Saptami is described as the day when Maha Bhagavati takes a ‘Saakar’or Bodily Incarnation to destroy the Demon ‘Mahisha Asura’ who had the form of a Buffalo, creating havoc to the World. The following day, popular as ‘Durga Ashtami’, Maha Bhagavati in the Incarnation as Durga Devi looks fierce and angry with the Demon and prepares for a violent battle with him and fellow Demons and massacres them all. It is also believed that Bhadra Kali was incarnated in a furious and gruesome form to devastate the ‘Yajna’ that was performed by Daksha Prajapati, the father of ‘Maha Sati’, the better half of Lord Siva and the Kali Incarnation was surrounded by innumerable ‘Yoginis’ or the multiple permutations of Sixty Attendants of Bhadra Kali who created mayhem at the Yajna and killed Daksha and his followers.On Maha Navami Day, Maha Bhagavati in the forms of fury and destruction punished the evil forces and brought back Her own Creation to normalcy and established balance of power. Thus the two days of Durga Ashtami and Maha Navami are the days of the Grand Finale of the Navarathras, which are remembered for the relief, climactic joy and devotion experienced by the humans and Gods alike. The day next day falling on Vijaya Dasami is the day of high celebration and gratitude to Maha Bhagavati for Her ‘Leelas’or Playful Actions that remain complex forever in human minds, soaked deep in the grip of Maya or Illusion! Whoever observes Navarathri Pujas with devotion are certain to reap benefits- Dharma ( Virtue), Artha ( Prosperity), Kama ( Worldy fulfillments) and Moksha ( Eternal Bliss) with the blessings of Maha Bhagavati. Even those who committed unpardonable misdeeds earlier- ‘Pancha Patakas’or heinous acts viz. killing Sages and Brahmanas, stealing gold or valuables, drinking and gambling, adultery or association with perpetrators of sins-would be spared if only the Navaratra Worship is performed with faith.

Veda Vyasa described to King Janamejaya the illustration of how Lord Ramachandra had conquered the indomitable Ravana, when the latter had kidnapped Bhagavati Sita by deception in disguise as a Fake Sage and on securing tip offs that She was in Lanka under Ravana’s custody. In fact, the earlier forest life of Lord Rama was a dismal experience consequent on his Step mother Kaikeyi’s demand to send away Lord Rama and Lady Sita to forest life for fourteen years. Sri Rama had to invade Ravana’s Lanka to recover Sita, with the help of King Sugriva of Kishkindha and his Monkey brigade including Heros like Lord Anjaneya, Jambavanta and Angada. It was at that critical time that Maharshi Narada met Lord Rama and advised Him to perform Navaratra Pujas to fulfill the objective of destroying the unbeatable Ravana and his entire followers and for recovering Sita Devi. ( In fact, Ravana was seeking Maya Sita Devi, as real Sita in her earlier birth was an ascetic daughter of a Sage and Ravana was reproached by her when he made advances to her. He caught her hairs and she felt her body became impure and cursed that she would destroy him and his clan in her next birth and ended her life in Yoga Fire. As Sita Devi as the wife of Sri Rama, she gave away her Maya ( Illusion) to Ravana and he actually stole away a poisonous serpent in the form of Maya Sita in the ‘Ashoka Vana’!) Narada told Sri Rama that in the past, Navaratras were observed in sincerity by Indra, many other Demi-Gods as also Brahma, Vishnu and Maheswara and obtained their Blessings from Maha Devi to fulfill their own wishes and prayers. As advised by Narada Maharshi, Lord Rama performed the Navaratras and secured Bhagavati Devi’s blessings. The battle was fought killing Rakshasas and the mighty Indrajit, Kumbhakarna and Ravana by Sri Rama as an instrument of Devi Bhagavati.

(Essence Of Devi Bhagavatha Purana)

 

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Issue of permission granted to Amir Khan for shooting in ‘Kala Ram Mandir’


Issue of permission granted to Amir Khan for shooting in ‘Kala Ram Mandir’ area ‪#‎pkfilmshoot‬ ‪#‎aamirkhan‬ ‪#‎kalaramtemple‬
Nashik : File cases against Trustees for breach of regulations ! – demands Hindu Vidhidnya Parishad

हिन्दी में पढ़ें : http://www.hindujagruti.org/hindi/news/7158.html

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Nashik : File cases against Trustees for breach of regulations ! – demands Hindu Vidhidnya Parishad

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(y) : Hindu Janajagruti Samiti- Hindi