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भाग्य चमकाने के लिए उपासना करें सूर्य नारायण की..


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3 hrs ·

भाग्य चमकाने के लिए उपासना करें सूर्य नारायण की..

विश्व में सूर्य को प्रत्यक्ष देव कहा जाता है अर्थात् हर कोई इनके साक्षात दर्शन कर सकता है। सूर्य भगवान को प्रसन्न करने के लिए तांबे के पात्र में पुष्प रखकर उन्हें जल चढ़ाना चाहिए। रविवार सूर्य का दिन माना जाता है और इस दिन सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है।

सभी ग्रहों में सूर्य नारायण सबसे तेजस्वी और कांतिमय हैं। अतएवं सूर्य आराधना से शरीर भी सुंदर और कांतिमय होता है। ह्रदय रोगियों के लिए भी सूर्य की उपासना करने से आशातीत लाभ होता है। इन्हें आदित्य ह्रदय स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए। इससे सूर्य भगवान प्रसन्न होते हैं और दीर्घायु होने का फल प्रदान करते हैं।

मनोवांछित फल पाने के लिए निम्न मंत्र का उच्चारण करें।

ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।

Sakdweepiy Brahman Sabha Ballia's photo.
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श्राद्ध में क्या करें क्या ना करें |


श्राद्ध में क्या करें क्या ना करें |

श्राद्ध एकान्त मे ,गुप्तरुप से करना चाहिये, पिण्डदान पर दुष्ट मनुष्यो की दृष्टि पडने पर वह पितरो को नही पहुचँता, दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नही करना चाहिये, जंगल, पर्वत, पुण्यतीर्थ और देवमदिर ये दूसरे की भूमि मे नही आते, इन पर किसी का स्वामित्व नही होता, श्राद्ध मे पितरो की तृप्ति ब्राह्मणो के द्वारा ही होती है, श्राद्ध के अवसर पर ब्राह्मण को निमन्त्रित करना आवश्यक है, जो बिना ब्राह्मण के श्राद्ध करता है, उसके घर पितर भोजन नही करते तथा शाप देकर लौट जाते है, ब्राह्मणहीन श्राद्ध करने से मनुष्य महापापी होता है |
(पद्मपुराण, कूर्मपुराण, स्कन्दपुराण )

श्राद्ध के द्वारा प्रसन्न हुये पितृगण मनुष्यो को पुत्र, धन, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष आदि प्रदान करते है, श्राद्ध के योग्य समय हो या न हो, तीर्थ मे पहुचते ही मनुष्य को सर्वदा स्नान, तर्पण और श्राद्ध करना चाहिये, शुक्ल पक्ष की अपेक्षा कृष्ण पक्ष और पूर्वाह्न की अपेक्षा अपराह्ण श्राद्ध के लिये श्रेष्ठ माना जाता है |

(पद्मपुराण, मनुस्मृति)

सायंकाल मे श्राद्ध नही करना चाहिये, सायंकाल का समय राक्षसी बेला नाम से प्रसिद्ध है, चतुर्दशी को श्राद्ध करने से कुप्रजा (निन्दित सन्तान) पैदा होती है, परन्तु जिसके पितर युद्ध मे शस्त्र से मारे गये हो, वे चतुर्दशी को श्राद्ध करने से प्रसन्न होते है, जो चतुर्दशी को श्राद्ध करने वाला स्वयं भी युद्ध का भागी होता है |

(स्कन्दपुराण, कूर्मपुराण, महाभारत)

रात्रि मे श्राद्ध नही करना चाहिये, उसे राक्षसी कहा गया है, दोनो संध्याओं मे तथा पूर्वाह्णकाल मे भी श्राद्ध नही करना चाहिये, दिन के आठवे भाग (महूर्त) मे जब सूर्य का ताप घटने लगता है उस समय का नाम ‘कुतप’ है, उसमे पितरो के लिये दिया हुआ दान अक्षय होता है, कुतप, खड्गपात्र, कम्बल, चादी, कुश, तिल, गौ और दौहित्र ये आठो कुतप नाम से प्रसिद्ध है, श्राद्ध मे तीन वस्तुएँ अत्यन्त पवित्र है, दौहित्र, कुतपकाल, तथा तिल, श्राद्ध मे तीन वस्तुएँ अत्यन्त प्रशंसनीय है, बाहर और भीतर की शुद्धि, क्रोध न करना तथा जल्दबाजी न करना

(मनुस्मृति, मत्स्यपुराण, पद्मपुराण, विष्णुपुराण)

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श्राद्ध में क्या करें क्या ना करें |

श्राद्ध एकान्त मे ,गुप्तरुप से करना चाहिये, पिण्डदान पर दुष्ट मनुष्यो की दृष्टि पडने पर वह पितरो को नही पहुचँता, दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नही करना चाहिये, जंगल, पर्वत, पुण्यतीर्थ और देवमदिर ये दूसरे की भूमि मे नही आते, इन पर किसी का स्वामित्व नही होता, श्राद्ध मे पितरो की तृप्ति ब्राह्मणो के द्वारा ही होती है, श्राद्ध के अवसर पर ब्राह्मण को निमन्त्रित करना आवश्यक है, जो बिना ब्राह्मण के श्राद्ध करता है, उसके घर पितर भोजन नही करते तथा शाप देकर लौट जाते है, ब्राह्मणहीन श्राद्ध करने से मनुष्य महापापी होता है |
                                                            (पद्मपुराण, कूर्मपुराण, स्कन्दपुराण ) 

श्राद्ध के द्वारा प्रसन्न हुये पितृगण मनुष्यो को पुत्र, धन, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष आदि प्रदान करते है, श्राद्ध के योग्य समय हो या न हो, तीर्थ मे पहुचते ही मनुष्य को सर्वदा स्नान, तर्पण और श्राद्ध करना चाहिये, शुक्ल पक्ष की अपेक्षा कृष्ण पक्ष और पूर्वाह्न की अपेक्षा अपराह्ण श्राद्ध के लिये श्रेष्ठ माना जाता है |

                                                                               (पद्मपुराण, मनुस्मृति)

सायंकाल मे श्राद्ध नही करना चाहिये, सायंकाल का समय राक्षसी बेला नाम से प्रसिद्ध है, चतुर्दशी को श्राद्ध करने से कुप्रजा (निन्दित सन्तान) पैदा होती है, परन्तु जिसके पितर युद्ध मे शस्त्र से मारे गये हो, वे चतुर्दशी को श्राद्ध करने से प्रसन्न होते है, जो चतुर्दशी को श्राद्ध करने वाला स्वयं भी युद्ध का भागी होता है | 

                                                            (स्कन्दपुराण, कूर्मपुराण, महाभारत)

रात्रि मे श्राद्ध नही करना चाहिये, उसे राक्षसी कहा गया है, दोनो संध्याओं मे तथा पूर्वाह्णकाल मे भी श्राद्ध नही करना चाहिये, दिन के आठवे भाग (महूर्त) मे जब सूर्य का ताप घटने लगता है उस समय का नाम 'कुतप' है, उसमे पितरो के लिये दिया हुआ दान अक्षय होता है, कुतप, खड्गपात्र, कम्बल, चादी, कुश, तिल, गौ और दौहित्र ये आठो कुतप नाम से प्रसिद्ध है, श्राद्ध मे तीन वस्तुएँ अत्यन्त पवित्र है, दौहित्र, कुतपकाल, तथा तिल, श्राद्ध मे तीन वस्तुएँ अत्यन्त प्रशंसनीय है, बाहर और भीतर की शुद्धि, क्रोध न करना तथा जल्दबाजी न करना 

                                           (मनुस्मृति, मत्स्यपुराण, पद्मपुराण, विष्णुपुराण)

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श्री राम जन्मभूमि का इतिहास


श्री राम जन्मभूमि का इतिहास
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जन्म भूमि का इतिहास लाखो वर्ष पुराना है । इस पोस्ट में विभिन्न पुस्तकों से मिले कुछ तथ्यों को संकलित करने का प्रयास कर रहा हूँ , जिससे रामजन्मभूमि और इतिहास के बारे में वास्तविक जानकारी का संग्रहण , विवेचना और ज्ञान हो सके। ये सारे तथ्य विभिन्न पुस्तकों में उपलब्ध हैं , मगर सरकारी मशीनरी और तुस्टीकरण के पुजारी उन्हें सामान्य जनमानस तक नहीं आने देते मैंने सिर्फ उन तथ्यों का संकलन करके आप के सामने प्रस्तुत किया है॥
श्री रामजन्मभूमि का ईसापूर्व इतिहास..
त्रेता युग के चतुर्थ चरण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी अयोध्या की इस पावन भूमि पर अवतरित हुए थे। श्री राम चन्द्रजी के जन्म के समय यह स्थान बहुत ही विराट , सुवर्ण एवं सभी प्रकार की सुख सुविधाओ से संपन्न एक राजमहल के रूप में था। महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण मे जन्मभूमि की शोभा एवंमहत्ता की तुलना दूसरे इंद्रलोक से की है ॥धन धान्य रत्नो से भरी हुई अयोध्या नगरी की अतुलनीय छटा एवं गगनचुम्बी इमारतो के अयोध्या नगरी में होने का वर्णन भी वाल्मीकि रामायण में मिलता है ॥
भगवान के श्री राम के स्वर्ग गमन के पश्चात अयोध्या तो पहले जैसी नहीं रही मगर जन्मभूमि सुरक्षित रही। भगवान श्री राम के पुत्र कुश ने एक बार पुनः राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया और सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इसकी अस्तित्व आखिरी राजा महाराजा वृहद्व्ल तक अपने चरम पर रहा॥ कौशालराज वृहद्वल की मृत्यु महाभारत युद्ध में अभिमन्यु के हाथो हुई । महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़ सी गयी मगर श्री रामजन्मभूमि का अस्तित्व प्रभुकृपा से बना रहा ॥
महाराजा विक्रमादित्य द्वारा पुनर्निर्माण:
ईसा के लगभग १०० वर्ष पूर्व उज्जैन के राजा विक्रमादित्य आखेट करतेकरते अयोध्या चले आये। थकान होने के कारण अयोध्या में सरयू नदी केकिनारे एक आम के बृक्ष के नीचे वो आराम करने लगे। उसी समय दैवीय प्रेरणा से तीर्थराज प्रयाग से उनकी मुलाकात हुई और तीर्थराज प्रयाग ने सम्राट विक्रमादित्यको अयोध्या और सरयू की महत्ता के बारे में बताया और उस समय तक नष्ट सी हो गयी श्री राम जन्मभूमि के उद्धार के लिए कहा॥
महाराजा विक्रमादित्य ने कहा की महाराज अयोध्या तो उजड़ गयी है , मिटटी के टीले और स्तूप ही यहाँ अवशेषों के रूप में हैं , फिर मुझे ज्ञान कैसे होगा की अयोध्या नगरी कहा से शुरू होती है , क्षेत्रफल कितना होगा और किस स्थान पर कौन सा तीर्थ है ॥
इस संशय का निवारण करते हुए तीर्थराज प्रयाग ने कहा की यहाँ से आधे योजन की दूरी पर मणिपर्वत है , उसके ठीक दक्षिण चौथाई योजन के अर्धभाग में गवाक्ष कुण्ड है उस गवाक्ष कुण्ड से पश्चिम तट से सटा हुआ एक रामनामी बृक्ष है , यह वृक्ष अयोध्या की परिधि नापने के लिए ब्रम्हा जीने लगाया था। सैकड़ो वर्षों से यह वृक्ष उपस्थित है वहा। उसी वृक्ष के पश्चिम ठीक एक मिल की दूरी पर एक मणिपर्वत है। मणिपर्वत के पश्चिम सटा हुआ गणेशकुण्ड नाम का एक सरोवर है , उसके ऊपर शेष भगवान का एक मंदिर बना हुआ है ( ज्ञातव्य है की अब इस स्थान पर अयोध्या में शीश पैगम्बर नाम की एक मस्जिद है जिसे सन १६७५ में औरंगजेब ने शेष भगवान के मंदिर को गिरा कर बनवाया था ). शेष भगवान के मंदिर से ५०० धनुष पर ठीक वायव्य कोण पर भगवान श्री राम की जन्मभूमि है॥
रामनामी वृक्ष(यह वृक्ष अब सूखकर गिर चुका है) के एक मील के इर्द गिर्द एक नवप्रसूता गाय को ले कर घुमाओ जिस जगह वह गाय गोबर कर दे , वह स्थल मणिपर्वत है फिर वहा से ५०० धनुष नापकर उसी ओर गाय को ले जा के घुमाओ जहाँ उसके स्तनों से दूधकी धारा गिरने लगे बस समझ लेना भगवान की जन्मभूमि वही है रामजन्मभूमि को सन्दर्भमान के पुरानो में वर्णित क्रम के अनुसार तुम्हे समस्त तीर्थो का पता लग जायेगा , ऐसा करने से तुम श्री राम की कृपा के अधिकारी बनोगे यह कहकर तीर्थराज प्रयाग अदृश्य हो गए॥
रामनवमी के दिन पूर्ववर्णित क्रम में सम्राट विक्रमादित्य नेसर्वत्र नवप्रसूता गाय को घुमाया जन्म भूमि पर उसके स्तनों से अपने आप दूध गिरने लगा उस स्थान पर महाराजा विक्रमादित्य ने श्री राम जन्मभूमि के भव्य मंदिर का निर्माण करा दिया॥
ईसा की ग्यारहवी शताब्दी में कन्नोज नरेश जयचंद आया तो उसने मंदिर पर सम्राट विक्रमादित्य के प्रशस्ति को उखाड़कर अपना नाम लिखवा दिया। पानीपत के युद्ध के बाद जयचंद का भी अंत हो गया फिर भारतवर्ष पर लुटेरे मुसलमानों का आक्रमण शुरू हो गया। मुसलमान आक्रमणकारियों ने जी भर के जन्मभूमि को लूटा और पुजारियों की हत्या भी कर दी , मगर मंदिर से मुर्तिया हटाने और मंदिर को तोड़ने में वे सफल न हो सके॥ विभिन्न आक्रमणों के बाद भी सभी झंझावतो को झेलते हुए श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या १४वीं शताब्दी तक बची रही॥ चौदहवी शताब्दी में हिन्दुस्थान पर मुगलों का अधिकार हो गया और उसके बाद ही रामजन्मभूमि एवं अयोध्या को पूर्णरूपेण इस्लामिक साँचे मे ढालने एवं सनातन धर्म केप्रतीक स्तंभो को जबरिया इस्लामिक ढांचे मे बदलने के कुत्सित प्रयास शुरू हो गए॥
अब देखते है कि बाबर के आक्रमण के बाद अयोध्या में मस्जिद निर्माण कैसे हुआ , इस्लामिक आतताइयों ने कैसे अयोध्या का स्वरूप बदलने की कोशिश की और उसके बाद कई सौ सालो तक जन्मभूमि को मुक्त करने के लिए हिन्दुओं द्वारा किये गए युद्ध एवं बलिदान एवं वे वीर
सन्दर्भ: प्राचीन भारत , लखनऊ गजेटियर , लाट राजस्थान , रामजन्मभूमि का इतिहास(आर जी पाण्डेय) , अयोध्या का इतिहास(लाला सीताराम) , बाबरनामा
हिन्दुस्थान मुग़ल आतताइयों के अधीन आया तो प्रथम शासक बाबर हुआ। बाबर दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ और उससमय जन्मभूमि महात्मा श्यामनन्द जी महाराज के अधिकार क्षेत्र में थी। महात्मा श्यामनन्द उच्च कोटि के ख्याति प्राप्त सिद्ध महात्मा थे। इनका प्रताप चारो और फैला था और हिन्दुधर्म के मूल सिधान्तो के अनुसार महात्मा श्यामनन्द किसी भी प्रकार का भेदभाव किसी से नहीं रखते थे। यहाँ एक बार ध्यान देने योग्य बात ये है की जब जब हिन्दुधर्म के लोगो ने सहृदयता दिखाई है उसका खामियाजा आने वाले समय में पीढ़ियों को भुगतना पड़ा ।
महात्मा श्यामनन्द की ख्याति सुनकर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा आशिकानअयोध्या आये और महात्मा श्री महात्मा श्यामनन्द के साधक शिष्य हो गए। महात्मा जी के सानिध्य में ख्वाजा कजल अब्बास मूसा को रामजन्मभूमि का इतिहास एवं प्रभाव विदित हुआ और उनकी श्रद्धा जन्मभूमि में हो गयी। ख्वाजा कजल अब्बास मूसा ने महात्मा श्यामनन्द से आग्रह किया की उन्हें वो अपने जैसी दिव्य सिद्धियों को प्राप्त करने का मार्ग बताएं। महात्मा श्यामनन्द ने ख्वाजा कजल अब्बास मूसा से कहा की हिन्दू धर्म के अनुसार सिद्धि प्राप्ति करने के लिए तुम्हे योग की शिक्षा दी जाएगी , मगर वो तुम सिद्धि के स्तर तक नहीं कर पाओगे क्यूकी हिन्दुओं जैसी पवित्रता तुम नहीं रख पाओगे। अतः महात्मा श्यामनन्द ने ख्वाजा कजल अब्बास मूसा को रास्ता सुझाते हुए कहा की “तुम इस्लाम धर्म की शरियत के अनुसार ही अपनेही मन्त्र “लाइलाह इल्लिलाह” का नियमपूर्वक अनुष्ठान करो ”। इस प्रकार मैं उन महान सिद्धियों को प्राप्त करने में तुम्हारी सहायता करूँगा। महात्मा श्यामनन्द के सानिध्य में बताये गए मार्ग से ख्वाजा कजल अब्बास मूसाने सिद्धियाँ प्राप्त कर ली और उनका नाम भी महात्मा श्यामनन्द के ख्यातिप्राप्त शिष्योंमें लिया जाने लगा। ये सुनकर जलालशाह नाम का एक फकीर भी महात्मा श्यामनन्द के सानिध्य में आया और सिद्धि प्राप्त करने के लिए ख्वाजा की तरह अनुष्ठान करने लगा।
जलालशाह एक कट्टर मुसलमान था , और उसको एक ही सनक थी , हर जगह इस्लाम का आधिपत्य साबित करना। जब जन्मभूमि की महिमा और प्रभाव को उसने देखा तो उसने अपनी लुटेरी मानसिकता दिखाते हुए उसने उस स्थान को खुर्द मक्का या छोटा मक्का साबित करने या यूँ कह लें उस रूप में स्थापित करने की कुत्सित आकांक्षा जाग उठी। जलालशाह ने ख्वाजा कजल अब्बास मूसा के साथ मिलकर ये विचार किया की यदि इस मदिर को तोड़ कर मस्जिद बनवा दी जाये तो महात्मा श्यामनन्द की जगह हमे मिल जाएगी और चूकी अयोध्या की जन्मभूमि हिन्दुस्थान में हिन्दू आस्था का प्रतीक है तो यदि यहाँ जन्मभूमि पर मस्जिद बन गया तो इस्लाम का परचम हिन्दुस्थान में स्थायी हो जायेगा। धीरे धीरे जलालशाह और ख्वाजा कजल अब्बास मूसाइस साजिश को अंजाम देने की तैयारियों में जुट गए ।
अब विवेचना के इस बिंदु पर उस समय के राजनैतिक परिदृश्य पर नजर डालना जरुरी हो जाता है। हमारे इतिहास में एक गलत बात बताई जाती है की मुगलों ने पुरे भारत पर राज्य किया , हाँ उन्होंने एक बड़े हिस्से को जीता था मगर सर्वदा उन्हें हिन्दू वीरो से प्रतिरोध करना पड़ा और कुछ जयचंदों के कारण उनकी जड़े गहरी हुई। उस समय उदयपुर के सिंहासन पर महाराणा संग्राम सिंह राज्य कर रहे थे जिनकी राजधानी चित्तौड़गढ़ थी। संग्रामसिंह को राणासाँगा के नाम से भी जाना जाता है । आगरे के पास फतेहपुर सीकरी में बाबर और राणासाँगा का भीषण युद्ध हुआ जिसमे बाबर घायल हो कर भाग निकला और अयोध्या आ के जलालशाह की शरण ली(ज्ञात रहे तब तक जलालशाह और ख्वाजा कजल अब्बास मूसा के सिद्धि की धाक आस पर के क्षेत्रों में महात्मा श्यामनन्द के सिद्धि प्राप्त साधकों के रूप में जम चूकी थी)। इसी समय जलालशाह ने बाबर पर अपना प्रभाव किया और बड़ी सेना ले कर युद्ध करने का आशीर्वाद दिया।बाबर ने राणासाँगा की ३० हजार सैनिको की सेना के सामने अपने ६ लाख सैनिको की सेना के साथ धावा बोल दिया और इस युद्ध में राणासाँगा की हार हुई । युद्ध के बाद राणासाँगा के ६०० और बाबर की सेना के ९० , ००० सैनिक जीवित बचे ।
इस युद्ध में विजय पा के बाबर फिर अयोध्या आया और जलालशाह से मिला , जलालशाह ने बाबर को अपनीं सिद्धी का भय और इस्लाम के आधिपत्य की बात बताकर अपनी योजना बताई और ख्वाजा कजल अब्बास मूसा के समर्थन की बात कही । बाबर ने अपने वजीर मीरबाँकी खा को ये काम पूरा करने का आदेश दिया और खुद दिल्ली चला गया। अब जलालशाह ने अयोध्या को खुर्द मक्का के रूप में स्थापित करने के अपने कुत्सित प्रयासों को आगे बढ़ाना शुरू किया। सर्वप्रथम प्राचीन इस्लामिक ढर्रे की लम्बी लम्बी कब्रों को बनवाया गया , दूर दूर से मुसलमानों के शव अयोध्या लाये जाने लगे। पुरे भारतवर्ष में ये बात फ़ैल गयी और भगवान राम की अयोध्या को खुर्द मक्का बनाने के लिए कब्रों से पाट दिया गया॥ अब भी उनमे से कुछ अयोध्या में अयोध्या नरेश के महल के निकट कब्रों या मजारो के रूप में मिल जाएँगी।
अब जलालशाह ने मीरबाँकी खां के माध्यमसे मंदिर के विध्वंस का कार्यक्रम बनाया जिसमे ख्वाजा कजल अब्बास मूसा भी शामिल हो गए । बाबा श्यामनन्द जी अपने सड़क मुस्लिम शिष्यों की करतूत देख के बहुत दुखी हुए और अपने निर्णय पर उन्हें बहुत पछतावा हुआ। भगवान का मंदिर तोड़ने की योजना के एक दिन पूर्व दुखी मन से बाबा श्यामनन्द जी ने रामलला की मूर्तियाँ सरयू में प्रवाहित किया और खुद हिमालय की और तपस्या करने चले गए। मंदिर के पुजारियों ने मंदिर के अन्य सामान आदि हटा लिए और वे स्वयं मंदिर के द्वार पर खड़े हो गए उन्होंने कहा की रामलला के मंदिर में किसी का भी प्रवेश हमारी मृत्यु के बाद ही होगा। जलालशाह की आज्ञा के अनुसार उन चारो पुजारियों के सर काट लिए गए. उसके बाद तो देशभर के हिन्दू राम जन्मभूमि के कवच बन कर खड़े हो गए ॥
इतिहासकार कनिंघम अपने लखनऊ गजेटियर के 66 वें अंकके पृष्ठ 3 पर लिखता है की एक लाख चौहतर हजार
हिंदुओं की लाशे गिर जाने के पश्चात मीरबाँकी अपने मंदिर ध्वस्त करने के अभियान मे सफल हुआ और उसके बाद जन्मभूमि के चारो और तोप लगवाकर मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया.. ज्ञातव्य रहे की मंदिर को बचने के लिए ये युद्धभीटी के राजा, राजा महताब सिंह ने लड़ा था और वीर गति को प्राप्त हुए एवं विवादित ढांचे का निर्माण किस प्रकार हुआ (जिसे कुछ भाई बाबरी मस्जिद का नाम भी देते हैं)
अयोध्या मे विवादित ढांचे(बाबरी मस्जिद) का निर्माण और बाबर की कूटनीति:
जैसा की पहले बताया जा चुका है जलालशाह की आज्ञा से मीरबाँकी खा ने तोपों से जन्भूमि पर बने मंदिर को गिरवा दिया और मस्जिद का निर्माण मंदिर की नींव और मंदिर निर्माण के सामग्रियों से ही शुरू हो गया॥ मस्जिद की दिवार को जब मजदूरो ने बनाना शुरू किया तो पूरे दिन जितनी दिवार बनती रात में अपने आप वो गिर जाती ॥ सबके मन मे एक प्रश्न की ये दीवार गिराता कौन है ?? मंदिर के चारो ओर सैनिको का पहरा लगा दियागया , महीनो तक प्रयास होते रहे लाखों रूपये की बर्बादी हुई मगर मस्जिद की एक दिवार तक न बन पाई ॥ हिन्दुस्थान के दो इस्लामिक गद्दारों ख्वाजा कजल अब्बास मूसा और जलालशाह की सारी सिद्धियाँ उस समय धरी की धरी रह गयी ॥ सारे प्रयासों के पश्चात भी मस्जिद की एक दिवार भी न बन पाने की स्थिति में वजीर मीरबाँकी खा ने विवश हो के बाबर को इस समस्या के बारे में एक पत्र लिखा। बाबर ने मीरबाँकी खा को पत्र भिजवाया की मस्जिद निर्माण का काम बंद करकेवापस दिल्ल्की आ जाओ । एक बार पुनः जलालशाह ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए ये सन्देश भिजवाया की बाबर अयोध्या आये
जलालशाह का पत्र पा के बाबर वापस अयोध्या आया और जलालशाह और ख्वाजा कजल अब्बास मूसा से इस समस्या से निजात पाने का तरीका पूछा। ख्वाजा कजल अब्बास मूसा और जलालशाह ने सुझाव दिया की ये काम इस्लाम से प्राप्त की गयी सिद्धियों के वश का नहीं है , अब नीति से काम लेते हुए हमे हिन्दू संतो से वार्ता करनी चाहिए वही अपने प्रभाव और सिद्धियों से कुछ रास्ता निकाल सकते हैं।
बाबर ने हिन्दू संतो के पास वार्ता का प्रस्ताव भेजा.। उस समय तक जन्मभूमि टूट चुकी थी और अयोध्या को खुर्द मक्का बनाने के लिए कब्रों से पाटना शुरू किया जा चूका था , पूजा पाठ भजन कीर्तनपर जलालशाह ने प्रतिबन्ध लगवा दिया था। इन विषम परिस्थितियों में हिन्दू संतो ने बाबर से वार्ता करने का निर्णय लिया जिससे काम जन्मभूमि के पुनरुद्धार का एक रास्ता निकाल सके।
बाबर ने अब धार्मिक सद्भावना की झूटी कूटनीति चलते हुए संतो से कहा की आप के पूज्य बाबा श्यामनन्द जी के बाद जलालशाह उनके स्वाभाविक उत्तराधिकारी है और ये मस्जिद निर्माण की हठ नहीं छोड़ रहे हैं , आप लोग कुछ उपाय बताएं उसके बदले में हिंदुओं को पुजा पाठ करने मे छूट दे दी जाएगी॥
हिन्दू महात्माओं ने जन्मभूमि को बचाने का आखिरी प्रयास करते हुए अपनी सिद्धि से इसका निवारण बताया की यहाँ एकपूर्ण मस्जिद बनाना असंभव कार्य है । मस्जिद के नाम से हनुमान जी इस ढांचे का निर्माण नहीं होने देंगे ।इसे मस्जिद का रूप मत दीजिये। इसे सीता जी (सीता पाक अरबी मे ) के नाम से बनवाइए ॥ और भी कुछ परिवर्तन कराये मस्जिद का रूप न देकर यहाँ हिन्दू महात्माओं को भजन कीर्तन पाठ की स्वतन्त्रता दी जाए चूकी जलालशाह अपनी मस्जिद की जिद पर अड़ा था अतः महात्माओं ने सुझाव दिया की एक दिन मुसलमान शुक्रवार के दिन यहाँ जुमे की नमाज पढ़ सकते हैं।
जलालशाह को हिंदुओं को छूट देने का विचार पसंद नहीं आया मगर कोई रास्ता न बन पड़ने के कारण उन्होने हिंदु संतों का ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। मंदिर के निर्माण के प्रयोजन हेतु दिवारे उठाई जाने लगी और दरवाजे पर सीता पाक स्थान फारसी भाषा मे लिखवा दिया गया जिसे सीता रसोई भी कहते हैं ॥ नष्ट किया गया सीता पाक स्थान पुनः बनवा दिया गया लकड़ी लगा कर मस्जिदके द्वार मे भी परिवर्तन कर दिया ॥ अब वो स्थान न तो पूर्णरूपेण मंदिर था न ही मस्जिद । मुसलमान वहाँ शुक्रवाकर को जुमे की नमाज अदा करते और बाकी दिन हिंदुओं को भजनऔर कीर्तन की अनुमति थी॥
इस प्रकार मुगल सम्राट बाबर ने अपनी कूटनीति से अयोध्या मे एक ढांचा तैयार करने मे सफलता प्राप्त की जिसे हमारे कुछ भाई बाबरी मस्जिद का नाम देते हैं॥ यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है किसी भी मस्जिद मे क्या किसी भी हिन्दू को पुजा पाठ या भजन कीर्तन की इजाजत इस्लाम देता है ? ? यदि नहीं तो बाबर ने ऐसा क्यू किया ?? जाहीर है उसके मन मे उन काफिरो के प्रति प्यार तो उमड़ा नहीं होगा जिनके घर की बहू बेटियों को वो जबरिया अपने हरम मे रखतेथी और यदि ये एक धार्मिक सदभाव का नमूना था तो मंदिर को ध्वस्त करते समय 1 लाख 74 हजार हिंदुओं की लाशे गिरते समय बाबर की ये सदभावना कहा थी ??
यदि मीरबाँकी एवं बाबर के मंदिर को तोड़ने के निर्णय और उसके तथ्यात्मक और प्रमाणिक विश्लेषण पर आए और उस समय आस पास इसकी क्या प्रतिक्रिया हुई ये जानने की कोशिश करे..
बाबर के मंदिर को तोड़ने के निर्णय की प्रतिक्रिया के प्रमाण इतिहास में किसी एक जगह संकलित नहीं मिलते हैं इसका कारण ये था की उसके बाद का ज्यादातर इतिहास मुगलों के अनुसार लिखा गया। कुछ एक मुग़ल कालीन राजपत्रों और दस्तावेजों के माध्यम से जो बाते उभर कर सामने आई वो निम्नवत हैं.
जब मंदिर तोड़ने का निर्णय लिया गया उस समय बाबर ने व्यापक हिन्दू प्रतिक्रिया को देखते हुए बाहर के राज्यों से हिन्दुओं को अयोध्या आने पर रोक लगा दिया गया था। सरकार की आज्ञा प्रचारित की गयी की कोई भी ऐसा व्यक्ति जैस्पर ये संदेह हो की वह हिन्दू है और अयोध्या जाना चाहता है उसे कारागार मे डाल दिया जाए।
सन १९२४ मार्डन रिव्यू नाम के एक पत्र में “राम की अयोध्या नाम” शीर्षक से एक लेख प्रकाशित हुआ जिसके लेखक श्री स्वामी सत्यदेव परिब्रापजक थे जो की एक अत्यंत प्रमाणिक लेखक थे । स्वामी जी दिल्ली में अपने किसी शोध कार्य के लिए पुराने मुगलकालीन कागजात खंगाल रहे थे उसी समय उनको प्राचीन मुगलकालीन सरकारी कागजातों के साथ फारसी लिपि में लिथो प्रेस द्वारा प्रकाशित , बाबर का एक शाही फरमान प्राप्त हुआ जिस पर शाही मुहर भी लगी हुई थी। ये फरमान अयोध्या में स्थित श्री राम मंदिर कोगिराकर मस्जिद बनाने के सन्दर्भ में शाही अधिकारियों को जारी किया गया था । यह पत्र माडर्न रिव्यू के ६ जुलाई सन १९२४ के “श्री राम की अयोध्या” धारावाहिक में भी छपा था. उस फरमान का हिंदी अनुबाद निम्नवत है ।
“शहंशाहे हिंद मालिकूल जहाँ बाबर के हुक्म से हजरत जलालशाह (ज्ञात रहे ये वही जलालशाह है जो पहले अयोध्या के महंत महात्मा श्यामनन्द जी महाराज का शिष्य बन के अयोध्या में शरण लिया था) के हुक्म के बमुजिव अयोध्या के राम की जन्मभूमि को मिसमार करके उसी जगह पर उसी के मसाले से मस्जिद तामीर करने की इजाजत दे दी गयी. बजरिये इस हुक्मनामे के तुमको बतौर इत्तिला के आगाह किया जाता है की हिंदुस्तान के किसी भी गैर सूबे से कोई हिन्दू अयोध्या न जाने पावे जिस शख्श पर यह सुबहा हो की यह अयोध्या जाना चाहता है फ़ौरन गिरफ्तार करके दाखिले जिन्दा कर दिया जाए. हुक्म सख्ती से तमिल हो फर्ज समझकर” … (अंत में बाबर की शाही मुहर)
बाबर के उपरोक्त हुक्मनामे से स्पष्ट होता है की उस समय की मुग़ल सरकार भी यह समझती थी की श्री राम जन्मभूमि को तोड़ कर उस जगह पर मस्जिद खड़ा कर देना आसान काम नहीं है। इसका प्रभाव सारे हिंदुस्थान पर पड़ेगा। धार्मिक भावनाए आहत होने से हिंदुओं का परे देश मे ध्रुवीकरण हो जाएगा उस स्थिति मे दिल्ली का सिंहासन बचना मुश्किल होगा अतः अयोध्या को अन्य प्रांतो से अलग थलग करने का हुक्मनामा जारी किया गया॥
चूकी उपलब्ध साक्ष्यों की परिधि के इर्दगिर्द ही ये विश्लेषण है अतः पूरे दावे के साथ मैं ये नहीं कह सकता की बाबर के इस फरमान की प्रतिक्रिया या असर क्या रहा ?? क्यूकी कोई ठोस लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है मगर जैसा पहले भी मैं लिख चूका हूँ , कनिंघम के लखनऊ गजेटियर में प्रकाशित रिपोर्ट यह बतलाती है कीयुद्ध करते हुए जब एक लाख चौहत्तर हजार हिन्दू जब मारे जा चुके थे और हिन्दुओं की लाशोंका ढेर लग गया तब जा के मीरबाँकी खां ने तोप के द्वारा रामजन्मभूमि मंदिर गिरवाया। कनिंघम के पास इस रिपोर्ट के क्या साक्ष्य थे ये तो कनिंघम के साथ ही चले गए मगर इस रिपोर्ट से एक बात स्थापित हुई की वहांमंदिर गिराने से पहले हिन्दुओं का प्रतिरोध हुआ था और उनकी बड़े स्तर पर हत्या भी हुई थी।
ईसी प्रकार हैमिल्टन नाम का एक अंग्रेज बाराबंकी गजेटियर में लिखता है की ” जलालशाह ने हिन्दुओं के खून का गारा बना केलखौरी ईटों की नीव मस्जिद बनवाने के लिए दी गयी थी। “
ये तो हुए अन्य इतिहासकारों के प्रसंग अब आते हैं बाबरनामा के एक प्रसंग पर जिसे पढ़करये बात तो स्थापित हो जाती है की बाबर के आदेश से जन्मभूमि का मंदिर ध्वंस हुआ था और उसी जगह पर विवादित ढांचा(मस्जिद) बनवाई गयी ..
बाबर के शब्दों में .. ” हजरत कजल अब्बास मूसा आशिकन कलंदर साहब ( ज्ञात रहे ये वही हजरत कजल अब्बास मूसा हैं जो जलालशाह के पहले अयोध्या के महंत महात्मा श्यामनन्द जी महाराज का शिष्य बन के अयोध्या में शरण लिए) की इजाजत से जन्मभूमि मंदिर को मिसमार करके मैंने उसी के मसाले से उसी जगह पर यह मस्जिद तामीर की ( सन्दर्भ: बाबर द्वारा लिखित बाबरनामा पृष्ठ १७३)
इस प्रकार बाबर , वजीर मीरबाँकी खा के अत्याचारों कूटनीति और महात्माश्यामनन्द जी महाराज के दो आस्तीन में छुरा भोंकने वाले शिष्यों हजरत कजल अब्बास मूसा और जलालशाह के धोखेबाजी के फलस्वरूप रामजन्मभूमि का मंदिर गिराया गया और एक विवादित ढांचें (जिसे कुछ भाई मस्जिद का नाम देते हैं) का निर्माण हुआ ॥
बाबर के समय में चार आक्रमण:
( १) राजा महताब सिंह का पहला आक्रमण: बाबर के समय जन्मभूमि को मुसलमानों से मुक्त करने के लिए सर्वप्रथम आक्रमण भीटी के राजा महताब सिंह द्वारा किया गया। जिस समय मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाने की घोषणा हुई उस समय सम्पूर्ण हिन्दू जनमानस में एक प्रकार से क्रोध और क्षोभ की लहर दौड़ गयी। उस समय भीटी के राजा महताब सिंह बद्री नारायण की यात्रा करने के लिए निकले थे , अयोध्या पहुचने पर रास्ते में उन्हें ये खबर मिली तो उन्होंने अपनी यात्रा स्थगित कर दी। चुकी महताब सिंह के पास सेना छोटी थी अतः उन्हें परिणाम मालूम था मगर उन्होंने निश्चय किया की रामलला के मंदिर को अपने जीते जी ध्वस्त नहीं होने देंगे उन्होंने सुबह सुबह अपने आदमियों को भेजकर सेना तथा कुछ हिन्दुओं को की सहायता से १ लाख चौहत्तर हजार लोगो को तैयार कर लिया. बाबर की सेना में ४ लाख ५० हजार सैनिक थे। युद्ध का परिणाम एकपक्षीय हो सकता था मगर रामभक्तों ने सौगंध ले रक्खी थी रक्त की आखिरी बूंद तक लड़ेंगे जब तक प्राण है तब तक मंदिर नहीं गिरने देंगे। भीटी के राजा महताब सिंह ने कहा की बद्री नारायण की यात्रा करने के लिए निकला था यदि वीरगति को प्राप्त हुआ तो सीधा स्वर्ग गमन होगा और उन्होंने युद्ध शुरू कर दिया । रामभक्त वीरता के साथ लड़े ७० दिनों तक घोर संग्राम होता र हा और अंत में राजा महताब सिंह समेत सभी १ लाख ७४ हजार रामभक्त मारे गए बाबर की४ लाख ५० हजार की सेना के अब तीन हजार एक सौ पैतालीस सैनिक बचे रहे। इस भीषण कत्ले आम के बाद मीरबांकी ने तोप लगा के मंदिर गिरवाया।
(2) देवीदीन पाण्डेय द्वारा द्वितीय आक्रमण:(३ जून १५१८-९ जून १५१८) राजा महताब सिंह और लाखो हिन्दुओं को क़त्ल करने के बाद मीरबांकी ने तोप लगा के मंदिर गिरवा दिया मंदिर के मसाले से ही मस्जिद का निर्माण हुआ पानी की जगह मरे हुए हिन्दुओं का रक्त इस्तेमाल किया गया नीव में लखौरी इंटों के साथ । उस समय अयोध्या से ६ मील की दूरी पर सनेथू नाम का एक गांव है वहां के पंडित देवीदीन पाण्डेय ने वहां के आस पास के गांवों सराय सिसिंडा राजेपुर आदि के सूर्यवंशीय क्षत्रियों को एकत्रित किया॥
देवीदीन पाण्डेय ने सूर्यवंशीय क्षत्रियों से कहा भाइयों आप लोग मुझे अपना राजपुरोहित मानते हैं ..आप के पूर्वज श्री राम थे और हमारे पूर्वज महर्षि भरद्वाज जी। श्री राम ने महर्षि भरद्वाज से प्रयाग में दीक्षा ग्रहण की थी और अश्वमेघ में हमे १० हजार बीघे का द्वेगांवा नामक ग्राम दिया था..आज उसी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की जन्मभूमि को मुसलमान आक्रान्ता कब्रों से पाट रहे हैं और खोद रहे हैं इस परिस्थिति में हमारा मूकदर्शक बन कर जीवित रहने की बजाय जन्मभूमि की रक्षार्थ युद्ध करते करते वीरगति पाना ज्यादा उत्तम होगा॥
देवीदीन पाण्डेय की आज्ञा से दो दिन के भीतर ९० हजार क्षत्रिय इकठ्ठा हो गए दूर दूर के गांवों से लोग समूहों में इकठ्ठा हो कर देवीदीन पाण्डेय के नेतृत्व में जन्मभूमि पर जबरजस्त धावा बोल दिया इस एकाएक हुए आक्रमण से मीरबाँकी घबरा उठा। शाही सेना से लगातार ५ दिनों तक युद्ध हुआ शाही सेना संख्या बल में काफी बड़ी थी और रामभक्त काम मगर राम के लिए बलिदान देने को तैयार । छठे दिन मीरबाँकी का सामना देवीदीन पाण्डेय से हुआ उसी समय धोखे से उसके अंगरक्षक ने एक लखौरी ईट से पाण्डेय जी की खोपड़ी पर वार कर दिया। देवीदीन पाण्डेय की खोपड़ी बुरी तरह फट गयी मगर उस वीर ने अपने पगड़ी से खोपड़ी से बाँधा और तलवार से उस कायर अंगरक्षक का सर काट दिया और मीरबाँकी को ललकारा। मीरबाँकी तो छिप कर बच निकला मगर तलवार के वार से महावत सहित हाथी मर गया। इसी बीच मीरबाँकी ने गोली चलायी जो पहले ही से घायल देवीदीन पाण्डेय जी को लगी और वो जन्मभूमि की रक्षा में वीर गति को प्राप्त हुए.जैसा की देवीदीन पाण्डेय की इच्छा थी उनका अंतिम संस्कार विल्हारी घाट पर किया गया। यह आक्रमण देवीदीन जी ने ३ जून सन १५१८ को किया था और ९ जून १५१८ को २ बजे दिन में देवीदीन पाण्डेय वीरगति को प्राप्त हो गए। देवीदीन पाण्डेय के वंशज सनेथू ग्राम के ईश्वरी पांडे का पुरवा नामक जगह पर अब भी मौजूद हैं॥
इस युद्ध की प्रमाणिकता बाबर द्वारा लिखित”तुजुक बाबरी” से प्रमाणित होती है…बाबर के शब्दों में…..
” जन्मभूमि को शाही अख्तियारों से बाहर करने के लिए जो चार हमले हुए उनमे से सबसे बड़ा हमला देवीदीन पांडे का था , इस शख्स ने एक बार में सिर्फ तीन घंटे के भीतर गोलियों की बौछार के रहते हुए भी , शाही फ़ौज के सात सौ आदमियों का क़त्ल किया। सिपाही की ईट से खोपड़ी चकनाचूरहो जाने के बाद भी वह उसे अपनी पगड़ी के कपडे से बांध कर लड़ा जैसे किसी बारूद की थैली में पलीतालगा दिया गया हो आखिरी में वजीर मीरबाँकी की गोली से उसकी मृत्यु हुई॥ सन्दर्भ “तुजुक बाबरी पृष्ठ ५४०”
(3)हंसवर राजा रणविजय सिंह द्वारा तीसरा आक्रमण: देवीदीन पाण्डेय की मृत्यु के १५दिन बाद हंसवर के महाराज रणविजय सिंह ने आक्रमण करने को सोचा। हालाकी रणविजय सिंह की सेना में सिर्फ २५ हजार सैनिक थे और युद्ध एकतरफा था मीरबाँकी की सेना बड़ी और शस्त्रो से सुसज्जित थी , इसके बाद भी रणविजय सिंह ने जन्मभूमि रक्षार्थ अपने क्षत्रियोचित धर्म का पालन करते हुए युद्ध को श्रेयस्कर समझा। 10 दिन तक युद्ध चला और महाराज जन्मभूमि के रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हो गए।
(4) माताओं बहनों का जन्मभूमि के रक्षार्थ आक्रमण: रानी जयराज कुमारी का नारी सेना बना कर जन्मभूमि को मुक्त करने का प्रयास। रानी जयराज कुमारी हंसवर के स्वर्गीय महाराज रणविजय सिंह की पत्नी थी ।जन्मभूमि की रक्षा में महाराज के वीरगति प्राप्त करने के बाद महारानी ने उनके कार्य को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और तीन हजार नारियों की सेना लेकर उन्होंने जन्मभूमि पर हमला बोल दिया। बाबर की अपार सैन्य सेना के सामने ३ हजार नारियों की सेना कुछ नहीं थी अतः उन्होंने गुरिल्ला युद्ध जारी रखा और वो युद्ध रानी जयराज कुमारी ने हुमायूँ के शासनकाल तक जारी रखा जब तक की जन्मभूमि को उन्होंने अपने कब्जे में नहीं ले लिया। रानी के गुरु स्वामी महेश्वरानंद जी ने रामभक्तो को इकठ्ठा करके सेना का प्रबंध करके जयराज कुमारी की सहायता की। चूकी रामजन्म भूमि के लिए संतो और छोटे राजाओं के पास शाही सेना के बराबर संख्याबल की सेना नहीं होती थी अतः स्वामी महेश्वरानंद जी ने सन्यासियों की सेना बनायीं इसमें उन्होंने २४ हजार सन्यासियों को इकठ्ठा किया और रानी जयराज कुमारी के साथ , हुमायूँ के समय १० हमले जन्मभूमि के उद्धार के लिए किये और १०वें हमले में शाही सेना को काफी नुकसान हुआ और जन्मभूमि पर रानी जयराज कुमारी काअधिकार हो गया।
लगभग एक महीने बाद हुमायूँ ने पूर्ण रूप से तैयार शाही सेना फिर भेजी , इस युद्ध में स्वामी महेश्वरानंद और रानी कुमारी जयराज कुमारी लड़ते हुए अपनी बची हुई सेना के साथ मारे गए और जन्मभूमि पर पुनः मुगलों का अधिकार हो गया।
इस युद्ध किया वर्णन दरबरे अकबरी कुछ इस प्रकार करता है
” सुल्ताने हिन्द बादशाह हुमायूँ के वक्त मे सन्यासी स्वामी महेश्वरानन्द और रानी जयराज कुमारी दोनों अयोध्या के आस पास के हिंदुओं को इकट्ठा करके लगातार 10 हमले करते रहे । रानी जयराज कुमारी ने तीन हज़ार औरतों की फौज लेकर बाबरी मस्जिद पर जोआखिरी हमला करके कामयाबी हासिल की । इस लड़ाई मे बड़ी खूंखार लड़ाई लड़ती हुई जयराजकुमारी मारी गयी और स्वामी महेश्वरानंद भी अपने सब साथियों के साथ लड़ते लड़ते खेत रहे।
संदर्भ: दरबारे अकबरी पृष्ठ 301 लेख के अगले भाग मे मै कुछ अन्य हिन्दू एवं सिक्ख वीरों वर्णन दूंगा जिन्होने जन्मभूमि के रक्षार्थ अनेकों युद्ध किए और जन्मभूमि को मुक्त करने का प्रयास किया॥
अब जन्मभूमि के लिए हुए अनेको संघर्ष : स्वामीबलरामचारी , बाबा वैष्णवदास , एवं सिक्खो के गुरुगोविंद सिंह द्वारा जन्मभूमि के रक्षार्थ युद्ध , औजरंगजेब की करारी हार।सन 1664 के हमले मे हजारोनिर्दोष हिंदुओं की हत्या और बचा हुआ राम मंदिर ध्वस्त ॥
(5)स्वामी बलरामचारी द्वारा आक्रमण: रानी जयराज कुमारी और स्वामीमहेश्वरानंद जी के बाद यद्ध का नेतृत्व स्वामीबलरामचारी जी ने अपने हाथ में ले लिया। स्वामी बलरामचारी जी ने गांवो गांवो में घूम कर रामभक्त हिन्दू युवको और सन्यासियों की एक मजबूत सेना तैयार करने का प्रयास किया और जन्मभूमि के उद्धारार्थ २० बार आक्रमण किये. इन २० हमलों में काम से काम १५बार स्वामी बलरामचारी ने जन्मभूमि पर अपना अधिकार कर लिया मगर ये अधिकार अल्प समय के लिए रहता था थोड़े दिन बाद बड़ी शाही फ़ौज आती थी और जन्मभूमि पुनः मुगलों के अधीन हो जाती थी. स्वामी बालरामचारी का २० वां आक्रमण बहुत प्रबल था और शाही सेना को काफी क्षति उठानी पड़ी। उस समय का मुग़ल शासक अकबर था वो स्वामी बलरामचारी की वीरता से प्रभावित हुआ और शाही सेना का हर आते हुए दिन के साथ इन युद्धों से क्षय हो रहा था..धीरे धीरे देश के हालत मुगलों के खिलाफ होते जा रहे थे अतः अकबर ने अपने दरबारी टोडरमल और बीरबल से इसका हल निकालने को कहा।
विवादित ढांचे के सामने स्वामी बलरामचारी ने एक चबूतरा बनवाया था जब जन्मभूमि थोड़े दिनों के लिए उनके अधिकार में आई थी। अकबर ने बीरबल और टोडरमल के कहने पर खस की टाट से उस चबूतरे पर ३ फीट का एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया. लगातार युद्ध करते रहने के कारण स्वामी बलरामचारी का स्वास्थ्य गिरता चला गया और प्रयाग कुम्भ के अवसर पर त्रिवेणी तट पर स्वामी बलरामचारी की मृत्यु हो गयी ..इस प्रकार स्वामी बलरामचारी के आक्रमणों और हिन्दू जनमानस के रोष के कारण अकबर ने विवादित ढांचे के सामनेएक छोटा मंदिर बनवाकर आने वाले आक्रमणों और हिन्दुस्थान पर मुगलों की ढीली होती पकड़ से बचने का एक राजनैतिक प्रयास किया.
इस नीति से कुछ दिनो के लिए ये झगड़ा शांत हो गया। उस चबूतरे पर स्थित भगवान राम की मूर्ति का पूजन पाठ बहुत दिनो तक अबाध गति से चलता रहा। हिंदुओं के पुजा पाठ या घंटा बजने पर कोई मुसलमान विरोध नहीं करता यही क्रम शाहजहाँ के समय भी चलता रहा।सन 1640 मे सनकी इस्लामिक शासक औरंगजेब के हाथ सत्ता आई वो पूर्णतया हिंदुविरोधी और दमन करने वाला था। उसने लगभग 10 बार अयोध्या मे मंदिरों को तोड़ने का अभियान चलकर यहाँ के सभी प्रमुख मंदिरों की मूर्तियों को तोड़ डाला।
(6) बाबा वैष्णव दास के नेतृत्व मे आक्रमण:
राजयसिंहासन पर बैठते हि सबसे पहले औरंगजेब का ध्यान अयोध्या की ओर गया । हिंदुधर्मविरोधी औरंगजेब ने अपने सिपहसालार जाँबाज खा के नेतृत्व मे एक विशाल सेना अयोध्या की ओर भेज दी। पुजारियों को ये बात पहले हि मालूम हो गयी अतः उन्होने भगवान की मूर्ति पहले ही छिपा दी। पुजारियों ने रातो रात घूमकर हिंदुओं को इकट्ठा किया ताकि प्राण रहने तक जन्मभूमि की रक्षा की जा सके। उन दिनो अयोध्या के अहिल्याघाट पर परशुराम मठ मे समर्थ गुरु श्री रामदास जी महाराज जी के शिष्य श्री वैष्णवदास जी दक्षिण भारत से यहाँ विधर्मियों से देश को मुक्त करने के प्रयास मे आए हुए थे। औरंगजेब के समय बाबा श्री वैष्णवदास जी ने जन्मभूमि के उद्धारार्थ 30 बार आक्रमण किये। इन आक्रमणों मे अयोध्या के आस पास के गांवों के सूर्यवंशीय क्षत्रियों ने पूर्ण सहयोग दिया जिनमे सराय के ठाकुर सरदार गजराज सिंह और राजेपुर के कुँवर गोपालसिंह तथा सिसिण्डा के ठाकुर जगदंबा सिंह प्रमुख थे। ये सारे वीर ये जानते हुए भी की उनकी सेना और हथियार बादशाहीसेना के सामने कुछ भी नहीं है अपने जीवन के आखिरी समय तक शाही सेना से लोहा लेते रहे और अंततः वीरगति को प्राप्त हुये। ठाकुर गजराज सिंह का मकान तक बादशाह के हुक्म पर खुदवा डाला। ठाकुर गजराज सिंह के वंशज आज भी सराय मे मौजूद हैं। आज भी फैजाबाद जिले के आस पास के सूर्यवंशीय क्षत्रिय सिर पर पगड़ी नहीं बांधते , जूता नहीं पहनते , छता नहीं लगाते , उन्होने अपने पूर्वजों के सामने ये प्रतिज्ञा ली थी की जब तक श्री राम जन्मभूमि का उद्धार नहीं कर लेंगे तब तक जूता नहीं पहनेंगे , छाता नहीं लगाएंगे , पगड़ी नहीं बाधेंगे। तत्कालीन कवि जयराज के एक दोहे मे ये भीष्म प्रतिज्ञा इस प्रकार वर्णित है ॥
जन्मभूमि उद्धार होय , जा दिन बरी भाग। छाता जग पनही नहीं , और न बांधहि पाग॥
(7) ) बाबा वैष्णव दास एवं सिक्खो के गुरुगोविंद सिंह द्वारा जन्मभूमि के रक्षार्थ युद्ध: जैसा की पहले बताया जा चुका है की औरंगजेब ने गद्दी पर बैठते ही मंदिर को ध्वस्त करने के लिए जबांज खाँ के नेतृत्व मे एक जबरजस्त सेना भेज दी थी , बाबा वैष्णव दास को इस बात की भनक लगी बाबा वैष्णव दास के साथ साधुओं की एक सेना थी जोहर विद्या मे निपुण थी इसे चिमटाधारी साधुओं की सेना भी कहते थे । जब जन्मभूमि पर जबांज खाँ ने आक्रमण किया तो हिंदुओं के साथ चिमटाधारी साधुओं की सेना की सेना मिल गयी और उर्वशी कुंड नामक जगह पर जाबाज़ खाँ की सेना से सात दिनो तक भीषण युद्ध किया । चिमटाधारी साधुओं के चिमटे के मार से मुगलो की सेना भाग खड़ी हुई। इस प्रकार चबूतरे पर स्थित मंदिर की रक्षा हो गयी ।
जाबाज़ खाँ की पराजित सेना को देखकर औरंगजेब बहुत क्रोधित हुआ और उसने जाबाज़ खाँ को हटकर एक अन्य सिपहसालारसैय्यद हसन अली को 50 हजार सैनिको की सेना देकर अयोध्या की ओर भेजा और साथ मे ये आदेश दिया की अबकी बार जन्मभूमि को तहस नहस कर के वापस आना है ,यह समय सन 1680 का था ।
बाबा वैष्णव दास ने अपने संदेशवाहको द्वारा सिक्खों के गुरु गुरुगोविंद सिंह से युद्ध मे सहयोग के लिए पत्र के माध्यम संदेश भेजा । गुरुगोविंद सिंह उस समय आगरे मे सिक्खों की एक सेना ले कर मुगलो को ठिकाने लगा रहे थे। पत्र पा के गुरु गुरुगोविंद सिंह सेना समेत अयोध्या आ गए और ब्रहमकुंड पर अपना डेराडा ला । ज्ञातव्य रहे की ब्रहमकुंड वही जगह जहां आजकल गुरुगोविंद्सिंह की स्मृति मे सिक्खों का गुरुद्वारा बना हुआ है। बाबा वैष्णव दास के जासूसों द्वारा ये खबर आई की हसन आली 50 हजार कीसेना और साथ मे तोपखाना ले कर अयोध्या की ओर आ रहा है । इसे देखते हुए एक रणनीतिक निर्णय के तहत बाबा वैष्णव दास एवं सिक्खो के गुरुगोविंद सिंह ने अपनी सेना को तीन भागों मे विभक्त कर दिया । पहला दल सिक्खों के एक छोटे से तोपखाने के साथ फैजाबाद के वर्तमान सहादतगंज के खेतो के पास छिप गए । दूसरा दल जो क्षत्रियों का था वो रुदौली मे इस्लामिक सेना से लोहा लेने लगे। और बाबा वैष्णव दास का तीसरा दल चिमटाधारी जालपा नाला पर सरपत के जंगलो मे जगह ले कर मुगलो की प्रतीक्षा करने लगा।
शाही सेना का सामना सर्वप्रथम रुदौली के क्षत्रियों से हुआ एक साधारण सी लड़ाई के बाद पूर्वनिर्धारित रणनीति के अनुसार वो पीछे हट गए और चुपचाप सिक्खों की सेना से मिल गए । मुगल सेना ने समझा की हिन्दू पराजित हो कर भाग गये , इसी समय गुरुगोविंद सिंह के नेतृत्व मे सिक्खों का दल उन पर टूटपड़ा , दूसरे तरफ से हिंदुओं का दल भी टूट पड़ा सिक्खों ने मुगलो की सेना के शाही तोपखाने पर अधिकार कर लिया दोनों तरफ से हुए सुनियोजित हमलो से मुगलो की सेना के पाँव उखड़ गये सैय्यद हसन अली भी युद्ध मे मारा गया। औरंगजेब हिंदुओं की इस प्रतिक्रिया से स्तब्ध रह गया था इस करारी हार के बाद औरंगजेब ने कुछ समय तक अयोध्या पर हमले का कार्यक्रम स्थगित कर दिया । हिंदुओं से मिली इस हार का वर्णन औरंगजेब आलमगीर नामे मेकुछ इस प्रकार लिखता है
“बाबरी मस्जिद के लिए काफिरो ने 20 हमले किए सबमे लापरवाही की वजह से शाही फौज ने शिकस्त खायी। आखिरी हमला जो गुरुगोविंदसिंह के साथ बाबा वैष्णव दास का हुआ उसमे शाही फौज का सबसे बड़ा नुकसान हुआ । इस लड़ाई मे शहजादा मनसबदार सरदार हसन ली खाँ भी मारे गये ।” संदर्भ: आलमगीर पृष्ठ623
इस युद्ध के बाद 4 साल तक औरंगजेब ने अयोध्या पर हमला करने की हिम्मत नहीं की। मगर इन चार वर्षों मे हिन्दू कुछ असावधान हो गए। औरंगजेब ने इसका लाभ उठाते हुए सान 1664 मे पुनः एक बार श्री राम जन्मभूमि पर आक्रमण किया ।इन चार वर्षों मे सभी एकत्रित हिन्दू अपने अपने क्षेत्रों मे चले गए थे।अतः ये एकतरफा युद्ध था हालाँकि कुछ पुजारियों और हिंदुओं ने मंदिर रक्षा का प्रयत्न किया मगर शाही सेना के सामने निहत्थे हिन्दू जीतने की स्थिति मे नहीं थे , पुजारियों ने रामलला की प्रतिमा छिपा दी । इस हमले मे शाही फौज ने लगभग 10 हजार हिंदुओं की हत्या कर दी ।मंदिर के अंदर नवकोण के एक कंदर्प कूप नाम का कुआं था , सभी मारे गए हिंदुओं की लाशें मुगलो ने उसमे फेककर चारो ओर चहारदीवारी उठा कर उसे घेर दिया। आज भी कंदर्पकूप “गज शहीदा” के नाम से प्रसिद्ध है , और मंदिर के पूर्वी द्वार पर स्थित है जिसे मुसलमान अपनी संपत्ति बताते हैं।
औरंगजेब ने इसका वर्णन कुछ इस प्रकार किया है । ‘
“लगातार चार बरस तक चुप रहने के बाद रमजान की 27वी तारीख को शाही फौज ने फिर अयोध्या की रामजन्मभूमि पर हमला किया । इस अचानक हमले मे दस हजार हिन्दू मारे गये। उनका चबूतरा और मंदिर खोदकर ज़मींदोज़ कर दिया गया । इस वक्त तक वह शाही देखरेख मे है। संदर्भ: आलमगीरनामा पृष्ठ 630
शाही सेना ने जन्मभूमि का चबूतरा खोद डाला बहुत दिनो तक वह चबूतरा गड्ढे के रूप मे वहाँ स्थित था । औरंगजेब के क्रूर अत्याचारो की मारी हिन्दू जनता अब उस गड्ढे पर ही श्री रामनवमी के दिन भक्तिभाव से अक्षत , पुष्प और जल चढाती रहती थी.

Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

Kailash Temple, Ellora cave temple complex


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Kailash Temple, Ellora cave temple complex

It is a megalith carved out of one single black granite rock. It is estimated that about 400,000 tons of rocks was scooped out over years to construct this monolithic structure.  It was built in the 8th century by the Rashtrakuta king Krishna I .
The Kailash Temple is notable for its vertical excavation—carvers started at the top of the original rock, and excavated downward, exhuming the temple out of the existing rock. The traditional methods were rigidly followed by the master architect which could not have been achieved by excavating from the front.
Photo: Ancient Gods facebook page

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Kailash Temple, Ellora cave temple complex

It is a megalith carved out of one single black granite rock. It is estimated that about 400,000 tons of rocks was scooped out over years to construct this monolithic structure. It was built in the 8th century by the Rashtrakuta king Krishna I .
The Kailash Temple is notable for its vertical excavation—carvers started at the top of the original rock, and excavated downward, exhuming the temple out of the existing rock. The traditional methods were rigidly followed by the master architect which could not have been achieved by excavating from the front.
Photo: Ancient Gods facebook page

Posted in Secular

सेकुलर ऒर कांग्रेसी बोल रहे हॆ मुस्लिम. श्रद्धा से गरबा में जाते हॆ तो वो अपनी बहनो को गरबा मे साथ क्यों नही लाते हॆ क्या मुस्लिम लङको में ही श्रद्धा होती हॆ लङकियां कट्टर होती हॆ?


Veer Pratap Singh Sisodia

सेकुलर ऒर कांग्रेसी बोल रहे हॆ मुस्लिम. श्रद्धा से गरबा में जाते हॆ
तो वो अपनी बहनो को गरबा मे साथ क्यों नही लाते हॆ
क्या मुस्लिम लङको में ही श्रद्धा होती हॆ लङकियां कट्टर होती हॆ?

Posted in PM Narendra Modi

खबर मिल रही है क़ि केंद्र की मोदी सरकार के मंत्री श्री नितिन गडकरी जी के सेना से राजमार्ग ठीक करने के निवेदन


सबसे बड़ी खबर::
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अभी-2 खबर मिल रही है क़ि केंद्र की मोदी सरकार के मंत्री श्री नितिन गडकरी जी के सेना से राजमार्ग ठीक करने के निवेदन के बाद आज 48 घंटों के भीतर ही श्रीनगर-लेह राजमार्ग आम जनता के लिए पूरी तरह दुरुस्त करके खोल दिया गया है।। जल्द ही अन्य रास्तों को भी खोलने के प्रयास पूरी दम में साथ किया जा रहा बाई।। जम्मू कश्मीर के नागरिक हिन्द की सेना के जवानो का हर संभव साथ दें।।
जय हिन्द-जय हिन्द की सेना
नमो नमो

सबसे बड़ी खबर::
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अभी-2 खबर मिल रही है क़ि केंद्र की मोदी सरकार के मंत्री श्री नितिन गडकरी जी के सेना से राजमार्ग ठीक करने के निवेदन के बाद आज 48 घंटों के भीतर ही श्रीनगर-लेह राजमार्ग आम जनता के लिए पूरी तरह दुरुस्त करके खोल दिया गया है।। जल्द ही अन्य रास्तों को भी खोलने के प्रयास पूरी दम में साथ किया जा रहा बाई।। जम्मू कश्मीर के नागरिक हिन्द की सेना के जवानो का हर संभव साथ दें।।
जय हिन्द-जय हिन्द की सेना
नमो नमो
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इंदौर के गुजराती समाज ने गरबे में मुसलमानों को ban करने का फरमान दिया


दोगलई की हद देखिये … इंदौर के गुजराती समाज ने गरबे में मुसलमानों को ban करने का फरमान दिया तो कई सेकुलर सूअर और दोगले नस्ल के मुस्लिम नेता अपनी छाती कूटने लगे …

गरबा एक दुर्गा माँ की आराधना करने का त्यौहार है ….
महाभारत काल में हिडिम्बा ने माँ की आराधना के लिए अपने सर पर एक गरबा [छोटी] मटकी रखकर माँ दुर्गा की मूर्ति के चारो ओर नृत्य किया था ..

जब इन दोगले मुस्लिमो को वंदेमातरम् गाना पड़ता है तब ये कहते है की ये एंटी इस्लामिक है … फिर एक हिन्दू पूजा में जाने पर क्या इनका इस्लाम इन्हें इजाजत देने लगा ?

क्या शरियत के अनुसार कोई मुस्लिम किसी ऐसे पूजा पंडाल में जा सकता है जहाँ एक मूर्ति की पूजा नृत्यकला के द्वारा की जाती हो ?

असल में ये दुनिया के सबसे बड़े दोगले है …और इनका समर्थन करने वाले दोगले हिन्दू की अम्मी किसी मुल्ले के नीचे सोती होगी

दोगलई की हद देखिये ... इंदौर के गुजराती समाज ने गरबे में मुसलमानों को ban करने का फरमान दिया तो कई सेकुलर सूअर और दोगले नस्ल के मुस्लिम नेता अपनी छाती कूटने लगे ...

गरबा एक दुर्गा माँ की आराधना करने का त्यौहार है ....
महाभारत काल में हिडिम्बा ने माँ की आराधना के लिए अपने सर पर एक गरबा [छोटी] मटकी रखकर माँ दुर्गा की मूर्ति के चारो ओर नृत्य किया था ..

जब इन दोगले मुस्लिमो को वंदेमातरम् गाना पड़ता है तब ये कहते है की ये एंटी इस्लामिक है ... फिर एक हिन्दू पूजा में जाने पर क्या इनका इस्लाम इन्हें इजाजत देने लगा ? 

क्या शरियत के अनुसार कोई मुस्लिम किसी ऐसे पूजा पंडाल में जा सकता है जहाँ एक मूर्ति की पूजा नृत्यकला के द्वारा की जाती हो ?

असल में ये दुनिया के सबसे बड़े दोगले है ...और इनका समर्थन करने वाले दोगले हिन्दू की अम्मी किसी मुल्ले के नीचे सोती होगी
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कोई माने या न माने — परंतु सत्य है —


कोई माने या न माने — परंतु सत्य है —
चमत्कार एक ऐसा शब्द है जो लोगो को धर्म का भेद भुला देता है ।
विश्व मे चमत्कार दो प्रकार के होते है।
प्रथम जो ईश्वर दिखाता है जो प्रकृति के माध्यम से होते है ।
दूसरे वो जो भूत-प्रेत ( जिन-जिन्नात ) जैसी शक्तियों या वशीकरण मोहिनी विध्या हाथ की सफाई के द्वारा होता है ।
विश्व मे अधिकतर चमत्कार दूसरे प्रकार के होते है क्योंकि जब प्रथम प्रकार का चमत्कार होता है तो वैज्ञानिको या तथाकथित ईश्वर का मज़ाक उड़ाने वाले बुद्धि जीवियों पर उसका कोई जवाब नहीं होता । जैसे मूर्तियों का दूध पीना या जगन्नाथ मंदिर का ध्वज हवा के विपरीत लहरना आदि ।
यदि आप लोगो ने रामायण पढ़ी हो तो आप लोगो को प्रभु श्री राम जी और विभीषण की वह वार्ता भी याद होगी जिसमे प्रभु श्री राम जी विभीषण से अपनी सेना को असुरो की उड़ाने वाली विध्या सीखने को कहते है और विभीषण उसके उत्तर मे यह स्पष्ट करता है की प्रभु यह विध्या असुर ( मलेक्ष ) विध्या है जो केवल असुरो ( मलेक्षों ) के लिए ही बनी है क्योंकि इसको शूद्र (नीच ) तंत्र के द्वारा प्राप्त किया जाता है और आप और आपकी वानर सेना उच्च कुल मे आते है अंततः यह विध्या असुरों ( मलेक्षों ) के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं सीख सकता । शूद्र तंत्र वही तंत्र है जो भूत-प्रेत (जिन- जिन्नात ) आदि के माध्यम से किया जाता है।
आज के आधुनिक युग मे मुस्लिम तंत्र इसी (शूद्र तन्त्र ) का ही एक रूप है । यदि आप मुस्लिम मुल्ला-मोलवी , मज़ार या ईसाइयों की प्रार्थना सभा मे आपको तुरंत चमत्कार तो दिखेंगे परंतु जब तक आपको उसका दुष्परिणाम दिखेगा तब तक काफी विलंब हो चुकी होगी क्योंकि इनका सीधा सिद्धान्त है की इस हाथ ले और उस हाथ दे वाला हिसाब है ।
शिर्डी के साई बाबा उर्फ चाँद मियां भी दूसरी श्रेणी मे आते है उन्हे मोहिनी सिद्ध थी और बाकी तो पूरी दुनिया जानती है की उन्होने उस समय के भोले भले लोगो को वशीकरण या मोहिनी के वशीभूत करके हिंदुओं के देवी देवताओ के खुद मे दर्शन कराते थे । यह मोहिनी उनके पास मौजूद ईट मे सिद्ध थी जिसके टूटने के गम मे साई उर्फ चाँद मियां के प्राण निकल गए क्योंकि यदि वह जीवित होते तो उनकी पोल खुल जाती ।

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AAP


आम आदमी के नेताओं ओर आम आदमी पार्टी के समर्थकों से एक सवाल केजरीवाल अन्ना मुहिम में किसके कहने पर आया ओर पिछले 13 सालो से केजरीवाल दिल्ली में असिस्टेंट कमिश्नर की पोस्ट पर था उसने काग्रेस के धोटालो पर क्या पर्दाफाश किया ओर देश हित में क्या काम किया जब से बीजेपी सत्ता में आई है तब से किसके इशारे पर काम कर रहा है ओर क्यू आम आदमी के नाम से आम आदमी को उललू बना रहा है अगर आम आम आदमी के नाम से आम आदमी को उललू नही बना रहा है तो कितने आम आदमी को लोकसभा ओर बिधानसभा चुनाव लडने का टिकट दिया गया था ओर ओर आज कितने आम आदमी ईस ईस राजनिति को जानते हैं ???

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कश्मीर में है आई बाढ़, कहीं ना दिखे तीस्ता सीतलवाड


कश्मीर में है आई बाढ़, कहीं ना दिखे तीस्ता सीतलवाड

जनता नाखुश, अब्दुल्लाह उदासीन
गायब हो गए शायद मलिक, यासीन

शहर-गाँव सबकी हो रही दुर्गति, पर नज़र ना आये अरुंधति

कश्मीर की जनता हुई अशांत
और दिल्ली में स्टिंग करें भूषण, प्रशांत

आर्मी ने जनता को बचाने की है ठानी
और मुह छुपा के बैठा है गिलानी

समय पे काम जो दे, समझो उसी से सच्ची यारी है
ये साले सेक्युलर छिछोरे तो स्वार्थ ढोंग के पुजारी हैं