Posted in राजनीति भारत की - Rajniti Bharat ki

नयायालय ने भ्रस्टाचारी सोनिया गाँधी की घनिष्ट मित्र जयललिता को 4 साल की जेल और 100 करोड का जुर्माना ठोँका । और इसके 4 नजदीकियोँ को भी 10 – 10 का जुर्माना लगाया।

Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

स्वदेशी की टीम के बाद अब इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी कहा सर्दी-जुकाम और बुखार में दवाइयां देना बंद करो। कृपया शेयर करना ना भूलिए।


स्वदेशी की टीम के बाद अब इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी कहा सर्दी-जुकाम और बुखार में दवाइयां देना बंद करो। कृपया शेयर करना ना भूलिए।

स्वदेशी की टीम पहले से ही इन विदेशी दवाइयों के खिलाफ मुहीम चला रही है। अपनी पिछली पोस्ट्स में हमने लोगों से अधिक से अधिक आयुर्वेदिक दवाइयां प्रयोग करने तथा अंग्रेजी दवाओं का बहिष्कार करने की अपील की थी। अब IMA ने भी माना की छोटी बिमारियों में विदेशी एंटीबायोटिक्स फायदे से ज्यादा नुकसान करती है। तथा अब उन्होंने देशभर के डॉक्टरों से एंटीबायोटिक प्रेस्क्राइब नहीं करने की अपील की है।

आज तक के अनुसार देश में जिस तरह से ऐंटीबॉयोटिक्स का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है उससे चिंतित इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) अब एक नया अभियान चलाने जा रही है. इस रविवार को संस्था देशभर के डॉक्टरों से कहेगी कि वे सर्दी-जुकाम और बुखार में दवाइयां देना बंद कर दें।

एक अंग्रेजी पत्र के मुताबिक आईएमए एक राष्ट्रीय जागरुकता कार्यक्रम चलाने जा रही है जिसके तहत डॉक्टरों से कहा जाएगा कि वे इन बीमारियों के लिए दवाएं नहीं लिखें। दरअसल इन दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल से ड्रग रेसिस्टेंस बढ़ता जा रहा है और दवाइयों का असर घटता जा रहा है। संस्था के महासचिव डॉक्टर नरेन्दर सैनी ने कहा कि पिछले दो दशकों में किसी भी नए एंटीबॉयोटिक की खोज नहीं हुई है और बैक्टीरिया आम इस्तेमाल होने वाली दवाइयों के असर से मुक्त है। यानी अब उस पर इन दवाइयों का असर नहीं पड़ता है। हालात बिगड़ते जा रहे हैं और एक ऐसा दिन भी आएगा कि साधारण सा इंफेक्शन भी खतरनाक हो जाएगा।

अब आईएमए रविवार को जनरैली तथा लेक्चर देने की योजना बना रही है ताकि लोगों में जागृति पैदा हो और वे दवाओं के इस्तेमाल से बचें। आईएमए के सदस्य देश भर के ढाई लाख डॉक्टर हैं।

कई शोधों से पता चला है कि देश में इस तरह की दवाइयों की अंधाधुंध बिक्री हो रही है। उनके बारे में लोगों को कोई भी जानकारी नहीं है। वे नहीं जानते कि एंटीबायोटिक दवाओं का कैसे इस्तेमाल किया जाये। दुनिया में सबसे ज्यादा एंटीबॉयोटिक दवाएं भारत में बिकती हैं और उसके दुष्परिणाम अब सामने आ रहे हैं। हालत यह है कि कई बड़ी बीमारियों में भी अब दवाइयां काम नहीं करतीं क्योंकि बैक्टीरिया इनकी आदी हो चुका है।

http://aajtak.intoday.in/story/stop-prescribing-medicine-in-cold-and-fever-ima-1-781652.html
स्वदेशी अपनाओ देश बचाओ।

हमारी इस मुहीम से जुड़ने के लिए पेज को लाइक कीजिये और देश की प्रगति में भागीदार बनिये।
https://www.facebook.com/arvindsharma.bjp.5

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स्वदेशी की टीम पहले से ही इन विदेशी दवाइयों के खिलाफ मुहीम चला रही है। अपनी पिछली पोस्ट्स में हमने लोगों से अधिक से अधिक आयुर्वेदिक दवाइयां प्रयोग करने तथा अंग्रेजी दवाओं का बहिष्कार करने की अपील की थी। अब IMA ने भी माना की छोटी बिमारियों में विदेशी एंटीबायोटिक्स फायदे से ज्यादा नुकसान करती है। तथा अब उन्होंने देशभर के डॉक्टरों से एंटीबायोटिक प्रेस्क्राइब नहीं करने की अपील की है।

आज तक के अनुसार देश में जिस तरह से ऐंटीबॉयोटिक्स का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है उससे चिंतित इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) अब एक नया अभियान चलाने जा रही है. इस रविवार को संस्था देशभर के डॉक्टरों से कहेगी कि वे सर्दी-जुकाम और बुखार में दवाइयां देना बंद कर दें।

एक अंग्रेजी पत्र के मुताबिक आईएमए एक राष्ट्रीय जागरुकता कार्यक्रम चलाने जा रही है जिसके तहत डॉक्टरों से कहा जाएगा कि वे इन बीमारियों के लिए दवाएं नहीं लिखें। दरअसल इन दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल से ड्रग रेसिस्टेंस बढ़ता जा रहा है और दवाइयों का असर घटता जा रहा है। संस्था के महासचिव डॉक्टर नरेन्दर सैनी ने कहा कि पिछले दो दशकों में किसी भी नए एंटीबॉयोटिक की खोज नहीं हुई है और बैक्टीरिया आम इस्तेमाल होने वाली दवाइयों के असर से मुक्त है। यानी अब उस पर इन दवाइयों का असर नहीं पड़ता है। हालात बिगड़ते जा रहे हैं और एक ऐसा दिन भी आएगा कि साधारण सा इंफेक्शन भी खतरनाक हो जाएगा।

अब आईएमए रविवार को जनरैली तथा लेक्चर देने की योजना बना रही है ताकि लोगों में जागृति पैदा हो और वे दवाओं के इस्तेमाल से बचें। आईएमए के सदस्य देश भर के ढाई लाख डॉक्टर हैं।

कई शोधों से पता चला है कि देश में इस तरह की दवाइयों की अंधाधुंध बिक्री हो रही है। उनके बारे में लोगों को कोई भी जानकारी नहीं है। वे नहीं जानते कि एंटीबायोटिक दवाओं का कैसे इस्तेमाल किया जाये। दुनिया में सबसे ज्यादा एंटीबॉयोटिक दवाएं भारत में बिकती हैं और उसके दुष्परिणाम अब सामने आ रहे हैं। हालत यह है कि कई बड़ी बीमारियों में भी अब दवाइयां काम नहीं करतीं क्योंकि बैक्टीरिया इनकी आदी हो चुका है।

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Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

जामा मस्जिद


जामा मस्जिद से बुखारी परिवार का एकाधिकार खत्म होना चाहिये ! दिल्ली के चावड़ी बाजार में स्थित जामा मस्जिद हिंदुस्तान की सबसे बड़ी औ सुंदर मस्जिद है. सन 1656 में जब यह बनकर तैयार हुई तो कहा जाता है कि मुगल बादशाह शाहजहां प्रसन्न होने के साथ-साथ चिंतित भी थे. उन्हें समझ में नहीं आता था कि इस भव्य मस्जिद का इमाम किसे बनाया जाए. शाहजहां की इच्छा थी कि इस विशेष मस्जिद का इमाम भी विशेष हो. एक ऐसा इंसान जो पवित्र, ज्ञानी, और हर लिहाज़ से श्रेष्ठ हो. उज्बेकिस्तान के बुखारा शाह ने शाहजहां को एक ऐसे ही व्यक्ति के बारे में बताया. इसके बाद शाहजहां के बुलावे पर उज्बेकिस्तान के बुखारा से आए सैयद अब्दुल गफ्फूर शाह बुखारी जामा मस्जिद के पहले इमाम बने. उन्हें उस वक्त इमाम-उल-सल्तनत की उपाधि दी गई. आज उसी परिवार के सैयद अहमद बुखारी जामा मस्जिद के 13वें इमाम हैं.

सैयद अब्दुल गफ्फूर शाह बुखारी को जामा मस्जिद का पहला इमाम बनाते वक्त शाहजहां को जरा भी इल्म नहीं होगा कि उस पवित्र व्यक्ति की आने वाली किसी पीढ़ी और जामा मस्जिद के भावी इमाम पर इमामत छोड़कर सियासत करने, जामा मस्जिद का दुरुपयोग करने, इसके आस-पास के इलाके में लगभग समानांतर सरकार चलाने की कोशिश करने और कानून को अपनी जेब में रखकर घूमने जैसे आरोप लगाए जाएंगे.

18 मई, 2013 को दिल्ली की एक अदालत ने सन 2004 में सामाजिक कार्यकर्ता अरशद अली फहमी के घर पर जानलेवा हमला कराने के आरोप में इमाम अहमद बुखारी को गिरफ्तार करके पेश करने का आदेश जारी किया. हालांकि इमाम अहमद बुखारी के लिए यह कोई नई बात नहीं है. इससे पहले भी कई मौकों पर अदालतें उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दे चुकी हैं. मगर वे कभी अदालत में पेश नहीं हुए.

इससे जरा ही पहले जामा मस्जिद के बिजली बिल का विवाद भी सामने आया था. जामा मस्जिद पर चार करोड़ रुपये के करीब बिजली बिल बकाया है. इमाम का कहना है कि इस बिल को भरना वक्फ बोर्ड की जिम्मेदारी है. जबकि वक्फ बोर्ड का कहना था कि चूंकि मस्जिद और उसके सभी संसाधनों पर इमाम बुखारी का नियंत्रण है और इससे उन्हें जबरदस्त आमदनी होती है इसलिए बिजली बिल भी उन्हें ही भरना चाहिए.

बिल्कुल हाल ही की बात करें तो इमाम बुखारी उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और पिछले से पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा का साथ देने के बाद अब राष्ट्रीय लोक दल के शीर्ष नेताओं के साथ बैठकें कर रहे हैं. जानकारों के मुताबिक समाजवादी पार्टी से उनकी नाराजगी की वजह उनके निकट रिश्तेदारों को प्रदेश सरकार में महत्वपूर्ण ओहदे नहीं दिया जाना है.

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि बुखारी परिवार की यात्रा आज से करीब साढे़ तीन दशक पहले तक बिना किसी विवाद के चली आ रही थी. सैकड़ों सालों से. इस पवित्र परिवार के राजनीति में हस्तक्षेप करने की शुरुआत वर्तमान इमाम के पिता अब्दुल्ला बुखारी के कार्यकाल में हुई जिसने अहमद बुखारी तक आते-आते हर तरह की सीमाओं को लांघ दिया. आज हालत यह है कि इमाम अहमद बुखारी राजनीति में अवसरवादिता की हद तक जाने के अलावा और भी तमाम तरह के गंभीर आरोपों के दायरे में हैं.

बुखारी परिवार के वर्तमान को समझने के लिए करीब 36 साल पहले के उसके अतीत में चलते हैं. सन 1977 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ फतवा देकर मुसलमानों से जनता पार्टी को समर्थन देने की अपील वह पहली घटना थी जिसने जामा मस्जिद के इमाम का एक दूसरा पक्ष लोगों के सामने रखा. धार्मिक गुरु के इस राजनीतिक फतवे से भारतीय राजनीति में जो हलचल पैदा हुई वह आगे जाकर और बढ़ने वाली थी. इससे पहले तक इमाम और राजनीति के बीच सिर्फ दुआ-सलाम का ही रिश्ता हुआ करता था. सन 1977 की इस घटना के बाद जामा मस्जिद राजनीति का एक प्रमुख केंद्र बन गया. अब यहां राजनेता तत्कालीन इमाम से राजनीति के दांव-पेंचों पर चर्चा करते देखे जा सकते थे. जैसे-जैसे मस्जिद में राजनीतिक चर्चा के लिए आनेवाले नेताओं की संख्या बढ़ती गई वैसे-वैसे यहां शुक्रवार को होने वाले इमाम के संबोधनों का राजनीतिक रंग भी गाढ़ा होता गया. ‘कांग्रेस लाई फिल्मी मदारी, हम लाए इमाम बुखारी’ जैसे नारे 1977 की उस चुनावी फिजा में खूब गूंजे जो बुखारी की भूमिका और प्रभाव को स्पष्ट करने के लिए काफी थे.

कई मौकों पर अदालतें बुखारी को गिरफ्तार करने का आदेश दे चुकी हैं. लेकिन पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने की कभी हिम्मत नहीं कर पाई चुनाव में इंदिरा गांधी हार गईं और जनता पार्टी की सरकार बनी. इंदिरा की हार का कारण चाहे जो रहा हो लेकिन इसने इमाम को अपनी मजबूत राजनीतिक हैसियत के भाव से सराबोर कर दिया. 1977 के बाद अगले आम चुनावों में इमाम अब्दुल्ला बुखारी ने जनता पार्टी के बजाय इंदिरा के लिए समर्थन का फतवा जारी किया. उन्होंने कहा कि इंदिरा ने जामा मस्जिद से अपने किए की माफी मांग ली है इसलिए हम उनका समर्थन कर रहे हैं.

खैर चुनाव हुआ और उसमें इंदिरा विजयी रहीं. जानकार बताते हैं कि इन दो चुनावों के कारण इमाम अब्दुल्ला बुखारी की ऐसी छवि बन गई कि वे जिसे चाहें उसे जितवा सकते हैं. उस दौर के गवाह रहे लोग बताते हैं कि यहीं से मुसलमानों को रिझाने के लिए बड़े-बड़े राजनेता जामा मस्जिद शीश नवाने पहुंचने लगे.

जानकारों का एक वर्ग मानता है कि इमाम अब्दुल्ला बुखारी ने अधिकांश मौकों पर हवा का रुख देखकर फतवा जारी किया. मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं वरिष्ठ पत्रकार सलीम अख़्तर सिद्दीकी कहते हैं, ’77 में आपातकाल में हुईं ज्यादतियों को लेकर कांग्रेस के प्रति लोगों में जबरदस्त रोष था. खासकर मुसलमान जबरन नसबंदी को लेकर बहुत ज्यादा नाराज थे. ऐसे में यदि अब्दुल्ला बुखारी कांग्रेस को वोट देने की अपील करते तो मुसलमान उनकी बात नहीं सुनते. ऐसा ही 1980 के चुनाव में भी हुआ. इस चुनाव में अब्दुल्ला बुखारी ने देखा कि आपातकाल की जांच के लिए गठित शाह आयोग द्वारा इंदिरा गांधी से घंटों पूछताछ की वजह से इंदिरा गांधी के प्रति देश की जनता में हमदर्दी पैदा हो रही है. उन्होंने मुसलमानों से कांग्रेस को वोट देने की अपील कर दी. यही बात 1989 के लोकसभा चुनावों में भी दोहराई गई.’
खैर, पार्टियों की जीत का कारण चाहे जो रहा हो लेकिन इन चुनाव परिणामों ने धीरे-धीरे इमाम के राजनीतिक प्रभुत्व को स्थापित किया और छोटे-बड़े राजनेता और राजनीतिक दल जामा मस्जिद के सामने कतारबंद होते चले गए. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इमाम बनने के बाद एक लंबे समय तक सैय्यद अब्दुल्ला बुखारी राजनीति से जुड़ी हर चीज से दूर रहे थे. लंबे समय से बुखारी परिवार को देखने वाले और अब्दुल्ला बुखारी के बेहद नजदीक रहे उर्दू अखबार सेक्यूलर कयादत के संपादक कारी मुहम्मद मियां मजहरी कहते हैं, ‘अब्दुल्ला बुखारी राजनीतिक तबीयत वाले व्यक्ति हैं लेकिन उनके अब्बा सियासी आदमी नहीं थे. यही कारण है कि जब तक वे जिंदा रहे तब तक अब्दुल्ला बुखारी राजनीति से दूर रहे. लेकिन अब्बा के इंतकाल के बाद उन्होंने इमामत के साथ ही सियासत में भी हाथ आजमाना शुरू कर दिया.’
ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद सैयद शहाबुद्दीन कहते हैं, ‘यहीं से जामा मस्जिद का राजनीतिक स्वार्थ के लिए प्रयोग शुरू हुआ. अब्दुल्ला बुखारी के बाद उनके बेटे अहमद बुखारी ने इस नकारात्मक परंपरा को न सिर्फ आगे बढ़ाया बल्कि और मजबूत किया.’ अब्दुल्ला बुखारी द्वारा जामा मस्जिद के राजनीतिक दुरुपयोग का एक उदाहरण देते हुए शहाबुद्दीन कहते हैं, ‘इंदिरा गांधी के जमाने में जब वे बतौर प्रधानमंत्री 15 अगस्त को लालकिले से भाषण दिया करती थीं तो उसको कांउटर करते हुए जामा मस्जिद से अब्दुल्ला बुखारी ने भाषण देना शुरू कर दिया था. ये पहली बार था. जब लालकिले से पीएम के भाषण के खिलाफ कोई उसके सामने स्थित जामा मस्जिद से हुंकार भर रहा था.’

बुखारी परिवार के राजनीति में हस्तक्षेप करने की शुरुआत वर्तमान इमाम के पिता अब्दुल्ला बुखारी के कार्यकाल में हुई पिता के सामने राजनेताओं को रेंगते और हाथ जोड़कर आशीर्वाद देने की अपील करते नेताओं को देखकर अहमद बुखारी को भी धीरे-धीरे जामा मस्जिद और उसके इमाम की धार्मिक और राजनीतिक हैसियत का अहसास होता चला गया. ऐसे में अहमद बुखारी भी पिता की छत्रछाया में राजनीति को नियंत्रित करने की अपनी महत्वाकांक्षा के साथ सियासी मैदान में कूद पड़े. 1980 में अहमद बुखारी ने आदम सेना नामक एक संगठन बनाया. इसका प्रचार एक ऐसे संगठन के रूप में किया गया जो मुसलमानों की अपनी सेना थी और हर मुश्किल में, खासकर सांप्रदायिक शक्तियों के हमले की स्थिति में, उनकी रक्षा करेगी. लेकिन बुखारी के तमाम प्रयासों के बाद भी इस संगठन को आम मुसलमानों का समर्थन नहीं मिला. वरिष्ठ पत्रकार वदूद साजिद कहते हैं, ‘मुस्लिम समाज की तरफ से इस सेना को ना में जवाब मिला. समर्थन न मिलता देख अहमद बुखारी ने इस योजना को वहीं दफन कर दिया.’

जानकार बताते हैं कि बुखारी की यह सेना भले ही समर्थन के ऑक्सीजन के अभाव में चल बसी लेकिन उसने अन्य सांप्रदायिक शक्तियों के लिए खाद-पानी का काम जरूर किया. उस समय संघ परिवार के लोग यह कहते पाए गए कि देखिए, भारतीय मुसलमान अपनी अलग सेना बना रहा है. हिंदू धर्म और हिंदुओं पर खतरे की बात चारों तरफ प्रचारित की गई. ऐसा कहते हैं कि बजरंग दल के गठन के पीछे की एक बड़ी वजह आदम सेना भी थी.

सन 2000 में अहमद बुखारी जामा मस्जिद के इमाम बने. एक भव्य समारोह में उनकी दस्तारबंदी की गई. तब अहमद बुखारी पर इस बात का भी आरोप लगा कि उन्होंने अपने पिता से जबरन अपनी दस्तारबंदी करवाई है. नाम न छापने की शर्त पर परिवार के एक करीबी व्यक्ति कहते हैं, ‘उन्हें अपनी दस्तारबंदी कराने की हड़बड़ी इसलिए थी कि उन्हें लगता था कि यदि इससे पहले उनके वालिद का इंतकाल हो जाता है तो कहीं उनके भाई भी इमाम बनने का सपना ना देखने लगें.’ दस्तारबंदी के कार्यक्रम में मौजूद लोग भी बताते हैं कि कैसे उस कार्यक्रम में बड़े इमाम अर्थात अब्दुल्ला बुखारी को जामा मस्जिद तक एंबुलेंस में लाया गया था. उन्हें स्ट्रेचर पर मस्जिद के अंदर ले जाया गया था.

खैर, अहमद बुखारी जामा मस्जिद के इमाम बन गए. इमाम बनने के बाद बुखारी ने पहली घोषणा एक राजनीतिक दल बनाने की की. बुखारी का उस समय बयान था, ‘हम इस देश में सिर्फ वोट देने के लिए नहीं हैं, कि वोट दें और अगले पांच साल तक प्रताड़ित होते रहें. हम मुसलमानों की एक अलग राजनीतिक पार्टी बनाएंगे.’ एक राजनेता कहते हैं, ‘बड़े इमाम साहब के समय में भी नेता उनके पास वोट मांगने जाते थे लेकिन वो वोट के बदले कौम की भलाई करने की बात करते थे. लेकिन इन इमाम साहब के समय में ये हुआ है कि नेता वोट के बदले क्या और कितना लोगे जैसी बातें करने लगे.’ बुखारी परिवार को बेहद करीब से जानने वाले वरिष्ठ स्तंभकार फिरोज बख्त अहमद कहते हैं, ‘वर्तमान इमाम के पिता बेहद निडर और ईमानदार आदमी हुआ करते थे. समाज में उनका प्रभाव था, स्वीकार्यता थी, विश्वसनीयता थी लेकिन इनके साथ ऐसा नहीं रहा.’

खैर, समय बढ़ने के साथ ही अहमद बुखारी के राजनीतिक हस्तक्षेप की कहानी और गहरी व विवादित होती गई. उन पर यह आरोप लगने लगा कि वे व्यक्तिगत फायदे के लिए किसी भी राजनीतिक दल का समर्थन कर सकते हैं. राजनीतिक-सामाजिक गलियारों में यह बात बहुत तेजी से फैल गई कि बुखारी के समर्थन की एक ‘कीमत’ है जिसे चुकाकर बेहद आराम से कोई भी उनका फतवा अपने पक्ष में जारी करा सकता है.

इसे समझने के लिए 2012 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में बुखारी की भूमिका को देखा जा सकता है. चुनाव में अहमद बुखारी ने समाजवादी पार्टी को समर्थन देने की बात की. यह भी उल्लेखनीय है कि प्रदेश में 2007 के विधानसभा चुनावों और 2009 के लोकसभा चुनावों में बुखारी ने सपा का विरोध किया था. कुछ समय पहले तक सपा को सांप्रदायिक पार्टी बताने वाले इमाम साहब ने जब मुलायम को समर्थन का एलान किया तभी इस बात की चर्चा चारों ओर शुरू हो गई थी कि इसके बदले इमाम साहब क्या चाहते हैं? अभी लोग कयास लगा ही रहे थे कि पता चला कि इमाम साहब के दामाद उमर अली खान को सहारनपुर की बेहट विधानसभा सीट से सपा ने अपना उम्मीदवार बना दिया है.

लेकिन चुनाव के बाद जो परिणाम आया वह बेहद भयानक था. सपा ने जिन इमाम साहब से यह सोचकर समर्थन मांगा था कि इससे उप्र के मुसलमान पार्टी से जुड़ेंगे उन्हीं के दामाद चुनाव हार गए. और वह भी एक ऐसी सीट से जहां कुल वोटरों में से 80 फीसदी मुसलमान थे. और उस सीट से लड़ने वाले प्रत्याशियों में एकमात्र उमर ही मुसलमान थे. दामाद के हार जाने के बाद भी अहमद बुखारी ने हार नहीं मानी. उन्होंने उमर को विधान परिषद का सदस्य बनवा दिया. बाद में जब उन्होंने दामाद को मंत्री और भाई को राज्य सभा सीट देने की मांग की तो उसे मुलायम ने मानने से इनकार कर दिया. बस फिर क्या था. अहमद बुखारी और सपा का एक साल पुराना संबंध खत्म हो गया. बुखारी के दामाद ने विधान परिषद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. मीडिया और आम लोगों ने जब इमाम साहब से इस संबंध विच्छेद का कारण पूछा तो वे यह कहते पाए गए कि यूपी में सपा सरकार मुसलमानों के साथ धोखा कर रही है. सरकार का एक साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है लेकिन अभी तक उसने मुसलमानों के कल्याण के लिए कुछ नहीं किया. उल्टे मुसलमान सपा सरकार में और अधिक प्रताड़ित हो रहे हैं.

खैर, इधर इमाम साहब मुस्लिमों के साथ अन्याय करने का सपा पर आरोप लगा रहे थे तो दूसरी तरफ सपा के लोग उन्हें भाजपा का दलाल तथा सरकार को ब्लैकमेल करने वाला करार दे रहे थे. मुसलमानों के साथ अन्याय के आरोप पर सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान का तंज भरा बयान यह आया कि मुलायम सिंह यादव को अहमद बुखारी की बात मान लेनी चाहिए थी क्योंकि ‘भाई को राज्य सभा और दामाद को लाल बत्ती मिल जाती तो मुसलमानों की सारी परेशानियां दूर हो जातीं.’

सपा से अलग होने के कुछ समय बाद ही बुखारी ने मुलायम सिंह यादव के गृह जनपद इटावा में ‘अधिकार दो रैली’ की. उस रैली में इमाम साहब बहुजन समाजवादी पार्टी पर डोरे डालते नज़र आए. जिन मायावती में कुछ समय पहले तक उन्हें तमाम कमियां दिखाई देती थीं उनकी शान में कसीदे पढ़ते हुए उन्होंने कहा कि मुल्क में अगर कोई हुकूमत करना जानता है तो वह मायावती ही हैं. सपा सरकार ने राज्य के मुसलमानों को न सिर्फ छला है बल्कि उन्हें असुरक्षा की भावना का शिकार भी बना दिया है. हम उम्मीद करते हैं कि उन्होंने (मायावती ने) जिस तरह से दलितों का वोट हासिल करके दलितों का उद्धार किया है उसी तरह अब मुसलमानों का भी भला करेंगी.’
यह कहानी हमें बताती है कि बुखारी किस तरह से क्षण में समर्थन और दूसरे ही पल में विरोध की राजनीति में पारंगत रहे हैं और यह सब मुस्लिम समाज के हितों के नाम पर किया जाता रहा है. अहमद बुखारी की इमामत का दौर ऐसे ढेरों उदाहरणों से भरा पड़ा है.

इमाम अहमद बुखारी की इमामत और सियासत के बीच आवाजाही उनके साथ बाकी लोगों के लिए भी काफी पहले ही एक सामान्य बात हो चुकी थी. लेकिन आम मुसलमानों के साथ ही बाकी लोगों में उस समय हड़कंप मच गया जब 2004 के लोकसभा चुनावों में इमाम साहब ने मुसलमानों से भाजपा को वोट देने की अपील कर डाली.

लोगों को वह समय याद आ रहा था जब 2002 में गुजरात दंगों के बाद बुखारी भाजपा के खिलाफ हुंकार भर रहे थे. तब तक के अपने तमाम भाषणों में वे बाबरी मस्जिद के टूटने और मुसलमानों के मन में समाए डर के लिए भाजपा और संघ को जिम्मेदार बताते रहते थे. वे बताते थे कि कैसे भाजपा और संघ परिवार भारत में मुसलमानों के अस्तित्व के ही खिलाफ हैं.

बुखारी से जब भाजपा को समर्थन देने का कारण पूछा गया था तो उनका कहना था, ‘भाजपा की नई सोच को हमारा समर्थन है. बाबरी मस्जिद की शहादत कांग्रेस के शासनकाल में हुई लेकिन क्या कांंग्रेस ने इसके लिए कभी माफी मांगी? गुजरात दंगों के मामले में भी क्या कांग्रेस ने दंगा प्रभावित मुसलमानों के पुनर्वास के लिए कुछ किया है? भाजपा ने तो कम से कम गुजरात दंगों के लिए दुख व्यक्त किया है और वो अयोध्या मामले में भी कानून का सामना कर रही है.’ उस समय इमाम बुखारी यह कहते भी पाए गए थे, ‘हर गुजरात के लिए कांग्रेस के पास एक मुरादाबाद है, जहां ईद के दिन मुसलमानों को मारा गया और अगर उन्होंने भाजपा की तरफ से की गई इस शुरुआत का जवाब नहीं दिया होता तो बातचीत का दरवाजा हमेशा के लिए बंद हो जाता. मुसलमानों को जेहाद, हिजरत (पलायन) और सुलह के बीच चुनाव करना है. मुझे लगता है कि इस वक्त सुलह सबसे अच्छा विकल्प है.’

परिवार को करीब से जानने वाले बताते हैं कि इस 360 डिग्री वाले हृदय परिवर्तन के पीछे मुस्लिम समाज की चिंता और बेहतरी के बजाय परिवार का दबाव था. परिवार के एक सदस्य ने अहमद बुखारी के ऊपर चुनावों में भाजपा को समर्थन देने का दबाव बनाया था. इस शख्स का नाम है याह्या बुखारी.

याह्या अहमद बुखारी के छोटे भाई है. यहां यह उल्लेखनीय है कि जब इमाम अब्दुल्ला बुखारी ने अहमद बुखारी की दस्तारबंदी की उस समय याह्या चाहते थे कि नायब इमाम का जो पद अहमद बुखारी संभालते थे वह उन्हें दे दिया जाए. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अहमद बुखारी ने इसके लिए मुगल परंपरा का हवाला दिया जिसके मुताबिक अभी तक इमाम के बेटे को ही नायब इमाम बनाने की पंरपरा चली आ रही थी. उस समय की अखबारी रिपोर्टों और परिवार से जुड़े सूत्रों के मुताबिक इस पर याह्या का कहना था कि उनके बड़े भाई ने दो शादियां की हैं. दूसरी शादी से जो बेटा है वह इस पद के योग्य नहीं है. ऐसे में नायब का पद उन्हें दिया जाना चाहिए.

खैर, याह्या नायब नहीं बन पाए. दोनों भाइयों के बीच तनाव बढ़ता गया. तनाव कम करने और भाई को मनाने के लिए अहमद बुखारी ने पारिवारिक संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा याह्या को देने की पेशकश की और मस्जिद के अंदर और अधिक सक्रिय भूमिका की उनकी मांग को भी मान लिया. भाई को मनाने के लिए अहमद हर तरह से लगे हुए थे कि एकाएक याह्या ने उनसे 2004 के चुनाव में भाजपा का समर्थन करने की मांग कर दी. याह्या की इस मांग पर इमाम बुखारी बेहद चिंतित हुए. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि इससे वे कैसे निपटें. खैर तमाम सोचने विचारने के बाद वे इसके लिए मान गए. इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी हिमायत समिति बनाई गई और हिमायत कारवां नाम से यात्रा निकालकर मुसलमानों से भाजपा का समर्थन करने की अपील की गई.

मगर याह्या बुखारी ने अपने बड़े भाई को भाजपा का समर्थन करने लिए क्यों मजबूर किया? परिवार से जुड़े सूत्र बताते हैं कि याह्या 2004 से एक दशक पहले से ही भाजपा से जुड़े हुए थे. नब्बे के दशक में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में धीरे-धीरे भाजपा ने अल्पसंख्यकों को जोड़ने के लिए मन बनाना शुरू किया. उसी समय प्रमोद महाजन का संपर्क याह्या बुखारी से हुआ. प्रमोद ने याह्या से भाजपा की योजना के बारे में बताया और पार्टी को सपोर्ट करने का प्रस्ताव रखा. 1998 के लोकसभा चुनावों में खुद याह्या बुखारी मुंबई में प्रमोद महाजन के लिए प्रचार करने पहुंचे थे. उस चुनाव में भाजपा के लिए प्रचार करने गए एक मुस्लिम नेता कहते हैं, ‘याह्या को मैंने वहां देखा था. वो भाजपा के लिए वहां प्रचार करने आए थे. हम लोग एक ही होटल में रुके हुए थे.’

2004 में प्रमोद महाजन के कहने पर ही याह्या ने अपने भाई अहमद बुखारी को भाजपा का समर्थन करने के लिए बाध्य किया. अपने राजनीतिक व्यवहार के कारण विवादित रहे बुखारी पर सबसे बड़ा आरोप उस जामा मस्जिद के दुरुपयोग का लग रहा है जिसके वे इमाम हैं. आरोप लगाने वालों का कहना है कि बुखारी परिवार ने इमाम अहमद बुखारी के नेतृत्व में पूरी मस्जिद पर कब्जा कर लिया है और इसे अपनी निजी संपत्ति की तरह प्रयोग कर रहे हैं. वैसे तो कानूनी तौर पर जामा मस्जिद वक्फ की संपत्ति है लेकिन शायद सिर्फ कागजों पर. मस्जिद का पूरा प्रशासन आज सिर्फ बुखारी परिवार के हाथों में ही है.

मस्जिद पर बुखारी परिवार के कब्जे के विरोध में लंबे समय से संघर्ष कर रहे अरशद अली फहमी कहते हैं, ‘पूरी मस्जिद पर बुखारी और उनके भाइयों ने अंदर और बाहर चारों तरफ से कब्जा कर रखा है. मस्जिद का प्रयोग ये अपनी निजी संपत्ति के तौर पर कर रहे हैं. बुखारी जामा मस्जिद के इमाम हैं, जिनका काम नमाज पढ़ाना भर है लेकिन वो मस्जिद के मालिक बन बैठे हैं.’

बुखारी पर इन आरोपों की शुरुआत उस समय हुई जब मस्जिद के एक हिस्से में यात्रियों के लिए बने विश्रामगृह पर इमाम बुखारी ने कब्जा जमा लिया. बुखारी के खिलाफ कई मामलों में कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके सुहैल अहमद खान कहते हैं, ‘जामा मस्जिद में आने वाले यात्रियों के लिए सरकारी पैसे से जो विश्रामगृह बना था उस पर अहमद बुखारी ने अपना कब्जा कर उसे अपना विश्रामगृह बना डाला है. उस विश्रामगृह पर कब्जा करने के साथ ही बगल में उन्होंने अपने बेटे के लिए एक बड़ा घर भी बनवा लिया. बाद में जब मामले ने तूल पकड़ा तो उन्होंने उसे बाथरूम दिखा दिया.’

आरोपों की लिस्ट में सिर्फ ये दो मामले नहीं हैं. सुहैल बताते हैं, ‘डीडीए ने मस्जिद कैंपस में पांच नंबर गेट के पास जन्नतनिशां नाम से एक बड़ा मीटिंग हॉल बनाया था, जो आम लोगों के प्रयोग के लिए था. कुछ समय बाद अहमद बुखारी के छोटे भाई याह्या ने उस पर अपना कब्जा जमा लिया. आज भी उनका उस पर कब्जा है. इसके साथ ही गेट नंबर नौ पर स्थित सरकारी डिस्पेंसरी पर बुखारी के छोटे भाई हसन बुखारी ने कब्जा कर रखा है.

जिस जन्नतनिशां पर याह्या बुखारी के कब्जे की बात सुहैल कर रहे हैं उसी जन्नतनिशां में कुछ समय पहले दुर्लभ वन्य जीवों ब्लैक बक और हॉग डियर के मौजूद होने की खबर और तस्वीरें सामने आईं थी.

2012 में जामा मस्जिद के ऐतिहासिक स्वरूप को कथित अवैध निर्माण से बिगाड़ने संबंधी आरोपों को लेकर अहमद बुखारी के खिलाफ सुहैल कोर्ट गए थे. उन्होंने अपनी याचिका में यह आरोप लगाया कि इमाम व उनके दोनों भाइयों ने जामा मस्जिद में अवैध निर्माण कराया है और वे आसपास अवैध कब्जों के लिए भी जिम्मेदार हैं. आरोपों की जांच के लिए हाई कोर्ट ने एक टीम का गठन किया. बाद में उस टीम ने कोर्ट के समक्ष पेश की गई अपनी रिपोर्ट में इस बात को स्वीकार किया कि हां, मस्जिद में अवैध निर्माण कराया गया है.

‘जामा मस्जिद प्रांगण में तो इस परिवार ने अपना कब्जा जमाया ही है, इसके बाहर भी इस परिवार ने कब्जा कर रखा है. ‘मस्जिद के बाहर उससे सटे हुए सरकारी पार्कों के बारे में बताते हुए अरशद कहते हैं, ‘मस्जिद के चारों तरफ स्थित इन पार्कों पर बुखारी परिवार ने कब्जा कर रखा है. किसी को उन्होंने अपनी पर्सनल पार्किंग बना रखा है तो किसी को उन्होंने यात्रियों के लिए पार्किंग बना रखा है. इससे होने वाली आमदमी सरकारी खाते में नहीं बल्कि बुखारी परिवार के खाते में जाती है.’

2000 में जामा मस्जिद के इमाम बने अहमद बुखारी पर आरोप लगा कि उन्होंने अपने पिता से जबरन अपनी दस्तारबंदी करवाई अवैध कब्जे की ऐसी ही एक कहानी बताते हुए जामा मस्जिद के बाहर मोटर मार्केट में दुकान लगाने वाले तनवीर अख्तर कहते हैं, ‘मस्जिद के गेट नंबर एक के पास कॉर्पोरेशन का एक ग्राउंड है. वो शादी-ब्याह के लिए लंबे समय से इस्तेमाल होता था. लेकिन आज उस पर अहमद बुखारी के भाइयों का कब्जा है. किसी को अगर उस पार्क को शादी आदि के लिए बुक कराना है तो उसे बुखारी परिवार के आदमी को मोटी रकम देनी पड़ती है.’

नाम न छापने की शर्त पर मीना बाजार के एक दुकानदार कहते है, ‘चारों भाइयों ने चारों तरफ से मस्जिद पर कब्जा कर रखा है. इसके अलावा मस्जिद के गेट नंबर दो से लेकर लाल

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जय ललिता ने तमिलनाडु के दो विश्वविद्यालयों में बंद की हिंदी की पढाई !!!

कहा नही पढ़ायेगे हिंदी

साथ ही कहा कि हम हिंदी को बढ़ावा देने वाले हर कदम के खिलाफ हे

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हिंदी हिन्दू और हिंदुस्तान के लिए पुरे देश में जन जागरण का काम कर रहे फेसबुक मिशन के पेज pranay vijay को लाइक कर देश हित में अपना योगदान दीजिये ।

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आपको रोजाना क्रन्तिकारी पोस्ट मिलती रहेंगी
वन्देमातरम —

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अलका लाम्बा


अलका लाम्बा कभी अकेले में सोचना की जो तुम पिछले पांच छ महीने से नरेंद्र मोदी और उनके परिवार पर जो बेहद व्यतिगत निजी और अभद्र टिप्पड़ी कर रही हो क्या वो तुम्हे शोभा देता है ????

अलका मुझे मालूम है की तुम अब बेहद टूट चुकी हो … एक औरत के लिए उसका पति उसका परिवार ही सब कुछ होता है उसका परिवार ही उसका सम्बल होता है .. और आज तुम अपने अंदर झांको की जिन्दगी के इस मोड़ पर पूरी जवानी में ही तुम अकेली क्यों हो

मुझे पता है की तुम अब बेहद फ्रस्टेट और मानसिक रूप से विछिप्त हो चुकी हो … और कोई भी औरत जिसके साथ वो हो जो तुम्हारे साथ हुआ है वो सच में मानसिक रूप से विछिप्त हो जायेगी … तुम आज महिलाओ की बात करती हो … भूल गयी की तुम्हारी सास भी एक महिला थी जिसको बुरी तरह से पीटने का आरोप तुम्हारे उपर लगा है … और तुमने अपने सास और अपने पति को उनके ही घर से निकालकर भगा दिया है .. ये बात खुद तुम्हारा पति लोकेश कपूर कहता है … खैर ये तुम्हारा निजी मामला है …. ठीक वैसे ही निजी जैसे नरेंद्र मोदी जी भी निजी जिन्दगी है जिस पर तुम रोज रोज अभद्र टिप्पड़ी करती हो …

अलका लम्बा याद रखना तुम जशोदाबेन और नरेंद्र मोदी के चरणों के धुल के बराबर भी नही हो … तुमने अपने महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपने पति और सास को लात मारकर उनके ही घर से बेदखल किया है .. और नरेंद्र मोदी ने अपना घर संघ के सेवक के रूप में देश की सेवा करने के लिए छोड़ा है …

काश तुमने टीवी-नाइन गुजराती और दिव्यभास्कर में छपी जशोदाबेन का इंटरव्यू पढ़ा होता … जशोदाबेन जब नरेंद्र मोदी के घर आई थी तब आठवी पास थी .. मोदी जी की प्रेरणा से उन्होंने एम्.ए और पिटीसी किया और सरकारी स्कुल में प्रधानाचार्य बनने के लिए कम्पटीशन दी और पास भी हुई … जशोदाबेन ने खुद कहा की नरेंद्र जी ने मुझसे कहा की मुझे देश के लिए जीना है और देश की सेवा करनी है … आप मेरे घर में ही रहो और खूब पढाई करके किसी अच्छे पोस्ट पर जाओ … जशोदाबेन ने कहा की पढाई के लिए उन्होंने अपने मर्जी से घर छोड़ा था और आज भी परिवार के सभी लोग उनका बहुत ही सम्मान करते है |

अलका लाम्बा .. नरेंद्र मोदी जी ने कुछ महीने पहले ही अपनी पत्नी की याद में लिखी एक कविता संग्रह किताब जाहिर की …. उन कविताओ को पढो ..और सोचो की सच्चा प्रेम किसे कहते है … सच्चा प्रेम और इज्जत कभी साथ रहने का मोहताज नही होता ….

अलका लाम्बा .. एक तरफ तुम अपने पति और अपने सास से कोर्ट कचहरी में मुकदमा लड़ रही हो .. दूसरी तरह उस पतिव्रता जशोदाबेन ने पांच साल पहले कसम खाई थी की जब तक मेरा पति देश का प्रधानमंत्री नही बनेगा तब तक मै बिस्तर पर नही सोयुंगी .. एक टाइम ही खाना खाऊगी और चावल नही खाऊँगी .. और कोई गहना तक नही पहनूंगी .
और देश के सभी प्रमुख चालीस मन्दिरों में प्रसाद चढ़ाउंगी .. और देखो एक पतिव्रता नारी का संकल्प …जशोदाबेन के त्याग और तपस्या से ही नरेंद्र मोदी आज प्रधानमंत्री बन गये और वो भी बम्पर सीटो से …

अलका लाम्बा … कभी अपने अंदर भी झांककर देखा करो …पूरी जिन्दगी दुसरो के जीवन पर निजी व्यतिगत टिप्पड़ी करने से अच्छा है की कभी आँखे बंद करके सोचो की आज तुम इतनी तन्हा ..इतनी टूटी हुई और इतनी निराश क्यों हो ?

अलका लाम्बा ..तुम आज महिलाओ के इज्जत और सम्मान की सीख देती हो तो क्या मोहनलालगंज की बलात्कार पीडिता वो महिला का कुछ इज्जत नही था जिसके नग्न शव की कई तश्वीरे तुमने पूरी जहाँ से सामने परोस दिया था ? क्या तुम्हे जरा भी शर्म नही आई की एक उस महिला की आत्मा कितनी आहत हो रही होगी ? उसे जिन्दा रहते कई दरिंदो ने नोचा और मार दिया फिर मरने के बाद उसे तुमने दुबारा मार दिया |

अलका लाम्बा ..तुम भूल गयी जब तुमने एक नाबालिक बलात्कार पीडिता का नाम पता मीडिया के कैमरों के सामने बताकर उस बच्ची का जीवन नर्क कर दिया ? तुम्हे तुम्हारे बेटे की कसम .सच सच बताना क्या तुम दुबारा कभी आसाम जाकर उस नाबालिक लड़की का हाल चाल लिया जिसका नाम पता तुमने जाहिर करके उसे बर्बाद कर दिया ? क्या फर्क रहा उन दरिंदो में और तुमने ? उन दरिंदो ने उसे नोचा और तुमने भी उसे नोचा .. उन दरिंदो ने उसके शरीर को नोचा तो तुमने उसकी आत्मा को नोचा …

अलका लाम्बा … दरअसल तुम आम आदमी पार्टी में आकर बिलकुल खत्म हो चुकी हो और तुम्हारी परेशानी की असली वजह भी यही है … तुम जब कांग्रेस में थी तब एक कुशल वक्ता एक जुझारू नेता थी … तुमने अपनी महत्वाकांक्षा के लिए सब कुछ दांव पर लगाकर बहुत बड़ी पद पर भी गयी .. और उस पद के लिए तुमने बहुत कुछ दांव पर भी लगाया होगा क्योकि कांग्रेस में किसी भी महिला का बड़े पद पर जाना आसान नही है … फिर तुम्हे लगा होगा की केजरीवाल ही देश के भविष्य के नेता है और तुम केजरीवाल के साथ आ गयी … मुझे पता भी है की तुमने नरेंद्र मोदी और उनके खानदान पर जितने भी अभद्र, निजी बाते की वो केजरीवाल के ईशारे पर ही की .. क्योकि पहले कभी भी तुम्हारा ये चरित्र नही था … तुम जब कांग्रेस में थी तब तुम किसी भी नेता पर निजी अभद्र बाते नही करती थी … लेकिन जब तुम केजरीवाल के दलदल में नीचो, वामपंथीओ और आवारा लोगो के बीच आई तब तुम बदल गयी … शायद तुम्हे केजरीवाल ने कहा होगा की तुम नरेंद्र मोदी पर जितना गंदा पोस्ट करोगी तुम्हे आम आदमी पार्टी में उतना ही बड़ा पद मिलेगा … चूँकि आज तुम्हारे पास कोई पति नही है जो तुम्हे समझाये की क्या सही है और क्या गलत इसलिए तुम केजरीवाल की बातो में बहक गयी ..

अलका लाम्बा …बिना मांगे एक मुफ्त में सलाह दे रहा हूँ … अभी तुम्हारे सामने पहाड़ जैसी पूरी जिन्दगी है … सबसे पहले अपना मानसिक ईलाज किसी अच्छे डाक्टर से करवाओ और आम आदमी पार्टी के दलदल में बाहर निकलो ..

अलका लाम्बा कभी अकेले में सोचना की जो तुम पिछले पांच छ महीने से नरेंद्र मोदी और उनके परिवार पर जो बेहद व्यतिगत निजी और अभद्र टिप्पड़ी कर रही हो क्या वो तुम्हे शोभा देता है ????

अलका मुझे मालूम है की तुम अब बेहद टूट चुकी हो ... एक औरत के लिए उसका पति उसका परिवार ही सब कुछ होता है उसका परिवार ही उसका सम्बल होता है .. और आज तुम अपने अंदर झांको की जिन्दगी के इस मोड़ पर पूरी जवानी में ही तुम अकेली क्यों हो 

मुझे पता है की तुम अब बेहद फ्रस्टेट और मानसिक रूप से विछिप्त हो चुकी हो ... और कोई भी औरत जिसके साथ वो हो जो तुम्हारे साथ हुआ है वो सच में मानसिक रूप से विछिप्त हो जायेगी ... तुम आज महिलाओ की बात करती हो ... भूल गयी की तुम्हारी सास भी एक महिला थी जिसको बुरी तरह से पीटने का आरोप तुम्हारे उपर लगा है ... और तुमने अपने सास और अपने पति को उनके ही घर से निकालकर भगा दिया है .. ये बात खुद तुम्हारा पति लोकेश कपूर कहता है ... खैर ये तुम्हारा निजी मामला है .... ठीक वैसे ही निजी जैसे नरेंद्र मोदी जी भी निजी जिन्दगी है जिस पर तुम रोज रोज अभद्र टिप्पड़ी करती हो ...

अलका लम्बा याद रखना तुम जशोदाबेन और नरेंद्र मोदी के चरणों के धुल के बराबर भी नही हो ... तुमने अपने महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपने पति और सास को लात मारकर उनके ही घर से बेदखल किया है .. और नरेंद्र मोदी ने अपना घर संघ के सेवक के रूप में देश की सेवा करने के लिए छोड़ा है ... 

काश तुमने टीवी-नाइन गुजराती और दिव्यभास्कर में छपी जशोदाबेन का इंटरव्यू पढ़ा होता ... जशोदाबेन जब नरेंद्र मोदी के घर आई थी तब आठवी पास थी .. मोदी जी की प्रेरणा से उन्होंने एम्.ए और पिटीसी किया और सरकारी स्कुल में प्रधानाचार्य बनने के लिए कम्पटीशन दी और पास भी हुई ... जशोदाबेन ने खुद कहा की नरेंद्र जी ने मुझसे कहा की मुझे देश के लिए जीना है और देश की सेवा करनी है ... आप मेरे घर में ही रहो और खूब पढाई करके किसी अच्छे पोस्ट पर जाओ ... जशोदाबेन ने कहा की पढाई के लिए उन्होंने अपने मर्जी से घर छोड़ा था और आज भी परिवार के सभी लोग उनका बहुत ही सम्मान करते है |

अलका लाम्बा .. नरेंद्र मोदी जी ने कुछ महीने पहले ही अपनी पत्नी की याद में लिखी एक कविता संग्रह किताब जाहिर की .... उन कविताओ को पढो ..और सोचो की सच्चा प्रेम किसे कहते है ... सच्चा प्रेम और इज्जत कभी साथ रहने का मोहताज नही होता .... 

अलका लाम्बा .. एक तरफ तुम अपने पति और अपने सास से कोर्ट कचहरी में मुकदमा लड़ रही हो .. दूसरी तरह उस पतिव्रता जशोदाबेन ने पांच साल पहले कसम खाई थी की जब तक मेरा पति देश का प्रधानमंत्री नही बनेगा तब तक मै बिस्तर पर नही सोयुंगी .. एक टाइम ही खाना खाऊगी और चावल नही खाऊँगी .. और कोई गहना तक नही पहनूंगी .
और देश के सभी प्रमुख चालीस मन्दिरों में प्रसाद चढ़ाउंगी .. और देखो एक पतिव्रता नारी का संकल्प ...जशोदाबेन के त्याग और तपस्या से ही नरेंद्र मोदी आज प्रधानमंत्री बन गये और वो भी बम्पर सीटो से ... 

अलका लाम्बा ... कभी अपने अंदर भी झांककर देखा करो ...पूरी जिन्दगी दुसरो के जीवन पर निजी व्यतिगत टिप्पड़ी करने से अच्छा है की कभी आँखे बंद करके सोचो की आज तुम इतनी तन्हा ..इतनी टूटी हुई और इतनी निराश क्यों हो ?

अलका लाम्बा ..तुम आज महिलाओ के इज्जत और सम्मान की सीख देती हो तो क्या मोहनलालगंज की बलात्कार पीडिता वो महिला का कुछ इज्जत नही था जिसके नग्न शव की कई तश्वीरे तुमने पूरी जहाँ से सामने परोस दिया था ? क्या तुम्हे जरा भी शर्म नही आई की एक उस महिला की आत्मा कितनी आहत हो रही होगी ? उसे जिन्दा रहते कई दरिंदो ने नोचा और मार दिया फिर मरने के बाद उसे तुमने दुबारा मार दिया |

अलका लाम्बा ..तुम भूल गयी जब तुमने एक नाबालिक बलात्कार पीडिता का नाम पता मीडिया के कैमरों के सामने बताकर उस बच्ची का जीवन नर्क कर दिया ? तुम्हे तुम्हारे बेटे की कसम .सच सच बताना क्या तुम दुबारा कभी आसाम जाकर उस नाबालिक लड़की का हाल चाल लिया जिसका नाम पता तुमने जाहिर करके उसे बर्बाद कर दिया ? क्या फर्क रहा उन दरिंदो में और तुमने ? उन दरिंदो ने उसे नोचा और तुमने भी उसे नोचा .. उन दरिंदो ने उसके शरीर को नोचा तो तुमने उसकी आत्मा को नोचा ...

अलका लाम्बा ... दरअसल तुम आम आदमी पार्टी में आकर बिलकुल खत्म हो चुकी हो और तुम्हारी परेशानी की असली वजह भी यही है ... तुम जब कांग्रेस में थी तब एक कुशल वक्ता एक जुझारू नेता थी ... तुमने अपनी महत्वाकांक्षा के लिए सब कुछ दांव पर लगाकर बहुत बड़ी पद पर भी गयी .. और उस पद के लिए तुमने बहुत कुछ दांव पर भी लगाया होगा क्योकि कांग्रेस में किसी भी महिला का बड़े पद पर जाना आसान नही है ... फिर तुम्हे लगा होगा की केजरीवाल ही देश के भविष्य के नेता है और तुम केजरीवाल के साथ आ गयी ... मुझे पता भी है की तुमने नरेंद्र मोदी और उनके खानदान पर जितने भी अभद्र, निजी बाते की वो केजरीवाल के ईशारे पर ही की .. क्योकि पहले कभी भी तुम्हारा ये चरित्र नही था ... तुम जब कांग्रेस में थी तब तुम किसी भी नेता पर निजी अभद्र बाते नही करती थी ... लेकिन जब तुम केजरीवाल के दलदल में नीचो, वामपंथीओ और आवारा लोगो के बीच आई तब तुम बदल गयी ... शायद तुम्हे केजरीवाल ने कहा होगा की तुम नरेंद्र मोदी पर जितना गंदा पोस्ट करोगी तुम्हे आम आदमी पार्टी में उतना ही बड़ा पद मिलेगा ... चूँकि आज तुम्हारे पास कोई पति नही है जो तुम्हे समझाये की क्या सही है और क्या गलत इसलिए तुम केजरीवाल की बातो में बहक गयी ..

अलका लाम्बा ...बिना मांगे एक मुफ्त में सलाह दे रहा हूँ ... अभी तुम्हारे सामने पहाड़ जैसी पूरी जिन्दगी है ... सबसे पहले अपना मानसिक ईलाज किसी अच्छे डाक्टर से करवाओ और आम आदमी पार्टी के दलदल में बाहर निकलो ..
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स्वतंत्रताके समयका एवं आजका भारत !


स्वतंत्रताके समयका एवं आजका भारत !
१९४७ में जहां १ पैसेका भी ऋण नहीं था, उस भारतमें आज प्रत्येक नागरिक अपने सिरपर ३२,८१२ रुपयोंके ऋणका भार ढो रहा है । १९४७ में ३३ प्रतिशतसे अधिक निर्यात करनेवाला भारत आज १ प्रतिशतसे भी अल्प निर्यात कर रहा है । जहां अधिकसे अधिक १० से २० विदेशी प्रतिष्ठान थे, उस
भारतमें आज ५,००० से भी अधिक विदेशी प्रतिष्ठानोंको सिरपर उठाया जा रहा है । जहां एक भी संवेदनशील जनपद (जिला) नहीं था, उस भारतमें आज ३०० से भी अधिक जनपद संवेदनशील बन गए हैं । जहां प्रति नागरिक एक-दो गौएं होती थीं, उस भारतमें अबाध गोहत्याके कारण आज १२ व्यक्तियोंपर एक गाय है । विदेशमें जाकर अत्याचारी कर्जन वाइली, ओडवायर जैसे शासकोंको ईसावासी करनेवाला भारत आज संसदपर आक्रमण करनेवाले अफजलको फांसी देनेसे कतरा रहा है !

देशाभिमान जागृत रखनेवाले भारतसे, देशाभिमान गिरवी रखनेवाला भारत, निम्नतम भ्रष्टाचार करनेवाले भारतसे भ्रष्टाचारकी उच्चतम सीमातक पहुंचा भारत, सीमापार झंडा फहरानेवाले भारतसे आज नहीं तो कल, कश्मीरसे हाथ धो बैठनेकी प्रतीक्षा करनेवाला भारत… यह सूची लिखते समय भी मन आक्रोशित हो रहा है; परंतु ‘गणकी तो दूर, मनकी भी लज्जा न रखनेवाले’ शासनकर्ता सर्वत्र गर्वसे सीना तानकर घूम रहे हैं । मुसलमान आक्रमणकारियों एवं धूर्त ब्रिटिशोंने भी भारतीय जनताको जितना त्रस्त नहीं किया, उससे सैकडों गुना लोकतंत्रद्वारा उपहारस्वरूप मिले इन शासनकर्ताओंने मात्र ६ दशकोंमें कर दिया है !

‘लोगोंद्वारा, लोगोंके लिए, लोगोंका शासन’, लोकतंत्रकी ऐसी व्याख्या, भारत जैसे विश्वके सबसे बडे देशके लिए ‘स्वार्थांधोंद्वारा स्वार्थके लिए चयनित (निर्वाचित) स्वार्थी शासनकर्ताओंका शासन’, ऐसी हो चुकी है ।
इस लेखमालिकामें भारतकी अनेक समस्याएं वर्णित हैं । ये समस्याएं पढकर कुछ लोगोंके मनमें संदेह उत्पन्न होगा कि ‘हिन्दू राष्ट्र’में ये समस्याएं दूर कैसे होंगी ? क्या इतिहासमें ऐसा कभी हुआ है ? ऐसा समझनेवाले लोग यह समझ लें कि – हां, इतिहासमें ऐसा हुआ है ! छत्रपति शिवाजी महाराजका ‘हिन्दू राष्ट्र (हिंदवी स्वराज्य)’ स्थापित होते ही ऐसी तत्कालीन समस्याएं दूर हुई हैं !

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आय से अधिक संपत्ति के मामले में बंगलौर की एक विशेष अदालत ने तमिलनाडु मुख्यमंत्री जे जयललिता को दोषी क़रार दिया है
‪#‎जयललिता‬ को छोड़नी पढ सकती है CM की कुर्सी

आय से अधिक संपत्ति के मामले में जयललिता दोषी साबित, राज्य के विभिन्न हिस्सों की बिजली काटी गई !! जयललिता पर 18 साल पहले आय से ज़्यादा सम्पत्ति का केस दर्ज हुआ था.तब वो पहली दफ़ा CM बनीं थीं..अब तीसरी बार CM हैं,तब फ़ैसला आया..’1991 में CM बनने के बाद जयललिता ने 3Cr सम्पत्ति घोषित की वो 1 रु वेतन लेती थीं.कार्यकाल पूरा होने पर उनकी सम्पत्ति 66Cr थी !!

न्यायालय के फैसले के बाद कितनी करोड़ की सार्वजनिक सम्पत्ति स्वाह होती है तमिलनाडु मे इसके आकलन के लिए भी तैयार रहे।काँची के शंकराचार्य को झूठे आरोप मेँ फँसाकर अपमानित करने वाली जयललिता को उसके कर्मोँ का फल मिल चुका है

आय से अधिक संपत्ति के मामले में बंगलौर की एक विशेष अदालत ने तमिलनाडु मुख्यमंत्री जे जयललिता को दोषी क़रार दिया है
#जयललिता को छोड़नी पढ सकती है CM की कुर्सी 

आय से अधिक संपत्ति के मामले में जयललिता दोषी साबित, राज्य के विभिन्न हिस्सों की बिजली काटी गई !! जयललिता पर 18 साल पहले आय से ज़्यादा सम्पत्ति का केस दर्ज हुआ था.तब वो पहली दफ़ा CM बनीं थीं..अब तीसरी बार CM हैं,तब फ़ैसला आया..'1991 में CM बनने के बाद जयललिता ने 3Cr सम्पत्ति घोषित की वो 1 रु वेतन लेती थीं.कार्यकाल पूरा होने पर उनकी सम्पत्ति 66Cr थी !!

न्यायालय के फैसले के बाद कितनी करोड़ की सार्वजनिक सम्पत्ति स्वाह होती है तमिलनाडु मे इसके आकलन के लिए भी तैयार रहे।काँची के शंकराचार्य को झूठे आरोप मेँ फँसाकर अपमानित करने वाली जयललिता को उसके कर्मोँ का फल मिल चुका है
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नटवर सिंह का नया खुलासा, कहा-


BREAKING NEWS-
नटवर सिंह का नया खुलासा, कहा- अमेरिका से पूछकर मंत्री तय करते थे मनमोहन सिंह मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तब, अमेरिका भारत के अंदरूनी मामलों में इस क़दर दखलंदाजी करता था कि कौन-सा मंत्रालय किसे मिले और किसे नहीं, ये तो गिरने की भी हद हो गई, ये घटिया, घोटालेबाज कांग्रेसी नेता इतने गिर गए गए है की इनमे देशभक्ति नाम की कोई चीज ही नहीं बची है, क्या भारत की जनता इनके कुकर्मो के लिए इनको कभी माफ़ करेगी ?

BREAKING NEWS-
नटवर सिंह का नया खुलासा, कहा- अमेरिका से पूछकर मंत्री तय करते थे मनमोहन सिंह मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तब, अमेरिका भारत के अंदरूनी मामलों में इस क़दर दखलंदाजी करता था कि कौन-सा मंत्रालय किसे मिले और किसे नहीं, ये तो गिरने की भी हद हो गई, ये घटिया, घोटालेबाज कांग्रेसी नेता इतने गिर गए गए है की इनमे देशभक्ति नाम की कोई चीज ही नहीं बची है, क्या भारत की जनता इनके कुकर्मो के लिए इनको कभी माफ़ करेगी ?

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Law catches up after 18 Years. Now 4 Years in Jail
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Jayalalithaa has been convicted under section 120, 109. And 13 (1) E the prevention of Corruption Act which disqualifies her as an MLA immediately, will have to step down as Chief Minister.
Along with her, her aide Sasikala Natarajan, VK Sundhakaran, & Sasikala's relative Ilavarasi have been found guilty. Rs 25 Crore per guilty has been imposed by the courts (total fine of 100 Crore)

Criminal complaint was filed on 14th June 1996 by Dr Swamy . Principal Session judge took cognizance of the offence and directed Letika Sarkar (IPS) to investigate the case.
Then M Karunanidhi as CM copied Dr. Swamy's complaint and asked Public Prosecutor to file it again. He asked permission from Dr. Swamy to conduct the case and he agreed.
Now, on 27th September 2014, Court gives the Verdict: GUILTY

Following this, Jaya was taken into custody and the National Flag was removed from her vehicle.
Chaos in TN, all regular buses from Chennai to Bangalore were cancelled for the day.
Karunanidhi camp celebrates (party whose own leader Kanimozhi is framed with corruption charges)
Jayalalitha supporters beat up photographs of Dr. Swamy with slippers and shoes, burn it after that. His Chennai house is attacked by an angry mob.

Latest Status of three largest Opposition parties in Lok Sabha...
1—Cong (Sonia to face trial in National Herald case)
2—AIADMK (Jaya convicted in DA case)
3—TMC (Mamata faces Saradha scam as Hasina is about to send more proof to GoI).
#JayaVerdict

Law catches up after 18 Years. Now 4 Years in Jail
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Jayalalithaa has been convicted under section 120, 109. And 13 (1) E the prevention of Corruption Act which disqualifies her as an MLA immediately, will have to step down as Chief Minister.
Along with her, her aide Sasikala Natarajan, VK Sundhakaran, & Sasikala’s relative Ilavarasi have been found guilty. Rs 25 Crore per guilty has been imposed by the courts (total fine of 100 Crore)

Criminal complaint was filed on 14th June 1996 by Dr Swamy . Principal Session judge took cognizance of the offence and directed Letika Sarkar (IPS) to investigate the case.
Then M Karunanidhi as CM copied Dr. Swamy’s complaint and asked Public Prosecutor to file it again. He asked permission from Dr. Swamy to conduct the case and he agreed.
Now, on 27th September 2014, Court gives the Verdict: GUILTY

Following this, Jaya was taken into custody and the National Flag was removed from her vehicle.
Chaos in TN, all regular buses from Chennai to Bangalore were cancelled for the day.
Karunanidhi camp celebrates (party whose own leader Kanimozhi is framed with corruption charges)
Jayalalitha supporters beat up photographs of Dr. Swamy with slippers and shoes, burn it after that. His Chennai house is attacked by an angry mob.

Latest Status of three largest Opposition parties in Lok Sabha…
1—Cong (Sonia to face trial in National Herald case)
2—AIADMK (Jaya convicted in DA case)
3—TMC (Mamata faces Saradha scam as Hasina is about to send more proof to GoI).
‪#‎JayaVerdict‬

Posted in ज्योतिष - Astrology

कलावा (मौली) बांधने का वैज्ञानिक राज।


कलावा (मौली) बांधने का वैज्ञानिक राज।

अक्सर घरों और मंदिरों में पूजा में पंडित जी हमारी कलाई पर लाल रंग का कलावा या मौली बांधते हैं। हम में से बहुत से लोग बिना इसकी जरुरत को पहचाते हुए इसे हाथों में बंधवा लेते हैं।

लेकिन हिंदू धर्म में कोई भी काम बिना वैज्ञानिक दृष्टि से हो कर नहीं गुजरता।मौली का धागा कोई ऐसा वैसा नहीं होता।

यह कच्चे सूत से तैयार किया जाता है।
यह कई रंगों जैसे, लाल,काला, पीला,
सफेदया नारंगी रंगों में होती है।

कलावा को लोग हाथ, गले, बाजूऔ कमर पर बांधते हैं। कलावा बांध ने से आपको भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वतीव सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है।

इससे आप हमेशा बुरी दृष्टि से बचे रह सकते हैं। लेकिन केवल यही नहीं इसे हाथों में बांध ने से स्वास्थ्य में भी बरकत होती है। इस धागेको कलाई पर बांधने से शरीर में वात,पित्त तथा कफके दोष में सामंजस्य बैठता है।

पूजा पाठ के समय धोती पहनना क्यूं आवश्यक है
माना जाता है कि कलावा बांधने से रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह और लकवा जैसे गंभीर रोगों से काफी हद तक बचाव होता है। शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है, इसलिये इसे बांधने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है।

इस बातकी भी सलाह दी जाती है कि कलावा बांधने से रक्तचाप, हृदय रोग,मधुमेह और लकवा जैसे गंभीर रोगों से काफी हद तक बचाव होता है।

कब कैसे धारण करें कलावा?

शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए। विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में कलावा बांध ने का नियम है। कलावा बंधवाते समय जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों उसकी मुठ्ठी बंधी होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए। पर्व त्योहार के अलावा किसी अन्य दिन कलावा बांध ने के लिए मंगलवार और शनिवार का दिन शुभ माना जाता

कलावा (मौली) बांधने का वैज्ञानिक राज।

अक्सर घरों और मंदिरों में पूजा में पंडित जी हमारी कलाई पर लाल रंग का कलावा या मौली बांधते हैं। हम में से बहुत से लोग बिना इसकी जरुरत को पहचाते हुए इसे हाथों में बंधवा लेते हैं।

लेकिन हिंदू धर्म में कोई भी काम बिना वैज्ञानिक दृष्टि से हो कर नहीं गुजरता।मौली का धागा कोई ऐसा वैसा नहीं होता।

यह कच्चे सूत से तैयार किया जाता है।
यह कई रंगों जैसे, लाल,काला, पीला,
सफेदया नारंगी रंगों में होती है। 

कलावा को लोग हाथ, गले, बाजूऔ कमर पर बांधते हैं। कलावा बांध ने से आपको भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वतीव सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है। 

इससे आप हमेशा बुरी दृष्टि से बचे रह सकते हैं। लेकिन केवल यही नहीं इसे हाथों में बांध ने से स्वास्थ्य में भी बरकत होती है। इस धागेको कलाई पर बांधने से शरीर में वात,पित्त तथा कफके दोष में सामंजस्य बैठता है।

पूजा पाठ के समय धोती पहनना क्यूं आवश्यक है
माना जाता है कि कलावा बांधने से रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह और लकवा जैसे गंभीर रोगों से काफी हद तक बचाव होता है। शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है, इसलिये इसे बांधने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। 

इस बातकी भी सलाह दी जाती है कि कलावा बांधने से रक्तचाप, हृदय रोग,मधुमेह और लकवा जैसे गंभीर रोगों से काफी हद तक बचाव होता है।

कब कैसे धारण करें कलावा?

शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए। विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में कलावा बांध ने का नियम है। कलावा बंधवाते समय जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों उसकी मुठ्ठी बंधी होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए। पर्व त्योहार के अलावा किसी अन्य दिन कलावा बांध ने के लिए मंगलवार और शनिवार का दिन शुभ माना जाता