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विवाह में ७ फेरे ( भांवर )केवल भ्रममात्र है


स्कन्द पुराण 6.144.139
धर्मार्थकाममोक्षान् स्त्री चतुरोऽपि चतसृभि: ।
वह्निप्रदक्षिणाभिस्तान् विवाहेऽपि प्रदर्शयेत् ।।

>>>>>>विवाह में ७ फेरे ( भांवर )केवल भ्रममात्र है <<<<<<<

४ फेरे ही होने चाहिए —

आज कल विवाह में कहीं तो 7 फेरों का प्रचलन है तो कहीं 4 का ,

इस विषय पर बहुत विवाद सुनने में आ रहा है । राजस्थान, गुजरात और मिथिला आदि प्रान्तों में

कई स्थानों में 4 फेरों की परम्परा है और उत्तर प्रदेश आदि कुछ प्रान्तों के कतिपय स्थलों में 7 फेरों

की परम्परा ।
हम यहां सप्रमाण यह तथ्य प्रस्तुत करेंगे कि “फेरे कितने होने चाहिए ।
यहां एक बात ध्यान में अवश्य रखनी है कि सभी बातें शास्त्रों में ही उपलब्ध नहीं होती हैं ।

जैसे — वर वधू का मंगलसूत्र पहनाना,गले में माला धारण करवाना, वर वधू के वस्त्रों में ग्रन्थि

लगाना ( गांठ बांधना ),वर के हृदय पर दही आदि का लेपन, ऐसे बहुत से कार्य हैं जो गृह्यसूत्रों में

उपलब्ध नही हैं ।
इन सब कार्यों में कौन प्रमाण है ?
इसका उत्तर है –”अपने अपने कुल की वृद्ध महिलायें ;क्योंकि वे अपने पूर्वजों से किये गये सदाचारों

का स्मरण रखती हैं । इसलिए विवाहादि कार्यों में इनकी बात मानने का विधान शास्त्रों ने किया है ।

देखें —शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन और काण्व शाखा इन दोनों का प्रतिनिधित्व करता है –

महर्षि पारस्कर प्रणीत ” पारस्करगृह्यसूत्र”
महर्षि कहते हैं –

”ग्रामवचनं च कुर्युः”-।। 11।।

“विवाहश्मशानयोर्ग्रामं प्राविशतादिति वचनात् ‘।।12।।

“तस्मात्तयोर्ग्रामः प्रमाणमिति श्रुतेः ।।13।।

—–प्रथमकाण्ड, अष्टमी कण्डिका ।
यहां 11वें सूत्र का अर्थ “हरिहरभाष्य” में किया गया है कि

“विवाह और श्मशान सम्बन्धी कार्यों में ( ग्रामवचनं = स्वकुलवृद्धानां स्त्रीणां वाक्यं कुर्युः ) अपने

कुल की वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्य करना चाहिए ।
“गदाधरभाष्यकार”भी यही अर्थ किये हैं । इनमें कुछ बातें जैसे “मंगलसूत्र आदि” इनका उल्लेख

इसी भाष्य के आधार पर मैने किया है ।
सूत्र11 में ” च ” शब्द आया है । उससे “देशाचार, कुलाचार और जात्याचार ” का ग्रहण है ।
“चकारोऽनुक्तसमुच्चयार्थकः –च शब्द जो बातें नहीं कहीं गयी हैं -उनका संकेतक माना जाता है ।

अत एव ” च शब्दाद्देशाचारोऽपि ” –ऐसा भाष्य श्रीगदाधर जी ने लिखा ।
यहां ” अपि ” शब्द कैमुत्यन्याय से कुलाचार और जात्याचार का बोधक है ;क्योंकि विवाहादि कार्यों में

जाति और कुल के अनुसार भी आचार में भिन्नता कहीं कहीं देखने को मिलती है ।
ग्रामवचन का अर्थ “भर्तृयज्ञ ” जो कात्यायन श्रौतसूत्र के व्याख्याता हैं उन्होने लोकवचन किया है –

ऐसा गदाधर जी ने अपने भाष्य में संकेत किया है ।
इसे लोकमत या शिष्टाचार — सदाचार कहते हैं । यह भी हमारे यहां प्रमाणरूप से अंगीकृत है ।
पूर्वमीमांसा में सर्वप्रथम प्रमाणों की ही विशद चर्चा हुई है । इसलिए उस अध्याय का नाम ही

” प्रमाणाध्याय “रख दिया गया है । इसमें शिष्टाचार को प्रमाण माना गया है । शिष्ट का लक्षण वहां

निरूपित है ।

” वेदः स्मृतिः सदाचारः ” –मनुस्मृति,2/12,

तथा “श्रुतिःस्मृतिः सदाचारः “–याज्ञवल्क्य स्मृति-आचाराध्याय,7,

इन दोनों में सदाचार को धर्म में प्रमाण माना है ।
किन्तु धर्म में परम प्रमाण भगवान् वेद ही हैं । उनसे विरुद्ध समृति या सदाचार प्रमाण नही हैं ।

पूर्वमीमांसा में वेदैकप्रमाणगम्य धर्म को बतलाया गया –जैमिनिसूत्र-1/1/2/2,

पुनः ” स्मृत्यधिकरण “-1/3/1/2, से वेदमूलक स्मृतियों को धर्म में प्रमाण माना गया ।

यदि कोई स्मृति वेद से विरुद्ध है तो वह धर्म में प्रमाण नही हो सकती –यह सिद्धान्त

” विरोधाधिकरण “-1/3//2/3-4, से स्थापित किया गया ।
इसी अधिकरण में सदाचार की प्रामाणिकता को लेकर यह निश्चित किया गया कि सदाचार स्मृति से

विरुद्ध होने पर प्रमाण नही है ।
जैसे दक्षिण भारत में मामा की लड़की के साथ भांजे का विवाह आदि ;क्योंकि यह सदाचार
” मातुलस्य सुतामूढ्वा मातृगोत्रां तथैव च ।

समानप्रवरां चैव त्यक्त्वा चान्द्रायणं चरेत् । ।

इस शातातप स्मृति से विरुद्ध है ।
भागवत के 10/61/23-25 श्लोकों द्वारा इस विवाहरूपी कार्य को अधर्म बतलाया गया है ।। अस्तु।।
तात्पर्य यह कि सदाचार से उसकी ज्ञापक स्मृति का अनुमान किया जाता है और उस स्मृति से

तद्बोधक श्रुति का अनुमान । जब आचार की विरोधिनी स्मृति बैठी है तो उससे वह बाधित हो

जायेगा ।
इसी प्रकार स्मृति भी स्वतः धर्म में प्रमाण नही है अपितु वेदमूलकत्वेन ही प्रमाण है ।
स्मृति से श्रुति का अनुमान किया जाता है । जब स्मृति विरोधिनी श्रुति प्रत्यक्ष उपलब्ध है तो उससे

स्मृति बाधित हो जायेगी –
” विरोधे त्वनुपेक्षं स्यादसति ह्यनुमानम् “–पूर्वमीमांसा,1/3/2/3,
सदाचार से स्मृति और स्मृति से श्रुति का अनुमान होता है । इन तीनों में श्रुति से स्मृति और स्मृति से

सदाचार रूपी प्रमाण दुर्बल है ।
निष्कर्ष यह कि स्मृति या वेदविरुद्ध आचार प्रमाण नही है ।
अब हम यह देखेंगे कि विवाह में जो फेरे पड़ते हैं –4 या 7,

इनमें किसको स्मृति या वेद का समर्थन प्राप्त है और कौन इनसे विरुद्ध है ?
यहां यह बात ध्यान में रखनी है कि स्मृति का अर्थ केवल मनु या याज्ञवल्क्य आदि महर्षियों

से प्रणीत स्मृतियां ही नहीं अपितु सम्पूर्ण धर्मशास्त्र है —
” श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेयो धर्मशास्त्रं तु वै स्मृतिः “–2/10,

धर्मशास्त्र के अन्तर्गत स्मृतियां ,पुराण,इतिहास,कल्पसूत्र आदि आते हैं –

यह मीमांसकों का सिद्धान्त है
–– —– स्मृत्यधिकरण,1/3/1/1-2,
इसी से 4 या 7 फेरों का निश्चय हो जायेगा ।
विवाह में 4 कर्म ऐसे हैं जिनसे फेरों का सम्बन्ध है । अर्थात् उन चारों का क्रमशः सम्पादन करने के

बाद फेरे( परिक्रमा या भांवर ) का क्रम आता है । वे निम्नलिखित हैं —
1-लाजा होम—

इसमें कन्या को उसका भाई शमी के पल्लवों से मिश्रित धान के लावों को अपनी अञ्जलि से

कन्या के अञ्जलि में डालता है । कन्या उस समय खड़ी रहती है ।
यदि कन्या के भाई न हो तो यह कार्य उसके चाचा ,मामा का लड़का ,मौसी का पुत्र या फुआ

( बुआ -फूफू अर्थात् पिता की बहन ) का पुत्र आदि भी कर सकते हैं–
यह तथ्य श्रीगदाधर जी ने बहवृचकारिका को उद्धृत करके अपने भाष्य में दर्शाया है ।

पारस्करगृह्यसूत्र के प्रथम काण्ड की छठी कण्डिका में “कुमार्या भ्राता –”–1 में इसका कथन है ।
कन्या के अञ्जलि में लावा है । वर भी खड़ा होकर उसके दोनों हाथों से अपने हाथ लगाये रहता है

और कन्या खड़ी होकर ही उन लावों को मिली हुइ अञ्जलि से होम करती है –अर्यमणं देवं –

इत्यादि मन्त्रों से ।
ये तीनों मन्त्र बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । अतः इनका अर्थ प्रस्तुत किया जा रहा है –
1-अर्यमणं देवं– सूर्य देव, जो ,अग्निं –अग्निस्वरूप हैं ,उनकी वरप्राप्ति के लिए, अयक्षत –पूजा की

है,स–वे,अर्यमा देवः–भगवान् सूर्य, नो–हमें,इतः–इस पितृकुल से , प्रमुञ्चतु –छुड़ायें, किन्तु ,

पत्युः –पति से ,मा –न छुड़ायें , स्वाहा — इतना बोलकर कन्या होम करती है ।
आज इस पद्धति का विधिवत् आचरण न करने का परिणाम इतना भयंकर दिख रहा है कि

पति या तो पत्नी को छोड़ देता है अथवा पत्नी पति को ।
2-मन्त्र –” आयुष्मानस्तु मे पतिरेधन्तां ज्ञातयो मम स्वाहा।
अर्थ– मे पतिः –मेरे पति, आयुष्मानस्तु –दीर्घायु हों,और मम– मेरे ,ज्ञातयो– बन्धु बान्धव,

एधन्तां –बढ़ें ,स्वाहा बोलकर पुनः होम ।
विवाह में इस मन्त्र के छूट जाने का पहला परिणाम “पति असमय ही किसी भी कारण से

अकालमृत्यु को प्राप्त होता है । या मृत्यु जैसे कष्टकारी रोगों से आक्रान्त हो जाता है ।

और पत्नी के पतिगृह पहुंचने के कुछ समय बाद ही बंटवारे की नौबत भी आ जाती है ।

जो आजकल का तथाकथित सभ्य समाज भुगत रहा है ।
3 मन्त्र –” इमाँल्लाजानावपाम्यग्नौ समृद्धिकरणं तव । मम तुभ्य च संवननं

तदग्निरनुमन्यतामियं स्वाहा ।
हे स्वामिन् ! , तव –तुम्हारी , समृद्धिकरणं –समृद्धि करने के लिए, इमाँल्लाजान् –इन लावों को ,

अग्नौ –अग्नि में , आवपामि –मैं डाल रही हूं । मम तुभ्य च — हमारा और तुम्हारा , जो, संवननं –

पारस्परिक प्रेम है , तत् –उसका , ये, अग्निः–अग्नि देव, अनुमन्यन्ताम्—अनुमोदन करें अर्थात्

सदृढ करें , और, इयं –अग्नि की पत्नी स्वाहा भी , स्वाहा –बोलकर पुनः होम ।
इस मन्त्र से होम किया जाता है कि दाम्पत्य जीवन सदा प्रेम से संसिक्त रहे ।
पर आज जो पण्डित आधे घण्टे में विवाह करा दे उसे कई शहरों में बहुत अच्छा मानते हैं ।
इस मन्त्र से होम न करने का परिणाम है –दाम्पत्य जीवन का कलहमय होना ।
अतः विवाहोपरान्त भविष्य में आने वाले इन सभी संकटों को रोकने के लिए हमारे ऋषियों ने हमें

जो कुछ दिया । उसकी अवहेलना का परिणाम आज घर घर में किसी न किसी रूप में दिख रहा है ।
अतः वेदों के इन पद्धतियों की वैज्ञानिकता और आदर्श समाज की रचना के इन अद्भुत प्रयोगों

हमें पुनः अपनाना होगा ।
2-सांगुष्ठग्रहण–यह कर्म लाजा होम के बाद वर द्वारा किया जाता है । वह वधू का दांया हाथ

अंगूठे सहित पकड़ता है ।

और ” गृभ्णामि से शरदः शतम् ” तक मन्त्र पढ़ता है ।
इस मन्त्र से वर वधू में देवत्व का आधान होता है । तथा बहुत से पुत्रों के प्राप्ति की प्रार्थना

की गयी है ।

पुत्र वही है जो पुत् नामक नरक से तार दे -पुत् नामकात् नरकात् त्रायते इति पुत्रः ।
इस मन्त्र के छूटने का परिणाम यह है कि आज कल लड़के अपने माता पिता का जीवन

नरकमय बना रहे है । तारना तो दूर की बात है ।
3-अश्मारोहण– अग्निकुण्ड के उत्तर की ओर रखे हुए ” पत्थर ” ( लोढ़ा आदि) के समीप जाकर

वर वधू के दायें पैर को पकड़कर उस पर रखता है ।
श्रीगदाधर ने अपने भाष्य मे सप्रमाण इसका उल्लेख किया है । और मिथिला मे यह आज भी वर

द्वारा किया जाता है |

इस समय वर स्वयं मन्त्र पढ़ता है–”आरोहे से लेकर पृतनायत ” तक ।
इस मन्त्रका अर्थ है कि कन्ये !तुम इस पत्थर पर आरूढ होकर इस प्रस्तर की भांति दृढ़ हो जाओ ।

और कलह चाहने वालों को दबाकर स्थिर रहो । और उन शत्रुओं को दूर हटा दो ।
यह कर्म कन्या द्वारा आज भी U.P आदि में देखा जाता है । कन्या उस लोढ़े को पैर के अंगूठे से

प्रहार करके फेंक देती है ।
यह कर्म अद्भुत भाव से ओतप्रोत है । यह कन्या को हर विषम परिस्थितियों में अविचल भाव देने के

साथ ही शत्रुदमन की अदम्य ऊर्जा भी प्रदान करता है ।
4-गाथागान — इसमें एक मन्त्र का गान वर करता है जिसमें नारी के उदात्त व्यक्तित्व की सुन्दर

झलक है ।
5- परिक्रमा या फेरे — अब वर वधू अग्नि की परिक्रमा करते हैं । इस समय वर –

” तुभ्यमग्रे से लेकर प्रजया सह ” तक 1 मन्त्र बोलता है ।

1 परिक्रमा (फेरा ) अब पूर्ण हुई |
इसी प्रकार पुनः पूर्ववत् लाजाहोम, सांगुष्ठग्रहण, अश्मारोहण, गाथागान और 1 परिक्रमा करनी है ।

तत्पश्चात् पुनः वही लाजाहोम से लेकर 1 परिक्रमा तक पूर्वकी भांति सभी कर्म करना है ।
इसका संकेत प्रथम काण्ड की सप्तमी कण्डिका में शुक्लयजुर्वेद के सूत्रकार महर्षि पारस्कर अपने

गृह्यसूत्रमें करते हैं —
” एवं द्विरपरं लाजादि ” इसका अर्थ ” हरिहरभाष्य और गदा धरभाष्य ” दोनो में यही किया गया कि

“कुमार्या भ्राता —-” –जहां से लाजाहोम आरम्भ है वहां से परिक्रमा पर्यन्त कर्म होता है ।
अब यहां हमारे समक्ष लाजा होम से लेकर परिक्रमा पर्यन्त सभी कर्मों का ३ बार अनुष्ठान

सम्पन्न हुआ ।
जिनमें 9 बार लावों की आहुति पड़ी ;क्योंकि १ -१ लाजाहोम में ३ –३ बार कन्या ने पूर्वोक्त मन्त्रों

से आहुति दिया है ।
3 बार सांगुष्ठग्रहण, 3 बार अश्मारोहण, 3 बार गाथागान और 3परिक्रमा (फेरे ) सम्पन्न हो चुकी है ।
अब चौथी बार केवल लाजा होम और परिक्रमा ही करनी है। पर इस चौथे क्रम में पहले से कुछ

भिन्नता है ।
क्या भिन्नता ?
इसे महर्षि पारस्कर स्वयं सूत्र द्वारा दिखाते हैं —
” चतुर्थं शूर्पकुष्ठया सर्वाँल्लाजानावपति–भगाय स्वाहेति। “

—-पारस्करगृह्यसूत्र,प्रथमकाण्ड,सप्तमीकण्डिका,5,
कन्या का भाई शूर्प में जो भी लावा बचा है वह सब सूप के कोने वाले भाग से कन्या के

अञ्जलि में दे दे और कन्या सम्पूर्ण लावों को ” भगाय स्वाहा “बोलकर अग्नि में होम कर दे ।
इसके बाद मौन होकर वर और वधु अग्नि की परिक्रमा करते हैं –इसमें “सदाचार “ही प्रमाण है |
देखें हरिहरभाष्यकार लिखते है –
” ततः समाचारात्तूष्णीं चतुर्थं परिक्रमणं वधूवरौ कुरुतः “|
इसे सर्वसम्मत पक्ष बतलाते हुए गदाधर भाष्य में “वासुदेव ,गंगाधर ,हरिहर और रेणु दीक्षित जैसे

भाष्यकारों के नाम का उल्लेख श्रद्धापूर्वक किया गया है |–प्रथम काण्ड ,सप्तमी कण्डिका,६
इस प्रकार शुक्लयजुर्वेद के महर्षि पारस्कररचित ” पारस्करगृह्यसूत्र” के अनुसार विवाह में 4 फेरे

(परिक्रमा )ही प्रमाणसिद्ध है । 7 फेरे केवल भ्रममात्र हैं ।
वाराणसी से छपी पण्डितप्रवर श्रीवायुनन्दन मिश्र जी की विवाहपद्धति तथा राजस्थान के

महापण्डित चतुर्थीलाल जी की पुस्तक में भी 4 फेरों का ही उल्लेख है ।
और 4 फेरे कई प्रान्तों मे पहले बताये भी जा चुके हैं । अतः यही मान्य और शास्त्रसम्मत है ।
यदि कोई कहे कि 7 फेरों का सदाचार हमारी परम्परा में चला आ रहा है और सदाचार का प्रामाण्य

सभी ने स्वीकार किया है । अतः यह ठीक है ।
तो मैं उस व्यक्ति से यही कहूंगा कि सदाचार तभी तक प्रमाण है जब तक उसके विरुद्ध कोई

स्मृति या श्रुति न हो ।
पर यहां तो साक्षात् 4 फेरों की सिद्धि शुक्ल यजुर्वेद के ” पारस्करगृह्यसूत्र “से ही हो रही है ।

अतः इसके विपरीत 7 फेरों वाला सदाचार प्रमाण नही है ।
>>>>>>>>जय श्रीराम<<<<<<<<<

>>>>>>>>>आचार्यसियारामदास नैयायिक<<<<<<<<<<<

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SAd RAjput 57 mins · क्या ईद के दिन मस्जिदों में हिन्दू बे रोक टोक अपनी इच्छा से घूम सकते हैं??? क्या हिन्दुओं को मक्का मदीना हज में जाने की इजाजत है स्वतंत्रतापूर्व क???? नहीं ना!!! तो फिर हमारे सामाजिक धार्मिक आयोजनों में जो चाहे मुह उठा कर क्यूँ चला आये? क्या गरबा आदि कार्यकर्मो में आने वाला मुस्लिम माता नवरात्रि में श्रद्धा रखता है? क्या वो माता रानी को चुनरी प्रसाद आदि चढ़ाता है??? क्या वो माता रानी की पूजा आरती में श्रद्धा से शामिल होता है??? क्या वो माता रानी की ज्योति जलवाता है??? नहीं ना!! उसको इन सब में श्रद्धा नहीं है तो वो तो बस जहाँ सामूहिक रूप से लड़कियां इकट्ठी होती हैं वहीँ क्यूँ श्रद्धा दिखाने पहुँच जाता है??


क्या ईद के दिन मस्जिदों में हिन्दू बे
रोक टोक अपनी इच्छा से घूम सकते
हैं???
क्या हिन्दुओं को मक्का मदीना हज में
जाने की इजाजत है स्वतंत्रतापूर्व
क???? नहीं ना!!!
तो फिर हमारे सामाजिक धार्मिक
आयोजनों में जो चाहे मुह उठा कर क्यूँ
चला आये?
क्या गरबा आदि कार्यकर्मो में आने
वाला मुस्लिम माता नवरात्रि में श्रद्धा रखता है?
क्या वो माता रानी को चुनरी प्रसाद
आदि चढ़ाता है???
क्या वो माता रानी की पूजा आरती में
श्रद्धा से शामिल होता है???
क्या वो माता रानी की ज्योति जलवाता है??? नहीं ना!!
उसको इन सब में श्रद्धा नहीं है
तो वो तो बस जहाँ सामूहिक रूप से
लड़कियां इकट्ठी होती हैं वहीँ क्यूँ
श्रद्धा दिखाने पहुँच जाता है??

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नरेन्द्र मोदी के दस अवगुण


नरेन्द्र मोदी के दस अवगुण
संजय बेंगाणी द्वारा कम शब्दों में खरी-खरी बात

दो-तीन दिन गहन विचार किया कि आखिर क्या वजह है कि तीन उद्योगपतियों के (मोदी को प्रधानमंत्री बनने लायक व्यक्ति ) कहने मात्र से ही जबरदस्त विरोध दर्ज हो रहा है, यहाँ तक कि उन उद्योगपतियों द्वारा संचालित कम्पनियों के फोन एक दिन के बन्द रखने का अभियान भी चलाया जा रहा है. ऐसे में प्रखर बुद्धिजीवियों को जिन सम्भावित नामों पर आपत्ति नहीं है, उनके साथ तुलनात्मक अध्ययन करने पर कुछ ऐसे दस अवगुण सामने आए जो मोदी में है.

नरेन्द्र मोदी के वे खास अवगुण जिनकी वजह से वे प्रधानमंत्री पद के लिए सर्वथा अनुपयुक्त है. और जिन्हे लायक माना जा रहा है, उनमें यह मौजूद है….

1.नेता ऐसा हो जो भाई समान हो:
मोदी अपने जन्म दिन पर चोथ नहीं उगाहते. यह भी कोई बात हुई, जब नेता खुद जनता को नौच नौच नहीं खाएगा, निचले स्तर के लोगो को मौका कैसे मिलेगा? हमे ऐसा नेता चाहिए जो खुद भी खाए और दुसरों को भी खाने दे. वहीं मोदी कहते है, न खाऊँगा, न खाने दुंगा. ऐसा “रूखा” आदमी प्रधानमंत्री पद के लिए सर्वथा अनुपयुक्त है. चुंकि हमें खिलाने-पिलाने वाला “लूखा” नेता चाहिए, इसलिए मोदी नहीं चाहिए.

2.नेता ऐसा हो जो जाति का कल्याण करे:
नेता ऐसा हो जो राज्य या देश का न होकर किसी जाति विशेष का हो. अपनी जाति का भला करे, आरक्षण दे, नोकरियाँ दे. जाति विशेष का मसीहा बन कर वोट माँगे. मोदी कभी जात-पात पर वोट नहीं माँगते, ऐसे जातिहंता को सत्ता क्यों दें? चुंकि हमें तो जातिवादी नेता चाहिए, इसलिए मोदी नहीं चाहिए.

3.नेता ऐसा हो जो पानी-बिजली-सड़क देने का वादा करे और करता रहे:
हम चाहते है, सड़क-पानी-बिजली का मुद्दा सदा चुनावी मूद्दा बना रहे. और सौ साल तक इस पर वोट देते रहें. मोदी के राज्य में ये तीनों चीजे ही चुनावी मुद्दा नहीं होती. क्योंकि वहाँ तीनों की ही हालत बेहतर है. अब ऐसा नेता ही किस कामका जो रटे रटाए मूद्दे ही खत्म कर दें. चूंकि हमें वादे करने वाला नेता चाहिए, इसलिए मोदी नहीं चाहिए.

4.नेता ऐसा हो जो जवाँ मर्द हो:
हमें ऐसा मर्द नेता चाहिए जो बेशर्मी से नौ नौ बच्चे पैदा कर देश के परिवार नियोजन अभियान की हवा निकाल सके. मोदी क्या खाक बच्चे पैदा करेंगे. ऐसा घर-बार छोड़ देने वाला नेता हमें नहीं चाहिए. चूंकि हमें मीडिया की आँखों का तारा, चारा-चोर चाहिए, इसलिए मोदी नहीं चाहिए.

5.नेता ऐसा हो जो अपने परिवार से प्रेम करे:
हमें ऐसा नेता चाहिए जिसके मन में परिवार के प्रति भारी लगाव हो. अपने पूरे खानदान को यहाँ वहाँ सेट कर भला कर सके. पत्नी बेटों को मुख्यमंत्री बना सके. राज्य/देश को अपने बाप की जागीर समझ देखभाल कर सके. ऐसा मोदी नहीं चाहिए जिसकी माताजी एक साधारण से सरकारी क्वाटर में रहे और भाई सरकारी नोकरी बजाए. जो आदमी अपने माँ-भाई का भला न कर सके उसे प्रधानमंत्री कैसे बनाया जा सकता है? चुंकि हमें जागीरदार चाहिए, इसलिए मोदी नहीं चाहिए.

6.नेता ऐसा हो जो दोनो हाथों से दान करे:
हमें ऐसा नेता चाहिए जो मुफ्त में बिजली दे, टीवी और सायकिल बाँटे. दारू और पैसे बाँटे. उलटा मोदी ने तो बिजली चोरों पर अंकुश लगा दिया है. यह अधर्म है, अगर अल्पसंख्यक भाई इससे ज्यादा प्रभावित होते हैं तो यह सर्वथा अनुचित है. ऐसा निर्दयी व्यक्ति प्रधानमंत्री न ही बने तो अच्छा है. चुंकि हमें अदूरदर्शी मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाला नेता चाहिए, इसलिए मोदी नहीं चाहिए.

7.नेता ऐसा हो जो वफादार हो:
हमें ऐसा नेता चाहिए जिसका जनाधार न हो, वह लोकप्रिय न हो. जिसे जनता चुने वह भी कोई नेता हुआ? नेता ऐसा हो जो थोपा जाय. वह देश के प्रति नहीं राजपरिवार के प्रति निष्ठावान हो. मोदी जनप्रिय नेता है. तीन-तीन बार मुख्यमंत्री बने और तय है जनता उन्हे चौथी बार भी चुनेंगी. ऐसा नेता हमें नहीं चाहिए जो न मेडम को, न मीडिया को पसन्द हो. चुंकि हमें थोपे गए चापलूस नेता चाहिए, इसलिए मोदी नहीं चाहिए.

8.नेता ऐसा हो जो अल्पसंख्यको का हितैशी हो:
हमें ऐसा नेता नहीं चाहिए जो दंगे फसाद का टंटा खत्म कर विकास के लिए राह बनाएं, हमें ऐसा नेता चाहिए जो अल्पसंख्यको को संरक्षण दे दे कर उन्हे पंगू बना दे. चुंकि हमें तुष्टिकरण को बढावा देने वाला देशद्रोही नेता चाहिए, इसलिए मोदी नहीं चाहिए.

9.नेता ऐसा हो जो शान्तचित्त हो:
नेता ऐसा हो जो कहीं भी कभी भी सो सके और नौकरशाही को अपने अनुसार काम करने दे. ऐसा नेता किस काम का जो दीर्घावधि की योजनाएं बनाए, फिर दिन में 16-16 घंटे काम करे और नौकरशाही पर अंकुश लगा कर उनसे भी काम करवाए. हमें भगवान भरोसे देश को छोड़ शांति से सोने वाला नेता चाहिए, इसलिए मोदी नहीं चाहिए.

10.नेता हो तो गाँधी हो:
सबसे बड़ा कारण ऐसा अवगुण है जो करोड़ों भारतीयों में भी है, कि वे किसी खास गाँधी परिवार में पैदा नहीं हुए. वे मोदी है, गाँधी नहीं. चुंकि हमें लोकतंत्र में राजतंत्र का आनन्द लेने से वंचित नहीं होना, इसलिए मोदी नहीं चाहिए.

http://www.tarakash.com/joglikhi/?p=792

नरेन्द्र मोदी के दस अवगुण संजय बेंगाणी द्वारा कम शब्दों में खरी-खरी बात दो-तीन दिन गहन विचार किया कि आखिर क्या वजह है कि तीन उद्योगपतियों के (मोदी को प्रधानमंत्री बनने लायक व्यक्ति ) कहने मात्र से ही जबरदस्त विरोध दर्ज हो रहा है, यहाँ तक कि उन उद्योगपतियों द्वारा संचालित कम्पनियों के फोन एक दिन के बन्द रखने का अभियान भी चलाया जा रहा है. ऐसे में प्रखर बुद्धिजीवियों को जिन सम्भावित नामों पर आपत्ति नहीं है, उनके साथ तुलनात्मक अध्ययन करने पर कुछ ऐसे दस अवगुण सामने आए जो मोदी में है. नरेन्द्र मोदी के वे खास अवगुण जिनकी वजह से वे प्रधानमंत्री पद के लिए सर्वथा अनुपयुक्त है. और जिन्हे लायक माना जा रहा है, उनमें यह मौजूद है…. 1.नेता ऐसा हो जो भाई समान हो: मोदी अपने जन्म दिन पर चोथ नहीं उगाहते. यह भी कोई बात हुई, जब नेता खुद जनता को नौच नौच नहीं खाएगा, निचले स्तर के लोगो को मौका कैसे मिलेगा? हमे ऐसा नेता चाहिए जो खुद भी खाए और दुसरों को भी खाने दे. वहीं मोदी कहते है, न खाऊँगा, न खाने दुंगा. ऐसा “रूखा” आदमी प्रधानमंत्री पद के लिए सर्वथा अनुपयुक्त है. चुंकि हमें खिलाने-पिलाने वाला “लूखा” नेता चाहिए, इसलिए मोदी नहीं चाहिए. 2.नेता ऐसा हो जो जाति का कल्याण करे: नेता ऐसा हो जो राज्य या देश का न होकर किसी जाति विशेष का हो. अपनी जाति का भला करे, आरक्षण दे, नोकरियाँ दे. जाति विशेष का मसीहा बन कर वोट माँगे. मोदी कभी जात-पात पर वोट नहीं माँगते, ऐसे जातिहंता को सत्ता क्यों दें? चुंकि हमें तो जातिवादी नेता चाहिए, इसलिए मोदी नहीं चाहिए. 3.नेता ऐसा हो जो पानी-बिजली-सड़क देने का वादा करे और करता रहे: हम चाहते है, सड़क-पानी-बिजली का मुद्दा सदा चुनावी मूद्दा बना रहे. और सौ साल तक इस पर वोट देते रहें. मोदी के राज्य में ये तीनों चीजे ही चुनावी मुद्दा नहीं होती. क्योंकि वहाँ तीनों की ही हालत बेहतर है. अब ऐसा नेता ही किस कामका जो रटे रटाए मूद्दे ही खत्म कर दें. चूंकि हमें वादे करने वाला नेता चाहिए, इसलिए मोदी नहीं चाहिए. 4.नेता ऐसा हो जो जवाँ मर्द हो: हमें ऐसा मर्द नेता चाहिए जो बेशर्मी से नौ नौ बच्चे पैदा कर देश के परिवार नियोजन अभियान की हवा निकाल सके. मोदी क्या खाक बच्चे पैदा करेंगे. ऐसा घर-बार छोड़ देने वाला नेता हमें नहीं चाहिए. चूंकि हमें मीडिया की आँखों का तारा, चारा-चोर चाहिए, इसलिए मोदी नहीं चाहिए. 5.नेता ऐसा हो जो अपने परिवार से प्रेम करे: हमें ऐसा नेता चाहिए जिसके मन में परिवार के प्रति भारी लगाव हो. अपने पूरे खानदान को यहाँ वहाँ सेट कर भला कर सके. पत्नी बेटों को मुख्यमंत्री बना सके. राज्य/देश को अपने बाप की जागीर समझ देखभाल कर सके. ऐसा मोदी नहीं चाहिए जिसकी माताजी एक साधारण से सरकारी क्वाटर में रहे और भाई सरकारी नोकरी बजाए. जो आदमी अपने माँ-भाई का भला न कर सके उसे प्रधानमंत्री कैसे बनाया जा सकता है? चुंकि हमें जागीरदार चाहिए, इसलिए मोदी नहीं चाहिए. 6.नेता ऐसा हो जो दोनो हाथों से दान करे: हमें ऐसा नेता चाहिए जो मुफ्त में बिजली दे, टीवी और सायकिल बाँटे. दारू और पैसे बाँटे. उलटा मोदी ने तो बिजली चोरों पर अंकुश लगा दिया है. यह अधर्म है, अगर अल्पसंख्यक भाई इससे ज्यादा प्रभावित होते हैं तो यह सर्वथा अनुचित है. ऐसा निर्दयी व्यक्ति प्रधानमंत्री न ही बने तो अच्छा है. चुंकि हमें अदूरदर्शी मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाला नेता चाहिए, इसलिए मोदी नहीं चाहिए. 7.नेता ऐसा हो जो वफादार हो: हमें ऐसा नेता चाहिए जिसका जनाधार न हो, वह लोकप्रिय न हो. जिसे जनता चुने वह भी कोई नेता हुआ? नेता ऐसा हो जो थोपा जाय. वह देश के प्रति नहीं राजपरिवार के प्रति निष्ठावान हो. मोदी जनप्रिय नेता है. तीन-तीन बार मुख्यमंत्री बने और तय है जनता उन्हे चौथी बार भी चुनेंगी. ऐसा नेता हमें नहीं चाहिए जो न मेडम को, न मीडिया को पसन्द हो. चुंकि हमें थोपे गए चापलूस नेता चाहिए, इसलिए मोदी नहीं चाहिए. 8.नेता ऐसा हो जो अल्पसंख्यको का हितैशी हो: हमें ऐसा नेता नहीं चाहिए जो दंगे फसाद का टंटा खत्म कर विकास के लिए राह बनाएं, हमें ऐसा नेता चाहिए जो अल्पसंख्यको को संरक्षण दे दे कर उन्हे पंगू बना दे. चुंकि हमें तुष्टिकरण को बढावा देने वाला देशद्रोही नेता चाहिए, इसलिए मोदी नहीं चाहिए. 9.नेता ऐसा हो जो शान्तचित्त हो: नेता ऐसा हो जो कहीं भी कभी भी सो सके और नौकरशाही को अपने अनुसार काम करने दे. ऐसा नेता किस काम का जो दीर्घावधि की योजनाएं बनाए, फिर दिन में 16-16 घंटे काम करे और नौकरशाही पर अंकुश लगा कर उनसे भी काम करवाए. हमें भगवान भरोसे देश को छोड़ शांति से सोने वाला नेता चाहिए, इसलिए मोदी नहीं चाहिए. 10.नेता हो तो गाँधी हो: सबसे बड़ा कारण ऐसा अवगुण है जो करोड़ों भारतीयों में भी है, कि वे किसी खास गाँधी परिवार में पैदा नहीं हुए. वे मोदी है, गाँधी नहीं. चुंकि हमें लोकतंत्र में राजतंत्र का आनन्द लेने से वंचित नहीं होना, इसलिए मोदी नहीं चाहिए. http://www.tarakash.com/joglikhi/?p=792
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2जी घोटाले2g gotal


पूर्व सीएजी विनोद राय ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस के तीन तत्कालीन सांसदों पर 1.76 लाख करोड़ के 2जी घोटाले को लेकर बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं।

राय के मुताबिक मनमोहन सिंह को 2जी घोटाले की पूरी जानकारी थी, लेकिन वह इस पर मौन... http://navbharattimes.indiatimes.com/india/national-india/sanjay-nirupam-ashwini-kumar-sandeep-dixit-pressurised-me-to-keep-pm-out-of-2g-former-cag-vinod-rai/articleshow/42280686.cms

पूर्व सीएजी विनोद राय ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस के तीन तत्कालीन सांसदों पर 1.76 लाख करोड़ के 2जी घोटाले को लेकर बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं।

राय के मुताबिक मनमोहन सिंह को 2जी घोटाले की पूरी जानकारी थी, लेकिन वह इस पर मौन…http://navbharattimes.indiatimes.com/india/national-india/sanjay-nirupam-ashwini-kumar-sandeep-dixit-pressurised-me-to-keep-pm-out-of-2g-former-cag-vinod-rai/articleshow/42280686.cms

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पक्षियों में श्रेष्ठ हंस को माना जाता है।


पक्षियों में श्रेष्ठ हंस को माना जाता है। हिन्दू धर्म में इसे बहुत विवेकी और शांत चित्त पक्षी माना गया है। हंस पक्षी प्यार और पवित्रता का प्रतीक है। कहते हैं कि यह पानी और दूध को अलग करने की क्षमता रखता है। यह विद्या की देवी सरस्वती का वाहन है। इसका मूल निवास स्थान कैलाश मानसरोवर है। ये पक्षी अपना ज्यादातर समय मानसरोवर में रहकर ही बिताते हैं या फिर किसी एकांत झील और समुद्र के किनारे।

यह पक्षी दांप‍त्य जीवन के लिए आदर्श है। ये जीवनभर एक ही पार्टनर के साथ रहते हैं। यदि दोनों में से किसी भी एक पार्टनर की मौत हो जाए तो दूसरा अपना पूरा जीवन अकेले ही गुजार या गुजार देती है। जंगल के कानून की तरह इनमें मादा पक्षियों के लिए लड़ाई नहीं होती। आपसी समझबूझ के बल पर ये अपने साथी का चयन करते हैं। इनमें पारिवारिक और सामाजिक भावनाएं पाई जाती हैं।

सफेद रंग के अलावा काले रंग के हंस ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं। हिन्दू धर्म में हंस को मारना अर्थात पिता, देवता और गुरु को मारने के समान है। ऐसे व्यक्ति को तीन जन्म तक नर्क में रहना होता है।

परमहंस : जब कोई व्यक्ति सिद्ध हो जाता है तो उसे कहते हैं कि इसने हंस पद प्राप्त कर लिया और जब कोई समाधिस्थ हो जाता है, तो कहते हैं कि वह परमहंस हो गया। परमहंस सबसे बड़ा पद माना गया है।

आध्यात्मिक दृष्टि से मनुष्य के नि:श्वास में ‘हं’ और श्वास में ‘स’ ध्वनि सुनाई पड़ती है। मनुष्य का जीवन क्रम ही ‘हंस’ है, क्योंकि उसमें ज्ञान का अर्जन संभव है। अत: हंस ‘ज्ञान’ विवेक, कला की देवी सरस्वती का वाहन है।

पक्षियों में हंस एक ऐसा पक्षी है, जहां देव आत्माएं आश्रय लेती हैं। यह उन आत्माओं का ठिकाना है जिन्होंने अपने ‍जीवन में पुण्य-कर्म किए हैं और जिन्होंने यम-नियम का पालन किया है। कुछ काल तक हंस योनि में रहकर आत्मा अच्छे समय का इंतजार कर पुन: मनुष्य योनि में लौट आती है या फिर वह देवलोक चली जाती है।

हंस योग : हंस योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार बृहस्पति अर्थात गुरु यदि किसी कुंडली में लग्न से अथवा चन्द्रमा से केंद्र के घरों में स्थित हों अर्थात बृहस्पति यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में कर्क, धनु अथवा मीन राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में हंस योग बनता है जिसका शुभ प्रभाव जातक को सुख, समृद्धि, संपत्ति, आध्यात्मिक विकास तथा कोई आध्यात्मिक शक्ति भी प्रदान कर सकता है।

हंस योग वैदिक ज्योतिष में वर्णित एक अति शुभ तथा दुर्लभ योग है तथा इसके द्वारा प्रदान किए जाने वाले शुभ फल प्रत्येक 12वें व्यक्ति में देखने को नहीं मिलते जिसके कारण यह कहा जा सकता है कि केवल बृहस्पति की कुंडली के किसी घर तथा किसी राशि विशेष के आधार पर ही इस योग के निर्माण का निर्णय नहीं किया जा सकता तथा किसी कुंडली में हंस योग के निर्माण के कुछ अन्य नियम भी होते हैं।

पक्षियों में श्रेष्ठ हंस को माना जाता है। हिन्दू धर्म में इसे बहुत विवेकी और शांत चित्त पक्षी माना गया है। हंस पक्षी प्यार और पवित्रता का प्रतीक है। कहते हैं कि यह पानी और दूध को अलग करने की क्षमता रखता है। यह विद्या की देवी सरस्वती का वाहन है। इसका मूल निवास स्थान कैलाश मानसरोवर है। ये पक्षी अपना ज्यादातर समय मानसरोवर में रहकर ही बिताते हैं या फिर किसी एकांत झील और समुद्र के किनारे। 

यह पक्षी दांप‍त्य जीवन के लिए आदर्श है। ये जीवनभर एक ही पार्टनर के साथ रहते हैं। यदि दोनों में से किसी भी एक पार्टनर की मौत हो जाए तो दूसरा अपना पूरा जीवन अकेले ही गुजार या गुजार देती है। जंगल के कानून की तरह इनमें मादा पक्षियों के लिए लड़ाई नहीं होती। आपसी समझबूझ के बल पर ये अपने साथी का चयन करते हैं। इनमें पारिवारिक और सामाजिक भावनाएं पाई जाती हैं।

सफेद रंग के अलावा काले रंग के हंस ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं। हिन्दू धर्म में हंस को मारना अर्थात पिता, देवता और गुरु को मारने के समान है। ऐसे व्यक्ति को तीन जन्म तक नर्क में रहना होता है।

परमहंस : जब कोई व्यक्ति सिद्ध हो जाता है तो उसे कहते हैं कि इसने हंस पद प्राप्त कर लिया और जब कोई समाधिस्थ हो जाता है, तो कहते हैं कि वह परमहंस हो गया। परमहंस सबसे बड़ा पद माना गया है।

आध्यात्मिक दृष्टि से मनुष्य के नि:श्वास में 'हं' और श्वास में 'स' ध्वनि सुनाई पड़ती है। मनुष्य का जीवन क्रम ही 'हंस' है, क्योंकि उसमें ज्ञान का अर्जन संभव है। अत: हंस 'ज्ञान' विवेक, कला की देवी सरस्वती का वाहन है।

पक्षियों में हंस एक ऐसा पक्षी है, जहां देव आत्माएं आश्रय लेती हैं। यह उन आत्माओं का ठिकाना है जिन्होंने अपने ‍जीवन में पुण्य-कर्म किए हैं और जिन्होंने यम-नियम का पालन किया है। कुछ काल तक हंस योनि में रहकर आत्मा अच्छे समय का इंतजार कर पुन: मनुष्य योनि में लौट आती है या फिर वह देवलोक चली जाती है।

हंस योग : हंस योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार बृहस्पति अर्थात गुरु यदि किसी कुंडली में लग्न से अथवा चन्द्रमा से केंद्र के घरों में स्थित हों अर्थात बृहस्पति यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में कर्क, धनु अथवा मीन राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में हंस योग बनता है जिसका शुभ प्रभाव जातक को सुख, समृद्धि, संपत्ति, आध्यात्मिक विकास तथा कोई आध्यात्मिक शक्ति भी प्रदान कर सकता है। 

हंस योग वैदिक ज्योतिष में वर्णित एक अति शुभ तथा दुर्लभ योग है तथा इसके द्वारा प्रदान किए जाने वाले शुभ फल प्रत्येक 12वें व्यक्ति में देखने को नहीं मिलते जिसके कारण यह कहा जा सकता है कि केवल बृहस्पति की कुंडली के किसी घर तथा किसी राशि विशेष के आधार पर ही इस योग के निर्माण का निर्णय नहीं किया जा सकता तथा किसी कुंडली में हंस योग के निर्माण के कुछ अन्य नियम भी होते हैं।
Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

मुलेठी (यष्टीमधु ) –


मुलेठी (यष्टीमधु ) -
      मुलेठी से हम सब परिचित हैं | भारतवर्ष में इसका उत्पादन कम ही होता है | यह अधिकांश रूप से विदेशों से आयातित की जाती है| मुलेठी की जड़ एवं सत सर्वत्र बाज़ारों में पंसारियों के यहाँ मिलता है | चरकसंहिता में रसायनार्थ यष्टीमधु का प्रयोग विशेष रूप से वर्णित है | सुश्रुत संहिता में यष्टिमधु फल का प्रयोग विरेचनार्थ मिलता है | मुलेठी रेशेदार,गंधयुक्त तथा बहुत ही उपयोगी होती है | यह ही एक ऐसी वस्तु है जिसका सेवन किसी भी मौसम में किया जा सकता है | मुलेठी वातपित्तशामक है | यह खाने में ठंडी होती है | इसमें ५० प्रतिशत पानी होता है | इसका मुख्य घटक ग्लीसराइज़ीन है जिसके कारण ये खाने में मीठा होता है | इसके अतिरिक्त इसमें घावों को भरने वाले विभिन्न घटक भी मौजूद हैं | मुलेठी खांसी,जुकाम,उल्टी व पित्त को बंद करती है | यह पेट की जलन व दर्द,पेप्टिक अलसर तथा इससे होने वाली खून की उल्टी में भी बहुत उपयोगी है | 
                           आज हम आपको मुलेठी के कुछ औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे -

१- मुलेठी चूर्ण और आंवला चूर्ण २-२ ग्राम की मात्रा में मिला लें | इस चूर्ण को दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह- शाम चाटने से खांसी में बहुत लाभ होता है |

२- मुलेठी-१० ग्राम 
     काली मिर्च -१० ग्राम 
     लौंग    -०५ ग्राम 
      हरड़   -०५ ग्राम
     मिश्री - २० ग्राम 
     ऊपर दी गयी सारी सामग्री को मिलाकर पीस लें | इस चूर्ण में से एक चम्मच चूर्ण सुबह शहद के साथ चाटने से पुरानी खांसी और जुकाम,गले की खराबी,सिर दर्द आदि रोग दूर हो जाते हैं | 

३- एक चम्मच मुलेठी का चूर्ण एक कप दूध के साथ लेने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है | 

४- मुलेठी को मुहं में रखकर चूंसने से मुहँ के छाले मिटते हैं तथा स्वर भंग (गला बैठना) में लाभ होता है | 

५- एक चम्मच मुलेठी चूर्ण में शहद मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पेट और आँतों की ऐंठन व दर्द का शमन होता है | 

६- फोड़ों पर मुलेठी का लेप लगाने से वो जल्दी पक कर फूट जाते हैं |

मुलेठी (यष्टीमधु ) –
मुलेठी से हम सब परिचित हैं | भारतवर्ष में इसका उत्पादन कम ही होता है | यह अधिकांश रूप से विदेशों से आयातित की जाती है| मुलेठी की जड़ एवं सत सर्वत्र बाज़ारों में पंसारियों के यहाँ मिलता है | चरकसंहिता में रसायनार्थ यष्टीमधु का प्रयोग विशेष रूप से वर्णित है | सुश्रुत संहिता में यष्टिमधु फल का प्रयोग विरेचनार्थ मिलता है | मुलेठी रेशेदार,गंधयुक्त तथा बहुत ही उपयोगी होती है | यह ही एक ऐसी वस्तु है जिसका सेवन किसी भी मौसम में किया जा सकता है | मुलेठी वातपित्तशामक है | यह खाने में ठंडी होती है | इसमें ५० प्रतिशत पानी होता है | इसका मुख्य घटक ग्लीसराइज़ीन है जिसके कारण ये खाने में मीठा होता है | इसके अतिरिक्त इसमें घावों को भरने वाले विभिन्न घटक भी मौजूद हैं | मुलेठी खांसी,जुकाम,उल्टी व पित्त को बंद करती है | यह पेट की जलन व दर्द,पेप्टिक अलसर तथा इससे होने वाली खून की उल्टी में भी बहुत उपयोगी है |
आज हम आपको मुलेठी के कुछ औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे –

१- मुलेठी चूर्ण और आंवला चूर्ण २-२ ग्राम की मात्रा में मिला लें | इस चूर्ण को दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह- शाम चाटने से खांसी में बहुत लाभ होता है |

२- मुलेठी-१० ग्राम
काली मिर्च -१० ग्राम
लौंग -०५ ग्राम
हरड़ -०५ ग्राम
मिश्री – २० ग्राम
ऊपर दी गयी सारी सामग्री को मिलाकर पीस लें | इस चूर्ण में से एक चम्मच चूर्ण सुबह शहद के साथ चाटने से पुरानी खांसी और जुकाम,गले की खराबी,सिर दर्द आदि रोग दूर हो जाते हैं |

३- एक चम्मच मुलेठी का चूर्ण एक कप दूध के साथ लेने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है |

४- मुलेठी को मुहं में रखकर चूंसने से मुहँ के छाले मिटते हैं तथा स्वर भंग (गला बैठना) में लाभ होता है |

५- एक चम्मच मुलेठी चूर्ण में शहद मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पेट और आँतों की ऐंठन व दर्द का शमन होता है |

६- फोड़ों पर मुलेठी का लेप लगाने से वो जल्दी पक कर फूट जाते हैं |

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यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।


यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।-
अथर्ववेद जिस कुल में नारियों कि पूजा, अर्थात सत्कार
होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण, दिव्य भोग और उत्तम
संतान होते हैं और जिस कुल में
स्त्रियों कि पूजा नहीं होती,
वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं। आज से दस हजार साल पहले आर्य या कहें कि वैदिक
काल में नारी की स्थिति क्या थी यह सभी के
लिए विचारणीय हो सकता है। नारी की स्थित
से समाज और देश के सांस्कृतिक और बौद्धिक स्तर
का पता चलता है। यदि नारी को धर्म, समाज
और पुरुष के नियमों में बांधकर रखा गया है तो उसकी स्थिति बदतर ही मानी जा सकती है। किंतु जिन्होंने वेद-गीता पढ़े हैं वे अच्छी तरह
जानते हैं कि दस हजार वर्ष पूर्व जबकि मानव
जंगली था, आर्य पूर्णत: एक सभ्य समाज में बदल चुके
थे। तभी तो वेदों में
जो नारी की स्थिति का वर्णन है उससे
पता चलता है कि उनकी स्थिति आज के समाज से कहीं अधिक आदरणीय और स्वतंत्रतापूर्ण थी। नारी की स्थिति : 1.वैदिक काल में कोई भी धार्मिक कार्य नारी की उपस्थिति के बगैर शुरू नहीं होता था।
उक्त काल में यज्ञ और धार्मिक प्रार्थना में
यज्ञकर्ता या प्रार्थनाकर्ता की पत्नी का होना आवश्यक
माना जाता था। 2.नारियों को धर्म और राजनीति में भी पुरुष के समान ही समानता हासिल थी। वे वेद पढ़ती थीं और पढ़ाती भी थीं। मैत्रेयी,
गार्गी जैसी नारियां इसका उदाहरण है। ऋग्वेद
की ऋचाओं में लगभग 414 ऋषियों के नाम मिलते हैं
जिनमें से 30 नाम महिला ऋषियों के हैं।
यही नहीं नारियां युद्ध कला में भी पारंगत
होकर राजपाट भी संभालती थी। 3.शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि नारी नर की आत्मा का आधा भाग है। नारी के बिना नर
का जीवन अधूरा है इस अधूरेपन को दूर करने और
संसार को आगे चलाने के लिए
नारी का होना जरूरी है। नारी को वैदिक युग में
देवी का दर्जा प्राप्त था। 4.ऋग्वेद में वैदिक काल में नारियां बहुत विदुषी और नियम पूर्वक अपने पति के साथ मिलकर
कार्य करने वाली और पतिव्रत धर्म का पालन
करने वाली होती थी।
पति भी पत्नी की इच्छा और
स्वतंत्रता का सम्मान करता था। 5.वैदिक काल में वर तलाश करने के लिए वधु की इच्छा सर्वोपरि होती थी। फिर
भी कन्या पिता की इच्छा को भी महत्व
देती थी। यदि पिता को कन्या के योग्यवर
नहीं लगता था तो वह
पिता की मर्जी को भी स्वीकार करती थीं। 6.बहुत-सी नारियां यदि अविवाहित रहना चाहती थीं तो अपने पिता के घर में सम्मान
पूर्वक रहती थी। वह घर परिवार के हर कार्य में
साथ देती थी। पिता की संम्पति में
उनका भी हिस्सा होता था। 7.सनातन वैदिक हिन्दू धर्म में जहां पुरुष के रूप में देवता और भगवानों की पूजा-
प्रार्थना होती थी वहीं देवी के रूप में
मां सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा का वर्णन
मिलता है। वैदिक काल में नारियां मां, देवी,
साध्वी, गृहिणी, पत्नी और बेटी के रूप में
ससम्मान पूजनीय मानी जाती थीं।

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।-
अथर्ववेद जिस कुल में नारियों कि पूजा, अर्थात सत्कार
होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण, दिव्य भोग और उत्तम
संतान होते हैं और जिस कुल में
स्त्रियों कि पूजा नहीं होती,
वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं। आज से दस हजार साल पहले आर्य या कहें कि वैदिक
काल में नारी की स्थिति क्या थी यह सभी के
लिए विचारणीय हो सकता है। नारी की स्थित
से समाज और देश के सांस्कृतिक और बौद्धिक स्तर
का पता चलता है। यदि नारी को धर्म, समाज
और पुरुष के नियमों में बांधकर रखा गया है तो उसकी स्थिति बदतर ही मानी जा सकती है। किंतु जिन्होंने वेद-गीता पढ़े हैं वे अच्छी तरह
जानते हैं कि दस हजार वर्ष पूर्व जबकि मानव
जंगली था, आर्य पूर्णत: एक सभ्य समाज में बदल चुके
थे। तभी तो वेदों में
जो नारी की स्थिति का वर्णन है उससे
पता चलता है कि उनकी स्थिति आज के समाज से कहीं अधिक आदरणीय और स्वतंत्रतापूर्ण थी। नारी की स्थिति : 1.वैदिक काल में कोई भी धार्मिक कार्य नारी की उपस्थिति के बगैर शुरू नहीं होता था।
उक्त काल में यज्ञ और धार्मिक प्रार्थना में
यज्ञकर्ता या प्रार्थनाकर्ता की पत्नी का होना आवश्यक
माना जाता था। 2.नारियों को धर्म और राजनीति में भी पुरुष के समान ही समानता हासिल थी। वे वेद पढ़ती थीं और पढ़ाती भी थीं। मैत्रेयी,
गार्गी जैसी नारियां इसका उदाहरण है। ऋग्वेद
की ऋचाओं में लगभग 414 ऋषियों के नाम मिलते हैं
जिनमें से 30 नाम महिला ऋषियों के हैं।
यही नहीं नारियां युद्ध कला में भी पारंगत
होकर राजपाट भी संभालती थी। 3.शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि नारी नर की आत्मा का आधा भाग है। नारी के बिना नर
का जीवन अधूरा है इस अधूरेपन को दूर करने और
संसार को आगे चलाने के लिए
नारी का होना जरूरी है। नारी को वैदिक युग में
देवी का दर्जा प्राप्त था। 4.ऋग्वेद में वैदिक काल में नारियां बहुत विदुषी और नियम पूर्वक अपने पति के साथ मिलकर
कार्य करने वाली और पतिव्रत धर्म का पालन
करने वाली होती थी।
पति भी पत्नी की इच्छा और
स्वतंत्रता का सम्मान करता था। 5.वैदिक काल में वर तलाश करने के लिए वधु की इच्छा सर्वोपरि होती थी। फिर
भी कन्या पिता की इच्छा को भी महत्व
देती थी। यदि पिता को कन्या के योग्यवर
नहीं लगता था तो वह
पिता की मर्जी को भी स्वीकार करती थीं। 6.बहुत-सी नारियां यदि अविवाहित रहना चाहती थीं तो अपने पिता के घर में सम्मान
पूर्वक रहती थी। वह घर परिवार के हर कार्य में
साथ देती थी। पिता की संम्पति में
उनका भी हिस्सा होता था। 7.सनातन वैदिक हिन्दू धर्म में जहां पुरुष के रूप में देवता और भगवानों की पूजा-
प्रार्थना होती थी वहीं देवी के रूप में
मां सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा का वर्णन
मिलता है। वैदिक काल में नारियां मां, देवी,
साध्वी, गृहिणी, पत्नी और बेटी के रूप में
ससम्मान पूजनीय मानी जाती थीं।
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रंडी के कोठो की दीवारों पर भी इतनी कालिख नही होगी जितनी लोकतंत्र ले चौथे कहे जाने वाले स्तम्भ पर !!!


रंडी के कोठो की दीवारों पर भी इतनी कालिख नही होगी जितनी लोकतंत्र ले चौथे कहे जाने वाले स्तम्भ पर !!!
पुते नाखूनों से दांत में फंसे रोषटेट के रेशे कुरेदती नाजुक उंगलिया तब नही उठी जब १४ अगस्त को पाकिस्तान जिंदाबाद हिन्दुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाये लगे ???

ये नाजुक उंगलिया अपने टूटते बालो को हटाती हुयी तब नही उठी जब कश्मीरी हिन्दुओ के घर फूंके गये ???

षड्यंत्र के साधन महंगे मोबाईल की टच को टच करती ये नाजुक लम्बी गोरी उंगलिया तब नही उठी जब कश्मीरी पंडितो की महिलाओ की इज्जत को तार तार करके बीच चौराहे नग्न किया गया ???

मिडिया के नुमाइंदे वहाँ जाकर चिल्ल पौ मचा रहे हैं कि देखिये ” जहाँ मोदी की मदद नही पहुंच पायी वहाँ सबसे पहले पहुंचा दुनिया का सबसे तेज न्यूज चैनल ” घंटा न्यूज ” , अबे वहाँ हरे कीड़ो के लिए राहत सामग्री लेकर गये ???

इनकी गंदी भद्दी लम्बी हिनहिनायी ( मेहँदी ) दाढी में कैमरे को ज़ूम करके ज़ूम दिखाने वालो , जरा यह भी देखते कि कोई कश्मीरी हिन्दू बचा हैं वहाँ ???

अबे इनका था क्या जो बह गया ???
इनका था क्या जिसका मुआवजा मांग रहे हैं ???
इनका था क्या जिसके नाम पर छातियो के सांप लौट रहे हैं ???
जो भी चैनल देख लो ……जो भी चैनल !!!

सब पर साले सूअर मंडराते हुये तैरते हुए दिखायी देंगे !!! कुछ तो इतने अहमक के बीज हैं कि अब्बा का बन गया मुरब्बा , अम्मी का बन गया अप्पा चप्पा डब्बा मगर जैसे ही कैमरा सामने आया तो साले ने हाथ ऐसे हिलाया जैसे वहाँ राहत सामग्री बांट कर अभिवादन स्वीकार कर रहा हो ???

दुःख इसी बात का हैं मित्रो कि जो कल तक हमारे भारत को मुर्दाबाद कहा करता था आज वही मुर्दे हमारे भारत में हमारे खून पसीने की कमाई से जिलाए जा रहे हैं !!!

उसके बाद भी साले कुछ सूअर हमारे जवानो पर पत्थर बाजी कर रहे हैं जबकि कुदरत ने इस बार सबसे सुनहरा अवसर प्रदान किया था ऐसे गद्दारों को जमीदोज करने का !!!
मगर कहे कौन ???

मेरी सबसे बड़ी दिक्कत यही हैं कि मैं अपने निःशब्द एहसास लिखता हूँ मगर लोग अल्फाज पढ़ते हैं , एहसास नही समझते !!!

वन्देमातरम

Posted in जीवन चरित्र

स्वामी विवेकानंदा


सच बोलने की हिम्मत
स्वामी विवेकानंदा प्रारंभ से ही एक मेधावी छात्र थे और सभी उनके व्यक्तित्व और वाणी से प्रभावित रहते थे. जब वो साथी छात्रों से कुछ बताते तो सब मंत्रमुग्ध हो उन्हें सुनते. एक दिन इंटरवल के दौरान वो कक्षा में कुछ मित्रों को कहानी सुना रहे थे , सभी उनकी बातें सुनने मेंइतने मग्न थे की उन्हें पता ही नहीं चला की कब मास्टर जी कक्षा में आये और पढ़ाना शुरू कर दिया.मास्टर जी ने अभी पढ़ना शुरू ही किया था कि उन्हें कुछ फुसफुसाहटसुनाई दी.” कौन बात कर रहा है ?” उन्होंने तेज आवाज़ में पूछा . सभी ने स्वामी जी और उनके साथ बैठे छात्रों किई तरफ इशारा कर दिया.मास्टर जी तुरंत क्रोधित हो गए, उन्होंने तुरंत उन छात्रों को बुलाया और पाठ से संबधित एक प्रश्न पूछने लगे. जब कोई भी उत्तर न दे सका ,तब अंत में मास्टरजी ने स्वामी जी से भी वही प्रश्न किया . पर स्वामी जी तो मानो सब कुछ पहले से ही जानते हों, उन्होंने आसानी से उत्तर दे दिया.यह देख उन्हें यकीन हो गया कि स्वामी जी पाठ पर ध्यान दे रहे थेऔर बाकी छात्र बात-चीत में लगे हुए थे. फिर क्या था उन्होंने स्वामी जी को छोड़ सभी को बेंच परखड़े होने की सजा दे दी . सभी छात्र एक -एक कर बेच पर खड़े होने लगे, स्वामी जे ने भी यही किया.तब मास्टर जी बोले, ” नरेन्द्र (स्वामी विवेकानंद )) तुम बैठ जाओ.”” नहीं सर , मुझे भी खड़ा होना होगा क्योंकि वो मैं ही था जो इन छात्रों से बात कर रहा था.”,स्वामी जी ने आग्रह किया.
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अपने मर्द के हत्यारे को कुर्सी के लिये सजा नही दिलाई


हिन्दुस्तान "हिन्दुराष्ट्र"'s photo.
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अपने मर्द के हत्यारे
को कुर्सी के लिये सजा नही दिलाई
तो उस के लिये हम आप और देश क्या मायने
रखता है
ये है झारखंड (रांची) के कृषि मंत्री
”योगेंद्र साव”
इनके ऊपर आरोप है की ……
ये नक्सली संगठन चलाते है और हत्या की
सुपारी व लेवी वसूलते है….
2001 के बेलतू में हुए नरसंहार में योगेंद्र साव
के शामिल
होने की बात भी सामने आई है ……
रांची से सटे हजारीबाग जिले के बेलतू में
हथियारबंद माओवादियों ने
13 लोगों को मार डाला था ……
बताया जाता है कि ग्रामीणों का सिर काटने के
बाद नक्सलियों ने उससे फुटबॉल खेला था …..
झारखंड बनने के बाद राज्य
में सामूहिक हत्या की
यह सबसे पहली घटना थी ……
न्यायालय के रिकॉर्ड में बेलतू नरसंहार में
शामिल
द्वारिका सिंह और बिगन तुरी समेत
कई माओवादियों के बयान दर्ज हैं …..
इन बयानों में योगेंद्र साव के भी नरसंहार में
शामिल होने की बात कही गई है …
कोर्ट के रिकॉर्ड में दर्ज इन बयानों के
सावर्जनिक होने
के बाद यह खुलासा हुआ ……
वहीं, योगेंद्र साव ने इसे साजिश बताया है ……

नेताओ का ये पुराना सगल है …..
जब आरोप लगे तो साजिस बता दे और
जब आरोप सिद्ध हो जाए
तो ”हार्ट अटैक” की बीमारी बता दे ……
वाह रे बेसर्मो ……
क्या इस अपराधी मंत्री को कांग्रेस पार्टी से
बाहर करेगी ….?????